जानकारी काल
वर्ष-25 अंक - 10 फरवरी - 2025 , पृष्ठ 40 www.sumansangam.com
अपनों से अपनी बात
पर्यावरणनाशेन, नश्यन्ति सर्वजन्तवः । पवनः दुष्टतां याति, प्रकृतिर्विकृतायते ।।
पर्यावरण के प्रदूषित होने से सभी प्राणी नष्ट हो जाते हैं । हवा दुष्टता को प्राप्त हो जाती है और यह प्रकृति विकृत हो जाती है ।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने सम्पूर्ण भारतीय समाज में आधारभूत परिवर्तन के लिए पांच आयामों को चुना है वे हैं 'स्व', सामाजिक समरसता, कुटुंब प्रबोधन, पर्यावरण और नागरिक कर्तव्य।पंच परिवर्तन का यह संकल्प भारत को वैभव सम्पन्न सशक्त राष्ट्र के रूप में विकसित करेगा। इस दृष्टि से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ शताब्दी वर्ष में संघ ने पंच अमृत धाराओं से समाज को सिंचित करने का संकल्प लिया है। 2024-25 में यह परिवर्तन खुद में व अपने परिवार में करना हैं उसके बाद समाज मे लेकर जाना हैं | इन पंच परिवर्तन के कुछ करने योग्य कार्य नीचे दिए हैं , हम सबको इन पंच बिन्दु को अपने जीवन मे शामिल करना चाहिए |
पर्यावरण - प्रदूषण को रोकने के लिए, ये उपाय अपनाए जा सकते हैं - कूड़ा-कचरा उठाकर कूड़ेदान में फेंकें. पत्तियों को सड़क पर न उड़ाएं. घास या यार्ड के कचरे को मल्च या खाद में बदलें | फ़र्टिलाइज़र को बारिश से पहले घास पर न डालें | कार या बाहरी उपकरणों को ऐसी जगह धोएं जहां से पानी सड़क पर न बह सके | जल स्त्रोतों में पशुओं को न नहलाए,पूजा के अवशेष फूल इत्यादि नदी, तालाब, झील में डाल कर गंदगी ना करें |कीटनाशियों,कवकनाशियों जैसे निम्नीकरण योग्य पदार्थों का इस्तेमाल करें | खतरनाक कीटनाशियों के इस्तेमाल पर रोक लगाएं | जल स्त्रोतों के पानी को शुद्ध करने पर ध्यान दें | बड़ी-बड़ी फैक्ट्रियों में जल शोधन संयंत्र लगाएं | प्लास्टिक के इस्तेमाल को कम करें | पालतू जानवरों के मल को बैग में भरकर कूड़ेदान में डालें | अपने पूल,स्पा या फ़व्वारे के पानी को नाले में न बहाएं बल्कि सिचाई के लिए इस्तेमाल करें | कृषि भूमि पर मिट्टी के कटाव को रोकने के लिए आवरण फसलों का इस्तेमाल करें | ज़्यादा से ज़्यादा सार्वजनिक परिवहन, साइकिल या पैदल चलें | अगर आप निजी वाहन चलाते हैं, तो कार पूलिंग करें | अगर आपका ऑफ़िस घर से काम करने का विकल्प देता है, तो इसका लाभ उठाएं | बाहर जाने पर पुनः प्रयोज्य वायु मास्क पहनें |घर में तुलसी, एलोवेरा और मनी प्लांट जैसे पौधे लगाएं ये पौधे घर के अंदर की हवा को शुद्ध करते हैं | कुशल इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों का इस्तेमाल करें | हमें अपने पर्यावरण का ध्यान रखना चाहिए |आलाव ना जलाये,प्लास्टिक की थैली मे खाना ना रखें |घर के बचे खाने को प्लास्टिक की थैली मे भर कर बाहर ना फेंके गाय प्लास्टिक की थैली समेत खाती है इससे उसे नुकसान होता है
|सामाजिक समरसता - सामाजिक समरसता का अर्थ है सभी को अपने समान समझना। जातिगत भेदभाव एवं अस्पृश्यता को दूर करना लोगों में परस्पर प्रेम एवं सौहार्द बढ़ाना समाज के सभी वर्गों एवं वर्णों के मध्य एकता स्थापित करना ही सामाजिक समरसता है,दोस्तों, परिवार, भागीदारों और पड़ोसियों से जुड़ने से शुरुआत
करें।अपने जीवन में किसी भी तरह की असहमति से निपटने के लिए उदारतापूर्वक,दयालु तरीके से और अपने समुदाय के लोगों को वापस मुख्य धारा में लाने पर ध्यान केंद्रित करें। सुनिश्चित करें कि आप व्यक्तिगत सद्भावना भी बनाए रखें, क्योंकि इससे आपको दूसरों के साथ तालमेल करने में मदद मिलेगी। समाज में सभी को समान अधिकार और अवसर मिलना चाहिए। समाज सेवा का कार्य हमें
एकजुट करता है। एक बेहतर समाज की परिकल्पना के लिए संवाद व सहयोग बहुत महत्वपूर्ण है।
कुटुंब प्रबोधन - कुटुंब प्रबोधन पर हम तीन स्तर पर काम कर सकते है - हफ्ते में कम से कम एक दिन परिवार के साथ बैठकर भोजन करें,अपनी संस्कृति, परंपरा और इतिहास पर बात करें । दूसरा स्तर है अपने मित्र व रिश्तेदारों के परिवारों की बैठ कर भोजन करें,सामूहिक चर्चा करे पर विवादों से बचें ।हम सभी अपने आसपास के परिवारों के बीच मेलपिलप करें व बातचीत करे व उनके सुख दुख मे भागीदारी करें |
स्व का बोध - अपने व्यवहार,दृष्टिकोण,ताकत,और कमज़ोरियों के बारे में जानकारी होना | इससे दूसरों के प्रति अपने दृष्टिकोण का अनुमान लगाता है | आत्म-बोध में आत्म-सम्मान, आत्म-मूल्य, पहचान, और आत्म-छवि शामिल है |आत्म-बोध, मनोविज्ञान के प्रमुख लक्ष्यों में से एक है | दूसरों के साथ बातचीत भी आत्म-बोध को आकार देती है | आत्म-बोध को विकसित करने में अनुभव और दूसरों के साथ बातचीत का इस्तेमाल किया जा सकता है | आत्म-बोध अपनी विकासशील पहचान से जुड़ा हुआ है | बच्चों को स्वयं के बारे में सकारात्मक भावना विकसित करने में मदद करना भाषा भोजन व वेश स्वदेशी होनी चाहिए,अपने देश मे निर्मित समान का उपयोग करे | शादी व मांगलिक उत्सव के समय अपनी भाषा में निमंत्रण पत्र छपवाए,अपने मे व मित्रों से अपनी भाषा में बात करें,हॅलो की जगह अपनी मातृ भाषा का उपयोग करें राम-राम,नमस्ते इत्यादि |
नागरिक कर्तव्य - नागरिक कर्तव्य बोध का मतलब है कि नागरिकों को अपने कर्तव्यों के प्रति जागरूक होना चाहिए और उन्हें पूरा करने के लिए ज़िम्मेदार होना चाहिए | नागरिक कर्तव्यों को पूरा करना,सरकार और नागरिकों के बीच होने वाले अनुबंध का सम्मान करना है | नागरिकों के कर्तव्य कानून द्वारा अनिवार्य नहीं होते, लेकिन इन्हें सामाजिक रूप से अच्छा माना जाता है | इनका उलेख राज्य के नीति निर्देशक तत्व के द्वारा संविधान में है | चुनाव में मतदान करना,सामुदायिक सेवा परियोजनाओं में भाग लेना,करों का भुगतान करना,अदालत में गवाह के तौर पर सेवा करना,नियमों का पालन करना,हेलमेट पहनना,कार मे सीट बेल्ट बांधना,सरकारी व सामाजिक संसाधनों व सीमित उपभोग करना |
अयं निजः परो वेति गणना लघुचेतसाम्। उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम्॥
यह मेरा है, वह पराया है, ऐसा छोटे विचार के व्यक्ति करते हैं। उच्च चरित्र वाले लोग समस्त संसार को ही परिवार मानते हैं॥
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वर वधू के लिए निम्नलिखित फार्म भरे ।
Fill the following form for the bride and groom।
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हिन्दवी स्वराज्य के स्वप्न दृष्टा महानायक
छत्रपति शिवाजी
शिरोमणि दुबे
हमारे देश का इतिहास अत्यंत रोमांचकारी तथा सतत संघर्ष की गौरव गाथा है। लगभग 2300 वर्षों तक भारत विदेशी आक्रांताओं के बर्बर हमलों का शिकार होता रहा। इन दुर्धर्ष हमलों से अपनी अस्मिता को बचाने के लिए भारत माता की कोख से हर कालखण्ड में ऐसे नर वीर पैदा होते रहे जिन्होंने देश की आन-बान-शान को दुनिया में जीवंत बनाये रखा। इतिहास में कुछ पल ऐसे होते है जो यादगार बन जाते है। कुछ तिथियाँ कुछ तारीखें ऐसी होती हैं जो समय की शिला पर अपने निशान छोड़ जाती है, स्मरणीय बन जाती है। ज्येष्ठ शुक्ल त्रयोदशी भारत के अतीत के पृष्ठों में सुवर्ण अक्षरों में अंकित ऐसा दिवस है जब 6 जून 1674 को विश्व में कहीं भी पहली बार हिन्दू पदपादशाही की स्थापना हुई थी। हिंदवी स्वराज्य की स्थापना हुई थी।
आज से 350 वर्ष पहले सह्याद्रि पर्वत के शिवनेरी दुर्ग पर इसी तिथि को छत्रपति शिवाजी महाराज का राज्याभिषेक हुआ था। उस दिन छत्र शिवाजी राजे ने धारण किया था, शिवाजी सम्राट बने थे। लेकिन यह किसी राजा का राजतिलक नहीं था। यह राज तिलक था उस शौर्य का जिसने मुगलिया सल्तनत को समरांगण में कतरा-कतरा बिखेर दिया था। यह अभिनंदन था उस सुप्त चेतना का जिसके बज्र संकल्पों से टकराकर बड़ी-बड़ी राक्षसी ताकतें धराशायी होती रही। यह राज्याभिषेक था उस सामान्य मानवी का जिसे हमेशा धकियाया गया, अपमानित किया गया। यह वंदन था उस विजय वाहिनी का जिसने स्वतंत्रता-स्वराज्य के लिए तोपों के आगे अपने सीने अड़ा दिये। यह राजतिलक था उस सनातन सत्ता प्रतिष्ठान का जिसकी एक मुठभेड़ में आततायी धनानंद के सर से ताज आसमान में टूट टूटकर बिखर गये। शिवाजी महाराज छत्रपति हो गये। यह उत्सव का दिन है, यह प्रेरणा देने वाला क्षण है। ऐसे शिव साम्राज्य दिवस पर संघ संस्थापक प.पू.डॉ.हेडगेवार ने कहा था कि यह तो सम्पूर्ण हिन्दू समाज के लिए गर्व का गौरव का क्षण है। यह केवल राजा का राज्याभिषेक नहीं सम्पूर्ण हिन्दू समाज का राजतिलक है।
17वीं शताब्दी का आरंभ हो रहा था। हिन्दुस्थान का मानचित्र खण्ड-खण्ड बिखर रहा था। दक्षिण में आदिलशाही, निजामशाही, कुतुबशाही के जोर-जुल्म-ज्यादतियों से जनता असहनीय पीड़ा झेल रही थी वहीं उत्तर में मुगल वादशाह शाहजहां की मौज-मस्तियों से हिन्दू समाज में आक्रोश पैदा हो रहा था। अत्याचारों का कभी न रुकने वाला अंतहीन सिलसिला प्रारंभ हो गया था। हिन्दुओं के मठ-मंदिरों, आस्था के केन्द्रों को जमीदोज किया जा रहा था। भारत के महान ग्रंथों को आग के हवाले किया जा रहा था। भारत की पवित्रतम ज्ञान संपदा को समूल नष्ट किया जा रहा था। परतंत्रता की बेड़ियों में जकड़ा हुआ समाज सिसकियां ले रहा था, विलाप कर रहा था। यह वही समय था जब भारत के भविष्य और सनातन धर्म को गंभीर चुनौती मिल रही थी। यह वही समय था जब टुकड़ों में बटा हुआ हिन्दू समाज आत्म विस्मृति का शिकार था। यह वही समय था जब भारत माता की कोख लज्जित हो रही थी। बड़े-बड़े कथित रायबहादुर खिताब के लिए मुगलिया सम्राटों के चरण चुम्बन कर रहे थे। छोटे से ईनाम के लिए ईमान बिक रहा था।
चंद कोड़ियों के लिए मुसलमान बनने की होड़ लगी थी। इतिहासकार उस काल खण्ड का वर्णन करते हुए लिखते है यहाँ का समाज यहाँ का धर्म आक्रांताओं के पैरों तले कुचला हुआ था। यही समय था जब सम्पूर्ण देश में एक शब्दावली प्रचलित थी “दिल्लीश्वरो वा जगदीश्वरो वा” अर्थात् दिल्ली में बैठा हुआ सुल्तान वह हमारे लिए ईश्वर के समान है। ऐसी दीन-हीन अवस्था अपने समाज की हो गई थी। ऐसी विपरीत परिस्थिति में जीजामाता के गर्भ से ऐसे महापुरुष का जन्म हुआ जिसे यह संसार छत्रपति शिवाजी के नाम से जानता है, उनका आदर पूर्वक स्मरण करता है। मुगलों ने पूरे भारत में एक झूठ फैलाया था कि अब कोई हिन्दू भारत का सम्राट नहीं बन पायेगा। लेकिन शिवाजी महाराज ने इस झूठ को अपनी चमचमाती भवानी तलवार से 100 टुकड़े करके फेंक दिये। उन्होंने छत्र धारण किया, अपने नाम के सिक्के चलवाये और मुगलों के लिए दक्षिण का द्वार हमेशा-हमेशा के लिए बंद कर दिया।
छत्रपति शिवाजी कहते थे कि राष्ट्र किसी राजा की सम्पत्ति नहीं है। राजा उसका मालिक नहीं हो सकता। वह खजाना तो जनता का है जनता के कल्याण के लिए है। शिवाजी ने अपने हिंदवी साम्राज्य में अंसख्य मंदिर, बाबड़ी, कूप बनवाये जिससे धर्म और धरती माता दोनो समृद्ध रह सके। शिवाजी महाराज का शासन आधुनिक भारत के रामराज्य का सबसे बड़ा उदाहरण है। स्वदेश, स्वधर्म, स्वदेशी और स्वभाषा के लिए जो प्रयास भूतकाल में शिवाजी ने किये वह उनकी भारत भक्ति और सनातन के प्रति गहरी आस्था का जीवंत प्रमाण है। शिवाजी के जीवन का एक महत्वपूर्ण पहलु है कि उनका व्यक्तिगत और राष्ट्रीय चरित्र बेदाग है। वे साहसी रहे हैं, दृढ़ता के साथ आगे बढ़े हैं। सभी प्रकार की परिस्थितियों को मात करते हुए निरंतर विजयी हुए हैं। उन्होने हमेशा जीतने के लिए युद्ध लड़े है। इसका कारण खोजेंगे तो इसके मूल में शिवाजी का निःस्वार्थ जीवन है। उनके जीवन में स्वार्थ को शून्य स्थान है। इसलिए उनके जीवन का वर्णन करते हुए उन्हें योगी कहा गया है। इतिहास में शायद ही किसी राजा को योगी कहा गया है वे श्रीमंत योगी हैं। इसलिए क्योंकि वह धर्म के लिए लड़े हैं। इनका सम्पूर्ण जीवन देश, समाज तथा हिन्दू के लिए समर्पित रहा है –
है विघ्न कौन ऐसा जग में, टिक सके वीर नगर के मग में,
खम ठोक ठेलता है जब नर, पर्वत के जाते पाँव उखड़,
मानव जब जोर लगाता है, पत्थर पानी बन जाता है।
शिवाजी के द्वारा शासन की बागडोर सम्हालने के पहले सारा कारोबार फारसी और उर्दू में चलता था। शिवाजी मानते थे जब तक स्वभाषा का जागरण नहीं होता तब तक देश भक्ति का जागरण सम्भव नहीं है। स्वभाषा में काम-काज के लिए शिवाजी ने विद्वानों की एक समिति बनाई और राज्य व्यवहार से सम्बन्धित उर्दू, फारसी शब्दों के लिए संस्कृत में शब्द खोजे गये और सम्पूर्ण मराठा साम्राज्य में स्वभाषा में कार्य व्यवहार प्रारंभ हो गया। यह शिवाजी महाराज का स्वभाषा के प्रति अगाध प्रेम को दर्शाता है। शिवाजी महाराज ने जोर-जुल्म से धर्मान्तरित हिंदुओं की घर वापिसी का मार्ग प्रशस्त किया। शिवाजी महाराज राजनीतिक नेता नहीं थे। सम्पूर्ण समाज का विचार उनके सामने था। इसलिए उन्होंने धोखे से, लालच से बल पूर्वक अहिंदू बने हुए लोगों का शुद्धीकरण कराया। वे कहते थे यह एक तरफा नहीं है जिन्होने अपनी उपासना पद्धति बदली है ऐसे मुसलमानों को फिर से हिंदू बनाया जा सकता है। यह उन्होंने अपने उदाहरण से सिद्ध किया था। नेताजी पालकर अच्छे सेनापति थे, औरंगजेब की सेवा में रहते थे, उन्हें वापस हिंदू बनाने का कार्य शिवाजी ने किया था। बजाजी राव निंवालकर जो स्त्री मोह में मतांतरित हो गये थे शिवाजी महाराज के प्रयासों से उनकी भी घर वापसी हुई।
शिवा के राज्याभिषेक का जब समय आता है तब वे राजा बनने से इंकार कर देते है। उनकी छत्रपति बनने की कोई इच्छा नहीं है। आज की परिस्थितियों को देखेंगे तो कौन राजा बनने के लिए तैयार नहीं हेगा। काशी से आये पंडित गागाभट्ट ने शिवाजी से आग्रह किया आज देशभर में हिंदू राजा की बड़ी आवश्यकता है। तब शिवाजी गागाभट्ट के आग्रह पर राज्याभिषेक के लिए तैयार हो गये थे। परन्तु उन्होने यह कभी नहीं कहा कि यह मेरा राज्याभिषेक हो रहा है यह तो भगवान की इच्छा है। मैं उनके प्रतिनिधि के रुप में रहूँगा। वे कहते थे कि यह भवानी माता की इच्छा है कि मैं राजा बनू। शिवाजी महाराज ने कभी भी स्वयं को सिंहासन से ऊँचा नहीं माना वे तो ईश्वर की इच्छा के अनुरुप कार्य करते रहे।
राज्याभिषेक के बाद शिवाजी महाराज ने एक राष्ट्रीय दृष्टिकोण अपने सामने रखा है। इस सम्बंध में शिवाजी का मिर्जाराजे के लिखा गया पत्र पढ़ने लायक है। वह पत्र में लिखते है मिर्जाराजे, आप युद्ध के लिए क्यों आ रहे हो। आपको अपने साम्राज्य विस्तार के लिए युद्ध की आवश्यकता नहीं है। मैं स्वेच्छा से अपना राज्य तुम्हारे चरणों में समर्पित करने के लिए तैयार हूँ लेकिन आप मुगलों के साम्राज्य विस्तार के लिए आए हो इसलिए मेरी भवानी तलवार आपसे युद्ध करने के लिए तैयार है। इस प्रकार शिवाजी ने अपने राष्ट्रीय दृष्टिकोण को स्पष्टता के साथ रखा है।
शिवाजी के पास 300 किलों का विस्तृत साम्राज्य था। लेकिन आश्चर्य की बात यह है कि इन 300 किलों में किलेदार उनका कोई रिश्तेदार नहीं था। कोई उनका सगा नहीं था। जिम्मेदारियां तय करते समय उन्होंने गुणवत्ता और क्षमता को आधार बनाया था। दायित्व तय करने में रिश्ता कभी आधार नहीं रहा। इस प्रकार शिवाजी महाराज के जीवन में एक व्यापक सर्व समावेशी दृष्टिकोण दिखाई देता है। छत्रपति शिवाजी को समझने की कोशिश करेंगे तो पचास साल की आयु और पूरे जीवनभर संघर्ष यही कुछ उनके जीवन में दिखाई देता है। वे राजा है, उन्होंने जीवनभर युद्ध लड़े हैं। अपने पुरुषार्थ-पराक्रम से गये हुए किलों को वापस किया है। शत्रुओं को खदेड़ा है परन्तु यह करते समय उनके जीवन में कोई व्यक्तिगत आकांक्षा नहीं है। आकांक्षा बस इतनी है कि यह हिंदवी स्वराज्य सुरक्षित रहना चाहिए। इसके लिए जो-जो करना पड़ेगा करते चलेंगे।
छत्रपति शिवाजी ने तय किया था हमारा शासन भेद-भाव मुक्त होगा। हम जनता का विश्वास प्राप्त करेंगे। वे मानते थे कि यदि स्वराज्य में सामान्य जनों का शासन के प्रति विश्वास नहीं रहा तो कोई भी राजा न तो देश का हित कर सकता है और न समाज का। इसलिए उन्होंने सामान्य जनों में विश्वास जगाने का प्रयास किया था। उन्होंने जो आदेश दिये है वास्तव में वह अध्ययन के लायक है। उन्होंने महिला सुरक्षा को हर कीमत पर सुनिश्चित करने का फरमान सुनाया है। वे किसान कल्याण और उनकी खुशहाली के लिए योजनाएँ बनाते हैं। उनकी न्याय व्यवस्था बड़ी प्रसिद्ध रही है। वह सबके साथ न्याय की वकालत करते है, मठ, मंदिर, साधु, संत, महंत सुरक्षित रहे इसके लिए मंत्रिमण्डल में अष्टप्रधान की व्यवस्था करते हैं।
सहज रुप से मन में एक विचार आता है ईश्वर जब मनुष्य रुप में अवतार लेता है तो उसके जीवन का उद्देश्य होता है। भगवान राम ने यहां जन्म लिया। उनका लक्ष्य ही इस दुनिया में आसुरी शक्तियों का संहार करना था। “निसिचर हीन करउँ महि, भुज उठाइ पन कीन्ह।” यही उनके जीवन का लक्ष्य है। इसलिए उनके जीवन में सभी प्रयास राक्षसी प्रवृत्ति का संहार करते हुए दिखाई देते हैं। अंत में रावण का संहार होता है। सम्पूर्ण रामायण उनके राम के राज्याभिषेक पर समाप्त होती है परन्तु संकल्प की पूर्णाहूति रावण के संहार पर होती है। कृष्ण के सामने बचपन से ही संघर्ष है कंस मारने के लिए खड़ा है उनके जीवन का लक्ष्य है –
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दृष्कृताम्। धर्मसंस्थापनार्थाय संभवामि युगे युगे।।
हम देखते है कि भगवान कृष्ण का जीवन तब समाप्त होता है जब पाण्डवों की विजय होती है, धर्म की स्थापना होती है। भगवान राम के जीवन का लक्ष्य राक्षसों का संहार रहा होगा। भगवान कृष्ण के जीवन का उद्देश्य धर्म की स्थापना रही होगी। छत्रपति शिवाजी महाराज का हिंदवी साम्राज्य का निर्माण यही उनके जीवन का संकल्प रहा है। हिन्दू पदपादशाही निर्माण करना शिवाजी को अभिप्रेत था जिसे उन्होंने अपने जीवन काल में ही पूर्ण किया है।
अंततः यहां का हिन्दू समाज अधर्मी, आसुरी शक्तियों के सामने आत्म विश्वास पूर्वक डटकर खड़ा रह सके। दुनिया का दिशाबोध करने वाला समाज चाहिए तो ऐसे महापुरुषों का जीवन हम सभी के लिए प्रेरणादायी बन सकता है। आज जब देश को अंदर और बाहर से चुनौतियां मिल रही हैं तब शिवाजी के जीवनकाल का संदेश हमारा मार्ग प्रशस्त करेगा ही।
समाधियां उन्हीं की महकती है जो अहं के लिए नहीं वयं और विराट की सेवा में खप जाते हैं, खर्च हो जाते हैं। सच में, वे ही इतिहास के स्वर्णिम पृष्ठ है जिसका एक-एक शब्द वंदन-अर्चन के योग्य है। शिवशाही का संदेश यही है –
प्रेरणा शहीदों से अगर हम नहीं लेंगे, तो स्वतंत्रता ढलती हुई सांझ हो जायेगी।
पूजा वीरों की यदि हम नहीं करेंगे, तो सच मानो वसुन्धरा बांझ हो जायेगी।।
(लेखक विद्या भारती मध्यभारत प्रान्त के प्रदेश सचिव है।)
मैं अपने चेहरे को अख़बार करने वाला हूँ
मै अमीरे शहर से एक दूरी रखने वाला हूँ
मैं जी-हुज़ूरी से इन्कार करने वाला हूँ
कहो अँधेरे से दामन समेट ले अपना
मैं जुगनुओं की झण्डा बरदारी करने वाला हूँ
मेरे लोग मुझे पढ़ सके हर रोज
मैं अपने चेहरे को अख़बार करने वाला हूँ
मैं चाहता था कि भाई का साथ छूट न जाए
मगर वो समझा कि मैं वार करने वाला हू
आँखों से सुनना मेरी कहानी को
बन्द होठ से जीवन गीत गाने वाला हूँ
हमारी राह में पत्थर कोई नहीं होगा
जीवन दरिया है मैं पार करने वाला हूँ
डाक्टर बेटी
शिक्षक सीता राम पांडे अपनी पत्नी के साथ अकेले हॉस्पिटल के कमरे में बैठे बैठे सोच रहे थे के बीवी के आपरेशन के लिए पैसे की व्यवस्था कहाँ से करू हर तरफ दिमाग लगा के हार चुके और बाद में बस वही घर बचा जिसमें वो रह रहे थे..
आँखों से आंसू पोछते हुए सीता राम ने अपनी पत्नी की तरफ देखा वो दो दिन से बेहोस थी आगे पीछे कोई नही एक बेटी थी वो भी अपनी पसन्द के लड़के के साथ भाग कर शादी कर ली तब से माँ बाप की तरफ देखा नही..
सीता राम सोच ही रहे थे के नर्स ने आ कर बताया कि बड़ी डॉक्टर आ रही हैं जल्दी ही अपनी पत्नी ठीक हो जायेगी आप पैसे जमा करवा दीजिये,, सीता राम जी ने थोड़ा समय माँगा
और मोबाइल निकाल कर बटन दबाने लगे लोगों से मदद माँगने लगे पर कोई फोन नही उठा रहा तो कोई बाद में बात करता हूँ बोलकर चला जा रहा है.
सीता राम कमरे के बाहर आकर गहरी सांस लेते हुए वार्ड बॉय से बोले आप जरा मेरी पत्नी को देखना मैं आता हूँ सीता राम एक दुकान पर ब्याज का पैसा माँगने गए लेकिन दुकान वाला उनकी हालत देख उनको सुनाने लगा वापस कहाँ से करोगे पांडे जी..
कोई नोमनी लाओ तभी मै पैसे दे पाऊंगा, बगल मे खड़ी कार से एक दुबली पतली महिला जो की पांडे जी को देख रही थी तेजी से उनको आवाज़ लगाती है लेकिन पांडे जी बिना कुछ सुने तेजी से हॉस्पिटल की तरफ जाते हैं और वहाँ पर रोते हुए विनती करते हैं कि मैं पूरा पैसा जमा कर दूंगा बस इलाज में कमी न हो.
लेकिन एक डॉक्टर उनको हड़काते हुए धक्का देता है तभी सामने से बड़ी डॉक्टर आती हुई गिरते हुए पांडे जी को पकड़ती है और सभी स्टाफ को डांट लगाती है और अपनी केबिन में जाती है!
और कुर्सी में बैठे बैठे सोचती है पांडे सर हाँ आज मैं जो हूँ उनकी वजह से,
सीमा ने जैसे- तैसे अपने गांव से अपना हाईस्कूल इंटर कंप्लेट कर लिया था और अब आगे की पढाई के लिए कॉलेज में पढ़ने के मन से अपने घर में अपनी पढ़ाई की बात बाबा को बताई थी बाबा ने थोड़ी न नुकूर के साथ हामी भरी I और किसी तरह
मेहनत मजदूरी करके अपने बिटिया को शहर पढ़ने के लिए भेजा था शहर में सीमा का दाखिला भी एक अच्छे कॉलेज में हो गया सीमा ने इंटर विज्ञान वर्ग में किया था वो चाहती थी बड़ी डॉक्टर बनना जो लोगों का इलाज कर सके| शहर आकर एक-दो दिन ही होस्टल से कॉलेज गई थी लेकिन उसे बड़ा अच्छा लगा था अपने गांव की थोड़ी याद तो आती थी बाबा की याद आती थी लेकिन फिर भी उसे कॉलेज में अपनापन लगने लगा था ।
एक दो सहेलियाँ भी उसकी बन गई थी और जो उसके क्लास टीचर थे वो सीमा को बहुत अच्छे लगे क्योंकि उनका बहुत सरल स्वभाव था और इस वजह से वह अपनी हर बात सर को धीरे से बता पाती थी एक दो पीरियड लगने के बाद जब कभी भी सर फ्री होते तो कॉलेज की फील्ड में जाकर बैठ जाते और सीमा अपने जो भी डाउट होते वहीं क्लीयर कर लेती और सर को बोलती एक दिन मैं डॉक्टर बनूगी सर, वो सीमा को बेटी की तरह मानते थे सीमा की पैसे से भी मदद करते देते लेकिन ये बात किसी को अच्छी नही लगती थी|
उसके गांव से हजार दो हजार जो बाबा भेजते जो कम पड़ते सर देते और बोलते , सीमा जब तुम कमाने लगोगी पूरा पैसा वसूल लूंगा ” एक साल बीत गया सीमा का पेरफॉर्मेंस भी अच्छा रहा , एक दिन सर के घर में पूजा थी कुछ स्टाफ के अलावा सीमा को भी आमंत्रण दिया था , सीमा भी गई सभी स्टाफ के जाने के बाद सर ने कहा सीमा रात हो गई है अकेके कहाँ जाओगी थोड़ी देर रुको सब समान व्यवस्थित करके मैं चलता हूँ छोड़ देता हूँ . सर ने कहा खाना खा लो और मिठाई वग़ैरह भी पैक कर लो.
सीमा ने खाना खाया और सर ने भी खाना खाने के बाद सीमा को कुछ गिफ्ट देकर होस्टल में छोड़ा. दो दिन बाद सुबह जब सीमा कॉलेज गयी तो उसके बाबा कॉलेज आ चुके थे किसी ने बाबा से शिकायत कर दिया था कि सीमा रात को सर के साथ उनके घर पे थी सीमा की बात पर नाराज होके उसको गाँव ले जाना चाहते थे ये बात सर को पता चली उन्होंने सीमा के पिता से बात की हांथ जोड़कर बोले सीमा आपकी बेटी है ।
आप उसका भला बुरा ज्यादा जानते हैं पर उसकी पढाई मत बन्द करिये क्योकिं मै जिम्मेदार हूँ इस लिए तो बिल्कुल नही मैं सीमा को अपनी बेटी जैसा मानता हूँ मेरी भी बेटी है बिल्कुल सीमा के जैसी वो विदेश में पड़ती है जब सीमा को देखता हूँ तो बेटी की याद आती शायद इस लिए मैं सीमा की मदद भी
करता हूँ के उसको पढाई में दिक्कत न हो और उसका भविष्य बन जाए एक लड़की जब आगे बढ़ती है तो दो परिवार का विकास करती है आप को पसन्द नही मेरा सीमा से मिलना बोलना मैं सब बन्द कर दूंगा पर उसकी पढाई न बन्द करिये, मैं जो भी थोड़े बहुत पैसे देता था वो आपको भेज दिया करूँगा आप उसको दे दीजियेगा लड़की की पढाई न रुके मैं आपके ऊपर ये एहसान नही कर रहा हूँ, बस ये समझ के दूंगा की मन्दिर में कुछ प्रसाद दान दे रहा हूं|
सर के बहुत समझाने के बाद बाबा ने कॉलेज पूरा करने दिया था, पढाई पूरी होते ही आगे की पढाई के लिए फेलोशिप भी मिल गई और दूसरे शहर जाने के बाद गाँव और बाबा तो साथ रहे लेकिन सर का साथ छूट गया ..
पर आज इतने साल बाद सर बाहर लड़ क्यों रहे थे वो तो बहुत शांत और सरल थे तभी केबिन में नर्स आकर बोली मैडम वो आपरेशन कैंसिल करते हैं बुढ्ढा पैसे नही जमा किया है ऊपर से स्टाफ से झगडा कर रहा वो अलग..
तो आपको इस शहर में कहीं घूमना हो तो आप जा सकती हैं
सीमा, लेकिन जो केस स्टडी किया है बहुत सिरियस है उसकी जान को खतरा है|
नर्स कौंध कर बोली , मैडम खतरा के बारे में उसको सोचना चाहिए पैसा भी नही जमा किया ऊपर से आपने भी देखा न कैसे झगडा कर रहा था स्टाफ से हाल में..
सीमा को पूरेे मामले को समझने में देर नही लगी .
नर्स से बोली जल्दी से मुझे मरीज के कमरे में ले चलो सीमा जैसे ही कमरे के गेट पर पहुचीं तो देखा सर पत्नी के हाँथ को पकड़ के रो रहे थे और माफी मांग रहे थे पैसे के अभाव में मैं तुम्हारा इलाज नही करवा पाया आज घर बेच रहा हूँ लेकिन कोई खरीदने को तैयार नही है,
आज जब अपनी बेटी नही है हमारे साथ जिसके लिए तुम जेवर तक बेच कर उसको पैसे भेजती थी.
सीमा आँखों में आंसू भर के सर के कंधे में हाँथ रखते हुए बोली मैडम का इलाज होगा सर,,,,
सर ने देखा दिमाग पर जोर डाला, “सर मैं सीमा याद आया कॉलेज में आप पोस्टेड थे ” अरे हाँ तुम इतनी बड़ी हो गई खुश रहो जीती रहो I
सारा स्टाफ कमरे में आ चुका था सबकी आँखों से आंसू रुक नही रहे थे, इतनी बड़ी डॉक्टर रो रही थी,
सीमा आपकी सीमा सर डॉक्टर सीमा हो गई है आज मैं जो भी हूँ आपकी वजह से सर,
स्टाफ को डाट कर तुरन्त ऑप्रेशन की तैयारी करो.
तेजी से सीमा सीजर करने के लिए जाती है पूरे होस्पिटल में काम ने स्पीड पकड़ ली थी|
आधा घण्टे बाद सीमा सर के पास आकर बोली मैडम एकदम ठीक हैं सर, पांडे जी ने सीमा को खुशी से गले लगा कर बोले मैं जल्दी ही सारा पैसा चुका दूंगा तुम्हारा ये उपकार कभी नही भूलूंगा.
“सीमा ने कहा आज मैं जो हूँ आपकी वजह से पैसे की बात करके मुझे पराया मत करिये
मैं आपकी बेटी जैसी हूँ न तो बेटी ही रहने दीजिये “
सीमा ने स्टाफ से बोलकर पांडे जी की पूरी व्यवस्था करवायी और एक मोबाइल फोन लेकर सर को दिया , सर ये मेरी तरफ से इसमें मेरा नंबर सेव है
मैं जल्दी ही आपके घर आती हूँ आज मुझे जल्दी जाना है और यहाँ कोई दिक्कत हो तो मुझे फोन कर दीजियेगा ये मेरा नही आपका हॉस्पिटल है.
पूरा स्टाफ पांडे जी के साथ किये व्यवहार पर शर्मिंदा था,
सीमा ने सर के पैर छुये और चली गयी।
या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता,
या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना,
या ब्रह्माच्युतशंकरप्रभृतिभिर्देवै: सदा वन्दिता,
सा मां पातु सरस्वती भगवती नि:शेषजाड्यापहा।
जो परमेश्वरी भगवती शारदा कुंदपुष्प, चंद्र और बर्फ के हार के समान श्वेत है और श्वेत वस्त्रों से सुशोभित हो रही है जिसके हाथों में वीणा का श्रेष्ठ दंड सुशोभित है. जो श्वेत कमल पर विराजमान है जिसकी स्तुति सदा ब्रह्मा विष्णु और महेश द्वारा की जाती है. वह परमेश्वरी समस्त दुर्मति को दूर करने वाली माँ सरस्वती मेरी रक्षा करें।
वीर सावरकर
-अविनाश त्रिपाठी
साल 1950 में वीर सावरकर 67 साल के हो चुके थे, शरीर जर्जर हो चुका था, छोटे भाई कि मॉब लिंचिंग में हत्या कर दी गई थी, गांधी हत्या में स्वयं सावरकर कई महीने जेल काटने के बाद दोषमुक्त होकर बाहर आए थे।
इसी समय पाकिस्तान के प्रधानमंत्री लियाकत अली ने भारत की यात्रा की। नेहरू और लियाकत को एक पैक्ट करना था कि दोनों देशों के अल्पसंख्यकों की जिम्मेदारी उनके देशों की सरकारों की है। एक तरह से भारत सरकार पाकिस्तान में रह गए हिन्दुओं को उनके हाल पर छोड़ने जा रही थी। हिन्दू संगठन इसका विरोध करेंग इसकी सूचना थी इसलिए रातों रात सारे हिन्दू नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया।
सावरकर को गिरफ्तार करके कर्नाटक की बेल्लारी जेल में 100 दिन तक कैद में रखा गया। रिहाई के लिए नेहरू सरकार ने उन पर राजनीति में हिस्सा न लेनी कि शर्ते थोपी। अंग्रेजों के बाद आजाद भारत में एक बार फिर सावरकर ने किसी भी प्रकार की राजनीतिक गतिविधियों में हिस्सा न लेनी की सरकारी शर्तों को मान लिया और सरकार के कहने पर ही हिन्दू महासभा की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दे दिया।
सावरकर हिन्दू समाज की दुर्बलता से जुड़े दर्जनों मोर्चों पर लड़ रहे थे इसलिए सरकार ने एक फ्रंट बंद किया तो उन्होंने दूसरे फ्रंट खोल दिए।
1957 मे 67 साल के सावरकर एक राष्ट्रीय पांचांग के लिए संघर्ष कर रहे थे। आज हम इन बातों पर ध्यान भी नहीं देते लेकिन उनके लिए यह भी महत्वपूर्ण विषय था
सावरकर द्वारा इसके लिए लेख लिखने के कुछ समय बाद सरकार ने एक कमेटी का गठन किया और 1957 में शक संवत को भारतीय राष्ट्रीय पांचाग चुना।
हालांकि सावरकर युगाब्द को राष्ट्रीय पांचांग के रूप मे चाहते थे वहीं हिन्दू पांचांग विक्रम संवत के अनुसार चलता है लेकिन भारत की तत्कालीन नेहरू सरकार ने शक संवत को चुना।
युगाब्ध 5 हजार वर्ष पूर्व से शुरु होता है, विक्रम संवत भी अंग्रेज़ी कैलेंडर से 57 साल आगे चलता जो हमें ज्यादा पुरानी संस्कृति होने का विश्वास जगाता है लेकिन शक संवत तो ग्रिगेरीयन कलेंडर से 78 साल पीछे है जो कहीं न कहीं हीनता के भाव को ही जगाता है।
आज शक संवत न हिन्दू पांचाग का हिस्सा है और न ही व्यवहारिक चलन में है दूसरे सरकारी कारनामों की तरह सिर्फ नाम मात्र का रह गया।
सब कुछ सही करने का अवसर था लेकिन नेहरू जी और कांग्रेस ने सब जगह ढाक के तीन पात कर दिए, भारत की पौराणिक व वैज्ञानिक परम्पराओं को सदैव की भांति नीचा दिखाया।
पहले जब इसे पढ़ा तो तब इतनी ध्यान देने लायक बात नहीं लगी लेकिन अब सोचता हूं कितना प्रतिकूल समय में भी सावरकर कितनी बेसिक सी बातों को भी ठीक करने में लगे हुए थे |
यद्यपि स्वर्णमयी लंका, न मे लक्ष्मण रोचते,
जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी |
'हे लक्ष्मण! यद्यपि यह लंका सोने की है, फिर भी मुझे यह अच्छी नहीं लगती'। माता और जन्मभूमि स्वर्ग से भी बढ़कर हैं । जन्म देने के कारण ही माँ 'जननी' कही जाती है. वहीं, जिस भूमि पर हम जन्म लेते हैं, जिसके अन्न-जल से हमारा पोषण होता है, वह जन्मभूमि कहलाती है।
कुछ मुखड़ों की नाराज़ी से दर्पन नहीं मरा करता है!
छिप-छिप अश्रु बहाने वालों, मोती व्यर्थ बहाने वालों
कुछ सपनों के मर जाने से, जीवन नहीं मरा करता है।
सपना क्या है, नयन सेज पर,सोया हुआ आँख का पानी
और टूटना है उसका ज्यों,जागे कच्ची नींद जवानी
गीली उमर बनाने वालों, डूबे बिना नहाने वालों
कुछ पानी के बह जाने से, सावन नहीं मरा करता है।
माला बिखर गयी तो क्या है,खुद ही हल हो गयी समस्या
आँसू गर नीलाम हुए तो,समझो पूरी हुई तपस्या
रूठे दिवस मनाने वालों, फटी कमीज़ सिलाने वालों
कुछ दीपों के बुझ जाने से, आँगन नहीं मरा करता है।
खोता कुछ भी नहीं यहाँ पर,केवल जिल्द बदलती पोथी
जैसे रात उतार चांदनी,पहने सुबह धूप की धोती
वस्त्र बदलकर आने वालों! चाल बदलकर जाने वालों!
चन्द खिलौनों के खोने से बचपन नहीं मरा करता है।
लाखों बार गगरियाँ फूटीं,शिकन न आई पनघट पर,
लाखों बार किश्तियाँ डूबीं,चहल-पहल वो ही है तट पर,
तम की उमर बढ़ाने वालों! लौ की आयु घटाने वालों!
लाख करे पतझर कोशिश पर उपवन नहीं मरा करता है।
लूट लिया माली ने उपवन,लुटी न लेकिन गन्ध फूल की,
तूफानों तक ने छेड़ा पर,खिड़की बन्द न हुई धूल की,
नफरत गले लगाने वालों! सब पर धूल उड़ाने वालों!
कुछ मुखड़ों की नाराज़ी से दर्पन नहीं मरा करता है!
~ गोपालदास "नीरज"
अधिकार से कर्तव्य तक की यात्रा
अधिकार शब्द जितना ही शक्तिशाली है उतना ही ज्ञानवर्धक भी है ।आज के समय में सभी को अपने अधिकारों की भली भांति जानकारी है ,परंतु पीछे रह गए कर्तव्य। अधिकार और कर्तव्य दोनों एक दूसरे के पूरक है उत्तम एवं समुचित विकास अधिकार के साथ कर्तव्य पर भी आश्रित होता है।आज की प्रत्येक पीढ़ी को अधिकारों का बोध तो है परंतु कर्तव्यबोध के ज्ञान से अनभिज्ञ है। जिस प्रकार संतान का माता और पिता की संपत्ति पर अधिकार है परंतु उनकी देखभाल एवं सेवा का कर्तव्य किसका है ,इसका ज्ञान शायद नहीं है। देश के प्रत्येक नागरिक को पता है , कि अधिकार क्या है जैसे निशुल्क शिक्षा का अधिकार , निःशुल्क बिजली, पानी एवं राशन का अधिकार ,अनेक सरकारी योजनाएं प्राप्त करने का अधिकार , परंतु देश के प्रति कर्तव्य क्या है यह शायद किसी को ज्ञान नहीं है। प्रत्येक नागरिक यदि अपने हिस्से का कर ( टैक्स) सरकार को ईमानदारी से दें , तो ये उनका कर्तव्य पक्ष हैं देश के प्रति।जीवन के प्रत्येक पड़ाव पर अधिकार एवं कर्तव्य दोनों का ज्ञान होना अति आवश्यक है।जीवन तभी परिपूर्ण है ,जब दोनों का समन्वय बना रहे। हमारा कर्तव्य है हम अपने बुजुर्गों की सेवा करें ,उनका सम्मान करें उनका आभार व्यक्त करें क्यूंकि पीढ़ी दर पीढ़ी उन्होंने हमारी सांस्कृतिक धरोहर एवं रीति रिवाजों का स्थानांतरण हमारी पीढ़ी तक किया ।संतान पक्ष के नाते ,पुत्र और पुत्री के भेदभाव को छोड़कर ,संतान होने मात्र से ही हमारा कर्तव्य है कि हमारे बुजुर्ग वृद्धाश्रम की ओर ना जाए। देश के प्रति अपनी जिम्मेदारी व्यक्त करते हुए हम अपनी बेटियों को सुरक्षित एवं निर्भय मुक्त वातावरण दे , हमारा कर्तव्य है कि हम आज के पुरुष पीढ़ी को संस्कारित करें एवं उनके अंदर भावनाएं जागृत करें, प्रत्येक नारी के प्रति सम्मान की। सभी का कर्तव्य है,पर्यावरण संरक्षण करने का, गौ संवर्धन, अपनी भारत भूमि के संरक्षण का ।जिस भारत भूमि पर हमने जन्म लिया उस भारत भूमि
के प्रति कुछ ऐसा करें जिससे हम अपनी कृतज्ञता व्यक्त कर सकें।जब तक हम अपने कर्तव्य को नहीं
जानेंगे अधिकार का कोई मान्य नहीं है ।जिस प्रकार प्रकृति में संतुलन आवश्यक है ,दिन के बाद रात का आना ,सूर्य के बाद चंद्रमा का अवतरित होना, ऋतु परिवर्तन होना ,दिशा परिवर्तन होना, ग्रह परिवर्तन होना उसी प्रकार यदि अधिकारों के साथ-साथ हम अपने कर्तव्य बोध पर भी अपना आत्मनिरीक्षण करें तो भावी पीढ़ी को एक स्वस्थ, सुरक्षित एवं समृद्ध व संस्कारित देश, धरोहर स्वरूप दें सकते हैं।कृपया विचार करें और अपने कर्तव्य को जाने एवं अपने जीवन में उनको अपना कर एक खुशहाल परिवार, समृद्ध समाज एवं गौरवशाली देश को प्रतिष्ठित करें।
स्वादिष्ट मसाला घर बनाए
पुष्पा गंगवार
मिलावट के जहर से बचे. बाजार से पैकेट बंद पीसे मसाले न खरीदें. घर में बनाएं खड़े मसालों से सब्जियों और ग्रेवी का स्वाद बढ़ा देने वाला मसाला.
सामग्री
6 बड़ी इलायची,12 छोटी हरी इलायची,1 चम्मच जीरा ,1 चम्मच सोंठ पाउडर ,2 बड़े चम्मच काली मिर्च,2 बड़े चम्मच मेथी ,2 चम्मच सौंफ,1/2 छोटा चम्मच जायफल,दालचीनी का 1 टुकड़ा,2 जावित्री,12 लौंग,2 स्टार ऐनीज़ ,2 बड़े चम्मच जीरा,4 चम्मच धनिया,8-10 कश्मीरी मिर्ची ,2 बड़े चम्मच उड़द दाल ,2 बड़े चम्मच चना दाल,2 बड़े चम्मच राई (पीली),2 तेज पत्ते,2 बड़े चम्मच कसूरी मेथी ,1/2 छोटा चम्मच हल्दी पाउडर,1 चम्मच काला नमक,1 चम्मच नमक
1 चम्मच अमचूर पाउडर
विधि - नमक और हल्दी को छोड़कर सभी सूखे मसालों को पैन में 5-6 मिनिट तक भून लीजिए. धीमी आंच पर भूनिये. मिक्सर में बारीक पीस लीजिये. आखिर में हल्दी और नमक डालकर पीसे. एक एयर टाइट जार में स्टोर करें। हर तरह की ग्रेवी और सब्जियों को जायकेदार बनाने के लिए किचन किंग मसाला का इस्तेमाल करें |
वाहन सुरक्षित रखने के गुर
कार में चाबी लगाने के बाद 15 सेकंड रुकने और फिर स्टार्ट करने की सलाह अक्सर दी जाती है, लेकिन इसके पीछे का तर्क और फायदे क्या हैं? आइए विस्तार से समझते हैं-
इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम की तैयारी-आधुनिक कारों में कई इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम होते हैं, जैसे कि इंजन कंट्रोल यूनिट (ECU), ट्रांसमिशन कंट्रोल मॉड्यूल (TCM), और अन्य सेंसर। जब आप चाबी लगाते हैं, तो ये सिस्टम सक्रिय हो जाते हैं और अपनी जांच शुरू कर देते हैं। 15 सेकंड रुकने से इन सिस्टमों को पूरी तरह से सक्रिय होने और अपनी जांच पूरी करने का समय मिलता है। बैटरी और अल्टरनेटर की सुरक्षा-जब आप चाबी लगाते हैं और तुरंत स्टार्ट कर देते हैं, तो बैटरी और अल्टरनेटर पर अतिरिक्त दबाव पड़ सकता है। 15 सेकंड रुकने से बैटरी और अल्टरनेटर को अपनी क्षमता के अनुसार ऊर्जा प्रदान करने का समय मिलता है, जिससे उनकी सुरक्षा और आयु बढ़ जाती है। इंजन की सुरक्षा-इंजन को स्टार्ट करने से पहले 15 सेकंड रुकने से इंजन के ऑयल पंप और अन्य घटकों को अपनी क्षमता के अनुसार काम करने का समय मिलता है। इससे इंजन की सुरक्षा और आयु बढ़ जाती है। नुकसान-इंजन की असमय खराबी-यदि आप चाबी लगाने के तुरंत बाद स्टार्ट कर देते हैं, तो इंजन पर अतिरिक्त दबाव पड़ सकता है, जिससे इंजन की असमय खराबी हो सकती है। बैटरी और अल्टरनेटर की कम आयु-यदि आप चाबी लगाने के तुरंत बाद स्टार्ट कर देते हैं, तो बैटरी और अल्टरनेटर पर अतिरिक्त दबाव पड़ सकता है, जिससे उनकी आयु कम हो सकती है। इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम की खराबी-यदि आप चाबी लगाने के तुरंत बाद स्टार्ट कर देते हैं, तो इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम पर अतिरिक्त दबाव पड़ सकता है, जिससे उनकी खराबी हो सकती है। इसलिए, कार में चाबी लगाने के बाद 15 सेकंड रुकना और फिर स्टार्ट करना एक अच्छी आदत हो सकती है। इससे आपकी कार के इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम, बैटरी, अल्टरनेटर, और इंजन की सुरक्षा और आयु बढ़ सकती है।
मातृशक्ति
मधु सिंह
मैंने एक दिन अपनी पत्नी से पूछा - क्या तुम्हें बुरा नहीं लगता कि मैं बार-बार तुमको कुछ भी बोल देता हूँ, और डाँटता भी रहता हूँ, फिर भी तुम पति भक्ति में ही लगी रहती हो, जबकि मैं कभी पत्नी भक्त बनने का प्रयास नहीं करता..?
मैं भारतीय संस्कृति के तहत वेद का विद्यार्थी रहा पत्नी विज्ञान की, परन्तु उसकी आध्यात्मिक शक्तियाँ मुझसे कई गुना ज्यादा हैं, क्योकि मैं केवल पढता हूँ और वो जीवन में उसका अक्षरतः पालन भी करती है।
मेरे प्रश्न पर जरा वह हँसी और गिलास में पानी देते हुए बोली- यह बताइए कि एक पुत्र यदि माता की भक्ति करता है तो उसे मातृ भक्त कहा जाता है, परन्तु माता यदि पुत्र की कितनी भी सेवा करे उसे पुत्र भक्त तो नहीं कहा जा सकता ना!
मैं सोच रहा था, आज पुनः ये मुझे निरुत्तर करेगी। मैंने फिर प्रश्न किया कि ये बताओ, जब जीवन का प्रारम्भ हुआ तो पुरुष और स्त्री समान थे, फिर पुरुष बड़ा कैसे हो गया, जबकि स्त्री तो शक्ति का स्वरूप होती है..?
मुस्कुरातें हुए उसने कहा- आपको थोड़ी विज्ञान भी पढ़नी चाहिए थी...
मैं झेंप गया और उसने कहना प्रारम्भ किया...दुनिया मात्र दो वस्तु से निर्मित है...ऊर्जा और पदार्थ।
पुरुष ऊर्जा का प्रतीक है और स्त्री पदार्थ की। पदार्थ को यदि विकसित होना हो तो वह ऊर्जा का आधान करता है, ना की ऊर्जा पदार्थ का। ठीक इसी प्रकार जब एक स्त्री एक पुरुष का आधान करती है तो शक्ति स्वरूप हो जाती है और आने वाले पीढ़ियों अर्थात् अपने संतानों के लिए प्रथम पूज्या हो जाती है, क्योंकि वह पदार्थ और ऊर्जा दोनों की स्वामिनी होती है जबकि पुरुष मात्र ऊर्जा का ही अंश रह जाता है।
मैंने पुनः कहा- तब तो तुम मेरी भी पूज्य हो गई ना, क्योंकि तुम तो ऊर्जा और पदार्थ दोनों की स्वामिनी हो..?
अब उसने झेंपते हुए कहा- आप भी पढ़े लिखे मूर्खो जैसे बात करते हैं। आपकी ऊर्जा का अंश मैंने ग्रहण किया और शक्तिशाली हो गई तो क्या उस शक्ति का प्रयोग आप पर ही करूँ.....ये तो सम्पूर्णतया कृतघ्नता हो जाएगी।
मैंने कहा- मैं तो तुम पर शक्ति का प्रयोग करता हूँ फिर तुम क्यों नहीं....?
उसका उत्तर सुन मेरे आँखों में आँसू आ गए...उसने कहा- जिसके साथ संसर्ग करने मात्र से मुझमें जीवन उत्पन्न करने की क्षमता आ गई और ईश्वर से भी ऊँचा जो पद आपने मुझे प्रदान किया जिसे माता कहते हैं, उसके साथ मैं विद्रोह नहीं कर सकती। फिर मुझे चिढ़ाते हुए उसने कहा कि यदि शक्ति प्रयोग करना भी होगा तो मुझे क्या आवश्यकता... मैं तो माता सीता की भाँति लव-कुश तैयार कर दूँगी, जो आपसे मेरा हिसाब किताब कर लेंगे।
*सहस्त्रों नमन है सभी मातृ शक्तियों को, जिन्होंने अपने प्रेम और मर्यादा में समस्त सृष्टि को बाँध रखा है...
स्त्री पुरुष संबंध
चन्द्र कला
स्त्री का संभोग उसके योनि से नहीं, बल्कि उसके मन से शुरू होता है। वहीं, पुरुष का संभोग उसके मन से नहीं, बल्कि उसके जननांग से शुरू होता है। मेरी सास ने मुझे यह बात सिखाई थी।
सारांश से मेरी शादी फिक्स हुई थी। उनके परिवार के लोग मुझे देखने मेरे घर के पास वाले मंदिर आए थे। मैं एक ऐसी लड़की थी, जो ज्यादा बाहर नहीं जाती थी और मेरी सहेलियों का भी कोई गोल नहीं था।
सारांश ने अपने माता-पिता से कह दिया था कि अगर उन्हें लड़की ठीक लगे तो वे शादी के लिए हां कर दें। मैंने भी अपने माता-पिता पर सब छोड़ दिया।
तीन महीने बाद हमारा रोका हुआ। सारांश ने अपना फोन नंबर दिया, और हमने बात करनी शुरू की। बातों के दौरान हमारी चर्चा कब शारीरिक सुख तक पहुंच गई, मुझे पता ही नहीं चला।
शादी के बाद सुहागरात वाले दिन सारांश ने मुझे छूना शुरू किया, लेकिन मैं इसके लिए तैयार नहीं थी। मैंने उनसे कहा कि मुझे थोड़ा समय चाहिए। यह मेरे लिए भी शर्मिंदगी की बात थी, लेकिन मैं बिना आंतरिक मन के कुछ भी नहीं करना चाहती थी।
एक सप्ताह ऐसे ही बीत गया और सारांश का स्वभाव मेरे प्रति रूखा हो गया। मुझे पता था कि इसका कारण क्या है, लेकिन समझ नहीं पा रही थी कि इसे कैसे ठीक करूं।
एक दिन मेरी सास ने मुझसे पूछा कि सब ठीक है या नहीं। पहले तो मैंने मना कर दिया, लेकिन फिर अपने आंसू रोक नहीं पाई और उन्हें सब बता दिया। उन्होंने मुझे समझाया, "बहू, एक लड़के के लिए सेक्स बहुत जरूरी है। यह उसे विश्वास दिलाता है कि तुम पूरी तरह उसकी हो। जबरदस्ती मत करो, लेकिन अच्छे वैवाहिक संबंध में शारीरिक सुख का बहुत योगदान होता है।"
इसके बाद मेरी ननद और जीजा ने सारांश को समझाया कि स्त्री के लिए संभोग नीचे से नहीं, बल्कि मन से शुरू होता है। उन्होंने सारांश से कहा कि मुझ पर दबाव डालने के बजाय वे मेरे साथ ज्यादा समय बिताएं और दोस्त बनने की कोशिश करें।
धीरे-धीरे सारांश मेरा ध्यान रखने लगे। छोटी-छोटी बातों में उनका प्यार झलकने लगा। बदले में, मैं उनके करीब आने लगी। कब हम दोनों 2 जिस्म एक जान बन गए, पता ही नहीं चला।
सारांश को भी यह समझ में आया कि एक स्त्री के लिए संभोग सिर्फ शारीरिक क्रिया नहीं है, बल्कि यह उसके मन से होकर गुजरता है।
अगर मेरी सास, ननद और जीजा न होते, तो शायद मेरी शादी दो महीने भी नहीं चल पाती। उनके सहयोग और समझ ने मेरी शादी को बचाया।
आजकल लोग ऐसे लड़के ढूंढते हैं, जो अपने माता-पिता से अलग रहते हों। लेकिन सच्चाई यह है कि परिवार में साथ रहना कई समस्याओं का हल बन सकता है। परिवार में कुछ बंदिशें जरूर होती हैं, लेकिन उनके फायदे अनगिनत होते हैं, जो इन बंदिशों से कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण हैं।
किस महीने कौन सी सब्जी की खेती की जाती है?
कृषि विज्ञान केंद्र दिल्ली द्वारा तैयार की गई है, जिसमें प्रत्येक माह में उगाई जाने वाली सब्जियों की जानकारी दी गई है। इसमें अलग-अलग महीनों के अनुसार विभिन्न सब्जियों को बोने और उगाने के सुझाव दिए गए हैं। जो दिल्ली हरियाणा पंजाब के कृषकों के लिए लाभप्रद है।
विस्तार से जानकारी:
1. जनवरी: बैंगन, मिर्च, गाजर, मूली, पालक, टमाटर, शलगम जैसी फसलें उगाने के लिए उपयुक्त समय है।
2. फरवरी: मूली, गाजर, पालक, धनिया, टमाटर, बीन्स और लौकी जैसी सब्जियों के लिए अच्छा महीना है।
3. मार्च: गर्मियों की सब्जियां जैसे लौकी, तोरई, तरबूज, ककड़ी और करेला उगाने के लिए सही समय है।
4. अप्रैल: लौकी, ककड़ी, करेला, तोरई, तरबूज, टिंडा आदि की बुवाई उपयुक्त है।
5. मई: ग्रीष्मकालीन सब्जियों जैसे लौकी, ककड़ी, करेला, तोरई और टिंडा का उत्पादन हो सकता है।
6. जून: भिंडी, लौकी, करेला, तोरई, तरबूज जैसी सब्जियों के लिए सही समय है।
7. जुलाई: भिंडी, तोरई, लौकी, तरबूज, खीरा, करेला, पालक आदि की बुवाई के लिए उपयुक्त है।
8. अगस्त: पालक, मूली, गाजर, मेथी, धनिया और चौलाई जैसी फसलें लगाई जा सकती हैं।
9. सितंबर: आलू, टमाटर, गोभी, मटर, मूली, गाजर, धनिया जैसी फसलें इस माह लगाई जा सकती हैं।
10. अक्टूबर: गोभी, मूली, गाजर, पालक, धनिया और ब्रोकली उगाने के लिए सही समय है।
11. नवंबर: मटर, गोभी, गाजर, धनिया, ब्रोकली और पालक जैसी फसलें लगाई जा सकती हैं।
12. दिसंबर: टमाटर, बैंगन, गोभी, गाजर, पालक, मटर जैसी फसलें इस महीने उगाई जा सकती हैं।
लाभ:
इस चक्र से किसान यह जान सकते हैं कि किस महीने में कौन-सी फसल उपयुक्त है यह जानकारी मौसम के अनुसार खेती की योजना बनाने में मदद करती है।
उपयुक्त समय पर फसल लगाने से उत्पादन बेहतर होता है।
यदि चार्ट मे संसोधन की आवश्यकता हो या आपके क्षेत्र मे कौन सी सब्जी किस माह मे बोई जाती है अपने अनुभव अवश्य साझा करे।
अपने घर में भी है,,,,,,,,,
"मेरे ज्यादातर मित्र विदेश चले गए कमाने जिसकी वजह से आज उनके बीवी बच्चे असाधारण जिंदगी जी रहे हैं और एक मैं हूं जो अतिसाधारण ढंग से भी नहीं जी पा रहा हूं...सोच रहा हूं कि मैं भी India से बाहर जाकर कहीं नौकरी कर लूं...जिससे तुमलोग भी बड़े से आलीशान घर में रह सको...बड़ी गाड़ी में चढ़ सको..."विकास ने वैदेही से कहा।जिसे सुनकर वह सकते में आ गई।थोड़ी देर चुप रहने के बाद वह बोली..."ये क्या फितूर चल रहा है तुम्हारे दिमाग में...कोई जरूरत नहीं है कहीं जाने की... मैंने या मेरे बेटे(शाश्वत) ने कब कोई ऐसी फरमाइश की जो तुम्हारे दायरे के बाहर हो या जो तुम पूरा न कर सको...हमलोग जो भी हैं जिस हाल में हैं बिल्कुल खुश हैं...हमें कोई शिकायत नहीं है जिंदगी से... अपने रहन सहन से... कोई चाहे जैसे भी रहे मगर हम ऐसे ही ठीक हैं.."वह बोली।
"जरूर"विकास ने जवाब दिया।और मन ही मन सोचने लगा कि "मैं कैसा पति हूं ? कैसा पिता हूं? जो अपने परिवार को जीवन की समुचित सुख सुविधा भी मुहैया नहीं करा पा रहा हूं...अगर मुझे यहां का तिगुना या चौगुना पैसा मिलता है तो फिर तो मेरा जाना ही सही होगा "
और उधर वैदेही सोचने लगी कि "मैं थोड़े कम साधन में रह लूंगी लेकिन विकास से दूर नहीं रह पाऊंगी...जो लोग रहते हैं वो रहा करें मुझसे नहीं होगा अकेले बच्चे के साथ गुजारा..."
कुछ दिन घर में शांति छाई रही इस विषय पर कोई बातचीत नहीं होती थी...
फिर एक दिन विकास ने ऑफिस से आने पर सिंगापुर जाने की बात कही और वैदेही को वहां जाने का टिकट, वीज़ा सब दिखाया और बोला "देखो!जरा ठंडे दिमाग से सोचो मुझे यहां से चौगुना पैसा मिलेगा...और फिर कमाने की एक उम्र होती है...सब कुछ ठीक हो जाएगा...शाश्वत भी औरों के बच्चों की तरह सबसे बड़े स्कूल में पड़ेगा..एक गाड़ी खरीद लेंगे ड्राइवर रहेगा कहीं आने जाने लिए जिससे मेरी कमी उतनी नहीं खलेगी ... मैं सब व्यवस्था कर दूंगा तुम लोगों की"
विकास ने समझाते हुए कहा।अब वैदेही चुप हो गई।कमरे में सन्नाटा पसर गया। शाश्वत भी उदास होकर कहने लगा..."पापा!मत जाओ न!! मेरे दोस्त कहते हैं कि तू कितना लकी है जो तेरे पापा तेरे पास हैं...एक हम लोग हैं जो कोई भी बात अपने पापा से शेयर नहीं कर सकते...तब मैं सोचता हूं कि ये सही कह रहे हैं "यही कहते हुए उस अबोध बच्चे की आंख भर आई।
वैदेही कहने लगी"भले ही कितना पैसा कमा लो पर क्या अपने बच्चे को बड़ा होता देख पाने का सुख मिल पाएगा तुम्हें? क्या आदमी की कमी पैसों से पूरी हो सकेगी?और तो और क्या तुम्हारा मन लगेगा हमारे बिना...?चलो मान लेती हूं कि तुम रह लोगे... लेकिन मैं?मैं तो नहीं रह पाऊंगी तुम्हारे बिना "इतना कहते ही वैदेही की आंखों से आंसुओं का सैलाब उमड़ आया...जैसे शब्दहीन भावों की सुनामी आ गई हो...टैक्सी आ गई लगेज रखा गया...वैदेही और शाश्वत को गले लगा कर जाते समय अंततः विकास के सब्र का बांध टूट गया..."प्लीज तुम लोग चुप हो जाओ वरना मैं आसानी से जा नहीं पाऊंगा...मेरा मन तो यहीं रहेगा बस शरीर से जा रहा हूं..."और गाड़ी एयर पोर्ट के लिए चल पड़ी।
रास्ते में ड्राइवर ने कहा "सर!आप पहली बार जा रहे हैं क्या?"उसने सिर हिला दिया।उसने फिर आगे कहा "बुरा मत मानिएगा सर! मैं भी 7 साल रहा हूं दुबई में...बड़ा कठिन है अपने परिवार से दूर रहना।वहां के लोग हमें मजदूरों की नजर से देखते हैं जो केवल पैसा कमाने के लिए आते हैं...यही नहीं गुजरे इन सालों में अपने बच्चे को बड़ा होता भी नहीं देख पाए...असली स्वर्ग यहीं है अपने देश में...निर्धन होते हुए भी धनवान हैं परिवार के साथ अपनों के बीच... ना जाने क्या क्या बोलता रहा...।
इधर वैदेही बेटे के साथ बेतहाशा रोती रही तभी घंटी बजी...दूध वाले का टाइम था अंदर से ही बोली"कल आना"...थोड़ी देर बाद फिर बजी घंटी अबकी बार झटके से उसने दरवाजा खोला तो सन्न रह गई..."मैं नहीं जा पाया तुम लोगों को छोड़कर...नहीं रह सकता तुम सबके बिना...जो जाता है जाए लेकिन नहीं चाहिए मुझे ऐसा वनवासी जीवन!!
अपना देश...अपना शहर...अपना घर...राजा जैसी जिंदगी जिऊंगा सबके साथ...यह कहते हुए मां बेटे से लिपट गया…
माँ के जाने के बाद तेरहवीं का काम भी पूरा हो चुका था। चारु ने अपने भाई से विदा लेते हुए कहा, "भैया, अब सब निपट गया। माँ भी चली गईं, और अब मैं भी चलती हूँ।" उसकी आँखों से आँसू रुकने का नाम नहीं ले रहे थे, और उसकी आवाज़ कांप रही थी।
भैया ने उसे रोकते हुए कहा, "रुको चारु, अभी एक काम बाकी है। ये लो माँ की अलमारी की चाबी।
इसमें जो भी सामान तुम्हें चाहिए, ले जाओ। यह तुम्हारा हक है।"
चारु ने चाबी लेने से इनकार कर दिया और उसे अपनी भाभी को पकड़ा दिया। उसने कहा, "भाभी, ये आपका हक है। माँ की सेवा आपने की है। आप ही इसे खोलें।" भाभी ने अपने पति की स्वीकृति के बाद अलमारी खोली।
भैया ने अलमारी में रखे सामान की ओर इशारा करते हुए कहा, "ये माँ के कीमती गहने और कपड़े हैं। जो लेना चाहो, बिना झिझक ले जाओ। माँ की चीजों पर सबसे पहला हक बेटी का होता है।"
चारु ने मुस्कुराते हुए कहा, "भैया, मैंने माँ के इन गहनों और कपड़ों से ज्यादा कीमती चीजें इस घर में
देखी हैं। मुझे वही चाहिए।"
भैया ने हैरानी से पूछा, "ऐसी कौन-सी चीज है, चारु? जो भी है, तुम्हारे सामने है।"
चारु ने अपनी भाभी की ओर देखते हुए कहा, "भैया, इन गहनों और कपड़ों पर भाभी का हक है। उन्होंने माँ की सेवा बहू बनकर नहीं, बल्कि बेटी बनकर की है। मुझे तो सिर्फ वो चाहिए, जो हर बेटी के लिए सबसे अनमोल होता है—मेरा मायका।"
भाभी ने चारु की बात समझते हुए कहा, "दीदी, आपका मायका हमेशा सलामत रहेगा। यह घर आपका है। लेकिन फिर भी माँ की कोई निशानी तो ले लीजिए।"
चारु ने भाभी को गले लगाते हुए कहा, "जब मेरा मायका आप दोनों के रूप में सलामत है, तो मुझे किसी और निशानी की जरूरत नहीं। लेकिन आपकी बात मानकर मैं इस घर की एक तस्वीर ले जाती हूँ। इससे हमेशा यह महसूस होगा कि माँ भले ही नहीं हैं, लेकिन मेरा मायका आज भी जिंदा है।"
चारु ने परिवार की पुरानी तस्वीर उठाई, उसे सीने से लगाया और भरे दिल से सबसे विदा ली। उस दिन चारु ने अपने भाई और भाभी के रूप में अपने मायके को फिर से पा लिया।
मायका हर बेटी के लिए अनमोल होता है। यह सिर्फ एक घर नहीं, बल्कि यादों और भावनाओं का खजाना होता है। इस रिश्ते की अहमियत को समझना और बनाए रखना बेहद जरूरी है।
फरवरी मास के महत्व पूर्ण दिवस
1 फरवरी: LGBT इतिहास माह शुरू होता है
विभिन्न देशों में एलजीबीटी समुदाय के इतिहास, योगदान और उपलब्धियों का एक महीने तक चलने वाला उत्सव मनाया जाता है।
1 फरवरी – भारतीय तटरक्षक दिवस
2 फरवरी – विश्व आर्द्रभूमि दिवस
2 फरवरी: ग्राउंडहॉग दिवस 2025
अमेरिका और कनाडा में मनाई जाने वाली एक अनोखी परंपरा जिसमें ग्राउंडहॉग मौसम की भविष्यवाणी करता है। अगर उसे अपनी परछाई दिख जाती है, तो सर्दी लंबे समय तक रहेगी; अगर नहीं, तो वसंत जल्दी आने की उम्मीद है।
2,1948,गांधी हत्या के झूठे आरोप में श्रीगुरु जी गिरफ्तार
2,1905,दादा साहब आप्टे जन्म
3,1829,कित्तूर की रानी चेन्नमा पुण्यतिथि
3 फरवरी: वसंत पंचमी,बुद्धि, ज्ञान और कला की देवी देवी सरस्वती को समर्पित एक हिंदू त्योहार, जो वसंत ऋतु के आगमन का प्रतीक है।
4,1996,बाबूराव चौथाई वाले पुण्यतिथि
4,1948,राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर प्रथम प्रतिबंध
4,1922,चौरीचौरा काण्ड गोरखपुर
4,1670,तानाजी मालसुरे बलिदान एवं सिंहगढ़ विजय दिवस
4 फरवरी: रोजा पार्क्स दिवस,यह दिन नागरिक अधिकारों की प्रतीक रोसा पार्क्स को सम्मानित करने का दिन है, जिन्होंने 1955 में अपनी बस की सीट छोड़ने से इनकार कर दिया था, जो संयुक्त राज्य अमेरिका में नस्लीय समानता की लड़ाई में एक महत्वपूर्ण क्षण था।
4 फरवरी – विश्व कैंसर दिवस, अंतर्राष्ट्रीय मानव बंधुत्व दिवस
6 फरवरी - महिला जननांग विकृति के प्रति शून्य सहनशीलता का अंतर्राष्ट्रीय दिवस
6 फरवरी: राष्ट्रीय चॉपस्टिक दिवस,यह एक मनोरंजक उत्सव है जिसमें एशियाई व्यंजनों में महत्वपूर्ण बर्तन चॉपस्टिक्स के उपयोग तथा उनका उपयोग करने वाली संस्कृतियों का जश्न मनाया जाता है।
7 फरवरी: राष्ट्रीय फेटुकाइन अल्फ्रेडो दिवस,एक खाद्य अवकाश जिसमें फेटुचिनी अल्फ्रेडो का जश्न मनाया जाता है, जो एक मलाईदार और स्वादिष्ट इतालवी पास्ता व्यंजन है।
8 फरवरी – अंतर्राष्ट्रीय मिर्गी दिवस
9 फरवरी – सुरक्षित इंटरनेट दिवस
9,गुरु रविदास जयंती
10 फरवरी – विश्व दाल दिवस, राष्ट्रीय कृमि मुक्ति दिवस
11,1968 पंडित दीनदयाल उपाध्याय की मुगलसराय में हत्या
11,1640,तिलक माँझी जयंती
11 फरवरी – विज्ञान में लड़कियों और महिलाओं का दिन, विश्व यूनानी दिवस
12 फरवरी – राष्ट्रीय उत्पादकता दिवस
12,1824,महर्षि दयानन्द सरस्वती जयंती
12 फरवरी: गुरु रविदास जयंती,यह धार्मिक अवकाश गुरु रविदास की जयंती के अवसर पर मनाया जाता है, जो एक आध्यात्मिक नेता थे जिनकी शिक्षाएं समानता और मानवीय गरिमा पर केंद्रित थीं।
12,1904,काशी हिन्दू विश्वविद्यालय का शिलान्यास
12,1742,नाना फड़नवीस जयंती
13 फरवरी – विश्व रेडियो दिवस, विश्व महिला दिवस
14,1931,डा. हेडगेवार को अकोला जेल से मुक्त किया गया
15 फरवरी – अंतर्राष्ट्रीय बाल कैंसर दिवस
17,1830,स्वामी रामकृष्ण परमहंस जयंती
17,1883,वासुदेव बलवंत फड़के बलिदान दिवस
18,1926,नागपुर से बाहर वर्धा में पहली संघ शाखा का प्रारम्भ
19,1906,संघ के द्वितीय सरसंघचालक प.पू. माधव सदाशिवराव गोलवलकर उपाख्या 'श्री गुरुजी' जयंती
19,1630,जन्म छत्रपति शिवाजी महाराज जयंती,भारत में यह अवकाश मराठा साम्राज्य के संस्थापक तथा वीरता और नेतृत्व के प्रतीक छत्रपति शिवाजी महाराज के जन्म दिवस के उपलक्ष्य में मनाया जाता है।
20 फरवरी – विश्व सामाजिक न्याय दिवस, विश्व पैंगोलिन दिवस
21 फरवरी – अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस
21,1829,पुण्यतिथि रानी चेनम्मा
21महाशिवरात्रि (तिथि अनुसार)
22 फरवरी- विश्व चिंतन दिवस
23,1921,डॉ. हेडगेवार के ओजस्वी भाषणों पर सरकार का प्रतिबंध
24 फरवरी – केंद्रीय उत्पाद शुल्क दिवस
25 फरवरी: राष्ट्रीय क्लैम चाउडर दिवस
यह दिन क्लैम चाउडर का आनंद लेने के लिए समर्पित है, जो एक मलाईदार सूप है जो विशेष रूप से न्यू इंग्लैंड, संयुक्त राज्य अमेरिका में लोकप्रिय है।
25,1568,जयमल एवं फत्ता बलिदान दिवस
25,1600,संत एकनाथ निर्वाण दिवस
25,1836,राम कृष्ण जयंती
26,1966,पुण्यतिथि- वीर सावरकर
26 फरवरी: महा शिवरात्रि,भगवान शिव के सम्मान में मनाया जाने वाला एक प्रमुख हिंदू त्योहार, जो उपवास, रात भर की प्रार्थना और ध्यान के साथ मनाया जाता है।
27,2002,गोधरा काण्ड
27 फरवरी – विश्व एनजीओ दिवस, राष्ट्रीय प्रोटीन दिवस
28 फरवरी- राष्ट्रीय विज्ञान दिवस, दुर्लभ रोग दिवस।
28 फरवरी: राष्ट्रीय विज्ञान दिवस
28 फरवरी सर सी.वी. रमन द्वारा रमन प्रभाव की खोज के उपलक्ष्य में मनाया जाने वाला एक भारतीय उत्सव, वैज्ञानिक उपलब्धियों का जश्न मनाता है तथा विज्ञान में रुचि को प्रोत्साहित करता है।
28 फरवरी: रमज़ान का पहला दिन इस्लामी पवित्र महीने रमजान की शुरुआत, जो दुनिया भर के मुसलमानों द्वारा मनाया जाने वाला उपवास, चिंतन और प्रार्थना का समय है।
बासी कढी
बबीता देवी
बहू अपनी मां से कहती है,. क्या बताऊँ मम्मी, आजकल तो ,बासी कढ़ी में भी उबाल आया हुआ है|
जबसे पापा जी रिटायर हुए है , दोनों लोग फिल्मी हीरो हीरोइन की तरह दिन भर अपने बगीचे में ही झूले पर विराजमान रहते हैं| न अपने बालों की सफेदी का लिहाज है और ना ही बहू-- बेटे का इस उम्र में लिहाज | दोनों मेरी और नवीन की बराबरी कर रहे हैं|
ठीक है मां मैं आपसे बाद में बात करती हूं शायद सासू माँ आ रही हैं।"
सासू मां ने बहू की बातें कमरे के बाहर सुन ली थी,
पर नज़रअंदाज़ करते हुए खामोशी से चाय बहू सोनम को दे दी| सासू मां बहू सोनम को चाय देने के पश्चात पति देव अशोक जी के लिए चाय ले जाने लगी, ऐसा देखकर बहू सोनम के चेहरे पर व्यंगात्मक मुस्कान तैर गयी| पर सासू मां, समझदारी दिखाते हुए बहू की इस नाजायज हरकत को नज़र अंदाज़ करते हुए सिर झुकाए वहां से निकल गईं| पति के रिटायर होने के बाद कुछ दिन से उनकी यही दिनचर्या हो गयी थी | आजकल सासुमा प्रभा जी अपने पति देव अशोक जी को उनकी इच्छानुसार अच्छे से तैयार होकर अपने घर के सबसे खूबसूरत हिस्से में अपने पति देव के साथ झूले में बैठ कर उनको कंपनी देती थी।
यह झूला मकान की एक खाली जगह में लगा हुआ था।जिसके चारों तरफ बगीचा था। प्रभाजी ने सारी उम्र तो उनकी बच्चों के लिए लगा दी थी| पाण्डेय विला...दोमंजिला कोठीनुमा घर अशोक और प्रभा का जीवन भर का सपना था, जो उन्होंने बड़ी मेहनत से साकार किया था।
घर का बगीचा 20 by 20 गज़ की कच्ची जगह में था। यह वास्तव में प्रभा के सपनोँ का बगीचा| यंहा तरह तरह की बेले, कई प्रकार के पौधे, हरसिंगार का घनेरा पेड़, और एक छोटा सा टैंक था जिसमें कमल के फूल खिले रहै थे|
जाड़े में तो रँग बिरंगे फूल डहेलिया, गुलाब, पैंजी और तमाम किचन गार्डन की सब्जियां चार चाँद लगा देतीं थी। बगीचे में धनिया, पोदीना मेंथी की बहार रहती| तरह तरह के फूलों की खुशबू से पूरा घर और अशोक बाबू और पत्नी प्रभा सकारात्मक ऊर्जा से हमेशा सराबोर रहते थे।
ऐसे मनमोहक वातावरण में वहां पर लगा झूला मन को असीम शांति प्रदान करता।
यहां का वातावरण इतना सुखद में और शांति मय था कि कोई भी यहां पर बैठता तो उसकी उठने की इच्छा ही नहीं होती थी|
जाड़ों में वहीँ तसले में आग जलती और भुने आलू,शकरकन्द के मज़े लिये जाते थे।
और बरसात में सुलगते कोयलों पर सिंकते भुट्टे का आनंद लिया जाता था। पहले वह और अशोक इस मनमोहक जगह में कम समय के लिए ही बैठ पाते थे। प्रभा अनमनी होतीं तो अशोक बड़े ज़िंदादिल
शब्दों में कहते,"पार्टनर रिटायरमेंट के बाद दोनों इसी झूले पर साथ बैठेंगे और खाना भी साथ में ही खायेंगे| आपकी हर शिकायत हम दूर कर देँगे|
फ़िलहाल हमें बच्चों के लिये जीना है|
बच्चों के कैरियर पर बहुत कुछ बलिदान करना पड़ा, खेर अब बेटा अच्छी नौकरी में था और बेटी भी अपने घर की हो चुकी थी | रिटायरमेंट के बाद घर में थोड़ी रौनक रहने लगी थी,
अशोक जी को भी घर में रहना अच्छा लग रहा था| पहले तो बड़े पद पर थे तो कभी उनके कदम घर में टिकते ही नहीँ थे| गाँव से आकर शहर में बसेरा बनाना आसान न था, लेकिन किसी तरह चार सौ गज़ ज़मीन कर ली| सहधर्मिणी प्रभा जी भी सहयोगी महिला थीं तो मन्ज़िल और आसान हो गयी| अब दोनों पति पत्नी आराम के पलों को सँजो लेना चाहते थे ,लेकिन उनकी बहू सोनम अपने पति नवीन को उसके माता पिता के लिये ताने देने का कोई मौका न छोड़ती|
उसने उस कोने के बागीचे से छुटकारा पाने के लिये नवीन को एक रास्ता सुझाते हुए कहा,"क्योँ न हम बड़ी कार खरीद लें...नवीन"| "आईडिया तो अच्छा है पर रखेंगे कहाँ एक कार रखने की ही तो जगह है घर में",नवीन थोड़ा चिंतित स्वर में बोला|"जगह तो है न, वो गार्डन तुम्हारा..जहाँ आजकल दोनों लव बर्ड्स बैठते हैं।"सोनम व्यंगात्मक स्वर में बोली| "थोड़ा तमीज़ से बात करो,"नवीन क्रोध से बोला। लेकिन फिर भी सोनम ने अपने पति को पापा जी से बात करने का मन बना लिया। अगले दिन नवीन कुछ कार की तस्वीरों के साथ शाम को अपने पिता के पास गया और बोला," पापा !मैं और सोनम एक बड़ी गाड़ी खरीदना चाहते हैं " "पर बेटा एक बड़ी गाड़ी तो घर में पहले ही है, फिर उस नई गाड़ी की रखेंगे भी कहाँ?"
अशोक जी ने प्रश्न किया| "ये जो बगीचा है यहीँ गैराज बनवा लेंगे वैसे भी सोनम से तो इसकी देखभाल होने से रही और मम्मी कब तक देखभाल करेंगी? इन पेड़ों को कटवाना ही ठीक रहेगा|
वैसे भी ये सब जड़े मज़बूत कर घर की दीवारें कमज़ोर कर रहें है|" यह सुनकर प्रभा तो वहीँ कुर्सी पर
सीना पकड़ कर बैठ गईं,
अशोक जी ने क्रोध को काबू में करते हुए कहा, मुझे तुम्हारी माँ से भी बात करके थोड़ा सोचने का मौका दो| क्या पापा... मम्मी से क्या पूछना ..वैसे भी इस जगह का इस्तेमाल भी क्या है नवीन थोड़ा चिड़चिड़ा कर बोला| "आप दोनों दिन भर इस जगह बगैर कुछ सोचे समझे,चार लोगों का लिहाज किये बग़ैर साथ में बैठे रहते हैं|
अब आप दोनों कोई बच्चे तो नहीं हो |
लेकिन आप दोनों ने दिन भर झूले पर साथ बैठे रहने का रिवाज बना लिया है और ये भी नहीँ सोचते कि चार लोग क्या कहेंगे| इस उम्र में मम्मी के साथ बैठने की बजाय आप अपनी उम्र के लोगों में उठा बैठी करेंगे तो वो ज़्यादा अच्छा लगेगा न कि ये सब।"
और वह दनदनाते हुए अंदर चला गया| अंदर सोनम की बड़बड़ाहट भी ज़ारी थी।
अशोक जी कड़वी सच्चाई का एहसास कर रहे थे।
आज के पहले जब कभी पत्नी ने अपने मन की कही तो उन्होंने उन्हें ही सामन्जस्य बिठाने की सीख दी|
पर आज की बात से तो उनके साथ प्रभा जी भी सन्न रह गईं,
अपने बेटे के मुँह से ऐसी बातें सुनकर दोनों को दिल भर आया था और टूट भी चुका था।
रिटायरमेंट को अभी कुछ ही समय हुआ जो थोड़ा सकून से गुजरा था।
पहले की ज़िन्दगी तो भागमभाग में ही निकल गयी थी, बच्चों के लिए सुख साधन जुटाने में|
नवीन और सोनम ने उस शाम खाना बाहर से ऑर्डर कर दिया पर प्रभा से न खाना खाया गया और न उन्हें नींद आयी| नींद तो अशोक को भी नहीँ आ रही थी और वो प्रभा की मनोस्थिति भी समझ रहे थे |
अशोक जी आज पूरी रात ऊहापोह में लगे रहे, कुछ सोचते रहे, कुछ समझते रहे और कुछ योजना बनाते रहे ।लेकिन सुबह जब वे उठे तब बड़े शांत और प्रसन्न थे।वे रसोई में गये और खुद चाय बनाई | कमरे में आकर पहला कप प्रभा को उठा कर पकड़ाया और दूसरा खुद पीने लगे|
आपने क्या सोचा?प्रभा ने रोआंसे लहज़े में पूछा| मैं सब ठीक कर दूँगा बस तुम धीरज रखो,अशोक बोले| पर हद से ज़्यादा निराश प्रभा उस दिन पौधों में पानी देने भी न निकलीं,और न ही किसी से कोई बात की | दिन भर सब सामान्य रहा,लेकिन शाम को अपने घर के बाहर To Let का बोर्ड टँगा देख नवीन ने भौंचक्के स्वर में अशोक से प्रश्न किया,"पापा माना कि घर बड़ा है पर ये To Let का बोर्ड किसलिए"?
" अगले महीने मेरे स्टाफ के मिस्टर गुप्ता रिटायर हो रहें है,तो वो इसी घर में रहेँगे",उन्होंने शान्ति पूर्ण तरीके से उत्तर दिया| हैरान नवीन बोला, "पर कहाँ?" "तुम्हारे पोर्शन में",अशोक जी ने सामान्य स्वर में उत्तर दिया| नवीन का स्वर अब हकलाने लगा था,"और हम लोग " "तुम्हे इस लायक बना दिया है दो तीन महीने में कोई फ्लैट देख लेना या कम्पनी के फ्लैट में रह लेना,अपनी उम्र के लोगों के साथ |
"अशोक एक- एक शब्द चबाते हुए बोल रहे थे | हम दोनों भी अपनी उम्र के लोगों में उठे बैठेंगे।तुम्हारी माँ की सारी उम्र सबका लिहाज़ करने में निकल गयी | कभी बुजुर्ग तो कभी बच्चे| अब
लिहाज़ की सीख तुम सबसे लेना बाकी रह गया थी| "पापा मेरा वो मतलब नहीँ था",नवीन सिर
झुकाकर बोला| नही बेटा तुम्हारी पीढ़ी ने हमें भी प्रैक्टिकल बनने का सबक दे दिया,
जब हम तुम दोनों को साथ देखकर खुश हो सकते है तो तुम लोगों को हम लोगों से दिक्कत क्योँ है| "?
इस मकान को घर तुम्हारी माँ ने बनाया, ये पेड़ और इनके फूल तुम्हारे लिए माँगी गयी न जाने कितनी मनौतियों के साक्षी हैं,तो यह अनोखा कोना छीनने का अधिकार में किसी को भी नहीं दूँगा|
पापा आप तो सीरियस हो गये, नवीन के स्वर अब नम्र हो चले थे| न बेटा... तुम्हारी मां ने जाने कितने कष्ट सहकर, कितने त्याग कर के मेरा साथ दिया आज इसी के सहयोग से मेरे सिर पर कोई कर्ज़ नहीँ है| इसलिये सिर्फ ये कोना ही नहीं पूरा घर तुम्हारी माँ का ऋणी है| घर तुम दोनों से पहले उसका है, क्योंकि जीभ पहले आती है, न कि दाँत| जब मंदिर में ईश्वर जोड़े में अच्छा लगता है तो मां बाप साथ में बुरे क्योँ लगते हैं? ज़िन्दगी हमें भी तो एक ही बार मिली है| इसलिए हम इसे अपने हिसाब से एंजॉय करना चाहते हैं।
आखर मधुर मनोहर दोऊ।
बरन बिलोचन जन जिय जोऊ॥
ससुमिरत सुलभ सुखद सब काहू।
लोक लाहु परलोक निबाहू॥
दोनों अक्षर( राम ) मधुर और मनोहर हैं, जो वर्णमालारूपी शरीर के नेत्र हैं, भक्तों के जीवन हैं तथा स्मरण करने में सबके लिए सुलभ और सुख देनेवाले हैं और जो इस लोक में लाभ और परलोक में निर्वाह करते हैं।
सुनु सेवक सुरतरु सुरधेनू।
बिधि हरि हर बंदित पद रेनू ॥
सेवत सुलभ सकल सुखदायक ।
प्रनतपाल सचराचर नायक ॥
हे प्रभो! सुनिये, आप सेवकोंके लिये कल्पवृक्ष और कामधेनु हैं। आपकी चरणरज की ब्रह्मा, विष्णु और शिवजी भी वन्दना करते हैं। आप सेवा करने में सुलभ हैं तथा- सब सुखों के देने वाले हैं। आप शरणागत के रक्षक और जड-चेतनके स्वामी हैं॥
फरवरी मास 2025 का पंचांग
भारतीय व्रतोत्सव फरवरी -2025
दि. 1- गौरी 3, तिलकुंद वरद् चतुर्थी,बुध,दि. 2- श्री वसंत पंचमी, श्री सरस्वती पूजा, कुंभ तीसरा शाही स्नान,दि. 4- रथ सप्तमी, अचला सप्तमी,दि. 5- भीष्माष्टमी, दुर्गाष्टमी,दि. 6- गुप्त नवरात्र पूर्ण,दि. 8-जया एकादशी व्रत,दि. १- भीष्म द्वादशी,दि. 10- सोम प्रदोष व्रत, मेला जैसलमेर 3 दिन का,दि. 11- मेला जयंती देवी (पं.),दि. 12- सत्य व्रत, श्री रविदास ज., माघ स्नान समाप्त, श्री ललिता जय., माघी पूर्णिमा, संक्रांति पुण्य,दि. 16- श्री गणेश चतुर्थी व्रत, चंद्रोदय 21/39 बजे,दि. 20- श्रीनाथ पाटोत्सव (नाथद्वारा), कालाष्टमी,दि. 21- सीताष्टमी, हलाष्टमी,दि. 22- गुरु रामदास नवमी,दि. 23- दयानन्द सरस्वती जयंती,दि. 24- विजया एकादशी व्रत,दि. 25- भौम प्रदोष व्रत,दि. 26- श्री महाशिवरात्रि व्रत,दि. 27- अमावस्या पुण्य
मूल विचार फरवरी -2025
दि. 3 को 00/52 से दि. 4 को 21/49,दि. 11 को 18/33 से दि. 13 को 21/07 तक, दि. 21 को 15/53 से दि. 23 को 18/42 बजे तक गण्ड मूल नक्षत्र हैं।
ग्रह स्थिति फरवरी -2025
ग्रह स्थिति- दि. 4 गुरु मार्गी,दि. 11 बुध कुम्भ में,दि. 12 सूर्य कुम्भ में,दि. 21 बुध पश्चिमोदय,दि. 24 मंगल मार्गी,दि. 26 शनि अस्त,दि. 27 बुध मीन में
पंचक विचार फरवरी -2025
पंचक विचार -(धनिष्ठा नक्षत्र के तृतीय चरण से रेवती नक्षत्र तक) पंचको में दक्षिण दिशा की ओर यात्रा करना मकान दुकान आदि की छत डालना चारपाई पलंग आदि बुनना,दाह संस्कार,बांस की चटाई दीवार प्रारंभ करना आदि स्तंभ रोपण तांबा पीतल तृण काष्ट आदि का संचय करना आदि कार्यों का निषेध माना जाता है समुचित उपाय एवं पंचक शांति करवा कर ही उक्त कार्यों का संपादन करना कल्याणकारी होगा ध्यान रहेगा पंचर नक्षत्रों का विचार मात्र उपरोक्त विशेष कृतियों के लिए ही किया जाता है विवाह मंडल आरंभ गृह प्रवेश प्रवेश उपनयन आदि मुद्दों से तो पंचक नक्षत्रका प्रयोग शुभ माना जाता है, दि. 3 को 23/16 तक, दि. 27 को 4/36 से दि. 3 मार्च को 6/38 बजे तक पंचक हैं।
अधिक जानकारी के लिए संपर्क करे शर्मा जी - 9312002527,9560518227
भद्रा विचार फरवरी -2025
भद्रा काल का शुभ अशुभ विचार - भद्रा काल में विवाह मुंडन, गृह प्रवेश, रक्षाबंधन आदि मांगलिक कृत्य का निषेध माना जाता है परंतु भद्रा काल में शत्रु का उच्चाटन करना,स्त्री प्रसंग में,यज्ञ करना,स्नान करना,अस्त्र शस्त्र का प्रयोग,ऑपरेशन कराना, मुकदमा करना,अग्नि लगाना,किसी वस्तु को काटना,भैस,घोड़ा व ऊंट संबंधी कार्य प्रशस्त माने जाते हैं सामान्य परिस्थिति में विवाह आदि शुभ मुहूर्त में भद्रा का त्याग करना चाहिए परंतु आवश्यक परिस्थितिवश अतिआवश्यक कार्य भूलोक की भद्रा ,भद्रा मुख छोड़कर कर भद्रा पुच्छ में शुभ कार्य कर सकते है |
दि. 1 को 22/26 से दि. 2 को 9/14 तक, दि. 5 को 2/30 से 13/31 तक, दि. 8 को 8/49 से 20/16 तक, दि. 11 को 18/55 से दि. 12 को 7/05 तक, दि. 15 को 10/49 से 23/52 तक, दि. 19 को 7/32 से 20/45 तक, दि. 23 को वचार 1/37 से 13/56 तक, दि. 26 को 11/08 से 22/01 बजे तक भद्रा है।
अधिक जानकारी के लिए संपर्क करे शर्मा जी - 9312002527,9560518227
सर्वार्थ सिद्धि योग फरवरी -2025
दैनिक जीवन में आने वाले महत्वपूर्ण कार्यों के लिए शीघ्र ही किसी शुभ मुहूर्त का अभाव हो,किंतु शुभ मुहर्त के लिए अधिक दिनों तक रुका ना जा सकता हो तो इन सुयोग्य वाले मुहर्तु को सफलता से ग्रहण किया जा सकता है | इन से प्राप्त होने वाले अभीष्ट फल के विषय में संशय नहीं करना चाहिए यह योग हैं सर्वार्थ सिद्धि,अमृत सिद्धि योग एवं रवियोग | योग्यता नाम तथा गुण अनुसार सर्वांगीण सिद्ध कारक है|
अधिक जानकारी के लिए संपर्क करे शर्मा जी - 9312002527,9560518227
सुर्य उदय- सुर्य अस्त फरवरी -2025
राहू काल
राहुकाल -राहुकाल दक्षिण भारत की देन है,दक्षिण भारत में राहु काल में कृत्य करना अच्छा नहीं माना जाता, राहु काल में शुभ कृतियों में वर्जित करने की परंपरा अब हमारे उत्तरी भारत में भी अपनाने लगे हैं राहुकाल प्रतिदिन सूर्यादि वारों में भिन्न-भिन्न समय पर केवल डेढ़ डेढ़ घंटे के लिए घटित होता है |
मांगलिक दोष विचार परिहार
वर अथवा कन्या दोनों में से किसी की भी कुंडली में 1,4,7,8 व 12 भाव में मंगल होने से ये मांगलिक माने जाते हैं,मंगली से मंगली के विवाह में दोष न होते हुए भी जन्म पत्रिका के अनुसार गुणों को मिलाना ही चाहिए यदि मंगल के साथ शनि अथवा राहु केतु भी हो तो प्रबल मंगली डबल मंगली योग होता है | इसी प्रकार गुरु अथवा चंद्रमा केंद्र हो तो दोष का परिहार भी हो जाता है |इसके अतिरिक्त मेष वृश्चिक मकर का मंगल होने से भी दोष नष्ट हो जाता है | इसी प्रकार यदि वर या कन्या किसी भी कुंडली में 1,4,7,9,12 स्थानों में शनि हो केंद्र त्रिकोण भावो में शुभ ग्रह, 3,6,11 भावो में पाप ग्रह हों तो भी मंगलीक दोष का आंशिक परिहार होता है, सप्तम ग्रह में यदि सप्तमेश हो तो भी दोष निवृत्त होता है |
स्वयं सिद्ध मुहूर्त
स्वयं सिद्ध मुहूर्त चैत्र शुक्ल प्रतिपदा वैशाख शुक्ल तृतीया अक्षय तृतीया आश्विन शुक्ल दशमी विजयदशमी दीपावली के प्रदोष काल का आधा भाग भारत में से इसके अतिरिक्त लोकाचार और देश आचार्य के अनुसार निम्नलिखित कृतियों को भी स्वयं सिद्ध मुहूर्त माना जाता है बडावली नामी देव प्रबोधिनी एकादशी बसंत पंचमी फुलेरा दूज इन में से किसी भी कार्य को करने के लिए पंचांग शुद्धि देखने की आवश्यकता नहीं है परंतु विवाह आदि में तो पंचांग में दिए गए मुहूर्त व कार्य करना श्रेष्ठ रहता है।
विवाह मुहर्त फरवरी - 2025
1,2,3,6,7,8,12,13,14,15,16,17,18,19,20,21,22,23,24,25 यह मुहर्त अपनाने से पहले अपनी राशि के नक्षत्र अनुसार समय तर बल व चंद्र बल देख लें या संपर्क करें शर्मा जी 9312002527 चौघड़िया मुहूर्त - चौघड़िया मुहूर्त देखकर कार्य या यात्रा करना उत्तम होता है। एक तिथि के लिये दिवस और रात्रि के आठ-आठ भाग का एक चौघड़िया निश्चित है। इस प्रकार से 12 घंटे का दिन और 12 घंटे की रात मानें तो प्रत्येक में 90 मिनट यानि 1.30 घण्टे का एक चौघड़िया होता है जो सूर्योदय से प्रारंभ होता है| अधिक जानकारी के लिए संपर्क करे शर्मा जी - 9312002527,9560518227
रामकृष्ण परमहंस
श्री रामकृष्ण का जन्म 18 फरवरी 1836 को कोलकाता से लगभग साठ मील उत्तर-पश्चिम में कमरपुकुर गाँव में हुआ था। उनके माता-पिता, क्षुदिराम चट्टोपाध्याय और चंद्रमणि देवी, गरीब थे, लेकिन बहुत ही धर्मपरायण और सदाचारी थे।रामकृष्ण परमहंस स्वामी विवेकानंद के गुरु रहे हैं। कई लोगों का मानना है कि वह भगवान विष्णु का अवतार हैं। उनकी विशेषताएं यह थी कि वह एकदम सीधी बात किया करते थे।16 अगस्त रामकृष्ण परमहंस की महासमाधि के दिन के रूप में मनाया जाता है। रामकृष्ण परमहंस के चमत्कार की बारे में बात करें, तो उनका पूरा जीवन ही माँ काली की भक्ति का चमत्कार था।रामकृष्ण परमहंस को गले में कैंसर हुआ था. कहा जाता है कि उन्होंने अपने भक्तों के पापों को अपने ऊपर ले लिया था, इसलिए उन्हें कैंसर हुआ था.रामकृष्ण परमहंस का मानना था कि ईश्वर का दर्शन किया जा सकता है. ईश्वर का दर्शन करने के लिए वह आध्यात्मिक चेतना की तरक्की पर जोर देते थे. आध्यात्मिक चेतना ईश्वर तक पहुंचे, इसके लिए वह धर्म को साधन मात्र समझते थे, इसलिए संसार के सभी धर्मों में उनका विश्वास था और वे उन्हें परस्पर अलग-अलग नहीं मानते थे |
कमौलिका की लड़ाई
राजस्थान (जैसलमेर) में कमौलिका नाम की एक लड़की अपने पिता जी के साथ रहती थी। जब कमौलिका तीन साल की थी तब उसकी माँ की मृत्यु हो गई थी । कमौलिका का बचपन से यही सपना था कि वह डॉक्टर कमौलिका सेन बने लेकिन दिक्कत यह थी कि वह जहाँ रहती थी वहाँ पर लड़कियाँ स्कूल नहीं जाती थी क्योंकि वहाँ यह मान्यता थी कि लड़कियाँ कुछ नहीं कर सकती है, पर कमौलिका के पिताजी का यह मानना था कि चाहे लड़का हो या लड़की सभी को पढ़ने का हक है । कमौलिका के पिताजी एक अध्यापक थे । वह कमौलिका को घर पर पढ़ाया करते थे क्योंकि उसके गाँव में कोई भी लड़कियों को पढ़ाने के हक़ में नहीं था इसलिए जब वह थोड़ी बड़ी हुई तब उसके पिताजी ने यह फैसला लिया कि कमौलिका की आगे की पढ़ाई के लिए वह उसे शहर लेकर जाएँगे ताकि उसे अच्छी से अच्छी पढ़ाई करने का मौका मिले और वह अपना सपना पूरा कर सके । कुछ समय बाद वह दोनों जैसलमेर से दिल्ली आ गए और उन्होंने कमौलिका को एक अच्छे स्कूल में दाखिला दिलाया । वह पूरे मन से अपनी पढ़ाई में जुट गई और अपने सपनों को मानो खुली आँखों से देखने लगी। अब कमौलिका की दसवीं के बोर्ड की परीक्षा थीं। जिससे वह बहुत डरी हुई थी किंतु उसके पिता जी ने समझाया कि हमें अपने कर्म पर ध्यान देना चाहिए। यदि आज तुम अपना कार्य पूर्ण करोगे तो निश्चित ही सफलता मिलेगी और पूरे आत्मविश्वास के साथ परीक्षा दो । कमौलिका ने वैसा ही किया व्यर्थ की चिंता छोड़ वह अपनी परीक्षा की तैयारी में पूरे जोश के साथ लग गई । परिणाम आए तो कमौलिका के पिताजी बहुत खुश थे क्योंकि कमौलिका ने अब तक के सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए थे। समय बीता उसने और अधिक परिश्रम किया और समाज की इन रूढ़िवादी मानसिकता को तोड़ वह एक बहुत बड़ी सर्जन बन गई फिर कमौलिका और उसके पिता जी ने निश्चय किया कि वह अपने गाँव जैसलमेर जाएँगे ताकि वहाँ के लोगों का मुफ़्त में इलाज़ कर सकें और साथ ही साथ उस समाज के लोगों को बता सकें कि आज आधुनिक युग में लड़की और लड़के में कोई भेद नहीं। हर एक लड़की वह सब कार्य कर सकती है जो एक लड़का करता है । उनके गाँव पहुँचते ही गाँव वालों ने बहुत धूमधाम से उनका स्वागत किया तथा कमौलिका व उसके पिता जी से अपने किए की माफी माँगी और गाँव के सभी लोगों ने ठाना कि वे भी अपनी लड़कियों को शिक्षा देंगे और उसके सपनों को साकार करने में मदद करेंगे ।
जया एकादशी कथा
जय एकादशी कथा धर्मराज युधिष्ठिर बोले की हे - भगवान आपने माघ माह की कृष्ण पक्ष की एकादशी का अत्यंत सुंदर वर्णन किया अब कृपया कर माघ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी की कथा का वर्णन कीजिए इस एकादशी का नाम,विधि और देवता क्या और कौन सा है सो कहिये । श्री कृष्ण भगवान बोले हे राजन माघ माह की शुक्ल पक्ष की एकादशी का नाम जया है इस एकादशी के व्रत से मनुष्य ब्रह्म हत्या के पाप से छूट जाते हैं और अंत में उनको स्वर्ग की प्राप्ति होती है। इस व्रत से मनुष्य कुयोनि, भूत प्रेत पिशाच आदि की योनि से छूट जाता है। अतः इस एकादशी के व्रत को विधिपूर्वक करना चाहिए। हे राजन मैं एक पौराणिक कथा कहता हूं एक समय इंद्र नागलोक में अपनी इच्छा अनुसार अप्सराओं के साथ रमण कर रहा था गंधर्व गान कर रहे थे। वहां गंधर्वो में प्रसिद्ध पुष्पवंत उसकी लड़की तथा चित्रसेन की स्त्री मलिन ये सब थे। उस जगह मलिन का लड़का पुष्पवान और उसका लड़का माल्यवान भी था। पुत्ष्पवती नामक एक गंधर्व स्त्री मान्यवर को देखकर मोहित हो गई और कामबाण से चलायमान होने लगी उसने रूप सौंदर्य हाव भाव आदि द्वारा माल्यवान को बस में कर लिया पुष्पवती के सौंदर्य को देखकर माल्यवान भी मोहित हो गया अतः यह दोनों कामदेव के बस में हो गए परंतु फिर भी इंद्र के बुलाने पर नाच गाने के लिए आना पड़ा और अप्सराओं के साथ गाना गाने लगे । परंतु कामदेव के प्रभाव से इनका मन नहीं लगा और अशुद्ध गाना गाने लगे। इनकी भाव भंगिमाओ को देखकर इंद्र ने इनके प्रेम को समझ लिया और इसमें अपना अपमान समझकर इंद्र ने इन्हें श्राप दे दिया की तुम स्त्री पुरुष के रूप में मृत्यु लोक में जाकर पिशाच का रूप धारण करो और अपने कर्मों का फल पाओ। इंद्र का श्राप सुनकर यह अत्यंत दुखी हुए और हिमाचल पर्वत पर पिशाच बन कर दुःख पूर्वक अपना जीवन व्यतीत करने लगे रात दिन में इन्हें एक क्षण भी निंद्रा नहीं आती थी इस स्थान पर अत्यंत सर्दी थी। एक दिन पिशाच अपनी स्त्री से कहा ना मालूम हमने पिछले जन्म में ऐसे कौन से पाप किए हैं जिनसे हमें कितनी दुखदाई यह पिशाच योनि प्राप्त हुई है। दैव योग से एक दिन माघ माह के शुक्ल पक्ष की जया नाम की एकादशी तिथि आई उस दिन दोनों ने कुछ भी भोजन ना किया और ना कोई पाप कर्म ही किया इस दिन केवल फल फूल खाकर ही दिन व्यतीत किया और महान दुख के साथ पीपल के वृक्ष के नीचे बैठ गए वह रात्रि इन दोनों के एक दूसरे से चिपट कर बड़ी कठिनता के साथ काटी। सर्दी के कारण उनको रात्रि में निंद्रा भी नहीं आई दूसरे दिन प्रातः काल होते ही भगवान के प्रभाव से इनकी पिशाच से छूट गई और अत्यंत सुंदर अप्सरा और गंधर्व की देह धारण करके तथा सुंदर वस्त्रों और आभूषणों से अलंकृत होकर नाग लोक तो प्रस्थान किया आकाश में देवगण तथा गंधर्व इनकी स्तुति तथा पुथुवर्षा करने लगे नाग लोक में जाकर इन दोनों ने देवराज इंद्र को प्रणाम किया इंद्र को भी इन्हें अपने प्रथम रूप में देखकर महान आश्चर्य हुआ और इनसे पूछने लगा कि तुमने अपनी पिशाच देह से किस प्रकार छुटकारा पाया सो तब बतलाओ इस प्रकार माल्यावन बोले हे देवेंद्र भगवान विष्णु के प्रभाव तथा जया एकादशी के व्रत के पुण्य से हमारी पिशाच देह छुटी है। इंद्र बोले हे माल्यवान एकादशी व्रत करने से तथा विष्णु के प्रभाव से तुम लोग पिशाच देह को छोड़कर पवित्र हो गए हो और हम लोगों के भी वन्दनीय योग्य हो गए हो।कयोंकि शिवभक हम लोगों के वन्दना करने योग्य है आप धन्य है धन्य है। अब तुम उस युवती के साथ जाकर बिहार करो। युधिस्टर इस जया एकादशी का व्रत करने से समस्त कुयोनी छूट जाती है। जिस मनुष्य ने इस एकादशी का व्रत किया है उसने मानो सब जप तप यज्ञ आदि किए हैं जो मनुष्य भक्ति पूर्वक एकादशी का व्रत करते हैं वे अवश्य ही सहस्त्र वर्ष स्वर्ग में निवास करते हैं। विष्णु भगवान की जय
विजया एकादशी
विजया एकादशी व्रत फाल्गुन मास कृष्ण पक्ष एकादशी को किया जाता है | इस दिन भगवान विष्णु की पूजा करने से मन प्रसन्न होता है व सभी मनोकामना पूर्ण होती है | पूजन में धूप दीप नैवेद्य नारियल आदि चढ़ाया जाता है | सप्त अन्न युक्त घट स्थापित किया जाता है जिसके ऊपर विष्णु की मूर्ति रखी जाती है | विजया एकादशी को 24 घंटे कीर्तन करके दिन रात बिताना चाहिए | द्वादशी के दिन अन्न से भरा घड़ा ब्राह्मण को दान दिया जाता है | इस व्रत के प्रभाव से दुख दरिद्रता दूर हो जाती है | समस्त कार्य में विजय प्राप्त होती है | इसकी कथा भगवान राम की लंका विजय से संबंधित है | विजया एकादशी व्रत के बारे में कहा जाता है कि विजया एकादशी व्रत करने मात्र से स्वर्णणदान,भूमि दान,अन्न दान और गौ दान से भी अधिक पुण्य फलों की प्राप्ति होती है और अंततः विजया एकादशी व्रत करके मोक्ष की प्राप्ति होती है। यदि कोई आपसे शत्रुता रखता है तो आपको विजया एकादशी का व्रत अवश्य करना चाहिए।
विजया एकादशी की कथा - जब भगवान राम माता सीता की मुक्ति के लिए वानर दल के साथ सिंधु तट पर पहुंचे तो रास्ता रुक गया | पास में ही दाल्भ्य मुनि का आश्रम था जिसने अनेक ब्रह्मा अपनी आंखों से देखे थे ऐसे चिरंजीव मुनि के दर्शनार्थ राम लक्ष्मण अपनी सेना सहित मुनि की शरण में जाकर मुनि को दंडवत प्रणाम करके समुंद्र से पार होने का उपाय पूछा तो मुनि ने कहा की कल विजया एकादशी है उसका व्रत आप सेना सहित करें | समुंद्र से पार उतरने का तथा लंका को विजय करने का सुगम उपाय यही है। मुनि की आज्ञा से राम लक्ष्मण ने सेना सहित विजया एकादशी का व्रत किया | समुन्द्र किनारे भगवान रामेश्वरम का पूजन किया। विजया एकादशी के महत्तम को सुनने से हमेशा विजय होती है। आज के समय में मुक़दमे आदि से निकलने हेतु विजया एकादशी का व्रत सबसे सरल उपाय है |
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