बुधवार, 6 अक्टूबर 2021

साक्षात्कार,आलेख,फीचर व समाचार लेखन

 

साक्षात्कार,आलेख,फीचर व समाचार लेखन

साक्षात्कार के लिए आवश्यक है कि-

जिस विषय पर और जिस व्यक्ति के साथ साक्षात्कार करने आप जा रहे हैं, उसके बारे में आपके पास पर्याप्त जानकारी होनी चाहिए।आप साक्षात्कार से क्या निष्कर्ष निकालना चाहते हैं, इसके बारे में स्पष्ट रहना बहुत जरूरी है।आपको वे सवाल पूछने चाहिए जो किसी अखबार के एक आम पाठक के मन में हो सकते हैं।साक्षात्कार को अगर रिकॉर्ड करना संभव हो तो बेहतर है, लेकिन अगर ऐसा संभव न हो तो साक्षात्कार के दौरान आप नोट्स लेते रहें। साक्षात्कार को लिखते समय आप दो में से कोई भी एक तरीका अपना सकते हैं। एक आप साक्षात्कार को सवाल और फिर जवाब के रूप में लिख सकते हैं या फिर उसे एक आलेख की तरह से भी लिख सकते हैं।

आलेख के मुख्य अंग

आलेख के मुख्य अंग हैं-भूमिका, विषय का प्रतिपादन, तुलनात्मक चर्चा व निष्कर्ष। सर्वप्रथम, शीर्षक के अनुकूल भूमिका लिखी जाती है। यह बहुत लंबी न होकर संक्षेप में होनी चाहिए। विषय के प्रतिपादन में विषय का वर्गीकरण, आकार, रूप व क्षेत्र आते हैं। इसमें विषय का क्रमिक विकास किया जाता है। विषय में तारतम्यता व क्रमबद्धता अवश्य होनी चाहिए। तुलनात्मक चर्चा में विषयवस्तु का तुलनात्मक विश्लेषण किया जाता है और अंत में, विषय का निष्कर्ष प्रस्तुत किया जाता है।

आलेख ररिपोर्ट समाचार-पत्र, रेडियो और टेलीविजन की एक विशेष विधा है। इसके माध्यम से किसी घटना, समारोह या आँखों-देखे किसी अन्य कार्यक्रम की रिपोर्ट प्रस्तुत की जाती है। चूँकि दूरदर्शन दृश्य एवं श्रव्य दोनों ही उद्देश्य पूरा करने वाला माध्यम है, अत: इसके लिए आँखों-देखी घटना की रिपोर्ट तैयार की जाती है जबकि रेडियो के लिए केवल सुनने योग्य रिपोर्ट तैयार करने से काम चल जाता है। कभी संचालक द्वारा दी जा रही कार्यवाही का विवरण देखकर ही उसे रिपोर्ट का आधार बनाकर रिपोर्ट तैयार कर ली जाती है।

 

रिपोर्ट की विशेषताएँ-

रिपोर्ट की पहली मुख्य विशेषता उसकी संक्षिप्तता है। संक्षिप्त रिपोर्ट को ही लोग पढ़ पाते हैं। ज्यादा विस्तृत रिपोर्ट पढ़ी नहीं जाती, अत: उसे तैयार करना उद्देश्यहीन हो जाता है।रिपोर्ट की दूसरी मुख्य विशेषता उसकी निष्पक्षता है। रिपोर्ट को प्रभावशाली बनाने के लिए निष्पक्ष रिपोर्ट तैयार करनी चाहिए।रिपोर्ट की तीसरी प्रमुख विशेषता उसकी सत्यता है। इस तथ्य से रहित रिपोर्ट अप्रासंगिक और निरुद्देश्य हो जाती है। असत्य रिपोर्ट पर न कोई विश्वास करता है और न कोई पढ़ना पसंद करता है।रिपोर्ट की अगली विशेषता उसकी पूर्णता है। आधी-अधूरी रिपोर्ट से रिपोर्टर का न उद्देश्य पूरा होता है और न वह पाठकों की समझ में आती है।

रिपोर्ट की अगली विशेषता है-उसका संतुलित होना। अर्थात इसे सभी पक्षों को समान महत्व देते हुए तैयार करना चाहिए।रचना के संबंध में प्रमुख बातें

लेख लिखने से पूर्व विषय का चिंतन-मनन करके विषयवस्तु का विश्लेषण करना चाहिए।विषयवस्तु से संबंधित आँकड़ों व उदाहरणों का उपयुक्त संग्रह करना चाहिए।लेख में श्रृंखलाबद्धता होना जरूरी है।लेख की भाषा सरल, बोधगम्य व रोचक होनी चाहिए। वाक्य बहुत बड़े नहीं होने चाहिए। एक परिच्छेद में एक ही भाव व्यक्त करना चाहिए।लेख की प्रस्तावना व समापन में रोचकता होनी जरूरी है।विरोधाभास, दोहरापन, असंतुलन, तथ्यों की असंदिग्धता आदि से बचना चाहिए।समकालीन घटना या किसी भी क्षेत्र विशेष की विशिष्ट जानकारी के सचित्र तथा मोहक विवरण को फ़ीचर कहा जाता है। इसमें तथ्यों को मनोरंजक ढंग से प्रस्तुत किया जाता है। इसके संवादों में गहराई होती है। यह सुव्यवस्थित, सृजनात्मक व अद्धि न है जिक उद्देश्य पाठकों को स्चना ने तथा उह शतकने के साथ मुष्यरूप सेउक मोजना करना होता है।फ़ीचर में विस्तार की अपेक्षा होती है। इसकी अपनी एक अलग शैली होती है। एक विषय पर लिखा गया फ़ीचर प्रस्तुति विविधता के कारण अलग अंदाज प्रस्तुत करता है। इसमें भूत, वर्तमान तथा भविष्य का समावेश हो सकता है। इसमें तथ्य, कथन व कल्पना का उपयोग किया जा सकता है। फ़ीचर में आँकड़े, फोटो, कार्टून, चार्ट, नक्शे आदि का उपयोग उसे रोचक बना देता है।

फीचर व समाचार में अंतर

फ़ीचर में लेखक के पास अपनी राय या दृष्टिकोण और भावनाएँ जाहिर करने का अवसर होता है। जबकि समाचार-लेखन में वस्तुनिष्ठता और तथ्यों की शुद्धता पर जोर दिया जाता है।फ़ीचर-लेखन में उलटा पिरामिड शैली का प्रयोग नहीं होता। इसकी शैली कथात्मक होती है।फ़ीचर-लेखन की भाषा सरल, रूपात्मक व आकर्षक होती है, परंतु समाचार की भाषा में सपाटबयानी होती है।फ़ीचर में शब्दों की अधिकतम सीमा नहीं होती। ये आमतौर पर 200 शब्दों से लेकर 250 शब्दों तक के होते हैं, जबकि समाचारों पर शब्द-सीमा लागू होती है।फ़ीचर का विषय कुछ भी हो सकता है, समाचार का नहीं।

फ़ीचर के प्रकार निम्नलिखित हैं

समाचार फीचर,घटनापरक फीचर,व्यक्तिपरक फीचर,लोकाभिरुचि फ़ीचर,सांस्कृतिक फ़ीचर,साहित्यिक प्रफीचर,विश्लेषण प्रफीचर,विज्ञान फ़ीचर।

फीचर-लेखन संबंधी मुख्य बातें

फ़ीचर को सजीव बनाने के लिए उसमें उस विषय से जुड़े लोगों की मौजूदगी जरूरी होती है।फ़ीचर के कथ्य को पात्रों के माध्यम से बताना चाहिए।कहानी को बताने का अंदाज ऐसा हो कि पाठक यह महसूस करें कि वे घटनाओं को खुद देख और सुन रहे हैं।फ़ीचर मनोरंजक व सूचनात्मक होना चाहिए।फ़ीचर शोध रिपोर्ट नहीं है।इसे किसी बैठक या सभा के कार्यवाही विवरण की तरह नहीं लिखा जाना चाहिए।फ़ीचर का कोई-न-कोई उद्देश्य होना चाहिए। उस उद्देश्य के इर्द-गिर्द सभी प्रासंगिक सूचनाएँ तथ्य और विचार गुंथे होने चाहिए।फ़ीचर तथ्यों, सूचनाओं और विचारों पर आधारित कथात्मक विवरण और विश्लेषण होता है।फ़ीचर-लेखन का कोई निश्चित ढाँचा या फ़ॉर्मूला नहीं होता। इसे कहीं से भी अर्थात प्रारंभ, साहित्यिक और पत्रकारीय लेखन में अंत पत्रकारीय लेखन का संबंध तथा दायरा समसामयिक और वास्तविक घटनाओं, समस्याओं तथा मुद्दों से होता है। यह साहित्यिक और सृजनात्मक लेखन-कविता, कहानी, उपन्यास आदि-इस मायने में अलग है कि इसका रिश्ता तथ्यों से होता है, न कि कल्पना से। पत्रकारीय लेखन साहित्यिक और सृजनात्मक लेखन से इस मायने में भी अलग है कि यह अनिवार्य रूप से तात्कालिकता और अपने पाठकों की रुचियों तथा जरूरतों को ध्यान में रखकर किया जाने वाला लेखन है, जबकि साहित्यिक और सृजनात्मक लेखन में लेखक को काफी छूट होती है। 

पत्रकारीय लेखन के स्मरणीय तथ्य - पत्रकारीय लेखन करने वाले विशाल जन-समुदाय के लिए लिखते हैं, जिसमें पाठकों का दायरा और ज्ञान का स्तर विस्तृत होता है। इसके पाठक मजदूर से विद्वान तक होते हैं, अत: उसकी लेखन-शैली और भाषा- सरल, सहज और रोचक होनी चाहिए। अलंकारिक और संस्कृतनिष्ठ होने की बजाय आम बोलचाल वाली होनी चाहिए शब्द सरल और आसानी से समझ में आने वाले होने चाहिए।वाक्य छोटे और सहज होने चाहिए।समाचार कैसे लिखा जाता है? पत्रकारीय लेखन का सबसे जाना-पहचाना रूप समाचार-लेखन है। आमतौर पर समाचार-पत्रों में समाचार पूर्णकालिक और अंशकालिक पत्रकार लिखते हैं, जिन्हें संवाददाता या रिपोर्टर भी कहते हैं।

समाचार-लेखन की विशेष शैली - अखबारों में प्रकाशित अधिकांश समाचार एक खास शैली में लिखे जाते हैं। इन समाचारों में किसी भी घटना, समस्या या विचार के सबसे महत्वपूर्ण तथ्य, सूचना या जानकारी को सबसे पहले पैराग्राफ़ में लिखा जाता है। उसके बाद के पैराग्राफ़ में उससे कम महत्वपूर्ण सूचना या तथ्य की जानकारी दी जाती है। यह प्रक्रिया तब तक जारी रहती है जब तक समाचार खत्म नहीं हो जाता।

उलटा पिरामिड शैली - समाचार-लेखन की एक विशेष शैली है, जिसे उलटा पिरामिड शैली (इन्वर्टेड पिरामिड टी या स्टाइल) के नाम से जाना जाता है। यह समाचार-लेखन की सबसे लोकप्रिय, उपयोगी और बुनियादी शैली है। यह शैली कहानी या कथा-लेखन की शैली के ठीक उलटी है, जिसमें क्लाइमेक्स बिलकुल आखिर में आता है। इसे ‘उलटा पिरामिड शैली’ इसलिए कहा जाता है क्योंकि इसमें सबसे महत्वपूर्ण तथ्य या सूचना यानी ‘क्लाइमेक्स’ पिरामिड के सबसे निचले उलटा पिरामिड में हिस्से में नहीं होती, बल्कि इस शैली में पिरामिड को उलट दिया जाता है।

समाचार – लेखन और छह ककार - किसी समाचार को लिखते हुए जिन छह सवालों का जवाब देने की कोशिश की जाती है,वे हैं-क्या हुआ? किसके साथ हुआ? कब हुआ? कहाँ हुआ?कैसे हुआ? क्यों हुआ?इस क्या, किसके (या कौन), कब, कहाँ, कैसे और क्यों को ही छह ककारों के रूप में जाना जाता है।समाचार के मुखड़े (इंट्रो) यानी पहले पैराग्राफ़ या शुरुआती दो-तीन पंक्तियों में आमतौर पर तीन या चार ककारों को आधार बनाकर खबर लिखी जाती है। ये चार ककार हैं-क्या, कौन, कब और कहाँ? इसके बाद समाचार की बॉडी में और समापन के पहले बाकी दो ककारों-कैसे ‘ और क्यों-का जवाब दिया जाता है। इस तरह छह ककारों के आधार पर समाचार तैयार होता है। इनमें से पहले चार ककार-क्या, कौन, कब और कहाँ-सूचनात्मक और तथ्यों पर आधारित होते हैं जबकि बाकी दो ककारों-कैसे और क्यों-में विवरणात्मक, व्याख्यात्मक और विश्लेषणात्मक पहलू पर जोर दिया जाता है। फ़ीचर का हर पैराग्राफ अपने पहले के पैराग्राफ से सहज तरीके से जुड़ा होना चाहिए तथा उनमें प्रारंभ से अंत तक प्रवाह व गति रहनी चाहिए।पैराग्राफ छोटे होने चाहिए तथा एक पैराग्राफ में एक पहलू पर ही फोकस करना चाहिए।


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