शनिवार, 3 दिसंबर 2022

जानकारी काल दिसम्बर 2022

 हिंदी मासिक 

जानकारी काल 

   वर्ष-23,        jaankaarikaal.com    अंक-07,  दिसम्बर-2022,   पृष्ठ 54,    मूल्य 2-50    

 


अटल बिहारी वाजपेयी  25 दिसंबर 1924 को ग्वालियर में जन्मे व तीन बार देश के प्रधानमंत्री की कुर्सी संभाली। वाजपेयी जी को सन् 2015 में देश के सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया था। राजनेता,एक कोमल हृदय कवि,बहादुर सेनानी व राट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक भी थे। 

जूझने का मेरा इरादा न था, मोड़ पर मिलेंगे इसका वादा न था |

रास्ता रोक कर वह खड़ी हो गई, यों लगा ज़िंदगी से बड़ी हो गई |

मौत की उमर क्या है? दो पल भी नहीं, ज़िंदगी-सिलसिला, आज-कल की नहीं |

मैं जी भर जिया, मैं मन से मरूँ, लौटकर आऊँगा, कूच से क्यों डरूँ?




संरक्षक

 श्रीमान कुलवीर शर्मा

कमहामंत्री समर्थ शिक्षा समिति

डॉ वी  एस नेगी

प्रोफेसर भगत सिंह कॉलेज सांध्य


 प्रधान संपादक व  प्रकाशक

 सतीश शर्मा 


 

 कार्यालय

 ए 214 बुध नगर इंद्रपुरी

 नई दिल्ली 110012


 मोबाइल

  9312002527


 संपादक मंडल

 सौरभ  शर्मा,कपिल शर्मा,

गौरव शर्मा,डॉ अजय प्रताप सिंह, करुणा ऋषि, डॉ मधु वैध, भूप  सिंह यादव, ऋतु सिंह, राजेश शुक्ल  


प्रकाशक व मुद्रक सतीश शर्मा के लिय ग्लैक्सी प्रिंटर-106 F,

कृणा नगर नई दिल्ली 110029, A- 214 बुध नगर इन्दर पूरी नई दिल्ली  110012 से प्रकाशित |


सभी लेखों पर संपादक की सहमति आवश्यक नहीं है पत्रिका में किसी भी लेख में आपत्ति होने पर उसके विरुद्ध कार्रवाई केवल दिल्ली कोर्ट में ही होगी

 

R N I N0-68540/98

Jaankaarikaal.com


sumansangam.com

        अनुक्रमणिका

सम्पादकीय   - 3   

वास्तविक उन्नति भगवान कृष्ण को जानना - 4 लेख

आत्म मंथन करे - 7 लेख  

भविष्य का भारत  - 9 प्रतिवेदन  

भारत का उन्नत धातु शास्त्र  -13 लेख  

दिसम्बर मास के महत्वपूर्ण दिवस व महापुरुष के जन्म दिन - 21

किस्मत  - 27  कहानी 

विश्वास से बढ़ी कोई चीज नहीं - 23 कहानी 

ब्रज की भूमि - 24 कहानी 

माता ने बुलाया - 25 यात्रा प्रसंग 

उज्जैन के राजा भर्तृहरि - 27 कथा 

जीवन की बारीक़ समझ - 29 कहानी 

मिथ्या प्रेम - 30 कहानी 

अनुकरण अच्छा अन्धानुकरण अच्छा नहीं - 31 लेख      

मासिक पंचांग,पंचक विचार,भद्रा विचार,दिसम्बर मास के व्रत,

सर्वार्थ सिद्ध योग,मूल विचार - 32   ज्योतिष

मोक्षदा एकादशी  - 36 कथा    

सफला एकादशी  - 37 कथा  

कन्या राशी  - 38  ज्योतिष 

पन्ना रत्न  - 39  लेख 

बुध ग्रह   - 40  ज्योतिष 

मंडूकासन  - 41  योग 

साधक की कसोटी   - ४२ कहानी 

मेरी का उपहार   - 43 कहानी  

फुट विनाश का कारण   - 44  कहानी  

अंध विश्वास की जड - 45 लेख  

दो पत्थर  - 46 कहानी 

पिता का आशीर्वाद - 47 कहानी 

घर की बहू  - 50 कहानी 

मुली के कोफ्ते  - 52  पकवान  

अहसास  -53  कहानी 




सम्पादकीय 

 पृथिव्यां त्रीणि रत्नानि जलमन्नं सुभाषितम् | 

मूढै: पाषाणखण्डेषु रत्नसंज्ञा प्रदीयते ||

पृथ्वी पर तीन रत्न हैं: जल, अन्न और कहावत। लेकिन मूर्ख लोग चट्टानों के टुकड़ों को रत्न मानते हैं।

प्रकृति का वह अनिवार्य नियम है, कि जिसको आप जैसा समझते हैं कि वह आपको वैसा ही समझता है, भले ही आप उसे न जानते हों या आपको जानकर आश्चर्य और क्रोध आता हो। जिसको आप छोटा समझते हैं, वह आपको वैसा ही समझता है। नागरिक कर्तव्यों और अधिकारों का ज्ञान अस्पृश्यता रूपी कलंक हम में से निकाल देगा  और सच्चा भ्रातृ-भाव हमारे बीच में वही भाव भर जाएगा,वह हमको बतलायेगा कि जो बात अपने को बुरी लगती है,वही बात दूसरे को बुरी लगती है। जैसा व्यवहार हम दूसरों से चाहते हैं, वैसा ही व्यवहार हम दूसरों से करें,सब चीजें चाहती हैं कि हमारे साथ भी अच्छा व्यवहार किया जाय, चाहे वे जड़ हों या चेतन। दुर्व्यवहार करने पर सभी वस्तुएं अपना बदला लेती है। यदि भाई, नौकर, पड़ौसी, आदि चेतन जीवों से आप दुर्व्यवहार करते हैं तो अपना बदला लेते ही हैं। अचेत वस्तुएं भी ऐसा ही करती हैं। जूते के साथ दुर्व्यवहार कीजिएगा, उसे साफ नहीं रखिएगा तो वह काठ लेगा। छाते की फिक्र न कीजिएगा, उससे लापरवाही से पेश आइये, तो समय पर आप उसकी कमानी टूटी और कपड़ा कटा अर्थात् उसे बेकार पाइयेगा। यदि सुई की फिक्र न रखिएगा, तो किसी वक्त वह आपके शरीर में चुभ कर अपने अस्तित्व का भान  आपको करा देगी। कार्यकुशल पुरुष सबके साथ सदा अच्छा और उचित व्यवहार करता है। इस कारण वह अपनी सब वस्तुएं, सब समय ठीक प्रकार से ठीक स्थान पर पाता है और सब चीजें उसकी सेवा करती हैं। उसका घर गन्दा नहीं रहता। उसके कपड़े मैले नहीं रहते। वह सदा चिड़चिड़ाया हुआ, घबराया हुआ, दूसरों पर अपना दोष लगाता हुआ, परेशान नहीं पाया जाता। उसका शरीर, उसकी आत्मा, उसका मस्तिष्क, सब स्वास्थ्य, स्थिर और प्रसन्न रहते हैं। अपने नागरिक कर्तव्यों को न पालन कर हम देश की उन्नति में बाधा डाल रहे हैं। इसका प्रभाव हमारे आपस के प्रतिदिन के सम्बन्ध पर भी पड़ा है। जब हम मोची, दर्जी, धोबी आदि को कोई काम देते हैं तो हमें यह विश्वास नहीं रहता कि हम समय से काम कर देगा, न उसे विश्वास रहता है कि इस समय पर उसे दाम देंगे। इसी कारण परस्पर तकाजे पर तकाजा करते रहना पड़ता है। ऐसी दशा में समाज कैसे ठीक-ठीक चल सकता है? हालत यहाँ तक पहुँची है, कि यदि आप किसी को भोजन का निमन्त्रण दें और उन्होंने उसे स्वीकार भी कर लिया हो तो न आपको यह विश्वास रहता है कि वे आ जावेंगे तो भोजन मिल भी जायगा।







वास्तविक उन्नति भगवान (कृष्ण) को जानना है

वास्तव में भगवान का, ईश्वर का, कोई नाम नहीं है| यह कहने का मेरा अभिप्राय यह है कि कोई नहीं जानता कि उनके कितने नाम हैं| ईश्वर अनंत है,अतः उनके नाम भी अनंत होने चाहिए| उदाहरणार्थ श्री कृष्ण को कभी-कभी यशोदा नंदन, देवकीनंदन, वसुदेवनंदन या नंदनंदन, गोविंद, गोपाल, पार्थसारथी, नटवरनागर, गोविंदवल्लभ,राधेश्याम,राधे रसिकबिहारी,बांकेबिहारी आदि आदि कहा जाता है|

ईश्वर अपने अनेक भक्तों के साथ अनेकानेक प्रकार का व्यवहार करते हैं और उन व्यवहारों के अनुसार भी भगवान का एक विशेष नाम हो जाता है| भगवान के असंख्य भक्त हैं और उन भक्तों के साथ उनके असंख्य संबंध हैं अतएव उनके असंख्य नाम हैं| कृष्ण हिंदुओं के भगवान का नाम है| कुछ लोग यह भी सोच सकते हैं कि 'कृष्ण' नाम सांप्रदायिक है | परंतु वास्तविकता तो यही है कि यदि भगवान का कोई नाम हो सकता है तो वह 'कृष्ण' ही है| 'कृष्ण' नाम का अर्थ है सर्व-आकर्षक| भगवान सभी को आकर्षित करते हैं यही भगवान की परिभाषा है| हमने श्रीकृष्ण को अनेकानेक चित्रों के दर्शन किए हैं और उनमें देखा है कि वे वृंदावन में गाय, बछड़े, पशु,पक्षी, वृक्ष पौधे तथा यहाँ तक कि जल को भी आकर्षित करते हैं| गोप-बालक, गोपियाँ,नंद महाराज, पांडव व समस्त मानव समाज भी कृष्ण के प्रति आकर्षित हैं| इसलिए भगवान को कोई विशिष्ट नाम दिया जा सकता है तो वह नाम है 'कृष्ण'| समग्र वैदिक साहित्य के रचयिता श्री व्यास देव जी के पिता महर्षि पराशर के अनुसार भगवान की परिभाषा है, `पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान´ उन्हें कहा जाता है जो 6 `ऐश्वरयों ´ से परिपूर्ण हैं- जिनके पास पूर्ण बल, यश,धन, ज्ञान, सौंदर्य व वैराग्य है| पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान सभी प्रकार की संपत्ति के स्वामी हैं| इस संसार में अनेक धनवान व्यक्ति हैं परंतु उनमें से कोई भी यह दावा नहीं कर सकता कि उसके पास धन का समस्त भंडार है| न ही कोई यह दावा कर सकता है कि उनसे बढ़कर कोई धनवान नहीं है| श्रीमद्भागवतम से, हम यह समझते हैं कि जब श्रीकृष्ण इस धरती पर उपस्थित थे तो उनकी 16108 पत्नियाँ थीं और सभी रानियों के लिए अलग-अलग संगमरमर से बने व रत्नों से जड़े हुए राजमहल थे जिनमें वे निवास करती थीं| कमरों में हाथी दांत और सोने से बना फर्नीचर था और अतुल वैभव स्थान-स्थान पर बिखरा पड़ा था| मानव समाज में इसके जैसा उदाहरण कहीं नहीं है| भगवान श्रीकृष्ण अपने स्वरूप का भी विस्तार कर 16108 रानियों से व्यक्तिगत रूप से अलग-अलग उनके निवास पर उनके साथ समय बिताते थे| इस प्रकार श्रीकृष्ण जो अनंत रूपों में विस्तार करने में सक्षम हैं| भगवान 'सर्वशक्तिमान 'हैं | वह 16108 ही नहीं 16 करोड़ 60 लाख पत्नियों का भी निर्वाह कर सकते हैं फिर भी उनको कोई कठिनाई नहीं हो सकती,

अन्यथा `सर्वशक्तिमान´शब्द का कोई अर्थ ही नहीं रह जाता| यह सभी बातें श्री कृष्ण भगवान के प्रति आकर्षण उत्पन्न करने वाली हैं|

इसी प्रकार भगवान श्री कृष्ण का बल असीम है| उनमें जन्म के समय से ही बल विद्यमान था| जब वे केवल 3 माह के थे  तो सातों पूतना नामक राक्षसी का वध किया| भगवान आरंभ से ही भगवान है| वह किसी ध्यान या यौगिक बल के द्वारा भगवान नहीं बनते| अपने प्राकट्य के साथ ही श्रीकृष्ण भगवान थे|

भगवान श्रीकृष्ण का यश भी असीम है| उनका यशगान विश्व के सभी देशों में दार्शनिक, मनोवैज्ञानिक और धार्मिक लोगों के द्वारा भगवतगीता तथा श्रीमद्भागवतम का अध्ययन करके किया जाता है| भगवतगीता के अनेकानेक संस्करण छपते हैं और विक्रय होते हैं| श्रीमदभगवतगीता का यश श्रीकृष्ण का ही यश है|

सौंदर्य,एक अन्य ऐशश्वर्य है जो श्री कृष्ण में अतुलनीय हैं| श्रीकृष्ण ने स्वयं तो अत्यंत सुंदर हैं ही उनके पार्षद-गण भी उतने ही सुंदर हैं| अमेरिका,इंग्लैंड के लोग कितने गौरवर्ण और सुंदर हैं| संपूर्ण विश्व के लोग उनके प्रति आकर्षित हैं क्योंकि वे वैज्ञानिक ज्ञान, धन-संपत्ति और सुंदरता इत्यादि में उन्नत हैं| इस ब्रह्मांड में पृथ्वी एक नगन्य लोक है फिर भी इस लोक के एक देश अमेरिका के पास अनेकानेक आकर्षक वस्तुयें हैं| श्रीकृष्ण भगवान स्वयं कितने सुंदर और आकर्षक होंगे जो इस समस्त व्यक्त और अव्यक्त सृष्टि के रचयिता हैं, जिन्होंने इस समस्त सौंदर्य की सृष्टि की है|

सुंदरता के कारण ही नहीं वरन अपने ज्ञान के कारण भी एक व्यक्तिआकर्षण का केंद्र होता है| एक वैज्ञानिक अथवा दार्शनिक भले ही अपने ज्ञान के कारण आकर्षक लगे, परंतु श्रीमद्भागवतगीता में भगवान श्रीकृष्ण के द्वारा दिए गए ज्ञान से श्रेष्ठ कौन सा ज्ञान है? इसकी संपूर्ण जगत में कोई तुलना नहीं है|

 इन सब ऐश्वर्यों के साथ ही साथ श्रीकृष्ण पूर्ण वैराग्य से भी युक्त हैं| इस भौतिक जगत में कृष्ण के निर्देशन में कितने ही कार्य हो रहे हैं किंतु श्रीकृष्ण वास्तव में यहां उपस्थित नहीं है| इस प्रकार स्वयं श्रीकृष्ण इस भौतिक जगत से अलग रहते हैं फिर सृष्टि का कार्य नियमित सुचारू रूप से चलता है| वह इसमें लिप्त नहीं बल्कि इसमें इन से परे वैराग्य से ही रहते हैं| इसलिए भगवान के कार्यों के अनुसार उनके अनेकानेक नाम है परंतु उनके इतने असीम ऐश्वर्य हैं और इन इन ऐश्वार्यों के द्वारा ही भगवान सभी को आकर्षित करते हैं, अतः उनको `कृष्ण´ कहा जाता है| वैदिक साहित्य स्वीकार करता है कि भगवान के अनेक नाम हैं,परंतु `कृष्ण´नाम प्रधान है| श्री भगवान का नाम,यश, लीला, सौंदर्य एवं उनके प्रेम का प्रसार करना ही जीवन का ध्येय होना चाहिए| मानव समाज को पूर्ण ज्ञान प्रदान करना ही कृष्ण भक्त के जीवन का परम लक्ष्य होता है| भगवान के साथ दिव्य प्रेमा भक्ति का संबंध बनाकर उनकी सेवा में निमग्न होना व जाना ही आध्यात्मिक उन्नति है|

अतः भगवान श्रीकृष्ण को समझना एक कठिन विषय है, फिर भी भगवान भगवतगीता में स्वयं को समझाते हैं| हम सभी को इसका अध्ययन भक्ति भाव से नित्य प्रति करना चाहिए तभी भगवान को समझना अत्यंत सरल व सहज हो जायेगा| अपनी आध्यात्मिक उन्नति का वास्तविक लक्ष्य भगवान के साथ मधुर संबंध स्थापित करना ही होना चाहिए| हमारा थोड़ा सा प्रयास प्रभु की कृपा का पात्र बना देता है| गीता में भगवान स्वयं अपना ज्ञान देते हैं तब वह विषय वस्तु कठिन नहीं रहती| भगवान असीम हैं और हम सीमित हैं| हमारा ज्ञान तथा इंद्रिय प्रतीति दोनों ही अत्यधिक सीमित है तब हम असीम को कैसे समझ सकते हैं? तो यदि हम असीमित के द्वारा दी गई व्याख्या को केवल स्वीकार कर ले तो हम उनको समझ सकते हैं| उस ज्ञान को समझ लेना ही हमारी पूर्णता है|भगवान ने गीता में कहा है कि "हजारों मनुष्यों में से कोई एक पूर्णता के लिए प्रयत्न करता है और उन प्रयत्न करने वाले सिद्ध पुरुषों में से भी कोई दुर्लभ मनुष्य ही मुझे तत्व से जानता है|"

भगवान को जानने के लिए मन में दृढ़ता और विश्वास होना जरूरी है| संशयात्मक बुद्धि से आप समझ भी नहीं पायेंगे| एकनिष्ठ होकर ही भगवान का ज्ञान समझें | यदि एक बालक यह जानना चाहता है कि उसका पिता कौन है तो साधारण सी विधि है कि वह अपने माँ से पूछे तब माँ कहेगी, "यह तुम्हारे पिताजी हैं|" पूर्ण ज्ञान प्राप्त करने का यही मार्ग है| वास्तविक उन्नति का अर्थ है भगवान को जानना| यदि हमारे पास भगवान के ज्ञान का अभाव है तब हम वास्तव में उन्नत नहीं है| भगवान और उनका प्रशासन विद्यमान है| उनकी आज्ञा से ही सूर्य व चंद्रमा उदित हो रहे हैं,जल में प्रवाह है एवं सागर में तरंगें उठती हैं| सभी कार्य इतने सुंदर ढंग से हो रहे हैं कि वास्तव में विवेकी व्यक्ति ही पूर्णतः सिद्ध कर पाता है और भगवान के अस्तित्व को समझ पाता है| अविवेकी और नास्तिक जन ही भगवान को नकारते हैं| भगवान के भक्त और आस्तिक प्रवृत्ति वाले लोग सुदृढ़ विश्वास रखते हैं कि भगवान हैं और वे भगवान श्रीकृष्ण हैं| अतएव भगवान के भक्त दिन-रात प्रेमभाव से उनकी अर्चना कर इस जीवन की वास्तविक उन्नति में रत रहते हैं|                        ~करुणा ऋषि

आत्म मंथन करे



वैयक्तिक दोष-दुर्गुण की कँटीली झाड़ियाँ प्रगति के पथ को अवरुद्ध और दुरूह बनाती है । यह दुर्गुण और कुछ नहीं, उन विचारों के प्रतीक प्रतिनिधि हैं,जिन्हें बहुत समय से, ज्ञात या अविज्ञात रूप से मन:क्षेत्र में संजोए जमाए रखा गया है । सर्प के काटने पर उसका विष एक बूँद ही रक्त में प्रवेश करता है, पर वह कुछ ही देर  में  समस्त शरीर  में फैल जाता है और अपना असर दिखाता है । कुविचार सर्प-दंश की तरह हैं, वे ही अपना विस्तार करके दोष-दुर्गुणों के रूप में फैल जाते हैं ।

कचरे के ढेर को हम घर में कितने समय तक रख सकते हैं कुछ समय की अवधि के बाद तो दुर्गंध फैलेगी ही ना ? कहने की आवश्यकता नहीं कि "आंतरिक शत्रु- मनोविकार" बाहर के शस्त्र धारी शत्रुओं की अपेक्षा हजार गुने अधिक बलिष्ठ और घातक होते हैं ।

क्षतिग्रस्त दुर्बल और मरणासन्न शरीर वस्तुतः उस रोग के विषाणुओं का ही खाया होता है । घुन का कीड़ा चुपचाप लगा रहता है और विशाल शहतीर को खोखला कर देता है  । "कुविचार" विषाणुओं से अधिक घातक और घुन से अधिक अदृश्य होते हैं । वे भीतर जमकर बैठ जाते हैं और गुण, कर्म, स्वभाव की सारी संपदा को खोखली और विषाक्त बना देते हैं ।

हमें अगर जीवन को सही दिशा में लेकर जाना है इस पर हमें ध्यान देना ही होगा !

और हमें अपनी मनोदशा को सुधारना ही पड़ेगा!

ओछे स्वभाव के, आदर्श रहित और लक्ष्य विहीन व्यक्ति जीवन की लाश ढोते रहते हैं । उनके मनोरथ सफल हो नहीं सकते क्योंकि प्रगति के लिए, प्रखर व्यक्तित्व की आवश्यकता है ।

 "सफल" जीवन जीने  की आकांक्षा यदि साकार करनी हो तो पहला कदम "आत्मनिरीक्षण" का उठाया जाना चाहिए । अपने विचारों, मान्यताओं और अभिमान की समीक्षा करनी चाहिए और उनमें जितने भी अवांछनीय तत्त्व हों उनका उन्मूलन करने के लिए संकल्प पूर्वक जुट जाना चाहिए । "संकल्प शक्ति" की साधना और "आत्मनिरीक्षण" से व्यक्तित्व को इच्छित ऊँचाई पर पहुँचाया जा सकता है !

 देश में जितने भी विद्वान हुए हैं सबने जीवन में कठिन परीक्षाएं दी है और किसी ना किसी परेशानी से जीवन में गुजरे हैं जीवन में आने वाली परेशानी का मतलब यह नहीं कि हम हिम्मत हार जाएं और मन में बैठे हुए विषाक्त कीड़े की वजह से अपने आप को भस्म कर ले!

 हमको चाहिए कि किसी भी आदर्श पुरुष के जीवन से कुछ सीखे और जीवन में आगे बढ़े !

जीवन में तप करते हुए तपस्या करते हुए अपने और अपने परिवार को आगे बढ़ाते हुए अपने समाज को आगे बढ़ाते हुए सार्थक जीवन जिए,

यही हमारे जीवन की उपलब्धता होगी और इस पृथ्वी पर आने का उद्देश्य पूर्ण होगा -अरविन्द भारद्वाज

खुदीराम बोस 

खुदीराम बोस भारतीय स्वाधीनता के लिये मात्र 18 साल की उम्र में  स्वतन्त्रता संग्राम भाग ले कर देश को आज़ाद करने के लिए फाँसी पर चढ़ गये। खुदीराम बोस देश के लिये फाँसी पर चढ़ने वाले सबसे कम उम्र के ज्वलन्त तथा युवा क्रान्तिकारी देशभक्त थे।पश्चिमी बंगाल के मिदनापुर जिले के बहुबनी निवासी त्रिलोकीनाथ बसु व माता लक्ष्मी प्रिया खुदीराम बोस के माता पिता थे |  30 अप्रैल 1908 को मुजफ्फरपुर क्लब के सामने बम विस्फोट किया था। दमनकारी जज किंग्सफोर्ड को मौत की घाट उतारने के लिए किया गया था |


भविष्य का भारत

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक एवं प्रज्ञा प्रवाह के अखिल भारतीय संयोजक जे नंद कुमार जी ने कहा कि भविष्य के भारत का निर्माण भारत के स्वत्व और भारतीयता के आधार पर ही होगा। उन्होने कहा कि सिनेमा कला के साथ साथ माध्य़म भी है। यह केवल मोद के लिए ही नहीं अपितु बोध के लिए भी है। उन्होंने कहा कि किसी भी राष्ट्र का उत्थान उसकी संस्कृति पंरपरा और स्वत्व के आधार पर ही होता है। साम्यवाद और पूंजीबाद की असफलता ने विश्व को यह बता दिया है कि किसी एक वैश्विक सिद्धान्त के आधार पर सार्वभौमिक विकास नहीं किया जा सकता है।भविष्य का भारत, प्रेरणा विमर्श -2022, समापन समारोह पर बोलते हुए उक्त विचार रखे | इस अवसर पर मुख्य अतिथि उत्तर प्रदेश विधान परिषद के सभापति कुंवर मानवेंद्र सिंह ने कहा लोकतंत्र की रक्षा आंतरिक सुरक्षा और समाज में जन जागृति का महत्वपूर्ण उत्तरदायित्व मीडिया का होता है। भारत सरकार के डिजिटल क्रांति से नव भारत निर्माण का मार्ग प्रशस्त हो रहा है। इस अवसर पर सुदर्शन टीवी के प्रधान संपादक सुरेश च्वहाण के ने कहा कि आज का युग इन्फॉरमेशन वार का युग है। आने वाला युग सूचनाओं के आधार पर ही लड़ा जायेगा। इस युग हिन्दू राष्ट्रवादी लोगों का सक्रिय रहना अनिवार्य है। भारतीय चित्र साधना के सचिव अतुल गंगवार ने कहा नवोदित फिल्मकारों को भारत के स्वत्व को काम करने हेतु प्रेरित किया जा रहा है। इस अवसर पर विमर्श में आयोजित लघु फिल्मोत्सव के प्रतिभागियों एबं नवोदित पत्रकारों को भी पुरस्कार देकर सम्मानित किया गया। इस अवसर पर केशव संवाद पत्रिका के अंक भविष्य के भारत का विमोचन भी किया गया। इस दौरान अनेक गणमान्य लोग उपस्थित रहे।

समापन समारोह से पूर्व आज फिल्म विमर्श और मास्टर क्लास का सत्र भी था। प्रथम सत्र में फिल्म विमर्श एवं मास्टर क्लास में फिल्म जगत की जानी मानी हस्तियों ने भाग लिया और नवोदित फिल्मकारों को कामयाबी के कई टिप्स दिए।   प्रख्यात भरतनाट्यम कलाकार श्रीमती राजभर ने एक भजन प्रस्तुत किया और भजन के पात्रों को नृत्य मुद्राओं के द्वारा प्रदर्शित किया। चित्र भारतीय चित्र साधना के राष्ट्रिय सचीव अतुल गंगवार ने कहा, सिनेमा भारतीय जीवन का अभिन्न अंग है। जैसे-जैसे समय और समाज बदला वैसे वैसे फिल्मों का दौर भी बदलता गया। यह सिर्फ मनोरंजन का साधन नहीं रहा बल्कि लोगों को जगाने और आदर्श को प्रस्तुत करने के लिए भी फिल्में बनाई जाती है। सिनेमा में समाज को बदलने की ताकत है। 

छात्रों को संबोधित करते हुए प्रसिद्ध स्क्रीप्ट लेखक मधुकर पांडेय ने कहा कि स्क्रीप्ट के हिसाब से रामचरित मानस सबसे बड़ी स्क्रीप्ट है। उसमें मानव जीवन के सभी भावों और सम्बधों का बड़े रोचक रूप में उल्लेख किया गया है। एक स्क्रीप्ट लेखक को रामचरित मानसे से अवश्य सीखना चाहिए।

इस दौरान उन्होंने स्क्रीप्ट लेखन के विविध आयामों पर विस्तार से चर्चा की। 

फिल्म निर्देशक नारायण सिंह चौहान ने कार्यक्रम को संबोधित करते हुए फिल्मों के बजट के बारे में बताया और कहा कि बड़े बजट की फिल्मों से घबराने की जरूरत नहीं है। फिल्में छोटे बजट में भी बन सकती है। फिल्मों के लिए हमेशा बड़े और महंगे स्टार की जरूरत नहीं है।

 इस दौरान छात्रों को संबोधित करते हुए फिल्म निर्देशक और अभिनेता रतन सिंह राठौर ने कहा कि फिल्म बनाने से पहले आप स्वयं पढिए, तभी आप फिल्म के क्षेत्र में सफल होंगे। इस दौरान उन्होंने एक कामयाब अभिनेता के कई गुण बताए। फिल्म विमर्श एवं मास्टर क्लास में फिल्म जगत की जानी मानी हस्तियों ने भाग लिया और नवोदित फिल्मकारों को कामयाबी के कई टिप्स दिए।   प्रख्यात भरतनाट्यम कलाकार श्रीमती राजभर ने एक भजन प्रस्तुत किया और भजन के पात्रों को नृत्य मुद्राओं के द्वारा प्रदर्शित किया। चित्र भारतीय चित्र साधना के राष्ट्रिय सचीव अतुल गंगवार ने कहा, सिनेमा भारतीय जीवन का अभिन्न अंग है। जैसे-जैसे समय और समाज बदला वैसे वैसे फिल्मों का दौर भी बदलता गया। यह सिर्फ मनोरंजन का साधन नहीं रहा बल्कि लोगों को जगाने और आदर्श को प्रस्तुत करने के लिए भी फिल्में बनाई जाती है। सिनेमा में समाज को बदलने की ताकत है।छात्रों को संबोधित करते हुए प्रसिद्ध स्क्रीप्ट लेखक मधुकर पांडेय ने कहा कि स्क्रीप्ट के हिसाब से रामचरित मानस सबसे बड़ी स्क्रीप्ट है। उसमें मानव जीवन के सभी भावों और सम्बधों का बड़े रोचक रूप में उल्लेख किया गया है। एक स्क्रीप्ट लेखक को रामचरित मानसे से अवश्य सीखना चाहिए। इस दौरान उन्होंने स्क्रीप्ट लेखन के विविध आयामों पर विस्तार से चर्चा की। फिल्म निर्देशक नारायण सिंह चौहान ने कार्यक्रम को संबोधित करते हुए फिल्मों के बजट के बारे में बताया और कहा कि बड़े बजट की फिल्मों से घबराने की जरूरत नहीं है। फिल्में छोटे बजट में भी बन सकती है। फिल्मों के लिए हमेशा बड़े और महंगे स्टार की जरूरत नहीं है।

 इस दौरान छात्रों को संबोधित करते हुए फिल्म निर्देशक और अभिनेता रतन सिंह राठौर ने कहा कि फिल्म बनाने से पहले आप स्वयं पढिए, तभी आप फिल्म के क्षेत्र में सफल होंगे। इस दौरान उन्होंने एक कामयाब अभिनेता के कई गुण बताए।

सोशल मीडिया पर कार्यशाला 

सोशल मीडिया जनमानस की शक्ति विषय पर विमर्श हुआ। कार्यशाला के इस सत्र में मुख्य अतिथि के रूप में श्रीमती मोनिका लंगेह जी, उपस्थित रही। इस दौरान उन्होंने कहा कि जैसे-जैसे सोशल मीडिया का विस्तार होगा, टेक्नोलॉजी का विस्तार होगा यह उतना ही प्रभावकारी होता जाएगा। एक समय था जब मुगल शासकों को ग्लोरीफाई किया जाता रहा लेकिन आज आप सोशल मीडिया के माध्यम से उस नैरेटिव खत्म कर रहे हैं और भारतीय सांस्कृतिक परिचर्चाएं  सामने आने लगी हैं। सोशल मीडिया जब फेक नैरेटिव फैलाता है तो आप उसकी काट कैसे करेंगे इसको बताने के लिए उन्होंने जम्मू कश्मीर का उदाहरण देते हुए कहा कि पहले नैरेटिव फैलाया जाता था कि जम्मू कश्मीर के लोग भारत से लोग खुश नहीं हैं, वे भारत में नहीं रहना चाहते हैं। उस दौरान सोशल मीडिया के माध्यम से हमने एक सकारात्मक नैरेटिव फैलाना शुरू किया कि जम्मू कश्मीर के लोग भी भारतीय हैं। उन्हें भारत के साथ रहने में खुशी है। इसको पूरे देश से समर्थन मिलने लगा। आज इन्हीं सोशल मीडिया नैरेटिव की वजह से आज हम प्रेरणा विमर्श के इस मंच पर हैं। आम लोगों को सोशल मीडिया के रूप में एक मंच मिला जहां वे अपनी टैलेंट को रख सकते हैं। इस प्रकार सोशल मीडिया के नकारात्मक नैरेटिव से दूर रहकर कैसे एक सकारात्मक नैरेटिव बना सकते हैं ये आप पर निर्भर करता है।

मुख्य वक्ता के रूप में श्री उमेश उपाध्याय जी उपस्थित रहे। इस दौरान उन्हेंने सत्र को संबोधित करते हुए कहा कि हमारा दैनिक जीवन अब सोशल मीडिया से संचालित होता है। सोशल मीडिया के महत्व को बताते हुए उन्होंने कहा कि सोशल मीडिया ने आज जीवन को सरल बना दिया है। सोशल मीडिया का इस्तेमाल कैसे करते है। कहां करते हैं कैसे करते हैं। ये विमर्श का विषय है। हमारा जीवन कहानियों से शुरू होता है। कहानियों से हम आदर्श चुनते हैं कहानियों से हम विलेन चुनते हैं। इस प्रकार जीवन में एक नैरेटिव बनाया जाता है। नैरेटिव कैसे बनता है इसको बताने के लिए राम मन्दिर का उदाहरण दिया और कहा कि इस मन्दिर के लिए हमने पाच सौ सालों से अधिक का संघर्ष किया। इस दौरान अलग अलग दलों की सरकारें रही। हम अलग अलग जातियों के आधार पर अवश्य लड़ते रहे, लेकिन रामलला के नाम पर हम एकजुट रहे। एक लम्बे समय तक पीढ़ी दर पीढ़ी ये नैरेटिव बनता रहा कि अयोध्या में राम लला जी है। ये है सोशल मीडिया। आज का जो सोशल मीडिया कम्पनी है वह एक प्रोफिट कमाने वाली कंपनी हैं। कंपनियां ही तय करती हैं कि किसकों ब्लू टिक मिलेगा किसको नहीं मिलेगा। कौन सही है कौन गलत है। दीपावली पर पटाखे जलेंगे या नहीं ये भी अब वहीं से तय होते हैं। लेकिन अब भारत की कहानी, भारत के डिजिटल सोशल कर्मवीरों के माध्यम से कही जाएगी। हमें भारत का नैरेटिव स्थापित करना होगा। ये प्रत्येक भारतीय का कर्तव्य है। सत्र में विशेष अतिथि के रूप में अनिता जोशी जी उपस्थित रही। विमर्श के दूसरे सत्र में नव भारत निर्माण में सोशल मीडिया की भूमिका विषय पर विमर्श हुआ। सत्र में मुख्य वक्ता के रूप में श्री अंशुल सक्सेना जी उपस्थित रहे। इस दौरान उन्होंने अपने वक्तव्य में कहा कि एक समय था जब मीडिया जो दिखाता था लोग वही देखते थे वही मानने को बाध्य भी थे लेकिन अब ऐसा नहीं है। सोशल मीडिया के आने के बाद मीडिया के इस मनमानी पर अब ब्रेक लग गया है। उन्होंने बताया कि कैसे किसान आन्दोलन और शाहीन बाग के दौरान इंस्टाग्राम पर युवाओं को टारगेट करके योजना बनायी जाती थी। कैसे यूवाओं को को अपने ही संस्कृति से दूर करने के लिए सोशल मीडिया पर नवरात्री में लिखा जाता है कि जिस देश में हर रोज रेप होता है उस वहां नवरात्री में देवी की पूजा करने का क्या औचित्य है। ये वह नैरेटिव है जिसके माध्यम से युवाओं को अपने संस्कृति से दूर करने का षडयंत्र किया जाता है। मुख्य अतिथि के रूप में सोनाली मिश्रा जी उपस्थित रही। सत्र को संबोधित करते हुए उन्होंने बताया कि अपने शोध के दौरान उन्होंने जाना कि कैसे हिन्दू महिलाओं और सनातन धर्म संस्कृति के प्रति फेक कंटेट चलाया जाता था। शोध का समय वह समय था जब मुझे अलग दुनिया का एहसास हुआ। वामपंथियों ने पहले मेरी कथा कहानियों को इतना सराहा कि मैं उनके विचारों से प्रभावित हो गई, और वामपंथी साहित्यकार के रूप में पहचान मिलने लगी। बाद के समय में पता चला कि मैं गलत दिशा में चल पड़ी हूं और परिवार तोड़ू गैंग का हिस्सा बन गई हूं। अब मुझे यह अनुभव होने लगा कि ये वामपंथी लोग मुझे अपने ही धर्म और संस्कृति से दूर कर रहे मेरे लेख पहले वामपंथियों के साहित्य से प्रभावित था। लेकिन बाद के समय फेसबुक के आने के बाद मैने अपने लेखनी में काफी बदलाव किए। बहुत समय बाद पता चला कि मैं वामपंथियों के नैरेटिव में फंस गई थी। विमर्श के चौथे दिन के तृतीय सत्र में सोशल मीडिया और भविष्य की चुनौतियां विषय पर विमर्श हुआ। इस दौरान सत्र के मुख्य वक्ता के रूप में श्री चंदन कुमार जी उपस्थित रहे। इस दौरान उन्होंने कहा कि चुनौतियां कभी एक समान नहीं होती है समय समय पर चुनौतियों का प्रकार और स्तर बदलता रहता है।आपको उस चुनौतियां का सामना करने के लिए तैयार रहना होगा। मुख्य अतिथि के रूप में श्री चमन मिश्र जी उपस्थित रहे। सोशल मीडिया ओर भविष्य की चुनौतियां विष्य पर चर्चा करते हुए चमन मिश्र ने कहा कि भविष्य की चुनौतियां नहीं वर्तमान की चुनौतियों पर बात करनी होगी उसे पहचानना होगा।जब तक आप इन चुनौतियों को पहचानेंगे नहीं तब तक आप इन चुनोतियों को सामना कैसे करेंगे। भविष्य की चुनौतियों का सामना कैसे करेंगे। लेफ्ट विंग एक नैरेटिव तैयार करता है फिर हम उस पर विवाद करते हैं उसका जबाब देते हैं जो पूरा सही नहीं है। आपको जबाब देने के साथ ही आपको अपना नैरेटिव भी रखना होगा।

उत्तर प्रदेश राज्य सूचना आयुक्त श्री सुभाष सिंह जी ने कहा कि बदलते समय के साथ आज हम लेफ्ट के पैरलल सिस्टम तैयार कर रहे हैं। हां ये स्वीकार करने में कोई दिक्तक नहीं है कि उसकी रफ्तार धीमी है। नैरेटिव के दौर में भारतीय सनातन संस्कृति इसलिए पीछे छुट गए क्योंकि आरंभिक सभी शिक्षा मंत्री मुस्लिम थे और अंग्रेजी शासन कल्चर में पले बढ़े प्रधानमंत्री। ऐसे हालत में आप उनसे भारतीय समृद्ध इतिहास की उम्मीद नहीं कर  सकते थे। सत्र में विशेष अतिथि के रूप में श्रीमती नीना सिंह जी कि उपस्थित रही। मंच का संचालन श्री अखण्ड प्रताप जी ने किया।

कार्यक्रम का शुभारम्भ 9 नवंबर को भविष्य के भारत विषय पर आयोजित प्रदर्शनी के उद्घाटन के साथ हुआ। वही दस नवंबर को पत्रकारिता के छात्र एवं शिक्षकों के लिए छात्र एवं शिक्षक विर्मश कार्यशाला का आयोजन हुआ।

भारत का उन्नत धातुशास्त्र

– प्रशांत पोळ

हमारे भारत में, जहां-जहां भी प्राचीन सभ्यता के प्रमाण मिले हैं (अर्थात् नालन्दा, हड़प्पा, मोहन जोदड़ो, तक्षशिला, धोलावीरा, सुरकोटड़ा, दायमाबाग, कालीबंगन इत्यादि), इन सभी स्थानों पर खुदाई में प्राप्त लोहा, तांबा, चाँदी, सीसा इत्यादि धातुओं की शुद्धता का प्रतिशत 95% से लेकर 99% है। यह कैसे संभव हुआ? आज से चार, साढ़े चार हजार वर्ष पहले इन धातुओं को इतने शुद्ध स्वरूप में परिष्कृत करने की तकनीक भारतीयों के पास कहाँ से आई?

प्राचीन काल में भारत को ‘सुजलाम सुफलाम’ कहा जाता था। हमारा देश अत्यंत संपन्न था। स्कूलों में पढ़ाया जाता है कि प्राचीन काल में भारत से सोने का धुआं निकलता था। भारत को सोने की चिड़िया कहा जाता था। ज़ाहिर है कि अपने देश में भरपूर सोना था। अनेक विदेशी प्रवासियों ने अपने अनुभवों में लिख रखा है कि विजयनगर साम्राज्य के उत्कर्ष काल में हम्पी के बाज़ार में सोना और चाँदी को सब्जी की तरह आराम से बेचा जाता था।

उससे थोड़ा और पहले के कालखण्ड में हम जाएं तो अलाउद्दीन खिलजी ने जब पहली बार देवगिरी पर आक्रमण किया था, तब पराजित हुए राजा रामदेवराय ने उसे कुछ मन स्वर्ण दिया था। इसका अर्थ यही है कि प्राचीन काल से ही भारत में सोना, चाँदी, ताम्बा, जस्ता इत्यादि धातुओं के बारे में जानकारी तो थी ही, बल्कि उन्हें शुद्ध करने की प्रक्रिया भी संपन्न की जाती थी।

मजे की बात यह कि बहुत से लोगों को पता ही नहीं है कि, विश्व की अत्यंत प्राचीन, और आज की तारीख में भी उपयोग की जाने वाली सोने की खदान भारत में है। सोने की इस खदान का नाम है ‘हट्टी’। कर्नाटक के उत्तर-पूर्व भाग में स्थित यह स्वर्ण खदान रायचूर जिले में है। सन् 1955 में ऑस्ट्रेलिया के डॉक्टर राफ्टर ने इस खदान में मिले लकड़ी के दो टुकड़ों की कार्बन डेटिंग करने से यह पता चला कि यह खदान लगभग दो हजार वर्ष पुरानी है। हालांकि संभावना यह बनती है कि यह खदान इससे भी पुरानी हो सकती है। वर्तमान में आज भी इस खदान से ‘हट्टी गोल्डमाईन्स लिमिटेड’ नामक कम्पनी सोने का खनन करती है।

इस खदान की विशिष्टता यह है कि लगभग दो हजार वर्ष पहले यह खदान 2300 फीट गहराई तक खोदी गई थी। अब सोचिये कि यह उत्खनन कैसे किया गया होगा…? कई विशेषज्ञों का मानना है कि यह खनन कार्य ‘फायर सेटिंग’ पद्धति से किया गया। अर्थात् धरती के अंदर चट्टानों को लकड़ियों में आग लगाकर गर्म किया जाता है, और उस पर अचानक पानी डालकर ठंडा किया जाता है। इससे उस स्थान पर धरती में दरारें पड़ जाती हैं। इस प्रक्रिया से बड़े-बड़े चट्टानी क्षेत्रों में दरारें डालकर उन्हें फोड़ा जाता है। इसी खदान में 650 फीट गहराई वाले स्थान पर एक अत्यंत प्राचीन ऊर्ध्वाधर शाफ्ट मिला है, जो यह दर्शाता है कि धातु खनन के क्षेत्र में भारत का प्राचीन कौशल्य कितना उन्नत था।

परन्तु केवल सोना ही क्यों…? लोहा प्राप्त करने के लिए लगने वाली बड़ी विशाल भट्टियाँ और उनकी तकनीक भी उस कालखण्ड में बड़ी मात्रा में उपलब्ध थीं। इसी लेखमाला में ‘लौहस्तंभ’ नामक लेख में हमने दिल्ली के कुतुबमीनार प्रांगण में खड़े लौह स्तंभ के बारे में चर्चा की है। वह स्तंभ लगभग डेढ़-दो हजार वर्ष पुराना है, परन्तु आज भी उसमें आंधी-बारिश के बावजूद रत्ती भर की जंग भी नहीं लगी है। इक्कीसवीं शताब्दी के वैज्ञानिक भी उस अदभुत लौह स्तम्भ का रहस्य पता नहीं कर पाए हैं और आश्चर्यचकित हैं कि स्वभावतः जिस लोहे में जंग लगती है, तो इस लोह स्तंभ में जंग क्यों नहीं लगती?

इसी लौहस्तंभ के समान ही पूरी तरह ताम्बा धातु से बनी 7 फुट ऊँची एक बुद्ध मूर्ति है। यह मूर्ति चौथी शताब्दी की है और फिलहाल लन्दन के ब्रिटिश संग्रहालय में रखी है। बिहार में खुदाई में प्राप्त इस मूर्ति की विशेषता यही है कि इसका ताम्बा खराब ही नहीं होता, एक समान चमचमाता रहता है।

हाल ही में राकेश तिवारी नामक पुरातत्त्वविद ने गंगा किनारे कुछ उत्खनन किया, जिससे यह जानकारी प्राप्त हुई कि ईसा पूर्व लगभग 2800 वर्ष पहले से ही भारत में परिष्कृत किस्म का लौह तैयार करने की तकनीक और विज्ञान उपलब्ध था। इससे पहले भी उपलब्ध हो सकती है, परन्तु लगभग 4800 वर्ष पहले के प्रमाण तो प्राप्त हो चुके हैं।

इसी प्रकार छत्तीसगढ़ के ‘मल्हार’ में कुछ वर्षों पहले जो उत्खनन हुआ, उसमें अथवा उत्तरप्रदेश के दादूपुर में ‘राजा नाल का टीला’ तथा लहुरादेव नामक स्थान पर किए उत्खनन में ईसा पूर्व 1800 से 1200 वर्ष के लोहा और तांबा से बने अनेक बर्तन एवं वस्तुएँ मिली हैं जो एकदम शुद्ध स्वरूप की धातु है।



ईसा पूर्व तीन सौ वर्ष, लोहा/फौलाद को अत्यंत परिष्कृत स्वरूप में बनाने वाली अनेक भट्टियाँ दक्षिण भारत में मिली हैं। आगे चलकर इन भट्टियों को अंग्रेजों ने क्रूसिबल टेक्नीक (Crucible Technique) नाम दिया। इस पद्धति में शुद्ध स्वरूप में लोहा, कोयला और कांच जैसी सामग्री मूस पात्र में लेकर उस पात्र (बर्तन) को इतना गर्म किया जाता है कि लोहा पिघल जाता है तथा कार्बन को अवशोषित कर लेता है। इसी उच्च कार्बनिक लोहे को अरब लड़ाकों ने ‘फौलाद’ का नाम दिया।

वाग्भट्ट द्वारा लिखित ‘रसरत्न समुच्चय’ नामक ग्रन्थ में धातुकर्म हेतु लगने वाली भिन्न-भिन्न आकार-प्रकार की भट्टियों का वर्णन किया गया है। महागजपुट, गजपुट, वराहपुट, कुक्कुटपुट और कपोतपुट जैसी भट्टियों का वर्णन इसमें है। इन भट्टियों में डाली जाने वाली गोबर के कंडों की संख्या एवं उसी अनुपात में निर्मित होने वाले तापमान का उल्लेख भी इसमें आता है। उदाहरणार्थ, महागजपुट भट्टी के लिए गोबर के 2000 कंडे लगते थे, जबकि कम तापमान पर चलने वाली कपोतपुट भट्टी के लिए केवल आठ कंडों की आवश्यकता होती थी।

आज के आधुनिक फर्नेस वाले जमाने में गोबर पर आधारित भट्टियाँ अत्यधिक पुरानी तकनीक एवं आउटडेटेड कल्पना लगेगी। परन्तु ऐसी ही भट्टियों के माध्यम से उस कालखंड में लौहस्तंभ जैसी अनेकों अदभुत वस्तुएँ तैयार की गईं, जो आज के आधुनिक वैज्ञानिक भी निर्मित नहीं कर पाए हैं।

प्राचीन काल की इन भट्टियों द्वारा उत्पन्न होने वाली उष्णता को मापने का प्रयास आधुनिक काल में हुआ। इन ग्रंथों में लिखे अनुसार ही, वैसी भट्टियाँ तैयार करके, उनसे उत्पन्न होने वाली गर्मी को नापा गया, जो वैसी ही निकली जैसी उस ग्रन्थ में उल्लेख की गई थी। 9000 से अधिक प्रकार की उष्णता के लिए वाग्भट ने मुख्यतः चार प्रकार की भट्टियों का वर्ना किया हुआ है –

१. अंगारकोष्टी २. पातालकोष्टी ३. गोरकोष्टी ४. मूषकोष्टी

इन भट्टियों में से पातालकोष्टी का वर्णन धातुशास्त्र में उपयोग किए जाने वाले आधुनिक ‘पिट फर्नेस’ के समान ही है।

विभिन्न धातुओं को पिघलाने के लिए भारद्वाज मुनि ने ‘बृहद विमानशास्त्र’ नामक ग्रन्थ में 532 प्रकार के लुहारों के औजारों की रचना का वर्णन किया हुआ है। इतिहास में दमिश्क नामक स्थान की तलवारें प्रसिद्ध होती थीं, उनका लोहा भी भारत से ही निर्यात किया जाता था। अनेक विदेशी प्रवासियों ने अपने लेखन में कहा है कि भारत में ही अत्यंत शुद्ध किस्म का तांबा और जस्ता निर्मित किया जाता था।


भारत में बहुत प्राचीन काल से तांबे का उपयोग किया जाता रहा है। भारत में ईसा पूर्व तीन चार सौ वर्ष पहले तांबे का उपयोग किए जाने के प्रमाण मिल चुके हैं। हड़प्पाकालीन तांबे के बर्तन भी मोहन जोदड़ो सहित अनेक स्थानों की खुदाई में प्राप्त हुए हैं। आज पाकिस्तान में स्थित बलूचिस्तान प्रांत में प्राचीनकाल में तांबे की अनेक खदानें थीं, इसका उल्लेख एवं प्रमाण मिले हैं। इसी प्रकार राजस्थान में खेत्री नामक स्थान पर प्राचीन काल में तांबे की अनेक खदानें थीं, इसका भी उल्लेख कई ग्रंथों में मिलता है। अब यह सभी मानते हैं कि विश्व में तांबे का धातुकर्म सर्वप्रथम भारत में ही प्रारंभ हुआ। मेहरगढ़ के उत्खनन में तांबे के 8000 वर्ष पुराने नमूने मिले हैं। उत्खनन में ही अयस्कों से तांबा प्राप्त करने वाली भट्टियों के भी अवशेष मिले हैं तथा फ्लक्स के प्रयोग से लौह को आयरन सिलिकेट के रूप में अलग करने के प्रमाण भी प्राप्त हुए हैं।

जस्ता (जिंक) नामक धातु का शोध भारत में ही किया गया है, यह बात भी हम में से कई लोगों की जानकारी में नहीं है। ईसा पूर्व नौवीं शताब्दी में राजस्थान में जस्ते का उपयोग किए जाने के कई प्रमाण मिल चुके हैं। इससे भी अधिक महत्वपूर्ण बात यह है कि इतिहास में अब तक ज्ञात जस्ते की सर्वाधिक प्राचीन खदान भी भारत के राजस्थान में ही है।

जस्ते की यह प्राचीनतम खदान ‘जावर’ नामक स्थान पर है। उदयपुर से 40 कि.मी. दूर यह खदान आज भी जस्ते का उत्पादन करती है। आजकल ‘हिन्दुस्तान जिंक लिमिटेड’ की ओर से यहाँ पर जस्ते का उत्खनन किया जाता है। ऐसा कहा जाता है कि, ईसा पूर्व छठवीं शताब्दी में भी जावर की यह खदान कार्यरत थी। इस बारे में प्रमाण मिल चुके हैं। हालांकि जस्ता तैयार करने के लिए अत्यंत कुशलता, जटिलता एवं वैज्ञानिक पद्धति आवश्यक है, परन्तु भारतीयों ने जस्ता निर्माण की प्रक्रिया में प्रवीणता एवं कुशलता हासिल कर ली थी। आगे चलकर ‘रस रत्नाकर’ ग्रन्थ लिखने वाले नागार्जुन ने जस्ता बनाने की विधि को विस्तृत स्वरूप में लिखा हुआ है। आसवन (डिस्टिलेशन), द्रावण (लिक्विफिकेशन) इत्यादि विधियों का भी उल्लेख उन्होंने अपने ग्रंथ में किया है।

इन विधियों में खदान से निकले हुए जस्ते के अयस्क को अत्यंत उच्च तापमान (900 डिग्री सेल्सियस से अधिक) पर पहले पिघलाया जाता है (boiling)। इस प्रक्रिया से निकलने वाली भाप का आसवन (डिस्टिलेशन) किया जाता है। उसे ठंडा करते हैं एवं इस प्रक्रिया से सघन स्वरूप में जस्ता (जिंक) तैयार होता है।

यूरोपीय देशों में सन् 1740 तक जस्ता नामक धातु के उत्पादन एवं निर्माण की प्रक्रिया की कतई जानकारी नहीं थी। ब्रिस्टल में व्यापारिक पद्धति से तैयार किए जाने वाले जस्ते की उत्पादन प्रक्रिया बिलकुल भारत की ‘जावर’ प्रक्रिया के समान ही थी। अर्थात् ऐसा कहा जा सकता है कि भारत में उत्पन्न होने वाले जस्ते की प्रक्रिया को देखकर ही यूरोप ने, शताब्दियों के पश्चात उसी पद्धति को अपनाया और जस्ते का उत्पादन आरम्भ किया।

कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि भारत के धातुशास्त्र का विश्व के औद्योगिकीकरण में एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। सन् 1000 के आसपास जब भारत वैश्विक स्तर पर उद्योग जगत का बादशाह था, उस कालखंड में विभिन्न धातुओं से बनी वस्तुओं का निर्यात बड़े पैमाने पर किया जाता था। विशेषकर जस्ता और हाई कार्बन स्टील में तो भारत उस समय पूरे विश्व से मीलों आगे था तथा बाद में भी इस विषय की तकनीक और विज्ञान भारत ने ही दुनिया को दिया।

धातुशास्त्र के वर्तमान विद्यार्थी केवल इतनी सी बात का स्मरण रख सकें तो भी बहुत है…!!


डॉ राजेन्द्र प्रसाद 








दिसंबर मास - 2022 में महत्वपूर्ण दिन 

1 दिसम्बर  – विश्व एड्स दिवस

HIV संक्रमण के कारण होने वाले एड्स के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए हर साल 1 दिसंबर को विश्व एड्स दिवस मनाया जाता है. विश्व एड्स दिवस विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा चलाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण और लोकप्रिय अभियान है. 

2 दिसम्बर – विश्व कंप्यूटर साक्षरता दिवस

विश्व कंप्यूटर साक्षरता दिवस प्रतिवर्ष 2 दिसंबर को मनाया जाता है. इस दिन को मनाने का उद्देश्य वंचित समुदायों में डिजिटल साक्षरता को बढ़ावा देते हुए जागरूकता पैदा करना है. यह महिलाओं, बच्चों और युवा पेशेवरों के बीच तकनीकी कौशल के विकास को बढ़ावा देता है. 

2 दिसम्बर – दासता के उन्मूलन का अंतर्राष्ट्रीय दिवस

दुनिया भर में हर साल 2 दिसंबर को अंतर्राष्ट्रीय दासता उन्मूलन दिवस मनाया जाता है. दासता के उन्मूलन का अर्थ है दासता का कानूनी निषेध, विशेष रूप से यू.एस. में अश्वेत लोगों की संस्थागत दासता. इस दिन को 2021 में “एंडिंग स्लेवरीज लिगेसी ऑफ रेसिज्म: ए ग्लोबल इंपीरेटिव फॉर जस्टिस” थीम के साथ मनाया गया था.

3 दिसम्बर – विकलांग लोगों का अंतर्राष्ट्रीय दिवस

3 दिसंबर को पूरी दुनिया में विकलांग लोगों का अंतर्राष्ट्रीय दिवस मनाया जाता है. विकलांग व्यक्तियों को मजबूत बनाने और जीवन में जो कुछ भी वे चाहते हैं उसे हासिल करने के लिए प्रेरित करने के लिए यह दिन मनाया जाता है. विकलांग व्यक्तियों की सहायता के लिए विश्व स्तर पर कई अभियान भी शुरू किए गए हैं. 2021 में इस दिन को “एक समावेशी, सुलभ और टिकाऊ पोस्ट-सीओवीआईडी ​​-19 दुनिया की ओर विकलांग व्यक्तियों का नेतृत्व और भागीदारी” विषय के साथ मनाया गया था

3 दिसम्बर – विश्व संरक्षण दिवस

विश्व प्रकृति संरक्षण दिवस प्रतिवर्ष 28 जुलाई को विश्व स्तर पर मनाया जाता है. यह दिन मनाया जाता है और इसका उद्देश्य दुनिया को स्वस्थ रखने के लिए पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण की आवश्यकता के बारे में जागरूकता पैदा करना है. विश्व संरक्षण दिवस 2021 का विषय “वन और आजीविका: लोगों और ग्रह को बनाए रखना” था.

3 दिसम्बर – खुदीराम बोस जयंती 

3 दिसम्बर – डॉ राजेंदर प्रसाद जयंती

4 दिसम्बर – नौसेना दिवस

भारत में 4 दिसंबर को नौसेना दिवस मनाया जाता है. यह देश में भारतीय नौसेना की उपलब्धियों और भूमिका को पहचानने के लिए मनाया जाता है. 4 दिसंबर को 1971 में उस दिन के रूप में चुना गया था, ऑपरेशन ट्राइडेंट के दौरान, भारतीय नौसेना ने पीएनएस खैबर सहित चार पाकिस्तानी जहाजों को डुबो दिया था, जिसमें सैकड़ों पाकिस्तानी नौसेना के जवान मारे गए थे. नौसेना दिवस 2021 का विषय भारतीय नौसेना – कॉम्बैट रेडी, क्रेडिबल एंड कोसिव’ था.

5 दिसम्बर – आर्थिक और सामाजिक विकास के लिए अंतर्राष्ट्रीय स्वयंसेवी दिवस

आर्थिक और सामाजिक विकास के लिए अंतर्राष्ट्रीय स्वयंसेवी दिवस 5 दिसंबर को वैश्विक स्तर पर मनाया जाता है. संयुक्त राष्ट्र स्वयंसेवक कार्यक्रम (यूएनवी) हर साल 5 दिसंबर को अंतर्राष्ट्रीय स्वयंसेवी दिवस का समन्वय करता है, न केवल संयुक्त राष्ट्र के स्वयंसेवकों के, बल्कि दुनिया भर के स्वयंसेवकों के अथक कार्य को पहचानने और बढ़ावा देने के लिए. 2021 में इस दिन को “स्वयंसेवक अब हमारे सामान्य भविष्य के लिए” विषय के साथ मनाया गया था |

5 दिसम्बर – श्री अरविन्द घोष पुण्यतिथि 

7 दिसम्बर – सशस्त्र सेना झंडा दिवस

सशस्त्र सेना झंडा दिवस प्रतिवर्ष 7 दिसंबर को मनाया जाता है. 1949 से, 7 दिसंबर को देश में शहीदों और वर्दी में पुरुषों को सम्मानित करने के लिए सशस्त्र सेना झंडा दिवस के रूप में मनाया जाता है, जिन्होंने देश के सम्मान की रक्षा के लिए हमारी सीमाओं पर बहादुरी से लड़ाई लड़ी. देश के लिए अपने प्राण न्यौछावर करने से बड़ा कोई पुण्य कार्य नहीं हो सकता. 2021 में सशस्त्र सेना झंडा दिवस की थीम बहादुर और शहीद सैनिकों को श्रद्धांजलि और नागरिकों के बीच सद्भाव को सुधारने के लिए थी.

7 दिसम्बर – अंतर्राष्ट्रीय नागरिक उड्डयन दिवस

अंतर्राष्ट्रीय नागरिक उड्डयन दिवस 7 दिसंबर को दुनिया भर में मनाया जाता है. यह दुनिया के सामाजिक और आर्थिक विकास के लिए विमानन के महत्व को पहचानने के लिए मनाया जाता है. अंतर्राष्ट्रीय नागरिक उड्डयन दिवस 2021 का विषय वैश्विक विमानन विकास के लिए नवाचार को आगे बढ़ाना था |

7  दिसम्बर – जतिंदर नाथ मुखर्जी  जयंती

9 दिसम्बर – भ्रष्टाचार के खिलाफ अंतर्राष्ट्रीय दिवस

दुनिया भर में 9 दिसंबर को भ्रष्टाचार के खिलाफ अंतर्राष्ट्रीय दिवस का आयोजन किया जाता है. इसका उद्देश्य भ्रष्टाचार को पूरी तरह से समाप्त करना है और इसके लिए विभिन्न अधिनियम और अभियान शुरू किए गए हैं. यह दिन 2021 में आपका अधिकार, आपकी भूमिका: भ्रष्टाचार को ना कहो विषय के साथ मनाया गया था.”

9  दिसम्बर – राव तुला राम  जयंती

10 दिसम्बर – मानव अधिकार दिवस

हर साल 10 दिसंबर को मानवाधिकार दिवस मनाया जाता है. इसका उद्देश्य लोगों को उनके अधिकारों के बारे में बताना था न कि उनका शोषण करना. मानवाधिकार दिवस 2021 का विषय समानता – असमानताओं को कम करना, मानव अधिकारों को आगे बढ़ाना था.

11 दिसम्बर – अंतर्राष्ट्रीय पर्वत दिवस

अंतर्राष्ट्रीय पर्वत दिवस हर साल 11 दिसंबर को मनाया जाता है. यह जीवन के लिए पहाड़ों के महत्व के बारे में जागरूकता पैदा करने, पर्वतीय विकास में अवसरों और बाधाओं को उजागर करने और गठबंधन बनाने के लिए आयोजित किया जाता है जो दुनिया भर के पर्वतीय लोगों और वातावरण में सकारात्मक बदलाव लाएगा. यह 2021 में स्थायी पर्वतीय पर्यटन की थीम के साथ मनाया जाता है |

11  दिसम्बर – सुब्रह्मण्यम भारती जयंती

12  दिसम्बर – जनरल जोरावर सिंह बलिदान दिवस

12  दिसम्बर – बाबु गेनु सैद बलिदान दिवस  

14 दिसम्बर – अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा दिवस

14 दिसंबर को पूरे विश्व में अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा दिवस मनाया जाता है. यह ऊर्जा खपत के महत्व और हमारे दैनिक जीवन में इसके उपयोग, इसकी कमी और वैश्विक पारिस्थितिक तंत्र की स्थिरता पर इसके प्रभाव को उजागर करने के लिए मनाया जाता है. 2021 में इस दिन की थीम ऊर्जा दक्षता और नवीकरणीय ऊर्जा थी |

3 दिसम्बर – राजेंदर लहिडी बलिदान दिवस 

18 दिसम्बर – अंतर्राष्ट्रीय प्रवासी दिवस

18 दिसंबर को दुनिया भर में अंतरराष्ट्रीय प्रवासी दिवस मनाया जाता है. यह मानवाधिकारों की सुरक्षा के लिए आयोजित किया जाता है. 2021 में इस दिन की थीम थी “मानव गतिशीलता की क्षमता का दोहन”.

19 दिसम्बर – गोवा मुक्ति दिवस

गोवा का मुक्ति दिवस प्रतिवर्ष 19 दिसंबर को मनाया जाता है. यह गोवा के इतिहास में सबसे महत्वपूर्ण दिनों में से एक है, जिसे स्वतंत्रता का एक भूला हुआ युद्ध भी माना जाता है, 19 दिसंबर को भारतीय सशस्त्र बलों द्वारा गोवा को पुर्तगाली शासन से मुक्त करने और भारतीय उपमहाद्वीप की पूर्ण स्वतंत्रता की याद दिलाता है.

19 दिसम्बर – पंडित रामप्रसाद बिस्मिल व अशफाकउल्ला खान  बलिदान दिवस 

23 दिसम्बर – किसान दिवस

किसान दिवस, या राष्ट्रीय किसान दिवस, पूर्व प्रधान मंत्री और किसान नेता चौधरी चरण सिंह की जयंती को चिह्नित करने के लिए मनाया जाता है. दिवस मनाने के पीछे का विचार देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ बनाने वाले किसानों के प्रति आभार व्यक्त करना है |

23 दिसम्बर – रासबिहारी घोष जयंती

23 दिसम्बर – स्वामी श्रद्धानंद बलिदान दिवस 

25  दिसम्बर – मदन मोहन मालवीय जयंती

25 दिसम्बर – अटल बिहारी वाजपेयी जन्म दिवस 

अटल बिहारी वाजपेयी  25 दिसंबर 1924 को ग्वालियर में जन्मे व तीन बार देश के प्रधानमंत्री की कुर्सी संभाली। वाजपेयी जी को सन् 2015 में देश के सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया था। राजनेता,एक कोमल हृदय कवि,बहादुर सेनानी व राट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक भी थे।

25 दिसम्बर – क्रिसमस दिवस

क्रिसमस पर हर साल 25 दिसंबर को ईसा मसीह का जन्म दिवस मनाया जाता है

26 दिसम्बर – सरदार उधम सिंह जयंती

26  दिसम्बर – साहिबजादा जोरावर सिंह व साहिबजादा फ़तेह सिह बलिदान दिवस 

29 दिसम्बर – अंतर्राष्ट्रीय जैव-विविधता दिवस

अंतर्राष्ट्रीय जैव-विविधता दिवस प्रतिवर्ष 29 दिसंबर को मनाया जाता था |

कही पर्वत झुके भी है , कही दरिया रुकी भी है।नहीं झुकती जवानी है,नहीं रूकती रवानी है|

गुरु गोविन्द के बच्चे,उम्र में थे अभी कच्चे।पर वे सिघ  बच्चे,धर्म ईमान के सच्चे।

गरज कर बोल उठे वे यो,सिघ मुख खोलते थे ज्यों।नहीं हम झुक नहीं सकते,नहीं हम रुक नहीं सकते।

हमे निज देश प्यारा है , पिता दशमेश प्यारा है।हमे निज धर्म प्यारा है , श्री गरुग्रन्थ प्यारा है। ।

नहीं झुकती जवानी है,नहीं रूकती रवानी है।जोरावार जोर से बोला,फ़तेह सिंघ शोर से बोला।

रखो ईटें भरो गारे , चिनो दीवार हत्यारे।निकलती श्वांस बोलेगी , हमारी लाश बोलेगी।

यही दीवार बोलेगी , हज़ारों बार बोलेगी।हमारे देश की जय हो , पिता दशमेश की जय हो।

हमारे धर्म की जय हो,श्री गुरुग्रंथ की जय हो।नहीं झुकती जवानी है,नहीं रूकती रवानी है।


क़िस्मत

सूरज और श्रीहर्ष नाम के दो भाई रहा करते थे. वेअक्सर अपनी बातें एक दूसरे से साझा करते. दिल्ली के एक कॉलेज में दोनों ने दाखिला लिया था। श्रीहर्ष का रुझान फिल्मों और मीडिया कि तरफ था और वह उसी क्षेत्र में अपना करियर बनाना चाहता था. एक दिन उसने दिल्ली के समाचार पत्र में के एक विज्ञापन देखा.एक नयी फिल्म के मुख्य पात्र के लिए नए लड़कों को ऑडिशन के लिए बुलाया गया था | क्योंकि उस फिल्म के निर्माता को अपनी फिल्म के लिए किसी नए चेहरे की तलाश थी। विज्ञापन को देखकर श्रीहर्ष की बाँछे खिल गयी और उसने ऑडिशन के लिए जाने की योजना बनाई। श्रीहर्ष ने सूरज को कहा – भाई मुझे इस ऑडिशन के लिए जाना है। तुम भी मेरे साथ चलो। सूरज आराम करना चाहता था। उसने जाने से मना कर दिया। श्री हर्ष ने कहा – यदि तुम मेरे साथ चलोगे तो, मैं तुम्हें पिज्जा खिलाऊँगा.इस ऑफर को वह ठुकरा न सका. श्रीहर्ष के साथ वह ऑडिशन की जगह पर पहुंचा। कम से कम तीन-चार हज़ार प्रतियोगियों की भारी भीड़ जमा थी। श्रीहर्ष अपनी बारी का इंतज़ार कर रहा था। सूरज वही कोने में चुपचाप बैठा था कि जल्दी ऑडिशन खत्म हो और उसे पिज्जा खाने को मिलेगा। तभी एक फिल्म की यूनिट के एक कास्टिंग एजेंट की निगाह सूरज पर पड़ी। उसने सूरज से पूछा, कौन हो तुम? सूरज ने कहा मैं अपने भाई के साथ आया हूँ, वह यहाँ ऑडिशन देने आया है। एजेंट ने कहा क्या तुम्हारी फिल्मों में रुचि है? सूरज ने कहा हाँ। अजेंट ने प्रस्ताव दिया, सूरज ने सोचा प्रस्ताव बुरा नहीं है।ऑडिशन पूरा हुआ। थोड़ी देर बाद आनेवाले फैसले पर हर किसी की निगाह थी। जब परिणाम की घोषणा हुई तो हर कोई स्तब्ध रह गया. उन हजारों प्रतियोगियों को पछाड़ कर सूरज को इस भूमिका के लिए चुन लिया गया था। ये एक सच्ची कहानी है। उस लड़के का पूरा नाम सूरज शर्मा है और फिल्म का नाम ‘लाइफ ऑफ पाय’ जो वर्ष 2012 में दुनिया भर में रिलीज हुई। सूरज शर्मा ने इस फिल्म में मुख्य भूमिका निभाया था और उनके सहयोगी कलाकार इरफान खान और तब्बू थे। एक विचारक ने कहा था – क़िस्मत भी आपका तभी साथ देती है जब आपमें प्रतिभा हो।

विश्वास से बड़ी कोई चीज़ नहीं होती

एक बार दिल्ली से सैन फ्रांसिस्को के लिए एक विमान उड़ा। विमान खचाखच भरा हुआ था। छुट्टीयों का मौसम शुरू हो चुका था, इसीलिए कई लोग परिवार के साथ छुट्टी मनाने जा रहे थे। लोगों का उत्साह चरम पर था। कई लोग तो पहली बार विदेश का दौरा कर रहे थे। अभी विमान को उड़े एक घंटा भी नहीं गुजरा था, तभी विमान हिचकोले लेने लगा। तभी सीट के ऊपर लगे स्पीकर पर एअर होस्टेस की आवाज सुनाई दी, मौसम खराब है, आप सभी से अनुरोध है कि अपनी सीट बेल्ट बांध लें। लोगों में विशेषकर पहली बार हवाई सफर करने वालों में, थोड़ा दहशत का माहौल हो गया । कुछ समय गुजरा था कि फिर एयर होस्टेस ने अनाउंस किया, हमें खेद है कि मौसम के ज्यादा खराब होने के कररण नाश्ता नहीं पेश कर पाएंगे। इसी के साथ विमान बुरी तरह से हिचकोले लेने लगा। अब यात्रियों की हालत खराब होने लगी। इन सभी के बीच के एक सीट पर एक लगभग 12 साल की बच्ची अपना विडियो गेम खेल रही थी। विमान में कई लोग तो मंत्र जाप तक करने लगा। थोड़ी देर में ज़ोर से बिजली कड़कने की आवाज सुनाई दी। यह आवाज इतनी कर्कश थी कि विमान के इंजन की आवाज भी उसमें खो गयी और विमान के अंदर बैठे यात्रियों को आवाज सुन कर लगा कि विमान शायद किसी चीज़ से टकराते हुए उसके बीच से आगे निकाल रह है। यात्रियों को ऐसा लगा की विमान का संतुलन बिगड़ गया है, थोड़ी देर में विमान क्रैश हो जाएगा। उस बच्ची के चेहरे पर भय या घबराहट के कोई भाव नहीं थे। खैर, थोड़ी देर बाद सब सामान्य हो गया। जब विमान सैन फ्रांसिस्को एयर पोर्ट पर उतरा, तो एक व्यक्ति ने उस बच्ची से पूछा बेटा,हम सब लोग उस समय बहुत डर गए थे,लेकिन तुम बिल्कुल नॉर्मल थी बताओ क्या तुम्हें विमान में उस समय डर नहीं लगा? बच्ची ने मुस्कुराते हुए कहा- नहीं अंकल, मुझे बिल्कुल भी डर नहीं लगा, क्योंकि इस विमान के पायलट मेरे पापा है और मैं जानती हूँ कि वे मुझे किसी हाल में कुछ भी नहीं होने देंगे।बच्ची के विश्वास कोदेख कर वह व्यक्ति दंग रह गया।

 

ब्रज की भूमि 

देवताओं ने व्रज में कोई ग्वाला कोई गोपी कोई गाय,कोई मोर तो कोई तोते के रूप में जन्म लिया।कुछ देवता और ऋषि रह गए थे।वे सभी ब्रह्माजी के पास आये और कहने लगे कि ब्रह्मदेव आप ने हमें व्रज में क्यों नही भेजा? आप कुछ भी करिए किसी भी रूप में भेजिए।ब्रह्मा जी बोले व्रज में जितने लोगों को भेजना संभव था उतने लोगों को भेज दिया है अब व्रज में कोई भी जगह खाली नहीं बची है। देवताओं ने अनुरोध किया प्रभु आप हमें ग्वाले ही बना दें ब्रह्माजी बोले जितने लोगों को बनाना था उतनों को बना दिया और ग्वाले नहीं बना सकते।देवता बोले प्रभु ग्वाले नहीं बना सकते तो हमे बरसाने को गोपियां ही बना दें ब्रह्माजी बोले अब गोपियों की भी जगह खाली नही है।देवता बोले गोपी नहीं बना सकते, ग्वाला नहीं बना सकते तो आप हमें गायें ही बना दें। ब्रह्माजी बोले गाएं भी खूब बना दी हैं।अकेले नन्द बाबा के पास नौ लाख गाएं हैं।अब और गाएं नहीं बना सकते।देवता बोले प्रभु चलो मोर ही बना दें।नाच-नाच कर कान्हा को रिझाया करेंगे।ब्रह्माजी बोले मोर भी खूब बना दिए। इतने मोर बना दिए की व्रज में समा नहीं पा रहे।उनके लिए अलग से मोर कुटी बनानी पड़ी।देवता बोले तो तोता, मैना,चिड़िया, कबूतर, बंदर  कुछ भी बना दीजिए। ब्रह्माजी बोले वो भी खूब बना दिए, पुरे पेड़ भरे हुए हैं पक्षियों से।देवता बोले तो कोई पेड़-पौधा,लता-पता ही बना दें।ब्रह्मा जी बोले- पेड़-पौधे, लता-पता भी मैंने इतने बना दिए की सूर्यदेव मुझसे रुष्ट है कि उनकी किरने भी बड़ी कठिनाई से ब्रिज की धरतीको स्पर्श करती हैं।देवता बोले प्रभु कोई तो जगह दें हमें भी व्रज में भेजिए।ब्रह्मा जी बोले-कोई जगह खाली नही है।तब देवताओ ने हाथ जोड़ कर ब्रह्माजी से कहा प्रभु अगर हम कोई जगह अपने लिए ढूंढ़ के ले आएं तो आप हम को व्रज में भेज देंगे।ब्रह्मा जी बोले हाँ तुम अपने लिए कोई जगह ढूंढ़ के ले आओगे तो मैं तुम्हें व्रज में भेज दूंगा। देवताओ ने कहा धुल और रेत कणो कि तो कोई सीमा नहीं हो सकती और कुछ नहीं तो बालकृष्ण लल्ला के चरण पड़ने से ही हमारा कल्याण हो जाएगा हम को व्रज में धूल रेत ही बना दे।ब्रह्मा जी ने उनकी बात मान ली।इसलिए जब भी व्रज जाये तो धूल और रेत से क्षमा मांग कर अपना पैर धरती पर रखे,क्योंकि व्रज की रेत भी सामान्य नही है,रज देवी-देवता एवं समस्त ऋषि-मुनि हैं|

   


                                          माता ने बुलाया है 

हम फौजियों का भगवान के साथ बहुत नजदीक का रिश्ता है।   कैंट एरिया में प्रातःकाल  भजनों के गान से हमें उठाया जाता है।  सुबह श्याम मंदिर में पल्टन के पंडित जी पूजा पाठ करते हैं।  सैनिक अपनी सुविधा के अनुसार समय मिलने पर  मंदिर में जाते हैं।  प्रत्येक रविवार को सुबह मंदिर - परेड होती है।  सभी सम्मिलित होते हैं।  भजनों के अतिरिक्त पंडित जी का प्रवचन होता है और भगवान की आरती और प्रसाद वितरण के साथ मंदिर - परेड समाप्त हो जाती है। 

जब भी कभी हम नई जगह ट्रांसफर होते हैं तो पुराने लोग वहां के प्रसिद्ध धार्मिक स्थलों के विषय में बता देते हैं। जम्मू - कश्मीर क्षेत्र में जाते ही सबसे पहले अफसर, जे० सी० ओ० और कुछ जवानों का दल  वैष्णव माता मंदिर में जाते हैं और माता से सुरक्षा , सुख - शांति से अपना टेन्योर पूरा हो की  प्रार्थना करते हैं।

" चलो बुलावा आया है ; माता ने बुलाया है " इस भजन को हम सुनते आये हैं और ये भी सुनते आये हैं कि जब माता बुलाएगी  तभी  जायेंगे। अगर माता नहीं चाहती तो आप दर्शन नहीं कर सकते। मैं अपना पहला अनुभव जब माता बुलाती है का आपसे साझा करता हूँ।  बेटे का आई० आई० टी० खड़गपुर में एडमिशन हो गया।  उसकी जाने की पूरी तैयारी हो गई।  शनिवार का दिन था और उसे सोमवार को जाना था।  मैंने ब्रश करते हुए बेटे से कहा ; मैं चाहता था तुम खड़गपुर जाने से पहले वैष्णव माता मंदिर जा आते।  अब समय नहीं है।  तुम परसों ही जा रहे हो।  बेटा बोला आप नहालें।  मैं मम्मी को रास्ते के लिए पराठे बनाने को कहता हूँ।  अपना बैग पैक करता हूँ।  आप भी दो कपड़े ले लो और हम अभी चल पड़ते हैं।  सभी तैयारी मिनटों में हो गई और श्याम पांच बजे हम कटरा पहुँच गए। हमें डाक बंगले में कमरा मिल गया।  हमने कमरे में सामान रखा और माता मंदिर के लिए चढ़ाई शरू करदी। मंदिर के पास नहा कर माता रानी के दर्शन किये। माता की कृपा से हमें ऊपर ही फ्री में एक वी० आई० पी० कमरा रात ठहरने के लिए  मिल गया।  सुबह जल्दी उठे, पहाड़ से उतरना शुरू किया और उसी दिन रविवार दोपहर तक अपने घर पहुँच गए।  सबको आश्चर्य हुआ कि हम इतनी जल्दी माता रानी के दर्शन कर घर बहुत शीघ्र आगए । 

अब जब माता नहीं बुलाती का भी मेरा अनुभव आपसे साझा करता हूँ।  अगस्त 1971 में घर पिलानी  सालाना छुट्टी पर आया हुआ था।  मन बनाया करणी माता मंदिर जाते हैं। सारी यात्रा  की पैकिंग के बाद पत्नी जी यात्रा के लिए पराठे बनाने लगीं और मैं सोने चला गया।  पत्नी ने आकर मुझे जगाया।  हाथ में टेलीग्राम , तुरंत ड्यूटी ज्वाइन करो।  मैंने पत्नी से कहा अब हम बीकानेर नहीं जा सकते।  वापस मिज़ोरम यूनिट में तत्काल जाना होगा।  पत्नी कहने लगी , यदि  हम चले जाते और टेलीग्राम बाद में आता तो ? मैंने उत्तर दिया हम गए नहीं हैं ; इसलिए जा नहीं सकते। चले जाते तो बात दूसरी थी। माता ने हमें  नहीं बुलाया है ; इसलिए हम उनके दर्शनों के लिए नहीं जा पा रहे हैं। जब भी माता बुलाएगी तब माता के मंदिर दर्शन करने जायेंगे।  

वर्षों तक चाहते हुए भी हम करणी माता मंदिर नहीं जा सके। किस्मत से मेरी पल्टन जम्मू - कश्मीर के द्रास सेक्टर से गत वर्ष बीकानेर आई और पल्टन ने 16 नवम्बर 2022 को पल्टन की हीरक जयंती मनाने का एक विशाल आयोजन किया। हम सेवानिवृत अफसर जिन्होंने 1965 और 1971 की दोनों पाकिस्तान की लड़ाई में हिस्सा लिया था,उन्हें विशेष तौर पर आमंत्रित किता गया। पल्टन को 1965 में दो वीर चक्र और 1971 बांग्ला देश की लड़ाई में एक महावीर चक्र और तीन वीर चक्र मिले।पल्टन के वीर सिपाहियों ने दोनों लड़ाइयों में बहुत नाम कमाया।विशेष तौरपरचंद महीनों की सर्विस वाला एक आदिवासी जवान सिपाही अनुसूया प्रसाद,जिसकी  उम्र केवल 18 वर्ष थी ने अदम्य साहस और वीरता का उदाहरण पेश किया जिसके लिए उसे  महावीर चक्र ( मरणोपरांत )  दिया गया।  उसकी पत्नी श्रीमती चित्रा  देवी ;जो उस समय मात्र 14 वर्ष की थी उनको प्रधान मंत्री स्व० इंदिरा गाँधी ने जब महावीर चक्र दिया तो इंदिरा जी इतनी छोटी सी बच्ची को देख कर रो पड़ी। उस बालिका को तो कुछ समझ भी नहीं आरहा था कि उसके साथ यह सब क्या हो रहा है। उसे क्या मिला है , क्या मिलने वाला है और जीवन में उसने क्या खोया है। सैनिकों के परिवारों की यह एक विडंबना है। एक  कवि की ये चंद पंक्तियाँ याद आ गई।  

" माली आवत देख कर कलियाँ करे पुकार।  फूले - फूले चुन लिए ; काल हमारी बार। " सिपाही  अनुसूया प्रसाद  वीरगति को प्राप्त हो गया।  बालिका चित्रा देवी ने अपना वैवाहिक जीवन शुरू ही किया था की उसके जीवन में अँधेरा छा  गया।  " चलो बुलावा आया है ; माता ने बुलाया है। " जयंती समारोह के बाद हमें करणी माता मंदिर जाने का और माता रानी  के दर्शन करने का लगभग 52 वर्षों के बाद अवसर मिला। हमारा अहोभाग्य है कि जब भी हमने अपनी माता को मन से याद किया और उनके दर्शनों की इच्छा की,माता ने हमें एक विशिष्ठ दर्शनार्थी के तौर पर बुलाया है। इसी प्रकार वर्षों बाद वर्तमान वर्ष के मार्च महीने में हमें तनोट माता ने अपने दरबार में विशिष्ठ दर्शनार्थी केतौर पर बुलाया था। बात सही है,माता जब चाहेगी,बुलाएगी,तभी हम उनके पास जाएंगे।- किशन लाल शर्मा  


उज्जैन के एक राजा भरथरी

उज्जैन के एक राजा हुए है, भरथरी। उन्होंने गुरु गोरखनाथ के सानिध्य में राज्य और संपत्ति त्याग कर सन्यास धारण किया। उन्होंने संस्कृत में कई उपदेश कहानियां लिखी और भर्तृहरि के नाम से प्रसिद्ध हुए। नीतिशतक, श्रृंगारशतक, वैराग्यशतक उनकी हिबलिखी हुई संस्कृत कृतियाँ हैं। पहले गांवों में उनके जीवन पर कई सारे नाट्य किए जाते थे। मेरठ में एक जमींदार हुए है, चौधरी लटूरी सिंह। उनको अभिनय का बड़ा शौक था। हर चौमास वो नाटक मंडली गांव में बुलवाते और नाट्य कलाकारों के साथ खुद भी मंच पर अभिनय करते। एक बार उन्होने नाट्य मंडली बुलवाई और राजा भरथरी का नौ दिन का नाट्य मंचन शुरु हुआ। राजा भरथरी का अभिनय खुद चौधरी लटूरी सिंह कर रहे थे। आठ दिन का नाट्य समाप्त हो चुका था। आठवें दिन घर पर भोजन करते हुए लटूरी सिंह ने अपनी पत्नी से कहा कि कल नाट्य का अंतिम दिन है, तुम नाट्य देखने मत आना। 

नौंवें दिन मंच पर नाट्य शुरू हुआ। लटूरी सिंह के बेटे बेटिंयाँ बहुएं सभी नाट्य देखने जा चुके थे। पत्नी घर पर अकेली रह गई। रह रह कर मन में संदेह के बादल घुमड़ने लगते। आखिर मुझे मंच पर आने से क्यों रोका, कोई तो बात है जो मुझसे छुपाई जा रही है। पति मना करे और पत्नी मान जाए ऐसी पत्नियाँ तो रामायण काल मे भी न थी तो चौधराइन ने दरवाजे में कुंडी लगाई और मंच के सामने न जाकर रिश्ते में जेठानी लगने वाली महिला के घर की छत पर जाकर नाट्य देखने लगी। उधर मंच पर राजा भरथरी के सन्यास लेने का दृश्य चल रहा था। भरथरी बने लटूरी सिंह ने राज वस्त्र उतार कर भगवा धारण किया और डॉयलॉग बोलने लगे, " मैं अपने हृदय में बसे भगवान शंकर, अग्नि और जल को साक्षी मानकर ये सौगंध लेता हूँ कि इसी वक्त से हर तरह की संपत्ति, राज्य, सिंहासन आदि का त्याग करता हूँ। मेरी कोई सम्पत्ति नहीं है, मेरा कोई बेटा नहीं, मेरी कोई बेटी नहीं है, मेरी कोई पत्नी नहीं है। यहां उपस्थित सभी स्त्रियाँ मेरी मां है। 

तभी लटूरी सिंह की भाभी छत से चिल्लाई, ओए लटूरी तेरी लुगाई इधर बैठी है। सब लोग हंसने लगे। नाट्य की समाप्ति के बाद सभी कलाकारों ने अपने वस्त्र चेंज किए लेकिन लटूरी सिंह भगवाया धारण किए रहे। उन्होने अभिनय के लिए प्रयोग में लाया जाने वाला भिक्षा पात्र उठाया औऱ सीधा अपने घर के दरवाजे पर पहुँचे। आवाज़ लगाई, भिक्षा दो माता। भीतर से पत्नी निकल कर आई, अरे अभी तक आपने वस्त्र नही बदले। भीतर आइए, वस्त्र बदलिए तब तक मैं भोजन लगा देती हूँ। लटूरी सिंह बोले, मैंने तुम्हें वहाँ आने से मना किया था क्योंकि जब मैं अभिनय करता हूँ तो मेरे भीतर शंकर स्वयं उपस्थित होते है। आज से तुम मेरी माता समान हो और मैंने सन्यास ले लिया है। पत्नी रोने लगी , बच्चों ने मनाने का प्रयास किया मगर सब असफल रहे। चौधरी लटूरी सिंह ने गृहस्थ का त्याग कर दिया औऱ महात्मा लटूरी सिंह के नाम से जाने गए|


राव तुला राम

राजा राव तुलाराम सिंह 1857 का प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के प्रमुख नेताओं में से एक थे। उन्हे हरियाणा राज्य में " राज नायक" माना जाता है।




जीवन की बारीक समझ

वर्ष 1893 की बात है। यह स्वामी विवेकानंद के जीवन काल का समय था। अपनी विद्वता से स्वामी विवेकानंद देश ही नहीं बल्कि विदेश में भी बेहद चर्चित हो चुके थे।उनको अक्सर किसी सेमिनार में बोलने के लिए बुलाया जाता था। एक बार उनको अमेरिका के शिकागो से एक सेमिनार में बोलने के लिए बुलाया गया। विवेकानंद अपनी माँ से बेहद प्रभावित थे और उनकी माँ अक्सर उनका मार्गदर्शन किया करती। माँ को जब विवेकानंद के अमेरिका जाने की बात पता चली, तो उन्होने विवेकानंद को सूचना भेजी और कहा, आज तुम घर पर खाना खाने आ जाओ, क्योंकि मैं यह भी जांच लेना चाहती हूँ कि तुम अभी विदेश जाकर सेमिनार में बोलने लायक परिपक्क्व हुए हो या नहीं। दरअसल, उन दिनों स्वामीजी अक्सर भ्रमण पर रहा करते थे। माँ के आदेश पर आज नियत समय पर स्वामीजी घर पहुंचे। माँ ने उनकी पसंद का खाना बनाया था। स्वामीजी ने स्वाद लेकर खाना खाया। उसके बाद माँ ने उनको एक सेब दिया और साथ में एक चाकू भी दिया और फल खाने को कहा। स्वामीजी ने सेब को काटा और खा लिया। फिर माँ ने उनसे चाकू मांगा। स्वामीजी ने माँ को चाकू दे दिया। माँ ने कहा, बेटा, अब मैं आश्वस्त हूँ कि तुम विदेश जाकर लोगों को ज्ञान देने के लायक हो गए हो।स्वामीजी को कुछ भी समझ मे नहीं आया। वे आश्चर्य से बोले, माँ, मैंने तो ऐसा कुछ किया ही नहीं और तुमने मेरी कोई परीक्षा भी नहीं ली। माँ ने मुस्कुराते हुए बोली, बेटा, अभी मैंने तुमसे चाकू मांगा, तुमने इस तेज चाकू की धार की ओर से पकड़कर चाकू का लकड़ी वाला वह हिस्सा मेरे सामने कर दिया,जिससे मैं इसे आराम से पकड़ सकूँ और मुझे चोट न लगे, परंतु ऐसा करते समय तुमने इस बात की परवाह नहीं की कि तेज धार से तुम्हें भी चोट लग सकती थी,इसलिए तुम इस परीक्षा मे उतिर्ण हो गए, जाओ और देश दुनिया मे अपने ज्ञान का प्रसार करो। यह बात सुनकर स्वामीजी का सिर माँ के सामने श्रद्धा से झुक गया और अपनी माँ को प्रणाम कर वे अमेरिका की ओर निकल पड़े।

मिथ्या-प्रेम



एक नवयुवक एक सिद्ध महात्मा के आश्रम में आया करता था। महात्मा उसकी सेवा से प्रसन्‍न हो बोले–‘“बेटा ! आत्म-कल्याण ही मनुष्य जीवन का सच्चा लक्ष्य है इसे ही पूरा करना चाहिए।”

यह सुन युवक ने कहा -““महाराज ! वैराग्य धारण करने पर मेरे माता-पिता कैसे जीवित रहेंगे? साथ ही मेरी युवा पत्नी मुझ पर प्राण देती है वह मेरे वियोग में मर जाएगी।” महात्मा बोले -‘“कोई नहीं मरेगा बेटा! यह सब दिखावटी प्रेम है। तू नहीं मानता तो परीक्षा कर ले।” युवक राजी हो गया तो महात्मा ने उसे प्राणायाम करना सिखाया और बीमार बनकर साँस रोक लेने का आदेश दिया। युवक ने घर जाकर वही किया। बड़े-बड़े वैद्यों को बुलाया गया लेकिन उसने कुछ इस तरह सांस रोकी की सब ने उसे मरा ही समझा। घर वाले उसे मरा समझ हो-हल्ला मचाने और पछाड़ें खाने लगे। पड़ोस के बहुत से लोग इकट्ठे हो गए। तभी महात्मा भी वहाँ जा पहुँचे और युवक को देखकर उसकी गुण गरिमा का बखान करते हुए बोले -‘“हम इस लड़के को जीवित कर देंगे, परंतु तुम्हें कुछ त्याग करना पड़ेगा। ”घर वाले बोले- आप हमारा सारा धन, घर-बार, यहाँ तक कि प्राण भी ले लें, परंतु इसे जीवित कर दें। ”महात्मा बोले -‘एक कटोरा दूध लाओ। ”तुरंत आज्ञा का पालन किया गया। महात्मा ने उसमें एक चुटकोचुटकी राख डालकर कुछ मंत्र सा पढ़ा और बोले -”जो कोई इस दूध को पी लेगा वह मर जाएगा और यह लड़का जीवित हो जाएगा। ‘अब समस्या यह थी कि दूध को कौन पीवे। माता-पिता बोले -”कहीं न जिया तो एक जान और गई। यदि हम रहेंगे तो पुत्र और हो जाएगा। ‘पत्नी बोली-”इस बार जीवित हो जाएँगे तो क्या है, फिर कभी मरेंगे। मरना तो पड़ेगा ही। इनके न रहने पर मायके में सुख से जिंदगी काट लूँगी।” रिश्तेदार बगलें झाँकने लगे और पड़ोसी तो पहले ही नदारद हो गए। तब महात्मा ने कहा -”अच्छा, मैं ही इस दूध को पिए लेता हूँ।” तो सभी प्रसन्‍न होकर बोले -”हाँ महाराज! आप धन्य हैं। साधु-संतों का जीवन ही परोपकार के लिए है। ”महात्मा ने दूध पी लिया और युवक को झकझोरते हुए बोले – उठ बेटा! अब तो तुझे पूरी तरह ज्ञान हो गया कि कौन तेरे लिए प्राण देता है? युवक तुरंत उठ पड़ा और महात्मा के चरणों में गिर पड़ा। घर वालों के बहुत रोकने पर भी वह महात्मा के साथ चला: गया और सांसारिक मोह त्यागकर आत्मकल्याण की साधना करने लगा।

अनुकरण अच्छा, अंधानुकरण नहीं

एक गाँव में दो युवक रहते थे। दोनों में बड़ी मैत्री थी। जहाँ जाते साथ-साथ जाते। एक बार दोनों एक धनी व्यक्ति के साथ उसकी ससुराल गए। किसी धनी व्यक्ति के साथ रहने का यह पहला अवसर था, सो वे अपने धनी मित्र की प्रत्येक गतिविधि ध्यान से देखते रहे। गरमियों के दिन थे। रात में उक्त युवक के लिए शयन की व्यवस्था खुले स्थान पर की गई। पर्याप्त शीतलता बनी रहे इसके लिए वहाँ चारों तरफ जल छिड़का गया और रात को ओढ़ने के लिए बहुत ही हलकी मखमली चादर दी गई। अन्य दोनों युवकों ने इतना ही जाना कि इस तरह का रहन-सहन बड़प्पन की बात है। कुछ दिन बाद उन्हें भी अपनी-अपनी ससुराल जाने का अवसर मिला पर वे दिन गरमी के न होकर शीत के थे। नकल तो नकल ही है। दोनों ने अपना बड़प्पन जताने के लिए बिस्तर खुले आकाश के नीचे लगवाया, लोगों के लाख मना करने पर भी उन्होंने बिस्तर के आस-पास पानी भी छिड़कवाया और ओढ़ने के लिए कुल एक-एक चादर वह भी हलकी ली। रात को पाला पड़ गया सो दोनों को निमोनियाँ हो गया । चिकित्सा कराई गई तब कठिनाई से जान बची। इतनी कथा सुनाने के बाद गुरुजी ने शिष्य को समझाया–” तात ! उचित और अनुचित का विचार किए बिना जो औरों का अनुकरण करता है वह मूर्ख ऐसे ही संकट में पड़ता है जैसे वह दोनों युवक।’!




मासिक पंचांग- दिसम्बर -2022



दिनांक 

भारतीय व्रत उत्सव दिसम्बर - 2022

दुर्गा अष्टमी

3  

मोक्षदा एकादशी,श्री गीता जयंती 

सोम प्रदोष व्रत  

पिशाच मोचन श्राद्ध 

श्री दतात्रये जयंती,सत्य व्रत ,

श्री त्रिपुर भैरव जयंती ,अन्नपूर्णा जयंती  

11 

श्री गणेश चतुर्थी व्रत 

16  

काल भैरव अष्टमी ,संक्रांति पुन्य  

19   

सफला एकादशी व्रत    

21 

सोम  प्रदोष व्रत,मास शिवरात्रि 

23 

अमावस्या पुण्य    

26 

विनायक चतुर्थी  व्रत  

29 

गुरु गोविन्द सिंह जयंती 

30  

श्री दुर्गाष्टमी, शाकम्भरी पूजन प्रारम्भ  






पंचक विचार दिसम्बर - 2022  

पंचक विचार -(धनिष्ठा नक्षत्र के तृतीय चरण से रेवती नक्षत्र तक) पंचको में दक्षिण दिशा की ओर यात्रा करना मकान दुकान आदि की छत डालना चारपाई पलंग आदि बुनना,दाह संस्कार,बांस की चटाई दीवार प्रारंभ करना आदि स्तंभ रोपण तांबा पीतल तृण काष्ट आदि का संचय करना आदि कार्यों का निषेध माना जाता है समुचित उपाय एवं पंचक शांति करवा कर ही उक्त कार्यों का संपादन करना कल्याणकारी होगा ध्यान रहेगा  पंचर नक्षत्रों का विचार मात्र उपरोक्त विशेष कृतियों के लिए ही किया जाता है विवाह मंडल आरंभ गृह प्रवेश प्रवेश उपनयन आदि मुद्दों से तो पंचक नक्षत्रका प्रयोग शुभ माना जाता है पंचक विचार- दिनांक  04 को 06 - 16 बजे तक पंचक हैं,दिनांक 27 को 03-30 से 31 को 11-46 बजे तक पंचक है | 

अधिक जानकारी के लिए संपर्क करे शर्मा जी - 9312002527,9560518227

भद्रा विचार दिसम्बर - 2022 

भद्रा काल का शुभ अशुभ विचार - भद्रा काल में विवाह मुंडन, गृह प्रवेश, रक्षाबंधन आदि मांगलिक कृत्य का निषेध माना जाता है परंतु भद्रा काल में शत्रु का उच्चाटन करना,स्त्री प्रसंग में,यज्ञ करना,स्नान करना,अस्त्र शस्त्र का प्रयोग,ऑपरेशन कराना, मुकदमा करना,अग्नि लगाना,किसी वस्तु को काटना,भैस,घोड़ा व ऊंट संबंधी कार्य प्रशस्त माने जाते हैं सामान्य परिस्थिति में विवाह आदि शुभ मुहूर्त में भद्रा का त्याग करना चाहिए परंतु आवश्यक परिस्थितिवश अति आवश्यक कार्य भूलोक की भद्रा ,भद्रा मुख छोड़कर कर भद्रा पुच्छ में शुभ कार्य कर सकते है |

अधिक जानकारी के लिए संपर्क करे शर्मा जी - 9312002527,9560518227

दिनांक 

शुरू 

दिनांक 

समाप्त 

03

17-33

04

05-34

07

08-01

07

20-49

11

03-01

11

16-15

14

23-42

15

12-44

18

15-43

19

03-32

21

22-16

22

08-48

26

15-11

27

01-37

29

19-17

30

06-55




मूल नक्षत्र विचार दिसम्बर-2022 



दिनांक

शुरू 

दिनांक

समाप्त 

03

05-45

05

07-14

12

23-35

15

05-15

22

06-32

24

01-12

30

11-24

मासांत तक 



अधिक जानकारी के लिए संपर्क करे शर्मा जी - 9312002527,9560518227

सर्वार्थ सिद्धि योग दिसम्बर-2022

दैनिक जीवन में आने वाले महत्वपूर्ण कार्यों के लिए शीघ्र ही किसी  शुभ मुहूर्त का अभाव हो,किंतु शुभ मुहर्त के लिए अधिक दिनों तक रुका ना जा सकता हो तो इन सुयोग्य वाले मुहर्तु  को सफलता से ग्रहण किया जा सकता है | इन से प्राप्त होने वाले अभीष्ट फल के विषय में संशय नहीं करना चाहिए यह योग हैं सर्वार्थ सिद्धि,अमृत सिद्धि योग एवं रवियोग | योग्यता नाम तथा गुण अनुसार सर्वांगीण सिद्ध कारक  है| 

अधिक जानकारी के लिए संपर्क करे शर्मा जी - 9312002527,9560518227

दिनांक

प्रारंभ

दिनांक

समाप्त

03

05-45

03

07-02

04

07-02

05

07-03

06

08-38

08

07-05

11

20-35

12

23-35

13

07-08

14

02-32

16

07-10

16

07-34

18

07-12

18

10-18

21

08-33

22

06-32

25

07-16

25

19-20

26

07-16

26

16-41

30

11-24

31

07-18



सुर्य उदय- सुर्य अस्त दिसम्बर-2022 


दिनांक

उदय 

दिनांक

अस्त 

06-58

1

17-22

5

07-01

5

17-22

10

07-04

10

17-23

15

07-08

15

17-25

20

07-14

20

17-27

25

07-16

25

17-30

30

07-15

30

17-33

 

 अधिक जानकारी के लिये संपर्क करें - शर्मा जी - 9560518227

ग्रह स्थिति दिसम्बर-2022


ग्रह स्थिति -  दिनांक 03 को बुध धनु में , दिनाक 05 को शुक्र धनु में , दिनांक 05 बुध उदय ,दिनांक 16 सूर्य धनु में ,दिनांक 28 को बुध मकर में , दिनांक 29  बुध वक्री ,दिनांक 29 शुक्र मकर में दिनांक 30 बुध धनु में | 

चौघड़िया मुहूर्त 

चौघड़िया मुहूर्त देखकर कार्य या यात्रा करना उत्तम होता है। एक तिथि के लिये दिवस और रात्रि के आठ-आठ भाग का एक चौघड़िया निश्चित है। इस प्रकार से 12 घंटे का दिन और 12 घंटे की रात मानें तो प्रत्येक में 90 मिनट यानि 1.30 घण्टे का एक चौघड़िया होता है जो सूर्योदय से प्रारंभ होता है|

राहू काल 

 

 राहुकाल -राहुकाल दक्षिण भारत की देन है,दक्षिण भारत में राहु काल में कृत्य करना अच्छा नहीं माना जाता, राहु काल में शुभ कृतियों में वर्जित करने की परंपरा अब हमारे उत्तरी भारत में भी अपनाने लगे हैं राहुकाल प्रतिदिन सूर्यादि वारों में भिन्न-भिन्न समय पर केवल डेढ़ डेढ़ घंटे के लिए घटित होता है |

अधिक जानकारी के लिए संपर्क करे शर्मा जी - 9312002527,9560518227

 

 

 

मोक्षदा एकादशी

मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी मोक्षदा एकादशी के नाम से प्रसिद्ध है| इस दिन दामोदर भगवान की पूजा की जाती है | पूजा में दामोदर भगवान को धूप,दीप,नैवेद्य आदि पूजा पदार्थों से करनी चाहिए और भक्ति पूर्वक दामोदर भगवान की कीर्तन और जागरण आदि करना चाहिए उन से यह प्रार्थना करनी चाहिए | गोविंद मेरी यह प्रार्थना है भूलू ना, मै नाम कभी तुम्हारा, निष्काम होकर दिन रात गाओ , गोविंद दामोदर माधवेति, गोविंद दामोदर माधवेति | 

मोक्षदा एकादशी व्रत की कथा - प्राचीन गोकुल नगर में धर्मात्मा और भक्त वैखानस  नाम का राजा था उसने रात्रि को सपने में अपने पूज्य पिता को नरक भोगते हुए देखा तो  प्रातः काल उसने ज्योतिषी वेद पाठी ब्राह्मणों से पूछा मेरे पिता का उद्धार कैसा होगा | ब्राह्मण बोले यहा समीप ही पर्वत ऋषि का  आश्रम है | उसकी शरणागति से शीध्र ही आपके पिता स्वर्ग को चले जाएंगे | राजा पर्वत ऋषि की शरण में गया और दंडवत करके कहने लगा मुझे रात्रि को सपने में पिता के दर्शन हुए हैं | मेरे पिता जी यमदूतो से दंड पा रहे है | अतः आप अपने योगबल से बताइए कि उनकी मुक्ति किस साधन से शीघ्र होगी | मुनि ने विचार कर कहा कि धर्म-कर्म सब देरी से फल देने वाले हैं | शीघ्रता से वरदाता तो केवल शंकर जी ही  प्रसिद्ध हैं | परंतु उनको प्रसन्न करना भी कोई आसान नहीं है देर अवश्य लग जाएगी और तब तक राजा तुम्हारे पिता को यमदूतो से कष्ट झेलना पड़ेगा | इसलिए सबसे सुगम और शीघ्र फल दे ने के लिए  मोक्षदा एकादशी का व्रत है | उसे विधि पूर्वक परिवार सहित कर के पिता को संकल्प कर दो | उसी से  उसकी मुक्ति होगी | राजा ने मोक्षदा एकादशी का व्रत करके फल पिता को अर्पण कर दिया | इसके प्रभाव से वह स्वर्ग  को चले गए और जाते हुए बोले मैं परमधाम को जा रहा हूं | श्रद्धा भक्ति से जो मोक्षदा एकादशी का महात्मय सुनता है उसे दस यग्य का फल मिलता है |

 

 

सफला एकादशी व्रत

 सफला एकादशी का व्रत पौष कृष्ण पक्ष एकादशी को किया जाता है इस दिन भगवान अच्युत की पूजा का विशेष विधान है | इस व्रत को धारण करने वाले को चाहिए कि प्रातः स्नान करके भगवान की आरती करें तथा भोग लगाए ब्राह्मणों तथा गरीबों को भोजन अथवा दान देना चाहिए | रात्रि में जागरण करते हुए कीर्तन पाठ करना अत्यंत फलदाई होता है | इस व्रत को करने से समस्त कार्यों में सफलता मिलती है | इसलिए इसका नाम सफला एकादशी है | 

सफला एकादशी व्रत की कथा - प्राचीन समय में महिष्मति नामक एक राजा चंपावती नाम की प्रसिद्ध नगरी में राज करता था | उसका बड़ा बेटा लुम्न्प्क बड़ा दुराचारी था | मांस मदिरा परस्त्री गमन वेश्याओं का संग  इत्यादि को कुकर्मों से परिपूर्ण था | पिता ने उसे अपने राज्य से निकाल दिया | वन में एक पीपल का वृक्ष था जो भगवान को भी प्रिय था सब देवताओं की क्रीड़ा स्थली भी वही थी | ऐसे पवित्र पावन वृक्ष के सहारे लुम्पक भी रहने लगा | परंतु फिर भी उसकी चाल तेद्री ही रही | पिता के राज्य में चोरी करने चला जाता तो पुलिस पकड़ कर छोड़ देती थी | एक दिन पौष मास के कृष्ण पक्ष की दशमी तिथि की रात्रि को उसने लूट मार एवं अत्याचार किया तो पुलिस ने उसके वस्त्र उतारकर वन को भेज दिया | वह बेचारा पीपल की शरण में आ गया | इधर हिमगिरी पर्वत की पवन भी पहुंच गई | लुम्पक  पापी के सब अंगों में गठिया रोग ने प्रवेश किया, हाथ पेर अकड़ गए | अतः सूर्य उदय होने के बाद कुछ दर्द कम हुआ पेट का गम लगा जीवो को मारने में आज असमर्थ था वृक्ष पर चढ़ने की शक्ति भी नहीं थी नीचे गिरे हुए फलों को बिन लाया और पीपल की जड़ में रखकर कहने लगा हे प्रभु वन फलों का आप ही भोग लगाइए | मैं अब भूख हड़ताल करके शरीर को छोड़ दूंगा मेरे कष्ट भरे जीवन से मौत भली ऐसा कहकर प्रभु के ध्यान में मगन हो गया रात भर उसे नींद नहीं आई भजन कीर्तन प्रार्थना करता रहा परंतु प्रभु ने उन फलों का भोग ना लगाया | प्रातः काल हुआ तो एक दिव्य अश्व  आकाश से उतर कर उसके सामने प्रकट हुआ | और आकाशवाणी द्वारा नारायण कहने लगे तुमने अनजाने में  सफला एकादशी का व्रत किया है उसके प्रभाव से तेरे समस्त पाप नष्ट हो गए अग्नि को जाने में या अंजाने में हाथ लगाने से हाथ जल जाते हैं वैसे ही एकादशी  भूल कर रखने से भी अपना प्रभाव दिखाती है | अब तो इस  घोड़े पर सवार होकर पिता के पास जाओ और राज  मिल जाएगा | सफला एकादशी सर्व मनोकामना सफल करने वाली है | प्रभु आज्ञा से लुम्पक पिता के पास आया पिता उसे राजगद्दी पर बिठाकर राजा वन में तप करने को चला गया | लुम्पक  के राज्य में प्रजा एकादशी व्रत विधि सहित करती थी | सफला एकादशी की कथा सुनने से अश्व मेघ ज्य्ग का फल मिलता है |

 

कन्या राशी 

कन्या लग्न में जन्म लेने वाले व्यक्ति का शरीर सामान्य या स्थूल और सुंदर होता है | इसकी आंखें बड़ी बड़ी होती हैं | यह कफ  एवं वात प्रवृत्ति वाला | सत्य भाषी,प्रिय वादी,गंभीर,कोमल स्वभाव सदैव प्रसन्न रहने वाला,अपने मन की बात को छुपाने वाला चतुर विचारशील मायावी भोगी काम कीड़ा कुशल डरपोक यात्रा प्रेमी गणितज्ञ धर्म में रुचि रखने वाला तथा अनेक प्रकार के गुण एवं कला कौशल से युक्त होता है | जिसे सुंदर स्त्री प्राप्त होती है तथा कन्या संतति अधिक होती है | यह भर्त्र द्रोही स्त्री द्वारा पराजित भी होता है | कन्या लग्न वाले जातक बालक अवस्था  में सुखी मध्य अवस्था में सामान्य तथा अंतिम अवस्था में दुख भोगने वाला होता है | कन्या लग्न वालो का भाग्योदय 24 से 26 वर्ष तक की आयु के बीच होता है | इस अवधि में वह अपने धन व एश्वर्य की वृद्धि करता है | परंतु वह अंत तक टिक नहीं पाता | कन्या लग्न में जन्म लेने वाला व्यक्ति व्यापारी खजांची मुनीम मंत्री दलाल अध्यापक साहित्यक व मनोवैज्ञानिक भी हो सकता है | किंतु नौकरी से विशेष लाभ की संभावना रहती है | कन्या लग्न वाले लोग  मकर मीन व वृषभ राशि वालों से मैत्री करें तो अच्छा रहता है | 

शुभ अशुभ ग्रह - बुध शुक्र शुभ | चन्द्र ,मंगल ,गुरु अशुभ रहते हैं शनि भी अशुभ | शुक्र अधिक शुभ रहता है | 

उदर व्याधि रोग की संभावना लगी रहती है | कन्या राशि का स्वामी बुद्ध होता है | कन्या लग्न का रत्न पन्ना | कन्या राशी वालो को  पन्ना रत्न पहनने से लाभ रहता है यह राशि चक्र की छठी राशि है।दक्षिण दिशा की द्योतक है। इस राशि का चिह्न हाथ में फ़ूल की डाली लिये कन्या है। इसका विस्तार राशि चक्र के 150 अंशों से 180 अंश तक है। इस राशि का स्वामी बुध है, 





पन्ना रत्न 

रत्न शास्त्र के अनुसार, पन्ना रत्न बुध ग्रह का प्रतिनिधित्व करता है | इसे धारण करने से व्यक्ति के जीवन में कई सफलता के मुकाम हासिल करने का योग बनता है | पन्ना सुंदर हरे रंग का चमकदार पारदर्शक बहुमूल्य रत्न है | यह बुध ग्रह का रत्न है | पन्ना  की कठोरता 4.5 से 8 तक होती है वैसे तो उत्तम कोटि का बेदाग और हरित आभा वाला पन्ना दुर्लभ है फिर भी आजकल के उपलब्ध पन्नों में उत्तम कोटि का पन्ना वही होता है जो लोचदार वजन में भारी हो स्पर्स में कोमल कमल के पत्ते या इमली के पत्ते जैसा उज्जवल हरे रंग का हो | अमेरिकी रूस का पन्ना उत्तम माने जाते हैं ज्योतिष शास्त्र में बुध की कमजोरी को दूर करने के लिए पन्ना धारण करने की सलाह दी जाती है लेकिन धारण करने के लिए शुद्ध एवं दोष रहित पन्ना ही उपयोगी होता है अगर दोषपूर्ण  पन्ना धारण कर भी लिया जाए तो उससे अच्छे परिणाम के बाजए  दुष्परिणाम अधिक मिलते हैं | गलत रत्न धारण करने से अधिकतर  नपुंसकता एवं मानसिक रोग  बढ़ जाते हैं इससे बेहतर तो यही होगा कि पन्ना रत्न पहने ही नहीं | रत्न पहने से पहले उसे शुद्ध करवा कर व उस ग्रह से संबंधित पूजा व दान अवश्य करे | 

यदि बुध दस अंश तक हो तो सात रती का पन्ना ठीक रहता है | यदि बुध बीस अंश तक रहे तो पांच रती का पन्ना ठीक रहता है | एक अनुमान के अनुसार अपना जितना वजन है उसके अनरूप रत्न पहनना चाहिए जैसे अगर आपका वजन 60  किलो है तो सवा 6 रती का पन्ना पहनना चाहिए |







बुद्ध ग्रह 

बुध ग्रह को बुद्धि, संचार और निर्णय क्षमता का कारक माना जाता है | वैसे तो यह एक शुभ ग्रह है लेकिन किसी क्रूर ग्रह के साथ आ जाने पर यह अशुभ फल देता है | कुंडली में बुध की स्थिति खराब हो त्वचा संबंधी विकार, शिक्षा में एकाग्रता की कमी और लेखन कार्य में समस्या आती है | ज्योतिष गणित डॉक्टरी बीमा एजेंसी बुद्धि शिल्प विद्या हास्य नृत्य लक्ष्मी गाना लेखन व्यापार का बुध ग्रह से सम्बन्ध है | बुध ग्रह शरीर पर त्वचा नाभि के निकट असर डालता है | बुध ग्रह 32 से 62 वर्ष तक शरीर पर प्रभाव दिखाता है | बुध ग्रह पुरुष नपुंसक ग्रह है और अगर इनको दो भागों में विभाजित करें तो यह स्त्री ग्रह है | बुध जिस ग्रह के साथ रहता है वैसा ही प्रभाव ग्रहण कर लेता है | बुध अस्त नहीं होता | बुध ग्रह का रत्न पन्ना है | यह वाणी व मातुल पक्छ का कारक है | सूर्य के साथ बठने पर  भी बुध अपना फल देता है |

ग्रहों का बलाबल - शनि से बलवान मंगल, मंगल से बलवान बुध, बुध से बलवान गुरु, गुरु से बलवान शुक्र, शुक्र से बलवान चंद्र, चंद्र से बलवान सूर्य | बुद्ध अनुराधा जेस्टा मूला नक्षत्र में बलवान होता है | बुध सूर्य और शुक्र मित्र होते हैं मंगल गुरु शनि सम रहते हैं और चंदर ग्रह  शत्रु हैं | जन्म कुंडली में अलग-अलग भागों में अलग-अलग फल देता है | बुध चतुर्थ भाव में कारक ग्रह है | अधिक जानकारी के लिए शर्मा जी 93120 02527 पर संपर्क करें |







मंडूकासन 

मंडूक का अर्थ है मेंढक अर्थात इस आसन को करते वक्त मेंढक के आकार जैसी स्थिति प्रतीत होती इसीलिए इसे मंडूकासन कहते हैं।

मंडूकासन के लाभ-

इस आसन से पेट के सभी अंगों की अच्छी मालिश होती है। फ्रॉग पोज वजन को कंट्रोल करता है। कब्ज और अपच की स्थिति में यह आसन बहुत असरदार है। यह पैंक्रियाज को उत्तेजित कर डायबिटीज को कंट्रोल करने में बहुत मदद करता है।मंडूक आसन करना बहुत आसान है और इसके फायदे बहुत गजब के हैं.दमा के मरीजों के लिए मंडूकासन एक आशाजनक उपचार है।

अगर आपके पास सुबह एक्सरसाइज करने का समय नहीं है तो सिर्फ 10 मिनट मंडूकासन करने से आपके पेट से जुड़ी सभी समस्याएं गायब हो जाएगी. 

 मंडूकासन कितनी बार करे - मंडूकासन का अभ्यास वैसे तो दो तीन बार जाता है | डायबिटीज के मरीज इसका अभ्यास योगाचार्य से पुच कर बरदा  सकते हैं। मंडूकासन भी कई तरह से किया जाता हैं। 

मंडूकासन के विधि : सर्वप्रथम दंडासन में बैठते हुए वज्रासन में बैठ जाएं फिर दोनों हाथों की मुठ्ठी बंद कर लें। अब नाभि के दोनों तरफ रख आगे की और चुके| किसी योगाचार्य  से संपर्क करके अपने शरीर के अनुसार आसन करे। योग सही तरीके से करे तो इसका असर कुछ ही दिनों  में दिखने लगता है। शरीर से सुस्ती गायब कर वजन सही होने लगता है | धीरे-धीरे शारीरक  ऊर्जा बढ़ने लग जाती है ।



साधक की कसौटी

एक शिष्य ने अपने आचार्य से आत्मसाक्षात्कार का उपाय पूछा। पहले तो उन्होंने समझाया बेटा यह कठिन मार्ग है, कष्टसाध्य क्रियाएँ करनी पड़ती हैं। तू कठिन साधनाएँ नहीं कर सकेगा, पर जब उन्होंने देखा कि शिष्य मानता नहीं तो उन्होंने एक वर्ष तक एकांत में गायत्री मंत्र का निष्काम जाप करके अंतिम दिन आने का आदेश दिया। शिष्य ने वही किया। वर्ष पूरा होने के दिन आचार्य ने झाड़ू देने वाली स्त्री से कहा कि अमुक शिष्य आवे तब उस पर झाड़ू से धूल उड़ा देना। स्त्री ने वैसा ही किया। साधक क्रोध में उसे मारने दौड़ा, पर वह भाग गई। वह पुनः स्नान करके आचार्य-सेवा में उपस्थित हुआ। आचार्य ने कहा -“अभी तो तुम साँप की तरह काटने दौड़ते हो, अत: एक वर्ष और साधना करो।” साधक को क्रोध तो आया परंतु उसके मन में किसी न किसी प्रकार आत्मा के दर्शन की तीव्र लगन थी, अतएव गुरु की आज्ञा समझकर चला गया। दूसरा वर्ष पूरा करने पर आचार्य ने झाड़ू लगाने वाली स्त्री से उस व्यक्ति के आने पर झाड़ू छुआ देने को कहा। जब वह आया तो उस स्त्री ने वैसा ही किया। परंतु इस बार वह कुछ गालियाँ देकर ही स्नान करने चला गया और फिर आचार्य जी के समक्ष उपस्थित हुआ। आचार्य ने कहा -“अब तुम काटने तो नहीं दौड़ते पर फुफकारते अवश्य हो, अत: एक वर्ष और साधना करो।” तीसरा वर्ष समाप्त होने के दिन आचार्य जी ने उस स्त्री को कूड़े की टोकरी उँड़ेल देने को कहा। स्त्री के वैसा करने पर शिष्य को क्रोध नहीं आया बल्कि उसने हाथ जोड़कर कहा–“’हे माता! तुम धन्य हो।’ तीन वर्ष से मेरे दोष को निकालने के प्रयत्न में तत्पर हो। वह पुन: स्नान कर आचार्य सेवा में उपस्थित हो उनके चरणों में गिर पड़ा।







मेरी का उपहार

मेरी का पति बहुत निर्धन था पर पति-पत्नी में अगाध प्रेम, अविचल निष्ठा, असीम पवित्रता थी। वह प्रति वर्ष अपने विवाह की जयंती मनाया करते थे। उस दिन अपने विगत जीवन के कर्त्तव्य-पालन पर संतोष, प्रसन्‍नता और परस्पर कृतज्ञता व्यक्त करते थे। भूलों की क्षमा माँगते थे और आगे के लिए और भी सचेष्ट कर्त्तव्य पालन की प्रतिज्ञा लेते थे। यह पहला ही विवाह दिवसोत्सव था, जब उनके पास एक-दूसरे को देने के लिए कुछ नहीं था। मेरी के बाल बड़े सुंदर थे पर उन्हें सँवारने के लिए कंघा न था। पति के पास घड़ी थी पर उसकी चेन न थी। दोनों एक-दूसरे को उपहार देना चाहते थे, पर क्या दें, यह दोनों की हैरानी थी। दोनों बाजार गए। चुपचाप, अलग-अलग। मेरी ने अपने सुंदर बाल कटवाकर बेच दिए, उनसे जो पैसा मिला पति के लिए घड़ी की चेन खरीद ली। पति ने अपनी घड़ी बेच दी और उससे मेरी के लिए कंघी खरीदी। दोनों नियत समय पर अपने-अपने उपहार लिए घर पहुँचे। पर यह देखकर दोनों थोड़ी देर के लिए दुखित हो गए कि जिस घड़ी के लिए चेन आई वह भी बिक गई, जिन बालों के लिए कंघी आई वह भी कट गए। थोड़ी देर तक दोनों दुखी रहे पर दोनों ने एक दूसरे के प्रति अपनी प्रेम-भावना को याद किया तो उनका हृदय गदगद हो उठा।इस तरह का निश्छल और निष्काम प्रेम जहाँ भी होता है, वहीं ईश्वरीय सत्ता का वास्तविक संपर्क दिखाई देता है। प्रेम की सार्थकता निष्काम भावना में ही है।






फूट विनाश का कारण

कुछ लकड़हारे लकड़ी काटने के मंतव्य से एक जंगल में घूम- घूम कर वृक्षों का निरीक्षण करने लगे। उनको ऐसा करते देखकर जंगल के वृक्ष शोक करने लगे। उनको शोक करते देखकर एक पुराने वटवृक्ष ने पूछा -“बंधुओ ! तुम लोग इस प्रकार किस कारण से शोक कर रहे हो ?!! वृक्षों ने कहा -”आप देख नहीं रहे हैं कि यह अनेक लकड॒हारे हम सबको देखते फिर रहे थे। कुछ ही समय में यह सबको काटकर गिरा देंगे।’ वटवृक्ष ने उन्हें ढाढ़स बँधाते हुए कहा -”तुम सब व्यर्थ चिंतित हो रहे हो, लकड़हारे हममें से किसी का कुछ बिगाड़ नहीं सकते।’ कुछ समय बाद लकड़हारों ने जंगल में अपने तंबू लगा लिए और काटने कौ योजना बनाने लगे। वृक्ष अब और दुखी होने लगे। वृक्ष ने उन्हें पुन: समझाया -‘तुम सब प्रसन्‍न रहो। हम सब इतने मजबूत हैं कि इनकी योजना कदापि सफल नहीं हो सकती। ‘वटवृक्ष की बात सुन कर वृक्षों की चिंता जाती रही। किंतु जब एक दिन बहुत सी लोहे की कुल्हाड़ियाँ बनकर आ गईं तो बेचारे वृक्ष वटवृक्ष को भला-बुरा कहने लगे। वे बोले -”आप तो कह रहे थे कि ये लकड्हारे अपनी योजना में सफल नहीं हो सकते। किंतु यह तो दिन-दिन हम सबको काटने का उपक्रम करते ही जा रहे हैं। अब तो लोहे की कुल्हाड़ियाँ भी बनकर आ गईं। अब हममें से किसी की खैरियत नहीं है।”! वटवृक्ष ने फिर कहा -”इतनी ही नहीं, इससे चार गुनी कुल्हाड़ियाँ बनकर क्‍यों न आएँ और इतने ही लकड़हारे इकट्ठे हो जाएँ तब भी हममें से किसी का बाल बाँका नहीं कर सकते। किंतु एक दिन जब कुल्हाड़ियों में लकड़ी के बेंट पड़ गए तो अन्य वृक्षों के कुछ कहने से पहले ही वटवृक्ष बोला -” भाइयो! अब हम सबको इस सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा भी नहीं बचा सकते हम सब काट डाले जाएँगे।’ जंगल के सारे वृक्ष बरगद से कहने लगे -‘“जब हम सब कटने की बात कहते थे तब आप हमको मूर्ख समझते थे और विश्वास दिलाते थे कि ये लकड़हारे हमारा कुछ नहीं बिगाड़ सकते, पर अब क्या बात हो गई जो आप स्वयं ही निराशा की बात करने लगे!” वटवृक्ष ने गंभीरता से उत्तर दिया -‘तब तक केवल लकड़हारे और कुल्हाड़ी एक दूसरे के सहायक थे इसलिए हमको कोई खतरा नहीं था। किंतु अब देखो न कि हमारे ही कुल का काष्ठ लकड़हारों की कुल्हाड़ी का बेंट बनकर हमारे विनाश में सहायक हो रहा है। जब अपना ही कोई व्यक्ति शत्रु का सहायक बन जाता है तब विनाश से बच सकना असंभव हो जाता है। ”वटवृक्ष की बात ठीक निकली। दूसरे ही दिन से लकड़हारों ने वृक्षों पर कुल्हाड़ी बजाना शुरू कर दिया और कुछ ही समय में जंगल को काटकर नीचे गिरा दिया

अंधविश्वास की जड़

एक थे पंडित जी! नाम था सज्जन प्रसाद। सज्जन, सदाचारी भी थे और ईश्वर भक्त भी, किंतु धर्म का कोई विज्ञान सम्मत स्वरूप भी है, यह वे न जानते थे। प्रतिदिन प्रातःकाल पूजा समाप्त करके पंडित जी शंख बजाते। वह आवाज सुनते ही पड़ोस का गधा किसी गोत्रबंधु की आवाज समझकर स्वयं भी रेंक उठता। पंडित जी प्रसन्‍न हो उठते कि ये गधा जरूर कोई पूर्व जन्म का महान तपस्वी और भक्त है। एक दिन गधा नहीं चिल्लाया, पंडित जी ने पता लगाया मालूम हुआ कि गधा मर गया। गधे के सम्मान में उन्होंने अपना सिर घुटाया और विधिवत तर्पण किया। शाम को वे बनिए की दुकान पर गए। बनिये को शक हुआ–‘“ महाराज ! आज यह सिर घुटमुंड कैसा ? ‘अरे! भाई शंखराज की इहलीला समाप्त हो गई है। बनिया पंडित का यजमान था, उसने भी अपना सर घुटा लिया। बात जहाँ तक फैलती गई, लोग अपने सिर घुटाते गए। छूत बड़ी खराब होती है। एक सिपाही बनिये के यहाँ आया। उसने तमाम गाँव वालों को सर मुड़ाए देखा, पता चला शंखराज जी महाराज नहीं रहे, तो उसने भी सिर घुटाया। धीरे-धीरे सारी फौज सिर-सपाट हो गई। अफसरों को बड़ी हैरानी हुई। उन्होंने पूछा -”भाई बात क्‍या हुई। ‘पता लगाते-लगाते पंडित जी के बयान तक पहुँचे और जब मालूम हुआ कि शंखराज कोई गधा था, तो मारे शरम के सबके चेहरे झुक गए। एक अफसर ने सैनिकों से कहा -“’ऐसे अनेक अंधविश्वास समाज में केवल इसलिए फैले हैं कि उनके मूल का ही पता नहीं है। धर्म परंपरावादी नहीं, सत्य की प्रतिष्ठा के लिए है, वह सुधार और समन्वय का मार्ग है, उसे ही मानना चाहिए।”





           दो पत्थर

नदी पहाड़ों की कठिन व लम्बी यात्रा के बाद तराई में पहुंची। उसके दोनों ही किनारों पर गोलाकार, अण्डाकार व बिना किसी निश्चित आकार के असंख्य पत्थरों का ढेर सा लगा हुआ था। इनमें से दो पत्थरों के बीच आपस में परिचय बढ़ने लगा। दोनों एक दूसरे से अपने मन की बातें कहने-सुनने लगे l इनमें से एक पत्थर एकदम गोल-मटोल, चिकना व अत्यंत आकर्षक था जबकि दूसरा पत्थर बिना किसी निश्चित आकार के, खुरदरा व अनाकर्षक था।एक दिन इनमें से बेडौल, खुरदरे पत्थर ने चिकने पत्थर से पूछा, ‘‘हम दोनों ही दूर ऊंचे पर्वतों से बहकर आए हैं फिर तुम  इतने गोल-मटोल, चिकने व आकर्षक क्यों हो जबकि मैं नहीं?’’ यह सुनकर चिकना पत्थर बोला, “पता है शुरुआत में मैं भी बिलकुल तुम्हारी तरह ही था लेकिन उसके बाद मैं निरंतर कई सालों तक बहता और लगातार टूटता व घिसता रहा हूं,ना जाने मैंने कितने तूफानों का सामना किया है|कितनी ही बार नदी के तेज थपेड़ों ने मुझे चट्टानों पर पटका है…तो कभी अपनी धार से मेरे शरीर को  काटा है,तब कहीं जाकर मैंने ये रूप पाया है।जानते हो, मेरे पास हेमशा ये विकल्प था कि मैं इन कठनाइयों से बच जाऊं और आराम से एक किनारे पड़ा रहूँ पर क्या ऐसे जीना भी कोई जीना है? नहीं, मेरी नज़रों में तो ये मौत से भी बदतर है! तुम भी अपने इस रूप से निराश मत हो… तुम्हें अभी और संघर्ष करना है और निरंतर संघर्ष करते रहे तो एक दिन तुम मुझसे भी अधिक सुंदर, गोल-मटोल, चिकने व आकर्षक बन जाओगे। मत स्वीकारो उस रूप को जो तुम्हारे अनुरूप ना हो तुम आज वही हो जो मैं कल था कल तुम वही होगे जो मैं आज हूँ या शायद उससे भी बेहतर!”, चिकने पत्थर ने अपनी बात पूरी की।दोस्तों, संघर्ष में इतनी ताकत होती है कि वो इंसान के जीवन को बदल कर रख देता है। आज आप चाहे कितनी ही विषम पारिस्थति में क्यों न हों… संघर्ष करना मत छोड़िये अपने प्रयास बंद मत करिए |आपको बहुत बार लगेगा कि आपके प्रयत्नों का कोई फल नहीं मिल रहा लेकिन फिर भी प्रयत्न करना मत छोडिये। और जब आप ऐसा करेंगे तो दुनिया की कोई ताकत नहीं जो आपको सफल होने से रोक पाएगी।


पिता का आशीर्वाद

एक व्यापारी की यह सत्य घटना है। जब मृत्यु का समय सन्निकट आया तो पिता ने अपने एकमात्र पुत्र धनपाल को बुलाकर कहा कि बेटा मेरे पास धनसंपत्ति नहीं है कि मैं तुम्हें विरासत में दूं। पर मैंने जीवनभर सच्चाई और प्रामाणिकता से काम किया है। तो मैं तुम्हें आशीर्वाद देता हूं कि, तुम जीवन में बहुत सुखी रहोगे और धूल को भी हाथ लगाओगे तो वह सोना बन जायेगी। बेटे ने सिर झुकाकर पिताजी के पैर छुए। पिता ने सिर पर हाथ रखकर आशीर्वाद दिया और संतोष से अपने प्राण त्याग कर दिए। अब घर का खर्च बेटे धनपाल को संभालना था। उसने एक छोटी सी ठेला गाड़ी पर अपना व्यापार शुरू किया। धीरे धीरे व्यापार बढ़ने लगा। एक छोटी सी दुकान ले ली। व्यापार और बढ़ा।

अब नगर के संपन्न लोगों में उसकी गिनती होने लगी। उसको विश्वास था कि यह सब मेरे पिता के आशीर्वाद का ही फल है। क्योंकि, उन्होंने जीवन में दु:ख उठाया, पर कभी धैर्य नहीं छोड़ा, श्रद्धा नहीं छोड़ी, प्रामाणिकता नहीं छोड़ी इसलिए उनकी वाणी में बल था। और उनके आशीर्वाद फलीभूत हुए। और मैं सुखी हुआ। उसके मुंह से बारबार यह बात निकलती थी। 

.एक दिन एक मित्र ने पूछा: तुम्हारे पिता में इतना बल था, तो वह स्वयं संपन्न क्यों नहीं हुए? सुखी क्यों नहीं हुए? धर्मपाल ने कहा: मैं पिता की ताकत की बात नहीं कर रहा हूं। मैं उनके आशीर्वाद की ताकत की बात कर रहा हूं। इस प्रकार वह बारबार अपने पिता के आशीर्वाद की बात करता, तो लोगों ने उसका नाम ही रख दिया बाप का आशीर्वाद! धर्मपाल को इससे बुरा नहीं लगता, वह कहता कि मैं अपने पिता के आशीर्वाद के काबिल निकलूं, यही चाहता हूं। ऐसा करते हुए कई साल बीत गए। वह विदेशों में व्यापार करने लगा। जहां भी व्यापार करता, उससे बहुत लाभ होता। 

.एक बार उसके मन में आया, कि मुझे लाभ ही लाभ होता है !! तो मैं एक बार नुकसान का अनुभव करूं। तो उसने अपने एक मित्र से पूछा, कि ऐसा व्यापार बताओ कि जिसमें मुझे नुकसान हो। मित्र को लगा कि इसको अपनी सफलता का और पैसों का घमंड आ गया है। इसका घमंड दूर करने के लिए इसको ऐसा धंधा बताऊं कि इसको नुकसान ही नुकसान हो। तो उसने उसको बताया कि तुम भारत में लौंग खरीदो और जहाज में भरकर अफ्रीका के जंजीबार में जाकर बेचो। धर्मपाल को यह बात ठीक लगी। जंजीबार तो लौंग का देश है। वहां से लौंग भारत में लाते हैं और यहां 10-12 गुना भाव पर बेचते हैं। भारत में खरीद करके जंजीबार में बेचें, तो साफ नुकसान सामने दिख रहा है। परंतु धर्मपाल ने तय किया कि मैं भारत में लौंग खरीद कर, जंजीबार खुद लेकर जाऊंगा। देखूं कि पिता के आशीर्वाद कितना साथ देते हैं। नुकसान का अनुभव लेने के लिए उसने भारत में लौंग खरीदे और जहाज में भरकर खुद उनके साथ जंजीबार द्वीप पहुंचा। जंजीबार में सुल्तान का राज्य था। धर्मपाल जहाज से उतरकर के और लंबे रेतीले रास्ते पर जा रहा था ! वहां के व्यापारियों से मिलने को।  उसे सामने से सुल्तान जैसा व्यक्ति पैदल सिपाहियों के साथ आता हुआ दिखाई दिया।

.उसने किसी से पूछा कि, यह कौन है?

.उन्होंने कहा: यह सुल्तान हैं।

.सुल्तान ने उसको सामने देखकर उसका परिचय पूछा। उसने कहा: मैं भारत के गुजरात के खंभात का व्यापारी हूं। और यहां पर व्यापार करने आया हूं। सुल्तान ने उसको व्यापारी समझ कर उसका आदर किया और उससे बात करने ल धर्मपाल ने देखा कि सुल्तान के साथ सैकड़ों सिपाही हैं। परंतु उनके हाथ में तलवार, बंदूक आदि कुछ भी न होकर बड़ी-बड़ी छलनियां है। उसको आश्चर्य हुआ। उसने विनम्रता पूर्वक सुल्तान से पूछा: आपके सैनिक इतनी छलनी लेकर के क्यों जा रहे हैं। सुल्तान ने हंसकर कहा: बात यह है, कि आज सवेरे मैं समुद्र तट पर घूमने आया था। तब मेरी उंगली में से एक अंगूठी यहां कहीं निकल कर गिर गई। अब रेत में अंगूठी कहां गिरी, पता नहीं। तो इसलिए मैं इन सैनिकों को साथ लेकर आया हूं। यह रेत छानकर मेरी अंगूठी उसमें से तलाश करेंगे। धर्मपाल ने कहा: अंगूठी बहुत महंगी होगी। सुल्तान ने कहा: नहीं! उससे बहुत अधिक कीमत वाली अनगिनत अंगूठी मेरे पास हैं। पर वह अंगूठी एक फकीर का आशीर्वाद है। मैं मानता हूं कि मेरी सल्तनत इतनी मजबूत और सुखी उस फकीर के आशीर्वाद से है। इसलिए मेरे मन में उस अंगूठी का मूल्य सल्तनत से भी ज्यादा है। इतना कह कर के सुल्तान ने फिर पूछा: बोलो सेठ, इस बार आप क्या माल ले कर आये हो।

.धर्मपाल ने कहा कि: लौंग! सुल्तान के आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा। यह तो लौंग का ही देश है सेठ। यहां लौंग बेचने आये हो? किसने आपको ऐसी सलाह दी। जरूर वह कोई आपका दुश्मन होगा। यहां तो एक पैसे में मुट्ठी भर लोंग मिलते हैं। यहां लोंग को कौन खरीदेगा? और तुम क्या कमाओगे? धर्मपाल ने कहा: मुझे यही देखना है, कि यहां भी मुनाफा होता है या नहीं। मेरे पिता के आशीर्वाद से आज तक मैंने जो धंधा किया, उसमें मुनाफा ही मुनाफा हुआ। तो अब मैं देखना चाहता हूं कि उनके आशीर्वाद यहां भी फलते हैं या नहीं। सुल्तान ने पूछा: पिता के आशीर्वाद? इसका क्या मतलब? धर्मपाल ने कहा: मेरे पिता सारे जीवन ईमानदारी और प्रामाणिकता से काम करते रहे। परंतु धन नहीं कमा सकें। उन्होंने मरते समय मुझे भगवान का नाम लेकर मेरे सिर पर हाथ रखकर आशीर्वाद दिए थे, कि तेरे हाथ में धूल भी सोना बन जाएगी। ऐसा बोलते-बोलते धर्मपाल नीचे झुका और जमीन की रेत से एक मुट्ठी भरी और सम्राट सुल्तान के सामने मुट्ठी खोलकर उंगलियों के बीच में से रेत नीचे गिराई तो धर्मपाल और सुल्तान दोनों का आश्चर्य का पार नहीं रहा। उसके हाथ में एक हीरेजड़ित अंगूठी थी। यह वही सुल्तान की गुमी हुई अंगूठी थी। अंगूठी देखकर सुल्तान बहुत प्रसन्न हो गया। बोला: वाह खुदा आप की करामात का पार नहीं। आप पिता के आशीर्वाद को सच्चा करते हो। धर्मपाल ने कहा: फकीर के आशीर्वाद को भी वही परमात्मा सच्चा करता है। सुल्तान और खुश हुआ। धर्मपाल को गले लगाया और कहा: मांग सेठ। आज तू जो मांगेगा मैं दूंगा। धर्मपाल ने कहा: आप 100 वर्ष तक जीवित रहो और प्रजा का अच्छी तरह से पालन करो। प्रजा सुखी रहे। इसके अलावा मुझे कुछ नहीं चाहिए। सुल्तान और अधिक प्रसन्न हो गया। उसने कहा: सेठ तुम्हारा सारा माल में आज खरीदता हूं और तुम्हारी मुंह मांगी कीमत दूंगा। इस कहानी से शिक्षा मिलती है, कि पिता के आशीर्वाद हों, तो दुनिया की कोई ताकत कहीं भी तुम्हें पराजित नहीं होने देगी। पिता और माता की सेवा का फल निश्चित रूप से मिलता है। आशीर्वाद जैसी और कोई संपत्ति नहीं। बालक के मन को जानने वाली मां और भविष्य को संवारने वाले पिता यही दुनिया के दो महान ज्योतिषी है।अपने बुजुर्गों का सम्मान करें! यही भगवान की सबसे बड़ी सेवा है।

बाबू गेनू सैद

बाबू गेनू सैद  स्वतंत्रता-संग्राम सेनानी एवं क्रांतिकारी थे। उन्हें स्वदेशी के लिये बलिदान होने वाला पहला व्यक्ति माना जाता है। 12 दिसम्बर/बलिदान-दिवस : बाबू गेनू का बलिदान : स्वदेशी दिवस


घर की बहू

"सुन्दर, सुशील, शालीन, मृदुभाषी, संस्कारित, पढ़ी लिखी, दूसरे को सम्मान करने वाली, अपनी संस्कृति का आदर करने वाली, गृह कार्य दक्ष कन्या

  ऐसे  विज्ञापन अब अखबार में नहीं छपते... क्योंकि अब लोग घर में वधू नहीं लाना चाहते एक कमाऊ व्यक्ति ही लाना चाहते हैं.. अब बेटे की वधू देखने में चाँद का टुकड़ा हो और घर के कार्यों में कुशल हो ऐसा कोई नहीं चाहता.. अब दिखावा बहू के पद का होता है उनको अपने बेटे की जोड़ीदार चाहिए जो नौकरी में पैसा कमाने में उसकी बराबरी करें। अब यदि घर चलाने वाली अच्छी लड़की हो भी तो उसका मजाक उड़ाया जाता है उसके रिश्ते नहीं मिलते... अब हर तरफ लालच है अब सुंदर सी बहू आये ये सपना बेटे की माँ भी नहीं संजोती। अब बेटियों को घर संभालने के लिए तैयार नहीं किया जाता.. बेटी के जन्म पर खुश होकर माँ और दादी उसके लिए हर साल 1-1 ज़ेवर नहीं बनवातीं। एक एक कपड़ा संजोकर नहीं रखती उसके दहेज के लिए एक एक बर्तन इकट्ठा नहीं करती उसके दहेज के लिए। अब माएं बिटिया के पराए घर जाने की सपने नहीं देखतीं... उसे कोई सुलक्षण नहीं देतीं, कुछ नहीं सिखाती, यदि सिखाती हैं तो सिर्फ बराबरी करना... उन बेटियों से जो या तो बहुत बड़े घरों की हैं और या वे जिन्होंने बहुत ऊंचाई तक कोई मुकाम हासिल किया हुआ है। वे नहीं जीना चाहती सामान्य जीवन... वो नहीं बनना चाहतीं किसी की प्रेमिका, किसी की प्यारी पत्नी, किसी की प्रिय पुत्र वधू, वो नहीं बनाना चाहतीं अपनी गृहस्थी, नहीं बसाना चाहती घर,  नहीं करना चाहतीं वंश की वृद्धि...

 अब नहीं होते विवाह अब सिर्फ DEAL होती है। जिस दिन इस DEAL में थोड़ी सी भी ऊपर नीचे हुई वहीं दोनों में से एक पक्ष तलाक के लिए अदालत में खड़ा मिलता है | अब औरत बनना चाहती हैं मर्द... अब स्त्री ने पुरुष होने की चाह में अपना भी अस्तित्व खो दिया है। आज की स्त्री ना स्त्री बन पाई ना ही पुरुष। आज की आधुनिक स्त्री पुरुष की बराबरी करती है रहती है उसके साथ बिना विवाह किये लिव इन रिलेशनशिप में | आज की आधुनिक स्त्री किसी के फ्रिज की या सूटकेस की बढ़ाती है शोभा | आज की आधुनिक स्त्री  कटी पड़ी रहती है 35 टुकड़ों में | यहहै आज की आधुनिक स्त्री का सशक्तिकरण |

बेटियों के पंख खुलने दो बेटियों को उड़ने दो.. मुझे हैरानी है उन माता-पिता पर जो बेटियों को उड़ने की शिक्षा देते हैं | कुछ एफएम चैनल रेडियो पर इस बात का बढ़ावा देते हैं कि लड़कियां घर का काम क्यों करें लड़कियां रसोई क्यों चलाएं लड़कियां रसोई में खाना क्यों बनाए लड़के बनाएंगे खाना और रसोई के लिए बहुत गंदा शब्द "रसोड़ा"  मैंने रेडियो पर एंकर को कहते सुना है.. जो कि हम हिंदू परिवारों का सबसे पवित्र स्थान होता है घरों में.. स्त्री अन्नपूर्णा होती है घर की.. उसको रसोई से अलग कर रहे हैं ये.. ऐसा नेरिटिव चलाते हैं ये लोग। लिव इन रिलेशनशिप में रहने का लड़कियों को बेतुकी आजादी देने का और इस तरह के जघन्य अपराधों का हर वो व्यक्ति, नेता, पार्टी, कानून सभी जिम्मेदार हैं जिन्होंने ऐसे कानून बनाए हैं | लड़कियों के विवाह की उम्र और कम होनी चाहिए 15 वर्ष हो वरना 18 की उम्र में वो कहेंगी पिता को आंखें दिखा कर  कि हम तो बालिग हैं जिससे चाहे शादी करें चाहे वो शांतिदूत ही क्यों ना हो। और यदि अट्ठारह में उसने अपनी मर्जी से शादी नहीं की तो 25 की उम्र में किसी के फ्रिज में 35 टुकड़ों में कटी हुई ही पाई जाएगी | फैसला हम सभी सनातनी परिवारी जनों के हाथ में है... हमें बच्चों की बात माननी चाहिए लड़कियों को शिक्षित करना चाहिए मगर उनकी डोर तोड़ नहीं देनी चाहिए खुद से... कोई तो मोह, प्रेम का बंधन बांध के रखना चाहिए अपने बच्चों से कि वह ऐसा कदम ना उठाए... अपने बच्चों पर निगाह रखनी चाहिए.. विशेषकर लड़कियों पर |  

बाघा जतीन

बाघा जतीन के बचपन का नाम जतीन्द्रनाथ मुखर्जी (जतीन्द्रनाथ मुखोपाध्याय) था। वे ब्रिटिश शासन के विरुद्ध कार्यकारी दार्शनिक क्रान्तिकारी थे। वे युगान्तर पार्टी के मुख्य नेता थे। युगान्तर पार्टी बंगाल में क्रान्तिकारियों का प्रमुख संगठन थी।







मुली के कोफ्ते 

सर्दी के मोसम में लगता कुछ गर्मागर्म हो जाए तो बनाए मुली के कोफ्ते ,पहले चाय के साथ खाए बच जाये तो सब्जी बना कर खाए | 

मुली के कोफ्ते की सामग्री - मुली,अदरक,हरी मिर्च,टमाटर,बेसन,नमक,लाल मिर्च,हल्दी,धनिया पावडर,हरा धनिया,गरम मसाला,अमचुर,जीरा,हींग,अजवायन,घी/तेल,काजू,बादाम,मखाना,सौंफ,प्याज लहसन,इलाइची,तेज पता,दही,मलाई |

मुली के कोफ्ते बनाने की विधि - मुली को धो कर छिल कर कदू कस करले ,मुली का पानी निचोथ ले | पानी को अलग रखले |मुली में बेसन नमक लाल मिर्च धनिया पावडर जीरा अजवायन सोंफ गरम मसाला अमचुर डाल के मिला ले गाडा घोल बना ले अगर मुली वाला पानी डाले वैसे जरूरत होगी नहीं | कड़ाई में तेल गरम कर तल माध्यम आंच में तल ले | आप इन्हें गर्मागर्म चाय के साथ खाने का आनन्द ले अगर हरी चटनी भी ले स्वाद और बढ़ जायेगा | आप चाहे तो रसा बना कर सब्जी भी बना सकते है |

रसा/ग्रेवी बनाने की विधि - प्याज लहसन हरी मिर्च पीस ले ,टमाटर अदरक काजू बादाम मखाना छोटो इलाइची सोंफ अलग पिसें ,कड़ाई में घी गरम कर जीरा तेज पता डाले जीरा भूनने के साथ प्याज लहसन का पेस्ट डाले ध्यान रहे लगे ना आवस्यकता हो तो धोरा पानी डाले भूरा होने के बाद टमाटर का पेस्ट डाले नमक हल्दी मिर्च धनिया डाल कर भुने एक दही व मलाई डाले जब मसाला घी छोड़ दे तो आवस्यकता अनुसार पानी डाल कर रसा को अव्ह्व्हे से उबाल ले कोफ्ते डाले गरम मसला अमचुर डाल कर दो मिनट में गैस बंद कर दे उपर से हरा धनिया मेवे डाल कर परोसे |-मिथलेश शर्मा  

नोट - आप इसे विना प्याज लहसन के भी बना सकते है |





अहसास 

 आज वर्षो पूर्व का स्वाद याद आ गया. गोलगप्पे खूब चाव से खाता था | उम्र बढ़ जाने के कारण अब ऐसी चीजो को खाने से डॉक्टर भी मना करते हैं और शरीर भी. पर इस मन का क्या करे? अजीब सी बेचैनी है. बाहर खुद ठेले पर जाकर गोलगप्पे खाने में संकोच हो रहा था, लोग क्या कहेंगें और किसी ने मज़ाक में भी बेटे से बोल दिया तो पता नही वो कैसे रिऐक्ट करेगा? सोने का प्रयास करता पर नींद भी नही आती, ध्यान बार बार गोलगप्पे पर | ऐसे ही शाम हो गयी, बेटा अपने ऑफिस से कब वापस आया पता ही नहीं चला. वो अपने प्रतिदिन की चर्या के अधीन सीधा मेरे कमरे में आया और मुझे गुमसुम देख एकदम मेरे पास आकर बैठ गया. सच में मुझे वो बेइंतिहा प्यार करता है | पापा, क्या बात है, आज आप उदास से लग रहे हो, क्या बात है? क्या किसी ने कुछ कहा है? बताओ ना पापा? अब मैं उसे अपनी दुविधा कैसे बताता? पता नहीं मेरी गोलगप्पे खाने की इच्छा पर वो नाराज होता या हंसता या फिर गोलगप्पे इस उम्र में खाने के नुकसान गिनाता. इसलिये मैंने चुप रहना ही श्रेयस्कर समझा. पर वो मेरा पीछा कहाँ छोड़ने वाला था. पापा आपको मेरी कसम सच बताओ क्या बात है, क्या सोच मन में चल रही है? अब क्या कहता, बात को हल्के से उड़ाते हुए बोला, अरे बेटा कुछ नही, बस ऐसे ही श्याम चाट वाले के गोलगप्पे याद आ गये थे, कितने स्वादिष्ट बनाता था, चटपटा पानी, बस वो याद आ रहे थे. बरबस ही सच्ची बात मुहँ से निकल ही गयी |वाह पापा, पहले क्यों नही बताया? मैं आज ही नुक्कड पर ठेले पर चाट बेचने वाले को कल शाम 4 बजे आने को बोल देता हूं. आप जी भर गोलगप्पे खाना और जब भी आगे मन करे उसे बुलवा लेना, मैं उसे कह दूँगा वो आपके बुलाने पर यही आकर आप जो कहेगे खिला कर जायेगा | सुबह से चली कशमकश इतनी सरलता से समाप्त हो जायेगी, सोचा ही नही था. अब बस कल का इंतजार था | अगले दिन बड़ी इंतजार के बाद 4 बजे और चाट वाले ने दरवाजे पर आवाज लगाई. मैं एकदम प्रसन्नता से सरोबार हो दरवाजे पर लपक लिया. सामने चाट वाला ही था. वो बोला दादा मसाला हल्का रखूं या तेज. मैंने कहा थोड़ा तेज. वो मसाला बनाने लगा | अचानक मैं इतनी देर में अपने अतीत में 35 वर्ष पहले पहुंच गया. ऐसे ही वृद्ध अवस्था में मेरे बाबूजी जी ने आलू पूडी खाने की इच्छा प्रकट की थी. मैं भी अपने बाबूजी जी को जान से ज्यादा प्यार करता था, पर मैंने उन्हें कहा अरे बाबूजी क्या इस उम्र में भी जीभ नहीं सम्भल रही? पूडी आपको नुकसान देगी, डॉक्टर वैसे भी तली चीजों को मना करते हैं. मैं आज आपकी पसंद की लीची लाया हूँ, उन्हें खाओ ना | बाबूजी मायूस से बोले मुन्ना अब कितना जीना है, चल जैसी तेरी मर्जी | वास्तव में बाबूजी दो माह ही जी पाये, उनका शरीर पूरा हो गया. उनके श्राद्ध पर घर में आलू पूडी जो उनको बेहद पसंद थी, जरूर बनवाते हैं और कोवो को खिलाते हैं |जीते जी बाबूजी जी इच्छा पूरी न कर पाने का मलाल जरूर था, काश उस दिन हम उन्हें आलू पूडी चखा देते, कितना जी पाये वो? आज मेरा बेटा भी मुझे डाक्टर की सलाह बता मना कर देता तो? बाबूजी की पसंद को हम कौवों को तो खिला रहे हैं, पर उन्हें ना खिला पाये. मेरी आँखों से झर झर आँसू टपक रहे थे और हाथ में गोलगप्पे लिये खड़ा चाट वाला मुझे देख रहा था टुकुर टुकुर|- बालेश्वर गुप्ता,नोयडा


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

जानकारी काल हिन्दी मासिक जुलाई -2025

  जानकारी काल      वर्ष-26   अंक - 02        जुलाई - 2025 ,  पृष्ठ 43                www.sumansangam.com      प्रधान संपादक व  प्रकाशक  सती...