गुरुवार, 29 दिसंबर 2022

नर सेवा नारायण सेवा

 

नरसेवा-नारायण सेवा 

1 जनवरी की सर्द रात 'वीरभद्र' अपनी पत्नी रीता के संग, एक दोस्त के यहाँ हुई नये साल की पार्टी से लौट रहे थे। बाहर बड़ी कड़ाके की ठंड थी! दोनों पति-पत्नी कार से वापस घर की ओर जा रहे थे कि तभी सड़क किनारे, पेड़ के नीचे, पतली पुरानी फटी-चिथड़ी चादर में लिपटे, एक बूढ़े भिखारी को देख, वीरभद्र जी का दिल द्रवित हो गया! उन्होंने गाड़ी रोकी। पत्नी रीता ने अपने पति को हैरानी से देखते हुए कहा... *"क्या हुआ, गाडी़ क्यों रोकी यहाँ आपने...??"**"वह बूढ़ा ठंड से कांप रहा है रीता! इसलिए गाडी़ रोकी।"  "तो ?" वीरभद्र बोले- "अरे गाडी़ में जो कंबल पड़ा है ना उसे दे देते हैं..." "क्या *वो कंबल* इतना महँगा कंबल आप इसको देंगे ?? अरे वह उसे ओढ़ेगा नहीं बल्कि बेच देगा, ये ऐसे ही होते हैं...!" वीरभद्र जी मुस्कुराकर गाडी से उतरे और कंबल डिग्गी से निकालकर उस बुजुर्ग को दे दिया! रीता बहुत गुस्से में आ गई। दोनों फ़िर गाड़ी से घर की ओर चल पड़े। अगले दिन भी बड़े गजब की ठंड थी...आज भी वीरभद्र और रीता एक पार्टी से लौट रहे थे तो अचानक रीता ने कहा... चलिए, एकबार देखें... कल रात वाले बूढ़े का क्या हाल है...! वीरभद्र ने वहीं गाडी़ रोकी और देखा तो वह बूढ़ा भिखारी तो था, मगर उसके पास वो कंबल नहीं था...! वह अपनी वही पुरानी चादर ओढ़े लेटा था! रीता ने आँखें बडी बडी करते हुए पतिदेव से कहा- "देखा... मैंने कहा था न, कि वो कंबल उसे मत दो, इसने जरूर बेच दिया होगा।" दोनों कार से उतरकर उस बूढे के पास गए! रीता ने व्यंग्य करते हुए पूछा- "क्यों बाबा... कल रात वाला कंबल कहाँ है ? बेचकर नशे का सामान ले आए क्या...?" बुजुर्ग ने हाथ जोड़कर से इशारा करते हुए बताया कि... वहाँ थोड़ी दूरी पर एक औरत लेटी हुई थी... जिसने वही कंबल ओढा हुआ था...बुजुर्ग बोला... मेमसाब! वह औरत पैरों से विकलांग है और उसके कपड़े भी जगह-जगह से फटे हुए हैं! लोग भीख देते वक्त भी उसे गंदी नजरों से देखते हैं, और ऊपर से इतनी ठंड है...! मेरे पास कम से कम ये पुरानी चादर तो है। उसके पास तो कुछ भी नहीं था, तो मैंने कंबल उसे दे दिया...। रीता हतप्रभ सी रह गई! अब उसकी आँखों में गुस्सा नहीं पश्चाताप के आँसु थे! और वो धीरे से आकर पति से बोली "चलिए... घर से एक कंबल और लाकर बाबाजी को भी दे देते हैं...!!" दोस्तों... ईश्वर का धन्यवाद कीजिए कि उसने हमको,आपको देने वालों की श्रेणी में रखा है, अतः जितना हो सके जरूरतमंदों की मदद करें... 

मानवता से बड़ा कोई धर्म नहीं है...!! नरसेवा। नारायण सेवा।।

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गुरुवार, 22 दिसंबर 2022

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की प्रार्थना

 

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की प्रार्थना का हिन्दी में अनुवाद।


नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमे, त्वया हिन्दुभूमे सुखं वर्धितोsहम्। 

हे प्यार करने वाली मातृभूमि! मैं तुझे सदा (सदैव) नमस्कार करता हूँ। तूने मेरा सुख से पालन-पोषण किया है। 

 महामङ्गले पुण्यभूमे त्वदर्थे, पतत्वेष कायो नमस्ते नमस्ते।। १।। 

हे महामंगलमयी पुण्यभूमि! तेरे ही कार्य में मेरा यह शरीर अर्पण हो। मैं तुझे बारम्बार नमस्कार करता हूँ। 

प्रभो शक्ति मन्हिन्दुराष्ट्राङ्गभूता, इमे सादरं त्वाम नमामो वयम् त्वदीयाय कार्याय बध्दा कटीयं, शुभामाशिषम देहि तत्पूर्तये। 

हे सर्वशक्तिशाली परमेश्वर! हम हिन्दूराष्ट्र के सुपुत्र तुझे आदर सहित प्रणाम करते है। तेरे ही कार्य के लिए हमने अपनी कमर कसी है। उसकी पूर्ति के लिए हमें अपना शुभाशीर्वाद दे। 

अजय्यां च विश्वस्य देहीश शक्तिम, सुशीलं जगद्येन नम्रं भवेत्, श्रुतं चैव यत्कण्टकाकीर्ण मार्गं, स्वयं स्वीकृतं नः सुगं कारयेत्।। २।। 

हे प्रभु! हमें ऐसी शक्ति दे, जिसे विश्व में कभी कोई चुनौती न दे सके, ऐसा शुद्ध चारित्र्य दे जिसके समक्ष सम्पूर्ण विश्व नतमस्तक हो जाये। ऐसा ज्ञान दे कि स्वयं के द्वारा स्वीकृत किया गया यह कंटकाकीर्ण मार्ग सुगम हो जाये। 

समुत्कर्षनिःश्रेयसस्यैकमुग्रं, परं साधनं नाम वीरव्रतम्*

तदन्तः स्फुरत्वक्षया ध्येयनिष्ठा, हृदन्तः प्रजागर्तु तीव्राsनिशम्। 

उग्र वीरव्रती की भावना हम में उत्स्फूर्त होती रहे, जो उच्चतम आध्यात्मिक सुख एवं महानतम ऐहिक समृद्धि प्राप्त करने का एकमेव श्रेष्ठतम साधन है। तीव्र एवं अखंड ध्येयनिष्ठा हमारे अंतःकरणों में सदैव जागती रहे। 

 विजेत्री च नः संहता कार्यशक्तिर्, विधायास्य धर्मस्य संरक्षणम्। परं वैभवं नेतुमेतत् स्वराष्ट्रं, समर्था भवत्वाशिषा ते भृशम्।। ३।। ।। 

भारत माता की जय।। 

हे माँ  तेरी कृपा से हमारी यह विजयशालिनी संघठित कार्यशक्ति हमारे धर्म का सरंक्षण कर इस राष्ट्र को वैभव के उच्चतम शिखर पर पहुँचाने में समर्थ हो। भारत माता की जय।









वास्तविक उन्नति भगवान (कृष्ण) को जानना है


वास्तविक उन्नति भगवान (कृष्ण) को जानना है

वास्तव में भगवान का, ईश्वर का, कोई नाम नहीं है| यह कहने का मेरा अभिप्राय यह है कि कोई नहीं जानता कि उनके कितने नाम हैं| ईश्वर अनंत है,अतः उनके नाम भी अनंत होने चाहिए| उदाहरणार्थ श्री कृष्ण को कभी-कभी यशोदा नंदन, देवकीनंदन, वसुदेवनंदन या नंदनंदन, गोविंद, गोपाल, पार्थसारथी, नटवरनागर, गोविंदवल्लभ,राधेश्याम,राधे रसिकबिहारी,बांकेबिहारी आदि आदि कहा जाता है|

ईश्वर अपने अनेक भक्तों के साथ अनेकानेक प्रकार का व्यवहार करते हैं और उन व्यवहारों के अनुसार भी भगवान का एक विशेष नाम हो जाता है| भगवान के असंख्य भक्त हैं और उन भक्तों के साथ उनके असंख्य संबंध हैं अतएव उनके असंख्य नाम हैं| कृष्ण हिंदुओं के भगवान का नाम है| कुछ लोग यह भी सोच सकते हैं कि 'कृष्ण' नाम सांप्रदायिक है | परंतु वास्तविकता तो यही है कि यदि भगवान का कोई नाम हो सकता है तो वह 'कृष्ण' ही है| 'कृष्ण' नाम का अर्थ है सर्व-आकर्षक| भगवान सभी को आकर्षित करते हैं यही भगवान की परिभाषा है| हमने श्रीकृष्ण को अनेकानेक चित्रों के दर्शन किए हैं और उनमें देखा है कि वे वृंदावन में गाय, बछड़े, पशु,पक्षी, वृक्ष पौधे तथा यहाँ तक कि जल को भी आकर्षित करते हैं| गोप-बालक, गोपियाँ,नंद महाराज, पांडव व समस्त मानव समाज भी कृष्ण के प्रति आकर्षित हैं| इसलिए भगवान को कोई विशिष्ट नाम दिया जा सकता है तो वह नाम है 'कृष्ण'| समग्र वैदिक साहित्य के रचयिता श्री व्यास देव जी के पिता महर्षि पराशर के अनुसार भगवान की परिभाषा है, `पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान´ उन्हें कहा जाता है जो 6 `ऐश्वरयों ´ से परिपूर्ण हैं- जिनके पास पूर्ण बल, यश,धन, ज्ञान, सौंदर्य व वैराग्य है| पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान सभी प्रकार की संपत्ति के स्वामी हैं| इस संसार में अनेक धनवान व्यक्ति हैं परंतु उनमें से कोई भी यह दावा नहीं कर सकता कि उसके पास धन का समस्त भंडार है| न ही कोई यह दावा कर सकता है कि उनसे बढ़कर कोई धनवान नहीं है| श्रीमद्भागवतम से, हम यह समझते हैं कि जब श्रीकृष्ण इस धरती पर उपस्थित थे तो उनकी 16108 पत्नियाँ थीं और सभी रानियों के लिए अलग-अलग संगमरमर से बने व रत्नों से जड़े हुए राजमहल थे जिनमें वे निवास करती थीं| कमरों में हाथी दांत और सोने से बना फर्नीचर था और अतुल वैभव स्थान-स्थान पर बिखरा पड़ा था| मानव समाज में इसके जैसा उदाहरण कहीं नहीं है| भगवान श्रीकृष्ण अपने स्वरूप का भी विस्तार कर 16108 रानियों से व्यक्तिगत रूप से अलग-अलग उनके निवास पर उनके साथ समय बिताते थे| इस प्रकार श्रीकृष्ण जो अनंत रूपों में विस्तार करने में सक्षम हैं| भगवान 'सर्वशक्तिमान 'हैं | वह 16108 ही नहीं 16 करोड़ 60 लाख पत्नियों का भी निर्वाह कर सकते हैं फिर भी उनको कोई कठिनाई नहीं हो सकती,

अन्यथा `सर्वशक्तिमान´शब्द का कोई अर्थ ही नहीं रह जाता| यह सभी बातें श्री कृष्ण भगवान के प्रति आकर्षण उत्पन्न करने वाली हैं|

इसी प्रकार भगवान श्री कृष्ण का बल असीम है| उनमें जन्म के समय से ही बल विद्यमान था| जब वे केवल 3 माह के थे  तो सातों पूतना नामक राक्षसी का वध किया| भगवान आरंभ से ही भगवान है| वह किसी ध्यान या यौगिक बल के द्वारा भगवान नहीं बनते| अपने प्राकट्य के साथ ही श्रीकृष्ण भगवान थे|

भगवान श्रीकृष्ण का यश भी असीम है| उनका यशगान विश्व के सभी देशों में दार्शनिक, मनोवैज्ञानिक और धार्मिक लोगों के द्वारा भगवतगीता तथा श्रीमद्भागवतम का अध्ययन करके किया जाता है| भगवतगीता के अनेकानेक संस्करण छपते हैं और विक्रय होते हैं| श्रीमदभगवतगीता का यश श्रीकृष्ण का ही यश है|

सौंदर्य,एक अन्य ऐशश्वर्य है जो श्री कृष्ण में अतुलनीय हैं| श्रीकृष्ण ने स्वयं तो अत्यंत सुंदर हैं ही उनके पार्षद-गण भी उतने ही सुंदर हैं| अमेरिका,इंग्लैंड के लोग कितने गौरवर्ण और सुंदर हैं| संपूर्ण विश्व के लोग उनके प्रति आकर्षित हैं क्योंकि वे वैज्ञानिक ज्ञान, धन-संपत्ति और सुंदरता इत्यादि में उन्नत हैं| इस ब्रह्मांड में पृथ्वी एक नगन्य लोक है फिर भी इस लोक के एक देश अमेरिका के पास अनेकानेक आकर्षक वस्तुयें हैं| श्रीकृष्ण भगवान स्वयं कितने सुंदर और आकर्षक होंगे जो इस समस्त व्यक्त और अव्यक्त सृष्टि के रचयिता हैं, जिन्होंने इस समस्त सौंदर्य की सृष्टि की है|

सुंदरता के कारण ही नहीं वरन अपने ज्ञान के कारण भी एक व्यक्तिआकर्षण का केंद्र होता है| एक वैज्ञानिक अथवा दार्शनिक भले ही अपने ज्ञान के कारण आकर्षक लगे, परंतु श्रीमद्भागवतगीता में भगवान श्रीकृष्ण के द्वारा दिए गए ज्ञान से श्रेष्ठ कौन सा ज्ञान है? इसकी संपूर्ण जगत में कोई तुलना नहीं है|

 इन सब ऐश्वर्यों के साथ ही साथ श्रीकृष्ण पूर्ण वैराग्य से भी युक्त हैं| इस भौतिक जगत में कृष्ण के निर्देशन में कितने ही कार्य हो रहे हैं किंतु श्रीकृष्ण वास्तव में यहां उपस्थित नहीं है| इस प्रकार स्वयं श्रीकृष्ण इस भौतिक जगत से अलग रहते हैं फिर सृष्टि का कार्य नियमित सुचारू रूप से चलता है| वह इसमें लिप्त नहीं बल्कि इसमें इन से परे वैराग्य से ही रहते हैं| इसलिए भगवान के कार्यों के अनुसार उनके अनेकानेक नाम है परंतु उनके इतने असीम ऐश्वर्य हैं और इन इन ऐश्वार्यों के द्वारा ही भगवान सभी को आकर्षित करते हैं, अतः उनको `कृष्ण´ कहा जाता है| वैदिक साहित्य स्वीकार करता है कि भगवान के अनेक नाम हैं,परंतु `कृष्ण´नाम प्रधान है| श्री भगवान का नाम,यश, लीला, सौंदर्य एवं उनके प्रेम का प्रसार करना ही जीवन का ध्येय होना चाहिए| मानव समाज को पूर्ण ज्ञान प्रदान करना ही कृष्ण भक्त के जीवन का परम लक्ष्य होता है| भगवान के साथ दिव्य प्रेमा भक्ति का संबंध बनाकर उनकी सेवा में निमग्न होना व जाना ही आध्यात्मिक उन्नति है|

अतः भगवान श्रीकृष्ण को समझना एक कठिन विषय है, फिर भी भगवान भगवतगीता में स्वयं को समझाते हैं| हम सभी को इसका अध्ययन भक्ति भाव से नित्य प्रति करना चाहिए तभी भगवान को समझना अत्यंत सरल व सहज हो जायेगा| अपनी आध्यात्मिक उन्नति का वास्तविक लक्ष्य भगवान के साथ मधुर संबंध स्थापित करना ही होना चाहिए| हमारा थोड़ा सा प्रयास प्रभु की कृपा का पात्र बना देता है| गीता में भगवान स्वयं अपना ज्ञान देते हैं तब वह विषय वस्तु कठिन नहीं रहती| भगवान असीम हैं और हम सीमित हैं| हमारा ज्ञान तथा इंद्रिय प्रतीति दोनों ही अत्यधिक सीमित है तब हम असीम को कैसे समझ सकते हैं? तो यदि हम असीमित के द्वारा दी गई व्याख्या को केवल स्वीकार कर ले तो हम उनको समझ सकते हैं| उस ज्ञान को समझ लेना ही हमारी पूर्णता है|भगवान ने गीता में कहा है कि "हजारों मनुष्यों में से कोई एक पूर्णता के लिए प्रयत्न करता है और उन प्रयत्न करने वाले सिद्ध पुरुषों में से भी कोई दुर्लभ मनुष्य ही मुझे तत्व से जानता है|"

भगवान को जानने के लिए मन में दृढ़ता और विश्वास होना जरूरी है| संशयात्मक बुद्धि से आप समझ भी नहीं पायेंगे| एकनिष्ठ होकर ही भगवान का ज्ञान समझें | यदि एक बालक यह जानना चाहता है कि उसका पिता कौन है तो साधारण सी विधि है कि वह अपने माँ से पूछे तब माँ कहेगी, "यह तुम्हारे पिताजी हैं|" पूर्ण ज्ञान प्राप्त करने का यही मार्ग है| वास्तविक उन्नति का अर्थ है भगवान को जानना| यदि हमारे पास भगवान के ज्ञान का अभाव है तब हम वास्तव में उन्नत नहीं है| भगवान और उनका प्रशासन विद्यमान है| उनकी आज्ञा से ही सूर्य व चंद्रमा उदित हो रहे हैं,जल में प्रवाह है एवं सागर में तरंगें उठती हैं| सभी कार्य इतने सुंदर ढंग से हो रहे हैं कि वास्तव में विवेकी व्यक्ति ही पूर्णतः सिद्ध कर पाता है और भगवान के अस्तित्व को समझ पाता है| अविवेकी और नास्तिक जन ही भगवान को नकारते हैं| भगवान के भक्त और आस्तिक प्रवृत्ति वाले लोग सुदृढ़ विश्वास रखते हैं कि भगवान हैं और वे भगवान श्रीकृष्ण हैं| अतएव भगवान के भक्त दिन-रात प्रेमभाव से उनकी अर्चना कर इस जीवन की वास्तविक उन्नति में रत रहते हैं|                        ~करुणा ऋषि

सोमवार, 19 दिसंबर 2022

मासिक पंचांग - दिसम्बर - 2022


मासिक पंचांग- दिसम्बर -2022


दिनांक 

भारतीय व्रत उत्सव दिसम्बर - 2022

दुर्गा अष्टमी

3  

मोक्षदा एकादशी,श्री गीता जयंती 

सोम प्रदोष व्रत  

पिशाच मोचन श्राद्ध 

श्री दतात्रये जयंती,सत्य व्रत ,

श्री त्रिपुर भैरव जयंती ,अन्नपूर्णा जयंती  

11 

श्री गणेश चतुर्थी व्रत 

16  

काल भैरव अष्टमी ,संक्रांति पुन्य  

19   

सफला एकादशी व्रत    

21 

सोम  प्रदोष व्रत,मास शिवरात्रि 

23 

अमावस्या पुण्य    

26 

विनायक चतुर्थी  व्रत  

29 

गुरु गोविन्द सिंह जयंती 

30  

श्री दुर्गाष्टमी, शाकम्भरी पूजन प्रारम्भ  


पंचक विचार दिसम्बर - 2022  

पंचक विचार -(धनिष्ठा नक्षत्र के तृतीय चरण से रेवती नक्षत्र तक) पंचको में दक्षिण दिशा की ओर यात्रा करना मकान दुकान आदि की छत डालना चारपाई पलंग आदि बुनना,दाह संस्कार,बांस की चटाई दीवार प्रारंभ करना आदि स्तंभ रोपण तांबा पीतल तृण काष्ट आदि का संचय करना आदि कार्यों का निषेध माना जाता है समुचित उपाय एवं पंचक शांति करवा कर ही उक्त कार्यों का संपादन करना कल्याणकारी होगा ध्यान रहेगा  पंचर नक्षत्रों का विचार मात्र उपरोक्त विशेष कृतियों के लिए ही किया जाता है विवाह मंडल आरंभ गृह प्रवेश प्रवेश उपनयन आदि मुद्दों से तो पंचक नक्षत्रका प्रयोग शुभ माना जाता है पंचक विचार- दिनांक  04 को 06 - 16 बजे तक पंचक हैं,दिनांक 27 को 03-30 से 31 को 11-46 बजे तक पंचक है | 

अधिक जानकारी के लिए संपर्क करे शर्मा जी - 9312002527,9560518227

भद्रा विचार दिसम्बर - 2022 

भद्रा काल का शुभ अशुभ विचार - भद्रा काल में विवाह मुंडन, गृह प्रवेश, रक्षाबंधन आदि मांगलिक कृत्य का निषेध माना जाता है परंतु भद्रा काल में शत्रु का उच्चाटन करना,स्त्री प्रसंग में,यज्ञ करना,स्नान करना,अस्त्र शस्त्र का प्रयोग,ऑपरेशन कराना, मुकदमा करना,अग्नि लगाना,किसी वस्तु को काटना,भैस,घोड़ा व ऊंट संबंधी कार्य प्रशस्त माने जाते हैं सामान्य परिस्थिति में विवाह आदि शुभ मुहूर्त में भद्रा का त्याग करना चाहिए परंतु आवश्यक परिस्थितिवश अति आवश्यक कार्य भूलोक की भद्रा,भद्रा मुख छोड़कर कर भद्रा पुच्छ में शुभ कार्य करसकते है |

अधिक जानकारी के लिए संपर्क करे शर्मा जी - 9312002527,9560518227

दिनांक 

शुरू 

दिनांक 

समाप्त 

03

17-33

04

05-34

07

08-01

07

20-49

11

03-01

11

16-15

14

23-42

15

12-44

18

15-43

19

03-32

21

22-16

22

08-48

26

15-11

27

01-37

29

19-17

30

06-55


मूल नक्षत्र विचार दिसम्बर-2022 



दिनांक

शुरू 

दिनांक

समाप्त 

03

05-45

05

07-14

12

23-35

15

05-15

22

06-32

24

01-12

30

11-24

मासांत तक 



अधिक जानकारी के लिए संपर्क करे शर्मा जी - 9312002527,9560518227

सर्वार्थ सिद्धि योग दिसम्बर-2022

दैनिक जीवन में आने वाले महत्वपूर्ण कार्यों के लिए शीघ्र ही किसी  शुभ मुहूर्त का अभाव हो,किंतु शुभ मुहर्त के लिए अधिक दिनों तक रुका ना जा सकता हो तो इन सुयोग्य वाले मुहर्तु  को सफलता से ग्रहण किया जा सकता है | इन से प्राप्त होने वाले अभीष्ट फल के विषय में संशय नहीं करना चाहिए यह योग हैं सर्वार्थ सिद्धि,अमृत सिद्धि योग एवं रवियोग | योग्यता नाम तथा गुण अनुसार सर्वांगीण सिद्ध कारक  है| 

अधिक जानकारी के लिए संपर्क करे शर्मा जी - 9312002527,9560518227

दिनांक

प्रारंभ

दिनांक

समाप्त

03

05-45

03

07-02

04

07-02

05

07-03

06

08-38

08

07-05

11

20-35

12

23-35

13

07-08

14

02-32

16

07-10

16

07-34

18

07-12

18

10-18

21

08-33

22

06-32

25

07-16

25

19-20

26

07-16

26

16-41

30

11-24

31

07-18

सुर्य उदय- सुर्य अस्त दिसम्बर-2022 


दिनांक

उदय 

दिनांक

अस्त 

06-58

1

17-22

5

07-01

5

17-22

10

07-04

10

17-23

15

07-08

15

17-25

20

07-14

20

17-27

25

07-16

25

17-30

30

07-15

30

17-33

 

 अधिक जानकारी के लिये संपर्क करें - शर्मा जी - 9560518227

ग्रह स्थिति दिसम्बर-2022


ग्रह स्थिति -  दिनांक 03 को बुध धनु में , दिनाक 05 को शुक्र धनु में , दिनांक 05 बुध उदय ,दिनांक 16 सूर्य धनु में ,दिनांक 28 को बुध मकर में , दिनांक 29  बुध वक्री ,दिनांक 29 शुक्र मकर में दिनांक 30 बुध धनु में | 

चौघड़िया मुहूर्त 

चौघड़िया मुहूर्त देखकर कार्य या यात्रा करना उत्तम होता है। एक तिथि के लिये दिवस और रात्रि के आठ-आठ भाग का एक चौघड़िया निश्चित है। इस प्रकार से 12 घंटे का दिन और 12 घंटे की रात मानें तो प्रत्येक में 90 मिनट यानि 1.30 घण्टे का एक चौघड़िया होता है जो सूर्योदय से प्रारंभ होता है|

राहू काल 

 

 राहुकाल -राहुकाल दक्षिण भारत की देन है,दक्षिण भारत में राहु काल में कृत्य करना अच्छा नहीं माना जाता, राहु काल में शुभ कृतियों में वर्जित करने की परंपरा अब हमारे उत्तरी भारत में भी अपनाने लगे हैं राहुकाल प्रतिदिन सूर्यादि वारों में भिन्न-भिन्न समय पर केवल डेढ़ डेढ़ घंटे के लिए घटित होता है |

अधिक जानकारी के लिए संपर्क करे शर्मा जी - 9312002527,9560518227,

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जानकारी काल हिन्दी मासिक जुलाई -2025

  जानकारी काल      वर्ष-26   अंक - 02        जुलाई - 2025 ,  पृष्ठ 43                www.sumansangam.com      प्रधान संपादक व  प्रकाशक  सती...