शुक्र ग्रह
आकाश मंडल में बुध ग्रह के बाद शुक्र ग्रह का स्थान है | शुक्र ग्रह,सूर्य व चंद्र के बाद सबसे प्रकाशवान ग्रह हैं बृहस्पति के साथ-साथ शुक्र को भी मंत्रिपरिषद में मंत्री पद मिला है |
शुक्र का रंग सफेद, प्रवृत्ति वात, ब्राह्मण जाति, जल तत्व, स्त्रीलिंग, गुण शुभ, वसंत ऋतु, तुला और वृषभ राशि का स्वामी, रत्न मोती , धातु चांदी ,
जन्म कुंडली में साथ में घर का स्वामी,शुक्र अंक 6
3,12, 21 व 29 तारीख को जन्मे लोगों के साथ किसी प्रकार का कारोबार संबंध नहीं रखना चाहिए
5 6 8 14 15 17 23 24 व 26 तारीख में जन्मे हुए लोगों के साथ कारोबार करते हैं या मित्रता करते हैं तो लाभ होने की संभावना होती है |
शुक्र के विकार
मेष राशि में शुक्र हो तो नेत्र विकार होती हैं
वृषभ राशि में शुक्र होने पर गले में सूजन खांसी
मिथुन राशि में शुक्र हो तो चेहरे पर फुंसियां कील मुंहासे
कर्क राशि में शुक्र हो तो पेट फूलना बीमा चलाना
सिंह राशि में शुक्र हो तो ह्रदय विकार
कन्या राशि में शुक्र होने पर अतिसार का रोग
तुला राशि में शुक्र होने पर पेशाब संबंधी रोग
वृषभ राशि में शुक्र होने पर हर्निया जैसे लोग
धनु राशि में शुक्र होने पर कमर नितंब मलाशय से संबंधित रोग
मकर राशि में शुक्र होने पर घुटनों में सूजन व त्वचा रोग
कुंभ राशि में शुक्र होने पर रक्त दोष , नसों से संबंधित रोग
मीन राशि में शुक्र होने पर पैरों की एड़ियां फटना व वल्व संबंधी रोग
*शुक्रवार के दिन सुख समृद्धि व धन लाभ के लिए ये उपाय किए जा सकते हैं-*
मां लक्ष्मी की पूजा करें,शुक्रवार का व्रत करें,कपूर जलाएं,कमल गट्टे की माला से जाप करें,पानी में केसर मिलाकर नहाएं,गाय को मीठी रोटी खिलाएं
सफ़ेद वस्त्र पहनें,मां लक्ष्मी को खीर का भोग लगाएं,गरीब या ज़रूरतमंद को अन्न-वस्त्र का दान करें,मां लक्ष्मी के मंदिर में शंख चढ़ाएं,शुक्रवार के दिन सूर्यास्त के बाद स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र पहनें,माता लक्ष्मी के सामने एक घी का दीपक जलाएं,एक डिब्बे में नमक भरकर उसे लाल कपड़े पर रखें,माता लक्ष्मी के बीज मंत्र का 1001 बार जप करें,जप के बाद नमक के डिब्बे में एक लौंग डाल दें,इस फिर डिब्बे को धन रखने की जगह पर रखें,उपाय को 10 शुक्रवार तक करें,शुक्रवार के दिन एक कटोरी में थोड़ी-सी हल्दी लेनी चाहिए और उसे पानी की सहायता से घोलना चाहिए। अधिक जानकारी हेतु संपर्क करे शर्मा जी 93120025
27
श्री लक्ष्मी चालीसा
॥ सोरठा॥
यही मोर अरदास, हाथ जोड़ विनती करुं।
सब विधि करौ सुवास, जय जननि जगदंबिका॥
॥ चौपाई ॥
सिन्धु सुता मैं सुमिरौ तोही।ज्ञान बुद्घि विघा दो मोही॥
श्री लक्ष्मी चालीसा
तुम समान नहिं कोई उपकारी। सब विधि पुरवहु आस हमारी॥
जय जय जगत जननि जगदंबा सबकी तुम ही हो अवलंबा॥1॥
तुम ही हो सब घट घट वासी। विनती यही हमारी खासी॥
जगजननी जय सिन्धु कुमारी। दीनन की तुम हो हितकारी॥2॥
विनवौं नित्य तुमहिं महारानी। कृपा करौ जग जननि भवानी॥
केहि विधि स्तुति करौं तिहारी। सुधि लीजै अपराध बिसारी॥3॥
कृपा दृष्टि चितववो मम ओरी। जगजननी विनती सुन मोरी॥
ज्ञान बुद्घि जय सुख की दाता। संकट हरो हमारी माता॥4॥
क्षीरसिन्धु जब विष्णु मथायो। चौदह रत्न सिन्धु में पायो॥
चौदह रत्न में तुम सुखरासी। सेवा कियो प्रभु बनि दासी॥5॥
जब जब जन्म जहां प्रभु लीन्हा। रुप बदल तहं सेवा कीन्हा॥
स्वयं विष्णु जब नर तनु धारा। लीन्हेउ अवधपुरी अवतारा॥6॥
तब तुम प्रगट जनकपुर माहीं। सेवा कियो हृदय पुलकाहीं॥
अपनाया तोहि अन्तर्यामी। विश्व विदित त्रिभुवन की स्वामी॥7॥
तुम सम प्रबल शक्ति नहीं आनी। कहं लौ महिमा कहौं बखानी॥
मन क्रम वचन करै सेवकाई। मन इच्छित वांछित फल पाई॥8॥
तजि छल कपट और चतुराई। पूजहिं विविध भांति मनलाई॥
और हाल मैं कहौं बुझाई। जो यह पाठ करै मन लाई॥9॥
ताको कोई कष्ट नोई। मन इच्छित पावै फल सोई॥
त्राहि त्राहि जय दुःख निवारिणि। त्रिविध ताप भव बंधन हारिणी॥10॥
जो चालीसा पढ़ै पढ़ावै। ध्यान लगाकर सुनै सुनावै॥
ताकौ कोई न रोग सतावै। पुत्र आदि धन सम्पत्ति पावै॥11॥
पुत्रहीन अरु संपति हीना। अन्ध बधिर कोढ़ी अति दीना॥
विप्र बोलाय कै पाठ करावै। शंका दिल में कभी न लावै॥12॥
पाठ करावै दिन चालीसा। ता पर कृपा करैं गौरीसा॥
सुख सम्पत्ति बहुत सी पावै। कमी नहीं काहू की आवै॥13॥
बारह मास करै जो पूजा। तेहि सम धन्य और नहिं दूजा॥
प्रतिदिन पाठ करै मन माही। उन सम कोइ जग में कहुं नाहीं॥14॥
बहुविधि क्या मैं करौं बड़ाई। लेय परीक्षा ध्यान लगाई॥
करि विश्वास करै व्रत नेमा। होय सिद्घ उपजै उर प्रेमा॥15॥
जय जय जय लक्ष्मी भवानी। सब में व्यापित हो गुण खानी॥
तुम्हरो तेज प्रबल जग माहीं। तुम सम कोउ दयालु कहुं नाहिं॥16॥
मोहि अनाथ की सुधि अब लीजै। संकट काटि भक्ति मोहि दीजै॥
भूल चूक करि क्षमा हमारी। दर्शन दजै दशा निहारी॥17॥
बिन दर्शन व्याकुल अधिकारी। तुमहि अछत दुःख सहते भारी॥
नहिं मोहिं ज्ञान बुद्घि है तन में। सब जानत हो अपने मन में॥18॥
रुप चतुर्भुज करके धारण। कष्ट मोर अब करहु निवारण॥
केहि प्रकार मैं करौं बड़ाई। ज्ञान बुद्घि मोहि नहिं अधिकाई॥19॥
॥ दोहा॥
त्राहि त्राहि दुख हारिणी, हरो वेगि सब त्रास।
जयति जयति जय लक्ष्मी, करो शत्रु को नाश॥
रामदास धरि ध्यान नित, विनय करत कर जोर।
मातु लक्ष्मी दास पर, करहु दया की कोर॥
तुमको निस दिन सेवत हर-विष्णु-धाता॥ ॐ जय…
उमा, रमा, ब्रह्माणी, तुम ही जग-माता।
सूर्य-चन्द्रमा ध्यावत, नारद ऋषि गाता॥ ॐ जय…
तुम पाताल-निरंजनि, सुख-सम्पत्ति-दाता।
जो कोई तुमको ध्यावत, ऋद्धि-सिद्धि-धन पाता॥ ॐ जय…
तुम पाताल-निवासिनि, तुम ही शुभदाता।
कर्म-प्रभाव-प्रकाशिनि, भवनिधि की त्राता॥ ॐ जय…
जिस घर तुम रहती, तहं सब सद्गुण आता।
सब सम्भव हो जाता, मन नहिं घबराता॥ ॐ जय…
तुम बिन यज्ञ न होते, वस्त्र न हो पाता।
खान-पान का वैभव सब तुमसे आता॥ ॐ जय…
शुभ-गुण-मंदिर सुन्दर, क्षीरोदधि-जाता।
रत्न चतुर्दश तुम बिन कोई नहिं पाता॥ ॐ जय…
महालक्ष्मीजी की आरती, जो कई नर गाता।
उर आनन्द समाता, पाप शमन हो जाता॥ ॐ जय…
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें