नरसेवा-नारायण सेवा
1 जनवरी की सर्द रात 'वीरभद्र' अपनी पत्नी रीता के संग, एक दोस्त के यहाँ हुई नये साल की पार्टी से लौट रहे थे। बाहर बड़ी कड़ाके की ठंड थी! दोनों पति-पत्नी कार से वापस घर की ओर जा रहे थे कि तभी सड़क किनारे, पेड़ के नीचे, पतली पुरानी फटी-चिथड़ी चादर में लिपटे, एक बूढ़े भिखारी को देख, वीरभद्र जी का दिल द्रवित हो गया! उन्होंने गाड़ी रोकी। पत्नी रीता ने अपने पति को हैरानी से देखते हुए कहा... *"क्या हुआ, गाडी़ क्यों रोकी यहाँ आपने...??"**"वह बूढ़ा ठंड से कांप रहा है रीता! इसलिए गाडी़ रोकी।" "तो ?" वीरभद्र बोले- "अरे गाडी़ में जो कंबल पड़ा है ना उसे दे देते हैं..." "क्या *वो कंबल* इतना महँगा कंबल आप इसको देंगे ?? अरे वह उसे ओढ़ेगा नहीं बल्कि बेच देगा, ये ऐसे ही होते हैं...!" वीरभद्र जी मुस्कुराकर गाडी से उतरे और कंबल डिग्गी से निकालकर उस बुजुर्ग को दे दिया! रीता बहुत गुस्से में आ गई। दोनों फ़िर गाड़ी से घर की ओर चल पड़े। अगले दिन भी बड़े गजब की ठंड थी...आज भी वीरभद्र और रीता एक पार्टी से लौट रहे थे तो अचानक रीता ने कहा... चलिए, एकबार देखें... कल रात वाले बूढ़े का क्या हाल है...! वीरभद्र ने वहीं गाडी़ रोकी और देखा तो वह बूढ़ा भिखारी तो था, मगर उसके पास वो कंबल नहीं था...! वह अपनी वही पुरानी चादर ओढ़े लेटा था! रीता ने आँखें बडी बडी करते हुए पतिदेव से कहा- "देखा... मैंने कहा था न, कि वो कंबल उसे मत दो, इसने जरूर बेच दिया होगा।" दोनों कार से उतरकर उस बूढे के पास गए! रीता ने व्यंग्य करते हुए पूछा- "क्यों बाबा... कल रात वाला कंबल कहाँ है ? बेचकर नशे का सामान ले आए क्या...?" बुजुर्ग ने हाथ जोड़कर से इशारा करते हुए बताया कि... वहाँ थोड़ी दूरी पर एक औरत लेटी हुई थी... जिसने वही कंबल ओढा हुआ था...बुजुर्ग बोला... मेमसाब! वह औरत पैरों से विकलांग है और उसके कपड़े भी जगह-जगह से फटे हुए हैं! लोग भीख देते वक्त भी उसे गंदी नजरों से देखते हैं, और ऊपर से इतनी ठंड है...! मेरे पास कम से कम ये पुरानी चादर तो है। उसके पास तो कुछ भी नहीं था, तो मैंने कंबल उसे दे दिया...। रीता हतप्रभ सी रह गई! अब उसकी आँखों में गुस्सा नहीं पश्चाताप के आँसु थे! और वो धीरे से आकर पति से बोली "चलिए... घर से एक कंबल और लाकर बाबाजी को भी दे देते हैं...!!" दोस्तों... ईश्वर का धन्यवाद कीजिए कि उसने हमको,आपको देने वालों की श्रेणी में रखा है, अतः जितना हो सके जरूरतमंदों की मदद करें...
मानवता से बड़ा कोई धर्म नहीं है...!! नरसेवा। नारायण सेवा।।
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