शनिवार, 28 दिसंबर 2024

संघ स्थापना की पृष्ठभूमि

 


संघ स्थापना की पृष्ठभूमि


• संघ संस्थापक प.पू. डॉ. हेडगेवार जो अपने जीवन काल में राष्ट्र की स्वतन्त्रता के लिये चल रहे सामाजिक, धार्मिक, क्रान्तिकारी व राजनैतिक क्षेत्रों के सभी समकालीन संगठनों व आन्दोलनों से सम्बद्ध रहे। उन्होंने अनेक महत्त्वपूर्ण आन्दोलनों का नेतृत्व भी किया। इन सभी के अध्ययन व मुल्यांकन के चाद उन्होंने राष्ट्र की परतन्त्रता के कारणों को सार रूप में प्रकट किया। उन्होंने राष्ट्र की अवनति के तीन प्रमुख कारण बताये।


१. आत्मविस्मृत समाज (समाज की आत्मविस्मृति) हिन्दुत्व की श्रेष्ठता, गौरवशाली अतीत, राष्ट्रीय एकात्मता व सामाजिक समरसता के भाव का विस्मरण।


२. आत्मकेन्द्रित व्यक्ति- समाज हित दुर्लक्षित, स्वार्थपरता, एकाकीभाव प्रभावी


३. सामूहिक अनुशासन का अभाव परिणाम विघटित समाज तथा परतन्त्र व खण्डित राष्ट्र।


मुस्लिम तथा ब्रिटिश आक्रमण व शासन के दुष्परिणाम -


प्रतिक्रियात्मक देशभक्ति का निर्माण (भावात्मक, स्वाभाविक, सकारात्मक (Positive) देश भक्ति की सम्यक् कल्पना का अभाव)।


आत्महीनता के भाव का होना- भाषा, शिक्षा, जीवन मूल्यों, महापुरुषों, इतिहास आदि के प्रति स्वाभिमान शून्यता बढ़ना। स्वयं को हिन्दु कहलाने में लज्जा का अनुभव होना।


राष्ट्रीयता की भ्रामक कल्पना - "देश का भाग्य हिन्दु के साथ जुड़ा है"


इस भाव का अभाव। स्वतन्त्रता प्राप्ति के आन्दोलनों के समय नेताओं में पूर्ण आत्मविश्वास की कमी। स्वतन्त्रता के लिये मुस्लिम समुदाय को साथ लेने के लिये राष्ट्रीयता के सिद्धान्त तथा मान बिन्दुओं को छोड़ने के साथ वन्दे मातरम् गीत को भी छोड़ना व खिलाफत आन्दोलन आदि ।


संगठन का अभाव - जिसके कारण विभिन्न आन्दोलनों का बीच में टूटना। मुट्ठी भर व्यक्तियों से देश की स्वतन्त्रता व समस्याओं का समाधान सम्भव नहीं।


डॉक्टर जी की घोषणा भारत हिन्दु राष्ट्र है। शक्ति द्वारा ही सभी कार्य सम्भव शक्ति संगठन में। अतः संगठन व अनुशासन आवश्यक ।


उपाय - इसके लिये सम्पूर्ण देश को जागृत करना होगा। समाज के इन सभी दोषों को दूर करने के लिये डॉक्टर जी ने स्वाभिमानी, संस्कारित, अनुशासित, चरित्रवान, शक्तिसम्पन्न, विशुद्ध देशभक्ति से ओत-प्रोत, व्यक्तिगत अंहकार से मुक्त व्यक्तियों के ऐसे संगठन को आवश्यक समझा जो स्वतन्त्रता आन्दोलन की रीढ़ होने के साथ ही राष्ट्र व समाज पर आने वाली प्रत्येक विपत्ति का सामना भी कर सकेगा। इसी विचार में से संघ का कार्य प्रारम्भ हुआ तथा डॉक्टर जी ने संगठन के लिये शाखा रूपी अभिनव पद्धति को विकसित किया।


• हिन्दु समाज में नहीं अपितु सम्पूर्ण हिन्दु समाज का संगठन करना आवश्यक, इसके लिये विशेष गुणयुक्त स्वयंसेवक सर्वदूर तैयार हों, इसी के लिए राष्ट्री

य स्वयंसेवक संघ की स्थापना।


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