शुक्रवार, 29 नवंबर 2024

ऋषियों ने इसलिए दिया था 'हिन्दुस्थान' नाम

 


ऋषियों ने इसलिए दिया था 'हिन्दुस्थान' नाम

भारत जिसे हम हिंदुस्तान, इंडिया, सोने की चिड़िया, भारतवर्ष ऐसे ही अनेकानेक नामों से जानते हैं। आदिकाल में विदेशी लोग भारत को उसके उत्तर-पश्चिम में बहने वाले महानदी सिंधु के नाम से जानते थे, जिसे ईरानियो ने हिंदू और यूनानियो ने शब्दों का लोप करके 'इण्डस' कहा। भारतवर्ष को प्राचीन ऋषियों ने 'हिन्दुस्थान' नाम दिया था जिसका अपभ्रंश 'हिन्दुस्तान' है।

'बृहस्पति आगम' के अनुसार

हिमालयात् समारभ्य यावत् इन्दु सरोवरम्।

तं देवनिर्मितं देशं हिन्दुस्थानं प्रचक्षते॥

यानि हिमालय से प्रारम्भ होकर इन्दु सरोवर (हिन्द महासागर) तक यह देव निर्मित देश हिन्दुस्थान कहलाता है।

भारत में रहने वाले जिसे आज लोग हिंदू नाम से ही जानते आए हैं।

भारतीय समाज, संस्कृति, जाति और राष्ट्र की पहचान के लिये हिंदू शब्द लाखों वर्षों से संसार में प्रयोग किया जा रहा है विदेशियों नेअपनी उच्चारण सुविधा के लिये 'सिंधु' का हिंदू या 'इण्डस' से इण्डोस बनाया था, किन्तु इतने मात्र से हमारे पूर्वजों ने इसको नहीं माना।

'अद्भुत कोष', 'हेमंतकविकोष', 'शमकोष','शब्द-कल्पद्रुम', 'पारिजात हरण नाटक'. काली का पुराण आदि अनेक संस्कृत ग्रंथो में हिंदू शब्द का प्रयोग पाया गया है।

ईसा की सातवीं शताब्दी में भारत में आने वाले चीनी यात्री ह्वेंनसांग ने कहा था कि यहां के लोगो को 'हिंदू' नाम से पुकारा जाता था। चंदबरदाई के पृथ्वीराज रासो में 'हिंदू' शब्द का प्रयोग हुआ है।

पृथ्वीराज चौहान को 'हिंदू अधिपति' संबोधित किया गया है। समर्थ गुरु रामदास ने बड़े अभिमान पूर्वक हिंदू और हिन्दुस्थान शब्दों का प्रयोग किया।

शिवाजी ने हिंदुत्व की रक्षा की प्रेरणा दी और गुरु तेग बहादुर और गुरु गोविन्द सिंह तो हिंदुत्व के लिए अपनी ज़िंदगी समर्पित कर दी।

स्वामी विवेकानंद ने स्वयं को गर्व पूर्वक हिंदू कहा था। हमारे देश के इतिहास में हिंदू कहलाना और हिंदुत्व की रक्षा करना बड़े गर्व और अभिमान की बात समझी जाती थी।

वर वधू की तलाश है तो निम्नलिखित फार्म भरे 

https://docs.google.com/forms/d/e/1FAIpQLSfedPV8_-DJ3X_jN8dqfmu99JIXX0zU7T2A8gRh4BwpTMTaYw/viewform?usp=sf_link

आपको अगर कोई समस्या परेशान कर रही है तो संपर्क करें* 

शर्मा जी 9312002527,9560518227

*ज्ञानवर्धक कहानियां व अध्यात्मिक विषय पर प्रवचन सुनने के लिए क्लिक करें*

https://youtube.com/@satishsharma7164?si=ea3mZzKWzFD9MDWl

*ज्ञानवर्धक कहानियां व अध्यात्मिक विषय पर लेख पढ़ने के लिए क्लिक करें*

www.sumansangam.com

*अपनी जिज्ञासा,सुझाव व लेख निम्नलिखित ईमेल पर मेल करें*

sumansangam1957@gmail.com

मेरा ब्लॉग पढ़ने के लिए क्लिक करें 

sumansangam1957.blogspot.com


मंगलवार, 26 नवंबर 2024

उत्पन्ना एकादशी


    

उत्पन्ना एकादशी


उत्पन्ना एकादशी का व्रत मार्गशीर्ष मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी को रखा जाता है। इस दिन भगवान श्रीकृष्ण की पूजा का विधान है। एकादशी का व्रत रखने वाले दशमी के दिन शाम को भोजन नहीं करते हैं। एकादशी के दिन ब्रह्मावेला में भगवान कृष्ण की पुष्प, जल, धूप, अक्षत से पूजा की जाती है। इस व्रत में केवल फलों का ही भोग लगाया जाता है। यह ब्रह्मा, विष्णु, महेश त्रिदेवों का संयुक्त अंश माना जाता है। यह अंश दत्तात्रेय के रूप में प्रकट था। यह मोक्ष देने वाला व्रत माना जाता है।

उत्पन्ना एकादशी की कहानी

सत्ययुग में एक बार मुर नामक दैत्य ने देवताओं पर विजय प्राप्त कर इन्द्र को अपदस्थ कर दिया। देवता भगवान शंकर की शरण में पहुंचे। भगवान शंकर ने देवताओं को विष्णुजी के पास भेज दिया। विष्णुजी ने दानवों को तो परास्त कर दिया परन्तु मुर भाग गया। विष्णु ने मुर को भागता देखकर लड़ना छोड़ दिया और बद्रिकाश्रम की गुफा में आराम करने लगे। मुर ने वहां पहुंचकर विष्णुजी को मारना चाहा। तत्काल विष्णुजी के शरीर से एक कन्या को आशीर्वाद दिया कि तुम संसार में माया जाल में उलझे तथा मोह के कारण मुझसे विमुख प्राणियों को मुझ तक लाने में सक्षम होओगे। तुम्हारी आराधना करने वाले प्राणी आजीवन सुखी रहेंगे। ऐसी है जिसका माहात्य अपूर्व है।


वर वधू की तलाश है तो निम्नलिखित फार्म भरे 

https://docs.google.com/forms/d/e/1FAIpQLSfedPV8_-DJ3X_jN8dqfmu99JIXX0zU7T2A8gRh4BwpTMTaYw/viewform?usp=sf_link

आपको अगर कोई समस्या परेशान कर रही है तो संपर्क करें* 

शर्मा जी 9312002527,9560518227

*ज्ञानवर्धक कहानियां व अध्यात्मिक विषय पर प्रवचन सुनने के लिए क्लिक करें*

https://youtube.com/@satishsharma7164?si=ea3mZzKWzFD9MDWl

*ज्ञानवर्धक कहानियां व अध्यात्मिक विषय पर लेख पढ़ने के लिए क्लिक करें*

www.sumansangam.com

*अपनी जिज्ञासा,सुझाव व लेख निम्नलिखित ईमेल पर मेल करें*

sumansangam1957@gmail.com

मेरा ब्लॉग पढ़ने के लिए क्लिक करें 

sumansangam1957.blogspot.com


मंगल ग्रह की जानकारी,उपाय,हनुमान चालीसा,संकटमोचन हनुमानाष्टक,हनुमानजी की आरती

 


मंगल ग्रह 

मंगल हिंसक,शुर ,तरुण ,पित्त प्रक्रति लाल गोर वरनी अग्नि जैसा उग्र उदार तामसी स्वभाव वाला और

गर्वीला होता है | सौर परिवार में मंगल का चोथा स्थान है | मंगल ग्रह को ऊर्जा, भूमि और साहस का कारक ग्रह माना गया है। ज्योतिष शास्त्र में मंगल ग्रह को क्रूर ग्रह माना गया है। मेष और वृश्चिक राशि के स्वामी मंगल ग्रह होते हैं। मंगल मकर राशि में उच्च के जबकि कर्क राशि में नीच के माने गए हैं।

मंगल का रत्न - मूंगा, लाल रंग का धागा अभिमंत्रित

कर पहन सकते है।

मंगल का वहन मेथा ,

मेष व वृश्चिक राशी का स्वामी होता है | 

कमजोर मंगल के रोग - पित ,वायु ,कर्ण रोग,विशु चिका , खुजली | 

कुंडली में मंगल 4 ,8 भाव को पूर्ण दृष्टि से देखता है | 

मंगल की धातु - सुवर्ण ,ताम्र | 

मंगल का दान - मसूर ,गूढ़ ,घी ,लाल वस्त्र ,लाल कनेर ,कस्तूरी , लाल चन्दन |

मंगल का बीज मंत्र- ॐ क्रां क्रीं क्रौं सः भौमाय नमः।

मंगल का अंक - 9 

मंगल अशुभ हो तो कभी कभी जेल के दर्शन भी हो जाते हैं | कुंडली का मंगल जीवन के सुख, संपत्ति, विवाद और मुकदमेबाजी जैसे पहलुओं को विशेष रूप से प्रभावित करता है | यानि जीवन के हर मोड़ पर खराब या अशुभ मंगल का प्रभाव रहता है और इंसान की जिंदगी को प्रभावित भी करता है | मंगलवार के दिन किसी गरीब या जरूरतमंद को लाल रंग का कपड़ा दान करें। हनुमान जी के मंदिर जाकर संतरी रंग के सिंदूर में चमेली का तेल मिलाकर हनुमान जी को चौला चढ़ाएं। मंगल ग्रह के मंत्रों का जाप करें। ढाई किलो लाल मसूर की दाल किसी कुष्ठ रोगी को दान करें।

अंधकासुर से युद्ध के समय लड़ते-लड़ते भगवान शिव के मस्तक से पसीने की एक बूंद पृथ्वी पर गिरी, उससे अंगार के समान लाल अंग वाले भूमिपुत्र मंगल का जन्म हुआ।मंगल ग्रह या मंगल दोष हेतु अक्सर हनुमानजी की पूजा बताई जाती है और हनुमानजी का दिन भी मंगलवार भी है परंतु मंगलदेव ही मंगल ग्रह के देवता है और उनका वार भी मंगलवार ही होता है। मंगल दोष की शांति हेतु उनकी भी पूजा की जाती है।


हनुमान चालीसा 

॥दोहा॥   

श्रीगुरु चरन सरोज रज निज मनु मुकुरु सुधारि । 

बरनउँ रघुबर बिमल जसु जो दायकु फल चारि ॥ 

बुद्धिहीन तनु जानिके सुमिरौं पवन-कुमार । 

बल बुधि बिद्या देहु मोहिं हरहु कलेस बिकार ॥ ॥

चौपाई॥ 

जय हनुमान ज्ञान गुन सागर । जय कपीस तिहुँ लोक उजागर ॥१॥ 

राम दूत अतुलित बल धामा । अञ्जनि-पुत्र पवनसुत नामा ॥२॥ 

महाबीर बिक्रम बजरङ्गी । कुमति निवार सुमति के सङ्गी ॥३॥ 

कञ्चन बरन बिराज सुबेसा । कानन कुण्डल कुञ्चित केसा ॥४॥ 

हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजै । काँधे मूँज जनेउ साजै ॥५॥ 

सङ्कर सुवन केसरीनन्दन । तेज प्रताप महा जग बन्दन ॥६॥ 

बिद्यावान गुनी अति चातुर । राम काज करिबे को आतुर ॥७॥ 

प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया । राम लखन सीता मन बसिया ॥८॥ 

सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा । बिकट रूप धरि लङ्क जरावा ॥९॥ 

भीम रूप धरि असुर सँहारे । रामचन्द्र के काज सँवारे ॥१०॥ 

लाय सञ्जीवन लखन जियाये । श्रीरघुबीर हरषि उर लाये ॥११॥ 

रघुपति कीह्नी बहुत बड़ाई । तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई ॥१२॥ 

सहस बदन तुह्मारो जस गावैं । अस कहि श्रीपति कण्ठ लगावैं ॥१३॥ 

सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा । नारद सारद सहित अहीसा ॥१४॥ 

जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते । कबि कोबिद कहि सके कहाँ ते ॥१५॥ 

तुम उपकार सुग्रीवहिं कीह्ना । राम मिलाय राज पद दीह्ना ॥१६॥ 

तुह्मरो मन्त्र बिभीषन माना । लङ्केस्वर भए सब जग जाना ॥१७॥ 

जुग सहस्र जोजन पर भानु । लील्यो ताहि मधुर फल जानू ॥१८॥ 

प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं । जलधि लाँघि गये अचरज नाहीं ॥१९॥ 

दुर्गम काज जगत के जेते । सुगम अनुग्रह तुह्मरे तेते ॥२०॥ 

राम दुआरे तुम रखवारे । होत न आज्ञा बिनु पैसारे ॥२१॥ 

सब सुख लहै तुह्मारी सरना । तुम रच्छक काहू को डर ना ॥२२॥ 

आपन तेज सह्मारो आपै । तीनों लोक हाँक तें काँपै ॥२३॥ 

भूत पिसाच निकट नहिं आवै । महाबीर जब नाम सुनावै ॥२४॥ 

नासै रोग हरै सब पीरा । जपत निरन्तर हनुमत बीरा ॥२५॥ 

सङ्कट तें हनुमान छुड़ावै । मन क्रम बचन ध्यान जो लावै ॥२६॥ 

सब पर राम तपस्वी राजा । तिन के काज सकल तुम साजा ॥२७॥ 

और मनोरथ जो कोई लावै । सोई अमित जीवन फल पावै ॥२८॥ 

चारों जुग परताप तुह्मारा । है परसिद्ध जगत उजियारा ॥२९॥ 

साधु सन्त के तुम रखवारे । असुर निकन्दन राम दुलारे ॥३०॥ 

अष्टसिद्धि नौ निधि के दाता । अस बर दीन जानकी माता ॥३१॥  

राम रसायन तुह्मरे पासा । सदा रहो रघुपति के दासा ॥३२॥ 

तुह्मरे भजन राम को पावै । जनम जनम के दुख बिसरावै ॥३३॥ 

अन्त काल रघुबर पुर जाई । जहाँ जन्म हरिभक्त कहाई ॥३४॥ 

और देवता चित्त न धरई । हनुमत सेइ सर्ब सुख करई ॥३५॥ 

सङ्कट कटै मिटै सब पीरा । जो सुमिरै हनुमत बलबीरा ॥३६॥ 

जय जय जय हनुमान गोसाईं । कृपा करहु गुरुदेव की नाईं ॥३७॥ 

जो सत बार पाठ कर कोई । छूटहि बन्दि महा सुख होई ॥३८॥ 

जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा । होय सिद्धि साखी गौरीसा ॥३९॥ 

तुलसीदास सदा हरि चेरा । कीजै नाथ हृदय महँ डेरा ॥४०॥ 

॥दोहा॥ 

पवनतनय सङ्कट हरन मङ्गल मूरति रूप । 

राम लखन सीता सहित हृदय बसहु सुर भूप ॥ 

---------------------

संकटमोचन हनुमानाष्टक

बाल समय रबि भक्षि लियो तब, तीनहुं लोक भयो अंधियारो । 

ताहि सों त्रास भयो जग को, यह संकट काहु सों जात न टारो ॥ 

देवन आन करि बिनती तब, छांड़ि दियो रबि कष्ट निवारो । 

को नहिं जानत है जग में कपि, संकटमोचन नाम तिहारो ॥ 1 ॥ 

बालि की त्रास कपीस बसै गिरि,जात महाप्रभु पंथ निहारो । 

चौंकि महा मुनि शाप दिया तब,चाहिय कौन बिचार बिचारो ॥ 

के द्विज रूप लिवाय महाप्रभु,सो तुम दास के शोक निवारो । 

को नहिं जानत है जग में कपि,संकटमोचन नाम तिहारो ॥2॥ 

अंगद के संग लेन गये सिय,खोज कपीस यह बैन उचारो । 

जीवत ना बचिहौ हम सो जु,बिना सुधि लाय इहाँ पगु धारो ॥ 

हेरि थके तट सिंधु सबै तब,लाय सिया-सुधि प्राण उबारो । 

को नहिं जानत है जग में कपि,संकटमोचन नाम तिहारो ॥3॥ 

रावन त्रास दई सिय को सब,राक्षसि सों कहि शोक निवारो । 

ताहि समय हनुमान महाप्रभु,जाय महा रजनीचर मारो ॥ 

चाहत सीय अशोक सों आगि सु,दै प्रभु मुद्रिका शोक निवारो । 

को नहिं जानत है जग में कपि,संकटमोचन नाम तिहारो ॥4॥ 

बाण लग्यो उर लछिमन के तब,प्राण तजे सुत रावण मारो । 

लै गृह बैद्य सुषेन समेत,तबै गिरि द्रोण सु बीर उपारो ॥ 

आनि सजीवन हाथ दई तब,लछिमन के तुम प्राण उबारो । 

को नहिं जानत है जग में कपि,संकटमोचन नाम तिहारो ॥5॥ 

रावण युद्ध अजान कियो तब,नाग कि फांस सबै सिर डारो । 

श्रीरघुनाथ समेत सबै दल,मोह भयोयह संकट भारो ॥ 

आनि खगेस तबै हनुमान जु,बंधन काटि सुत्रास निवारो । 

को नहिं जानत है जग में कपि,संकटमोचन नाम तिहारो ॥6॥ 

बंधु समेत जबै अहिरावन,लै रघुनाथ पाताल सिधारो । 

देबिहिं पूजि भली बिधि सों बलि,देउ सबै मिति मंत्र बिचारो ॥ 

जाय सहाय भयो तब ही,अहिरावण सैन्य समेत सँहारो । 

को नहिं जानत है जग में कपि,संकटमोचन नाम तिहारो ॥7॥ 

काज किये बड़ देवन के तुम,वीर महाप्रभु देखि बिचारो । 

कौन सो संकट मोर गरीब को,जो तुमसों नहिं जात है टारो ॥ 

बेगि हरो हनुमान महाप्रभु,जो कछु संकट होय हमारो । 

को नहिं जानत है जग में कपि,संकटमोचन नाम तिहारो ॥8॥॥  

दोहा :  ॥

लाल देह लाली लसे,अरू धरि लाल लंगूर ।  

बज्र देह दानव दलन,जय जय जय कपि सूर ॥ 

॥ इति संकटमोचन हनुमानाष्टक सम्पूर्ण ॥


हनुमानजी की आरती 

आरती कीजै हनुमान लला की।दुष्ट दलन रघुनाथ कला की।।

जाके बल से गिरिवर कांपे।रोग दोष जाके निकट न झांके।।

अंजनि पुत्र महाबलदायी।सन्तन के प्रभु सदा सहाई।।

दे बीरा रघुनाथ पठाए।लंका जारि सिया सुध लाए।।

लंका सो कोट समुद्र सी खाई।जात पवनसुत बार न लाई ।।

लंका जारि असुर संहारे।सियारामजी के काज संवारे ।।

लक्ष्मण मूर्छित पड़े सकारे।आणि संजीवन प्राण उबारे ।।

पैठी पताल तोरि जमकारे।अहिरावण की भुजा उखारे ।।

बाएं भुजा असुर दल मारे।दाहिने भुजा संतजन तारे ।।

सुर-नर-मुनि जन आरती उतारे।जै जै जै हनुमान उचारे ।।

कंचन थार कपूर लौ छाई।आरती करत अंजना माई ।।

जो हनुमानजी की आरती गावै।बसि बैकुंठ परमपद पावै ।।

लंकविध्वंस किए रघुराई।तुलसीदास प्रभु कीरति गाई ।।

आरती कीजै हनुमान लला की।दुष्ट दलन रघुनाथ कला की ।।

------------------------

जन्म कुंडली दिखाने के लिए व वनबाने हेतु संपर्क करें - 

शर्मा जी, जन्म कुंडली विशेषज्ञ व सलाहकार,9312002527, 9560518227

jaankaarikaal.blogspot.com 

jankarikal@gmail.com 

www.jaankaarikaal.com 


सोमवार, 25 नवंबर 2024

चंद्र ग्रह व शिव चालीसा ।


चंद्र ग्रह

नवग्रहों में सूर्य के बाद चन्द्रमा ज्योतिष में सर्वाधिक महत्वपूर्ण ग्रह है | चंद्र ग्रह कर्क राशी का स्वामी है | 
कमजोर चंद्र के कारण होने वाले कष्ट - व्यक्ति को स्त्री पक्ष से या स्त्री को लेकर कष्ट बना रहता है | हारमोंस की समस्या और अवसाद का योग बनता है नींद न आने की समस्या भी होती है,व्यक्ति बार बार नींद में चौंक कर उठ जाता है | व्यक्ति को माता का सुख नहीं मिलता या व्यक्ति के सम्बन्ध माता से ख़राब होता है |
चंद्र दोष दूर करने के उपाय - कुण्डली में उत्पन्न चंद्र दोष को दूर करने के लिए सर्वौत्तम उपाय है कि सोमवार के दिन भगवान शिव का गाय के दूध से रूद्राभिषेक करना चाहिए।स्फटिक की माला पहनने से भी चंद्र दोष से मुक्ति मिलती है।चंद्रोदय के समय दूध में चावल और बताशा डाल कर चंद्रमा को अर्घ्य देना चाहिए।चंद्र नीच का हो तो चंद्र की चीजों का दान नही लेना चहिये। शिव चालीसा का नियमित पाठ करें चंद्र पीड़ा की विशेष शांति हेतु चांदी, मोती, शंख, सीप, कमल और पंचगव्य मिलाकर सात सोमवार तक स्नान करें। पंच धातु के शिवलिंग का निर्माण करके उसका यथायोग्य पूजन करने से चंद्र पीड़ा शांत होती है। सोम वार के व्रत करे | पूर्णिमा के दिन चंद्र दर्शन करे व चन्द्रमा की रौशनी में चंद्र मन्त्र का जाप करे | चंद्र देव को सफेद रंग प्रिय है इसलिय सोमवार व पूर्णिमा को सफेद रंग की चीज दान करे |
चंद्र ग्रह का रत्न - मोती 
चंद्र ग्रह की धातु - सुवर्ण , चांदी,
चंद्र ग्रह का वार - सोमवार 
दान योग्य वस्तु - चावल ,मिश्री ,दही ,स्वेत वस्त्र ,श्वेत पुष्प ,शंख ,श्वेत चन्दन |
चन्द्रमा कमजोर होने पर होने वाले रोग तिल्ली ,पांडू ,यकृत ,कफ ,उदर संबंधी रोग  
चंद्रदेव मंत्र
ॐ ऐं क्लीं सोमाय नम:। ॐ भूर्भुव: स्व: अमृतांगाय विदमहे कलारूपाय धीमहि तन्नो सोमो प्रचोदयात्।

शिव चालीसा 

श्री गणेश गिरिजा सुवन, मंगल मूल सुजान।
कहत अयोध्यादास तुम, देहु अभय वरदान॥

जय गिरिजा पति दीन दयाला। सदा करत सन्तन प्रतिपाला॥
भाल चन्द्रमा सोहत नीके। कानन कुण्डल नागफनी के॥
अंग गौर शिर गंग बहाये। मुण्डमाल तन छार लगाये॥
वस्त्र खाल बाघम्बर सोहे। छवि को देख नाग मुनि मोहे॥1॥

मैना मातु की ह्वै दुलारी। बाम अंग सोहत छवि न्यारी॥
कर त्रिशूल सोहत छवि भारी। करत सदा शत्रुन क्षयकारी॥
नन्दि गणेश सोहै तहँ कैसे। सागर मध्य कमल हैं जैसे॥
कार्तिक श्याम और गणराऊ। या छवि को कहि जात न काऊ॥2॥

देवन जबहीं जाय पुकारा। तब ही दुख प्रभु आप निवारा॥
किया उपद्रव तारक भारी। देवन सब मिलि तुमहिं जुहारी॥
तुरत षडानन आप पठायउ। लवनिमेष महँ मारि गिरायउ॥
आप जलंधर असुर संहारा। सुयश तुम्हार विदित संसारा॥3॥

त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई। सबहिं कृपा कर लीन बचाई॥
किया तपहिं भागीरथ भारी। पुरब प्रतिज्ञा तसु पुरारी॥
दानिन महं तुम सम कोउ नाहीं। सेवक स्तुति करत सदाहीं॥
वेद नाम महिमा तव गाई। अकथ अनादि भेद नहिं पाई॥4॥

प्रगट उदधि मंथन में ज्वाला। जरे सुरासुर भये विहाला॥
कीन्ह दया तहँ करी सहाई। नीलकण्ठ तब नाम कहाई॥
पूजन रामचंद्र जब कीन्हा। जीत के लंक विभीषण दीन्हा॥
सहस कमल में हो रहे धारी। कीन्ह परीक्षा तबहिं पुरारी॥5॥

एक कमल प्रभु राखेउ जोई। कमल नयन पूजन चहं सोई॥
कठिन भक्ति देखी प्रभु शंकर। भये प्रसन्न दिए इच्छित वर॥
जय जय जय अनंत अविनाशी। करत कृपा सब के घटवासी॥
दुष्ट सकल नित मोहि सतावै । भ्रमत रहे मोहि चैन न आवै॥6॥

त्राहि त्राहि मैं नाथ पुकारो। यहि अवसर मोहि आन उबारो॥
लै त्रिशूल शत्रुन को मारो। संकट से मोहि आन उबारो॥
मातु पिता भ्राता सब कोई। संकट में पूछत नहिं कोई॥
स्वामी एक है आस तुम्हारी। आय हरहु अब संकट भारी॥7॥

धन निर्धन को देत सदाहीं। जो कोई जांचे वो फल पाहीं॥
अस्तुति केहि विधि करौं तुम्हारी। क्षमहु नाथ अब चूक हमारी॥
शंकर हो संकट के नाशन। मंगल कारण विघ्न विनाशन॥
योगी यति मुनि ध्यान लगावैं। नारद शारद शीश नवावैं॥8॥

नमो नमो जय नमो शिवाय। सुर ब्रह्मादिक पार न पाय॥
जो यह पाठ करे मन लाई। ता पार होत है शम्भु सहाई॥
ॠनिया जो कोई हो अधिकारी। पाठ करे सो पावन हारी॥
पुत्र हीन कर इच्छा कोई। निश्चय शिव प्रसाद तेहि होई॥9॥

पण्डित त्रयोदशी को लावे। ध्यान पूर्वक होम करावे ॥
त्रयोदशी ब्रत करे हमेशा। तन नहीं ताके रहे कलेशा॥
धूप दीप नैवेद्य चढ़ावे। शंकर सम्मुख पाठ सुनावे॥
जन्म जन्म के पाप नसावे। अन्तवास शिवपुर में पावे॥

कहे अयोध्या आस तुम्हारी। जानि सकल दुःख हरहु हमारी॥

॥ श्रीशिवपञ्चाक्षरस्तोत्रम् ॥

नागेन्द्रहाराय त्रिलोचनाय,
भस्माङ्गरागाय महेश्वराय ।
नित्याय शुद्धाय दिगम्बराय,
तस्मै न काराय नमः शिवाय ॥१॥

मन्दाकिनी सलिलचन्दन चर्चिताय,
नन्दीश्वर प्रमथनाथ महेश्वराय ।
मन्दारपुष्प बहुपुष्प सुपूजिताय,
तस्मै म काराय नमः शिवाय ॥२॥

शिवाय गौरीवदनाब्जवृन्द,
सूर्याय दक्षाध्वरनाशकाय ।
श्रीनीलकण्ठाय वृषध्वजाय,
तस्मै शि काराय नमः शिवाय ॥३॥

वसिष्ठकुम्भोद्भवगौतमार्य,
मुनीन्द्रदेवार्चितशेखराय।
चन्द्रार्क वैश्वानरलोचनाय,
तस्मै व काराय नमः शिवाय ॥४॥

यक्षस्वरूपाय जटाधराय,
पिनाकहस्ताय सनातनाय ।
दिव्याय देवाय दिगम्बराय,
तस्मै य काराय नमः शिवाय ॥५॥

पञ्चाक्षरमिदं पुण्यं यः पठेच्छिवसन्निधौ ।
शिवलोकमवाप्नोति शिवेन सह मोदते ॥

हिन्दी अनुवाद:

शिवपञ्चाक्षर स्तोत्र के रचयिता आदि गुरु शंकराचार्य हैं, जो परम शिवभक्त थे। शिवपञ्चाक्षर स्तोत्र पंचाक्षरी मन्त्र नमः शिवाय पर आधारित है।
न – पृथ्वी तत्त्व का
म – जल तत्त्व का
शि – अग्नि तत्त्व का
वा – वायु तत्त्व का और
य – आकाश तत्त्व का प्रतिनिधित्व करता है।

जिनके कण्ठ में सर्पों का हार है, जिनके तीन नेत्र हैं, भस्म ही जिनका अंगराग है और दिशाएँ ही जिनका वस्त्र हैं अर्थात् जो दिगम्बर (निर्वस्त्र) हैं ऐसे शुद्ध अविनाशी महेश्वर न कारस्वरूप शिव को नमस्कार है॥1॥

गङ्गाजल और चन्दन से जिनकी अर्चना हुई है, मन्दार-पुष्प तथा अन्य पुष्पों से जिनकी भलिभाँति पूजा हुई है। नन्दी के अधिपति, शिवगणों के स्वामी महेश्वर म कारस्वरूप शिव को नमस्कार है॥2॥

जो कल्याणस्वरूप हैं, पार्वतीजी के मुखकमल को प्रसन्न करने के लिए जो सूर्यस्वरूप हैं, जो दक्ष के यज्ञ का नाश करनेवाले हैं, जिनकी ध्वजा में वृषभ (बैल) का चिह्न शोभायमान है, ऐसे नीलकण्ठ शि कारस्वरूप शिव को नमस्कार है॥3॥

वसिष्ठ मुनि, अगस्त्य ऋषि और गौतम ऋषि तथा इन्द्र आदि देवताओं ने जिनके मस्तक की पूजा की है, चन्द्रमा, सूर्य और अग्नि जिनके नेत्र हैं, ऐसे व कारस्वरूप शिव को नमस्कार है॥4॥

जिन्होंने यक्ष स्वरूप धारण किया है, जो जटाधारी हैं, जिनके हाथ में पिनाक* है, जो दिव्य सनातन पुरुष हैं, ऐसे दिगम्बर देव य कारस्वरूप शिव को नमस्कार है॥5॥

जो शिव के समीप इस पवित्र पञ्चाक्षर स्तोत्र का पाठ करता है, वह शिवलोक को प्राप्त होता है और वहाँ शिवजी के साथ आनन्दित होता है।
-------------------

आरती 

ॐ जय शिव ओंकारा स्वामी हर शिव ओंकारा, 

ब्रह्मा विष्णु सदाशिव अर्द्धांगी धारा ।।ॐ हर हर हर महादेव ।।


एकानन चतुरानन पंचानन राजे, 

हंसासन गरूड़ासन वृषवाहन साजे ।।ॐ हर हर हर महादेव ।।


दो भुज चार चतुर्भुज दस भुज अति सोहे, 

तीनो रूप निरखता त्रिभुवन जन मोहे ।।ॐ हर हर हर महादेव ।।


अक्षमाला बनमाला रूण्डमाला धारी, 

चंदन मृगमद चंदा भाले शुभकारी ।।ॐ हर हर हर महादेव ।।


श्वेताम्बर पीताम्बर बाघाम्बर अंगे,

सनकादिक ब्रम्हादिक भूतादिक संगे ।।ॐ हर हर हर महादेव ।।


कर मध्ये कमण्डलु चक्र त्रिशूल धर्ता, 

जगकरता जगहरता जगपालन कर्ता ।।ॐ हर हर हर महादेव ।।


ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका,

 प्रणवाक्षर के मध्ये यह तीनो एका ।।ॐ हर हर हर महादेव ।।


श्री त्रिगुणत्मक स्वामी जी की आरती जो कोइ नर गावे,

कहत शिवानन्द स्वामी मनवान्छित फल पावे ।।ॐ हर हर हर महादेव ।।


ॐ जय शिव ओंकारा, स्वामी हर शिव ओंकारा,ॐ हर हर हर महादेव ।।



जन्म पत्रिका बनवाने व दिखाने हेतु सम्पर्क करे 
शर्मा जी 

Mobile-9312002527,9560518227
WhatsApp no - 9312002527
Email - jankarikal@gmail.com  
Web - www.jaankaarikaal.com

बुधवार, 20 नवंबर 2024

मतदान हमारा अधिकर ओर कर्तव्य


 

मतदान हमारा अधिकर ओर कर्तव्य  

मतदान हमारा अधिकार भी है ओर कर्तव्य भी, मतदान एक संवैधानिक अधिकार है | भारतीय  संविधान के अनुसार देश के नागरिकों को देश के संविधान द्वारा प्रदत्त सरकार चलाने के हेतु,अपने प्रतिनिधि निर्वाचित करने के का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 326 के अनुसार मिला है। लोकतंत्र का अर्थ ही है जनता की, जनता के द्वारा, जनता के लिए सरकार इसी लिए मतदान का लोकतंत्र में इसका बहुत महत्व होता है । भारतीय संविधान के अनुसार, 18 वर्ष से अधिक आयु के सभी भारतीय नागरिक जिन्होंने खुद को मतदाता के रूप में पंजीकृत किया है, वे मतदान करने के योग्य  हैं। मतदाता सूची मे पंजीकृत नागरिक राष्ट्रीय,राज्य,जिला और स्थानीय सरकारी निकाय चुनावों में मतदान कर सकते हैं। मतदाता केवल उसी निर्वाचन क्षेत्र में मतदान कर सकता है जहां उसने खुद को पंजीकृत किया है। मतदाताओं को उस निर्वाचन क्षेत्र में खुद को पंजीकृत करना होता है  जहां वे रहते हैं, जिसके बाद उन्हें फोटो चुनाव पहचान पत्र (जिसे ई पी आई सी कार्ड भी कहा जाता है) जारी किया जाता है । यदि किसी व्यक्ति ने मतदाता सूची मे नाम नहीं लिख वाया है तो उसे चुनावी प्रक्रिया में भाग लेने की अनुमति नहीं है । ये हमारा कर्तव्य है हम अपना नाम मतदाता सूची मे लिखवा लें ओर समय-समय पर मतदाता सूची का अवलोकन भी करते रहें ताकि ये सुनिश्चित रहे की हमारा नाम सूची मे है |

भारतीय संविधान मे  मतदाताओं के कुछ अधिकार भी दिए गए हैं। सभी नागरिकों  को चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों के बारे में जानने का अधिकार है। यह अधिकार भारतीय संविधान की धारा 19 के तहत मतदाताओं को दिया गया है। यह धारा मतदाताओं को उम्मीदवारों के चुनाव घोषणापत्र, उनकी कुल वित्तीय संपत्ति और उनके आपराधिक रिकॉर्ड (यदि कोई हो तो) से संबंधित जानकारी मांगने का अधिकार देती है। मतदाताओं को वोट न देने का अधिकार दिया गया है,जिसे सिस्टम में दर्ज किया जाता है। इसे NOTA (इनमें से कोई नहीं) वोट के रूप में भी जाना जाता है, मतदाता चुनाव में भाग लेता है लेकिन चुनाव लड़ रहे किसी भी उम्मीदवार को वोट नहीं देने का विकल्प चुनता है। इस प्रकार,मतदाता चुनावी प्रक्रिया में भाग ले रहे हैं और यह चुनने के अपने अधिकार का प्रयोग कर रहे हैं कि वे चुनाव लड़ रहे उम्मीदवारों को वोट देना चाहते हैं या नहीं। जो मतदाता शारीरिक विकलांगता या अन्य दुर्बलता के कारण वोट डालने में असमर्थ हैं तथा डाक मतपत्र के माध्यम से अपना वोट नहीं डाल सकते, वे निर्वाचन अधिकारी की सहायता ले सकते हैं, जो उनका वोट दर्ज करेगा। सीमा पर नियुक्त या ऐसे कर्मचारी जिनकी चुनाव आयोग द्वारा उनकी सेवा मतदान वाले दिन चुनाव केंद्रों पर है वह सब डाक मत पत्र द्वारा मतदान कर सकते है | पहले  एनआरआई (अनिवासी भारतीय) को वोट देने की अनुमति नहीं थी। हालाँकि 2010 में एक संशोधन किया गया था जो एन आर आई को मतदाता के रूप में खुद को पंजीकृत करने और चुनावों में मतदान करने की अनुमति देता है, भले ही वे किसी भी कारण से 6 महीने से अधिक समय तक देश में न रहे हों।

वर्तमान कानून के अनुसार कैदियों को अपने मताधिकार का प्रयोग करने की अनुमति नहीं है।

प्रस्तुत मत उस व्यक्ति पर लागू होता है जो खुद को मतदाता घोषित करता है और अपना वोट डालना चाहता है जबकि उसके नाम पर पहले ही वोट डाला जा चुका है। ऐसे मामले में व्यक्ति अपना वोट डाल सकता है यदि वह अपनी पहचान का सबूत दे सकता है। उसका वोट चुनाव आयोग द्वारा तय किए गए एक अलग मतपत्र पर दर्ज किया जाएगा।

मतदान का बहुत महत्व है विश्व मे  ऐसे अनेकों  उदाहरण  है, जब महज एक वोट से हार हो गई । ए आई ए डी एम के के समर्थन वापस लेने के बाद वाजपेयी सरकार को विश्वास प्रस्ताव रखना पड़ा। विश्वास प्रस्ताव के पक्ष में 269 और विरोध में 270 वोट पड़े और अटल बिहारी वाजपेयी  की सरकार चली गई  | राजस्थान विधानसभा के चुनाव में सीपी जोशी को 62,215 व कल्याण सिंह को 62,216 वोट मिले जोशी सीएम के प्रमुख उमीदवार थे। गौर करने  कि बात है की उनकी मां,पत्नी व ड्राइवर ने वोट नहीं डाला था। कर्नाटक विधानसभा चुनाव में जे डी एस के ए आर कृष्णमूर्ति को 40,751 मत मिले और कांग्रेस के आर ध्रुवनारायण को 40,752 वोट मिले । ए आर कृष्णमूर्ति के ड्राइवर को छुट्‌टी न मिलने के कारण वह  वोट नहीं डाल पाया था। 1885 में फ्रांस की  राजशाही एक वोट कम होने से  खत्म हुई और लोकतंत्र का आगाज हुआ ।  अमेरिका को 1776 में  एक वोट के  कारण जर्मन की जगह अंग्रेजी के रूप में उनको  मातृभाषा मिली थी। अमेरिकी राष्ट्रपति पद के लिए हुए 1876 के चुनाव में रदरफोर्ड बी हायेस ने 185 वोट हासिल किए थे और सैमुअल टिलडे़न को 184 मत मिले थे । एक ओर उद्धरण है एक वोट से  1910 में रिपब्लिक उम्मीदवार हार गया था । जर्मनी के लोग जानते हैं  एक वोट की ताकत, 1923 में एडोल्फ हिटलर एक वोट से जीत कर नाजी दल का मुखिया बन गया था।

आपके वोट में महत्वपूर्ण बदलाव लाने की क्षमता है। आप बेहतर सरकार के लिए वोट कर सकते हैं। अगर लोग वोट नहीं देते हैं, तो वही पार्टी अगले पांच साल तक सत्ता में रहेगी जिसको आप हटना/लाना चाहते है । अंत में, अगर देश में शासन ठीक से काम नहीं कर रहा तो यह लोगों की गलती है कि उन्होंने गलत तरीके से वोट दिया या बिल्कुल भी वोट नहीं दिया। हालांकि ऐसा लगता है कि वोट देने वालों की कोई कमी नहीं है, लेकिन हर वोट का महत्व है ओर वो बदलाव ला सकता है। जब अधिकांश लोगों का मत यह हो जाए की  "मेरे एक वोट से  कोई फर्क नहीं पड़ता" तो मतदान प्रतिशत कम होता,इस सोच को बदलना पड़े़गा | इस हेतु चुनाव आयोग भी विभिन्न समय पर मतदाताओं को जागरूक करने के लिए अनेकों कार्यक्रम करता है। देश को विकास की ओर ले जाने वाली  सरकार बने ये जिम्मेदारी हम सबकी है । अरस्तू ने कहा था की जैसे राजतन्त्र तानाशाह मे बदलता है वैसे ही लोकतंत्र भीड़़तंत्र में बदल जाता हैं | लोकतंत्र भीड़़तंत्र में ना बदले ये हम को देखना पड़े़गा | मतदान करें ओर मतदान करने के लिए प्रेरित करें |

सतीश शर्मा केशव भाग संघचालक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ नोएडा ।







सफला एकादशी कथा

 




सफला  एकादशी व्रत

यह व्रत पौष कृष्ण पक्ष एकादशी को किया जाता है। इस दिन भगवान अच्युत की पूजा का विशेष विधान है।

इस व्रत को धारण करने वाले को चाहिए कि प्रात स्नान करके भगवान की आरती करे तथा भोग लगाये।

ब्रह्मणों तथा गरीबों को भोजन अथवा दान देना चाहिए।

रात्रि में जागरण करते हुए कीर्तन पाठ करना अत्यन्त फलदायी होता है।

इस व्रत को करने से समस्त कार्यों में सफलता मिलती है। इसलिए इसका नाम 'सफला' एकादशी है।

सफला  एकादशी व्रत की कथा

प्राचीन समय में महिष्मत नामक एक राजा चम्पावती नाम की प्रसिद्ध नगरी में राज करता था।

उसका बड़ा बेटा लुम्पक बड़ा दुराचारी था। मांस, मदिरा, परस्त्री मगन, वेश्याओं का संग इत्यादि कुर्कमों

से परिपूर्ण था। पिता ने उसे अपने राज्य से निकाल दिया। वन में एक पीपल का वृक्ष था जो भगवान को

भी प्रिय था। सब देवताओं की क्रीड़ा स्थली भी वहीं थी। ऐसे पतित पावन वृक्ष के सहारे लुम्पक भी रहने

लगा। परन्तु फिर भी उसकी चाल टेढ़ी ही रही। पिता के राज्य में चोरी करने चला जाता तो पुलिस

पकड़कर छोड़ देती थी। एक दिन पौष मास के कृष्ण पक्ष की दशमी की रात्रि को उसने लूट मार

एवं अत्याचार किया तो पुलिस ने उसके वस्त्र उतारकर वन को भेज दिया। वह बेचारा पीपल की

शरण में आ गया। इधर हेमगिरि पर्वत की पवन भी आ पहुंची। लुम्पक पापी के सब अंगों में गठिया

रोग ने प्रवेश किया, हाथ-पांव अकड़ गए। अतः सूर्योदय होने के बाद कुछ दर्द कम हुआ, पेट का

गम लगा, जीवों के मारने में आज असमर्थ था। वृक्ष पर चढ़ने की शक्ति भी नहीं थी। नीचे गिरे हुए

फल बीन लाया और पीपल की जड़ में रखकर कहने लगा-हे प्रभो! वन फलों का आप ही भोग

लगाइए। मैं अब भूख हड़ताल करके शरीर को छोड़ दूंगा। मेरे कष्ट भरे जीवन से मौत भली।

ऐसा कहकर प्रभु के ध्यान में मग्न हो गया। रातभर नींद न आई। भजन, कीर्तन, प्रार्थना करता

रहा परन्तु प्रभु ने उन फलों का भोग न लगाया। प्रातः काल हुआ तो एक दिव्य अश्व आकाश से

उतरकर उसके सामने प्रकट हुआ और आकाशवाणी द्वारा नारायण कहने लगे-तुमने अनजाने

में सफला एकादशी का व्रत किया। उसके प्रभाव से तेरे समस्त पाप नष्ट हो गए। अग्नि को जान के

या अनजाने हाथ लगाने से हाथ जल जाते हैं। वैसे ही एकादशी भूलकर रखने से भी अपना प्रसाद दिखाती है।

अब तुम इस घोड़े पर सवार होकर पिता के पास जाओ. राज मिल जाएगा। सफला एकादशी सर्व सफल

करने वाली है. प्रभु आज्ञा से लुम्पक पिता के पास आया। पिता उसे राजगद्दी पर बिठाकर आप

तप करने वन को चला गया। लुम्पक के राज्य में प्रजा एकादशी व्रत विधि सहित किया करती थी।

सफला एकादशी की कथा सुनने से अश्वमेध यज्ञ का फल मिलता है।

वर वधू की तलाश है तो निम्नलिखित फार्म भरे 

https://docs.google.com/forms/d/e/1FAIpQLSfedPV8_-DJ3X_jN8dqfmu99JIXX0zU7T2A8gRh4BwpTMTaYw/viewform?usp=sf_link

आपको अगर कोई समस्या परेशान कर रही है तो संपर्क करें* 

शर्मा जी 9312002527,9560518227

*ज्ञानवर्धक कहानियां व अध्यात्मिक विषय पर प्रवचन सुनने के लिए क्लिक करें*

https://youtube.com/@satishsharma7164?si=ea3mZzKWzFD9MDWl

*ज्ञानवर्धक कहानियां व अध्यात्मिक विषय पर लेख पढ़ने के लिए क्लिक करें*

www.sumansangam.com

*अपनी जिज्ञासा,सुझाव व लेख निम्नलिखित ईमेल पर मेल करें*

sumansangam1957@gmail.com

मेरा ब्लॉग पढ़ने के लिए क्लिक करें 

sumansangam1957.blogspot.com


पंचक क्या है कब लगते है इनके गुण दोष क्या है



पंचक क्या है कब लगते है इनके गुण दोष क्या है


अपने परिपथ भ्रमण के काल में गोचरवश जब-जब चद्रँमा कुंभ और मीन राशियों में अथवा कहें कि धनिष्ठा नक्षत्र के
उत्तरार्ध में, शतभिषा, पूर्वामाद्रपद, उत्तराभाद्रपद और रेवती नक्षत्रों में होता है, तो इस काल को पंचक कहते हैं।
अधिकांश लोगों में यह भ्रम और भय व्याप्त है कि इन नक्षत्रों में शुभ कर्म वर्जित होते हैं अथवा इन नक्षत्रों में प्रारम्भ
किए गए कार्य पूर्ण नहीं होते और होते भी हैं तो पूरे पांच बार प्रयास करने बाद। यह मान्यता भी चली आ रही है कि
पंचकों में कहीं से कोई सगे-सम्बन्धी की मृत्यु की सूचना मिलती है तो ऐसे में पांच दुःखद समाचार और भी सुनने को
मिलते हैं। लोगों में भ्रम तो यहाँ तक व्याप्त है कि इन दिनों में सनातन धर्म के कोई भी  शुभ कार्र्य अशुभता अवश्य देते हैं।
सबसे पहले यह मय, भ्रम और अंधविश्वास तो मन से एक दम ही निकाल दें कि तथाकथित यह पांच नक्षत्र सदैव अहितकारी
ही सिद्ध होते हैं। अनेक जातक ग्रथों और विशेषरुप से मुहूर्त चिन्तामणि और राज भार्तण्ड में पंचको के शुभाशुभ विचार
का विवरण मिलता है। यदि गहनता से पंचकों के विषय में अध्ययन किया जाए तो हम पाते हैं कि इनका निषेध केवल
पांच कर्मों में ही किया जाता है और उनमें भी स्पष्ट रुप से आवश्यक कार्यों के लिए विकल्प लिखे गए हैं - पंचकों में जिन
पांच कार्यों को न करने का वर्णन है उनके विषय में उनके दुष्परिणाम भी दिए गए हैं। इनको करना यदि आवश्कता बन
जाए तो कुछ  सरल से उपयों द्वारा उनको सम्पन्न भी किया जा सकता है। पहला,लकड़ी का सामान क्रय न करना और
लकड़ी एकत्रित न करना। विशेष रुप से अंधविश्वास
नक्षत्र में इस कर्म से बचें क्योंकि इससे अग्नि भय का संकट हो सकता है। यदि यह कर्म करना आवश्यक हो तो लकड़ी के
कुछ भाग से हवन कर लें। मेरी मान्यता है कि इस ग्रह के स्वामी मंगल हैं और उसके इष्ट देव हनुमान जी हैं। कार्य से पूर्व
धनिष्ढा नक्षत्र में उनका स्मरण अवश्य कर लें, अज्ञात भय से अवश्य ही रक्षा होगी। दूसरा, पंचकों में विशेषरुप से दक्षिण
दिशा की यात्रा न करना। दक्षिण दिशा के अधिष्ठाता ‘यम’ हैं, इसलिए भी यात्रा को निषेध माना गया है।
अति आवश्यक रुप से की जाने वाली यात्राओं के लिए पूर्व में किसी शुभ घड़ी में ‘चाला’ कर सकते हैं। इसके लिए
यात्रा में प्रयुक्त कुछ पैसे, हल्दी तथा चावल अपने इष्ट देव के सम्मुख रख लें और यात्रा को मंगलमय बनाने की प्रार्थना करें।
यात्रा वाले दिन रखे यह पैसे भी साथ  ले लें। हल्दी और चावल किसी वृक्ष की जड़ में  छोड दें अथवा जल प्रवाहित कर दें।
तीसरा, भवन में छत न डलवाना। मान्यता है कि पंचकों में भवन में डाली गयी छत उस घर में कलह का कारण बनती है,
वहाँ से सुख और शांति का पलायन हो जाता है। मान्यता तो यहाँ तक है कि इन नक्षत्रों में डाली गयी छत कमजोर होती है
और-भवन स्वामियों में अलगाव तक करवा देती है। इन नक्षत्रों में यहि छत डलवा रहे हों तो उससे पूर्व इष्ट देव को
मिष्ठानादि से प्रारम्भ करें और प्रसाद स्वरूप वह काम करने वाले लोगों में बांटकर उनकी प्रसन्नता बटोरें। चौथा,
पंचकों में चारपाई नहीं बनवाई जाती इसके पीछे का भाव भी वही लकड़ी के क्रय करने वाला ही है। पंचको में लकड़ी को
विशेष महत्व दिया गया है। पांचवाँ, सबसे महत्वपूर्ण है कि पंचको  में शव दाह नहीं करते।  इसके पीछे भी कारण
लकडियों का ही है क्योंकि दाह के लिए लकड़ियों की आवश्कता होती है। शव दाह  के समय   शास्त्रों में कुछ कर्म दिए
गए  हैं। यदि कुछ नहीं करना है तो  आटे अथवा कुशा के पांच पुतले बनाकर शव के साथ संस्कार करवा लेना चहिए ।
मुहूर्त चिंतामणि में  स्पष्ट लिखा है कि  अति आावश्यक कार्यों के लिए पंचको में भी घनिष्ठा नक्षत्र का अंत, शतमिषा नक्षत्र
का मध्य, भाद्रपद का प्रारम्भ और उत्तराभाद्रपद नक्षत्र के अन्त की पांच घड़िया कार्य के लिए चुनी जा सकती हैं।
पंचको में नक्षत्रों के अनुरुप अनेक कार्य शुभ माने गए हैं। इसीलिए यह भ्रम पालना सर्वथा अज्ञानता है कि धनिष्ठा
और शतमिषा नामक नक्षत्र यात्रा, वस्त्र, आभूषण आदि के क्रय-विक्रय के लिए बहुत शुभ हैं। पूर्वाभाद्र नक्षत्र में
कोर्ट-कचहरी  की ही नहीं, महत्वपूर्ण कार्यों के निर्णय आदि में भी शुभता प्रदान करते हैं। भूमि पूजन के लिए
उत्तराभाद्रपद नक्षत्र शुभ सिद्व होता है। इस नक्षत्र में पूर्वनियोजित अधूरी और बड़ी-बड़ी परियोजनाओं का किया जा
सकता है। विद्या, संगीत, सौभ्य कर्म और गुह्य विधाओं का श्री गणेश रेवती नक्षत्र में करना अति उत्तम रहता है।

वर वधू की तलाश है तो निम्नलिखित फार्म भरे 

https://docs.google.com/forms/d/e/1FAIpQLSfedPV8_-DJ3X_jN8dqfmu99JIXX0zU7T2A8gRh4BwpTMTaYw/viewform?usp=sf_link

आपको अगर कोई समस्या परेशान कर रही है तो संपर्क करें* 

शर्मा जी 9312002527,9560518227

*ज्ञानवर्धक कहानियां व अध्यात्मिक विषय पर प्रवचन सुनने के लिए क्लिक करें*

https://youtube.com/@satishsharma7164?si=ea3mZzKWzFD9MDWl

*ज्ञानवर्धक कहानियां व अध्यात्मिक विषय पर लेख पढ़ने के लिए क्लिक करें*

www.sumansangam.com

*अपनी जिज्ञासा,सुझाव व लेख निम्नलिखित ईमेल पर मेल करें*

sumansangam1957@gmail.com

मेरा ब्लॉग पढ़ने के लिए क्लिक करें 

sumansangam1957.blogspot.com



रविवार, 10 नवंबर 2024

आंवला नवमी कथा

 



आँमला नौमी

आंमला नौमी वाले दिन आंवले के वृक्ष की पूजा करते हैं । जल, मोली, रोली, चावल,गुड़, सुहाली, पतारा, आंवला, एक ब्लाऊज ओर दक्षिणा चढ़ाएं । दीया और धूप जलाकर एक सौ आठ फेरे दें। कहानी कहें। ब्राह्मण ब्राह्माणी का ब्लाऊज देकर जिमायें, धोती दक्षिणा दें। भोजन में आंवले का होना जरूरी है और स्वयं भी भोजन करें। आपकी इच्छा हो तो दक्षिणा, गहना डालकर लाल कपड़े में बांधकर ब्राह्मण को दें।

आँमला नौमी की कहानी

एक आँवलिया राजा था जो रोज एक मन सोने के आंवले दान करता था और बाद में भोजन करते थे । एक दिन उसके बेटों बहुओं ने देखा कि रोज इतने आवंले का दान करेंगे तो सारा धन खत्म हो जाएगा इसलिए इनका दान बन्द कर देना चाहिए। एक पुत्र आया और राजा से बोला कि आप तो सारा धन लुटा देंगे। इसलिए आप आवंले का दान करना बंद कर दीजिए। तब राजा और रानी उजाड़ में जाकर बैठ गए और वह आंवलों का दान नहीं कर सके, इसलिए उन्होंने कुछ भी नहीं खाया। तब भगवान ने सोचा कि अगर हमने इनका सत्त नहीं रखा तो दुनिया में हमें कोई नहीं मानेगा। तब भगवान ने सपने में कहा कि तुम उठो और तुम्हारे पहले जैसी रसोई हो गई है और आवंले का वृक्ष लगा हुआ है। तुम दान करो और खाना खा लो। तब राजा रानी ने उठकर देखा तो पहले जैसा राज पाट हो गया है और सोने के आवंले वृक्ष पर फैले हुए हैं। तब राजा रानी सवा मन आंवले का दान करने लगे। उधर बहू बेटे से धर्म अन्नदाता का बैर पड़ गया। आसपास के लोगों ने कहा कि जंगल में एक आंवलिया राजा है सो तुम वहां चले जाओ तो तुम्हारा दुख दूर हो जाएगा।

वे दोनों वहां पहुंच गए। वहां पर रानी अपने बेटे और बहु को देखकर पहचान गई और अपने पति से बोली कि इन लोगों से काम तो कम करायेंगे और मजदूरी ज्यादा देंगे। एक दिन रानी ने अपनी बहू को बुलाकर कहा कि मेरा सिर धोकर नहला दे। बहू सिर धोने लगी तो बहू की आंख में से पानी निकलकर रानी की पीठ पर पड़ा। तब रानी बोली कि मेरी पीठ पर आसू क्यों गिरे हैं, मुझे बताओ। तो बहू बोली कि मेरी भी सासु की पीठ पर ऐसा ही मस्सा था और हमने उसे घर से बाहर निकाल दिया। वह एक मन आवंला का दान करते थे तो हमने उन्हें भगा दिया। तब सासू बोली-हम ही तुम्हारे सास ससुर हैं। तुमने हमें निकाल दिया था परन्तु भगवान ने हमारा सम्मान रखा है। हे भगवान! जैसा राजा रानी का मान रखा वैसा सबका रखना। कहते सुनते सारे परिवार का थ्यान रखना। इस कहानी के बाद विन्दायक जी की कहानी जरूर सुनें।

विन्दायक जी की कहानी

एक छोटा सा लड़का अपने घर से लड़कर निकल गया और बोला कि आज तो मैं बिन्दायक जी से मिलकर ही घर जाऊंगा। तब लड़का चलते - चलते उजाड़ में चला गया तो बिन्दायक जी ने सोचा कि मेरे नाम से ही इसने घर छोड़ा है इसलिए इसे घर भेजें, नहीं तो जंगल में शेर वगैरा खा जायेगें। फिर बिन्दायक जी बूढ़े ब्राहाण का भेष धरकर आये और बोले कि तू कहा से आ रहा है और कहा जा रहा है? तब वह बोला कि मैं बिन्दायक जी से मिलने जा रहा हूं। तब वह बोले कि मैं बिन्दायकजी हूं. मांग तू क्या मांगता है। परन्तु एक बार ही मांगियों। वह लड़का बोला कि क्या मांगू, बाप की कमाई, हाथी की सवारी, दाल भात मुटठी परासें, ढोकता मुटठी भर कर डोल, स्त्री ऐसी हो जैसे फूल गुलाब का। तो बिन्दायक जी बोले कि लड़के तूने सब कुछ मांग लिया। जा, तेरा ऐसा हो जाएगा।

फिर वह लड़का घर आया तो देखा एक छोटी बीनणी चौकी पर बैठी है और घर में बहुत धन हो गया तब वह लड़का अपनी मां से बोला कि देख मां, मैं कितना धन लाया हूं। विन्दायक जी से मांगकर लाया हूं। हे विन्दायक जी महाराज। जैसा उस लड़के को धन दिया वैसा सबको देना। कहते सुनते अपने परिवार को धन देना।

जन्म कुंडली बनवाने व दिखने हेतु संपर्क करें शर्मा जी 9312002527 

कथा कहानी व ज्ञानवर्धन लेख व ग्रह उपाय आदि के बारे में सुनने के लिए क्लिक करे 

https://youtube.com/@satishsharma7164?si=SxJX7SiPHLyDUuxy

कथा कहानी व ज्ञानवर्धन लेख व ग्रह उपाय आदि के बारे में पढ़ने के लिए क्लिक करे

https://www.blogger.com/u/1/blog/posts/2263780798219530049

जून माह का पंचांग

कथा कहानी सुनने के लिए के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें - https://youtube.com/@satishsharma7164?si=VL7m3oHo7Z6pwozC  श्रीं श्याम देवाय नमः...