रुद्राक्ष
किस धारणा से कौन सा रूद्राक्ष धारण करना चाहिए। रूद्राक्ष कैसे धारण करें।
एकमुखी रूद्राक्ष ('एक वक्त्र: शिव: साक्षाद्र ब्रहमहत्या त्योपहति`) एक मुखी रूद्राक्ष को साक्षात् भगवान शिव माना गया है। इस में स्वयं शिव ही विराजते हैं।
द्विमुखी रूद्राक्ष (गृह सुख शान्तिदाता) यह मुक्ति एवं सांसारिक ऐश्वर्य का दाता है तथा अर्द्धनारीश्वर स्वरूप है यह स्त्रियों के लिए विशेषकर लाभदायक है।
त्रिमुखी रूद्राक्ष (बुखार से छुटकारा) इसके धारक से अग्निदेव प्रसन्न होते है। जिस व्यक्ति को बार-बार बुखार आता है उसके लिए विशेष गुणकारी है।
चर्तुमुखी रूद्राक्ष (ज्ञान-वाकपटुता) यह साक्षात् ब्रहमा जी का स्वरूप् है। जिस बालक की बुद्धि कमजोर हो, बोलने में अटकता हो उसके लिए अति उत्तम है।
पंचमुखी रूद्राक्ष (दिल की बीमारी के लिए) इसको धारण करने से भगवान शिव प्रसन्न होते हैं यह प्रचण्ड कालाग्नि रूद्र है। इसके धारक को किसी प्रकार का दुख नहीं सताता, इसके कम से कम तीन दाने धारण करने चाहिए।
छ: मुखी रूद्राक्ष (विद्या प्राप्ति के लिए) यह रूदाक्ष स्वामी कार्तिकेय के समान है। यह विद्या प्राप्ति में तथा ब्रहम हत्यादि के दोष दूर करने में सहायक है।
सप्तमुखी रूद्राक्ष (धन प्राप्ति के लिए) इस रूद्राक्ष के देवता सात माताएं, सूर्य और सप्तऋषि हैं। इसके धारक पर लक्ष्मी जी प्रसन्न होती हैं।
अष्टमुखी रूद्राक्ष (आयु वृद्धि के लिए) यह रूद्राक्ष गणेश जी का स्वरूप है वटुक भैरव का स्वरूप माना जाता है। यह आयु बढ़ाने वाला है।
नवमुखी रूद्राक्ष (नवदुर्गा रूप) यह रूद्राक्ष भगवती दुर्गा का स्वरूप माना जाता है। किसी मत के अनुसार इसे धर्मराज का स्वरूप माना गया है।
दशमुखी रूद्राक्ष (ग्रह शन्ति के लिए) इस रूद्राक्ष के प्रधान भगवान जनार्दन एवं दसों दिगपाल कहे गये हैं। इसके धारक के सर्व कार्य सिद्ध होते है।
एकादशमुखी रूद्राक्ष (पुत्र प्राप्ति के लिए) स्त्रियों के लिए यह रूद्राक्ष सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। पति की सुरक्षा उसकी दीर्धायु एवं उन्नति तथा सौभाग्य प्राप्ति में यह रूद्राक्ष उपयोगी है।
द्वादशमुखी रूद्राक्ष (विष्णु स्वरूप) यह रूद्राक्ष भगवान विष्णु स्वरूप सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। इसके देवता बारह सूर्य है। इसको धारण करने से सभी रोग दूर हो जाते हैं तथा लोक परलोक में सुख की प्राप्ति होती है।
तेरहमुखी रूद्राक्ष (मनोकामना सिद्धि) यह रूद्राक्ष हर प्रकार की मनोकामना सिद्ध करने वाला है। इसके धारण से यश, मान, एवं धन की प्राप्ति होती है।
चौदहमुखी रूद्राक्ष (सर्व सुखकारी) यह रूद्राक्ष स्वयं भगवान शिव के नेत्र से प्रकट हुआ है ऐसा कई ग्रन्थों में लिखा है। इसे पूज्य हनुमान जी का स्वरूप माना गया है यह सौभाग्य से ही प्राप्त होता है।
गौरी-शंकर रूद्राक्ष (शिव शक्ति मिश्रित रूप) यह रूद्राक्ष कुदरती दो जुडे हुए रूद्राक्ष होते हैं इसलिए इस रूद्राक्ष को शिव तथा शक्ति का मिश्रित रूप माना गया है जो व्यक्ति एकमुखी प्राप्त करने में असमर्थ हो उनके लिए यह रूद्राक्ष अति उत्तम है। घर में, पूजा घर में, तिजोरी में मंगलकामना की सिद्धि के लिए इसे रखना आवश्यक है।
नोट : प्रत्येक रूद्राक्ष को सदैव सोमवार के दिन प्रात:काल शिव मन्दिर में बैठकर गंगाजल या कच्चे दूध में धो कर धारण करें। रूदाक्ष को लाल धागे में अथवा सोने या चांदी के तार में पिरो कर धारण किया जा सकता है।
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