सोमवार, 5 फ़रवरी 2024

षटतिला एकादशी

 


षटतिला एकादशी 

षटतिला एकादशी यह व्रत माघ कृष्ण पक्ष एकादशी को किया जाता है इसके अधिदेव भगवान विष्णु हैं | पंचामृत में तिल मिलाकर भगवान को स्नान कराया जाता है | इस प्रकार जो मनुष्य भगवान को स्नान करा कर तिलों का दान करता है वह सहस्त्र वर्ष स्वर्ग में वास करता है | तिल मिश्रित खुद खाए और ब्राह्मणों को दान दे वा खिलाए | दिन में हरि कीर्तन कर रात्रि में भगवान की मूर्ति के सामने सोना चाहिए | 6 प्रकार के तिल प्रयोग होने के कारण से इसे षट्तिला एकादशी के नाम से पुकारते हैं इस प्रकार नियम पूर्वक पूजा करने से मरने पर स्वर्गलोक की प्राप्त होती है |

षटतिला एकादशी की कथा - प्राचीन काल में वाराणसी में एक गरीब अहीर रहता था दीनता से बेचारा कभी-कभी वह पत्नी बच्चों सहित आकाश में तारे गिनता रहता था | उसकी जिंदगी बसर करने का केवल जंगल की लकड़ी बेचना ही एक मात्र सहारा था | वह भी जब नही बिकती तो भूखा सोना परता था | एक दिन वह किसी साहूकार के घर लकड़ी पहुंचाने गया वहां जाकर देखता है कि उत्सव की तैयारी हो रही है | जानने की इच्छा थी इसलिए उसने साहूकार से पूछा कि आप क्या कर रहे हैं | सेठ जी ने कहा यह षटतिला एकादशी के व्रत की तैयारी हो रही है और इसके करने से घोर पाप करे लोग,रोग, हत्या का पाप,व अन्य कष्टों से छुटकारा मिल जाता है | मरने पर स्वर्ग की प्राप्ति होती है | यह सुनकर गरीब अहीर एकादशी व्रत का सारा सामान खरीद कर, घर जाकर उसने परिवार सहित एकादशी का व्रत कथा की | एकादशी व्रत के प्रभाव से उसके घर में धनधन्य व पुत्र आदि की वृद्धि हुई | मरने पर वह अहीर स्वर्ग में गया | जो व्यक्ति एकादशी व्रत करता है भगवान विष्णु का आशीर्वाद उसके ऊपर सदैव बना रहता है | 

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