बुधवार, 13 अप्रैल 2022

जानकारी काल - अप्रैल - 2022,

 हिंदी मासिक 

जानकारी काल 

वर्ष-22,             अंक-11,           अप्रैल - 2022,          पृष्ठ 30,        मूल्य-2-50

इन्हें भी पड़े 

वीर बालक बिशन सिंह कूका - 3,सशक्त नारी-प्रेरणा का आधार - 5,इंसानियत का पाठ - 10,स्वामी भारती कृष्ण तीर्थ और वैदिक गणित - 12,स्त्री का मान - 16 ,परिवर्तन - 17,मृत्यु से भय कैसा ? - 20,पुण्यों का मोल -23,

मई मास के महत्वपूर्ण दिवस - 28 दो ब्राह्मण पुत्र - 29



संरक्षक

 श्रीमान कुलवीर शर्मा

महामंत्री समर्थ शिक्षा समिति

डॉ वी  एस नेगी

प्रोफेसर भगत सिंह कॉलेज सांध्य


 प्रधान संपादक व्  प्रकाशक

 सतीश शर्मा 


 

 कार्यालय

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 संपादक मंडल

 सौरभ  शर्मा,कपिल शर्मा,

गौरव शर्मा,डॉ अजय प्रताप सिंह, करुणा ऋषि, डॉ मधु वैध, 

भूप  सिंह यादव, ऋतु सिंह,

राजेश शुक्ल  


प्रकाशक व मुद्रक सतीश शर्मा के लिय ग्लैक्सी प्रिंटर-106 F,कृणा नगर नई दिल्ली 110029, A- 214 बुध नगर इं पूरी नई दिल्ली  110012 से प्रकाशित |


सभी लेखों पर संपादक की सहमति आवश्यक नहीं है पत्रिका में किसी भी लेख में आपत्ति होने पर उसके विरुद्ध कार्रवाई केवल दिल्ली कोर्ट में ही होगी

 

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अमित को  नौकरी वर्ल्ड बैंक में मिल गई, पत्नी भी पढ़ी-लिखी और अमेरिका में ग्रीन कार्ड धारी मिल गई दोनों पति पत्नी बहुत खुश थे | मकान व गाड़ी किस्तों पर ले ली | महामारी में मंदी के कारण  अमित की नौकरी छूट गई | पत्नी दुर्घटना बस कार्य करने लायक नहीं बची | एक बेटा था अच्छे स्कूल में पढ़ रहा था | समस्या आ गई कि अब गुजरा केसे होगा बच्चे की फीस , मकान की क़िस्त व कार का लोन  कैसे देंगे यही सोच सोच कर जब उनको इस समस्या का निदान नहीं मिला  तो अंत में तीनों ने आत्महत्या कर ली | ये एक सिर्फ अमित की बात नहीं है आज अनेको युवक ऐसा करते है या करने की सोचते हैं | इस विषय पर चिंतन करने का विषय है  की आखिर ऐसा क्या हुआ की  पूरे परिवार को आत्महत्या करनी पड़ी | एक नजर देखा जाए तो आर्धिक  तंगी के कारण से उन्होंने आत्महत्या कर ली | लेकिन अगर समस्या पर  विचार करें तो पाएंगे कि यह समस्या आर्थिक कम समाजिक ज्यादा है | अमित जीवन में कभी असफल नहीं हुआ | कभी कोई  खेल को खेला नहीं तो हार और जीत क्या होती है यह पता ही नहीं | किसी प्रकार का कोई साहित्य पढ़ा ही नहीं कोई कहानी उपन्यास पढ़ी नहीं पढ़ाई से भी उतना ही संबध  रहा जितना कि वह एक अच्छी नौकरी प्राप्त कर लेता | माता-पिता ने भी उसका सामाजिक दायरा बढ़ने ही नहीं दिया | क्योंकि माता-पिता के  भी सामाजिक संबध नही थे | परिवारिक संबध उतने थे जितने की आवश्यकता थी | उनको पता ही नहीं था की  सामाजिक संबध क्यों जरुरी है |समाज व परिवार  में होने वाली घटनाओं का उनको पता ही नहीं चलता था  इस कारण उनको पता ही  नहीं था की आपदा आती है तो उनका समाधान कैसे होगा | और जब उनके सामने  समस्याएं आई  तो उन्हें  कुछ समझ में नहीं आया और आत्महत्या करली | यह आज अमित के साथ ही नहीं हो रहा सबके साथ हो रहा है थोड़ी सी समस्या आती है और घबरा जाते  है |

आज के  युवक ने ना तो  गीता पढ़ी है ना रामायण पढ़ी है, कहानी पड़ना तो समय की  बर्बादी समझते है | विद्यालय में संस्कार विहीन पढ़ाई भी  इसका एक कारण है |युवा  समझ में नहीं आता समस्याओं का निवारण  किस प्रकार से करें | हालांकि उसकी आर्थिक समस्या थी लेकिन अगर सामाजिक दायरा होता कुछ लोगों के साथ मिलता जुलता तो शायद समस्या को सुलझाने का कोई दूसरा तीसरा चौथा रास्ता  मिल जाता | माता पिता अपने बच्चे को अपनी आकांक्षाएं पूरी करने के लिए एक पिंजरे में बंद करके रखते हैं | सवेरे उठाना विद्यालय  भेजना, टूशन  भेजना  बस | आज संबंध तो है ही नहीं रिश्तेदारी खत्म हो चुकी है | किसी के यहां आना जाना कोई पसंद नही  करता | आना जाना तो छोड़ो घर में कोई आ जाए तो उससे बच्चो मिलवाना भी  पसंद नहीं करते| अगर ऐसे में  कोई समस्या आ जाए तो समाधान,,,, इसलिय संबध बनाना,साहित्य पड़ना ,खेलना जरुरी हो गया है |

वीर बालक बिशन सिंह कूका

 – गोपाल महेश्वरी



देशधर्म पर बलि हो जाना बचपन से जो सीख चुके।

अत्याचार-क्रूरता-पशुता झेल गए पर नहीं झुके।।

1857 का स्वतंत्रता संग्राम सब देशभक्तों ने मिलकर लड़ा था। अंग्रेज़ इस क्रांति से तिलमिला उठे थे। उन्होंने भोले-भाले भारतीयों का धर्म नष्ट करने की चालें चलना आरम्भ किया। उन्हें माँसाहार की ओर आकर्षित करने हेतु पवित्र नगरों में माँस बिक्री की दुकानें सजने लगी, बूचड़खाने खोले गए जिनमें गाय का माँस भी खुलेआम बिकता था।

उस समय पंजाब की जनता में गुरु रामसिंह जी का बहुत प्रभाव था उनके अनुयायी ‘नामधारी’ कहलाते। ‘नाम दीक्षा’ पाकर वे भगवान का नाम रटने की सरलतम एवं साधन रहित साधना में रम जाते। उनके अनुयायी जब प्रेम से गुरु रूप ईश्वर को पुकारते तो उनके कंठों से ‘वाहेगुरु’ का नाम ‘कूक’ (कोयल के स्वर को कूक कहते हैं) जैसा मधुर स्वर गूंज उठता। यह बात इतनी प्रिय हो चली कि लोग उन्हें ‘कूका’ ही कहने लगे।

गुरु रामसिंह की दृष्टि केवल ईश्वर भक्ति की न थी। राष्ट्र और समाज की दशा पर भी उनकी गहरी दृष्टि थी। लाहौर अंग्रेज़ों ने हड़पा, पंजाब को ग्रहण लगाया। अमृतसर जैसा पावन नगर गौमाँस की मण्डी बनता जा रहा था। उनकी भगवद्भक्ति में से भारत मुक्ति की चिंगारियाँ निकलने लगीं- देश बचा तो धर्म बचेगा, स्वतंत्रता प्रथम आराधना, स्वतंत्रता परम साधना, विदेशी वस्तुओं का प्रयोग बन्द करो तो विदेशी भागने पर विवश होंगे, स्वदेशी अपनाओ तो अपने लोग मजबूत होंगे आदि।

1863 तक यह ‘कूका आन्दोलन’ अंग्रेज़ों की चिन्ता का बड़ा कारण बन गया गुप्तचरों के जाल बिछे, दमन की रणनीति अपनाई गई। गुरु रामसिंह जी उनके निवास स्थान ‘भैणी’ में ही रोक दिए गए।

आग में घी तब पड़ गया जब पवित्र ‘दरबार साहिब’ के सामने ही गायें काटने के लिए कसाई घर खोलने की तैयारी कर ली गई। परंतु अंग्रेज़ों की कल्पना के परे दो नामधारी कूके गए और कसाइयों को मारकर गौमाताएँ मुक्त करवा लीं।

गुरुजी चाहते थे कि क्रांति पूरी योजना बनाकर हो, पर अंग्रेज़ों की कुचालों से लोग बहुत उत्तेजित थे। 13 जनवरी 1872 को भैणी में माघ मेला चल रहा था कि एक गौवंश (बैल) को मारने पर विवाद ने धैर्य का बांध तोड़ दिया और क्रांति का बिगुल समय पूर्व ही बज गया।

154 कूका संन्यासियों ने मलौंध के किले पर अधिकार कर अगले ही दिन मलेरकोटला का महल भी छीन लिया। अंग्रेज़ों की फौजी पलटनें इन देशभक्तों पर टूट पड़ीं। 86 कूके बलिदान हो गए। शेष 68 अंग्रेज़ों के बंदी हुए। लुधियाना का अंग्रेज़ डिप्टी कमिश्नर कॉवन उन सभी बंदियों को तोपों के मुँह से बंधवाकर उड़ा देने का आदेश देकर जनता पर अपना आतंक जमाना चाहता था।

जनता की उपस्थिति में पंक्तिबद्ध खड़ी अंग्रेज़ी तोपों ने 49 बंदियों के चीथड़े उड़ा दिए। कॉवन की पत्नी भी वहाँ थी। इन कूकों में अब बारी थी एक तेरह वर्षीय वीर बालक बिशन सिंह की। कॉवन की पत्नी के मन में दया जागी, उसने कॉवन से इस बच्चे को छोड़ देने की प्रार्थना की। कॉवन रूपी पशु-मानव ने पहले तो गुरु रामसिंह को गाली दी फिर बिशन सिंह को अपने गुरु का साथ छोड़ देने की शर्त पर मुक्त कर देंगे, यह प्रस्ताव रखा।

बिशन सिंह भारत की उस माटी का बना था जिसमें गुरु को ईश्वर से भी बड़ा माना जाता है। वह 13 साल का निर्भीक बालक रस्सी तुड़ाकर ऐसे उछला मानो तोप का गोला ही दगा हो। सीधे उस धूर्त अंग्रेज़ की दाढ़ी पकड़ कर झूल गया। वह पीड़ा से चीत्कार उठा। सैनिक दौड़े, पर जैसे-जैसे बिशन सिंह से अपने अफसर की दाढ़ी छुड़ाने का प्रयत्न करते, दाढ़ी पर पकड़ और पक्की हो जाती। कॉवन बिलबिला उठा। एक सैनिक ने बिशन सिंह के हाथ ही काट दिए। कटे हुए हाथों से भी क्षण भर तो दाढ़ी मुक्त न हुई।

धरती पर गिरे इस घायल शेर जैसे बच्चे पर खचाखच तलवार के वार हुए और उसका अंग-अंग मातृभूमि की रज में मिल गया। शेष 18 कूके अगले दिन फाँसी पर चढ़ा दिए गए। बालक बिशन सिंह कूका का बलिदान अद्भुत दृढ़ता व साहस का अमर उदाहरण बन गया।

(लेखक इंदौर से प्रकाशित ‘देवपुत्र’ सर्वाधिक प्रसारित बाल मासिक पत्रिका के संपादक है।)

               सशक्त नारी-प्रेरणा का आधार




भारत के सबसे प्राचीन ग्रंथ मनुस्मृति में नारी पर कहा गया है कि, "यत्र नार्यस्तु पूज्यंते तत्र रमंते देवता" जिसका अर्थ है जहाँ नारियों की पूजा होती है, वहाँ देवताओं का निवास रहता है| भारतीय समाज में नारी को लक्ष्मी,नारायणी रूप समझा जाता है|

"नारी नारायणी तू, जननी कल्याणी तू,

बेटी बहन माता है, सृष्टि की विधाता है,

जन-जन की अनुभूति है, बल बुद्धि विद्या श्रुति है,

पुरुषार्थ की यह सीढ़ी है, बढ़ाती वंश की पीढ़ी है,

देव करें उपकार वहाँ पर, मान जहाँ पाती नारी,

है अवलम्ब सदा वह घर की,फिर क्यों ना सुहाती नारी?

नारी तो है द्वार स्वर्ग का, महिमा उसकी न्यारी है,

ममता की फुलवारी, प्यारी से भारत की नारी है|


नारी को देने वाले उपहार में सबसे बेहतर वस्तु है उसका सम्मान करना| नारी का सम्मान न करने वाले देश, समाज व परिवार का नाश निश्चित ही होता है|

भारतीय समाज में नर और नारी जीवन के दो पहिए माने जाते हैं| दोनों का समाज में समान महत्व होता है|प्राचीन भारत के समय नारी स्वतंत्र थी, नारियों पर किसी प्रकार का कोई प्रतिबंध नहीं था| नारियाँ यज्ञ और अनुष्ठानों में भाग लेती थीं| मध्य युग में धीरे-धीरे समय बदलने लगा, पुरुष ने अपने अहम के लिए नारी को निम्न स्थान दिया| भारत के प्रथम प्रधानमंत्री श्री जवाहरलाल नेहरू ने भी नारी को काफी महत्व दिया| उन्होंने कहा था कि नारियों की स्थिति एक राष्ट्र में सामाजिक,आर्थिक और मानसिक स्थिति को दर्शाती है| हमारे शास्त्रों में नारी को अध्यात्म का प्रतीक माना गया है लेकिन फिर भी नारी को आज समाज में अनेक जगहों पर अलग-अलग प्रथा के तले कुचला जा रहा है| नारी फिर भी सहनशीलता की अद्भुत मिसाल बन अपने धर्म को निभाती है| कष्ट, पीड़ा, तिरस्कार, हिंसा सहकर अपने धर्म को, कर्तव्य को निभाने से पीछे नहीं हटती|सरकार द्वारा महिला दिवस के अवसर पर प्रत्येक वर्ष नई-नई योजनाएँ महिलाओं के सुंदर भविष्य को ध्यान में रखकर घोषित की जाती हैं| शिक्षा और आत्म जागरूकता के कई कार्यक्रम भी आयोजित किए जा रहे हैं, जिसके कारण महिला आज विकास के पथ पर चल रही है| आज की नारी सशक्त प्रेरणा का आधार है| साथ ही महिलाएँ हर क्षेत्र में उन्नति और सफलता के कीर्तिमान स्थापित कर रही हैं|


वैदिक काल में भारतीय नारी 


इस काल में महिलाओं की स्थिति समाज में काफी ऊंचे दर्जे की थी|कम आयु से ही शिक्षा प्राप्त करती थीं| सभी धार्मिक क्रियाओं में भाग लेती थीं|उन्हें वैदिक क्रिया संपन्न कराने वाले पुरोहितों और ऋषियों का दर्जा भी प्राप्त था| पुत्र हो या पुत्री उनके पालन पोषण में कोई भेद भेदभाव नहीं था| अपना जीवनसाथी चुनने का पूर्ण अधिकार था| अस्पृश्यता,सतीप्रथा,पर्दाप्रथा तथा बाल विवाह जैसी कुप्रथा का प्रचलन भी इस युग में नहीं था| शिक्षा,धर्म, राजनीति और संपत्ति के अधिकार लगभग सभी मामलों में महिलाओं को समान अधिकार प्राप्त थे| वैदिक काल भारतीय नारी के लिए स्वर्ण काल के समान था|


प्राचीन काल में भारतीय नारी 


प्राचीन काल में नारी को अधिकारों,शिक्षा,स्वतंत्रता, धार्मिक अनुष्ठानों से वंचित किया जाने लगा| उस समय में लोगों का मानना था कि नारी को बचपन में पिता के अधीन यौवन अवस्था में पति के तथा पति की मृत्यु के उपरांत पुत्र के संरक्षण में रहना चाहिए| इस समय में नारी के साथ अत्याचारों का दौर शुरू हो चुका था| नारी को पर्दे में रहना, पुरुषों की आज्ञा का पालन करना, उत्तर न देना,चारदीवारी में रहना जैसी बंदिशे नारी पर लगने लगी| नारी को केवल संतान पैदा करने की मशीन के रूप में लोग मानने लगे| इस समय में पुत्र कामना पूरी हो नारी से ऐसी ही अकांक्षा रखी जाती थी| स्स्त्रियों का धर्म केवल पति की इच्छा पूरी करना और उन्हें परमेश्वर का रूप मानकर उनके निर्देशों पर चलना था| अशिक्षित तथा निम्न वर्ग की महिलाओं की स्थिति में काफी गिरावट आने लगी थी|


मध्यकाल में भारतीय नारी


18वीं शताब्दी के काल को मध्यकाल कहा जा सकता है| यह काल स्त्रियों के दृष्टिकोण से काला युग माना जाता है| भारत देश पर इस समय मुसलमानों ने अपना आधिपत्य जमा लिया था| उन्होंने हिंदू स्त्रियों को जबरदस्ती धर्म परिवर्तन करवाया और उनके साथ दुराचार कर ज्यादतियाँ शुरू कर दी| इन्हीं कारणों से हिंदुओं ने नारियों पर अनेक प्रतिबंधात्मक निर्देश लगाये| इस काल की नारी की दशा दयनीय हो गई थी| घर में गुलाम की भांति रखा गया| सभी बुरी प्रथाओं जैसे पर्दाप्रथा,बाल विवाह, अशिक्षित रखना सभी ने जोर पकड़ा| नारी की सारी स्वतंत्रता छीन ली गई केवल पुरुषों के अधीन रख उन्हें सेविका बना त्रस्त जीवन जीने को मजबूर किया| नारी को वैश्यालयों में भी बेचा जाता था|


आधुनिक काल में भारतीय नारी 


इस काल के दौरान भारतीय नारियों की स्थिति में काफी सुधार नजर आया| भारतीय समाज में नारी के प्रति कैईं सुधारक कार्य हुए| राजाराममोहन राय द्वारा सतीप्रथा और बाल विवाह जैसी प्रथा को कड़क अमल करके नाबूत किया गया| कैईं भारतीय नारियों ने अंग्रेजों के विरोध में,स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय भाग लिया| पराक्रम व शौर्य का परिचय देते हुए अपनी अंतिम सांस तक अंग्रेजों का डटकर सामना किया व इतिहास के पन्नों में अपना नाम अमर करवाया| भारत की स्वतंत्रता के संघर्ष में महिलाओं ने एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी| आज भारतीय नारियाँ शिक्षा, राजनीति, मीडिया, कला व संस्कृति, सेवा क्षेत्र, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी आदि क्षेत्र में बढ़ चढ़कर हिस्सा ले रही हैं | आज महिलाएँ शक्तिशाली बनती जा रही हैं जिससे वह अपने जीवन से जुड़े फैसले स्वयं ले सकती हैं और परिवार व समाज में अच्छे से रह सकती हैं|


वर्तमान समय में महिलाओं के सशक्तिकरण के बावजूद भी आज सरकार को 'सर्वशिक्षा अभियान',' बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ' जैसी योजना चलानी पड़ रही हैं क्योंकि आज भी देश की कई जगहों पर समाज में नारी को कुचला जाता है| यौन शोषण जैसी भयानक चोट नारी की अस्मिता को तार-तार कर देती है|भौतिकतावाद की चकाचौंध में तथा पश्चिमी संस्कृति के रंग में रंगी भारतीय युवा नारी अपने परिवारों के कर्तव्य से, भारतीय संस्कृति की धर्म परायणता से वंचित हो रही है, जो खेद  का विषय है|

भारतीय प्राचीन सभ्यता यह सिखाती है कि हमें नारी का सम्मान भगवान के रूप में करना चाहिए| आज चिंतन,मंथन का विषय यह है कि क्या नारी भी अपने धर्म का पालन शुचिता से  कर पा रही है, भारतीय संस्कृति की गरिमा को बनाए रखने में भी सशक्त हो रही है| शिक्षित है और हो भी रही है लेकिन भौतिक आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु,अध्यात्मिकता व धर्म संस्कृति से दूरी परिवार और समाज में दूरियाँ ही बना रही है| एकल परिवार, रिश्तेदारियों में सांमजस्य की कमी, तर्क और अहंकार की दुर्भावना, किसी भी लक्ष्य को प्राप्त करने की होड़ में अस्मिता की बोली लगा देना, शारीरिक नग्नता, बाजारूपन,अश्लील विज्ञापन व नोट-वोट की राजनीति से सशक्तता भी कहीं ना कहीं देश व समाज को सांस्कृतिक रूप से निर्बल बना रहा है| यह खतरे की घंटी है| समाज गंदा कहकर, जिम्मेदारी से पीछे हटने वाली नारी आज वंश बढ़ाने में भी सकुचाती है| पढ़े-लिखे घर के बच्चे और बच्चियाँ अपने दायित्वों से मुख मोड़, विवाह संबंध सशक्त न बनाकर केवल  मौज मस्ती का एक मार्ग समझ पीढ़ी  बढ़ाने  से घबरा रहें हैं क्योंकि नौकरी, पैसा अधिक महत्व रखता है | नारी सोचती है बच्चा होने पर पालेगा कौन? माँ बन अपना धर्म पालन करने में सशक्त महिला क्यों पीछे हट रही है? जीवन की प्रगति में समानता का अधिकार मिल जाने पर भी महिला को ही क्यों सारा बलिदान करना है? ममता की प्रतिमूर्ति, दिव्यशक्ति आज कैसे अपने शक्ति को नशे में डुबोकर लड़खड़ाते कदमों से पुरुष की बराबरी कर अपना सम्मान कायम रख पाएगी? इस विचार पर अवश्य चिंतन की अवश्यकता है| आजादी में बर्बादी होती है यदि शिक्षा प्राप्त कर जीवन को अनुशासनबद्ध शैली में न जिया जाए तो देश, समाज व परिवार का जीवन अंधकारमय गर्त में चला जाएगा क्योंकि समाज चलाने में नारी की अहम भूमिका होती है|


नारी एक ऐसा प्राणी है जो घर बनाती है और घर चलाती  है| वास्तव में नारी क्या नहीं कर सकती,नारी सब कुछ कर सकती है| नारी के अंदर दया भी होती है, वह दया भी कर सकती है| नारी के अंदर ममता भी होती है| यदि नारी का कोई अपमान करे तो उसके अंदर क्रोध भी बहुत होता है| नारी किसी को क्षमा  भी जल्दी कर देती है| यह सत्य है कि वर्तमान समय में महिलाओं का सशक्तिकरण भी किया गया है और हर क्षेत्र में अवसर भी उपलब्ध करवाए गए हैं| महिलाओं की स्थिति में उल्लेखनीय बदलाव आए हैं लेकिन फिर भी कई स्थानों पर पुरुष प्रधान मानसिकता से पीड़ित हो रही हैं| इस संदर्भ में युग नायक एवं राष्ट्र निर्माता स्वामी विवेकानंद जी ने कहा था, "किसी भी राष्ट्र की प्रगति का सर्वोत्तम थर्मामीटर है, वहाँ की महिलाओं की स्थिति| हमें नारियों को ऐसी स्थिति में पहुँचा देना चाहिए, जहाँ वे अपनी समस्याओं को अपने ढंग से सुलझा सकें| हमें नारी शक्ति के उद्धारक नहीं,बल्कि उनके सेवक और सहायक बनना चाहिए| भारतीय नारियाँ संसार के अन्य किन्हीं भी नारियों की भांति अपनी समस्याओं को सुलझाने की क्षमता रखती हैं| आवश्यकता है उन्हें उपयुक्त अवसर देने की| इसी आधार पर भारत के उज्जवल भविष्य की सम्भावनाएँ सन्नीहित हैं| यह तय है कि नारी कोई वस्तु याद आया कि पात्र नहीं है| व पुरुषों के समकक्ष ही नहीं बल्कि उनसे बेहतर है| वही जीवन की असली कलाकार हैं और पुरुष उसके हाथों का मात्र रंग और कागज है| यह दुनिया पल-पल बदलती रहती है और नारियों को भी स्वधर्म पालन करते हुए मौजूदा परिस्थितियों के अनुसार लगातार बदलते रहना होगा| ध्यान यही रखना होगा कि भारतीय संस्कृति को नारी कैसे धर्म पालन करते हुए और अधिक सुंदर रूप देने में सशक्त व सक्षम रहेगी तथा प्रेरणा का आधार  बनी  रहेगी क्योंकि..

"भारतीय नारी भारत के भावी भविष्य की आशा की चिंगारी है, सरहद पर भी पांव जमा गद्दारों को ललकारी है,देख अंधेरा वर्तमान में बनी नहीं गांधारी है,मर्यादा है इसका गहना यह तलवार दुधारी है.."!

करुणा ऋषि 



इंसानियत का पाठ



बात उस समय की है जब तक वश्विैश्विक महामारी वजदू में नहींआई थी। मैं अक्सर सब्जी लेने जाया करती थी और दो सब्जी वाले जो हमेशा साथ-साथ अपनी रेडी लगाते थे हर बार उन्हें किसी न किसी बात पर आपस में लड़ते हुए पाती थी। किशन मल्ला जी को हमेशा अपनी रेडी वहां से पीछे करने को कहता तो मल्लाजी भला क्यों माने उन्हें भी अपनी सब्जी बेचनी थी। वे कभी-कभी अपने बेटे सलीम को भी लाते थे जो वहीं बठै कर काम में उनकी मदद करता था और बीच-बीच में पढ़ाई कर लेता था। मैं हमेशा उन से कहती कि इसकी पढ़ाई कभी रुकने मत देना कोई मदद चाहिए हो तो बेझिझक बताना और दोनों सब्जी वालों को समझाती कि आपस में लड़ा मत करो। जो जिसके भाग्य का होगा, उसे मिलेगा। दोनों ही पेट भरने के लिए काम कर रहे हो। लेकिन शायद मेरी बातें उनके दिल में उतरती नहीं थी क्योंकि दोनों को ही अपनी कमाई को बढ़ाने की चितं थी।

फिर हुआ वश्विैश्विक महामारी का प्रकोप। घर से निकलना बदं हो गया मेरे पास किशन और मल्लाजी दोनों का नबंर था। मैं दोनों में से जिसको फोन कर देती थी, वह सब्जी देने आ जाया करते थे। पर कुछ दिन बाद उन्होंने मेरा फोन उठाना छोड़ दिया। थोड़ी चिंता हुई कि सब ठीक भी है या नहीं।फिर अचानक एक दिन किशन का फोन आया मैने उससे पूछा  इतने दिन कहां गायब थे ? उसने बताया कि थोड़ी परेशानी में फंस गया था। क्या सब्जी भिजवा दूँ ,मैने कहा हा | कुछ ही देर बाद वसीम  का बेटा 

हाथ में सब्जी के थलै  पकड़ कर लाया मैने उससे पूछा तुम  कैसे? उसने बताया बाबा ने  मुझे भेजा है । मुझे लगा फिर इन दोनों ने झगड़ा किया होगा। मैं एक-दो दि न इसी सोच विचार में पड़ी रही फिर मनैं एक दिन सब्जी मगं ानेके बहाने किशन को फोन लगाया और कहा अब मल्ुला जी से लड़ते तो नहीं हो और अपने बेटे की पढ़ाई जारी है न? थोड़ी देर रह चपु हो गया और फिर बोला जी हां सलीम बेटा नौवीं कक्षा में आ गया है। मैं नहीं समझी पर शायद वह मेरे मन में चल रहे विचारों को समझ क्या। उसने कहा इस महामारी ने गहरा सबक सिखाया है। एक तरफ मल्ुलाजी को ले गई और दसूरी तरफ मेरे बेटे को। अब मल्ुलाजी का बेटा मेरा है। वह काम में मेरा हाथ बटं ाता है, पढ़ाई उसकी जारी है और उसे मैं कभी

रुकने नहीं दंगू ा। जो समझ तब न आई, अब जाकर आई है किअपने मन में कितना सकुून है। अब एक ही रेडी लगती है लेकिन उस नोकझोंक के बिना बिल्कुल मन नहीं लगता। इंसानियत का पाठ पढ़ा दिया है महामारी ने।मैं सोच में पड़ गई - न जाने यह कोरोनाकाल कहां-कहां कैसे-कैसे रंग दिखा गया है।

चित्रा.



डॉ. भीमराव अम्बेडकर, जिन्हें बाबा साहेब अंबेडकर के नाम से भी जाना जाता है। बाबा साहेब अम्बेडकर महापुरुष थे। इन्होंने ही भारत के संविधान को बनाया और साथ ही दलितों और अन्य सामाजिक रूप से पिछड़े वर्गो को अपने अधिकारों के लिए को जागरूक किया |

 

स्वामी भारती कृष्ण तीर्थ और वैदिक गणित



स्वामी भारती कृष्ण तीर्थ का जन्म 14 मार्च 1884 (चैत्र शुक्ल तृतीया) को तिन्निवेलि (Tinnevally) तमिलनाडु में एक विद्या-विनय सम्पन्न परिवार में हुआ था। माता-पिता की ओर से उन्हें व्यंकट रमण नाम प्राप्त हुआ। व्यंकट रमण एक असाधारण कुशाग्र बुद्धि वाले विद्यार्थी थे। अपने सारे विद्यार्थी जीवन में सभी कक्षाओं में सभी विषयों में प्रथम स्थान पाते थे। उन्होंने अपनी मैट्रिक की परीक्षा मद्रास विश्वविद्यालय से जनवरी 1899 में हमेशा की तरह सर्वप्रथम स्थान प्राप्त कर उत्तीर्ण की।

संस्कृत भाषा पर उनका अधिकार और प्रभावपूर्ण धारा प्रवाह भाषण की उनकी क्षमता से प्रभावित होकर वर्ष 1899 में ही मद्रास संस्कृत संस्था ने उनको ‘सरस्वती’ की उपाधि से विभूषित किया। इस स्थिति में उनके संस्कृत के गुरु श्री वेदम् वेंकटराय शास्त्राी का उनके ऊपर अमिट प्रभाव नहीं भुलाया जा सकता। उनका स्मरण वे सदा श्रद्धापूर्वक तथा कृतज्ञता से करते थे।

बी.ए.और एम.ए. की परीक्षाओं में उन्होंने पूर्ववत् सर्वोच्च अंक प्राप्त किए। केवल बीस वर्ष की आयु में सन् 1904 में उन्होंने अमेरिकन कॉलेज ऑपफ साइंस रोचेस्टर न्यूयार्क के बम्बई केन्द्र से सात विषयों में एक ही साथ एम.ए. की परीक्षा सर्वोच्च अंकों के साथ उत्तीर्ण कर सभी को आश्चर्य में डाल दिया। इन विषयों में इतिहास, संस्कृत, दर्शन, अंग्रेजी, गणित और विज्ञान जैसी विषय की विविधता के कारण उनकी यह उपलब्धि और भी विस्मयकारी थी।

धर्म और दर्शन के साथ-साथ आधुनिकतम राजनैतिक-वैज्ञानिक चिन्तन और अनुसंधान में उनकी रुचि जीवन भर कम नहीं हुई। अपनी शिक्षा पूर्ण कर लेने के बाद वे गोपाल कृष्ण गोखले और देशबन्धु चितरंजन दास द्वारा चलाए जा रहे राष्ट्रीय शिक्षा के आन्दोलन में भाग लेने के लिए नाममात्र के वेतन पर अध्यापक बन गये। तीन वर्ष पूरे होते-होते उनकी उत्कृष्ट आध्यात्मिक जिज्ञासा उन्हें  शृंगेरी मठ की ओर खींच ले गई परन्तु राष्ट्रीय शिक्षा अभियान को अभी उनकी और आवश्यकता थी। इसलिए वे राज महेन्द्री के ‘नेशनल कॉलेज’ के प्राचार्य बनकर गए। यहाँ भी तीन वर्ष सेवा करने के बाद सन् 1911 में एक बार फिर वे शृंगेरी मठ के शंकराचार्य स्वामी सच्चिदानंद शिवाभिनव नृसिंह भारती के पास चले गए। वहाँ उन्होंने अगले आठ वर्ष वेद-वेदांग और दर्शन के गहन अध्ययन के साथ निकटवर्ती वनों में गंभीर योग साधना में व्यतीत किए। इसी साधना के दौरान उनको वैदिक ऋचाओं और आख्यानों के गूढ़ रहस्यों का दर्शन हुआ।

ज्ञान, आयु और अनुभव की प्रौढ़ता प्राप्त कर लेने के बाद 35 वर्ष की आयु में शारदापीठ के शंकराचार्य स्वामी त्रिविक्रम तीर्थ महाराज ने 4 जुलाई सन् 1919 को उन्हें काशी में सन्यास की दीक्षा दी और नाम दिया स्वामी भारतीकृष्ण तीर्थ।

सन्यास लेने के कुल दो वर्ष बाद ही सन् 1921 में उन्हें शारदा पीठ का शंकराचार्य बनाया गया। सम्पूर्ण भारत का भ्रमण और जन जागरण का उनका कार्यक्रम अनवरत चलता रहा। इसी अवधि में 1921 में उन्होंने कराची में आयोजित खिलाफत कांफ्रेस में भाग लिया। देशभर में घूम-घूम कर स्वतंत्राता संग्राम की अलख जगाई और 1922 में मुंगेर में दिए गए एक व्याख्यान के कारण उन्हें हजारीबाग की जेल में एक वर्ष की सजा काटनी पड़ी।

सन् 1925 में उन्हें गोवर्धन पीठ के शंकराचार्य पद पर विभूषित किया गया। वे गोवर्धन पीठ के 143वें शंकराचार्य थे। उन्होंने 1953 में नागपुर में विश्वपुनर्निमाण संघ की स्थापना की।

1958 में खराब स्वास्थ्य के बावजूद ‘सेल्पफ रियलाइजेशन फेलोशिप’ नामक संस्था के आमंत्राण पर संयुक्त राज्य अमेरिका की यात्रा की। स्वामी जी ने वहाँ तीन माह प्रवास किया। इस अवधि में उन्होंने कई महाविद्यालयों, गिरिजा घरों तथा सार्वजनिक संस्थानों में प्रवचन दिए। उन्हें गणितीय प्रदर्शन करने के लिए आमंत्रित किया गया था। अपनी वापसी यात्रा में उन्होंने कुछ भाषण ब्रिटेन में भी दिए थे।

वैदिक विज्ञान उनका प्रिय विषय था और वैदिक गणित को वे उसकी प्रत्यक्ष एवं व्यावहारिक विद्या के रूप में प्रस्तुत करते थे। इस प्रकार के सैकड़ों व्याख्यान उन्होंने भारत के विभिन्न नगरों में घूम-घूम कर वहाँ के प्रबुद्ध जनों के समक्ष दिये थे। काशी और नागपुर के विश्वविद्यालयों में तो उन्होंने बकायदा कक्षाएँ भी लगायी थीं।

स्वामी भारती कृष्ण तीर्थ द्वारा रचित ‘वैदिक गणित’ नामक ग्रन्थ एक अद्भुत चमत्कारी एवं क्रान्तिकारी ग्रन्थ है। गणित के प्रश्नों को हल करने का इसमें नितांत नवीन दृष्टिकोण प्रस्तुत किया गया है। इस ग्रन्थ में 16 सूत्र, 13 उपसूत्रों के आधार पर शीघ्र गणना की विधियाँ प्रस्तुत की हैं।

वैदिक गणित ग्रन्थ परिचय –

‘वैदिक गणित’ नामक ग्रन्थ स्वामी जी के देहावसान के पश्चात् 1965 में बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय द्वारा प्रथम प्रकाशित हुआ जो विश्व प्रसिद्ध है। इस पुस्तक का सम्पादन डॉ॰ वासुदेव शरण अग्रवाल ने किया है, जो उन दिनों विश्वविद्यालय में नेपाल राज्य ग्रंथमाला के प्रमुख संपादक थे। इस पुस्तक की प्रस्तावना स्वामी श्री प्रत्यगात्मानंद जी ने लिखी है तथा श्रीमती मंजुलाबेन त्रिवेदी द्वारा लिखित My Beloved Gurudeo यह लेख भी पुस्तक में समाविष्ट है। श्री स्वामी जी ने स्वयं इस पुस्तक की भूमिका लिखी है। पुस्तक कुल 40 प्रकरणों में विभाजित है जिसमें 16 प्रकरण अंकगणित पर, 19 प्रकरण बीजगणित पर तथा 3 प्रकरण भूमिति पर हैं। एक अध्याय Vedic Numerical Code पर है तथा अन्तिम अध्याय में वैदिक गणित सूत्रों का अनुप्रयोग गणितशास्त्र के जिन विभिन्न शाखाओं में सम्भव है, उसकी चर्चा है। प्रकरणशः निम्नलिखित विषयों की चर्चा उपलब्ध है।

प्रकरण           विषय अंकगणित

1              वैदिक सूत्रों का प्रत्यक्ष प्रयोग (Actual Application of Vedic Sutras.)

2, 3          गुणन (Multiplication)

4, 5, 27        भाग (Division)

31, 32, 33    संख्याओं का वर्ग तथा घन (Square and Cube of Numbers)

34, 35, 36    संख्याओं का वर्गमूल तथा घनमूल (Square root and Cube root of Numbers)

26            आवर्त दशमलव (Recurring Decimals)

28            सहायक भिन्न (Auxiliary Fractions)

29, 30          विभाज्यता (Divisibility)

प्रकरण           विषय बीजगणित

6              बहुपदों का भागाकार (Division of Polynomials)

7, 8, 9, 22    वर्ग तथा घन बहुपदों के गुणनखण्ड (Factorization of Quadratic and Cubic polynomials)

10            महत्तम समापवर्तक (Highest Common Factor)

11, 12 से 16, 20       रैखिक समीकरण तथा युगपत् रैखिक समीकरण

(Simple equations, Merger type of Simple equations, Complex mergers, imultaneous equations)

17, 18, 19, 21  वर्ग, घन तथा चतुर्घात समीकरण (Quadratic, Cubic, Bi-quadratic Equations)

23, 24          आंशिक भिन्न (Partial Fractions)

प्रकरण           विषय रेखागणित

37, 38          पायथागोरस प्रमेय, अपोलोनियस प्रमेय (Pythagoras Theorem, Apollonius Theorem)

39            विश्लेषिक शांकव गणित (Analytical Conics)

40            विविध विषय (Miscellaneous Matters)

प्रमेयों में किसी गणितीय सत्य का प्रतिपादन किया जाता है। इस अर्थ में स्वामी जी के सूत्र प्रमेय नहीं हैं, स्वामी जी के सूत्र सत्य को प्रमाणित करने तथा प्रश्नों को हल करने के विविध तरीके हैं। तर्क और परिणाम तक पहुँचने की विधियाँ हैं, सरलता, सुग्राह्यता, सहजता तथा शीघ्रता इन विधियों की विशेषता है।

आधुनिक काल में इन सूत्रों का प्रयोग अंकगणित, बीजगणित, रेखागणित, त्रिकोणमिति, खगोलशास्त्र, कलनशास्त्र (Calculus), सांख्यिकी (Statistics), प्रायिकता (Probability), इत्यादि क्षेत्रों  में अधिक फलदायी सिद्ध हुआ है। इन सूत्रों के प्रयोग से विषयवस्तु को सरल एवं आनन्ददायी बनाने में बहुत सहायता होती है। इन सूत्रों के अभ्यासपूर्वक प्रयोग से न केवल गणनक्षमता की वृद्धि होती है, अपितु मेधाशक्ति, तर्कशक्ति, अनुमानक्षमता, आकलनशक्ति, सहसंबंध-विश्लेषण की क्षमता, पुनरावृत्तिमूलक क्षमता (Iterative ability) प्रतिमानवाचन क्षमता (Pattern reading ability) आदि मानसिक तथा बौद्धिक क्षमताओं का विकास होता है अर्थात् गणितशास्त्र के साथ-साथ अन्यान्य विषयों के अध्ययन-अध्यापन में ये सारी क्षमताएँ परमोपयोगी सिद्ध होती हैं।आज का काल स्पर्धा परीक्षाओं का है। उसमें सफल होने के लिए गति एवं शुद्धता (Speed and Accuracy) अति आवश्यक है। इन सूत्रों के प्रत्यक्ष अनुप्रयोग से तथा इनके अभ्यास से वर्धित सभी क्षमताओं का उपयोग किसी भी स्पर्धा परीक्षा में फलदायी सिद्ध होता है, इसका अनुभव देश-विदेश के सम्बन्धित विद्वानों को आज हो रहा है।वैदिक गणित की विधियाँ एक ओर जहाँ गणित शिक्षण को सरल एवं रोचक बनाती हैं वहीं दूसरी ओर नवीन शोध की ओर प्रेरित करती हैं।गणित के क्षेत्र में स्वामी भारती कृष्ण तीर्थ का अद्वितीय योगदान है। उन्होंने 2 फरवरी (बसंत पंचमी) 1960 में बम्बई में महासमाधि ले ली।     

 संदर्भ-

वैदिक गणित, मोतीलाल बनारसी दास पब्लिशर्स प्राइवेट लिमिटेड, बंगलो रोड, जवाहर नगर, दिल्ली

Secret of India’s Greatness, Jagrati Prakashan, F-109, Sector- 27, Noida – 201301,वैदिक गणित परिचय, भारतीय शिक्षण मण्डल, कानपुर,वैदिक गणित प्रणेता, पूज्य श्री भारतीकृष्ण तीर्थ जी, शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास, नई दिल्ली।

(साभार –  पुस्तक: भारत के प्रमुख गणिताचार्य, लेखक –  डॉ० देवी प्रसाद वर्मा, श्रीराम चौथाईवाले, देवेन्द्रराव देशमुख)


“स्त्री का मान”

बेटी जब जन्मी घर में, 

सबने उसे बोझ समझा,, 

पढ़ने नहीं भेजा उसे, 

फालतू का खर्चा समझा,, 


शादी करके विदा किया, 

ससुराल में भी पराई समझा,, 

घर का सारा काम करती, 

उसे केवल नौकरानी समझा,, 


सारी उम्र बच्चों को पाला, 

बच्चों ने भी बोझ समझा,, 

वृद्धाश्रम में भेज दिया उसे,

फालतू का सामान समझा,, 


अंतिम सांसें ली जब उसने, 

अपने अंत को पास समझा,, 

ईश्वर से एक प्रश्न किया कि, 

तुमने मुझे आखिर क्या समझा,, 


आँखें मूँद ली जब उसने, 

सबने उसे मृत समझा,, 

आश्रम में भी करके संस्कार, 

एक सदस्य को कम समझा,, 

औरत तेरी यही कहानी, 

जिसे सभी ने एक सा समझा,, 

तू ही जननी तू ही शक्ति, 

इस बात को कोई न समझा,, 


शक्ति दायिनी सहनशील तू, 

जीवनी दायिनी माता है,, 

तुम बिन सृष्टि चल नहीं सकती, 

तेरा ही सच्चा नाता है,, 


तेरी कीमत तेरा गौरव, 

जब संसार जान जाएगा,, 

न कोई पीड़ा न कोई कष्ट, 

हर घर स्वर्ग सा बन जाएगा,, 


दुख सह कर जीवन देने वाली, 

नारी शक्ति तुझे सलाम,, 

घर परिवार संभालने वाली, 

नारी शक्ति तुझे सलाम,, 


रिँकू शर्मा

हिंदी अध्यापिका

ओ०पी०एस० विद्या मंदिर

अंबाला (हरियाण



परिवर्तन 



जब जीवात्मा भौतिक सृष्टि के संपर्क में आता है तो उसका शाश्वत कृष्ण प्रेम रजोगुण की संगति से काम में परिणत हो जाता है। अथवा दूसरे शब्दों में ईश्वर प्रेम का भाव काम में उसी तरह बदल जाता है जिस तरह इमली के संसर्ग से दूध दही में बदल जाता है और जब काम की संतुष्टि

नहीं होती तो यह क्रोध में परिणत हो जाता है, क्रोध मोह में और मोह इस संसार में निरंतर बना रहता है, अतः जीवात्मा का सबसे बड़ा शत्रु काम है ,और यह काम ही है जो विशुद्ध जीवात्मा को इस संसार में फंसे रहने के लिए प्रेरित करता है। क्रोध तमोगुण का प्राकट्य है ।यह गुण अपने आप को क्रोध तथा अन्य रूपों में प्रकट करते हैं। अतः यदि रहने तथा कार्य करने की विधियों द्वारा रजोगुण को तमोगुण में ना गिरने देकर सतोगुण तक ऊपर उठाया जाए तो मनुष्य को क्रोध में पतित होने से आध्यात्मिक आसक्ति के द्वारा बचाया जा सकता है।

अपने नित्य वर्धमान चिदानंद के लिए भगवान ने अपने आपको अनेक रूपों में विस्तारित कर लिया और जीवात्माएं उनके इस चिदानंद के ही अंश हैं। उनको भी आंशिक स्वतंत्रता प्राप्त है किंतु अपनी इस स्वतंत्रता का दुरुपयोग करके जब वे सेवा को इंद्रिय सुख में बदल देती हैं तो वह काम की चपेट में आ जाते हैं ।भगवान ने इस सृष्टि की रचना जीव आत्माओं के लिए इन कामपूर्ण रुचियां की पूर्ति हेतु सुविधा प्रदान करने के निमित्त की और जब जीवात्माएं दीर्घकाल तक काम कर्मों में फंसे रहने के कारण पूर्णतया ऊब जाती हैं तो वे अपना वास्तविक स्वरूप जानने के लिए जिज्ञासा करने लगती हैं।

यही जिज्ञासा वेदांत सूत्र का प्रारंभ है जिसमें यह कहा गया है "अथातो ब्रह्मजिज्ञासा"- मनुष्य को परम तत्व की जिज्ञासा करनी चाहिए। और इस परम तत्व की परिभाषा श्रीमद्भागवत में किस प्रकार दी गई है- सारी वस्तुओं का उद्गम परब्रह्म है। अतः काम का उद्गम भी परब्रह्म से हुआ अतः यदि काम को भगवत प्रेम में या कृष्णभावना में परिणत कर दिया जाए या दूसरे शब्दों में कृष्ण के लिए ही सारी इच्छाएं हो तो काम तथा क्रोध दोनों ही आध्यात्मिक बन सकेंगे ।भगवान राम के अनन्य सेवक हनुमान ने रावण की स्वर्णपुरी को जलाकर अपना क्रोध प्रकट किया किंतु ऐसा करने से वह भगवान के सबसे बड़े भक्त बन गए। यहां पर भी श्री कृष्ण अर्जुन को प्रेरित करते हैं कि वह शत्रुओं पर अपना क्रोध भगवान को प्रसन्न करने के लिए दिखाएं।अतः काम तथा क्रोध कृष्णभावनामृत में प्रयुक्त होने पर हमारे शत्रु न रहकर मित्र बन जाते हैं।

सिख धर्म के संस्थापक और पहले गुरु गुरुनानक देव संसार में ऐसी आध्यात्मिक शख्सियत के रूप में प्रगट हुए जिन्होंने मानवता की सर्व कठिनाइयों, अरुचियों, प्रवृत्तियों को प्रामाणिक शिक्षा एवं उपदेश देकर उनके निजी, सामाजिक, नैतिक तथा आध्यात्मिक जीवन को परिपक्व बनाया. मान्यता के अनुसार गुरुनानक देव का जन्म 15 अप्रैल, सन 1469 को लाहौर के पास तलवंडी में हुआ. पूरे देश में गुरु नानक का जन्म दिन प्रकाश दिवस के रूप में कार्तिक पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है. नानक के पिता का नाम कालू एवं माता का नाम तृप्ता था.


भगवान महावीर का जन्म करीब ढाई हजार वर्ष पहले (ईसा से 599 वर्ष पूर्व), वैशाली गणराज्य के कुण्डग्राम में अयोध्या इक्ष्वाकुवंशी क्षत्रिय परिवार हुआ था। तीस वर्ष की आयु में महावीर ने संसार से विरक्त होकर राज वैभव त्याग दिया और संन्यास धारण कर आत्मकल्याण के पथ पर निकल गये।

अर्धमागधी भाषा में वे उपदेश करने लगे ताकि जनता उसे भलीभाँति समझ सके। भगवान महावीर ने अपने प्रवचनों में अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह पर सबसे अधिक जोर दिया। त्याग और संयम, प्रेम और करुणा, शील और सदाचार ही उनके प्रवचनों का सार था।


पंचक विचार अप्रैल - 2022  

पंचक विचार -(धनिष्ठा नक्षत्र के तृतीय चरण से रेवती नक्षत्र तक) पंचको में दक्षिण दिशा की ओर यात्रा करना मकान दुकान आदि की छत डालना चारपाई पलंग आदि बुनना,दाह संस्कार,बांस की चटाई दीवार प्रारंभ करना आदि स्तंभ रोपण तांबा पीतल तृण काष्ट आदि का संचय करना आदि कार्यों का निषेध माना जाता है समुचित उपाय एवं पंचक शांति करवा कर ही उक्त कार्यों का संपादन करना कल्याणकारी होगा ध्यान रहेगा  पंचर नक्षत्रों का विचार मात्र उपरोक्त विशेष कृतियों के लिए ही किया जाता है विवाह मंडल आरंभ गृह प्रवेश प्रवेश उपनयन आदि मुद्दों से तो पंचक नक्षत्रका प्रयोग शुभ माना जाता है पंचक विचार-दिनांक 28 मार्च को 23-54 से दिनांक 2 तक, दिनांक 25 को 05-29 से दिनांक 29 से 18-40 बजे तक पंचक हैं |

अधिक जानकारी के लिए संपर्क करे शर्मा जी - 9312002527,9560518227

 

मृत्यु से भय कैसा ?

राजा परीक्षित को श्रीमद्भागवत पुराण सुनातें हुए जब शुकदेव जी महाराज को छह दिन बीत गए और तक्षक (सर्प) के काटने से मृत्यु होने का एक दिन शेष रह गया, तब भी राजा परीक्षित का शोक और मृत्यु का भय दूर नहीं हुआ। अपने मरने की घड़ी निकट आता देखकर राजा का मन क्षुब्ध हो रहा था। तब शुकदेव जी महाराज ने परीक्षित को एक कथा सुनानी आरंभ की।  

राजन! बहुत समय पहले की बात है, एक राजा जंगल में शिकार खेलने गया, संयोगवश वह रास्ता भूलकर घने जंगल में जा पहुँचा। उसे रास्ता ढूंढते-ढूंढते रात्रि हो गई और वर्षा होने लगी। राजा बहुत डर गया और किसी प्रकार उस भयानक जंगल में रात्रि बिताने के लिए विश्राम का स्थान ढूंढने लगा।

कुछ दूरी पर उसे एक दीपक जलता हुआ दिखाई दिया। वहाँ पहुँचकर उसने एक बहेलिये की झोंपड़ी देखी। वह बहेलिया ज्यादा चल-फिर नहीं सकता था, इसलिए झोंपड़ी में ही एक ओर उसने मल-मूत्र त्यागने का स्थान बना रखा था, अपने खाने के लिए जानवरों का मांस उसने झोंपड़ी की छत पर लटका रखा था।

वह झोंपड़ी बड़ी गंदी, छोटी, अंधेरी और दुर्गंधयुक्त थी। उस झोंपड़ी को देखकर पहले तो राजा ठिठका, लेकिन उसने सिर छिपाने का कोई और आश्रय न देखकर उस बहेलिये से अपनी झोंपड़ी में रात भर ठहरने देने के लिए प्रार्थना की। बहेलिये ने कहा कि आश्रय के लोभी राहगीर कभी - कभी यहाँ आ भटकते हैं। मैं उन्हें ठहरा तो लेता हूँ, लेकिन दूसरे दिन जाते समय वे बहुत झंझट करते हैं। उन्हें इस झोंपड़ी की गंध ऐसी भा जाती है कि फिर वे उसे छोड़ना ही नहीं चाहते और इसी में ही रहने की कोशिश करते हैं एवं अपना कब्जा जमाते हैं। ऐसे झंझट में मैं कई बार पड़ चुका हूँ, इसलिए मैं अब किसी को भी यहां नहीं ठहरने देता। मैं आपको भी इसमें नहीं ठहरने दूंगा। राजा ने प्रतिज्ञा की, कि वह सुबह होते ही इस झोंपड़ी को अवश्य खाली कर देगा। यहाँ तो वह संयोगवश भटकते हुए आया है, उसे तो सिर्फ एक रात काटनी है। तब बहेलिये ने राजा को वहाँ ठहरने की अनुमति दे दी, पर सुबह होते ही बिना कोई झंझट किए झोंपड़ी खाली करने की शर्त को दोहरा दिया। राजा रात भर एक कोने में पड़ा सोता रहा।सोने में झोंपड़ी की दुर्गंध उसके मस्तिष्क में ऐसी बस गई कि सुबह जब उठा तो वही सबसे परम प्रिय लगने लगा। राजा जीवन के वास्तविक उद्देश्य को भूलकर वहीं निवास करने की बात सोचने लगा। और बहेलिये से वहीं ठहरने की प्रार्थना करने लगा। इस पर बहेलिया भड़क गया और राजा को भला-बुरा कहने लगा।राजा को अब वह जगह छोड़ना झंझट लगने लगा और दोनों के बीच उस स्थान को लेकर बड़ा विवाद खड़ा हो गया।

कथा सुनाकर शुकदेव जी महाराज ने "परीक्षित" से पूछा, "परीक्षित" बताओ, उस राजा का उस स्थान पर सदा के लिए रहने के लिए झंझट करना उचित था?

परीक्षित ने उत्तर दिया, भगवन् ! वह राजा कौन था, उसका नाम तो बताइये? मुझे वह तो मूर्ख जान पड़ता है, जो ऐसी गंदी झोंपड़ी में, अपनी प्रतिज्ञा तोड़कर एवं अपना वास्तविक उद्देश्य भूलकर, नियत अवधि से भी अधिक वहाँ रहना चाहता है। उसकी मूर्खता पर तो मुझे आश्चर्य होता है।

श्री शुकदेव जी महाराज ने कहा, हे राजा परीक्षित! वह बड़े भारी मूर्ख तो स्वयं आप ही हैं। इस मल-मूत्र की गठरी "देह(शरीर)" में जितने समय आपकी आत्मा को रहना आवश्यक था, वह अवधि तो कल समाप्त हो रही है। अब आपको उस लोक जाना है, जहाँ से आप आएं हैं। फिर भी आप मरना नहीं चाहते। क्या यह आपकी मूर्खता नहीं है ?"

राजा परीक्षित का ज्ञान जाग गया और वे बंधन मुक्ति के लिए सहर्ष तैयार हो गए।

"वस्तुतः यही सत्य है।"

जब एक जीव अपनी माँ की कोख से जन्म लेता है तो अपनी माँ की कोख के अन्दर भगवान से प्रार्थना करता है कि, हे भगवन् ! मुझे यहाँ (इस कोख) से मुक्त कीजिए, मैं आपका भजन-सुमिरन करूँगा। और जब वह जन्म लेकर इस संसार में आता है तो (उस राजा की तरह हैरान होकर) सोचने लगता है कि मैं ये कहाँ आ गया (और पैदा होते ही रोने लगता है) फिर धीरे धीरे उसे उस गंध भरी झोंपड़ी की तरह यहाँ की खुशबू ऐसी भा जाती है कि वह अपना वास्तविक उद्देश्य भूलकर यहाँ से जाना ही नहीं चाहता है।

 

भद्रा विचार अप्रैल - 2022 

भद्रा काल का शुभ अशुभ विचार - भद्रा काल में विवाह मुंडन, गृह प्रवेश, रक्षाबंधन आदि मांगलिक कृत्य का निषेध माना जाता है परंतु भद्रा काल में शत्रु का उच्चाटन करना,स्त्री प्रसंग में,यज्ञ करना, स्नान करना, अस्त्र शस्त्र का प्रयोग, ऑपरेशन कराना, मुकदमा करना, अग्नि लगाना, किसी वस्तु को काटना,घोड़ा ऊंट संबंधी कार्य, प्रशस्त माने जाते हैं सामान्य परिस्थिति में विवाह आदि  शुभ मुहूर्त में भद्रा का त्याग करना चाहिए परंतु आवश्यक परिस्थितिवश अति आवश्यक कार्य  में व 

अधिक जानकारी के लिए संपर्क करे शर्मा जी - 9312002527,9560518227

दिनांक 

शुरू 

दिनांक 

समाप्त 

05

02-50

05

15-45

08

23-05

09

12-41

12

16-46

13

05-02

16

02-25

16

13-25

19

06-01

19

16-39

22

08-42

22

19-34

25

14-12

26

01-38

29

00-27

29

12-38



भारतीय व्रत,उत्सव अप्रैल  - 2022 

दिनांक - 1 अमावस्या पुन्य,दिनांक- 2 नवरात्र प्रारम्भ,सम्वत 2079 प्रारम्भ,दिनांक - 3 मत्स्य जयंती ,दिनांक - 4 गणगौरी तीज,दिनांक 5 विनायक चतुर्थी व्रत,दिनांक 6 श्री पंचमी,दिनांक 7 स्क्न्थ षष्टी,दिनांक 9 श्री दुर्गा अष्टमी,दिनांक 10 श्री रामनवमी,नवरात्र पूर्ण,दिनांक 12 कामदा एकादशी व्रत,दिनांक 14 प्रदोष व्रत,वैशाखी,अम्बेडकर जयंती,महावीर जयंती,संक्रांति पुन्य,दिनांक -16 ,सत्य व्रत,पूर्णिमा,दिनांक 19  श्री गणेश चतुर्थी व्रत,दिनांक- 21 गुरु तेग बहादुर जयंती,दिनांक 23 गुरु अर्जुन देव जयंती,दिनांक -26 बरुथ्नी एकादशी व्रत,दिनांक 28 प्रदोष व्रत दिनांक 29 मास शिवरात्रि |


   

 पुण्यों का मोल



एक व्यापारी जितना अमीर था उतना ही दान-पुण्य करने वाला, वह सदैव यज्ञ-पूजा आदि कराता रहता था। एक यज्ञ में उसने अपना सब-कुछ दान कर दिया। अब उसके पास परिवार चलाने लायक भी पैसे नहीं बचे थे।व्यापारी की पत्नी ने सुझाव दिया कि पड़ोस के नगर में एक बड़े सेठ रहते हैं। वह दूसरों के पुण्य खरीदते हैं।आप उनके पास जाइए और अपने कुछ पुण्य बेचकर थोड़े पैसे ले आइए, जिससे फिर से काम-धंधा शुरू हो सके। पुण्य बेचने की व्यापारी की बिलकुल इच्छा नहीं थी, लेकिन पत्नी के दबाव और बच्चों की चिंता में वह पुण्य बेचने को तैयार हुआ। पत्नी ने रास्ते में खाने के लिए चार रोटियां बनाकर दे दीं।

व्यापारी चलता-चलता उस नगर के पास पहुंचा जहां पुण्य के खरीदार सेठ रहते थे। उसे भूख लगी थी। नगर में प्रवेश करने से पहले उसने सोचा भोजन कर लिया जाए। उसने जैसे ही रोटियां निकालीं एक कुतिया तुरंत के जन्मे अपने तीन बच्चों के साथ आ खड़ी हुई। कुतिया ने बच्चे जंगल में जन्म दिए थे। बारिश के दिन थे और बच्चे छोटे थे, इसलिए वह उन्हें छोड़कर नगर में नहीं जा सकती थी। 

व्यापारी को दया आ गई। उसने एक रोटी कुतिया को खाने के लिए दे दिया।

कुतिया पलक झपकते रोटी चट कर गई लेकिन वह अब भी भूख से हांफ रही थी। व्यापारी ने दूसरी रोटी, फिर तीसरी और फिर चारो रोटियां कुतिया को खिला दीं। खुद केवल पानी पीकर सेठ के पास पहुंचा। व्यापारी ने सेठ से कहा कि वह अपना पुण्य बेचने आया है। सेठ व्यस्त था। उसने कहा कि शाम को आओ।

दोपहर में सेठ भोजन के लिए घर गया और उसने अपनी पत्नी को बताया कि एक व्यापारी अपने पुण्य बेचने आया है। उसका कौन-सा पुण्य खरीदूं। सेठ की पत्नी बहुत पतिव्रता और सिद्ध थी। उसने ध्यान लगाकर देख लिया कि आज व्यापारी ने कुतिया को रोटी खिलाई है। उसने अपने पति से कहा कि उसका आज का पुण्य खरीदना जो उसने एक जानवर को रोटी खिलाकर कमाया है। वह उसका अब तक का सर्वश्रेष्ठ पुण्य है। व्यापारी शाम को फिर अपना पुण्य बेचने आया। सेठ ने कहा- आज आपने जो यज्ञ किया है मैं उसका पुण्य लेना चाहता हूं।

व्यापारी हंसने लगा। उसने कहा कि अगर मेरे पास यज्ञ के लिए पैसे होते तो क्या मैं आपके पास पुण्य बेचने आता! सेठ ने कहा कि आज आपने किसी भूखे जानवर को भोजन कराकर उसके और उसके बच्चों के प्राणों की रक्षा की है। मुझे वही पुण्य चाहिए।

व्यापारी वह पुण्य बेचने को तैयार हुआ। सेठ ने कहा कि उस पुण्य के बदले वह व्यापारी को चार रोटियों के वजन के बराबर हीरे-मोती देगा। चार रोटियां बनाई गईं और उसे तराजू के एक पलड़े में रखा गया। दूसरे पलड़े में सेठ ने एक पोटली में भरकर हीरे-जवाहरात रखे। पलड़ा हिला तक नहीं। दूसरी पोटली मंगाई गई.. फिर भी पलड़ा नहीं हिला। कई पोटलियों के रखने पर भी जब पलड़ा नहीं हिला तो व्यापारी ने कहा- सेठजी, मैंने विचार बदल दिया है. मैं अब पुण्य नहीं बेचना चाहता। व्यापारी खाली हाथ अपने घर की ओर चल पड़ा। उसे डर हुआ कि कहीं घर में घुसते ही पत्नी के साथ कलह न शुरू हो जाए। जहां उसने कुतिया को रोटियां डाली थी, वहां से कुछ कंकड़-पत्थर उठाए और साथ में रखकर गांठ बांध दी। घर पहुंचने पर पत्नी ने पूछा कि पुण्य बेचकर कितने पैसे मिले तो उसने थैली दिखाई और कहा इसे भोजन के बाद रात को ही खोलेंगे। इसके बाद गांव में कुछ उधार मांगने चला गया। इधर उसकी पत्नी ने जबसे थैली देखी थी उसे सब्र नहीं हो रहा था। पति के जाते ही उसने थैली खोली। उसकी आंखे फटी रह गईं। थैली हीरे जवा-हरातों से भरी थी। व्यापारी घर लौटा तो उसकी पत्नी ने पूछा कि पुण्यों का इतना अच्छा मोल किसने दिया ? इतने हीरे-जवाहरात कहां से आए..??

व्यापारी को अंदेशा हुआ कि पत्नी सारा भेद जानकर ताने तो नहीं मार रही लेकिन, उसके चेहरे की चमक से ऐसा लग नहीं रहा था। व्यापारी ने कहा- दिखाओ कहां हैं हीरे-जवाहरात। पत्नी ने लाकर पोटली उसके सामने उलट दी। उसमें से बेशकीमती रत्न गिरे। व्यापारी हैरान रह गया। फिर उसने पत्नी को सारी बात बता दी। पत्नी को पछतावा हुआ कि उसने अपने पति को विपत्ति में पुण्य बेचने को विवश किया। दोनों ने तय किया कि वह इसमें से कुछ अंश निकालकर व्यापार शुरू करेंगे। व्यापार से प्राप्त धन को इसमें मिलाकर जनकल्याण में लगा देंगे। ईश्वर आपकी परीक्षा लेता है। परीक्षा में वह सबसे ज्यादा आपके उसी गुण को परखता है जिस पर आपको गर्व हो। अगर आप परीक्षा में खरे उतर जाते हैं तो ईश्वर वह गुण आपमें हमेशा के लिए वरदान स्वरूप दे देते हैं। अगर परीक्षा में उतीर्ण न हुए तो ईश्वर उस गुण के लिए योग्य किसी अन्य व्यक्ति की तलाश में लग जाते हैं। इसलिए विपत्तिकाल में भी भगवान पर भरोसा रखकर सही राह चलनी चाहिए। आपके कंकड़-पत्थर भी अनमोल रत्न हो सकते हैं। न डर रे मन दुनिया से, यहाँ किसी के चाहने से नहीं.. किसी का बुरा होता है, मिलता है वही.. जो हमने बोया होता है, कर पुकार उस प्रभु के आगे.. क्योकि सब कुछ उसी के बस में होता है।।


बैसाखी का अर्थ वैशाख माह का त्यौहार है। यह वैशाख सौर मास का प्रथम दिन होता है। बैसाखी वैशाखी का ही अपभ्रंश है। इस दिन गंगा नदी में स्नान का बहुत महत्व है।

ग्रह स्थिति अप्रैल - 2022

ग्रह स्थिति - दिनांक 7 मंगल कुम्भ में,दिनांक 8 बुध मेष में,दिनांक 12 राहू मेष में,केतु तुला में,दिनांक 13 बुध उदय,गुरु मीन में,दिनांक 14 सूर्य मेष में,दिनांक 25 बुध वर्ष में,दिनांक 27 शुक्र मीन में ,दिनांक 29  शनि कुम्भ में |

मूल नक्षत्र विचार  अप्रैल - 2022 



दिनांक

शुरू 

दिनांक

समाप्त 

01

10-39

03

12-36

11

06-50

13

09-36

20

01-38

21

21-51

28

17-39

30

20-12


अधिक जानकारी के लिए संपर्क करे शर्मा जी - 9312002527,9560518227

सर्वार्थ सिद्धि योग अप्रैल-2022

दैनिक जीवन में आने वाले महत्वपूर्ण कार्यों के लिए शीघ्र ही किसी  शुभ मुहूर्त का अभाव हो,किंतु शुभ मुहर्त के लिए अधिक दिनों तक रुका ना जा सकता हो तो इन सुयोग्य वाले मुहर्तु  को सफलता से ग्रहण किया जा सकता है | इन से प्राप्त होने वाले अभीष्ट फल के विषय में संशय नहीं करना चाहिए यह योग हैं सर्वार्थ सिद्धि,अमृत सिद्धि योग एवं रवियोग | योग्यता नाम तथा गुण अनुसार सर्वांगीण सिद्ध कारक  है| अधिक जानकारी के लिए संपर्क करे शर्मा जी - 9312002527,9560518227

दिनांक

प्रारंभ

दिनांक

समाप्त

01

10-39

02

06-14

03

06-14

03

12-36

05

06-12

05

16-21

06

06-10

07

06-08

09

01-42

09

06-06

10

06-09

11

06-50

12

06-02

12

08-34

19

03-38

19

05-55

23

18-53

24

05-50

28

17-39

30

06-45

चौघड़िया मुहूर्त 

चौघड़िया मुहूर्त देखकर कार्य या यात्रा करना उत्तम होता है। एक तिथि के लिये दिवस और रात्रि के आठ-आठ भाग का एक चौघड़िया निश्चित है। इस प्रकार से 12 घंटे का दिन और 12 घंटे की रात मानें तो प्रत्येक में 90 मिनट यानि 1.30 घण्टे का एक चौघड़िया होता है जो सूर्योदय से प्रारंभ होता है|

अधिक जानकारी के लिए संपर्क करे शर्मा जी - 9312002527,9560518227

सुर्य उदय- सुर्य अस्त अप्रैल-2022 


दिनांक

उदय 

दिनांक

अस्त 

06-12

1

18-38

5

06-08

5

18-40

10

06-02

10

18-43

15

05-57

15

18-46

20

05-52

20

18-49

25

05-47

25

18-52

30

05-42

30

18-54


राहू काल 

 राहुकाल -राहुकाल दक्षिण भारत की देन है,दक्षिण भारत में राहु काल में कृत्य करना अच्छा नहीं माना जाता, राहु काल में शुभ कृतियों में वर्जित करने की परंपरा अब हमारे उत्तरी भारत में भी अपनाने लगे हैं राहुकाल प्रतिदिन सूर्यादि वारों में भिन्न-भिन्न समय पर केवल डेढ़ डेढ़ घंटे के लिए घटित होता है |

 

संसार में कोई भी मनुष्य सर्वज्ञ नहीं है, सभी लोग अल्पज्ञ हैं।इसलिए सभी लोगों से कहीं न कहीं, छोटी,बड़ी,जाने अनजाने,कुछ न कुछ गलतियां होती ही रहती हैं। 

 अधिक जानकारी के लिये संपर्क करें - शर्मा जी - 9560518227


मई मास के महत्वपूर्ण दिवस 



1 मई अंतर्राष्ट्रीय श्रमिक दिवस

महाराष्ट्र दिवस

05 मई 1479 - गुरु अमरदासजी  - सिक्खों के तीसरे गुरु

07 मई 1861 - रवीन्द्रनाथ टैगोर - विश्वविख्यात कवि, साहित्य के एकमात्र नोबल पुरस्कार विजेता

3 मई प्रेस स्वतंत्रता दिवस

4 मई कोयला खदान दिवस

अंतर्राष्ट्रीय फायर फाइटर दिवस

7 मई विश्व एथलेटिक्स डे

रबिन्द्रनाथ टैगोर जयंती

8 मई

विश्व थैलेसीमीया दिवस

विश्व रेड क्रॉस दिवस

09 मई 1866 - गोपालकृष्ण गोखले - स्वतंत्रता सेनानी, समाजसेवी

11 मई राष्ट्रीय प्रोघोगिकी दिवस

12 मई अंतर्राष्ट्रीय नर्स दिवस

15 मई परिवारों का अंतर्राष्ट्रीय दिवस

17 मई विश्व दूरसंचार दिवस

विश्व उच्च रक्तचाप दिवस

18 मई विश्व एड्स वैक्सीन दिवस

अंतर्राष्ट्रीय संग्रहालय दिवस

21 मई राष्ट्रीय आतंकवाद विरोधी दिवस

22 मई विश्व जैव विविधता दिवस

24 मई राष्ट्रमंडल दिवस

24 मई 1907 - महादेवी वर्मा - हिन्दी साहित्य में छायावादी युग प्रतिभावान कवयित्रियों में से हैं।

31 मई 1539 - महाराणा प्रताप - इतिहास में वीरता और दृढ प्रण के लिये अमर है

31 मई तम्बाकू विरोधी दिवस



दो ब्राह्मण पुत्र



पुराने जमाने में एक शहर में दो ब्राह्मण पुत्र रहते थे, एक गरीब था तो दूसरा अमीर..दोनों पड़ोसी थे..,,गरीब ब्राम्हण की पत्नी ,उसे रोज़ ताने देती , झगड़ती ..।।

एक दिन ग्यारस के दिन गरीब ब्राह्मण पुत्र झगड़ों से तंग आ जंगल की ओर चल पड़ता है , ये सोच कर , कि जंगल में शेर या कोई मांसाहारी जीव उसे मार कर खा जायेगा , उस जीव का पेट भर जायेगा और मरने से वो रोज की झिक झिक से मुक्त हो जायेगा..।

जंगल में जाते उसे एक गुफ़ा नज़र आती है...वो गुफ़ा की तरफ़ जाता है...। गुफ़ा में एक शेर सोया होता है और शेर की नींद में ख़लल न पड़े इसके लिये हंस का पहरा होता है | हंस ज़ब दूर से ब्राह्मण पुत्र को आता देखता है तो चिंता में पड़ सोचता है..ये ब्राह्मण आयेगा ,शेर जगेगा और इसे मार कर खा जायेगा... ग्यारस के दिन मुझे पाप लगेगा...इसे बचायें कैसे???*

उसे उपाय सुझता  है और वो शेर के भाग्य की तारीफ़ करते कहता है..ओ जंगल के राजा... उठो, जागो..आज आपके भाग खुले हैं, ग्यारस के दिन खुद विप्रदेव आपके घर पधारे हैं, जल्दी उठें और इन्हे दक्षिणा दें रवाना करें...आपका मोक्ष हो जायेगा.. ये दिन दुबारा आपकी जिंदगी में शायद ही आये, आपको पशु योनी से छुटकारा मिल जायेगा...।

शेर दहाड़ कर उठता है , हंस की बात उसे सही लगती है और पूर्व में शिकार मनुष्यों के गहने वो ब्राह्मण के पैरों में रख , शीश नवाता है, जीभ से उनके पैर चाटता है..।

हंस ब्राह्मण को इशारा करता है विप्रदेव ये सब गहने उठाओ और जितना जल्द हो सके वापस अपने घर जाओ...ये सिंह है.. कब मन बदल जाय,ब्राह्मण बात समझता है घर लौट जाता है.... पडौसी अमीर ब्राह्मण की पत्नी को जब सब पता चलता है तो वो भी अपने पति को जबरदस्ती अगली ग्यारस को जंगल में उसी शेर की गुफा की ओर भेजती है |

अब शेर का पहेरादार बदल जाता है..नया पहरेदार होता है  कौवा

जैसे कौवे की प्रवृति होती है वो सोचता है ... बढीया है ब्राह्मण आया शेर को जगाऊं

शेर की नींद में ख़लल पड़ेगी, गुस्साएगा, ब्राह्मण को मारेगा, तो कुछ मेरे भी हाथ लगेगा, मेरा पेट भर जायेगा |


 ये सोच वो कांव.. कांव.. कांव...चिल्लाता है..शेर गुस्सा हो जगता है..दूसरे ब्राह्मण पर उसकी नज़र पड़ती है , उसे हंस की बात याद आ जाती है.. वो समझ जाता है, कौवा क्यूं कांव..कांव कर रहा है | वो अपने, पूर्व में हंस के कहने पर किये गये धर्म को खत्म नहीं करना चाहता..पर फिर भी नहीं शेर,शेर होता है जंगल का राजा | वो दहाड़ कर ब्राह्मण को कहता है..""हंस उड़ सरवर गये और अब काग भये प्रधान...थे तो विप्र थांरे घरे जाओ,,,,मैं कि नाइनी जिजमान |

अर्थात हंस जो अच्छी सोच वाले अच्छी मनोवृत्ति वाले थे उड़ के सरोवर यानि तालाब को चले गये है और अब कौवा प्रधान पहरेदार है जो मुझे तुम्हें मारने के लिये उकसा रहा है..मेरी बुध्दी घूमें उससे पहले ही..हे ब्राह्मण, यहां से चले जाओ..शेर किसी का जजमान नहीं हुआ है..वो तो हंस था जिसने मुझ शेर से भी पुण्य करवा दिया | दूसरा ब्राह्मण सारी बात समझ जाता है और डर के मारे तुरंत प्राण बचाकर अपने घर की ओर भाग जाता है |

कहने का मतलब है हंस और कौवा कोई और नहीं ,,,हमारे ही चरित्र है |

कोई किसी का दु:ख देख दु:खी होता है और उसका भला सोचता है ,,,वो हंस है |

और जो किसी को दु:खी देखना चाहता है किसी का सुख जिसे सहन नहीं होता ...वो कौवा है..जो आपस में मिलजुल, भाईचारे से रहना चाहते हैं , वे हंस प्रवृत्ति के हैं..जो झगड़े कर एक दूजे को मारने लूटने की प्रवृत्ति रखते हैं वे कौवे की प्रवृति के है...स्कूल या आफिसों में जो किसी साथी कर्मी की गलती पर अफ़सर को बढ़ा चढ़ा के बताते हैं, उस पर कार्यवाही को उकसाते हैं...वे कौवे जैसे है..और जो किसी साथी कर्मी की गलती पर भी अफ़सर को बडा मन रख माफ करने को कहते हैं ,वे हंस प्रवृत्ति के है..।

अपने आस पास छुपे बैठे कौवौं को पहचानों, उनसे दूर रहो ...और जो हंस प्रवृत्ति के हैं , उनका साथ करो.. इसी में सब का कल्याण छुपा है |



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