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जानकारी काल
वर्ष-22, अंक-08, दिसम्बर - 2021, पृष्ठ 35, मूल्य-2-50
हार नहीं मानूंगा, रार नहीं ठानूंगा
कुतुबमीनार / विष्णु स्तम्भ
कुतुबमीनार का वास्तविक नाम विष्णु स्तंभ है जिसे कुतुबदीन ने नहीं बल्कि सम्राट चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य के नवरत्नों में से एक और खगोलशास्त्री वराहमिहिर ने बनवाया था. विष्णु स्तम्भ के पास जो बस्ती है उसे महरौली कहा जाता है. यह एक संस्कृत शब्द है जो मिहिर शब्द से बना है और यह खगोलशास्त्री वराहमिहिर के नाम पर ही बसा है जहाँ वे रहते थे. उनके साथ उनके सहायक, गणितज्ञ और तकनीकविद भी रहते थे और इस विष्णु स्तम्भ का उपयोग खगोलीय गणना, अध्ययन के लिए करते थे.
इस स्तम्भ के चारों ओर हिंदू राशि चक्र को समर्पित 27 नक्षत्रों या तारामंडलों के लिए मंडप या गुंबजदार इमारतें थीं. कुछ इतिहास की किताबों में यह जिक्र है कि कुतुबुद्दीन ने इन सभी मंडपों या गुंबजदार इमारतों को नष्ट कर दिया था, लेकिन उसमें यह नहीं लिखा है कि उसने कोई मीनार बनबाया. आक्रमणकारी गोरी के गुलाम कुतुबुद्दीन को निर्माण का श्रेय उसी षड्यंत्र के तहत दिया गया जैसे अन्य हिन्दू इमारतों के निर्माण का श्रेय मुसलमानों को दिया गया है अर्थात चाटुकार परवर्ती मुस्लिम लेखकों के द्वारा. मुस्लिम आक्रमणकारी अधिग्रहित हिन्दू मन्दिरों, मठों, भवनों का तोड़फोड़कर केवल स्वरूप बदल दिया करते थे. वे हिंदू इमारतों के ऊपरी आवरण को निकाल लेते थे और अरबी में लिखे दूसरे पत्थरों को इसपर चिपका देते थे.
हिन्दू इमारत होने के पुरातात्विक साक्ष्य
कुतुबमीनार परिसर में स्तंभों और दीवारों पर उकेरे गए मंदिर की घंटियों और मूर्तियों की नक्काशी को अभी भी देखा जा सकता है, कुतुबमीनार परिसर में हिन्दू वास्तुकला से निर्मित मंदिर के सैकड़ो स्तम्भ आज भी देखे जा सकते है. इन स्तंभों से मूर्तियों को हटाने के प्रयास में छतिग्रस्त हिस्से भी साफ देखे जा सकते है. परिसर में उकेरे गए गणेश प्रतिमा को सरकार ने लोहे की जाल से कवर कर रखा है ताकि यहाँ दुबारा पूजा की परंपरा शुरू ना की जा सके. इस मीनार का प्रवेश द्वार उत्तर दिशा में है, पश्चिम में नहीं, जबकि इस्लामी धर्मशास्त्र और परंपरा में पश्चिम का महत्व है. पास में ही जंग न लगने वाले लोहे के खंभे पर ब्राह्मी लिपि में संस्कृत में लिखा है कि विष्णु का यह स्तंभ विष्णुपाद गिरि नामक पहाड़ी पर बना था.
हिन्दू इमारत होने के एतिहासिक साक्ष्य
इतिहासकार पुरुषोत्तम नागेश ओक लिखते हैं, “तथाकथित कुतुबमीनार और अलाई दरवाजा, अलाईमस्जिद वास्तव में विष्णुमन्दिर परिसर का हिस्सा है. अलाईमस्जिद वास्तव में विष्णुमन्दिर का खंडहर है जिसे मुस्लिम आक्रमणकारियों ने नष्ट कर दिया. यहाँ शेषशय्या पर विराजमान भगवान विष्णु की विशाल मूर्ति थी. कुतुबमीनार जो वास्तव में विष्णु स्तम्भ या ध्रुव स्तम्भ है वो एक सरोवर के बिच स्थित था जो कमलनाभ का प्रतीक था. स्तम्भ के उपर कमलपुष्प पर ब्रह्मा जी विराजमान थे जिसे मुस्लिम आक्रमणकारियों ने नष्ट कर दिया. मन्दिर से स्तम्भ तक जाने केलिए पूल जैसा रास्ता बना था”.
ब्रिटिश सर्वेक्षक जोसेफ बेगलर ने अपने रिपोर्ट में लिखा है कि अरबी यात्री इब्नबतूता ने इस सम्पूर्ण परिसर को मन्दिर परिसर कहा है.
इतिहासकार पुरुषोत्तम नागेश ओक लिखते हैं कि अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवसिर्टी के संस्थापक सैय्यद अहमद खान ने भी कुतुबमीनार और उसके पूरे परिसर को हिन्दू निर्माण माना है.
कुतुबमिनार के पास लगे जानकारी पट्ट पर आप स्पष्ट रूप से पढ़ सकते हैं जिसमें यहाँ 27 हिन्दू-जैन मंदिरों के विध्वंस का जिक्र है. ब्रिटिश म्युजियम में संरक्षित जानकारियों के अनुसार सन 1900 तक इसे "राजा पृथ्वीराज मंदिर" नाम से जाना जाता था.
ब्रिटिश सरकार के सर्वेक्षकों के रिपोर्ट में हिन्दू परिसर होने के सबूत
ब्रिटिश सर्वेक्षक जोसेफ बेगलर ने अपने सर्वेक्षण रिपोर्ट में पूरे कुतुबमीनार परिसर को हिन्दू ईमारत न सिर्फ घोषित किया है बल्कि उसे साबित भी किया है पर दुर्भाग्य से भारत सरकार, आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ़ इंडिया और वामपंथी इतिहास्याकर उसे जबरन मुसलमानों का घोषित कर रखा है. जोसेफ बेगलर की रिपोर्ट Archaeological Survey of India; Report for the Year 1871-72 Delhi, Agra, Volume 4, by J. D. Beglar and A. C. L. Carlleyle की किताब में उपलब्ध है जिसे आप निचे के लिंक पर डाउनलोड कर सकते हैं.
https://www.forgottenbooks.com/en/books/ArchologicalSurveyofIndiaReportfortheYear187172_10019541
आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ़ इंडिया के उपर्युक्त किताब में जोसेफ बेगलर की रिपोर्ट इस परिसर को मीनार पर उत्कीर्ण विभिन्न चिन्हों के आधार पर गुप्तकाल से भी बहुत प्राचीन घोषित करता है.
वैसे तो जोसेफ बेगलर ने अपने रिपोर्ट में विस्तार से इस मन्दिर परिसर का वर्णन किया है पर मैं निचे उस किताब के कुछ पन्ने पोस्ट कर रहा हूँ जो तथाकथित कुतुबमीनार की असलियत बताने केलिए पर्याप्त है. आप चाहे तो उपर्युक्त लिंक डाउनलोड कर या उपर्युक्त वेबसाईट से किताब खरीदकर पूरा पढ़ सकते हैं और कुतुबमीनार के अतिरिक्त दिल्ली और आगरा के कई अन्य इमारतों के बारे में भी उसकी रिपोर्ट पढ़ सकते हैं.
जोसेफ बेगलर ने अपने रिपोर्ट में कुतुबमीनार परिसर से खुदाई में देवी लक्ष्मी की मूर्ति मिलने की बात भी लिखी है. इतिहासकार पुरुषोत्तम नागेश ओक ने लिखा है कि इंदिरा गाँधी के शासनकाल में जब आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ़ इंडिया द्वारा कुतुबमीनार परिसर की खुदाई में देवी देवताओं की मूर्तियाँ मिलने लगी तो लोगों की नजरों से बचाने केलिए वहां चारों ओर ऊँचा ऊँचा त्रिपाल लगा दिया गया की कोई देख न ले. वहां के आस पास के लोगों ने बताया की रात्रि के अँधेरे में वहां से मूर्तियाँ ले जाकर दूसरे जगह कहीं रख दिया जाता था.
उपर्युक्त सबूत आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ़ इंडिया और वामपंथी इतिहास्याकारों के झूठ और मक्कारी को साबित करने तथा भारतियों को यह बताने केलिए पर्याप्त है कि कुतुबमीनार किसी आक्रमणकारी का नहीं बल्कि हम सब भारतियों के महान पूर्वज का बनाया हुआ विष्णु स्तम्भ है. आक्रमणकारियों ने तो उस पवित्र स्थल के २७ मन्दिरों को तोड़कर नष्ट भ्रष्ट कर दिया और कुछ को मस्जिद में बदल दिया. इसलिए आज के बाद सभी भारतीय इसे चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य के शासन में महान खगोलशास्त्री वराहमिहिर द्वारा निर्मित इसे विष्णु स्तम्भ ही कहें|
03 दिसम्बर 1884 - डॉ. राजेन्द्रप्रसाद - भारत के प्रथम राष्ट्रपति
भारत में योग शिक्षा
योग आज सर्वदूर सभी की चर्चा का विषय बना है। गत कुछ वर्षों से यह सभी की दिनचर्या का भाग बना है। समाज में यह भी विमर्श बना है कि योग शिक्षा का एक प्रमुख भाग होना चाहिए अर्थात् योग शिक्षा प्रत्येक विद्यार्थी को दी जानी चाहिए। 21 जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस घोषित होना वैश्विक स्तर पर योग की स्वीकार्यता को दर्शाता है।
श्रीमद्भगवद्गीता में योग पर भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं –
योगस्थः कुरु कर्माणि, संग त्यक्त्वा धनंजय। सिद्धयसिद्धयोः समो भूत्वा, समत्वं योग उच्यते॥ (२/४८)
हे धनंजय! तू आसक्ति को त्यागकर तथा सिद्धि और असिद्धि में समान बुद्धिवाला होकर योग में स्थित हुआ कर्त्तव्य कर्मों को कर, समत्व ही योग कहलाता है।
बुद्धियुक्तो जहातीह उभे सुकृतदुष्कृते।तस्माद्योगाय युज्यस्व योगः कर्मसु कौशलम्॥ (२/५०)
समबुद्धियुक्त पुरुष, पुण्य और पाप दोनों को इसी लोक में त्याग देता है अर्थात् उनसे मुक्त हो जाता है। इससे तू समत्व रूप योग में लग जा, यह समत्व रूप योग ही कर्मों में कुशलता है अर्थात कर्मबंध से छूटने का उपाय है |
समाज में योग शिक्षा का जो विमर्श बना है वह केवल योगासन व प्राणायाम तक सीमित रह गया है। योगाचार्य समाज में योग कक्षाएं चलाते है। इस योग कक्षाओं में रोग निवारण हेतु योग अर्थात किस रोग में कौन सा योगासन-प्राणायाम करना अच्छा रहता है अथवा किस योगासन-प्राणायाम को करने से कौन सा रोग नहीं होता, पर ही केंद्रित रहता है।
वास्तव में योग क्या है और योग शिक्षा क्या है? यह समझना शिक्षा क्षेत्र के कार्यकर्ताओं के लिए आवश्यक है। महर्षि पतंजलि ने ‘योग सूत्र’ में अष्टांग योग भारतीय समाज को दिया है। अष्टांग योग यानि जिसके आठ अंग हो। ये आठ अंग कौन-कौन से हैं –
यम,नियम,आसन,प्राणायाम,प्रत्याहार,धारणा,ध्यान एवं समाधि
यम के अंतर्गत पांच बातें है – सत्य,अहिंसा,अस्तेय, अहिंसा व अपरिग्रह। इसी प्रकार नियम के अंतर्गत भी पांच बातें है – शौच,संतोष,तप,स्वाध्याय व ईश्वर-प्राणिधान।
योग भारतीय जीवन शैली है अर्थात भारतीय जीवन शैली का प्रकटीकरण पतंजलि अष्टांग योग के अनुसार जीवन जीने में है। योग आधारित जीवन शैली भारतीय शिक्षा का भाग बने इसके लिए विद्यालय की पाठ्यचर्या में योग शिक्षा अनिवार्य रूप से सम्मिलत हो ताकि रोजगारपरक शिक्षा के साथ एक अच्छे मनुष्य का निर्माण शिक्षा से हो सके।यम के अंतर्गत अपरिग्रह का अर्थ है कि मेरी जितनी आवश्यकता है, उससे अधिक एकत्र नहीं करना। आज के भौतिक जगत की अनेकानेक समस्याएं अधिकाधिक एकत्र करने की प्रवृति के कारण ही उत्पन्न हुई है। आज की पीढ़ी को यदि अपरिग्रह आत्मसात हो जाता है तो वर्तमान व भविष्य के भौतिक जगत की अनेक समस्याओं का समाधान स्वतः ही हो जाएगा।
योग शिक्षा के दो भाग है – एक सैद्धांतिक और एक व्यावहारिक। सिद्धांत का अधिगम व व्यवहारिक का आचरण में प्रकटीकरण आवश्यक है। क्रियान्वयन में दो मूलभूत बातें आवश्यक है –
विद्यालयों के आचार्यों का योग शिक्षा पर मानस, अध्ययन, व विद्यार्थियों को योग करवाने के लिए दक्षता
विद्यार्थियों को योग करवाने के लिए समय की उपलब्धता।
योग शिक्षा विद्यार्थियों के लिए आवश्यक है, यह जितना अधिक आचार्यों के मानस में होगा, उतना अधिक योग शिक्षा का क्रियान्वयन विद्यार्थियों में होगा। आचार्य पतंजलि अष्टांग योग एवं विद्या भारती द्वारा प्रकाशित योग शिक्षा पाठ्यक्रम का अध्ययन करें। साप्ताहिक कालांश योजना में एक अथवा दो कालांश योग शिक्षा को दिए जाए। अष्टांग योग के एक-एक बिंदु, स्वास्थ्य चेतना सम्बंधी छोटी छोटी बातों की अवधरणा बताई जाए। आहार-विहार संबंधी छोटी-छोटी बातों को आचरण में डलवाया जाए।
(लेखक रवि कुमार - विद्या भारती हरियाणा प्रान्त के संगठन मंत्री है और विद्या भारती प्रचार विभाग की केन्द्रीय टोली के सदस्य है।)
भारतीय व्रत और उत्सव दिसम्बर - 2021
दिनांक- 2 प्रदोष व्रत,मास शिवरात्रि,दिनांक - 3 श्री बाला जी जयंती,दिनांक - 4 शनैश्चरी अमावस्या,दिनांक - 7 विनायक चतुर्थी व्रत,दिनांक - 8 श्री राम विवाह उत्सव,दिनांक - 11 श्री दुर्गा अष्टमी,दिनांक -14 मोक्च्दा एकादशी व्रत,दिनांक-16 संक्रांति पुन्य,प्रदोष व्रत,दिनांक -18 सत्य व्रत,दतात्रये जयंती,दिनांक - 19 त्रिपुर भेरव जयंती,दिनांक - 22 श्री गणेश चतुर्थी व्रत,दिनांक - 28 काला अष्टमी,दिनांक - 30 सफला एकादशी व्रत,दिनांक 31 प्रदोष व्रत |
विदुर नीति
यस्य संसारिणी प्रज्ञा धर्मार्थावनुवर्तते।
कामादर्थ वृणीते य: स वै पण्डित उच्यते।।
सांसारिक होते हुये भी( बिना संन्यास लिये ही) जो व्यक्ति धर्म व अर्थ का पालन करता है एवं काम व अर्थ में से अर्थ को प्राथमिकता देता है,वही पण्डित होता है।
पंचक विचार दिसम्बर - 2021
पंचक विचार -(धनिष्ठा नक्षत्र के तृतीय चरण से रेवती नक्षत्र तक) पंचको में दक्षिण दिशा की ओर यात्रा करना मकान दुकान आदि की छत डालना चारपाई पलंग आदि बुनना,दाह संस्कार,बांस की चटाई दीवार प्रारंभ करना आदि स्तंभ रोपण तांबा पीतल तृण काष्ट आदि का संचय करना आदि कार्यों का निषेध माना जाता है समुचित उपाय एवं पंचक शांति करवा कर ही उक्त कार्यों का संपादन करना कल्याणकारी होगा ध्यान रहेगा पंचर नक्षत्रों का विचार मात्र उपरोक्त विशेष कृतियों के लिए ही किया जाता है विवाह मंडल आरंभ गृह प्रवेश प्रवेश उपनयन आदि मुद्दों से तो पंचक नक्षत्रका प्रयोग शुभ माना जाता है पंचक विचार-दिनांक 09 को 10-09 से दिनांक 14 को 02-05 बजे तक पंचक हैं |
भद्रा विचार दिसम्बर - 2021
भद्रा काल का शुभ अशुभ विचार - भद्रा काल में विवाह मुंडन, गृह प्रवेश, रक्षाबंधन आदि मांगलिक कृत्य का निषेध माना जाता है परंतु भद्रा काल में शत्रु का उच्चाटन करना,स्त्री प्रसंग में,यज्ञ करना, स्नान करना, अस्त्र शस्त्र का प्रयोग, ऑपरेशन कराना, मुकदमा करना, अग्नि लगाना, किसी वस्तु को काटना,घोड़ा ऊंट संबंधी कार्य, प्रशस्त माने जाते हैं सामान्य परिस्थिति में विवाह आदि शुभ मुहूर्त में भद्रा का त्याग करना चाहिए परंतु आवश्यक परिस्थितिवश अति आवश्यक कार्य में पंडित जी से विचार कर लेना चाहिए 9312002527
मूल नक्षत्र विचार दिसम्बर - 2021
सर्वार्थ सिद्धि योग दिसम्बर-2021
दैनिक जीवन में आने वाले महत्वपूर्ण कार्यों के लिए शीघ्र ही किसी शुभ मुहूर्त का अभाव हो,किंतु शुभ मुहर्त के लिए अधिक दिनों तक रुका ना जा सकता हो तो इन सुयोग्य वाले मुहर्तु को सफलता से ग्रहण किया जा सकता है | इन से प्राप्त होने वाले अभीष्ट फल के विषय में संशय नहीं करना चाहिए यह योग हैं सर्वार्थ सिद्धि,अमृत सिद्धि योग एवं रवियोग | योग्यता नाम तथा गुण अनुसार सर्वांगीण सिद्ध कारक है|
सुर्य उदय- सुर्य अस्त दिसम्बर-2021
चौघड़िया मुहूर्त
चौघड़िया मुहूर्त देखकर कार्य या यात्रा करना उत्तम होता है। एक तिथि के लिये दिवस और रात्रि के आठ-आठ भाग का एक चौघड़िया निश्चित है। इस प्रकार से 12 घंटे का दिन और 12 घंटे की रात मानें तो प्रत्येक में 90 मिनट यानि 1.30 घण्टे का एक चौघड़िया होता है जो सूर्योदय से प्रारंभ होता है,अगर सूर्य उदय का समय प्रातः है 6:00 बजे माने तो चौघड़िया निम्नलिखित है
ग्रह स्थिति दिसम्बर - 2021
ग्रह स्थिति - दिनांक- 05 मंगल वृश्चिक में,दिनांक- 8 शुक्र मकर में,दिनांक 10 बुध धनु में,दिनांक-16 सूर्य धनु में,दिनांक-19 शुक्र वक्री,दिनांक- 24 बुध पशिचिम उदय, दिनांक-29 बुध मकर में दिनांक-30 शक्र धनु में |
राहू काल
राहुकाल -राहुकाल दक्षिण भारत की देन है,दक्षिण भारत में राहु काल में कृत्य करना अच्छा नहीं माना जाता, राहु काल में शुभ कृतियों में वर्जित करने की परंपरा अब हमारे उत्तरी भारत में भी अपनाने लगे हैं राहुकाल प्रतिदिन सूर्यादि वारों में भिन्न-भिन्न समय पर केवल डेढ़ डेढ़ घंटे के लिए घटित होता है |
बंदउँ नाम राम रघुबर को।
हेतु कृसानु भानु हिमकर को॥
बिधि हरि हरमय बेद प्रान सो।
अगुन अनूपम गुन निधान सो॥
जन्म कुंडली व हस्त रेखा विशेषज्ञ
जन्म कुंडली बनवाने व दिखाने के लिए संपर्क करें लिखे।
जन्म कुंडली के विषय में जानना चाहते हैं तो कृपया जन्म तिथि,
जन्म समय व जनम स्थान अवश्य लिखें।
शर्मा जी - 9560518227,9312002527
संसार में कोई भी मनुष्य सर्वज्ञ नहीं है, सभी लोग अल्पज्ञ हैं।इसलिए सभी लोगों से कहीं न कहीं, छोटी,बड़ी,जाने अनजाने,कुछ न कुछ गलतियां होती ही रहती हैं।
अधिक जानकारी के लिये संपर्क करें - शर्मा जी - 9560518227
मास के महत्व पूर्ण दिवस
1 दिसंबर - विश्व एड्स दिवस (विश्व)
2 दिसंबर - अंतरराष्ट्रीय दास प्रथा उन्मूलन दिवस (विस्व)
3 दिसंबर - अंतरराष्ट्रीय विकलांग दिवस (विश्व)
5 दिसंबर - अंतरराष्ट्रीय मृदा दिवस
4 दिसंबर - भारतीय नौसेना दिवस
7 दिसंबर - भारतीय सशस्त्र सेना झण्डा दिवस
10 दिसंबर - विश्व मानवाधिकार दिवस
11 दिसम्बर - यूनिसेफ दिवस
भारतीय भाषाओं की वर्णमाला वैज्ञानिकता से भरी है।
आज के छात्रों को शायद नहीं पता होगा कि भारतीय भाषाओं की वर्णमाला वैज्ञानिकता से भरी है। वर्णमाला का प्रत्येक अक्षर तार्किक हैं और सटीक गणना के साथ क्रमिक रूप से रखा गया है। इस तरह का वैज्ञानिक दृष्टिकोण अन्य विदेशी भाषाओं की वर्णमाला में शामिल नहीं हैं। जैसे-
क ख ग घ ङ - पाँच के इस समूह को 'कण्ठव्य' या 'कंठ्य' कहा जाता है, क्योंकि इस का उच्चारण करते समय कंठ से ध्वनि निकलती है। उच्चारण का प्रयास करें।
च छ ज झ ञ - इन पाँचों को "तालव्य" कहा जाता है, क्योंकि इसका उच्चारण करते समय जीभ तालु से स्पर्श होती है। उच्चारण का प्रयास करें।
ट ठ ड ढ ण - इन पाँचों को मूर्धन्य या मूर्धव्य कहा जाता है क्योंकि इसका उच्चारण करते समय जीभ मूर्धन्य (ऊपर उठी हुई) महसूस करेगी। उच्चारण का प्रयास करें।
त थ द ध न - पाँच के इस समूह को दन्त्य या दंतव्य कहा जाता है, क्योंकि यह उच्चारण करते समय जीभ दांतों को छूती है। उच्चारण का प्रयास करें।
प फ ब भ म - पाँच के इस समूह को कहा जाता है ओष्ठव्य या ओष्ठ्य। क्योंकि दोनों होठ इस उच्चारण के लिए मिलते हैं। उच्चारण का प्रयास करें।
क्या दुनिया की किसी भी अन्य भाषा में ऐसा वैज्ञानिक दृष्टिकोण है? हमें अपनी भारतीय भाषा के लिए गर्व की आवश्यकता है।
बथुवा
बथुवा को अंग्रेजी में (Lamb's Quarters) कहा जाता है तथा इसका वैज्ञानिक नाम (Chenopodium album) है।साग और रायता बना कर बथुवा अनादि काल से खाया जाता रहा है, लेकिन क्या आपको पता है कि विश्व की सबसे पुरानी महल बनाने की पुस्तक शिल्प शास्त्र में लिखा है कि *हमारे बुजुर्ग अपने घरों को हरा रंग करने के लिए प्लस्तर में बथुवा मिलाते थे* और हमारी बुढ़ियां *सिर से पपड़ी व फांस (डैंड्रफ) साफ करने के लिए बथुवै के पानी से बाल धोया करती थीं।* बथुवा गुणों की खान है और *भारत में ऐसी ऐसी ऐसी जड़ी बूटियां हैं तभी तो मेरा भारत महान है।बथुवै में क्या क्या है?? मतलब कौन कौन से विटामिन और मिनरल्स?? बथुवा विटामिन B1, B2, B3, B5, B6, B9 और विटामिन C से भरपूर है तथा बथुवे में कैल्शियम,लोहा, मैग्नीशियम, मैगनीज, फास्फोरस, पोटाशियम, सोडियम व जिंक आदि मिनरल्स हैं। 100 ग्राम कच्चे बथुवे यानि पत्तों में 7.3 ग्राम कार्बोहाइड्रेट, 4.2 ग्राम प्रोटीन व 4 ग्राम पोषक रेशे होते हैं। कुल मिलाकर 43 Kcal होती है। जब बथुवा शीत (मट्ठा, लस्सी) या दही में मिला दिया जाता है तो यह किसी भी मांसाहार से ज्यादा प्रोटीन वाला व किसी भी अन्य खाद्य पदार्थ से ज्यादा सुपाच्य व पौष्टिक आहार बन जाता है और साथ में बाजरे या मक्का की रोटी, मक्खन व गुड़ की डली हो तो इस खाने के लिए देवता भी तरसते हैं।जब हम बीमार होते हैं तो आजकल डॉक्टर सबसे पहले विटामिन की गोली ही खाने की सलाह देते हैं ना ? गर्भवती महिला को खासतौर पर विटामिन बी, सी व आयरन की गोली बताई जाती है और बथुवे में वो सब कुछ है ही, कहने का मतलब है कि बथुवा पहलवानो से लेकर गर्भवती महिलाओं तक, बच्चों से लेकर बूढों तक, सबके लिए अमृत समान है।यह साग प्रतिदिन खाने से गुर्दों में पथरी नहीं होती। बथुआ आमाशय को बलवान बनाता है, गर्मी से बढ़े हुए यकृत को ठीक करता है। बथुए के साग का सही मात्रा में सेवन किया जाए तो निरोग रहने के लिए सबसे उत्तम औषधि है। बथुए का सेवन कम से कम मसाले डालकर करें। नमक न मिलाएँ तो अच्छा है, यदि स्वाद के लिए मिलाना पड़े तो काला नमक मिलाएँ और देशी गाय के घी से छौंक लगाएँ। बथुए का उबाला हुआ पानी अच्छा लगता है तथा दही में बनाया हुआ रायता स्वादिष्ट होता है। किसी भीतरह बथुआ नित्य सेवन करें। बथुवै में जिंक होता है जो कि शुक्राणुवर्धक है मतलब किसै भाई कै जिस्मानी कमजोरी हो तै उसनै बी दूर कर देता है बथुवा। बथुवा कब्ज दूर करता है और अगर *पेट साफ रहेगा तो कोई भी बीमारी के शरीर में लगेगी ही नहीं, कहने का मतलब है कि जब तक इस मौसम में बथुए का साग मिलता रहे, नित्य इसकी सब्जी खाएँ। बथुए का रस, उबाला हुआ पानी पीएँ और तो और यह खराब लीवर को भी ठीक कर देता है। इसके किसी भी प्रकार से प्रयोग करने से,वात रोग अर्थात,गैस बनना, सर्वाइकल,फ्रोजन शोल्डर,मांसपेशियों का दर्द भी निश्चय ही ठीक होता है।पथरी हो तो एक कप कच्चे बथुए के रस में शक्कर मिलाकर नित्य पिएँ तो पथरी घुल कर बाहर निकल आएगी। मासिक धर्म रुका हुआ हो तो दो चम्मच बथुए के बीज एक गिलास पानी में उबालें। आधा रहने पर छानकर पी जाएँ। मासिक धर्म खुलकर साफ आएगा। आँखों में सूजन, लाली हो तो प्रतिदिन बथुए की सब्जी खाएँ। पेशाब के रोगी बथुआ आधा किलो, पानी तीन गिलास, दोनों को उबालें और फिर पानी छान लें । बथुए को निचोड़कर पानी निकालकर यह भी छाने हुए पानी में मिला लें। स्वाद के लिए नींबू, जीरा, जरा सी काली मिर्च और काला नमक लें और पी जाएँ। आप ने अपने दादा दादी से ये कहते जरूर सुना होगा कि हमने तो सारी उम्र अंग्रेजी दवा की एक गोली भी नहीं ली। उनके स्वास्थ्य व ताकत का राज यही बथुवा ही है।मकान को रंगने से लेकर खाने व दवाई तक बथुवा काम आता है।लेकिन अफसोस, किसान ये बातें भूलते जा रहे हैं और इस दिव्य पौधे को नष्ट करने के लिए अपने अपने खेतों में जहर डालते हैं।तथाकथित कृषि वैज्ञानिकों (अंग्रेज व काले अंग्रेज) ने बथुवै को भी कोंधरा, चौलाई, सांठी, भाँखड़ी आदि सैकड़ों आयुर्वेदिक औषधियों को खरपतवार की श्रेणी में डाल दिया और हम भारतीय चूं भी ना कर पाये।
07 दिसम्बर 1879 - चक्रवर्ती राजगोपालाचारी
लेखक, राजनीतिज्ञ और दार्शनिक
चाणक्य नीति
1. आग में घी डालना कभी ठीक नहीं होता, क्रोधी व्यक्ति को अधिक क्रोध दिलाना ठीक नहीं होता वर्ना आपका अहित भी हो सकता है.2. मनुष्य की वाणी ही विष और अमृत की खान है. दुष्ट की मित्रता से शत्रु की मित्रता अच्छी होती है.3. दूध के लिए हथिनी पालने की जरूरत नहीं होती यानी आवश्यकता के अनुसार साधन जुटाइए, मुसीबत को पहाड़ मानकर हावी मत कीजिए.4. कठिन समय के लिए धन की रक्षा करनी चाहिए. धन ही है जो मुसीबत के समय सच्ची मित्रता निभाता है.5. सुख का आधार धर्म है. धर्म का आधार अर्थ यानी धन है. अर्थ का आधार राज्य है और राज्य का आधार अपनी इन्द्रियों पर विजय पाना है.6. जो व्यक्ति झूठ बोलता है, वो एक न एक दिन मुसीबत में जरूर फंसता है क्योंकि एक झूठ को
छिपाने के लिए उसे कई झूठ बोलने पड़ते हैं. इसलिए किसी भी बात के लिए कभी झूठ का सहारा न लें.7. जहां लक्ष्मी का निवास होता है, वहां सहज ही सुख-सम्पदा आ जाती है.8. शासक को स्वयं योग्य बनकर योग्य प्रशासकों की सहायता से शासन करना चाहिए. मुसीबत के समय योग्य सहायकों के बिना निर्णय करना बड़ा कठिन होता है.9. सिंह और बड़े नाखून वाले पशुओं पर भरोसा न करें. वे कभी भी हमलावर हो सकते हैं.10. किसी भी काम को पूरे मन से करें यानी काम को करते समय हर प्रकार से सोचें, समझें और निष्कर्ष तक पहुंचें. इस तरह अपनी बुद्धि का सही प्रयोग करके कोई फैसला लें.
कलियुगी घोर महान
एक धन सम्पन्न व्यक्ति अपनी पत्नी के साथ रहता था। पर कालचक्र के प्रभाव से धीरे धीरे वह कंगाल हो गया। उस की पत्नी ने कहा कि सम्पन्नता के दिनों में तो राजा के यहाँ आपका अच्छा आना जाना था।क्या विपन्नता में वे हमारी मदद नहीं करेंगे जैसे श्रीकृष्ण ने सुदामा की की थी? पत्नी के कहने से वह भी सुदामा की तरह राजा के पास गया। द्वारपाल ने राजा को संदेश दिया कि एक निर्धन व्यक्ति आपसे मिलना चाहता है और स्वयं कोआपका मित्र बताता है। राजा भी श्रीकृष्ण की तरह मित्र का नाम सुनते ही दौड़े चले आए और मित्र को इस हाल में देखकर द्रवित होकर बोले कि मित्र बताओ, मैं तुम्हारी क्या सहायता कर सकता हूँ? मित्र ने सकुचाते हुए अपना हाल कह सुनाया।चलो, मै तुम्हें अपने रत्नों के खजाने में ले चलता हूँ। वहां से जी भरकर अपनी जेब में रत्न भर कर ले जाना। पर तुम्हें केवल 3 घंटे का समय ही मिलेगा। यदि उससे अधिक समय लोगे तो तुम्हें खाली हाथ बाहर आना पड़ेगा। ठीक है, चलो।वह व्यक्ति रत्नों का भंडार और उनसे निकलने वाले प्रकाश की चकाचौंध देखकर हैरान हो गया। पर समय सीमा को देखते हुए उसने भरपूर रत्न अपनी जेब में भर लिए। वह बाहर आने लगा तो उसने देखा कि दरवाजे के पास रत्नों से बने छोटे छोटे खिलौने रखे थे जो बटन दबाने पर तरह तरह के खेल दिखाते थे। उसने सोचा कि अभी तो समय बाकी है, क्यों न थोड़ी देर इनसे खेल लिया जाए? पर यह क्या? वह तो खिलौनों के साथ खेलने में इतना मग्न हो गया कि समय का भान ही नहीं रहा। उसी समय घंटी बजी जो समय सीमा समाप्त होने का संकेत था और वह निराश होकर *खाली हाथ* ही बाहर आ गया।राजा ने कहा- मित्र, निराश होने की आवश्यकता नहीं है। चलो, मैं तुम्हें अपने स्वर्ण के खजाने में ले चलता हूँ। वहां से जी भरकर सोना अपने थैले में भर कर ले जाना। पर समय सीमा का ध्यान रखना।ठीक है।उसने देखा कि वह कक्ष भी सुनहरे प्रकाश से जगमगा रहा था। उसने शीघ्रता से अपने थैले में सोना भरना प्रारम्भ कर दिया। तभी उसकी नजर एक घोड़े पर पड़ी जिसे सोने की काठी से सजाया गया था। अरे! यह तो वही घोड़ा है जिस पर बैठ कर मैं राजा साहब के साथ घूमने जाया करता था। वह उस घोड़े के निकट गया, उस पर हाथ फिराया और कुछ समय के लिए उस पर सवारी करने की इच्छा से उस पर बैठ गया। पर यह क्या? समय सीमा समाप्त हो गई और वह अभी तक सवारी का आनन्द ही ले रहा था। उसी समय घंटी बजी जो समय सीमा समाप्त होने का संकेत था और वह घोर निराश होकर खाली हाथ ही बाहर आ गया। राजा ने कहा- मित्र, निराश होने की आवश्यकता नहीं है। चलो, मैं तुम्हें अपने रजत के खजाने में ले चलता हूँ। वहां से जी भरकर चाँदी अपने ढोल में भर कर ले जाना। पर समय सीमा का ध्यान अवश्य रखना। ठीक है।उसने देखा कि वह कक्ष भी चाँदी की धवल आभा से शोभायमान था। उसने अपने ढोल में चाँदी भरनी आरम्भ कर दी। इस बार उसने तय किया कि वह समय सीमा से पहले कक्ष से बाहर आ जाएगा। पर समय तो अभी बहुत बाकी था। दरवाजे के पास चाँदी से बना एक छल्ला टंगा हुआ था। साथ ही एक नोटिस लिखा हुआ था कि इसे छूने पर उलझने का डर है। यदि उलझ भी जाओ तो दोनों हाथों से सुलझाने की चेष्टा बिल्कुल न करना।उसने सोचा कि ऐसी उलझने वाली बात तो कोई दिखाई नहीं देती। बहुत कीमती होगा तभी बचाव के लिए लिख दिया होगा। देखते हैं कि क्या माजरा है?
बस! फिर क्या था। हाथ लगाते ही वह तो ऐसा उलझा कि पहले तो एक हाथ से सुलझाने की
कोशिश करता रहा। जब सफलता न मिली तो दोनों हाथों से सुलझाने लगा।पर सुलझा न सका और उसी समय घंटी बजी जो समय सीमा समाप्त होने का संकेत था और वह निराश होकर खाली हाथ ही बाहर आ गया। राजा ने कहा- मित्र, *कोई बात नहीं*।निराश होने की आवश्यकता नहीं है। अभी तांबे का खजाना बाकी है। चलो, मैं तुम्हें अपने तांबे के खजाने में ले चलता हूँ। वहां से जी भरकर तांबा अपने बोरे में भर कर ले जाना। पर समय सीमा का ध्यान रखना। ठीक है। मैं तो जेब में रत्न भरने आया था और बोरे में तांबा भरने की नौबत आ गई। थोड़े तांबे से तो काम नहीं चलेगा। उसने कई बोरे तांबे के भर लिए। भरते भरते उसकी कमर दुखने लगी लेकिन फिर भी वह काम में लगा रहा। विवश होकर उसने आसपास सहायता के लिए देखा। एक पलंग बिछा हुआ दिखाई दिया। उस पर सुस्ताने के लिए थोड़ी देर लेटा तो नींद आ गई और अंत में वहाँ से भी खाली हाथ बाहर निकाल दिया गया।क्या इसी प्रकार हम भी अपने जीवन में अपने साथ कुछ नहीं ले जा पाएंगे? बचपन खिलौनों के साथ खेलने में, जवानी विवाह के आकर्षण में और गृहस्थी की उलझन में बिता दी। बुढ़ापे में जब कमर दुखने लगी तो पलंग के सिवा कुछ दिखा नहीं। समय सीमा समाप्त होने की घंटी बजने वाली है।
भारत का गौरवशाली इतिहास
प्रकृति और हिंदुत्व :-चूंकि भारत गांव में निवास करता है , इसलिए पुरातन भारतीय अर्थव्यवस्था और जीवन पद्धति के अनुसार प्रत्येक गांव एक स्वतंत्र राष्ट्र की भांति व्यवहार करता था, और अपने आप में प्रत्येक ग्राम आत्मनिर्भर था । प्रत्येक व्यक्ति को अपनी आजीविका चलाने के लिए परंपरागत पैतृक व्यवसायों की व्यवस्था की गई थी । और कोई भी व्यक्ति बेरोजगार नहीं था । आज की शिक्षा पद्धति में जिन कामों को सिखाने के लिए सरकार करोड़ों रुपए खर्च करती है उन कार्यों में कुशलता बच्चे को घर से ही सीख कर मिल जाती थी । और उसका व्यवसाय उस क्षेत्र में आरक्षित था ।
एक व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति के व्यवसायिक क्षेत्र पर अतिक्रमण करते हुए दूसरा कार्य नहीं करता था । आजीविका की सुरक्षा के लिए समाज भी अपने स्तर पर विभिन्न प्रकार की पाबंदियों के साथ और पंचायतों के दंड विधान के अनुसार लोगों की आजीविका को संरक्षित और सुरक्षित रखते थे । इस प्रकार भारत का व्यक्ति अपने कार्य में पूर्ण कुशल होता था । क्योंकि आज के हिसाब से कहा जाए तो आईटीआई और इंजीनियरिंग कॉलेज जैसा प्रशिक्षण विभिन्न प्रकार के कार्यों का जिसमें व्यक्ति का जीवन चलता है वह घर में ही मिल जाता था । और वो भी आर्टिफिशियल नहीं वास्तविक प्रशिक्षण होता था ।
जैसे लकड़ी का कार्य हो, और लोहे का कार्य हो , भवन निर्माण का कार्य हो , मिट्टी के बर्तन बनाने का कार्य हो या चमड़े का कार्य हो, सभी कार्यों में अपने पैतृक परंपरागत धंधे के अनुसार एक कुशल कारीगर के नाते 15 , 16 साल की उम्र से ही बच्चे तैयार हो जाते थे । जिससे अर्थोंपार्जन करते हुए अपने परिवार का संचालन पोषण एवं आर्थिक स्थिति को सुद्रण करने में अपना योगदान देते थे । तभी तो भारत धन वैभव के क्षेत्र में सोने की चिड़िया कहा जाता था ।
कपड़ा व्यापार और धातु उद्योग आदि में भी भारत में श्रेष्ठ कारीगर उपलब्ध होते थे । उसके उदाहरण पुरातात्विक विभाग की श्रेष्ठ इमारतें किले आदि और हथियार उपकरण भी देखने को मिलते है । इसी प्रकार तपस्वी ऋषि मुनियों के द्वारा अनुभव के आधार पर शोध करके बनाए गए नियम जो आज भी प्रासंगिक एवं वैज्ञानिक है और शास्त्रों में सूत्र रूप में संस्कृत भाषा में वेद पुराण उपनिषद गीता महाभारत रामायण श्रीमद्भागवत पुराण आदि में उल्लेखित है , वह सार्वभौमिक सत्य और मनुष्यों के लिए अद्वितीय देन है ।
जिसमें मानव कल्याण का मार्ग दिखाया गया है । कृषि, पशुपालन , गृह उद्योग , कुटीर उद्योग , आदि में भारत श्रेष्ठ था । वर्तमान व्यापार तंत्र और उद्योग जगत की नीतियों के कारण बेरोजगारी जैसी समस्याएं मुँह बाये खड़ी है ।
हिंदू जीवन पद्धति एवं दर्शन के अनुसार नर से नरोत्तम और नारायण बनने के लिए पतंजलि का अष्टांग योग आज भी अद्वितीय है । जिसमें मनुष्य यम नियम आसन प्राणायाम प्रत्याहार धारणा ध्यान और समाधि , जैसे गुणों को धारण करते हुए दिव्य एवं अलौकिक शक्तियों को प्राप्त करता है ।
जो ऐसे दिव्य प्रकाश से आलोकित हो जाता है कि पूरे विश्व का पालक मार्गदर्शक एवं संरक्षक होने की क्षमता रखता है । इस प्रकार की क्षमता को धारण करने वाला हिंदू धर्म और हिंदू जीवन पद्धति के मुकाबले आज विश्व में कोई जीवन पद्धति नहीं है । विश्व कल्याण का मार्ग इसी में निहित है । इसलिए विश्व , भारत की ओर आशाभरी नजरों से देख रहा है ।
अब जिम्मेदारी भारत के लोगों की बनती है कि इतने दिव्य ज्ञान के आलोकित होते हुए,अपने आपको तैयार करते हुए , अपने धर्म एवं भारतीय संस्कृति के आधार पर श्रेष्ठ मार्ग अपनाते हुए विश्व के सामने एक उदाहरण प्रस्तुत करें ।
09 दिसम्बर 1484 - महाकवि सूरदास
कवि, संत और वात्सल्य रस के सम्राट माने जाते हैं
22 दिसम्बर 1666 - गुरु गोविंद सिंह
सिक्खों के दसवें व अंतिम गुरु
22 दिसम्बर 1887 - रामानुजम
प्रसिद्ध भारतीय गणितज्ञ
25 दिसम्बर 1861 - मदन मोहन मालवीय
स्वतंत्रता सेनानी, राजनीतिज्ञ, समाज सुधारक
30 दिसम्बर 1887 - कन्हय्यालाल मुन्शी - स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, राजनेता
भगवान
हे अंतर्मन में बसे प्रभु ,किस तरह तुम्हारा ध्यान करूँ
किस नाम से तेरा जाप करूँ ,किस रूप में तुमको याद करूँ
बाहर की दुनिया में तूने ,कैसा प्रपंच रचाया है,
जो नाम सुखों का साधन है,उस नाम पर खून बहाया है।
अन्दर-बाहर की दुनिया में ,इसलिए ये अन्तर आया है,
अन्दर ही सच्चा ईश्वर है,बाहर तो केवल माया है
माया में लिप्त होकर भी हम,ईश्वर से सच्चा प्यार करें,
मन से माया को दूर करें,उस "शक्ति" का आह्वान करें।
तो निश्चय ही "परमानंद शक्ति",अंतर्मन में जागेगी,
माया भी जिसकी शक्ति है ,सच्चा स्वरूप दिखला देगी।।
साकार रूप तो साधन है,निराकार रूप तक जाने का
मायावी विकारों से बचकर ,मन को सुमार्ग पर लाने का।
ये बात तो कोई नई नहीं,ये ज्ञान तो बहुत पुराना है,
सच्चे धर्म का है सार यही ,बस अनुभव ने पहचाना है।
जब परम तत्व को पाने को,हम प्रेम मार्ग अपना लेंगे,
वो शुद्ध प्रेम खुद ही आकर,हमारे मन में जगह बना लेंगें।
मन को एकांत में लाओ अब,जहाँ कोई ना हो तुम्हारे सिवा,
बस एक नाम की धुन जागे,प्रगटेंगें तब "श्री हरि" वहाँ।।
"श्री हरि" कृपा से फिर जब ,अनुराग वैराग्य में बदलेगा,
"श्री हरि" भी होंगे साथ तेरे ,जब 'ध्यान मार्ग' से गुजरेगा।।
ज्योति वशिष्ठ
चंद्र ग्रह
नवग्रहों में सूर्य के बाद चन्द्रमा ज्योतिष में सर्वाधिक महत्वपूर्ण ग्रह है | चंद्र ग्रह कर्क राशी का स्वामी है |
कमजोर चंद्र के कारण होने वाले कष्ट - व्यक्ति को स्त्री पक्ष से या स्त्री को लेकर कष्ट बना रहता है | हारमोंस की समस्या और अवसाद का योग बनता है नींद न आने की समस्या भी होती है,व्यक्ति बार बार नींद में चौंक कर उठ जाता है | व्यक्ति को माता का सुख नहीं मिलता या व्यक्ति के सम्बन्ध माता से ख़राब होता है |
चंद्र दोष दूर करने के उपाय - कुण्डली में उत्पन्न चंद्र दोष को दूर करने के लिए सर्वौत्तम उपाय है कि सोमवार के दिन भगवान शिव का गाय के दूध से रूद्राभिषेक करना चाहिए।स्फटिक की माला पहनने से भी चंद्र दोष से मुक्ति मिलती है।चंद्रोदय के समय दूध में चावल और बताशा डाल कर चंद्रमा को अर्घ्य देना चाहिए।चंद्र नीच का हो तो चंद्र की चीजों का दान नही लेना चहिये। शिव चालीसा का नियमित पाठ करें। चंद्र पीड़ा की विशेष शांति हेतु चांदी, मोती, शंख, सीप, कमल और पंचगव्य मिलाकर सात सोमवार तक स्नान करें। पंच धातु के शिवलिंग का निर्माण करके उसका यथायोग्य पूजन करने से चंद्र पीड़ा शांत होती है। सोम वार के व्रत करे | पूर्णिमा के दिन चंद्र दर्शन करे व चन्द्रमा की रौशनी में चंद्र मन्त्र का जाप करे | चंद्र देव को सफेद रंग प्रिय है इसलिय सोमवार व पूर्णिमा को सफेद रंग की चीज दान करे |
चंद्र ग्रह का रत्न - मोती , चंद्र ग्रह की धातु - सुवर्ण , चांदी,चंद्र ग्रह का वार - सोमवार
दान योग्य वस्तु - चावल ,मिश्री ,दही ,स्वेत वस्त्र ,श्वेत पुष्प ,शंख ,श्वेत चन्दन |
चन्द्रमा कमजोर होने पर होने वाले रोग तिल्ली ,पांडू ,यकृत ,कफ ,उदर संबंधी रोग
चंद्रदेव मंत्र
ॐ ऐं क्लीं सोमाय नम:। ॐ भूर्भुव: स्व: अमृतांगाय विदमहे कलारूपाय धीमहि तन्नो सोमो प्रचोदयात्।
स्वतन्त्रता, समानता और बन्धुता के पुरोधा
डॉक्टर भीमराव आंबेडकर
– निखिलेश महेश्वरी
भारतीय सनातन संस्कृति अनादि, अनंत और चिर पुरातन है। अपनी सनातन संकृति ने अनेक उतार चढाव, संघर्ष के साथ अपने को सुरक्षित और जीवित रखा। सनातन संस्कृति के अनंत प्रवाह के बीच अनेक आयातित बुराइयां भी पनपी। पर जैसे नदी के प्रवाह में कोई गंदगी आती है तो उसे स्वच्छ करने का प्रयत्न भी होता हैं। उसीप्रकार सनातन हिन्दू संस्कृति में आयातित बुराइयां को दूर करने का भी निरंतर प्रयत्न हुआ हैं। गत दो हजार वर्षो में शक, हूण, यवन, मुस्लिम और अंग्रेजों के आक्रमण से अनेक कुरीतियों ने इस सनातन संस्कृति को ग्रसित करने का प्रयास किया। लेकिन इन कुरीतियों से निजात दिलाने के लिए अनेक महापुरुषों ने इस भू-धरा पर जन्म लेकर उसको निर्दोष करने के निरंतर प्रयत्न किए। बाल विवाह, नारी शिक्षा निषेध, सतीप्रथा, पर्दा प्रथा, समुद्र पार नहीं जाना, अशिक्षा, अंधविश्वास और अस्पृश्यता, भेदभाव जैसी कुरीतियों ने समाज में असमानता का वातावरण निर्मित किया। लेकिन इन सब से मुक्ति दिलाने के लिए शंकराचार्य, गौतम बुद्ध, भगवान महावीर, गुरू नानक, संत रामनंद, कबीर, महर्षि दयानंद, राजाराम मोहन राय, ज्योतिबा फूले, महात्मा गाँधी, डॉक्टर हेडगेवार और डाक्टर आंबेडकर आदि ने अपना संपूर्ण जीवन समर्पित किया।
समाज में निर्मित कुरीतियों में सबसे बड़ा अभिशाप सामाजिक भेदभाव और अस्पृश्यता हैं। इस अस्पृश्यता नाम की महामारी को दूर करने का प्रयास संत रामानंद, वीर सावरकर, महात्मा गाँधी एवं डाक्टर हेडगेवार आदि ने किया। यह सब महापुरुष सामान्य वर्ग से रहे लेकिन जिनके साथ भेदभाव हुआ उनमें से किसी व्यक्ति ने उसका पुरजोर विरोध कर कथाकथित अस्पृश्य समाज को सम्मान से जीने का अधिकार दिलाया तो वह है डाक्टर भीमराव रामजी आंबेडकर हैं।
इस आधुनिक भारत के दधीची, आधुनिक मनु या कहे स्वतंत्रता, समानता और बन्धुता के पुरोधा डॉक्टर भीमराव रामजी आंबेडकर भारतीय मनो की आसंदी पर विराज कर भारतीय समाज के हृदय पर निर्बाध शासन कर रहे हैं। आज जब समरस समाज के निर्माण की बात चलती हैं तो स्वभाविक रूप से आंबेडकर जी का नाम सबसे ऊपर आता है, उनका जीवन प्रेरक है लेकिन कुछ लोग उन्हें केवल एक वर्ग तक सीमित कर देते है जो उस महान विभूति का अपमान है। उनका जीवन तो संपूर्ण मानव जाति पर उपकार है। आंबेडकर जी के कार्यों के लिए संपूर्ण राष्ट्र ने उनके प्रति कृतज्ञ होना चाहिए।
डॉक्टर भीमराव रामजी आंबेडकर के बारे में निष्कर्ष रूप में कहा जाए तो वह सर्वांग पुरुष थे। सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक, शैक्षिकसभी दृष्टि से एक उच्च कोटि के कृतित्व और व्यक्तित्व थे। साहित्य की दृष्टि से देखा जाए तो उनका लिखा साहित्य आज प्रचूर मात्रा में है, आंबेडकर जी एक उच्च कोटी के संपादक थे उन्होंने मूकनायक, बहिष्कृत भारत, प्रबुद्ध भारत जैसे समाचार पत्रों का कुशलता पूर्वक संपादन किया। राजनीतिक दृष्टिकोण से वह ‘शेड्यूल कास्ट फेडरेशन’नाम का दल बनाते और बाद में उसका नाम बदलकर रिपब्लिक पार्टी कर देते है। अपने समाज को राजनीतिक अधिकारों के लिए जागृत करते हैं।आंबेडकर जी मूलरूप से अर्थशास्त्री थे। उनके विचार के अनुसार ही अपने देश में भारतीय रिजर्व बैंक की स्थापना की गई। आंबेडकर जी हिन्दू धर्म की कुरीतियों से देश को मुक्त करना चाहते थे। वह हिन्दु धर्म के नहीं बल्कि उसकी कुरीतियों के विरूद्ध लड़े इसलिए उन्होंनें 1935 में घोषणा की – “मैं हिन्दू के रूप में जन्मा हूँ, मगर मरूँगा नहीं।” यह घोषणा एक चुनौती थी। उनको लगता था इस घोषणा के पश्चात शायद हिन्दु धर्म का नेतृत्व हिन्दु धर्म की कुरीतियों को हटाने का प्रयत्न करेगा और वह समरस समाज के निर्माण में उनके विचार को मान्यता देगा।
लेकिन दुर्भाग्य ही कहेंगे इस घोषणा के पश्चात हिन्दु समाज का नेतृत्व आंबेडकर जी के अनुरूप समाज को उचित सम्मान न दिला सका, इसके विपरित मुस्लिम उलेमा एवं इसाई पादरियो ने उनसे संपर्क करना प्रारंभ किया, कई स्थानों पर तो आंबेडकर जी के लिए धनसंग्रह भी प्रारंभ किया, जिससे बड़ी मात्रा में धर्मांतरण किया जा सके। गाडफ्रे ने ‘दि अचनचेबल्स क्लेस्ट’नामक पुस्तक प्रकाशित की और उसने इसाई मिशनरियों से आह्वान किया कि यदि उन्होंने डॉक्टर बाबासाहेब के आंदोलन का उपयोग कर लिया तो लाखों अस्पृश्य इसाई धर्म स्वीकार कर लेंगे।
लेकिन इनके बारे में आंबेडकर जी का स्पष्ट मत था, मुस्लिम और इसाई हिन्दुस्तान के बाहर के धर्म है और इनकी निष्ठा भारत में नहीं, बाहरी है। वह अपने समाज को अराष्ट्रीय बनाना नहीं चाहते थे इसलिए उन्होंने बहुत इंतजार, धैर्य के साथ अपनी मृत्यु के दो माह पूर्व एवं अपनी घोषणा के 21 वर्ष पश्चात भारत की धरती पर उत्पन्न और हिन्दु विचार से उपजे बौद्ध पंथ में दीक्षा ग्रहण की। यह सब उनका भारत के प्रति अपना प्रेम दर्शाता हैं। उनकी हिन्दु धर्म के प्रति कितनी आस्था थी यह इस बात से पता चलता है कि दीक्षा भूमि में हिन्दु धर्म का त्याग करते समय उनका गला भर आया था। एक स्थान पर बाबासाहब ने कहा था–“मैने यह सावधानी रखी है कि इस देश की संस्कृति व इतिहास की परंपरा को धक्का न पहुंचे।”
आंबेडकर जी संविधान निर्माण में सभी समाज और जिस जाति को वह सम्मान दिलाना चाहते थे उसे उन्होंने कानूनी रूप से मान्यता दिलाई। जिस प्रकार के विधान की आवश्यकता भारत को थी, उसकी रचना उन्होंने की, सुशासन कैसा हो तो राम दरबार का चित्र संविधान की मूलप्रति में जोडकर उन्होंने भारत की आदर्श राज्य व्यवस्था को दर्शाया, कई स्थानों स्थानों पर वेदों की ऋचाओं का उल्लेख कर भारतीय जीवन मूल्य को मान्यता दी। इसप्रकार हम अगर देखे तो भारत के संविधान निर्माता के रूप में वह आधुनिक मनु बन गए।
आंबेडकर जी ने समाज को समता, समरसता युक्त बनाने के लिए लड़ाई लड़ी थी। आंबेडकर जी के समकालीन महात्मा गाँधी ने येरवड़ा जेल में अनशन के कारण कई छोटे-बड़े मंदिर के दरवाजे अनुसूचित समाज के लिए खुल गए, पंढरपुर का विठ्ठल मंदिर सभी के लिए खुला रहे इसके लिए साने गुरूजी ने सत्याग्रह किया, वीरसावरकर जी ने रत्नागिरी में अनुसूचित समाज को मंदिर प्रवेश दिलाया, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक डॉक्टर हेडगेवार बिना भेदभाव के हिन्दुओं को एकत्रित लाते है और आंबेडकर जी को बुलाकर उसके दर्शन भी कराते हैं। आंबेडकर जी के जाने के पश्चात भी देश में समरसता और समता मूलक समाज के निर्माण के लिए अनेक प्रयत्न आज भी जारी है। इन प्रयासों को तीव्र गति देते हुए सभी ने भेदभाव नाम की खाई को समाप्त करने का प्रयास करना चाहिए। वर्तमान में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी के शब्द सभी के लिए एक दिशा बोध हो सकते हैं – “एक ही मंदिर, एक जलाशय, सबका एक श्मशान हो”। आंबेडकर जी ने जिस स्वतंत्रता, समानता और बन्धुता के लिए कार्य किया वैसा ही भाव हम सब लेकर कार्य करें और उनके सपनों का भारत निर्मित कर पाए, यह उनके प्रति हमारी सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
(लेखक विद्या भारती मध्यभारत प्रान्त के संगठन मंत्री है।)
गांव के बियाह
पहले गाँव मे न टेंट हाऊस थे और न कैटरिंग,थी तो बस सामाजिकता।गांव में जब कोई शादी ब्याह होते तो घर घर से चारपाई आ जाती थी, हर घर से थरिया, लोटा, कलछुल, कराही इकट्ठा हो जाता था और गाँव की ही महिलाएं एकत्र हो कर खाना बना देती थीं।
औरते ही मिलकर दुलहिन तैयार कर देती थीं और हर रसम का गीत गारी वगैरह भी खुद ही गा लिया करती थी।
तब DJ अनिल-DJ सुनील जैसी चीज नही होती थी और न ही कोई आरकेस्ट्रा वाले फूहड़ गाने। गांव के सभी चौधरी टाइप के लोग पूरे दिन काम करने के लिए इकट्ठे रहते थे। हंसी ठिठोली चलती रहती और समारोह का कामकाज भी। शादी ब्याह मे गांव के लोग बारातियों के खाने से पहले खाना नहीं खाते थे क्योंकि यह घरातियों की इज्ज़त का सवाल होता था। गांव की महिलाएं गीत गाती जाती और अपना काम करती रहती। सच कहु तो उस समय गांव मे सामाजिकता के साथ समरसता होती थी।
खाना परसने के लिए गाँव के लड़कों का गैंग समय पर इज्जत सम्हाल लेते थे। कोई बड़े घर की शादी होती तो टेप बजा देते जिसमे एक कॉमन गाना बजता था-मैं सेहरा बांधके आऊंगा मेरा वादा है और दूल्हे राजा भी उस दिन खुद को किसी युवराज से कम न समझते। दूल्हे के आसपास नाऊ हमेशा रहता, समय समय पर बाल झारते रहता था और समय समय पर काजर-पाउडर भी पोत देता था ताकि दुलहा सुन्नर लगे। फिर द्वारा चार होता फिर शुरू होती पण्डित जी लोगों की महाभारत जो रातभर चलती। फिर कोहबर होता, ये वो रसम है जिसमे दुलहा दुलहिन को अकेले में दो मिनट बतियाने के लिए दिया जाता था लेकिन इत्ते कम समय में कोई क्या खाक बात कर पाता। सबेरे कलेवा में जमके गारी गाई जाती और यही वो रसम है जिसमे दूल्हे राजा जेम्स बांड बन जाते कि ना, हम नही खाएंगे कलेवा। फिर उनको मनाने कन्यापक्ष के सब जगलर टाइप के लोग आते।
अक्सर दुलहा की सेटिंग अपने चाचा या दादा से पहले ही सेट रहती थी और उसी अनुसार आधा घंटा या पौन घंटा रिसियाने का क्रम चलता और उसी से दूल्हे के छोटे भाई सहबाला की भी भौकाल टाइट रहती लगे हाथ वो भी कुछ न कुछ और लहा लेता...फिर एक जय घोष के साथ रसगुल्ले का कण दूल्हे के होठों तक पहुंच जाता और एक विजयी मुस्कान के साथ वर और वधू पक्ष इसका आनंद लेते।
उसके बाद दूल्हे का साक्षात्कार वधू पक्ष की महिलाओं से करवाया जाता और उस दौरान उसे विभिन्न उपहार प्राप्त होते जो नगद और श्रृंगार की वस्तुओं के रूप में होते.. इस प्रकिया में कुछ अनुभवी महिलाओं द्वारा काजल और पाउडर लगे दूल्हे का कौशल परिक्षण भी किया जाता और उसकी समीक्षा परिचर्चा विवाह बाद आहूत होती थी और लड़कियां दूल्हा के जूता चुराती और 21 से 51 में मान जाती। इसे दूल्हा दिखाई कहा जाता था.
फिर गिने चुने बुजुर्गों द्वारा माड़ौ (विवाह के कर्मकांड हेतु निर्मित अस्थायी छप्पर) हिलाने की प्रक्रिया होती वहां हम लोगों के बचपने का सबसे महत्वपूर्ण आनंद उसमें लगे लकड़ी के शुग्गों ( तोता) को उखाड़ कर प्राप्त होता था और विदाई के समय नगद नारायण कड़ी कड़ी 10/20 रूपये की नोट जो कहीं 50 रूपये तक होती थी।
वो स्वार्गिक अनुभूति होती कि कह नहीं सकते हालांकि विवाह में प्राप्त नगद नारायण माता जी द्वारा 2/5 रूपये से बदल दिया जाता था।
आज की पीढ़ी उस वास्तविक आनंद से वंचित हो चुकी है जो आनंद विवाह का हम लोगों ने प्राप्त किया है.
लोग बदलते जा रहे हैं, परंपरा भी बदलते चली जा रही है, आगे चलकर यह सब देखन को मिलेगा की नही अब इ त विधाता जाने लेकिन जो मजा उस समय मे था, वह अब धीरे धीरे बिलुप्त हो रहा है।
हिन्दू धार्मिक नेताओं का एकजुट होना जरुरी
पंकज जयस्वाल
बांग्लादेश में अल्पसंख्यक हिंदुओं के खिलाफ जो कुछ भी हुआ वह कोई मामूली घटना नहीं थी। जब इस्कॉन ने विरोध की तारीख और समय के बारे में विस्तार से सब कुछ घोषित किया, तो क्या सभी धार्मिक नेताओं, मठाधिपती, अखाड़ा प्रमुख आदि सभी की यह जिम्मेदारी नहीं थी कि वे आगे आएं और बांग्लादेश में हिन्दू अल्पसंख्यकों के साथ खड़े हो जाएं?
सनातन धर्म की महानता उसके अनुयायियों को दी गई स्वतंत्रता में है। यह प्रत्येक अनुयायी को किसी भी मार्ग, पूजा पद्धति या भगवान को चुनने की अनुमति देता है। आमतौर पर अन्य धर्मों में आवश्यक किसी भी दिनचर्या, पंथ या प्रथाओं का पालन करने के लिए कुछ नियम बाध्य है। हालांकि कई हिन्दू धार्मिक नेता और संगठन इस स्वतंत्रता को हल्के में लेते हैं। सनातन धर्म का लक्ष्य पर्यावरण का पोषण करके, राष्ट्र को आध्यात्मिक, सामाजिक और आर्थिक रूप से विकसित करके समाज में सभी के लिए जीवन को बेहतर बनाना है। सनातन धर्म पूरे विश्व को एक परिवार के रूप में मानता है, जबकि 200 से अधिक बार आक्रमण सहने के बावजूद, सनातन धर्म द्वारा किसी भी धर्म या देश को नष्ट करने के लिए कभी भी विचार या कार्य नहीं किया है। इस महान धर्म पर बार-बार हमला किया गया है। इन विनाशकारी घटनाओं के क्या कारण हो सकते हैं?
अगर हम इस्लाम और ईसाई धर्म की प्रवृत्ति को देखें, तो उनके धर्मों के खिलाफ छोटी-छोटी घटनाएं भी दुनिया भर में व्यापक आंदोलन, निंदा और कुछ मामलों में हिंसा का कारण बनती हैं। उनके धार्मिक नेता, संगठन और अनुयायी एकता में बेजोड़ हैं जबकि हिन्दू नेताओं, संगठनों और अनुयायियों के बीच एकता की कमी है। प्रत्येक धार्मिक नेता अनुयायियों और प्रथाओं की अपनी दुनिया बनाने की इच्छा रखता है। यह संकीर्ण मानसिकता सनातन धर्म और उसकी दीर्घकालिक व्यवहार्यता के लिए वास्तविक खतरा है।
बांग्लादेश में अल्पसंख्यक हिंदुओं के खिलाफ जो कुछ भी हुआ वह कोई मामूली घटना नहीं थी, लेकिन मानवीय संगठनों ने चुप रहने में विश्वास किया। वे अन्य धर्मों के लिए बिना सच को जाने उसे बड़ा और अहम मुद्दा बनाकर विश्व मंच पर लाते है। हिन्दुओं के प्रति यह रवैया हिन्दू धर्मगुरुओं के बीच एकता की कमी के मूल में है। जब इस्कॉन ने विरोध की तारीख और समय के बारे में विस्तार से सब कुछ घोषित किया, तो क्या सभी धार्मिक नेताओं, मठाधिपती, अखाड़ा प्रमुख आदि सभी की यह जिम्मेदारी नहीं थी कि वे आगे आएं और बांग्लादेश में हिन्दू अल्पसंख्यकों के साथ खड़े हो जाएं और दुनिया को अपनी ताकत दिखाएं?
जब चरमपंथी और आतंकवादी देखते हैं कि हम विभाजित और कमजोर हैं, तो वे हमें नुकसान पहुंचाने के लिए अधिक बल का उपयोग करते हैं। यही कारण है कि हम बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान में बहुत कम संख्या में रह गए हैं।
धर्म, समाज और देश के लिए एक व्यापक दृष्टि रखने के बजाय, हिन्दू धार्मिक नेताओं ने अपनी दृष्टि को केवल अपने संगठन तक सीमित कर लिया है और वे मानते हैं कि उनकी अनुष्ठान प्रथाएं अन्य सभी से श्रेष्ठ हैं इसलिए उन्हें अन्य समान संगठनों व उनके नेताओं के साथ सहयोग करने की आवश्यकता नहीं है। हमारे धर्मगुरुओं को रामदास स्वामी के जैसे सोचना और कार्य करना चाहिए, जिन्होंने छत्रपति शिवाजी महाराज को एक महान योद्धा और राजा बनाया। उन्होंने मुगल क्रूरता और आक्रमण के खिलाफ बहादुरी से लड़ाई लड़ी। उन्होंने समग्र रूप से समाज से आक्रमणकारियों को बाहर निकालने के लिए सभी को लामबंद किया व अन्याय व लूटपाट करने वालों पर कड़ा प्रहार किया। उन्होंने धर्म परिवर्तन को रोक दिया और सनातन धर्म को विनाश से बचाया।
भगवान कृष्ण के विशाल ज्ञान ने कौरवों के अधर्म के खिलाफ लड़ाई में अर्जुन की सहायता की। स्वामी विवेकानंद को संत रामकृष्ण परमहंस से महारत हासिल हुई थी। महान स्वामी ने सनातन धर्म के संदेश और ज्ञान को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर फैलाया, जिसके परिणामस्वरूप एक सकारात्मक लहर और सनातन धर्म की ठोस नींव पड़ी। आचार्य चाणक्य ने चंद्रगुप्त मौर्य नाम के एक गरीब लड़के को मगध की गद्दी पर बैठाया। राज्य को सामाजिक और आर्थिक रूप से खुशहाल और स्वस्थ बनाने के लिए, महान चंद्रगुप्त ने उस समय के क्रूर राजा धनानंद को हरा दिया।
दुर्भाग्य से हमारे पास इस समय में ऐसे महान धार्मिक नेताओं की कमी है, जो देश के कानूनों और विनियमों का पालन करते हुए सही ज्ञान, इरादे और शक्ति के साथ समाज और देश की सेवा करने के लिए अपने अनुयायियों को विकसित करने पर ध्यान केंद्रित करें। यदि कोई राष्ट्र अपने लोगों और सीमाओं को दुश्मनों से बचाना चाहता है, तो ऐसा करने का एकमात्र तरीका शारीरिक, मानसिक, सामाजिक, आर्थिक और सबसे महत्त्वपूर्ण धार्मिक रूप से एकजुट होना है। अपने दुश्मनों में भय पैदा करके ही हम हिंसा का सहारा लिए बिना अपने लोगों की रक्षा करने और शांति बनाए रखने में सक्षम होंगे। कमजोर व्यक्ति योग्यतम की उत्तरजीविता (सर्वाइवल ऑफ) की अवधारणा को नहीं समझ सकते हैं। नतीजतन, हिंदू धर्मगुरुओं और संगठनों की एकता सर्वोच्च प्राथमिकता होनी चाहिए। यह न केवल दुनिया भर के हिंदुओं को सुरक्षित करने में मदद करेगा, बल्कि हमारे समाज और राष्ट्र को और अधिक ऊंचाइयों पर ले जाएगा। यह कई सामाजिक बुराइयों और मुद्दों के खिलाफ लड़ाई में मदद करेगा, सरकार को समाज और देश के लाभ के लिए आवश्यक कार्यवाही करने में सहायक होगा।
केवल हिन्दू धर्म के संतों की एकता के माध्यम से नशीली दवाओं के खतरे, धर्म परिवर्तन, भ्रष्टाचार, छेड़छाड़ और बलात्कार, सामाजिक अशांति, मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों, गरीबी और पर्यावरण संरक्षण जैसे मुद्दों को पर मुखर हुआ जा सकता है और उन्हें हल किया जा सकता है। सभी धर्मों और जातियों के सभी नागरिकों के लाभ के लिए, इन सामाजिक मुद्दों को हल करने के लिए एकजुट संत, महंत और संगठन, सरकार और न्यायिक प्रणाली के साथ सहयोग कर सकते हैं।
कुछ कानूनों के बिना, हमारे देश का विकास बाधित है और सामाजिक असंतुलन और अशांति बढ़ रही है। जनसंख्या नियंत्रण विधेयक, समान नागरिक संहिता, मंदिर स्वतंत्रता, शिक्षा प्रणाली में एकरूपता, सख्त भ्रष्टाचार विरोधी कानून, भ्रष्ट और कामचोर अधिकारियों और राजनेताओं के खिलाफ सख्त कानून, एनआरसी, धर्मांतरण विरोधी कानून, किसान बिल और एक राष्ट्र, एक वोट, समाज की बेहतरी और देश के विकास के लिए महत्त्वपूर्ण हैं। यह तभी संभव है जब हिन्दू साधु संत एकजुट हों। एकजुट हिन्दू धार्मिक नेता विभिन्न धर्मों के बीच सद्भाव को बढ़ावा देंगे और शांति का राज होगा। विकास इंजन में तेजी आएगी और दुनिया भर के लोगों का नजरिया बदलेगा। भारत की तरफ सकारात्मकता का भाव और सनातन धर्म के प्रति आकर्षित होंगे। जब हिन्दू एक हो जाते हैं, तो सबकी जीत होती है। जब हिन्दू बंटते हैं, तो नुकसान सिर्फ हिन्दू का ही होता है।
समय आ गया है कि हमारे धर्मगुरुओं और संगठनों को अपने एजेंडे को अलग रखकर वैश्विक ताकत का प्रदर्शन करने के लिए एकजुट होना चाहिए ताकि सभी की सुरक्षा सुनिश्चित हो सके। छत्रपति शिवाजी महाराज, चंद्रगुप्त मौर्य, स्वामी विवेकानंद और महान योद्धा अर्जुन जैसे पराक्रमी, नीतिवान और देशहित में काम करने वाले नेताओं को विकसित करने के लिए हर संगठन और धार्मिक नेता को काम करना चाहिए। हमें यह ध्यान रखने की जरूरत है कि हर सरकार संविधान से बंधी होती है इसलिए उनकी सीमित भूमिका होती है। यह धार्मिक और आध्यात्मिक गुरुओं और लोगों की एकता है जो समाज और देश में भारी बदलाव लाने के लिए मील का पत्थर साबित होती है।
साभार हिन्दू विवेक वेबसाइट
भगवान् की कृपा
संतों की एक सभा चल रही थी. किसी ने एक दिन एक घड़े में गंगाजल भरकर वहां रखवा दिया ताकि संत जन जब प्यास लगे तो गंगाजल पी सकें.संतों की उस सभा के बाहर एक व्यक्ति खड़ा था. उसने गंगाजल से भरे घड़े को देखा तो उसे तरह-तरह के विचार आने लगे. वह सोचने लगा- अहा ! यह घड़ा कितना भाग्यशाली है! एक तो इसमें किसी तालाब पोखर का नहीं बल्कि गंगाजल भरा गया और दूसरे यह अब सन्तों के काम आयेगा. संतों का स्पर्श मिलेगा, उनकी सेवा का अवसर मिलेगा. ऐसी किस्मत किसी किसी की ही होती है.घड़े ने उसके मन के भाव पढ़ लिए और घड़ा बोल पड़ा- बंधु मैं तो मिट्टी के रूप में शून्य पड़ा था. किसी काम का नहीं था. कभी नहीं लगता था कि भगवान् ने हमारे साथ न्याय किया है.फिर एक दिन एक कुम्हार आया. उसने फावड़ा मार-मारकर हमको खोदा और गधे पर लादकर अपने घर ले गया. वहां ले जाकर हमको उसने रौंदा. फिर पानी डालकर गूंथा. चाकपर चढ़ाकर तेजी से घुमाया, फिर गला काटा. फिर थापी मार-मारकर बराबर किया. बात यहीं नहीं रूकी. उसके बाद आंवे के आग में झोंक दिया जलने को. इतने कष्ट सहकर बाहर निकला तो गधे पर लादकर उसने मुझे बाजार में भेज दिया. वहां भी लोग ठोक-ठोककर देख रहे थे कि ठीक है कि नहीं, ठोकने-पीटने के बाद मेरी कीमत लगायी भी तो क्या- बस 20 से 30 रुपये ! मैं तो पल-पल यही सोचता रहा कि हे ईश्वर सारे अन्याय मेरे ही साथ करना था. रोज एक नया कष्ट एक नई पीड़ा देते हो. मेरे साथ बस अन्याय ही अन्याय होना लिखा है! भगवान ने कृपा करने की भी योजना बनाई है यह बात थोड़े ही मालूम पड़ती थी! किसी सज्जन ने मुझे खरीद लिया और जब मुझमें गंगाजल भरकर सन्तों की सभा में भेज दिया. तब मुझे आभास हुआ कि कुम्हार का वह फावड़ा चलाना भी भगवान् की कृपा थी. उसका वह गूंथना भी भगवान् की कृपा थी|
आग में जलाना भी भगवान् की कृपा थी और बाजार में लोगों के द्वारा ठोके जाना भी भगवान् की कृपा ही थी. अब मालूम पड़ा कि सब भगवान् की कृपा ही कृपा थी! परिस्थितियां हमें तोड़ देती हैं. विचलित कर देती हैं- इतनी विचलित की भगवान के अस्तित्व पर भी प्रश्न उठाने लगते हैं क्यों हम सबमें शक्ति नहीं होती ईश्वर की लीला समझने की, भविष्य में क्या होने वाला है उसे देखने की. इसी नादानी में हम ईश्वर द्वारा कृपा करने से पूर्व की जा रही तैयारी को समझ नहीं पाते. बस कोसना शुरू कर देते हैं कि सारे पूजा-पाठ, सारे जतन कर रहे हैं फिर भी ईश्वर हैं कि प्रसन्न होने और अपनी कृपा बरसाने का नाम ही नहीं ले रहे. पर हृदय से और शांत मन से
सोचने का प्रयास कीजिए, क्या सचमुच ऐसा है या फिर हम ईश्वर के विधान को समझ ही नहीं पा रहे? आप अपनी गाड़ी किसी ऐसे व्यक्ति को चलाने को नहीं देते |जिसे अच्छे से ड्राइविंग न आती हो तो फिर ईश्वर अपनी कृपा उस व्यक्ति को कैसे सौंप सकते हैं जो अभी मन से पूरा पक्का न हुआ हो. कोई साधारण प्रसाद थोड़े ही है ये, मन से संतत्व का भाव लाना होगा|ईश्वर द्वारा ली जा रही परीक्षा की घड़ी में भी हम सत्य और न्याय के पथ से विचलित नहीं होते तो ईश्वर की अनुकंपा होती जरूर है. किसी के साथ देर तो किसी के साथ सवेर|यह सब पूर्वजन्मोंके कर्मों सेभी तय होता है| ईश्वर की कृपादृष्टि में समय कितना लगना है. घड़े की तरह परीक्षा की अवधि में जो सत्यपथ पर टिका रहता है वह अपना जीवन सफल कर लेता है |
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