शनि ग्रह
शनिग्रह:- नौ ग्रहों में शनि बृहस्पति के बाद सबसे बड़ा ग्रह है। शनिग्रह एक राशि में ढाई वर्ष भ्रमण करता है। शनि सभी द्वादश (बारह) राशि घूमने के लिए तीस साल का समय लेता है। तीन राशियों की कालावधि को साढे सात वर्ष लगते हैं इसीलिए इस काल को साढेसाती कहते हैं।शनिदेव हैं पश्चिम दिशा के स्वामी, इस दिशा में दोष होने पर लाइफ में बनी रहती हैं परेशानियां,ध्यान रखें ये बाते वास्तु में दस दिशाओं को महत्व बताया गया है।
इन सभी दिशाओं का एक-एक प्रतिनिधि ग्रह होता है, जिसका प्रभाव उस दिशा से होता है। उसी के अनुसार पश्चिम दिशा पर शनिदेव का आधिपत्य माना गया है।दरअसल ज्योतिष के अनुसार शनि को श्यामवर्ण माना गया है। काला रंग आलस्य का प्रतीक होता है। शनि को भी धीमे चलने वाला अशुभ शनि को शुभ बनाने के लिए लोहे व काली चीजों के दान का ज्योतिष के अनुसार विशेष महत्व है।जिसके दान से उस ग्रह का दोष कम हो जाता है।
शनि ग्रह का रत्न नीलम हैं।
पीपल को जल चढाए,पूजा करें और सात परिक्रमा करें। शनिदेव को तेल अर्पित करें और पूजन करें।हर शनिवार को पीपल के पेड़ के नीचे सरसों के तेल का दीपक प्रज्जवलित करें।
हर शनिवार सुबह-सुबह स्नान आदि कर्मों से निवृत्त होकर तेल का दान करें।
हनुमानजी को सिंदूर और चमेली का चढ़ाएं.
शनि देव के लिए सरसों के तेल का दान काफी अच्छा माना जाता है। अगर शनि के चलते आपका कोई काम रुका हुआ है या जीवन में सफलता हाथ नहीं आ रही, तो सरसों के तेल का दान जरूर करें। शनिवार के दिन सुबह लोहे के बरतन में सरसों का तेल लें और उसमे एक रुपए का सिक्का डालें |
शनिदेव के इस मंत्र को श्री शनि वैदिक मंत्र कहा जाता है। इस मंत्र का 23000 हजार जप करने से साढे़साती शनि का दुष्प्रभाव शांत हो जाता है |
शनिदेव को खुश करने के लिए ये उपाय किए जा सकते हैं-
शनिवार के दिन सुबह स्नान करके शनिदेव की पूजा करें,शनिदेव को काले तिल,
काले उड़द, सरसों का तेल, काले वस्त्र, और जूते का दान करें,शनिदेव को प्रसन्न करने के
लिए 'ॐ शं शनिश्चराय नमः' मंत्र का जाप करें,शनिवार के दिन हनुमान चालीसा या
सुंदरकांड का पाठ करें,शनिवार के दिन पीपल के पेड़ की पूजा करें और इसके
नीचे दीपक जलाएं,शनिदेव की कृपा पाने के लिए शनि यंत्र की पूजा करें,शनिदेव को
खुश करने के लिए कुत्तों की सेवा करें,शनिदेव को खुश करने के लिए शिव जी की
पूजा करें,शनिवार के दिन व्रत रखें,शनिवार के दिन गरीबों और ज़रूरतमंदों की मदद
करें,शनिदेव को न्याय का देवता माना जाता है,शनिदेव व्यक्ति के कर्मों के आधार पर उसे
फल देते हैं,शनिदेव की कृपा जिस व्यक्ति पर होती है, उनके जीवन में तरक्की के योग बनने लगते हैं,
शनिदेव की नज़र किसी व्यक्ति पर बिगड़ जाए, तो उसे लेने के देने पड़ जाते हैं |
जब शनि किसी जातक की जन्म राशि से द्वादश,प्रथम या द्वितीय स्थान में हो तो शनि की प्रस्तुत गोचर स्थिति शनि साढ़ेसाती कहलाती है | इसके प्रभाव स्वरूप जातक\जातिका को मानसिक संताप,शारीरिक कष्ट,कलह क्लेश,आर्थिक परेशानियां,आय कम व खर्च की अधिकता,रोग व शत्रु भय,बनते कार्य में विघ्न बाधाएं,संतान एवं परिवार संबंधी परेशानियां उत्पन्न होती है | प्रत्येक राशि में लगभग ढाई वर्ष तक संचार करता है | शनि वक्री-मार्गी गति के कारण कई वर्षों के काल में न्यूनता-अधिकता भी होती रहती है | शनि किस राशि पर संचरित होता है उससे पहले बारहवे में और दूसरे भाव में स्थित राशियों पर विशेष प्रभावित करता है | इसी को शनि की साढ़ेसाती कहा जाता है |
शनि की ढैय्या - गोचरवश शनि चंद्र राशि से चौथे स्थान पर संचार करता है तब शनि की ढैय्या कहलाती है | यह भी शनि के किसी राशि संचार के अनुसार ढाई वर्ष के लिए होती है | इसका प्रभाव भी अशुभ माना गया है | शनि की ढैय्या के प्रभाव स्वरूप जातक/जातिका को वृथा दौड़-धूप,धन हानि अनावश्यक खर्च, गुप्त चिंताएं, रोग शोक, क्लेश,बंधु विरोध, कार्य में विघ्न बाधाओं एवं आर्थिक उलझनों का सामना करना पड़ता है |
जन्म कुंडली दिखाने के लिए व बनवाने हेतु कृपया जन्म तिथि, समय व स्थान लिखे
संपर्क करें-
शर्मा जी-9312002527,9560518227
sumansangam1957@gmail.com
www.sumansangam.com
वर वधू के लिए निम्नलिखित फार्म भरे ।
Fill the following form for the bride and groom।
https://docs.google.com/forms/d/1v4vSBtlzpdB3-6idTkD1qoUZ6YkZIqEv8HAAeOJyPRI/edit
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