शनिवार, 7 मई 2022

जानकारी काल - मई - 2022

 हिंदी मासिक 

जानकारी काल 

वर्ष-22,             अंक-12 ,           मई - 2022,          पृष्ठ 36,        मूल्य-2-50

इन्हें भी पड़े 


करोना चला स्कुल खुला  - 3,ग्रैंड पैरेंट्स डे  - 6 ,ज़िंदगी की तलाश में हर ज़िंदगी मशग़ूल है - 10 ,जिंदगी जद्दोजहद का नाम है - 1१  ,शिव तांडव स्‍त्रोत - 12 ,वैदिक गणित - 17,वैश्विक महामारी-वरदान या अभिशाप  - 20,मई में पड़ने वाले महापुरुषों के जन्मदिन -22 ,मई मास का पंचांग  - 23 , गंवारिया बाबा  - 26,नक्षत्र - 28 , जगतगुरु आदि शन्कराचार्य जी -30 ,भारत केन्द्रित मातृभाषा शिक्षा- 32 , उत्कटासन -35 ,नोबल पुरस्कार विजेता रविंद्रनाथ टैगोर - 36 



संरक्षक

 श्रीमान कुलवीर शर्मा

महामंत्री समर्थ शिक्षा समिति

डॉ वी  एस नेगी

प्रोफेसर भगत सिंह कॉलेज सांध्य


 प्रधान संपादक व  प्रकाशक

 सतीश शर्मा 


 

 कार्यालय

 ए 214 बुध नगर इंद्रपुरी

 नई दिल्ली 110012


 मोबाइल

  9312002527


 संपादक मंडल

 सौरभ  शर्मा,कपिल शर्मा,

गौरव शर्मा,डॉ अजय प्रताप सिंह, करुणा ऋषि, डॉ मधु वैध, 

भूप  सिंह यादव, ऋतु सिंह,

राजेश शुक्ल  


प्रकाशक व मुद्रक सतीश शर्मा के लिय ग्लैक्सी प्रिंटर-106 F,कृणा नगर नई दिल्ली 110029, A- 214 बुध नगर इं पूरी नई दिल्ली  110012 से प्रकाशित |


सभी लेखों पर संपादक की सहमति आवश्यक नहीं है पत्रिका में किसी भी लेख में आपत्ति होने पर उसके विरुद्ध कार्रवाई केवल दिल्ली कोर्ट में ही होगी

 

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भगवान ने कहा है की कर्म करते रहना ही श्रेय कर है अगर जीवन में कुछ पाना है तो व्यक्ति को गतिशील होना ही पड़ेगा परंतु जो लोग केवल पुरुषार्थ पर विश्वास रखते हैं प्रायः उनमे परिणाम के प्रति असंतोष सा बना रहता है और जो लोग केवल भाग्य पर विश्वास रखते हैं उनके अकर्मण्य होने की सम्भावना भी बनी रहती है।प्रत्येक व्यक्ति को प्रकृति से अर्जित गुणों के अनुसार विवश होकर कार्य करना पड़ता है अतः कोई भी एक क्षण के लिए बिना कर्म किए नहीं रह सकता यह सिर्फ शरीर का प्रश्न नहीं है, जीवन का प्रश्न नहीं है अपितु आत्मा का यह स्वभाव है कि वह सदैव सक्रिय रहती है आत्मा की अनुपस्थिति में भौतिक शरीर हिल भी नहीं सकता यह शरीर मरत वाहन के समान है जो आत्मा द्वारा चलित होता है क्योंकि आत्मा सदैव गतिशील रहती है और वह एक मिनट  के लिए भी नहीं रुक सकती अतः मनुष्य ना चाह कर भी कर्म करता रहता है और पुरुषार्थ करने को तैयार रहता है | जीवन में खुश रहने का एक सीधा सा मंत्र है और वो ये कि आपकी उम्मीद स्वयं से होनी चाहिए किसी और से नहीं। परीक्षा फल से वही बच्चा घबराता है जो स्वयं से नहीं अपितु निरीक्षक से उम्मीद लगाए रहता है । स्वयं के तीरों पर भरोसा रखने वाला कौन्तेय युद्ध भूमि में अकेला पड़ने के बावजूद भी सफल हो जाता है और दूसरों से उम्मीद रखने वाला दुर्योधन पितामह, द्रोण, कर्ण, कृपाचार्य जैसे अनगिनत योद्धाओं के साथ रहते हुए भी युद्ध भूमि में बुरी तरह असफल हो जाता है।सूर्य स्वयं के प्रकाश से चमकता है और चन्द्रमा को चमकने के लिए सूर्य के प्रकाश पर निर्भर रहना होता है। दूसरे के प्रकाश से प्रकाशित होने की उम्मीद रखने के कारण ही चन्द्रमा की चमक एक जैसी नहीं रहती । इसलिए जीवन में सदा खुश रहना है तो दूसरों से किसी भी प्रकार की उम्मीद छोड़कर स्वयं ही उद्यम अथवा पुरुषार्थ में लगना होगा ताकि संपूर्ण जीवन प्रसन्नता से जिया जा सके। 

   पुरुषार्थ को इसलिए मानो कि ताकि तुम केवल भाग्य के भरोसे बैठकर अकर्मण्य बनकर जीवन प्रगति का अवसर न खो बैठें और भाग्य को इसलिए मानो ताकि पुरुषार्थ करने के बावजूद भी मनोवांछित फल की प्राप्ति न होने पर भी आप उद्धिग्नता से ऊपर उठकर संतोष में जी सकें।

 अतः केवल एक को आधार बनाकर जिया गया जीवन अपनी वास्तविकता और सहजता खो बैठता है। कर्म रूपी प्रयास और भगवदकृपा रूपी प्रसाद का संतुलन जिसके जीवन में है वही जीवन के वास्तविक रस को और अभीष्ट को प्राप्त कर पाता है।


        

        

कोरोना चला स्कूल खुला

 – दिलीप वसंत बेतकेकर

अल्बर्ट आइंस्टीन ने कहा था- “जब समस्या आती है तब हम जिस प्रकार विचार करते हैं वैसा ही विचार करके उस समस्या का निराकरण नहीं हो सकता।” इस बात का तात्पर्य यह है कि किसी समस्या का निराकरण करने के लिए हमें नई दिशा में नवीन पद्धति से विचार करना पड़ता है।कोरोना की परिस्थिति के बाद शिक्षा के बारे में भी अलग प्रकार से विचार करना होगा। कोरोना के पहले और कोरोना के बाद शिक्षा पद्धति में बड़ा अंतर आ चुका है लेकिन इस बात का एहसास अभी भी अनेक लोगों को नहीं हो सका है। कोरोना के पहले जिस पद्धति का उपयोग शिक्षा प्रदान करने के लिए किया जाता रहा कोरोना के बाद स्कूल फिर से शुरू होने के बाद उसी पद्धति का उपयोग कर अपेक्षित परिणाम प्राप्त नहीं हो सकते।स्कूल फिर से शुरू हो गए हैं, कुछ स्थानों पर शिक्षकों ने नवीनता, रचनात्मकता का उपयोग कर बच्चों का स्वागत किया, इस प्रकार के समाचार और छायाचित्र मीडिया के माध्यम से दिखाई पड़े हैं। ये एक सकारात्मक पहल है। पहला कदम बहुत अच्छे से उठाया गया है। प्रत्येक स्कूल को ये अवसर मिला था।

अंग्रेजी की एक कहावत है-  “सीक्रेट ऑफ एजुकेशन इज रिस्पेक्टिंग द चाइल्ड” बच्चों के लिए ये अहसास अत्यंत महत्वपूर्ण है कि उनके व्यक्तित्व का यथायोग्य सम्मान किया जा रहा है। मेरे स्कूल को मेरी आवश्यकता है। सीखने की मानसिकता की दृष्टि से ये अनुभूति अत्यंत आवश्यक है।

सीखने की मानसिकता तैयार करना पहली पायदान है। जिस प्रकार बीज बोने के लिए खेत की जमीन को तैयार करना होता है उसी तरह सीखने के लिए भी अनुकूल, योग्य और पोषक मानसिकता की आवश्यकता होती है। इस बात को ध्यान में ना रखते हुए जो कोई केवल अपना पाठ्यक्रम पूरा करने का प्रयत्न करता है वो केवल पत्थर पर बीज बोने का प्रयास करता है, इस बात को ध्यान में रखना चाहिए।

आज लगभग दो साल के बाद जब फिर से स्कूल शुरू हो रहे हैं तब इस परिस्थिति में यह आवश्यक है कि शिक्षक पहले विद्यार्थियों के मानस को समझे। इस महामारी का परिणाम अनेक परिवारों को भुगतना पड़ा है। किसी की आर्थिक स्थिति कमजोर हुई है तो किसी के परिवार में कोई व्यक्ति हमेशा के लिए बिछड़ कर चला गया है। किसी को अनेक दिनों तक अस्पताल में रहना पड़ा, तो किसी को अपने ही घर में परिजनों से दूर होकर रहना पड़ा। इन सारी बातों का बच्चों के कोमल मन पर घातक परिणाम हुआ है, इस बात को ध्यान में रखने की बड़ी आवश्यकता है।

वर्तमान में अपने पाठ्यक्रम को किसी तरह पूरा करने के स्थान पर आलस, उदासीनता, सुस्ती तथा सब चलता है की मानसिकता से बच्चों को बाहर निकालने का विचार करना होगा। स्कूलों में परामर्शदाता होते हैं लेकिन अब प्रत्येक शिक्षक को अपनी परामर्शदाता की भूमिका को बढ़ाना होगा। बच्चे निराशा, चिड़चिड़ापन आदि से किस तरह बाहर निकलेंगे इसका विचार करना होगा।

किसी भी विषय अथवा पाठ को पढ़ाने के पहले ये जानना जरूरी है कि बच्चों का मन किस तरह प्रफुल्लित होगा, उनके भीतर चेतना कैसे जागेगी, जिज्ञासा और इच्छा शक्ति कैसे बढ़ेगी इस बात को प्राथमिकता देना होगी।

एक चिंतक ने बड़ी महत्वपूर्ण बात कही है- “वन टीचर हु इज अटेम्प्टिंग विदाउट इंस्पायरिंग द पीपल विद डिजायर टू लर्न इज हैमरिंग ऑन कोल्ड आयरन।”

लोहे को किसी आकार में ढालने के पहले उसे भट्टी में तपाना पड़ता है, उसी तरह कुछ सिखाने के पहले बच्चों को प्रोत्साहित करना, प्रेरित करना आवश्यक होता है। विगत दो वर्ष की लंबी अवधि एक विचित्र परिस्थिति में बीती है, इस बात का ध्यान शिक्षकों को रखना होगा। यह एक बड़ी चुनौती है। बच्चों ने दो वर्ष के कार्यकाल में जो देखा, भुगता और अनुभूत किया है उसे व्यक्त करने का अवसर उन्हें मिलना चाहिए। मन के भीतर दबा के रखे गए भाव को प्रगट करना आवश्यक होता है। ये करते समय विविधता, कल्पनाशीलता नवीनता का प्रयोग करना होगा। परंपरागत प्रश्नों को पूछ कर और परिपाटी से चली आ रही शिक्षण पद्धति का उपयोग कर ये नहीं हो सकता।

कुछ शिक्षक दो साल के बाद बच्चों को अपने सामने प्रत्यक्ष उपस्थित पाकर पाठ्यक्रम को पूरा करने के लिए पीछे पड़ने वाले हैं। बैकलॉग को पूरा करने के लिए तीव्र गति से गाड़ी चलाने का प्रयत्न करने वाले हैं। दो साल की कसर किस तरह से पूरी की जाए इस बात को प्राथमिकता देने वाले हैं लेकिन ऐसे शिक्षकों को अपनी गति का ध्यान रखना होगा। विषय को पूरा करने की हठधर्मिता के सामने बच्चों के भीतर सीखने की रुचि ही समाप्त न हो जाय इस बात की सावधानी बरतना पड़ेगी।

शिक्षक किसी भी विषय को सिखाने के लिए कुल जितना समय, शक्ति व्यय करते है, परिश्रम करते हैं यदि वे उसका 25% समय, शक्ति और श्रम इस बात पर खर्च करेंगे कि “बच्चे सीखे कैसे” तो उनको अपेक्षित परिणाम अधिक प्राप्त होगा।

मार्क कॉलिंग ने कहा है- “वंस चिल्ड्रन लर्न हाउ टू लर्न नथिंग इज गोइंग टू नेरो देयर माइंड”।

पुस्तक ‘द वर्ल्ड इज फ्लैट’ के लेखक फ्राइड ने कहा है- “बीग अडॉप्टेबल इन ए फ्लैट वर्ल्ड नोइंग हाउ टू लर्न हाउ टू लर्न विल बी वन ऑफ द मोस्ट इंपोर्टेंट असेट्स एनी वर्कर विल हैव”।

पिछले दो सालों में ऑनलाइन शिक्षा प्रदान करने के अनेक प्रयोग हुए हैं। वास्तव में देखा जाए तो ये एक उत्तम और प्रभावी साधन है। कोरोना के कारण इसका प्रयोग किया गया लेकिन अपेक्षित परिणाम प्राप्त न हो सका। इस बात का दोष इस तकनीक अथवा पद्धति का नहीं है बल्कि इसका उपयोग करने वाले दोषी हैं और भविष्य में भी रहेंगे। इस पद्धति और तकनीक का लाभ लेने के लिए इस दिशा में अलग-अलग प्रयत्न और प्रयोग करना होंगे। प्रत्यक्ष पद्धति से शिक्षण शुरू होने के कारण ऑनलाइन पद्धति को पूरी तरह बंद करने की आवश्यकता नहीं है बल्कि इसका प्रभावी ढंग से उपयोग किस प्रकार किया जा सकता है इस दिशा में विचार शुरू करना होगा। तकनीक की विशेषता उसकी सीमाओं और उपयोगिता के बारे में शिक्षक, विद्यार्थी तथा पालकों को अधिक सजग, सतर्क और सुविज्ञ बनाना होगा।

ऑनलाइन और ऑफलाइन पद्धति का सही मिश्रण अगर जम जाता है तो सब को लाभ होगा। आज किसी भी विषय पर सर्वोत्तम और प्रभावी वीडियो उपलब्ध हो सकते हैं। शिक्षक इस प्रकार के वीडियो को देखकर स्वयं की कुशलता बढ़ा सकते हैं और विद्यार्थियों को उसका लाभ मिल सकता है। यदि शिक्षक अपने वीडियो तैयार कर अपलोड करते हैं तो विद्यार्थी भी उन्हें बार-बार देख कर अपनी उस विषय या पाठ के बारे में समझ को स्पष्ट कर सकते हैं। इसके लिए पालकों को भी इसके बारे में सारी बातें बता कर समझाना होगा।

स्कूल प्रबंधन को भी इस प्रकार की नई बातों पर ध्यान देना होगा। जिन स्कूलों के पास पर्याप्त स्थान उपलब्ध है वे अपना स्वयं का छोटा सा स्टूडियो बना सकते हैं। कम से कम स्थान और साधनों का उपयोग कर इस प्रकार का स्टूडियो तैयार किया जा सकता है। इस बात के लिए प्रबंधन की इच्छा शक्ति और कल्पना शक्ति की आवश्यकता है।

प्रत्येक स्कूल का अपने बच्चों के साथ जीवंत संपर्क होना आवश्यक है। नई शिक्षा नीति के अनुसार आने वाले समय में पालकों की भूमिका बड़ी महत्वपूर्ण होने वाली है। पालक एक बड़ी शक्ति है इस शक्ति का समुचित उपयोग करने वाली पाठशालाएं आगे बढ़ेगी।

पालको को नवीन तकनीक का महत्व, उपयोग और प्रभाव समझाना होंगे। नई तकनीक की सहायता से पाठशालाएं पालकों के साथ अपना संपर्क और संबंध अधिक सुदृढ़ कर सकते हैं। कक्षावार पालकों की ऑनलाइन बैठकों की संख्या बढ़ाई जा सकती है। परिस्थिति की गंभीरता और आने वाले अवसरों के बारे में पालकों को जागरूक करना चाहिए।

व्यापक स्तर पर विद्यार्थियों का डाटा संकलित करना चाहिए। ऐसा कहा जाता है कि डाटा आज का नया ईंधन है। डाटा अनेक दृष्टि से उपयोगी होता है। डाटा का सही पद्धति से विश्लेषण करने पर अनेक समस्याओं का निराकरण किया जा सकता है।

पाठशाला, परिसर की स्वच्छता को महत्व दिया जाना चाहिए। शिक्षकों और विद्यार्थियों के बीच स्वास्थ्य के विषय में जागरूकता बढ़ाई जाना चाहिए। शिक्षकों को इस बात की सावधानी बरतना होगी कि विद्यार्थियों को केवल स्वच्छता और व्यायाम के बारे में भाषण न दे कर एक साथ मिल कर उस दिशा में प्रयत्न करते रहना होंगे।

ये बात सत्य है कि विगत दो वर्षों में बड़ी हानि हुई है लेकिन इसके साथ ही अनेक नए अवसर खुले हैं इस बात को भी ध्यान में रखना होगा। भविष्य में और नए अवसर खुलेंगे, हमें उनका लाभ लेने की तैयारी रखनी होगी।

इस आपात परिस्थिति से शासकीय अधिकारी और प्रशासकों को भी अनेक बातें सीखने जैसी है। अब वह समय आ गया है जब नए-नए क्षेत्रों की आवश्यकताओं, साधनों, मूलभूत सुविधाओं का नए तरीके से विचार करना होगा। परंपरागत विचार पद्धति तथा जीवन शैली से ऊपर उठना होगा। आने वाले समय में शिक्षण संस्थाओं को

स्वायत्तता प्रदान करने का विचार चल रहा है लेकिन उसके लिए उन्हें अपनी पात्रता, योग्यता को बढ़ाने की तैयारी करने की आवश्यकता है। अभी तो अनेकों को अपनी स्वायत्तता को संभालकर कर रखना जम नहीं सका है। इस बात की जोख़िम तो है। भविष्य में शिक्षा क्षेत्र में अनेक बदलाव होने वाले हैं, उन बदलावों का हम स्वागत करें और शिक्षा पद्धति को नई दिशा प्रदान करें।

शरीर को श्रम की ओर, बुद्धि को मन तथा हृदय को भावनाओं की ओर मोड़ना सही मायनों में शिक्षा का उद्देश्य है। इस विचार का जतन करना होगा।

(लेखक शिक्षाविद, स्वतंत्र लेखक, चिन्तक व विचारक है

ग्रैंड पैरेंट्स डे




"उफ़ अब क्या करूं..!"

नन्ही चिंकी का मुंह उतर गया।अचानक मानो उसने कोई फैसला लिया "शीला आंटी आप मेरी हेल्प कर दोगे?"

"हां बोलो बेटा, क्या करना है?कोई ड्रॉइंग बनानी है?"

" नईं आंटी..! दादू को फ़ोन मिलाओ ,मुझे बात करनी है..।"

शीला के लिए ये नई बात नहीं थी;  अक्सर स्कूल में आज क्या हुआ, क्या खाया, मम्मा आज लेट आएंगी...सारा दिन भर का ब्योरा दादू -दादी को दिया जाता।

चिंकी कामकाजी माता - पिता की इकलौती संतान है और शहर के एक नामी स्कूल में यू.के. जी. में पढ़ती है। चिंकी के पापा टूर पर हैं और मम्मा की आज कोई मीटिंग चल रही है तो देर से आएंगी।

फ़ोन चिंकी के हाथ में पकड़ाकर शीला जल्दी जल्दी प्याज़ काटने लगी , सब्ज़ी दाल और फुल्के भी बनाने हैं अभी…!

चिंकी पाँच साल की बहुत ही समझदार बालिका है।शायद माता पिता दोनों नौकरीपेशा हैं इसलिए उसने अपने सब निजी काम स्वयं करने की आदत डाल ली है।अपना गृहकार्य ,अपने अगले दिन स्कूल की तैयारी और कपड़े बदलने में कभी कभी शीला आंटी उसकी मदद कर देती हैं।

     "दादू आप 'हां' क्यों नहीं बोलते, मैं आपसे कट्टी हो जाऊंगी, सच्ची में...फिर रोना नईं…!"

पिछले पाँच मिनट से दादू दादी को मनाने में लगी चिंकी रूआंसी हो गई।

"मुझे कुछ बात नईं सुननी दादू प्लीज़ चलो न, प्लीज़, प्लीज़, प्लीज़ दादू…!!!"

अब चिंकी की आंखें सच में भर आईं ; दादू पत्थर दिल नहीं हैं, पर वो असमंजस में हैं, "बिटिया हम आपके अंग्रेज़ी स्कूल में जाके क्या करेंगे, अपने नाना नानी को बुला लो बिटिया..!!!"

" नईं….. नईं… " और उसने फ़ोन रख दिया।

शीला चिंकी को फ़ोन रखते देख रसोई से बाहर आई; " हो गई दादू से बात चिंकी..?"

देखा चिंकी अपने दोनों गालों पर हाथ रखे उदास बैठी थी..!

" बेटा जूस पिओगे, लाऊं..?""......."

"क्या बिटिया दादू से गुस्से हो गई..?"

शीला उसका उदास चेहरा देख समझ नहीं पाई…!

     अपने कमरे में जाकर सचमुच चिंकी रोने लगी। नन्हा सा दिल ,नासमझ है…! सोचने लगी सबके दादा दादी आएंगे; किसी किसी के नाना नानी...पर मैं क्या करूं... नानू कित्ती दूर रहते हैं...फ्लाइट से आना होता है, मम्मा के साथ कई बार गई है वो..! अब्ब...दादू भी नईं मान रहे...मुझे कोई प्यार नईं करता..इस सोच ने चिंकी के गुलाबी गाल भिगो दिए..!!!

     मम्मा हमेशा येई बोलती हैं, दादू दादी गाँव के हैं, उन्हें ये नईं आता वो नईं आता...पर मेरा "ग्रैंड पैरेंट्स डे"...

कित्ता लाड करते हैं दादू दादी मुझे...पर मेरी बात क्यों नईं मानते…!!!

किसको बोलूं…

मम्मा ने मीटिंग में डिस्टर्ब करने से मना किया है…!!!

नन्ही चिंकी अब सुबकियां ले लेकर रोने लगी; शीला ने देखा चिंकी कहां है, शायद अपने कमरे में...चिंकी की सुबकियाँ अब तेज़ हो गईं...जैसे ही शीला ने कमरे का दरवाज़ा खोला, उसके पैरों तले ज़मीन खिसक गई..! आज तक चिंकी कभी नहीं रोई, किसी बात पर भी नहीं...भागकर चिंकी को गोद में उठा लिया और बालकनी में ले आई..!!

चिंकी अब और ज़ोर से रो रही थी...शीला चुप कराने की हर मुमकिन कोशिश कर रही थी..!!!

    अचानक उसे याद आया दादू से बात करके चिंकी उदास थी। ड्रॉइंग रूम में आकर दादू को फ़ोन लगाया और शीला ने चिंकी का हाल बताकर पूछा " अंकल जी क्या बात हो गई हमारी चिंकी तो कभी नहीं रोती..!"

" लो बिटिया दादू आपसे बात करना चाह रहे हैं… पकड़ो फ़ोन, पकड़ो बिटिया…!!!

अच्छा आँसू पोंछो... गुड गर्ल…!!!"

शीला ने जबरदस्ती फ़ोन चिंकी के कान पर लगा दिया…!

रोती हुई चिंकी के होठों पे हल्की मुस्कान से शीला समझ गई ,चलो अब बिटिया शांत हो जाएगी...और रसोई में जाकर फिर काम में लग गई..।

चिंकी के दादू दादी घबरा गए, इस मनाही को चिंकी इतना दिल से लगा लेगी, ऐसा नहीं सोचा था…!!!

सच ,चिंकी का दिल रखने के वास्ते 'हां तो कह दिया …! बहू से एक बार बात करनी होगी…!

कल शुक्रवार को आखिरी दिन है स्कूल में बताने का...और कार्यक्रम भी तो इसी शनिवार को है……!!!

चलो जो होगा देखा जाएगा ,सोचते हुए शनिवार की तैयारी भी तो करनी है, बढ़िया वाला धोती कुर्ता और मोजरी पे तेल लगाकर मुलायम भी करना है…!!!

धरम पत्नी को भी अच्छी सी साड़ी निकलकर प्रेस वाले को देनी होगी, बहुत काम है..!!

नौ बजे के आस पास बेटे के घर फ़ोन लगाया तो पता लगा कि बहू अभी रास्ते में है और चिंकी खाना खाकर सो गई है…!

शीला भी थोड़ा परेशान थी; भाभी को बहुत देर हो गई उसे अपना घर भी देखना है..!!!

   खैर,अगला दिन चिंकी का उत्साह से भरा था, अपनी कक्षा अध्यापिका को जाकर दादू दादी के आने का बताना है ; फिर मैम मुझे भी इन्विटेशन कार्ड देंगी…!!! कित्ता मज़ा आएगा। हम सब कुर्सियों पर बैठकर अपने अपने दादा दादी को कोई कोई कंपटीशन करते देखेंगे...मैं तो खूब ज़ोर ज़ोर से क्लैपिंग करूंगी...सोनम वालिया से उसकी अच्छी दोस्ती है, उसके दादू दादी भी तो आ रहे हैं..!!कित्ता मज़ा आएगा…!!!

चिंकी की मॉम का आज ऑफ डे है।

छुट्टी तो चिंकी की भी है…!!आज शनिवार को "ग्रैंड पैरेंट्स डे" भी है...बिना किसी के जगाए चिंकी सुबह जल्दी उठ गई…!!!

आज तो यूनिफॉर्म भी नहीं पहनना, अपनी सबसे सुंदर गुलाबी फ्रिल वाली फ्रॉक पहनेगी..! पता नईं मम्मा ने मेरे पिंक सॉक्स और पिंक शूज़ कहां रखे हैं…!!!!

जैसे ही मम्मा के रूम में गई तो देखा पापा भी सो रहे थे…!!!

चिंहुक कर पापा के गले लग गई और आधी नींद में भी पापा ने ढेर सारी किस्सी करके चिंकी को अपने साथ सुला लिया..!!!

मम्मा अब भी बेखबर सोई थीं।

पापा को देख चिंकी की सारी परेशानी दूर हो गई..!!!

उसने फुसफुसाकर पापा को रूम से बाहर आने को बोला…" ज़रूरी बात है न पापा...अभी दादू दादी भी आ जाएंगे.."

" दादू...क्यों, आपने बुलाया है…!!!"

" पापा प्लीज़, आप बाहर तो चलो, सब बताऊंगी…!"

अपने माता पिता के आने की बात सुनकर शुभम यादव  को उठना ही पड़ा…!!!!

चिंकी सारी घटना सिलसिलेवार बता रही थी कि घंटी की आवाज़ ने विराम लगा दिया…!

शुभम ने माता पिता के पैर छूकर बिठाया।तभी हाल चाल जानकर चिंकी को तैयार करने चला गया…!

शीला ने आकर झटपट नाश्ता बनाया और ड्राइवर चिंकी और शुभम के माता पिता को लेकर चिंकी के स्कूल पहुंचा..।

       इस सारी घटना से बेखबर चिंकी की मॉम जब उठी तो सिर पकड़कर बैठ गई…!

"यार, मुझे समझ नहीं आ रहा , ये लड़की कितनी ज़िद्दी हो गई है... नेक्स्ट ईयर मैं मॉम डैड को बुला लूंगी। एक ग्रैंड पैरेंट्स डे पर कोई नहीं भी गया तो क्या प्राब्लम है..!!!!

शुभम भी अपने माता पिता को लेकर बहुत आश्वस्त नहीं था और चुपचाप बैठकर अंशिका की घबराहट देख रहा था..!!!

"कुछ नहीं होगा यार अंशु..!! मेरे पेरेंट्स चुपचाप बैठकर कार्यक्रम देखेंगे और आ जाएंगे; पता है न, चिंकी ने क्या बवाल खड़ा किया था...पूछो शीला से..!!!उन्होंने भी मन मार कर हां की और गए हैं..!अब शांत रहो तुम और मुझे थोड़ा रेस्ट करने दो, इतना लंबा टूर था, होटल का खाना खा खाकर तंग आ गया…!!!!"

"शीला को बोलो कुछ हल्का सा बना दे…!!!"

"आप समझ नहीं रहे हो शुभम..!वहां सारी इंस्ट्रक्शंस इंग्लिश में होंगी...उन्हें क्या समझ आएगा…?"

"ख़ुद भी टेंशन ले रही हो और मुझे भी बेकार टेंस कर रही हो, जो होगा देखा जाएगा…!"

शुभम उठकर अपने कमरे में गया।

         शुभम जानता है अंशु की चिंता..अपना मान,अपनी इज़्ज़त ,न जाने क्या क्या सोचती रहेगी..!ऐसा नहीं कि उसके माता पिता अनपढ़ हैं...पिताजी ने 20 वर्ष सेना में देशसेवा की ...अब वी.आर. एस. लेकर घर परिवार, खेत खलिहान संभाल रहे हैं..! मां कितनी सुघड़ गृहिणी हैं,अंशिका को ये समझने का अवसर ही नहीं मिला।पहले बैंगलोर में दोनों की प्लेसमेंट हुई और अब दोनों दिल्ली में आ गए।

         ख़ैर, शुभम की चिंता यह नहीं थी कि हमारा अपमान न हो जाए ,पर हो सकता है, बाबूजी और मां अनकंफर्टेबल महसूस करें।चलो नाश्ते का बुलावा आया और देखा कि अंशु अब भी चुपचाप है…!अपने टूर और उसकी प्रेजेंटेशन की बात करके माहौल बदलने की कोशिश की।

 स्कूल का वातावरण चहल पहल से भरा था।सब नाना नानी और दादा दादी का स्वागत करने स्वयं नर्सरी विभागाध्यक्ष कर रही थीं…! मैदान में एक और झूले और एक और भोजन का प्रबंध था।चिंकी दादू का हाथ पकड़े ऐसे ले जा रही थी मानो उनकी गाईड हो..। हंसती खिलखिलाती चिंकी गुलाबी फ्रॉक में परी लग रही थी...दादू दादी बड़े गर्व से उसके स्कूल व प्रबंध को देखकर खुश हो रहे थे।

         प्रतियोगिताएं शुरू हो गईं थीं...चिंकी ने पहले ही दादू दादी का नाम चार में से तीन प्रतियोगिताओं में लिखवा दिया था…!!!

      पहले तो दादी ने मंच पर जाने से इंकार कर दिया लेकिन चिंकी का चेहरा खुली किताब सा उन्हें जाने पर मजबूर कर रहा था…!

अरे ये तो बहुत आसान है...मन ही मन दादी सोचने लगीं।सबकी आंखों पर पट्टी बांध दी गई । अब सब दादियों और नानियों की गृहस्थी की परीक्षा थी...उन्हें हर साबुत मसाले को छूकर उसका नाम बताना था..!!!

सभी से दो या तीन मसाले पहचाने नहीं गए पर चिंकी की दादी तो बाज़ी मार ले गईं..सभी मसालों के नाम बताकर उन्होंने एक बड़ी सी ट्रॉफी जीत ली...चिंकी से ज़्यादा कौन गर्वित होगा और दादू मन ही मन में पत्नी को सराह रहे थे..!

        अब बारी आई सब दादा और नानाओं की..!!!ये भी बड़ा ही मज़ेदार कार्यक्रम था, इसमें भी सबकी आंखों पर पट्टी बांध दी गई।उन्हें सात किस्म के अनाजों को हाथ लगाकर पहचानना था…!

       चिंकी के दादा जी का अनुभव ऐसा काम आया कि उन्होंने बाज़ी मार ली। अगला कार्यक्रम विभिन्न राज्यों के नृत्य का था किंतु इसमें बहुत अधिक प्रतिभागी न होने के कारण प्रतियोगिता को एक नृत्य प्रदर्शन में बदल दिया गया..!

     मंच पर बहुत कम जोड़े नृत्य कर रहे थे ; तभी चिंकी ने अपनी दादी को नृत्य के लिए मंच पर जाने को कहा।अब तक दादा दादी काफ़ी सहज व आनंदित महसूस कर रहे थे क्योंकि वे अब तक दो प्रतियोगिता जीत चुके थे..!!

      दादा जी ने हरियाणवी गीत लगाने की गुज़ारिश की और सबसे प्रसिद्ध गीत बजने लगा…! "मने बोडला दिवा दे रे ओ ननदी के बीरा तन्ने न्यू माथा पे राखू….

दोनों के साथ साथ सारे दादा दादी और नाना नानी तालियां बजा रहे थे…!!!सभी अध्यापिकाएं उनका साथ दे रहीं थीं..समां बंधा हुआ था..!!!

         चिंकी के दादा दादी सबके आकर्षण का केंद्र बन चुके थे। हेड मिस्ट्रेस द्वारा सभी पुरस्कार दिए गए…!!!चिंकी बहुत गर्वित महसूस कर रही थी..!! स्वादिष्ट भोजन के साथ साथ सभी आपस में घुल मिल रहे थे; यही तो उद्देश्य था इस कार्यक्रम का...आपस में एक दूसरे को फ़ोन नंबर लिए और दिए जा रहे थे…!

          घर में अपूर्व शांति छाई हुई थी…! चिंकी के मम्मी पापा बेसब्री से उनके लौटने का इंतज़ार कर रहे थे। घंटी की आवाज़ सुनते ही दोनों दरवाज़ा खोलने को लगभग दौड़े…!!!

        अरे यह क्या..!!! दोनों की आंखें और मुंह विस्मय से खुले के खुले रह गए…!!! चमचमाती दो बड़ी बड़ी ट्रॉफी थामे खिलखिलाती चिंकी के साथ जब दोनों ने मां बाबूजी को देखा। 

    अब बारी चिंकी की थी जो लगातार बोले ही जा रही थी और सारे दादा दादी में अव्वल अपने दादू और दादी की प्रशंसा में कहानी सुना रही थी।शीला झटपट चाय ले आई ।

अचानक अंशिका सोफे से उठी और मां जी को गले से लगाकर दिल खोलकर मुबारकबाद दी।शुभम के साथ साथ अंशिका के इस व्यवहार से सभी अचंभित और आश्वस्त थे।

        अंशिका ने ज़िद करके उन्हें घर पर रोक लिया ।बाबूजी ने बहू से कहा," बेटा एक शर्त पर हम रुकेंगे…"

        हैरानी से सब बाबूजी का मुंह तकने लगे….

"महीने में एक बार आप दोनों चिंकी को घर लाओगे और दादी के हाथ का डिनर करोगे..बोलो मंजूर है बेटा..!"

    अंशिका ने मनाही में सिर हिलाकर कहा "मुझे यह शर्त मंजूर नहीं बाबूजी…!"

चिंकी का रूआंसा स्वर सुनाई दिया.." मम्मा नो.."

    अंशिका ने चिंकी को अपने पास बुलाया और गोद में ले लिया।बाबूजी ,मां और शुभम के चेहरे उतर गए।तभी अंशिका हँसते हुए बोली, " बाबूजी हम महीने में एक बार नहीं,दो-तीन बार मां जी के हाथ का खाना खाने आएंगे और आप दोनों हर वीकेंड हमारे साथ घूमने भी चलोगे, बोलिए बाबूजी...मेरी यह शर्त मंजूर है…!"

     सबके ठहाकों से घर गूंज उठा चारों तरफ़ खुशियों की महक और चहक चहलकदमी करने लगी।


नोरिन शर्मा



ज़िंदगी की तलाश में हर ज़िंदगी मशग़ूल है

 ज़िंदगी की तलाश में हर ज़िंदगी मशग़ूल है 

कोई धन की चाह में डूबा है 

तो कोई प्यार की खोज में खोया है ।

हर कोई बस खोया ही खोया है

ना वो अपने को पा सका 

न ही दूसरों के दिल में अपनी जगह बना सका 

बस’ कुछ ‘पाने की अंधी दौड़ में 

भागा जा रहा है ,भागा जा रहा है।

वह हर नाते रिश्ते को पीछे छोड़े जा रहा है 

अब न तो उसका कोई भाई है न ही बहन 

अब ‘कुछ ‘ही उसका सब कुछ बन गया ।

सब कुछ ,कुछ भी ना बन सका 

सब कुछ छूट गया 

पीछे ,बहुत पीछे 

‘कुछ’ पाने की धुन में।

इंदिरा वेद 


जिंदगी जद्दोजहद का नाम है

       

पग पग पर मिले कष्ट 

तो झेलना

झेल कर भी खुश  ही रहना

जिंदगी संघर्ष का उपनाम है 

जिंदगी जद्दोजहद का नाम है 

       अवहेलना के ढूंढे 

       अवसार लोग 

       तिरस्कार करने की  मंशा रखें लोग

       जिंदगी स्वाभिमान का उपनाम है 

       जिंदगी जद्दोजहद का नाम है 

रहम दिली दुनिया से दूर दिखती

जिंदादिली हृदय से

रुखसत सी लगती

जिंदगी नेकी का उपनाम है

जिंदगी जद्दोजहद का नाम है 

         रिश्तो में अवसाद  क्यों भरा है

         उन्माद भरा जीवन दूर खड़ा है

         जिंदगी नवचेतना का उपनाम है

         जिंदगी जद्दोजहद का नाम है

     स्वरचित 

 संगीता श्रीवास्तव 

शिक्षिका (क्रेडो वर्ल्ड स्कूल)

 धनबाद, झारखंड



 शिव तांडव स्‍त्रोत 

  

कुबेर व रावण दोनों ऋषि विश्रवा की संतान थे और दोनों सौतेले भाई थे। ऋषि विश्रवा ने सोने की लंका का राज्‍य कुबेर को दिया था लेकिन किसी कारणवश अपने पिता के कहने पर वे लंका का त्याग कर हिमाचल चले गए।

कुबेर के चले जाने के बाद इससे दशानन बहुत प्रसन्न हुआ। वह लंका का राजा बन गया और लंका का राज्‍य प्राप्‍त करते ही धीरे-धीरे वह इतना अहंकारी होगया कि उसने साधुजनों पर अनेक प्रकार के अत्याचार करने शुरू कर दिए।

जब दशानन के इन अत्‍याचारों की ख़बर कुबेर को लगी तो उन्होंने अपने भाई को समझाने के लिए एक दूत भेजा, जिसने कुबेर के कहे अनुसार दशानन को सत्य पथ पर चलने की सलाह दी। कुबेर की सलाह सुन दशानन को इतना क्रोध आया कि उसने उस दूत को बंदी बना लिया व क्रोध के मारे तुरन्‍त अपनी तलवार से उसकी हत्‍या कर दी।

कुबरे की सलाह से दशानन इतना क्रोधित हुआ कि दूत की हत्‍या के साथ ही अपनी सेना लेकर कुबेर की नगरी अलकापुरी को जीतने निकल पड़ा और कुबेर की नगरी को तहस-नहस करने के बाद अपने भाई कुबेर पर गदा का प्रहार कर उसे भी घायल कर दिया लेकिन कुबेर के सेनापतियों ने किसी तरह से कुबेर को नंदनवन पहुँचा दिया जहाँ वैद्यों ने उसका इलाज कर उसे ठीक किया। 

 चूंकि दशानन ने कुबेर की नगरी व उसके पुष्‍पक विमान पर भी अपना अधिकार कर लिया था, सो एक दिन पुष्‍पक विमान में सवार होकर शारवन की तरफ चल पड़ा। लेकिन एक पर्वत के पास से गुजरते हुए उसके पुष्पक विमान की गति स्वयं ही धीमी हो गई।

चूंकि पुष्‍पक विमान की ये विशेषता थी कि वह चालक की इच्‍छानुसार चलता था तथा उसकी गति मन की गति से भी तेज थी, इसलिए जब पुष्‍पक विमान की गति मंद हो गर्इ तो दशानन को बडा आश्‍चर्य हुआ। तभी उसकी दृष्टि सामने खडे विशाल और काले शरीर वाले नंदीश्वर पर पडी। नंदीश्वर ने दशानन को चेताया कि-


यहाँ भगवान शंकर क्रीड़ा में मग्न हैं इसलिए तुम लौट जाओ.

लेकिन दशानन कुबेर पर विजय पाकर इतना दंभी होगया था कि वह किसी कि सुनने तक को तैयार नहीं था। उसे उसने कहा कि-

कौन है ये शंकर और किस अधिकार से वह यहाँ क्रीड़ा करता है?  मैं उस पर्वत का नामो-निशान ही मिटा दूँगा, जिसने मेरे विमान की गति अवरूद्ध की है।

इतना कहते हुए उसने पर्वत की नींव पर हाथ लगाकर उसे उठाना चाहा। अचानक इस विघ्न से शंकर भगवान विचलित हुए और वहीं बैठे-बैठे अपने पाँव के अंगूठे से उस पर्वत को दबा दिया ताकि वह स्थिर हो जाए। लेकिन भगवान शंकर के ऐसा करने से दशानन की बाँहें उस पर्वत के नीचे दब गई। फलस्‍वरूप क्रोध और जबरदस्‍त पीडा के कारण दशानन ने भीषण चीत्‍कार कर उठा, जिससे ऐसा लगने लगा कि मानो प्रलय हो जाएगा। तब दशानन के मंत्रियों ने उसे शिव स्तुति करने की सलाह दी ताकि उसका हाथ उस पर्वत से मुक्‍त हो सके।

दशानन ने बिना देरी किए हुए सामवेद में उल्लेखित शिव के सभी स्तोत्रों का गान करना शुरू कर दिया, जिससे प्रसन्न होकर भगवान शिव ने दशानन को क्षमा करते हुए उसकी बाँहों को मुक्त किया।

दशानन द्वारा भगवान शिव की स्‍तुति के लिए किए जो स्‍त्रोत गाया गया था, वह दशानन ने भयंकर दर्द व क्रोध के कारण भीषण चीत्‍कार से गाया था और इसी भीषण चीत्‍कार को संस्‍कृत भाषा में राव: सुशरूण: कहा जाता है। इसलिए जब भगवान शिव, रावण की स्‍तुति से प्रसन्‍न हुए और उसके हाथों को पर्वत के नीचे से मुक्‍त किया, तो उसी प्रसन्‍नता में उन्‍होंने दशानन का नाम रावण यानी ‘भीषण चीत्कार करने पर विवश शत्रु’ रखा क्‍योंकि भगवान शिव ने रावण को भीषण चीत्‍कार करने पर विवश कर दिया था और तभी से दशानन काे रावण कहा जाने लगा।


शिव की स्तुति के लिए रचा गया वह सामवेद का वह स्त्रोत, जिसे रावण ने गाया था, को आज भी रावण-स्त्रोत व शिव तांडव स्‍त्रोत के नाम से जाना जाता है, जो कि निम्‍नानुसार है-

 

*शिव तांडव स्‍त्रोत...*


जटाटवीगलज्जल प्रवाहपावितस्थले

गलेऽवलम्ब्य लम्बितां भुजंगतुंगमालिकाम्‌।

डमड्डमड्डमड्डमनिनादवड्डमर्वयं

चकार चंडतांडवं तनोतु नः शिवः शिवम ॥1॥


सघन जटामंडल रूप वन से प्रवाहित होकर श्री गंगाजी की धाराएँ जिन शिवजी के पवित्र कंठ प्रदेश को प्रक्षालित (धोती) करती हैं, और जिनके गले में लंबे-लंबे बड़े-बड़े सर्पों की मालाएँ लटक रही हैं तथा जो शिवजी डमरू को डम-डम बजाकर प्रचंड तांडव नृत्य करते हैं, वे शिवजी हमारा कल्याण करें।


जटा कटा हसंभ्रम भ्रमन्निलिंपनिर्झरी ।

विलोलवी चिवल्लरी विराजमानमूर्धनि ।

धगद्धगद्ध गज्ज्वलल्ललाट पट्टपावके

किशोरचंद्रशेखरे रतिः प्रतिक्षणं ममं ॥2॥


अति अम्भीर कटाहरूप जटाओं में अतिवेग से विलासपूर्वक भ्रमण करती हुई देवनदी गंगाजी की चंचल लहरें जिन शिवजी के शीश पर लहरा रही हैं तथा जिनके मस्तक में अग्नि की प्रचंड ज्वालाएँ धधक कर प्रज्वलित हो रही हैं, ऐसे बाल चंद्रमा से विभूषित मस्तक वाले शिवजी में मेरा अनुराग (प्रेम) प्रतिक्षण बढ़ता रहे।


धरा धरेंद्र नंदिनी विलास बंधुवंधुर-

स्फुरदृगंत संतति प्रमोद मानमानसे ।

कृपाकटा क्षधारणी निरुद्धदुर्धरापदि

कवचिद्विगम्बरे मनो विनोदमेतु वस्तुनि ॥3॥


पर्वतराजसुता के विलासमय रमणीय कटाक्षों से परम आनंदित चित्त वाले (माहेश्वर) तथा जिनकी कृपादृष्टि से भक्तों की बड़ी से बड़ी विपत्तियाँ दूर हो जाती हैं, ऐसे (दिशा ही हैं वस्त्र जिसके) दिगम्बर शिवजी की आराधना में मेरा चित्त कब आनंदित होगा।

जटा भुजं गपिंगल स्फुरत्फणामणिप्रभा-

कदंबकुंकुम द्रवप्रलिप्त दिग्वधूमुखे ।

मदांध सिंधु रस्फुरत्वगुत्तरीयमेदुरे

मनो विनोदद्भुतं बिंभर्तु भूतभर्तरि ॥4॥


जटाओं में लिपटे सर्प के फण के मणियों के प्रकाशमान पीले प्रभा-समूह रूप केसर कांति से दिशा बंधुओं के मुखमंडल को चमकाने वाले, मतवाले, गजासुर के चर्मरूप उपरने से विभूषित, प्राणियों की रक्षा करने वाले शिवजी में मेरा मन विनोद को प्राप्त हो।


सहस्र लोचन प्रभृत्य शेषलेखशेखर-

प्रसून धूलिधोरणी विधूसरांघ्रिपीठभूः ।

भुजंगराज मालया निबद्धजाटजूटकः

श्रिये चिराय जायतां चकोर बंधुशेखरः ॥5॥


इंद्रादि समस्त देवताओं के सिर से सुसज्जित पुष्पों की धूलिराशि से धूसरित पादपृष्ठ वाले सर्पराजों की मालाओं से विभूषित जटा वाले प्रभु हमें चिरकाल के लिए सम्पदा दें।


ललाट चत्वरज्वलद्धनंजयस्फुरिगभा-

निपीतपंचसायकं निमन्निलिंपनायम्‌ ।

सुधा मयुख लेखया विराजमानशेखरं

महा कपालि संपदे शिरोजयालमस्तू नः ॥6॥


इंद्रादि देवताओं का गर्व नाश करते हुए जिन शिवजी ने अपने विशाल मस्तक की अग्नि ज्वाला से कामदेव को भस्म कर दिया, वे अमृत किरणों वाले चंद्रमा की कांति तथा गंगाजी से सुशोभित जटा वाले, तेज रूप नर मुंडधारी शिवजीहमको अक्षय सम्पत्ति दें।


कराल भाल पट्टिकाधगद्धगद्धगज्ज्वल-

द्धनंजया धरीकृतप्रचंडपंचसायके ।

धराधरेंद्र नंदिनी कुचाग्रचित्रपत्रक-

प्रकल्पनैकशिल्पिनि त्रिलोचने मतिर्मम ॥7॥


जलती हुई अपने मस्तक की भयंकर ज्वाला से प्रचंड कामदेव को भस्म करने वाले तथा पर्वत राजसुता के स्तन के अग्रभाग पर विविध भांति की चित्रकारी करने में अति चतुर त्रिलोचन में मेरी प्रीति अटल हो।


नवीन मेघ मंडली निरुद्धदुर्धरस्फुर-

त्कुहु निशीथिनीतमः प्रबंधबंधुकंधरः ।

निलिम्पनिर्झरि धरस्तनोतु कृत्ति सिंधुरः

कलानिधानबंधुरः श्रियं जगंद्धुरंधरः ॥8॥


नवीन मेघों की घटाओं से परिपूर्ण अमावस्याओं की रात्रि के घने अंधकार की तरह अति गूढ़ कंठ वाले, देव नदी गंगा को धारण करने वाले, जगचर्म से सुशोभित, बालचंद्र की कलाओं के बोझ से विनम, जगत के बोझ को धारण करने वाले शिवजी हमको सब प्रकार की सम्पत्ति दें।

 

प्रफुल्ल नील पंकज प्रपंचकालिमच्छटा-

विडंबि कंठकंध रारुचि प्रबंधकंधरम्‌

स्मरच्छिदं पुरच्छिंद भवच्छिदं मखच्छिदं

गजच्छिदांधकच्छिदं तमंतकच्छिदं भजे ॥9॥


फूले हुए नीलकमल की फैली हुई सुंदर श्याम प्रभा से विभूषित कंठ की शोभा से उद्भासित कंधे वाले, कामदेव तथा त्रिपुरासुर के विनाशक, संसार के दुखों के काटने वाले, दक्षयज्ञविध्वंसक, गजासुरहंता, अंधकारसुरनाशक और मृत्यु के नष्ट करने वाले श्री शिवजी का मैं भजन करता हूँ।


अगर्वसर्वमंगला कलाकदम्बमंजरी-

रसप्रवाह माधुरी विजृंभणा मधुव्रतम्‌ ।

स्मरांतकं पुरातकं भावंतकं मखांतकं

गजांतकांधकांतकं तमंतकांतकं भजे ॥10॥


कल्याणमय, नाश न होने वाली समस्त कलाओं की कलियों से बहते हुए रस की मधुरता का आस्वादन करने में भ्रमररूप, कामदेव को भस्म करने वाले, त्रिपुरासुर, विनाशक, संसार दुःखहारी, दक्षयज्ञविध्वंसक, गजासुर तथा अंधकासुर को मारनेवाले और यमराज के भी यमराज श्री शिवजी का मैं भजन करता हूँ।


जयत्वदभ्रविभ्रम भ्रमद्भुजंगमस्फुर-

द्धगद्धगद्वि निर्गमत्कराल भाल हव्यवाट्-

धिमिद्धिमिद्धिमि नन्मृदंगतुंगमंगल-

ध्वनिक्रमप्रवर्तित प्रचण्ड ताण्डवः शिवः ॥11॥


अत्यंत शीघ्र वेगपूर्वक भ्रमण करते हुए सर्पों के फुफकार छोड़ने से क्रमशः ललाट में बढ़ी हुई प्रचंड अग्नि वाले मृदंग की धिम-धिम मंगलकारी उधा ध्वनि के क्रमारोह से चंड तांडव नृत्य में लीन होने वाले शिवजी सब भाँति से सुशोभित हो रहे हैं।


दृषद्विचित्रतल्पयोर्भुजंग मौक्तिकमस्रजो-

र्गरिष्ठरत्नलोष्टयोः सुहृद्विपक्षपक्षयोः ।

तृणारविंदचक्षुषोः प्रजामहीमहेन्द्रयोः

समं प्रवर्तयन्मनः कदा सदाशिवं भजे ॥12॥


कड़े पत्थर और कोमल विचित्र शय्या में सर्प और मोतियों की मालाओं में मिट्टी के टुकड़ों और बहुमूल्य रत्नों में, शत्रु और मित्र में, तिनके और कमललोचननियों में, प्रजा और महाराजाधिकराजाओं के समान दृष्टि रखते हुए कब मैं शिवजी का भजन करूँगा।


कदा निलिंपनिर्झरी निकुजकोटरे वसन्‌

विमुक्तदुर्मतिः सदा शिरःस्थमंजलिं वहन्‌।

विमुक्तलोललोचनो ललामभाललग्नकः

शिवेति मंत्रमुच्चरन्‌कदा सुखी भवाम्यहम्‌॥13॥


कब मैं श्री गंगाजी के कछारकुंज में निवास करता हुआ, निष्कपटी होकर सिर पर अंजलि धारण किए हुए चंचल नेत्रों वाली ललनाओं में परम सुंदरी पार्वतीजी के मस्तक में अंकित शिव मंत्र उच्चारण करते हुए परम सुख को प्राप्त करूँगा।


निलिम्प नाथनागरी कदम्ब मौलमल्लिका-

निगुम्फनिर्भक्षरन्म धूष्णिकामनोहरः ।

तनोतु नो मनोमुदं विनोदिनींमहनिशं

परिश्रय परं पदं तदंगजत्विषां चयः ॥14॥


देवांगनाओं के सिर में गूँथे पुष्पों की मालाओं के झड़ते हुए सुगंधमय पराग से मनोहर, परम शोभा के धाम महादेवजी के अंगों की सुंदरताएँ परमानंदयुक्त हमारेमन की प्रसन्नता को सर्वदा बढ़ाती रहें।


प्रचण्ड वाडवानल प्रभाशुभप्रचारणी

महाष्टसिद्धिकामिनी जनावहूत जल्पना ।

विमुक्त वाम लोचनो विवाहकालिकध्वनिः

शिवेति मन्त्रभूषगो जगज्जयाय जायताम्‌ ॥15॥


प्रचंड बड़वानल की भाँति पापों को भस्म करने में स्त्री स्वरूपिणी अणिमादिक अष्ट महासिद्धियों तथा चंचल नेत्रों वाली देवकन्याओं से शिव विवाह समय में गान की गई मंगलध्वनि सब मंत्रों में परमश्रेष्ठ शिव मंत्र से पूरित, सांसारिक दुःखों को नष्ट कर विजय पाएँ।


इमं हि नित्यमेव मुक्तमुक्तमोत्तम स्तवं

पठन्स्मरन्‌ ब्रुवन्नरो विशुद्धमेति संततम्‌।

हरे गुरौ सुभक्तिमाशु याति नांयथा गतिं

विमोहनं हि देहना तु शंकरस्य चिंतनम ॥16॥


इस परम उत्तम शिवतांडव श्लोक को नित्य प्रति मुक्तकंठ सेपढ़ने से या श्रवण करने से संतति वगैरह से पूर्ण हरि और गुरु मेंभक्ति बनी रहती है। जिसकी दूसरी गति नहीं होती शिव की ही शरण में रहता है।


पूजाऽवसानसमये दशवक्रत्रगीतं

यः शम्भूपूजनमिदं पठति प्रदोषे ।

तस्य स्थिरां रथगजेंद्रतुरंगयुक्तां

लक्ष्मी सदैव सुमुखीं प्रददाति शम्भुः ॥17॥


शिव पूजा के अंत में इस रावणकृत शिव तांडव स्तोत्र का प्रदोष समय में गान करने से या पढ़ने से लक्ष्मी स्थिर रहती है। रथ गज-घोड़े से सर्वदा युक्त रहता है।


॥ इति श्री रावणकृतम् शिव तांडव स्तोत्रं संपूर्णम्‌॥

भगवान शिव की आराधना व उपासना के लिए रचे गए सभी अन्‍य स्‍तोत्रों में रावण रचित या रावण द्वारा गया गया शिवतांडव स्तोत्र भगवान शिव को अत्‍यधिक प्रिय है, ऐसी हिन्‍दु धर्म की मान्‍यता है और माना जाता है कि शिवतांडव स्तोत्र द्वारा भगवान शिव की स्तुति करने से व्यक्ति को कभी भी धन-सम्पति की कमी नहीं होती, साथ ही व्‍यक्ति को उत्कृष्ट व्यक्तित्व की प्राप्ति होती है। यानी व्‍यक्ति का चेहरा तेजस्‍वी बनता है तथा उसके आत्‍मविश्‍वास में भी वृद्धि होती है।


इस शिवतांडव स्तोत्र का प्रतिदिन पाठ करने से व्‍यक्ति को जिस किसी भी सिद्धि की महत्वकांक्षा होती है, भगवान शिव की कृपा से वह आसानी से पूर्ण हो जाती है। साथ ही ऐसा भी माना जाता है कि इस स्तोत्र के नियमित पाठ से वाणी सिद्धि की भी प्राप्ति होती है। यानी व्‍यक्ति जो भी कहता है, वह वैसा ही घटित होने लगता है। नृत्य, चित्रकला, लेखन, योग, ध्यान, समाधी आदि सिद्धियां भगवान शिव से ही सम्‍बंधित हैं, इसलिए शिवतांडव स्तोत्र का पाठ करने वाले को इन विषयों से सम्‍बंधित सफलता सहज ही प्राप्‍त होने लगती हैं।


इतना ही नहीं, शनि को काल माना जाता है जबकि शिव महाकाल हैं, अत: शनि से पीड़ित व्‍यक्ति को इसके पाठ से बहुत लाभ प्राप्‍त है। साथ ही जिन लोगों की जन्‍म-कुण्‍डली में सर्प योग, कालसर्प योग या पितृ दोष होता है, उन लोगों के लिए भी शिवतांडव स्तोत्र  का पाठ करना काफी उपयोगी होता है क्‍योंकि हिन्‍दु धर्म में भगवान शिव को ही आयु, मृत्‍यु और सर्प का स्‍वामी माना गया है।


रामानुजाचार्य ( जन्म: 1017 - मृत्यु: 1137 ) विशिष्टाद्वैत वेदान्त के प्रवर्तक थे। वह ऐसे वैष्णव सन्त थे जिनका भक्ति परम्परा पर बहुत गहरा प्रभाव रहा। वैष्णव आचार्यों में प्रमुख रामानुजाचार्य की शिष्य परम्परा में ही रामानन्द हुए जिनके शिष्य कबीर, रैदास और सूरदास थे।



वैदिक गणित



भारत की शिक्षा व्यवस्था में गणित प्रमुख विषयों में से एक था। हाथी गुम्फा के लेख से ज्ञात होता है कि कलिंग नरेश खाखेल ने अपने जीवन के 9 वर्ष लिपि व रेखागणित व अंकगणित सीखने में बिताये थे। जैन ग्रंथों में भी गणित के अध्ययन के सूत्र मिलते हैं। 

   प्राचीन काल में गणित पढाने का उद्देश्य वस्तुओं के मूल्य निकालने में और हिसाब रखने में किया जाता था। 

   आज के वैज्ञानिक युग में गणित का विशेष महत्व है, लेकिन छात्र गणित में कमजोर पाए जाते हैं, जिसका प्रमुख कारण जटिल विधियाँ हैं। अतः यदि सामान्य गणित के स्थान पर प्राचीन वैदिक गणित की सरलीकृत विधियाँ पाठ्यक्रम में सम्मिलित कर दी जाए तो छात्र मनोरंजनपूर्वक गणित का अध्ययन कर सकेंगे। 

वैदिक गणित का परिचय.

वैदिक गणित, गणित की प्राचीन प्रणाली पर आधारित है। जिसका प्रारम्भ वैदिक युग में हुआ था। यह सामान्य नियमों एंव सिद्धान्तों परआधारित गणना की एक अद्वितीय प्रविधि है, जिसके द्वारा किसी भी की गणितीय समस्या को मौखिक रूप से हल किया जा सकता है।

वैदिक गणित का प्रारम्भ तो वैदिक काल से हो चुका था, परन्तु इसकी शुरुआत २०वीं शताब्दी से मानी जाती है। २०वीं शताब्दी में यूरोपीय देशों में संस्कृत पाठ्य पुस्तकों के प्रति विशेष रूचि थी। इन पाठ्य पुस्तकों में गणितीय सूत्र विद्यमान थे, परन्तु कोई भी इन सूत्रों में गणित को खोज नहीं सका।


  वर्तमान समय में वैदिक गणित का पुर्नजीवन किसी चमत्कार से कम नहीं है। इसका अध्ययन न केवल गणितीय प्रमेयों तथा अनुमितियों के लिए है, बल्कि ये मानसिक विकास में भी सहायक है।

प्राचीन धार्मिक ग्रंथों से वैदिक गणित की पुर्नखोज का श्रेय परम पूज्यनीय श्री भारती कृष्ण तीर्थ जी को दिया जाता है। कृष्ण तीर्थ जी जोकि पुरी पीठ के शंकराचार्य भी थे इन्होने गणित नामक पुस्तक की में वैदिक रचना की। इसी पुस्तक को वैदिक गणित के कार्यों को आरम्भिक बिंदु माना जाता है।


वैदिक गणित का विकास


1960 के अंत में जब वैदिक गणित नामक इस पुस्तक की प्रतिलिपि लंदन पहुंची। ब्रिटिश गणितज्ञों जैसे- कैनेथ विलियम्स, एण्ड्रयू निकोलस आदि ने भी इस नई प्रणाली में  रुचि दिखाई । इन सभी ने मिलकर इसका विस्तार किया व लंदन में इस पर कई व्याख्यान भी किए। 1981 में इन व्याख्यानों पर एक पुस्तक का प्रकाशन हुआ, जिसका नाम Introductly Lectures On Vedic Mathematicsकहा गया।

  गणित का कोई भी भाग वैदिक गणित से परे नहीं है। ये सूत्र समझने, कण्ठस्थ करने तथा आसानी से उपयोग में लाये जा सकते हैं।

वैदिक गणित की प्रशंसा करते हुए क्लाइव | मिडिलटन ने कहा कि ये सूत्र मस्तिष्क के प्राकृतिक रूप से कार्य करने की विधि को समझाते है।


वैदिक गणित के सोलह सूत्र एंव उनका अर्थ

सूत्र 1-  एकाधिकेन पूर्वेण 

 अर्थ - पहले से एक ज्यादा |

उपयोग - इस सूत्र का उपयोग दी गई संख्या से अगली संख्या को प्राप्त करने में किया जाता है।

सूत्र-2- निखिलम नवतश्चरमं दशत:

अर्थ- सभी नौ में से तथा अंतिम दस में से। 

उपयोग -  इस सूत्र का उपयोग आधार से पूरक ज्ञात करने में किया जाता है।

सूत्र 3- उर्वतिर्यग्भ्याम् 

अर्थ - सीधे और तिरछे दोनों विधियों से। 

 उपयोग -  इस सूत्र का उपयोग संख्याओं की उर्ध्व व तिर्यक गुणा करने में करते हैं। 

सूत्र 4- परावर्त्य योजयेत

 अर्थ - पक्षान्तर व समायोजन। 

उपयोग - इस सूत्रे का उपयोग क्रियात्मक आधार से पूरक तथा अधिकाय ज्ञात करने में करते हैं। 

सूत्र 5- शून्यं साम्यसमुच्चये 

अर्थ - जब कोई व्यंजक समान है तो वह व्यंजक शून्य है। उपयोग - इस सूत्र का उपयोग उस संख्या को स्ट्रात करने में किया जाता है, जो सभी में - उभयनिष्ठ हो व शून्य के बराबर होगा।

सूत्र-6- आनुरूप्ये शून्यमन्यत् 

अर्थ- यदि एक अनुपात में हो तो दूसरा शून्य होगा। 

उपयोग - इसका उपयोग एक समीकरण निकाय में एक चर का मान ज्ञात करने में किया जाता है।

सूत्र-7- संकलन व्यवकलनाभ्याम्

अर्थ -जोड़ना व घटाना | 

उपयोग - इस सूत्र का उपयोग युगपत समीकरण में चरों का मान ज्ञात करने में करते है।

सूत्र 8- पूरणापूरणाभ्याम्

अर्थ - पूर्णता व अपूर्णता से ।

उपयोग- इस सूत्र का उपयोग एक समीकरण को पूर्ण वर्ग या पूर्ण घन बनाकर चर का मान ज्ञात करने में किया जाता है।

सूत्र-9- चलन कलनाभ्याम्

अर्थ - अवकलन | 

उपयोग - इस सूत्र का उपयोग द्विघात के मूल ज्ञात करने व 3.4,5 की कोटि के व्यंजकों के गुणनखण्ड करने के लिए।

सूत्र 10- यावदूनम् 

अर्थ- जो भी पूरक हो ।

 उपयोग - दो अंकीय संख्या का घन सात करने के लिए किया जाता है। 

 सूत्र-11- व्यष्टि समष्टि

अर्थ - एकाकी एंव समस्त |

 उपयोग - इस सूत्र का प्रयोग म०स०, ल०स०, तथा औसत ज्ञात करने के लिए किया जाता है।

सूत्र 12 - शेषाण्यकेन चरमेण

अर्थ -अंतिम अंक से शेषफला।

उपयोग - इस सूत्र का उपयोग किसी भिन्न को - दशमलव रूप में व्यक्त करने के लिए किया जाता है। 

सूत्र 13- सोपान्त्यद्वय मन्त्यम्

 अर्थ- अंतिम तथा उससे पहले का दोगुना।

उपयोग- इसका प्रयोग चर का मान ज्ञात करने में किया जाता है।

सूत्र-14- एकन्यूनेन पूर्वेण

 अर्थ- पहले से एक कम।

उपयोग - इस सूत्र का प्रयोग निम्नलिखित प्रकार से किया जाता है -

१) दी गई संख्या से एक संख्या कम ज्ञात करने में। 

२)एक भिन्न को दशमलव में निरूपित करने के लिए |

३) दो संख्याओं की गुणा के लिए जिनमें से एक संख्या 9 की आवर्ती संख्या है। 

सूत्र-15- गुणित समुच्चय: अर्थ- योग की गुणा। 

उपयोग - इस सूत्र का उपयोग इसके व्यंजक के गुणनखण्डों की जाँच करने में किया जाता है। 


सूत्र-16-गुणक समुच्चय:

अर्थ- गुणकों का समुच्चय। 

उपयोग- इसका उपयोग संख्याओं की गुणा में शून्यों की संख्या ज्ञात करने में किया जाता है। 


वैदिक गणित के उपसूत्र


1.आनुरूप्येण - अनुरूपता के द्वारा । 

2. शिष्यते शेषसंज्ञ :- बचे हुए को शेष कहते है।

 3. आद्यमाघेनान्त्यमन्त्येन- पहले को पहले से,अंतिम को अंतिम से

4. कैवलैः सप्तकं गुण्यात - 'क', 'व', 'ल' से  7 को

 गुणा करें।

 5.वेष्टनम् - विभाजनीयता परीक्षण की एक क्रिया | 

6. यावदूनं तावदूनं - जितना कम उतना और कम।

      


वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को माता सीता प्रकट हुई थी | इसलिए इस दिन को सीता नवमी/जानकी नवमी के नाम से भी जाना जाता है|



            

वैश्विक महामारी-वरदान या अभिशाप 


दुनिया तेजी से बदल रही थी। सभी क्षेत्रों में लगभग सभी देश आगे बढ़ रहे थे।  कहना चाहिए कि विभिन्न देशों में होड़ लगी थी। तकनीक को आधार बनाकर हम सब आकाश को छूना चाहते थे, पाताल  के रहस्य जान लेना चाहते थे। हर ओर भागदौड़ थी। किसी के पास किसी के लिए तो क्या अपने लिए भी वक्त नहीं था।  दुनिया खूबसूरत थी क्योंकि इसमें प्रकृति और मानव निर्मित वस्तुओं का सामंजस्य था किंतु धीरे-धीरे मानव निर्मित दुनिया प्रकृति पर हावी होने लगी। अचानक एक दिन सब कुछ ठहर गया, एक अदृश्य विषाणु ने दुनिया भर के लोगों को कैद कर दिया। जी हां इस विषाणु को नाम को नाम 


दिया गया कोविड-19। इस छोटे से अदृश्य वायरस ने एक शरीर में प्रवेश किया और करते-करते दुनिया के सभी देशों पर छा गया। इसे नष्ट करने का कोई उपाय मनुष्य ढूंढ नहीं पाया।  खुद को घरों में कैद करना पड़ा। इस वायरस ने अमीरी-गरीबी, जाति -धर्म किसी आधार पर कोई भेदभाव नहीं किया। सबको दिखा दिया कि हमारा अस्तित्व कुछ भी नहीं है। कोई संदेह नहीं कि  इस वैश्विक महामारी के चलते बहुत से लोग आर्थिक संकट से गुजरे, अनगिनत लोगों ने अपनों को खोया, कितने ही घर परिवार बर्बाद हो गए। बहुत से व्यापार ठप हो गए अर्थात यह वैश्विक महामारी अभिशाप भयंकर अभिशाप के रूप में सामने आई। किन्तु जब लोगों का बाहर आना जाना बंद हुआ, तो सड़कों पर वाहन चलने बंद हो गए, हवा में फैला प्रदूषण कम हुआ पर्यावरण शुद्ध हुआ। वे पशु जो डर-डर कर, छुप कर रहते थे उन्होंने खुले में सांस ली। बहुत से लोगों ने घर बैठकर नए-नए अविष्कार किए, नए-नए कार्य सीखे,  दूसरों के साथ-साथ अपने लिए भी समय मिला।आत्मा का विश्लेषण करते-करते आत्मबोध को प्राप्त हुए। इस प्रकार इस वैश्विक महामारी के दौरान लोगों के व्यक्तित्व व सोच में जो परिवर्तन आया, वह सदा रहेगा। यह वैश्विक महामारी निश्चित ही खत्म होगी, इसके कुप्रभाव भी मिट जाएंगे फिर से सब कुछ सामान्य हो जाएगा, किंतु जो कुछ इस दौरान हमने सीखा है वह निश्चित ही वरदान साबित होगा।     -     चित्रा







मई में पड़ने वाले महापुरुषों के जन्मदिन/जन्‍मतिथि



1 मई अंतर्राष्ट्रीय श्रमिक दिवस,महाराष्ट्र दिवस

3 मई प्रेस स्वतंत्रता दिवस

4 मई कोयला खदान दिवस

अंतर्राष्ट्रीय फायर फाइटर दिवस

05 मई 1479 - गुरु अमरदासजी  - सिक्खों के तीसरे गुरु

07 मई 1861 - रवीन्द्रनाथ टैगोर - 

7 मई विश्व एथलेटिक्स डे

8 मई

विश्व थैलेसीमीया दिवस

विश्व रेड क्रॉस दिवस

09 मई 1866 - गोपालकृष्ण गोखले - स्वतंत्रता सेनानी, समाजसेवी

11 मई राष्ट्रीय प्रोघोगिकी दिवस

12 मई अंतर्राष्ट्रीय नर्स दिवस

15 मई परिवारों का अंतर्राष्ट्रीय दिवस

17 मई विश्व दूरसंचार दिवस

विश्व उच्च रक्तचाप दिवस

18 मई विश्व एड्स वैक्सीन दिवस

अंतर्राष्ट्रीय संग्रहालय दिवस

21 मई राष्ट्रीय आतंकवाद विरोधी दिवस

22 मई विश्व जैव विविधता दिवस

24 मई 1907 - महादेवी वर्मा - हिन्दी साहित्य में छायावादी युग  कवयित्रियों में से हैं।

24 मई राष्ट्रमंडल दिवस

31 मई तम्बाकू विरोधी दिवस

31 मई 1539 - महाराणा प्रताप - इतिहास में वीरता और दृढ प्रण के लिये अमर ह


महादेवी का जन्म २६ मार्च 1907 को फ़र्रुख़ाबाद उत्तर प्रदेश भारत में हुआ।उनके परिवार में  सात पीढ़ियों के बाद पहली बार पुत्री का जन्म हुआ था। कविता संग्रह महादेवी वर्मा के आठ कविता संग्रह हैं | नीहार (1930), रश्मि (1932), नीरजा (1934), सांध्यगीत (1936), दीपशिखा (1942), सप्तपर्णा (अनूदित 1959), प्रथम आयाम (1974), और अग्निरेखा (1990)|





मासिक पंचांग- मई -2022

व्रत,उत्सव मई - 2022 

दिनांक - 3 परशुराम जयंती,दिनांक - 4 विनायक चतुर्थी व्रत,दिनांक 6 अद्त्य जगद्गुरु शंकराचार्य जयंती,दिनांक 7 श्री रामानुजाचार्य जयंती,दिनांक गंगा सप्तमी,दिनांक 9 श्री दुर्गा अष्टमी,दिनांक 10 सीता नवमी,दिनांक 12 मोहिनी एकादशी व्रत,दिनांक 13 प्रदोष व्रत,दिनांक - 14 न्र्शिंग जयंती, दिनांक -15 सत्य व्रत,दिनांक - 16  बुध जयंती,पूर्णिमा,वशाख स्नान पूर्ण,दिनांक 19 श्री गणेश चतुर्थी व्रत,दिनांक- 22 कालाष्टमी,दिनांक -26 अपरा एकादशी व्रत,दिनांक 27 प्रदोष व्रत दिनांक 28  मास शिवरात्रि,दिनांक - 30 भावुका सोमवती अमावस्या वत सावित्री व्रत ,शनि जयंती दिनांक - 31 गंगा दशाव मेघ स्नान प्रारम्भ |




पंचक विचार मई - 2022  

पंचक विचार -(धनिष्ठा नक्षत्र के तृतीय चरण से रेवती नक्षत्र तक) पंचको में दक्षिण दिशा की ओर यात्रा करना मकान दुकान आदि की छत डालना चारपाई पलंग आदि बुनना,दाह संस्कार,बांस की चटाई दीवार प्रारंभ करना आदि स्तंभ रोपण तांबा पीतल तृण काष्ट आदि का संचय करना आदि कार्यों का निषेध माना जाता है समुचित उपाय एवं पंचक शांति करवा कर ही उक्त कार्यों का संपादन करना कल्याणकारी होगा ध्यान रहेगा  पंचर नक्षत्रों का विचार मात्र उपरोक्त विशेष कृतियों के लिए ही किया जाता है विवाह मंडल आरंभ गृह प्रवेश प्रवेश उपनयन आदि मुद्दों से तो पंचक नक्षत्र का प्रयोग शुभ माना जाता है

 पंचक विचार- दिनांक 22  को 11 -12 से दिनांक 27 से 00-36 बजे तक पंचक हैं |



चौघड़िया मुहूर्त 

चौघड़िया मुहूर्त देखकर कार्य या यात्रा करना उत्तम होता है। एक तिथि के लिये दिवस और रात्रि के आठ-आठ भाग का एक चौघड़िया निश्चित है। इस प्रकार से 12 घंटे का दिन और 12 घंटे की रात मानें तो प्रत्येक में 90 मिनट यानि 1.30 घण्टे का एक चौघड़िया होता है जो सूर्योदय से प्रारंभ होता है|

भद्रा विचार मई - 2022 

भद्रा काल का शुभ अशुभ विचार - भद्रा काल में विवाह मुंडन, गृह प्रवेश, रक्षाबंधन आदि मांगलिक कृत्य का निषेध माना जाता है परंतु भद्रा काल में शत्रु का उच्चाटन करना,स्त्री प्रसंग में,यज्ञ करना, स्नान करना, अस्त्र शस्त्र का प्रयोग,ऑपरेशन कराना, मुकदमा करना, अग्नि लगाना, किसी वस्तु को काटना,घोड़ा ऊंट संबंधी कार्य, प्रशस्त माने जाते हैं सामान्य परिस्थिति में विवाह आदि  शुभ मुहूर्त में भद्रा का त्याग करना चाहिए 


दिनांक 

शुरू 

दिनांक 

समाप्त 

04

20-47

05

10-01

08

17-00

09

05-51

12

07-17

12

18-52

15

12-46

15

23-15

18

13-18

18

23-37

21

14-59

22

01-59

24

22-38

25

10-32

28

13-09

29

02-02



ग्रह स्थिति मई - 2022

ग्रह स्थिति - दिनांक 10 बुद्ध वक्री,दिनांक 14  बुध पश्चिम अस्त ,दिनांक 15 सूर्य वर्षभ में,दिनांक 17 मंगल मीन मे,दिनांक 23  शुक्र मेष में |

सर्वार्थ सिद्धि योग मई -2022

दैनिक जीवन में आने वाले महत्वपूर्ण कार्यों के लिए शीघ्र ही किसी  शुभ मुहूर्त का अभाव हो,किंतु शुभ मुहर्त के लिए अधिक दिनों तक रुका ना जा सकता हो तो इन सुयोग्य वाले मुहर्तु  को सफलता से ग्रहण किया जा सकता है | इन से प्राप्त होने वाले अभीष्ट फल के विषय में संशय नहीं करना चाहिए यह योग हैं सर्वार्थ सिद्धि,अमृत सिद्धि योग एवं रवियोग | योग्यता नाम तथा गुण अनुसार सर्वांगीण सिद्ध कारक  है| 


दिनांक

प्रारंभ

दिनांक

समाप्त

03

00-33

03

05-43

04

04-42

05

05-41

06

09-19

07

05-40

08

05-39

08

14-57

14

17-27

15

05-34

16

13-17

17

05-33

21

01-17

21

23-46

24

22-33

25

05-30

26

05-29

28

02-26

30

07-12

31

05-29



मूल नक्षत्र विचार मई - 2022 


दिनांक

शुरू 

दिनांक

समाप्त 

08

15-57

10

18-39

17

10-46

19

05-36

25

23-19

28

02-26

सुर्य उदय- सुर्य अस्त मई -2022 


दिनांक

उदय 

दिनांक

अस्त 

05-41

1

18-55

5

05-38

5

18-58

10

05-35

10

19-01

15

05-31

15

19-04

20

05-29

20

19-07

25

05-27

25

19-09

30

05-25

30

19-12

राहू काल 

 

 राहुकाल -राहुकाल दक्षिण भारत की देन है,दक्षिण भारत में राहु काल में कृत्य करना अच्छा नहीं माना जाता, राहु काल में शुभ कृतियों में वर्जित करने की परंपरा अब हमारे उत्तरी भारत में भी अपनाने लगे हैं राहुकाल प्रतिदिन सूर्यादि वारों में भिन्न-भिन्न समय पर केवल डेढ़ डेढ़ घंटे के लिए घटित होता है |

संसार में कोई भी मनुष्य सर्वज्ञ नहीं है, सभी लोग अल्पज्ञ हैं।इसलिए सभी लोगों से कहीं न कहीं, छोटी,बड़ी,जाने अनजाने,कुछ न कुछ गलतियां होती ही रहती हैं। 

 अधिक जानकारी के लिये संपर्क करें - शर्मा जी - 9560518227





स्वामी विवेकानंद ने कहा 

 जिस उद्देश्य एवं लक्ष्य कार्य में परिणत हो जाओ उसी के लिए प्रयत्न करो। मेरे साहसी महान बच्चों काम में जी जान से लग जाओ अथवा अन्य तुच्छ विषयों के लिए पीछे मत देखो स्वार्थ को बिल्कुल त्याग दो और कार्य करो।



गवारियां बाबा



एक थे गवारियां बाबा। वृन्दावन में ही रहते थे। बिहारी जी को अपना यार कहते थे। सिर्फ कहते नहीं, मानते भी थे। नियम था बिहारी जी को नित्य सायं शयन करवाने जाते थे। एक बार शयन आरती करवाने जा रहे थे। बिहारी जी की गली में बढ़िया मोदक बन रहें थे। अच्छी खुशबू आ रही थी। चार मोदक मांग लिए बिहारी जी के लिए ! वृन्दावन के लोग बिहारी जी के भक्तो का बड़ा आदर करते है। उन्होंने मना नहीं किया। एक डोने में बांध दियो साथ में। बाबा भीतर गए तो बिहारी जी के भोग के पट आ चुके थे। 

गवारिया बाबा जी ने वही बैठकर अपना कम्बल बिछाया और उस पर बैठकर अपने मन के भाव में खो गए। वहां बिहारी जी की आरती का समय हुआ तो श्री गौसाई जी बड़ा प्रयास कर रहे हैं लेकिन ठाकुर जी के मंदिर का पट नहीं खुल रहा। बड़े हैरान इधर उधर देख रहें। एक संत कोने में बैठे सब दृश्य आरंभ से देख रहें थे। पुजारी जी ने लाचारी से देखा तो संत बोले उधर गवारिया बाबा बैठे हैं उनसे पूछो वो बता देंगे। 

गौसाईं जी ने बाबा से कहा, रे बाबा तेरे यार तो दरवाजा ही न खोल रहियो ? बाबा हड़बड़ा कर उठे। रोम रोम पुलकित हो रहा था बाबा का। बाबा ने कहा जय जय ! अब जाओ ! और बाबा ने पुजारी से कहा अब खोलो। पुजारी जी ने तब खोला और दरवाजा खोलने का प्रयास किया। लेकिन हल्का सा छूते ही दरवाजा खुल गया। पुजारी जी ने आरती की और बिहारी जी को शयन करवा दिया। लेकिन आज पुजारी जी के मन में यह बात लगी है की आज मैं प्रयास करके हार गयो लेकिन दरवाजा नहीं खुला। लेकिन बाबा ने कहा और दरवाजा खुल गया। पुजारी जी गवारिया बाबा के पास गए और कहा , बाबा आज तुझे तेरे यार की सौगंध है। साँची साँची कह दें , आज तेरे यार ने क्या खेल खेलो। 

गवारिया बाबा हंस दिए। कहते जय जय ! जब आप भोग के लिए दरवाजा खोल रहे थे। तब बिहारी जी मेरे पास मोदक खा रहे थे। 

अभी मैंने उनका मुंह भी नहीं धुलाया था की आपने आवाज दे दी। उनका मुंह साफ कर देना। जाईये उनका मुख तो धुला दीजिये उनके मुख पर जूठन लगी है। गौसाईं जी ने स्नान किया मंदिर में गए तो देखा की ठाकुर जी के मुख पर तो लड्डू का जूठन लगी थी। 

सच में रहस्य रस है ठाकुर जी की सेवा में ! अधिकार रखिये श्री ठाकुर जी पर। सर्वस्व न्योशावर करके उनकी सेवा सुख मिलता है। अनहोनी होती है फिर सेवा की कृपा से। इसे सिर्फ श्री कृष्ण भक्त ही समझ सकते हैं। दुसरो को ऐसी बातें समझ नहीं आती। कृष्ण भक्त तो ठाकुर जी की हरेक कथा को अपने मन की आँखों से साक्षात् देख लेते है। उसी में आनंद लेते है। फिर दुनिया की भी परवाह नहीं करते।  ठाकुर जी की तरफ जो सच्चे मन से बढ़ता है फिर ठाकुर जी भी उसके जीवन में ऐसा खेल खेलते है की जिसे वो अपना समझता है और ज़िंदगी भर अपना समझना चाहता है। जल्दी ही उसकी सारी पोल खोल देतें हैं। और सच में जो सच्चे मन से ठाकुर जी की शरण आ गयो उसे फिर संसार की चिंता नहीं रहती। उसकी चिंता फिर ठाकुर जी स्वयं करते है..!!

   

सिखों के तीसरे गुरु, गुरु अमर दास जी का जन्म वैशाख शुक्ल 14वीं, 1479 ई. में अमृतसर के 'बासर के' गांव में पिता तेजभान एवं माता लखमीजी के घर हुआ था। 

गुरु अमर दास जी बड़े आध्यात्मिक चिंतक थे। वे दिनभर खेती और व्यापार के कार्यों में व्यस्त रहने के बावजूद हरि नाम का सिमरन करने में लगे रहते थे।




नक्षत्र



नक्षत्रों के नाम :- स्कन्द पुराण के अनुसार तारो की सँख्या असख्य हैं। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार इनकी संख्या में  27 नक्षत्रों बताये गये हैं ।इन नक्षत्रों के देवता नाम से नक्षत्र का बोध होता  हैं।प्रत्येक नक्षत्र के आगे चार पद होते है। उनके स्वामी अलग अलग से होते है।

नक्षत्र - देवता- स्वामी

अश्विनी - अश्विनी कुमार - केतु

भरणी - यम - शुक्र 

कृतिका -अग्नि देवता - सूर्य 

रोहिणी - ब्रह्मा - चंद्र

मृगशिरा - चन्द्रमा -  मंगल      

आर्दा - शिव शंकर - राहु 

पुनर्वसु - आदिति - बृहस्पति 

पुष्य - बृहस्पति - शनि

अश्लेषा - सर्प - बुध

माघ - पितर - केतु 

पूर्वाफाल्गुनी - भग (भोर का तारा) - शुक्र

उत्तराफाल्गुनी - अर्यमा - सूर्य

हस्त - सूर्य - चंन्द्र 

चित्रा -विश्वकर्मा - मंगल

स्वाति - वायु  - राहु

विशाखा - इन्द्र, अग्नि - बृहस्पति

अनुराधा - आदित्य - शनि

ज्येष्ठा - इन्द्र - बुध

मूल - राक्षस - केतु

पूर्वाषाढा - जल - शुक्र

उत्तराषाढा - विश्वेदेव - सूर्य

अभिजित - विश्देव - सूर्य

श्रवण - विष्णु - चन्द्र 

धनिष्ठा - वसु - मँगल

शतभिषा - वरुण देव - राहु

पूर्वाभाद्रपद - अज - बृहस्पति

उत्तराभाद्रपद - अतिर्बुधन्य - शनि

रेवती - पूूषा - बुध

अभिजित नक्षत्र - अभिजित नक्षत्र की गणना 27 नक्षत्रों में नहीं होती है क्योंकि यह नक्षत्र क्रान्ति चक्र से बाहर पड़ता है। यह मुहूर्तों आदि में इसे शुभ माना जाता है।अभिजीत मुहूर्त प्रत्येक दिन का मध्यम भाग है,अनुमानत:12:00 बजे अभिजीत मुहूर्त कहलाता है जो मध्यम काल से पहले और बाद में दो घड़ी, 48 मिनट का होता है 

दिन मान के आधे समय को स्थानीय सूर्योदय के समय में जोड़ें तो मध्यम काल स्पष्ट हो जाता है जिसमें 24 मिनट घटाने और चाबी ने 24 मिनट बढ़ाने पर अभिजीत का प्रारंभ काल और समाप्ति काल निकलता है इस अभिजीत काल में लगभग सभी दोषों के निवारण करने की अद्भुत शक्ति है जब मुंडन आदि शुभ कार्यों के लिए शुभ लगन में ना मिल रहा हो तो अभिजीत मुहूर्त काल में शुभ कार

गंड मूल नक्षत्र  

1 अश्विनी 2 आश्लेषा 3 मघा 4 ज्येष्ठा 5 मूला 6 रेवती, यह 6 नक्षत्र गंड मूल नक्षत्र माने जाते हैं इन नक्षत्रों में जन्म होना अनिष्ट कारक माना जाता है 

अश्विनी- प्रथम चरण में जन्म हो तो पिता को भय , दूसरे चरण में जन्म हो तो सुख,तीसरे चरण में जन्म हो तो मित्र समान,चौथे चरण में जन्म हो तो राजा के समान |

आश्लेषा- प्रथम चरण में जन्म हो तो शांति से शुभ होता है, दूसरे चरण में जन्म हो तो धन नाश ,तीसरे चरण में जन्म हो तो माता का नाश, चौथे चरण में जन्म हो तो पिता का नाश  

मघा- पहले चरण में जन्म हो तो माता को भय,  दूसरे चरण में जन्म हो तो पिता को भय,तीसरे चरण में जन्म हो तो सुख,चौथे चरण में जन्म हो तो धन लाभ

ज्येष्ठा- प्रथम चरण में जन्म हो तो भाई का नाश ,दूसरे चरण में जन्म हो तो छोटे भाई का नाश, तीसरे चरण में जन्म हो तो माता का नाश,चौथे चरण में जन्म हो तो सोने का नाश , 

मूला - प्रथम चरण में जन्म हो तो पिता को कष्ट  दूसरे चरण में जन्म हो तो माता को कष्ट तीसरे चरण में जन्म हो तो धन का नाश और चौथे चरण में जन्म हो तो शांति से शुभ हो जाता है

रेवती - नक्षत्र के प्रथम चरण में जन्म हो तो 

राजा के समान,नक्षत्र के दूसरे चरण में जन्म हो तो मंत्री के समान,नक्षत्र के तीसरे चरण में जन्म हो तो धन युक्त,नक्षत्र के चौथे चरण में जन्म हो तो कई प्रकार के दुख होगे |

ज्योतिष में अत्यंत विस्तृत रूप में मनुष्य के जीवन की हर परिस्तिथियों से सम्बन्धित विश्लेषण किया गया है कि मनुष्य यदि इसको तनिक भी समझले तो वह अपने जीवन में उत्पन्न होने वाली बहुत सी समस्याओं से बच सकता है और अपना जीवन सुखी बना सकता है |

 

परशुराम जयंती हिन्दू पंचांग के वैशाख माह की शुक्ल पक्ष तृतीया को मनाई जाती है | अक्षय तृतीया को परशुराम जयंती के रूप में भी मनाया जाता है. ऐसा माना जाता है कि इस दिन दिये गए पुण्य का प्रभाव कभी खत्म नहीं होता|अक्षय तृतीया से त्रेता युग का आरंभ माना जाता है|

‘जगतगुरु आदि शंकराचार्य  जी’

जगतगुरु आदि शंकराचार्य  जी एक ऐसे व्यक्तित्व वाले महापुरुष थे, जिन्होंने मानव जाति को ईश्वर की वास्तविकता का अनुभव कराया। इतना ही नहीं कई बड़े महा ऋषि मुनि कहते हैं कि जगतगुरु आदि शंकराचार्य स्वयं भगवान शिव के साक्षात अवतार थे।

असाधारण मेधासम्पन्न इस बालक ने तमिल भाषी होते हुए भी संस्कृत, गणित संगीत  के साथ-साथ शास्त्रों  का भी गहरा ज्ञान प्राप्त कर लिया था । इतनी छोटी अवस्था में इतना ज्ञान दैवीय चमत्कार से कम नहीं था ।8 वर्ष की अवस्था में उनके मन में वैराग्य लेने की अदम्य भावना जाग पड़ी । संन्यासी होकर वे भ्रमण करते हुए वन के एक पेड़ के नीचे थकान मिटाने लेटे थे, तो देखा कि एक सांप, मेंढक को अपने फन की छाया में रखकर गरमी से बचा रहा है । उन्होंने दिव्य ज्ञान से यह जान लिया कि यह अवश्य ही किसी महात्मा की भूमि है ।

उन्हें यह पवित्र स्थान श्रृंगी  ऋषि कें पवित्र आश्रम भूमि  ज्ञात हुआ । उन्होंने इस पवित्र भूमि में  मठ  स्थापित करने का संकल्प लिया । अपनी भ्रमण यात्रा  में नर्मदा नदी के किनारे उनकी भेंट आचार्य गोविन्द भगवत्पाद से हुई । गुरु ने उनके दिव्य  ज्ञान से प्रभावित होकर उन्हें शंकराचार्य का नाम दिया ।एक बार अदि गुरु शंकराचार्य काशी पहुंचे, तो गंगा तट पर एक चाण्डाल के साथ उनका  सामना हुआ । उसके स्पर्श से शंकराचार्य कुपित हो उठे । चाण्डाल ने हंसते हुए शंकर से  पूछा: आत्मा और परमात्मा तो एक है । जिस देह से तुम्हारा स्पर्श हुआ, अपवित्र कौन है ? तुम या तुम्हारे देह का अभिमान ? परमात्मा तो सभी की आत्मा में है । तुम्हारे संन्यासी होने का क्या अर्थ है, जब तुम ऐसे विचार रखते हो ?”कहा जाता है कि चांडाल के रूप में साक्षात शंकर भगवान ने उन्हें दर्शन देकर ब्रह्मा और आत्मा का सच्चा ज्ञान दिया । इस ज्ञान को प्राप्त करके वे  दुर्ग रास्तों से होते हुए बद्रीकाश्रम पहुंचे । यहां चार वर्ष रहकर  भाष्य लिखा । वहीं से केदारनाथ पहुँचे ।शंकराचार्य ने कश्मीर से  लेकर कन्याकुमारी तक भारतवर्ष की यात्रा करते हुए विद्वानों से शास्त्रार्थ किया । वैदिक धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए विशाल सेना बनाई । लोगों को वैदिक धर्म के सच्चे और पवित्र रूप से अवगत कराया ।भारत की चार दिशाओं मैं मैसूर  में  श्रृंगेरी  पीठ, जगन्नाथपुरी में गोवर्धन पीठ,द्वारिका में द्वारका पीठ, बद्रीनाथ में ज्योति पीठ की स्थापना की । 16 वर्ष की अवस्था में ही अनेक धार्मिक ग्रन्थ लिखे । ब्रह्मसूत्रभाष्य, गीताभाष्य, सर्ववेदान्त सिद्धान्त, विवेक चूड़ामाणी, प्रबोध सुधाकर तथा कई  उपनिषदों पर भाष्य लिखे । शंकराचार्य ने जहाँ  हिन्दू वैदिक सनातन धर्म का सच्चा रूप लोगों के सामने रखा, वहीं यह बताया कि: “आत्मा और परमात्मा एक है ।” चारों दिशाओं में मठों की स्थापना कर भारत को एकता के सूत्र में  बाँधा । आज उनके नाम से चारों दिशाओं में शंकराचार्य मठ स्थापित हैं । मात्र 33 र्ष की आयु में जगदगुरु शंकराचार्य पंचतत्त्व में विलीन हो गये ।     - रेनू दत्



गंगा का जन्म भगवान् विष्णु के पैरों से हुआ था | साथ ही यह शिव जी की जटाओं में निवास करती हैं | 

गंगा स्नान , पूजन और दर्शन करने से पापों का नाश होता है, व्याधियों से मुक्ति होती है. जो तीर्थ गंगा किनारे बसे हुए हैं, वे अन्य की तुलना में ज्यादा पवित्र माने जाते हैं



Education in mother language

भारत केन्द्रित मातृभाषा शिक्षा

– पंकज सिन्हा



शिक्षा की प्रकृति एक सृष्टि है। सृष्टिकर्ता है – माता। वह माता, जो मानव सृष्टि के बीज़ को अपने गर्भ में धारण करती है। मनोवैज्ञानिकों ने शोध के आधार पर इस तथ्य का उजागर किया है कि गर्भवती माता के दैनंदिन जीवन का प्रभाव गर्भ में मानव सृष्टि के बीज़ तत्व पर पड़ता है। गर्भ काल में माता जो सोचती है, करती है और सुनती है; गर्भ में विकसित शिशु अनुभूति के माध्यम से माता की सृष्टि का बीज़ तत्व ग्रहण करते रहता है। विद्वान यह भी कहते हैं कि गर्भ के चौथे महीने के प्रारम्भ से गर्भ का शिशु माता के माध्यम से सुनने लगता है, समझने लगता है। जिसका प्रत्यक्ष दर्शन शिशु जन्म के बाद शिशु के दैनंदिन जीवन में दिखाई देता है। इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है महाभारत ग्रंथ में वर्णित वीर अभिमन्यु की वीरता।

अभिमन्यु जब माता सुभद्रा के गर्भ में थे, अपने पिता के युद्ध चक्रव्यूह रचना गर्भ काल में ही समझ चुके थे, क्योंकि माता सुभद्रा एकाग्रचित अपने पति की बाते सुन रही थी, जो गर्भ शिशु के अन्तःकरण तक पहुच रहा था। चक्रव्यूह को तोड़ कर कैसे बाहर निकलना है, अर्जुन सुना रहे थे तो सुभद्रा को नींद आ गयी थी। अभिमन्यु महाभारत युद्ध में चक्रव्यूह के अंदर तो प्रवेश कर गये, परंतु बाहर नहीं निकल पाये।

मातृ सृष्टि बीजतत्व आत्मदर्शन का प्रत्यक्ष प्रमाण है – जन्म के बाद शिशु के मुख से प्रकट शब्द माँ। माँ की बोली-भाषा, अर्थात मातृभाषा ही शिशु जीवन विकास का बीज़ तत्व है। शिशु का प्रथम शिक्षक माँ ही है। मानव सृष्टि का बीज़ तत्व और शिशु-माँ की बोली-भाषा का बीज़ तत्व यथार्थ शिक्षा का बीजारोपण करता है। शिशु मातृभाषा के द्वारा ही अपनी प्रारम्भिक अवस्था में देख कर पहचानता है, समझता है और अन्तःकरण में धारण करता है। शिशु को मातृभाषा सिखाया नहीं जाता है, वह तो माँ के सानिन्ध्य में स्वतः सीखते जाता है। मातृभाषा के माध्यम से वह घरेलू वस्तुओं के विज्ञान और गणित का ज्ञान भी अन्तःकरण में ग्रहण करने लगता है। अत: शिशु शिक्षा मातृभाषा में होना, शिशु के समझ ज्ञान शक्ति का सर्वांगीण विकास है। आधारभूत भाषा और अंक ज्ञान का बीज़ तत्व मातृभाषा में ही निहित है। उसके बाद तो विश्व का कोई भी भाषा और समस्त ज्ञान का दरवाजा स्वतः खुलते जाता है।

नयी राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में 5+3+3+4 वर्षीय शिक्षा व्यवस्था के पीछे मातृभाषा बीज़ तत्व का दर्शन समाहित है। मौखिक-लिखित शिशु शिक्षा के इन चार क्रमिक उपादानों में मातृभाषा में ही शिक्षा शिशु का जन्मसिद्ध अधिकार है और शिशु के इस अधिकार की रक्षा का कर्तब्य शिशुओं के माता-पिता एवं शिक्षण संस्थानों का है। समाज और देश की व्यवस्था ऐसी ही शिक्षा के अनुकूल होना समाजोपयोगी आदर्श मानव जीवन निर्माण के लिए यथार्थ शिक्षा है। भारत विविधता से भरा राष्ट्र है, एक सार्वभौमिक पूर्ण समाज है। सरकारी एवं गैर सरकारी शिक्षा व्यवस्थायें मातृभाषाओं को तिलांजलि देकर आंग्ल भाषा चक्रव्यूह के मकर जाल में कैद है। जहां से बाहर निकल कर पुनः मातृभाषा की ओर लौटना भले ही कठिन प्रतीत होता हो, पर असंभव नहीं है। क्योंकि प्रारम्भिक शिक्षा से ही शिशु को उस भाषा को स्वीकार करना होता है, जो उसकी माँ की भाषा नहीं होती है। जीवन का व्यवहार आंग्ल भाषा के माध्यम से शिशु ग्रहण नहीं कर पाता है। ग्रहणशीलता का विकास मातृभाषा के अपनत्व से होता है। शिशु अन्य भाषा से ज्ञान अर्जन तो करता है, किन्तु जीवन की चुनौतियों का सामना करने के लिए अपने इंद्रियों का सही स्वरूप में विकास नहीं कर पाता है। वह माँ, माटी और समाज के अपनत्व से दूर होता जाता है। युवा अवस्था आते-आते उसके जीवन में भटकाव आने लगता है। उसे समझ में नहीं आता है कि क्या करना है। उसके पास ज्ञान का भंडार तो होता है, किन्तु जीवन में उत्पन्न चुनौतियों का सामना करने के लिए उसमें क्षमता, कुशलता और साहस का अभाव होता है। वह मात्र शिक्षित बेरोजगारों की सूची में अपने को नामांकित देखता है।

मातृभाषां परित्यज्य येयन्यभाषामुपासते,

तत्र यांति हि ते यत्र सूर्यो न भासते।

मातृभाषा का परित्याग एवं अन्य भाषा की उपासना से जीवन में अंधकार बना रहता है, ज्ञानरूपी सूर्य का प्रकाश तो मिलता ही नहीं है।

ज्ञानात्मक क्रियाधारित इंद्रियों के द्वारा व्यवहारिक जीवन की अनुभूति से सम्पूर्ण क्षमताओं के विकास का नाम ही मातृभाषा शिक्षा है। अत: जीवन की चुनौतियों का सामना करने के लिए मातृभाषा वह बीज़-तत्व है; जो शिशु को माँ, माटी और संस्कृति से जोड़ कर रखता है। नयी राष्ट्रीय शिक्षा नीति में शैशव काल से युवा अवस्था आने तक सम्पूर्ण क्षमता विकास की बात है। जिससे वह युवा अपने जीवन का सुखमय पथ स्वयं निर्मित कर ले। इसका आधार केवल और केवल शिशु का मातृभाषा में ही निहित है। शिक्षा के नाम पर अन्य भाषाओं की सहायता से अबोध शिशु के मस्तिक में नीरस ज्ञान को ठूस-ठूस कर भरना, दिग्भ्रमित युवा समाज पर मडराता अमानवीय संस्कार का कारण है। इसलिए मातृभाषा के माध्यम से ही शिशु के अंतर्निहित शक्तियों का जागरण नैतिक एवं मानवीय मूल्यों का समाजोपयोगी सर्वांगीण विकास है।माना भारत में बोली-भाषाओं की विविधता है। राज्यों में भाषा की विविधता के कारण शिशु शिक्षा का माध्यम विवशतावश आंग्ल ने ले रखी है। आंग्ल भाषा का ज्ञान यदि अनिवार्य भी है, तो शिशु शिक्षा के पायदानों से ही क्यों। शिशु शिक्षा की समाप्ति के बाद भी तो हो सकता है। भाषा विज्ञानविदों ने शोध के आधार पर जो तथ्य प्रकट किया है, वह चौकाने वाला है। उनका मानना है कि शिशु अवस्था में शिशु की शिक्षा जब उसकी मातृभाषा में होती है तो आगे चल कर वह अन्य किसी भी भाषा को अतिशीघ्र सीखने के लिए प्रेरित होता है। लेकिन यदि शिशु शिक्षा मातृभाषा में न होकर अन्य भाषा से प्रारम्भ होता है तो शिशु धीरे-धीरे अपनी मातृभाषा से दूर होता जाता है, अपनी माँ की बोली-भाषा से घृणा भी करने लगता है। उसका जीवन व्यक्ति केन्द्रित हो कर रह जाता है। वह अपनी मातृभाषा से तो दूर हो ही जाता है, साथ ही साथ घर-परिवार और समाज जीवन की रचनात्मक कला से भी दूर होता जाता है। फिर पीढ़ी-दर-पीढ़ी ऐसा समाज जीवन विश्व के शतको मातृभाषाओं को मृतक बना जाता है।

राष्ट्रीय शिक्षा के परिपेक्ष्य में मातृभाषा दिवस के शुभावसर पर संकल्पित समाज की अहम भूमिका मातृभाषा में ही शिक्षा की रचनात्मकता पर मात्र सकारात्मक विचार ही नहीं; अपितु माँ, माटी एवं संस्कृति की सुरक्षा एवं संवर्धन के लिए माता-पिता, शिक्षण संस्थान समूह और शिक्षक-शिक्षाविद समाज को आज़ादी का अमृत महोत्सव की बेला में भारत केन्द्रित मातृभाषा शिक्षा के प्रति कृत संकल्पित होने की आवश्यकता है।

(लेखक विद्या भारती नागालैंड के संगठन मंत्री है।)


एक छोटा दीपक

एक छोटा दीपक अपने घर में जलाने से घर प्रकाशित हो जाता हैं

 इस प्रकार से एक छोटा दीपक विश्वास का अपने ह्रदय में प्रज्वलित करें

 पूरा हृदय प्रकाशित हो जाएगा 

एक छोटा दीपक प्रेम का अपने परिवार में जलाए तो घर स्वर्ग बन जाएगा

 और जो घर स्वर्ग होगा तब सब आपस में आनंद और शांति से रहेंगे

 और जीवन का उद्देश्य प्राप्त करेंगे 

बाहर इतने लाइटें लगाई जाती है 

केवल रात के अंधेरे को समाप्त करने के लिए परंतु पूरा अंधकार समाप्त नहीं होता 

इसी प्रकार  महापुरुष एक प्रेम का दीपक लेकर चले और बहुत जनसमूह को प्रकाशित करते हुए अपने संदेश को जन जन तक पहुंचाए 

इस समय हर एक मानव को सत और प्रेम का संदेश देने की आवश्यकता है





उत्कटासन योग

 

आसन की परिभाषा - चित्त को स्थिर रखने वाले तथा सुख देने वाले बैठने के प्रकार को आसन कहते हैं। आसन शब्द संस्कृत भाषा के 'अस' धातु से बना है,चित्त को स्थिर रखने वाले तथा सुख देने वाले बैठने के प्रकार को आसन कहते हैं। बैठने का स्थान तथा शारीरिक अवस्था। 

योगासनों का मुख्य उद्येश्य - आसनों का मुख्य उद्देश्य शरीर के मल का नाश करना है।नियमित रूप से अभ्यास करने वाले को असंख्य लाभ प्राप्त होते हैं. स्वास्थ्य में लाभ, मानसिक शक्ति, शारीरिक शक्ति, शरीर की टूट फूट से रक्षा और शरीर का शुद्ध होना जैसे कई लाभ हमें योग से मिलते हैं.

उत्कटासन - यह एक स्थायी आसन है। यह एक कम बैठने वाला आसन है ।

आसन करने की विधि - ताड़ासन में खड़े हो जायें। 

बिना संतुलन खोए जितना नीचे आ सकते हैं, उतना नीचे आ जायें। ...

इस मुद्रा में 1-2 साँस लें और अपना संतुलन पक्का कर लें।

अब साँस अंदर लेते हुए दोनो हाथों को सिर के ऊपर उठायें और हथेलियों को जोड़ लें।

उत्कटासन के लाभ  - यह टखनों, जांघों, पिंडली, और रीढ़ की हड्डी को मज़बूत करता है।

कंधे और छाती में खिचाव लाता है और उन्हें मजबूत करता है ।

पेट के अंगों को व दिल को उत्तेजित करता है।

फ्लैट पैर की परेशानी को दूर करने में मदद करता है।

ध्यान व शरीर को संतुलित  रखने की क्षमता को  बढ़ाता और आत्मविश्वाश   है

नोबल पुरस्कार विजेता रविंद्रनाथ टैगोर



साहित्य के एकमात्र नोबल पुरस्कार विजेता रविंद्रनाथ टैगोर ने कालजयी रचना गीतांजलि लिखी. साल 1913 में वह साहित्य का नोबेल पुरस्कार जीतने वाले पहले गैर-यूरोपीय और पहले एशियाई थे. साहित्य के अलावा चित्रकला और संगीत के क्षेत्र में भी महारत रखने वाले टैगोर की गीतांजलि, चोखेर बाली, गोरा, घरे बाइरे, काबुलीवाला और चार अध्याय समेत ढेरों बेहद चर्चित रचनाएं हैं|

कट्टरता सच को उन हाथों में सुरक्षित रखने की कोशिश करती है जो उसे मारना चाहते हैं। चंद्रमा अपना प्रकाश संपूर्ण आकाश में फैलाता है परंतु अपना कलंक अपने ही पास रखता है। विश्वविद्यालय महापुरुषों के निर्माण के कारख़ाने हैं और अध्यापक उन्हें बनाने वाले कारीगर हैं। ईश्वर भले ही बड़े बड़े साम्राज्य से उब जाता है लेकिन छोटे छोटे फूलों से कभी रुष्ट नहीं होता है।तितली महीने नहीं, बल्कि एक-एक पल को गिनती है। इस कारण उसके पास पर्याप्त समय होता है। फूल एकत्रित करने के लिए ठहर मत जाओ। आगे बढ़े चलो, 




तुम्हारे पथ में फूल निरंतर खिलते रहेंगे।

प्रेम ही एक मात्र वास्तविकता है, ये महज एक भावना नहीं है अपितु यह एक परम सत्य है जो सृजन के समय से हृदय में वास करता है। बर्तन में रखा पानी हमेशा चमकता है और समुद्र का पानी हमेशा गहरे रंग का होता है। लघु सत्य के शब्द हमेशा स्पष्ट होते हैं, सत्य मौन रहता है. देशभक्ति हमारा आखिरी आध्यात्मिक सहारा नहीं बन सकता,मेरा आश्रय मानवता है। मैं हीरेके दाम में काँच नहीं खरीदूंगा और जब तक मैं जिंदा हूं मानवता के ऊपर देशभक्ति की जीत नहीं होने दूंगा। शिशु यह संदेश लाता है कि ईश्वर मनुष्यों से निराश नहीं हुआ है। धूल में अपमान सहने की क्षमता है और बदले में फूलों का उपहार देती है। कला क्या है ? यह इंसान के आत्मा की यथार्थ के प्रति प्रतिक्रिया है। जो कुछ भी हमारा है वो हम तक आता है, यदि हम उसे पाने की योग्यता रखते हैं।मैंने स्वप्न देखा कि जीवन आनंद है। जीवन सेवा है।मैंने सेवा की और पाया कि सेवा में ही आनंद है। 




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