सोमवार, 6 मार्च 2023

जानकारी काल मार्च - 2023

 


जानकारी काल 

   वर्ष-23,  अंक-11, मार्च -2023, पृष्ठ 62 मूल्य 2-50    

 

जब वह राधा और अन्‍य गोपियों को तरह-तरह के रंगों से रंग रहे थे, तो नटखट श्री कृष्‍ण की यह प्यारी शरारत सभी ब्रजवासियों को बहुत पंसद आई। माना जाता है, कि इसी दिन से होली पर रंग खेलने का प्रचलन शुरू हो गया और इसीलिए होली पर रंग-गुलाल खेलने की यह परंपरा आज भी निभाई जा रही है।


संरक्षक

 श्रीमान कुलवीर शर्मा

कमहामंत्री समर्थ शिक्षा समिति

डॉ वी  एस नेगी

प्रोफेसर भगत सिंह कॉलेज सांध्य


 प्रधान संपादक व  प्रकाशक

 सतीश शर्मा 


 

 कार्यालय

 ए 214 बुध नगर इंद्रपुरी

 नई दिल्ली 110012


 मोबाइल

  9312002527


 संपादक मंडल

 सौरभ  शर्मा,कपिल शर्मा,

गौरव शर्मा,डॉ अजय प्रताप सिंह, करुणा ऋषि, डॉ मधु वैध,राजेश शुक्ल  


प्रकाशक व मुद्रक सतीश शर्मा के लिय ग्लैक्सी प्रिंटर-106 F,

कृणा नगर नई दिल्ली 110029, A- 214 बुध नगर इन्दर पूरी नई दिल्ली  110012 से प्रकाशित |


सभी लेखों पर संपादक की सहमति आवश्यक नहीं है पत्रिका में किसी भी लेख में आपत्ति होने पर उसके विरुद्ध कार्रवाई केवल दिल्ली कोर्ट में ही होगी

 

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        अनुक्रमणिका

सम्पादकीय   - 3   

हमारा श्रेय,जो हमसे छिन गया,भारतीय काल गणना- 4 लेख

भेड़चाल की दौड - 10 कहानी

मार्च मास के महत्वपूर्ण दिवस व महापुरुष के जन्म दिन - 12  

बंटवारा - 13   कहानी 

पापा क्यो रोए थे उस दिन - 15 कहानी  

मासिक पंचांग,पंचक विचार,भद्रा विचार,मार्च मास के व्रत,

सर्वार्थ सिद्ध योग,मूल विचार - 17 ज्योतिष

पंखे की डोर- 22 कहानी 

न बगावत की है न तो अदावत की है-25 कविता 

जाने भारतीय पंचांग को-26 लेख

व्यापार और दया-29 कहानी

गंड मूल नक्षत्र-30 ज्योतिष 

वृक्ष बंधन-32 कविता

दिशाशूल-33 ज्योतिष 

पापमोचनी एकादशी  - 35  कथा    

कामदा एकादशी  - 36  कथा

चित्रा नक्षत्र- 37 ज्योतिष 

नीलम रत्न-38 ज्योतिष 

कन्या राशी-39 ज्योतिष 

सूर्य नमस्कार- 40 योग 

पठनीय विषयों का सांस्कृतिक स्वरूप-42 लेख 

ना जाने किस रूपमे नारायण मिल जाए- 47 कहानी 

सेंधा नमक - 49 लेख 

रिंग सेरोमनी-52 लेख

हर व्यक्ति का महत्त्व-53 कहानी

गुजिया - 54  स्वादिष्ट व्यंजन 

सिंधु जल संधि -55 लेख

संस्कृत एवं उत्तर प्रदेश की बोलियों में कृष्ण काव्य- 58 लेख


सम्पादकीय 

भारत विकास शील देश से विकसित देश की ओर बढ रहा है विशाल और उन्नत प्रौद्योगिक संस्थान, नवीन तकनीकी हेतु विज्ञान संस्थान और सूचना प्रदान के लिए नए संस्थान खुल रहे है व विकसित हो रहे है । कौशल विकास समाज और संस्कार के लिए वरीयता बन रहा है नवाचार को प्रोत्साहन दिया जा रहा है नेतृत्व पर युवा पीढ़ी का विश्वास पहले से कहीं ज्यादा बेहतर हो रहा है राष्ट्रव्यापी तकनीकी ढांचा विकसित करने का लगातार प्रयास चल रहा है | हमारे प्रवासियों ने विश्व के विभिन्न देशों में अपने ज्ञान व कौशल से अपने-अपने देशों के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभा कर वह अपना एक अलग ही स्थान बना लिया है। आज ये प्रवासी भारतीय न केवल वहाँ जहाँ ये रहते है बल्कि भारत के विकास  करने में भी किसी प्रकार की कमी नहीं रखते हैं।  प्रवासी भारतीयों द्वारा विद्वेषण के जरिए अधिक राशि भेजने से भारत में विदेशी मुद्रा का भंडार लगातार बढ़ रहा है जो कि भारतीय रुपए को अंतरराष्ट्रीय बाजार में स्थिरता प्रदान करने में मददगार साबित हो रहा है जो भारत में अर्थव्यवस्था को गति एवं मजबूती प्रदान करने में सहायक हो रहा है इससे भारत में नया निवेश बढ़ रहा है जिससे वह रोजगार के नए अवसर निर्मित हो रहे हैं पूरे विश्व में विभिन्न देशों द्वारा वित्त प्रेषण के जरिए प्राप्त की जा रही राशि की सूची में भारत का प्रथम स्थान बना हुआ है। शिक्षा प्रणाली मे बदलाव हो रहा है भारत की सांस्कृतिक वैभवता को भी विश्व में मान्यता मिल रही है आयुर्वेद तथा योग का प्रचार व प्रसार  पूरे विश्व मे हो रहा है | आयुर्वेद में नए नए प्रयोग हो रहे हैं बड़ी संख्या में उसको उपयोग करने वाले लोग आगे आ रहे हैं | करोना महामारी के समय सरकार ने जिस कुशलता से प्रबन्धन किया आज पुरा विश्व उसकी तारीफ कर रहा है | स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने  टीकाकरण अभियान को तीन चरणों में चलाया , जिसमें सबसे पहले स्वास्थ्य कर्मियों का टीकाकरण करा, उसके बाद फ्रंटलाइन कार्यकर्त्ता तथा आवश्यक सेवाकर्मी और उसके बाद 50 वर्ष से अधिक और अन्य बीमारियों से ग्रस्त लोगों का टीकाकरण किया | महीनों की योजना, जिसमें किसी भी प्रकार की शंकाओं को दूर करने के लिए पूर्वाभ्यास शामिल है, से पहले कोविड - 19 टीकाकरण के समय एक नई आशा और ऊर्जा देखी गई | वैज्ञानिको व डाक्टरो ने मिलकर इसे सफलतापूर्वक अंजाम दिया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने संयुक्त राष्ट्र सभा में योग की महिमा बताई और विश्व योग दिवस मनाना प्रारंभ हुआ यह हमारे लिए गौरव की बात है | विदेशो मे योग के प्रति रुझान बढता जा रहा है। हम रक्षा के उपकरण बनाने लगे हैं और विदेशों में भेजने लगे हैं धीरे-धीरे वह दिन दूर नहीं जब हम अत्यधिक जटिल प्रणाली, सेंसर, हथियार और जिनमे गोला-बारूद शामिल हैं। ये हैं: हल्के टैंक, माउंटेड आर्टी गन सिस्टम (155एमएमX 52सीएएल), पिनाका एमएलआरएस के लिए गाइडेड एक्सटेंडेड रेंज (जीईआर) रॉकेट, नौसेना के उपयोग के लिए हेलीकॉप्टर (एनयूएच), नई पीढ़ी की अपतटीय पेट्रोल पोत (एनजीओपीवी), एमएफ स्टार (जहाजों के लिए रडार), मध्यम रेंज की पोत-रोधी मिसाइल (नौसेना संस्करण), अत्याधुनिक हल्के टॉरपीडो (शिप लॉन्च), उच्च सहनशील स्वायत्त अंडरवाटर वाहन, मध्यम ऊंचाई की अधिक सहनशक्ति मानव रहित हवाई वाहन(मेल यूएवी), विकिरण रोधी मिसाइल और लॉटरिंग युद्ध सामग्री शामिल हैं हवाई जहाज,नई-नई तकनीक के मिसाइल विदेशों में निर्यात करेंगे भारत नए यूग मे प्रवेश कर रहा है भारत का युवा जो पहले रोजगार तलाश करता था अब धीरे-धीरे रोजगार के अवसर देने वाला बनता जा रहा है । नए उद्योग नए कारखाने हमारे देश में लगने आ रहे हैं | विश्व की कई बड़ी कम्पनियां भारत में आपना कारोबार शुरू कर चुकी है करने जा रही है | सबका साथ सबका विकास सबका विश्वास की नीति पर चल कर भारत एक बार फिर विश्व गुरू बनने की ओर अग्रसर है।

 हमारा श्रेय, जो हमसे छिन गया…

भारतीय काल गणना  

 प्रशांत पोळ

हाल ही में एक समाचार पत्र में यह समाचार प्रकाशित हुआ था कि विभिन्न प्रकार की खोज और शोध के अनुसार हमारी पृथ्वी की आयु लगभग 4.5 बिलियन वर्ष आंकी गई है… अर्थात् 454 करोड़ वर्ष।

मजे की बात यह है कि हमारे पुराणों में इस बात का स्पष्ट उल्लेख है। अंग्रेजों ने हमारे पुराणों को Mythology नाम दिया है, जो Myth शब्द से तैयार किया गया है। Myth का अर्थ है ‘सत्य प्रतीत होने वाला झूठ’, अर्थात् Mythology का अर्थ अंग्रेजों ने निकाला, ‘जो सच नहीं है, वह…’ इसका दूसरा अर्थ यह है कि जो भी पुराणों में लिखा है, उसे सच नहीं माना जा सकता। पुराण केवल दादा-दादी की, नाना-नानी की भगवान भक्ति के लिए, भजन-कीर्तन के लिए ठीक हो सकता है। परन्तु वास्तव में उसकी कोई कीमत नहीं है। अंग्रेजों के अनुसार पुराणों में वर्णित बातों को प्रमाण नहीं माना जा सकता। उनका कोई ऐतिहासिक आधार नहीं है।

अब विष्णु पुराण के तीसरे अध्याय में स्थित इस श्लोक को देखिये –

‘काष्ठा पञ्चदशाख्याता निमेषा मुनिसत्तम।

काष्ठात्रिंशत्कला त्रिंशत्कला मौहूर्तिको विधिः ॥ १,३.८ ॥

तावत्संख्यैरहोरात्रं मुहूर्तैर्मानुषं स्मृतम्।





अहोरात्राणि तावन्ति मासः पक्षद्वयात्मकः ॥ १,३.९ ॥

तैः षड्भिरयनं वर्षं द्वेऽयने दक्षिणोत्तरे।

अयनं दक्षिणं रात्रिर्देवानामुत्तरं दिनम् ॥ १,३.१० ॥

दिव्यैर्वर्षसहस्रैस्तु कृतत्रेतादिसंज्ञितम्।

चतुर्युगं द्वादशभिस्तद्विभागं निबोद मे ॥ १,३.११ ॥

चत्वारित्रीणि द्वे चैकं कृतादिषु यथाक्रमम्।

द्विव्याब्दानां सहस्राणि युगोष्वाहुः पुराविदः ॥ १,३.१२ ॥

तत्प्रमाणैः शतैः संध्या पूर्वा तत्राभिधीयते।

सन्ध्यांशश्चैव तत्तुल्यो युगस्यानन्तरो हि सः ॥ १,३.१३ ॥

सन्ध्यासंध्यांशयोरन्तर्यः कालो मुनिसत्तम।

युगाख्यः स तु विज्ञेयः कृतत्रेतादिसंज्ञितः ॥ १,३.१४ ॥

कृतं त्रेता द्वापरश्च कलिश्चैव चतुर्युगम्।

प्रोच्यते तत्सहस्रं व ब्रह्मणां दिवसं मुने ॥ १,३.१५ ॥

महाभारत में भी इस कालगणना का वर्णन किया गया है –

काष्ठा निमेषा दश पञ्च चैव त्रिंशत्तु काष्ठा गणयेत्कलां ताम्।

त्रिंशत्कलश्चापि भवेन्मुहूर्तो भागः कलाया दशमश्च यः स्यात्।।

त्रिंशन्मुहूर्तं तु भवेदहश्च रात्रिश्च सङ्ख्या मुनिभिः प्रणीता।

मासः स्मृतो रात्र्यहनी च त्रिंशु त्संवत्सरो द्वादशमास उक्तः।।

– महाभारत, (शांतिपर्व), 238वां सर्ग

इसके अनुसार –

15 निमिष (पलक खुलने – झपकने का समय) 1 कष्ट,30 कष्ट – 1 कला,30 कला – 1 मुहूर्त

30 मुहूर्त – 1 दिन/रात्रि,30 दिवस/रात्रि – 1 महीना (मास),6 महीने – 1 अयन

2 अयन – 1 मानवी वर्ष,360 मानवी वर्ष – 1 दैवी वर्ष,12,000 दैवी वर्ष – 4 युग

43,20,000 मानवी वर्ष – 1 चौकड़ी,72 चौकड़ियां (चतुर्युग) – 31 कोटि 10 लाख 40 हजार वर्ष – 1 मन्वंतर,इस प्रकार जब 14 मन्वंतर हो जाते हैं, तब वह ब्रह्मदेव का एक दिवस होता है।

14 मन्वंतर – 435.45 करोड़ मानवी वर्ष,ब्रह्मदेव का 1 दिवस

ब्रह्मदेव का दिवस/रात्रि 870.91 कोटि मानवी वर्ष (सृष्टि का आरम्भ/अंत)

अभी चौदह में से सातवां वैवस्वत मन्वंतर चल रहा है। इसका अट्ठाईसवां युग ही कलियुग है। अर्थात् 435.45 करोड़ + 28 युग (3 करोड़ 2 लाख वर्ष) = 438.65 करोड़ वर्ष।

दूसरी मजे की बात यह है कि अथर्ववेद में भी सृष्टि की आयु के बारे में एक श्लोक है –

शतं ते युतंहायानान्द्वे युगे त्रीणी चत्वारि ।। अथर्ववेद ८.२.२१ ।।

इस श्लोक की गणना के अनुसार सृष्टि की आयु है – 432 करोड़ वर्ष

कहने का अर्थ ये है कि अंग्रेजों द्वारा हमारे जिन पुराणों को ‘सत्य लगने वाला झूठ’ कहकर प्रचारित किया गया है, उन पुराणों के अनुसार सृष्टि का निर्माण काल 438.65 करोड़ वर्ष है। और कथित आधुनिकतम विज्ञान द्वारा एकदम सटीक और तमाम प्रयोगों के बाद सृष्टि का उदगम 454 करोड़ वर्ष पहले हुआ है। इसका अर्थ साफ़ है कि हमारे पुराण भी आधुनिक विज्ञान द्वारा प्रयोगों के बाद घोषित किए गए निरीक्षणों के एकदम पास हैं। कुछ हजार वर्ष पूर्व, जब आज की तरह आधुनिक वैज्ञानिक साधन नहीं थे, तब हमारे पूर्वजों ने पृथ्वी के उद्गम संबंधी यह सटीक गणना एवं आँकड़े कैसे प्राप्त किए होंगे…?

हमारे स्कूलों में आज भी बच्चों को पढ़ाया जा रहा है कि ‘निकोलस कोपर्निकस’ (१४७३-१५४३) नामक पोलैंड के एक खगोलशास्त्री ने सर्वप्रथम दुनिया को यह बताया कि ‘सूर्य हमारे अंतरिक्ष एवं ग्रह परिवार का केंद्र बिंदु है तथा पृथ्वी सूर्य के चारों तरफ चक्कर लगाती है’। हम इतने निकम्मे निकले कि यही जानकारी वर्षों से बच्चों को आगे पढ़ाए जा रहे हैं। इस कोपर्निकस नामक वैज्ञानिक से लगभग 

ढाई-तीन हजार वर्ष पहले पाराशर ऋषि ने विष्णु पुराण की रचना की हुई है। इस विष्णु पुराण के आठवें अध्याय का पन्द्रहवां श्लोक है –

नैवास्तमनमर्कस्यनोदमः सर्वतासतः। उदयास्तमनाख्यन्ही दर्शनादर्शन रवे।।

अर्थात्, ‘यदि वास्तविकता से कहा जाए तो सूर्य का उदय एवं अस्त होने का अर्थ सूर्य का अस्तित्त्व होना या समाप्त होना नहीं है, क्योंकि सूर्य तो सदैव वहीं पर स्थित है’। इसी प्रकार एकदम स्पष्टता के साथ सूर्य, पृथ्वी, चन्द्र, ग्रह-गोल-तारे इन सभी के बारे में हमारे पूर्वजों को जानकारी थी। और यह जानकारी सभी को थी। फिर भी किसी के मन में यह भावना नहीं थी कि उसे कोई बहुत ही विशिष्ट जानकारी है। 

अर्थात् जिस समय प्रसिद्ध पश्चिमी वैज्ञानिक टोलेमी (Ptolemy AD 100 to AD 170) यह सिद्धांत प्रतिपादित कर रहा था कि, ‘पृथ्वी स्थिर होती है और सूर्य उसके चारों तरफ चक्कर लगाता है’, और 






पश्चिमी जगत इस वैज्ञानिक का समर्थन भी कर रहा था, उस कालखंड में आर्यभट्ट अत्यंत आत्मविश्वास के साथ अपना प्राचीन ज्ञान प्रतिपादित कर रहे थे, जिसके 

अनुसार –

अनुलोमगतिनरस्थ: पश्यत्यचलं विलोमगं यद्वत्। अचलानि भानि तदवत्समपश्चिमगानि लङ्कायाम्॥

उदयास्तमयनिमित्तं नित्यं प्रवहेण वायुना क्षिप्त:। लङ्कासमपश्चिमगो भपञ्जर: सग्रहो भ्रमति॥

– (आर्यभट्टीय ४.९ से ४.१० श्लोक)

इस श्लोक का अर्थ है कि, ‘जिस प्रकार अनुलोम (गति से आगे जाने वाला) एवं नाव में बैठा हुआ मनुष्य, अचल किनारे को विलोम (पीछे जाते हुए) देखता है, उसी प्रकार लंका में अचल यानी स्थिर तारे हमें पश्चिम दिशा में जाते हुए दिखाई देते हैं।।’ कितने स्पष्ट शब्दों में समझाया गया है… लंका का सन्दर्भ यह है कि ग्रीनविच रेखा के निर्धारण से पहले भारतीयों के अक्षांश-रेखांश तय किए हुए थे एवं उसमें विषुवत रेखा लंका से होकर गुजरती थी। आगे चलकर तेरहवीं शताब्दी में संत ज्ञानेश्वर (१२७५-१२९६) ने एकदम सहज स्वरूप में यह लिखा, कि – अथवा नावे हन जो रिगे। तो थडियेचे रुख जातां देखे वेंगे। तेची साचोकारें जों पाहों लागे। तंव रुख म्हणे अचल।। – श्री ज्ञानेश्वरी ४-९७ तथा…उदो अस्ताचेनी प्रमाणे, जैसे न चलता सूर्याचे चालण। तैसे नैष्कर्म्यत्व जाणे, कर्मीचिअसतां ।। –  श्री ज्ञानेश्वरी ४-९९ यह पंक्तियां आर्यभट्ट द्वारा दिए गए उदाहरणों का सरल प्राकृत भाषा में किया गया अर्थ है। इसी का दूसरा अर्थ यह है कि, मुस्लिम आक्रांताओं के भारत में आने से पहले जो शिक्षा पद्धति हमारे देश में चल रही थी, उस शिक्षा प्रणाली में यह जानकारी अंतर्भूत होती थी। उस कालखंड में खगोलशास्त्र के ‘बेसिक सिद्धांत’ विद्यार्थियों को निश्चित ही पता थे। इसीलिए संत ज्ञानेश्वर भी एकदम सहज भाषा में यह सिद्धांत लिख जाते हैं।

इसका एक और अर्थ यह भी है कि जो ज्ञान हम भारतीयों को इतनी सरलता से, और हजारों वर्षों पहले 

से था, वही ज्ञान पंद्रहवीं शताब्दी में कोपर्निकस ने दुनिया के सामने रखा। दुनिया ने भी इस कथित शोध को ऐसे स्वीकार कर लिया, मानो ‘कोपर्निकस ने बहुत महत्त्वपूर्ण शोध किया हो’। इसी के साथ 



भारत में भी कई पीढ़ियों तक, सूर्य-पृथ्वी के सम्बन्ध में यह खोज कोपर्निकस ने ही की, ऐसा पढ़ने लगे, पढ़ाने लगे…! कितना बड़ा दुर्भाग्य है हमारा!

जैसे यह बात सूर्य के स्थिर केन्द्रीय स्थान के बारे में है, वैसे ही सूर्य प्रकाश की गति के बारे में भी मौजूद है। आज हम तीसरी-चौथी के बच्चों को पढ़ाते हैं कि, प्रकाश की गति की खोज, डेनमार्क के खगोलशास्त्री ओले रोमर (Olaus Roemer) ने सन 1676 में, अर्थात् महाराष्ट्र में छत्रपति शिवाजी के राज्यारोहण के दो वर्ष बाद की…।। 

कहा जाए तो एकदम हाल ही में। परन्तु वास्तविक स्थिति क्या है…?

यूनेस्को की अधिकृत रिपोर्ट में कहा गया है कि इस संसार का सबसे प्राचीन ग्रन्थ ऋग्वेद है, जो ईसा से लगभग पांच-छह हजार वर्ष पूर्व लिखा गया था। इस ऋग्वेद के पहले मंडल में, पचासवें सूक्त की चौथे श्लोक में क्या कहा गया है –

तरणीर्विश्वदर्शतो तरणीर्विश्वदर्शतो ज्योतिषकृदसी सूर्य । विश्वमा भासि रोचनम ।। – ऋग्वेद १.५०.४

अर्थात्, हे सूर्य प्रकाश, तुम गति से भरे हो (तीव्रगामी), तुम सभी को दिखाई देते हो, तुम प्रकाश का स्रोत हो।। तुम सारे संसार को प्रकाशमान करते हो।

आगे चलकर चौदहवीं शताब्दी में, विजयनगर साम्राज्य के सायणाचार्य (१३३५-१३८७) नामक ऋषि ने ऋग्वेद के इस श्लोक की मीमांसा करते हुए लिखा है कि –

तथा च स्मर्यते योजनानां सहस्त्रं द्वे द्वे शते द्वे च योजने एकेन निमिषार्धेन क्रममान नमोस्तुऽते ।।

सायण ऋग्वेद भाष्य १.५०.४

अर्थात् – प्रकाश द्वारा तय की गई दूरी 2202 योजन (द्वे द्वे शते द्वे)

1 योजन – 9 मील 110 यार्ड्स 9.0625 मील अर्थात् प्रकाश की दूरी 9.0625x 2202 = 21,144.705 मील,पृथ्वी तक पहुंचने के लिए लिया गया समय आधा निमिष = 1/8.75 = 0.11428 सेकण्ड अर्थात् प्रकाश का वेग 185,025.813 मील/सेकण्ड आधुनिक विज्ञान द्वारा तय किया गया प्रकाश वेग – 186,282.397मील/सेकण्ड ध्यान देने योग्य बात यह है कि डेनिश वैज्ञानिक ओले रोमर से पांच हजार वर्ष पहले हमारे ऋग्वेद में सूर्य प्रकाश की गति के बारे में स्पष्ट उल्लेख है। इस सन्दर्भ में कुछ और सूत्र भी होंगे, परन्तु आज वे उपलब्ध नहीं हैं। आज हमारे पास सायणाचार्य द्वारा ऋग्वेद मीमांसा के रूप में लिखित शक्तिशाली सबूत है। यह भी ओले रोमर से तीन सौ वर्ष पहले लिखा गया है। परन्तु फिर भी हम पीढ़ी दर पीढ़ी बच्चों को पढ़ाते आ रहे हैं कि प्रकाश की गति की खोज यूरोपियन वैज्ञानिक ओले रोमर ने की। ऐसा हम और भी न जाने कितने तथ्यों के बारे में कहते रहेंगे…? ग्रहण की संकल्पना बेहद प्राचीन है। चीनी वैज्ञानिकों ने 2600 वर्षों में कुल 900 सूर्यग्रहण और 600 चंद्रगहण होने का दावा किया। परन्तु यह ग्रहण क्यों हुए, इस बारे में कोई नहीं बता पाया। जबकि पांचवीं शताब्दी में 

आर्यभट्ट ने एकदम स्पष्ट शब्दों में बताया है कि –छादयती शशी सूर्य शशिनं महती च भूच्छाया ।। ३७ ।।  – (गोलपाद, आर्यभट्टीय) अर्थात्, ‘पृथ्वी की छाया जब चंद्रमा को ढंकती है, तब चंद्रगहण होता है।’ 



आठ हजार वर्ष पूर्व ऋग्वेद में चन्द्र को इंगित करके लिखा जा चुका है कि – ॐ आयं गौ : पृश्निरक्रमीद सदन्नमातरं पुर: पितरञ्च प्रयन्त्स्व: ॐ भू: गौतमाय नम: । गौतमायावाहयामि स्थापयामि । ४३ अर्थात् चन्द्र, जो पृथ्वी का उपग्रह है, यह अपने मातृग्रह (अर्थात् पृथ्वी) के चारों ओर घूमता है, और यह मातृग्रह, उसके (यानी पृथ्वी के) प्रकाशमान पितृ ग्रह के चारों तरफ घूमता है।इससे अधिक स्पष्ट और क्या चाहिए? ध्यान दें कि आज से लगभग आठ हजार वर्ष पहले हमारे पूर्वजों को यह मालूम था कि पृथ्वी सूर्य के चारों तरफ, तथा चंद्रमा पृथ्वी के चारों तरफ चक्कर लगाता है। इसके हजारों वर्ष के बाद ही, बाकी संसार को, विशेषकर पश्चिमी सभ्यता को यह ज्ञान प्राप्त हुआ।इसमें महत्त्वपूर्ण बात ये है कि हमारे देश में यह ज्ञान हजारों वर्षों से उपलब्ध था, इसलिए यह बातें हमें पता हैं, फिर भी हमारे ऋषियों/विद्वानों में ऐसा भाव कभी नहीं था कि उनके पास बहुत बड़ा ज्ञान का भण्डार है। इसी कारण संत ज्ञानेश्वर महाराज अथवा गोस्वामी तुलसीदास जैसे विद्वान ऐसी महत्त्वपूर्ण जानकारी बेहद सरल शब्दों में लिख जाते हैं…


श्री गुरु तेग बहादुर जी सिखों के नौवें गुरु






भेड़चाल की दौड़

दिनेश भारद्वाज 

अमर एक बहुराष्ट्रीय कम्पनी का ग्रुप लीडर था। काम करते-करते उसे अचानक ऐसा लगा की उसके टीम में मतभेद बढ़ने लगे हैं और सभी एक-दूसरे को नीचा दिखाने में लगे हुए हैं। इससे निबटने के लिए उसने एक तरकीब सोची।

उसने एक मीटिंग बुलाई और टीम के सभी सदस्यों से कहा – रविवार को आप सभी के लिए एक साइकिल रेस का आयोजन किया जा रहा है। कृपया सब लोग सुबह सात बजे एक नगर चौराहे पर इकठ्ठा हो जाइएगा।तय समय पर सभी अपनी-अपनी साइकलों पर इकठ्ठा हो गए।

अमर ने एक-एक करके सभी को अपने पास बुलाया और उन्हें उनका लक्ष्य बता कर स्टार्टिंग लाईन पर तैयार रहने को कहा। 

कुछ ही देर में पूरी टीम रेस के लिए तैयार थी,सभी काफी उत्साहित थे और रूटीन से कुछ अलग करने के लिए अमर को थैंक्स कर रहे थे।अमर ने सीटी बजायी और रेस शुरू हो गयी।बॉस को आकर्षित करने के लिए हर कोई किसी भी क़ीमत पर रेस जीतना चाहता था। रेस शुरू होते ही सड़क पर अफरा-तफरी मच गयी,कोई दाएं से निकल रहा था, तो कोई बाएँ से,कई तो आगे निकलने की होड़ में दूसरों को गिराने से भी नहीं चूक रहें थे।

इस हो-हल्ले में किसी ने अमर के निर्देशों का ध्यान ही नहीं रखा और भेड़ चाल चलते हुए, सबसे आगे वाले साईकिलिस्ट के पीछे-पीछे भागने लगे।



पांच मिनट बाद अमर ने फिर से सीटी बजायी और रेस ख़त्म करने का निर्देश दिया। एका-एक सभी को रेस से पहले दिए हुए निर्देशों का ध्यान आया और सब इधर-उधर भागने लगें,लेकिन अमर ने उन्हें रोकते हुए अपने पास आने का इशारा किया।

सभी बॉस के सामने मुंह लटकाए खड़े थे और रेस पूरी ना कर पाने के कारण एक-दूसरे को दोष दे रहे थे।अमर ने मुस्कुराते हुए अपनी टीम की ओर देखा और कहा- *अरे !! क्या हुआ? इस टीम में तो एक से एक चैंपियन थे,पर भला क्यों कोई भी व्यक्ति इस अनोखी साईकिल रेस को पूरा नहीं कर सका?

अमर ने बोलना जारी रखा- मैं बताता हूँ क्या हुआ दरअसल आप में से किसी ने भी अपने लक्ष्य की तरफ ध्यान ही नहीं दिया। *अगर आप सभी ने सिर्फ अपने लक्ष्य पर ध्यान दिया होता, तो आप सभी विजेता बन गये होते क्योंकि सभी व्यक्ति का लक्ष्य अलग-अलग था।* सभी को अलग-अलग गलियों में जाना था। हर किसी का लक्ष्य भिन्न था। आपस में कोई मुकाबला था ही नहीं। *लेकिन आप लोग सिर्फ एक दूसरे को नीचा दिखाने में लगें रहें,जबकि आपने अपने लक्ष्य को तो ठीक से समझा ही नहीं,ठीक यहीं माहौल हमारी टीम का हो गया है।

आप सभी के अंदर वह अनोखी बात है,जिसकी वजह से टीम को आप की जरुरत है। लेकिन आपसी संघर्ष के कारण ना ही टीम और ना ही आप का विकास हो पा रहा है। आने वाला आपका कल,आपके हाथ में है। हम या तो एक-दूसरे की ताकत बन कर एक-दूसरे को विकास के पथ पर लें जा सकते है या आपसी संघर्ष के चक्कर में अपना और दूसरों का समय व्यर्थ कर सकते है। मेरी आप सबसे यही सलाह है कि एक अकेले की तरह नहीं बल्कि एक संगठन की तरह काम करिए। याद रखिये अकेला खिलाड़ी बनने से कहीं ज्यादा ज़रूरी एक टीम का खिलाड़ी बनना है..

मैरी कॉम


मार्च मास के महत्वपूर्ण दिवस



01 मार्च 1983 - मैरी कॉम - भारतीय महिला मुक्केबाज़।

1 मार्च 2023- शून्य भेदभाव दिवस, विश्व नागरिक सुरक्षा दिवस, नागरिक लेखा दिवस

2 मार्च 2023- कर्मचारी प्रशंसा दिवस

03 मार्च 1839 - जमशेद जी टाटा - विश्व प्रसिद्ध औद्योगिक घराने "टाटा समूह" के संस्थापक

03 मार्च 1976 - राइफ़लमैन संजय कुमार, परमवीर चक्र से सम्मानित भारतीय सैनिक

3 मार्च 2023- विश्व श्रवण दिवस, विश्व वन्यजीव दिवस

4 मार्च 2023- राष्ट्रीय सुरक्षा दिवस,

7 मार्च 2023- जन औषधि दिवस 

8 मार्च 2023- अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस

10 मार्च 2023- CISF स्थापना दिवस, 

11 मार्च - विश्व किडनी दिवस

14 मार्च - अंतर्राष्ट्रीय गणित दिवस,

15 मार्च - विश्व उपभोक्ता अधिकार दिवस
16 मार्च - राष्ट्रीय टीकाकरण दिवस

18 मार्च -आयुध निर्माणी दिवस, वैश्विक पुनर्चक्रण दिवस

19 मार्च - विश्व निद्रा दिवस

20 मार्च - विश्व खुशहाली दिवस, विश्व गौरैया दिवस, 

21 मार्च - विश्व वानिकी दिवस, विश्व कविता दिवस, विश्व डाउन सिंड्रोम दिवस, 

22 मार्च - विश्व जल दिवस, बिहार दिवस,

23 मार्च 1910 - डॉ. राममनोहर लोहिया - भारत के स्वतन्त्रता संग्राम के सेनानी

23 मार्च - शहीद दिवस

24 मार्च - विश्व क्षय रोग दिवस,
25 मार्च - हिरासत में लिए गए और लापता कर्मचारियों के सदस्यों के साथ एकजुटता का अंतर्राष्ट्रीय दिवस

27 मार्च - विश्व रंगमंच दिवस, 

29 मार्च - विश्व पियानो दिवस

31 मार्च -दृश्यता का अंतर्राष्ट्रीय ट्रांसजेंडर दिवस








 बंटवारा

दिनेश भारद्वाज 

          सेठ घनश्याम के दो पुत्रों में जायदाद और ज़मीन का बँटवारा चल रहा था और एक चार बेड रूम के घर को लेकर विवाद गहराता जा रहा था। एक दिन दोनो भाई मरने मारने पर उतारू हो चले , तो पिता जी बहुत जोर से हँसे। पिताजी को हँसता देखकर दोनो भाई  लड़ाई को भूल गये, और पिताजी से हँसी का कारण पूछा । पिताजी ने कहा-- इस छोटे से ज़मीन के टुकडे के लिये इतना लड़ रहे हो,छोड़ो इसे आओ मेरे साथ एक अनमोल खजाना दिखता हूँ मैं तुम्हे ! पिता घनश्याम जी और दोनो पुत्र पवन और मदन उनके साथ रवाना हुये । पिताजी ने कहा देखो यदि तुम आपस मे लड़े तो फिर मैं तुम्हे उस खजाने तक नही लेकर जाऊँगा और बीच रास्ते से ही लौटकर आ जाऊँगा ! अब दोनो पुत्रों ने खजाने के चक्कर मे एक समझौता किया की चाहे कुछ भी हो जाये पर हम लड़ेंगे नही प्रेम से यात्रा पे चलेंगे ! गाँव जाने के लिये एक बस मिली पर  सीट दो की मिली,और  वो तीन थे, अब पिताजी के साथ थोड़ी देर पवन बैठे तो थोड़ी देर मदन । ऐसे चलते-चलते लगभग दस घण्टे का सफर तय किया ,तब गाँव आया। घनश्याम जी दोनो पुत्रों को लेकर एक बहुत बड़ी हवेली पर गये हवेली चारों तरफ से सुनसान थी। घनश्याम जी ने देखा कि हवेली मे जगह जगह कबूतरों ने अपना घोसला बना रखा है, तो घनश्याम वहीं बैठकर रोने लगे। पुत्रों ने पुछा क्या हुआ पिताजी आप रो क्यों रहे है ? रोते हुये उस वृद्ध पिता ने कहा जरा ध्यान से देखो इस घर को, जरा याद करो वो बचपन जो तुमने यहाँ बिताया था , तुम्हे याद है बच्चों इसी हवेली के लिये मैंने अपने बड़े भाई से बहुत लड़ाई की थी, ये हवेली तो मुझे मिल गई पर मैंने उस भाई को हमेशा के लिये खो दिया ।क्योंकि वो दूर देश में जाकर बस गया और फिर वक्त्त 



बदला ,एक दिन हमें भी ये हवेली छोड़कर जाना पड़ा ! अच्छा तुम ये बताओ बेटा कि जिस सीट पर हम बैठकर आये थे,क्या वो बस की सीट हमें मिल गई?और यदि मिल भी जाती तो क्या वो सीट हमेशा-हमेशा के लिये हमारी हो जाती ? मतलब की उस सीट पर हमारे सिवा और कोई न बैठ सकता । दोनो पुत्रों ने एक साथ कहा कि ऐसे कैसे हो सकता है , बस की यात्रा तो चलती रहती है और उस सीट पर सवारियाँ बदलती रहती है। पहले हम बैठे थे ,आज कोई और बैठा होगा और पता नही ,कल कोई और बैठेगा। और वैसे भी उस सीट में क्या धरा है जो थोड़ी सी देर के लिये हमारी है ! पिताजी पहले  हँसे और  फिर आंखों में आंसू भरकर बोले , देखो यही  मैं तुम्हे समझा रहा हूँ ,कि जो थोड़ी देर के लिये जो तुम्हारा है ,तुमसे पहले उसका मालिक कोई और था, थोड़ी सी देर के लिये तुम हो और थोड़ी देर बाद कोई और हो जायेगा।बस बेटा एक बात ध्यान रखना कि इस थोड़ी सी देर के लिये कही  तुम अपने अनमोल रिश्तों की आहुति न दे देना, यदि पैसों का प्रलोभन आये तो इस हवेली की इस स्थिति को देख लेना कि अच्छे अच्छे महलों में भी एक दिन कबूतर अपना  घोंसला बना लेते है। बेटा मुझे यही कहना था --कि  बस की उस सीट को याद कर लेना जिसकी रोज  सवारियां बदलती रहती है,उस सीट के खातिर अनमोल रिश्तों की आहुति न दे देना। जिस तरह से बस की यात्रा में तालमेल बिठाया था बस वैसे ही जीवन की यात्रा मे भी तालमेल बिठाते  रहना  !

दोनो पुत्र पिताजी का अभिप्राय समझ गये, और पिता के चरणों में गिरकर रोने लगे !

*कथासार:-*प्रिय आत्मीय जनो , जो कुछ भी ऐश्वर्य -धन  सम्पदा हमारे पास है वो सबकुछ बस थोड़ी देर के लिये ही है ,थोड़ी-थोड़ी देर मे यात्री भी बदल जाते है और मालिक भी।रिश्तें बड़े अनमोल होते है छोटे से ऐश्वर्य धन  या सम्पदा के चक्कर मे कहीं किसी अनमोल रिश्तें को न खो देना..!!

भगत सिंह सुखदेव और राजगुरु


पापा क्यों रोए थे उस दिन....

ममता श्रीवास्तव 

मैं हमेशा से ही पापा की सबसे लाडली, सबसे होनहार, सबसे प्यारी बच्ची रही हूं। शायद घर मे सबसे बड़ी बच्ची होने की वजह से भी ऐसा हो सकता है। पापा बहुत बिजी रहते थे पर फिर भी मेरे लिए डिसीजन वो ही लेते थे और मैं अपने छोटे बहन भाई के लिए।जैसे उनकी कितनी कॉपी आनी थी, कितनी पेंसिल आनी थी, कितने कलर्स आने थे, बगेरह बगेरह।ये कह सकते हैं मैं ही उनकी फर्स्ट बॉस थी। मम्मी इन चक्करो से सदा दूर रहती थी।

अब जब मेरा एडमिशन मेडिकल कॉलेज में हुआ तो सबको अपना अपना चार्ज मिल गया। मैं घर से दूर हो गई। पहली बार घर से अलग होने की वजह से मुझे होम सिकनेस हो गई थी। एक बार तो मैंने बोल दिया पापा मुझे नही पढ़ना,मुझे घर ले चलो। पर पापा तो पापा होते हैं ऐसे जादू की छपकी देते हैं कि आपको पता ही नही चलता ,आप कब अपना काम अच्छे से करने लग जातें हो। 

मुझे लेटर लिखने का बहुत शौक था। उस समय मोबाइल फोन का चलन बहुत कम था। वैसे भी घर में भी सबको मैं ही लेटर लिखती थी और एक लेटर के माध्यम से हम पूरी फेमिली से जुड़े होते थे।बड़ा मजेदार होता था लेटर लिखना। फिर लेटर के जवाब का इंतजार करना। पर सच बताऊं तो वाट्स अप और ईमेल ही ज्यादा अच्छे हैं कम से कम इतना इंतजार तो नही करना पड़ता। खेर छोड़ो इसे तो।



हां तो फिर एक दिन कॉलेज से मैंने अपने पापा  को भी एक लेटर लिखा।वो पापा के लिए मेरा पहला लेटर था। पर जब पापा ने मेरा लेटर पढ़ा तो वो पढ़ते पढ़ते बहुत रोए । उन्होंने कई बार उस लेटर को पढ़ा ।

 जब मम्मी से ये सब पता चला तो मुझे लगा कि शायद बहुत खड़बड़ लिख दिया। मेरे इतने स्ट्रॉन्ग पापा  सोच रहे होंगे की इसे एक लेटर भी लिखना नहीं आता।

मैने डर के मारे दूसरा लेटर नही लिखा।

पर लगभग १८ साल बाद उनकी डायरी में मेने वो लेटर देखा।अब तक मैं भी एक मां बन चुकी थी। मुझे वो अहसास अब समझ आया । उन्हे लगा होगा मेरे बच्चे ने मेरे लिए टाइम निकाला ,मुझे एक पत्र लिखा। उस वक्त वो लेटर  दुनिया में सबसे अनमोल चीज रही होगी उनके लिए। नही तो इतने स्ट्रॉन्ग पापा की आंख मैं कभी आंसू नहीं आते।

अच्छा हैं वो फेसबुक पर एक्टिव नहीं है। नही तो फिर रोने लग जाते। मेरे प्यारे पापा।

हम सभी को अपने पैरेंट्स को थोड़ा टाइम जरूर देना चाहिए ,उनके लिए वो टाइम ही सबसे कीमती उपहार होता हैं।

अमृत वचन 


पंचक विचार मार्च - 2023   

पंचक विचार -(धनिष्ठा नक्षत्र के तृतीय चरण से रेवती नक्षत्र तक) पंचको में दक्षिण दिशा की ओर यात्रा करना मकान दुकान आदि की छत डालना चारपाई पलंग आदि बुनना,दाह संस्कार,बांस की चटाई दीवार प्रारंभ करना आदि स्तंभ रोपण तांबा पीतल तृण काष्ट आदि का संचय करना आदि कार्यों का निषेध माना जाता है समुचित उपाय एवं पंचक शांति करवा कर ही उक्त कार्यों का संपादन करना कल्याणकारी होगा ध्यान रहेगा  पंचर नक्षत्रों का विचार मात्र उपरोक्त विशेष कृतियों के लिए ही किया जाता है विवाह मंडल आरंभ गृह प्रवेश प्रवेश उपनयन आदि मुद्दों से तो पंचक नक्षत्रका प्रयोग शुभ माना जाता है पंचक विचार- दिनांक 19 को 11 - 16 से 23 को 14 - 08 बजे तक पंचक है | 

अधिक जानकारी के लिए संपर्क करे शर्मा जी - 9312002527,9560518227

ज्वालामुखी योग 

 पड़वा मे तज मूल को,पंचमी भरनी धार,नवमी रोहिणी,कृतिका अष्टम तिथि विचार ||

 दसवीं में अश्लेषा तू तज कहता साच बुरी तिथि नक्षत्र ये है ज्वालामुखी पांच |

चौघड़िया मुहूर्त 

चौघड़िया मुहूर्त देखकर कार्य या यात्रा करना उत्तम होता है। एक तिथि के लिये दिवस और रात्रि के आठ-आठ भाग का एक चौघड़िया निश्चित है। इस प्रकार से 12 घंटे का दिन और 12 घंटे की रात मानें तो प्रत्येक में 90 मिनट यानि 1.30 घण्टे का एक चौघड़िया होता है जो सूर्योदय से प्रारंभ होता है|



भद्रा विचार मार्च - 2023  

भद्रा काल का शुभ अशुभ विचार - भद्रा काल में विवाह मुंडन, गृह प्रवेश, रक्षाबंधन आदि मांगलिक कृत्य का निषेध माना जाता है परंतु भद्रा काल में शत्रु का उच्चाटन करना,स्त्री प्रसंग में,यज्ञ करना,स्नान करना,अस्त्र शस्त्र का प्रयोग,ऑपरेशन कराना, मुकदमा करना,अग्नि लगाना,किसी वस्तु को काटना,भैस,घोड़ा व ऊंट संबंधी कार्य प्रशस्त माने जाते हैं सामान्य परिस्थिति में विवाह आदि शुभ मुहूर्त में भद्रा का त्याग करना चाहिए परंतु आवश्यक परिस्थितिवश अति आवश्यक कार्य भूलोक की भद्रा ,भद्रा मुख छोड़कर कर भद्रा पुच्छ में शुभ कार्य कर सकते है |

अधिक जानकारी के लिए संपर्क करे शर्मा जी - 9312002527,9560518227

दिनांक 

शुरू 

दिनांक 

समाप्त 

02

19-54

03

19-11

06

16-17

07

05-13

10

09-21

10

21-42

13

21-27

14

08-55

17

03-23

17

14-07

20

04-55

20

15-20

25

04-41

25

16-23

28

19-02

29

08-02


मूल नक्षत्र विचार मार्च -2023 



दिनांक

शुरू 

दिनांक

समाप्त 

04

18-41

07

00-04

14

08-12

16

06-23

22

15-31

24

13-21


अधिक जानकारी के लिए संपर्क करे शर्मा जी - 9312002527,9560518227



सर्वार्थ सिद्धि योग मार्च -2022

दैनिक जीवन में आने वाले महत्वपूर्ण कार्यों के लिए शीघ्र ही किसी  शुभ मुहूर्त का अभाव हो,किंतु शुभ मुहर्त के लिए अधिक दिनों तक रुका ना जा सकता हो तो इन सुयोग्य वाले मुहर्तु  को सफलता से ग्रहण किया जा सकता है | इन से प्राप्त होने वाले अभीष्ट फल के विषय में संशय नहीं करना चाहिए यह योग हैं सर्वार्थ सिद्धि,अमृत सिद्धि योग एवं रवियोग | योग्यता नाम तथा गुण अनुसार सर्वांगीण सिद्ध कारक  है| अधिक जानकारी के लिए संपर्क करे शर्मा जी - 9312002527,9560518227

दिनांक

प्रारंभ

दिनांक

समाप्त

01

06-51

01

09-51

02

12-43

03

15-43

09

04-19

09

06-42

11

07-10

12

06-38

13

08-21

14

06-36

18

02-46

19

00-29

21

17-25

22

06-26

23

06-25

24

13-21

27

06-21

28

06-20

30

06-18

31

06-16

सुर्य उदय- सुर्य अस्त मार्च -2023 


दिनांक

उदय 

दिनांक

अस्त 

06-50

1

18-17

5

06-46

5

18-20

10

06-40

10

18-23

15

06-35

15

18-26

20

06-29

20

18-29

25

06-23

25

18-31

30

06-17

30

18-37

 

 

ग्रह स्थिति मार्च -2022

ग्रह स्थिति - दिनांक 11 बुध वक्री,दिनाक 16 को सूर्य धनु में,दिनांक 17 को बुध पश्चिम में अस्त,दिनांक 24 को शुक्र वृश्चिक में,दिनांक 27 को बुध पूर्व में उदय,दिनांक को 27 मंगल धनु में,दिनांक को 28 बुध वृश्चिक में,दिनांक को 31 गुरु मार्गी  | 

राहू काल 

 राहुकाल -राहुकाल दक्षिण भारत की देन है,दक्षिण भारत में राहु काल में कृत्य करना अच्छा नहीं माना जाता, राहु काल में शुभ कृतियों में वर्जित करने की परंपरा अब हमारे उत्तरी भारत में भी अपनाने लगे हैं राहुकाल प्रतिदिन सूर्यादि वारों में भिन्न-भिन्न समय पर केवल डेढ़ डेढ़ घंटे के लिए घटित होता है |

अधिक जानकारी के लिए संपर्क करे शर्मा जी - 9312002527,9560518227

 मांगलिक दोष विचार परिहार

वर अथवा कन्या दोनों में से किसी की भी कुंडली में 1,4,7,8 व 12 भाव में मंगल होने से ये मांगलिक माने जाते हैं,मंगली से मंगली के विवाह में दोष न होते हुए भी जन्म पत्रिका के अनुसार गुणों को मिलाना ही चाहिए यदि मंगल के साथ शनि अथवा राहु केतु भी हो तो प्रबल मंगली डबल मंगली योग होता है | इसी प्रकार गुरु अथवा चंद्रमा केंद्र हो तो दोष का परिहार भी हो जाता है |इसके अतिरिक्त मेष वृश्चिक मकर का मंगल होने से भी दोष नष्ट हो जाता है | इसी प्रकार यदि वर या कन्या किसी भी कुंडली में 1,4,7,9,12 स्थानों में शनि हो केंद्र त्रिकोण भावो में शुभ ग्रह, 3,6,11 भावो में पाप ग्रह हों तो भी मंगलीक दोष का आंशिक परिहार होता है, सप्तम ग्रह में यदि सप्तमेश हो तो भी दोष निवृत्त होता है |

स्वयं सिद्ध मुहूर्त

 स्वयंसिद्ध मुहूर्त चैत्रशुक्ल प्रतिपदा वैशाखशुक्ल तृतीया अक्षयतृतीया आश्विन शुक्ल दशमी विजयदशमी दीपावली के प्रदोष काल का आधा भाग भारत में से इसके अतिरिक्त लोकाचार और देश आचार्य के अनुसार निम्नलिखित कृतियों को भी स्वयं सिद्ध मुहूर्त माना जाता है बडावली नामी देव प्रबोधिनी एकादशी बसंत पंचमी फुलेरा दूज इन में से किसी भी कार्य को करने के लिए पंचांग शुद्धि देखने की आवश्यकता नहीं है परंतु विवाह आदि में तो पंचांग में दिए गए मुहूर्त व कार्य करना श्रेष्ठ रहता है।



दिनांक 

भारतीय व्रत उत्सव मार्च - 2023 

3  

आमला एकादशी व्रत, मेला खाटू श्याम जी  

शनि प्रदोष व्रत गोविन्द द्वादशी   

सत्य व्रत, पूर्णिमा, 

होलिका दहन , होलाष्ठक समाप्त 

होली, दुह्लंदी, वसंत उत्सव 

11 

श्री गणेश चतुर्थी व्रत

13 

रंग पंचमी 

14 

शीतला सप्तमी 

15 

मकर संक्रांति पुन्य,  कालाष्टमी 

18  

पापमोचनी  एकादशी व्रत    

19 

प्रदोष व्रत,

20 

मास शिवरात्रि    

21 

अमावस्या 

22 

नवरात्र प्रारम्भ संवत 2080 शुरू  

24 

मत्स्य जयंती , गंगोरी तीज 

25   

विनायक  चतुर्थी  व्रत  

26 

श्री लक्ष्मी पंचमी 

27 

यमुना षष्टी , स्कंध षष्टी 

29 

श्री दुर्गा अष्टमी 

30 

श्री राम नवमी , नवरात्र समाप्त 



पंखे की डोर

                        बालेश्वर गुप्ता, नोयडा


        अरे रामदीन क्या मर गया है, हाथ क्यों नहीं चल रहे?देखता नही कितनी गर्मी पड़ रही है,जल्दी जल्दी डोर खींच।

         जी माई बाप, कह कर  पसीने से तरबतर रामदीन ने और जोर से डोरी खींचनी शुरू कर दी।

        असल मे अबकी बार गर्मी कुछ अधिक ही पड़ी थी।वैसे भी बड़े आदमियों को गर्मी हो या सर्दी  कुछ अधिक ही लगती है।जमीदारी के समय बिजली न होने के कारण जमीदारो के हवेली के कमरों में कपड़े के बड़े बड़े पंखे लटके होते थे जिन्हें किसी डोरी के एक सिरे से बीच से बांध दिया जाता था और दूसरा सिरा कमरे के दरवाजे के बाहर बैठे किसी नौकर के हाथ मे होता था,जो डोरी को खींचता और छोड़ता था,जिससे कमरे में लगा कपड़े का विशाल पंखा आगे पीछे चल हवा देता था।

     ऐसे ही जमीदार विक्रम दोपहर में अपनी बड़ी हवेली के अपने बड़े विश्राम कक्ष में आराम कर रहे थे और उनका चाकर रामदीन बाहर बैठा डोरी खींच रहा था।जमीदार साहब को ऐसा अहसास करने की कोई आवश्यकता भी नही थी कि ड्योढी पर बैठे अपने चाकर को भी तो गर्मी लगती होगी।शायद गरीब का शरीर एयर कंडीशनर होता है।

        रामदीन पूरे मनोयोग से जल्दी जल्दी डोर खींच रहा था,उसका ध्यान आज असल मे इसलिये 



भटक रहा था कि उसे शहर में पढ़ने वाले अपने बेटे को खर्च भेजना था जिसका इंतजाम  बाबू सरकार की मेहरबानी से ही हो सकता था और वो सोच रहा था बाबू सरकार से कैसे कहूँगा?सोचते सोचते उसके हाथ और जोर जोर से पंखे की डोर खींचने लगे।

     रामदीन का जीवन ही जमीदार विक्रम की चाकरी करते बीत गया था।एक छोटा सा जमीन का टुकड़ा रामदीन ने बचा रखा था,उससे घर के अनाज सब्जी का जुगाड हो जाता था,बाकी बाबू सरकार की चाकरी से काम चल रहा था।रामदीन चाहता था कि उसका मुन्ना पढ़ लिख जाये, उसे उसकी तरह जिल्लत की जिंदगी ना जीनी पड़े।आज मुन्ना इतना बड़ा हो गया था कि शहर में चौदहवीं क्लास में पढ़ भी रहा था और वो बता रहा था बापू मैं पुलिस अफसर बनने की भी तैयारी कर रहा हूँ।सब सुन रामदीन की आंखों में आँसू आ गये, एक गरीब का बच्चा पुलिस बन जाये, ये सपना ही रामदीन की आंखे भिगो गया।

        किसी प्रकार शाम हुई,बाबू सरकार का दोपहर का आराम खत्म हुआ,तब जाकर डोर खींचने से राहत मिली।अकड़े हाथों को झटका देकर वो उठ खड़ा हुआ और दरवाजे के एक तरफ खड़ा हो,सिर झुकाये बाबू सरकार का इंतजार करने लगा,आखिर उसे मुन्ना की पढ़ाई के खर्च का जुगाड़ भी तो बाबू सरकार से ही करना था।

         अरे रामदीन कड़क आवाज में बाबू सरकार बोले देख आज अपनी घरवाली को भेज देना ठकुराइन का सिर दर्द कर रहा है, दबाने आ जायेगी।ठीक है बाबू सरकार, मैं अभी जाते ही भेज दूंगा।बाबू सरकार एक दरकार थी आपकी मेहरबानी हो जायेगी तो अपना मुन्ना अपनी पढ़ाई पूरी कर लेगा, बाबू सरकार बस 500 रुपये की जरूरत पड़ेगी, आपकी नजरे इनायत हो जाये तो--।किसी प्रकार रामदीन अपनी दरकार कह ही बैठा। विक्रम जमीदार अपनी ठसक भरी आवाज में बोले अरे कितना कब तक देते रहे पहले ही तुम अपनी पगार से अधिक ले चुके हो,बस अब और नहीं।रामदीन के तो होश ही उड़ गये, बाबू सरकार के पैरों में पड़ बोला माई बाप बस ये आखिरी मदद कर दो फिर जरूरत नही पड़ेगी।

नही नहीं यहां क्या टकसाल लगी है, क्या जरूरत थी उसे शहर भेजने की,बुला ले उसे ,यही काम काज पर लगा देंगे,उसे भी दो पैसे कमाने का चस्का लगेगा।

       माई बाप बस यह आखिरी इम्तिहान दे ले ,फिर उसे बुला लूंगा,आखिरी मदद कर दो बाबू सरकार।

     तो ठीक है तेरा पीछे का बकाया भी खत्म और अब हम तुझे 1000 रुपये और देंगे, तू अपनी जमीन का टुकड़ा हमारे नाम कर दे।

      माई बाप वो छोटा सा टुकड़ा तो बड़े बाबू सरकार ने ही दिया था मुझ गरीब को,अब आप उसे ले लेंगे तो हमारा घर कैसे चलेगा?बाबू सरकार ऐसा जुल्म मत करो,हम तो जीते जी मर जायेंगे।

      




अरे कोई मुफ्त थोड़े ही ले रहे हैं, बाजार भाव से भी ज्यादा दे रहे है,आगे तेरी मर्जी।

       और रामदीन ने जमीन का टुकड़ा जमीदार विक्रम को लिख ही दिया। भविष्य से आशंकित पर मुन्ना के भविष्य से आशांवित। रामदीन भीगी आंखों से घर की ओर चल दिया।

       समय चक्र घूम गया रामदीन का मुन्ना अपनी ट्रेनिग पूरी कर डीएसपी बन गया था उसके क्षेत्र में उसके गावँ का थाना भी पड़ता था। रामदीन को अब गांव वाले अभिवादन भी करने लगे थे।अचानक ही गांव में उसकी इज्जत बढ़ गयी थी।एक दिन तो गजब ही हो गया जब जमीदार विक्रम ने रामदीन को हवेली बुलाकर उसकी जमीन के कागज ही उसे लौटा दिये। रामदीन अचरज से सूरज को पश्चिम से निकलते देख रहा था,उस मासूम को समझ ही नही आ रहा था कि बाबू सरकार इतने दयालु कैसे हो गये? इतने में ही उसके कानों में आवाज पड़ी रामदीन कभी भी किसी और चीज की कभी भी जरूरत पड़े तो 8बेहिचक मांग लेना।जी बाबू सरकार ,और कहां जाऊंगा, सरकार आपके पास ही तो आऊंगा।

      कोर्निश कर रामदीन जैसे ही मुड़ कर चलने लगा तो पीछे से आवाज आयी रामदीन भई अब तो तुम्हारा लड़का डीएसपी हो गया है उसे एक दिन हवेली पर लेकर आओ तो साथ खाना खा लेंगे--।

      साथ खाना खा लेंगे सुनकर रामदीन तो जैसे आसमान से गिरा, बाबू सरकार उस मुन्ना के साथ खाना खाने को आमंत्रित कर रहे हैं जिसकी पढ़ाई के खर्चे के 500 रुपये मांगने मात्र से ही रामदीन को अपनी जमीन इन्ही बाबू सरकार को देनी पड़ी थी।उसके दिमाग से अब कुछ कुछ पर्दा हटने लगा था।उसकी समझ मे आ गया था अब समय बाबू सरकार का नही मुन्ना का आ गया है।बाबू सरकार कुछ नही कर रहे बस समय परिवर्तन को समझ अपने दिमाग की डोर को जोर से खींच रहे हैं, वैसे ही जैसे कभी रामदीन 500 रुपये बाबू सरकार से कैसे मांगेगा,सोचते सोचते पंखे की डोर को जोर जोर से खींचने लगता था।

रामनवमी का त्यौहार चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को मनाया जाता है  

चैत्रे नवम्यां प्राक् पक्षे दिवा पुण्ये पुनर्वसौ । उदये गुरुगौरांश्चोः स्वोच्चस्थे ग्रहपञ्चके ॥


न बगावत की है न तो अदावत की है 

अर्चना राठौर

न बगावत की है न तो अदावत की है 

मैने तो सिर्फ दिल से मोहब्बत की है।

          मुझमें कोई कमी थी तो मुझे ही बताते

         जहां के लोगों से तूने शिकायत की है।

मुझे यूं दुनियादारी का अनुभव नहीं था

तेरी बातों से लगता तूने शरारत की है।

          मेरी निगाहों को तूने कभी पढ़ा ही नहीं

         तुमने तो बस मेरे दिल पे हुकूमत की है।

बहुत समझाया पर मेरी सुनते कहां हो

मैंने तुम्हें मान जाने की ही इनायत की है।

      तुम्हारी नज़र में तो मैं तेरे काबिल नहीं थी

      शायद इसीलिए मुझपे ये तोहमत की है।

आओ प्यार में दिल के शिकवे भुला दें

तूने भी तो कभी दिल से मोहब्बत की है।

जाने पंचांग  को

हमारे विक्रमी संवत की गणना

इस बार विक्रमी संवत - 2080 , पिंगल  नामक विक्रमी संवत  से शुरू हुआ है |

पिंगल संवत के स्वामी बुध देव हैं । 

संवत का राजा बुध  व मंत्री शुक्र है वो है, राजा  का वाहन गीधर  है ,संवत का वास धोबी के घर है |

 हमारे विक्रमी संवत की गणना चंद्रमा के अनुसार होती है ।

भारतीय वैज्ञानिक समय गणना तन्त्र 

(ऋषि मुनियो का अनुसंधान )

क्रति = सैकन्ड का 34000 वाँ भाग,1 त्रुति = सैकन्ड का 300 वाँ भाग, 2 त्रुति = 1 लव ,

 1 लव = 1 क्षण,30 क्षण = 1 विपल , 60 विपल = 1 पल,60 पल = 1 घड़ी (24 मिनट ) ,

 2.5 घड़ी = 1 होरा (घन्टा ), 24 होरा = 1 दिवस (दिन या वार) , 7 दिवस = 1 सप्ताह

 4 सप्ताह = 1 माह ,2 माह = 1 ऋतू, 6 ऋतू = 1 वर्ष ,100 वर्ष = 1 शताब्दी

 10 शताब्दी = 1 सहस्राब्दी , 432 सहस्राब्दी = 1 युग, 2 युग = 1 द्वापर युग , 3 युग = 1 त्रैता युग ,

 4 युग = सतयुग, सतयुग + त्रेतायुग + द्वापरयुग + कलियुग = 1 महायुग

 76 महायुग = मनवन्तर , 1000 महायुग = 1 कल्प

 1 नित्य प्रलय = 1 महायुग (धरती पर जीवन अन्त और फिर आरम्भ )

 1 नैमितिका प्रलय = 1 कल्प ।(देवों का अन्त और जन्म )

 महाकाल = 730 कल्प ।(ब्राह्मा का अन्त और जन्म )






अधिक जानकारी के लिय फ़ोन करे शर्मा जी 9312002527

राशियां 

राशियां जिस प्रकार 12 महीने होते हैं उसी प्रकार 12 राशियां भी होती है।

मेष,वृषभ,कर्क, सिंह,कन्या,तुला,वृश्चिक,धनु,मकर,कुंभ व मीन।

महीने

12 महीने निम्नलिखित है।

चैत्र,बैसाख,ज्येष्ठ,आषाढ़, श्रावण, भाद्रपद, आश्विन,कार्तिक, मार्गशीष॔,पौष,माघ,फाल्गुन।

पक्ष को जानें

प्रत्येक महीने में तीस दिन होते हैं। तीस दिनों को चंद्रमा की कलाओं के घटने और बढ़ने के आधार पर दो पक्षों यानी शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष में विभाजित किया गया है।

एक पक्ष में लगभग पंद्रह दिन या दो सप्ताह होते हैं। एक सप्ताह में सात दिन होते हैं। शुक्ल पक्ष में चंद्र की कलाएँ बढ़ती हैं और कृष्ण पक्ष में घटती हैं।

दो पक्ष होते हैं ।कृष्ण पक्ष,शुक्ल पक्ष ।कृष्ण पक्ष में 15 तिथि होती हैं, 15 वीं तिथि को अमावस्या कहते हैं ।शुक्ल पक्ष में 15 तिथि होती हैं, 15 वीं तिथि को पूर्णिमा कहते हैं ।

संक्रांति 12,संक्रांति होती है |संक्रांति के नाम - मेष,वृषभ,कर्क,सिंह,कन्या, तुला,वृश्चिक,धनु,मकर,कुंभ व मीन।

नक्षत्रों के नाम :- स्कन्द पुराण के अनुसार तारो की सँख्या असख्य हैं। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार इनकी संख्या में  27 नक्षत्रों बताये गये हैं ।इन नक्षत्रों के देवता नाम से नक्षत्र का बोध होता  हैं।प्रत्येक नक्षत्र के आगे चार पद होते है। उनके स्वामी अलग अलग से होते है।

नक्षत्र - देवता- स्वामी

अश्विनी - अश्विनी कुमार - केतु

भरणी - यम - शुक्र 

कृतिका -अग्नि देवता - सूर्य 

रोहिणी - ब्रह्मा - चंद्र

मृगशिरा - चन्द्रमा -  मंगल      

आर्दा - शिव शंकर - राहु 

पुनर्वसु - आदिति - बृहस्पति 

पुष्य - बृहस्पति - शनि

अश्लेषा - सर्प - बुध

माघ - पितर - केतु 

पूर्वाफाल्गुनी - भग (भोर का तारा) - शुक्र

उत्तराफाल्गुनी - अर्यमा - सूर्य

हस्त - सूर्य - चंन्द्र 

चित्रा -विश्वकर्मा - मंगल

स्वाति - वायु  - राहु

विशाखा - इन्द्र, अग्नि - बृहस्पति

अनुराधा - आदित्य - शनि

ज्येष्ठा - इन्द्र - बुध

मूल - राक्षस - केतु

पूर्वाषाढा - जल - शुक्र

उत्तराषाढा - विश्वेदेव - सूर्य

अभिजित - विश्देव - सूर्य

श्रवण - विष्णु - चन्द्र 

धनिष्ठा - वसु - मँगल

शतभिषा - वरुण देव - राहु

पूर्वाभाद्रपद - अज - बृहस्पति

उत्तराभाद्रपद - अतिर्बुधन्य - शनि

रेवती - पूूषा - बुध

अभिजित नक्षत्र - अभिजित नक्षत्र की गणना 27 नक्षत्रों में नहीं होती है क्योंकि यह नक्षत्र क्रान्ति चक्र से बाहर पड़ता है। यह मुहूर्तों आदि में इसे शुभ माना जाता है।अभिजीत मुहूर्त प्रत्येक दिन का मध्यम भाग है,अनुमानत:12:00 बजे अभिजीत मुहूर्त कहलाता है जो मध्यम काल से पहले और बाद में दो घड़ी, 48 मिनट का होता है दिन मान के आधे समय को स्थानीय सूर्योदय के समय में जोड़ें तो मध्यम काल स्पष्ट हो जाता है जिसमें 24 मिनट घटाने और चाबी ने 24 मिनट बढ़ाने पर अभिजीत का प्रारंभ काल और समाप्ति काल निकलता है इस अभिजीत काल में लगभग सभी दोषों के निवारण करने की अद्भुत शक्ति है जब मुंडन आदि शुभ कार्यों के लिए शुभ लगन में ना मिल रहा हो तो अभिजीत मुहूर्त काल में शुभ कार्य करने का किए जा सकते हैं | 

योग :-योग 27 प्रकार के होते हैं। सूर्य-चंद्र की विशेष दूरियों की स्थितियों को योग कहते हैं। दूरियों के आधार पर बनने वाले 27 योगों के नाम क्रमशः: इस प्रकार हैं:- विष्कुम्भ, प्रीति, आयुष्मान, सौभाग्य, शोभन, अतिगण्ड, सुकर्मा, धृति, शूल, गण्ड, वृद्धि, ध्रुव, व्याघात, हर्षण, वज्र, सिद्धि, व्यातिपात, वरीयान, परिघ, शिव, सिद्ध, साध्य, शुभ, शुक्ल, ब्रह्म, इन्द्र और वैधृति। 27 योगों में से कुल 9 योगों को अशुभ माना जाता है तथा सभी प्रकार के शुभ कामों में इनसे बचने की सलाह दी गई है। ये अशुभ योग हैं: विष्कुम्भ, अतिगण्ड, शूल, गण्ड, व्याघात, वज्र, व्यतिपात, परिघ और वैधृति। 

करण :-एक तिथि में दो करण होते हैं- एक पूर्वार्ध में तथा एक उत्तरार्ध में। कुल 11 करण होते हैं- बव, बालव, कौलव, तैतिल, गर, वणिज, विष्टि, शकुनि, चतुष्पाद, नाग और किस्तुघ्न। कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी (14) के उत्तरार्ध में शकुनि, अमावस्या के पूर्वार्ध में चतुष्पाद, अमावस्या के उत्तरार्ध में नाग और शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा के पूर्वार्ध में किस्तुघ्न करण होता है। विष्टि करण को भद्रा कहते हैं। भद्रा में शुभ कार्य वर्जित माने गए है | नाम के पहले अक्षर से जाने अपनी जन्म राशि और नक्षत्र 

राशि जन्म का नक्षत्र                                 नाम का पहला अक्षर

मेष अश्विनि, भरणी, कृतिका            चू, चे, चो, ला, ली, लू, ले, लो, अ

वृष कृतिका, रोहिणी, मृगशिरा           ई, ऊ, ए, ओ, वा, वी, वू, वे, वो

मिथुन मृगशिरा, आर्द्रा, पुनर्वसु                     का, की, कू, घ, ङ, छ, के, को, ह

कर्क पुनर्वसु, पुष्य, अश्लेषा                     ही, हू, हे, हो, डा, डी, डू, डे, डो

सिंह मघा, पूर्वाफाल्गुनी, उत्तराफाल्गुनी         मा, मी, मू, मे, मो, टा, टी, टू, टे

कन्या उत्तराफाल्गुनी, हस्त, चित्रा           ढो, पा, पी, पू, ष, ण, ठ, पे, पो

तुला चित्रा, स्वाती, विशाखा                       रा, री, रू, रे, रो, ता, ती, तू, ते

वृश्चिक विशाखा, अनुराधा, ज्येष्ठा           तो, ना, नी, नू, ने, नो, या, यी, यू

धनु मूल, पूर्वाषाढ़ा, उत्तराषाढ़ा           ये,यो, भा, भी, भू, धा, फा, ढा, भे

मकर उत्तराषाढ़ा, श्रवण, घनिष्ठा           भो,जा, जी, खी, खू, खे, खो, गा, गी

कुंभ घनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वाभाद्रपद           गू,गे,गो,सा,सी,सू,से,सो,दा

मीन पूर्वाभाद्रपद, उत्तराभाद्रपद, रेवती दी, दू, थ, झ, ञ, दे, दो, चा, ची 




 व्यापार और  दया

हेम राज 

हमेशा की तरह दोपहर को सब्जी बाली दरवाजे पर आई और चिल्लाई, चाची, "आपको सब्जियां लेनी हैं" ? माँ हमेशा की तरह अंदर से चिल्लाई, "सब्जियों में क्या-क्या है" ? सब्जी बाली :- ग्वार, पालक, भिन्डी, आलू , टमाटर....दरवाजे पर आकर माँ ने सब्जी बाली के सिर पर भार देखा और पूछा, "पालक कैसे दिया" ? सब्जी बाली :- दस रुपए की एक गड्डी । माँ :- पच्चीस रुपए में चार दो । सब्जीवाली :- चाची नहीं जमेगा । माँ : तो रहने दो । सब्जी बाली आगे बढ़ गयी, पर वापस आ गई । सब्जी बाली:- तीस रुपये में चार दूँगी । माँ :- नहीं, पच्चीस रुपए में चार लूँगी । सब्जी बाली :- चाची बिलकुल नहीं जमेगा । और वो फिर चली गयी थोड़ा आगे जाकर वापस फिर लौट आई । दरवाजे पर माँ अब भी खड़ी थी, पता था सब्जी बाली वापस अवश्य आएगी । माँ ने सब्जी की टोकरी उतरने में सहायता की, ध्यान से पालक कि चार गड्डियां परख कर ली और पच्चीस रुपये का भुगतान किया । जैसे ही सब्जी बाली ने सब्जी का भार उठाना शुरू किया, उसे चक्कर आने लगा । माँ ने उत्सुकता से पूछा ! क्या तुमने भोजन कर लिया ? सब्जी बाली:- नहीं चाची, सब्जियां बिक जाएँ, तो किराना खरीदूँगी, फिर खाना बनाकर खाऊँगी । माँ :- एक मिनट रुको बस यहाँ । और फिर माँ ने उसे एक थाली में रोटी, सब्जी, चटनी, चावल और दाल परोस दिया, सब्जी बाली के खाने के बाद पानी दिया और एक केला भी थमाया । सब्जी बाली धन्यवाद बोलकर चली गयी ।

मुझसे नहीं रहा गया । मैंने अपनी माँ से पूछा :-- "आपने इतनी बेरहमी से कीमत कम करवाई, लेकिन फिर जितना तुमने बचाया उससे ज्यादा का सब्जी बाली को खिलाया" माँ हँसी और उन्होंने जो कहा वह मेरे मस्तिष्क में आज तक अंकित है एक सीख कि तरह ..... "व्यापार करते समय दया मत करो"  "किन्तु दया करते समय व्यापार मत करो" !





गंड मूल नक्षत्र  

1 अश्विनी 2 आश्लेषा 3 मघा 4 ज्येष्ठा 5 मूला 6 रेवती, यह 6 नक्षत्र गंड मूल नक्षत्र माने जाते हैं इन नक्षत्रों में जन्म होना अनिष्ट कारक माना जाता है 

अश्विनी- प्रथम चरण में जन्म हो तो पिता को भय , दूसरे चरण में जन्म हो तो सुख,तीसरे चरण में जन्म हो तो मित्र समान,चौथे चरण में जन्म हो तो राजा के समान |

आश्लेषा- प्रथम चरण में जन्म हो तो शांति से शुभ होता है, दूसरे चरण में जन्म हो तो धन नाश ,तीसरे चरण में जन्म हो तो माता का नाश, चौथे चरण में जन्म हो तो पिता का नाश  

मघा- पहले चरण में जन्म हो तो माता को भय,  दूसरे चरण में जन्म हो तो पिता को भय,तीसरे चरण में जन्म हो तो सुख,चौथे चरण में जन्म हो तो धन लाभ

ज्येष्ठा- प्रथम चरण में जन्म हो तो भाई का नाश ,दूसरे चरण में जन्म हो तो छोटे भाई का नाश, तीसरे चरण में जन्म हो तो माता का नाश,चौथे चरण में जन्म हो तो सोने का नाश , 

मूला - प्रथम चरण में जन्म हो तो पिता को कष्ट  दूसरे चरण में जन्म हो तो माता को कष्ट तीसरे चरण में जन्म हो तो धन का नाश और चौथे चरण में जन्म हो तो शांति से शुभ हो जाता है

रेवती - नक्षत्र के प्रथम चरण में जन्म हो तो 

राजा के समान,नक्षत्र के दूसरे चरण में जन्म हो तो मंत्री के समान,नक्षत्र के तीसरे चरण में जन्म हो तो धन युक्त,नक्षत्र के चौथे चरण में जन्म हो तो कई प्रकार के दुख होगे |

गंडात विचार - पंचमी दशमी पूर्णिमा व  अमावस्या की अंतिम एक  घड़ी,षष्टी,एकादशी प्रतिपदा की 




आरंभ कि एक घड़ी को गंडात   कहते हैं,

आश्लेषा ज्येष्ठा,रेवती की अंतिम दो दो घड़ी तथा मघा मूल अश्विन की प्रारंभ की दो दो घड़ी को नक्षत्र गंडांत कहते हैं,

कर्क वृश्चिक मीन लग्न की अंतिम आधी आधी घड़ी तथा सिंह धनु मेष लग्न की आरंभ की आधी आधी घड़ी को लग्न गंडात कहते हैं सरावली में लिखा है कि गंडात में जन्म लेने वाला बालक प्राय जीवित नहीं रहता है यदि जीवित रहे तो माता के लिए क्लेश कारक होता है किंतु स्वयं बहुत ऐश्वर्या साली होता है गंड मूल की शांति लोकाचार यह है कि गंड मूल नक्षत्र में जन्मे बालक को 27 दिन बाद जब उन्हें नक्षत्र आए तो शांति करनी चाहिए जिस नक्षत्र में बालक का जन्म हो यदि जातक के माता-पिता भाई-बहन का वही नक्षत्र हो तो भी शांति करानी चाहिए इसे नक्षत्र शांती कहते है |


2080 का नव संवत्सर "पिंगल" नाम से पुकारा जाएगा | हिंदू नववर्ष 'विक्रम संवत 2080' इस बार 22 मार्च, बुधवार से शुरू हो रहा है | यह महालक्ष्मी वर्ष वक्त की शाख़ पर कुछ नये रंग उगा रहा है और आने वाले समय की निराली तस्वीर बना रहा है।


वृक्ष बंधन

धरती हरी-भरी हो जाए, चलो कोई चमत्कार करें

पेड़ लगाकर धरती पर, चलो इसका शृंगार करें

रंग -बिरंगे फूलों के पौधे, इसकी माँग सजाएँगे

ऊँचे- ऊँचे पेड़ इसका, आँचल बन कर लहराएँगे

अंधाधुंध कटते पेड़ों को, हम ही तो रोक पाएँगे

नए- नए पौधे रोपित कर, अपना फर्ज निभाएँगे

प्राण वायु के दाता का, जब तक सीना चीरोगे

तब तक प्राण वायु पाने को इधर उधर फिरोगे

आओ एक धागा रक्षा का पेड़ों को भी बाँधें हम

कुछ भी हो जाए धरती से पेड़ न मिटने देंगे हम

"वृक्ष बंधन"अभियान चलाकर सुप्त जनों को जगाएँगे

वृक्षों का महत्त्व समझाकर, धरती को स्वर्ग बनाएँगे

रिँकू शर्मा

हिंदी अध्यापिका ओ०पी०एस०  विद्या मंदिर अंबा

दिशाशूल

दिशाशूल क्या होता है ? इसके बारे मे सम्पूर्ण जानकारी

दिशाशूल क्या होता है ? क्यों बड़े बुजुर्ग तिथि देख कर आने जाने की रोक टोक करते हैं ? आज की युवा पीढ़ी भले ही उन्हें आउटडेटेड कहे ..लेकिन बड़े सदा बड़े ही  रहते हैं ..इसलिए आदर करे उनकी बातों का ;दिशाशूल समझने से पहले हमें दस दिशाओं के विषय में ज्ञान होना आवश्यक है| हम सबने पढ़ा है कि दिशाएं ४ होती हैं |१) पूर्व २) पश्चिम  ३) उत्तर ४) दक्षिण

परन्तु जब हम उच्च शिक्षा ग्रहण करते हैं तो ज्ञात होता है कि वास्तव में दिशाएँ दस होती हैं |१) पूर्व२) पश्चिम३) उत्तर४) दक्षिण५) उत्तर - पूर्व६) उत्तर - पश्चिम७) दक्षिण – पूर्व८) दक्षिण – पश्चिम९) आकाश१०) पाताल हमारे सनातन धर्म के ग्रंथों में सदैव १० दिशाओं का ही वर्णन किया गया है,जैसे हनुमान जी ने युद्ध इतनी आवाज की कि उनकी आवाज दसों दिशाओं में सुनाई दी | हम यह भी जानते हैं कि प्रत्येक दिशा के देवता होते हैं |

दसों दिशाओं को समझने के पश्चात अब हम बात करते हैं वैदिक ज्योतिष की |ज्योतिष शब्द “ज्योति” से बना है जिसका भावार्थ होता है “प्रकाश” |वैदिक ज्योतिष में अत्यंत विस्तृत रूप में मनुष्य के जीवन की हरपरिस्तिथियों से सम्बन्धित विश्लेषण किया गया है कि मनुष्य यदि इसको तनिक भी समझले तो वह अपने जीवन में उत्पन्न होने वाली बहुत सी समस्याओं से बच सकता है और अपना जीवन सुखी बना सकता है |

दिशाशूल क्या होता है ?दिशाशूल वह दिशा है जिस तरफ यात्रा नहीं करना चाहिए | हर दिन किसी 




एक दिशा की ओर दिशाशूल होता है |

 रविवार को पश्चिम,दक्षिण-पश्चिम  , सोमवार, पूर्व,दक्षिण-पूर्व

 मंगलवार को उत्तर-पश्चिम  , बुधवार को उत्तर-पूर्व

 मंगलवार और बुधवार को उत्तर ) गुरूवार को दक्षिण,दक्षिण-पूर्व

  शुक्रवार को पूर्व,पश्चिम,दक्षिण-पश्चिम , शनिवार को उत्तर-पूर्व

परन्तु यदि एक ही दिन यात्रा करके उसी दिन वापिस आ जाना हो तो ऐसी दशा में दिशाशूल का विचार नहीं किया जाता है | परन्तु यदि कोई आवश्यक कार्य हो ओर उसी दिशा की तरफ यात्रा करनी पड़े, जिस दिन वहाँ दिशाशूल हो तो यह उपाय करके यात्रा कर लेनी चाहिए रविवार-दलिया और घी खाकर,सोमवार-दर्पण देख कर,मंगलवार-गुड़ खा कर,बुधवार -तिल,धनिया खा कर गुरूवार-दही खा कर,शुक्रवार-जौ खा कर,शनिवार-अदरक अथवा उड़द की दाल खा कर साधारणतया दिशाशूल का इतना विचार नहीं किया जाता परन्तु यदि व्यक्ति के जीवन का अति महत्वपूर्ण कार्य है तो दिशाशूल का ज्ञान होने से व्यक्ति मार्ग में आने वाली बाधाओं से बच सकता है | आशा करते हैं कि आपके जीवन में भी यह ज्ञान उपयोगी सिद्ध होगा तथा आप इसका लाभ उठाकर अपने दैनिक जीवन में सफलता प्राप्त करेंगे।

दिशाओ के देवता व ग्रह 

दिशा 

ग्रह 

देवता 

पूर्व 

सूर्य 

इंद्र  

पश्चिम 

शनि 

वरुण 

उत्तर 

बुध 

कुबेर ,चन्द्र 

दक्षिण

मंगल 

यम 

उत्तर-पूर्व

ब्र्हश्पति 

शंकर ,ब्रह्मा

उत्तर-पश्चिम

चन्द्र 

वायुदेव 

दक्षिण-पूर्व

शुक्र 

अग्निदेव 

,दक्षिण-पश्चिम

राहू व केतु 

राक्षस,शेष   


 

पापमोचनी एकादशी

पापमोचनी एकादशी का व्रत चैत्र मास की कृष्ण पक्ष एकादशी को किया जाता है इस दिन भगवान विष्णु को अर्घ्यदान दे कर षोडशोपचार पूजा करनी चाहिए |

पापमोचनी एकादशी व्रत की कथा - प्राचीन समय में चैत्र मास नामक अति रमणीक वन  था इसी वन में देवराज इंद्र गंधर्व कन्याओं  तथा देवताओं सहित स्वच्छंद विहार कर रहे थे मेधावी नामक ऋषि भी यही तपस्या करते थे।  ऋषि शैवोपासक तथा अप्सराएं शिवद्रोहिणी अनंग दासी अनुचरी थी।  एक समय का प्रसंग है कि रतिनाथ कामदेव ने मेधावी मुनि की तपस्या भंग करने के लिए मंजू धोषा नामक अप्सरा को नृत्य गायन करने के लिए उनके सम्मुख भेजा। युवावस्था वाले ऋषि अप्सरा के हाव भाव नृत्य गीत तथा कटाक्ष पर काम से मोहित हो गए। रति क्रीड़ा करते हुए 57 वर्ष बीत गए । मंजूघोषा ने एक दिन अपने स्थान पर जाने की आज्ञा मांगी। आज्ञा मांगने पर मुनि के कानों पर चींटी दौड़ी तथा उन्हें आत्मज्ञान हुआ। खुद को रसातल में पहुंचाने का एकमात्र कारण अप्सरा मंजूघोषा को समझकर मुनि ने उसे पिशाचिनी होने का शाप दे दिया।  शाप सुनकर मंजूघोषा ने वायु तथा प्रताड़ित कदली वृक्ष की भांति कांपते हुए मुक्ति का उपाय पूछा। तब मुनि ने पापमोचनी एकादशी का व्रत करने को कहा। मेघावी ऋषि विधि विधान बताकर अपने पिता च्यवन ऋषि के आश्रम में चले गए । शाप  की बात सुनकर ऋषि च्यवन ऋषि ने अपने पुत्र की घोर निंदा की तथा उन्हें चैत्र मास की एकादशी का व्रत करने की आज्ञा दी। व्रत करने के प्रभाव से मंजूघोषा अप्सरा पिशाचिनी देह से मुक्त हो सुंदर शरीर धारण कर स्वर्ग लोक को चली गई। 

कामदा एकादशी

 चैत्र शुक्ल पक्ष की एकादशी को कामदा एकादशी कहते हैं।  इस व्रत को करने से समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं और समस्त कार्य सिद्ध हो जाते हैं। कामदा एकादशी व्रत की कथा - प्राचीन समय में राजा पुण्डरीक नाम का राजा नाग लोक में राज्य करता था। उस विलासी की सभा में अनेक अप्सराएं, किन्नर, गंधर्व नृत्य किया करते थे। एक बार ललित नामक गंधर्व जब उसकी राज्यसभा में नृत्य कर रहा था, सहसा उसे अपनी सुंदरी पत्नी की याद आ गई जिसके कारण उसके नृत्य गीत लय-वादिता में अरोचकता आ गई। कर्कट नामक भाग यह बात जान गया तथा राजा से कह सुनाया। इस पर क्रोधातुर होकर पुण्डरीक नागराज ने ललित को राक्षस हो जाने का शाप दे दिया। ललित सहस्त्रो वर्षो तक राक्षस योनि में अनेक लोको में घूमता रहा। इतना ही नहीं उसकी सहधर्मिणी में ललिता भी उन्मतवेश भी उसी का अनुकरण करती रही।  एक समय में दोनों शापित दंपत्ति विंध्याचल पर्वत के शिखर पर स्थित श्रृंगी नामक ऋषि के आश्रम में पहुंचे।  उनकी करुणा जनक स्थिति को देखकर मुनि को दया आ गई और उन्होंने चैत्र शुक्ल पक्ष की कामदा एकादशी का व्रत करने के लिए कहा।  उन दोनों ने मुनि के बताए नियमों का पालन किया तथा एकादशी व्रत के प्रभाव से उनका श्राप मिट गया।  दिव्य शरीर को प्राप्त करने दोनों स्वर्ग लोग को चले गए।

चित्रा नक्षत्र

जब चंद्र ग्रह मेष राशि और अश्विनी नक्षत्र में प्रवेश करता है और 15 वें दिन चित्रा नक्षत्र में पूर्ण हो जाता है तब चैत्र का महीना शुरू होता है। इस महीने में चित्रा नक्षत्र लगता है।आकाशीय मंडल में चौदहवाँ नक्षत्र है। चित्रा नक्षत्र के देवता त्वष्टा हैं जो एक आदित्य हैं। इस नक्षत्र के प्रथम दो चरण कन्या राशि में आते हैं।चूंकि चित्रा नक्षत्र को 'एकान्त तारा' के रूप में भी जाना जाता है, इस नक्षत्र मे जन्मे लोग आयुर्वेद को जानने वाले होते हैं। साथ ही वे शिल्पकार भी होते  हैं। वे स्त्री-संतान से सुखी रहते हैं और वे सबके साथ मिलकर काम करना पसंद करते हैं। उन्हें चीजें बनाना और उन्हें सुंदर बनाना बहुत पसंद है।यह काफी आशावादी होते हैं, यही गुण इनको हमेशा आगे बढ़ाने में सहायक होता है चित्रा नक्षत्र में जन्मे व्यक्ति बुद्धिमान साहसी धनवान दानी सुशील,  सुंदर शरीर, संतान सुख, स्त्री सुख युक्त होते हैं इनकी हस्तलिखित लिपि बहुत सुंदर होती है धर्म में आस्था रखते हैं आयुर्वेद को जानने वाले होते हैं भवन निर्माण में विशेष रूचि होती है लेकिन पैसा बहुत कम ठहरता है नीति कुशल सौंदर्य प्रेमी अपने मन का भेद कभी किसी को नहीं बताते चित्रकला व अभिनय के जानकार होते हैं बहुमूल्य वस्तुओं के व्यापारी बन सकते हैं प्रभावशाली व्यक्तित्व होता है इनका इनको देखकर दूसरे व्यक्ति इन पर आसक्त हो सकते हैं गाने का शोक होने के कारण ये गायक भी हो सकते हैं। गायन गणित औषधी व लेखन कला में धनोपार्जन कर सकते हैं । साधारण तय चित्रा नक्षत्र के लोग धनी पाए जाते हैं। 33-38 वर्ग में इनका भाग्योदय होता है। क्रुर ग्रह की दशा में गुरु बुध शुक्र के अंतर में शत्रु कष्ट चोरी का भय बना रहता है।




नीलम रत्न 

नीलम शनि का मुख्य रत्न है हिंदी में नीलम तथा अंग्रेजी में फायर कहते हैं असली नीलम चमकीला चिकना मोर पंख के समान वर्ण जैसा,  नीली किरणो से युक्त एवं पारदर्शी होता है। असली नीलम को गाय के दूध में डाल दिया जाए तो दूध का रंग नीला हो जाता है पानी से भरे कांच के गिलास में डाला जाए तो नीली किरणे दिखाई देंगी। सूर्य की धूप में रखने से नीले रंग की किरणे दिखाई देंगी। नीलम धारण करने से धन-धान्य,यश-कीर्ति, बुद्धि-चातुर्य, सर्विस एवं व्यवसाय तथा वंश मे वृद्धि होती है स्वास्थ्य सुख का लाभ होता है बहुदा नीलम 24 घंटे के भीतर ही प्रभाव करना शुरू कर देता है यदि नीलम अनुकूलन ना  बैठे तो भारी नुकसान की आशंका हो जाती है अतः परीक्षा के तौर पर कम से कम 3 दिन तक पास रखने पर यदि बुरे सपने आएं, रोग उत्पन्न हो या चेहरे की बनावट में अंतर आए तो नीलम ना पहले नीलम धारण करने या औषधि रूप में ग्रहण करने से दमा क्षय कुष्ठ रोग हृदय रोग से संबंधित रोगों में लाभकारी होता है नीलम 5,7,9,12 अथवा अधिक रति के वजन का पंचधातु लोहे अथवा सोने की अंगूठी में शनिवार को शनि की होरा में एवं पुष्प उ भा चित्रा स्वाति धनिष्ठा या शतभिषा नक्षत्रों में नीलम को पहने। नीलम को शुद्ध करके व अभिमंत्रित कर पहने। 









कन्या राशी 

कन्या राशि का व्यक्ति कोमल शरीर लिए लेकिन कद छोटा स्त्री वर्गीय स्वभाव मधुर भाषी, कोमल बोलने वाला अपनी बातों से दूसरों को प्रभावित करने वाला और बहुत ही अच्छी स्मरण शक्ति रखने वाला बहुत लंबे समय तक किसी भी चीज को याद रख सकता है विचारशील बहुत विषय पर विचार कर सकता है और किसी भी विषय पर निर्णय लेने से पहले उस पर अनेकों बार उसके सभी पक्षों पर विचार करके कार्य करने वाला धैर्यवान आसानी से धैर्य नहीं खोता इसे  कितने संकट आ जाए | ऐसा व्यक्ति मनोवैज्ञानिक गणितज्ञ साहित्य प्रेमी वाणिज्य व्यवसाय में कुशल सहनशील अति नर्म सावधानी से कार्य करने वाला बुद्धि वादी तार्किक अपने सभी कार्य गुप्त रखने वाला आसानी से किसी को बताना नहीं कि मैं क्या करूंगा | बुढ़ापे का प्रभाव दीर्घायु लेकिन कभी-कभी आपने पर  विश्वास कम होता है | ऐसे लोग व्यापारी विक्रेता खजांची मुनीम मंत्री अध्यापक साहित्यकार या मनोवैज्ञानिक भी हो सकते हैं |  किंतु नौकरी से विशेष लाभ की संभावना रहती है | इन लोगों की मैत्री मकर मीन लग्न वालों से शुभ रहती है बुध एवं शुक्र ग्रह शुभ  रहते हैं चंद्र मंगल गुरु अशुभ है और शनि अशुभ ग्रह है शुक्र अधिक शुभ ग्रह हैं ऐसे लोगों की भाग्य उन्नति 16 से 22 25 30 35 35 36 वें वर्ष में होती है पेट की समस्या ज्यादातर रहती है तो ऐसे लोगों के लिए सलाह है कि तला भुना और ज्यादा मिर्च मसाले वाला खाना ना खाएं बासी खाने से परहेज करें | कन्या राशि वालों की कुंडली में सूर्य शुक्र या सूर्य चंद्र कहीं किसी भी भाव में एक साथ बैठे हो तो सूर्य की दशा में विशेष धन लाभ मिलता है सम्मान एवं ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है कभी-कभी इस व्यक्ति का संबंध पत्नी के अतिरिक्त अन्य कई स्त्रियों से जीवन भरा रहता है |

सूर्य नमस्कार

सूर्य नमस्कार सरल उपासना शो में संतुलित व्यायाम है सूर्य नमस्कार की विशेषता है कि सूर्य नमस्कार करने से प्रणाम मुद्राहस्त उत्तानासन,पाद हस्तासन या पश्चिमोत्तनासन,अश्व संचालन आसन,पर्वतासन,अष्टांग नमस्कार,भुजंगासन,ताड़ासन उत्तानासन एक साथ हो जाते हैं | सूर्य नमस्कार करने से दीर्घ आयु आरोग्य का मानव आश्वासन ही मिल जाता है कभी भी एक साथ बहुत ज्यादा सूर्य नमस्कार करने का आग्रह नहीं करना चाहिए पहले धीरे-धीरे सूर्य नमस्कार पहले दिन 12 सूर्य नमस्कार करने चाहिए फिर धीरे-धीरे सूर्य नमस्कार करने की गति को बढ़ाना चाहिए श्वास रेचक कुंभक पूरक का ध्यान करते हुए अगर सूर्य नमस्कार करेंगे तो सूर्य नमस्कार करने का पूरा लाभ होगा सूर्य नमस्कार करने से कमर दर्द गर्दन का दर्द पीठ का दर्द पैरों का दर्द यानी कि संपूर्ण स्वास्थ्य की गारंटी मिलती है अगर हम सिर्फ घूमे भ्रमण करें और तुरंत कार्य करें तो हम बैग से दूर रह सकते हैं संतुलित आहार और सूर्य नमस्कार यह जीवन खुशहाल जीवन की तंदुरुस्त जीवन की निशानी है वैसे तो सूर्य नमस्कार के मंत्र भी हैं अगर मंत्रों के साथ सूर्य नमस्कार करेंगे तो हमारा अध्यात्मिक ज्ञान भी हमें प्राप्त होगा तो प्रयास करें कि जो नीचे 13 सूर्य नमस्कार दिए हैं और उनका जो पहले सूर्य नमस्कार का मंत्र और बाद का सूर्य नमस्कार का मंत्र है दोनों को करके करेंगे तो स्वास्थ्य के लिए भी नियंत्रित रहेंगे और सूर्य नमस्कार का शारीरिक और आध्यात्मिक लाभ हम उठा सकेंगेसूर्य नमस्कार के लाभ

वजन घटाने में मदद करता है,मांसपेशियों और जोड़ों को मजबूत करता है,त्वचा के रंगत में सुधार 


करता है।,पाचन तंत्र को ठीक रखने में सहायक,अनिद्रा से लड़ने में मदद करता है,नियमित मासिक धर्म सुनिश्चित करता है,कंधों को गतिशीलता देता है,रीढ़ की हड्डी और पेट की मांसपेशियों को स्वस्थ रखता है।

सूर्य नमस्कार या सूर्य अभिवादन 12 शक्तिशाली योग आसन का एक अनुक्रम है।

एक कसरत होने के अलावा, सूर्य नमस्कार को शरीर और दिमाग परसकारात्मक प्रभाव डालने के लिए भी जाना जाता है।सूर्य नमस्कार खाली पेट सुबह किया जाता है। सूर्य नमस्कार करते समय आप सूर्य मंत्र का उच्चारण भी कर सकते है ।

ॐ ध्येय सदा सवित्र मण्डल मध्यवर्ति।नारायण सरसिजसनसन्निविष्टः।

केयुरवन मकरकुंडलवान किरीटी।हारी हिरण्मय वपु: धृतशंखचक्रः।।

अर्थात:- सूर्य मंडल मे स्थित, कमल पर विराजित, सुवर्णाभूषणो से सुशोभित तथा सुवर्ण कांती के शंख चक्रधारी भगवान नारायण का ध्यान करे।

सूर्य नमस्कार मंत्र - ॐ मित्राय नम :,ॐ रवये नम :,ॐ सूर्याय नमः,ॐ भानवे नमः, ॐ खगाय नम :,ॐ पूष्णे नमः,ॐ हिरण्यगर्भाय नमः ॐ मरीचये नमः,ॐ अदित्याय नमः,ॐ सवित्रे नमः,ॐअर्काय नम : ॐ भास्कराय नम:,ॐ श्री सवित्र सूर्य नारायणय नम : आदित्यस्य नमस्कारान् ये कुर्वन्ति दिने दिने।आयुः प्रज्ञा बलं वीर्यं तेजस्तेषां च जायते ॥

जो मनुष्य सूर्य नमस्कार प्रतिदिन करते है उनकी आयु, प्रज्ञा, बल, वीर्य और तेज बढ़ता है इसके साथ ही सूर्य नमस्कार प्रतिदिन करने से त्वचा से जुड़े हुए रोग दूर होते है।

नवरात्रि में व्रत रखने से मन, तन और आत्मा शुद्ध होती है। नवरात्रि के दिनों में 9 दिनों तक व्रत रखकर हम अपने मन, तन और आत्मा का शुद्धिकरण कर सकते हैं। इन दिनों में व्रत करने से विशेष फल मिलता है। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार इन दिनों व्रत रखने से मां प्रसन्न होती हैं और सभी मनोकामनाएं पूरी करती हैं।



पठनीय विषयों का सांस्कृतिक स्वरूप

– वासुदेव प्रजापति

भारतीय ज्ञानधारा का मूल अधिष्ठान अध्यात्म है। अध्यात्म जब नियम व व्यवस्था में रूपान्तरित होता है, तब वह धर्म का स्वरूप धारण करता है। जब वह व्यवहार की शैली में उतरता है, तब संस्कृति बनता है। हमारे देश में, प्रत्येक घर में, विद्यालय में जो विचारों का आदान-प्रदान होता है, सब प्रकार के कार्यक्रमों में औपचारिक या अनौपचारिक पद्धति से जो ज्ञानधारा प्रवाहित होती है, उसका स्वरूप सांस्कृतिक होना चाहिए। यदि उसका स्वरूप भौतिक है तो वह भारतीय नहीं है और उसका स्वरूप सांस्कृतिक है तो वह भारतीय है। ऐसा स्पष्ट विभाजन हम कर सकते हैं।

दूसरा समझने का बिन्दु यह है कि सांस्कृतिक स्वरूप, भौतिक स्वरूप का विरोधी नहीं है। वह भौतिक स्वरूप के लिए भी अधिष्ठान है। सांस्कृतिक स्वरूप भौतिक स्वरूप से ऊपर है। इसी परिप्रेक्ष्य में आज हम पठनीय विषयों के सांस्कृतिक स्वरूप को समझेंगे।

विषयों का वरीयता क्रम

समग्र विकास की हमारी संकल्पना के अनुसार सभी विषयों का वरीयता क्रम निर्धारित होना चाहिए। यह क्रम ऐसा बनता है-

१. परमेष्ठी से सम्बन्धित विषय प्रथम क्रम में आयेंगे। ये विषय हैं- अध्यात्म शास्त्र, धर्म शास्त्र, तात्त्विक शास्त्र और संस्कृति।



२. दूसरे क्रम पर सृष्टि से सम्बन्धित विषय – भौतिक विज्ञान (इसमें रसायन विज्ञान, जीवन विज्ञान, वनस्पति विज्ञान, खगोल, भूगोल और विज्ञान के अन्य विषयों का समावेश होगा।), इनके साथ पर्यावरण व सृष्टि विज्ञान भी आयेंगे।

३. तीसरे क्रम पर समष्टि से सम्बन्धित विषय आयेंगे। यह क्षेत्र सबसे व्यापक है, इसमें सभी सामाजिक शास्त्र जैसे- समाजशास्त्र, अर्थशास्त्र, राजनीतिशास्त्र, वाणिज्यशास्त्र, उत्पादनशास्त्र (सभी प्रकार की कारीगरी के शास्त्र, तंत्रज्ञान और कृषि कार्यों का समावेश होता है।) इनसे सम्बन्धित विषय-उपविषय अनेक हो सकते हैं।

४. व्यष्टि से सम्बन्धित विषय चौथे क्रम पर आयेंगे। इनमें योग, शारीरिक, मनोविज्ञान, आहारशास्त्र, गणित, संगीत, साहित्य आदि विषयों का समावेश होगा।

इस प्रकार व्यापकता के आधार पर विषयों की वरीयता निर्धारित होती है। वरीयता में जो विषय जितना ऊपर होता है, उसे उतनी ही छोटी आयु से पढ़ाना प्रारम्भ करना चाहिए। और पढ़ाते समय भी विषयों के परस्पर सम्बन्ध को ध्यान में रखते हुए पढ़ाना चाहिए।

अब हम कुछ विषयों का सांस्कृतिक स्वरूप जानेंगे –

अध्यात्म,धर्म, संस्कृति एवं तत्त्वज्ञान

ये सभी आधारभूत विषय हैं। इन चारों विषयों को अन्य सभी विषयों का अधिष्ठान मानकर पढ़ाना चाहिए। अर्थात् शेष सभी विषय इनके प्रकाश में ही पढ़ाए जाने चाहिए। जब ऐसा होगा, तभी यह सांस्कृतिक स्वरूप माना जाएगा। समझने के लिए भाषा हो या भौतिक विज्ञान हो, अर्थशास्त्र हो या राज्यशास्त्र हो, तंत्रशास्त्र हो या संगणक हो, इन सभी विषयों का स्वरूप अध्यात्म के अविरोधी होगा और इनके खुलासे अध्यात्म के सिद्धांतों के अनुसार दिए जाएंगे, तभी इनका स्वरूप सांस्कृतिक कहलाएगा। यदि अन्य विषयों को विज्ञान के प्रकाश में पढ़ाया जायेगा तो उनका स्वरूप भौतिक कहलाएगा।

उदाहरण के लिए उत्पादन शास्त्र में यंत्र आधारित उद्योग होने चाहिए या नहीं। अथवा यंत्रों का उपयोग कितना करना चाहिए, यह निश्चित करते समय पहले यह देखा जाएगा कि इस सम्बन्ध में धर्म और अध्यात्म क्या कहते हैं। यदि इनकी सम्मति है तो करना चाहिए, अन्यथा त्याग देना चाहिए। ऐसे ही आहारशास्त्र हेतु धर्म, संस्कार, प्रदूषण व आरोगयशास्त्र का पहले विचार करना चाहिए। व्यक्ति की दिनचर्या का निर्धारण करते समय धर्म क्या कहता है, पहले इसका विचार करना चाहिए।

अध्यात्म, धर्म व संस्कृति का स्वतन्त्र रूप से भी अध्ययन आवश्यक है। चिन्तन के स्तर पर अध्यात्म शास्त्र का अध्ययन, व्यवस्था के स्तर पर धर्म शास्त्र का अध्ययन और व्यवहार के स्तर पर संस्कृति का अध्ययन शिशु अवस्था से लेकर उच्च शिक्षा तक सर्वत्र अनिवार्य होना चाहिए।

आत्मतत्त्व की संकल्पना




आत्मतत्त्व की संकल्पना केवल भारत में है। इस संकल्पना के स्रोत से समस्त ज्ञानधारा प्रवाहित हुई है। इसके आधार पर जीवनदृष्टि बनी है। हम यह भी कह सकते हैं कि भारतीय जीवनदृष्टि और आत्मतत्त्व की संकल्पना एक दूसरे में ओतप्रोत है। आत्मतत्त्व अनुभूति का विषय है। आत्मतत्त्व के समान ही अनुभूति भी भारत की विशेषता है। हमने अनुभूति प्राप्त नहीं की है, फिर भी हम अनुभूति का अस्तित्व स्वीकार करके चलते हैं। इस अनुभूति को बौद्धिक स्तर पर लाने के लिए तत्त्वज्ञान का विषय बना है। अनेक बार हम अंग्रेजी शब्द फिलोसॉफी का अनुवाद दर्शन करते हैं, जो उचित नहीं है। फिलोसॉफी 


के स्तर का शब्द तत्त्वज्ञान हो सकता है, दर्शन नहीं। आत्मतत्त्व की भांति दर्शन और अनुभूति शब्दों का अंग्रेजी अनुवाद नहीं हो सकता।

अध्यात्मशास्त्र हमें प्रमाण देता है

अध्यात्मशास्त्र हमें प्रमाण व्यवस्था देता है। प्रमाण के लिए हम बौद्धिक स्तर पर उतरते हैं, और शास्त्रों की रचना करते हैं। अनुभूति आधारित शास्त्रों को ही हम प्रमाण मानते हैं। आज न तो हम अनुभूति करते हैं और न शास्त्रों का सूक्ष्म अध्ययन ही करते हैं और न उन्हें युगानुकूल पद्धति से समझते हैं। इसलिए हमारे शास्त्रों पर अनेक प्रश्नचिन्ह लगाए जाते हैं। अतः जो विद्वान भारतीयता के पक्षधर हैं, उनके लिए अनुभूति के शास्त्रों का गहन अध्ययन और अनुसंधान का विशाल क्षेत्र उनकी प्रतीक्षा कर रहा है।

इसी प्रकार आज धर्म को विवाद का विषय बना दिया गया है। प्रथम तो धर्म को विवाद से मुक्त करने की आवश्यकता है। फिर उसे बौद्धिक जगत में प्रस्थापित करने की आवश्यकता है। यह भी अध्ययन और अनुसंधान का विषय है। धर्म का ही कृति रूप संस्कृति है। भारतीय जीवनशैली ही हमारी संस्कृति है। जबकि हम केवल सौन्दर्य को, नृत्यादि को, कला-कृतियों को और मात्र मनोरंजन को ही संस्कृति 




मान रहे हैं। सरकार का सांस्कृतिक मंत्रालय और विश्वविद्यालय दोनों संस्कृति को केवल सांस्कृतिक कार्यक्रमों तक ही सीमित रख रहे हैं। इस मानसिकता को बदलने की आवश्यकता है। आज अध्यात्म के अभाव में संस्कृति मात्र मनोरंजन में कैद हो गई है। हमें उसे भी कैद से मुक्त करवाना है।

वैश्विकता के सन्दर्भ में इनका अध्ययन

अध्यात्म, धर्म, संस्कृति एवं तत्त्वज्ञान जैसे विषयों पर आज वैश्विकता का साया पड़ा हुआ है। इसलिए हमें वैश्विकता को भी सांस्कृतिक अर्थ में समझने की आवश्यकता है। भारत प्रारम्भ से ही सांस्कृतिक वैश्विकता का पक्षधर रहा है। अतः वैश्विकता के भारतीय अर्थ को प्रस्थापित करने से ही इन विषयों के साथ न्याय होगा।

आज अधिकांश लोग यह मानते हैं कि ये चारों विषय अत्यधिक गंभीर व कठिन हैं। इसलिए इन विषयों 

को छोटी आयु में नहीं पढ़ाया जा सकता। क्योंकि उच्च शिक्षा के कुछ ही छात्र इन विषयों को समझ पाते हैं। परन्तु यह मानकर चलना उचित नहीं है। इन विषयों को पढ़ने से पूर्व इनके संस्कार करने होंगे। इन विषयों को आचार के रूप में पालन करवाना होगा। तत्पश्चात इन विषयों को विचार के स्तर पर लाना होगा। आचार और विचार को आध्यात्मिक बनाने के बाद इनके बारे में शास्त्रीय पद्धति से पढ़ना होगा। ये सब किए बिना सीधे शास्त्र पढ़ने से कोई लाभ नहीं मिलेगा।

आत्मतत्त्व, ईश्वर, धर्म, सम्प्रदाय, संस्कृति, सभ्यता और कर्मकाण्ड जैसे विषयों के बारे में तुलनात्मक अध्ययन करना, देश-विदेश में इन क्षेत्रों में क्या चल रहा है, उसका आकलन करना। इनकी क्या समस्या है, उसे पहचानना, उनका निराकरण कैसे हो सकता है, इसका ज्ञानात्मक विचार करना। यह सब इन विषयों के अन्तर्गत आता है।

हमें अपनी त्रुटि को सुधारना है

आधारभूत विषयों के सम्बन्ध में सारभूत बात यही है कि हमने इन विषयों की घोर उपेक्षा की है, और पाश्चात्य विद्वानों ने इनको गलत समझा है। आज भी पाश्चात्य विद्वान हमारे शास्त्र ग्रंथों का ग़लत अर्थ प्रस्तुत करते हैं और उन्हें अधिकृत मनवाने का आग्रह करते हैं। आश्चर्य तो तब होता है, जब हमारे ही 


विश्वविद्यालयों के अध्ययन मंडल पाश्चात्य ग्रंथों को अधिकृत मान लेते हैं। मेक्समूलर के समय से शुरु हुई यह परम्परा आज भी यथावत है। हमें इस गलत परम्परा से मुक्त होने की आवश्यकता है। इस गलत परम्परा से मुक्त होने के लिए हमें इन विषयों का गहन अध्ययन और अनुसंधान करना होगा।

भारत की पहचान आध्यात्मिक देश की है। भारतीय समाज धर्मनिष्ठ है, भारत की संस्कृति सर्वसमावेशी है। इस बात को ज्ञानात्मक दृष्टि से समझकर, गहन अध्ययन और अनुसंधान कर, पठनीय विषयों को सांस्कृतिक स्वरूप में लाकर उन्हें शिक्षा की मुख्य धारा में सम्मिलित कर सकते हैं और शिक्षा को पुनः भारतीय बना सकते हैं।

(लेखक शिक्षाविद् है, भारतीय शिक्षा ग्रन्थमाला के सह संपादक है और विद्या भारती संस्कृति शिक्षा संस्थान के सह सचिव है।)

राम दरबार 

नौमी तिथि मधु मास पुनीता। सुकल पच्छ अभिजित हरिप्रीता॥

मध्यदिवस अति सीत न घामा। पावन काल लोक बिश्रामा॥ - 

बरषहिं सुमन सुअंजुलि साजी। गहगहि गगन दुंदुभी बाजी।

अस्तुति करहिं नाग मुनि देवा। बहुबिधि लावहिं निज निज सेवा॥




ना जाने किस रूप में नारायण मिल जाए

हरिहर एक सीधा-साधा किसान था। वह दिन भर खेतों में मेहनत से काम करता और शाम को प्रभु का गुणगान करता। उसके मन की एक ही साध थी। वह उडुपि के भगवान श्री कृष्ण के दर्शन करना चाहता था। उडुपि दक्षिण कन्नड़ जिले का प्रमुख तीर्थ था। प्रतिवर्ष जब तीर्थयात्री वहां जाने को तैयार होते तो हरिहर का मन भी मचल जाता किंतु धन की कमी के कारण उसका जाना न हो पाता। इसी तरह कुछ वर्ष बीत गए। हरिहर ने कुछ पैसे जमा कर लिए। घर से निकलते समय उसकी पत्नी ने बहुत-सा खाने-पीने का सामान बाँध दिया। उन दिनों यातायात के साधनों का अभाव था। तीर्थयात्री पैदल ही जाया करते। रास्ते में हरिहर की भेंट एक बूढ़े व्यक्ति से हुई। बूढ़े के कपड़े फटे-पुराने थे और पाँव में जूते तक न थे। अन्य तीर्थयात्री उससे कतराकर निकल गए किंतु हरिहर से न रहा गया। उसने बूढ़े से पूछा- 'बाबा, क्या आप भी उडुपि जा रहे हैं?'

बूढ़े की आँखों में आँसू आ गए। उसने रुँधे स्वर में उत्तर दिया- 'मैं भला तीर्थ कैसे कर सकता हूँ? एक बच्चा तो बीमार है और दूसरे बेटे ने तीन दिन से कुछ नहीं खाया।' हरिहर भला व्यक्ति था। उसका मन पसीज गया। उसने निश्चय किया कि वह उडुपि जाने से पहले बूढ़े के घर जाएगा। बूढ़े के घर पहुँचते ही हरिहर ने सबको भोजन खिलाया। बीमार बच्चे को दवा दी। बूढ़े के खेत, बीजों के अभाव में खाली पड़े थे। लौटते-लौटते हरिहर ने उसे बीजों के लिए भी धन दे दिया। जब वह उडुपि जाने लगा तो उसने पाया कि सारा धन तो खत्म हो गया था। वह चुपचाप अपने घर लौट आया। उसके मन में तीर्थयात्रा न करने का कोई दुख न था बल्कि उसे खुशी थी कि उसने किसी का भला किया है। हरिहर की पत्नी भी उसके 




इस कार्य से प्रसन्‍न थी। रात को हरिहर ने सपने में भगवान कृष्ण को देखा। उन्होंने उसे आशीर्वाद दिया और कहा-

'हरिहर, तुम मेरे सच्चे भक्त हो। जो व्यक्ति मेरे ही बनाए मनुष्य से प्रेम नहीं करता, वह मेरा भक्त कदापि नहीं हो सकता।' तुमने उस बूढ़े की सहायता की और रास्ते से ही लौट आए। उस बूढ़े व्यक्ति के वेष में मैं ही था। अनेक तीर्थयात्री मेरी उपेक्षा करते हुए आगे बढ़ गए, एक तुमने ही मेरी विनती सुनी। मैं सदा तुम्हारे साथ रहूँगा! अपने स्वभाव से दया, करुणा और प्रेम का त्याग मत करना।' हरिहर को तीर्थयात्रा का फल मिल गया था। हमारे आस-पास जो दीन दुखी है, गाय या कोई अन्य जीव है उनकी सहायता, सेवा जैसे भी हो अवश्य करें क्योंकि *ना जाने किस रूप में नारायण मिल जाए..!!

रानी लक्ष्मीबाई 

लक्ष्मीबाई का जन्म वाराणसी में 19 नवम्बर 1828 को हुआ था। उनका बचपन का नाम मणिकर्णिका था लेकिन प्यार से उन्हें मनु कहा जाता था। उनकी माँ का नाम भागीरथीबाई और पिता का नाम मोरोपंत तांबे था। मोरोपंत एक मराठी थे और मराठा बाजीराव की सेवा में थे।रानी लक्ष्मीबाई मराठा शासित झाँसी राज्य की रानी और 1857 की राज्यक्रान्ति की द्वितीय शहीद वीरांगना थीं। उन्होंने सिर्फ 29 वर्ष की उम्र में अंग्रेज साम्राज्य की सेना से युद्ध किया और रणभूमि में वीरगति को प्राप्त हुईं। बताया जाता है कि सिर पर तलवार के वार से शहीद हुई थी लक्ष्मीबाई

  





सेंधा नमक

सेंधा नमक ➖ भारत से कैसे गायब कर दिया गया ? जो शरीर के लिए Best Alkalizer है आप सोचते होंगे की आख़िर ये सेंधा नमक बनता कैसे है ? तो पहले जानिए कि नमक मुख्य कितने प्रकार के होते हैं। एक होता है समुद्री नमक, दूसरा होता है सेंधा नमक (rock salt) सेंधा नमक बनता नहीं है पहले से ही बना बनाया है, ये प्रकर्ति का बनाया हुआ प्राकृतिक नमक है। पूरे उत्तर भारतीय उपमहाद्वीप में खनिज पत्थर के नमक को ‘सेंधा नमक’ या ‘सैन्धव नमक’, लाहोरी नमक अलग-अलग नाम से जाना जाता है । जिसका मतलब है ‘सिंध या सिन्धु के इलाक़े से आया हुआ’। वहाँ नमक के बड़े बड़े पहाड़ है सुरंगे है। वहाँ से ये नमक आता है। मोटे मोटे टुकड़ो मे होता है, यह ह्रदय के लिये उत्तम, और पाचन (digestion) मे मदद रूप, त्रिदोष शामक, और ठंडी तासीर वाला, पचने मे हल्का होता है। इससे पाचक रस बढ़्ते हैं। भारत मे 1930 से पहले कोई भी समुद्री नमक नहीं खाता था विदेशी कंपनीया भारत मे नमक के व्यापार मे आज़ादी के पहले से उतरी हुई है , उनके कहने पर ही भारत के अँग्रेजी प्रशासन द्वारा भारत की भोली भली जनता को आयोडिन मिलाकर समुद्री नमक खिलाया जाने लगा। हुआ ये कि जब ग्लोबलाईसेशन के बाद बहुत सी कंपनियो ने ये नमक बेचना शुरू किया तब ये सारा खेल शुरू हुआ! 

अब समझिए खेल क्या था ? खेल ये था कि विदेशी कंपनियो को नमक बेचना है और बहुत मोटा लाभ कमाना है और लूट मचानी है तो पूरे भारत मे एक नई बात फैलाई गई कि आयोडीन युक्त नामक 





खाओ ! आप सबको आयोडीन की कमी हो गई है। ये सेहत के लिए बहुत अच्छा है, ये बातें पूरे देश मे बहुत ही सोची समझी तरह से फैलाई गई। और जो नमक किसी जमाने मे 2 से 3 रूपये किलो मे 

बिकता था। उसकी जगह आयोडीन नमक के नाम पर सीधा भाव पहुँच गया 3 गुना यानी 8 रूपये प्रति किलो और आज तो 20 रूपये को भी पार कर गया है। दुनिया के 56 देशों ने अतिरिक्त आयोडीन युक्त नमक 40 साल पहले ban कर दिया अमेरिका मे नहीं है जर्मनी मे नहीं है फ्रांस मे नहीं, डेन्मार्क मे नहीं, डेन्मार्क की सरकार ने 1956 मे आयोडीन युक्त नमक बैन कर दिया क्यों? उनकी सरकार ने कहा हमने मे आयोडीन युक्त नमक खिलाया! (1940 से 1956 तक) और वहाँ आने वाले Impotent cases काफ़ी वृद्धि देखी गई , तो उन्होने इस पे बैन लगाया। जब हमारे देश मे ये आयोडीन का खेल शुरू हुआ इस देश के बेशर्म नेताओ ने कानून बना दिया कि बिना आयोडीन युक्त नमक भारत मे बिक नहीं सकता। वो कुछ समय पूर्व किसी ने कोर्ट मे मुकदमा दाखिल किया और ये बैन हटाया गया। आज से कुछ वर्ष पहले कोई भी समुद्री नमक नहीं खाता था सब सेंधा नमक ही खाते थे

 समुद्री नमक के भयंकर नुकसान —

ये जो समुद्री नमक है आयुर्वेद के अनुसार ये तो अपने आप मे ही बहुत खतरनाक है ! क्योंकि कंपनियाँ इसमे अतिरिक्त आयोडीन डाल रही है। अब आयोडीन भी दो तरह का होता है एक तो प्रकृति का बनाया हुआ जो पहले से नमक मे होता है । दूसरा होता है “industrial iodine”ये बहुत ही खतरनाक है। तो समुद्री नमक जो पहले से ही खतरनाक है उसमे कंपनिया अतिरिक्त industrial iodine डाल को पूरे देश को बेच रही है। जिससे बहुत सी गंभीर बीमरिया हम लोगो को आ रही है । ये नमक मानव द्वारा फ़ैक्टरियों मे निर्मित है। आम तौर से उपयोग मे लाये जाने वाले समुद्री नमक से उच्च रक्तचाप (high BP ) पथरी जैसी गंभीर बीमारियो का भी कारण बनता है | इसका एक कारण ये है कि ये नमक अम्लीय (acidic) होता है । जिससे रक्त अम्लता बढ़ती है और रक्त अमलता बढ्ने से ये सब 48 रोग आते है । ये नमक पानी कभी पूरी तरह नहीं घुलता और किडनी से भी नहीं निकल पाता फिर पथरी का भी कारण बनता है। 

समुद्री नमक से सिर्फ शरीर को 4 पोषक तत्व मिलते है! और ढेरों बीमारिया जरूर साथ मे मिल जाती है! रिफाइण्ड नमक में 98% सोडियम क्लोराइड ही है शरीर इसे विजातीय पदार्थ ( foreign matter) के रुप में रखता है। यह शरीर में घुलता नही है। इस नमक में आयोडीन को बनाये रखने के लिए Tricalcium Phosphate, Magnesium Carbonate, Sodium Aluminosilicate जैसे रसायन मिलाये जाते हैं जो सीमेंट बनाने में भी इस्तेमाल होते है। विज्ञान के अनुसार यह रसायन शरीर में रक्त वाहिनियों को कड़ा बनाते हैं, जिससे ब्लाक्स बनने की संभावना और आक्सीजन जाने मे परेशानी होती है। जोड़ो का दर्द और गढिया, प्रोस्टेट आदि होती है। आयोडीन नमक से पानी की जरुरत ज्यादा होती है। 1 ग्राम नमक अपने से 23 गुना अधिक पानी खींचता है। 





सेंधा नमक के फ़ायदे —

सेंधा नमक के उपयोग से रक्तचाप और बहुत ही गंभीर बीमारियों पर नियन्त्रण रहता है । क्योंकि ये 

अम्लीय नहीं ये क्षारीय है (alkaline)  क्षारीय चीज जब अमल मे मिलती है तो वो  Neutral हो जाता है और रक्त अमलता खत्म होते ही शरीर के अनेक रोग ठीक हो जाते हैं। ये नमक शरीर मे पूरी तरह से घुलनशील है । और सेंधा नमक की शुद्धता के कारण आप एक और बात से पहचान सकते हैं कि उपवास ,व्रत मे सब सेंधा नमक ही खाते है। तो आप सोचिए जो समुंदरी नमक आपके उपवास को अपवित्र कर सकता है वो आपके शरीर के लिए कैसे लाभकारी हो सकता है? सेंधा नमक शरीर मे 97 पोषक तत्वो की कमी को पूरा करता है ! इन पोषक तत्वो की कमी ना पूरी होने के कारण ही लकवे (paralysis)  का अटैक आने का सबसे बढ़ा जोखिम होता है | सेंधा नमक के बारे में आयुर्वेद में बोला गया है कि यह आपको इसलिये खाना चाहिए क्योंकि सेंधा नमक वात, पित्त और कफ को दूर करता है। यह पाचन में सहायक होता है और साथ ही इसमें पोटैशियम और मैग्नीशियम पाया जाता है जो हृदय के लिए लाभकारी होता है। यही नहीं आयुर्वेदिक औषधियों में जैसे लवण भाष्कर, पाचन चूर्ण आदि में भी प्रयोग किया जाता है। पांच हजार साल पुरानी आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति में भी भोजन में सेंधा नमक के ही इस्तेमाल की सलाह दी गई है। 

स्वाद के साथ-साथ स्वास्थ्य के लिए भी समुद्री नमक के बजाय सेंधा नमक का प्रयोग होना चाहिए। इसलिए आयोडीन युक्त समुद्री नमक खाना छोड़िए और उसकी जगह सेंधा नमक खाइये |

सवाई राजा जय सिंह 

काशी, दिल्ली, उज्जैन, मथुरा और जयपुर में, अतुलनीय और अपने समय की सर्वाधिक सटीक गणनाओं के लिए जानी गयी वेधशालाओं के निर्माता, सवाई जयसिह एक नीति-कुशल महाराजा और वीर सेनापति ही नहीं, जाने-माने खगोल वैज्ञानिक और विद्याव्यसनी विद्वान भी थे।



रिंग सेरोमनी

रिंग सेरोमनी  की शुरुआत इटली से हुई ...इटली में जब रोमन साम्राज्य बिखर रहा था और ईसाई धर्म का बड़ी तेजी से उदय हो रहा था रोमन साम्राज्य के दौर में महिलाओं को बराबरी का हक हासिल था यहां तक कि ग्लेडिएटर की लड़ाई में भी महिलाएं भाग लेती थी संपत्ति में भी महिलाओं को बराबर का हक था फिर जब ईसाई धर्म आगे बढ़ा तब उन्होंने महिलाओं के अधिकार बेहद सीमित कर दिए और महिलाओं को पुरुषों की दासी बनाना शुरू कर दिया उसी दौर में रिंग सेरेमनी की शुरुआत हुई और रिंग को एक चाबी की आकार में बनाया जाता था जो इस बात का प्रतीक था कि बाप अपनी बेटी की चाबी अपने होने वाले दामाद को दे रहा है यानी बाप अपनी बेटी के मालिक की की सुपुर्दगी अपने होने वाले दामाद को दे रहा है आज भी म्यूजियम में उस दौर की तमाम रिंग रखी गई हैं जो रिंग सेरिमनी में इस्तेमाल की जाती थी लेकिन अफसोस देवदासी प्रथा ब्राह्मण पैट्रियाकी की ब्ला ब्ला ब्ला पर भोकने वाले सेकुलर सूअर इस पर कभी कोई आर्टिकल नहीं लिखते








हर व्यक्ति का महत्त्व

           एक बार एक विद्यालय में परीक्षा चल रही थी। सभी बच्चे अपनी तरफ से पूरी तैयारी करके आये थे। कक्षा का सबसे ज्यादा पढ़ने वाला और होशियार लड़का अपने पेपर की तैयारी को लेकर पूरी तरह से आश्वस्त था। उसको सभी प्रश्नों के उत्तर आते थे लेकिन जब उसने अंतिम प्रश्न देखा तो वह चिन्तित हो गया।

          सबसे अंतिम प्रश्न में पूछा गया था कि "विद्यालय में ऐसा कौन व्यक्ति है जो हमेशा सबसे पहले आता है? वह जो भी है, उसका नाम बताइए?" परीक्षा दे रहे सभी बच्चों के ध्यान में एक महिला आ रही थी। वही महिला जो सबसे पहले स्कूल में आकर स्कूल की साफ सफाई करती। पतली, सावलें रंग की और लम्बे कद की उस महिला की उम्र करीब 50 वर्ष के आसपास थी। यह चेहरा वहाँ परीक्षा दे रहे सभी बच्चों के आगे घूम रहा था। लेकिन उस महिला का नाम कोई नहीं जानता था। इस सवाल के जवाब के रूप में कुछ बच्चों ने उसका रंग-रूप लिखा तो कुछ ने इस सवाल को ही छोड़ दिया।

          परीक्षा समाप्त हुई और सभी बच्चों ने अपने अध्यापक से सवाल किया कि "इस महिला का हमारी पढ़ाई से क्या सम्बन्ध है।"इस सवाल का अध्यापक जी ने बहुत ही सुन्दर जवाब दिया, "यह सवाल हमने इसलिए पूछा था कि आपको यह अहसास हो जाये कि हमारे आसपास ऐसे कई लोग हैं जो महत्त्वपूर्ण कामों में लगे हुए है और हम उन्हें जानते तक नहीं। इसका मतलब हम जागरूक नहीं है। हमारे आसपास की हर चीज, हर व्यक्ति का विशेष महत्त्व होता है, वह खास होता है। पर हम भूत और भविष्य में इतने उलझे रहते हैं कि वर्तमान में मेरे चारो तरफ कौन है जो मेरे जीवन को सुगम बनाने में मेरी मदद कर रहा है, क्या घटित हो रहा है, उसे महसूस ही नहीं कर पाते। जरूरत है जागरूक होने की! 


गुजिया

गुजिया बनाने की सामग्री  

दो कप मैदा,

आधा कप,घी,

सूजी,

मावा,

बुरा,

काजू

,किसमिस,

नारियल का चुरा ,

चिरोंजी बादाम 

गुजिया बनाने की विधि - मैदा थोडी नरम गुदं ले दस मिनट रखे सुजी भुने खोया भुने सभी ड्राई फ्रूट्स को दर्दर्रा कर हल्का भूनकर सभी को मिला ले ठंडा होने पर बुरा मिला ले। गुदें मैदे की छोटी पेडे बना ले व  बेल कर चम्मच से मसाला भर कर गुजिया मेकर से दबा दे या कोने हाथ से मोडे थोडी देर ढक कर रख दे।कढाई मे घी गर्म कर हल्की आंच पर सेके।तैयार है लाजवाब गुजिया। - मिथिलेश शर्मा 

सिंधु जल संधि — भारत के भविष्य के साथ खिलवाड़ का एक और उदाहरण

रजत बागची 

यह तो हम सबको ज्ञात है के 15 अगस्त 1947 के सत्ता हस्तांतरण के बाद भारत के तत्कालीन  तथाकथित भाग्य विधाताओं ने किस प्रकार गलत फैसले लिए, जिनका परिणाम हम आज भी भुगत रहे हैं I इनमें से कई विषय,जैसे कि कश्मीर समस्या,तथाकथित धर्मनिरपेक्षता,तिब्बतका चीन द्वारा अधिग्रहण,चीन को संयुक्त राष्ट्र में सुरक्षा परिषद का स्थाई सदस्य बनाना ;इत्यादि के बारे में हम सब भली-भांति परिचित हैं I

 सिंधु जल संधि भी इस प्रकार के ही एक गलत नीति का परिणाम है, जिसके बारे में शायद हमें  उतनी विस्तृत जानकारी नहीं है I यह संधि सन 1960  में, 9 वर्ष की वार्तालाप के बाद भारत एवं पाकिस्तान के मध्य हुआ I इसमें सबसे विचित्र बात यह है की यह संधि विश्व बैंक की मध्यस्थता में हुआ I पाठकों के जानकारी के लिए बताता चलूं कि विश्व के कहीं भी,किसी और द्विपक्षीय संधि में विश्व बैंक का कोई रोल नहीं है I 

पुराणों के अनुसार सिंधु, सरस्वती,गंगा ,यमुना,ब्रह्मपुत्र, नर्मदा,महानदी एवं गोदावरी हमारी सबसे प्राचीन नदियां है I उपर्युक्त नदियों में भी, सिंधु तथा सरस्वती नदी को प्राचीनतम माना गया है I आधुनिक काल में सरस्वती नदी के दर्शन हमें नहीं हो रहे हैं I  अतः इसे एक विडंबना ही माना जा 


सकता है के हमारे प्राचीनतम नदी धरोहर (सिंधु नदी) के जल की आवंटन संधि दिनांक 19 नवंबर 1960 के दिन पाकिस्तान के कराची शहर में भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री एवं पाकिस्तान के फौजी हुकूमत के बीच विश्व बैंक के मध्यस्थता में किया गया I 

पाठक इस बात से अवश्य अवगत होंगे कि सिंधु घाटी के अंतर्गत आने वाली 6 नदियों को इस संधि के तहत दो भागों में विभाजित किया गया था I  इसमें पूर्वी नदी के तौर पर रावी, व्यास व सतलज  तथा पश्चिमी नदी के तौर पर सिंधु, झेलम व चेनाब नदियों को परिभाषित किया गया I इन नदियों के  सहायक नदियों व नालों को भी इस संधि में सम्मिलित किया गया I इनमें सबसे विशाल व लंबी सिंधु नदी है, जिसकी लंबाई लगभग 3200 किलोमीटर है I

पाठक विचार कर रहे होंगे कि मैं खिलवाड़ एवं विडंबना जैसे शब्दों का प्रयोग क्यों कर रहा हूं I विस्तृत विवरण में ना जाते हुए भी यदि हम केवल इस संधि के निम्नलिखित 4 पहलुओं पर गौर करें तो यह ज्ञात हो जाएगा की ऐसी शब्दावली का प्रयोग न केवल उचित, बल्कि आवश्यक है I

  1. इस संधि के तहत भारत ने पाकिस्तान को 62 करोड़ पाउंड स्टर्लिंग से भी अधिक राशि दी, जो कि  पाकिस्तान के नहर व जल वितरण संबंधी कार्यों  के उपयोग के  लिए था I

  2. इस संधि के तहत भारत के कंट्रोल में 42 Billion M3  जल आया, जबकि पाकिस्तान के कंट्रोल में 99 Billion M3  जल आया I  

  3. प्रारंभिक 13 वर्षों के पश्चात (1973), इस संधि को टर्मिनेट करने के लिए दोनों पक्षों की रजामंदी आवश्यक की गई I  पाठकों को यह बताते चलें के सन 1971 के विजय के पश्चात,  शिमला समझौते के दौरान भी न तो पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर, और न ही इस जलसंधि के एक तरफा विषयों पर चर्चा की गई I

  4. इस जलसंधि में विवाद निवारण को कुछ इस प्रकार से अलग-अलग अनुलग्नक (annexures) के रूप में समाहित किया गया ताकि कन्फ्यूजन बना रहे I 

इस संधि के अनुच्छेद IX मैं विवाद निवारण के विषय में लिखा गया है I अनुलग्नक A के तहत तटस्थ विशेषज्ञ की बात की गई है, जबकि अनुलग्नक G के तहत मध्यस्थता (आर्बिट्रेशन) का उल्लेख किया गया है I जाहिर है,दोनों कार्य एक साथ नहीं चल सकते,या फिर इस विषय पर दोनों पक्षों की अलग-अलग व्याख्या  हो सकती है I देश में विद्युत उत्पादन को बढ़ाने के लिए तथा अधिकाधिक क्षेत्र को सिंचाई परियोजनाओं के अंतर्गत लाने के लिए भारत ने दो जल विद्युत परियोजनाओं पर कार्य किया, जिसमें किशनगंगा परियोजना (330 mw) का कार्य 2018 मे पूरा किया जा चुका है, एवं रातले परियोजना(850 mw)  का कार्य प्रगति पर है I परियोजनाओं का कार्य भारत बिना किसी बाहरी सहायता के, स्वयं ही पूरा कर रहा है/ कर चुका है I भारत का हर विषय पर विरोध करना पाकिस्तान की प्रारंभ से ही नीति रही है , तथा इस मौके को, जिसमें  भारत के विभिन्न प्रांतों के उन्नति निहित है, भला वह कैसे जाने देता I अतः  उसने एक-एक करके दोनों परियोजनाओं पर विवाद खड़ा किया I 



 किशनगंगा परियोजना पर भारत ने 1988 से ही भूमि सर्वेक्षण प्रारंभ कर दिया था I  इसमें पाकिस्तान जाने वाली जल की मात्रा में कोई कमी नहीं आ रही थी I  पाकिस्तान ने 1989 में अपने एक  बांध ( नीलम झेलम परियोजना) का आगाज किया और  कहा कि किशनगंगा परियोजना के कारण उनके बाद में जल की मात्रा में भारी कमी आएगी I सन 2010 में दोनों पक्षों की रजामंदी से विषय को आर्बिट्रेशन के सुपुर्द किया गया और सन 2013 में राय भारत के पक्ष में आया I

  रालते परियोजना के लिए सन 1915 में पाकिस्तान ने बिना भारत के रजामंदी के आर्बिट्रेशन पर जाने की बात कही,जबकि भारत ने तत्पश्चात यह कहा कि इस विषय को निरपेक्ष विशेषज्ञ को सौंपा जाना चाहिए I दोनों ही अवस्था में  नामांकन का कार्य  विश्व बैंक को करना था I यह बात विश्व बैंक को भी अटपटी लगी, तथा उसने दोनों प्रकार के विवाद निवारण प्रक्रिया पर रोक लगा दी I इस पर भारत का कहना है पहले अनुलग्नक A के तहत कार्य संपादन हो, तत्पश्चात आवश्यकता पड़ने पर अनुलग्नक G को लागू किया जा सकता है I  पाकिस्तान इस बात पर राजी नहीं है I 

विश्व बैंक ने आश्चर्यजनक रूप से उपर्युक्त दोनों प्रक्रियाओं को पुनः प्रारंभ कर दिया है I उनका कहना है ,मत के अंतर होने पर अनुलग्नक A  लागू होगा, तथा विवाद की स्थिति पर अनुलग्नक  G  लागू होगा I क्योंकि इन दोनों अनुलग्नक  का आपस में संबंध नहीं है इसलिए दोनों प्रक्रियाएं साथ ही साथ चल सकती हैं I  यह अजीब सी बात है क्योंकि यदि इन दोनों प्रक्रियाओं  की राय एक जैसी नहीं हुई तो क्या होगा, इस बारे में स्पष्टीकरण कहीं नहीं है I  भारत ने विश्व बैंक को स्पष्ट रूप से बता दिया है कि संधि का इंटरप्रिटेशन करना  उनके अधिकार क्षेत्र में नहीं आता, तथा साथ ही साथ पाकिस्तान को भी 90 दिन का नोटिस दिया गया है ताकि सिंधु जल संधि का मॉडिफिकेशन किया जा सके I यदि अप्रैल 2023 तक पाकिस्तान सहमति प्रकट नहीं करता है तो भारत क्या करेगा इस पर उसने अपने पत्ते नहीं खोले हैं I यहां इस बात का संज्ञान लेना आवश्यक है कि हमारे वर्तमान प्रधानमंत्रीजी ने सन 2016 में ही पाकिस्तान द्वारा उरी में आतंकवादी घटना के बाद आतंकवाद की ओर इशारा करते हुए कहा था कि खुन और पानी एक साथ नहीं बह सकते Iआने वाले दिनों में भारत क्या करेगा, इसका अनुमान लगाना संभव नहीं है; परंतु इतना विश्वास हम सब अवश्य रख सकते हैं की वर्तमान शासनव्यवस्था में राष्ट्र  सर्वोपरि है, तथा  इस विषय पर उचित समय पर सटीक निर्णय लिया जाएगा I 

संदर्भ ;

https://jalshakti-dowr.gov.in/international-cooperation/bilateral-cooperation-with-neighbouring-countries/india-pakistan-cooperation  

https://www.worldbank.org/en/region/sar/brief/fact-sheet-the-indus-waters-treaty-1960-and-the-world-bank)

https://thewire.in/diplomacy/india-hardline-diplomacy-indus-waters-treaty-desperation

https://www.ndtv.com/india-news/world-bank-cant-interpret-it-for-us-india-on-indus-water-treaty-3748299

https://www.geo.tv/latest/467652-pakistanus-collaborating-for-climate-resilient-ecosystem-us-ambassador-masood

https://tribune.com.pk/story/2394853/merit-and-tolerance-the-missing-essentials



   संस्कृत एवं उत्तर प्रदेश की बोलियों में कृष्ण काव्य

          डॉ रघुनंदन प्रसाद दीक्षित 'प्रखर

          वेदों में लोक का अधिष्ठान देव भुवन भास्कर सूर्य को, मध्य लोक का इन्द्र को तथा भूलोक का देवता अग्नि को कहा गया है। आदित्य ने अपने प्रकाश तथा ताप से जीव मात्र को जीवनदान दिया है। ताप के कारण पृथ्वी पर वृष्टि होती है, जिससे सृष्टि में वनज सम्दा एवं जीवनोपयोगी खाद्य सामग्री का उपार्जन होता है। साथ ही कंद मूल फल पुष्प पल्लव संवर्धित होकर मनुज , जीव एवं विहग का पोषण करते हैं। इसी प्रकार इन्द्र ने पर्याप्त वर्षण करके भूमि का बनाया जिससे उत्पन्न वनस्पति राधासिक्त हो गयी।

        कालांतर में विष्णु को सूर्य का रूप माना जाने लगा और उनके वास स्थान को गोलोक अथवा बैकुण्ठ कहा गया। विष्णु का साम्य कहीं-कहीं इन्द्र से किया गया है, किन्तु इन्द्र नामधारी विष्णु श्रीहरि विष्णु कदापि नही हैं। शनैः-शनै इन्द्र की अपेक्षा श्रीहरि विष्णु महत्व इन्द्र से गुरुतर हो गया। तब जनसामान्य इन्द्र को विस्मृत करने लगे। उनका अंश भी न्यून हो गया।   

     ब्राह्मण ग्रंथों में विष्णु का रूप परिवर्तन हुआ। शतपथ ब्राहमण में विष्णु को बामन अवतार में स्वीकार्यता मिली, जबकि ऐतरेय ब्राहमण में विष्णु को सर्व सर्वश्रेष्ठ देव माना गया है। तैतरेय आरण्यक के समय तक विष्णु की पूजा होने लगी। कालान्तर में यह समस्त भावनाएं वासुदेव में समाहित हो गयी। जिनकी पूजा पाणिनी के समय (५०० ई० पूर्व) जन साधारण में प्रचलित  थी। पतंजलि के भाष्य में भगवान विष्णु एवं वासुदेव में कोई अंतर नहीं किया गया है। इससे यह स्पष्ट है कि पतंजलि के कालखण्ड से पूर्व में ही विष्णु और वासुदेव की पूजा  की भावना विकसित हो चुकी थी।

वासुदेव के साथ में कृष्ण के नाम काक्षसुयोग चार स्थानों नाम सुलभ होता है- 


     

   (१) ऋग्वेद के एक पूरे सूक्त का नाम ऋषि आगिरस के नाम पर रखा गया है। यही ऋषि इसके स्त्रोता हैं जिन्होने देववैद्य अश्विनी कुमारों से सोमरस का आह्वान किया।

        (२) ऋग्वेद में एक कृष्ण नामक असुर का भी उल्लेख है। यह यह कृष्णासुर असुमती नदी के तटवर्ती विस्तृत गूढ़ प्रदेश में विचरण करता था।

         (३) छन्दोग्य उपनिषद में देवकी पुत्र आगिरस कृष्ण की चर्चा है। कहा जाता है कि उनके गुरु आगिरस ने इतना ज्ञान दिया, जिससे सूक्ष्मतम जिज्ञासाओं का मिल गया।  इन्होने ऐस यज्ञ की ऐसी सरल रीति बताई जिसकी दक्षिणा थी- तप, दान, आजेव, अहिंसा और सत्य। 

           (४) जानको गाथा के भाष्यकार के मतानुसार कृष्ण एक गोत्र का नाम है। जिसे कृष्णायन कहा जाता है। वासुदेव उसी गोत्र के क्षत्रिय थे। अत: वह वासुदेव कृष्ण कहलाए।

           (1- ऐतरेय ब्राह्मण 1/1 | , 2- ऋग्वेद - ५/६/८६/३। ,     शतपथ ब्राह्मण - १/१/३-१० )

         वस्तुतः पाश्चात्य विद्वानों को कृष्ण की ऐतिहासिक प्रमाणिकता पर संदेह है, वह उन्हें मात्र कवि प्रभूत कल्पना का परिणाम मानते हैं। जबकि भारतीय विद्वानों ने इस मत का पुरजोर खण्डन किया है। भारतीय विद्वानों ने ऐतिहासिक प्रमाण के रूप में उपरोक्त आख्यानों में सूक्तों इत्यादि के साक्ष्य दिए है। अहिंसावादी होने के कारण ही इन्द्र के संग उनका बैर हुआ। इन्द्र ने फिर उनकी सेना एवं संतानादि का संहार किया।

         वैदिक कृष्ण ही संभवता जातकों के वासुदेव कृष्ण हैं। दोनों के दुखी होने के समान कारण में जो पौत्र और पुत्र का अंतर है वह मौखिक परम्परा से चलते हुए कथा का अंग बनना सहज है। महाभारत के कृष्ण चरित में राजनीति और पराक्रम के साथ ज्ञान एवं विद्वता दो प्रकार के गुणों का वर्णन है। वह देवकी के पुत्र कृष्ण से साम्य रखता है। ......

      *यथाकाश्स्थिले नित्य वायु सर्वत्रगो महान्।*

      *तथासर्वाणि भूतानि मत्स्थानार्त्युपधारय।।*

                          (श्रीमद्भगवत गीता-९/६)

     (अर्थ-जिस प्रकार महान हवा आकाश में हर जगह लगातार घूम रही है, उसी तरह सभी प्राणी मुझमें निवास कर रहे हैं।)

*अवधी कृष्ण काव्य*- भक्तिकालीन काव्य को ज्ञान मार्ग, कर्म मार्ग तथा भक्ति मार्ग बांटा गया है। गीता में कृष्ण कीक्षगणना वृष्णियों में हुई है। महाभारत में कृष्ण वंश को यादव कहा गया है। जिसे शास्वत भी कहा जाता है। शास्वत वंश के महान व्यक्ति वासुदेव ने एकत्व का प्रचार किया। जिसके वंशजों ने उनकी मृत्युपर्यंत उन्हीं की भगवान वासुदेव के रुप में पूजाक्षारम्भ कर दी। 

         *जअइ-जअइ‌हर बलइ बिसहर, तिलइअ सुन्दर चन्द्र मुनि आणन्द जन कन्द।*

         *बसह गमन करि तिसूल डमरू धर , कृष्यणहि डाहु अणग सिर गंग गोरि अंधग।*

                (एक ही पद में शिव और कृष्ण की स्तुति)

  



  जयइ जयइ हरि भुअजुअ  धरि गिरि, छहमुँह कस विणामा पिय वामा सुन्दर हासा ।

छलि-छलि यहि हस असुर विलय करू, भुणि जन मानस सुह भामा उत्तम वंसा।।

       (अपभ्रंश काल के आरम्भ में कृष्ण का महामानव के रूप में वर्णन किया गया है)

       अवधी का एक सोहर गीत जोकि भगवान कृष्ण के जन्मोत्सव पर नंदगाँव की अगनाएं गा रही है:-

     गोकुल मेंय बजेला बजनवा, खेला नाचे गवनवा।

      ललना आजु कान्हा के जनमवा, भइले शोर बा हो।।  खूब सजवले बाटे, सोनवा के पलना।

            पलना में झूलत रे नन्द जी के ललना।।  नंदजी लुटावल अन धन, तौ कईसन खजनवा हो।। 

                                                 (गीत महेश परदेशी )

          देवकी के जनमे हैं कृष्न कन्हैया   नंद घर बाजे बधइया...

          नंद मगन मन मुतिया लुटावै।    रानी जसुमति पलना झुलावै।।

             देखौ बज रही घर-घर शहनाइया।।    नंद घर बाजे बधइया...

              (पं० देवेन्द्र पाठक)

*बुंदेली बोली* - उत्तर प्रदेश के दक्षिणी पठारी भूभाग में बुंदेली बोली का बोलबाला है। यूँ तो बुंदेली में ओज की तपन विलक्षण है , लेकिन रसात्मकता का अपना प्रभाव देखते ही बनता है। होली का त्योहार  उस पर रंगों की बौछार भला किसका मन न मोह लेगी। एक रसिया में ग्वालिनी और कन्हैया की तकरार दृष्टव्य है- 

    *अरी बू तौ कर ग्वालन की ओट,  रंग डार गओ सांवरिया।       

    *मैं ओढ़ चली चुनरिया, छलिया की परी नजरिया

     अरी ! मन मैंय  आय गओ बाके खोट.......

     सबरी सखियाँ दौरी आईं , कान्हाँ की बहुतै करी ढूँढाई ।।

      पकरि कैं कर ल ई लोटमपोट....

                                        (पारम्परिक) 

        मथुरा में दही विक्रय करने जा रहीं ग्वालिनों का रास्ता रोकना, फिर मटकी फोड़कर दही माँगना मानो कन्हैया का शगल है। इधर ब्रजांगनाएं दही देने को तो सहर्ष तैयार हैं किन्तु मटकी फोड़ना उन्हें अखरता है- 

       दही खा लो मटकिया न फौरो   मैं बाबुल की भारी लाड़ली,

             मोरे नैना से नैना जोरों ॥। दही खा लो.......- छीना झपटी काये करत हो,

             मेरी बहियाँ पकर नै झकझोरौ।दही खा लो.......

                                               नीलेश राज, जबलपुर) 

        एक ब्रजबाला की अंर्तमनोदशा और अपनी सहेली से छलिया कृष्ण की शिकायत कुछ यूँ कह रही.......

         



 सखि!मथुरा की मैं ग्वालियाँ री  मोहे छेड़ो मुरलिया वारे ने 

          मैं जात हती जमुना जी खे  सिर पै धरे मटकी

          गैल मैंय नटवर नागर मिलि गए   फोर दई मोरी दधि मटकी 

              ढ़ुरका दई मटकी मुरलिया वारे ने ॥

                                                  (पारम्परिक गीत)

*ब्रज भाषा* - हिन्दी काव्य की मूल भाषा ब्रज ही है। सबसे  अधिक काव्य साहित्य ब्रजभाषा में ही उपलब्ध है। ब्रज भाषा से इतर भी अन्य कवियों ने अपनी लेखनी चलायी है। पं० सदल मिश्र, सदासुख लाल लल्लू लाल, भारतेन्दु जैसों का नाम उल्लेखनीय है। ब्रज भाषा में यूँ तो  अष्टछाप कवि , रसखान, बिहारी, रसलीन नंददास नरोत्तम दास आदि-आदि अनेक कविगण है। परन्तु सूर तो सूर्य है। उनका उनका वात्सल्य पक्ष सुदृढ़ ही नही अपितु अलैकिक है। बाल चित्रण में उनका कोई सानी नहीं । यथा           मैया मोरी मैं नहिं माखन खायो।    मैं बालक बहियन को छोटो, छींको केहि विधि पायो। 

  ग्वाल बाल सब बैर पर हैं बरबस मुख लपटायो  मैया मैं चंद खिलौना लैहौं ।

               जैहौं लोट अबहिं धरनी पै तेरी गोद न अहियौं ।।

                    उद्धव प्रसंग-

            ऊधौ ! तुम हौ अतिबड‌भागी। 

            तुम ज्यों जल यह तेल की गागरि बूँद न ताको लागी। 

            प्रीति- नदी  मैंय पाँव न बोरयो, दृष्टि न रूप परागी।

               ***          -*- *- *             ***

             जोग ठगौरी ब्रज न  बिकिहै।

             यह व्योपार तिहारो उधो, ऐ सोई फिर जैहै।

             यह जापै लाए हो मधुकर, ताके उर न समैहै ।।

                    ***             ***            ***

           रसखान भक्तिकाल के ऐसे परस्पर विरोधी कवि हैं जिनके जीवन में बर्हिसाक्ष्य और अंर्तसाक्ष्य उपलब्ध है। रसखान की भाषा का लोक संस्कार उन्हें अपने ढ़ंग का विशिष्ट रचनाकार बनाता है।

  जा दिन तें वह नंद को छोहरा, या बन धेनु चराइ गयौ है।

  मोहिनि ताननि  गोधन गावत, बेनु बजाई रिझाइ गयो है।।

  वा दिन सों कछु टोना कियो ,रसखानि हियै मैं समाइ गयो है।

  कोऊ न काहू की कानि करै, सिगरो ब्रजबीर, विकाइ गयो है।। 

 नरोत्तम दास जी कृष्ण काव्य के ऐसे कवि हैं जिन्होंने  द्वारिकाधीश (कृष्ण) का चरित्र वर्णन किया है। सुदामा चरित उसकी कृति संदर्भित है-

प्रीति मैं चूक न है उनके, हरि मों मिलिहैं उठि कंठ लगायकै।

द्वार गये कछु दैहैं पै दैहैं वे , द्वारिका नाथ जू  हैं सब लायकै॥

या विधि बीत गई पन है, अब तो पहुँच्यौ विदधापन आयकै।

जीवन के तौ है जाके लिए, हरि सो जा होहुँ कनोवड़ो जायकै।। 

       कवि बिहारीलाल की बिहारी सतसई से एक दोहा - 

      मकराकृति गोपाल कैं,सोहत कुंडल कान।धरथौ मनौ हिय-गढ़ समरु, ड्यौढ़ी  लसत निशान।।*

       मतिराम -

       सुबरन बोली तमाल सौं , घन सौं  दामिनी देह । तूँ राजति घनस्याम  सौं, राधे सरिस सनेह।।

कनौऊजी बोली-

कनौजी मूलत: बोली उत्तरप्रदेश के मध्याञ्चल अर्थात कानपुर संभाग आसपास के उत्तर-दक्षिण जनपदों में विस्तारित है।  इसका मूल स्थान फर्रुखाबाद एवं  कन्नौज जनपद हैं। अठ्‌ठारवीं शताब्दी के कविवर्य आचार्य वचनेश मिश्र ने प्रचुर कृष्ण साहित्य रचा है। उनकी ग्रंथिका वचनेश रचनावली से उद्धृत कुछ रचनाएँ .......

 हरषे सुर आदि में समा सब , भूलि जात अभिमान। गौपन के पांयन परे ,  मान्यो  प्रेम प्रधान ।

     राधे! तुम गोरी हम कारे।

      तुम उजियारी भानु चंद सी हम धन से कजरारे।हम तुमक्षपै बलिहारी हैं तो तैसोइ  रूप तिहारे।।

      तनि आइजा ललन, दिवसाद जा झलक। अलबेली अलक मुख छवि की  छलक ॥ 

डॉ. प्रखर दीक्षित - कन्नौजी के सरस कवि, साहित्यकार  की एक बानगी - 

   *माई री माई नीको मदन गुपाल।*   *श्याम सलोनो मोरपखा सिर, सूरत लाल गुलाल।*

 लटुरीं कुंतल कटि करधनिया,पग पैंजनि बजत रसाल।।मुख पै ओदन दधि लपटाए, दमके ढिठौना भाल।

खन आंगन खन कोठा तिदरी, रोदन बिहंसि धमाल।। प्रखर निरख  छवि मनहिं सुमेलत नटखट जसुमति लाल।*

 बाल कान्ह के लख कौतुक सब, पुरजन भये निहाल।।

      'समग्रत: निष्कर्ष  यही कि भगवान कृष्ण का चरित सभी वय एवं वर्गों में समान रूप से सरोकार रखता है। वह लोक के आराध्य हैं, उनके बाल चरित में वात्सल्य की पराकाष्ठा , कैशोर्य  में प्रेम का अनहद नाद एवं चरम सोपान वहीं द्वारकाधीश  की पदवी पर रहते हुए विपन्नता में यापन करने वाले मित्र विप्र सुदामा को दो मुट्ठी तण्डुल खाकर द्वै लोक बिहारी बनाना समाज के मानवीय पक्षी की सर्वोत्कृष्ट उपलब्धि है।

 महाभारत युद्ध के समय कुरुक्षेत्र के मध्य जब कौरव-पांडव सेनाएं थी।  धनुर्धर पार्थ अपनों से ठने युद्ध के कारण अपने कर्तव्य से गलित थे। वह मानसिक रूप से शिथिल था। तब तत् सारथी योगेश्वर कृष्ण बने, उसका रथ रणक्षेत्र के मध्य में ले जाकर गीता उपदेश दिया। गीता उपदेश में ज्ञानयोग, कर्मयोग तथा भक्तियोग समुच्चय जीवन की ग्रंथियाँ खोलता है। राजनीतिक एवं रणनीतिक कौशल, सही समय पर सही निर्णय तथा दुरभि-पडयंत्र के मसूबों को ध्वस्त करने की कला कृष्ण से बेहतर किससे पास थी। तथापि बोलियां भाषा अलग-अलग है, किन्त भाव का प्रणयन कमोवेश जैसा ही दृष्टिगोचर होता है।


                        


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