सोमवार, 30 जून 2025

जानकारी काल हिन्दी मासिक जुलाई -2025

 जानकारी काल 



   वर्ष-26   अंक - 02        जुलाई - 2025 ,  पृष्ठ 43                www.sumansangam.com    





 प्रधान संपादक व  प्रकाशक

 सतीश शर्मा 



 कार्यालय

 ए 214 बुध नगर इंद्रपुरी

 नई दिल्ली 110012


 मोबाइल

  9312002527


 संपादक मंडल

 सौरभ  शर्मा,

कपिल शर्मा,

गौरव शर्मा,

डॉ अजय प्रताप सिंह,

 करुणा ऋषि, 

डॉ मधु वैध,

राजेश शुक्ल  


प्रकाशक व मुद्रक 

सतीश शर्मा के लिय ग्लैक्सी प्रिंटर-106 F,

कृणा नगर नई दिल्ली 110029, A- 214 बुध नगर इन्दर पूरी नई दिल्ली  110012 से प्रकाशित |


सभी लेखों पर संपादक की सहमति आवश्यक नहीं है पत्रिका में किसी भी लेख में आपत्ति होने पर उसके विरुद्ध कार्रवाई केवल दिल्ली कोर्ट में ही होगी 

R N I N0-68540/98

मूल्य 02-50 


sumansangam.com

jaankaarikaal.blogspot.com

अनुक्रमणिका

अपनों से अपनी बात - 3 

गुरु ज्ञान और आध्यात्मिक विकास का स्त्रोत - 4 लेख

सिंदुरी हनुमान  - 7 लेख

भारतीय भाषाओं का महत्व - 10 लेख

विधान पालिका,न्यायपालिका और कार्यपालिका - 12 लेख

आप जानते हैं एक पेड़ आपके लिए क्या करता है - 13 लेख

 संस्कार - 14 कहानी

अधोमुखव्श्रानासन - 16 आसान 

रिश्तों की अहमियत - 17 कहानी 

मंगल पांडे - 18 लेख

उदास खामोश नंदिनी से एक गुजारिश - 19 कविता 

परिवर्तन - 20 कहानी 

चन्द्रशेखर आजाद - 23 लेख

दीवार का सहारा - 24

पन्ना रत्न - 25 लेख

बहु अपनी ननद से कुछ सीख - 26 कहानी 

जून माह का पंचांग - 30 ज्योतिष 

देव शयनी एकादशी - 34 एकादशी कथा 

कामिका एकादशी - 35 एकादशी कथा 

जूलाई 2025 के महत्वपूर्ण दिवस - 36

गुरु आश्रम की ओर  - 38 लेख

गुमराह - 42 कहानी  




अपनों से अपनी बात 

कश्मीर, आतंकवाद और युद्ध नीति को लेकर नए भारत का सोच और नीति एकदम स्पष्ट है। शांति का पक्षधर भारत युद्ध का समर्थन नहीं करता, लेकिन यदि कोई छेड़ेगा तो उसे छोड़ेगा भी नहीं। यह दिख भी रहा है कि नया भारत गोली का जवाब गोले से दे रहा है।भारत अब किसी के दबाव में नहीं आएगा। पाकिस्तान में आतंकवाद की नर्सरी चलाने वाले आतंकी आकाओं को उन्हीं की भाषा में जबाब देकर भारत ने पाकिस्तान को यह संदेश भी दे दिया है कि उसके द्वारा प्रायोजित हर आतंकी घटना को भारत अपने विरुद्ध युद्ध मानकर उसका करारा जबाव देगा। भारत की इस नीति को लेकर अमेरिका जैसी वैश्विक शक्ति यदि निहित स्वार्थवश कोई हस्तक्षेप भी करना चाहेगी तो भारत उसके दबाव में नहीं आएगा। भारत अपने पड़ोसी देशों के साथ होने वाले किसी भी अंतर्विरोध के समाधान हेतु किसी तीसरे की मध्यस्थता को भी स्वीकार नहीं करना चाहेगा। वैश्विक शांति और स्थिरता के लिए भारत हमेशा प्रयत्नशील रहता है। आज इजरायल के लिए हमास और हाउती जैसे आतंकी संगठन केवल इसलिए चुनौती बने हुए हैं, क्योंकि ईरान जैसा ताकतवर इस्लामिक देश इन आतंकी संगठनों कीहर तरह की मदद कर रहा है। इजरायल के विरुद्ध ईरान का यह प्राक्सी वार का खेल वैसा ही है जैसा कि पाकिस्तान भारत के साथ खेलता रहा है। ऐसे में अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए ईंट का जवाब पत्थर देना हर स्वाभिमानी देश के लिए लाजिमी है।

अहमदाबाद हवाई बड़ी दुर्घटना के बाद देश में संवेदना की एक लहर तो बनी, लेकिन लहर थमते ही शासन, प्रशासन और व्यवस्था की जवाबदेही भी बह जाती है। जहां दुर्घटनाओं को 'नियति' और 'दुर्भाग्य' बता कर जिम्मेदार लोग खुद को निर्दोष घोषित कर लेते हैं। रेलवे हो या अस्पताल, विमान हादसा हो या स्कूल की छत गिरना-अधिकतर मामलों में पाया कि सुरक्षा मानकों की खुली अनदेखी, प्रशासनिक उदासीनता और भ्रष्ट अनुज्ञापन प्रक्रिया दुर्घटनाओं की मूल वजह होती हैं। किंतु किसी मंत्री, अफसर या जिम्मेदार संस्था पर कार्रवाई दुर्लभ है। क्यों? हमारे देश में नीति निर्माण और उसके क्रियान्वयन के बीच एक गहरी खाई है। सुरक्षा मापदंड कागज पर होते हैं, लेकिन जमीनी हकीकत में उनकी अनुपालना पर किसी की रुचि नहीं। जांच समितियां बनती हैं, रिपोर्ट आती हैं, पर निष्कर्ष केवल कागजों तक सीमित रह जाते हैं। समस्या प्रणालीगत है। समाधान भी प्रणालीगत सुधार से ही संभव है। जब तक संस्थागत जवाबदेही को कानूनी व नैतिक रूप से अनिवार्य नहीं किया जाएगा, तब तक 'घटनाएं' जारी रहेंगी, और सत्ता में बैठे लोग केवल मुआवजे और शोक संदेशों से अपनी जिम्मेदारी निभाते रहेंगे। आवश्यकता केवल संवेदना प्रकट करने की नहीं, बल्कि ठोस संस्थागत सुधार की है। दुर्घटनाओं की नियति मानकर छोड़ देना लोकतंत्र का अपमान है । 


गुरु, ज्ञान और आध्यात्मिक विकास का स्रोत

सतीश शर्मा 

गुरु पूर्णिमा, आषाढ़ मास की पूर्णिमा को मनाई जाती है, और यह दिन गुरुओं के प्रति सम्मान और श्रद्धा व्यक्त करने के लिए समर्पित है। इस दिन, शिष्य अपने गुरुओं का पूजन करते हैं, उनसे आशीर्वाद प्राप्त करते हैं, और उनके प्रति अपनी कृतज्ञता व्यक्त करते हैं। गुरु पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है, क्योंकि इस दिन वेदों के रचयिता महर्षि वेद व्यास का जन्म हुआ था। गुरु बिना ज्ञान नहीं मिलता ओर ज्ञान नहीं तो जीवन में सम्मान भी नहीं मिलेगा। 

हिन्दू-जीवन में गुरू का महत्व बहुत अधिक है। हम अपनी माँ और पिताजी को देव-समान मानते हैं। उसके बाद हमें समाज में जो स्थान देते हैं, वह अपना गुरू है। इसलिए प्राथमिक प्रकाश जब माता-पिता देते हैं उसके बाद ज्ञान का प्रकाश दुनिया की जानकारी देने वाले व्यक्ति को हम गुरू कहते हैं। इसलिए माता भी देव-समान हैं। गुरू भी देव समान है। इसलिए अपने उपनिषदों में सर्वप्रथम कहा- मातृ देवो भव, माता देव के समान हो, इसके बाद पितृ-देवो भव पिता भी ईश्वर के समान उसके बाद तीसरा शब्द है आचार्यः देवो भव गुरू भी देव के समान हैं। इसलिए जो हमें पाशविक जीवन से मानवीय जीवन की ओर ले जाते हैं सभी हमारे देव हैं। इसलिए माता-पिता गुरू तीनों देव समान हैं।

जब गुरू का महत्व देव समान है तो अपनी संस्कृति ने दूसरा भी एक पाठ सिखाया। आदमी कितना भी 



बड़ा हो गुरू के बिना उसकी शिक्षा सम्पूर्ण नहीं हो पाती। इसलिए हम देखते हैं, साक्षात् श्रीकृष्ण परमात्मा, वे ज्ञान का अधिष्ठाता थे तो भी उनको एक गुरू के यहां जाकर गुरू के चरणों में बैठकर अपनी शिक्षा प्रारम्भ करनी पड़ी और पूर्ण करनी पड़ी। वे स्वयं ज्ञानी थे तो भी संदीपनी महर्षि के आश्रम में जाकर उनको अपना गुरू के नाते उन्होंने स्वीकारा। प्रभु रामचन्द्र जी वह भी त्रिकाल ज्ञानी थे तो भी वशिष्ठ को गुरू के नाते उन्होंने अपनाया। आदमी अत्यन्त महान हो, तो भी गुरू के नाते और एक व्यक्ति के चरणों के पास जाकर विनम्रता से बैठकर शिक्षा ग्रहण करनी चाहिये। गुरू के बिना ज्ञान सम्पूर्ण नहीं हो जाता यह अपनी संस्कृति की शिक्षा है।

 “गुरुर्ब्रह्मा, गुरुर्विष्णु, गुरुर्देवो महेश्वरः। गुरुः साक्षात् परब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः।”

गुरु को ज्ञान, मार्गदर्शन और आध्यात्मिक विकास का स्रोत माना जाता है। गुरु पूर्णिमा, गुरु के महत्व को स्वीकार करने और उनके प्रति सम्मान व्यक्त करने का दिन है। 

गुरु बिन भव निधि तरइ न कोई , जौ बिरंचि संकर सम होई।।

अर्थात गुरु के बिना कोई भवसागर नहीं तर सकता, चाहे वह ब्रह्मा जी और शंकर जी के समान ही क्यों न हो। जिस ज्ञान की प्राप्ति के बाद मोह उत्पन्न न हो, दुखों का शमन हो जाए तथा परब्रह्म अर्थात स्वयं के स्वरूप की अनुभूति हो जाए, ऐसा ज्ञान गुरु कृपा से ही प्राप्त हो सकता है।

गुरु का स्थान भगवान से भी ऊंचा है इसी लिए कबीर जी ने कहा है –

गुरु गोबिंद दोऊ खड़े, का के लागौं पांय। बलिहारी गुरु आपने, जिन गोबिंद दियो बताय॥

यदि गुरु और भगवान दोनों एक साथ खड़े हों तो पहले गुरु के चरणों में प्रणाम करना चाहिए, क्योंकि गुरु ने ही हमें भगवान तक पहुंचने का रास्ता दिखाया है।

बौद्ध धर्म में, गुरु पूर्णिमा को भगवान बुद्ध के पहले उपदेश की वर्षगांठ के रूप में मनाया जाता है। 

गुरु पूर्णिमा, ज्ञान और शिक्षा के महत्व को दर्शाती है। यह दिन छात्रों और शिक्षकों के बीच एक मजबूत बंधन बनाने और ज्ञान के प्रसार को बढ़ावा देने का भी अवसर है। गुरु पूर्णिमा, शिष्यों के लिए अपने गुरुओं के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का एक विशेष अवसर है, जिन्होंने उन्हें ज्ञान, मार्गदर्शन और आध्यात्मिक विकास प्रदान किया। गुरु पूर्णिमा एक ऐसा त्योहार है जो गुरु के महत्व, ज्ञान की शक्ति, और शिष्य और गुरु के बीच के पवित्र बंधन को दर्शाता है। 

गुरु मंत्र आमतौर पर आपके गुरु या आध्यात्मिक शिक्षक द्वारा दिया जाता है। जब आप किसी आध्यात्मिक मार्गदर्शक को गुरु के रूप में स्वीकार करते हैं, तो वे आपको गुरु मंत्र प्रदान करते हैं। गुरु मंत्र के साथ दीक्षा (दीक्षा) तभी दी जाती है जब गुरु ऐसा करने के लिए अनुमति देते हैं। 

गुरु मंत्र कौन दे सकता है? आध्यात्मिक गुरु –  गुरु मंत्र आमतौर पर आपके आध्यात्मिक गुरु द्वारा दिया जाता है। गुरु की अनुमति –  दीक्षा के लिए, गुरु को स्वयं को अनुमति देनी होती है, और वे किसी 




को भी दीक्षा देने के लिए नहीं कह सकते। 

परंपरागत गुरु –  परंपरा के अनुसार, गुरु मंत्र का हस्तांतरण गुरु से शिष्य तक किया जाता है। 

गुरु मंत्र गुरु और शिष्य के बीच एक महत्वपूर्ण आध्यात्मिक संबंध स्थापित करता है। गुरु मंत्र आध्यात्मिक प्रगति में सहायता करता है और इसे आगे बढ़ाता है। गुरु मंत्र ज्ञान और बुद्धि प्रदान करने में मदद करता है। आध्यात्मिक यात्रा पर, गुरु मंत्र एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है और आध्यात्मिक मार्गदर्शन और ज्ञान प्रदान करता है। 

गुरु द्वारा किये गये अमूल्य उपकार की अनुभूति व्यक्ति को कृतज्ञता ज्ञापन एवं समर्पण की स्वाभाविक प्रेरणा देती है। भारतीय संस्कारों में कृतज्ञता ज्ञापन स्वाभाविक है। गुरु के प्रति इसी कृतज्ञता ज्ञापन एवं समर्पण का प्रतीक हैं गुरु को दक्षिणा । गुरुकुलों में शिष्य शिक्षा समाप्ति के बाद अपने गुरु को दक्षिणा देकर यह कृतज्ञता प्रकट करते रहे हैं। शिष्य अपनी क्षमता अथवा अपने गुरुजी की इच्छानुसार यह दक्षिणा देते थे। देश, काल, परिस्थिति के अनुसार दक्षिणा की प्रक्रिया और स्वरूप भिन्न रहे होंगे। परन्तु दक्षिणा का विधान भारतीय समाज में अविरल दीर्घकाल से मान्य रहा है। गुरु दक्षिणा कोई दान नहीं है गुरु के प्रति किया गया सम्मान समर्पण भाव है । भारतीय समाज में व्यास पूर्णिमा  वाले दिन लोग अपने गुरु के पास जाते हैं और उनको वस्त्र और वर्ष भर में जमा की हुई समर्पण राशि भेंट करके आते हैं । 



"किसी भी समाज को समर्थ होने के लिये और वह शक्ति सदा-सर्वदा एक जैसी बनी रहे इसके लिये समाज में समाज हितेच्छु, प्रामाणिक, कष्ठ उठाने के लिये सदैव तत्पर, उद्योगशील, कर्तव्यदक्ष तथा त्यागी कार्यकर्ताओं की उज्जवल परम्परा निर्माण होनी चाहिये और यह कार्य निरन्तर होते रहने चाहिये। इस मूलगामी परिस्थिति निरपेक्ष प्रवाह का कार्य राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने धारण किया है।”




सिंदूरी हनुमान

– गोपाल माहेश्वरी

रोशन ने शाला से लोटते हुए रास्ते में सुना कि पहलगाम में आतंकी हमला हुआ है। निर्दोष पर्यटकों की हत्या से सारा देश दहला हुआ है। उसका भी खून खौल उठा। वह अपने मित्र से बोला “कई बरसों बाद लोग घूमने आने लगे थे। हमारा तो घर ही इन पर्यटकों के कारण चलता है।” मित्र ने कहा “मेरे अब्बा तो पहलगाम में आने वालों को घुड़सवारी ही करवाते हैं।” उसके स्वर में भी चिंता थी।

घर आते ही माँ ने गोदी में खींच लिया फिर लाड़ करते हुए रोने लगी। रोशन घबरा गया “क्या हुआ माँ? रो क्यों रही हो? बीमार हो? बाजार से दवाई ला दूँ?” वह बस्ता रखकर बाहर जाने लगा।

माँ ने रोक लिया “बिना बहुत जरूरी काम के बिल्कुल बाहर नही निकलना।” माँ का स्वर कठोर था।

वह कुछ पूछता समझता तब तक पिताजी आ गए बोले “चारों ओर विरोध के गुस्से और बदले के स्वर गूंज रहे हैं। अभी सुनकर आ रहा हूँ।” संदर्भ पहलगाम की घटना का ही था। पिताजी कह रहे थे “प्रधानमंत्री मोदी छोड़ेंगे नहीं आतंकियों को, कुछ बहुत बड़ा एक्शन होने वाला है।” फिर माता-पिता कुछ जरूरी सामान समेटने लगे मानो कहीं जाने की तैयारी हो।

छःसात मई की वह रात, भारतीय सेना ने अचूक निशाने साधकर पाकिस्तान की धरती पर नौ आतंकी अड्डों को नष्ट कर दिया।

सुरक्षा कारणों से सीमावर्ती क्षेत्रों में इंटरनेट संचार व्यवस्था ठप्प कर दी गई थी। सीमा से सटे गाँव खाली करवा लिए थे। देश-विदेश में टीवी पर देखकर बाकी लोग जो भयानकता और क्रोध घर बैठे 

अनुभव कर रहे थे उसे इन सीमाओं के रहवासी कई गुना अनुभव कर रहे थे। शालाएं बंद, बाजार बंद, 


न खेत पर जाना, न बकरियां लेकर, खिड़की दरवाजे बंद कर बैठे रहो, घर से दूर, पर अधिक सुरक्षित स्थान पर। वहाँ भी सायरन बजते ही बत्तियां भी बंद, हलचल बंद, ब्लेक आउट।

रोशन सोच रहा था ‘सामान्य परिस्थितियों में सारा परिवार सारे काम धंधों से छुट्टी पाकर घर में पूरे-पूरे दिन-रात एक साथ बैठे तो हम बच्चों को मानो वरदान मिला हो ऐसा आनंद ही होता। माँ बच्चों का मनभावन भोजन बनाती, पिता बच्चों को अपने-अपने आजीविका के गुर सिखाते और यदि बच्चे उसमें रस नहीं लेते दिखाई देते तो अपने क्षेत्र के रोचक कहानी-किस्से चलते। दादी कोई लोक गीत छेड़ देती तो घर का कोई न कोई सदस्य किसी लोक वाद्य को छेड़ने से अपने आप को रोक न पाता। थोड़ी देर बाद बाहर प्रकृति के बनाए हरे-भरे मैदान पर खेल की मंडली जम ही जाती।’ लेकिन अभी सबका साथ रहना सामान्य न था, प्रतिपल कुछ भी आकस्मिक, भयानक से भयानक और अनचाहा, अनसोचा घटित हो सकता था।

रोशन का परिवार एक अस्थायी आवास में आ चुका था। लगभग दस बरस के रोशन ने अपनी माँ की गोद में सिर रखकर लेटे-लेटे पूछा “माँ!आखिर यह पाकिस्तान शान्ति से क्यों नहीं रहता?” वह इस बंधन भरे वातावरण से ऊब रहा था।

एक ग्रामीण माता भला ऐसे गंभीर प्रश्न का क्या उत्तर दे सकती थी, बोली “होते हैं कुछ लोग जिन्हें न खुद सुख से रहना है न दूसरे को रहना है।” हर परिस्थिति का ताला मनुष्य पहले अपने अनुभव की चाबी से ही खोलने का प्रयास करता है। माँ ने भी यही किया। बताने लगी “तेरी चाची को ही देख, हँसते-खेलते, साथ रहते सारे परिवार का बंटवारा करवा कर अलग हो गई पर रहना तो पड़ौस में ही था, तो भी रोज की किच-किच। बड़े-बड़े खूंखार कुत्ते पाल लिए। खुद से सम्हलते नहीं और कभी भी हमारे बाड़े में घुस आते, कभी किसी बच्चे को काट लेते कभी, कोई निर्दोष को उठा ले जाते।”

“हाँ, यह तो बिलकुल सही है। मैंऔर मेरे दोस्तों को भी खेलते समय हमेशा डर बना रहता है। न जाने कब बाड़ फलांग कर वे भयंकर कुत्ते झपट पड़ें।” रोशन ने आँखें फैलाकर कहा।

“बस वही रिश्ता, वहीं स्थिति है हमारी और पड़ोसी देश की। पहलगाम में भी तो ऐसे ही कुछ भयंकर कुत्तों जैसे आतंकी मार गए बेचारे निर्दोष पर्यटकों को।” माँ ने सिहरते हुए कहा।

“तो हम भी पाल लें कुछ…” रोशन की बात पूरी होने से पहले ही समझकर माँ ने उसके मुंह पर हाथ रखकर चुप करा दिया।

“फिर हममें और उनमें क्या अंतर रह जाएगा। जैसे चाची के कुत्तों के लिए हमारी लाठी तैयार रहती है वैसे ही आतंकियों के इलाज भी हैं हमारे पास।” उसने समझाया।

तभी सायरन गूंज उठे पलभर में सारी बत्तियां गुल कर दीं गईं। माँ ने तो चूल्हा भी बुझा दिया और दादी भगवान जी का दिया तक जलाते-जलाते हाथ जोड़कर रुक गईं। पता नहीं चूल्हे पर चढ़ी सब्जी पकी भी या अधपकी ही रह गई।

काले आसमान पर तेजी से चमकती रोशनी के गोले जैसे उभरते और लाल रोशनी के साथ बुझ जाते। 



रोशन का मन हुआ एक बार यह विचित्र आतिशबाजी बाहर निकलकर देखे लेकिन उसे दरवाजे की और बढ़ते देख पिता ने हाथ पकड़कर रोक लिया और होठों पर अंगुली रखें उसे चुपचाप रहने का संकेत किया। सभी अंदर एक कोने में पास-पास सटकर बैठ गए। उफ्फ कैसा डरावना सन्नाटा था थोड़ी दूर गोलियों, धमाकों और आसमान में दुश्मन के ड्रोन मार गिराने की आवाजें बस, जैसे संसार में इनके अलावा कोई आवाज ही न बची थी उन पलों में।

इस भयानक रात को गुजरे तीन दिन बीत गए। इस बीच गाँव वालों के साथ रोशन के पिता भी गए थे दिन में, दुश्मन के ड्रोनों के परखच्चे ढूँढ कर सेना को बताने। इसी बीच खबर आई की दुश्मन पड़ोसी ने अपनी बरबादी से डरकर लड़ाई रोकने की प्रार्थना की जिसे हमारी सेना के जिम्मेदार अधिकारियों ने मान लिया है।

सतर्क सेनाएँ जानती थीं घायल कुत्तों के अधिक पागल हो जाने का खतरा है लेकिन वे चोंट खाकर डरे हुए भी हैं। आए तो बचेंगे नहीं, जहन्नुम में जाएँगे अपने कल ही मारेंगे सौ से ज्यादा साथियों, रिश्तेदारों के पास। सीमाएं सेना की प्रतिपल निगरानी में अधिकतम सतर्कता से सुरक्षित थीं।

रोशन आज सप्ताह भर बाद अपने घर लौटा। घर की दीवारें भारी गोलाबारी से छलनी थी। अगले ही दिन कुछ और मित्र मिल गए तो चुपचाप निकल पड़े अपनी शाला को देखने। घर की तरह ही शाला की दीवारों के अंदर बने छेद जैसे इन बच्चों के भविष्य को छलने का ही षड्यंत्र था। लेकिन शाला की छत में बन चुके छेद से भी बच्चे अपना आकाश ताक रहे थे।

बच्चों की चर्चा का मुख्य विषय था कि आखिर आतंकी हमारी सीमा में घुस कैसे आते हैं? कहीं न कहीं कोई हमारे ही लोग उनकी सहायता कर देते होंगे? आशंका आधारहीन न थी। लेकिन ये बच्चे कतिपय भटके हुए विरोधी नेताओं की तरह तो थे नहीं कि यह प्रश्न उछालकर बस सरकार को घेरने में जुट जाते।

इस बाल मंडली ने एक ही निर्णय लिया हमारी नन्हीं आँखें अब अधिक खोजी रहेंगी, कान अधिक चौकन्ने और पैर पल भर भी देर न करेंगे कुछ भी गड़बड़ दिखते ही थाने या सुरक्षा चौकी तक सूचना पहुँचाने में। हम पहचानते हैं कौन हमारा है कौन बाहरी? हर बाहरी दुश्मन नहीं होता पर कोई भी बाहरी दुश्मन हो सकता है। बच्चे बातें करते पास ही पेड़ के नीचे सिंदूर पुते पत्थर से बने हनुमान जी के पास तक आ गए थे। बच्चों ने अपने माथे पर सिंदूर का टीका लगाया। उन्हें जरा भी डर नहीं था कि कोई उन्हें मार देगा उनका धर्म पहचान कर। रोशन ने कहा “हमारे प्रधानमंत्री जी ने कहा है ऑपरेशन सिंदूर अभी जारी है इसका तो हर पत्थर को अपनी जगह बनना होगा एक सिंदूरी हनुमान।”

(लेखक इंदौर से प्रकाशित ‘देवपुत्र’ बाल मासिक पत्रिका के कार्यकारी संपादक है।)



भारतीय भाषाओं का महत्व 

सुरेश सरदाना नोएडा  

भारत एक बहुभाषी देश है | यहां अलग अलग राज्यों और समुदायों में अलग अलग भाषाएं बोली जाती हैं क्योंकि भाषा केवल संचार का ही माध्यम नहीं है अपितु संस्कृति, परंपरा और सामाजिक पहचान का भी मुख्य बिंदु है और हां भारतीय संविधान ने भी इस भाषा विविधता को मान्यता दी है |

भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में 22 भाषाओं को मान्यता दी है जिसमे हिंदी, बंगाली, मराठी, तमिल, तेलगु, उर्दू, पंजाबी, गुजराती, मलयालम, कन्नड़ तथा ओड़िया आदि विभिन्न भाषाएं हैं तथा संविधान के 343 अनुच्छेद में हिंदी को राजभाषा व अंग्रेजी को सहायक भाषा रखा गया है तथा अनुच्छेद 346 व 347 के अंतर्गत राज्यों को अपनी क्षेत्रीय भाषा चुनने की स्वतंत्रता दी गई है |

भाषा में ही हमारे देश के विभिन्न हिस्सों की सांस्कृतिक व सामाजिक पहचान है | साहित्यिक परम्परा, लोककथाएं, लोकगीत, नृत्य और संगीत को जीवित रखने में भाषा का विशेष योगदान है | भारतीय भाषाओं में उपलब्ध साहित्य, शिक्षा और शोध कार्यों को समृद्ध करता है | हिंदी, बंगाली, तमिल, और संस्कृति जैसी भाषाओं में साहित्य का विशाल भंडार है जो भारतीय दर्शन, इतिहास और संस्कृति को संरक्षित करता है | राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में भी मातृभाषा में प्रारंभिक शिक्षा देने पर जोर दिया गया है ताकि बच्चों की सीखने की क्षमता बढ़े | भाषा का व्यापार और अर्थव्यवस्था में भी विशेष योगदान है | विभिन्न भाषाओं का ज्ञान होने से व्यापार और आर्थिक गतिविधियों में सहूलियत मिलती है | बहुभाषी कौशल रखने वाला व्यक्ति निजी और सरकारी क्षेत्रों में अधिक अवसर प्राप्त कर सकते हैं | क्षेत्रीय भाषाओं में विज्ञापन और मीडिया का विकास व्यावसायिक रूप से महत्वपूर्ण है |

अब हम हिंदी को इस परिपेक्ष में देखते हैं | हिंदी भारत में सबसे अधिक बोली जाने भाषा है तथा इसे राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी मान्यता प्राप्त है | संविधान ने भी अपने 343 अनुच्छेद में इसे 


देवनागरी लिपि के रूप में राजभाषा के रूप में स्वीकार किया है | केंद्र सरकार के अधिकतर कार्य हिंदी और अंग्रेजी में होते हैं | अनुच्छेद 351 इसके प्रचार, प्रसार की व्याख्या करता है | यह एक सम्पर्क भाषा के रूप में भी कार्य करती है | भारत की 44% जनता की यह पहली भाषा है | नेपाल, मारीशस, फिजी, सुरीनाम, त्रिनिदाद और टोबागोआदि देशों में भी यह बोली जाती है |

इसके अतरिक्त यह भारतीय सिनेमा की प्रमुख भाषा है | इससे इसका वेश्विक प्रभाव भी बढ़ा है | टेलीविज़न, समाचार पत्र और डिजिटल प्लेटफॉर्म पर भी इसका बोलबाला है | इंटरनेट, सोशल मीडिया पर हिंदी सामग्री की मांग तेजी से बढ़ रही है इससे यह डिजिटल युग में और प्रासंगिक हो गई है |

हिंदी को संयुक्त राष्ट्र में आधिकारिक भाषा का दर्जा दिलाने में भारत सरकार प्रयासरत है | विश्व हिंदी सम्मेलन के माध्यम से हिंदी के प्रचार -प्रसार को बढ़ावा दिया जा रहा है | विभिन्न देशों में भी हिंदी भाषा की शिक्षा को प्रोत्साहित किया जा रहा है |

अब प्रश्न यह उठता है की हिंदी का विकास अन्य भारतीय भाषाओं के समान और उनके संरक्षण के साथ होना चाहिए या नहीं | उत्तर हां मे है | कुछ  गैर हिंदी भाषी राज्य इसे लागू करने का विरोध करते हैं | इसलिए इसका प्रचार जबरदस्ती ना करके स्वाभाविक रूप से किया जाना चाहिए | बहुभाषावाद को बढ़ावा देना आवश्यक है ताकि सभी भारतीय भाषाएं समान रूप से विकसित हो सकें | 

उपरोक्त विवेचना से स्पष्ट है की भारतीय भाषाएं ना केवल संचार का साधन है अपितु हमारी सांस्कृतिक धरोहर और समाजिक ताने बाने का अभिन्न अंग भी हैं | हिंदी भारत की प्रमुख भाषा होते हुए भी अन्य भारतीय भाषाओं का सम्मान करते हुए आगे बढ़े तभी यह देश की एकता अखंडता को बनाए रखने में मददगार होगी | हिंदी के प्रचार -प्रसार के साथ अन्य क्षेत्रीय भाषाओं के संरक्षण और विकास को भी प्रोत्साहित करना होगा |


भारतीय परिवार मानो सदा से प्रचलित आचार-अनुष्ठान के मनोहर स्तोत्रगान में निरत रहता है। उसके लिये घर का प्रत्येक छोटा-मोटा काम, गृहस्थी की विस्तृत प्रणाली, शारीरिक शुद्धि का अभ्यास-मानो एक अनिर्वचनीय मूल्यवान तथा पवित्र कर्तव्य है। यह राष्ट्र की वह चिरंतन सम्पदा है, जो युगों से पीढ़ी दर पीढ़ी संक्रमित होती रही है, उसकी विशुद्ध अवस्था में रक्षा करते हुए उसे भावी युग के हाथों में समर्पित कर देना होगा।

भारतीय संस्कृति और धर्म अध्यात्म प्रधान होने के कारण भौतिक जीवन की समस्याओं के प्रति उदासीन है, यह भ्रम दूषित प्रचार एवं आध्यात्मिकता का गलत अर्थ करने का परिणाम है। हमारे धर्म की व्याख्या भौतिकता का पूर्ण विचार करके चलती है। यतोऽभ्युदय निःश्रेयससिद्धिः स धर्मः अर्थात् जिससे ऐहिक और पारलौकिक उन्नति प्राप्त हो वह धर्म है।


विधान पालिका,न्याय पालिका और कार्य पालिका 

           बालेश्वर गुप्ता,नोयडा

           विधान पालिका,न्याय पालिका और कार्य पालिका को लोकतंत्र के तीन पाये कहा गया है।संविधान निर्माताओं  द्वारा तीनों स्तंभों के कार्य क्षेत्र अलग अलग निर्धारित किये गये है।न्याय पालिका को विधान पालिका द्वारा निर्मित कानूनों की समीक्षा का तो अधिकार दिया गया है,पर कानून बनाने का नही।इसी प्रकार कार्य पालिका को कानून ड्राफ्टिंग का अधिकार तो है पर कानून तभी लागू हो पायेगा जब विधान पालिका निर्धारित नियमो के अधीन उसे पारित कर देगी।

      चूंकि न्यायपालिका को कानून की समीक्षा का अधिकार प्राप्त है इसलिये कार्य पालिका कभी कभी न्यायपालिका को प्रभावित करने का प्रयास करती है।विशेष रूप से इंदिरा गांधी के समय न्यायपालिका को अपने पक्ष में रखने का घिनोना खेल हुआ है।एक न्यायमूर्ति को त्यागपत्र दिलवा कर उसे राज्यसभा में भेजना,फिर राज्यसभा के बाद पुनः न्यायाधीश बना देना आदि जैसे कई उदाहरण हैं, आपात काल मे न्यायपालिका का कैसा दुरुपयोग हुआ सब जानते हैं।

     समय परिवर्तन हुआ अब न्यायपालिका कार्यपालिका का कार्य स्वयं करने को आतुर है, वह अपनी सीमा का उल्लघन निरंतर कर रही है।1993 में न्यायपालिका ने स्वयं अपनी नियुक्तियों का अधिकार कोलेजियम के माध्यम से करने का ले लिया,यानि विधान और कार्य पालिका को दरकिनार कर दिया,जबकि कोलेजियम का संविधान में कोई जिक्र तक नही है।इतना ही नही जब 2014 में संसद में सर्वसम्मति से न्यायिक नियुक्ति अधिनियम 99 वे संविधान संशोधन के रूप में पारित किया गया और 


16 प्रदेशो की विधान सभाओं ने भी बहुमत से इस संविधान संशोधन की पुष्टि कर दी तो न्यायपालिका ने स्वयं संज्ञान ले कर इस संविधान संशोधन को खारिज कर दिया।यह स्पष्ट रूप से विधान पालिका के क्षेत्र में न्यायपालिका का अतिक्रमण था।संसद द्वारा लागू तीन किसान कानूनों पर स्थगन देना भी संविधान सम्मत नही था।न्यायपालिका इन कानूनों की समीक्षा करके इन्हें अवैध घोषित करने का तो अधिकार रखती थी,पर लागू कानूनों पर रोक लगा कर यह आभास दिया गया कि विधानपालिका से न्यायपालिका ऊपर है।

         अभी एक उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति के यहां नोटो के बोरे बरामद हुए,पर विशेषधिकार  प्रयोग करते हुए उस जज को बचाने की कोशिश निर्लज्ज रूप में की गई और की जा रही है। लगता है आज न्यायपालिका अपने को विधान पालिका और कार्यपालिका से उच्च सिद्ध करने में लगी है।

         आवश्यकता यह है कि विधान पालिका, कार्यपालिका और न्याय पालिका अपनी अपनी सीमा में रहे।देश न्यायपालिका के पंगु किये जाने पर आपात काल के रूप में प्रशासनिक तानाशाही भोग चुका है। अब यदि न्यायपालिका अपनी सीमा का उल्लघन करती है तो डर है  की वह दिन दूर नही जब देश न्यायपालिका की तानाशाही भुगतेगा।


आप जानते हैं एक पेढ आपके लिए क्या करता है ?


एक वयस्क वृक्ष प्रतिदिन 227 लीटर ऑक्सीजन छोड़ता है। एक व्यक्ति प्रतिदिन 550 लीटर ऑक्सीजन पेड़ों से प्राप्त करता है। इस प्रकार से केवल ऑक्सीजन लेने के लिये हमें दो बड़े वृक्षों की आवश्यकता रहती है। एक लीटर ऑक्सीजन का बाजार मूल्य लगभग 15 रुपये है। इस प्रकार 550 लीटर ऑक्सीजन का बाजार मूल्य लगभग रुपये 8250 आता है। वह ऑक्सीजन हम प्रतिदिन दो पेड़ों से प्राप्त करते हैं। एक सामान्य पेड़ सालभर में 20 किलो धूल सोखता है। हर साल करीब 700 किलोग्राम ऑक्सीजन का उत्सर्जन करता है।  प्रतिवर्ष 20 टन कार्बन डाइऑक्साइड को रोकता है।  गर्मी में एक बड़े पेड़ के नीचे औसतन 4 डिग्री तक तापमान क रहता है। 80 किलो ग्राम पारा लिथियम लेड आदि जहरीली धातुओं के मिश्रण को सोखने की क्षमता रखता है।  हर साल लगभग 100000 वर्ग मीटर दूषित हवा को फिल्टर करता है। घर के करीब एक पेड़ ध्वनिरोधक दीवार की तरह काम करता है। एक वर्षा ऋतु में एक पेड़ औसतन 22000 लीटर पानी को निगल सकता है जो जल आपूर्ति में स्थिरता बनाये रखने और बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाताओं से बचाव में मदद करता है।




संस्कार 

लतिका श्रीवास्तव

वृद्धाश्रम के दरवाजे पर ही पिता रमानाथ जी को उतार कर राजन चलने लगा तो वृद्ध अशक्त पिता ने कोई शिकायत नहीं की बस आंसू भरी आंखों और रुंधे गले से हमेशा की तरह सदा खुश रहो बेटा का आशीष जरूर दिया जिसे सुनने के लिए बेटा राजन रुका ही नहीं.... तुरंत कार स्टार्ट करके घर वापिस आ गया....

.... घर पहुंच कर जैसे ही अंदर आया विशाल अंकल जो पिताजी के दोस्त थे उनकी आवाज सुनाई दी... अरे भाई रमा नाथ कहां हो भाई लगता है अब तेरा कान भी कमजोर हो गया है इलाज करवाना पड़ेगा.... देख आज तेरे लिए तेरी मनपसंद रबड़ी लाया हूं दांत नहीं हैं ना तेरे बहू ने खासतौर पर तेरे लिए भिजवाया है इसीलिए आया हूं और तू है कि सुन ही नहीं रहा.....! अरे अंकल नमस्ते आइए ना अंदर आइए... राजन अचकचा सा गया था क्या बात करे कैसे बताए..!!

नहीं बेटा बैठूंगा नहीं बस ये रबड़ी रमा को खिलाकर चला जाऊंगा.... छड़ी के सहारे धीरे धीरे कदम बढ़ाते विशाल जी ने राजन को देख कर कहा... कहां है रमा दिखाई ही नहीं दे रहा ना ही उसकी कोई आवाज सुनाई दे रही है.... तबियत तो ठीक है ना उसकी..!

उनका चिंतित स्वर राजन को बेचैन कर गया ... नहीं अंकल पापा घर में नहीं हैं... राजन ने कहा तो विशाल जी ने आश्चर्य से पूछा घर में नहीं है तो कहा गए तू भी तो यही है....

वो अंकल मैने वृद्धाश्रम में उनके रहने की व्यवस्था कर दी है .... अभी मैं वहीं से आ रहा हूं... बहुत अच्छी व्यवस्था है वहां पर .... राजन की बात सुनते ही विशाल जी के कदम जम से गए वृद्धाश्रम..!! 

राजन तू रमा को .... अपने वृद्ध पिता को खुद वृद्धाश्रम में अकेला छोड़ आया.... सदमा सा लगा था उन्हें सुनकर... अपने लड़खड़ाते कदमों को वहीं पड़ी कुर्सी पर किसी तरह बैठकर सहारा दे पाए थे....!

क्यों किया तूने ऐसा राजन !! तेरे लिए बोझ बन गया था तेरा पिता !!! क्यों!!

...अंकल आपसे कुछ छुपा नहीं है... मां के जाने के बाद से पापा की दिनचर्या ही नहीं बोलचाल व्यवहार भी अजीब सा हो गया है.... कपड़े पहनने का सलीका ही भूल गए हैं... किसी के भी सामने कैसी भी पोशाक में आ जाते हैं.... अपनी बहू रश्मि के ऊपर बात बेबात चिड़चिड़ाते रहते है.... कल बच्चों के ट्यूशन टीचर को अपशब्द कहने लगे थे.... और परसो पड़ोसी मोहन जी के बगीचे में जाकर सारे फूलों को नोच रहे थे... एक मिनट को घर में सुकून और शांति नहीं मिल पाती थी... मुझे ही संभालना पड़ता था उन्हें इतने ऊंचे पद पर हूं मैं.... ऑफिस में इतना काम.... रोज रोज छुट्टी कैसे मिलेगी... .......अचानक खड़े हो गए थे विशाल जी ....बस बेटा बस कर ... तुझासे ऐसी उम्मीद नहीं थी.... जानता है बचपन में एक बार बोर्ड परीक्षा में तू फेल हो गया था... रमा पर तो गाज गिर गई थी

बड़ा नाज़ था उसे अपने बेटे पर... सारी बिरादरी में उसकी बदनामी हुई... पर तुझ पर उसने आंच नहीं आने दी थी... तू अवसाद में चला गया था... घर से बाहर नहीं निकलता था .... घर में सबके ऊपर चिल्लाता रहता था.... कभी नहीं पढूंगा ऐसा भी कहता था.... उस समय रमा ने ऑफिस से लंबी छुट्टी ले ली थी और पूरे समय तेरा ध्यान रखता था ... अपने हाथों से तेरी पसंद की चीज़े बनाकर खिलाता था... किसी से मिलता जुलता नहीं था.... सिर्फ मैं ही था जिससे वो अपना दुख सुख बांट लेता था... मैं समझाता था अरे रमा इतना पागल मत बन पुत्र मोह में तेरी नौकरी छूट जायेगी तेरा लड़का बिगड़ गया है तेरे इसी लाड़ में उसको डांट फटकार लगा.....

....तब वो बहुत विश्वास से कहा करता था नहीं विशाल मेरा बेटा है ये कभी गलत राह पर नहीं जा सकता अभी बच्चा है गलती हो गई सुधर जायेगा... देखना एक दिन मेरा नाम रोशन करेगा.... नौकरी का क्या हैमुझे फिर कोई सी मिल ही जायेगी पर मेरा बेटा खो गया तो.....!!... अभी मेरे बेटे को मेरे स्नेह और ख्याल की जरूरत है.... दिन रात एक कर दिया था उसने रात रात भर तेरे बिस्तर के पास बैठा रहता था कहीं कोई गलत कदम ना उठा ले तू........तब तो उसने तुझे किसी सुधार गृह में भेजने की कल्पना भी नहीं की....!!.. और उसीकी तपस्या त्याग से ही तू आज सफलता के इस मुकाम पर खड़ा है...! सोच अगर उस समय उसने तेरी पढ़ाई छुड़ा दी होती...! तुझे उसी रास्ते बिगड़ने के लिए छोड़ दिया होता .....! जैसे तू आज कर रहा है अरे बेटा आज तेरे पिता को मेरे दोस्त को तेरी मेरी सख्त जरूरत है ....

..... राजन की काटो तो खून नहीं वाली स्थिति हो गई थी..... अंकल मुझे माफ कर दीजिए... चलिए पापा को वापिस घर लेके आते हैं आप भी आइए अकेले मेरी हिम्मत नहीं है....

...... वृद्धाश्रम के अंदर रामनाथ सोच नहीं पा रहे थे अब किसके लिए जीयूं....! तभी रमा ए रमा सुनकर 



लगा स्वप्न देख रहे हैं.. अरे विशाल .. विशाल तू यहां..! हां और क्या देख तुझे ढूंढ निकाला.... चल रमा घर चल... विशाल ने उनका हाथ थाम कर कहा... कैसे चलूं विशाल मेरा अब यही घर है मेरा बेटा खुद मुझे यहां छोड़ कर गया है..... रमानाथ जी कह ही रहे थे तभी विशाल के पीछे से राजन आ गया.... पापा .... मुझे माफ कर दीजिए . अपने घर चलिए आपका ये बेटा एक बार फिर राह भटक गया था....

नहीं ये मेरा बेटा है कभी गलत काम नहीं कर सकता पूरे विश्वास से कहते हुए सिर झुकाए खड़े अपने पुत्र को रमानाथ जी ने गले से लगा लिया था..... चल अब जल्दी घर चल रमा .... रबड़ी भी तो खाना है तुझे.. कहते हुए विशाल जी अपने मित्र का हाथ पकड़कर कार की ओर बढ़ गए...!


अधोमुखश्वानासन

अधोमुखश्वानासन योग विज्ञान का बहुत ही महत्वपूर्ण आसन है। योग गुरु और योग शिक्षक, योग सीखने की इच्छा रखने वालों को सबसे पहले इसी योगासन का अभ्यास करने की सीख देते हैं। अधोमुखश्वानासन पूरे शरीर को अच्छा खिंचाव और मजबूती देता है। जैसे एक सेब रोज खाने से डॉक्टर घर नहीं आता है। वैसे ही रोज अधोमुखश्वानासन का अभ्यास करने से भी डॉक्टर और बीमारियां आपसे दूर रहते हैं। इस आसन के अभ्यास से आप स्ट्रेस, एंग्जाइटी, डिप्रेशन और अनिद्रा/इंसोम्निया जैस समस्याओं से भी दूर रहते हैं।




रिश्तों की अहमियत

सतीश शर्मा  

"छोटी थोड़ा तो शर्म करो नंगे ससुर है छि: देवर जी आते तो नहीं करते साफ सफाई"

कहते हुये  ममता भाभी ने आंखों पे हाथों से पर्दा डाल लिया लेकिन छोटी बहू अर्पणा चुपचाप ससुर जी की साफ सफाई करते हुए अंडरगारमेंट पहना के धोती में लपेट के कुर्सी पे बैठाने की कोशिश करने लगीं ससुर जी अपने कांपते हाथ छोटी बहू के कंधों पे रखकर बैठने की कोशिश कर रहे थे और बडी बहू असहजता से देख रहीं थी सासु माँ के मृत्यु के बाद पिता जी छोटे बेटे के साथ रहते थे लकवा मार दिया परिणामस्वरूप कमर के निचले हिस्से व एक हाथ ने काम करना बंद कर दिया ससुर जी की स्थिति बच्चे के जैसा हो गया  कोई खाना लाकर देता तो भी नही खा पाते फिर खुद के मल- मूत्र  साफ करने में असमर्थ हो चुकें थे ममता के पति नौकरी करते थे अतः सबकुछ ममता ने धीरे धीरे संभाल लिया लेकिन बहू और ससुर के बीच का रिश्ता बड़ी बहू के लिए प्रश्न बन गया था अतः

बड़ी बहू ममता को यह सब देखकर  चुभ रहा था मन में वैध व अवैध प्रश्न जन्म ले रहे थे और वह  अनाप-शनाप बकवास करने पे तूल चुकीं थी

छोटी बहू अपर्णा अनसुना कर ससुर जी को खाना खिलाने के बाद अपने बाकी काम निपटाने अंदर के कमरे में आ गई पीछे से भाभी ममता भी आ चुकीं थी

" अर्पणा   क्या साबित करना चाहती हो"

ममता ने कहा



" कुछ भी तो नहीं स्पष्ट बोलिये भाभी आप कहना क्या चाह रही  हैं"

" यही कि बाबूजी  से जमीन जायदाद खुद के नाम पर वसीयत करवाने के लिए तुम इतना निचे गिर सकतीं हो"

" इतना घटिया आप कैसे सोच सकती हैं"

सोचना क्या है वह तो दिख ही रहा है अपने जाल में फंसा रही हो"

" मैं नहीं जानती थी आप इतना घटिया सोचती हैं"

कहते हुये अर्पणा ने ममता को देखीं फिर पुनः बोलीं

" वह लाचार आदमी आपके लिए ससुर होंगे मेरे लिए अबोध बच्चे हैं जिसे मां की जरूरत है एक स्त्री में मां बहन पत्नी बहू सभी रिश्ते समाहित रहते हैं आपको लगता है मुझे जमीन की लालच है आप गलत सोच रही हैं"

"तो स्पष्ट बता दो क्या चल रहा है"

ममता ने क्रोध में बोली तो अर्पणा ने पुनः कहा

" अभी कुछ दिनों पहले आप जानती हैं मेरे पिताजी का हार्ट अटैक से मृत्यु हुआ था मैं उनकी सेवा नहीं 

कर पाई थी भगवान ने मुझे पुनः मौका दिया है मैं यह मौका नहीं छोड़ सकती"

अर्पणा ने कहते हुये ससुर जी की गंदी अंडरगारमेंट कपड़े धोने चलीं गई और ममता खुद के नजरों में गिर चुकीं थी ।

मंगल पाण्डेय

मंगल पाण्डेय का जन्म 19 जुलाई, 1827 को फैजाबाद को सुरकरपुर गांव (उत्तर प्रदेश) से हुआ था। वे बैरकपुर में 34वी रेजीमेंट में सिपाही आ। ब्रिटिश सेना के भारतीय सैनिकों में गाय और सुअर की चर्बी से चिकनाए हुए कारतूसों के प्रयोग पर असतोष था। सभी को 31 मई का इंतजार था। लेकिन मंगल पाण्डेय अपनी भावनाओं से नियंत्रण खो बैठे। उन्होंने 29 मार्च को परेड ग्राउंड में अंग्रेजी सत्ता को खुली चुनौती दे दी। उन्होंने सार्जेंट मेजर शुसन एवं ले. बाग को घायल कर रण घोष करके भारतीय सैनिकों को चेताया "धर्म और ईमान पर हैवानियत के अत्याचारों को कब तक बर्दाश्त करते रहोगे? को। जागो! समाप्त कर दो इस दानवी सत्ता को ।" भारतीय सैनिकों में से कंबल ईश्वरी पांडे ने मंगल पांडे का साथ दिया। लेकिन तुरंत यूरोपियन सैनिकों ने मंगल पाण्डेय को गिरफ्तार कर लिया। उसने अपनी बन्दूक से आत्म बलिदान करने का असफल प्रयास किया। मंगल पाण्डेय को दिनांक 8 अप्रैल, 1857 को बैरकपुर में ही फांसी दे दी गई। इसके बाद 19वीं और 34वी रेजीमेंट को भारतीय सैनिकों से हथियार रख लिये गये। लेकिन उत्त सैनिकों ने स्वयं भी सहर्ष अंग्रेजी दासता अस्वीकार कर अपनी वर्दी फाड़ दी तथा बासता के प्रतीक टोपियां हवा में उड़ा कर फेंक दीं।



उदास,खामोश नंदिनी से एक गुजारिश...

बबीताकुमारी 

तुम्हारी मौन,नम,गहरी आंखों की दास्तां 

सुनेंगे कभी इत्मीनान से...

कभी तो तुम अपने एकांत के अंधेरे से निकलकर

अपनी पुरानी,खिलखिलाती हंसी की उजास में निखर जाया करो

हँसने से बदल जाती है दुनिया... और...

तुम्हारे प्रति दुनिया का नज़रिया भी

तो कभी हंस लिया करो

अपनी पुरानी हंसी में चंद्रप्रभा सी चमक जाया करो

गम के बादलों में यूं न उलझ जाया करो

आंखों की नमी को बारिश में छुपाने का हुनर आजमाया करो

यूं कांधे पर दुनिया भर की जिम्मेदारियां न उठाया करो

कभी कभी ठहर जाया करो

यूं मौन होकर पागल होने से बेहतर है

अपने छोटे छोटे बच्चों संग बच्चा बन जाया करो

यूं कसे हुए चेहरे दिखाकर न बच्चों को सहमाया करो

ये वक्त न आएंगे फिर लौटकर

कल इसी आंगन में बच्चे मिलेंगे बड़े होकर

फिर कहां से लाओगी उनका बचपन...

तो आज उनके बचपने में तुम भी खिल जाया करो

जिनके लिए किया तुमने सर्वस्व न्योछावर 

दिया तुम्हें मनहूस नाम का उपहार

सबकी जिम्मेदारियों को बढ़कर गले से लगानेवाली

कभी खुद को भी गले से लगाया करो 

जिंदगी तुम्हारी भी है ...

 कभी तो आगे बढ़कर जिंदगी को गले से लगाया करो


                       

परिवर्तन 

सुनीता मुखर्जी “श्रुति”,हल्दिया, पूर्व मेदिनीपुर, पश्चिम बंगाल

निकिता..! तुम्हारे जेठ सलिल विवाह क्यों नहीं करना चाहते  हैं..?? अच्छी खासी उम्र है फिर भी कुंवारे बैठे हैं!! मेरे परिवार में एक लड़की है तुम कहो तो मैं बात चलाऊं?एक बार तुम अपने सास ससुर से बात करके देखो! सलिल मान जाते हैं तो मुझे बताना, चाची बोली।

सच में..! सलिल भैया देखने में बहुत सुंदर हैं। पढ़ाई लिखाई भी विदेश से करके आए हैं फिर...  विवाह के प्रति इतना उदासीन क्यों रहते हैं??

निकिता ने अपने पति रमन से कई बार पूछा- रमन ने बस इतना ही बताया कि किसी को कुछ पता नहीं है कि वह विवाह क्यों नहीं करना चाहते?? जब भी सलिल भैया को विवाह के लिए बोला जाता वह सीधे मना कर देते, और कहते अभी मेरा लक्ष्य मुझे नहीं मिला है..!! 

सलिल भैया ने अमेरिका से एम. एस. करने के बाद पीएचडी की, इसके बाद कुछ समय तक वहां रहकर जॉब भी किया, लेकिन देश प्रेम उन्हें वापस खींच लाया। यहां आने के बाद उन्हें मन पसंद जाब नहीं मिल पाई। जिस कारण वह हमेशा बुझे- बुझे से रहने लगे।

दो भाइयों में सलिल बड़े और रमन छोटे थे। माता-पिता जब भी सलिल को बोलते  कि अब तुम्हारा विवाह होना चाहिए!! क्योंकि रमन भी विवाह योग्य हो गया है। सलिल भैया ने साफ मना कर दिया कि मैं विवाह नहीं करूंगा...!! आप रमन का विवाह कर दीजिए। माता-पिता ने थकहार कर रमन का विवाह निकिता से कर दिया। अब सलिल भैया को कोई भी विवाह के लिए दबाव नहीं डालता। माता-पिता भी छोटे बेटा बहू से खुश रहते। माता-पिता को कभी-कभी मलाल होता... काश!! सलिल 


भी विवाह कर लेता तो कितना अच्छा होता..?? आंख मुँदने से पहले अपना हंसता खेलता सम्पूर्ण परिवार देख लेते।

निकिता के दो जुडुवा बेटों ने जन्म लिया। घर में खुशहाली बिखरी हुई थी लेकिन, ऐसा लगता था कि सलिल भैया ने दुनिया से वैराग्य ले लिया है। उनके जिंदगी में हंसी-खुशी कुछ भी मायने नहीं रखती थी। अब वह अपने कमरे तक ही सीमित रहते थे। वहीं उनको खाना दे दिया जाता। न ही किसी से बात करते और न ही किसी से मिलते जुलते थे।

मां ने कई बार समझाने की कोशिश की लेकिन पता नहीं चलता उन्हें क्या गम खाये जा रहा था। माँ ने कहा अगर तुम्हारी पसंद का यहां जॉब नहीं है तो तुम वापस अमेरिका चले जाओ!! लेकिन सलिल भैया हां, ना कुछ नहीं बोलते। बस अपने आप में खोए रहते।

एक दिन रमन और निकिता स्कूटी से घर का सामान लाने बाजार जा रहे थे कि अचानक उनके सामने ट्रक आ गया वह अपना बैलेंस नहीं बना पाए, उनकी स्कूटी ट्रक से टकरा गई। जहां दोनों की मृत्यु हो गई।

पूरे घर में मातम छाया हुआ था सलिल अपने कमरे से निकलकर सबकुछ ऐसे देख रहा था जैसे नींद से जागकर दुनिया देख रहा हो। दोनों छोटे बच्चे लगातार रोए जा रहे थे उनको संभालने वाला कोई नहीं था। सलिल को इस घटना ने झिंझोड़ कर रख दिया था। उसने दोनों बच्चों को आज पहली बार गोद में उठाया, और अपने सीने से लगा लिया। बच्चों ने गोद पाकर रोना बंद कर दिया।

सलिल ने दोनों बच्चों को चम्मच से दूध पिलाया आज उसे ऐसा महसूस हो रहा था कि उसकी दुनिया किसी ने हमेशा हमेशा के लिए खत्म कर दी। सलिल के सिवाय माता-पिता और बच्चों को संभालने वाला कोई नहीं था। सलिल को दुनियादारी का कुछ अता-पता नहीं था.... फिर भी वह सब कुछ कर रहा था। उसके बदले हुए रूप को देखकर माता-पिता को बहुत आश्चर्य हुआ।

सलिल रात- रात भर जागकर बच्चों को बोटल से दूध पिलाना, सुलाना और अपने माता-पिता को संभालना बस यही उसकी दिनचर्या बन गई थी।

भाई और छोटी बहू तो इस दुनिया को छोड़कर चले गए बस !! रह गया खौफनाक सूनापन। कहते हैं जब इंसान के ऊपर जिम्मेदारी आती है तब उसे दुनियादारी निभाना अपने आप ही आ जाता है। वहां किसी को सीख, सलाह की जरूरत नहीं पड़ती।

सलिल को घर और बच्चे संभालना बहुत मुश्किल हो रहा था। मां ने एक बार फिर एक उम्मीद के साथ सलिल को विवाह करने के लिए बोला। सलिल ने हालात से समझौता कर लिया और अपनी मौन सहमति दे दी।

सलिल की मौसी ने अपनी एक सहेली की लड़की के लिए विवाह का प्रस्ताव भेजा। थोड़ी बहुत औपचारिकता के पश्चात सलिल का विवाह रश्मि के साथ हो गया। रश्मि पढ़ी-लिखी समझदार लड़की थी।



विवाह की पहली रात सलिल ने रश्मि से अपने घर के सभी हालात बता दिए। और कहा मुझे विवाह में कोई रुचि नहीं है। मैंने इन दोनों बच्चों एवं माता-पिता के खातिर विवाह किया है। मैं पति होने के नाते तुम्हें कभी शिकायत का मौका नहीं दूंगा। मैं तुमसे हाथ जोड़कर प्रार्थना करता हूं यदि उचित लगे तो मेरे साथ मेरे घर को संभालने में मेरी मदद करें।

रश्मि ने सहमति में सिर हिला दिया, और उसका हाथ अपने हाथ में लेकर यह वादा किया कि आपको कभी शिकायत मौका नहीं मिलेगा।

दूसरे दिन रश्मि जल्दी उठकर पूजा पाठ करने के पश्चात बच्चों के दूध का बोतल साफ कर रही थी। मां ने देखा तो बोली- बड़ी बहू तुम्हें इतनी जल्दी उठने की जरूरत नहीं है अभी हम कर सकते हैं!!

सलिल सुबह उठा तो उसकी आंखें कुछ तलाश कर रही थी। मां ने पूछा क्या ढूंढ रहे हो..? इतना सुनते ही वह लजा गया। मां ने मुस्कुराते हुए आवाज लगाई बड़ी बहू सलिल को चाय दे दो।

मां ने रश्मि से पूछा- बड़ी बहू एक बात पूछू..??

तुम्हें सलिल से कोई शिकायत तो नहीं है..? रश्मि लजाते हुए बोली.... नहीं माँ। वह तो मुझे बहुत प्यार करते हैं, ख्याल भी बहुत रखते हैं। मां दोनों के रिश्ते से आश्वस्त हो गई।

रश्मि दोनों बच्चों का बहुत अच्छे से पालन- पोषण कर रही थी। दोनों की पढ़ाई-लिखाई एवं सभी प्रकार की ऊंच नीच की शिक्षा देती रहती थी।

बच्चे स्कूल से आने के बाद एक-एक बात अपनी मां रश्मि को बताते, रश्मि भी इत्मीनान से उनकी पूरी बातें सुनती। दोनों बच्चे रश्मि को मां और सलिल को पापा कहते थे।

कुछ कानूनी प्रक्रिया के बाद सलिल और रश्मि ने उन्हें गोद ले लिया था।

स्कूल में भी माता-पिता के नाम की जगह सलिल और रश्मि का ही नाम लिखा था। रश्मि के विवाह के करीब सात साल हो गए थे लेकिन उनकी अपनी कोई संतान नहीं थी। मां ने कई बार रश्मि से पूछना चाहा पर रश्मि ने बात हंसी में टाल दी।

बड़ी बहू...!! बीस रुपए देना। सब्जी वाले को देने हैं मेरे पास खुले नहीं है।

बहू ने अपने बैग की तरफ इशारा करते हुए कहा मां उसमें रखें हैं आप निकाल दीजिए। मां पैसा निकाल रही थी तभी उसके हाथ में एक गर्भनिरोधक गोलियों का पैकेट आ गया।

मां ने बड़ी बहु से कुछ नहीं कहा। एक दिन जिस डॉक्टर की देखरेख में वह दवा खाती थी उसके पास जा धमकी, और बोली मेरी बड़ी बहू आपके पास किस चीज का इलाज कराती है।

डॉक्टर बोली- उनके दो बच्चे हैं। उन्हें और कोई बच्चा नहीं चाहिए इसलिए उसकी रोकथाम के लिए मेरे पास आती है। एक बार उन्होंने दो महीने का गर्भपात भी कराया था।

सासू मां ने कुछ नहीं कहा और कुछ सोचते हुए उठ खड़ी हुई।

अभी तक, वह सोचती थी कि बड़ी बहू को संतान क्यों नहीं हो रही है....?

लेकिन, आज उनकी असलियत का पता चल गया। वह अपनी देवरानी के दोनों बच्चों के अलावा 




तीसरा बच्चा इस दुनिया में लाना ही नहीं चाहती है।

धीरे धीरे दोनों बच्चे बड़े हो गए। बच्चों ने बारहवीं परीक्षा के साथ-साथ नीट का परीक्षा भी क्वालीफाई कर ली ।

काउंसलिंग में दोनों बच्चों का चयन एम बी बी एस के लिए हो गया। दोनों बच्चों को कभी भी यह पता नहीं चल पाया कि रश्मि और सलिल के अलावा भी उसके कोई और मां-बाप हो सकते हैं। बड़ी बहू ने इस घर के साथ-साथ बच्चों और खास कर सलिल को बदल दिया। सलिल अब सामान्य व्यक्ति की तरह सभी के साथ व्यवहार करता। मेरी बड़ी बहू ने उजड़ी हुई बगिया को अपनी मेहनत और त्याग से खूबसूरत उपवन में बदल दिया।



पं. चन्द्रशेखर आजाद


जन्मः 23 जुलाई, 1906, उ.प्र., शहादतः 27 फरवरी 1931,"दुश्मन की गोलियों का सामना करेंगे, आजाद ही रहे हैं, आज ही रहेंगे" मातृभूमि के चरणों में बलिदान होने वाले अमर स्वतंत्रता सेनानियों के स्वर्णाक्षरों में अंकित किए जाने योग्य नामों में प्रमुख नाम है पं. चन्द्रशेखर आजाद जी का। वीर, लक्ष्यभेद में निपुण, अप्रतिम संगठन क्षमता के धनी, वेश बदलने में प्रवीण, पं. चन्द्रशेखर आजाद जी का जन्म 23/07/1906 को पं. सीताराम जी तिवारी और माता जगरानी देवी जी के घर भावरा, मध्य प्रदेश में हुआ था। प्रारंभिक शिक्षा घर पर ही मिली और आगे काशी विद्यापीठ में प्रवेश लिया। मात्र 14 वर्ष की आयु में जलियांवाला बाग नरसंहार के विरुद्ध प्रदर्शन करते हुए गिरफ्तार हुए और मजिस्ट्रेट के पूछने पर अपना नाम "आजाद", पिता का नाम स्वतंत्रता, पता जेल बताकर 15 कोड़ों की सज़ा पाई। यहीं से इनके नाम के साथ आज़ाद शब्द जुड़ गया। क्रांतिकारी दल "हिन्दुस्तान रिपब्लिक एसोसिएशन" के सदस्य बने और क्रांतिकारी काकोरी केस घटना में 10 अन्य प्रमुख साथियों के साथ भाग लिया। अंग्रेजी सरकार का खजाना लूटने में सफल रहे व सभी फरार हुए। बाद में पुलिस की कार्रवाई में 05 साथी बलिदान हुए तथा पं. रामप्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खान, ठाकुर रोशन सिंह और राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी पकड़े गए, जिन्हें बाद में काकोरी तथा अन्य मामलों में फांसी की सजा हुई। वहां उन्होंने सरदार भगत सिंह के साथ मिलकर एक नया संगठन खड़ा किया "हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिक एसोसिएशन।" सांडर्स वध, असेंबली बम काण्ड तथा कई अन्य कार्यक्रमों में भाग लेने के कारण पुलिस का दबाव रहा और आजाद जी ने अपने मित्र मास्टर रुद्र नारायण सक्सेना जी के घर शरण ली। इसी घर के तलघर का प्रयोग वे छुपने और गुप्त बैठकें करने में करते थे।



दीवार का सहारा 

डॉ अनूप कुमार बाजपेई 

  मेरे पिता अब बूढ़े हो चुके थे और चलते समय दीवार का सहारा लिया करते थे। धीरे-धीरे दीवारों पर उनकी उंगलियों के निशान उभरने लगे—चुपचाप उनकी निर्भरता और कमज़ोरी की कहानी कहने वाले निशान।

मेरी पत्नी को यह बिल्कुल पसंद नहीं था। वह अक्सर शिकायत करतीं कि दीवारें गंदी हो रही हैं। एक दिन पिताजी को सिरदर्द था, उन्होंने सिर पर तेल लगाया और चलते हुए दीवार को सहारा दिया, जिससे तेल के दाग भी दीवारों पर लग गए।

इस पर पत्नी ने मुझ पर नाराज़गी जताई। मैंने ग़ुस्से में पिताजी को डांट दिया, कठोर शब्दों में कहा कि वो दीवार को न छुएं। पिताजी चुप हो गए। उनकी आँखों में दर्द था। मैं भी शर्मिंदा था, पर कुछ कह नहीं पाया।

उस दिन के बाद पिताजी ने दीवार का सहारा लेना छोड़ दिया। एक दिन, संतुलन बिगड़ने से वो गिर पड़े। कूल्हे की हड्डी टूट गई। सर्जरी हुई, लेकिन शरीर ने साथ नहीं दिया… और कुछ ही दिनों में वो हमें छोड़कर चले गए। मेरे दिल में गहरा पछतावा था। मैं उनकी वो नज़रें कभी नहीं भूल पाया—न ही खुद को माफ़ कर पाया।

कुछ समय बाद हमने घर पेंट करवाने का सोचा। पेंटर आए तो मेरा बेटा, जो अपने दादाजी से बहुत 




प्यार करता था, दीवार के उन हिस्सों को पेंट नहीं करने देना चाहता था, जहाँ दादाजी के निशान थे।

पेंटर बहुत समझदार और रचनात्मक थे। उन्होंने आश्वासन दिया कि वे उन निशानों को नहीं मिटाएंगे, बल्कि उनके चारों ओर सुंदर गोल डिज़ाइन बना देंगे ताकि वे दीवार की सजावट का हिस्सा बन जाएँ।

और ऐसा ही हुआ। धीरे-धीरे वे निशान हमारे घर की पहचान बन गए। जो भी घर आया, दीवार के उस हिस्से की तारीफ़ किए बिना नहीं रह पाया—बिना ये जाने कि उसके पीछे एक कहानी है।

समय बीतता गया। मैं भी अब बूढ़ा हो चला था। एक दिन चलते समय मुझे भी दीवार का सहारा लेना पड़ा। तभी मुझे याद आया कि मैंने पिताजी से क्या कहा था, और मैंने खुद को बिना सहारे चलाने की कोशिश की।

मेरा बेटा ये देख रहा था। वो तुरंत मेरे पास आया और बोला, “पापा, दीवार का सहारा लीजिए, आप गिर सकते हैं।” और फिर मेरी पोती दौड़कर आई और बोली, “दादू, आप मेरे कंधे का सहारा लीजिए।”

मेरी आँखों से आँसू बहने लगे।

काश, मैंने भी अपने पिताजी के लिए यही किया होता… शायद वो कुछ और समय हमारे साथ रहते।

उन्होंने मुझे सोफ़े पर बिठाया। फिर मेरी पोती अपनी ड्रॉइंग बुक ले आई। उसने मुझे दिखाया—उसकी टीचर ने उसकी पेंटिंग की बहुत तारीफ़ की थी।

उस तस्वीर में वही दीवार थी—जिस पर दादाजी के उंगलियों के निशान थे।

नीचे टिप्पणी थी:

*"हम चाहते हैं कि हर बच्चा अपने बड़ों से ऐसे ही प्यार करे।"*

मैं अपने कमरे में गया, पिताजी से माफ़ी माँगी… और बहुत रोया। एक दिन हम सब भी बूढ़े होंगे। अगर अभी आपके घर में बुज़ुर्ग हैं, तो उनका ध्यान रखिए। उन्हें प्यार दीजिए, आदर दीजिए। और अपने बच्चों को यही सबक अपने व्यवहार से सिखाइए।


पन्ना रत्न 

पन्ना एक बहुमूल्य रत्न है जो हरे रंग का होता है। यह बुध ग्रह का रत्न माना जाता है और ज्योतिष में इसका विशेष महत्व है। पन्ना रत्न को धारण करने से कई लाभ बताए गए हैं, जैसे कि बुद्धि और रचनात्मकता में वृद्धि, मानसिक शांति, धन-संपत्ति में वृद्धि, और स्वास्थ्य लाभ। पन्ना रत्न पहनने से बुध ग्रह जनित कष्ट दूर होते है। अधिक जानकारी के लिए शर्मा जी- 9560518227 



बहू अपनी ननद से कुछ सीख

"बहु अपनी ननद नमिता से कुछ सीख। दो बच्चे होने के बावजूद भी देख कैसे उसने अपना पूरा घर में संभाल रखा है। और इतना काम करने के बावजूद भी देख उसका रहन-सहन। कितने अच्छे से रहती है। ससुराल में हर कोई इसकी तारीफ करता है। अरे मेरी बेटी तो लाखों में एक है। और एक तुझे देख। एक बच्चे में ही हालत कैसी हो गई। उसमें भी घर में साफ सफाई करने के लिए कामवाली लगा रखी है। लेकिन फिर भी शरीर इतना फैल गया है कि..."

बोलते बोलते विद्या जी चुप हो गई।

ये तो विद्या जी का रोज का ही था। बहु आरती को तो इन सब चीजों की आदत हो चुकी थी। सुबह से शाम तक एक ही बात सुन सुनकर दिमाग ने सुनना ही बंद कर दिया। वो बदस्तूर अपने काम में ही लगी हुई थी।

" अब जल्दी कर। फटाफट रोटियां सेक। अमित को भी ऑफिस जाने में लेट हो रहा है। पता नहीं क्या करती रहती है दिन भर। इसका काम तो मुझे बिल्कुल भी समझ में नहीं आता। अरे हमने भी तीन-तीन बच्चे पाले हैं। लेकिन काम में कभी कमी नहीं रखी"

विद्या जी बड़बड़ाती हुई हाॅल में आकर बैठ गई। इधर आरती अपने पांच महीने की बेटी परी को अपने साथ ही रसोई में ले आई। साथ ही उसके पालने को भी। पालने में उसे लेटा कर रोटियां सेंकने लगी। 

रोटियां सेक कर सबसे पहले अमित और पापा जी को खाना खिलाया और उन दोनों को ऑफिस के लिए रवाना किया। फिर विद्या जी को खाना परोसा और उन्हें खिला कर अपने लिए थाली लगाकर अपने कमरे में आ गई। साथ में परी को भी ले आई। परी अभी पालने में खेल ही रही थी इसलिए 




आरती ने फटाफट खाना खाना शुरू किया। 

अभी एक दो निवाले खाये ही थे कि इतने में छोटी कुंवारी ननद रेशम भी अपने कमरे से निकल कर आ गई। और आते ही आरती को आवाज लगाकर बोली,

" भाभी जल्दी से मेरे लिए खाना लगा दो। मैं भी कॉलेज जा रही हूं"

खाना खाते हुए आरती के हाथ रुक गए। जवान ननद है, अपना खाना खुद लगाकर खा नहीं सकती। उसके लिए भी खाना लगा कर देना पड़ेगा। आखिर आरती खाना खाते-खाते उठी और पहले रेशम के लिए खाना लगाकर उसे परोस कर  देकर आई।

वापस खाना खाने बैठी तो घर की डोरबेल बज उठी। पता था दरवाजा उसी को खोलना है तो उठकर दरवाजा खोलने गई। दरवाजा खोला तो सामने काम करने वाली रमा थी। रमा घर में आते से ही अपने काम पर लग गई।

आरती वापस अपने कमरे में गई और खाना खाने बैठ गई। इतने में विद्या जी आकर बोली,

" आरती अभी तक खाना नहीं खाया तुमने। कितनी देर हो गई तुम्हें बैठे हुए। धीरे-धीरे समय वेस्ट करती रहती हो"

" मम्मी जी वो मैं रेशम के लिए खाना परोसने के लिए.."

" अच्छा अच्छा, ठीक है। अब एक काम करो। खाना-वाना खा पी कर तैयारी कर लेना। शाम को नमिता के घर जाना है। उसका देवर अच्छे नंबरों से पास हुआ है। इस कारण छोटी सी पार्टी रखी है उन्होंने। अभी-अभी फोन आया था। और ढंग से तैयार हो जाना। और अब जल्दी बता दिया है। समय से तैयार हो जाना। वैसे भी तुम्हें धीरे-धीरे काम करने की आदत है। परी का कोई भी जरूरी सामान है वो भी साथ के साथ रख लेना। बाद में मत कहना कि मैं भूल गई थी"

कहकर विद्या जी जिस गति से कमरे में आई थी, उसी गति से वापस चली भी गई। खैर आरती ने अपना खाना खाया और बर्तन रखने रसोई में गई। बर्तन साफ करने लगी थी कि इतने में परी रोने लगी। काम बीच में छोड़कर ही पहले उसे संभालने के लिए आ गई। 

खैर, पूरा दिन ऐसे ही निकल गया। आरती फटाफट सारे काम निपटा रही थी। आज वो अपनी सास को डांटने का कोई मौका नहीं देना चाहती थी। नहीं तो फिर विद्या जी का क्या भरोसा। वो कहीं भी शुरू हो जाती है।

‌ खैर, शाम को आरती अपना काम निपटा कर समय से तैयार होने के लिए अपने कमरे में जाने लगी तो ससुर जी ने आते से ही एक कप चाय की डिमांड कर दी। तब अमित ने भी कहा,

" आरती चाय बना ही रही हो तो सबके लिए ही बना लो। आज वैसे भी बहुत थक गए हैं" 

आखिर आरती रसोई में सबके लिए चाय बनाने के लिए आ गई। और चाय बना कर सबको दे आई। विद्या जी के कमरे में चाय देने गई तो विद्या जी बोली,

" बहु मैं कहना भूल गई। अभी थोड़ी देर पहले तुम्हारे पापा जी ने फोन कर बताया था कि उनके पास 



जरूरी काम आ गया है तो वो नहीं जा रहे हैं। इसलिए फटाफट से उनके लिए दाल बना दो और रोटी सेक दो। और थोड़ा जल्दी कर दो ताकि हम समय से रवाना हो सके "

"ठीक है मम्मी जी, मैं जब तक खाना बनाती हूं आप परी को तैयार कर दो। ताकि मुझे भी समय मिल जाएगा और मैं समय से तैयार हो जाऊंगी "

" अरे वो हमारे पास आती ही कहां है। वो तुम्हारी बेटी है, उसे तो तुम खुद ही तैयार करो। वैसे भी वो तो हर समय तुमसे ही चिपकी रहती है"

आखिरकार विद्या जी का जवाब सुनकर आरती मन मसोस कर रसोई में चली गई। उसे लग रहा था कि वो लेट हो जाएगी। उसने फटाफट रसोई में जाकर कुकर में दाल चढ़ाई और आटा लगाकर रोटियां सेकने लगी। फटाफट रसोई का काम निपटाकर अपने कमरे में गई और परी को तैयार किया। इतने में सब लोग तैयार होकर बाहर आ गए। 

" अरे जल्दी चलो, अब क्या दीदी के ससुराल में लेट जाएंगे"

रेशम में आवाज देते हुए कहा।

" हां हां बाबा, चल रहे हैं"

विद्या जी तैयार होकर अपने कमरे से बाहर आई। 

"मम्मी अभी थोड़ा वक्त लगेगा। आरती तैयार हो रही है"

अमित ने कहा तो विद्या जी नाराज होते हुए बोली,

" मैंने इसीलिए सुबह कहा था कि समय से तैयार हो जाना। अब देखो उसी के कारण फिर से लेट हो जाएंगे। पता नहीं क्या सब काम हिलते-हिलते करती है। कुछ सिखती क्यों नहीं है नमिता से। कितना वेल टाइम मैनेजमेंट होता है उसका। मजाल कि कोई काम थोड़ा भी लेट हो जाए"

आरती को भी अंदर ये सब सुनाई दे रहा था। पर फिर भी वो जैसे तैसे तैयार हुई और बाहर निकल कर आई। विद्या जी ने उसे ऐसे घूर कर देखा जैसे मानो उसे ले जाकर कोई एहसान कर रही हो।

खैर, थोड़ी देर बाद सब लोग नमिता के ससुराल पहुंचे। सभी मेहमान पहले ही आ चुके थे। नमिता ने उन्हें देखते ही कहा,

" क्या मम्मी आप लोग सबसे लेट आ रहे हो। देखो सारे मेहमान आ चुके हैं "

"अब हम भी क्या कर सकते हैं बेटा। तुम्हारी भाभी को तैयार होने में देर जो लगती है। मां क्या बनी है टाइम मैनेजमेंट पूरी तरह से भूल गई"

विद्या जी ने तंज कसते हुए कहा।

खैर वहां भी किसी ने परी को अपने गोद में नहीं लिया। सब बतियाने में लग रहे और पूरे टाइम परी को आरती ही संभालती रही। इस दौरान आरती ने देखा कि नमिता के दस महीने के बेटे को किस तरह नमिता के सास ससुर परिवार वाले संभाल रहे थे। नमिता फ्री होकर दूसरे काम आराम से कर रही थी। 





तभी विद्या जी आरती के पास आकर बोली,

" आरती फटाफट से खाना खा लो। हमें घर भी चलना है"

लेकिन खाना खाते समय परी रोने लगी। उसने अमित से कहा कि परी को संभाल ले। लेकिन अमित फोन का बहाना कर उठकर चला गया। रेशम तो आरती के पास ही नहीं आई। उसने उम्मीद से विद्या जी की तरफ देखा तो विद्या जी ने कहा,

" बहु ये तुम्हारा बच्चा है इसे तुम ही संभालो। आखिर एक बच्चे को उसकी मां ही बेहतर संभाल सकती है"

कह कर विद्या जी दूसरों से बातें करने लगी।

आखिर आरती परी के साथ ही खाना खाने बैठी। पर परी तो चुप होने का ही नाम नहीं ले रही थी। इसलिए आरती को खाना खाते-खाते ही बीच में उठना पड़ा। थोड़ी देर बाद वो लोग वहां से रवाना हो गए। घर आए तो परी सो चुकी थी। आरती परी को अपने कमरे में लेटा कर रसोई में आई और अपने लिए दाल रोटी लेकर बाहर डाइनिंग टेबल पर आकर बैठ गई। 

" ये क्या? आते ही खाना शुरू। अरे तुम्हारा पेट है या क्या है? भरता ही नहीं। कितना खाती हो तुम "

अमित ने टोका। 

" इसीलिए खा खा कर फैलती जा रही है। अरे थोड़ा अपने शरीर का भी ध्यान रखो। अभी थोड़ी देर पहले ही तो खाना खाकर आई थी"

विद्या जी ने कहा।

" मम्मी जी परी रोने लग गई थी इसलिए मैंने पेट भर के खाना नहीं खाया था। इसलिए दोबारा खाना खा रही हूं"

"तुम्हें तो कुछ भी संभालना नहीं आता। अरे कुछ नमिता से सीख। वो भी तो..."

" अगर नमिता दीदी से सीखने की मुझे जरूरत है तो उनके ससुराल वालों से सीखने की जरूरत आपको है। नमिता दीदी के ससुराल वाले कितने अच्छे हैं। कितने अच्छे से वो उनके बच्चे को संभाल रहे थे, जिससे दीदी आराम से दूसरे काम कर सके। किसी ने भी यह कहकर उनके बच्चे को नहीं छोड़ा कि यह तुम्हारा बच्चा है तुम ही संभालो। लेकिन हमारे घर में तो मैं यह उम्मीद कर ही नहीं सकती हूं। वहां सब मिलजुल कर एक दूसरे को सपोर्ट कर रहे थे। पर यहां तो मैं ये उम्मीद भी नहीं कर सकती। नमिता दीदी परफेक्ट है क्योंकि उनके ससुराल वाले परफेक्ट है। पर यहां तो कुछ भी कहना ही बेकार है"

कहकर आरती अपनी थाली लेकर कमरे में चली गई। 

पीछे विद्या जी मुंह फुला कर बैठ गई। आखिर आज उनकी बहू ने उन्हें आईना जो दिखा दिया था। 




जुलाई मास 2025 का पंचांग 

भारतीय व्रतोत्सव जुलाई -2025

भारतीय व्रतोत्सव - दि. 1- कुमार षष्ठी, स्कन्द षष्ठी,दि. 3- दुर्गाष्टमी,दि. 4- भड्डली नवमी, मेला शरीफ भवानी (का.), मनसा पूजा (बं.) प्रारम्भ, गुप्त नवरात्र पूर्ण,दि. 6- देवशयनी एकादशी व्रत, चातुर्मास व्रत प्रारम्भ,दि. 8- भौम प्रदोष व्रत, जया पार्वती व्रतारंभ,दि. 10- सत्य व्रत, व्यास पूजा, गुरु पूर्णिमा, संन्यासियों का चातुर्मास प्रारम्भ,दि. 11- हिण्डोले प्रारम्भ ब्रजमण्डल,दि. 14- श्री गणेश चतुर्थी व्रत,दि. 15- नाग पंचमी (मरु, व बं.),दि. 16- संक्रांति पुण्य,दि. 17- कालाष्टमी,दि.21- कामिका एकादशी व्रत, दि. 22- भौम प्रदोष व्रत, दि.23-मास शिवरात्रि,24 हरियाली अमावस दि.26- सिंधारा ,दि. 27- मधुक्षया तीज, मंगलागौरी पूजन ,दि. 28- वरन् चतुर्थी, विनायक चतुर्थी ,दि. 29- नाग पंचमी, दि. 29 - कल्कि जीती, वरुण छठ, दि. 31-गो. तुलसीदास जयंती,शीतला सप्तमी

मूल विचार जुलाई -2025

मूल विचार - दि. 8 को 1/11 से दि.10 को 4/49 तक, दि. 17 को 4/50 से दि. 19 को 2/13 तक, दि. 25 को 16/00 से दि. 27 को 16/23 बजे तक गण्ड मूल नक्षत्र हैं।


ग्रह स्थिति जुलाई -2025 

ग्रह स्थिति -  दि. 5 गुरु पूर्वोदय,दि. 13 शनि वक्री,दि. 16 कर्क में सूर्य,दि. 18 बुध वक्री,दि. 20 बुध पश्चिमास्त,दि. 26 मिथुन में शुक्र,दि. 28 कन्या में मंगल 



पंचक विचार जुलाई -2025  

पंचक विचार -(धनिष्ठा नक्षत्र के तृतीय चरण से रेवती नक्षत्र तक) पंचको में दक्षिण दिशा की ओर यात्रा करना मकान दुकान आदि की छत डालना चारपाई पलंग आदि बुनना,दाह संस्कार,बांस की चटाई दीवार प्रारंभ करना आदि स्तंभ रोपण तांबा पीतल तृण काष्ट आदि का संचय करना आदि कार्यों का निषेध माना जाता है समुचित उपाय एवं पंचक शांति करवा कर ही उक्त कार्यों का संपादन करना कल्याणकारी होगा ध्यान रहेगा  पंचर नक्षत्रों का विचार मात्र उपरोक्त विशेष कृतियों के लिए ही किया जाता है विवाह मंडल आरंभ गृह प्रवेश प्रवेश उपनयन आदि मुद्दों से तो पंचक नक्षत्रका प्रयोग शुभ माना जाता है, दि. 13 को 18 /53 से दि. 18  को 03/38 बजे तक पंचक हैं।

 अधिक जानकारी के लिए संपर्क करे शर्मा जी - 9312002527,9560518227

भद्रा विचार जुलाई -2025 

भद्रा काल का शुभ अशुभ विचार - भद्रा काल में विवाह मुंडन, गृह प्रवेश, रक्षाबंधन आदि मांगलिक कृत्य का निषेध माना जाता है परंतु भद्रा काल में शत्रु का उच्चाटन करना,स्त्री प्रसंग में,यज्ञ करना,स्नान करना,अस्त्र शस्त्र का प्रयोग,ऑपरेशन कराना, मुकदमा करना,अग्नि लगाना,किसी वस्तु को काटना,भैस,घोड़ा व ऊंट संबंधी कार्य प्रशस्त माने जाते हैं सामान्य परिस्थिति में विवाह आदि शुभ मुहूर्त में भद्रा का त्याग करना चाहिए परंतु आवश्यक परिस्थितिवश अतिआवश्यक कार्य भूलोक की भद्रा ,भद्रा मुख छोड़कर कर भद्रा पुच्छ में शुभ कार्य कर सकते है

दि. 2 को 11/58 से दि. 3 को 1/02 तक, दि. 6 को 8/09 से 21/15 तक, दि. 10 को 1/37 से 13/55 तक, दि. 13 को 13/27 से दि. 14 को 1/02 तक, दि. 16 को 21/02 से दि. 17 को 8/07 तक, दि. 20 को 1/27 से 12/13 तक, दि 23 को 4/39 से 15/32 तक, दि. 28 को 10/58 से 23/24 बजे तक भद्रा है।

अधिक जानकारी के लिए संपर्क करे शर्मा जी - 9312002527,9560518227

सर्वार्थ सिद्धि योग जुलाई -2025  

दैनिक जीवन में आने वाले महत्वपूर्ण कार्यों के लिए शीघ्र ही किसी  शुभ मुहूर्त का अभाव हो,किंतु शुभ मुहर्त के लिए अधिक दिनों तक रुका ना जा सकता हो तो इन सुयोग्य वाले मुहर्तु  को सफलता से ग्रहण किया जा सकता है | इन से प्राप्त होने वाले अभीष्ट फल के विषय में संशय नहीं करना चाहिए यह योग हैं सर्वार्थ सिद्धि,अमृत सिद्धि योग एवं रवियोग | योग्यता नाम तथा गुण अनुसार सर्वांगीण सिद्ध कारक  है| 

अधिक जानकारी के लिए संपर्क करे शर्मा जी - 9312002527,9560518227

दिनांक

प्रारंभ

दिनांक

समाप्त

02

11-07

03

05-32

05

05-33

05

19-51

07

05-34

08

01-11

12

06-36

13

06-52

17

05-39

19

02-13

21

05-40

22

05-41

24

05-42

25

05-42

30

05-46

30

21-52


चौघड़िया मुहूर्त 

चौघड़िया मुहूर्त देखकर कार्य या यात्रा करना उत्तम होता है। एक तिथि के लिये दिवस और रात्रि के आठ-आठ भाग का एक चौघड़िया निश्चित है। इस प्रकार से 12 घंटे का दिन और 12 घंटे की रात मानें तो प्रत्येक में 90 मिनट यानि 1.30 घण्टे का एक चौघड़िया होता है जो सूर्योदय से प्रारंभ होता है|

सुर्य उदय- सुर्य अस्त जुलाई -2025  


दिनांक 

01 

05 

10 

15

20 

25 

28

उदय 

05-28

05-29

05-32

05-34

05-37

05-40

05-42

अस्त 

19-21

19-21

19-20

19-18

19-16

19-14

19-11


 राहू काल 

 राहुकाल -राहुकाल दक्षिण भारत की देन है,दक्षिण भारत में राहु काल में कृत्य करना अच्छा नहीं माना जाता, राहु काल में शुभ कृतियों में वर्जित करने की परंपरा अब हमारे उत्तरी भारत में भी अपनाने लगे हैं राहुकाल प्रतिदिन सूर्यादि वारों में भिन्न-भिन्न समय पर केवल डेढ़ डेढ़ घंटे के लिए घटित होता है |

संक्रांति विचार

इस मास की संक्रान्ति कर्क श्रावण कृष्ण षष्ठी बुधवार दि. 16 जुलाई को अपराह्न 17/50 पर 45 मु. बैठी धापी पश्चिम गमन वायव्य दृष्टि किये वरुण मण्डल में प्रवेश करेगी। गतवार 4, गत नक्षत्र 5, बुधवारी संक्रान्ति होने से सभी प्रकार के रस पदार्थ, गुड़, खाण्ड, तिलहन आदि वस्तुओं में तेजी बनेगी। गुरु-शुक्र की युति सभी प्रकार का अन्न तेज रहेगा। मीन राशि में शनि वक्री होने से जो वस्तु मन्दी मिले संग्रह करो। आगे मार्गी होने पर उनमें तेजी बनेगी, विशेषकर तिलहन पदार्थ।

आकाश लक्षण

मास में ग्रहचाल व नाड़ी परिवर्तन के प्रभाव से कहीं वर्षा होगी। कहीं सूखा पड़ेगा। कहीं बाढ़ आदि से धन-जन हानि होगी। कहीं पहाड़ी क्षेत्रों में भूस्खलन आदि से हानि होगी। पहाड़ी क्षेत्रों में बादल फटने से हानि के संकेत भी हैं।

  मांगलिक दोष विचार परिहार

वर अथवा कन्या दोनों में से किसी की भी कुंडली में 1,4,7,8 व 12 भाव में मंगल होने से ये मांगलिक माने जाते हैं,मंगली से मंगली के विवाह में दोष न होते हुए भी जन्म पत्रिका के अनुसार गुणों को मिलाना ही चाहिए यदि मंगल के साथ शनि अथवा राहु केतु भी हो तो प्रबल मंगली डबल मंगली योग होता है | इसी प्रकार गुरु अथवा चंद्रमा केंद्र हो तो दोष का परिहार भी हो जाता है |इसके अतिरिक्त मेष वृश्चिक मकर का मंगल होने से भी दोष नष्ट हो जाता है | इसी प्रकार यदि वर या कन्या किसी भी कुंडली में 1,4,7,9,12 स्थानों में शनि हो केंद्र त्रिकोण भावो में शुभ ग्रह, 3,6,11 भावो में पाप ग्रह हों तो भी मंगलीक दोष का आंशिक परिहार होता है, सप्तम ग्रह में यदि सप्तमेश हो तो भी दोष निवृत्त होता है |

स्वयं सिद्ध मुहूर्त

 स्वयं सिद्ध मुहूर्त चैत्र शुक्ल प्रतिपदा वैशाख शुक्ल तृतीया अक्षय तृतीया आश्विन शुक्ल दशमी विजयदशमी दीपावली के प्रदोष काल का आधा भाग भारत में से इसके अतिरिक्त लोकाचार और देश आचार्य के अनुसार निम्नलिखित कृतियों को भी स्वयं सिद्ध मुहूर्त माना जाता है बडावली नामी देव प्रबोधिनी एकादशी बसंत पंचमी फुलेरा दूज इन में से किसी भी कार्य को करने के लिए पंचांग शुद्धि देखने की आवश्यकता नहीं है परंतु विवाह आदि में तो पंचांग में दिए गए मुहूर्त व कार्य करना श्रेष्ठ रहता है।

विवाह मुहर्त जुलाई - 2025 

देव शयन के कारण जुलाई मे विवाह मुहर्त नहीं होते कुछ जगह अपवाद है । अधिक जानकारी के लिए  संपर्क करें शर्मा जी 9312002527 

अधिक जानकारी के लिए संपर्क करे शर्मा जी - 9312002527,9560518227




देवशयनी एकादशी

आषाढ़ शुक्ल की एकादशी को देव सोते हैं इसलिये इसे देवशयनी एकादशी कहते हैं। यह एकादशी आषाढ़ शुक्ल की एकादशी को मनाई जाती है। इसके बाद कार्तिक सुदी एकादशी को देव उठते हैं इसलिये इसे देवउठान कहते हैं। आषाढ़ की इस एकादशी को व्रत करना चाहिए। भगवान का नया बिछौनार बिछा कर भगवान को सजाना चाहिए और जागरण करके पूजा करनी चाहिये

देवशयनी एकादशी व्रत की कथा

सूर्यवंश में मान्धाता नामक प्रसिद्ध सत्यवादी राजा अयोध्यापुरी में राज्य करता था। एक समय उसके राज्य में अकाल पड़ गया। प्रजा दुखी होकर भूखी मरने लगी, हवनादि शुभ कर्म बन्द हो गये। राजा को कष्ट हुआ। इसी चिंता में वह वन को चल पड़ा और अंगिरा ऋषि के आश्रम में जा पहुँचा। वह ऋषि से बोला- "हे सप्तऋषियों में श्रेष्ठ अंगिराजी! मैं आपकी शरण में आया हूं। मेरे राज्य में अकाल पड़ गया है, प्रजा कहती है राजा के पापों से प्रजा को दुख मिलता है। मैंने अपने जीवन में किसी प्रकार कोई पाप नहीं किया। आप दिव्य दृष्टि से देखकर कहो कि अकाल पड़ने का क्या कारण है?" अंगिरा ऋषि बोले- "सतयुग में ब्राह्मणों का वेद पढ़ना और तपस्या करना धर्म है परन्तु आपके राज्य में आजकल एक शूद्र तपस्या कर रहा है। शूद्र को मारने से दोष दूर हो जायेगा, प्रजा सुख पायेगी।" मान्धातार बोले- "मैं उस निरपराध तपस्या करने वाले शूद्र को नहीं मारूंगा। आप इस कष्ट से छूटने का कोई और सरल उपाय बताइये।" ऋषि बोले-"सरल उपाय बताता हूं. भोग तथा मोक्ष देने वाली देवशयनी एकादशी है। इसका विधिपूर्वक व्रत करो। उसके प्रभाव से चातुर्मास तक वर्षा होती रहेगी। इस एकादशी का व्रत सिद्धियों को देने वाला तथा उपद्रवों को शांत करने वाला है। मुनि की शिक्षा से मान्धाता ने प्रजा सहित प‌द्मा एकादशी का व्रत किया और कष्ट से छूट गया। इसका माहात्म्य पढ़ने या सुनने से अकाल मृत्यु के भय दूर हो जाते हैं। आज के दिन तुलसी का बीज पृथ्वी या गमले में बोया जाये तो महापुण्य होता है। तुलसी के प्रताप से यमदूत भय खाते हैं। जिनका कण्ठ तुलसी माला से सुशोभित हो उनका जीवन धन्य समझना चाहिए।

कामिका एकादशी 

कामिका एकादशी श्रावण मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को बनाई जाती है इसे पवित्रता के नाम से भी जाना जाता है | प्रातः स्नानादि करके भगवान विष्णु की प्रतिमा को पंचामृत से स्नान कराकर भोग लगाया जाता है | आचमन के पश्चात धूप दीप चंदन आदि सुगंधित पदार्थों से आरती उतारनी चाहिए | कामिका एकादशी व्रत की कथा - एक समय की बात है कि किसी गांव में एक ठाकुर रहा करते थे | वह बहुत ही क्रोधी स्वभाव के थे क्रोधवश उनकी एक ब्राह्मण से भिड़ंत हो गई जिसका परिणाम यह हुआ कि वह ब्राह्मण मारा गया | उस ब्राह्मण के मरणोपरांत उन्होंने उसकी तेहरवीं करनी चाही लेकिन सब ब्राह्मणों ने भोजन करने से इंकार कर दिया तब उन्होंने सभी ब्राह्मणों से निवेदन किया कि हे भगवान मेरा पाप कैसे दूर हो सकता है कृपया कोई उपाय बताए | भगवान से की इस प्रार्थना पर उन सब ने उसे एकादशी व्रत करने की सलाह दी ठाकुर ने वैसे ही किया | रात में भगवान की मूर्ति के पास जब वह शयन कर रहा था तभी उसने एक सपना देखा सपने में भगवान ने उसे दर्शन देकर कहा कि ठाकुर तेरा सारा पाप दूर हो गया अब तो तू ब्राह्मण की तेहरवीं भी कर सकता है तेरे घर सूतक नष्ट हो गया है | ठाकुर पूरे विधि विधान से तेहरवीं करके ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्त हो गया और अंत में कामिका एकादशी व्रत के प्रभाव से मोक्ष प्राप्त करके विष्णुलोक को चला गया |

एकादशी वाले  दिन  मंत्रों का जाप किया जाता है।

एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा करने से विष्णु भगवान खुश होते  है । एकादशी वाले  दिन निम्नलिखित मंत्रों का जाप किया जाता है।

एकादशी वाले दिन जपने योग्य मंत्र इस प्रकार हैं -  "ॐ नमो भगवते वासुदेवाय", "ॐ नारायणाय विद्महे, वासुदेवाय धीमहि, तन्नो विष्णु प्रचोदयात्", "शान्ताकारं भुजगशयनं पद्मनाभं सुरेशं, विश्वाधारं गगनसदृशं मेघवर्णं शुभाङ्गम्। लक्ष्मीकान्तं कमलनयनं योगिभिर्ध्यानगम्यं वन्दे विष्णुं भवभ्यहरं सर्वलोकैकनाथम्॥" एकादशी के दिन इन मंत्रों का जाप करने से आध्यात्मिक लाभ मिलता है और भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है व मरने पर वैकुंठ धाम मिलता है ।









जुलाई मास के महत्वपूर्ण दिवस 

1 जुलाई -  नाना साहब पेशवा का राज्याभिषेक (1857)

1 जुलाई - राष्ट्रीय अमेरिकी डाक टिकट दिवस
1 जुलाई - राष्ट्रीय जिंजरस्नेप दिवस
2 जुलाई - विश्व यूएफओ दिवस
2 जुलाई - राष्ट्रीय एनीसेट दिवस
3 जुलाई - राष्ट्रीय फ्राइड क्लैम दिवस
4 जुलाई - यूएसए स्वतंत्रता दिवस

4 जुलाई -  स्वामी विवेकानंद पुण्यतिथि (1902)
5 जुलाई - अल्जीरिया स्वतंत्रता दिवस,

5 जुलाई - वेनेजुएला स्वतंत्रता दिवस,

5 जुलाई - संयुक्त राज्य अमेरिका में स्वतंत्रता दिवस

6 जुलाई - विश्व जूनोसिस दिवस

6 जुलाई लक्ष्मीबाई केतकर (1909)

6 जुलाई - श्याम प्रशाद मुखर्जी की जयंती (1901)
7 जुलाई - विश्व चॉकलेट दिवस 

7 जुलाई- वैश्विक क्षमा दिवस 

9 जुलाई- राष्ट्रीय चीनी कुकी दिवस

9 जुलाई- नुनावुत दिवस 

10 जुलाई - गुरु पूर्णिमा 

11 जुलाई - श्रावण मास प्रारंभ 

10 जुलाई- वैश्विक ऊर्जा स्वतंत्रता दिवस

11 जुलाई - विश्व जनसंख्या दिवस
11 जुलाई - राष्ट्रीय 7-इलेवन दिवस
12 जुलाई - राष्ट्रीय सादगी दिवस
12 जुलाई - पेपर बैग दिवस
12 जुलाई- मलाला दिवस

13 जुलाई -: राष्ट्रीय फ्रेंच फ्राइ दिवस

14 जुलाई - बैस्टिल दिवस या फ्रांसीसी राष्ट्रीय दिवस

14 जुलाई -  बाजीराव प्रभु देशपांडे का बलिदान (1660)

14 जुलाई - प्रोफेसर राजेंद्र सिंह स्मृति दिवस (2003)
15 जुलाई -  विश्व युवा कौशल दिवस

15 जुलाई - सोशल मीडिया गिविंग डे

17 जुलाई - विश्व अंतर्राष्ट्रीय न्याय दिवस

 17 जुलाई - विश्व इमोजी दिवस

18 जुलाई - अंतर्राष्ट्रीय नेल्सन मंडेला दिवस
20 जुलाई - अंतर्राष्ट्रीय शतरंज दिवस

20 जुलाई - चंद्र दिवस,नील आर्मस्ट्रांग ने चंद्रमा पर कदम रखा 

22 जुलाई - पाई सन्निकटन दिवस
22 जुलाई- राष्ट्रीय ध्वज दिवस

22 जुलाई - राष्ट्रीय आम दिवस या आम दिवस

23 जुलाई चंद्रशेखर आजाद जयंती, (1906),

23 जुलाई - संत नामदेव का देह त्याग (1407)

24 जुलाई - राष्ट्रीय थर्मल इंजीनियर दिवस

24 जुलाई (जुलाई में चौथा गुरुवार) - राष्ट्रीय जलपान दिवस
25 जुलाई - विश्व भ्रूणविज्ञानी दिवस

25 जुलाई (जुलाई का आखिरी शुक्रवार) - सिस्टम एडमिनिस्ट्रेटर प्रशंसा दिवस
26 जुलाई - कारगिल विजय दिवस (1999)
26 जुलाई - बाबा साहब आप्टे का निधन (1972)
27 जुलाई- एपीजे अब्दुल कलाम की पुण्यतिथि

28 जुलाई - विश्व प्रकृति संरक्षण दिवस
28 जुलाई - विश्व हेपेटाइटिस दिवस 

28 जुलाई - राष्ट्रीय अभिभावक दिवस (जुलाई में चौथा रविवार)
29 जुलाई - अंतर्राष्ट्रीय बाघ दिवस

30 जुलाई - अंतर्राष्ट्रीय मैत्री दिवस










गुरु आश्रम की ओर

गोपाल माहेश्वरी

प्रातःकाल पाँच बजने को थे कि घर में खटर-पटर की आवाजों से गौरव की नींद टूट गई। उसे पता था दादा जी- दादी जी जल्दी जागते हैं लेकिन आज तो सारा घर ही उनके साथ जागा-सा लग रहा था। उसने चादर से मुँह निकाला तो देखा न दादी बिस्तर पर थी न दादाजी, फिर भी उसका मन उठने का न हुआ। “गंगे च यमुने चैव गोदावरी सरस्वती ….” श्लोक की ध्वनि स्नानघर से आ रही थी, मतलब दादाजी नहा रहे हैं। और “जाग जाग जमुना महारानी दुनिया दर्शन आई जी, जाग जाग हरि की पटरानी दुनिया दर्शन आई जी।।” मधुर प्रभाती के स्वर दादी के कंठ से फूटकर पूजा घर से आ रहे थे।

“दादी जी! देखो पिता जी बगीचे से कितने सारे फूल लाए हैं, मैं नहा ली हूँ इनकी माला बना दूँ?” गरिमा का स्वर सुनकर गौरव सोचने लगा “अरे चिड़िया से पहले ये मुनिया जाग गई और नहा भी ली!!” फिर जैसे अपने आप को टोका “अरे! जाग जा गौरव! आज अवश्य कोई विशेष बात है जो सारा घर अभी से तैयार हो गया है। उठ नहीं तो तू ही  रह जाएगा फसड्डी।” तभी माँ उधर आई और उसे चादर ओढ़े पर हाथ पैर हिलाते देख बोली “जागो मोहन प्यारे!” गौरव को माँ लाड़ से मोहन प्यारे कह कर ही उठाती थी। वह चटपट उठ बैठा। पहले धरती माता को फिर सामने लगे गोवर्द्धनधारी श्रीकृष्ण जी के चित्र को प्रणाम किया। दादा जी नहा कर आ गए थे, धोती बाँध रहे थे, उन्हें, फिर दादी जी और माता पिता को प्रणाम किया। छोटी बहिन गरिमा ने उसे हाथ जोड़कर “जय श्रीकृष्ण” कहा, उसे जय श्रीकृष्ण कह कर 

उत्तर दिया और फटाफट नहा-धोकर तैयार होने निकल पड़ा।

थोड़ी देर बाद घर के सामने एक ताँगा रुका। हर में अब ताँगे नाममात्र को ही बचे थे पर घर में कार होने पर भी इस परिवार के लोग कभी कभी ताँगे की सवारी ही मँगवा लेते थे। द्वार पर ताँगा तो विशेष हर्षमय आश्चर्य का कारण बन गया था गौरव के लिए। माँ ने फल-फूल मिठाई से भरी डलियाएँ रखीं। गौरव ताँगेवाले के पास आगे बैठा शेष परिवार पीछे।

‘सद्गुरुदेव भगवान की जय’ के घोष के साथ ताँगा चल पड़ा। घोड़े की लयबद्ध टापों और घुँघरुओं की आवाज से सूर्योदय के कुछ पूर्व का वातावरण अद्भुत अनुभव करा रहा था। शीतल पवन, फूलों की सुगंध चिड़ियों की चहचहाहट और पूरब में देखते ही देखते गहराता केसरिया प्रकाश। कुछ ही देर में वे नगर के बाहर आ पहुँचे थे।

अब उचित समय था कि गौरव अपना आज के आयोजन प्रयोजन संबंधित अज्ञान दूर करे। हमारे देश में उपनिषदों  की परंपरा ऐसे ही बनी होगी। किसी ने जिज्ञासावश किसी योग्य व्यक्ति से कुछ पूछा और उस व्यक्ति ने उसका वास्तविक समाधान किया तो किसी उपनिषद् का जन्म हुआ। मुझे लगता है जिज्ञासाभरे बचपन और समाधानकर्ता दादा-दादी का संवाद भी एक अलिखित अनाम उपनिषद् ही है जो सदियों से रचा जा रहा है निरंतर आज भी। क्या नाम दें इसे? बालोपनिषद्?

आज भी एक ऐसा ही संवाद होने वाला था।

“दादा जी! आज कहाँ जा रहे हैं हम सब?” पीछे मुँह घुमाकर प्रथम प्रश्न पूछा गया।

“गुरु आश्रम।” उत्तर संक्षिप्त पर पूरा था।

“क्यों? आज क्या है?”

“आज है गुरुपूर्णिमा। हम गुरुदेव के दर्शन करने जा रहे हैं।”

“गुरुपूर्णिमा यानि?”

“भगवान वेदव्यास की जयंती। आषाढ़ी पूर्णिमा।”

“भैया! आप पीछे आ जाओ न? आपकी और दादा जी की गर्दन दुखने लगेगी ऐसे बातें करोगे तो।” गरिमा के स्वर में भोले-सा अपनापन सुझाव बन फूट पड़ा था।

“हाँ, दोनों भाई-बहन यहाँ बैठो मैं आगे बैठ जाता हूँ।” पिता जी ने कहा तो जैसे घोडा़ भी समझ गया हो, वह रुका, बच्चों को ऐसा ही लगा जबकि कमाल ताँगे वाले के हाथों की लगाम का था। गौरव पीछे आ गया।

“गुरु यानि क्या?” प्रश्नोत्तरी आगे बढ़ी।

“गुरु यानि मार्गदर्शक।”

“ …” गौरव मौन होकर सोचने लगा। दादा जी जान गए कि उसे ठीक से समझ में नहीं आया है।

“क्या करना क्या नहीं, कोई काम करने की सही विधि क्या है? उसके परिणाम अपने लिए और दूसरों के लिए कैसे हैं? यह सब कई बार हमें नहीं मालूम होता। हमारा स्वार्थ, मोह, घमंड कई बातें हैं जो हमें 



सच्चाई से भटका देती है तब जो हमें सच बताए, समझाए और कोई गलती हो रही हो तो सुधारे वह गुरु कहलाता है।”

“हमें सड़क पर संकेतक लगे दिखते हैं कौनसा रास्ता कहाँ जाता है बताते हैं, तो वे गुरु हैं क्या?” गौरव की तर्कग्रंथि जाग्रत हो रही थी।

“क्या वे हमें यह बता सकते हैं कि हमारा उस रास्ते पर जाना ठीक है या नहीं?”

“कभी कभी यह संकेत भी मिल जाते हैं। आगे खतरनाक मोड़ है, रास्ता बंद है, परिवर्तित मार्ग आदि।”

“और फिर भी कोई उन्हें देखकर अनदेखा कर जाए तो?”

“तब गलती ऐसा करने वाले की होगी।”

“ये संकेतक सूचनाएँ है। शास्त्रों में भी ऐसी कई अच्छाई बुराई संबंधित बातें लिखी हैं, पर कोई जाने, न जाने, जानकर भी माने, न माने, यहीं गुरु की भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है बेटे! “दादा जी समझा रहे थे। सामने कोई सूचनापट लिखा दिखा पर उसे किसी ने नहीं पढा। तभी सुनसान रास्ते पर बढ़ते ताँगे वाले को एक गाँव वाले ने टोका।” इधर नहीं आगे बड़ा गड्ढा है उधर से निकल जाओ।”

ताँगे वाला हँसा “अरे! रहने दे भाई! नया ज्ञान। बहुत बार गया हूँ इधर से।”

“जमीन घँस गई है सड़क की। नहीं जाने दूँगा देखते नहीं घर-गृहस्थी के लोग बैठे हैं ताँगे में।” वह दोनों हाथ फैलाए ताँगे के आगे ही खड़ा हो गया। ताँगे का रास्ता बदलना ही पड़ा।

“इस समय यह गाँव वाला गुरु की भूमिका में है ऐसा ही जीवन में भी होता रहता है।”

“इस गाँव वाले का काम तो मेरा गूगल-गुरु भी कर सकता है।” गौरव ने मोबाइल पर गूगल मेप खोला। सचमुच पहले वाला रास्ता बंद था।”

“गूगल दिखा रहा है पर रोक सकता है क्या? गाँव वाले ने रोक दिया। देखो बेटे! गूगल, गुरु नहीं हो सकता।”

“ज्ञान का भंडार है यह दादाजी! इतना ज्ञान किसी भी मनुष्य के पास नहीं हो सकता।” गौरव ने समझा यह तर्क दादा जी को निरुत्तर कर देगा, पर यह भ्रम भी टूट गया जब वे बोले “ज्ञान और सूचना में अंतर है। सूचना सचेत कर सकती है पर ज्ञान बोध कराता है। गूगल सबको समान रूप से अच्छी-बुरी, उपयोगी-अनुपयोगी जानकारियाँ बता देता है लेकिन उन जानकारियों, सूचनाओं को हितकारी अहितकारी, अभली बुरी इस, उपयोगकर्ता को  क्या बताना, कितनी बताना, कैसे बताना या उसे छुपा लेना, बताने न बताने का जानने वाले पर प्रभाव-दुष्प्रभाव यह सब विवेक, उस यंत्र के पास नहीं है इससे हमारा मस्तिष्क अनावश्यक जानकारियों से भी भरा रहता है। गुरु यह सब विचार करता है। ज्ञान देने के पहले पात्रता निर्माण करता है बढ़ाता है। इसलिए गूगल को गुरु मानने की भूल मत करना।”

“इसलिए जीवन में गुरु बनाना बहुत जरूरी है नहीं तो मुक्ति नहीं होती, समझा कुछ? “अब दादी का मौन टूटा था वह पोते के सिर पर हाथ घुमाते हुए स्नेह से बोलीं।

“मुक्ति क्या दादी?” गरिमा ने पूछ लिया जानना तो गौरव को भी था।

अब बच्चों को क्या उत्तर देना इस प्रश्न का यह दादा जी जानते थे इसलिए दादी की ओर से वे बोल पड़े 

“मुक्ति यानि हम किसी बात को न जाने की उलझन से छूट जाएँ और उसे जान लें यही समझ लो तुम अभी। “दादी-दादा जी की ओर कृतज्ञता से देख रही थी।

“तो गौरव! गुरु बनाओगे या गूगल से ही काम चलाओगे?” पिता जी ने पूछा।

“मुझे गुरु बनाने की क्या आवश्यकता? मैं नहीं बनाऊँगा।” गौरव ने गंभीर मुद्रा बनाकर कहा तो सब अवाक् रह गए। माँ का मुख क्रोध से तमतमा उठा “क्या उद्दंडता है यह गौरव! थप्पड़ खाओगे?”

गौरव मुस्कुरा उठा “मैं गुरु नहीं बनाऊँगा क्योंकि मेरे गुरुदेव तो मेरे सामने बैठे हैं, मेरे दादा जी।”

सब लोग खिलखिला उठे। ताँगा रुक गया। सामने  गुरु आश्रम सामने था।

“आप मेरे गुरु हैं ही पर आपको भी किसी गुरु की आवश्यकता है दादा जी?” गौरव ने उतरते उतरते पूछ लिया।

“यह सच है बेटा कि बचपन में हमारे माता-पिता, घर-परिवार के बड़े, अनुभवी लोग भी गुरु की भूमिका में होते हैं। माँ तो जीवन की प्रथम गुरु होती ही है फिर बड़े होने के साथ साथ विद्यालय के शिक्षक भी यह भूमिका निर्वाह करने लगते हैं। और बड़े होने पर हमारे कामकाज के क्षेत्र में कई लोग कुछ न कुछ सिखाते हैं और कामकाज के क्षेत्र के बाहर भी कई लोग मार्गदर्शक सिद्ध होते हैं। एक प्रकार से इन सबमें गुरुतत्व है। जिससे भी जीवन में कुछ भी आगे बढ़ने की दृष्टि मिले वे सब गुरुरूप हैं भगवान दत्तात्रेय ने ऐसे ही चौबीस गुरु बनाए थे उनमें तो कीट पतंगे पशु-पक्षी तक भी हैं फिर मनुष्यों की तो बात ही क्या? “दादा जी ने समझाया।

“पर आपके गुरु के बारे में नहीं बताया आपने।” गौरव ने जिज्ञासा की।

“अभी मैंने जो बताए वे संसार का ज्ञान देने वाले लोग हैं। अभिभावक, शिक्षक, मार्गदर्शक, आचार्य आदि नामों से पुकारकर हम इनसे श्रद्धापूर्वक बहुत कुछ जानते समझते सीखते है लेकिन जिसे सही अर्थों में गुरु कहते हैं वह इन सबसे श्रेष्ठ होता है वह हमें अध्यात्म का ज्ञान कराता है। हमारे और सारे संसार में एक ही परमात्मा है इसलिए सब हमारे जैसे ही हैं कोई दूसरा नहीं ऐसा अनुभव करवाने वाला ही गुरु है। हम आश्रम में ऐसे ही महात्मा के दर्शन सत्संग को आए हैं। जलता हुआ दीपक ही दूसरे दीपक को जला सकता है ऐसे ही वही सच्चा गुरु हो सकता है जो स्वयं अध्यात्म ज्ञान से पूर्ण हो। बड़े भाग्य से ही ऐसे पहुँचे हुए महापुरुष मिल पाते हैं। ऐसे गुरु भगवान से भी बड़े होते हैं क्योंकि वे ही हमें भगवान का दर्शन भी करा सकते हैं।”

आश्रम में एक आम के वृक्ष के नीचे भगवा लंगोटी लगाए अत्यंत तेजस्वी महात्मा बैठे थे। दादा जी ने सपरिवार साष्टांग दण्डवत प्रणाम किया। गौरव का मन उठने का हो ही नहीं रहा था। महात्मा जी ने उसके मस्तक पर हाथ स्पर्श कर उसे उठा लिया।

आश्रम में बने पंडाल में कोई प्रवचनकर्ता कह रहे थे –

तीन लोक नौ खंड में गुरुसे बड़ा न कोय। कर्ता करे न करि सकै, गुरू करे सो होय।।

(लेखक इंदौर से प्रकाशित ‘देवपुत्र’ बाल मासिक पत्रिका के कार्यकारी संपादक है।)


बंदउँ गुरु पद कंज कृपा सिंधु नररूप हरि।महामोह तम पुंज जासु बचन रबि कर निकर॥

मैं उन गुरु महाराज के चरण कमल की वंदना करता हूँ, जो कृपा के समुद्र और नर रूप में श्री हरि ही हैं और जिनके वचन महामोह रूपी घने अन्धकार का नाश करने के लिए सूर्य किरणों के समूह हैं॥5॥



गुमराह 


अरशिता

सुनीता एक बहुत ही सीधी सादी लड़की थी ,विवाह योग्य होने पर माता पिता ने राजकुमार नामक लड़के से विवाह तय कर दिया जो अपने माता पिता का इकलोता लड़का था,शादी धूमधाम से हुई और कुछ वर्ष बाद एक लड़के का जन्म हुआ ,खूब खुशी मनाई गई लड़का धीरे धीरे बड़ा होने लगा इधर समय के साथ राजकुमार और सुनीता के माता पिता भी दुनियां में नही रहे,अमित नाम था लड़के का ,

धीरे धीरे बीस वर्ष का हो गया स्कूल मे टॉपर था,हाईस्कूल का रिजल्ट निकला तो फिर टॉप आया दोस्तो ने पार्टी रख्खी,पार्टी शहर से दूर एक जंगली एरिया में थी,एक आलीशान कोठी थी जंगल मे,

माता पिता को घर मे प्रणाम करने के बाद शाम को सभी के साथ पार्टी की फिर यह बताकर की रमन ने पार्टी दी है तो हम इंज्वाय करेंगे,सुनीता व राजकुमार ने सोंचा चलो कभी कभी इंज्वाय करने भी दो रात दिन तो पढ़ता ही है,कोठी में पहुंचते ही तेज म्यूजिक व मेज पर शराब की कुछ बोतल थी,अमित ने कहा यह क्या म्यूजिक तो ठीक थी पर यह क्या शराब क्यो ,तो रमन बोला यार एक दिन की ही तो बात है कौन सा पहाड़ टूटने बाला है,सुवह जब घर जाएंगे तो नशा उतर जायेगा,अमित काफी मनमनोउवल के बाद राजी हो गया ,रमन बोला एक गिफ्ट तुम्हे रात में मिलेगा मना मत करना एक दिन की ही तो बात है ,यह दिन कौन रोज आने बाला,पांच दोस्त थे सभी ने पैग लगाये सिगरेट जलाई और झूमकर नाचे फिर थक गये तो अपने अपने रुम में चले गये,अमित जैसे ही रूम में पहुंचा कुछ लड़खड़ाया तो किसी की कोमल बांहों ने थाम लिया बहुत सुंदर था वह स्पर्श,इसके बाद क्या हुआ अमित को न पता 


चला और सुवह उठा तो देखा वह खूबसूरत नव यौवना तैयार होकर जाने वाली थी,अमित ने रोक लिया कौन हो तुम इतनी खूबसूरत हो फिर भी यह गंदा काम करती हो,वत्सला नाम था उसका पलट कर बोली हम लोगो को कौन प्यार करेगा हमारी जिंदगी तो यही बनने बाली है,आज पहली बार आपके साथ थी,कल कोई फिर कोई,अमित ने उसे हाँथ पकड़कर बिठा लिया और बोला यदि हमने आपके जीवन से खेला है तो हम आपको प्यार करेंगे शादी भी करेंगे,वत्सला ने कहा तुम्हारे माता पिता नही तैयार होँगे,अमित ने कहा एक वर्ष बाद हम बालिग हो जाएंगे फिर तुम्हे कानून के रास्ते अपना बना लेंगे कोई बाधा नही होगी,एक वर्ष हम इसी तरह मिलते रहेंगे,अमित वत्सला के ख़्वावो में ही खोया रहता झूँठ बोलकर घर मे घुमाने ले जाता खूब पैसा खर्च करता,यहां तक कि फीस भी,नशे की लत भी लग गई थी ,रिजल्ट आया तो क्लास में सबसे अंतिम नम्वर पर था,

एक दिन अचानक राजकुमार की डेथ हो गई ,औऱ सुनीता अकेली रह गई,कुछ तवियत भी ठीक नही रहती थी,एक दिन अमित ने वत्सला से कहा कि हम अब बालिग है किसी दिन कोर्ट में शादी कर लेंगे,

वत्सला कहने लगी अमित तुम हंमे ज्यादा प्यार करते हो या माँ को,अमित ने कहा माँ को,

तो वत्सला नाराज हो गई,अमित मुस्कराने लगा कहा अरे झूठ बोल रहा था,तुम्हे बहुत चाहता हूं ,तुम्हारे लिये खुद की जान दे सकता हूँ,और किसी की ले भी सकता हूँ,वत्सला बोल उठी तो सबसे पहले अपनी माँ की जान लेनी होगी क्योकि मैं अकेले ही रहना चाहती हूं सिर्फ हम और तुम,अमित का सर चकरा गया और कहा हम यह नही कर सकते हम माँ को बहुत प्यार करते है,वत्सला ने कहा शादी तभी होगी जब आप यह काम करोगे,एक दिन अमित ने खूब शराब पी और माँ की मुंह पर तकिया रखकर उनकी जान ले ली,और वत्सला को बताने गया कि चलो देख लो तुम्हारे प्यार में हमने माँ की जान ले ली,ओह वत्सला चीख उठी, क्या क्या तूने मैं तो तेरे प्यार की परीक्षा ले रही थी,की माँ के कारण तू हंमे छोड़ देगा क्योकि मेरा तो पेशा यही है जो तुमसे छिपकर हमेशा करती रही ,हम लोग यदि शादी करने लगे तो कोठे खाली हो जाएंगे और तेरे जैसे अमीरजादे हमारी कोठी की शान कैसे बनेंगे,ओह इतना बड़ा धोखा मेरे साथ,न पढ़ सका, न माँ का हुआ,न प्यार मिला,इस दुनियां में मेरा कौन है,वत्सला हंस रही थी और एक लड़के का हाँथ पकड़कर कोठी में ले जा रही थी,अमित घर आया और माँ की लाश को लेकर थाने पहुंचा और खुद का गुनाह कबूल लिया,जेल जाते वक्त वही कोठी की रंगीन शाम और 

वह दोस्त याद आ रहे थे,जिन्होंने यह षड्यंत्र रचा था वह सभी अमित की सफलताओं से जलने बाले लोग थे जिन्हें अमित दोस्त समझता था,उन्हें लगता था कि अमित इसी तरह टॉप करता रहा तो वह लोग कभी टॉप नही आएंगे,और यह खेल खेला जो अमित के आजीवन कारावास के साथ समाप्त हुआ...

सबक- बच्चो पर विशेष निगाह रखें उन की हर गतिबिधि पर नजर रखें...!!


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

जानकारी काल हिन्दी मासिक जुलाई -2025

  जानकारी काल      वर्ष-26   अंक - 02        जुलाई - 2025 ,  पृष्ठ 43                www.sumansangam.com      प्रधान संपादक व  प्रकाशक  सती...