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वर्ष-25 अंक - 11 मार्च - 2025 , पृष्ठ 47 www.sumansangam.com
अपनों से अपनी बात
भाषा हर पहलू में राज्य के विकास में भूमिका निभाती है। भाषा राज्य के निर्माण में, राज्य के शासन में और राज्य की भावना के निर्माण में भूमिका निभाती है। अर्थात्, भाषा का उपयोग राज्य बनाने के साधन के रूप में किया जाता है और इसे विभिन्न तरीकों से लागू किया जाता है । भाषा, राष्ट्र की सांस्कृतिक एकता और पहचान बनाए रखने का ज़रिया है,भाषा, विचारों और भावनाओं को व्यक्त करने का सबसे विश्वसनीय माध्यम है,भाषा के बिना मनुष्य अपने इतिहास और परंपरा से कट जाता है,भाषा, समाज का निर्माण करने में मदद करती है,भाषा, संस्कृति की संवाहक होती है,भाषा, दैनिक जीवन का आधार है,भाषा के ज़रिए ही हम एक दूसरे से जुड़ते हैं | भारत में 19,500 से ज़्यादा भाषाएं या बोलियां मातृभाषा के रूप में बोली जाती हैं भारत में 121 भाषाएं ऐसी हैं जिन्हें 10,000 या ज़्यादा लोग बोलते हैं | भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में भारत की भाषाओं से जुड़ी जानकारी दी गई है | भाषाओं व बोलियों की संख्या और विविधता की दृष्टि से भारत जैसा समृद्ध देश विश्वभर में नहीं है।राष्ट्र की सांस्कृतिक एकता और राष्ट्र की पहचान बनाये रखने के लिए एक राजभाषा अनिवार्य है। हिंदी भारत की सामासिक संस्कृति के सभी तत्वों की अभिव्यक्ति का माध्यम है, राष्ट्र की वाणी है, पहचान है और समस्त राष्ट्र को एक सूत्र में अनुस्यूत करने वाली भाषा है । वर्ष 1947 में अर्जित स्वतंत्रता और उसके उपरांत 1950 में अंगीकृत संविधान के अंतर्गत भाषायी निर्णयों के परिणामस्वरूप भाषायी संघर्ष जिस गति से बढ़ा है, वह चिंतनीय है। भारत की राजभाषा के रूप में स्वीकृत हिंदी का विरोध केवल दक्षिण भारत में ही नहीं, अन्य राज्यों में भी बढ़ रहा है। पंजाब में पंजाबी भाषा के क्षेत्रीय अधिकार के नाम पर हिंदी के विरोध के आलोक में देवनागरी लिपि और संस्कृत का पूर्ण बहिष्कार भाषायी सेक्युलरिज्म का वीभत्स रूप है और यह विरोध हिंदी संस्कृत व देवनागरी से आगे हिंदू विरोध के रूप में भी परिलक्षित हो रहा है। इसी प्रकार, तमिल भाषा के नाम पर हिंदी व उत्तर भारत के विरोध के साथ अब सनातन का विरोध तमिलनाडु की राजनीति में स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहा है। मातृभाषा का सम्मान होना ही चाहिए और भारत की राजभाषा हिंदी अथवा संस्कृत किसी मातृभाषा का विरोध नहीं करतीं बल्कि मातृभाषाओं को समृद्ध करती है। मातृभाषा के नाम पर भाषायी अल्पसंख्यकवाद भारत की अखंडता को प्रभावित न करे, इसका प्रयास कर हमें भारत की सभी मातृभाषाओं का संरक्षण और संवर्धन करना चाहिए। मातृभाषा के संरक्षण के लिए जन अभियान जरूरी है, जिसमें सभी का योगदान चाहिए।भाषा की राजनीति करने वाले लोग भाषाई मतभेद उत्पन्न कर उसका राजनीतिक लाभ उठाते हैं। सामान्यतः भाषा की राजनीति राजनेताओं द्वारा की जाती है। जिसमें कई नेता चाहे वे किसी अन्य भाषा में आम तौर पर बात करते हों, लेकिन जनता के सामने उनकी भाषा में बात करते हैं, जिससे जनता को विश्वास हो कि वह नेता उन्हीं का है।
छत्रपति संभाजी महाराज की मृत्यु का बदला
सतीश शर्मा
औरंगज़ेब ने छत्रपति संभाजी महाराज के सामने कई माँगें रखीं और कहा कि अगर उन्होंने बात मान ली तो उनकी जान बख्श दी जाएगी। संभाजी महाराज से उनका सारे किलों को मुगलों को देने को कहा गया। उनसे कहा गया कि वे उन सभी मुगलों के नाम बताएँ, जो मराठा से मिले हुए हैं। साथ ही वे मराठा के छिपे हुए खजाने का पता बताएँ, ऐसी भी शर्त रखी गई। उन्हें इस्लाम कबूल करने को भी मजबूर किया गया। छत्रपति शिवाजी महाराज की तरह ही हौंसले अपनाते हुए संभाजी महाराज ने ये सब मानने से इनकार कर दिया। छत्रपति शिवाजी तो औरंगज़ेब की क़ैद से भाग कर मराठा साम्राज्य की स्थापना कर ‘छत्रपति’ के रूप में पदस्थापित होने में कामयाब रहे थे, लेकिन दुर्भाग्य से संभाजी महाराज को एक भयानक मौत मिली।
11 मार्च 1689 को औरंगजेब ने छत्रपती संभाजी महाराज की बड़ी क्रूरता के साथ हत्या कर दी। छत्रपति संभाजी की हत्या के बाद औरंगजेब के सेनापति जुल्फिकार खान ने रायगढ़ पर कब्जा कर छत्रपति संभाजी की पत्नी येसु बाई और उनके पुत्र को भी कैद कर लिया जिसके बाद छत्रपति संभाजी महाराज के छोटे भाई राजाराम जी महाराज छत्रपति के पद पर विभूषित हुए।
छत्रपति संभाजी महाराज को औरंगजेब ने 40 दिनों तक भयंकर यातनाएं देकर मारा था। इस हाहाकारी मृत्यु ने मराठों के सीनों में आग लगा दी। उनके सारे मतभेद खत्म हो गए और सिर्फ एक ही लक्ष्य रह गया राक्षस औरंगजेब का सर्वनाश।संगमेश्वर के किले में जब शूरवीर छत्रपति संभाजी अपने 200 साथियों के साथ औरंगजेब के सिपहसालार मुकर्रम खान के 10 हजार मुगल सिपाहियों के साथ
जंग लड़ रहे थे, उस वक्त छत्रपति संभाजी के साथ एक और बहादुर योद्धा अपनी जान की बाजी लगा रहा था जिसका नाम था माल्होजी घोरपड़े। छत्रपति संभाजी के साथ लड़ते हुए माल्होजी घोरपड़े भी वीरगति को प्राप्त हो गए और माल्होजी घोरपड़े के पुत्र संताजी घोरपड़े ने ही अपने युद्ध अभियानों से औरंगजेब की नाक काट डाली और औरंगजेब को इतिहास में भगोड़ा भी साबित कर दिया। जिस किसी ने भी संताजी का सामना किया, उन्हें या तो मार दिया गया या घायल कर दिया गया या बंदी बना लिया गया, या यदि कोई भाग निकला तो अपनी सेना और जान माल की हानि के साथ केवल अपनी जान बचा पाने में सफल हो पाया।
मुगल इतिहास कारो ने लिखा है संताजी घोरपड़े जहां भी गया, किसी भी शाही अमीर में इतनी हिम्मत व साहस नहीं हुआ कि इसका मुकाबला कर सकें। किसी के करते कुछ न हो सका। मुगल सेना उसकी शक्ति व प्रतिष्ठा को अकेले इसने जितनी क्षति पहुंचाई है, शायद किसी भारतीय शक्ति ने कभी पहुंचाई हो। स्थिति यह है कि मुगल खेमे का बड़े से बड़ा साहसी सूरमा दक्कन की जमीन पर भय व खौफ के साए में जी रहा है !
संताजी घोरपड़े के साथ एक और वीर मराठा ने दिया जिसका नाम था धना जी जाधव। धनाजी शंभूसिंह जाधव (1650-1708), जिन्हें धनाजी जाधव के नाम से जाना जाता है, मराठा साम्राज्य के एक योद्धा थे। संताजी घोरपड़े के साथ उन्होंने 1689 से 1696 तक मुगल सेना के खिलाफ भयानक अभियान चलाए। संताजी के बाद, धनाजी 1696 में मराठा सेना के प्रमुख बने और 1708 में अपनी मृत्यु तक इस पद पर बने रहे। औरंगजेब को यकीन था कि छत्रपति संभाजी की हत्या के बाद मराठों का मनोबल टूट जाएगा लेकिन वो उस वक्त हैरान हो गया जब तुलापुर में अचानक संताजी और धनाजी ने हमला कर दिया। औरंगजेब लाखों की सेना के साथ महाराष्ट्र के तुलापुर नाम की जगह पर अपना डेरा डाले बैठा हुआ था।
यह वही जगह थी जहां पर औरंगजेब ने छत्रपति संभाजी महाराज की क्रूरता से हत्या की थी। गुरिल्ला युद्ध में पारंगत संताजी 2000 मराठा सैनिकों के साथ औरंगजेब की सेना पर खूंखार शेर की तरह टूट पड़े। संताजी ने अपने साथियों के साथ गाजर मूली की तरह मुगलों को काटना शुरू कर दिया।इस युद्ध का वर्णन करते हुए मुगलिया इतिहासकार काफी खान लिखता है कि तुलापुर की जंग के बाद संताजी की दहशत मुगलिया सैनिकों के दिलों में घर कर गई थी। संताजी के सामने पड़ने वाला मुगलिया सैनिक या तो मार दिया जाता या कैद हो जाता। आखिर में हालत ये हो गए कि संताजी का नाम सुनते ही मुगल सेना में भगदड़ मच जाती थी।
तुलापुर में संताजी के मराठों के अचानक हमले से मुगल जोर-जोर से चिल्लाने लगे हुजूर मराठे आ गए। एक तरफ पूरी मुगल सेना औरंगजेब की जान बचाने की कोशिश में लगी हुई थी तो दूसरी तरफ मराठे मुगलियों लाशों के ढेर लगा रहे थे।मराठे मुगल छावनी के अंदर घुस गए। इतना कत्लेआम हुआ कि औरंगजेब अपनी जान बचाकर भागा। औरंगजेब की जान बच गई लेकिन पूरे मुगल साम्राज्य की
नाक कट गई और औरंगजेब पर भगोड़े का ठप्पा लग गया। मराठे औरंगजेब के कैंप के ऊपर लगे दो सोने के कलश काटकर सिंहगढ़ किले को लौट आए।
अगले दिन जब सुबह हुई तो औरंगजेब मुगलों की मौत का मंजर देखकर हैरान रह गया और कहने लगा या अल्लाह किस मिट्टी के बने हैं ये मराठे यह ना थकते हैं ना झुकते हैं ना पीछे हटते हैं इन्हें मिटाते मिटाते कहीं हम ना मिट जाएं औरंगजेब इस दुख भरे हादसे से पूरी उम्र बाहर ही नहीं आ पाया था।इस घटना के दो दिन बाद ही संता जी ने रायगढ़ किले पर हमला बोल दिया। छत्रपति संभाजी की पत्नी येसुबाई को कैद करने वाले मुगल सरदार जुल्फिकार खान ने यहां पहले ही घेरा बनाया हुआ था।
मराठों ने जुल्फिकार खान की सेना को काटकर रायगढ़ किले पर भी कत्लेआम मचा दिया और मुगलों का बेश कीमती खजाना घोड़े और पांच हाथी अपने साथ पकड़कर पन्हाला लेकर आए। इस तरह कई गोरिल्ला युद्धों ने मुगल सेना का मनोबल तोड़ कर रख दिया।मराठों को जब भी मौके मिलता वो मुगल सेना को चीर के रख देते। अब बारी मुकर्रम खान की थी। जिसने छत्रपति संभाजी महाराज को छल और धोखे से कैद किया था उस। 50 हजार रुपए ईनाम देते हुए, मुकर्रम खान को औरंगजेब ने महाराष्ट्र के कोल्हापुर और कोकण प्रांत का सूबेदार नियुक्त किया था। मराठों ने यह प्रण लिया था कि चाहे कुछ भी हो जाए पर उस मुकर्रम खान को जिंदा नहीं छोड़ना है और दिसंबर सन 1689 को मराठों ने मुकर्रम खान की विशाल सेना को घेरकर मुगलों को भिंडी की तरह तोड़ना शुरू कर दिया।
इस घनघोर युद्ध में अब संताजी घोरपड़े ने मुकर्रम खान को दौड़ा दौड़ा कर मारा। खून से लथपथ पड़े मुकर्रम खान की ये दुर्दशा देखकर मुगल सेना उसे जंगलों में लेकर भाग गई पर मराठों के दिए घावों ने जंगल में तड़पा तड़पा कर मुकर्रम खान की जान ले ली। मुकर्रम खान को मारकर मराठों ने छत्रपति संभाजी महाराज के मृत्यु का बदला लिया ।संताजी घोरपड़े के साहस और शौर्य पर खुश होकर सन 1691 को छत्रपति राजाराम महाराज ने उन्हें मराठा साम्राज्य का सरसेनापति घोषित किया। सर सेनापति बनते ही संताजी ने अपना पहला निशाना मुगल सल्तनत को बनाया और अपने साथ 15 से 20 हजार का मराठा लश्कर लेकर औरंगजेब की मुगल सल्तनत में भयंकर तबाही मचा दी। कृष्णा नदी पार कर्नाटक जैसे एक के बाद एक मुगल इलाकों में मराठा साम्राज्य के जीत का डंका बजाया।औरंगजेब मराठों के डर से सह्याद्री के पर्वतों में इधर से उधर भागता। लगातार 27 साल मराठों ने औरंगजेब को इतना घुमाया इतना दौड़ाया कि उसका जीना मुश्किल हो गया अंत में मराठों के हाथों हो रही लगातार मुगलों की पराजय के दुख में औरंगजेब तड़प तड़प कर महाराष्ट्र में ही मर गया।
सामाजिक समरसता के प्रतीक संत रविदासजी
विकास खितौलिया
भारत भूमि अवतारों, ऋषि-मुनियों व संत महात्माओं की धरा है। इस पावन भूमि पर बड़े-बड़े साधु-संत पैदा हुए हैं। उन्होंने अपने योग, तप, ज्ञान के बल पर लोगों को सच्चाई के रास्ते पर जीने की राह दिखाई। यदि धर्म कहीं है तो सिर्फ यहीं है। यदि संत कहीं हैं तो सिर्फ यहीं हैं। माना कि आजकल धर्म, अधर्म की राह पर चल पड़ा है। माना कि अब नकली संतों की भरमार है फिर भी यही की भूमि ही धर्म और संतो की है। इन्ही संत महात्माओं ने सामाजिक समरसता एवं वसुधैव कुटुम्बकम् का अहम संदेश भी दिया इसलिए भारत के प्रत्येक नागरिक ने जयतु भारतवर्ष, जयतु सनातन संस्कृति के भाव को अपने भीतर समेटे रखा है। इस भाव को ही तो सामाजिक समरसता कहा जाता है। जहां भारत देश में विदेशी आक्रांताओं द्वारा अनेकों आक्रमण हुए, अनेकों बार यहां की संस्कृति पर प्रहार हुआ और जिस कारण सभी समाजों में अनेकों कुरीतियों ने जन्म लिया। इन्ही कुरीतियों को अपनी वाणियों एवं संदेशों द्वारा समाप्त करने के लिए अनेकों ऋषि-मुनियों व संत महात्माओं ने भारत भूमि पर जन्म लिया। जब भी कभी मौलिक चितन पर कोई आंच आती है, समय इसका गवाह है कि समाज के भीतर से एक स्वर निकलता है, जो कभी भगवान बुद्ध के रूप में जन्म लेता है, तो कभी गुरु नानक, महावीर, कबीर, दयानंद सरस्वती, महर्षि वाल्मीकि, ज्योतिबा फुले, संत दुर्बलनाथजी महाराज, संत देवगिरीजी महाराज, साहू जी महाराज, महात्मा गांधी, संतु जी लाड, महर्षि व्याघ्र, कौमी मुसाफिर बाबा प्रभाती, डॉ. केशवराम हेडगेवार एवं डॉ. भीमराव रामजी अंबेडकर के रूप में होता है ये सभी इसी परंपरा का हिस्सा है। इसी श्रृंखला में रविदासजी हैं जिन्होंने सामाजिक समरसता के विचार का उद्घोष किया । वह एक उच्च कोटि के साधक और विनीत भगवत् भक्त भी थे। रविदासजी को पंजाब में रविदास कहा
तो उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश और राजस्थान में उन्हें रैदास के नाम से जाना गया। गुजरात और महाराष्ट्र के लोग 'रोहिदास' और बंगाल के लोग उन्हें 'उड़दास' कहते हैं। कई पुरानी पांडुलिपियों में उन्हें रायादास, रेदास, रेमदास और तैदास के नाम से भी जाना गया है। कहते हैं कि माध मास की पूर्णिमा को जब रविदासजी ने जन्म लिया वह रविवार का दिन था जिसके कारण इनका नाम रविदास रखा गया।
संत शिरोमणि कवि रविदास का जन्म माध पूर्णिमा को 1376 ईस्वी वाराणसी शहर के गोबर्धनपुर गांव में हुआ था। उनकी माता का नाम कमां देवी (कलसा) तथा पिता का नाम संतोख दास (रम्बु) था। उनके दादा का नाम कालूराम जी, दादी का नाम लखपती जी था। उनका जन्म ऐसे समय में हुआ जब उत्तर भारत के कुछ क्षेत्रों में मुगलों का शासन था चारों ओर अत्याचार, गरीबी, भ्रष्टाचार व अशिक्षा का बोलवाला था। उस समग मुस्लिम शासकों द्वारा प्रयास किया जाता था कि अधिकांश हिन्दुओं को मुस्लिम बनाया जाए। संत रविदासजी बचपन से हो भक्ति में लीन रहते थे। उनकी प्रतिभा को जानकर स्वामी रामानंदाचार्य ने उन्हें अपना शिष्य बनाया। स्वामी रामानंदाचार्य वैष्णव भक्तिधारा के महान संत थे। संत कबीर, संत पीपा, संत धन्ना और संत रविदास उनके शिष्य थे। संत रविदास तो संत कबीर के समकालीन और वह दोनों गुरुभाई माने जाते थे। स्वयं कबीरदास ने संतन में रविदास कहकर इन्हें मान्यता दी है। संत रविदास ने अपने दोहों व पदों के माध्यम से समाज में जातिगत भेदभाव को दूर कर सामाजिक एकता पर बल दिया और मानवतावादी मूल्यों की नींव रखी। इतना ही नहीं वे एक ऐसे समाज की कल्पना भी करते है जहां किसी भी प्रकार का लोभ, लालच, दुख, दरिद्रता, भेदभाव नहीं हो। रविदासजी ने सीधे-सीधे लिखा कि "रैदास जन्म के कारने होत न कोई नीच, नर कूं नीच कर डारि है, ओछे करम की नीच" यानी कोई भी व्यक्ति सिर्फ अपने कर्म से नीच होता है। जो व्यक्ति गलत काम करता है वो हीं नीच होता है। कोई भी व्यक्ति जन्म के हिसाब से कभी नीच नहीं होता। संत रविदास ने अपनी कविताओं के लिए जनसाधारण की ब्रजभाषा का प्रयोग किया है। साथ ही इसमें अवधी, राजस्थानी, खड़ी बोली और रेख्ता यानी उर्दू-फारसी के शब्दों का भी मिश्रण है। रविदासजी के लगभग चालीस पद सिख धर्म के पवित्र धर्मग्रंथ गुरुग्रंथ साहब में भी सम्मिलित किए गए है ।
संत रविदास की ख्याति लगातार बढ़ रही थी जिसके चलते उनके लाखों भक्त थे जिनमें हरेक जाति के लोग शामिल थे। यह सब देखकर एक परिद्ध मुस्लिम सदना पीर उनको मुसलमान बनाने आया था। उसने सोचा होगा कि यदि रविदास मुसलमान बन जाए तो उनके लाखों भक्त भी मुस्लिम हो जाएंगे। ऐसा सोचकर उन पर अनेकों प्रकार से दबाव बनाया, लेकिन संत रविदास तो संत थे उन्हें किसी हिन्दू या मुस्लिम से नहीं बल्कि मानवता से मतलब था। सदना पीर जो उन्हें मुसलमान बनाने के लिए आया कुछ समय बात वो स्वयं रविदासजी के साथ हो लिया और सनातन हिन्दू संस्कृति का हिस्सा बन गया जिसका नाम रविदासजी ने रामदास रखा। वहीं सिकंदर लोधी ने रविदासजी को काल कोठारी में डाल दिया लेकिन जब गलती का अहसास हुआ तो जेल से मुक्त कर खुद भी उनका शिष्य बन गया । अलवादी खान एवं बिजली खान भी इनके भक्त थे। वहीं अगर हिन्दू राजघराने की बात करें तो
चितौड़गढ़ की रानी कृष्णभक्त मीरा बाई, राजा बेन सिंह, महाराणा सांगा, महारानी झलाबाई ऐसे लगभग 52 राज बादशाह, महारानियों ने रविदासजी को अपना गुरु माना। वहीं चित्तौड़गढ़ में संत रविदास की छतरी बनी हुई है। उन्होंने वाराणसी में 1540 ईस्वी में अपना देह छोड़ दिया। वाराणसी में संत रविदास का भव्य प्रसिद्ध सिद्ध स्थान है, जो सिद्ध पीठ गुरुद्वारा, मंदिर और मठ है। जहां सभी जाति के लोग दर्शन करने के लिए आते हैं। वाराणसी में श्री गुरु रविदास पार्क है जो नगवा में उनके यादगार के रुप में बनाया गया है उसमे उनके नाम पर गुरु रविदास स्मारक और पार्क बना है।
रविदासजी को लेकर तमाम शोध पूर्व में भी हुए हैं लेकिन सरल भाषा में कहा जाए तो रविदास जी 'समता के प्रतीक' थे। इस वर्ष 12 फरवरी को रविदास जी की जयंती है, ये भारत के लिए गर्व की बात है कि दुनिया के लगभग 150 देशों में रविदास जी की जयंती को मनाया जाता है। वहीं दो दिन पूर्व ही 10 फरवरी को दिल्ली के उप राज्यपाल ने रविदास जयंती (12 फरवरी) पर प्रतिबंधित अवकाश घोषित किया है । कई देशों की संसद में भी जयंती को धूमधाम से बनाया जाता है । आखिर रविदास जी की वाणी में ऐसा क्या था, जिसे पूरा विश्व मानता है, रविदासजी की वाणी के कई पक्ष है जिन पर ज्यादा चर्चा नहीं हुई है उनको जाति व्यवस्था के आलोचक के रूप में ही लोग जानते हैं लेकिन रविदासजी का व्यक्तित्व अपने में बहुत विशाल है और उसके बहुत से पक्ष भी हैं। रविदासजी का जन्म समाज में निचली मानी जाने वाले चमार जाति में हुआ, उनका एक प्रसिद्ध दोहा था "मन चंगा तो कटौती में गंगा" । अर्थात मन शुद्ध होना चाहिए, कमंडल में जल भी गंगा समान है । बहरहाल रविदासजी ने समाज जीवन को समग्रता के साथ देखा जिस समग्रता की बात बाबा साहब अंबेडकर, डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार आदि ने की थी। जिसमें समाज में समता जातीय भेद का उन्मूलन, सबको शिक्षा, स्वस्थ्य एवं खाद्य की गारंटी । ये सभी मूल चीजों की पहुंच अंतिम व्यक्ति तक हो । इसलिए रविदास जी का महत्व दिनों दिन बढ़ता जा रहा है दुनिया इनको स्मरण कर रही है आज इनकी जयंती पर हम सब इनको स्मरण करते हैं । इस आधार पर देखा जाए तो रविदासजी दुनिया के पहले समाजवादी भी थे।
( संपादनकर्ता विकास खितौलिया (लेखक एवं विचारक) )
ख़ुद से मुलाक़ात
नोरिन शर्मा
आज शीतल और वरुण की पच्चीसवीं शादी की सालगिरह है। वरुण ने न तो कभी जन्मदिन मनाया और न ही कभी शादी की सालगिरह...! अंग्रेज़ों के चोंचले कहकर उस दिन ऑफिस को निकल जाता। शीतल की कॉलेज की चंडाल चौकड़ी में से तीन सहेलियों की इसी वर्ष सिल्वर जुबिली है। फेसबुक, इंस्टाग्राम उनके समारोह के चित्रों से जगमगा रहे थे। बेटे और बेटी का कहना था ; मम्मा ये तो मन की बात है, अगर कुछ करना अच्छा लगे तो कर लो। आपको कहीं बाहर घूमने जाना है तो हम गूगल करके पूरा प्रोग्राम बना देंगे। शीतल अकेली कहां जाएगी..क्या बच्चे नहीं जानते कि पापा की नज़रों में ये सब बेकार के खर्चे हैं; ज़्यादा ही मन है तो खीर बना लो, बाहर से कुछ मीठा मंगवा लो..!
शीतल इतनी बार ये डायलॉग सुन चुकी थी कि अब वो समझ गई थी,वरुण को ये दिखावा लगता है।कॉलेज की चंडाल चौकड़ी में से तीन सखियां तो देश में ही हैं लेकिन सुपर्णा का फ़ोन आया कि वो दिल्ली आ रही है;हम चारों के लिए गोवा घूमने का प्लान बनाया है।
आज शाम की फ्लाइट है और अभी तक शीतल ने न तो इसका ज़िक्र बच्चों से किया और न ही वरुण को बताया..! आज तो हमारी पच्चीसवीं सालगिरह है। मेरी चंडाल चौकड़ी जानती थी कि वरुण ने कभी विवाह की वर्षगांठ या जन्मदिवस नहीं मनाया, अंग्रेज़ों के चोंचले बोलते हैं। इन तीनों को कैसे समझाऊं कि आज नहीं कल की बुकिंग होती तो...
मन का ख़ाली कोना चीत्कार कर उठा, क्या हो जाता कल आज या परसों...तुम जाना चाहती हो या यूं ही उदास बैठकर पूरी शाम गुज़ारनी है। रोहन का दोस्त मिलने आया और दोनों मोटरसाइकिल लेकर निकल पड़े,' मम्मा शाम तक आ जाऊंगा, बाय..!'
बेटी भी डी एल एफ जा रही हूं शिखा के साथ;मैं किसको कहूं, क्या वरुण को फ़ोन पर पूछ लूं ; शायद बोलें, जो करना है करो..! एक बार फिर सुपर्णा को फ़ोन मिलाया ; "सुन तुम लोग आज निकल जाओ, शाम को वरुण से बात करके मैं कल की फ्लाइट से आ जाऊंगी।" दूसरी तरफ़ से ज़ोरदार गालियां पड़ीं और शीतल मुस्कुराने लगी..! 'इतने हक़ से किसी ने मुझे गाली देकर नहीं बुलाया..!तेरा ये तरीक़ा पसंद आया, चल मिलते हैं एयरपोर्ट पर..!'
अभी तक की ना नुकुर गायब हो चुकी थी। फटाफट एक छोटे सूटकेस में कपड़े पैक कर एक पत्र वरुण की साइड टेबल पर छोड़ा और चाबी सामने वाली मिसेज़ शर्मा को देकर बोली, बच्चे आएं तो उन्हें दे दीजिएगा।
टैक्सी में बैठे बैठे ही दोनों बच्चों को चाबी का मैसेज किया और आँखें मूंदकर बैठ गई। मुझे भी हक़ है खुश होने का, कुछ मन का सा करने का..!!! ज़िम्मेदारियों ने शीतल को कभी अपने बारे में सोचने का मौका ही नहीं दिया..! वरुण को अच्छा नहीं लगेगा, वरुण नाराज़ हो जाएंगे,बच्चे क्या सोचेंगे..? इन्हीं सवालों से घिरी शीतल कभी अपने बारे में सोचने तक की भी हिम्मत नहीं जुटा पाई। आज अचानक भीतर ऐसा क्या हुलसा, ऐसा क्या हुआ जो सैंतालीस वर्षीया शीतल सखियों संग गोवा घूमने के लिए राज़ी हो गई।
एयरपोर्ट पर इन चारों की मस्ती भरी हँसी,गुदगुदाती ठिठोली देखकर कुछ यात्री मुस्कुरा रहे थे..!!!
* * *
पाँच बजे चारों अपने पंख फैलाकर उड़ चलीं; एक लंबे अंतराल बाद चारों इस तरह मिल रहीं थीं। बातों का सिलसिला रुकने का नाम ही नहीं ले रहा था। विदेश में बैठे बैठे ही सुपर्णा ने दो कमरे,रसोई,डाइनिंग एरिया, बड़ा सा ड्रॉइंग रूम और बहुत खूबसूरत स्विमिंग पूल बुक करा दिया था..!
कौन सी कसक है जो भीतर ही भीतर बह रही है... बाँध तोड़ सीमाओं को लांघ सिर्फ़ और सिर्फ़ अपने लिए कुछ पल जीने का उत्साह एक बार फिर ज़ोर मारने लगा।
मिसेज़ सबेस्टियन ने पूल के किनारे केक रखवा कर बाकी इंतज़ाम करवा दिए।एक कार किराए पर लेकर चारों ने बहुत मज़े किए;लगा ख़ुद से मुलाक़ात हो गई।
बेटी का फ़ोन आया था, "ऑल वेल मॉम,एंजॉय योरसेल्फ" मैंने क्या गलत किया..? इजाज़त नहीं ली या यहां आना ही गलत था..! वापिसी की उड़ान का समय था; शीतल का सिर दर्द बढ़ता जा रहा था..! सभी ने उसको अपने अपने तरीक़े से समझाने की कोशिश की..!
शीतल को खुश रहने के लिए क्या किसी की इजाज़त की ज़रूरत है या किसी से खुशियों की भीख मांगनी होगी। घर आते आते सात बज गए। शावर लेकर जब बाहर आई तो वरुण आ चुके थे।कंधे पर हाथ रख ' हाय वरुण! ' बोली। वरुण की आँखोँ में चमक देख शीतल मुस्कुरा उठी।”तुम्हारे हाथ की अदरक वाली चाय मिलेगी?” “हम्मम,ज़रूर,अभी लाई!”
बाहर बालकनी में गुलाबी ठंड की दस्तक दी; दो कप चाय लेकर वरुण के साथ बालकनी में जैसे
ही आई, फ़ोन घनघना उठा। जल्दी से कमरे में आई तो नादिया का फ़ोन था।उसकी बात बहुत अजीब लगी, “यार मैंने कब अगले मीट के लिए लद्दाख लिखा..! मैं तो ….”
“सुन पहले अपना फ़ोन और मैसेज चेक कर…!”
ये क्या चंडाल चौकड़ी ग्रुप पर सुपर्णा ने पूछा था जून में मेरी भतीजी की शादी तय हुई है; मैं इंडिया आऊंगी। सब अगला वैन्यू बताओ..!मेरी तरफ़ से सजेस्ट किया गया था - लद्दाख ….!
शीतल समझ गई ,वरुण ने ही जवाब लिखा था और मुस्कुराए बिना न रह सकी,बालकनी में बाहर आकर देखा तो वरुण की शैतानी वाली मुस्कान छिपी न रह सकी।
( कोलकाता इंटरनेशनल माइक्रो फ़िल्म फेस्टिवल 2025 में (19 जनवरी) " ओनुछबी जूरी अवार्ड" से पुरस्कृत कहानी।कंटेंट राइटिंग वर्ग के अंतर्गत }
दानवीर टोडरमल
दीवान टोडरमल जी जिन्होंने 78,000 मोहरें बिछाकर गुरुगोविंद सिंह जी के साहबजादों और माता गुजरी देवी जी के संस्कार के लिए 4 गज जगह खरीदी थी | क्रूर मुग़ल बादशाह ने मां गुजरी और बच्चों के संस्कार के लिए जमीन देने से मना कर दिया था। तब टोडरमल जी सामने आए उन्होंने राजा से संस्कार के लिए जमीन देने की मन्नतें कीं। राजा ने जमीन की कीमत मांगी थी सोने की मोहरों से जितनी जमीन नापी जा सके उतनी ले लो। जब मोहरें बिछानी शुरू कीं तब धूर्तता ओर कपट में संलीप्त मुगल बादशाह ने ज्यादा रकम ऐंठने के लिए आड़ी नही खड़ी मुद्रायें बिछाने को कहा !
उस समय टोडरमल ने अंतिम संस्कार के लिए खड़ी सोने की मोहरें बिछाकर संस्कार हो सके इतनी जमीन खरीदकर संस्कार करवाया !, गुरु महाराज टोडरमल से कहा कि टोडरमल आप मुझसे जो चाहे वह मांगलो तब टोडरमल ने कहा गुरु महाराज मैं आपके चरणों में विनती करता हूं कि मेरे कोई संतान न हो, गुरु महाराज ने कहा ऐसा क्यों मांगते हो टोडरमल बोला अगर संतान होगी तब वह अंहकार करेगी की हमारे वंशजों ने यह दान किया था मैं नहीं चाहता कि ये बात किसी को पता चले।
हमें अत्याचार करने वाले आक्रांताओं के इतिहास को मेकअप करके तो हमें रटाया जाता रहा। लेकिन हमारे देश व धर्म के लिए त्याग और बलिदान करने वाले महापुरुषों के इतिहास को गुमनामी में धकेल दिया गया। आज स्थिति ये है कि खुद दीवान टोडरमल जी की हवेली को देखने वाला कोई नहीं है |
डॉक्टर साहब एक बोतल चढ़ा दो....
डॉ ममता
मैंने अधिकतर मरीजों को देखा है कि ड्रिप लगाने से उन्हें पता नहीं कौनसी परमशांति का अनुभव होता है कि वो जल्दी ठीक हो जाते है। मेरा मानना है कि जब तक आप मुंह से खा पी सकते है तो बिना बात ड्रिप नहीं लगवानी चाहिए,मरीज की हालत देख अगर डॉक्टर खुद ड्रिप लगाने की सलाह दे ..तो बात अलग है। कई बार बिना डिग्री बने डॉक्टर बिना मरीज की कंडीशन जाने ड्रिप पर ड्रिप लगा देते है और लेने के देने पड़ जाते है। खैर इस बात को विस्तार से किसी और दिन लिखूंगी। अभी तो एक संस्कमण याद आ गया था।
बहुत साल पहले की बात है, जब मैं नई नई डॉक्टर राजस्थान की एक पीएचसी पर ज्वाइन की थी।
मुझे दिखाने एक बूढ़ी अम्मा आईं, जो कमजोरी की शिकायत कर रही थी। मैंने उनका चेकअप किया तो सब कुछ सामान्य ही लग रहा था—पल्स, बीपी, शुगर सब ठीक था, कोई इन्फेक्शन नहीं, और पानी की कमी भी नही थी। मैंने उनकी उम्र देखते हुए कमजोरी के लिए कैल्शियम, मल्टीविटामिन्स लिख दिए ,गर्मी का मौसम था तो मैंने ORS भी लिख दिए थे। मेडिसिन हमारी PHC पर ही मिल जाती थी।
लेकिन दो दिन बाद वही अम्मा फिर से आईं, इस बार तो वो ठीक से चल भी नही पा रही थी और बहुत ज्यादा कमजोरी की शिक़ायत कर रही थी। मैं हैरान थी क्योंकि उनकी रिपोर्ट्स अब भी सामान्य थी। तभी वहां के पुराने कंपाउंडर ने कहा, "मैडम, ये अम्मा बिना बॉटल लगवाए ठीक नहीं होगी।"
मुझे बिना किसी स्पष्ट कारण के मरीज को IV फ्ल्यूड देना सही नही लगता, लेकिन इस बार मैंने सोचा
कि "देखती हूं.. क्या होता है"। मैंने उन्हें ड्रिप लगवा दी, और जैसे ही एक चौथाई बोतल खत्म हुई, अम्मा के चेहरे पर चमक आ गई और उनकी कमजोरी गायब हो गई।
यह देखकर मैं सच में हैरान रह गई। मुझे एहसास हुआ कि कई बार मरीज की मानसिक स्थिति और विश्वास भी उसके इलाज में अहम भूमिका निभाते हैं। अम्मा को लगा कि ड्रिप से ही वो ठीक हो सकती थी और उनका यही विश्वास उन्हें ठीक कर गया।इसी तरह मरीज का अपने डॉक्टर पर अटूट विश्वास उन्हें मानसिक शांति और सकारात्मक दृष्टिकोण देता है जो उन्हें ठीक करने में बहुत सहायक होता है।
इस अनुभव ने मुझे सिखाया कि कई बार हमें मरीजों की भावनाओं और विश्वास को भी ध्यान में रखना पड़ता है, भले ही चिकित्सा दृष्टिकोण से उसकी आवश्यकता न हो।
आप में से कितने लोग अम्मा की तरह ड्रिप लगवा कर ही ठीक होते है।
रानी अवंती बाई लोधी
रानी अवंती बाई लोधी भारत के प्रथम स्वाधीनता संग्राम सन् 1857 में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली प्रथम महिला शहीद वीरांगना थी। वीरांगना रानी अवंती बाई लोधी का जन्म 16 अगस्त 1831 को ग्राम मनकेहणी जिला सिवनी मध्यप्रदेश में हुआ था। इनकी माता का नाम कृष्णा बाई व पिता का नाम राव जुझार सिंह था । इनके पिता जमींदार थे।
उपहार
राजीव पाण्डेय
राघव वेतन मिलते ही सीधे साड़ी की दूकान पर पहुॅंचा और मॉं के लिए एक साड़ी खरीद ली । ऐसा उसने पहली बार नहीं किया वरन् पिछले एक साल से वह हर माह तनख्वाह मिलने पर मॉं के लिए साड़ी खरीदता रहा था । मॉं की उम्र 65 के लगभग थी जो ह्रदय रोग से पीड़ित थी हर चार-पाॅंच महीने के अंतराल में उसे स्वास्थ्य लाभ हेतु हास्पिटल में भर्ती होना पड़ता था। इस बार उसकी हालत कुछ ज्यादा ही खराब थी आइ सी यू में भी रखना पड़ा था । डाक्टर की सलाह के अनुसार मरीज को दवा से ज्यादा खुश रखे जानें की आवश्यकता थी । माॅं को साड़ियों का शौक था यह बात राघव अच्छी तरह जानता था अतः वह साड़ियों के माध्यम से मॉं को खुश करने की योजना पर अमल कर रहा था । उसने बेड पर लेटी हुई मॉं की ओर साड़ी का डिब्बा बढ़ाते हुए कहा लो तुम्हारा उपहार । सावित्री नें साड़ी को सिरहाने रख अपनी ममतामई ऑंखों से निहारते हुए शिकायती लहजे में राघव से बोली अरे पगले तू क्यों मेरे लिए साड़ियॉं लाता है अब इस उम्र में मुझे कौन सा शादी-ब्याह में जाना है जो साड़ियॉं दिखाऊॅंगी तुझे उपहार देना ही है तो मेरे लिए सुंदर सी बहू ला जो मेरी सेवा कर सके ।
राघव के लिए कई रिश्ते आए किंतु उसे पसंद न आने के कारण बात कहीं बैठ न पाई। राघव पढ़ी-लिखी के साथ-साथ ऐसी लड़की चाहता था जो घर पर माता-पिता का भी ध्यान रख सके किन्तु अधिकांशतः ऐसे रिश्ते थे जिसमें लड़कियॉं आई टी सेक्टर में जाॅब में थीं, घरेलू कामकाज से कतई अछूती व मॉं बाप की सेवा का शब्द उनकी डिक्शनरी में कहीं न था । अतः राघव की पसंद के अनुसार रिश्ता कहीं तय न हो पाया था। सावित्री की बीमारी का एक कारक बेटे की शादी की चिंता
भी थी इसे राघव भी भली-भांति समझता था किन्तु वह ज़ल्दबाज़ी में बिना सोचे समझे किसी रिश्ते के लिए हाॅं करने के पक्ष में न था ।
आज सावित्री नें संदूक से भारी सी बनारसी साड़ी और ग्यारह सौ रुपए निकाल कर राघव को देते हुए कहा तू उदयपुर जा ही रहा है तो रजनी की शादी में जा कर हमारी तरफ से तौफा दे देना अब मैं तो बीमारी के कारण जा न पाऊॅंगी । राघव की पोस्टिंग मल्टीनेशनल कंपनी भोपाल में थी और काम के सिलसिले में उसे उदयपुर जाना था साथ ही उसे शादी में शामिल होने का मौका भी मिल रहा था । रजनी के पिता देव दत्त शर्मा जी रेल्वे में तकनीकि सहायक थे जो लगभग पॉंच वर्ष तक पड़ौसी रहे थे रजनी उनकी बड़ी लड़की थी जिसका राघव के घर में आना-जाना था । यहॉं तक कि राघव को अक्सर काम के सिलसिले में बाहर जाना होता तब उसकी अनुपस्थिति में वह उसकी मॉं की काफ़ी मदद कर दिया करती थी । मॉं का भी रजनी से स्नेहिल व्यवहार था । उसका शादी में जानें का बहुत मन था किन्तु बीमारी उन्हें हिलने न देती थी पिता जी भी वृद्धावस्था के शिकार थे । राघव दिन भर अपने कामों को निपटा सायं विवाह स्थल पर पहुॅंच गया किन्तु वहाॅं का नज़ारा देख वह अचंभित रह गया वहाॅं शादी की शहनाई व हॅंसी खुशी की जगह ग़म व अफरा-तफरी का माहौल था लग रहा था शायद कोई बड़ी गड़बड़ी हो गई थी, रजनी के चेहरे की हवाइयॉं उड़ी हुई थीं और उसके पिता रिश्तेदारों से घिरे किसी गंभीर मसले पर वार्तालाप करते दिखाई दे रहे थे । हलवाई की भटि्टयॉं ठंडी पड़ी थीं । मेहमान भी मुॅंह लटकाए इधर-उधर बैठे थे । मसला कुछ यूॅं था कि लड़के वालों से दहेज की तय रकम व समानो के अनुसार शर्मा जी ने सभी चीजों की पूर्ति कर दी थी किंतु उनकी कार व सोनें की चैन की अनावश्यक मॉंग नें बखेड़ा खड़ा कर दिया था। इस मॉंग को पूर्ण किया जाना शर्मा जी के वश में न था काफ़ी समझाइश व मिन्नतों के बाद भी लड़के वाले मानने को तैयार न थे, शर्मा जी ने लड़के के पिता के पैरों में अपना सिर रख गिड़गिड़ाते हुए अपनी इज्ज़त की भीख मॉंगी किंतु वह टस से मस न हुए। मुफ्त में कार प्राप्त करने का जुनून उनके सिर चढ़कर बोल रहा था। लड़की की मॉं गायत्री इस अप्रत्याशित मॉंग से आहत सदमे में थीं सभी औरतें दबी जुबान में बातें कर रहीं थीं कि, शादी में एक बार तेल चढ़नें की रस्म हो जाने के बाद लड़की की शादी न होना बहुत बड़ा अपशकुन माना जाता है, परिवार पर कलंक लगता है रजनी का तो रो-रो कर बुरा हाल था परिजनों के चेहरों पर उदासी छाई थी। सारी अनुनय-विनय व मर्यादा को दर किनार कर दहेज का दानव मुक्त कंठ से अट्टहास करते हुए सुरसा समान अपना मुॅंह फैलाए था, लालच के शोले उसकी आंखों से बरस रहे थे जो एक वैवाहिक जीवन रुपी कली को खिलने से पहले ही मुरझाने को मजबूर कर रहे थे। लड़के वाले तैयार न हुए और अंततः यह निर्णय किया गया कि ऐसे लालची लोगों के यहाॅं रिश्ता करनें से तो अच्छा है लड़की का कुॅंवारी ही रहना । राघव ये सब देख अत्यंत द्रवित हो रहा था और ऐसे लालची लोगों पर उसे बड़ा क्रोध भी आ रहा था । पर उसके वश में कुछ न था उससे शादी वाले घर की ऐसी हालत देखी न जा रही थी । वह सोच रहा था कि आज लड़की की शिक्षा, शालीनता, सुंदरता मृदुभाषिता का कुछ विलासिता की वस्तुओं के आगे कोई मोल नहीं है । उसने मन ही मन ठान लिया कि वह इस दुःख की घड़ी में परिवार
के साथ खड़ा रह कर अवश्य मदद करेगा। शादी निरस्त होंने पर मेहमान भारी मन से अपने प्रस्थान की तैयारी करने लगे तभी राघव नें लड़की के पिता जिन्हें कि वह चाचा जी कहकर पुकारता था को कुछ अलग से बुलाकर उनसे इस विषम परिस्थिति में रजनी से विवाह करने हेतु प्रस्ताव रखा जिसे सुनकर शर्मा जी अवाक रह गए उनके कलेजे में ठंडक आ गई राघव जैसा प्रतिष्ठित घराने का शिक्षित, होनहार व मोटी कमाई वाला लड़का वह भी इस विकट परिस्थिति में उनका दामाद बन सकता है ऐसा उन्होंने स्वप्न में भी नहीं सोचा था उन्हें लग रहा था मानों भगवान स्वयं मानव रूप में उनकी डूबती नैया को पार लगाने उपस्थित हो गये हों । उन्होंने तुरंत रिश्तेदारों के पास जाकर इस विषय पर मंत्रणा की और सभी ने राघव के प्रस्ताव पर मुहर लगा दी । राघव को शीघ्र ही नये वस्त्रादि धारण करवा कर दूल्हा बना दिया गया सभी के गमगीन दिलों में खुशियॉं बिजली की रफ्तार से दौड़ गयीं । संगीत की धुनें बजने लगीं जो हलवाई शांत बैठे थे सब हरकत में आ गए । पंडित मंत्रोच्चार करनें लगे और नियत मुहूर्त पर राघव ने रजनी के साथ वैवाहिक रस्में पूर्ण कर उसे अपनी अर्धांगिनी बना लिया। जो साड़ी माॅं ने भेजी थी उसी को पहना कर रजनी को विदा करा कर घर ले जा रहा था । भोपाल पहुॅंचते ही वह सपत्नीक सीधे सिटी हास्पिटल पहुॅंचा जहाॅं माॅं भर्ती थी । माॅं को देखते ही वह आल्हादित स्वर में बोला देख तेरे लिए क्या लाया हूॅं ॽ रजनी को बहू के रुप में देख पहले तो उसे कुछ समझ न आया किन्तु जैसे ही रजनी नें माॅं के पैर छुए उसे सब कुछ समझ आ गया और वह ख़ुशी से फूली न समाई, उसकी बीमारी तो जैसे काफूर हो गयी, आज बेटे नें उपहार में सुशीला बहू जो लाकर दी थी । ( राजीव पाण्डेय कार्या०अधी० ज.न.वि. पचपहाड़ (झालावाड़-राज०) )
लघुकथा कैसे लिखें - लघुकथा लिखने में एक आकर्षक कथा तैयार करने के साथ-साथ उसे संक्षिप्त रखने का संतुलन भी शामिल होता है। यह कथा लेखन की एक विशिष्ट विधा है जिसे करना बेहद संतोषजनक और चुनौतीपूर्ण हो सकता है। एक सफल लघुकथा अपने पाठकों को आकर्षित करती है, उन्हें अपेक्षाकृत कम शब्दों में एक संपूर्ण कथात्मक अनुभव प्रदान करती है।लघुकथा लिखने के लिए विशिष्ट कहानी कहने की तकनीकों में महारत हासिल करना आवश्यक है। लेखक को एक सेटिंग स्थापित करनी चाहिए, आकर्षक पात्रों का परिचय देना चाहिए, संघर्ष पैदा करना चाहिए, और कथा को एक संतोषजनक चरमोत्कर्ष और परिणाम तक ले जाना चाहिए। लघुकथाएँ लेखकों के लिए विभिन्न शैलियों और कथाओं के प्रकारों का पता लगाने के लिए एक उत्कृष्ट मंच हैं, जिससे उन्हें एक संक्षिप्त प्रारूप में अपनी रचनात्मकता और कहानी कहने की क्षमता दिखाने में मदद मिलती है।कथा लेखन के रोमांचक पहलुओं में से एक उपलब्ध शैलियों की विविधता है। आप अपनी लघुकथा के लिए जो शैली चुनते हैं, वह इसकी संरचना और विषय-वस्तु को महत्वपूर्ण रूप से आकार दे सकती है, हॉरर और फंतासी से लेकर रोमांस और रहस्य तक। अपने पाठकों की अपेक्षाओं को प्रभावी ढंग से संतुष्ट करने के लिए अपनी चुनी हुई शैली की परंपराओं को समझना आवश्यक है।
मेरे जिंदगी में अगर तुम ना होते
दिनेश दुबे (दुबे जी)
इस जिंदगी की बड़ी भीड़ में हम,
अब तक ना जाने कहां खो गए होते ,
शायद हम इस दुनियां में ही ना होते ,
मेरे जिंदगी में अगर तुम ना होते ।
मुश्किलों भरा ये डगर है जिंदगी का,
कांटों भरा ये सफर है जिंदगी का ,
हम तो कबके खुद हार गए होते ,
जिंदगी ने मेरे अगर तुम ना होते ।
तुम्हारे प्यार ने जीने का सहारा दिया ,
तुम्हारी तल्खियों ने आगे बढ़ने का बहाना दिया,
ना होती तुम्हारी चाहत तो हम कुछ ना कर पाते ,
मेरी जिंदगी में अगर तुम ना होते ।
तलाश लेती है जिंदगी हरदम एक सनम,
जिस से मिलती है जिंदगी को नया जनम,
तुम्हारे ना मिलने से सब कुछ खो देते,
मेरी जिंदगी में अगर तुम ना होते ।
वैश्वीकरण का नकारात्मक प्रभाव
रुचिका अग्रवाल
सामाजिक मूल्यों का ह्रास यह कहिए कि अब तो शर्म आती है कि हमारी अगली पीढ़ी कहाँ तक पतन के गर्त में गिरेगी। यहाँ तक की देश के युवाओं और युवतियों दोनों का ही सामाजिक मूल्यों का ह्रास इस कद्र हो गया है कि कई धार्मिक संस्थाओं को तो मंदिर में प्रवेश के लिए कपड़े स्पष्ट करने पड़े हैं कि यही कपड़े पहनकर आप मंदिर में प्रवेश कर सकते हैं।
यूनान-ओ-मिस्र-ओ-रूमा, सब मिट गए जहाँ से।
अब तक मगर है बाक़ी, नाम-ओ-निशाँ हमारा।।
कुछ बात है कि हस्ती, मिटती नहीं हमारी। सदियों रहा है दुश्मन, दौर-ए-ज़माँ हमारा।
यह और कुछ नहीं यह हमारे सामाजिक मूल्य ही थे जिन्होंने आज तक भारतीय वल्लरी को अक्षुण्ण रखा है।इतनी विभीषिकाओं को झेलते हुए भी हम शान से जीवित है लेकिन वैश्वीकरण जैसे हमारी एक-एक जड़ को तहस-नहस कर रहा है।
हमारे एक-एक मूल्य को मिट्टी में मिलाता जा रहा है चाहे खान-पान हो , चाहे रहन-सहन हो, चाहे वेशभूषा हो या पूजा पद्धतियों के तरीके, सब में गिरावट ही देखने को मिल रही है।
वैश्विकवाद का सबसे बड़ा प्रभाव पड़ा आज के टूटते हुए संयुक्त परिवारों पर, जो एकल परिवारों का रूप ले चुके हैं। हमारे संयुक्त परिवार हमारी पहचान थी सदियों से बोई हुई सामाजिक मूल्यों की कहानी थी जहांँ एक बच्चा अपने पिता उसका पिता उसके पिता और इस प्रकार सदियों से चली आई परंपरा पीढ़ियों तक धरोहर की तरह हस्तांतरित होती चली जाती थी।
आज एकल परिवार समाज की क्या छवि प्रस्तुत करते हैं एक शिशु की करुण आवाज में सुनिए
अंजन में मिलावट है कि
मंजन में मिलावट है
पले आया की गोदी में
की ममता में मिलावट है
और दूसरा पक्ष वृद्ध लोग उनका तो धीरे-धीरे घर का कोना लगता है वृद्ध आश्रम का कोना ही बनता जा रहा है क्योंकि आज का युवा वर्ग ,अपने माता-पिता के प्रति हो या अपने बच्चों के प्रति उन्हें लगता है यदि हमने पैसे खर्च कर दिए तो हमने अपने सारे कर्तव्यों को पूर्ण कर दिया है।
याद करिए अपनी माँ के द्वारा लोरी गाकर सुलाना, बच्चों से बच्चों की तोतली आवाज में बात करके उन्हें खाना खिलाना और उनके साथ हँसी ठिठोली करते हुए जैसे खुद उनके साथ बड़े होते जाना क्या यह आपने किसी घर के आंँगन में देखा है अरे साहब आजकल आँगन ही कहाँ है तो यह सामाजिक मूल्यों के ह्रास की चरम सीमा है।
बच्चे और माँ बाप तो छोड़िए आज स्थिति यहाँ तक पहुँच गई है कि यदि पति दिल्ली में काम कर रहा है तो हो सकता है उनकी मेम साहब कहीं देश से बाहर काम कर रही हो क्योंकि वैश्वीकरण ने हमारे अंदर बस एक भावना पैदा की है कि
बाप बड़ा न भैया सबसे बड़ा रुपैया।
दुष्यन्त की कुछ पंक्तियाँ वैश्वीकरण के द्वारा सामाजिक ह्रास को प्रकट करती हैं-
कैसे मंज़र सामने आने लगे हैं
गाते गाते लोग चिल्लाने लगे हैं
अब तो इस तालाब का पानी बदल दो
ये कँवल के फूल कुम्हलाने लगे हैं।
अत्याचार सहन करने का
कुफल यही होता है
पौरुष का आतंक मनुज
कोमल होकर खोता है।
क्षमा शोभती उस भुजंग को
जिसके पास गरल हो
उसको क्या जो दंतहीन
विषरहित, विनीत, सरल हो।
कई रिश्तों की गर्माहट भी साथ चली गई
सरिता शर्मा (विनी)
खुद ही पाँव अब थमने लगे
मन चाहे धमक जाओ मायके
इन बातों से हम अब बचने लगे है।
माँ का जाना, माँ का जाना नही केवल।
कई रिश्तों की गर्माहट भी साथ चली गई।
वो जो आना-जाना था बेधड़क मायके में
खुद ही पाँव अब थमने लगे हैं।
माँ नही वहाँ, भले ही पिता है, भाई है।
हैं तो भाभियाँ भी; पर अब कुछ बदल सी गई हैं वो।
शायद माँ के जाने का था उनको इंतज़ार।
माँ का जाना, माँ का ही जाना नही केवल।
कई रिश्तों की गर्माहट भी साथ चली गई।
मोटापा ओर कचोरी
एक दिन सुबहसुबह पत्नी ने मुझ से कहा, ‘‘आप ने अपने को शीशे में देखा है. गुप्ताजी को देखो, आप से 5 साल बड़े हैं पर कितने हैंडसम लगते हैं और लगता है जैसे आप से 5 साल छोटे हैं. जरा शरीर पर ध्यान दो. कचौरी खाते हो तो ऐसा लगता है कि बड़ी कचौरी छोटी कचौरी को खा रही है. पेट की गोलाई देख कर तो गेंद भी शरमा जाए.’’ मैं आश्चर्यचकित रह गया. यह क्या, मैं तो अपने को शाहरुख खान का अवतार समझता था. मैं ने शीशे में ध्यान से खुद को देखा, तो वाकई वे सही कह रही थीं. यह मुझे क्या हो गया है. ऐसा तो मैं कभी नहीं था. अब क्या किया जाए? सभी मिल कर बैठे तो बातें शुरू हुईं. बेटे ने कहा, ‘‘पापा, आप को बहुत तपस्या करनी पड़ेगी.’ फिर क्या था. बेटी भी आ गई, ‘‘हां पापा, मैं आप के लिए डाइटिंग चार्ट बना दूं. बस, आप तो वही करते जाओ जोजो मैं कहूं, फिर आप एकदम स्मार्ट लगने लगेंगे.’’ मैं क्या करता. स्मार्ट बनने की इच्छा के चलते मैं ने उन की सारी बातें मंजूर कर लीं पर फिर मुझे लगा कि डाइटिंग तो कल से शुरू करनी है तो आज क्यों न अंतिम बार आलू के परांठे खा लिए जाएं. मैं ने कहा कि थोड़ी सी टमाटर की चटनी भी बना लेते हैं. पत्नी ने इस प्रस्ताव को वैसे ही स्वीकार कर लिया जैसे कि फांसी पर चढ़ने वाले की अंतिम इच्छा को स्वीकार करते हैं. मैं ने भरपेट परांठे खाए. उठने ही वाला था कि बेटी पीछे पड़ गई, ‘‘पापा, एक तो और ले लो.’’ पत्नी ने भी दया भरी दृष्टि मेरी ओर दौड़ाई, ‘‘कोई बात नहीं, ले लो. फिर पता नहीं कब खाने को मिलें.’’आमतौर पर खाने के मामले में इतना अपमान हो तो मैं कदापि नहीं खा सकता था पर मैं परांठों के प्रति इमोशनल था कि बेचारे न जाने फिर कब खाने को मिलें.रात को सो गया. सुबह अलार्म बजा. मैं ने पत्नी को आवाज दी तो वे बोलीं, ‘‘घूमने मुझे नहीं, आप को जाना है.’’
मैं मरे मन से उठा. रात को प्रोग्राम बनाते समय सुबह 5 बजे उठना जितना आसान लग रहा था अब उतना ही मुश्किल लग रहा था. उठा ही नहीं जा रहा था.
जैसेतैसे उठ कर बाहर आ गया. ठंडीठंडी हवा चल रही थी. हालांकि आंखें मुश्किल से खुल रही थीं पर धीरेधीरे सब अच्छा लगने लगा. लगा कि वाकई न घूम कर कितनी बड़ी गलती कर रहा था. लौट कर मैं ने घर के सभी सदस्यों को लंबा- चौड़ा लैक्चर दे डाला. और तो और अगले कुछ दिनों तक मुझे जो भी मिला उसे मैं ने सुबह उठ कर घूमने के फायदे गिनाए. सभी लोग मेरी प्रशंसा करने लगे.
पर सब से खास परीक्षा की घड़ी मेरे सामने तब आई जब लंच में मेरे सामने थाली आई. मेरी थाली की शोभा दलिया बढ़ा रहा था जबकि बेटे की थाली में मसालेदार आलू के परांठे शोभा बढ़ा रहे थे. चूंकि वह सामने ही खाना खा रहा था इसलिए उस की महक रहरह कर मेरे मन को विचलित कर रही थी.मरता क्या न करता, चुपचाप मैं जैसेतैसे दलिए को अंदर निगलता रहा और वे सभी निर्विकार भाव से मेरे सामने आलू के परांठों का भक्षण कर रहे थे, पर आज उन्हें मेरी हालत पर तनिक भी दया नहीं आ रही थी.खाने के बाद जब मैं उठा तो मुझे लग ही नहीं रहा था कि मैं ने कुछ खाया है. क्या करूं, भविष्य में अपने शारीरिक सौंदर्य की कल्पना कर के मैं जैसेतैसे मन को बहलाता रहा.डाइटिंग करना भी एक बला है, यह मैं ने अब जाना था. शाम को जब चाय के साथ मैं ने नमकीन का डब्बा अपनी ओर खिसकाया तो पत्नी ने उसे वापस खींच लिया.‘‘नहीं, पापा, यह आप के लिए नहीं है,’’ यह कहते हुए बेटे ने उसे अपने कब्जे में ले लिया और खोल कर बड़े मजे से खाने लगा. मैं क्या करता, खून का घूंट पी कर रह गया.शाम को फिर वही हाल. थाली में खाना कम और सलाद ज्यादा भरा हुआ था. जैसेतैसे घासपत्तियों को गले के नीचे उतारा और सोने चल दिया. पर पत्नी ने टोक दिया, ‘‘अरे, कहां जा रहे हो. अभी तो तुम्हें सिटी गार्डन तक घूमने जाना है.’’
मुझे लगा, मानो किसी ने पहाड़ से धक्का दे दिया हो. सिटी गार्डन मेरे घर से 2 किलोमीटर दूर है. यानी कि कुल मिला कर आनाजाना 4 किलोमीटर. जैसेतैसे बाहर निकला तो ठंडी हवा बदन में चुभने लगी. आंखों में आंसू भले नहीं उतरे, मन तो दहाड़ें मार कर रो रहा था. मैं जब बाहर निकल रहा था तो बच्चे रजाई में बैठे टीवी देख रहे थे. बाहर सड़क पर भी दूरदूर तक कोई नहीं था पर क्या करता, स्मार्ट जो बनना था, सो कुछ न कुछ तो करना ही था.फिर यही दिनचर्या चलने लगी. एक ओर खूब जम कर मेहनत और दूसरी ओर खाने को सिर्फ घासफूस. अपनी हालत देख कर मन बहुत रोता था. लोग बिस्तर में दुबके रहते और मैं घूमने निकलता था. लोग अच्छेअच्छे पकवान खाते और मैं वही बेकार सा खाना.
तभी एक दिन मैं ने सुबह 9 बजे अपने एक मित्र को फोन किया. मुझे यह जान कर आश्चर्य हुआ कि वह अभी तक सो कर ही नहीं उठा था जबकि उस ने मुझे घूमने के मामले में बहुत ज्ञान दिया था. करीब 10 बजे मैं ने दोबारा फोन किया. तो भी जनाब बिस्तर में ही थे. मैं ने व्यंग्य से पूछा, ‘‘क्यों भई, तुम तो घूमने के बारे में इतना सारा ज्ञान दे रहे थे. सुबह 10 बजे तक सोना, यह सब क्या है.’’मित्र हंसने लगा, ‘‘अरे भई, आज संडे है. सप्ताह में एक दिन छुट्टी, इस दिन सिर्फ आराम का काम है.’’
मुझे लगा, यही सही रास्ता है. मैं ने फौरन एक दिन के साप्ताहिक अवकाश की घोषणा कर दी और फौरन दूसरे ही दिन उसे ले भी लिया. देर से सो कर उठना कितना अच्छा लगता है और वह भी इतने संघर्ष के बाद. उस दिन मैं बहुत खुश रहा. पर बकरे की मां कब तक खैर मनाती, दूसरे दिन तो घूमने जाना ही था.
तभी बीच में एक दिन एक रिश्तेदार की शादी आ गई. खाना भी वहीं था. पहले यह तय हुआ था कि मेरे लिए कुछ हल्काफुल्का खाना बना लिया जाएगा पर जब जाने का समय आया तो पत्नी ने फैसला सुनाया कि वहीं पर कुछ हल्का- फुल्का खाना खा लेंगे. बस, मिठाइयों पर थोड़ा अंकुश रखें तो कोई परेशानी थोड़े ही है.उन के इस निर्णय से मन को बहुत राहत पहुंची और मैं ने वहां केवल मिठाई चखी भर, पर चखने ही चखने में इतनी खा गया कि सामान्य रूप से कभी नहीं खाता था. उस रात को मुझे बहुत अच्छी नींद आई थी क्योंकि मैं ने बहुत दिनों बाद अच्छा खाना खाया था लेकिन नींद भी कहां अपनी किस्मत में थी. सुबह- सुबह कम्बख्त अलार्म ने मुझे फिर घूमने के लिए जगा दिया. जैसेतैसे उठा और घूमने चल दिया.मेरी बड़ी मुसीबत हो गई थी. जो चीजें मुझे अच्छी नहीं लगती थीं वही करनी पड़ रही थीं. जैसेतैसे निबट कर आफिस पहुंचा. पर यहां भी किसी काम में मन नहीं लग रहा था. सोचा, कैंटीन जा कर एक चाय पी लूं. आजकल घर पर ज्यादा चाय पीने को नहीं मिलती थी. चूंकि अभी लंच का समय नहीं था इसलिए कैंटीन में ज्यादा भीड़ नहीं थी पर मैं ने वहां शर्मा को देखा. वह मेरे सैक्शन में काम करता था और वहां बैठ कर आलूबड़े खा रहा था. मुझे देख कर खिसिया गया. बोला, ‘‘अरे, वह क्या है कि आजकल मैं डाइटिंग पर चल रहा हूं. अब कभीकभी अच्छा खाने को मन तो करता ही है. अब इस जबान का क्या करूं. इसे तो चटपटा खाने की आदत पड़ी है पर यह सब कभीकभी ही खाता हूं. सिर्फ मुंह का स्वाद चेंज करने के लिए…मेरा तो बहुत कंट्रोल है,’’ कह कर शर्मा चला गया पर मुझे नई दिशा दे गया. मेरी तो बाछें खिल गईं. मैं ने फौरन आलूबड़े और समोसे मंगाए और बड़े मजे से खाए.उस दिन के बाद मैं प्राय: वहां जा कर अपना जायका चेंज करने लगा. हां, एक बात और, डाइटिंग का एक और पीडि़त शर्मा, जोकि अपने कंट्रोल की प्रशंसा कर रहा था, वह वहां अकसर बैठाबैठा कुछ न कुछ खाता रहता था. शुरूशुरू में वह मुझ से शरमाया भी पर फिर बाद में हम लोग मिलजुल कर खाने लगे.बस, यह सिलसिला ऐसे ही चलने लगा. इधर तो पत्नी मुझ से मेहनत करवा रही थी और दूसरी ओर आफिस जाते ही कैंटीन मुझे पुकारने लगती थी. मैं और मेरी कमजोरी एकदूसरे पर कुरबान हुए जा रहे थे. पत्नी ध्यान से मुझे ऊपर से नीचे तक देखती और सोच में पड़ जाती.
फिर 2 महीने बाद वह दिन भी आया जहां से मेरा जीवन ही बदल गया. हुआ यों कि हम सब लोग परिवार सहित फिल्म देखने गए. वहां पत्नी की निगाह वजन तौलने वाली मशीन पर पड़ी. 2-2 मशीनें लगी हुई थीं. फौरन मुझे वजन तौलने वाली मशीन पर ले जाया गया. मैं भी मन ही मन प्रसन्न था. इतनी मेहनत जो कर रहा था. सुबहसुबह उठना, घूमनाफिरना, दलिया, अंकुरित नाश्ता और न जाने क्याक्या.
मैं शायद इतने गुमान से शादी में घोड़ी पर भी नहीं चढ़ा होऊंगा. सभी लोग मुझे घेर कर खड़े हो गए.
मशीन शुरू हो गई. 2 महीने पहले मेरा वजन 80 किलो था. तभी मशीन से टिकट निकला. सभी लोग लपके. टिकट मेरी पत्नी ने उठाया. उस का चेहरा फीका पड़ गया.‘‘क्या बात है भई, क्या ज्यादा कमजोर हो गया? कोई बात नहीं, सब ठीक हो जाएगा,’’ मैं ने पत्नी को सांत्वना दी.पर यह क्या, पत्नी तो आगबबूला हो गई, ‘‘खाक दुबले हो गए. पूरे 5 किलो वजन बढ़ गया है. जाने क्या करते हैं.’’
मैं हक्काबक्का रह गया. यह क्या? इतनी मेहनत? मुझे कुछ समझ में नहीं आया. कहां कमी रह गई, बच्चों के तो मजे आ गए. उस दिन की फिल्म में जो कामेडी की कमी थी, वह उन्होंने मुझ पर टिप्पणी कर के पूरी की. दोनों बच्चे बहुत हंसे.मैं ने भी बहुत सोचा और सोचने के बाद मुझे समझ में आया कि आजकल मैं कैंटीन ज्यादा ही जाने लगा था. शायद इतने समोसे, आलूबडे़, कचौरियां कभी नहीं खाईं. पर अब क्या हो सकता था. पिक्चर से घर लौटने के बाद रात को खाने का वक्त भी आया. मैं ने आवाज लगाई, ‘‘हां भई, जल्दी से मेरा दलिया ले आओ.’’पत्नी ने खाने की थाली ला कर रख दी. उस में आलू के परांठे रखे हुए थे. ‘‘बहुत हो गया. हो गई बहुत डाइटिंग. जैसा सब खाएंगे वैसा ही खा लो. और थोड़े दिन डाइटिंग कर ली तो 100 किलो पार कर जाओगे.’’
मैं भला क्या कहता. अब जैसी पत्नीजी की इच्छा. चुपचाप आलू के परांठे खाने लगा. अब कोई नहीं चाहता कि मैं डाइटिंग करूं तो मेरा कौन सा मन करता है. मैं ने तो लाख कोशिश की पर दुबला हो ही नहीं पाया तो मैं भी क्या करूं. इसलिए मैं ने उन की इच्छाओं का सम्मान करते डाइटिंग को त्याग दिया |
होइहिं सोइ जो राम रचि राखा, को करि तर्क बढ़ावै साखा
अस कहि लगे जपन हरिनामा, गईं सती जहँ प्रभु सुखधामा
इस चौपाई का मतलब है कि जो कुछ भी संसार में राम ने रच रखा है, वही होगा. इसलिए इस विषय में तर्क करने का कोई लाभ नहीं होगा.
नवीन पीढी
मैं देहरादून गया बेटे पास ! हवाई जहाज से उतरते ही मैंने बेटा को फोन किया कि आ गया हूं, कहां हो? पापा, मैं ऑफिस में हूं , आपके कैब बुक किया है , एयरपोर्ट के बाहर होगा ।जाकर बैठ जाईये ,घर का पता कैब वाले को दिया हुआ है वो घर तक आपको पहुंचा देगा।
मैं टैक्सी में बैठ गया और बेटे के घर पहुंचा और घर का ताला खोल दाखिल हुआ। ड्राइंगरूम में सोफे पे पसर गया , थोङी देर में कालबेल बजी। दरवाजे पे डिलीवरी बाॅय खङा था कुछ खाने के पैकेट लिए। पैकेट लिया ही था कि बेटे संस्कार का फोन आया पापा आपका लंच भिजवाया है ,खा लीजिए और आराम करिए, शाम को मिलता हूं आपसे! खाना खाकर सो गया मैं, बहुत थक चूका था व सुबह चार बजे ही बरेली से देहरादून की फ्लाइट पकङने के लिए रात दो बजे से ही जगा था।
गहरी नींद आ गई थी।बेटे की आवाज आई, पापा ! कैसे हो आप आप? हाल चाल लेता रहा और बार बार मोबाइल पर भी ध्यान दे रहा था ।आकाश बहुत खुश था क्योंकि पापा पहली बार देहरादून आए थे। दूसरे दिन सुबह उठा तो चाय की तलब हुई, आदत थी मुझे सुबह सुबह उठकर चाय पीने की!।। पूछा कि किचन में दूध- चायपती है , चाय बना लेता हूं।हंसकर आकाश बोला; पापा मैं चाय कहां पीता हूं? सोफा पे लेटे हुए मोबाइल पर उसकी उँगली तेजी से घूम रही थी। मैं चुपचाप बैठ गया , क्या करू! यहां का कुछ आइडिया भी नहीं कि बाहर जाकर चाय पी ले।
खैर!अभी इसी उधेङबुन में था कि दरवाजे की घंटी बजी ।बेटा बोला , देखो न पापा कौन है? बिचारा बेटा नींद में था और मेरे चलते जल्दी उठ गया था।दरवाजे पर गर्मा-गर्म चाय के साथ इडली सांभर बङा का पैकेट लेकर डिलीवरी बाॅय खङा था । फिर हमदोनों ने नाश्ता किया ।बेटा बोला , कुछ भी जरूरत है, आप मोबाइल से ऑडर कर मंगा सकते हैं ।आपको चाय पीने की आदत है , मै जानता था , इसलिए मंगा दिया। अपने बेटे की नवीनतम तकनीकी सुविधाजनक मोबाइल फोन ने मुझे अपनी पीढी की याद दिलाई, कि जब पापा ऑफिस से आते तो दौङकर हम सब भाई बहन खातिर दारी में लग जाते थे ।कोई दौङकर पानी लाता,कोई नाश्ता देता, कोई जूठा बर्तन उठाता।हमारे बीते हुए दौर में व आज की पीढी में कितना बदलाव आया है ।हमारे पिता के लिए मन में आदर तो था परंतु एक डर भी रहता था कि वो नाराज न हो जाए? आज की पीढी प्रैक्टिकल है व तकनीकी दुनिया में सांस ले रही है । याद आया कि मेरा टिकट भी मोबाइल से ही बुक किया था बेटे ने! अपने बेटे का मेरा ख्याल रखना बहुत स्वाभाविक लगा।ऐसा नहीं कि हमारे बच्चे हमारा आदर नहीं करते! बहुत प्यार करते हैं हमें ! बस तरीका बदल गया है।
आध्यात्मिकता - अध्यात्म कायरों और अकर्मण्यों का मार्ग नहीं अपितु कायरता और अकर्मण्यता का त्याग करने वालों का मार्ग है। अधिकांशतया लोगों की दृष्टि में अध्यात्म का मतलब सिर्फ वह मार्ग है जहाँ से कायर लोग अपनी जिम्मेदारियों से बचना चाहते हैं। अध्यात्म का मतलब छोटी जिम्मेदारियों से बचना तो नहीं मगर छोटी-मोटी जिम्मेदारियों का त्यागकर एक बड़ी जिम्मेदारी उठाने का साहस करना जरूर है। सोचो! अध्यात्म अगर कमजोर लोगों का ही मार्ग होता तो फिर बालपन में ही शेर के दाँत गिन लेने की सामर्थ्य रखने वाले आचार्य महावीर और आचार्य बुद्ध जैसे लोग इस पथ से ना गुजरे होते। स्वयं की चिंता को त्यागकर स्वयंभू (शंभू) के चिंतन का नाम ही अध्यात्म है। और स्वयं के कष्टों का विस्मरण कर सृष्टि के कष्टों के निवारण की यात्रा ही वास्तविक अध्यात्मिक यात्रा है।सुखी जीवन जीने का सिर्फ एक ही रास्ता है वह है अभाव की तरफ दृष्टि ना डालना। आज हमारी स्थिति यह है जो हमे प्राप्त है उसका आनंद तो लेते नहीं, वरन जो प्राप्त नहीं है उसका चिन्तन करके जीवन को शोकमय कर लेते हैं। दुःख का मूल कारण हमारी आवश्कताएं नहीं हमारी इच्छाएं हैं। हमारी आवश्यकताएं तो कभी पूर्ण भी हो सकती हैं मगर इच्छाएं नहीं। इच्छाएं कभी पूरी नहीं हो सकतीं और ना ही किसी की हुईं आज तक। एक इच्छा पूरी होती है तभी दूसरी खड़ी हो जाती है। इसलिए शास्त्रकारों ने लिख दिया आशा हि परमं दुखं नैराश्यं परमं सुखं दुःख का मूल हमारी आशा ही हैं। हमे संसार में कोई दुखी नहीं कर सकता, हमारी अपेक्षाएं ही हमे रुलाती हैं। अति इच्छा रखने वाले और असंतोषी हमेशा दुखी ही रहते । सफल जीवन के तीन सूत्र - जीवन में कोई भी चीज इतनी खतरनाक नहीं जितना भ्रम में और डांवाडोल की स्थिति में रहना है। आदमी स्वयं अनिर्णय की स्थिति में रहकर अपना नुकसान करता है। सही समय पर और सही निर्णय ना लेने के कारण ही व्यक्ति असफल भी होता है। यह ज्यादा महत्वपूर्ण नहीं है कि लोग आपके बारे में क्या सोचते हैं ? महत्वपूर्ण यह है कि आप स्वयं के बारे में क्या सोचते हैं ? स्वयं के प्रति एक क्षण के लिए नकारात्मक ना सोचें और ना ही निराशा को अपने ऊपर हावी होने दें। सफल होने के लिए तीन बातें बड़ी आवश्यक हैं। सही फैसले लें, साहसी फैसले लें और सही समय पर लें। आगे बढ़ने के लिए आवश्यक है कि प्रयास की अंतिम सीमाओं तक पहुंचा जाए।
उदयसिंह जाधव आटो वाले
अहमदाबाद में हम तीन दिन रुके और ऐसे लोगों से मिले जिनके बारे में जानकार आपको भी अच्छा लगेगा। अपनी बात शुरू करता हूँ उदय भाई से। उदयसिंह जाधव आटो चलाते हैं। उनकी आटो में संगीत तो बजता ही है, गर्मी से बचने के लिए पंखा है, न्यूज़ पेपर लाइब्रेरी है, पेय जल का कन्टेनर है, नास्ते के लिए फरसाण रहता है, डस्टबिन भी है। हमारे आटो में बैठने के पहले उन्होंने हमें दो 'बैज' दिए, दिल के, जो वे अपनी आटो में बैठने वाले प्रत्येक यात्री को देते हैं।
मज़े की बात यह है कि उनकी आटो में मीटर नहीं है, वे अपने ग्राहकों से किराये की बात नहीं करते और न ही किराया मांगते। आप न दें तो भी कोई उज्र नहीं, यदि देना चाहते हैं तो वे आपको एक लिफाफा दे देंगे, आप जो उचित समझे, उसमें भर दें, वे चुपचाप रख लेंगे और आपको प्रणाम करेंगे। लिफाफे तीन हैं, एक हिन्दी भाषा का, दूसरा गुजराती और तीसरा अंग्रेजी में। उसमें लिखा हुआ है- 'दिल से दें।'
मैंने उदय भाई से पूछा- 'दिल से कैसे दें, पैसे तो जेब में रहते हैं ?'
'बिलकुल यही बात मुझसे महेंद्र सिंह धोनी ने भी पूछी थी।' वे हंसते हुए बोले।
'ऐसा क्या ?'
'जी, मैंने उनको कहा- 'दूसरे आटो वालों को जेब वाला पैसा पसंद आता है, मुझे तो दिल वाला पैसा चाहिए।'
'इस दिलदारी में घर का खर्च चल जाता है ?'
'हाँ अंकल जी, बीस साल से आटो चला रहा हूँ, मेरा परिवार है, मैं बहुत मज़े में हूँ।'
'मान लो, किसी ने पैसे नहीं दिये या लिफाफे में कम दिए तो ?'
'तो भी मेरा दिल खुश हो जाता है क्योंकि मैं यह आटो पेट भरने के लिए नहीं चलाता।'
'फिर किसलिए चलाते हो ?'
'खुशी के लिए, अपनी खुशी के लिए, सबकी खुशी के लिए। अगर किसी को मैं 'फ्री' में घुमाया और उसे खुशी दे पाया तो मेरा जीवन सफल हो गया।' उदय भाई बोले।
हम उन टोपीधारी उदय भाई के साथ तीन घंटे रहे, पूरे समय वे हमको अहमदाबाद के बारे में बताते रहे, पूरा शहर हमें घुमाया और हर समय मस्ती में मटकते रहे, गुनगुनाते रहे। अमिताभ बच्चन भी उनके आटो में घूम चुके हैं और उनके घर भी गए थे।
धन की अंधी दौड़ में पागल दुनिया के लिए इन ज़िंदादिल उदय भाई का जज़्बा गौर करने लायक है। आप कभी अहमदाबाद जाएँ तो उन्हें बुला लें, वे आपको लेने स्टेशन भी आ सकते हैं। उनका मोबाइल नंबर नोट कर लीजिए : 9428017326 उन्हें मेरे बारे में भी बताइएगा।
होली की कथा
हिरण्यकश्यप की बहन होलिका और भक्त प्रह्लाद से जुड़ी है. इस कथा के मुताबिक, होलिका ने प्रह्लाद को मारने के लिए आग में कूदने की कोशिश की थी, लेकिन भगवान विष्णु की कृपा से प्रह्लाद बच गया और होलिका जल गई. इसी घटना के बाद से होली मनाई जाने की शुरुआत हुई. होलिका, असुर-राजा हिरण्यकश्यप की बहन थीं. होलिका को भगवान ब्रह्मा से एक वरदान मिला था कि अग्नि उसे नहीं जला सकती. हिरण्यकश्यप ने होलिका को प्रह्लाद को अपनी गोद में लेकर आग में बैठने का आदेश दिया था. होलिका ने आग में कूदने की कोशिश की, लेकिन भगवान विष्णु की कृपा से प्रह्लाद बच गया और होलिका जल गई. होलिका के जलने और प्रह्लाद के बच जाने पर नगरवासियों ने उत्सव मनाया. इस उत्सव का नाम ही होली पड़ गया. होलिका दहन के बाद ही दूसरे दिन होली मनाई जाती
परिवार का आधार
ममता शर्मा
अथर्व खुशी से चिल्लाते हुए पूरे घर में माँ को आवाज लगाए जा रहा था। दोनों बहनों ने बताया- माँ छत पर है। अथर्व तो मानो छत पर उड़कर ही पहुंच जाना चाहता था पर दोनों बहनें रास्ता रोक कर खड़ी हो गई और बोली- पहले हमें बताओ अपना रिजल्ट तभी माँ के पास जाने देंगी। अथर्व ने दोनों बहनों को गले लगा लिया फिर पैर छू कर बोला- दीदी, अब हमारे सपने सच होने वाले हैं ।कहकर छत पर दौड़ गया ।दोनों बहनों ने खुशी से एक दूसरे को हाथ थाम लिया और अथर्व के पीछे ऊपर आ गईं ।नेहा उन्हें छत पर कपड़े सुखाती मिली।
अथर्व ने माँ के हाथों से कपड़े छीने और जोर - जोर चिल्लाते हुए बोला , "माँ मेरा बारहवी का परिणाम आ गया और पूरे जिले में प्रथम आया हूं।"
नेहा का इतना सुनना था दोनों हाथों से अथर्व को कस के पकड़ लिया। वह बहुत कुछ बोलना चाह रही थी पर लगता था जैसे जुबान ने साथ देने से मना कर दिया हो। जुबान का सारा काम आँखें कर रही थीं। वे निरंतर बहे जा रही थीं।
अथर्व ने माँ को संभाला और बोला -माँ यह सब आपके और पापा के आशीर्वाद और मेहनत का परिणाम है।
अब तक नेहा जैसे किसी गहरे समुद्र में गोते लगा रही थी।
बेटे की आवाज़ सुन कर वास्तविकता में आ गई।
उसने बेटे को गले लगाते हुए कहा- बेटा हमारी नहीं ये तुम्हारी खुद की मेहनत का परिणाम है। मुझे मालूम था दोनों बेटियों की तरह तुम भी हमारा नाम रोशन करोगे।
तभी महेश भी छत पर आ गए सबकी भीगी आँखें देखकर कुछ पूछते इससे पहले ही अथर्व ने पैर छूते हुए परिणाम बताया।
महेश का मन तो हुआ कि बेटे को कस के गले लगा ले पर प्रत्यक्ष में केवल मुस्कुरा दिए । मानो धीर गंभीर छवि ने बेटे को गले लगाने से रोक दिया।
तभी महेश का मोबाइल बजा स्क्रीन पर बेटे के स्कूल का नंबर था। उधर से महेश और नेहा को बधाई दी जा रही थी साथ ही अथर्व को स्कूल भेजने को कहा।
महेश ने बेटे को बताया कि उसको स्कूल में बुलाया जा रहा है अथर्व जाने को मुड़ा पीछे से महेश ने बोला लो आज से ये फोन तुम्हारा।
अथर्व ने पापा को ऐसे देखा मानो उन्होंने गलती से बोल दिया हो।महेश ने आगे बढ़कर फोन उसके हाथ पर रख दिया।परंतु चेहरे के भाव वही। एकदम शांत।कोई न जान सके कि इस समय उनके मन में चल क्या रहा है।फोन की बात सुनते ही दोनों बेटियां शिकायती लहज़े में बोल उठी ये क्या पापा आज हम दोनों सरकारी नौकरी में हैं हमें तो कभी फोन नहीं दिया।महेश और नेहा ने एकदूसरे को देखा ,नेहा ने कहा फोन नहीं दिया तभी आज तुम इतनी कामयाब हो। सुनकर सब हंस पड़े।
अथर्व प्रसन्नता में गुनगुनाता हुआ चला गया।पीछे पीछे दोनों बेटियां भी चली गईं।नेहा ने महेश की ओर देखा और बोली- आज तो बेटे को गले लगा लेते।
क्या मैं नहीं जानती कि आपका मन कितना तड़पता है बच्चों से बात करने का, उन्हें गले लगाने का। फिर क्यों रोक लेते हो अपने मन को।
महेश इस बात के जवाब में बस मुस्कुरा दिए।
नेहा बस इसी मुस्कुराहट को देखकर अपने सारे गम भूल जाती थी।बहुत ही भावुक होकर महेश के करीब आई और उनके सीने पर सिर रखकर बोली- मै कितनी भाग्यशाली हूं जो आप मुझे जीवनसाथी के रूप में मिले।इतने प्यारे बच्चे ।मुझसे ज्यादा भाग्यशाली और कौन ही होगा।तुमने हर कदम पर मेरा साथ दिया।मैं जब जब कमजोर पड़ती तुम हमेशा मेरे साथ खड़े रहे।एक मजबूत चट्टान की तरह।बच्चों को कामयाब बनाने में न जाने तुमने कितने बलिदान दिए हैं। संगीत में तुम्हारी जान बसती है ये बात सभी जानते हैं ।पर तुमने मेरे लिए, बच्चों के लिए संगीत तक छोड़ दिया था । याद है न तुम्हे।महेश के चेहरे के भाव जो अब तक प्यार में डूबे थे अचानक गंभीरता में बदल गए।जिन बातों को महेश कभी याद नहीं करना चाहते थे आज नेहा ने वही बात छेड़ दी।महेश बोले उस समय परिस्थिति ही कुछ ऐसी बन गई थी कि मुझे वह सब करना पड़ा। बड़ी बेटी के जन्म के समय हमारी आर्थिक स्थिति कहां ठीक थी सो मुझे नौकरी ही करनी पड़ी।
बस तभी कुछ दिनों के लिए संगीत से दूर रहना पड़ा।
अचानक अपने भावों को बदलते हुए महेश ने चहकते हुए कहा और फिर तुमने जिस खूबसूरती से सब कुछ संभाला।मैं जल्द ही संगीत की दुनिया में वापिस लौट आया।इस घर को बनाने में तुमने भी कम योगदान नहीं दिया है।
तुम भूल गई??? जब मेरा एक्सीडेंट हुआ था । कैसे तुमने सब कुछ संभाल लिया था। घर का काम ,बच्चों का का और फिर मै जो बिल्कुल लाचार था। उस मुसीबत की घड़ी में भी तुम्हारे माथे पर मैने कभी शिकन नहीं देखा।
तुम कहती हो न कि मैं एक चट्टान की सा मजबूत हूं तो इसका कारण भी तुम्हीं हो।नेहा ने हैरानी से पूछा मै मैं कैसे??
महेश ने हंसकर कहा तुम्हीं तो मुझे हौंसला देती हो।
नेहा का हाथ अपने हाथ में लेते हुए बोले
हमारे जीवन में न जाने कितने उतार चढ़ाव आए तुम्हारे साथ से मैने हर मुसीबत को पार कर लिया।
देखो न आज हमारी दोनों बेटियां कामयाबी के शिखर पर हैं। ये सब तुम्हारी परवरिश का ही नतीजा है जो आज हमारे बच्चे इतने ऊंचे पदों पर है।और आज अथर्व के परिणाम से एकबार फिर साबित हो गया।
कहकर महेश ने नेहा के माथे पर एक चुम्बन अंकित कर दिया।
महेश और रोमांटिक हो इससे पहले नेहा बोल पड़ी चलो नीचे चलते हैं खाना भी बनाना है।
पर महेश के मन में एक अलग ही द्वंद्व छिड़ा हुआ था ।वह आज अपने मन का सारा बोझ उतार देना चाहता था।उसने नेहा का हाथ पकड़ा और अपने पास बैठने को कहा।
यही वो क्षण था जिसका इंतज़ार महेश न जाने कब से कर रहा था इतने वर्षों हिम्मत जुटा रहा था लेकिन कभी नेहा से कह नहीं पाया।
महेश की आँखें भीगी थीं बहुत भारी आवाज में उसने कहा नेहा मुझे तुमसे कुछ कहना है।।
ऐसे तो महेश को नेहा ने कभी नहीं देखा था
वह लगभग डर गई और बोली महेश तुम मुझे डरा रहे हो बोलो न क्या बात है???
नेहा खुद भी रूआंसी हो गई।
महेश ने नेहा का चेहरा अपने हाथों में लिया ।उसकी आँखों में आँखें डालकर बोला नेहा मै तुम्हारा गुनाहगार हूं। लग रहा था जैसे बरसों पुराना कोई दर्द आज बाहर आने को आतुर था। नेहा हैरानी से महेश को देखती रही।
बोली ऐसा क्यों कह रहे हो ?
बात आगे बढ़ाते हुए महेश ने कहा हमारी दोनों बेटियां
ऑपरेशन से हुई थी।
उसके बाद डॉक्टर ने सख्त हिदायत दी थी कि हम आगे तीसरे बच्चे के बारे में सोच भी नहीं सकते।
हां याद है मुझे ।पर आज यह सब तुम मुझे क्यों बता रहे हो?
मैं बार बार अपनी इच्छा जताता रहा कि एक बेटा होता तो अच्छा होता।
अब जो महेश बोलने जा रहा था उसको बोलने से पहले ही उसकी आवाज़ भर्रा गई।फिर भी अपने को संयत करके बोलना शुरू किया नेहा मै उस समय स्वार्थी हो गया था। मैने तुमसे झूठ बोला था कि मैं डॉक्टर से मिला हूं और उन्होंने कहा है कि हम तीसरे बच्चे के बारे में सोच सकते हैं।ये सब बोलते हुए महेश नेहा से नजरे नही मिला पा रहा था।
वह आँखें झुकाए सब कुछ एक सांस में ही बोल देना चाहता था।
और तुम्हें मुझ पर इतना यकीन था कि तुमने एकबार भी मुझसे कुछ नहीं पूछा। तुमने अथर्व के समय नौ महीने कैसे बिताए मै बखूबी जानता था।
मैं भूल नहीं पाता जब डिलीवरी के समय तुम्हे खून की कमी हो गई थी,तुम्हारी जान पर बन आई थी और मैं मन ही मन अपने आपको तुम्हारा गुनाहगार समझता था।
कहते कहते महेश ने को कसकर नेहा को गले लगा लिया।
अगर
अगर तुम्हे कुछ हो जाता तो मैं खुद को कभी माफ नहीं कर पाता। महेश की आँखों में आंसू साफ दिख रहे थे।एक छोटे बच्चे की तरह महेश नेहा के आंचल में छिप जाना चाहता था। एक शर्मिंदगी थी जो उसे जीने नहीं दे रही थी।
नेहा ने महेश की आँखों में आए आंसू को पोंछा।बड़ी मजबूती के साथ महेश का हाथ थामा और बोली तुमने मुझे इतना कमजोर कब से समझ लिया। जितना प्यार तुमने मुझे इस जीवन में दिया है उस पर एक जीवन तो क्या ऐसी दस जिंदगियां कुर्बान है। महेश ने कुछ कहने को मुँह खोलना चाहा लेकिन नेहा ने उसके होठों पर उंगली रख दी।मन हल्का हुआ न -कहकर नेहा मुस्कुरा दी।
महादेवी वर्मा
‘आधुनिक युग की मीरा’ कही जाने वाली महादेवी वर्मा का जन्म उत्तर प्रदेश के फ़र्रुख़ाबाद में होली के दिन 26 मार्च 1907 में हुआ था। उनकी आरंभिक शिक्षा उज्जैन में हुई और एम. ए. उन्होंने संस्कृत में प्रयाग विश्वविद्यालय से किया। बचपन से ही चित्रकला, संगीतकला और काव्यकला की ओर उन्मुख महादेवी विद्यार्थी जीवन से ही काव्य प्रतिष्ठा पाने लगी थीं। वह बाद के वर्षों में लंबे समय तक प्रयाग महिला विद्यापीठ की प्राचार्या रहीं। वह इलाहाबाद से प्रकाशित ‘चाँद’ मासिक पत्रिका की संपादिका थीं और प्रयाग में ‘साहित्यकार संसद’ नामक संस्था की स्थापना की थी।वह साहित्य अकादेमी की सदस्यता प्राप्त करने वाली पहली लेखिका थीं। भारत सरकार ने उन्हें पद्म भूषण और पद्म विभूषण पुरस्कारों से सम्मानित किया। उन्हें यामा के लिए ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया। भारत सरकार ने उनके सम्मान में जयशंकर प्रसाद के साथ युगल डाक टिकट भी जारी किया। उनका निधन 11 सितंबर 1987 इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश मे हुआ |
मार्च माह के महत्वपूर्ण दिवस - 2025
शून्य भेदभाव दिवस – 1 मार्च , 1 मार्च को मनाया जाने वाला शून्य भेदभाव दिवस आय, लिंग, आयु, स्वास्थ्य स्थिति, व्यवसाय, विकलांगता, नशीली दवाओं के उपयोग, लिंग पहचान, जाति, वर्ग और धर्म के आसपास प्रचलित असमानताओं को समाप्त करने के लिए कार्रवाई करने की तत्काल आवश्यकता पर प्रकाश डालता है।
विश्व नागरिक सुरक्षा दिवस – 1 मार्च ,विश्व नागरिक सुरक्षा दिवस 1 मार्च को विश्व स्तर पर मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण कार्यक्रम है।
सेल्फ इंजरी अवेयरनेस डे – 1 मार्च ,स्व-चोट जागरूकता दिवस या स्व-नुकसान जागरूकता दिवस के इस विषय पर जागरूकता बढ़ाने के लिए प्रतिवर्ष 1 मार्च को मनाया जाने वाला यह दिन एक अंतरराष्ट्रीय कार्यक्रम है।
1-1576,महाराणा प्रताप का राज्याभिषेक
टेक्सास स्वतंत्रता दिवस – 2 मार्च ,टेक्सास स्वतंत्रता दिवस राज्य की स्वतंत्रता घोषणा को अपनाने का जश्न मनाता है। इस दिन टेक्सास ध्वज दिवस और सैम ह्यूस्टन दिवस भी मनाया जाता है, ।
रीड अक्रॉस अमेरिका – 2 मार्च ,नेशनल एजुकेशन एसोसिएशन, रीड अक्रॉस अमेरिका देश में पढ़ने का सबसे बड़ा उत्सव है।
विश्व वन्यजीव दिवस – 3 मार्च ,प्रतिवर्ष 3 मार्च को विश्व वन्यजीव दिवस पृथ्वी पर सभी जीवन के लिए एक उत्सव समर्पित करता है।
विश्व श्रवण दिवस – 3 मार्च, श्रवण हानि के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए हर साल विश्व श्रवण दिवस 3 मार्च को मनाया जाता है। जो कान और श्रवण हानि से संबंधित मुद्दों के समाधान के लिए काम करता है।
3-1971,भारत पाक युद्ध प्रारम्भ
4-विश्व वन्य जीव प्रारम्भ,1979,किसान संघ की स्थापना,1939,लाला हरदयाल पुण्यतिथि,1948,डॉ. बालकृष्ण शिवराम मुंजे पुण्यतिथि
राष्ट्रीय सुरक्षा दिवस – 4 मार्च,राष्ट्रीय सुरक्षा दिवस हर साल 4 मार्च को मनाया जाता है |
कर्मचारी प्रशंसा दिवस – 4 मार्च,कर्मचारी प्रशंसा दिवस व्यवसायों को अपने कर्मचारियों को पुरस्कृत करने का मौका देता है।
राष्ट्रीय व्याकरण दिवस – 4 मार्च,राष्ट्रीय व्याकरण दिवस हर साल 4 मार्च को संयुक्त राज्य भर में मनाया जाता है।
अंतर्राष्ट्रीय निरस्त्रीकरण और अप्रसार जागरूकता दिवस – 5 मार्च,प्रतिवर्ष 5 मार्च को अंतर्राष्ट्रीय निरस्त्रीकरण और अप्रसार जागरूकता दिवस मनाया जाता है।
7-1664,गुरु हरकिशन जी पुण्यतिथि
8-1535,चित्तौड़ का दूसरा साका (जौहर) 'अपने सम्मान 'सतीत्व' की रक्षा हेतु चित्तौड़ की महारानी कर्मवती द्वारा 13000 छत्रणियों सहित जिंदा जलना'
अन्तरराष्ट्रीय महिला दिवस – 8 मार्च,अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस हर साल 8 मार्च को मनाया जाता है ।
9-1885,चैतन्य महाप्रभु जयंती (फाल्गुन पूर्णिमा)
9-1928,महाराणा प्रताप राज्याभिषेक दिवस
केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल स्थापना दिवस – 10 मार्च,1969 में CIFS की स्थापना की याद में हर साल 10 मार्च को केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल स्थापना दिवस मनाया जाता है।
11-1629,छत्रपति शिवाजी महाराज के पुत्र सम्भाजी महाराज का बलिदान दिवस
मॉरीशस दिवस – 12 मार्च,मॉरीशस दिवस हर साल 12 मार्च को मनाया जाता है, जिसे लोग स्वतंत्रता और गणतंत्र दिवस के रूप में भी जानते है।
12-1800,नाना फणनवीस पुण्यतिथि
13-1940,उधाम सिंह द्वारा जनरल माइकेल ओ डायर की हत्या कर जलियाँवाला बाग हत्याकाण्ड का प्रतिशोध
धूम्रपान निषेध दिवस – 13 मार्च,धूम्रपान निषेध दिवस हर साल मार्च के दूसरे बुधवार को मनाया जाता है।
पाई दिवस - 14 मार्च,14 मार्च को दुनिया भर में पाई दिवस मनाया जाता है। पाई (ग्रीक अक्षर π) गणित में एक सिंबल को दर्शाने के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला प्रतीक है।
नदियों के लिये अंतर्राष्ट्रीय कार्रवाई दिवस – 14 मार्च, हर साल 14 मार्च को मनाया जाने वाला नदियों के लिये अंतर्राष्ट्रीय कार्रवाई दिवस एक ऐसा दिन है जिसका उद्देश्य नदियों के महत्व के बारे में जश्न मनाना और इसके बारे में जागरूकता बढ़ाना है।
विश्व किडनी दिवस – 14 मार्च,विश्व किडनी दिवस एक ऐसा दिन है जिसका उद्देश्य हमारी किडनी के महत्व और हमारे समग्र स्वास्थ्य में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका के बारे में जागरूकता बढ़ाना है। होलिका दहन (Holika Dahan) – 13 मार्च,होलिका दहन जिसे छोटी होली के नाम से भी जाना जाता है |
होली (Holi) – 14 मार्च
होली को रंगो के त्यौहार के रूप में जाना जाता है।
विश्व उपभोक्ता अधिकार दिवस – 15 मार्च,उपभोक्ता अधिकारों और जरूरतों के बारे में वैश्विक जागरूकता बढ़ाने के रूप में हर साल 15 मार्च को विश्व उपभोक्ता अधिकार दिवस मनाया जाता है। राष्ट्रीय टीकाकरण दिवस – 16 मार्च,देश में पहली ओरल पोलियो वैक्सीन खुराक देना 16 मार्च 1995 को शुरू किया गया था।
आयुध निर्माण दिवस (Ordnance Factories’ Day) – 18 मार्च,आयुध निर्माणी दिवस भारत में प्रतिवर्ष 18 मार्च को मनाया जाने वाला दिन है।
18-1944,आजाद हिन्द फौज ने बर्मा की सीमापार की
20-1258,अवंतीबाई बलिदान दिवस
इंटरनेशनल डे ऑफ हैप्पीनेस – 20 मार्च,अंतर्राष्ट्रीय हैप्पीनेस डे हर साल 20 मार्च को आयोजित किया जाता है।
विश्व गौरैया दिवस (World Sparrow Day) – 20 मार्च,हर साल 20 मार्च को विश्व गौरैया दिवस मनाया जाता है, जो गौरैया के महत्व पर जागरूकता बढ़ाना और पक्षियों को विलुप्त होने से बचाने के लिए प्रोत्साहित करता है।
वर्ल्ड ओरल हेल्थ डे – 20 मार्च,वर्ल्ड ओरल हेल्थ डे एक वैश्विक स्वास्थ्य देखभाल कार्यक्रम है जो ओरल हेल्थ को स्वस्थ रखने में प्रकाश डालता है |
विश्व वानिकी दिवस – 21 मार्च,संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 2012 में 21 मार्च को अंतर्राष्ट्रीय वन दिवस के रूप मे घोषित कर दिया था।
विश्व डाउन सिंड्रोम दिवस – 21 मार्च,विश्व डाउन सिंड्रोम दिवस एक वैश्विक स्वास्थ्य देखभाल कार्यक्रम है जो पिछले 11 वर्षों से डाउन सिंड्रोम से प्रभावित व्यक्ति के दोस्तों और परिवार के समर्थन में बीमारी के बारे में जागरूकता बढ़ाने और आवाज उठाने के लिए हर साल 21 मार्च को मनाया जाता है।
विश्व कविता दिवस – 21 मार्च,विश्व कविता दिवस पहली बार 1999 में पेरिस में 30वें आम सम्मेलन में यूनेस्को द्वारा अपनाया गया था।
नवरोज़ का अंतर्राष्ट्रीय दिवस – 21 मार्च,नवरोज़, जिसका अर्थ है ‘नया दिन’। नौरोज़ का अंतर्राष्ट्रीय दिवस 21 मार्च को होता है, जो उत्तरी गोलार्ध में वसंत का पहला दिन है।
21-विश्व वानिकी दिवस, कठपुतली दिवस
22-1977,आपातकाल के दौरान संघ पर थोपा गया प्रतिबंध हटाया गया | 1939,कलकत्ता में पहली शाखा के साथ बंगाल में संघ का प्रारम्भ श्री गुरुजी द्वारा
विश्व जल दिवस – 22 मार्च,हर साल 22 मार्च को पानी के जिम्मेदार उपयोग और सभी के लिए सुरक्षित पानी तक पहुंच को बढ़ावा देने के लिए विश्व जल दिवस मनाया जाता है।
विश्व मौसम विज्ञान दिवस – 23 मार्च,23 मार्च 1950 को विश्व मौसम विज्ञान संगठन की स्थापना करने वाले कन्वेंशन के लागू होने की खुशी में हर 23 मार्च को विश्व मौसम विज्ञान दिवस मनाया जाता है।
शहीद दिवस – 23 मार्च,23 मार्च 1931 के दिन भारत के महान क्रन्तिकारी शहीद भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फांसी दे दी गई थी।
24-1936,डा. हेडगेवार जी ने संघ स्थापना विधि का परिपत्र जारी किया। जिसमें स्वयंसेवकों के गुणों के संबंध में कल्पना स्पष्ट की थी
वर्ल्ड टीबी डे – 24 मार्च,हर साल 24 मार्च के दिन वर्ल्ड टीबी डे मनाया जाता है। इस दिन विश्व स्वास्थय संगठन – WHO द्वारा दुनियाभर में तरह- तरह के कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं।
अजन्मे बच्चे का अंतर्राष्ट्रीय दिवस – 25 मार्च,अजन्मे बच्चे का अंतर्राष्ट्रीय दिवस एक ऐसा दिन है जो हर साल 25 मार्च को दुनिया भर के विभिन्न देशों और संगठनों में मनाया जाता है।
हिरासत में लिए गए और लापता स्टाफ सदस्यों के साथ एकजुटता का अंतर्राष्ट्रीय दिवस – 25 मार्च,
25-1931,गणेश शंकर विद्यार्थी बलिदान दिवस
25-1973,श्रीगुरु जी का नागपुर की प्रतिनिधि सभा में अंतिम सार्वजनिक भाषण
25-1552,गुरु अंगददेव पुण्यतिथि
25-1889,आद्य सरसंघचालक डॉ. हेडगेवार जी का जन्म दिवस
26-1907,महादेवी वर्मा का जन्म
26,झुलेलाल जयंती
27-2010-धनुष और पृथ्वी-2 का सफल परिक्षण
वर्ल्ड थिएटर डे – 27 मार्च,वर्ल्ड थिएटर डे की शुरुआत 1961 में अंतर्राष्ट्रीय रंगमंच संस्थान ITI द्वारा की गई थी।
गुड फ्राइडे – 29 मार्च,गुड फ्राइडे कैल्वरी में जीसस की मृत्यु के बारे में बताता है।
अंतर्राष्ट्रीय शून्य अपशिष्ट दिवस – 30 मार्च
30-1887,अप्पा जी जोशी जयंती
30-1931,श्याम जी कृष्ण वर्मा पुण्यतिथि
30-चैत्र शुक्ल प्रतिपदा नव वर्ष सम्वत् 2080 प्रारम्भ, गुड़ी पडवा
31 मार्च श्री गुरु अंगद देव जी जन्म
श्री गुरु अंगद देव जी
श्री गुरु अंगद देव जी, (भाई लहना जी) का जन्म वैशाख वदी 1, (5 वैशाख) संवत 1561, (31 मार्च, 1504) को सराय नागा (मत्ते दी सराय) जिला मुक्तसर (पंजाब) नामक गाँव में हुआ था। वह फेरू जी नामक एक छोटे व्यापारी का पुत्र था। उनकी माता का नाम माता रामो जी था (जिन्हें माता सभिराय, मनसा देवी, दया कौर के नाम से भी जाना जाता है)। बाबा नारायण दास त्रेहान उनके दादा थे, जिनका पैतृक घर मुक्तसर के पास मत्ते-दी-सराय में था। फेरू जी वापस इसी स्थान पर आ गये।
अपनी माँ के प्रभाव में भाई लहना जी ने दुर्गा (एक हिंदू पौराणिक देवी) की पूजा करना शुरू कर दिया। वे हर साल ज्वालामुखी मंदिर में भक्तों के एक समूह का नेतृत्व करते थे। जनवरी 1520 में उनका विवाह माता खीवी जी से हुआ और उनके दो बेटे (दसु जी और दातू जी) और दो बेटियाँ (अमरो जी और अनोखी जी) थीं। बाबर के साथ आए मुगल और बलूच मिलिशिया द्वारा लूटपाट के कारण फेरू जी के पूरे परिवार को अपना पैतृक गाँव छोड़ना पड़ा। इसके बाद परिवार तरनतारन साहिब (अमृतसर शहर से लगभग 25 किलोमीटर दूर एक छोटा शहर) के पास ब्यास नदी के किनारे खडूर साहिब गाँव में बस गया।
मार्च मास 2025 का पंचांग
भारतीय व्रतोत्सव मार्च - 2025
दि. 1- श्री रामकृष्ण परमहंस जयंती, फुलैरा दूज,दि. 3- विनायक चतुर्थी व्रत,दि. 7- होलाष्टक प्रा., दुर्गाष्टमी,दि. 10-आमला 11 व्रत, मेला खाटू श्यामजी 2 दिन का, रामस्नेही सम्प्रदाय का फूलडोल महोत्सव,दि. 11- गोविन्द द्वादशी, प्रदोष व्रत,दि. 13- होलिका दहन, सत्यव्रत,दि. 14- श्री चैतन्य महाप्रभु ज., धुलेंडी, होलाष्टक समाप्त, संक्रांति पु.,दि. 15- वसंतोत्सव, होला मेला आनन्दपुर साहिब,दि. 17- श्री गणेश चतुर्थी व्रत,दि. 19- रंग पंचमी, मेला नवचण्डी मेरठ,दि.20- एकनाथ षष्ठी,दि. 21- शीतला सप्तमी,दि.22- शीतलाष्टमी (बसौड़ा), मेला केसरिया (मेवाड़), कैलादेवी, कालाष्टमी,दि.25- पापमोचिनी एकादशी व्रत,दि.27- प्रदोष व्रत, महावारुणी पर्व, मास शिवरात्रि,दि.29- मेला प्रथूदक पिहोवा (हरि.), शनैश्चरी अमावस्या,दि. 30- नवरात्र प्रारम्भ, संवत् 2082 प्रारम्भ,दि. 31- सिंधारा, मत्स्य जयंती, गणगौरी तीज
मूल विचार मार्च -2025
मूल विचार-दि. 2 को 8/59 से दि.4 को 4/29 तक, दि.13 को 4/05 तक, दि.20 को 23/31 से दि.11 को 00/51 से दि.23 को 3/23 तक, दि.29 को 19/26 से दि.31 को 13/45 बजे तक गण्ड मूल नक्षत्र हैं।
ग्रह स्थिति मार्च -2025
ग्रह स्थिति-दि. 2 शुक्र वक्री,दि. 14 सूर्य मीन में,दि. 15 बुध वक्री,दि. 18 बुध पश्चिमास्त,दि. 19 शुक्र पश्चिमास्त,दि. 22 शुक्रोदय पूर्व,दि. 29 शनि मीन में
पंचक विचार मार्च -2025
पंचक विचार -(धनिष्ठा नक्षत्र के तृतीय चरण से रेवती नक्षत्र तक) पंचको में दक्षिण दिशा की ओर यात्रा करना मकान दुकान आदि की छत डालना चारपाई पलंग आदि बुनना,दाह संस्कार,बांस की चटाई दीवार प्रारंभ करना आदि स्तंभ रोपण तांबा पीतल तृण काष्ट आदि का संचय करना आदि कार्यों का निषेध माना जाता है समुचित उपाय एवं पंचक शांति करवा कर ही उक्त कार्यों का संपादन करना कल्याणकारी होगा ध्यान रहेगा पंचर नक्षत्रों का विचार मात्र उपरोक्त विशेष कृतियों के लिए ही किया जाता है विवाह मंडल आरंभ गृह प्रवेश प्रवेश उपनयन आदि मुद्दों से तो पंचक नक्षत्रका प्रयोग शुभ माना जाता है पंचक विचार- मासारंभ से दि. 3 को 6/38 तक, दि. 26 को 15/14 से दि. 30 को 16/34 बजे तक पंचक हैं। अधिक जानकारी के लिए संपर्क करे शर्मा जी - 9312002527,9560518227
भद्रा विचार मार्च -2025
भद्रा काल का शुभ अशुभ विचार - भद्रा काल में विवाह मुंडन, गृह प्रवेश, रक्षाबंधन आदि मांगलिक कृत्य का निषेध माना जाता है परंतु भद्रा काल में शत्रु का उच्चाटन करना,स्त्री प्रसंग में,यज्ञ करना,स्नान करना,अस्त्र शस्त्र का प्रयोग,ऑपरेशन कराना, मुकदमा करना,अग्नि लगाना,किसी वस्तु को काटना,भैस,घोड़ा व ऊंट संबंधी कार्य प्रशस्त माने जाते हैं सामान्य परिस्थिति में विवाह आदि शुभ मुहूर्त में भद्रा का त्याग करना चाहिए परंतु आवश्यक परिस्थितिवश अतिआवश्यक कार्य भूलोक की भद्रा ,भद्रा मुख छोड़कर कर भद्रा पुच्छ में शुभ कार्य कर सकते है |
दि. 3 को 7/30 से 18/02 तक, दि. 6 को 10/51 से 22/04 तक, दि. 9 को 19/45 से दि. 10 को 7/44 तक, दि. 13 को 10/36 से 23/30 तक, दि. 17 को 6/15 से 19/33 तक, दि. 21 को 2/45 से 15/39 तक, दि. 24 को 17/27 से दि. 25 को 5/05 तक, दि. 27 को 23/03 से दि. 28 को 9/32 बजे तक भद्रा है। अधिक जानकारी के लिए संपर्क करे शर्मा जी - 9312002527,9560518227
सर्वार्थ सिद्धि योग मार्च -2025
दैनिक जीवन में आने वाले महत्वपूर्ण कार्यों के लिए शीघ्र ही किसी शुभ मुहूर्त का अभाव हो,किंतु शुभ मुहर्त के लिए अधिक दिनों तक रुका ना जा सकता हो तो इन सुयोग्य वाले मुहर्तु को सफलता से ग्रहण किया जा सकता है | इन से प्राप्त होने वाले अभीष्ट फल के विषय में संशय नहीं करना चाहिए यह योग हैं सर्वार्थ सिद्धि,अमृत सिद्धि योग एवं रवियोग | योग्यता नाम तथा गुण अनुसार सर्वांगीण सिद्ध कारक है| अधिक जानकारी के लिए संपर्क करे शर्मा जी - 9312002527,9560518227
चौघड़िया मुहूर्त
चौघड़िया मुहूर्त देखकर कार्य या यात्रा करना उत्तम होता है। एक तिथि के लिये दिवस और रात्रि के आठ-आठ भाग का एक चौघड़िया निश्चित है। इस प्रकार से 12 घंटे का दिन और 12 घंटे की रात मानें तो प्रत्येक में 90 मिनट यानि 1.30 घण्टे का एक चौघड़िया होता है जो सूर्योदय से प्रारंभ होता है|
सुर्य उदय- सुर्य अस्त मार्च -2025
सूर्य उदय - दि. 1-6/50, दि. 5-6/46, दि. 10-6/40, दि. 15-6/35, दि. 20- 6/29, दि. 25-6/23, सूर्य अस्त - दि.1-18/17, दि.5-18/20, दि. 10-18/23, दि. 15-18/26, दि. 20-18/29, दि. 25-18/31, दि. 30-18/35,दि. 30- 6/17
राहू काल
राहुकाल -राहुकाल दक्षिण भारत की देन है,दक्षिण भारत में राहु काल में कृत्य करना अच्छा नहीं माना जाता, राहु काल में शुभ कृतियों में वर्जित करने की परंपरा अब हमारे उत्तरी भारत में भी अपनाने लगे हैं राहुकाल प्रतिदिन सूर्यादि वारों में भिन्न-भिन्न समय पर केवल डेढ़ डेढ़ घंटे के लिए घटित होता है |
अधिक जानकारी के लिए संपर्क करे शर्मा जी - 9312002527,9560518227
मांगलिक दोष विचार परिहार
वर अथवा कन्या दोनों में से किसी की भी कुंडली में 1,4,7,8 व 12 भाव में मंगल होने से ये मांगलिक माने जाते हैं,मंगली से मंगली के विवाह में दोष न होते हुए भी जन्म पत्रिका के अनुसार गुणों को मिलाना ही चाहिए यदि मंगल के साथ शनि अथवा राहु केतु भी हो तो प्रबल मंगली डबल मंगली योग होता है | इसी प्रकार गुरु अथवा चंद्रमा केंद्र हो तो दोष का परिहार भी हो जाता है |इसके अतिरिक्त मेष वृश्चिक मकर का मंगल होने से भी दोष नष्ट हो जाता है | इसी प्रकार यदि वर या कन्या किसी भी कुंडली में 1,4,7,9,12 स्थानों में शनि हो केंद्र त्रिकोण भावो में शुभ ग्रह, 3,6,11 भावो में पाप ग्रह हों तो भी मंगलीक दोष का आंशिक परिहार होता है, सप्तम ग्रह में यदि सप्तमेश हो तो भी दोष निवृत्त होता है |
स्वयं सिद्ध मुहूर्त
स्वयं सिद्ध मुहूर्त चैत्र शुक्ल प्रतिपदा वैशाख शुक्ल तृतीया अक्षय तृतीया आश्विन शुक्ल दशमी विजयदशमी दीपावली के प्रदोष काल का आधा भाग भारत में से इसके अतिरिक्त लोकाचार और देश आचार्य के अनुसार निम्नलिखित कृतियों को भी स्वयं सिद्ध मुहूर्त माना जाता है बडावली नामी देव प्रबोधिनी एकादशी बसंत पंचमी फुलेरा दूज इन में से किसी भी कार्य को करने के लिए पंचांग शुद्धि देखने की आवश्यकता नहीं है परंतु विवाह आदि में तो पंचांग में दिए गए मुहूर्त व कार्य करना श्रेष्ठ रहता है।
पापमोचनी एकादशी
पापमोचनी एकादशी का व्रत चैत्र मास की कृष्ण पक्ष एकादशी को किया जाता है इस दिन भगवान विष्णु को अर्घ्यदान दे कर षोडशोपचार पूजा करनी चाहिए |
पापमोचनी एकादशी व्रत की कथा - प्राचीन समय में चैत्र मास नामक अति रमणीक वन था इसी वन में देवराज इंद्र गंधर्व कन्याओं तथा देवताओं सहित स्वच्छंद विहार कर रहे थे मेधावी नामक ऋषि भी यही तपस्या करते थे। ऋषि शैवोपासक तथा अप्सराएं शिवद्रोहिणी अनंग दासी अनुचरी थी। एक समय का प्रसंग है कि रतिनाथ कामदेव ने मेधावी मुनि की तपस्या भंग करने के लिए मंजू धोषा नामक अप्सरा को नृत्य गायन करने के लिए उनके सम्मुख भेजा। युवावस्था वाले ऋषि अप्सरा के हाव भाव नृत्य गीत तथा कटाक्ष पर काम से मोहित हो गए। रति क्रीड़ा करते हुए 57 वर्ष बीत गए । मंजूघोषा ने एक दिन अपने स्थान पर जाने की आज्ञा मांगी। आज्ञा मांगने पर मुनि के कानों पर चींटी दौड़ी तथा उन्हें आत्मज्ञान हुआ। खुद को रसातल में पहुंचाने का एकमात्र कारण अप्सरा मंजूघोषा को समझकर मुनि ने उसे पिशाचिनी होने का शाप दे दिया। शाप सुनकर मंजूघोषा ने वायु तथा प्रताड़ित कदली वृक्ष की भांति कांपते हुए मुक्ति का उपाय पूछा। तब मुनि ने पापमोचनी एकादशी का व्रत करने को कहा। मेघावी ऋषि विधि विधान बताकर अपने पिता च्यवन ऋषि के आश्रम में चले गए । शाप की बात सुनकर ऋषि च्यवन ऋषि ने अपने पुत्र की घोर निंदा की तथा उन्हें चैत्र मास की एकादशी का व्रत करने की आज्ञा दी। व्रत करने के प्रभाव से मंजूघोषा अप्सरा पिशाचिनी देह से मुक्त हो सुंदर शरीर धारण कर स्वर्ग लोक को चली गई।
आमलकी एकादशी व्रत कथा
पौराणिक कथा के अनुसार वैदिश नाम का एक नगर था, उस नगर में ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र रहते थे। वहां रहने वाले सभी नगरवासी विष्णु भक्त थे और वहां कोई भी नास्तिक नहीं था। उसके राजा का नाम था चैतरथ। राजा चैतरथ विद्वान थे और वह बहुत धार्मिक थे। उनके नगर में कोई भी व्यक्ति दरिद्र नहीं था। नगर में रहने वाला हर शख्स एकादशी का व्रत करता था। एक बार फाल्गुन महीने में आमलकी एकादशी आई। सभी नगरवासी और राजा ने यह व्रत किया और मंदिर जाकर आंवले की पूजा की और वहीं पर रात्रि जागरण किया। तभी रात के समय वहां एक बहेलिया आया जो कि घोर पापी था, लेकिन उसे भूख और प्यास लगी थी। इसलिए मंदिर के कोने में बैठकर जागरण को देखने लगा और विष्णु भगवान व एकादशी महात्म्य की कथा सुनने लगा। इस तरह पूरी रात बीत गई। नगर वासियों के साथ बहेलिया भी पूरी रात जागा रहा। सुबह होने पर सभी नगरवासी अपने घर चले गए। बहेलिया भी घर जाकर भोजन किया। लेकिन कुछ समय के बाद बहेलिया की मौत हो गई।
हालांकि उसने आमलकी एकादशी व्रत कथा सुनी थी और जागरण भी किया था, इसलिए वह राजा विदूरथ के घर जन्म लिया। राजा ने उसका नाम वसुरथ रखा। बड़ा होकर वह नगर का राजा बना। एक दिन वह शिकार पर निकला, लेकिन बीच में ही मार्ग भूल गया। रास्ता भूल जाने के कारण वह एक पेड़ के नीचे सो गया। थोड़ी देर बाद वहीं म्लेच्छ आ गए और राजा को अकेला देखकर उसे मारने की योजना बनाने लगे। उन्होंने कहा कि इसी राजा के कारण उन्हें देश निकाला दिया गया। इसलिए इसे हमें मार देना चाहिए। इस बात से अनजान राजा सोता रहा। म्लेच्छों ने राजा पर हथियार फेंकना शुरू कर दिया। लेकिन उनके शस्त्र राजा पर फूल बनकर गिरने लगे।कुछ देर के बाद सभी म्लेच्छ जमीन पर मृत पड़े थे। वही जब राजा की नींद खुली तो उन्होंने देखा कि कुछ लोग जमीन पर मृत पड़े हैं। राजा समझ गया कि वह सभी उसे मारने के लिए आए थे, लेकिन किसी ने उन्हें ही मौत की नींद सुला दी। यह देखकर राजा ने कहा कि जंगल में ऐसा कौन है, जिसने उसकी जान बचाई है। तभी आकाशवाणी हुई कि हे राजन भगवान विष्णु ने तुम्हारी जान बचाई है। तुमने पिछले जन्म में आमलकी एकादशी व्रत कथा सुना था और उसी का फल है कि आज तुम शत्रुओं से घिरे होने के बावजूद जीवित हो। राजा अपने नगर लौटा और सुखीपूर्वक राज करने लगा और धर्म के कार्य करने लगा
चैत्र (वासंतिक) नवरात्र - 2025
ॐ खड्गं चक्रगदेषुचापपरिघात्र्छूलं भुशुण्डीं शिर:शङ्खं संदधतीं करैस्त्रिनयनां सर्वांगभूषावृताम्।
नीलाश्म धुतिमास्यपाददशकां सेवे महाकालिकांयामस्तौव्स्वपिते ह्वरौ कमलजो हन्तुं गट मधुंकैटभम्।।
चैत्र (वासंतिक) नवरात्र - 2025 चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से नवमी तक होते हैं |
कलश स्थापना मुहर्त - चैत्र नवरात्रि में घटस्थापना के लिए शुभ मुहूर्त 30 मार्च को सुबह 7 बजकर 46 मिनट से सुबह 12 बजकर 55 मिनट तक रहेगा। वहीं घटस्थापना अभिजित मुहूर्त दोपहर 12 बजकर 00 मिनट से प्रारंभ होगा और समाप्त दोपहर 12 बजकर 50 मिनट पर होगा। प्रतिपदा तिथि के दिन का पहला एक तिहाई भाग घटस्थापना के लिए सर्वाधिक शुभ समय माना जाता है। यदि किसी कारणवश यह समय उपलब्ध न हो तो अभिजीत मुहूर्त में भी घटस्थापना की जा सकती है।
कलश स्थापना - करने के लिए गंगाजल, रोली, मोली, पान,कलश, सुपारी, नारियल, धूपबत्ती, घी का दीपक, फल, फूल की माला, बिल्वपत्र, चावल, केले के पत्ते, आम के पत्ते, बंदनवार के लिय,चंदन,हल्दी की गांठ, लाल वस्त्र, जो, बतासे, सुगंधित तेल, सिंदूर, कपूर, पंच सुगंध, नैवेद्य के लिए फल, पंचामृत के लिए दूध दही मधु, दुर्गा जी की मूर्ति, कुमारी पूजन के लिए वस्त्र, आभूषण, इत्यादि लेकर हम सवेरे स्नान करके और माता के चरणों में ध्यान लगा कर अगर घर में मंदिर है तो वहां पर नहीं तो एक नीचे फर्श पर सफाई करके चौकी पर एक घट रखकर उसमें जल रखकर ऊपर एक नारियल रखकर और घट की स्थापना करनी चाहिए और पूरा दिन माता के चरणों में 9 दिन ध्यान रखना चाहिए फिर घर की जैसी व्यवस्था है अगर अष्टमी को जोत व कन्या पूजन होता हो तो अष्टमी या नवमी को करनी चाहिए कन्या पूजन अति आवश्यक है नवरात्रों की पूजा से हमारी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं और माता का विशेष आशीर्वाद रहता है |
दुर्गासप्तशती में हर समस्या के लिए एक विशेष मंत्र
ॐ जयंती मंगला काली भद्रकाली कपालिनीदुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तुते।
नवरात्रि में दुर्गासप्तशती के मंत्रों का पूर्ण विधि-विधान से पाठ किया जाए तो बड़ी से बड़ी समस्या को भी हल किया जा सकता है। दुर्गासप्तशती में हर समस्या के लिए एक विशेष मंत्र बताया गया है जिसके जाप से व्यक्ति को तुरंत ही राहत मिलती है तथा समस्या हल हो जाती है। इस तरह मंत्र जपः जप विधि
सुबह जल्दी उठकर नहा-धोकर साफ-सुथरे कपड़े पहन कर किसी शांत स्थान पर बैठ कर मां दुर्गा की आराधना करें। इसके बाद रूद्राक्ष अथवा लाल चंदन की माला से मंत्र का जाप करें। जप शुरु करने के पहले किसी योग्य विद्वान से इन मंत्रों का उच्चारण सीख लें ताकि कोई गलती न हो सकें।
आप नीचे दिए गए मंत्रों में से अपनी समस्या के अनुसार कोई भी एक मंत्र चुन लें तथा उसका विधि-विधान से जप करें। समस्त कष्टों से मुक्ति पाने के लिए दुर्गासप्तशती के मंत्र |
दुर्भाग्य से मुक्ति तथा समस्त बाधाओं की शांति के लिए
सर्वाबाधाप्रशमनं त्रैलोक्यस्याखिलेश्वरि। एवमेव त्वया कार्यमस्मद्वैरिविनासनम्।।
अचानक आई विपत्ति के नाश के लिए
देवि प्रपन्नार्तिहरे प्रसीद प्रसीद मातर्जगतोखिलस्य। प्रसीद विश्वेश्वरी पाहि विश्वं त्वमीश्वरी देवि चराचरस्य।।
सुंदर तथा सुशील पत्नी पाने के लिए
पत्नीं मनोरमां देहि मनोवृत्तानुसारिणीम्। तारिणीं दुर्गसंसारसागरस्य कुलोद्भवाम।।
गरीबी से मुक्ति पाने के लिए
दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तो: स्वस्थै: स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि।
दारिद्रयदु:खभयहारिणि का त्वदन्या सर्वोपकारकरणाय सदाद्र्रचिता।।
शत्रुओं तथा समस्त कष्टों से रक्षा के लिए
शूलेन पाहि नो देवि पाहि खड्गेन चाम्बिके। घण्टास्वनेन न: पाहि चापज्यानि:स्वनेन च।।
मृत्यु पश्चात स्वर्ग तथा मोक्ष की प्राप्ति के लिए
सर्वस्य बुद्धिरूपेण जनस्य हदि संस्थिते। स्वर्गापर्वदे देवि नारायणि नमोस्तु ते।।
समस्त संकटों के नाश के लिए
दुर्गे देवि नमस्तुभ्यं सर्वकामार्थसाधिके। मम सिद्धिमसिद्धिं वा स्वप्ने सर्वं प्रदर्शय।।
भय नाश के लिए
यस्या: प्रभावमतुलं भगवाननन्तो ब्रह्मा हरश्च न हि वक्तुमलं बलं च।
सा चण्डिकाखिलजगत्परिपालनाय नाशाय चाशुभभयस्य मतिं करोतु।।
शारीरिक, मानसिक रोगों के नाश के लिए
रोगानशेषानपहंसि तुष्टा रुष्टा तु कामान् सकलानभीष्टान् ।
त्वामाश्रितानां न विपन्नराणां त्वामाश्रिता ह्याश्रयतां प्रयान्ति |
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है.
क्षमामूर्ति गौमाता
इंदौर की महारानी अहिल्याबाई ने अपने राज में तुरन्त न्याय हेतु अपने महल के दरवाजे पर एक बड़ा घंटा लगवा रखा था। जिसे भी त्वरित न्याय की जरूरत होती, वह जाकर घण्टा बजा देता था। जिसके बाद तुरन्त दरबार लगता तुरन्त न्याय मिलता। एक दिन घन्टे की आवाज सुनकर देवी अहिल्याबाई ने ऊपर से एक विचित्र दृश्य देखा, कि एक गाय न्याय का घंटा बजा रही है। तुरन्त महारानी ने गाय के मालिक को बुलाकर पूछा कि 'आज तुम्हारी गाय ने स्वयं आकर न्याय की गुहार की है। क्या तुम गौमाता को चारा पानी नहीं देते हो। उस व्यक्ति ने हाथ जोड़कर कहा, 'मातेश्री ऐसी बात नहीं है।' गौमाता पर अन्याय मेरे से नहीं, बल्कि आपके सुपुत्र मालोजीराव के रथ के सामने अकस्मात इस गाय का बछड़ा उछलकर आ जाने से मर गया। मालोजीराव बचपन से बेहद शरारती व उच्छृंखल प्रवृति के तो थे ही, इसलिए अपने पुत्र को अपराधी जानकर देवी अहिल्याबाई तनिक भी विचलित नहीं हुई। उन्होंने तुरन्त मालोजीराव की पत्नी मेनाबाई को दरबार में बुलाया और कहा कि यदि कोई व्यक्ति किसी माता के पुत्र की हत्या कर दें, तो उसे क्या दण्ड मिलना चाहिए? मालोजी की पत्नी ने तुरन्त कहा, जिस प्रकार से हत्या हुई है ठीक उसी प्रकार उसे भी प्राण-दण्ड मिलना चाहिए। देवी अहिल्या ने तुरन्त मालोजीराव को प्राण-दण्ड की सजा सुना कर उसी समय, उसी स्थान पर हाथ-पैर बंधवा रास्ते में डाल दिया और रथ के सारथी को आदेश दिया मालोजी पर रथ दौड़ाया जावे। सारथी ने हाथ जोड़कर कहा, 'मातेश्री' मालोजी राजकुल के एकमात्र कुलदीपक हैं। आप चाहे तो मुझे प्राण दण्ड दे दे, किन्तु मैं उनके प्राण नहीं ले सकता। तब देवी अहिल्याबाई स्वयं अपने सुपुत्र मालोजी की ओर रथ को तेजी से दौड़ाया। तभी अचानक एक अप्रत्याशित घटना हुई। रथ निकट आते ही फरियादी गौमाता रथ के सामने आ कर खड़ी हो गयी। गौमाता को हटाकर देवी ने फिर एक बार रथ दौड़ाया परन्तु गौमातर फिर रथ के सामने आकर खड़ी हो गयी। यह सारा दृष्य देखकर जनसमुदाय ने गौमाता के ममत्व की जय-जयकार करने लगा। देवी अहिल्या की आँखो से भी अश्रुधारा बह निकली। गौमाता ने स्वयं का पुत्र खोकर भी हत्यारे के प्राण बचाये। जिस स्थान पर गौमाता आड़ी खड़ी हुई थी, वही स्थान आज इन्दौर में राजबाड़ा के पास आड़ा बाजार के नाम से जाना जाता है। धन्य है गौमाता।
गौचारण के दौरान प्रभु ने अपने पैर में पादत्रण (पाहुनियां-जूतियां) नहीं पहनी। गोपाष्टमी को जब प्रथम बार भगवान श्री कृष्ण जी गोमाताजी को चराने पधारे तो माता यशोदा जी लकुटी, कम्बल और पाहुनी (जूतियां) लेकर आई भगवान ने यशोदा मैया से लकुटी ले ली, काली कमलिया कन्धों पर रख दी पर पैरों में जूतियां पहनने से मना कर दिया। श्री कृष्ण ने मैया से कहा कि मैं ये नहीं पहनूंगा। भगवान ने कहा कि गो चारण तो इष्ट सेवा है और गौमाता हमारी इष्ट है भला मैं अपने इष्ट के सामने जूतियां कैसे पहनूं।
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