सोमवार, 1 नवंबर 2021

दीपावली पूजन मुहर्त

 


दीपावली पूजन मुहर्त 


दीपावली पांच पर्वों का त्यौहार है इसलिए महाउत्सव माना जाता है | जिसकी व्याप्ति कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी धनतेरस से कार्तिक शुक्ल द्वितीया भाईदूज तक रहती है | दीपावली के पर्व पर धन की प्राप्ति के लिए धन की अधिष्ठात्री भगवती लक्ष्मी का समारोह पूर्वक आवाहन षोडशोपचार सहित पूजा की जाती है | नीचे दिए मुहर्त में से किसी भी एक समय पर माता की पूजा करनी चाहिए | माता के मंत्र नीचे  दे रखे हैं | उनका उच्चारण  पूजा करते वक्त करते रहना चाहिए | पूजन सामग्री में विभिन्न प्रकार की मिठाई,फल,पुष्प,धूप,दीप,सुगंधित वस्तु,सुपारी,कलावा,रोली,गणेश लक्ष्मी की मूर्ति,आपके अपने जो इष्ट देव है उनकी मूर्ति,अगर खाता बही है तो खाता बही अपने पास रखे | कुछ लोग दिवाली वाले दिन नई खाता बही लगाते हैं तो उनको साथ रखना | पूरे अनुष्ठान के साथ पूजा करनी चाहिए | लक्ष्मी जी की पूजा कर रहे हैं तो पहले उनका स्नान कराएं,वस्त्र पहना दे, चंदन रोली लगाये कलावा,चावल चढ़ाएं उसके बाद भोग लगाएं पुष्प चढ़ाएं आरती करें और माता का ध्यान करें | इसी तरीके से कुबेर जी का भी पूजन करें और जो आप अपने खाता का पूजा करना चाहते हैं उनका भी पूजन करें | सात्विक विचार रखें |

मुहूर्त निम्नलिखित हैं 

चौघड़िया मुहर्त 

शुभ का चौघड़िया, 6:50 से 8:10 तक 

लाभ का चौघड़िया, 12:11 से 13:30 तक 

अमृत का चौघड़िया, 13:31  से 14:51 तक 

शुभ का  चौघड़िया, 16:11 से 17:32 तक 

अमृत का चौघड़िया, 17:32 से 19:12 तक 

चर का चौघड़िया, 19:12 से 20:52 तक 

प्रदोष काल में पूजन का मुहर्त,17:32 से 20:52 तक स्थिर लग्न विशेष रहेगा | मेरा सुझाव यह है कि 20:52 से पहले पहले पूजा हो जानी चाहिए लेकिन अगर मान लो कोई कारण हो तो 20:52 से पहले पूजा शुरू हो जाए वह भी अच्छा रहेगा बाकी तो हरी इच्छा है | 

 

पूजन के मन्त्र 

ॐ गं गणपतये नमः

या देवी सर्वभूतेषु लक्ष्मीरूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:||

ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं श्रीं क्लीं वित्तेश्वराय नमः॥ ॐ ह्रीं श्रीं क्रीं श्रीं कुबेराय अष्ट-लक्ष्मी मम गृहे धनं पुरय पुरय नमः॥ ॐ यक्षाय कुबेराय वैश्रवणाय धनधान्याधिपतये॥ धनधान्यसमृद्धिं मे देहि दापय स्वाहा॥

ॐ श्रींह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद श्रीं ह्रीं श्रीं ॐ महालक्ष्मी नम:।। 

श्री महाक्ष्मी नमो नमः।।

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5 दिनों तक चलने वाले दीपावली महोत्सव मनाने का कारण ये है कि हर व्यक्ति को जीवन की 5 महत्वपूर्ण बातें पता हो। इस महोत्सव का हर दिन जीवन की एक महत्वपूर्ण बात समझाता है। इस महोत्सव में सेहत, मृत्यु, धन, प्रकृति, प्रेम और सद्भाव का संदेश छुपा है। ये 5 जरूरी बातें जीवन को पूर्ण बनाती हैं। दीपावली पर्व पर लक्ष्मी पूजा सिर्फ धन और सोना-चांदी प्राप्ति की भावना से न की जानी चाहिए। लक्ष्मी का मतलब रुपया, पैसा, साेना-चांदी, के भण्डार से होने लगा है, लेकिन वास्तविकता इससे अलग है। महालक्ष्मी से अभिप्राय होता है सुख, शांति और समृद्धि से। यदि किसी के पास बहुत सारा धन है लेकिन सुख एवं शांति न हो तो उसे धनलक्ष्मी से सम्पन्न नहीं कहा जा सकता। यही समझाने के लिए दीपावली को पांच भागों में विभक्त किया गया है। धन्वन्तरि त्रयोदशी दीपावली पूजन की शुरुआत धनतेरस यानी धन्वन्तरि त्रयोदशी से होती है। कार्तिक कृष्णपक्ष की त्रयोदशी को समुद्र मंथन के परिणामस्वरूप भगवान धन्वन्तरि अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे। भगवान धन्वन्तरि की पूजा के पीछे यह रहस्य है कि सुख, शांति एवं समृद्धि की अनुभूति के लिए सर्वप्रथम स्वस्थ रहना ज़रूरी है। इसलिए मुद्रा प्राप्ति, धन प्राप्ति से पहले आरोग्य के देवता की पूजा की जाती है ताकि हम निरोग एवं स्वस्थ रहें। रूप चौदस इस दिन गृहिणियां उबटन लगाकर स्नान करती हैं। लक्ष्मी पूजन से पूर्व गृहलक्ष्मी का शृंगार ज़रूरी है। जब घर में मेहमान आते हैं तब भी स्वयं को ठीक से रखती हैं और जिस दिन साक्षात् लक्ष्मी जी आने वाली हों उससे पहले स्वरूप को निखारकर रखना आवश्यक है। इसलिए यह दिन रूप चौदस कहलाता है। इस दिन शाम को धर्मराज यम के लिए दीपदान किया जाता है। दीपदान के साथ मृत्यु और उसके देवता यमराज को याद किया जाता है। ऐसा करने के पीछे भावना होती है किसुख, समृद्धि और ऐश्वर्य पृथ्वी पर ही रह जाता है। मृत्यु ही अंतिम गति है। ऐसा इसलिए किया जाता है कि हम लक्ष्मीजी से उतनी ही कामना करें जितना जीवन यापन के लिए जरूरी है। इससे मनुष्य मन में धन-संपदा और समृद्धि से मोह उत्पन्न नहीं होता है। महालक्ष्मी पूजन दीपावली की पूजा में लक्ष्मी जी के साथ श्रीगणेश और मां सरस्वती भी होती हैं। रहस्य यह है कि लक्ष्मीजी से अभिप्राय हम धन-दौलत से ही समझते हैं लेकिन धन दौलत कभी भी सुख, शांति सुकून एवं समृद्धि प्रदान नहीं कर सकती । यह ज़रूरी है कि हमारी बुद्धि सही रहे तथा अच्छे -बुरे का ज्ञान होता रहे। इसलिए लक्ष्मी पूजन से पूर्व बुद्धि के देवता गणेशजी एवं ज्ञान की देवी सरस्वती जी का पूजन करते हैं ताकि सद्बुद्धि के साथ ज्ञानपूर्वक धन का सदुपयोग कर सकें। लक्ष्मी पूजन में भी विष्णु के साथ बैठी कमलासना लक्ष्मी की ही पूजा करते हैं। दूसरी उलूकवाहिनी लक्ष्मी होती हैं जो सदैव अंधकार चाहती हैं। अत: उलूकवाहिनी लक्ष्मीजी की पूजा नहीं करनी चाहिए। गोवर्धन पूजा धनतेरस से स्वस्थ रहने की तथा रूप चौदस पर दरिद्रता बाहर करने की प्रेरणा लेकर महालक्ष्मी का पूजन किया जाता है। यह लक्ष्मी पृथ्वी ही है और इसके लिए प्रकृति की पूजा एवं रक्षा ज़रूरी है जिसके निमित्त इंद्रदेवता की पूजा के स्थान पर भगवान श्रीकृष्ण के निर्देश से गोवर्धन पर्वत को प्रतीक बनाकर प्रकृति एवं पर्यावरण का संरक्षण करने के मंतव्य के साथ यह पूजा की जाती है। इस दिन किसान बैल, गाय आदि की पूजा करते हैं। ये त्योहार प्रकृति का सम्मान करना सीखाता है। यम द्वितीया कार्तिक माह के शुक्लपक्ष की द्वितीया को यम द्वितीया और भैया दूज के नाम से जाना जाता है। पौराणिक कथानुसार इस दिन भगवान यम बहन यमुना के घर मिलने जाया करते हैं। यमलोक के राजा यमराज के प्रमुख सहायक चित्रगुप्त की पूजा भी इसी दिन की जाती है। चित्रगुप्त यमराज का सारा लेखा-जोखा रखते हैं इसलिए सभी व्यापारी लोग दवात कलम एवं बही खाते की पूजा इस दिन करते हैं। वर्ष-भर का हिसाब भी लिखकर रखा जाता है।इस तरह यह त्योहार प्रेम-सद्भाव और सहायता का भी प्रतिक माना गया है।


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