घर में किस चीज़ की धूनी (धूप) करने से होता है क्या फायदा
घरों में धूनी (धूप) देने की परंपरा काफी प्राचीन है। धूप देने से मन को शांति और प्रसन्नता मिलती है। साथ ही, मानसिक तनाव दूर करने में भी इससे बहुत लाभ मिलता है। घरों में धूनी देने के लिए कई तरह की चीज़ें आती है। आइए जानते है किस चीज़ की धूनी करने से क्या फायदे होते है।
कर्पूर और लौंग
रोज़ाना सुबह और शाम घर में कर्पूर और लौंग जरूर जलाएं। आरती या प्रार्थना के बाद कर्पूर जलाकर उसकी आरती लेनी चाहिए। इससे घर के वास्तुदोष ख़त्म होते हैं। साथ ही पैसों की कमी नहीं होती।
गुग्गल की धूनी
हफ्ते में 1 बार किसी भी दिन घर में कंडे जलाकर गुग्गल की धूनी देने से गृहकलह शांत होता है। गुग्गल सुगंधित होने के साथ ही दिमाग के रोगों के लिए भी लाभदायक है।
पीली सरसों
पीली सरसों, गुग्गल, लोबान, गौघृत को मिलाकर सूर्यास्त के समय उपले (कंडे) जलाकर उस पर ये सारी सामग्री डाल दें। नकारात्मकता दूर हो जाएगी।
धूपबत्ती
घर में पैसा नहीं टिकता हो तो रोज़ाना महाकाली के आगे एक धूपबत्ती लगाएं। हर शुक्रवार को काली के मंदिर में जाकर पूजा करें।
नीम के पत्ते
घर में सप्ताह में एक या दो बार नीम के पत्ते की धूनी जलाएं। इससे जहां एक और सभी तरह के जीवाणु नष्ट हो जाएंगे। वही वास्तुदोष भी समाप्त हो जाएगा।
षोडशांग धूप
अगर, तगर, कुष्ठ, शैलज, शर्करा, नागर, चंदन, इलायची, तज, नखनखी, मुशीर, जटामांसी, कर्पूर, ताली, सदलन और गुग्गल, ये सोलह तरह के धूप माने गए हैं। इनकी धूनी से आकस्मिक दुर्घटना नहीं होती है।
लोबान धूनी
लोबान को सुलगते हुए कंडे या अंगारे पर रख कर जलाया जाता है, लेकिन लोबान को जलाने के नियम होते हैं इसको जलाने से पारलौकिक शक्तियां आकर्षित होती है। इसलिए बिना विशेषज्ञ से पूछे इसे न जलाएं।
दशांग धूप
चंदन, कुष्ठ, नखल, राल, गुड़, शर्करा, नखगंध, जटामांसी, लघु और क्षौद्र सभी को समान मात्रा में मिलाकर जलाने से उत्तम धूप बनती है। इसे दशांग धूप कहते हैं। इससे घर में शांति रहती है।
गायत्री केसर
घर पर यदि किसी ने कुछ तंत्र कर रखा है तो जावित्री, गायत्री केसर लाकर उसे कूटकर मिला लें। इसके बाद उसमें उचित मात्रा में गुग्गल मिला लें। अब इस मिश्रण की धुप रोज़ाना शाम को दें। ऐसा 21 दिन तक करें।
शिव पूजा , पूजा से जुड़ी हुईं अति महत्वपूर्ण बातें।
कभी भी तांबे के लोटे या बर्तन में दूध ना डालें । दूध हमेशा स्टील, पीतल या चांदी के पात्र में ही डालें । तांबे में दूध डालने से वह दूध संक्रमित हो जाता है और सड़ जाता है ।शिवलिंग पर दूध, दही, शहद या कोई भी वस्तु चढ़ाने के बाद जल अवश्य चढ़ाएं । स्नान तभी पूर्ण होता है जब हमारी चढ़ाई वस्तु जल से पूरी तरह साफ कर दें ।बहुत से लोग शिवलिंग पर ही धूप या अगरबत्ती लगा देते हैं जोकि गलत है । उससे शिवलिंग पर गर्म राख गिरती है जिससे बचाव करना चाहिए ।शिवलिंग के ऊपर रखे कलश में कभी भी दूध ना डालें । उसमे सिर्फ साफ जल ही डालें ताकि शिवलिंग पर साफ जल चढ़ता रहे और स्नान होता रहे । सिर्फ रुद्राभिषेक के समय ही कलश में दूध डाल सकते हैं ।शिवलिंग पर कभी भी सिंदूर या रोली से टीका ना लगाएं । शिवलिंग पर सिर्फ चंदन का तिलक करें ।कुछ लोग शिवलिंग पर ही रुपए चढ़ा देते हैं जो अनुचित है । रुपए की आवश्यकता भगवान को नहीं बल्कि मंदिर के कार्यों के लिए होती है । इसलिए कोशिश करें की हमेशा दान पात्र में ही रुपए डालें ।कभी भी शिवलिंग की पूरी परिक्रमा ना करें । जिधर से जल बहता है उधर तक जाएं और वापस घूम जाएं ।दीपक या धूप आदि शिवलिंग व मूर्तियों से थोड़ा दूरी पर रखें अन्यथा उसके धुएं से मूर्तियां काली पड़ जाती हैं ।इसके अलावा बहुत से लोग विशेषकर महिलाएं मंदिरों में भगवान की मूर्ति के आगे लगें शीशे पर ही तिलक या भोग लगा देती हैं जिससे सारा शीशा धुंधला पड़ जाता है और भगवान के दर्शन अच्छे से नहीं हो पाते । इससे बचें और अगर करना ही है तो तिलक हमेशा भगवान के चरणों में ही करें ।कोशिश करें कि मंदिर में ज्यादा से ज्यादा साफ सफाई का ध्यान रखें और अपनी तरफ से कोई भी गंदगी ना फैलाएं
पूजा से जुड़ी हुईं अति महत्वपूर्ण बातें।
एक हाथ से प्रणाम नही करना चाहिए।सोए हुए व्यक्ति का चरण स्पर्श नहीं करना चाहिए। बड़ों को प्रणाम करते समय उनके दाहिने पैर पर दाहिने हाथ से और उनके बांये पैर को बांये हाथ से छूकर प्रणाम करें। जप करते समय जीभ या होंठ को नहीं हिलाना चाहिए। इसे उपांशु जप कहते हैं। जप करते समय दाहिने हाथ को कपड़े या गौमुखी से ढककर रखना चाहिए। जप के बाद आसन के नीचे की भूमि को स्पर्श कर नेत्रों से लगाना चाहिए।यज्ञ, श्राद्ध आदि में काले तिल का प्रयोग करना चाहिए, सफेद तिल का नहीं। शनिवार को पीपल पर जल चढ़ाना चाहिए। पीपल की सात परिक्रमा करनी चाहिए। परिक्रमा करना श्रेष्ठ है | कूमड़ा-मतीरा-नारियल आदि को स्त्रियां नहीं तोड़े या चाकू आदि से नहीं काटें। यह उत्तम नही माना गया हैं। भोजन प्रसाद को लाघंना नहीं चाहिए।देव प्रतिमा देखकर अवश्य प्रणाम करें। किसी को भी कोई वस्तु या दान-दक्षिणा दाहिने हाथ से देना चाहिए। बिना यज्ञोपवित या शिखा बंधन के जो भी कार्य, कर्म किया जाता है, वह निष्फल हो जाता हैं। शंकर जी को बिल्वपत्र, विष्णु जी को तुलसी, गणेश जी को दूर्वा, लक्ष्मी जी को कमल प्रिय हैं।शंकर जी को शिवरात्रि के सिवाय कुंकुम नहीं चढ़ती। शिवजी को कुंद, विष्णु जी को धतूरा, देवी जी को आक तथा मदार और सूर्य भगवानको तगर के फूल नहीं चढ़ावे। अक्षत देवताओं को तीन बार तथा पितरों को एक बार धोकर चढ़ावं।नये बिल्व पत्र नहीं मिले तो चढ़ाये हुए बिल्व पत्र धोकर फिर चढ़ाए जा सकते हैं। गणेश जी को तुलसी, दुर्गा जी और सूर्य नारायण को बिल्व पत्र नहीं चढ़ावें। पत्र-पुष्प-फल का मुख नीचे करके नहीं चढ़ावें, जैसे उत्पन्न होते हों वैसे ही चढ़ावें। किंतु बिल्वपत्र उलटा करके डंडी तोड़कर शंकर पर चढ़ावें। पान की डंडी का अग्रभाग तोड़कर चढ़ावें। सड़ा हुआ पान या पुष्प नहीं चढ़ावे। गणेश को तुलसी भाद्र शुक्ल चतुर्थी को चढ़ती हैं। पांच रात्रि तक कमल का फूल बासी नहीं होता है। दस रात्रि तक तुलसी पत्र बासी नहीं होते हैं।सभी धार्मिक कार्यो में पत्नी को दाहिने भाग में बिठाकर धार्मिक क्रियाएं सम्पन्न करनी चाहिए।पूजन करनेवाला ललाट पर तिलक लगाकर ही पूजा करें। पूर्वाभिमुख बैठकर अपने बांयी ओर घंटा, धूप तथा दाहिनी ओर शंख, जलपात्र एवं पूजन सामग्री रखें। घी का दीपक अपने बांयी ओर तथा देवता को दाहिने ओर रखें एवं चांवल पर दीपक रखकर प्रज्वलित करें।
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