बुधवार, 19 अक्टूबर 2022

दान

 


दान 

      एक बुज़ुर्ग शिक्षिका भीषण गर्मियों के दिन में बस में सवार हुई। वह पैरों के दर्द से बेहाल थी लेकिन बस में सीट न देख कर जैसे – तैसे

    अभी बस ने कुछ दूरी ही तय की थी कि एक उम्रदराज औरत ने बड़े सम्मानपूर्वक आवाज़ दी, "आ जाइए मैडम, आप यहाँ बैठ जाएं” कहते हुए उसे अपनी सीट पर बैठा दिया। खुद वो गरीब सी औरत बस में खड़ी हो गयी। मैडम ने दुआ दी, "बहुत-बहुत धन्यवाद, सच में मेरी बहुत बुरी हालत थी।" ऐसा सुनकर  उस गरीब महिला के चेहरे पर एक सुकून भरी मुस्कान फैल गयी।

 कुछ देर बाद शिक्षिका के पास वाली सीट खाली हो गयी लेकिन महिला ने एक और महिला को, जो एक छोटे बच्चे के साथ यात्रा कर रही थी और मुश्किल से बच्चे को ले जाने में सक्षम थी, को सीट पर बिठा दिया।

  अगले पड़ाव पर बच्चे के साथ महिला भी उतर गयी।सीट खाली हो गयी लेकिन नेकदिल महिला ने बैठने का लालच नहीं किया बल्कि बस में चढ़े एक कमजोर बूढ़े आदमी को बैठा दिया जो अभी - अभी बस में चढ़ा था।

 कुछ देर बाद सीट फिर से खाली हो गयी। बस में अब गिनी – चुनी सवारियां ही रह गयी थीं। अब उस अध्यापिका ने महिला को अपने पास बिठाया और पूछा, "सीट कितनी बार खाली हुई है लेकिन आप लोगों को ही बैठाती रही, खुद नहीं बैठी, क्या बात है?"

   महिला ने कहा, "मैडम, मैं एक मजदूर हूं । मेरे पास इतने पैसे नहीं हैं कि मैं कुछ दान कर सकूं।" अत: पुण्य कमाने के लिए मैं क्या करती हूं कि कहीं रास्ते से पत्थर उठाकर एक तरफ कर देती हूं,  कभी किसी जरूरतमंद को पानी पिला देती हूं, कभी बस में किसी के लिए सीट छोड़ देती हूं, फिर जब सामने वाला मुझे दुआएं देता है तो मैं अपनी गरीबी भूल जाती हूं । दिन भर की थकान दूर हो जाती है ।  और तो और जब मैं दोपहर में रोटी खाने के लिए बैठती हूं ना बाहर बेंच पर, तो ये पंछी - चिड़ियां पास आ के बैठ जाते हैं। रोटी डाल देती हूं इनके आगे छोटे-छोटे टुकड़े करके । जब वे खुशी से चिल्लाते हैं तो उन भगवान के जीवों को देखकर मेरा पेट भर जाता है। पैसा धेला न सही, सोचती हूं दुआएं तो मिल ही जाती है ना मुफ्त में। फायदा ही है ना और हमने लेकर भी क्या जाना है यहां से ?

 वह शिक्षिका अवाक रह गयी। एक अनपढ़ सी दिखने वाली महिला इतना बड़ा पाठ जो पढ़ा गयी थी उसे ।अगर दुनिया के आधे लोग ऐसी सोच को अपना लें तो धरती स्वर्ग बन जाएगी।

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