शनिवार, 28 दिसंबर 2024

भगवा ध्वज एवं समर्पण भाव जागरण

 भगवा ध्वज एवं समर्पण भाव जागरण 

ध्वज का प्रादुर्भाव अनायास ही नहीं होता। ध्वज की पृष्ठभूमि में उस राष्ट्र के दीर्घकालीन गौरवशाली इतिहास, वहाँ की श्रेष्ठ परम्पराओं, जीवन दृष्टि व समाज के दीर्घ कालीन लक्ष्य दृष्टिगोचर होते हैं। इसलिए ध्वज मार्गदर्शक एवं प्रेरणा का केन्द्र होता है।

ध्वज किसी भी राष्ट्र अथवा समाज के चिन्तन, ध्येय का प्रतीक तथा स्फूर्ति का केन्द्र होता है।

वह राष्ट्र के यश, गौरव, वैभव, पराक्रम, त्याग, बलिदान आदि का स्मरण कराता है तथा राष्ट्र व समाज के सुदीर्घ इतिहास की कहानी कहता है।

ध्वज को देखते ही वहाँ के समाज की संगठित शक्ति का अनुभव होता है तथा विजीगीषु भावना जागृत होने लगती है।

 भगवाध्वज अपने राष्ट्र का पुरातनध्वज । ऋग्वेद में "अरुणाः सन्तु केतवः" का वर्णन।

अति प्राचीन काल अर्थात् वैदिक काल से लेकर अँग्रेजों के साथ संघर्ष तक सभी चक्रवर्ती सम्राटों, महाराजाओं तथा सेनापतियों का यही ध्वज था।

उदाहरणार्थ - राजा दिलीप, राजा रघु, भगवान श्री राम, अर्जुन के रथ का ध्वज, हर्षवर्धन, पृथ्वीराज चौहान, महाराणा प्रताप, छत्रपति शिवाजी, छत्रसाल बुन्देला, राजा कृष्णदेव राय (विजयनगर साम्राज्य), महाराजा रणजीत सिंह, झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई आदि सभी का 'ध्वज' भगवाध्वज ही था। इसी ध्वज की रक्षा के लिये सभी ने अपने प्राणों तक को न्यौछावर कर दिया। सिक्ख, बौद्ध, जैन आदि पन्थों ने भी भगवाध्वज को ही अपनाया है।

हजारों वर्षों से हमारे पूर्वजों ने श्रद्धा से इस ध्वज को अपनाया और इसका पूजन किया है। इसको भूलना अपने इतिहास को भूलना है अर्थात् आत्मविस्मृति का महापाप करना है।

इस ध्वज का रंग उगते हुए सूर्य के समान है। उगता हुआ सूर्य अन्धकार व रात्रि की निष्क्रियता को समाप्त कर प्रकाश और जीवन्तता देता है। उदीयमान सूर्य ज्ञान और कर्मठता का प्रतीक है।

ध्वज यज्ञ की ज्वाला के अनुरूप होने के कारण त्याग, समर्पण, जनकल्याण की भावना, तप, साधना आदि का आदर्श रखने वाला है।

 यह समाज हित में सर्वस्वार्पण करने का प्रतीक है।

इसी भगवा ध्वज को संघ ने अपना ध्वज मानकर इसको गुरु स्थान दिया है।

हिन्दु धर्म में गुरु और परमात्मा के प्रति एक समान श्रृद्धा भाव "यस्य देवे पराभक्ति यथा देवे तथा गुरौः"।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ किसी व्यक्ति विशेष को गुरु नहीं मानता। वह इसी भगवा ध्वज को गुरु के रूप में स्वीकार करता है। संघ व्यक्ति पूजक नहीं अपितु तत्व पूजक है क्योंकि व्यक्ति स्खलनशील है लेकिन तत्व सदैव ही स्थिर है, अटल है।

भगवा ध्वज त्याग अर्थात् समाज हित में सर्वस्व अर्पण करने वालों का प्रतीक है।

यह हिन्दुत्व का प्रतीक भी है। यह हिन्दु धर्म के सभी मत-पन्थ-सम्प्रदायों में स्वीकार्य है।

जिस ध्वज की ओर देखते ही अन्तःकरण में स्फूर्ति का सञ्चार होने लगता है वही भगवाध्वज अपने संघ कार्य के सिद्धान्तों का प्रतीक है। इसलिए वह हमारा गुरु है।

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