मंगलवार, 25 मार्च 2025

नवरात्रि मे पूजा विधि व माँ के नों रूपों का महत्व

 

नवरात्रि मे पूजा विधि व माँ के नों रूपों का महत्व

सतीश शर्मा 

नवरात्रि के पहले दिन, जो कि प्रतिपदा है, माता के शैलपुत्री रूप की पूजा की जाती है। 

शैलपुत्री माता – नवरात्रि के पहले दिन माता शैलपुत्री की पूजा का विधान है। पर्वतराज हिमालय की पुत्री होने के कारण माता पार्वती को शैलपुत्री कहा जाता है। मां दुर्गा के नौ रूपों में शैलपुत्री प्रथम स्वरूप हैं। सौम्यता, करुणा और धैर्य का प्रतीक – आदिशक्ति के इस स्वरूप को सौम्यता, करुणा, स्नेह और धैर्य का प्रतीक माना जाता है. 

माता को सफेद रंग की चीजें प्रिय हैं, इसलिए उन्हें सफेद बर्फी, दूध से बनी मिठाई, हलवा, रबड़ी या मावे के लड्डू आदि का भोग लगाना चाहिए 

नवरात्रि के दूसरे दिन माता दुर्गा के ब्रह्मचारिणी रूप की पूजा की जाती है, जो तपस्या, त्याग और वैराग्य का प्रतीक है. 

ब्रह्मचारिणी माता के बारे में – देवी ब्रह्मचारिणी ने भगवान शिव को पति के रूप में पाने के लिए कठोर तपस्या की थी, इसलिए उन्हें तपस्या का प्रतीक माना जाता है. उन्हें ज्ञान, तपस्या और वैराग्य की देवी भी माना जाता है. साधना और दृढ़ संकल्प – उनकी आराधना से साधक को अपार शक्ति और दृढ़ संकल्प की प्राप्ति होती है. उनके एक हाथ में कमंडल और दूसरे हाथ में जप माला होती है. 

पूजन विधि – नवरात्रि के दूसरे दिन उनकी पूजा करने का विधान है. 

मंत्र – देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा॥ 

भोग – माता को दूध से बनी चीजें या चीनी का भोग लगाएं. 

नवदुर्गा के नौ स्वरूपों में से माता का तीसरा रूप चंद्रघंटा है, जो शक्ति, शांति और साहस का प्रतीक है. माता चंद्रघंटा का स्वरूप अत्यंत शांत और कल्याणकारी है. उनके माथे पर घंटे के आकार का अर्धचंद्र है, इसलिए उन्हें चंद्रघंटा कहा जाता है. वे बाघ पर सवार होती हैं. वे साहस, शांति और समृद्धि का प्रतीक हैं. 

पूजा का महत्व – नवरात्रि के तीसरे दिन उनकी पूजा की जाती है. उन्हें दूध से बनी मिठाई, खीर या शहद का भोग लगाया जाता है. 

मंत्र – “या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै, नमस्तस्यै नमो नमः॥” 

कथा – नवरात्रि के तीसरे दिन माता चंद्रघंटा की कथा सुनी जाती है. शुभ रंग – लाल रंग. 

नवरात्रि के चौथे दिन, माता दुर्गा के कुष्मांडा रूप की पूजा की जाती है, जिन्हें सृष्टि की रचना करने वाली और अष्टभुजा देवी भी कहा जाता है. मान्यता है कि जब सृष्टि का निर्माण नहीं हुआ था, तब कुष्मांडा माता ने अपनी हल्की मुस्कान से ब्रह्मांड की रचना की थी. कुष्मांडा माता को आठ भुजाओं वाली देवी के रूप में भी जाना जाता है. माता की पूजा से भक्तों के कष्ट, रोग और शोक दूर होते हैं, और उन्हें दीर्घायु, यश और समृद्धि प्राप्त होती है. 

पूजा विधि – नवरात्रि के चौथे दिन, कुष्मांडा माता की पूजा करने के लिए, स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें, पूजा स्थल को शुद्ध करें, माता की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें, और उन्हें फूल, माला, फल, और भोग अर्पित करें. 

मंत्र – “वन्दे वांछित कामर्थे चन्द्रार्घकृत शेखराम्। सिंहरूढा अष्टभुजा कुष्माण्डा यशस्वनीम्॥” 

भोग – माता को सफेद चीजों का भोग लगाना शुभ माना जाता है. पूजा के अंत में माता की आरती करें. कुष्मांडा माता को कुम्हड़े (कद्दू) का भोग अर्पित करना शुभ माना जाता है. 

नवरात्रि के पांचवे दिन, माता दुर्गा के स्कंदमाता रूप की पूजा की जाती है, जो भगवान स्कंद (कार्तिकेय) की माता हैं। स्कंदमाता को कमल के आसन पर विराजमान दर्शाया जाता है, और उनकी गोद में शिशु स्कंद (कार्तिकेय) बैठे होते हैं. स्कंदमाता की पूजा करने से संतान सुख, सुख-समृद्धि, और मोक्ष की प्राप्ति होती है. स्कंदमाता को केले का भोग लगाना चाहिए. 

मंत्र – “सिंहासनगता नित्यं, पद्माश्रितकरद्वया। शुभदास्तु सदा देवी, स्कंदमाता यशस्विनी”. 

स्कंदमाता को पद्मासना देवी भी कहा जाता है. 

नवरात्रि के छठे दिन, यानी षष्ठी तिथि को, मां दुर्गा के छठे स्वरूप, मां कात्यायनी की पूजा की जाती है। मां कात्यायनी को ऋषि कात्यायन की पुत्री माना जाता है, इसलिए उनका नाम कात्यायनी पड़ा। 

नवरात्रि के छठे दिन, मां कात्यायनी की पूजा करने से व्यक्ति को धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति होती है. पौराणिक कथाओं के अनुसार, ब्रज की गोपियों ने भगवान कृष्ण को पति के रूप में पाने के लिए मां कात्यायनी की आराधना की थी. नवरात्रि के छठे दिन लाल रंग के कपड़े पहनने चाहिए. मां कात्यायनी को गेंदे के फूल प्रिय हैं. 

ध्यान मंत्र – वन्दे वाञ्छित मनोरथार्थ चन्द्रार्धकृतशेखराम्। सिंहारूढा चतुर्भुजा कात्यायनी यशस्विनीम्॥ 

नवरात्रि के सप्तमी वाले दिन, माता दुर्गा के सातवें रूप, मां कालरात्रि की आराधना की जाती है. मान्यता है कि माँ कालरात्रि की पूजा करने से सभी प्रकार के भय, बाधाएं और नकारात्मकता का नाश होता है. 

पूजा विधि – सुबह स्नान करके साफ कपड़े पहनें. माता की प्रतिमा को गंगाजल या शुद्ध जल से स्नान कराएं. माता को लाल रंग के वस्त्र, रोली, कुमकुम, पुष्प, धूप, और दीप अर्पित करें. गुड़ और उड़द से बने पदार्थों का भोग लगाएं. मां कालरात्रि के मंत्रों का जाप करें. 

मंत्र – “ॐ कालरात्र्यै नमः” “या देवी सर्वभू‍तेषु माँ कालरात्रि रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः” 

मां कालरात्रि को गुड़ और उड़द से बने पदार्थों का भोग लगाया जाता है. मान्यता है कि मां कालरात्रि त्रिनेत्र वाली देवी हैं और उनकी सवारी गर्दभ है. 

नवरात्रि के अष्टमी तिथि पर, माँ दुर्गा के आठवें स्वरूप, माँ महागौरी की पूजा की जाती है. माँ महागौरी का स्वरूप रंग अत्यंत गोरा होता है. उनकी चार भुजाएँ होती हैं. वे बैल (वृषभ) की सवारी करती हैं. वे भगवान शिव की अर्धांगिनी मानी जाती हैं. वे प्रेम, मातृत्व, पवित्रता और सुंदरता की प्रतीक हैं. 

अष्टमी का महत्व – अष्टमी तिथि को धार्मिक दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है. इस दिन कन्या पूजन और हवन का आयोजन किया जाता है. मान्यता है कि इस दिन माँ की आराधना करने से पुण्य फल की प्राप्ति होती है. 

पूजा विधि – माँ महागौरी को सफेद वस्त्र और आभूषण अर्पित करें. सफेद रंग की मिठाई और नारियल की खीर भोग में चढ़ाएं. पीले, लाल और सफेद रंग के फूल अर्पित करें. “महागौरी शुभं दद्यान्महादेव प्रमोददा” मंत्र का जाप करें.

नवरात्रि के नौवें दिन, जिसे महानवमी भी कहते हैं, माता का रूप सिद्धिदात्री होता है। यह माता दुर्गा का नौवां और अंतिम स्वरूप है, जो सभी सिद्धियों की दाता मानी जाती हैं। सिद्धिदात्री का अर्थ है, जो सिद्धियों को प्रदान करने वाली है। माता सिद्धिदात्री को सभी प्रकार की सिद्धियों की देवी माना जाता है। माता सिद्धिदात्री चार हाथों वाली होती हैं, कमल पर विराजमान होती हैं और उनका वाहन सिंह होता है। माता सिद्धिदात्री की पूजा करने से भक्तों को सभी प्रकार की सिद्धियां प्राप्त होती हैं और सभी इच्छाएं पूर्ण होती हैं। माता को खीर, पूरी और हलवा का भोग लगाया जाता है। माता दुर्गा के नौ रूपों में से अन्य रूप हैं: शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि और महागौरी. 

 

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श्रवण नक्षत्र का महत्व व उपाय

 श्रवण नक्षत्र, वैदिक ज्योतिष के 27 नक्षत्रों में से 22वां नक्षत्र है. इसे भगवान विष्णु का नक्षत्र माना जाता है। इस नक्षत्र में जन्मे लोग रचनात्मक, बुद्धिमान, और परिश्रमी होते हैं।

श्रवण नक्षत्र से जुड़े कुछ अन्य तथ्य व जानकारी -

इस नक्षत्र का स्वामी चंद्रमा है,इस नक्षत्र का प्रतीक कान और बाण है,इस नक्षत्र के चारों चरण मकर राशि में आते हैं,इस नक्षत्र में जन्मे लोग दूसरों की परेशानी नहीं देख सकते और उनकी मदद के लिए हमेशा तैयार रहते हैं,इस नक्षत्र में जन्मे लोग स्वच्छता पसंद करते हैं,इस नक्षत्र में जन्मे लोग यात्राओं के शौकीन होते हैं,इस नक्षत्र में जन्मे लोग सीखने और पढ़ने की चाहत रखते हैं,इस नक्षत्र में जन्मे लोग धर्म-कर्म में रुचि रखते हैं,इस नक्षत्र में जन्मे लोग ज्ञान की गहराई रखते हैं,इस नक्षत्र में जन्मे लोग उदार और दायलु होते हैं,इस नक्षत्र में जन्मे लोग सरल स्वभाव के कारण मित्रों और सगे-संबंधियों में लोकप्रिय होते हैं।इस नक्षत्र का नाम माता-पिता के भक्त श्रवण कुमार के नाम पर रखा गया है।

श्रवण नक्षत्र में जन्म लेने वाले जातकों के लिए कुछ उपाय हैं, जैसे कि कपास की जड़ को भुजा में बांधना, ब्राह्मणों को भोजन कराना, और आक के पौधे को घर में लगाना या उपहार स्वरूप देना,अपामार्ग की जड़ को भुजा में बांधने से रोग का शमन होता है।कपास की जड़ को भुजा में बांधने से लाभ होता है।किसी जरूरतमंद बच्चे को विषय की पुस्तकें दान करें। "ॐ ऋं, ॐ ऌं" मंत्र का जाप करें। आक के पौधे को घर में लगाएं और जल दें।आक के वृक्षों को लोगों को उपहार स्वरूप भी दें।

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शुक्रवार, 21 मार्च 2025

शनि ग्रह की जानकारी व उपाय , शनि की साढ़ेसाती एवं ढैय्या

 


शनि ग्रह 

शनिग्रह:- नौ ग्रहों में शनि बृहस्पति के बाद सबसे बड़ा ग्रह है। शनिग्रह एक राशि में ढाई वर्ष भ्रमण करता है। शनि सभी द्वादश (बारह) राशि घूमने के लिए तीस साल का समय लेता है। तीन राशियों की कालावधि को साढे सात वर्ष लगते हैं इसीलिए इस काल को साढेसाती कहते हैं।शनिदेव हैं पश्चिम दिशा के स्वामी, इस दिशा में दोष होने पर लाइफ में बनी रहती हैं परेशानियां,ध्यान रखें ये बाते वास्तु में दस दिशाओं को महत्व बताया गया है। 

इन सभी दिशाओं का एक-एक प्रतिनिधि ग्रह होता है, जिसका प्रभाव उस दिशा से होता है। उसी के अनुसार पश्चिम दिशा पर शनिदेव का आधिपत्य माना गया है।दरअसल ज्योतिष के अनुसार शनि को श्यामवर्ण माना गया है। काला रंग आलस्य का प्रतीक होता है। शनि को भी धीमे चलने वाला अशुभ शनि को शुभ बनाने के लिए लोहे व काली चीजों के दान का ज्योतिष के अनुसार विशेष महत्व है।जिसके दान से उस ग्रह का दोष कम हो जाता है।

शनि ग्रह का रत्न नीलम हैं। 

पीपल को जल चढाए,पूजा करें और सात परिक्रमा करें। शनिदेव को तेल अर्पित करें और पूजन करें।हर शनिवार को पीपल के पेड़ के नीचे सरसों के तेल का दीपक प्रज्जवलित करें। 

हर शनिवार सुबह-सुबह स्नान आदि कर्मों से निवृत्त होकर तेल का दान करें।

हनुमानजी को सिंदूर और चमेली का चढ़ाएं.

शनि देव के लिए सरसों के तेल का दान काफी अच्छा माना जाता है। अगर शनि के चलते आपका कोई काम रुका हुआ है या जीवन में सफलता हाथ नहीं आ रही, तो सरसों के तेल का दान जरूर करें। शनिवार के दिन सुबह लोहे के बरतन में सरसों का तेल लें और उसमे एक रुपए का सिक्का डालें |

ॐ शन्नो देवी रभिष्टय आपो भवन्तु पीपतये शनयो रविस्र वन्तुनः। 

शनिदेव के इस मंत्र को श्री शनि वैदिक मंत्र कहा जाता है। इस मंत्र का 23000 हजार जप करने से साढे़साती शनि का दुष्प्रभाव शांत हो जाता है |

शनिदेव को खुश करने के लिए ये उपाय किए जा सकते हैं-

शनिवार के दिन सुबह स्नान करके शनिदेव की पूजा करें,शनिदेव को काले तिल,

काले उड़द, सरसों का तेल, काले वस्त्र, और जूते का दान करें,शनिदेव को प्रसन्न करने के

लिए 'ॐ शं शनिश्चराय नमः' मंत्र का जाप करें,शनिवार के दिन हनुमान चालीसा या

सुंदरकांड का पाठ करें,शनिवार के दिन पीपल के पेड़ की पूजा करें और इसके

नीचे दीपक जलाएं,शनिदेव की कृपा पाने के लिए शनि यंत्र की पूजा करें,शनिदेव को

खुश करने के लिए कुत्तों की सेवा करें,शनिदेव को खुश करने के लिए शिव जी की

पूजा करें,शनिवार के दिन व्रत रखें,शनिवार के दिन गरीबों और ज़रूरतमंदों की मदद

करें,शनिदेव को न्याय का देवता माना जाता है,शनिदेव व्यक्ति के कर्मों के आधार पर उसे

फल देते हैं,शनिदेव की कृपा जिस व्यक्ति पर होती है, उनके जीवन में तरक्की के योग बनने लगते हैं,

शनिदेव की नज़र किसी व्यक्ति पर बिगड़ जाए, तो उसे लेने के देने पड़ जाते हैं | 

शनि साढ़ेसाती एवं ढैय्या


जब शनि किसी जातक की जन्म राशि से द्वादश,प्रथम या द्वितीय  स्थान में हो तो शनि की प्रस्तुत गोचर स्थिति  शनि साढ़ेसाती कहलाती है | इसके प्रभाव स्वरूप जातक\जातिका को मानसिक संताप,शारीरिक कष्ट,कलह क्लेश,आर्थिक परेशानियां,आय कम व खर्च की अधिकता,रोग व शत्रु भय,बनते कार्य में विघ्न बाधाएं,संतान एवं परिवार संबंधी परेशानियां उत्पन्न होती है | प्रत्येक राशि में लगभग ढाई वर्ष तक संचार करता है | शनि वक्री-मार्गी गति के कारण कई वर्षों के काल में न्यूनता-अधिकता भी होती रहती है | शनि किस राशि पर संचरित होता है उससे पहले बारहवे में और दूसरे भाव में स्थित राशियों पर विशेष प्रभावित करता है | इसी को शनि की साढ़ेसाती कहा जाता है | 

शनि की ढैय्या - गोचरवश शनि चंद्र राशि से चौथे स्थान पर संचार करता है तब शनि की ढैय्या कहलाती है | यह भी शनि के किसी राशि संचार के अनुसार ढाई वर्ष के लिए होती है | इसका प्रभाव भी अशुभ माना गया है | शनि की ढैय्या के प्रभाव स्वरूप जातक/जातिका को वृथा दौड़-धूप,धन हानि अनावश्यक खर्च, गुप्त चिंताएं, रोग शोक, क्लेश,बंधु विरोध, कार्य में विघ्न बाधाओं एवं आर्थिक उलझनों  का सामना करना पड़ता है |


जन्म कुंडली दिखाने के लिए व बनवाने हेतु कृपया जन्म तिथि, समय व स्थान लिखे

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वर वधू के लिए निम्नलिखित फार्म भरे ।

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शुक्र ग्रह की जानकारी व उपाय,श्री लक्ष्मी चालीसा व आरती


शुक्र ग्रह


आकाश मंडल में  बुध ग्रह के बाद शुक्र ग्रह का स्थान है | शुक्र ग्रह,सूर्य व  चंद्र  के बाद सबसे प्रकाशवान ग्रह  हैं बृहस्पति के साथ-साथ शुक्र को भी मंत्रिपरिषद में मंत्री पद मिला है |

शुक्र का रंग सफेद, प्रवृत्ति वात, ब्राह्मण जाति, जल तत्व, स्त्रीलिंग, गुण  शुभ, वसंत ऋतु, तुला और वृषभ राशि का स्वामी, रत्न मोती , धातु चांदी ,

जन्म कुंडली में साथ में घर का स्वामी,शुक्र अंक 6 

3,12, 21 व 29 तारीख को जन्मे लोगों के साथ किसी प्रकार का कारोबार संबंध नहीं रखना चाहिए 

5 6 8 14 15 17 23 24 व  26 तारीख में जन्मे हुए लोगों के साथ कारोबार करते हैं या मित्रता करते हैं तो लाभ होने की संभावना होती है |

 शुक्र के विकार 

मेष राशि में शुक्र हो तो नेत्र विकार होती हैं  

वृषभ राशि में शुक्र होने पर गले में सूजन खांसी 

मिथुन राशि में शुक्र हो तो चेहरे पर फुंसियां कील मुंहासे 

कर्क राशि में शुक्र हो तो पेट फूलना बीमा चलाना 

सिंह राशि में शुक्र हो तो ह्रदय विकार 

कन्या राशि में शुक्र होने पर अतिसार का रोग 

तुला राशि में शुक्र होने पर पेशाब संबंधी रोग 

वृषभ राशि में शुक्र होने पर हर्निया जैसे लोग 

धनु राशि में शुक्र होने पर कमर नितंब मलाशय से संबंधित रोग 

मकर राशि में शुक्र होने पर घुटनों में सूजन व त्वचा रोग 

कुंभ राशि में शुक्र होने पर रक्त दोष , नसों से संबंधित रोग 

मीन राशि में शुक्र होने पर पैरों की एड़ियां फटना व वल्व संबंधी रोग

*शुक्रवार के दिन सुख समृद्धि व धन लाभ के लिए ये उपाय किए जा सकते हैं-*

मां लक्ष्मी की पूजा करें,शुक्रवार का व्रत करें,कपूर जलाएं,कमल गट्टे की माला से जाप करें,पानी में केसर मिलाकर नहाएं,गाय को मीठी रोटी खिलाएं

सफ़ेद वस्त्र पहनें,मां लक्ष्मी को खीर का भोग लगाएं,गरीब या ज़रूरतमंद को अन्न-वस्त्र का दान करें,मां लक्ष्मी के मंदिर में शंख चढ़ाएं,शुक्रवार के दिन सूर्यास्त के बाद स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र पहनें,माता लक्ष्मी के सामने एक घी का दीपक जलाएं,एक डिब्बे में नमक भरकर उसे लाल कपड़े पर रखें,माता लक्ष्मी के बीज मंत्र का 1001 बार जप करें,जप के बाद नमक के डिब्बे में एक लौंग डाल दें,इस फिर डिब्बे को धन रखने की जगह पर रखें,उपाय को 10 शुक्रवार तक करें,शुक्रवार के दिन एक कटोरी में थोड़ी-सी हल्दी लेनी चाहिए और उसे पानी की सहायता से घोलना चाहिए। अधिक जानकारी हेतु संपर्क करे शर्मा जी 93120025

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श्री लक्ष्मी चालीसा 

॥ सोरठा॥

यही मोर अरदास, हाथ जोड़ विनती करुं।

सब विधि करौ सुवास, जय जननि जगदंबिका॥

॥ चौपाई ॥

सिन्धु सुता मैं सुमिरौ तोही।ज्ञान बुद्घि विघा दो मोही॥

श्री लक्ष्मी चालीसा

तुम समान नहिं कोई उपकारी। सब विधि पुरवहु आस हमारी॥

जय जय जगत जननि जगदंबा सबकी तुम ही हो अवलंबा॥1॥  

तुम ही हो सब घट घट वासी। विनती यही हमारी खासी॥

जगजननी जय सिन्धु कुमारी। दीनन की तुम हो हितकारी॥2॥

विनवौं नित्य तुमहिं महारानी। कृपा करौ जग जननि भवानी॥

केहि विधि स्तुति करौं तिहारी। सुधि लीजै अपराध बिसारी॥3॥

कृपा दृष्टि चितववो मम ओरी। जगजननी विनती सुन मोरी॥

ज्ञान बुद्घि जय सुख की दाता। संकट हरो हमारी माता॥4॥

क्षीरसिन्धु जब विष्णु मथायो। चौदह रत्न सिन्धु में पायो॥

चौदह रत्न में तुम सुखरासी। सेवा कियो प्रभु बनि दासी॥5॥

जब जब जन्म जहां प्रभु लीन्हा। रुप बदल तहं सेवा कीन्हा॥

स्वयं विष्णु जब नर तनु धारा। लीन्हेउ अवधपुरी अवतारा॥6॥

तब तुम प्रगट जनकपुर माहीं। सेवा कियो हृदय पुलकाहीं॥

अपनाया तोहि अन्तर्यामी। विश्व विदित त्रिभुवन की स्वामी॥7॥

तुम सम प्रबल शक्ति नहीं आनी। कहं लौ महिमा कहौं बखानी॥

मन क्रम वचन करै सेवकाई। मन इच्छित वांछित फल पाई॥8॥

तजि छल कपट और चतुराई। पूजहिं विविध भांति मनलाई॥

और हाल मैं कहौं बुझाई। जो यह पाठ करै मन लाई॥9॥

ताको कोई कष्ट नोई। मन इच्छित पावै फल सोई॥

त्राहि त्राहि जय दुःख निवारिणि। त्रिविध ताप भव बंधन हारिणी॥10॥

जो चालीसा पढ़ै पढ़ावै। ध्यान लगाकर सुनै सुनावै॥

ताकौ कोई न रोग सतावै। पुत्र आदि धन सम्पत्ति पावै॥11॥

पुत्रहीन अरु संपति हीना। अन्ध बधिर कोढ़ी अति दीना॥

विप्र बोलाय कै पाठ करावै। शंका दिल में कभी न लावै॥12॥

पाठ करावै दिन चालीसा। ता पर कृपा करैं गौरीसा॥

सुख सम्पत्ति बहुत सी पावै। कमी नहीं काहू की आवै॥13॥

बारह मास करै जो पूजा। तेहि सम धन्य और नहिं दूजा॥

प्रतिदिन पाठ करै मन माही। उन सम कोइ जग में कहुं नाहीं॥14॥

बहुविधि क्या मैं करौं बड़ाई। लेय परीक्षा ध्यान लगाई॥

करि विश्वास करै व्रत नेमा। होय सिद्घ उपजै उर प्रेमा॥15॥

जय जय जय लक्ष्मी भवानी। सब में व्यापित हो गुण खानी॥

तुम्हरो तेज प्रबल जग माहीं। तुम सम कोउ दयालु कहुं नाहिं॥16॥

मोहि अनाथ की सुधि अब लीजै। संकट काटि भक्ति मोहि दीजै॥

भूल चूक करि क्षमा हमारी। दर्शन दजै दशा निहारी॥17॥

बिन दर्शन व्याकुल अधिकारी। तुमहि अछत दुःख सहते भारी॥

नहिं मोहिं ज्ञान बुद्घि है तन में। सब जानत हो अपने मन में॥18॥

रुप चतुर्भुज करके धारण। कष्ट मोर अब करहु निवारण॥

केहि प्रकार मैं करौं बड़ाई। ज्ञान बुद्घि मोहि नहिं अधिकाई॥19॥

॥ दोहा॥

त्राहि त्राहि दुख हारिणी, हरो वेगि सब त्रास। 

जयति जयति जय लक्ष्मी, करो शत्रु को नाश॥

रामदास धरि ध्यान नित, विनय करत कर जोर। 

मातु लक्ष्मी दास पर, करहु दया की कोर॥


लक्ष्मी जी आरती 

ॐ जय लक्ष्मी माता, मैया जय लक्ष्मी माता।
तुमको निस दिन सेवत हर-विष्णु-धाता॥ ॐ जय…

उमा, रमा, ब्रह्माणी, तुम ही जग-माता।
सूर्य-चन्द्रमा ध्यावत, नारद ऋषि गाता॥ ॐ जय…

तुम पाताल-निरंजनि, सुख-सम्पत्ति-दाता।
जो कोई तुमको ध्यावत, ऋद्धि-सिद्धि-धन पाता॥ ॐ जय…

तुम पाताल-निवासिनि, तुम ही शुभदाता।
कर्म-प्रभाव-प्रकाशिनि, भवनिधि की त्राता॥ ॐ जय…

जिस घर तुम रहती, तहं सब सद्गुण आता।
सब सम्भव हो जाता, मन नहिं घबराता॥ ॐ जय…

तुम बिन यज्ञ न होते, वस्त्र न हो पाता।
खान-पान का वैभव सब तुमसे आता॥ ॐ जय…

शुभ-गुण-मंदिर सुन्दर, क्षीरोदधि-जाता।
रत्न चतुर्दश तुम बिन कोई नहिं पाता॥ ॐ जय…

महालक्ष्मीजी की आरती, जो कई नर गाता।
उर आनन्द समाता, पाप शमन हो जाता॥ ॐ जय…

या देवी सर्व भूतेषु मातृ रूपेण संस्थिता।नमस्तस्यै। नमस्तस्यै।नमस्तस्यै। नमो नमः।।
या देवी सर्व भूतेषु शक्ति रूपेण संस्थिता।नमस्तस्यै। नमस्तस्यै।नमस्तस्यै। नमो नमः।।
या देवी सर्व भूतेषु बुद्धि रूपेण संस्थिता।नमस्तस्यै। नमस्तस्यै।नमस्तस्यै। नमो नमः।।
या देवी सर्व भूतेषु लक्ष्मी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै। नमस्तस्यै।नमस्तस्यै। नमो नमः।।



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बुधवार, 19 मार्च 2025

वीर बलिदानी भगतसिंह



स्वतन्त्रता के मतवाले भगत सिंह

पद्म सिंह 

गर्मियों की दोपहर थी। गांव के खेतों में हलचल मची हुई थी। हल जोतते बैलों की घंटियों की आवाज़, मिट्टी की सौंधी खुशबू और हवा में लहराते सरसों के पीले फूलों के बीच एक नन्हा बालक उछलता-कूदता घूम रहा था। यह कोई साधारण बालक नहीं था—यह था भगत, भगत सिंह । उसकी चंचल आंखों में अजीब-सा तेज था, उसके चेहरे पर कोई आम बालकों जैसी मासूमियत नहीं, बल्कि एक अजीब तरह की गंभीरता थी।

वह अपने पिता और चाचा से कहानियाँ सुनकर बड़ा हो रहा था—कहानियाँ देश की गुलामी की, अंग्रेज़ों के जुल्म की, और उन बहादुर क्रांतिकारियों की, जो भारत माता के लिए हंसते-हंसते फांसी पर झूल गए। उसके घर का माहौल ही ऐसा था कि देशभक्ति उसके खून में घुल चुकी थी। जब बच्चे खिलौनों से खेलते थे, तब वह अपने दोस्तों से पूछता—"आजादी कैसे मिलेगी?" और जब कोई जवाब नहीं दे पाता, तो वह खुद ही कहता—"हमें कुछ करना होगा!"

            एक दिन, भगत सिंह अपने खेतों में दौड़ते हुए पहुँचा । उसकी जेब में कुछ था—कुछ लोहे की पुरानी कीलें और लकड़ी के टुकड़े, जिन्हें उसने कहीं से इकट्ठा किया था। उसने एक छोटा सा गड्ढा खोदा और उसमें उन कीलों और लकड़ियों को रखकर मिट्टी से ढक दिया। फिर पास खड़े अपने चाचा से बोला—

"मैंने यहाँ बंदूक बोई है। जब ये उगेगी, तो मैं उससे अंग्रेज़ों को भगा दूँगा!"

चाचा ने पहले तो हंसते हुए उसकी तरफ देखा, फिर उसकी आँखों में झाँका । वे समझ गए कि यह कोई आम बालक नहीं था—यह वही क्रांति का बीज था, जो एक दिन इतिहास के पन्नों पर दर्ज होने वाला था। उन्होंने प्यार से उसके सिर पर हाथ फेरा और पूछा—

"बंदूक क्यों चाहिए तुझे, भगत ?"

"क्योंकि अंग्रेज़ हमें मार रहे हैं। हमें उनसे लड़ना है!" बालक ने बिना झिझक जवाब दिया। वह मिट्टी को ऐसे देख रहा था, मानो सच में वहाँ से बंदूकें उगने वाली हों। उसके मन में एक सपना था—एक आजाद भारत का सपना। उसे नहीं पता था कि बंदूकें खेतों में नहीं उगतीं, लेकिन उसे यह जरूर पता था कि अगर मन में जज़्बा हो, तो आज़ादी की राह खुद-ब-खुद बन जाती है।

            वह दिन सिर्फ एक खेल नहीं था, बल्कि एक संकेत था कि यह बालक आगे चलकर क्या बनने वाला था। धीरे-धीरे, उसकी सोच और मजबूत होती गई। किताबों में इतिहास पढ़ते-पढ़ते, वह खुद एक इतिहास रचने की ओर बढ़ रहा था । बंदूकों की फसल तो नहीं उगी, लेकिन उस दिन जो बीज बोया गया था, वह आगे चलकर एक ऐसी क्रांति में बदला, जिसने अंग्रेज़ी साम्राज्य को हिलाकर रख दिया।

भगत सिंह का जन्म 28 सितंबर 1907 को पंजाब के लायलपुर जिले (अब पाकिस्तान में स्थित फ़ैसलाबाद) के बंगा गाँव में हुआ था। उनका परिवार एक राष्ट्रवादी और क्रांतिकारी विचारधारा वाला था।

उनके पिता किशन सिंह, चाचा अजीत सिंह और स्वर्ण सिंह सभी ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ आंदोलन में सक्रिय थे। जिस दिन भगत सिंह का जन्म हुआ, उसी दिन उनके पिता और चाचा जेल से रिहा हुए थे, जिससे घर में खुशी का माहौल था। शायद तभी से उनके खून में क्रांति की चिंगारी आ गई थी।       

            भगत सिंह का बचपन ऐसे ही छोटे-छोटे किस्सों से भरा था—कभी मिट्टी में बंदूक बोने की कोशिश, तो कभी अपने दोस्तों के साथ बैठकर आज़ादी की योजनाएँ बनाना। वह उम्र से छोटा था, पर सोच से बहुत बड़ा। और यही सोच उसे आगे चलकर अमर कर गई।

आज भी जब कोई बच्चा सपने देखता है, तो इतिहास के पन्नों से भगत सिंह की आवाज़ आती है—

"अगर सपने देखने की हिम्मत है, तो उन्हें पूरा करने की ताकत भी जुटानी होगी!"

            13 अप्रैल 1919 का दिन..... अमृतसर के लिए एक खास दिन था—बैसाखी का पर्व। सुबह से ही लोग खुश थे। किसानों के लिए यह नई फसल की खुशी का दिन था, तो आम जनता के लिए एक नई उम्मीद का ।

लेकिन इस दिन अमृतसर के जालियाँवाला बाग़ में जमा हुई भीड़ का मकसद सिर्फ उत्सव मनाना नहीं था। वे लोग रौलेट एक्ट के खिलाफ विरोध करने और अपने नेताओं डॉ. सत्यपाल और डॉ. सैफुद्दीन किचलू की गिरफ्तारी का विरोध करने के लिए इकट्ठा हुए थे।

कोई मंच नहीं था, कोई हथियार नहीं थे, सिर्फ आम लोग थे—बुज़ुर्ग, महिलाएँ, बच्चे और नौजवान। हर कोई अपने हक़ की आवाज़ बुलंद करने आया था।

दोपहर होते-होते ब्रिगेडियर जनरल रेगिनाल्ड डायर को खबर मिली कि हजारों लोग बाग़ में एकत्र हुए हैं। यह सुनते ही उसने 90 सिपाहियों का एक दस्ता तैयार किया और बंदूकें लेकर जालियाँवाला बाग़ की ओर बढ़ चला।

जालियाँवाला बाग़ एक खुली ज़मीन थी, लेकिन चारों ओर ऊँची दीवारों से घिरी हुई थी। वहाँ से बाहर निकलने के सिर्फ़ एक-दो तंग रास्ते थे।

जनरल डायर ने एक भी चेतावनी दिए बिना अपने सैनिकों को गोली चलाने का आदेश दे दिया।

"फायर!"

यह शब्द सुनते ही ब्रिटिश सैनिकों ने ताबड़तोड़ गोलियाँ चलानी शुरू कर दीं।

तड़ ! तड़ ! तड़ !

एक गोली… दो गोली… सौ गोली… हज़ारों गोलियाँ…

कोई चिल्लाया—"भागो!" लेकिन भागने का कोई रास्ता नहीं था।

भीड़ में खड़े लोगों को कुछ समझ ही नहीं आया कि अचानक क्या हो गया। देखते ही देखते चारों ओर लाशें बिछने लगीं।

माँ अपने बच्चों को ढकने लगीं, लेकिन अंग्रेजों की गोलियाँ उनके सीने को चीरती चली गईं।

बुज़ुर्गों ने दीवार पर चढ़ने की कोशिश की, लेकिन पीछे से आती गोलियों ने उन्हें वहीं ढेर कर दिया।

कुछ लोग कुएँ में कूद गए, लेकिन अंदर भी ज़िंदा नहीं बचे।

बच्चे अपनी माँओं को झकझोर रहे थे, "माँ उठो! हमें घर जाना है!" लेकिन वे कभी नहीं उठीं।

सैनिक लगातार गोलियाँ चलाते रहे। एक-एक गोली सीने चीरती रही।

जनरल डायर का आदेश था—"जब तक गोलियाँ खत्म न हो जाएं, फायरिंग जारी रहे!"

10 मिनट तक लगातार गोलीबारी चलती रही।

जब गोलियाँ खत्म हो गईं, तो बाग़ में बस लाशों का ढेर और कराहती हुई ज़िंदगियाँ बची थीं।

जनरल डायर अपने सैनिकों के साथ मुड़ा और वापस चला गया। उसे न अफसोस था, न पछतावा।

ब्रिटिश सरकार ने कहा—"379 लोग मरे।"

लेकिन असली आंकड़ा 1000 से भी ज्यादा था।

पूरा बाग़ खून से सन चुका था। दीवारें, ज़मीन, कुएँ—हर जगह सिर्फ लाशें और गोलियों के निशान थे।

जब जनरल डायर से पूछा गया कि उसने बिना चेतावनी दिए गोली क्यों चलाई, तो उसने कहा—

"अगर मेरे पास और गोलियाँ होतीं, तो मैं और लोगों को मारता!"

यह सुनकर पूरी दुनिया में ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ गुस्सा फैल गया। लेकिन भारत में यह घटना क्रांति की आग बन गई।

भगत सिंह, चंद्रशेखर आज़ाद, नेताजी सुभाष चंद्र बोस और अनगिनत क्रांतिकारियों ने इसी दिन प्रण लिया था—

"अब आज़ादी की लड़ाई और तेज़ होगी। हम अपने खून की आखिरी बूँद तक लड़ेंगे!"

आज भी जालियाँवाला बाग़ की मिट्टी में उन शहीदों का लहू बसा है।

दीवारों में गोलियों के निशान आज भी उस क्रूरता की कहानी कहते हैं।

लेकिन इन शहीदों की शहादत ने भारत को गुलामी की बेड़ियाँ तोड़ने की राह दिखाई।

जब भी कोई अन्याय के खिलाफ खड़ा होता है, तो जालियाँवाला बाग़ की मिट्टी से एक आवाज़ उठती है—

"शहीदों को सलाम! इंकलाब जिंदाबाद!"


जालियाँ वाला बाग नरसंहार की जब यह खबर पंजाब के गांव-गांव में फैली, तब 12 वर्षीय भगत सिंह भी अपने घर बंगा (अब पाकिस्तान में) में थे। वह सुनकर अंदर तक हिल गए। वह जानना चाहते थे कि अंग्रेजों की क्रूरता कितनी भयानक थी।


एक सुबह, बिना किसी को बताए, वह जलियांवाला बाग की ओर निकल पड़े। छोटे-छोटे कदमों में एक दृढ़ संकल्प था। गर्म धूप में धूल भरी सड़कों पर वह पैदल चलते रहे, उनके मन में केवल एक ही प्रश्न था—"इतने निर्दोष लोगों को क्यों मारा?"


कई मील चलने के बाद जब भगत सिंह जलियांवाला बाग पहुंचे, तो वहां की हालत देखकर उनकी आंखें नम हो गईं। चारों ओर खून से सने हुए कपड़े, दीवारों पर गोलियों के निशान, और कुएं में पड़ी लाशों की बदबू। यह दृश्य उनके हृदय में क्रांति की चिंगारी जला चुका था।


उन्होंने झुककर उस मिट्टी को उठाया, जिसमें सैकड़ों शहीदों का खून मिला हुआ था। उसे अपने रूमाल में बांधकर, आंखों में आंसू लिए उन्होंने कसम खाई—"यह खून व्यर्थ नहीं जाएगा।"


उस दिन के बाद से भगत सिंह का जीवन पूरी तरह बदल गया। जलियांवाला बाग की उस मिट्टी ने उनके भीतर स्वतंत्रता संग्राम की ऐसी आग जलाई, जो उन्हें हिंदुस्तान का सबसे बहादुर क्रांतिकारी बना गई।


वह सिर्फ एक मूक दर्शक नहीं थे, बल्कि उन्होंने ब्रिटिश हुकूमत को उखाड़ फेंकने की प्रतिज्ञा कर ली थी। जलियांवाला बाग कांड का दर्द ही वह चिंगारी बनी, जिससे भारत की आजादी की लौ और तेज जल उठी।


यह केवल एक यात्रा नहीं थी, यह क्रांति का पहला कदम था। भगत सिंह का जलियांवाला बाग तक पैदल जाना एक छोटे बच्चे की मासूम जिज्ञासा नहीं, बल्कि एक क्रांतिकारी के जन्म की शुरुआत थी।



17 दिसंबर 1928 .. लाहौर की सर्दियों में हल्की धुंध फैली हुई थी। सड़कों पर ब्रिटिश पुलिस के घुड़सवार दस्ते घूम रहे थे, हर जगह गोरे अफसरों की चौकसी थी। लेकिन इन्हीं सड़कों के बीच, कुछ नौजवानों के मन में तूफान उठ रहा था।


"लाला लाजपत राय की हत्या का बदला लेना है!"—यह संकल्प उनके दिलों में धधक रहा था।


कुछ ही हफ्ते पहले, 30 अक्टूबर 1928 को लाला लाजपत राय के नेतृत्व में साइमन कमीशन का विरोध हो रहा था। लेकिन अंग्रेज पुलिस अधीक्षक जेम्स ए. स्कॉट ने निर्दयता से लाठीचार्ज करवाया। लाला जी घायल हुए और 17 नवंबर 1928 को शहीद हो गए।


अब भगत सिंह, राजगुरु, चंद्रशेखर आज़ाद और उनके क्रांतिकारी साथियों ने स्कॉट को मारने की योजना बनाई।


क्रांतिकारियों ने योजना बनाई—स्कॉट को गोली मारनी है, ताकि दुनिया को यह संदेश मिले कि भारत अब अन्याय सहन नहीं करेगा।


भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को जिम्मेदारी दी गई। राजगुरु का निशाना सबसे तेज़ था, और भगत सिंह योजना के केंद्र में थे।


शाम के करीब 4:15 बज रहे थे...... लाहौर के ब्रिटिश पुलिस हेडक्वार्टर के बाहर, भगत सिंह और राजगुरु एक गली के कोने पर छिपे हुए थे। उनके हाथों में पिस्तौलें थीं । तभी..... पुलिस अधीक्षक स्कॉट के बजाय सहायक पुलिस अधीक्षक जॉन पी. सांडर्स बाहर निकला।


राजगुरु ने अपनी माउजर पिस्तौल उठाई और निशाना साधा—


"ताड़ !"


एक गोली सांडर्स के सिर में जा लगी, और वह लड़खड़ाकर नीचे गिर पड़ा । भगत सिंह ने आगे बढ़कर एक के बाद एक गोलियाँ दाग दीं, जिससे यह सुनिश्चित हो जाए कि सांडर्स मरा है ।


चारों ओर अफरा-तफरी मच गई। अंग्रेज अधिकारी चिल्ला रहे थे, पुलिस दौड़ रही थी, लेकिन क्रांतिकारी अपनी योजना के अनुसार तेजी से निकल रहे थे।


भगत सिंह और राजगुरु भागते हुए दूसरे रास्ते से निकल गए। चंद्रशेखर आज़ाद वहीं रुके और जब पुलिस ने पीछा करने की कोशिश की, तो अपनी रिवॉल्वर से गोली चलाकर उन्हें रोक दिया।


अगले ही दिन, भगत सिंह और उनके साथी भेष बदलकर अंग्रेज अफसरों की आँखों में धूल झोंककर लाहौर से निकल गए।


ब्रिटिश सरकार दंग रह गई। पूरा लाहौर इस खबर से हिल उठा—


"कोई भारतीय इस तरह किसी अंग्रेज अफसर को मार सकता है?"


जल्द ही भगत सिंह और उनके साथियों पर ब्रिटिश सरकार ने बड़े पैमाने पर तलाश अभियान चलाया। लेकिन तब तक, यह घटना भारतीय क्रांतिकारियों के लिए एक नई प्रेरणा बन चुकी थी।


सांडर्स की हत्या कोई अपराध नहीं था, यह लाला लाजपत राय की शहादत का बदला था, यह एक ज्वलंत संदेश था कि अन्याय का अंत निश्चित है।


और इस घटना के बाद, भगत सिंह का नाम हर भारतीय के दिल में क्रांति की आग बनकर जलने लगा।



8 अप्रैल 1929 का वह ऐतिहासिक दिन.....


सूरज अपनी रोशनी फैला रहा था, लेकिन दिल्ली की हवा में अजीब-सी हलचल थी। सेंट्रल असेम्बली (अब संसद भवन) में ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ एक गूंज उठने वाली थी। भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने सुबह उठकर अपने क्रांतिकारी साथियों से विदा ली, मानो किसी युद्ध पर जा रहे हों। उनकी आँखों में आत्मविश्वास की चमक थी, और दिल में मातृभूमि की स्वतंत्रता की लौ जल रही थी।


उनके कोट की जेबों में पर्चे भरे हुए थे, और उनके पास दो बम थे—छोटे, लेकिन इतनी ताकत वाले कि पूरे ब्रिटिश साम्राज्य को हिला सकें।


सेंट्रल असेम्बली में वायसराय के प्रस्ताव पर चर्चा हो रही थी। ब्रिटिश सरकार "पब्लिक सेफ्टी बिल" और "ट्रेड डिस्प्यूट्स बिल" को पास कराने वाली थी, जिससे भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों पर और अधिक अत्याचार किया जा सके। हॉल में अंग्रेज अधिकारी, गवर्नर-जनरल के मंत्री और भारतीय नेता बैठे थे।


इसी भीड़ में भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त शांति से एक गैलरी में पहुंचे। भगत सिंह ने अपनी जेब में बम को महसूस किया और बटुकेश्वर की ओर देखा। एक नजरों का इशारा हुआ—वह क्षण आ गया था!


"इंकलाब जिंदाबाद!" – बम का धमाका


अचानक—"धड़ाम!"


पूरा हॉल गूंज उठा। धुआं चारों ओर फैल गया। अफरा-तफरी मच गई। नेता अपनी कुर्सियों के नीचे छिपने लगे, अंग्रेज अफसर इधर-उधर भागने लगे। लेकिन भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त वहीं खड़े रहे, बिना किसी डर के ।


उन्होंने सीधे हवा में नारे लगाए—


"इंकलाब जिंदाबाद!"


"साम्राज्यवाद मुर्दाबाद!"


और फिर, जेब से पर्चे निकालकर हवा में उछाल दिए । उन पर्चों में लिखा था कि यह बम किसी को मारने के लिए नहीं, बल्कि ब्रिटिश साम्राज्य की नींव हिलाने के लिए फेंका गया है।


धुआं धीरे-धीरे छंटने लगा । पुलिस वाले दौड़ते हुए आए और भगत सिंह व बटुकेश्वर दत्त को घेर लिया। किसी को उम्मीद नहीं थी कि बम फेंकने वाले इतनी शांति से खड़े होंगे ।


एक ब्रिटिश अफसर ने चीखकर कहा—


"गिरफ्तार करो इन्हें!"


लेकिन भगत सिंह और बटुकेश्वर ने बिना किसी विरोध के अपने हाथ आगे बढ़ा दिए, मानो कह रहे हों—


"हमें कैद कर सकते हो, लेकिन हमारे विचारों को नहीं।"


जब उन्हें हथकड़ी लगाई जा रही थी, तब भी उनके चेहरे पर मुस्कान थी, और उनके होंठों पर केवल एक ही नारा था—


"इंकलाब जिंदाबाद!"


इस घटना ने पूरे भारत में हलचल मचा दी। ब्रिटिश सरकार डर गई। भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त पर मुकदमा चलाया गया, लेकिन उनका उद्देश्य पूरा हो चुका था—जनता को यह बताना कि स्वतंत्रता केवल याचना से नहीं, बल्कि क्रांति से मिलेगी।


असेम्बली में फेंके गए उस बम का धमाका सिर्फ उस इमारत में नहीं, बल्कि पूरे भारत के हर क्रांतिकारी के दिल में गूंज उठा। यह केवल एक बम नहीं था, यह ब्रिटिश शासन की नींव को हिला देने वाली आवाज थी। "इंकलाब जिंदाबाद!"



7 अक्टूबर 1930....


दिल्ली की एक ठंडी सुबह। सेंट्रल जेल से कुछ पुलिसकर्मी हथकड़ी पहने एक कैदी को लेकर कोर्ट की ओर बढ़ रहे थे। वह कोई साधारण कैदी नहीं था—वह भारत की स्वतंत्रता की लौ था, एक ऐसा नाम जिससे ब्रिटिश सरकार कांपती थी।....... भगत सिंह !


उनके साथ राजगुरु और सुखदेव भी थे। तीनों के चेहरे पर कोई डर नहीं था, बल्कि एक तेज, एक आत्मविश्वास था, मानो यह मुकदमा उनकी जीत का ही एक हिस्सा हो।


कोर्ट रूम के बाहर हजारों भारतीय इकट्ठा थे। हर कोई बस एक झलक पाना चाहता था अपने वीर क्रांतिकारी की। चारों ओर गूंज रही थी—


"इंकलाब जिंदाबाद!"


"भगत सिंह ज़िन्दाबाद !"


जज अपनी कुर्सी पर बैठा, सामने ब्रिटिश अधिकारी, सरकारी वकील और एक तरफ भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव। कोर्ट में गहरी शांति थी, लेकिन हवा में तनाव घुला हुआ था।


सरकारी वकील ने खड़े होकर आरोप पढ़े—


"भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव पर अंग्रेज अफसर सॉन्डर्स की हत्या का आरोप है।"


"वे असेम्बली में बम फेंकने और ब्रिटिश सरकार के खिलाफ षड्यंत्र रचने के दोषी हैं।"


जज ने भगत सिंह की ओर देखा—


"क्या तुम अपने ऊपर लगे आरोप स्वीकार करते हो?"


भगत सिंह मुस्कुराए, कुर्सी से उठे और पूरे आत्मविश्वास के साथ बोले—


"हाँ, हमने असेम्बली में बम फेंका था, लेकिन किसी को मारने के लिए नहीं, बल्कि ब्रिटिश हुकूमत को यह बताने के लिए कि भारत अब जाग चुका है।"


पूरे कोर्ट रूम में सन्नाटा छा गया। अंग्रेज जज उनकी निडरता देखकर हैरान था। भगत सिंह की आवाज गूंज रही थी—


"हमें फाँसी की सजा देने से आपकी सरकार मजबूत नहीं होगी। बल्कि यह क्रांति की चिंगारी को और हवा देगा।"


खुशवंत सिंह के पिता सर शोभा सिंह के अतिरिक्त दो अन्य महत्वपूर्ण सरकारी गवाह थे ....फोनीन्द्र नाथ घोष, जिनकी गवाही मुख्यतः हिंदुस्तान सोशलिस्ट पार्टी की स्थापना के इर्द-गिर्द घूमती थी तथा जय गोपाल, जिनकी गवाही सॉन्डर्स की हत्या पर केंद्रित थी, जबकि वोहरा की गवाही भगत सिंह की गतिविधियों पर केंद्रित थी। हंस राज वोहरा HSRA में अंग्रेजों के लिए एक सरकारी गवाह था, जिसने अपनी स्वतंत्रता के बदले में अपने साथियों की पहचान करने वाली गवाही अंग्रेजों को दी थी । लाहौर षडयंत्र मामले के मुकदमे में भगत सिंह, सुखदेव थापर और शिवराम राजगुरु के खिलाफ उनका बयान उनकी मौत की सजा सुनाए जाने में "महत्वपूर्ण" साबित हुआ।


ब्रिटिश सरकार को भगत सिंह का जीवित रहना सबसे बड़ा खतरा लग रहा था। आखिरकार, 7 अक्टूबर 1930 को जज ने फैसला सुनाया—


"भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फाँसी की सजा दी जाती है!"


यह सुनते ही कोर्ट में कोलाहल मच गया। चारों ओर नारे गूंज उठे—


"इंकलाब जिंदाबाद!"


"साम्राज्यवाद मुर्दाबाद!"


लेकिन भगत सिंह मुस्कुरा रहे थे। जैसे ही पुलिस उन्हें वापस जेल ले जाने लगी, उन्होंने जोर से कहा—


"फाँसी से डरने वाले नहीं हैं हम। यह जंग अभी जारी रहेगी!"


कोर्ट रूम से बाहर जाते हुए उन्होंने अपनी जेब से एक किताब निकाली—"लेनिन की जीवनी"—और उसे पढ़ते हुए बाहर निकल गए, मानो यह मुकदमा एक खेल था, और असली लड़ाई अभी बाकी थी।


भगत सिंह को सजा सुनाने वाली ब्रिटिश अदालत ने सोचा था कि उनकी आवाज दब जाएगी, लेकिन असल में वह आवाज पूरे भारत में गूंजने लगी। उनका यह मुकदमा इतिहास के पन्नों में केवल एक कानूनी कार्यवाही नहीं था, बल्कि यह ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ क्रांति का एलान था।


उनकी फाँसी एक अंत नहीं थी, बल्कि एक नए युग की शुरुआत थी।



दिनांक: 23 मार्च 1931 –लाहौर सेंट्रल जेल के ऊँचे, ठंडे और भारी दरवाजे के पीछे अंधेरे की चादर बिछी हुई थी। लेकिन जेल के एक कोने में एक छोटी-सी कोठरी थी, यह कोठरी किसी आम कैदी की नहीं थी, बल्कि वहाँ बैठा था एक विचार, एक क्रांति, एक स्वतंत्रता की जलती हुई मशाल—भगत सिंह।


लाहौर सेंट्रल जेल की सुबह किसी आम दिन जैसी ही थी, लेकिन एक अजीब-सी बेचैनी हवाओं में घुली हुई थी। जेल के चारों ओर फैली ठंडी हवा अचानक आँधी में बदल गई थी, मानो आसमान भी किसी अनहोनी की आहट दे रहा हो । लेकिन कोठरी नंबर 14 में कैद भगत सिंह के चेहरे पर वही पुरानी मुस्कान थी—अडिग, निडर और चमकती हुई । भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को अगले दिन सूरज निकलने से पहले फांसी दी जानी थी । लेकिन वे चिंतित नहीं थे।



दोपहर का समय...... जेल अधिकारी धीरे-धीरे उनकी कोठरी की ओर बढ़े । उनके चेहरे पर झिझक थी । अंदर जाकर उन्होंने संक्षेप में कहा—


"भगत सिंह, तुम्हारी फाँसी का समय बदल दिया गया है। अब तुम्हें कल सुबह के बजाय आज शाम सात बजे फाँसी दी जाएगी।"


भगत सिंह मुस्कुराए, किताब के पन्ने पलटे और बोले—


"क्या आप मुझे इस किताब का एक अध्याय भी ख़त्म नहीं करने देंगे?"


वह बोले तो मजाक में, लेकिन जेल अधिकारी समझ गए कि वह किताब से ज्यादा अपने अधूरे सपने की बात कर रहे थे।



सूरज धीरे-धीरे ढलने लगा। कोठरी के बाहर हलचल तेज हो गई थी । फाँसी का समय समीप आता जा रहा था.. कुछ कैदी बेचैनी से कोनों में बैठे थे, और कुछ जेल के नाई बरकत से भगत सिंह की कोई भी चीज़ लाने की मिन्नत कर रहे थे—"कोई पेन, कंघा, घड़ी… ताकि हम अपने पोते-पोतियों को दिखा सकें कि हम भगत सिंह के साथ जेल में थे!"


जेल की एक सफ़ाई कर्मचारी बेबे, जिसने भगत सिंह की सेवा की थी, उनके लिए अपने घर से खाना लाने को कहा था था। भगत सिंह ने पहले ही कहा था—


"फाँसी से एक दिन पहले तुम्हारे हाथों का खाना जरूर खाऊँगा।" लेकिन कड़ी सुरक्षा के कारण बेबे जेल में प्रवेश नहीं कर सकी।


शाम के 6:55 बजे जेल के गलियारे में भारी कदमों की आवाज़ गूँज रही थी। फाँसी के तख्त की ओर ले जाने के लिए जेल अधिकारी कोठरी की ओर बढ़ रहे थे....जिस समय अधिकारी लेने आए .....भगत सिंह जीवन के अन्तिम समय मे भी किताब राम प्रसाद 'बिस्मिल' की जीवनी पढ़ रहे थे।


भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को कोठरियों से बाहर लाया गया। उनके हाथों को बाँधने की तैयारी हुई तो उन्होंने कहा—


"ठहरिये, पहले एक क्रांतिकारी दूसरे क्रांतिकारी से मिल तो ले" "हमें बंधन में मत डालो। हम भागने वाले नहीं हैं।


जेल अधिकारी चुप थे, उनके पास कोई जवाब नहीं था। आदेश आया और उनके हाथ खोल दिए गए । तीनों क्रांतिकारी एक-दूसरे से गले मिले और फाँसी के फंदे की ओर चल पड़े, जैसे दूल्हा अपनी बारात मे चलता है ।


...... तभी..... भगत सिंह ने अपनी बुलंद आवाज़ में गाना शुरू किया—


"मेरा रंग दे बसंती चोला... माए रंग दे ..बसंती चोला"


फांसी के तख्ते पर जाते हुए भगत सिंह एक गीत गा रहे थे, "दिल से न निकलेगी मरकर भी वतन की उल्फ़त, मेरी मिट्टी से भी ख़ुशबू-ए-वतन आएगी".


राजगुरु और सुखदेव भी गाने लगे। जेल की दीवारों से टकराकर यह गीत बाहर तक गूँज उठा। जेल के अंदर खड़े हर व्यक्ति की आँखें नम थीं।




शाम के 7 बजे – फाँसी का तख्ता तैयार था। तीनों आगे बढ़े, मानो कोई बारात निकल रही हो। जल्लाद ने रस्सी तैयार की।


भगत सिंह ने एक गहरी सांस ली, फाँसी के तख्ते को देखा और मजाकिया लहजे में बोले—


"ब्रिटिश सरकार कमजोर हो गई है, तभी वह हमें जल्दी फाँसी दे रही है!"


फाँसी का फंदा उनके गले में डाल दिया गया। जेलर ने पूछा—


"तुम्हारी आखिरी इच्छा?"


भगत सिंह ने गर्व से कहा—


"इंकलाब जिंदाबाद!"


"साम्राज्यवाद मुर्दाबाद!"


फंदा कस दिया गया। जल्लाद ने लीवर खींचा।


झटका लगा… तख्ता गिरा… और तीनों अमर हो गए।


जेल के बाहर हज़ारों लोग इकट्ठा थे। हर कोई जानता था कि आज कुछ बदल गया है। यह सिर्फ तीन युवाओं की शहादत नहीं थी, यह भारत के लिए एक नई सुबह का पैग़ाम थी। कहा जाता है कि भगत सिंह ने अपनी मां विद्यावती से कहा था, ‘मेरा शव लेने आप नहीं आना और कुलबीर (छोटा भाई) को भेज देना, क्योंकि यदि आप आएंगी तो रो पड़ेंगी और मैं नहीं चाहता कि लोग यह कहें कि भगत सिंह की मां रो रही है।


अंग्रेजों ने चुपचाप उनकी लाशों को जलाने की कोशिश की, लेकिन जनता को खबर लग गई। लोग दौड़ पड़े, राख को हाथों में उठाकर बोले—


"भगत सिंह अमर हैं! उनकी राख भी हमें आज़ादी दिलाएगी!" 23 मार्च 1931 को भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव ने फाँसी को हंसते-हंसते गले लगाया। लेकिन वे कभी मरे नहीं आज भी जब कोई अन्याय के खिलाफ आवाज़ उठाता है, तो हवा में एक गूंज उठती है— "इंकलाब जिंदाबाद!"

मंगलवार, 18 मार्च 2025

नवरात्र पूजन मुहर्त व विथि

  


चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से नवमी तक शक्ति आराधना पर्व का मान है। इसे चैत्र नवरात्र या वासंतिक नवरात्र कहा जाता है। चैत्र शुक्ल प्रतिपदा तिथि 29 मार्च को शाम 4.56 बजे लग रही है जो 30 को दोपहर 2.40 बजे तक रहेगी। उद्द्यातिथि मान अनुसार, नवरात्र का आरंभ 30 मार्च को होगा। इस बार पंचमी तिथि का क्षय होने से शक्ति आसधन पर्व आठ दिन यानी छह अप्रैल तक है। वासंतिक नवरात्र में पंचमी का क्षय, शक्ति आराधना पर्व आठ दिनी रहेगा |

पंचांग के अनुसार, नवरात्र के चौथे दिन दो अप्रैल को चतुथी के साथ ही पंचमी तिथि के भी दर्शन, व्रत, पूजन किए जाएंगे। नवरात्र व्रत, पूजन, पाठ, नैत्यिक दर्शन यात्रा की पूर्णाहुति छह अप्रैल को हवन से होगी। 

उदया तिथि में प्रतिपदा मिलने से 30 मार्च को होगा व्रत का आरंभ | चौथे दिन ही चतुर्थी के साथ पंचमी का  भी व्रत  किया जाएगा |

इस वर्ष चैत्र शुक्ल प्रतिपदा तिथि में वैधृति योग न होने के कारण प्रातः काल से आरंभ कर दोपहर 12:25 तक रहेगी | कलश स्थापना शुभ होगा। किसी कारणवश जो लोग उक्त काल में कलश स्थापन न कर सकें, वे इसके बाद भी रात्रि आठ बजे तक कलश स्थापन कर सकते हैं। महाअष्टमी व्रत व महानिशा पूजन पांच अप्रैल को किया जाएगा। महानवमी व्रत छह अप्रैल को रखा जाएगा। दुर्गा पाठ की पूर्णाहुति व होमादि छह अप्रैल को प्रातः काल से आरंभ कर रात्रिपर्यंत किया जा सकेगा। इसी तिथि में रामनवमी पर्व भी मनाया जाएगा। ज्योतिषाचार्य पं. सतीश शर्मा  के अनुसार चढ़ती-उत्तरती व्रत रखने वाले अष्टमी तिथि में पांच अप्रैल को उतरती का व्रत करेंगे। पारन नवमी तिथि में छह अप्रैल को करेंगे।


शनिवार, 15 मार्च 2025

चैत्र नवरात्र पर क्या करें


एक स्त्री के पूरे जीवनचक्र का बिम्ब है *नवदुर्गा* के नौ स्वरूप-

1. जन्म ग्रहण करती हुई कन्या "शैलपुत्री" स्वरूप है !
2. कौमार्य अवस्था तक "ब्रह्मचारिणी" का रूप है !
3. विवाह से पूर्व तक चंद्रमा के समान निर्मल होने से वह "चंद्रघंटा" समान है !
4. नए जीव को जन्म देने के लिए गर्भ धारण करने पर वह "कूष्मांडा" स्वरूप है !
5. संतान को जन्म देने के बाद वही स्त्री "स्कन्दमाता" हो जाती है !
6. संयम व साधना को धारण करने वाली स्त्री "कात्यायनी" रूप है !
7. अपने संकल्प से पति की अकाल मृत्यु को भी जीत लेने से वह "कालरात्रि" जैसी है !
8. संसार ( कुटुंब ही उसके लिए संसार है ) का उपकार करने से "महागौरी" हो जाती है !

9. धरती को छोड़कर स्वर्ग प्रयाण करने से पहले संसार मे अपनी संतान को सिद्धि ( समस्त सुख-संपदा ) का आशीर्वाद देने वाली "सिद्धिदात्री" हो जाती है !

आप सभी को सपरिवार  चैत्र नवरात्रि की अनंत शुभकामनाएँ.!!
जय माता दी 


मां दुर्गा की तीसरी शक्ति का नाम चंद्रघंटा है। 
मां चंद्रघंटा का स्वरूप परम शान्तिदायक और कल्याणकारी है नवरात्रि के तीसरे दिन मां दुर्गा के तीसरे स्वरूप मां चंद्रघंटा की आराधना की जाती है। 
या देवी सर्वभू‍तेषु माँ चन्द्रघण्टा रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥

सफेद रंग

नवरात्र के पहले दिन सफेद रंग का वस्त्र पहनना चाहिए। क्योंकि नवरात्र के पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा की जाती है। इस दिन सफेद कलर के कपड़े पहने से मन शांति रहता है। साथ ही देवी मां की कृपा मिलती है

लाल रंग

नवरात के दूसरे दिन मां ब्रह्माचारिणी की पूजा होती है। मां ब्रह्माचारिणी को लाल रंग काफी प्रिय है। कहा जाता है इस दिन लाल रंग का कपड़ा पहनना बहुत ही ज्यादा शुभ होता है। 

नीला रंग

नवरात्र के तीसरे मां चंद्रघंटा की पूजा की जाती है। कहा जाता है इस दिन मां चंद्रघंटा को नीला रंग पसंद है। इस दिन नीले रंग के कपड़े पहन काफी शुभ होता है। 

पीला रंग

नवरात्र के चौथे दिन देवी कुष्मांडा की पूजा की जाती है।  देवी कुष्मांडा को पीला रंग बेहद पसंद है इसीलिए इस दिन पीले रंग के कपड़े पहनने से माता काफी प्रसन्न होती है।

 हरे रंग

नवरात्र के पांचवे दिन देवी स्कंदमाता की पूजा होती है। इस दिन हरे रंग के कपड़े पहन कर माता को प्रसन्न किया जा सकता है।

ग्रे कलर

नवरात्र के छठे दिन मां कात्यायनी की पूजा होती है। इस दिन ग्रे कलर के कपड़े पहनना चाहिए। कहा जाता है इस दिन ग्रे रंग के कपड़े पहनने से मां की कृपा बरसती है। 

 ऑरेंज रंग

नवरात्र के सातवें दिन देवी कालरात्रि की पूजा की जाती है। इस दिन ऑरेंज रंग के कपड़े का बहुत महत्व है। 

मोरपंख जैसा हरा रंग

नवरात्र के आठवें दिन देवी महागौरी का आराधना की जाती है। इस दिन मोरपंख जैसे हरे रंग के कपड़े पहनने से माता रंगी की विशेष कृपा मिलती है। 

पिंक कलर

नवरात्र के नौवें दिन मां सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है। इस दिन पिंक कलर के कपड़े पहनने से आपको परिवार और दोस्तों से ढेर सारा प्यार और आशीर्वाद मिलेगा।


चैत्र नवरात्रि मुहर्त,पूजा विधि व आरती

चैत्र नवरात्र के नौ दिन मां आदिशक्ति की उपासना करने के लिए बहुत खास माने जाते हैं। नवरात्रि नौं दिनों तक मां के 9 स्वरूपों शैलपुत्री माता, ब्रह्मचारिणी, चन्द्रघंटा, कूष्माण्डा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और मां सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है। 

प्रतिपदा वाले दिन सवेरे जल्दी उठकर स्नान करें | पूरे घर की साफ सफाई करें लेकिन अच्छा है कि साफ-सफाई 1 दिन पहले कर ले और अगर घर में मंदिर बना रखा है तो मंदिर में नहीं तो पूर्व दिशा में एक लकड़ी की चौकी  पर लाल कपड़ा बिछाकर  कलश की स्थापना करें, कलश  मिट्टी,पीतल या तांबा का ले सकते है | मंदिर में माता की मूर्ति है तो ठीक है अन्यथा चौकी पर माता की मूर्ति या चित्र व  कलश की स्थापना करें, कलश साफ करके उसके ऊपर कलावा लपेटे तथा रोली का टीका लगा दें, जल व गंगा जल भर दे | एक नारियल लेकर उस पर लाल कपड़ा लपेट दे,चौकी के पास पूजा का सारा सामान जैसे रोली कलावा बाती घी दिया,सुपारी,इलायची,लौंग,बताशे,कपूर,धुप,जायफल  इस प्रकार पूरे  8/9 दिन के पूजा का सामान वहां इकट्ठा करके रख लें ताकि बार-बार परेशान ना होना पड़े, अगर हम कोई विशेष मंत्र  जपते हैं तो उस मंत्र का जाप भी इन दिनों करना चाहिए, अगर संभव हो तो  दुर्गा स्त्रोत/स्तुति पढ़े नहीं हो सके तो दुर्गा चालीसा पढ़ना चाहिए, माता के सामने बैठकर ध्यान करें, इन दिनों  सात्विक जीवन जीना  है, जो भी हम मनोकामना लेकर इन नवरात्रों में माता की पूजा करेंगे आप मान कर चलो कि निश्चित तौर पर माता हमारी मनोकामनाएं पूरी करेगी | 

चैत्र नवरात्रि 30-03-2025,से शुरू हो रहे हैं, हम अगर ʼश्री राम जय राम जय जय राम ।।ʼ का जाप करें राम नवमी 06-04-2025, तक। प्रभु के आशीर्वाद से आपकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होंगी।

यह मंत्र तेरह अछर का है इसलिए हम 13,बार जाप करें ।
बोलो  सांचे दरबार की जय।



माँ दुर्गा की आरती 


जय अम्बे गौरी,मैया जय श्यामा गौरी ।

तुमको निशदिन ध्यावत,हरि ब्रह्मा शिवरी ॥

मांग सिंदूर विराजत,टीको मृगमद को ।

उज्ज्वल से दोउ नैना,चंद्रवदन नीको || ॐ जय अम्बे गौरी…. 

कनक समान कलेवर,रक्ताम्बर राजै ।

रक्तपुष्प गल माला,कंठन पर साजै || ॐ जय अम्बे गौरी…. 

केहरि वाहन राजत,खड्ग खप्पर धारी ।

सुर-नर-मुनिजन सेवत,तिनके दुखहारी || ॐ जय अम्बे गौरी….  

कानन कुण्डल शोभित,नासाग्रे मोती ।

कोटिक चंद्र दिवाकर,सम राजत ज्योती || ॐ जय अम्बे गौरी…. 

शुंभ-निशुंभ बिदारे,महिषासुर घाती ।

धूम्र विलोचन नैना,निशदिन मदमाती || ॐ जय अम्बे गौरी…. 

चण्ड-मुण्ड संहारे,शोणित बीज हरे ।

मधु-कैटभ दोउ मारे,सुर भयहीन करे || ॐ जय अम्बे गौरी…. 

ब्रह्माणी, रुद्राणी,तुम कमला रानी ।

आगम निगम बखानी,तुम शिव पटरानी || ॐ जय अम्बे गौरी…. 

चौंसठ योगिनी मंगल गावत,नृत्य करत भैरों ।

बाजत ताल मृदंगा,अरू बाजत डमरू || ॐ जय अम्बे गौरी…. 

तुम ही जग की माता,तुम ही हो भरता,

भक्तन की दुख हरता ।सुख संपति करता || ॐ जय अम्बे गौरी…. 

भुजा चार अति शोभित,खडग खप्पर धारी ।

मनवांछित फल पावत,सेवत नर नारी ॥ ॐ जय अम्बे गौरी..

कंचन थाल विराजत,अगर कपूर बाती ।

श्रीमालकेतु में राजत,कोटि रतन ज्योती ॥ॐ जय अम्बे गौरी..

श्री अंबे जी की आरती,जो कोइ नर गावे ।

कहत शिवानंद स्वामी,सुख-संपति पावे ॥ॐ जय अम्बे गौरी..

जय अम्बे गौरी,मैया जय श्यामा गौरी ।

तुमको निशदिन ध्यावत,हरि ब्रह्मा शिवरी ॥


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शर्मा जी, जन्म कुंडली विशेषज्ञ व सलाहकार,

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गुरु, ज्ञान और आध्यात्मिक विकास का स्रोत

  गुरु, ज्ञान और आध्यात्मिक विकास का स्रोत सतीश शर्मा  गुरु पूर्णिमा, आषाढ़ मास की पूर्णिमा को मनाई जाती है, और यह दिन गुरुओं के प्रति सम्मा...