मंगल ग्रह
मंगल हिंसक,शुर ,तरुण ,पित्त प्रक्रति लाल गोर वरनी अग्नि जैसा उग्र उदार तामसी स्वभाव वाला और
गर्वीला होता है | सौर परिवार में मंगल का चोथा स्थान है | मंगल ग्रह को ऊर्जा, भूमि और साहस का कारक ग्रह माना गया है। ज्योतिष शास्त्र में मंगल ग्रह को क्रूर ग्रह माना गया है। मेष और वृश्चिक राशि के स्वामी मंगल ग्रह होते हैं। मंगल मकर राशि में उच्च के जबकि कर्क राशि में नीच के माने गए हैं।
मंगल का रत्न - मूंगा, लाल रंग का धागा अभिमंत्रित
कर पहन सकते है।
मंगल का वहन मेथा ,
मेष व वृश्चिक राशी का स्वामी होता है |
कमजोर मंगल के रोग - पित ,वायु ,कर्ण रोग,विशु चिका , खुजली |
कुंडली में मंगल 4 ,8 भाव को पूर्ण दृष्टि से देखता है |
मंगल की धातु - सुवर्ण ,ताम्र |
मंगल का दान - मसूर ,गूढ़ ,घी ,लाल वस्त्र ,लाल कनेर ,कस्तूरी , लाल चन्दन |
मंगल का बीज मंत्र- ॐ क्रां क्रीं क्रौं सः भौमाय नमः।
मंगल का अंक - 9
मंगल अशुभ हो तो कभी कभी जेल के दर्शन भी हो जाते हैं | कुंडली का मंगल जीवन के सुख, संपत्ति, विवाद और मुकदमेबाजी जैसे पहलुओं को विशेष रूप से प्रभावित करता है | यानि जीवन के हर मोड़ पर खराब या अशुभ मंगल का प्रभाव रहता है और इंसान की जिंदगी को प्रभावित भी करता है | मंगलवार के दिन किसी गरीब या जरूरतमंद को लाल रंग का कपड़ा दान करें। हनुमान जी के मंदिर जाकर संतरी रंग के सिंदूर में चमेली का तेल मिलाकर हनुमान जी को चौला चढ़ाएं। मंगल ग्रह के मंत्रों का जाप करें। ढाई किलो लाल मसूर की दाल किसी कुष्ठ रोगी को दान करें।
अंधकासुर से युद्ध के समय लड़ते-लड़ते भगवान शिव के मस्तक से पसीने की एक बूंद पृथ्वी पर गिरी, उससे अंगार के समान लाल अंग वाले भूमिपुत्र मंगल का जन्म हुआ।मंगल ग्रह या मंगल दोष हेतु अक्सर हनुमानजी की पूजा बताई जाती है और हनुमानजी का दिन भी मंगलवार भी है परंतु मंगलदेव ही मंगल ग्रह के देवता है और उनका वार भी मंगलवार ही होता है। मंगल दोष की शांति हेतु उनकी भी पूजा की जाती है।
हनुमान चालीसा
॥दोहा॥
श्रीगुरु चरन सरोज रज निज मनु मुकुरु सुधारि ।
बरनउँ रघुबर बिमल जसु जो दायकु फल चारि ॥
बुद्धिहीन तनु जानिके सुमिरौं पवन-कुमार ।
बल बुधि बिद्या देहु मोहिं हरहु कलेस बिकार ॥ ॥
चौपाई॥
जय हनुमान ज्ञान गुन सागर । जय कपीस तिहुँ लोक उजागर ॥१॥
राम दूत अतुलित बल धामा । अञ्जनि-पुत्र पवनसुत नामा ॥२॥
महाबीर बिक्रम बजरङ्गी । कुमति निवार सुमति के सङ्गी ॥३॥
कञ्चन बरन बिराज सुबेसा । कानन कुण्डल कुञ्चित केसा ॥४॥
हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजै । काँधे मूँज जनेउ साजै ॥५॥
सङ्कर सुवन केसरीनन्दन । तेज प्रताप महा जग बन्दन ॥६॥
बिद्यावान गुनी अति चातुर । राम काज करिबे को आतुर ॥७॥
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया । राम लखन सीता मन बसिया ॥८॥
सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा । बिकट रूप धरि लङ्क जरावा ॥९॥
भीम रूप धरि असुर सँहारे । रामचन्द्र के काज सँवारे ॥१०॥
लाय सञ्जीवन लखन जियाये । श्रीरघुबीर हरषि उर लाये ॥११॥
रघुपति कीह्नी बहुत बड़ाई । तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई ॥१२॥
सहस बदन तुह्मारो जस गावैं । अस कहि श्रीपति कण्ठ लगावैं ॥१३॥
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा । नारद सारद सहित अहीसा ॥१४॥
जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते । कबि कोबिद कहि सके कहाँ ते ॥१५॥
तुम उपकार सुग्रीवहिं कीह्ना । राम मिलाय राज पद दीह्ना ॥१६॥
तुह्मरो मन्त्र बिभीषन माना । लङ्केस्वर भए सब जग जाना ॥१७॥
जुग सहस्र जोजन पर भानु । लील्यो ताहि मधुर फल जानू ॥१८॥
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं । जलधि लाँघि गये अचरज नाहीं ॥१९॥
दुर्गम काज जगत के जेते । सुगम अनुग्रह तुह्मरे तेते ॥२०॥
राम दुआरे तुम रखवारे । होत न आज्ञा बिनु पैसारे ॥२१॥
सब सुख लहै तुह्मारी सरना । तुम रच्छक काहू को डर ना ॥२२॥
आपन तेज सह्मारो आपै । तीनों लोक हाँक तें काँपै ॥२३॥
भूत पिसाच निकट नहिं आवै । महाबीर जब नाम सुनावै ॥२४॥
नासै रोग हरै सब पीरा । जपत निरन्तर हनुमत बीरा ॥२५॥
सङ्कट तें हनुमान छुड़ावै । मन क्रम बचन ध्यान जो लावै ॥२६॥
सब पर राम तपस्वी राजा । तिन के काज सकल तुम साजा ॥२७॥
और मनोरथ जो कोई लावै । सोई अमित जीवन फल पावै ॥२८॥
चारों जुग परताप तुह्मारा । है परसिद्ध जगत उजियारा ॥२९॥
साधु सन्त के तुम रखवारे । असुर निकन्दन राम दुलारे ॥३०॥
अष्टसिद्धि नौ निधि के दाता । अस बर दीन जानकी माता ॥३१॥
राम रसायन तुह्मरे पासा । सदा रहो रघुपति के दासा ॥३२॥
तुह्मरे भजन राम को पावै । जनम जनम के दुख बिसरावै ॥३३॥
अन्त काल रघुबर पुर जाई । जहाँ जन्म हरिभक्त कहाई ॥३४॥
और देवता चित्त न धरई । हनुमत सेइ सर्ब सुख करई ॥३५॥
सङ्कट कटै मिटै सब पीरा । जो सुमिरै हनुमत बलबीरा ॥३६॥
जय जय जय हनुमान गोसाईं । कृपा करहु गुरुदेव की नाईं ॥३७॥
जो सत बार पाठ कर कोई । छूटहि बन्दि महा सुख होई ॥३८॥
जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा । होय सिद्धि साखी गौरीसा ॥३९॥
तुलसीदास सदा हरि चेरा । कीजै नाथ हृदय महँ डेरा ॥४०॥
॥दोहा॥
पवनतनय सङ्कट हरन मङ्गल मूरति रूप ।
राम लखन सीता सहित हृदय बसहु सुर भूप ॥
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संकटमोचन हनुमानाष्टक
बाल समय रबि भक्षि लियो तब, तीनहुं लोक भयो अंधियारो ।
ताहि सों त्रास भयो जग को, यह संकट काहु सों जात न टारो ॥
देवन आन करि बिनती तब, छांड़ि दियो रबि कष्ट निवारो ।
को नहिं जानत है जग में कपि, संकटमोचन नाम तिहारो ॥ 1 ॥
बालि की त्रास कपीस बसै गिरि,जात महाप्रभु पंथ निहारो ।
चौंकि महा मुनि शाप दिया तब,चाहिय कौन बिचार बिचारो ॥
के द्विज रूप लिवाय महाप्रभु,सो तुम दास के शोक निवारो ।
को नहिं जानत है जग में कपि,संकटमोचन नाम तिहारो ॥2॥
अंगद के संग लेन गये सिय,खोज कपीस यह बैन उचारो ।
जीवत ना बचिहौ हम सो जु,बिना सुधि लाय इहाँ पगु धारो ॥
हेरि थके तट सिंधु सबै तब,लाय सिया-सुधि प्राण उबारो ।
को नहिं जानत है जग में कपि,संकटमोचन नाम तिहारो ॥3॥
रावन त्रास दई सिय को सब,राक्षसि सों कहि शोक निवारो ।
ताहि समय हनुमान महाप्रभु,जाय महा रजनीचर मारो ॥
चाहत सीय अशोक सों आगि सु,दै प्रभु मुद्रिका शोक निवारो ।
को नहिं जानत है जग में कपि,संकटमोचन नाम तिहारो ॥4॥
बाण लग्यो उर लछिमन के तब,प्राण तजे सुत रावण मारो ।
लै गृह बैद्य सुषेन समेत,तबै गिरि द्रोण सु बीर उपारो ॥
आनि सजीवन हाथ दई तब,लछिमन के तुम प्राण उबारो ।
को नहिं जानत है जग में कपि,संकटमोचन नाम तिहारो ॥5॥
रावण युद्ध अजान कियो तब,नाग कि फांस सबै सिर डारो ।
श्रीरघुनाथ समेत सबै दल,मोह भयोयह संकट भारो ॥
आनि खगेस तबै हनुमान जु,बंधन काटि सुत्रास निवारो ।
को नहिं जानत है जग में कपि,संकटमोचन नाम तिहारो ॥6॥
बंधु समेत जबै अहिरावन,लै रघुनाथ पाताल सिधारो ।
देबिहिं पूजि भली बिधि सों बलि,देउ सबै मिति मंत्र बिचारो ॥
जाय सहाय भयो तब ही,अहिरावण सैन्य समेत सँहारो ।
को नहिं जानत है जग में कपि,संकटमोचन नाम तिहारो ॥7॥
काज किये बड़ देवन के तुम,वीर महाप्रभु देखि बिचारो ।
कौन सो संकट मोर गरीब को,जो तुमसों नहिं जात है टारो ॥
बेगि हरो हनुमान महाप्रभु,जो कछु संकट होय हमारो ।
को नहिं जानत है जग में कपि,संकटमोचन नाम तिहारो ॥8॥॥
दोहा : ॥
लाल देह लाली लसे,अरू धरि लाल लंगूर ।
बज्र देह दानव दलन,जय जय जय कपि सूर ॥
॥ इति संकटमोचन हनुमानाष्टक सम्पूर्ण ॥
हनुमानजी की आरती
आरती कीजै हनुमान लला की।दुष्ट दलन रघुनाथ कला की।।
जाके बल से गिरिवर कांपे।रोग दोष जाके निकट न झांके।।
अंजनि पुत्र महाबलदायी।सन्तन के प्रभु सदा सहाई।।
दे बीरा रघुनाथ पठाए।लंका जारि सिया सुध लाए।।
लंका सो कोट समुद्र सी खाई।जात पवनसुत बार न लाई ।।
लंका जारि असुर संहारे।सियारामजी के काज संवारे ।।
लक्ष्मण मूर्छित पड़े सकारे।आणि संजीवन प्राण उबारे ।।
पैठी पताल तोरि जमकारे।अहिरावण की भुजा उखारे ।।
बाएं भुजा असुर दल मारे।दाहिने भुजा संतजन तारे ।।
सुर-नर-मुनि जन आरती उतारे।जै जै जै हनुमान उचारे ।।
कंचन थार कपूर लौ छाई।आरती करत अंजना माई ।।
जो हनुमानजी की आरती गावै।बसि बैकुंठ परमपद पावै ।।
लंकविध्वंस किए रघुराई।तुलसीदास प्रभु कीरति गाई ।।
आरती कीजै हनुमान लला की।दुष्ट दलन रघुनाथ कला की ।।
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