सुजान सिंह शेखावत
सतीश शर्मा
7 मार्च 1679 एक बीस बाइस वर्ष के लड़के की बारात जा रही थी, तभी कुछ चरवाहे उनके पास आते है और बताते है कि औरंगजेब की सेना खंडोला के मंदिरों को तोड़ने आ गई है और 100 गायों को हलाल करेगी उनके पास बड़े तोपखाने और हाथियों का दल है, हजारों की सेना है,ये सुनते ही सुजान सिंह शेखावत बोले जिस धरती पर राजपूतों का निवास हो वहां ऐसा कृत्य? उन्होंने फिर अपने बारात में आए पुरुषो को ललकारा कि कौन कौन जायेगा मंदिर की रक्षा को ललकारने मात्र की देर थी 70 से अधिक क्षत्रिय योद्धा सामने आ गए,पर एक पल ध्यान उनका उस नव विवाहित कन्या पर गया जिसका उन्होंने मुख भी अभी तक नही देखा था, उस पर क्या गुजरेगी। तब डोली से एक हाथ निकलता है जिसने सुजान सिंह को अनुमति दे दी, उस क्षत्रानी को प्रणाम कर वे फिर खंडोला निकल गए
खंडोला पहुंचकर वे कृष्ण के मंदिर में जाकर रुक गए, जिसे मुगल सबसे पहले तोड़ने वाले थे, इस बीच कुछ और शेखावत राजपूत उस युद्ध मे शामिल हो गए जिससे उनकी संख्या 300 हो गई कुछ ही समय में मुगल सेनापति सेना सहित खंडोला पहुंच गया, मंदिर के समक्ष नौजवान युवक को देख सेनापति हैरान हो जाता है क्योंकि उनके गुप्तचरों के अनुसार मंदिर परिसर रिक्त होना चाहिए था। खैर हजारों की सेना के होने का आत्मविश्वास उसके सर पर चढ़ा हुआ था अतः उसने उन राजपूतों को मारकर मंदिर तोड़ने का निर्देश दे दिया । हालांकि सेनापति पीछे ही रहा, ये मुगलों की शुरू से छिपे रहने की रणनीति होती थी ताकि युद्ध कितना भी भयंकर हो बिना नेतृत्व के लड़ने की नौबत न आए । बारात से आने के कारण उनके पास कुछ खास हथियार भी नही थे, तोप और बारूदो के सामने तलवार और भालो से युद्ध करते उस मनमोहक दृश्य को भला कौन गंवाना चाहता था । सुजान सिंह की पत्नी जिसे ससुराल भेज दिया गया था, उसने कहा बिना पति के साथ वो ससुराल नही जायेगी और खंडोला की ओर वो भी बढ़ गई । इस भीषण लड़ाई में अचानक एक आवाज आती है कि मुगल सेनापति मारा गया, सुजान सिंह ने उस सेनापति को ढूंढ लिया था और उसके रक्षा घेरा को तोड़ यमलोक पहुंचा दिया था । उनकी शायद शुरू से यहीं रणनीति थी कि अगर इतनी बड़ी सेना को हराना है तो उसके सेनापति को मारना होगा । लेकिन इसके बाद मुगलों का गुच्छा उन पर टूट पड़ता है जिसमे एक तलवार ने सुजान सिंह के सर को धड़ से अलग कर दिया । पर इसके बाद भी सुजान सिंह की तलवार नही रुक रही थी, वो मुगलों को काटे जा रही थी, मुगलों में डर का माहौल भर गया और सब इधर उधर भागने लग गए, मंदिर के पुजारी ने उन्हे स्वयं द्वारकाधीश का रूप बताया जो मंदिर की रक्षा हेतु आज उन पर सवार थे।
मुगलों को भगाने के बाद घोड़े में बैठे सुजान सिंह ने मंदिर की परिक्रमा की उसके बाद उस रास्ते में चले गए जहां उन्होंने अपनी पत्नी को भेजा था। रास्ते में ही वो वीर क्षत्राणि मिल गई जिससे मिलने के उपरांत धड़ फिर रुक गया, वीरांगना ने ये कहते हुए कि आपने मेरे कुल और धर्म की लाज रख ली, मैं धन्य हुई जो आप मेरे स्वामी हुए, इसके उपरांत पति के वियोग में उस वीरांगना ने भी अग्निस्नान कर लिया।
इसके बाद वे गुर्जर और अहीर चरवाहों ने मुगलों की छावनी में रात को हमला कर दिया और उन 100 गायों को मुक्त कर दिया जिसे हलाल किया जाने वाला था।
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