मंगलवार, 25 मार्च 2025

नवरात्रि मे पूजा विधि व माँ के नों रूपों का महत्व

 

नवरात्रि मे पूजा विधि व माँ के नों रूपों का महत्व

सतीश शर्मा 

नवरात्रि के पहले दिन, जो कि प्रतिपदा है, माता के शैलपुत्री रूप की पूजा की जाती है। 

शैलपुत्री माता – नवरात्रि के पहले दिन माता शैलपुत्री की पूजा का विधान है। पर्वतराज हिमालय की पुत्री होने के कारण माता पार्वती को शैलपुत्री कहा जाता है। मां दुर्गा के नौ रूपों में शैलपुत्री प्रथम स्वरूप हैं। सौम्यता, करुणा और धैर्य का प्रतीक – आदिशक्ति के इस स्वरूप को सौम्यता, करुणा, स्नेह और धैर्य का प्रतीक माना जाता है. 

माता को सफेद रंग की चीजें प्रिय हैं, इसलिए उन्हें सफेद बर्फी, दूध से बनी मिठाई, हलवा, रबड़ी या मावे के लड्डू आदि का भोग लगाना चाहिए 

नवरात्रि के दूसरे दिन माता दुर्गा के ब्रह्मचारिणी रूप की पूजा की जाती है, जो तपस्या, त्याग और वैराग्य का प्रतीक है. 

ब्रह्मचारिणी माता के बारे में – देवी ब्रह्मचारिणी ने भगवान शिव को पति के रूप में पाने के लिए कठोर तपस्या की थी, इसलिए उन्हें तपस्या का प्रतीक माना जाता है. उन्हें ज्ञान, तपस्या और वैराग्य की देवी भी माना जाता है. साधना और दृढ़ संकल्प – उनकी आराधना से साधक को अपार शक्ति और दृढ़ संकल्प की प्राप्ति होती है. उनके एक हाथ में कमंडल और दूसरे हाथ में जप माला होती है. 

पूजन विधि – नवरात्रि के दूसरे दिन उनकी पूजा करने का विधान है. 

मंत्र – देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा॥ 

भोग – माता को दूध से बनी चीजें या चीनी का भोग लगाएं. 

नवदुर्गा के नौ स्वरूपों में से माता का तीसरा रूप चंद्रघंटा है, जो शक्ति, शांति और साहस का प्रतीक है. माता चंद्रघंटा का स्वरूप अत्यंत शांत और कल्याणकारी है. उनके माथे पर घंटे के आकार का अर्धचंद्र है, इसलिए उन्हें चंद्रघंटा कहा जाता है. वे बाघ पर सवार होती हैं. वे साहस, शांति और समृद्धि का प्रतीक हैं. 

पूजा का महत्व – नवरात्रि के तीसरे दिन उनकी पूजा की जाती है. उन्हें दूध से बनी मिठाई, खीर या शहद का भोग लगाया जाता है. 

मंत्र – “या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै, नमस्तस्यै नमो नमः॥” 

कथा – नवरात्रि के तीसरे दिन माता चंद्रघंटा की कथा सुनी जाती है. शुभ रंग – लाल रंग. 

नवरात्रि के चौथे दिन, माता दुर्गा के कुष्मांडा रूप की पूजा की जाती है, जिन्हें सृष्टि की रचना करने वाली और अष्टभुजा देवी भी कहा जाता है. मान्यता है कि जब सृष्टि का निर्माण नहीं हुआ था, तब कुष्मांडा माता ने अपनी हल्की मुस्कान से ब्रह्मांड की रचना की थी. कुष्मांडा माता को आठ भुजाओं वाली देवी के रूप में भी जाना जाता है. माता की पूजा से भक्तों के कष्ट, रोग और शोक दूर होते हैं, और उन्हें दीर्घायु, यश और समृद्धि प्राप्त होती है. 

पूजा विधि – नवरात्रि के चौथे दिन, कुष्मांडा माता की पूजा करने के लिए, स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें, पूजा स्थल को शुद्ध करें, माता की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें, और उन्हें फूल, माला, फल, और भोग अर्पित करें. 

मंत्र – “वन्दे वांछित कामर्थे चन्द्रार्घकृत शेखराम्। सिंहरूढा अष्टभुजा कुष्माण्डा यशस्वनीम्॥” 

भोग – माता को सफेद चीजों का भोग लगाना शुभ माना जाता है. पूजा के अंत में माता की आरती करें. कुष्मांडा माता को कुम्हड़े (कद्दू) का भोग अर्पित करना शुभ माना जाता है. 

नवरात्रि के पांचवे दिन, माता दुर्गा के स्कंदमाता रूप की पूजा की जाती है, जो भगवान स्कंद (कार्तिकेय) की माता हैं। स्कंदमाता को कमल के आसन पर विराजमान दर्शाया जाता है, और उनकी गोद में शिशु स्कंद (कार्तिकेय) बैठे होते हैं. स्कंदमाता की पूजा करने से संतान सुख, सुख-समृद्धि, और मोक्ष की प्राप्ति होती है. स्कंदमाता को केले का भोग लगाना चाहिए. 

मंत्र – “सिंहासनगता नित्यं, पद्माश्रितकरद्वया। शुभदास्तु सदा देवी, स्कंदमाता यशस्विनी”. 

स्कंदमाता को पद्मासना देवी भी कहा जाता है. 

नवरात्रि के छठे दिन, यानी षष्ठी तिथि को, मां दुर्गा के छठे स्वरूप, मां कात्यायनी की पूजा की जाती है। मां कात्यायनी को ऋषि कात्यायन की पुत्री माना जाता है, इसलिए उनका नाम कात्यायनी पड़ा। 

नवरात्रि के छठे दिन, मां कात्यायनी की पूजा करने से व्यक्ति को धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति होती है. पौराणिक कथाओं के अनुसार, ब्रज की गोपियों ने भगवान कृष्ण को पति के रूप में पाने के लिए मां कात्यायनी की आराधना की थी. नवरात्रि के छठे दिन लाल रंग के कपड़े पहनने चाहिए. मां कात्यायनी को गेंदे के फूल प्रिय हैं. 

ध्यान मंत्र – वन्दे वाञ्छित मनोरथार्थ चन्द्रार्धकृतशेखराम्। सिंहारूढा चतुर्भुजा कात्यायनी यशस्विनीम्॥ 

नवरात्रि के सप्तमी वाले दिन, माता दुर्गा के सातवें रूप, मां कालरात्रि की आराधना की जाती है. मान्यता है कि माँ कालरात्रि की पूजा करने से सभी प्रकार के भय, बाधाएं और नकारात्मकता का नाश होता है. 

पूजा विधि – सुबह स्नान करके साफ कपड़े पहनें. माता की प्रतिमा को गंगाजल या शुद्ध जल से स्नान कराएं. माता को लाल रंग के वस्त्र, रोली, कुमकुम, पुष्प, धूप, और दीप अर्पित करें. गुड़ और उड़द से बने पदार्थों का भोग लगाएं. मां कालरात्रि के मंत्रों का जाप करें. 

मंत्र – “ॐ कालरात्र्यै नमः” “या देवी सर्वभू‍तेषु माँ कालरात्रि रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः” 

मां कालरात्रि को गुड़ और उड़द से बने पदार्थों का भोग लगाया जाता है. मान्यता है कि मां कालरात्रि त्रिनेत्र वाली देवी हैं और उनकी सवारी गर्दभ है. 

नवरात्रि के अष्टमी तिथि पर, माँ दुर्गा के आठवें स्वरूप, माँ महागौरी की पूजा की जाती है. माँ महागौरी का स्वरूप रंग अत्यंत गोरा होता है. उनकी चार भुजाएँ होती हैं. वे बैल (वृषभ) की सवारी करती हैं. वे भगवान शिव की अर्धांगिनी मानी जाती हैं. वे प्रेम, मातृत्व, पवित्रता और सुंदरता की प्रतीक हैं. 

अष्टमी का महत्व – अष्टमी तिथि को धार्मिक दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है. इस दिन कन्या पूजन और हवन का आयोजन किया जाता है. मान्यता है कि इस दिन माँ की आराधना करने से पुण्य फल की प्राप्ति होती है. 

पूजा विधि – माँ महागौरी को सफेद वस्त्र और आभूषण अर्पित करें. सफेद रंग की मिठाई और नारियल की खीर भोग में चढ़ाएं. पीले, लाल और सफेद रंग के फूल अर्पित करें. “महागौरी शुभं दद्यान्महादेव प्रमोददा” मंत्र का जाप करें.

नवरात्रि के नौवें दिन, जिसे महानवमी भी कहते हैं, माता का रूप सिद्धिदात्री होता है। यह माता दुर्गा का नौवां और अंतिम स्वरूप है, जो सभी सिद्धियों की दाता मानी जाती हैं। सिद्धिदात्री का अर्थ है, जो सिद्धियों को प्रदान करने वाली है। माता सिद्धिदात्री को सभी प्रकार की सिद्धियों की देवी माना जाता है। माता सिद्धिदात्री चार हाथों वाली होती हैं, कमल पर विराजमान होती हैं और उनका वाहन सिंह होता है। माता सिद्धिदात्री की पूजा करने से भक्तों को सभी प्रकार की सिद्धियां प्राप्त होती हैं और सभी इच्छाएं पूर्ण होती हैं। माता को खीर, पूरी और हलवा का भोग लगाया जाता है। माता दुर्गा के नौ रूपों में से अन्य रूप हैं: शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि और महागौरी. 

 

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