शनिवार, 7 जून 2025

हिन्दू साम्राज्य के वीर नायक छत्रपति शिवाजी

 

हिन्दू साम्राज्य के वीर नायक छत्रपति शिवाजी 

सतीश शर्मा  

छत्रपति शिवाजी महाराज का  ऐसा राज्याभिषेक हुआ जिससे उस समय की सारी परिस्थितियाँ बदल गई। जिन परिस्थितियों का समर्थ रामदास जी ने वर्णन करते हुए कहा था- “कोई पीर की पूजा करता है, कोई कब्र को पूजता है, तो कोई भिन्न-भिन्न प्रकार से मोहर्रम मनाता है। इस प्रकार हमारे समाज के लोगों ने अपने धर्म का स्वाभिमान छोड़ दिया हैं अपने देवताओं को भुला दिया है और वह पराये लोगों का अनुकरण करने में स्वयं को धन्य मान रहा है। उन्होंने बड़े दुखी स्वर से कहा था-“हे भगवान् भीषणता की अब परिसीमा हो गयी है। सारे तीर्थ भ्रष्ट हो गये हैं। भजन, पूजन करना असम्भव हो गया है। न हमारा कोई राजा है न हमारी कोई प्रजा। अधर्म का साम्राज्य सर्वत्र फैल गया है। अतः हे प्रभो अब आओ और हमारे धर्म की रक्षा करो।” ऐसी परिस्थितियों में हिन्दू समाज के लिए प्रतिकूलता की पराकाष्ठा थी। बड़े-बड़े विद्धान शूरवीरों के दिमाग में यह विचार भी नहीं आता था कि इस परिस्थिति को बदला जा सकता है। अनेक वर्षों से ऐसी ही परिस्थिति में रहने के कारण उसे बदलने की किसी की इच्छा ही नहीं रह गई थी। राज्य करना तो मुसलमानों का ही काम है। हिन्दू राजा बन ही नहीं सकता और चाहे कुछ भी बने मंत्री, सेनापति कुछ भी ऊँची नौकरी कर सकता है। समाज के सब लोगों की सामान्य भावना का सर्वदूर यही हाल था।  हिन्दू पद पादशाही की स्थापना कर उन्होंने इस भावना को जड़मूल से नष्ट कर दिया। ऐसे महान पराक्रमी शिवाजी महाराज ने हिन्दुओं का खोया गौरव लौटाया। एक महानायक के रूप में उनकी जीवन यात्रा अनुपम थी। 

फरवरी 1630 में बीजापुर राज्य के जागीरदार शाहजी भोंसले के घर में जन्मा बालक ही बाद में शिवाजी महाराज के नाम से प्रसिद्ध हुआ। वीर माता जीजाबाई ने बचपन से उन्हें पुराणों की महान् गाथाओं से प्रोत्साहित किया। दादाजी कोंडदेव जैसे परमनीतिज्ञ एवं शूरमा के संरक्षण में उन्होंने शस्त्र शिक्षा प्राप्त की और समर्थ स्वामी रामदास जैसे महापुरुष द्वारा राष्ट्रधर्म की शिक्षा प्रदान की गयी। जन्म से शूरवृत्ति शिवाजी ‘मावली’ बालकों के साथ उनकी सेना की टुकड़ियाँ बनाकर युद्ध के खेल खेलते थे। देश पर, धर्म, गायों, ब्राह्मणों, मंदिरों, सती नारियों और असहाय जनता पर जो अत्याचार निरंकुश यवन-शासकों द्वारा हो रहे थे, शिवाजी का वीर हृदय उस आर्त क्रंदन को सह नहीं सका। युवा होते-होते उन्होंने अपने बचपन के मावली शूरों का नेतृत्व सम्भाला और धर्म, राष्ट्र एवं संस्कृति के परित्राण के लिए भवानी (शिवाजी की तलवार) की शरण ली। शिवाजी के पिता शाहजी बीजापुर नवाब के दरबारी सामन्त थे, किन्तु शूर शिवाजी अन्यायी यवन को मस्तक झुका दे, यह सम्भव नहीं था। शिवाजी ने बीजापुर के दुर्गों पर आक्रमण करके अधिकार करना प्रारम्भ किया। बीजापुर नवाब का सेनापति अफजल खाँ सेना सजाकर बढ़ आया। धूर्ततापूर्वक उसने संधि के लिए शिवाजी को बुलाया। दोनों अकेले मिलने वाले थे। शिवाजी यवनों के विश्वासघात से परिचित थे। शिवाजी के हाथ में छिपे बघनखे ने अफजलखाँ को फाड़ डाला। वन में छिपे मराठे सैनिक टूट पड़े। मुगल सेना परास्त हुई। बीजापुर ने विवश होकर संधि की । शिवाजी ने मुगलों के किले जीतने प्रारम्भ किये। तो दिल्ली का सिंहासन हिल उठा। औरंगजेब ने भारी सेना के साथ मामा शाइस्ता खाँ को भेजा। परन्तु अहंकारी शाइस्ता खाँ बुरी तरह पराजित हुआ और शिवाजी की तलवार से चार अंगुलियाँ कटाकर जान बचाकर भागा।

औरंगजेब ने राजकुमार मुअज्जम और जयसिंह को शिवाजी के विरुद्ध भेजा। हिन्दू परस्पर ही लड़े यह महाराज शिवाजी को अभीष्ट नहीं था। सेनापति जयसिंह के परामर्श से वे दिल्ली जाने को तैयार हो गये। दरबार में पहुँचने पर औरंगजेब ने उनका उचित सत्कार नहीं किया। शिवाजी यह अपमान कैसे सह लेते? धूर्त औरंगजेब ने उन्हें कैद कर लिया, परन्तु जिस छल-बल से वे औरंगजेब की जेल से मुक्त हुए यह उनकी विजयगाथा का एक अद्वितीय उदाहरण है। अफजल खान, सिद्दी जौहर, शाइस्ता खाँ, जसवंत सिंह, ख्वास खान आदि बड़े-बड़े सरदारों की जो दुर्गति हुई थी, उसे देखकर सम्पूर्ण भारतवर्ष के हिन्दुओं में आशा की एक नई लहर दौड़ने लगी थी। देश भर के नवयुवक बड़ी उत्सुकता के साथ शिवाजी की कथाएँ सुनने लगे और नए स्वप्न देखने लगे। शिवाजी ने अपने जीवन काल में छोटे-बड़े 276 युद्ध लड़े और सभी में विजय प्राप्त की। इसी कारण शिवाजी को विश्व के महान् सेनापतियों की पंक्ति में स्थान प्राप्त हुआ।

शिवाजी अपनी प्रजा से इतना आत्मसात थे कि सबको लगता था कि शिवाजी जो कुछ भी कर रहे हैं वह हमारा ही काम है। अपने शासनकाल में शिवाजी अपने सभी सहयोगियों, सैनिकों और प्रजा में यह भावना भर सके और बलिदान के लिए उन्हें तैयार कर सके, यही उनकी विशेषता थी। इसके कई उदाहरण हैं। भारी-भरकम फौज के साथ सिद्दी जौहर और फजल खान ने पन्हालगढ़ को घेर लिया था। महीनों गुजर गये परन्तु घेरेबन्दी में ढील नहीं आयी। ऐसी स्थिति में, घेराबंदी में हल्की सी दरार ढूँढकर, चुपचाप विशालगढ़ निकल जाने की योजना बनायी गयी। इस योजना का एक हिस्सा था, किसी को नकली शिवाजी बनाना। पालकी में बैठा हुआ नकली शिवाजी शत्रु के हत्थे चढ़ गया और जब तक सिद्दी जौहर और उसके साथी असलियत जान पाते, तब तक शिवाजी को दर निकल जाने का मौका मिल गया। नकली शिवाजी बना था एक सामान्य गरीब व्यक्ति शिवा नाई।

ऐसा विश्वास रखने वाला शिवा नाई अकेला नहीं था। पन्हालगढ़ की घेराबंदी से महाराज निकल गये। सिद्दी जौहर चौकन्ना हो गया और तेजी से उनका पीछा शुरू किया। परन्तु रास्ते में घोड़ादर्श था और यह घोड़ादर्श रोक कर मुठ्ठी भर साथियों के साथ बाजी प्रभु देशपांडे डटा हुआ था। दराँ में जीवनाहुति देने के लिए वह और उसके संगी-साथी तैयार थे ताकि महाराज को विशालगढ़ पहुँचने का अवसर मिल जाये अन्त में हुआ वही। बाजीप्रभु तथा उनके अन्य साथियों ने अपने प्राण देकर भी शिवाजी की रक्षा की।

ऐसा ही एक उदाहरण है जब आगरे के बंदीगृह से छुटकारे का कोई मार्ग नहीं मिल रहा था तब योजनापूर्वक महाराज के बिस्तर पर एक व्यक्ति शिवाजी का प्रतिरूप बनकर सोता रहा और दूसरा उसके पाँव दबाता रहा और शिवाजी जेल से निकल भागे। मृत्यु का सामना करने के लिए पीछे ठहरने वाले थे, मदारी मेहतर और हिरोजी फरजंद। मौत को गले लगाकर बलिदान होने के लिए वे दोनों क्यों तैयार हुए? जवाब वही-शिवाजी द्वारा प्रारम्भ किया गया कार्य बहुमूल्य है, उसे पूरा होना ही चाहिए।

शिवाजी के पास अनेक मुसलमान सेनानायक, मुखिया और नौकर भी थे और वे उत्तरदायित्वपूर्ण पदों पर आसीन थे। शिवाजी का तोपखाना-प्रमुख एक मुसलमान था। तोपें यानी उस युग के सर्वाधिक विकसित हथियार। किले के युद्ध में उनका बड़ा महत्व होता है। ऐसे तोपखाने का प्रमुख इब्राहिम खान था। नौसेना की स्थापना को छत्रपति शिवाजी महाराज की दूरंदेशी का उदाहरण माना जाता है और यह ठीक भी है। और ऐसे महत्वपूर्ण विभाग का प्रमुख भी एक मुसलमान सेनानायक ही था। उसका नाम था दौलत खान।

शिवाजी हिन्दू धर्मानुयायी थे, परन्तु अन्धभक्त नहीं थे। धर्म-परिवर्तन से मुसलमान बने लोगों को शिवाजी ने दोबारा हिन्दू बनाया। इतना ही नहीं उनके साथ रिश्तेदारियों भी जोड़ीं। शिवाजी ने धर्म-परिवर्तन करके मुसलमान हुए बजाजी निम्बालकर और नेताजी पालकर को जिनका खतना हुआ था और जो दस-पाँच साल तक मुसलमानों के बीच रहे थे, फिर से हिन्दू बनाया। जिस बजाजी निम्बालकर को चिढ़ाया जाता था, उन्हें शिवाजी ने अपनी पुत्री दी। अफगानिस्तान में आठ साल तक रहे नेताजी पालकर की शुद्धि की और उन्हें अपने बराबरी में आसन पर बिठाया।

मुस्लिम इतिहासकार खफी खां लिखते हैं कि शिवाजी ने कभी किसी मस्जिद, कुरान अथवा किसी स्त्री को हानि नहीं पहुँचायी। यदि उनके हाथ कोई कुरान की प्रति लग जाती तो वे उसे तुरन्तु आदरपूर्वक किसी मुसलमान को दे देते। ‘छत्रपति शिवाजी महाराज के उद्देश्य को साम्प्रदायिक या संकीर्ण मानने वाले को मुसलमान लेखक का यह मत पढ़ लेना चाहिए। कहा जाता है कि एक युद्ध में सैनिकों ने कल्याण के सूबेदार की बहु को बंदी करके महाराज के सम्मुख उपस्थित किया। महाराज कुछ क्षण उसकी और देखकर बोले-यदि मेरी माता ऐसी सुन्दर होती तो मैं इतना कुरूप न होता। फिर सैनिक को डाँटकर कहा कि इसको सुरक्षित इसके घर पहुँचा दो। उन्होंने उसे आदरपूर्वक उसके पिता के पास भिजवाया। पर स्त्री मात्र में मातृ-भाव का यह उज्जवल आदर्श हैं।

शिवाजी हिन्दुत्व के रक्षक ऐसे प्रजावत्सल सम्राट थे जिनकी यश गाथा को केवल महाराष्ट्र ही नहीं अपितु सम्पूर्ण देश स्वीकार करता है। उन्होंने हिन्दू अस्मिता की रक्षा के लिए हिन्दवी राज्य बना हिन्दू पदपादशाही की स्थापना की तथा 2 जून, 1674 में छत्रपति शिवाजी की उपाधि धारण कर हिन्दू जनता की रक्षा की।

सोमवार, 2 जून 2025

छत्रपति शिवाजी महाराज का जयसिंह के नाम पत्र

 


छत्रपति शिवाजी महाराज का जयसिंह को पत्र

हे सरदारों के सरदार ! राजाओं के राजा तथा भारत उद्यान की क्यारियों के माली व्यवस्थापक। हे रामचन्द्रजी के ह्रदय के चैतन्य अंश ! तुमसे क्षत्रियों की ग्रीवा गौरव से ऊँची है l तुमसे बाबर वंश की राज्य लक्ष्मी अधिक प्रबल हो रही है। तुम्हारा भाग्य तुम्हारा सहायक है। भाग्य के युवक और बुद्धि के बूढ़े जयशाह (जयसिंह) शिवा का प्रणाम और आशीर्वाद स्वीकार करिये। जगत का जनक तुम्हारा रक्षक तुमको धर्म और न्याय का मार्ग दिखलावे  


मैंने सुना है कि मुझ पर आक्रमण करने और दक्षिण देश को जीतने के लिए तुम आये हो। हिन्दुओं के ह्रदय तथा आंखों के रक्त से तुम संसार में उज्जवल मुख हुआ चाहते हो, पर तुम नहीं जानते हो कि इससे मुख काला हो जाता है l इससे देश और धर्म का नाश होता है। तुम दम भर अन्तर्मुख (भीतर दृष्टि वाले) होकर सोचो और अपने हाथों और अपने दामन पर दृष्टि डालो, तो देखोगे कि यह रंग किसके रक्त का है और लोक तथा परलोक में यह रंग क्या रंग लाता है। 


यदि आप अपने लिए दक्षिण देश को जीतने के लिए आते तो मेरी आंखें और मेरा सिर तुम्हारे मार्ग में बिछौने बन जाते। मैं भारी सेना को साथ खेकर आपका साथी हो जाता और एक किनारे से दूसरे किनारे तक सारी भूमि आपको सौंप देता। पर तुम औरंगजेब की ओर से आये हो, भोले भक्तों के बहकाने वाले के जाल में फँसकर आये हो। मैं नहीं जानता कि आपके साथ मैं क्या करुं यदि मैं आपसे मेल करुं तो यह वीरत्व नहीं है क्योंकि__वीर पुरुष! समय की पूजा नहीं करते हैं अर्थात् अवसरवादी नहीं बनते हैं, और सिंह कभी लोमड़ी की सी चाल नहीं चलते हैं। यदि मैं तलवार आदि का प्रयोग करुं तो दोनों ओर हिन्दुओं को हानि पहुंचेगी l दुःख है कि मेरी वह तलवार जो केवल मुसलमान शत्रुओं की ही रुधिर चाटती थी वह आज अपनों पर उठने को उद्यत हो रही है। यदि इस युद्ध के लिए तुर्क आये होते तो वह (यहां के) शेरों के लिए (घर बैठे) शिकार आये होते। 


पर वह काली करतूतें करने वाला जिससे न न्याय है न धर्म, वह मनुष्य के रूप में राक्षस है। जब अफ़ज़ल खां से कोई उसका भला न हुआ और शायिस्ता खां से भी उसने अपना कल्याण न देखा तब तुमको हमारे साथ लड़ने को नियुक्त करता है। क्योंकि वह स्वयं हमसे लड़ने की शक्ति नहीं रखता है। वह चाहता है कि हिन्दुओं के समूह में कोई वीर भुजबशाली रह न जाए और सिंह आपस में ही लड़कर मर जायें और गीदड़ सिंहों का स्थान ले लें। यह गुप्त रहस्य तुम्हारे मस्तिष्क में क्यों नहीं आता है पता लगता है कि उसका जादू तुमको प्रभावित किये रहता है। आपने संसार में सब भला और बुरा देखा है, तुमने फुलवाड़ी से फूल और कांटे सभी चुने हैं। 


यह न हो कि आप हमसे युद्ध करें और दोनों ओर हिन्दुओं के सिरों को धूल के नीचे दबा दें। यह परिपक्व कर्मण्यता (वृद्धावस्था का अनुभव) प्राप्त करके लड़कपन मत करों और शेखसादी के इस वचन को स्मरण करो कि_ हर जगह घोड़ा नहीं दौड़ाया जाता है कहीं-कहीं ढाल फेंक कर भागना भी होता है। सिंह हिरनों आदि पर पराक्रम करते हैं जाति के सिंहों में ही शेर गृह-युद्ध नहीं करते हैं। यदि तेरी काटने वाली तलवार में पानी है और यदि तेरे कूदने वाले घोडे़ में दम है तो__तुमको चाहिए कि धर्म के शत्रु पर आक्रमण करो और इस्लाम की जड़ मूल खोद डालो।


यदि देश का सम्राट दारा शिकोह होता तो हमको भी आनन्द होता। पर आपने जसवन्त सिंह (जोधपुर) को धोखा दिया और ह्रदय में कुछ नीचा ऊँचा न सोचा। आप लोमड़ी की सी चालें चल-चल कर अभी अघायें नहीं हो और सिंहों के साथ युद्ध करने के लिए दिलेर बनकर आये हो। इस दौड़ धूप से आपको क्या मिलता है आपकी तृष्णा आपको मृगतृष्णा वाला धोखे का जल दिखलाती है। तुम उस पागल मनुष्य की तरह हो जो बड़े श्रम से किसी सुन्दरी को हाथ में लाता है। 


पर उसके सौन्दर्य रूप उपवन से स्वयं कोई फल न लेकर शत्रुओं के लिए अर्पण उसको कर देता है। तुम उस नीच की कृपा का क्या अभियान रखते हो। जुझारू सिंह के काम का परिणाम जानते हो कि नहीं, तुम जानते हो कि छत्रसाल और उसके परिवार और उसके बालक पर वह क्या-क्या आपत्ति ढाना चाहता था। 


तुम जानते हो कि दूसरे हिन्दुओं पर भी उस शत्रु द्वारा क्या-क्या अत्याचार हुए हैं। मैंने माना कि तुमने उससे सम्बन्ध जोड़ लिए है और उससे सम्बन्ध जोड़कर तुमने अपने गौरव रूप कुल की मर्यादाओं लज्जा आदि को भी नष्ट कर दिया। पर उस राक्षस से यह सम्बन्ध पजामे के नाड़े (कमर बन्द) की गांठ से अधिक दृढ़ नहीं है। वह तो अपने स्वाथों की सिद्धि के लिए अपने भाई के रक्त और अपने बाप के प्राणों को लेने से नहीं डरता है। यदि तुम राज-भक्ति या सच्चे प्रेम की दुहाई दो तो स्मरण करो कि उसने शाहजहां के साथ कैसा व्यवहार किया। 


यदि परमेश्वर की ओर से आपको कुछ बुद्धि का भाग मिला है और अपने पुरुषत्व की बढाई मारते हो तो अपनी जन्मभूमि के दर्द की आग से अपनी तलवार को तीव्र कर और अत्याचार से पीड़ितों के आँसुओं से तलवार पर पानी दें। यह समय हमारे आपस में लड़ने का नहीं है क्योंकि हिन्दुओं पर इस समय बड़ा कठिन कार्य पड़ा हुआ है। 


हमारी स्त्रियां हमारे बच्चे हमारा देश हमारी सम्पत्ति हमारी मूर्तियाँ, हमारे इष्ट देव और हमारे ईश्वर भक्त__इन सबको नष्ट करना उसका मुख्य काम है l उसके द्वारा यह सब नष्ट हो रहे हैं और सबपर उसके द्वारा घोर आपत्ति आई हुई है। उनका दुःख सीमा तक पहुंच गया है। यदि कुछ दिनों उसका यह सर्वनाशकारी कार्य जारी रहा तो हमारा कोई चिन्ह भी भूमि पर शेष नहीं रहेगा। 


बड़ा आश्रर्य है कि एक मुट्ठी भर मुसलमान हमारे इतने बडे़ देश पर शासन करते हैं। यह उनका प्राबल्य उनकी वीरता से नहीं है यदि आपको बुद्धि प्राप्त है तो देखो कि __वह हमारे साथ क्या शतरंज की सी चालें चलता है और अपने मुख पर कैसे-कैसे रंग रंगता है। औरंगजेब हमारे पावों को हमारी ही सांकलों से जकड़ता है और वह हमारे सिरों को हमारी ही तलवारों से काटता है। 


हम लोगों को इस समय हिन्दू देशवासियों, हिन्दुस्तान देश और हिन्दुओं के धर्म की रक्षा के लिए भीषण प्रयत्न करना चाहिए। हमको चाहिए कि हम सब मिलकर परामर्श करें और कोई विचार निश्चय करके देश को स्वतन्त्र कराने के लिए हाथ पांव मारें। अपनी तलवारों और अपनी कार्य विधि को पानी दें अर्थात् चमकावें और तुर्कों को तुर्की बतुर्की (जैसे को तैसा) जवाब दें। 


यदि महाराजा जसवन्त सिंह (जोधपुर) से आप मिल जाओ और ह्रदय से उस कपटी के पीछे हाथ धोकर पड़ जाओं तथा महाराणा (प्रताप) के साथ घनिष्ट प्रेम-सम्बन्ध स्थापित कर लो तो आशा है बड़ा भारी काम पूरा हो जाय। चारों ओर से आक्रमण करके आप लोग उससे युद्ध करो उस सांप के सिर को पत्थर के नीचे दबा दो,कुचल डालो l कुछ दिनों वह अपने परिणाम की चिन्ता के पेंच में पड़ा रहे और दक्षिण देश की ओर अपना जाल न फैलावे और मैं इस ओर भाला चलाने में निपुण वीरों को साथ लेकर इन दोनों (बीजापुर और गोलकुण्डा के) बादशाहों का भेजा निकाल डालूं l मेघों-बादलों की भांति गर्जने वाली सेना से मुसलमानों पर तलवारों का पानी बरसाऊँ। दक्षिण देश के पटल तख्ते पर से इस्लाम का नाम और निशान धो डालूं। 


इसके पीछे कार्यकुशल शूरवीरों, सैनिक घुड़सवारों, और भाला मार सुभटों के साथ,लहरें लेती हुई तथा कोलाहल मचाती हुई नदी की भांति दक्षिण के पहाड़ों से निकलकर मैदान में आऊँ और अति शीघ्र आप लोगों का साथी बन जाऊँ उस (औरंगजेब) से आप लोगों का हिसाब पूछूं,फिर हम लोग चारों ओर से घोर युद्ध करें और युद्ध का क्षेत्र और युद्ध का काल उसके लिए तंग कर दें। हम लोग अपनी सेनाओं की लहरों और तरंगों को दिल्ली में उस नष्ट भ्रष्ट घर (राजमहल) में पहुंचा दें। उसके नाम से न औरंग राजसिंहासन रहे न जेब (शोभा) रहे न अत्याचार करने वाली तलवार रहे न छल कपट का जाल रहे।


हम लोग शुद्ध रक्त से भरी हुई एक नदी बहा दें और उससे अपने पितरों की आत्माओं को पानी दें (तर्पण करें)l न्याय परायण प्राणों के उत्पन्न करने वाले ईश्वर की सहायता से हम लोग (औरंगजेब) का स्थान पृथ्वी के नीचे (कब्र में) बना दें। यह काम कुछ बहुत कठिन नहीं है केवल ह्रदयों ,आंखों और हाथों की आवश्यकता है। दो ह्रदय यदि एक हो जायें तो पहाड़ को तोड़ सकते हैं और समूह के समूह को तितर-बितर कर सकते हैं। 


इस विषय में मुझको तुम्हारे साथ बहुत कुछ कहना है जिसको पत्र में लिखना उचित नहीं है। मैं चाहता हूं कि हम लोग परस्पर बातचीत करलें जिससे व्यर्थ दुःख और श्रम न मिले। यदि तुम चाहो तो मैं तुमसे साक्षात् बातचीत करने आऊं और कुछ रहस्यमयी बातों को तुम्हारे कर्णगोचर करूं। हमलोग बातरूपी सुन्दरी का मुख एकान्त में खोलें और मैं उसके बालों की उल्झानों में कंघी फेरूं।कार्यविधि के दामन पर हाथ फेरें और उस उन्मत राक्षस पर कोई मन्त्र चलावें। 


अपने कार्य की सिद्धि का कोई मार्ग निकाल कर दोनों लोकों (इस लोक और पर लोक) में अपना नाम ऊँचा करें। तलवार की शपथ, घोडे़ की शपथ, देश की शपथ और धर्म की शपथ करता हूं कि इससे तुम पर कदापि कोई आपत्ति नहीं आयेगी। अफ़ज़ल खां के परिणाम से तुम शंकित मत होओं क्योंकि उसमें सच्चाई नहीं थीं। बारह सौ बडे़ लड़ाके हब्शी सवार वह मेरे लिए घात में लगाये हुए था। यदि मैं उस पर पहिले ही हाथ न मारता तो इस समय यह पत्र तुमको कौन लिखता। परंतु मुझ को आपसे ऐसे काम की आशा नहीं है। क्योंकि तुमको भी स्वयं मुझ से कुछ शत्रुता नहीं है। यदि मैं आपका यथेष्ट और उचित उत्तर पाऊं तो आपके समक्ष रात्रि को अकेला आऊँ। मैं तुम को वह गुप्त पत्र भी दिखाऊं जो मैंने शायिस्ता खां की जेब से पकड़ा है। तुम्हारी आंखों पर मैं संशय का जल छिड़कूं और तुम्हारी सुख निद्रा को दूर करूँ। तुम्हारे स्वप्न की ठीक ताबीर करुं और पीछे आपका जवाब लूं। 


यदि यह पत्र आपके मन के अनुकूल न पडे़ तो फिर मैं हूं और काटनेवाली तलवार है तथा आपकी सेना है। कल जिस समय सूर्य अपना मुंह, रात में से निकालेगा अर्थात् सूर्य उदय होगा उस समय मेरा अर्द्धचन्द्र (खड़ग) म्यान को फेंक देगा (म्यान से निकल आवेगा) बस कल्याण हो।

आज का पंचांग






 श्रीं श्याम देवाय नमः।। ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ।।

दिनांक-09-06-2025

युगाब्द-5127 , विक्रमसवंत 2082, विश्वावसु,

आयन उत्तरायण ,ॠतु ग्रीष्म , 

मास ज्येष्ठ , पक्ष शुक्लपक्ष 

तिथि त्रयोदशी , नक्षत्र विशाखा, वार रविवार 

करण तैतिल,योग शिव,सूर्योदय 05-22 अस्त 19-17

अभिजितमुहूर्त 11-52 से 12-47 

राहूकाल 07-06 से 08-51,दिशाशूल - पूर्व 

https://youtu.be/VT1ALPf-YkM?si=VdBMEmsufgqVc3IJ

My Website 

https://www.sumansangam.com/blog/ 

वर्षफल व जन्मपत्री बनवाने व दिखाने के लिए संपर्क करें शर्मा जी - 9312002527,9560518227 व निम्नलिखित फॉर्म भरे

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भारतीय व्रतोत्सव जून - 2025

. 1- स्कन्द षष्ठी, विन्ध्यवासिनी पूजा,दि. 3- दुर्गाष्टमी, धूमावती जयंती, मेला क्षीरभवानी (काश्मीर),

दि. 5- गंगा दशहरा, श्री बटुक भैरव जयंती,दि.6-निर्जला एकादशी व्रत,दि.8 - प्रदोष व्रत,दि. 10-सत्य व्रत,

दि. 11-कबीर जयंती, वट् सावित्री व्रत (द. भा.),दि. 11-गुरु हरगोविन्द सिंह जयंती,

दि. 14-श्री गणेश चतुर्थी व्रत,दि.15-संक्रांति पुण्य,दि.18-कालाष्टमी,दि.21-योगिनी एकादशी व्रत (स्मा.),

दि. 22-योगिनी एकादशी व्रत (वै.),दि.23-सोम प्रदोष, मास शिवरात्रि,दि.25-अमावस्या पुण्य,

दि.26-गुप्त नवरात्र प्रारम्भदि .27 श्री जगदीश रथ यात्रा पूरी दि . 28  विनायक चतुर्थी 

 मूल विचार जून -2025 

मूल विचार-मासारंभ से दि. 2 को 22/55 तक, दि. 10 को 18/01 से दि. 12 को 21/56 तक, दि. 19 को 23/16 से

दि. 21 को 19/50 तक, दि. 28 को 6/35 से दि. 30 को 7/20 बजे तक गण्ड मूल नक्षत्र हैं।

ग्रह स्थिति जून -2025

दि. 6 सिंह में मंगल,दि. 6 मिथुन में बुध,दि. 7 बुध पश्चिमोदय,दि. 11 गुरु पश्चिमास्त,दि. 15 मिथुन में सूर्य,

दि. 22 कर्क में बुध,दि. 29 वृष में शुक्र

पंचक विचार जून  -2025  

पंचक विचार -(धनिष्ठा नक्षत्र के तृतीय चरण से रेवती नक्षत्र तक) पंचको में दक्षिण दिशा की ओर यात्रा करना

मकान दुकान आदि की छत डालना चारपाई पलंग आदि बुनना,दाह संस्कार,बांस की चटाई दीवार प्रारंभ

करना आदि स्तंभ रोपण तांबा पीतल तृण काष्ट आदि का संचय करना आदि कार्यों का निषेध माना जाता है

समुचित उपाय एवं पंचक शांति करवा कर ही उक्त कार्यों का संपादन करना कल्याणकारी होगा ध्यान रहेगा 

पंचर नक्षत्रों का विचार मात्र उपरोक्त विशेष कृतियों के लिए ही किया जाता है विवाह मंडल आरंभ गृह प्रवेश

प्रवेश उपनयन आदि मुद्दों से तो पंचक नक्षत्र का प्रयोग शुभ माना जाता है

पंचक विचार-  दि. 16 को 13/09 से दि. 20 को 21/44 बजे तक पंचक हैं।

अधिक जानकारी के लिए संपर्क करे शर्मा जी - 9312002527,9560518227

भद्रा विचार जून -2025

भद्रा काल का शुभ अशुभ विचार - भद्रा काल में विवाह मुंडन, गृह प्रवेश, रक्षाबंधन आदि मांगलिक कृत्य

का निषेध माना जाता है परंतु भद्रा काल में शत्रु का उच्चाटन करना,स्त्री प्रसंग में,यज्ञ करना,स्नान करना,

अस्त्र शस्त्र का प्रयोग,ऑपरेशन कराना, मुकदमा करना,अग्नि लगाना,किसी वस्तु को काटना,भैस,घोड़ा व

ऊंट संबंधी कार्य प्रशस्त माने जाते हैं सामान्य परिस्थिति में विवाह आदि शुभ मुहूर्त में भद्रा का त्याग करना

चाहिए परंतु आवश्यक परिस्थितिवश अतिआवश्यक कार्य भूलोक की भद्रा ,भद्रा मुख छोड़कर कर

भद्रा पुच्छ में शुभ कार्य कर सकते है |

दि. 2 को 20/35 से दि. 3 को 9/10 तक, दि. 6 को 15/31 से दि. 7 को 4/48 तक, दि. 10 को 11/35 से

दि. 11 को 0/24 तक, दि. 14 को 3/32 से 15/46 तक, दि. 17 को 14/46 से दि. 18 को 2/10 तक,

दि. 20 को 20/34 से दि. 21 को 7/19 तक, दि. 23 को 22/09 से दि. 24 को 8/33 तक, दि. 28 को 21/34 से

दि. 29 को 9/14 बजे तक भद्रा है।

संक्रांति विचार जून - 2025

इस मास की संक्रान्ति मिथुन आषाढ़ कृष्ण चतुर्थी रविवार दि. 15 जून को प्रात: 6/43 पर दिन के

प्रथम पहर में 30 मु. बैठी भूखी, दक्षिण गमन, नैऋत्य दृष्टि किये माहेन्द्र मण्डल में प्रवेश करगी।

गतवार 5, गत नक्षत्र 4 रविवारी संक्रान्ति होने से सभी प्रकार के धान्य व रस पदार्थ, कन्दमूल,

कपास, तिलहन पदायों में तेजी चलेगी।

आकाश लक्षण जून - 2025

मास में ग्रहचाल व नाड़ी परिवर्तन और क्रूर ग्रहों का समसप्तम योग होने से भूकम्प, अनावृष्टि से प्रजा को

भारी कष्ट का सामना करना होगा। गुरु के अस्त होने से कहीं वर्षा भी होगी। सूर्य, चन्द्रमा और

बृहस्पति की युति से कहीं उतर दिशा में प्राकृतिक उपद्रवों से धन-जन हानि होगी।

चंद्र राशि प्रवेश  जून - 2025  

दि. 1 सिंह 21/36, दि. 4 कन्या 7/35, दि. 6 तुला 20/06, दि. 9 वृश्चिक 8/50, दि. 11 धनु 20/10, दि. 14

मकर 5/38. दि. 16 कुम्भ13/09, दि. 18 मौन 18/35, दि. 20 मेष 21/44, दि. 22 वृष 23/03,

दि. 24 मिथुन 23/45, दि. 27 कर्क 1/39, दि. 29 सिंह 6/34

अधिक जानकारी के लिए संपर्क करे शर्मा जी - 9312002527,9560518227

सर्वार्थ सिद्धि योग जून -2025  

दैनिक जीवन में आने वाले महत्वपूर्ण कार्यों के लिए शीघ्र ही किसी  शुभ मुहूर्त का अभाव हो,किंतु शुभ मुहर्त

के लिए अधिक दिनों तक रुका ना जा सकता हो तो इन सुयोग्य वाले मुहर्तु  को

सफलता से ग्रहण किया जा सकता है | इन से प्राप्त होने वाले अभीष्ट फल के विषय में संशय नहीं करना

चाहिए यह योग हैं सर्वार्थ सिद्धि,अमृत सिद्धि योग एवं रवियोग | योग्यता नाम तथा गुण अनुसार सर्वांगीण

सिद्ध कारक  है| 

अधिक जानकारी के लिए संपर्क करे शर्मा जी - 9312002527,9560518227

दिनांक

प्रारंभ

दिनांक

समाप्त

07

09-39

08

05-28

09

15-31

10

05-27

15

00-21

15

05-27

19

23-16

21

05-27

23

15-16

24

05-28

25

05-29

25

10-40

26

08-46

27

07-21


चौघड़िया मुहूर्त 

चौघड़िया मुहूर्त देखकर कार्य या यात्रा करना उत्तम होता है। एक तिथि के लिये दिवस और रात्रि के आठ-आठ

भाग का एक चौघड़िया निश्चित है। इस प्रकार से 12 घंटे का दिन और 12 घंटे की रात मानें तो

प्रत्येक में 90 मिनट यानि 1.30 घण्टे का एक चौघड़िया होता है जो सूर्योदय से प्रारंभ होता है|

सुर्य उदय- सुर्य अस्त जून - 2025 


दिनांक 

01 

05 

10 

15

20 

25 

28

उदय 

05-25

05-24

05-24

05-24

05-25

05-26

05-27

अस्त 

19-13

19-15

19-17

19-19

19-20

19-21

19-23


 राहू काल 

 राहुकाल -राहुकाल दक्षिण भारत की देन है,दक्षिण भारत में राहु काल में कृत्य करना अच्छा नहीं माना जाता,

राहु काल में शुभ कृतियों में वर्जित करने की परंपरा अब हमारे उत्तरी भारत में भी अपनाने लगे हैं

राहुकाल प्रतिदिन सूर्यादि वारों में भिन्न-भिन्न समय पर केवल डेढ़ डेढ़ घंटे के लिए घटित होता है |

अधिक जानकारी के लिए संपर्क करे शर्मा जी - 9312002527,9560518227

  मांगलिक दोष विचार परिहार

वर अथवा कन्या दोनों में से किसी की भी कुंडली में 1,4,7,8 व 12 भाव में मंगल होने से ये मांगलिक माने जाते हैं,

मंगली से मंगली के विवाह में दोष न होते हुए भी जन्म पत्रिका के अनुसार गुणों को मिलाना ही चाहिए

यदि मंगल के साथ शनि अथवा राहु केतु भी हो तो प्रबल मंगली डबल मंगली योग होता है |

इसी प्रकार गुरु अथवा चंद्रमा केंद्र हो तो दोष का परिहार भी हो जाता है |इसके अतिरिक्त मेष वृश्चिक

मकर का मंगल होने से भी दोष नष्ट हो जाता है | इसी प्रकार यदि वर या कन्या किसी भी

कुंडली में 1,4,7,9,12 स्थानों में शनि हो केंद्र त्रिकोण भावो में शुभ ग्रह, 3,6,11 भावो में पाप ग्रह हों तो भी

मंगलीक दोष का आंशिक परिहार होता है, सप्तम ग्रह में यदि सप्तमेश हो तो भी दोष निवृत्त होता है |

स्वयं सिद्ध मुहूर्त

 स्वयं सिद्ध मुहूर्त चैत्र शुक्ल प्रतिपदा वैशाख शुक्ल तृतीया अक्षय तृतीया आश्विन शुक्ल दशमी विजयदशमी

दीपावली के प्रदोष काल का आधा भाग भारत में से इसके अतिरिक्त लोकाचार और देश

आचार्य के अनुसार निम्नलिखित कृतियों को भी स्वयं सिद्ध मुहूर्त माना जाता है बडावली नामी

देव प्रबोधिनी एकादशी बसंत पंचमी फुलेरा दूज इन में से किसी भी कार्य को करने के लिए

पंचांग शुद्धि देखने की आवश्यकता नहीं है परंतु विवाह आदि में तो पंचांग में दिए गए मुहूर्त व

कार्य करना श्रेष्ठ रहता है।


रविवार, 1 जून 2025

सुजान सिंह शेखावत

  


सुजान सिंह शेखावत 

सतीश शर्मा 

7 मार्च 1679  एक बीस बाइस वर्ष के लड़के की बारात जा रही थी, तभी कुछ चरवाहे उनके पास आते है और बताते है कि औरंगजेब की सेना खंडोला के मंदिरों को तोड़ने आ गई है और 100 गायों को हलाल करेगी उनके पास बड़े तोपखाने और हाथियों का दल है, हजारों की सेना है,ये सुनते ही सुजान सिंह शेखावत बोले जिस धरती पर राजपूतों का निवास हो वहां ऐसा कृत्य? उन्होंने फिर अपने बारात में आए पुरुषो को ललकारा कि कौन कौन जायेगा मंदिर की रक्षा को ललकारने मात्र की देर थी 70 से अधिक क्षत्रिय योद्धा सामने आ गए,पर एक पल ध्यान उनका उस नव विवाहित कन्या पर गया जिसका उन्होंने मुख भी अभी तक नही देखा था, उस पर क्या गुजरेगी। तब डोली से एक हाथ निकलता है जिसने सुजान सिंह को अनुमति दे दी, उस क्षत्रानी को प्रणाम कर वे फिर खंडोला निकल गए

खंडोला पहुंचकर वे कृष्ण के मंदिर में जाकर रुक गए, जिसे मुगल सबसे पहले तोड़ने वाले थे, इस बीच कुछ और शेखावत राजपूत उस युद्ध मे शामिल हो गए जिससे उनकी संख्या 300 हो गई कुछ ही समय में मुगल सेनापति सेना सहित खंडोला पहुंच गया, मंदिर के समक्ष नौजवान युवक को देख सेनापति हैरान हो जाता है क्योंकि उनके गुप्तचरों के अनुसार मंदिर परिसर रिक्त होना चाहिए था। खैर हजारों की सेना के होने का आत्मविश्वास उसके सर पर चढ़ा हुआ था अतः उसने उन राजपूतों को मारकर मंदिर तोड़ने का निर्देश दे दिया । हालांकि सेनापति पीछे ही रहा, ये मुगलों की शुरू से छिपे रहने की रणनीति होती थी ताकि युद्ध कितना भी भयंकर हो बिना नेतृत्व के लड़ने की नौबत न आए । बारात से आने के कारण उनके पास कुछ खास हथियार भी नही थे, तोप और बारूदो के सामने तलवार और भालो से युद्ध करते उस मनमोहक दृश्य को भला कौन गंवाना चाहता था । सुजान सिंह की पत्नी जिसे ससुराल भेज दिया गया था, उसने कहा बिना पति के साथ वो ससुराल नही जायेगी और खंडोला की ओर वो भी बढ़ गई । इस भीषण लड़ाई में अचानक एक आवाज आती है कि मुगल सेनापति मारा गया, सुजान सिंह ने उस सेनापति को ढूंढ लिया था और उसके रक्षा घेरा को तोड़ यमलोक पहुंचा दिया था । उनकी शायद शुरू से यहीं रणनीति थी कि अगर इतनी बड़ी सेना को हराना है तो उसके सेनापति को मारना होगा । लेकिन इसके बाद मुगलों का गुच्छा उन पर टूट पड़ता है जिसमे एक तलवार ने सुजान सिंह के सर को धड़ से अलग कर दिया । पर इसके बाद भी सुजान सिंह की तलवार नही रुक रही थी, वो मुगलों को काटे जा रही थी, मुगलों में डर का माहौल भर गया और सब इधर उधर भागने लग गए, मंदिर के पुजारी ने उन्हे स्वयं द्वारकाधीश का रूप बताया जो मंदिर की रक्षा हेतु आज उन पर सवार थे।

मुगलों को भगाने के बाद घोड़े में बैठे सुजान सिंह ने मंदिर की परिक्रमा की उसके बाद उस रास्ते में चले गए जहां उन्होंने अपनी पत्नी को भेजा था। रास्ते में ही वो वीर क्षत्राणि मिल गई जिससे मिलने के उपरांत धड़ फिर रुक गया, वीरांगना ने ये कहते हुए कि आपने मेरे कुल और धर्म की लाज रख ली, मैं धन्य हुई जो आप मेरे स्वामी हुए, इसके उपरांत पति के वियोग में उस वीरांगना ने भी अग्निस्नान कर लिया।

इसके बाद वे गुर्जर और अहीर चरवाहों ने मुगलों की छावनी में रात को हमला कर दिया और उन 100 गायों को मुक्त कर दिया जिसे हलाल किया जाने वाला था। 

साभार

हिन्दू साम्राज्य के वीर नायक छत्रपति शिवाजी

  हिन्दू साम्राज्य के वीर नायक छत्रपति शिवाजी  सतीश शर्मा   छत्रपति शिवाजी महाराज का  ऐसा राज्याभिषेक हुआ जिससे उस समय की सारी परिस्थितियाँ ...