रविवार, 30 अक्टूबर 2022

छठ पूजा

 


छठ पूजा 

माता सीता ने राम को ब्रह्म-हत्या के पाप से बचाने के लिए किया था छठ व्रत

वैसे तो छठ की शुरुआत को लेकर कई कथाएं प्रचलित हैं। लेकिन इसमें से दो प्रमुख हैं। कहा जाता है कि रावण को मारने के बाद भगवान राम पर ब्रह्महत्या का पाप लगा था। अपने पति को इस पाप से मुक्त करने के लिए माता सीता ने मुद्गल ऋषि के कहने पर सूर्य भगवान को अर्घ्य दिया था। उन्होंने छह दिनों तक सूर्य भगवान और छठी माता की पूजा कर भगवान राम को ब्रह्महत्या के पाप से उबारा।

पांडव जुए में हार गए थे राजपाट, छठ करके द्रौपदी ने लौटाया

छठ पूजा की एक कथा महाभारत से भी जुड़ती है। लोक मान्यता के अनुसार, जब पांडव जुए में अपना पूरा राजपाट कौरवों से हार गए तो द्रौपदी ने छठ का व्रत किया। जिसके बाद पांडवों को उनका राजपाट वापस मिल गया।

कर्ण भी सूर्य भक्त थे। वो रोज कमर तक पानी में खड़े होकर सूर्य भगवान को अर्घ्य देते थे। आज भी छठ में भी महिलाएं इसी तरह अर्घ्य देती हैं।

पन्ना रत्न,मोती रत्न

 




पन्ना रत्न 

रत्न शास्त्र के अनुसार, पन्ना रत्न बुध ग्रह का प्रतिनिधित्व करता है | इसे धारण करने से व्यक्ति के जीवन में कई सफलता के मुकाम हासिल करने का योग बनता है | पन्ना सुंदर हरे रंग का चमकदार पारदर्शक बहुमूल्य रत्न है | यह बुध ग्रह का रत्न है | पन्ना की कठोरता 4.5 से 8 तक होती है वैसे तो उत्तम कोटि का बेदाग और हरित आभा वाला पन्ना दुर्लभ है फिर भी आजकल के उपलब्ध पन्नों में उत्तम कोटि का पन्ना वही होता है जो लोचदार वजन में भारी हो स्पर्स में कोमल कमल के पत्ते या इमली के पत्ते जैसा उज्जवल हरे रंग का हो | अमेरिकी रूस का पन्ना उत्तम माने जाते हैं ज्योतिष शास्त्र में बुध की कमजोरी को दूर करने के लिए पन्ना धारण करने की सलाह दी जाती है लेकिन धारण करने के लिए शुद्ध एवं दोष रहित पन्ना ही उपयोगी होता है अगर दोषपूर्ण पन्ना धारण कर भी लिया जाए तो उससे अच्छे परिणाम के बाजए दुष्परिणाम अधिक मिलते हैं | गलत रत्न धारण करने से अधिकतर नपुंसकता एवं मानसिक रोग बढ़ जाते हैं इससे बेहतर तो यही होगा कि पन्ना रत्न पहने ही नहीं | रत्न पहने से पहले उसे शुद्ध करवा कर व उस ग्रह से संबंधित पूजा व दान अवश्य करे | 

यदि बुध दस अंश तक हो तो सात रती का पन्ना ठीक रहता है | यदि बुध बीस अंश तक रहे तो पांच रती का पन्ना ठीक रहता है | एक अनुमान के अनुसार अपना जितना वजन है उसके अनरूप रत्न पहनना चाहिए जैसे अगर आपका वजन 60 किलो है तो सवा 6 रती का पन्ना पहनना चाहिए |


मोती रत्न 

मोती शुक्र और चंद्र ग्रह से संबंधित रत्न है | मोती हमेशा चांदी के साथ पहना जाता है | शुक्ल पक्ष सोमवार के दिन मोती खरीदना अच्छा होता है | हम आपको मोती को पूर्णिमा के दिन खरीदने की भी  सलाह देते हैं | सिंह, तुला और धनु लग्न वाले जातकों को कुछ विशेष ग्रह दशाओं में ही मोती पहनने की सलाह दी जाती है. क्योंकि मोती का संबंध चंद्रमा से होता है इसलिए मोती धारण करने से व्यक्ति का मन मजबूत और दिमाग प्रबल होता है | मोती उन जातकों के लिए भी उपयोगी है जो नीच के चंद्रमा की समस्याओं से परेशान है | चंद्रमा क्षीण हो या सूर्य के साथ हो तब भी मोती पहना जा सकता हैं। कुंडली में अगर चंद्रमा कमजोर स्थिति में है तो भी चंद्रमा का बल बढ़ाने के लिए मोती धारण कर सकते हैं। मीन लग्न वाले जातकों की कुंडली में चन्द्रमा पांचवे घर का मालिक होता है, ये स्थान शुभ होता है,इसलिए मीन राशि के लोगो को मोती अवश्य पहनना चाहिए।अत्यधिक भावुक लोगों और क्रोधी लोगों को मोती नहीं पहनना चाहिए | ज्योतिष के मुताबिक, मेष, कर्क, तुला, और मीन लग्न के लिए मोती पहनना सबसे शुभ माना गया है। तो वही सिंह, वृश्चिक और धनु लग्न वाले विशेष दशाओं और ग्रहों की स्थितियों में मोती धारण कर सकते हैं। वृष, मिथुन, कन्या, मकर और कुम्भ लग्न के लिए मोती धारण करना नुकसानदायक है। मोती के साथ हीरा, पन्ना, नीलम और गोमेद धारण करने से नुकसान होता है।इसे धारण करने से व्‍यक्ति अपने गुस्‍से पर काबू करना सीख जाता है। सर्दी जुकाम की समस्‍याएं दूर होती हैं और मन में सकारात्‍मक विचारों का प्रवाह बढ़ने लगता है। पौराणिक मान्‍यताओं के अनुसार मोती का संबंध मां लक्ष्‍मी से माना जाता है। मोती को धारण करने से मां लक्ष्‍मी की विशेष कृपा प्राप्‍त होती है।

असली और नकली मोती का लगभग एक जैसा ट्रांसलूसेंट कलर होता है,जो मोती की ऊपरी सतह पर दिखता है। अच्छी क्वालिटी वाले मोतियों में यह चमक हमेशा रहती है। उनमें एक बहुत हल्के गुलाबी रंग की चमक भी होती है। अगर आपका मोती डल लग रहा है या उसमें डेप्थ नहीं है तो इसका मतलब वो नकली है।

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बुधवार, 26 अक्टूबर 2022

विश्‍वकर्मा और उनके शास्‍त्र



विश्‍वकर्मा और उनके शास्‍त्र

 विश्वकर्मा : 100 शिल्प ग्रंथ प्रदाता

कलाएं कितनी हो सकती हैं? सब लोकोपयोगी हों। लोक उपयोगी सृजन से बड़ा कोई सृजन नहीं। सृजन श्रम, संघर्ष, समय को बचाने वाला और परिश्रम को सार्थक कर आजीविका देने वाला हो।

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भारत विश्वकर्मीय ज्ञान के 100 से ज्यादा ग्रंथों से समृद्ध रहा है। ये गोपनीय अधिकांश ग्रंथ गत डेढ़ दशक में ही सानुवाद प्रकाश में आए हैं... क्या आप जानते हैं 

विश्‍वकर्मा और उनके शास्‍त्र (संदर्भ : विश्‍वकर्मा ग्रंथों का बढ़ता प्रयोग)

यह मेरे लिए प्रसन्नता का विषय है कि कल तक जो शिल्प और स्थापत्य के ग्रंथ केवल शिल्पियों के व्यवहार तक सीमित और केन्द्रित थे, उन पर आज अनेक संस्थानों से लेकर कई विश्व विद्यालयों तक ज्ञान सत्र आयोजित होने लगे हैं, सेमिनार, राष्ट्रीय, अंतर राष्ट्रीय गोष्ठियां होने लगी हैं। अनेक विद्वानों की भागीदारी होने लगी है। शिल्प के ये विषय पाठ्यक्रम के विषय होकर रोजगार और व्यवहार के विषय हुए हैं। शिल्‍प और स्‍थापत्‍य के प्रवर्तक के रूप में भगवान् विश्‍वकर्मा का संदर्भ बहुत पुराने समय से भारतीय उपमहाद्वीप में ज्ञेय और प्रेय-ध्‍येय रहा है। विश्‍वकर्मा को ग्रंथकर्ता मानकर अनेकानेक शिल्‍पकारों ने समय-समय पर अनेक ग्रंथों को लिखा और स्‍वयं कोई श्रेय नहीं लिया। सारा ही श्रेय सृष्टि के सौंदर्य और उपयोगी स्‍वरूप के र‍चयिता विश्‍वकर्मा को दिया। उत्तरबौद्धकाल से ही शिल्‍पकारों के लिए वर्धकी या वढ्ढकी संज्ञा का प्रयोग होता आया है। 'मिलिन्‍दपन्‍हो' में वर्णित शिल्‍पों में वढ्ढकी के योगदान और कामकाज की सुंदर चर्चा आई है जो नक्‍शा बनाकर नगर नियोजन का कार्य करते थे। यह बहुत प्रामाणिक संदर्भ है, इसी के आसपास सौंदरानंद महाकाव्य, हरिवंश (महाभारत खिल) आदि में भी अष्‍टाष्‍टपद यानी चौंसठपद वास्‍तु पूर्वक कपिलवस्‍तु और द्वारका के न्‍यास का संदर्भ आया है। हरिवंश, ब्रह्मवैवर्त, मत्स्य आदि पुराणों में वास्‍तु के देवता के रूप में विश्‍वकर्मा का स्‍मरण किया गया है...। प्रभास के देववर्धकी विश्‍वकर्मा यानी सोमनाथ के शिल्पिकारों का संदर्भ मत्‍स्‍य, विष्णु आदि पुराणों में आया है जिनके महत्‍वपूर्ण योगदान के लिए उनकी परंपरा का स्‍मरण किया गया किंतु शिल्‍पग्रंथों में विश्‍वकर्मा को कभी शिव तो कभी विधाता का अंशीभूत कहा गया है। कहीं-कहीं समस्‍त सृष्टिरचना को ही विश्‍वकर्मीय कहा गया। 

विश्‍वकर्मावतार, विश्‍वकर्मशास्‍त्र, विश्‍वकर्मसंहिता, विश्‍वकर्माप्रकाश, विश्‍वकर्मवास्‍तुशास्‍त्र, विश्‍वकर्मशिल्‍पशास्‍त्रम्, विश्‍वकर्मीयम् ... आदि कई ग्रंथ है जिनमें विश्‍वकर्मीय परंपरा के शि‍ल्‍पों और शिल्पियों के लिए आवश्‍यक सूत्रों का गणितीय रूप में सम्‍यक परिपाक हुआ है। इनमें कुछ का प्रकाशन हुआ है। समरांगण सूत्रधार, अपराजितपृच्‍छा आदि ग्रंथों के प्रवक्‍ता विश्‍वकर्मा ही हैं। ये ग्रंथ भारतीय आवश्‍यकता के अनुसार ही रचे गए हैं। 

इन ग्रंथों का परिमाण और विस्‍तार इतना अधिक है कि यदि उनके पठन-पाठन की परंपरा शुरू की जाए तो बरस हो जाए। अनेक पाठ्यक्रम लागू किए जा सकते हैं। इसके बाद हमें पाश्‍चात्‍य पाठ्यक्रम के पढ़ने की जरूरत ही नहीं पड़े। यह ज्ञातव्‍य है कि यदि यह सामान्‍य विषय होता तो भारत के पास सैकड़ों की संख्‍या में शिल्‍प ग्रंथ नहीं होते। तंत्रों, यामलों व आगमों में सर्वाधिक विषय ही स्‍थापत्‍य शास्‍त्र के रूप में मिलता है। इस तरह से लाखों श्‍लोक मिलते हैं। मगर, उनको पढ़ा कितना गया। भवन की बढ़ती आवश्‍यकता के चलते कुकुरमुत्ते की तरह वास्‍तु के नाम पर किताबें बाजार में उतार दी गईं मगर मूल ग्रंथों की ओर ध्‍यान ही नहीं गया...। इस पर लगभग 100 ग्रंथों का संपादन और अनुवाद का संकल्प किया है और ईश्वर ने सफलता दी। संस्कृत साहित्य के प्रकाशक कहेंगे : इस सदी में सबसे ज्यादा विश्वकर्मा ग्रंथ घर घर पहुंचे हैं।विश्‍वकर्मा के चरित्र पर स्‍वतंत्र पुराण का प्रणयन हुआ। पिछले वर्षों में 'महाविश्‍वकर्मपुराण' का प्रकाशन भी हुआ। मेरा मन है कि भारत के ये ग्रंथ विश्व समुदाय के लिए प्रेरक बने देश वास्तु गुरु भी सिद्ध हो।

डॉ श्रीकृष्ण जुगनु

भगवान् विश्वकर्मा जी के शुभ पर्व पर आज एक अत्यंत निकट और प्रियजन के लिए आशीर्वचन पूर्वक एक लघु समीक्षा लिखता हूँ। यह समीक्षा डॉ त्रिभुवन सिंह जी की पूर्व प्रकाशित समीक्षात्मक पुस्तक के सापेक्ष है। विश्व को बनाने वाले विश्वकर्मा जी के पुराण महाविश्वकर्मपुराण के बीसवें अध्याय में राजा सुव्रत को उपदेश करते हुए शिवावतार भगवान कालहस्ति मुनि कहते हैं :-

ब्राह्मणाः कर्म्ममार्गेण ध्यानमार्गेण योगिनः।

सत्यमार्गेण राजानो भजन्ति परमेश्वरम्॥

ब्राह्मण अपने स्वाभाविक कर्मकांड आदि से (चूंकि वेदसम्मत कर्मकांड में ब्राह्मण का ही अधिकार है), योगीजन ध्यानमग्न स्थिति से और राजागण सत्यपूर्वक प्रजापालन से परमेश्वर की आराधना करते हैं।

स्त्रियो वैश्याश्च शूद्राश्च ये च संकरयोनयः।

भजन्ति भक्तिमार्गेण विश्वकर्माणमव्ययम्॥

स्त्री, वैश्य, शूद्र तथा वर्णसंकर जन, (जो कार्यव्यवस्था एवं धर्मव्यवस्था के कारण कर्मकांड अथवा शासन आदि की प्रत्यक्ष सक्रियता से दूर हैं,) वे भक्तिमार्ग के द्वारा उन अविनाशी विश्वकर्मा की आराधना करते हैं। इन्हीं विश्वकर्मा उपासकों के कारण भारत का ऐतिहासिक सकल घरेलू उत्पाद आश्चर्यजनक उपलब्धियों को दिखाता है, क्योंकि इनका सिद्धांत ही राजा सुव्रत को महर्षि कालहस्ति ने कुछ इस प्रकार बताया है,

शृणु सुव्रत वक्ष्यामि शिल्पं लोकोपकारम्।

पुण्यं तदव्यतिरिक्तं तु पापमित्यभिधीयते॥

इति सामान्यतः प्रोक्तं विशेषस्तत्वत्र कथ्यते।

पुण्यं सत्कर्मजा दृष्टं पातकं तु विकर्मजम्॥

(महाविश्वकर्म पुराण, अध्याय ३२)

हे सुव्रत ! सुनिए, शिल्पकर्म (इसमें हजार से अधिक प्रकार के अभियांत्रिकी और उत्पादन कर्म आएंगे) निश्चित ही लोकों का उपकार करने वाला है। शारीरिक श्रमपूर्वक धनार्जन करना पुण्य कहा जाता है। उसका उल्लंघन करना ही पाप है, अर्थात् बिना परिश्रम किये भोजन करना ही पाप है। यह व्यवस्था सामान्य है, विशेष में यही है कि धर्मशास्त्र की आज्ञानुसार किये गए कर्म का फल पुण्य है और इसके विपरीत किये गए कर्म का फल पाप है। यही कारण है कि संत रैदास को नानाविध भय और प्रलोभन दिए जाने पर भी उन्होंने धर्मपरायणता नहीं छोड़ी, अपितु धर्मनिष्ठ बने रहे। लेखक ने जो पुस्तक की समीक्षा लिखी है वह अत्यंत तार्किक और गहन तुलनात्मक शोध का परिणाम है जिसका दूरगामी प्रभाव होगा। उचित मार्गदर्शन के अभाव में, धनलोलुपता में अथवा आर्ष ग्रंथों को न समझने के कारण आज के अभिनव नव बौद्ध और मूर्खजन की स्थिति और भी चिंतनीय है। वामपंथ और ईसाईयत में घोर शत्रुता रही, अंबेडकर इस्लाम के कटु आलोचक रहे और साथ इस इस्लाम और ईसाइयों के रक्तरंजित युद्ध अनेकों बार हुए हैं, किन्तु वामपंथ, ईसाईयत, इस्लाम एवं शास्त्रविषयक अज्ञानता, ये चारों आज एक साथ सनातनी सिद्धांतों के विरुद्ध खड़े हो गए हैं।  विडंबना यह है कि अंबेडकर यदि लिखें कि शूद्र नीच थे, तो अम्बेडकरवादी उसे सत्य मानकर सनातन को गाली देते हैं। वही अंबेडकर यदि लिखें कि आर्य बाहर से नहीं आये थे तो यहां अम्बेडकरवादी उसपर ध्यान न देकर वामपंथी राग अलापने लगते हैं। ऐसे में शूद्र को नीच कहने की बात का खंडन समीक्षा लेखक श्री त्रिभुवन सिंह जी ने बहुत कुशलता से किया है। मनु के कुल में (मानवों में) पांच प्रकार के शिल्पी हैं। इसमें कारव, तक्षक, शुल्बी, शिल्पी और स्वर्णकार आते हैं) अधिक चर्चा भी न करें तो इसमें मुख्य मुख्य कार्य क्या हैं ? कारव का कार्य है, "हेतीनां करणं तथा" ये लोग अत्याधुनिक शस्त्र बनाते हैं। 

युद्धतंत्राणिकर्माणि मंत्राणां रक्षणं तथा।

बन्धमोक्षादि यंत्राणि सर्वेषामपि जीविनाम्॥

युद्ध की तकनीकी युक्तियों के व्यूह विषयक कार्य, युद्ध में परामर्श, रक्षा विषयक कार्य, बंधन और मोक्ष के यंत्र बनाना इनका काम है। और यह काम किस भावना से करते हैं ? सभी प्राणियों के हित में, उनके जीवन की रक्षा के लिए। वामपंथियों की तरह नरसंहार हेतु नहीं। ऐसे ही तक्षक का कार्य क्या था ? वास्तुशास्त्रप्रवर्तनम्। आप जो विश्व, भारत के वैभवशाली वास्तुविद्या को देखकर चौंधिया रहा है, उसका प्रवर्तन यही करते थे। इतना ही नहीं, उस समय के अद्भुत किले, महल और अत्याधुनिक गाड़ियां भी बनाते थे, प्रासादध्वजहर्म्याणां रथानां करणं तथा। महाभारत में वर्णन है कि राजा नल ने राजा ऋतुपर्ण को एक  विशेष रथ से एक ही दिन में अयोध्या (उत्तरप्रदेश से) से विदर्भ (महाराष्ट्र) पहुंचा दिया था। और ऐसा नहीं है कि ये अनपढ़ थे, इनके कर्म में और भी एक बात थी, न्यायकर्माणि सर्वाणि, आवश्यक होने पर ये न्यायालय का कार्य भी देखते थे। शुल्बी के कर्मों में धातुविज्ञान से जुड़े समस्त कार्य आते हैं, आज भी मेहरौली, विष्णु स्तम्भ (कालांतर में कुतुब मीनार) वाला अद्भुत धातु स्तम्भ रहस्य बना हुआ है। और यह कार्य भी मनमानी नहीं करते थे, धर्माधर्मविचारश्च, उचित और अनुचित का समुचित विचार करके ही करते थे। ऐसे ही शिल्पियों के कार्य में विविध भवनों का निर्माण, दुर्ग, किले, मंदिरों का निर्माण करना आता था। इतना ही नहीं, निर्माण कैसे होता रहा ? निर्माणं राजसंश्रयः, राजा के संश्रय में। भाषाविदों को ज्ञात होगा, संश्रय का अर्थ गुलामी नहीं होता, कृपापूर्वक पोषण होता है। साथ ही सद्गोष्ठी नित्यं सुज्ञानसाधनम्। ये लोग समाज के प्रेरणा हेतु अच्छी गोष्ठी, जिसे सेमिनार कहते हैं, उसका आयोजन करते थे ताकि अच्छे अच्छे ज्ञान का संचय और प्रसार हो सके।स्वर्णकार आदि के कर्म में सुंदर और बहुमूल्य धातु के आभूषण, रत्नशास्त्र का ज्ञान उसके तौल मान की जानकारी के साथ साथ व्यापार, गणित और लेखनकर्म भी आता था। सुवर्णरत्नशास्त्राणां गणितं लेखकर्म च। यदि वे मूर्ख होते तो आज लाखों खर्च करने जो काम लोग बड़ी बड़ी डिग्रियों के लिए सीख रहे हैं, उससे कई गुणा अधिक प्रखर और कुशल काम वे हज़ारों वर्षों से कैसे सीख रहे थे ? कथित इतिहासकार तो उन्हें दलित, शोषित, वंचित, और नीच बताये फिर रहे हैं। अच्छा, ये यदि इतने ही बड़े दलित थे तो न्यायालय में इनकी सलाह क्यों ली जाती थी ? इतने ही अनपढ़ थे तो रसायन, धातु के बारे में कैसे जानते थे, या फिर गणित और लेखनकर्म में कैसे काम आते थे ? यदि ये इतने ही गरीब और शोषित थे तो इनके लिए निम्न बात क्यों कही गयी ?

कारुश्च स्फाटिकं लिंगं तक्षा मरकतं तथा। 

शुल्बी रत्नं शिल्पी नीलं सुवर्णमत्वर्कशालिकः॥

कारव के लिए स्फटिक के शिवलिंग की पूजा का विधान है। तक्षक को मरकत मणि के शिवलिंग की पूजा करनी चाहिए। शुल्बी को माणिक्य के शिवलिंग, शिल्पीजनों को नीलम और स्वर्णकार को सोने के शिवलिंग की पूजा करनी चाहिए। वामपंथी जिन्हें दलित और शोषित बताते हैं, वो दैनिक पूजन में जैसे शिवलिंग की पूजा करते थे, वैसे शिवलिंग आज के करोड़पति जन भी अपने यहां रखने का साहस नहीं रखते। विकृत इतिहासकार बताते हैं कि इन्हें गंदगी में रखा गया, इन्हें गरीब, वंचित और अशिक्षित रखा गया। जबकि सत्य यह नहीं है। यह हाल तो मुगलों और विशेषकर अंग्रेजों के समय से हुआ। और शूद्रों का क्या, पूरे सनातन का ही बुरा हाल हुआ। गुरुकुलों में शूद्र छात्रों की संख्या सर्वाधिक थी, यह तो लेखक अपनी समीक्षा में ऐतिहासिक प्रमाणों से सिद्ध कर ही चुके हैं। गरीबी और अशिक्षा की बात सनातन शास्त्र से मैं इसे खंडित कर चुका। 

पापपुण्यविचारश्च तपः शौचं दमः शम:।

सत्यकर्माणि सर्वाणि मनुवंशस्वभावजम्॥

उक्त मनुकुल के (मानव शिल्पियों में) कुछ स्वाभाविक कर्म हैं, जिसमें पाप पुण्य का विचार, तपस्या, बाह्य और आंतरिक शुद्धि, इंद्रियों का दमन, आचरण की पवित्रता और समस्त सत्य के कर्म सम्मिलित हैं। विश्व में सनातन ही ऐसा है, जहां अपने मार्गदर्शन करने वाले ग्रंथ की पूजा होती है, रक्षा करने वाले शस्त्र की पूजा होती है, निर्णय करने वाले तराजू की भी पूजा होती है और साथ ही नानार्थ आजीविका देने वाले औजारों की भी पूजा होती है। आज भी लोग अपनी बात को सत्य बताने के लिए अपनी आजीविका की, अपने यंत्रों की शपथ लेते हैं। विश्वकर्मा कसम भाई, झूठ नहीं बोल रहा, यह बात भारत का प्रत्येक व्यक्ति कभी न कभी कहता ही है। जिन्हें लगता है कि शूद्र नीच थे, या तो वे विक्षिप्त हैं, या फिर अज्ञानी और दोनों से बुरे बौद्धिक वेश्या भी हो सकते हैं, क्योंकि सनातन शास्त्रों ने शूद्र को भी सम्माननीय स्थान दिया है।

ब्रह्मक्षत्रियविट्शूद्राश्चत्वारः श्रेष्ठवर्णकाः॥

(महाविश्वकर्म पुराण, अध्याय २० - ७)

ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र, ये चारों श्रेष्ठ वर्ण हैं। हमें वैर उसी से है जो उच्छृंखल हो और अमर्यादित हो। इसीलिए यहां शबरी भी सम्मानित हैं और रावण भी निंद्य। इसीलिए यहां रैदास भी सम्मानित हैं धनानन्द भी निंद्य। लेखक ने साहस दिखाते हुए निष्पक्ष इतिहास के माध्यम से जिस सत्य को पुनः प्रकाशित करने का प्रयास किया है, वह श्लाघनीय एवं अनुकरणीय है। ॐ ॐ ॐ ...

महायोगी कालहस्ति उवाच

वेदशास्त्रेतिहासेषु पुराणेषु च सर्वतः।

विश्वकर्मा जगद्धेतुरिति राजेन्द्र ! कथ्यते॥

अजायता जगत् सर्वं सृष्ट्यादौ विश्वकर्मणः।

स एव कर्ता विश्वस्य विश्वकर्मा जगत्पति: ॥

प्रथमस्तु निराकारः ओंकारस्तदनंतरम्। 

चिदानंद: परं ज्योतिः ब्रह्मानन्दस्तु पंचमः ॥

यस्मिन्भूत्वा पुनर्यस्मिन्प्रलीयन्ते भवन्ति च।

ज्योतिषां परमं स्थानं तत्परं ज्योतिरिष्यते ॥

पुष्पमध्ये यथा गन्धो पृथ्वी मध्ये यथा जलम्।

शंखमध्ये यथा नादो वृक्षमध्ये यथा रसः॥

तथा सर्वशरीरेषु अण्ववण्वंतरेष्वपि।

स्थित्वा भ्रमयतीदं हि तत्परंब्रह्म उच्यते ॥

महायोगी शिवावतार कालहस्ति ने कहा

हे राजन् !! वेद, शास्त्रों, इतिहास पुराण आदि सर्वत्र ही इस बात का उल्लेख है कि इस सारे संसार की उत्पत्ति, स्थिति एवं प्रलय आदि कर्मों के कारणभूत विश्वकर्मा ही हैं। भगवान विश्वकर्मा द्वारा ही इस संसार की सृष्टि की गई है, इसीलिए समस्त विश्व के वे प्रभु ही कर्ता एवं स्वामी हैं। उनके पांच स्वरूप हैं जिनमें प्रथम भेदलीला निराकार है, तदनन्तर ओंकार स्वरूप है, तीसरा चिदानन्द, चौथा परमज्योति और पांचवां भेद ब्रह्मानन्द के नाम से कहा गया है। यह सारा संसार जिनसे जन्म लेकर फिर जिनमें लीन हो रहा है, और यह चक्र निरन्तर चल रहा है, उन ज्योतियों की परम ज्योति भी विश्वकर्मा ही हैं। जैसे पुष्प के अंदर गंध, पृथ्वी में जल, शंख में ध्वनि तथा वृक्षों में रस विद्यमान होता है वैसे ही सभी शरीरों एवं अणु परमाणु में स्थित रहकर उनको इस संसार में घुमाने वाले परब्रह्म विश्वकर्मा हो हैं।

विश्वं गर्भेण संधृत्वा विश्वकर्मा जगत्पतिः।

वटपत्रपुटे शेते यद्दशांगुलमात्रकः॥

बालार्ककोटिलावण्यो बालरूपी दिगम्बर:।

योगमायायुतो देवो विश्वकर्मा च पत्रके॥

आनाभिकमलं ब्रह्मा आकण्ठं वैष्णवी तनुः।

आशीर्षमीश्वरो ज्ञेयो विश्वकर्मात्र ईतनौ ॥

कराभ्यां स पदांगुष्ठं वक्त्रे निक्षिप्य चुम्बयन्।

योगनिद्रा समायुक्तो शेते न्यग्रोधपत्रके ॥

मूर्तिभेदेन जनितास्तद्देवा विश्वकर्मणः।

लक्ष्यन्ते पृथगात्मानो वेदेषु प्रतिपादिताः॥

एकमूले महावृक्षे जातास्ते च पृथक्सुराः।

लक्ष्यन्ते रूपभेदेन तारतम्य विशेषतः॥

पंचशाखा भवन्त्यादौ विश्वकर्म  महातरो:।

शिवोमूर्तिर्मूर्तिमांश्च कर्ता कर्म च नामभिः॥

ब्रह्माविष्णुश्च रुद्रश्च ईश्वरश्च सदाशिवः।

पंचब्रह्ममयं प्रोक्तमादीजं पञ्च शाखिनः॥

द्रुमसंस्थो जगत्कर्ता जगदुत्पादनोत्सुकः।

स्वार्थे शक्तिस्वरूपो भूत्साशक्ति: पञ्चधा भवेत्॥

तासां नामानि वक्ष्यामि आदि शक्तिरभूत्पुरा।

इच्छाशक्तिर्द्वितीयास्यात्क्रियाशक्तिस्तृतीयका॥

मायाशक्तिश्चतुर्थी स्यात् ज्ञानशक्तिस्तु पञ्चमी।

वसन्ति ताश्च शाखासु पञ्चब्रह्मासु सङ्गताः ॥

ब्रह्माणपञ्चपूर्वादि चतुर्दिक्षु च मध्यमे।

वसन्ति वक्त्रशाखासु शक्तिभिर्विश्वकर्मणः॥

ब्रह्माविष्णुश्च रुद्रश्च ईश्वरश्च सदाशिवः।

पंचानां ब्रह्मणाम् राजन् पंचैतेप्यधिदेवताः॥

पूर्वं तु शिवनामास्यममूर्तित्वस्य दक्षिणम्।

पश्चिमम्मूर्तिमन्ता च उत्तरे क्रतुनामकम्॥

मध्यं तु कर्मनामास्यं ब्रह्मणो विश्वकर्मणः।

एवमास्यानि जानीहि राजेन्द्र ! मतिमन्विभो: ॥

साकाररूपाण्येतानि निर्गुणस्य महाविभो:।

अनन्तानन्तवीर्यस्य ब्रह्मणो विश्वकर्मणः॥

(महाविश्वकर्मपुराण)

वे जगत्प्रभु विश्वकर्मा समस्त विश्व को अपने उदर में धारण करके दस अंगुल परिमाण के होकर वटपत्र पर शयन करते हैं। ऐसा लगता है मानो उन्होंने करोड़ों उदीयमान सूर्यों के तेज को धारण किया हो। वे दिगम्बर होकर अपनी योगमाया के साथ उस वटपत्र पर सोये हैं। उन गुणातीत विश्वकर्मा का वेदरूपी शरीर चरणों से नाभि तक ब्रह्मा के समान, नाभि से कंठ तक विष्णु के समान तथा कंठ से शीर्षभाग तक शिव के समान प्रतिभासित होता है। परब्रह्म विश्वकर्मा अपने हाथों से लीलापूर्वक अपने पांव का अंगूठा चूसते हुए बालरूप में योगनिद्रा से युक्त होकर वटपत्र पर शयित हैं। विश्वकर्मा के विग्रह से अलग अलग उत्पन्न हुए देवताओं को वेदों में अलग अलग रूपों में प्रतिपादित करके दिखाया गया है। एक ही मूल का विश्वकर्मा संज्ञक महावृक्ष है एवं उसके मूल से अनेक रूप एवं नामभेद के तारतम्य से जन्मे ये देवगण अनेक प्रकार के दिखाई देते हैं। विश्वकर्मा से सबसे पहले पांच भावों से युक्त शाखाओं का उद्भव हुआ जो शिव, अमूर्त, मूर्त, कर्ता एवं कर्म की संज्ञा से क्रमशः ब्रह्मा, विष्णु, रुद्र, ईश्वर एवं सदाशिव रूपी पञ्चब्रह्ममय जगत के नाम से प्रसिद्ध हुए। पूर्व में जिस विश्वकर्मा संसारवृक्ष की संस्था के विषय में कहा गया है, उन जगत्कर्ता ने संसार को उत्पन्न करने की आकांक्षा से अपनी काया को शक्ति का स्वरूप बनाया। वह शक्ति पांच प्रकार की है, जिनके नाम बताता हूँ। प्रथम आदिशक्ति है जो प्रारम्भ में रची गई। द्वितीय इच्छाशक्ति और तीसरी क्रियाशक्ति है। चौथी मायाशक्ति एवं पांचवीं ज्ञान शक्ति है। इन पांचों शक्तियों के रूप में शाखा रूप धारण करके वह पंचब्रह्म (मनु, मय, त्वष्ट, शिल्पी, विश्वज्ञ) सहित निवास करते हैं। उक्त मनु आदि पंचब्रह्म पूर्व, दक्षिण, पश्चिम, उत्तर और उर्ध्व (मध्य) दिशाओं में क्रमशः ब्रह्मा, विष्णु, रुद्र, ईश्वर तथा सदाशिव रूपी आधिदैविक शक्तियों के साथ निवास कर रहे हैं। वह विश्वकर्मब्रह्म पूर्वादि क्रम से शिव, अमूर्ति, मूर्तिमान्, क्रतु तथा कर्म नामक मुख वाले हैं। हे राजन् सुव्रत !! इस प्रकार उन जगत्पति के नाम सहित मुख बताये गए हैं। इस प्रकार उन निर्गुण महाविभु का साकार स्वरूप जानना चाहिए जो अनन्त शक्ति से युक्त हैं।

(महाविश्वकर्मपुराण)

श्रीमन्महामहिम विद्यामार्तण्ड श्रीभागवतानंद गुरु


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मंगलवार, 25 अक्टूबर 2022

सूर्य ग्रहण से सीख

 


 सूर्य ग्रहण से सीख 

सूर्य ग्रहण का पर्व मानव जीवन को तीन प्रमुख सीखें प्रदान करता है। 

 *पहली -* इस सृष्टि में सब कुछ परिवर्तनशील है। इस भू मण्डल पर शाश्वत जैसा कुछ भी नहीं। समस्त चराचर जगत को प्रकाशित करने वाले सूर्य देव की किरणों को भी कुछ समय के लिए ही सही मगर पृथ्वी तक पहुँचने में असमर्थता हो जाती है अथवा पृथ्वी से सूर्य किरणों का ह्रास हो जाता है। 

 *दूसरी -* जीवन में सदैव अवरोध आते रहेंगे। यात्रा जितनी लंबी होगी अथवा लक्ष्य जितना श्रेष्ठ होगा अवरोध भी उतने ही उत्पन्न होंगे। बस उन क्षणों में धैर्य का परिचय देते हुए ये विचार करें कि जब सुख ही शाश्वत नहीं रहा तो दुख की क्या औकात है..? समय बुरा हो सकता है मगर जीवन कदापि नहीं। ये वक्त भी गुजर जायेगा, बस इतना ध्यान रहे। 

 *तीसरी -*  एक महत्वपूर्ण बात और वो ये कि जिस प्रकार सूर्य ग्रहण लगने पर भी मूल रूप से भगवान सूर्य नारायण में कोई परिवर्तन नहीं आता। दूर से देखने पर लगेगा कि सूर्य पर अंधेरा छा गया है जबकि यथार्थ में सूर्य की स्थिति सम बनी रहती है। ऐसे ही जीवन के सुख - दुख, मान - अपमान, अनुकूलता - प्रतिकूलता एवं यश - अपयश में आत्मा भी निर्लेप ही रहती है।

 जीवन में बाहरी स्थितियाँ अवश्य परिवर्तनशील हैं मगर आत्मा सदैव इन सब से परे अपनी आनंद अवस्था में ही रहती है। बस हमारी दृष्टि बदल जाए और ये भीतर का शाश्वत आनंद हमारे जीवन में भी छलक पड़े।

शुक्रवार, 21 अक्टूबर 2022

दीपावली पूजन मुहर्त

 

दीपावली पूजन मुहर्त 

पौराणिक कथाओं के अनुसार कार्तिक मास की अमावस्या को भगवान राम चौदह वर्ष का वनवास पूर्ण करने के बाद अपनी जन्मभूमि अयोध्या वापस लौटे थे। जिसके उपलक्ष्य में हर साल कार्तिक मास की अमावस्या तिथि को दीपावली का पावन पर्व मनाया जाता है।” 

श्री महालक्ष्मी पूजन एवं दीपावली का महापर्व कार्तिक अमावस में प्रदोष काल एवं अर्धरात्रि व्यापिनी हो तो विशेष रूप से शुभ होता है। इस वर्ष कार्तिक अमावस 24 अक्टूबर सोमवार 2022 को सांयकाल 17:28 के बाद प्रदोष निशीध तथा महानिशीध व्यापिनी होगी। अतः "दिवाली पर्व" 24 अक्टूबर सोमवार 2022 के दिन दीपावली मनाया जाना चाहिए |इस  साल दिवाली एवं चित्रा नक्षत्र, विष्कुंभ योग, कन्या राशिस्थ् तथा अर्धरात्रि व्यापिनी अमावस्या युक्त होने से विषेश शुभ रहेगी।दिवाली के दिन पूजा स्थल पर एक चौकी रखें और लाल कपड़ा बिछाकर उस पर लक्ष्मी जी और गणेश जी की मूर्ति रखें या दीवार पर लक्ष्मी जी का चित्र लगाएं। चौकी के पास जल से भरा एक कलश रखें। माता लक्ष्मी और गणेश जी की मूर्ति पर तिलक लगाएं और दीपक जलाकर जल, मौली, चावल, फल, गुड़, हल्दी, अबीर-गुलाल आदि अर्पित करें और माता महालक्ष्मी की स्तुति करें।” ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं श्री सिद्ध लक्ष्म्यै नम:” इस मंत्र का जाप करने से व्यक्ति को सफलता प्राप्त होती है. मां लक्ष्मी की चांदी या अष्ट धातु की मूर्ति की पूजा करनी चाहिए |  प्रदोष काल 24 अक्टूबर 2022 को रहेगा 20:30 से 22:55 तक रहेगा 18:48 तक रहेगा रात्रि 22:30 तक रहेगा लाभ की चौघड़िया तथा इस अवधि में विशेष पूजा की जाती  हैं | 

24 तारीख का चौघड़िया निम्नलिखित है

 6-41 से 8-04 तक अमृत , 9-27 से 10-50 तक शुभ ,14-58 से 16-20 तक लाभ ,16-30 से 17-43 तक अमृत,17-43  से 19-20 तक चर , 22-35 से 24-12 तक लाभ ,25-49 से 27-26 तक शुभ उपरोक्त अनुसार पूजा की जा सकती है। 


गुरुवार, 20 अक्टूबर 2022

अगर हम नही देश के काम आए धरा क्या कहेगी गगन क्या कहेगा।।

 


अगर हम नही देश के काम आए

धरा क्या कहेगी गगन क्या कहेगा ॥

चलो श्रम करे आज खुद को सँवारें
युगों से चढी जो खुमारी उतारें
अगर वक्त पर हम नहीं जाग पाएं
सुभा क्या कहेगी पवन क्या कहेगा ॥

अधुर गन्ध का अर्थ है खूब महके
पडे संकटों की भले मार सहके
अगर हम नहीं पुष्प सा मुस्कुराएं
लता क्या कहेगी चमन क्या कहेगा ॥

बहुत हो चुका स्वर्ग भू पर उतारें
करें कुछ नया स्वस्थ सोचें विचारें
अगर हम नहीं ज्योति बन झिलमिलाएं
निशा क्या कहेगी भुवन क्या कहेगा ॥

संघ गीत

 


शत नमन माधव चरण में


शत नमन माधव चरण में
शत नमन माधव चरण में ॥धृ॥

आपकी पीयूष वाणीशब्द को भी धन्य करती
आपकी आत्मीयता थीयुगल नयनों से बरसती
और वह निश्छल हंसी जोगूँज उठती थी गगन में ॥१॥

ज्ञान में तो आप ऋषिवरदीखते थे आद्यशंकर
और भोला भाव शिशु साखेलता मुख पर निरन्तर
दीन दुखियों के लिये थीद्रवित करुणाधार मन में ॥२॥

दु:ख सुख निन्दा प्रशंसाआप को सब एक ही थे
दिव्य गीता ज्ञान से युतआप तो स्थितप्रज्ञ ही थे
भरत भू के पुत्र उत्तमआप थे युगपुरुष जन में ॥३॥

सिन्धु सा गम्भीर मानसथाह कब पाई किसी ने
आ गया सम्पर्क में जोधन्यता पाई उसी ने
आप योगेश्वर नये थेछल भरे कुरुक्षेत्र रण में ॥४॥

मेरु गिरि सा मन अडिग थाआपने पाया महात्मन
त्याग कैसा आप का वहतेज साहस शील पावन
मात्र दर्शन भस्म कर देघोर षडरिपु एक क्षण में ॥५॥

नवग्रह के बारे में जाने


नवग्रह के बारे में जाने 
सूर्य,चन्द्र ,मंगल ,बुध ,गुरु ,शुक्र व शनि ग्रह हमारे जीवन में क्या  प्रभाव डालते है |
अगर कुंडली में कमजोर हो तो क्या उपाय करे  


सूर्य ग्रह 

 

जिनका सूर्य प्रबल होता है वे बहुत तेजस्वी सदगुणी विद्वान उदार स्वभाव दयालु, और मनोबल में आत्मबल से पूर्ण होते है। वे अपने कार्य स्वत: ही करता है किसी के भरोसे रह कर काम करना उन्हे नहीं आता है। वे सरकारी नौकरी और सरकारी कामकाज के प्रति समर्पित होता है। वह अपने को अल्प समय में ही कुशल प्रसाशक बनालेता है। सूर्य को एक प्रभावशाली ग्रह माना जाता है। 

अगर कुंडली में सूर्य कमजोर हो तो  निम्न मंत्र का जाप करें। 

ॐ ह्रीं ह्रीं सूर्याय सहस्रकिरणराय मनोवांछित फलम् देहि देहि स्वाहा. ॐ सूर्याय नम: ॐ घृणि सूर्याय नम: । सूर्य का बीज मंत्र - ॐ ह्रां ह्रीं ह्रौं सः सूर्याय नमः ॥ सूर्य का रत्न माणिक्य है ।

 

 

चंद्र ग्रह


नवग्रहों में सूर्य के बाद चन्द्रमा ज्योतिष में सर्वाधिक महत्वपूर्ण ग्रह है | चंद्र ग्रह कर्क राशी का स्वामी है | 

कमजोर चंद्र के कारण होने वाले कष्ट - व्यक्ति को स्त्री पक्ष से या स्त्री को लेकर कष्ट बना रहता है | हारमोंस की समस्या और अवसाद का योग बनता है नींद न आने की समस्या भी होती है,व्यक्ति बार बार नींद में चौंक कर उठ जाता है | व्यक्ति को माता का सुख नहीं मिलता या व्यक्ति के सम्बन्ध माता से ख़राब होता है |

चंद्र दोष दूर करने के उपाय - कुण्डली में उत्पन्न चंद्र दोष को दूर करने के लिए सर्वौत्तम उपाय है कि सोमवार के दिन भगवान शिव का गाय के दूध से रूद्राभिषेक करना चाहिए।स्फटिक की माला पहनने से भी चंद्र दोष से मुक्ति मिलती है।चंद्रोदय के समय दूध में चावल और बताशा डाल कर चंद्रमा को अर्घ्य देना चाहिए।चंद्र नीच का हो तो चंद्र की चीजों का दान नही लेना चहिये। शिव चालीसा का नियमित पाठ करें। चंद्र पीड़ा की विशेष शांति हेतु चांदी, मोती, शंख, सीप, कमल और पंचगव्य मिलाकर सात सोमवार तक स्नान करें। पंच धातु के शिवलिंग का निर्माण करके उसका यथायोग्य पूजन करने से चंद्र पीड़ा शांत होती है। सोम वार के व्रत करे | पूर्णिमा के दिन चंद्र दर्शन करे व चन्द्रमा की रौशनी में चंद्र मन्त्र का जाप करे | चंद्र देव को सफेद रंग प्रिय है इसलिय सोमवार व पूर्णिमा को सफेद रंग की चीज दान करे |

चंद्र ग्रह का रत्न - मोती 

चंद्र ग्रह की धातु - सुवर्ण , चांदी,

चंद्र ग्रह का वार - सोमवार 

दान योग्य वस्तु - चावल ,मिश्री ,दही ,स्वेत वस्त्र ,श्वेत पुष्प ,शंख ,श्वेत चन्दन |

चन्द्रमा कमजोर होने पर होने वाले रोग तिल्ली ,पांडू ,यकृत ,कफ ,उदर संबंधी रोग  

चंद्रदेव मंत्र

ॐ ऐं क्लीं सोमाय नम:। ॐ भूर्भुव: स्व: अमृतांगाय विदमहे कलारूपाय धीमहि तन्नो सोमो प्रचोदयात्।


मंगल ग्रह 


सौर परिवार में मंगल का चोथा स्थान है | मंगल ग्रह को ऊर्जा, भूमि और साहस का कारक ग्रह माना गया है। ज्योतिष शास्त्र में मंगल ग्रह को क्रूर ग्रह माना गया है। मेष और वृश्चिक राशि के स्वामी मंगल ग्रह होते हैं। मंगल मकर राशि में उच्च के जबकि कर्क राशि में नीच के माने गए हैं।

मंगल का रत्न - मूंगा 

कमजोर मंगल के रोग - पित ,वायु ,कर्ण रोग,विशु चिका , खुजली | 

कुंडली में मंगल 4 ,8 भाव को पूर्ण दृष्टि से देखता है | 

मंगल की धातु - सुवर्ण ,ताम्र | 

मंगल का दान - मसूर ,गूढ़ ,घी ,लाल वस्त्र ,लाल कनेर ,कस्तूरी , लाल चन्दन |

मंगल का बीज मंत्र- ॐ क्रां क्रीं क्रौं सः भौमाय नमः।

मंगल का अंक - 9 

मंगल अशुभ हो तो कभी कभी जेल के दर्शन भी हो जाते हैं | कुंडली का मंगल जीवन के सुख, संपत्ति, विवाद और मुकदमेबाजी जैसे पहलुओं को विशेष रूप से प्रभावित करता है | यानि जीवन के हर मोड़ पर खराब या अशुभ मंगल का प्रभाव रहता है और इंसान की जिंदगी को प्रभावित भी करता है | मंगलवार के दिन किसी गरीब या जरूरतमंद को लाल रंग का कपड़ा दान करें। हनुमान जी के मंदिर जाकर संतरी रंग के सिंदूर में चमेली का तेल मिलाकर हनुमान जी को चौला चढ़ाएं। मंगल ग्रह के मंत्रों का जाप करें। ढाई किलो लाल मसूर की दाल किसी कुष्ठ रोगी को दान करें।

इंद्र का वचन सुनकर शरणागत वत्सल शिव ने इंद्र को अभय प्रदान किया और अंधकासुर को युद्ध के लिए ललकारा, युद्ध अत्यंत घमासान हुआ, और उस समय लड़ते-लड़ते भगवान शिव के मस्तक से पसीने की एक बूंद पृथ्वी पर गिरी, उससे अंगार के समान लाल अंग वाले भूमिपुत्र मंगल का जन्म हुआ।मंगल ग्रह या मंगल दोष हेतु अक्सर हनुमानजी की पूजा बताई जाती है और हनुमानजी का दिन भी मंगलवार भी है परंतु मंगलदेव ही मंगल ग्रह के देवता है और उनका वार भी मंगलवार ही होता है। मंगल दोष की शांति हेतु उनकी भी पूजा की जाती है।


बुध ग्रह 


बुधवार का दिन गणेश जी का होता है| वो सभी  देवताओं में सबसे प्र‍िय हैं, इसलिए उनकी पूजा सभी देवताओं से पहले की जाती है| उनकी पूजा-अर्चना करने से घर में सुख शांति और समृद्ध‍ि आती है. जानकार मानते हैं कि अगर बुधवार के दिन कुछ उपाय किये जाए तो बुध ग्रह का अच्छा प्रभाव पड़ता है.बुध ग्रह से दमा और अन्य रोग |

सांस की बीमारियां बुध के दूषित होने से होती हैं। बहुत खराब बुध से व्यक्ति के फेफड़े खराब होने का भय रहता है। व्यक्ति हकलाता है तो भी बुध के कारण और गूंगा बहरापन भी बुध के कारण ही होता है। कुंडली में अगर बुध ग्रह कमजोर है तो करें ये उपाय - घर के पूर्व दिशा में लाल झंडा लगायें।ऐसे व्यक्ति को हरे रंग के कपड़ों और वस्तुओं से परहेज करना चाहिए। 100 ग्राम चावल में चने की दाल मिलाकर बहते जल नदी या नहर में प्रवाहित करें।

बुधवार को मंत्र का जाप करने से दिमाग तेज होता है और व्यापार में मिलती है तरक्की मिलती है | बुध को मानसिक तनावों से राहत देने वाला, मन की एकाग्रता बढ़ाने वाला और याददाश्त तेज करने वाला ग्रह माना गया है। यही नहीं काराबोर में कामयाबी भी बुध के शुभ योग से मिलती है।

बुध मंत्र - बीज मंत्र 'ब्रां ब्रीं ब्रौं सः बुधाय नमः' तथा सामान्य मंत्र 'बुं बुधाय नमः' है।

बुध ग्रह का रंग - बुध का रंग वैसे तो हरा होता है पर कुछ लोग बुध का रंग श्याम मानते हैं।

बुध ग्रह का रत्न - पन्ना 


बृहस्पति ग्रह


बृहस्पति ग्रह  को अंग्रेजी में ज्यूपिटर भी कहते हैं। कुंडली में देव गुरु बृहस्पति मजबूत स्थिति में हों, तो व्यक्ति की किस्मत चमक जाती है. उसकी आंखों में चमक और चेहरे पर तेज होता है. वो व्यक्ति किसी को भी अपने ज्ञान के समक्ष झुकाने की पूरी ताकत रखता है |

यदि किसी की कुंडली में गुरु कमजोर स्थि​ति में हो तो जीवन में आर्थिक समस्याओं का सामना करना पड़ता है, भाग्य साथ नहीं देता और वैवाहिक परेशानियां आती हैं | बृहस्पति ग्रह को देव गुरू कहा गया है.गुरु: इस ग्रह के प्रभाव से दंतरोग, स्मृतिहीनता, अंतड़ियों का ज्वर, कर्णपीड़ा, पीलिया, लीवर की बीमारी, सिर का चक्कर, पित्ताशय के रोग, रक्ताल्पता, नींद न आने की बीमारी, शोक आदि शारीरिक कष्ट-कठिनाइयों से गुजरना पड़ता है।

बृहस्पति ग्रह को इस तरह करें मजबूत-

प्रत्येक गुरुवार शिवजी को बेसन के लड्डू चढ़ाएं।गुरुवार को व्रत करें। मन्त्र का जाप न्यूनतम 108 बार जरूर करें। इस दिन पीली वस्तुओं का दान अपनी सार्म्थ्यनुसार करें। गुरुवार के दिन सूर्योदय से पहले उठ जाएं और फिर विष्णु के सामने घी का दीपक जलाएं।

बृहस्पति ग्रह का मन्त्र - प्रथम मंत्र को बृहस्पतिदेव का मूल मंत्र माना जाता है | ॐ बृं बृहस्पतये नम:। ॐ क्लीं बृहस्पतये नम:। ॐ ग्रां ग्रीं ग्रौं स: गुरवे नम:।

बृहस्पति ग्रह का रत्न - के लिए पुखराज , सोने की अंगूठी में तर्जनी अंगुली में गुरु-पुष्य योग में धारण करे |

बृहस्पति ग्रह का रंग - पीला 


शुक्र ग्रह


आकाश मंडल में  बुध ग्रह के बाद शुक्र ग्रह का स्थान है | शुक्र ग्रह,सूर्य व  चंद्र  के बाद सबसे प्रकाश वान ग्रह  हैं बृहस्पति के साथ-साथ शुक्र को भी मंत्रिपरिषद में मंत्री पद मिला है |शुक्र का रंग सफेद, प्रवृत्ति वात, ब्राह्मण जाति, जल तत्व, स्त्रीलिंग, गुण  शुभ, वसंत ऋतु, तुला और वृषभ राशि का स्वामी, रत्न चांदी , जन्म कुंडली में साथ में घर का स्वामी,शुक्र अंक 6 

3,12, 21 व 29 तारीख को जन्मे लोगों के साथ किसी प्रकार का कारोबार संबंध नहीं रखना चाहिए 

5 6 8 14 15 17 23 24 व  26 तारीख में जन्मे हुए लोगों के साथ कारोबार करते हैं या मित्रता करते हैं तो लाभ होने की संभावना होती है |

 शुक्र के विकार 

मेष राशि में शुक्र हो तो नेत्र विकार होती हैं  

वृषभ राशि में शुक्र होने पर गले में सूजन खांसी 

मिथुन राशि में शुक्र हो तो चेहरे पर फुंसियां कील मुंहासे 

कर्क राशि में शुक्र हो तो पेट फूलना बीमा चलाना 

सिंह राशि में शुक्र हो तो ह्रदय विकार 

कन्या राशि में शुक्र होने पर अतिसार का रोग 

तुला राशि में शुक्र होने पर पेशाब संबंधी रोग 

वृषभ राशि में शुक्र होने पर हर्निया जैसे लोग 

धनु राशि में शुक्र होने पर कमर नितंब मलाशय से संबंधित रोग 

मकर राशि में शुक्र होने पर घुटनों में सूजन व त्वचा रोग 

कुंभ राशि में शुक्र होने पर रक्त दोस्त नसों से संबंधित रोग 

मीन राशि में शुक्र होने पर पैरों की एड़ियां पटना वल्वा संबंधी रोग


शनि ग्रह 


ॐ शन्नो देवी रभिष्टय आपो भवन्तु पीपतये शनयो रविस्र वन्तुनः। 

शनिदेव के इस मंत्र को श्री शनि वैदिक मंत्र कहा जाता है। इस मंत्र का 23000 हजार जप करने से साढे़साती शनि का दुष्प्रभाव शांत हो जाता है

शनि ग्रह का रत्न नीलम हैं। 

पीपल को जल चढाए,पूजा करें और सात परिक्रमा करें। शनिदेव को तेल अर्पित करें और पूजन करें।हर शनिवार को पीपल के पेड़ के नीचे सरसों के तेल का दीपक प्रज्जवलित करें। 

हर शनिवार सुबह-सुबह स्नान आदि कर्मों से निवृत्त होकर तेल का दान करें।

हनुमानजी को सिंदूर और चमेली का चढ़ाएं.

शनि देव के लिए सरसों के तेल का दान काफी अच्छा माना जाता है। अगर शनि के चलते आपका कोई काम रुका हुआ है या जीवन में सफलता हाथ नहीं आ रही, तो सरसों के तेल का दान जरूर करें। शनिवार के दिन सुबह लोहे के बरतन में सरसों का तेल लें और उसमे एक रुपए का सिक्का डालें



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छोटी बात पर काम की बात


बड़े बुजुर्ग कहते हैं कि, जब भी किसी मंदिर में दर्शन के लिए जाएं तो दर्शन करने के बाद #बाहर आकर मंदिर की पेडी या ऑटले पर थोड़ी देर बैठते हैं । क्या आप जानते हैं इस परंपरा का क्या कारण है?

आजकल तो लोग मंदिर की पैड़ी पर बैठकर अपने घर की व्यापार की राजनीति की चर्चा करते हैं। परंतु यह प्राचीन परंपरा एक विशेष #उद्देश्य के लिए बनाई गई । वास्तव में मंदिर की पैड़ी पर बैठ कर के हमें एक श्लोक बोलना चाहिए। यह श्लोक आजकल के लोग भूल गए हैं । आप इस लोक को सुनें और आने वाली पीढ़ी को भी इसे बताएं । यह श्लोक इस प्रकार है -

अनायासेन मरणम् ,बिना देन्येन जीवनम्।
देहान्त तव सानिध्यम्, देहि मे परमेश्वरम् ।।

इस श्लोक का अर्थ है...

 अनायासेन मरणम्...... अर्थात बिना तकलीफ के हमारी मृत्यु हो और हम कभी भी बीमार होकर बिस्तर पर पड़े पड़े ,कष्ट उठाकर मृत्यु को प्राप्त ना हो चलते फिरते ही हमारे प्राण निकल जाएं ।

बिना देन्येन जीवनम्......... अर्थात परवशता का जीवन ना हो मतलब हमें कभी किसी के सहारे ना पड़े रहना पड़े। जैसे कि लकवा हो जाने पर व्यक्ति दूसरे पर आश्रित हो जाता है वैसे परवश या बेबस ना हो । ठाकुर जी की कृपा से बिना भीख के ही जीवन बसर हो सके ।

देहांते तव सानिध्यम ........अर्थात जब भी मृत्यु हो तब भगवान के सम्मुख हो। जैसे भीष्म पितामह की मृत्यु के समय स्वयं ठाकुर जी उनके सम्मुख जाकर खड़े हो गए। उनके दर्शन करते हुए प्राण निकले ।

देहि में परमेशवरम्..... हे परमेश्वर ऐसा वरदान हमें देना ।
यह प्रार्थना करें।

विशेष:
गाड़ी,लाड़ी,लड़का,लड़की, पति, पत्नी ,घर धन यह नहीं मांगना है यह तो भगवान आप की पात्रता के हिसाब से खुद आपको देते हैं । इसीलिए दर्शन करने के बाद बैठकर यह प्रार्थना अवश्य करनी चाहिए ।
यह प्रार्थना है, याचना नहीं है । याचना सांसारिक पदार्थों के लिए होती है जैसे कि घर, व्यापार, नौकरी ,पुत्र ,पुत्री ,सांसारिक सुख, धन या अन्य बातों के लिए जो मांग की जाती है वह याचना है वह भीख है।

हम प्रार्थना करते हैं प्रार्थना का विशेष अर्थ होता है अर्थात विशिष्ट, श्रेष्ठ । अर्थना अर्थात निवेदन। ठाकुर जी से प्रार्थना करें और प्रार्थना क्या करना है ,यह श्लोक बोलना है।

सब से जरूरी बात

जब हम मंदिर में दर्शन करने जाते हैं, तो खुली आंखों से भगवान को देखना चाहिए, निहारना चाहिए । उनके दर्शन करना चाहिए। कुछ लोग वहां आंखें बंद करके खड़े रहते हैं । आंखें #बंद क्यों करना हम तो दर्शन करने आए हैं । भगवान के स्वरूप का, श्री चरणों का ,मुखारविंद का, श्रंगार का, संपूर्णानंद लें । आंखों में भर ले स्वरूप को । दर्शन करें और दर्शन के बाद जब बाहर आकर बैठे तब नेत्र बंद करके जो दर्शन किए हैं उस स्वरूप का ध्यान करें । मंदिर में नेत्र नहीं बंद करना । बाहर आने के बाद पैड़ी पर बैठकर जब ठाकुर जी का ध्यान करें तब नेत्र बंद करें और अगर ठाकुर जी का स्वरूप ध्यान में नहीं आए तो दोबारा मंदिर में जाएं और भगवान का दर्शन करें । नेत्रों को बंद करने के पश्चात उपरोक्त श्लोक का पाठ करें।
छोटी छोटी बातें होती हैं जो हमारे जीवन को सुखी बना देती है
 मंदिर को साफ करते हैं तो बृहस्पति बहुत अच्छे फल देगा।
अपनी जूठी थाली या बर्तन उसी जगह पर छोड़ना, सफलता में कमी।
जूठे बर्तन को उठाकर जगह पर रखते हैं या साफ कर लेते हैं तो चंद्रमा व शनि ग्रह ठीक होते हैं।
 देर रात जागने से चंद्रमा अच्छे फल नहीं देता है।
कोई भी बाहर से आए, उसे स्वच्छ पानी जरूर पिलाएं, राहु ग्रह ठीक होता है। राहु का बुरा प्रभाव नहीं पड़ता।
रसोई को गंदा रखते हैं तो आपको मंगल ग्रह से दिक्कत आएंगी। रसोई हमेशा साफ-सुथरी रखेंगे तो मंगल ग्रह ठीक होता है।
घर में सुबह उठकर पौधों को पानी दिया जाता है तो हम बुध, सूर्य, शुक्र और चंद्रमा को मजबूत करते हैं।
जो लोग पैर घसीटकर चलते हैं, उनका राहु खराब होता है।
 बाथरूम में कपड़े इधर उधर फेंकते हैं, बाथरूम में पानी बिखराकर आ जाते हैं तो चंद्रमा अच्छे फल नहीं देता है।
 बाहर से आकर अपने चप्पल, जूते व मोजे इधर-उधर फेंक देते हैं, तो उन्हें शत्रु परेशान करते हैं।
राहु और शनि ठीक फल नहीं देते हैं अगर बिस्तर हमेशा फैला हुआ हो, सलवटें हों। चादर कहीं, तकिया कहीं है।
 चीखकर बोलने से शनि खराब होता है।
 बुजुर्गों के आशीर्वाद से घर में सुख-समृद्धि बढ़ती है तथा गुरु ग्रह अच्छा होता है।
 अपशब्द बोलने व गालियां देने से गुरु और बुध खराब होते हैं। यदि आप भी गालियां देने के शौकीन हैं तो बुढ़ापे में बिस्तर पकड़ने के लिए तैयार रहें।
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बुधवार, 19 अक्टूबर 2022

दान

 


दान 

      एक बुज़ुर्ग शिक्षिका भीषण गर्मियों के दिन में बस में सवार हुई। वह पैरों के दर्द से बेहाल थी लेकिन बस में सीट न देख कर जैसे – तैसे

    अभी बस ने कुछ दूरी ही तय की थी कि एक उम्रदराज औरत ने बड़े सम्मानपूर्वक आवाज़ दी, "आ जाइए मैडम, आप यहाँ बैठ जाएं” कहते हुए उसे अपनी सीट पर बैठा दिया। खुद वो गरीब सी औरत बस में खड़ी हो गयी। मैडम ने दुआ दी, "बहुत-बहुत धन्यवाद, सच में मेरी बहुत बुरी हालत थी।" ऐसा सुनकर  उस गरीब महिला के चेहरे पर एक सुकून भरी मुस्कान फैल गयी।

 कुछ देर बाद शिक्षिका के पास वाली सीट खाली हो गयी लेकिन महिला ने एक और महिला को, जो एक छोटे बच्चे के साथ यात्रा कर रही थी और मुश्किल से बच्चे को ले जाने में सक्षम थी, को सीट पर बिठा दिया।

  अगले पड़ाव पर बच्चे के साथ महिला भी उतर गयी।सीट खाली हो गयी लेकिन नेकदिल महिला ने बैठने का लालच नहीं किया बल्कि बस में चढ़े एक कमजोर बूढ़े आदमी को बैठा दिया जो अभी - अभी बस में चढ़ा था।

 कुछ देर बाद सीट फिर से खाली हो गयी। बस में अब गिनी – चुनी सवारियां ही रह गयी थीं। अब उस अध्यापिका ने महिला को अपने पास बिठाया और पूछा, "सीट कितनी बार खाली हुई है लेकिन आप लोगों को ही बैठाती रही, खुद नहीं बैठी, क्या बात है?"

   महिला ने कहा, "मैडम, मैं एक मजदूर हूं । मेरे पास इतने पैसे नहीं हैं कि मैं कुछ दान कर सकूं।" अत: पुण्य कमाने के लिए मैं क्या करती हूं कि कहीं रास्ते से पत्थर उठाकर एक तरफ कर देती हूं,  कभी किसी जरूरतमंद को पानी पिला देती हूं, कभी बस में किसी के लिए सीट छोड़ देती हूं, फिर जब सामने वाला मुझे दुआएं देता है तो मैं अपनी गरीबी भूल जाती हूं । दिन भर की थकान दूर हो जाती है ।  और तो और जब मैं दोपहर में रोटी खाने के लिए बैठती हूं ना बाहर बेंच पर, तो ये पंछी - चिड़ियां पास आ के बैठ जाते हैं। रोटी डाल देती हूं इनके आगे छोटे-छोटे टुकड़े करके । जब वे खुशी से चिल्लाते हैं तो उन भगवान के जीवों को देखकर मेरा पेट भर जाता है। पैसा धेला न सही, सोचती हूं दुआएं तो मिल ही जाती है ना मुफ्त में। फायदा ही है ना और हमने लेकर भी क्या जाना है यहां से ?

 वह शिक्षिका अवाक रह गयी। एक अनपढ़ सी दिखने वाली महिला इतना बड़ा पाठ जो पढ़ा गयी थी उसे ।अगर दुनिया के आधे लोग ऐसी सोच को अपना लें तो धरती स्वर्ग बन जाएगी।

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बेटी

बेटी

विवाह के बाद पहली बार मायके आयी बेटी का स्वागत सप्ताह भर चला। सप्ताह भर बेटी को जो पसन्द है, वही सब किया गया।वापिस ससुराल जाते समय पिता ने बेटी को एक अति सुगंधित अगरबत्ती का पुडा दिया और कहा की-बेटी, तुम जब ससुराल में पूजा करने जाओगी,तब यह अगरबत्ती जरूर जलाना |

माँ ने कहा - बिटिया प्रथम बार मायके से ससुराल जा रही है,तो भला कोई अगरबत्ती जैसी चीज देता है? पिता ने झट से जेब मे हाथ डाला और जेब मे जितने भी रुपये थे,वो सब बेटी को दे दिए | ससुराल में पहुंचते ही सासु माँ ने बहु के माता-पिता ने बेटी को बिदाई में क्या दिया,यह देखा तो वह अगरबत्ती का पुडा भी दिखा। सासु माँ ने मुंह बना कर बहु को बोला कि-कल पूजा में यह अगरबत्ती लगा लेना | सुबह जब बेटी पूजा करने बैठी, अगरबत्ती का पुडा खोला तो उसमे से एक चिट्ठी निकली,लिखा था-"बेटा यह अगरबत्ती स्वतः जलती है,मगर संपूर्ण घर को सुगंधित  कर देती है।इतना ही नही, आजू-बाजू के पूरे वातावरण को भी अपनी महक से सुगंधित एवम प्रफुल्लित कर देती है...!! हो सकता है की तुम कभी पति से कुछ समय के लिए रुठ जाओगी या कभी अपने सास-ससुरजी से नाराज हो जाओगी,कभी देवर या ननद से भी रूठोगी, कभी तुम्हे किसी से बाते सुननी भी पड़ जाए, या फिर कभी आस-पड़ोस की बातों या बर्ताव पर तुम्हारा दिल खट्टा हो जाये, तब तुम मेरी यह भेंट ध्यान में रखना | अगरबत्ती की तरह जलना, जैसे अगरबत्ती स्वयं जलते हुए पूरे घर और सम्पूर्ण परिसर को सुगंधित और प्रफुल्लित कर ऊर्जा से भरती है, ठीक उसी तरह तुम स्वतः सहन करते हुए ससुराल को अपना मायका समझ कर सब को अपने व्यवहार और कर्म से सुगंधित और प्रफुल्लित करना,बेटी चिट्ठी पढ़कर फफक कर रोने लगी,सासू मां लपककर आयी, पति और ससुरजी भी पूजा घर मे पहुंचे जहां बहु रो रही थी।"अरे हाथ को चटका लग गया क्या?, ऐसा पति ने पूछा। "क्या हुआ यह तो बताओ, ससुरजी बोले। सासु माँ आजु बाजु के सामान में कुछ है,क्या यह देखने लगी तो उन्हें  पिता द्वारा सुंदर अक्षरों में  लिखी हुई  चिठ्ठी नजर आयी, चिट्ठी पढ़ते ही उन्होंने बहु को गले से लगा लिया और चिट्ठी ससुरजी के हाथों में दी।चश्मा ना पहने होने की वजह से चिट्ठी बेटे को देकर पढ़ने के लिए कहा। सारी बात समझते ही संपूर्ण घर स्तब्ध हो गया।

"सासु माँ बोली अरे, यह चिठ्ठी फ्रेम करानी है।यह मेरी बहु को मिली हुई सबसे अनमोल भेंट है, पूजा घर के बाजू में में ही इसकी फ्रेम होनी चाहिए,और फिर सदैव वह फ्रेम अपने शब्दों से, सम्पूर्ण घर, और अगल-बगल के वातावरण को अपने अर्थ से महकाती रही, अगरबत्ती का पुडा खत्म होने के बावजूद भी...........

बेटियां दो कुलो को महकाती है |

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भाई



 सरस्वती के भाई 

अयोध्या के बहुत निकट ही पौराणिक नदी कुटिला है – जिसे आज टेढ़ी कहते हैं, उसके तट के निकट ही एक भक्त परिवार रहता था। उनके घर एक सरस्वती नाम की बालिका थी। वे लोग नित्य श्री कनक बिहारिणी बिहारी जी का दर्शन करने अयोध्या आते थे। सरस्वती जी का कोई सगा भाई नही था, केवल एक मौसेरा भाई ही था। वह जब भी श्री रधुनाथ जी का दर्शन करने आती, उसमे मन मे यही भाव आता की सरकार मेरे अपने भाई ही है।उसकी आयु उस समय मात्र दो वर्ष की थी। रक्षाबंधन से कुछ समय पूर्व उसने सरकार से कहा की मै आपको राखी बांधने आऊंगी। उसने सुंदर राखी बनाई और रक्षाबंधन पूर्णिमा पर मंदिर लेकर गयी। पुजारी जी से कहा कि हमने भैया के लिए राखी लायी है। पुजारी जी ने छोटी सी सरस्वती को गोद मे उठा लिया और उससे कहा कि मै तुम्हे राखी सहित सरकार को स्पर्श कर देता हूं और राखी मै बांध दूंगा। पुजारी जी ने राखी बांध दी और उसको प्रसाद दिया। अब हर वर्ष राखी बांधने का उसका नियम बन गया। समय के साथ वह बड़ी हो गयी और उसका विवाह निश्चित हो गया। वह पत्रिका लेकर मंदिर में आयी और कहा की मेरा विवाह निश्चित हो गया है, मै आपको न्योता देने आई हूं। चारो भाइयो को विवाह में आना ही है। पुजारी जी को पत्रिका देकर कहा कि मैंने चारो भाइयों से कह दिया है, आप पत्रिका सरकार के पास रख दो और आप भी कह दो की चारो भाइयों को विवाह में आना ही है। ऐसा कहकर वह अपने घर चली गयी। विवाह का दिन आया। अवध में एक रस्म होती है कि विवाह के बाद भाई आकर उसको चादर ओढ़ाता है और कुछ भेट वस्तुएं देता है। उसकी मौसी ने अपने लड़के को कुछ सामान और ११ रुपये दिए और मंडप में पहुंचने को कहकर वह चली गयी। उसका मौसेरा भाई उपहार, वस्त्र और ११ रुपये लेकर रिक्शा पर बांध कर विवाह मंडप की ओर निकल पड़ा। रास्ते मे ही रिक्शा उलट गया और वह गिर गया। थोड़ी सी चोट आयी और लोगो ने उसको दवाखाने ले जाकर मलम पट्टी कराई। यहां सरस्वती जी घूंघट से बार बार मंडप के दरवाजे पर देख रही है और सोच रही है कि सरकार अभी तक क्यो नही आये। उसको पूरा विश्वास है कि चारो भाई आएंगे। माँ से भी कह दिया कि ध्यान रखना अयोध्या जी से मेरे भाई आएंगे – माँ ने उसको भोला समझकर हंस दिया। जब बहुत देर हो गयी तब व्याकुल होकर वह दरवाजे पर जाकर रोने लगी। दूर दूर के रिश्तेदार आ गए पर मेरे अपने भाई क्यो नही आये ? क्या मैं उनकी बहन नही हूं ? उसी समय ४ बड़ी मोटर गाड़िया और एक बड़ा ट्रक आते हुए उसने देखा। पहली गाड़ी से उसकी मौसी का लड़का और उसकी पत्नी उतरे। बाकी गाड़ीयों से और ३ जोड़िया उतरी। मौसी के लड़के के रूप में सरकार ही आये है। रत्न जटित पगड़ियां, वस्त्र, हीरो के हार पहन रखे है। श्री हनुमान जी पीछे ट्रक में समान भरकर लाये है, हनुमान जी पहलवान के रूप में आये थे। उन्होंने ट्रक से सारा सामान उतारना शुरू किया – स्वर्ण, चांदी, पीतल, तांबे के बहुत से बर्तन। बिस्तर, सोफे, ओढ़ने बिछाने के वस्त्र, साड़ियां, अल्मारियाँ, कान, नाक, गले, कमर, हाथ, पैर के आभूषण। मौसी देखकर आश्चर्य में पड़ गयी कि इतना कीमती सामान मेरा लड़का कहां से लेकर आया ? चारो का तेज और सुंदरता देखकर सरस्वती समझ गयी कि यह मेरे चारो भाई है। सरस्वती जी के आनंद का ठिकाना न रहा, उसका रोना बंद हो गया। सरकार ने इशारे से कहा कि किसीको अभी भेद बताना नही, गुप्त ही रखना। इनका रूप इतना मनोहर था कि सब उन्हें देखते ही राह गए, कोई पूछ न पाया कि यह गाड़ियां कैसे आयी, ये अन्य ३ लोग कौन है ? लोग हैरान हो कर देख रहे थे कि अभी तक रो रही थी, और अभी इतना हँस रही है और आनंद में नाच रही है। किसी को कुछ समझ नही आ रहा था।  जब तक उसकी विदाई नही हुई तब तक चारो भाई उसके साथ ही रहे। सभी गले मिले और आशीर्वाद दिया। सरस्वती ने कहा – जैसे आज शादी में सब संभाल लिया वैसे जीवन भर मुझे संभालना। जब वह गाड़ी में बैठकर पति के साथ जाने लगी तब चारों भाई अन्तर्धान हो गए। उसी समय असली मौसेरा भाई किसी तरह लंगड़ाते हुए पट्टी लगाए हुए वहां आया। उसने वस्त्र ओढाया उपहार और ११ रुपये दिया। मौसी ने पूछा कि अभी अभी तो तू बड़े कीमती वस्त्र पहने गाड़ी और ट्रक लेकर आया था ? ये पट्टी कैसे बंध गयी और कपड़े कैसे फट गए ? उसको तो कुछ समझ ही नही आ रहा था। अंत मे सरस्वती से उसकी माता ने एकांत मे पूछा की बेटी सच सच बता की क्या बात है ? ये चारों कौन थे ? तब उसने कहा की माँ ! मैने आपसे कहा था कि ध्यान रखना, मेरे भाई अयोध्या से आएंगे। माँ समझ गयी की इसके तो ४ ही भाई है और वो श्रीरघुनाथ जी और अन्य तीन भैया ही है। माँ जान गई कि श्री अयोध्या नाथ सरकार ही अपनी बहन के प्रेम में बंध कर आये थे और अपनी बहन को इतने उपहार, आभूषण और वस्तुएं दे गए कि नगर के बड़े बड़े सेठ, नवाबो के पास भी नही थे।

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विदाई

 


विदाई

जी हाँ ! यह संगीता-कुंज नाम का आशियाना मेरा ही है ।अपनी सेवानिवृत्ति होने से चार वर्ष पूर्व मैंने इसे बनवाया था।यह चमत्कार कैसे संपन्न हो सका ,मुझे नहीं मालूम।इसे मैं ईश्वर कृपा ही कहूँगा अन्यथा निखालिस आय वाले सरकारी मुलाजिम के लिए इस महंगाई में मकान बनवाना इतना सहज नहीं होता ।

  कुछ सरकारी लोन लिया, कुछ फंड से रुपया निकाला और श्री गणेश का नाम लेके करा डाली नींव की खुदाई ।तीन महीने बाद लिंटर पड़ गया।एक ढाँचे के रूप में मकान आकार ले चुका था।किंतु इसके बाद मकान की फ़िनिशिंग में कितने पापड़ बेलने पड़े, यह मैं मुक्त भोगी ही जानता हूँ ।भागते-दौड़ते जूते के सोल घिस गए।धूप-बरसात में खड़े-खड़े सिर के रहे-सहे बाल झड़ गए और चंदिया नज़र आने लगी ।

 जैसे भी हुआ पर यह सच था कि अपना स्वयं का आशियाना होने का सपना साकार हो गया था ।पंडित से गृह प्रवेश का मुहूर्त निकलवाया गया।पत्नी की इच्छा थी कि गृह प्रवेश नाते-रिश्तेदारों एवं दोस्तों को आमंत्रित करके धूमधाम से संपन्न हो।किंतु मकान से राज मिस्रियों को विदा करते-करते जेब की हालत कितनी पतली हो गई थी, इसे सपनों की दुनिया में डोलती पत्नी को नहीं पता था ।पास का रुपया तो कब का समाप्त हो चुका था ,इसके अतिरिक्त दोस्तों-रिश्तेदारों का क़र्ज़ सिर पर और चढ़ गया था ।मकान बनवाने में यह एक वाक्य कि -“ मकान कौनसा रोज़-रोज़ बनना है “ सदैव ही मकान को ओवर बजट बना देता है।उदाहरण स्वरूप जैसे फ़र्श बनवाने के दो विकल्प हैं- दाना पड़वाना या संगमरमर लगवाना ।लोग सलाह देंगे कि अजी मकान कौन सा बार-बार बनना है, दिल कड़ा करके संगमरमर ही डलवा लीजिए ।दिल तो कड़ा कर लिया पर जेब ढीली पड़ गई।

 इस तरह के बार-बार दिल कड़ा करने का परिणाम यह हुआ कि सादगी से चुपचाप गृह प्रवेश करने के अतिरिक्त कोई विकल्प नहीं था ।पंडित जी से घर में हवन करवाया और कर लिया गृह प्रवेश ।असन्तुष्ट पत्नी को यह आश्वासन भी दिया था ( वैसे ही आश्वासन जैसे शादी के बाद ३०-३५ वर्षों से देता आ रहा हूँ ) कि बाद में गृह प्रवेश का फ़ंक्शन कर लेंगे ।

 यह सब अब बीते कल की बातें हैं ।गृह प्रवेश की उस घटना को दस वर्ष से भी ज़्यादा समय व्यतीत हो चुका है ।समय के इस अंतराल में बहुत कुछ घट चुका है ।मैं स्वयं जीते-जागते मनुष्य से एक फ़ोटो मात्र बन के रह गया हूँ ।ड्राईंग -रूम के एक कोने में फ़ोटो-फ़्रेम में क़ैद , मैं टंगा हुआ हूँ ।मेरी तस्वीर पर पड़ा प्लास्टिक का हार समय की धूल-माटी से मटमैला पड़ गया है ।ख़ाली पड़ी संपूर्ण कोठी सायं-सायं कर रही है ।पिछले चार महीने से कोठी के मुख्य द्वार पर एक बड़ा सा ताला लटका हुआ है ।अंदर स्थान-स्थान पर मकड़ी के जाले लग गए हैं ।फ़र्श पर धूल की गर्द अटी पड़ी है ।पिछले महीने सात दिनों तक लगातार वर्षा हुई थी ।दीवार के रोशनदान से पानी घुस आया था, जिसने दीवार के डिस्टेंपर पर सीलन भरे डिज़ाइन बना दिए हैं ।

   कितना मोह था मुझे अपनी इस कोठी से।ज़रा भी कहीं खरोंच आई नहीं कि मैं बैठ जाता था उसकी मरम्मत करने।एक बार घर में कुछ मेहमान आए थे ।मेहमानों का तीन वर्ष का पुत्र कहीं से एक पेंसिल पा गया ।बस फिर क्या था, उस बच्चे ने पेंसिल से ड्राईंग-रूम की दीवारों पर कर दी चित्रकारी।बच्चे के माँ-बाप अपने लाड़ले भावी पिकासो की कारगुज़ारियों से प्रफुल्लित हो रहे थे।और मेरा ह्रदय नये डिस्टेंपर की दशा देख अंदर ही अंदर फुँका जा रहा था ।मेहमानों के जाने के बाद , मैं बैठ गया रेगमाल इत्यादि लेकर।पत्नी ने टोका भी कि कल आराम से मिटा लेना यह दाग।किंतु मैं कहाँ मानने वाला था, भुनभुनाता रहा और मिटाता रहा पेंसिल से पड़े दागों को।मैं इसे ईंट-गारे का मकान न मान घर-गृहस्थ मंदिर मानता था।

  किंतु काल के एक झटके से साँस की डोर टूटी और टूट गया यह मोह बंधन भी।कहते हैं कि जितनी साँसें लिखी हैं जीवन-एकाउंट में ,उससे न एक कम और न एक ज़्यादा।कर लो जितनी मोह-माया करनी है।एक दिन तो बंधन टूटने ही हैं।सब कुछ यहीं रह जाने वाला है।तब तो नहीं पर अब समझ आ रहा है जब मेरा वजूद ही मिट गया।

  ३० जनवरी २०२० ,उस दिन उठा तो शरीर में कमजोरी सी महसूस हो रही थी कुछ जी भी घबरा रहा था ।पत्नी ने सांत्वना दी और कहा-“ कुछ नहीं है, बेड टी लो सब ठीक हो जायेगा ।” सुबह के नौ बजते-बजते सारा शरीर पसीने से नहा उठा ।दिल बैठा सा जा रहा था।पत्नी ने पड़ौस के भल्ला जी को बुला लिया ।भल्ला जी भले आदमी हैं, तुरंत अपनी गाड़ी से पास के डाक्टर अवस्थी के यहाँ ले गए ।डाक्टर अवस्थी ने परीक्षण के बाद मेरी पत्नी से कहा कि आप ने अच्छा किया जो समय से यहाँ ले आईं ।ब्लड-प्रेशर गिर गया है , शुगर-लेबल भी डाउन है ।मुझे तुरंत एक नामी नर्सिंग होम में भर्ती करवा दिया गया ।

  मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था।कल तक तो मैं अच्छा-भला था और आज आई सी यू बेड पर हूँ ।जो भी रहा हो ,पर अपनी साँसों की गणना से अनभिज्ञ मैं डाक्टर नर्सों द्वारा दिए जा रहे रंग-विरंगे कैप्सूलों और इंजेक्शनों की बैसाखियों से जीवन पथ पर बने रहने के लिए संघर्षरत था।

  अवचेतन में यह भय भी था कि कहीं यह मृत्यु की खटखटाहट तो नहीं ।किंतु इस विचार को मैंने झटके से दूर कर दिया।जीवन है तो मृत्यु भी सत्य है।यह सत्य सर्वविदित है।किंतु स्वयं की मृत्यु पर कोई विश्वास नहीं करता।मुझे भी भरोसा था कि मैं अभी नहीं मरूँगा ।

   रात एक बजकर बीस मिनट पर शरीर के अंदर खून खींचने और छोड़ने वाले पंप ने एक झटका सा खाया और निष्क्रिय हो गया।मेरी साँसों का एकाउंट खलास हो चुका था।डाक्टर ने सौरी कहकर सफ़ेद चादर मेरे सिर तक खींच दी।मेरी पत्नी किंकर्तव्यविमूढ़ सी खड़ी समझ नहीं पा रही थी कि अचानक यह क्या हो गया।उसे विश्वास नहीं हो पा रहा था कि चालिस वर्षों का जीवन साथी ऐसे फुर्र से उड़ जाएगा ।मेरी पत्नी बॉलीवुड फ़िल्मों एवं टी वी सीरियलों की बेहद शौक़ीन रही है।उनमें होने वाली मृत्यु के अनेक सीन उसके मानस में अंकित थे ,जहाँ मरने वाले की गर्दन अपनी अंतिम-बात कहने के बाद ही ढम्मऽऽ से एक ओर लुढ़कती थी।किंतु यहाँ बैसा कुछ नहीं हुआ ।पलक झपकते ही उसका सिंदूर पुँछ गया था।

   जनवरी महीने की कोहरे भरी उस ठंडी रात में पत्नी और मोहल्ले के चंद करीबी लोग ही वहाँ थे।मैं अब राजेन्द्र गुप्ता नहीं रह गया था, लोग मुझे बॉडी कह कर संबोधित कर रहे थे ।बॉडी एंबुलेंस में रखी गई।संगीता कुंज में मेरे ड्राइंगरूम के ठंडे फ़र्श पर एक चादर के उपर मेरी बॉडी को रख दिया गया।मेरा शरीर मर गया था, किंतु मेरी मोह ग्रस्त आत्मा संगीता कुंज में उपस्थित सब देख सुन रही थी ।

  मृत्यु पूर्व मैं सोचा करता था कि मेरी मृत्यु के बाद पत्नी रो-रो कर बेहाल हो जाएगी ।किंतु पत्नी ने आश्चर्यजनक रूप से अपने को संयत किया हुआ था ।वह मोबाइल से करीबी रिश्तेदारों को मेरे अवसान की सूचना दे रही थी।किंतु सबसे ख़ास अपने इकलौते पुत्र का लंदन में फ़ोन नहीं लग पा रहा था ।हमारा पुत्र सुशांत लंदन में डाक्टर है।अंततः सुबह आठ बजे पत्नी सफल हो गई पुत्र से संपर्क साधने में।पत्नी ने रोते हुए घटना का ब्योरा दिया और दाह संस्कार तक आने को कहा। 

 इधर कई दिनों से देहरादून में ठंड एवं वर्षा के कारण घना कोहरा छाया था।दिल्ली में भी कोहरे के कारण रेल एवं हवाई यातायात प्रभावित हो रहा था।प्रातः के नौ बजे तक मोहल्ले में मेरी मृत्यु का समाचार प्रसारित हो गया था।बाहर बरामदे में दरी बिछा दी गई ।गर्म कपड़ों में लिपटे मोहल्ले वाले मातम-पुर्सी के लिए आने लगे थे।किंतु आने वालों के चेहरे से मातम की अपेक्षा आश्चर्य एवं अचानक यह क्या हो गया कि अनुभूति ज़्यादा झलक रही थी।स्त्रियाँ अंदर पत्नी से संवेदना जतला रही थीं।पत्नी प्रत्येक स्त्री को रात हॉस्पिटल में ह्रदय गति रुकने की घटना का ब्योरा दे रही थी ।साथ साथ साड़ी के पल्लू से आँख भी पोंछतीं जा रही थी ।स्त्रियाँ प्रभु की इच्छा का हवाला देकर सांत्वना दे रही थीं।

  बाहर बरामदे में कथूरिया, शर्मा, वर्मा, खंडूरी, नेगी आदि मोहल्ले वालों की चर्चा वार्ता मैं सुन रहा था-“ कल तक तो अच्छे भले थे……हाँ जी मृत्यु पर किसका ज़ोर….ईश्वर की इच्छा के आगे किसकी चली है….बड़े ही ज़िंदादिल इंसान थे…मोहल्ले की होली-लोढ़ी में आगे बड़ कर सक्रिय रहते थे..आदि आदि ।

  शरीर की नश्वरता , ईश्वर की सत्ता, समय काल की होनी अनहोनी जैसे विषयों पर गंभीर चिंतन चर्चा चल रही थी ।कुछ लोग बाहर गली में खड़े बतिया रहे थे।उनमें से एक व्यक्ति बोला-“दो दिन पहले तो मैंने देखा कि गुप्ता जी सब्ज़ी वाले से सब्ज़ी ख़रीद कर ला रहे थे ।मैंने पूछा गुप्ता जी क्या ख़रीद लाए।कहने लगे आज़ ताजी कमल-ककड़ी आई थी, वहीं लाया हूँ ।”

( मुझे कमल ककड़ी बहुत पसंद है किंतु अकाल मृत्यु ने इन्हें खाने का मुझे मौक़ा ही नहीं दिया)

इस पर दूसरा व्यक्ति बोला-“ जो भी हो गुप्ता जी थे बड़े हंसमुख और रसिक इंसान ।”

 पहला व्यक्ति-“ हंसमुख होना तो समझ आया किंतु यह रसिक होना पल्ले नहीं पड़ा ।”

 दूसरा व्यक्ति-(धीमे स्वर में )-“ अरे वही काम वाली जवान छोकरी चंदा जिस पर गुप्ता जी कुछ ज़्यादा ही मेहरबान होने लगे थे ।बाद में जिसकी चोटी पकड़ गुप्तानी ने बाहर कर दिया था ।

 पहला व्यक्ति-“ धीरे बोलो भाई, लोग आ जा रहे हैं ।

  ( यह वार्तालाप सुनकर मुझे इतना क्रोध आया कि यदि जीवित होता तो इसका मुँह नोच लेता ।)

 इसी बीच एक तीसरे व्यक्ति के आने से दोनों व्यक्ति चुप हो गए ।तीसरा व्यक्ति जिसकी उम्र ७० के आसपास थी , सुरती मलते हुए बोला -“ देखो जी मौत से कौन बचा है ? कल तक गुप्ता जी भले-चंगे थे और आज उनका शरीर पड़ा है , पंछी उड़ गया।”

 पहला व्यक्ति तीसरे की हाँ में हाँ मिलाते बोला- सच है अंकल जी ,एक दिन जाना तो सबको है ।”

 तीसरा व्यक्ति- सुरती को होंठों में दबाते हुए बोला-“ किंतु यह भी सच है कि जैसी मौत गुप्ता जी की हुई ऐसी सज्जन पुरुषों की होती है ।बस चंद घंटे अस्पताल में रहे और फटाफट चलते बने।वरना लोग महीनों खाट से लगे स्वयं भी कष्ट भोगते हैं और परिवार को भी रुलाते हैं।”

  ( बुजुर्ग की बात सुनकर मेरी आत्मा जल-भुन गई। आज यदि इस बुड्ढे को ऐसी फटाफट आसान मौत का विकल्प दिया जाए तो क्या यह स्वीकार कर लेगा।) कुछ देर बाद पता चला कि लड़का लंदन से फ़्लाइट लेने का प्रयास कर रहा है किंतु कोहरे के कारण समय की अनिश्चितता है।मोहल्ले वाले इस समाचार से आश्वस्त हो गए कि आज तो कुछ होने से रहा।बरामदे और गली से भीड़ छँटने लगी थी।शाम होते होते घर नाते रिश्तेदारों से भर गया था।किंतु मेरा शरीर कमरे के फ़र्श पर तनहा पड़ा था ।मेरे नाम का नाता शरीर से टूट गया था, अस्पताल में मुझे बॉडी कहा गया अब मुझे मिट्टी कह कर संबोधित किया जा रहा था ।सब का लक्ष्य है कि शीघ्र से शीघ्र घर से मिट्टी को निकाला जाए। मृत्यु के प्रारंभिक शोक के दौर से उबर चुके रिश्तेदार दुनिया जहाँन कि चर्चा में व्यस्त थे कि अचानक लड़के के देहरादून पहुँचने के फ़ोन ने माहौल में स्फूर्ति का संचार कर दिया ।आनन फ़ानन में मेरी अंतिम यात्रा का घास-फूस और बाँस का वाहन तैयार हो गया। घर के बाहर टैक्सी रुकी ,पुत्र सुशांत और उसकी पत्नी सिर झुकाए धड़धड़ाते घर में घुस गए। पत्नी पुत्र से लिपट गई।अब तक रुलाई का रुका सैलाब फूट पड़ा था ।श्रीमती गुप्ता की रुलाई में अब अन्य महिलाएँ भी सम्मिलित हों गईं ।तब ही किसी बुजुर्ग की जाड़े में शीघ्र सूर्यास्त की चेतावनी ने इस रोने-धोने के दौर पर ब्रेक लगा दिया ।

  “राम नाम सत्य है” के नारों के साथ मेरी अर्थी को शव-यात्रा वाहन में रख दिया गया।संगीता-कुंज ,जिसके निर्माण में महीनों धूप बरसात में खड़ा रहा , उस से मेरा निष्कासन हो गया।किंतु निष्कासन तो शरीर भर का था ,मेरी मोह ग्रस्त आत्मा तो अभी भी कोठी में भटक रही थी। मेरा वजूद मिट भी गया और नहीं भी मिटा।मृत्यु संबंधित चन्द रस्में और हैं जिनके शीघ्र समापन की मेरी पत्नी एवं पुत्र में वार्ता चल रही है ।सुशांत की छुट्टियाँ सीमित हैं इस कारण वह चाहता है कि मृत्यु के बाद की रस्में फटाफट निबटाई जाएँ ।पाश्चात्य वातावरण का प्रभाव उसे दक़ियानूसी परंपराओं को निभाने की स्वीकारोक्ति नहीं देता।रस्मों के पश्चात सुशांत माँ को भी इंग्लैंड ले जाना चाहता है ।पत्नी एक क्षीण सा तर्क देती है कि कम से कम चालिस दिन उसे अपने दिवंगत पति के लिए इस घर में रहना चाहिए ।किंतु परंपराओं का यह तर्क आधुनिकता की नई परिभाषा के आगे टिक नहीं पाता। सुशांत का निर्णय ही सर्वोपरि रहा।मृत्युपरांत की रस्मों को समयाभाव की सीमाओं के अंदर जैसे-तैसे निर्वाह कर दिया गया ।मेरा फ़ोटो जो तेरहवीं के दिन रखा गया था, उसे ड्राइंग रूम की दीवार के कोने में लगा दिया गया ।फ़ोटो स्वामी मर चुका है , इसका प्रतीक प्लास्टिक का हार फ़ोटो पर टांग दिया गया ।मैं फ़ोटो में समाया टंगा रहा। संगीता कुंज वीरान हो गया ।मैं हूँ भी और नहीं भी।पिछले चार महीने से कोठी के गेट पर ताला लटका हुआ है ।बनवाते समय कुछ सपने थे कि इस कोठी के प्रांगण में कभी पौत्र पौत्रियों की तुतलाती बोलियाँ गूँजेंगी ।किन्तु इसमें तो सन्नाटे की साँय-साँय के अतिरिक्त कुछ नहीं गूँज रहा।  ऐसे ही समय व्यतीत हो रहा था…दिन..रात…महीने…कि एक दिन ऐसा लगा कि कोठी के गेट पर कुछ हलचल है ।कार के गेट खुलने बंद होने की आवाज़, लोगों के बोल चाल की मिलाजुली आवाज़ें…ताले में चाबी लगने की खटखटाहट ।चूँ ऽऽ…चूँ ऽऽ की आवाज़ के साथ मुख्य द्वार खुला।बाहर से अंदर आते प्रकाश में मैंने आश्चर्य से देखा कि पत्नी, पुत्र एवं पुत्र वधु अंदर प्रवेश कर रहे हैं।चार महीने बाद कोठी के अंधकार में बिजली का प्रकाश फैल गया।वीरान सी पड़ी कोठी पुनः आबाद हो गई। अगली सुबह पुत्र अपने मोबाइल से किसी से बात कर रहा था- “जी हाँ  ! हम लोग कल ही पहुँचे हैं ।ज़्यादा छुट्टियाँ नहीं हैं .. शीघ्र ही डील फ़ाइनल कर देनी है ।हाँ हाँ ठीक है, मैं आपकी प्रतीक्षा कर रहा हूँ ।”  मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि कौन आने वाला है और कौन सी डील फ़ाइनल होनी है ।मेरी उत्सुकता को ज़्यादा प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ी ।साय: चार बजे वह अपरिचित आदमी जिसे सुशांत, गिदबानी जी कह कर संबोधित कर रहा था, सोफ़े पर बैठ गया।गिदबानी की उम्र ५० के आसपास थी ।सिल्क के कुर्ते में उसके साँवले चेहरे से दुनियादारी टपक रही थी ।मोटी गर्दन पर लटकती सोने की चेन उसके वैभव को प्रगट कर रही थी ।तब तक मेरी पत्नी चाय की ट्रे ले आई थी । वार्ता के अंशों से मुझे आभास हो गया कि गिदबानी एक ठेकेदार है और इस कोठी को ख़रीदने का इच्छुक है ।

“ गिदबानी जी , हम सब तो अब इंग्लैंड में ही बस गये हैं….अब इस कोठी का हमारे लिए कोई उपयोग नहीं बचा है ।और न ही हमारे पास इतना टाईम है कि इसके मोल-भाव के पचड़े में पड़ें ।अत: आपसे जो पचास लाख में बात हुई थी, उसे हम फ़ाइनल करते हैं ।”- सुशांत ने अंतिम निर्णय देते हुए कहा ।“ ठीक है जी… मैंने सब काग़ज़ात तैयार करवा लिए हैं ।कल रजिस्ट्री ऑफिस में चलकर रजिस्ट्री पर दस्तख़त हो जाएँगें ।”- गिदबानी ने चाय की चुस्की लेते कहा। संगीता कुंज बिक चुका था ।जो नहीं बिका , उसके निपटाने की प्रक्रिया चल रही थी ।फ़र्नीचर, गद्दे ,बर्तन आदि मोटा सामान आस-पड़ौस में ओने-पौने दामों में बेच दिया गया ।मेरे कपड़े -जूते आदि का एक अलग पैक तैयार किया जा रहा था ।इसे कोढ़ी खाने में दान किया जाना है ।पत्नी मेरा वह सूट पैक कर रही थी जिसे सुशांत की शादी पर मैंने बड़े चाव से सिलवाया था।मुझे सूट के भाग्य पर तरस आ रहा था।कहाँ तो कल यह शादी की रौनक़ में इतरा रहा था और अब यह किसी कुष्ठ रोगी की काया पर टंगेगा । जिस गृहस्थी का सामान जुटाने में मेरा संपूर्ण जीवन निकल गया, उसे निपटाने में केवल दो दिन लगे।आज रात की फ़्लाइट से इन सब की वापसी है।टैक्सी आ गई है ।बड़े-बड़े सूटकेस टैक्सी पर लादे जा रहे हैं ।पुत्र और पत्नी अंतिम बार कोठी में यह देखने आते हैं कि कहीं कुछ छूटा तो नहीं…..नहीं कहीं कुछ नहीं छूटा सिर्फ़ कुछ यादों के।पत्नी भावुक हो आई है ….इस कोठी, इस मोहल्ले, इस शहर से अंतिम विदाई के क्षणों में ।वह जाने लगती है….।…..मैं ,जो कुछ बोल नहीं सकता किंतु मेरे अंदर कुछ घुट रहा है…. मैं उसे याद दिलाना चाहता हूँ कि तुम कुछ भूल रही हो… मेरा फ़ोटो जो ड्राइंग रूम के कोने में लगा है…. उसे तुम भूल रही हो।किंतु मेरी निशब्द आवाज़ उसके कानों तक नहीं पहुँचती।बाहर टैक्सी के इंजन की घरघराती आवाज़ दूर होती चली गई ।नंगी सूनी दीवारों वाली वीरान कोठी में मेरा फ़ोटो अब भी अपने निष्कासन की प्रतीक्षा में टँगा है। पिछले जन्म के मेरे अपनों को गए हुए कितने दिन गुजरे ,मुझे नहीं पता ।….और एक दिन फिर कोठी खुली , गिदबानी और मज़दूर से लगने वाले कुछ लोग अंदर आ गए।संभवत कोठी की साफ़-सफ़ाई, रंगाई-पुताई का कार्य आरंभ हो रहा है ।मज़दूर दीवारों की घिसाई कर रहे थे कि एक मज़दूर की नज़र मेरे फ़ोटो पर पड़ी ।मेरा दिल धड़कने लगा।  “ ठेकेदार जी , यह एक फ़ोटो टँगा है, इसका क्या करना है ?”-मज़दूर ने पूछा ।ठेकेदार जो मुख्य कारीगर से चर्चा में व्यस्त था कहा -“ उतार कर कचरे में डाल दो ।” फिर अचानक कुछ सोच कर गिदबानी ने कहा-“ ठहरो ! यह शायद कोठी के मालिक की तस्वीर है ।इंग्लैंड वाले लड़के से भले ही यह कोठी मैंने ख़रीदी हो किंतु असली मालिक तो यह फ़ोटो वाला व्यक्ति ही है ।” फ़ोटो उतारता मज़दूर असमंजस में पड़ गया । “ फ़ोटो अख़बार में पैक करके मेरी कार में रख दो।कल मुझे काम से हरिद्वार जाना है।”-गिदबानी ने मज़दूर को आदेश देते कहा । अगले दिन गिदबानी की कार की पिछली सीट पर पड़ा मैं अपने भविष्य को लेकर असमंजस में हूँ ।कार हरिद्वार के घाट पर रुकती है ।गिदबानी कार से फ़ोटो उठाता है-“ झूले लाल जी ,मुझे क्षमा करना और इसकी आत्मा को शांति प्रदान करना।

   गिदबानी श्रद्धा से फ़ोटो को गंगा की लहरों में समर्पित कर देता है |                 लेखक - नरेश वर्मा 

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  जानकारी काल      वर्ष-26   अंक - 02        जुलाई - 2025 ,  पृष्ठ 43                www.sumansangam.com      प्रधान संपादक व  प्रकाशक  सती...