स्वामी विवेकानंद
स्वामी विवेकानंद के जीवन की प्रेरक कहानियां जो हमें बहुत कुछ सिखा जाती है।
संस्कृति वस्त्रों में नहीं, चरित्र के विकास में है
एक बार जब स्वामी विवेकानन्द जी विदेश गए.... तो उनका भगवा वस्त्र और पगड़ी देख कर लोगों ने पूछा स्वामी जी बोले...' बस यही सामान है'.... आपका बाकी सामान कहाँ है?
तो कुछ लोगों ने व्यंग्य किया कि... 'अरे! यह कैसी संस्कृक्ति है आपकी? तन पर केवल एक भगवा चादर लपेट रखी है....... कोट पतलून जैसा कुछ भी पहनावा नहीं है?
इस पर स्वामी विवेकानंद जी मुसकुराए और बोले- 'हमारी संस्कृति आपकी संस्कृति से भिन्न है.... आपकी संस्कृति का निर्माण आपके दर्जी करते हैं .... जबकि हमारी संस्कृति का निर्माण हमारा चरित्र करता है, संस्कृति वस्त्रों में नहीं, चरित्र के विकास में है।
सच्चा पुरुषार्थ
एक विदेशी महिला स्वामी विवेकानंद के समीप आकर बोली: "मैं आपसे शादी करना चाहती हूँ"
विवेकानंद बोले: "क्यों?
मुझसे क्यों ?
क्या आप जानती नहीं की मैं एक सन्यासी हूँ?"
औरत बोली: "मैं आपके जैसा ही गौरवशाली, सुशील और तेजोमयी पुत्र चाहती हूँ और वो वह तब ही संभव होगा जब आप मुझसे विवाह करेंगे" विवेकानंद बोलेः "हमारी शादी तो संभव नहीं है, परन्तु हाँ एक
उपाय है"
औरतः क्या?
विवेकानंद बोले "आज से मैं ही आपका पुत्र बन जाता हूँ, आज से आप मेरी माँ बन जाओ....
17आपको मेरे रूप में मेरे जैसा बेटा मिल जायेगा, औरत विवेकानंद के चरणों में गिर गयी और बोली की आप साक्षात ईश्वर के रूप है।
इसे कहते है पुरुष और ये होता है: पुरुषार्थ...
एक सच्चा पुरुष सच्चा मर्द वो ही होता है जो हर नारी के प्रति अपने अन्दर मातृत्व की भावना उत्पन्न कर सके।
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