मंगलवार, 3 सितंबर 2024

जानकारी काल सितंबर - 2024

 जानकारी काल 



   वर्ष-25   अंक - 05    सितंबर - 2024,  पृष्ठ 40                     www.sumansangam.com    





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प्रकाशक व मुद्रक 

सतीश शर्मा के लिय ग्लैक्सी प्रिंटर-106 F,

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      अनुक्रमणिका

अपनों से अपनी बात - 3  

21 वीं सदी के अभिभावक - 4 लेख

हमारे जीवन में यंत्रों का महत्व - 7 लेख 

श्रवण कुमार - 08 कहानी 

अर्चना बहु - 09 कहानी 

मेष राशि  - 11 ज्योतिष 

ईमानदार कर्म और बेईमान सोच - 12 कहानी 

मांगलिक दोष विचार परिहार - 14 ज्योतिष 

स्वयं सिद्ध मुहूर्त - 14 ज्योतिष 

आठ आने में रामचरितमानस - 15 लेख 

कोन सा श्राद्ध कब जाने - 17 ज्योतिष  

मूल विचार व ग्रह स्थिति  - 17 ज्योतिष 

घर से निकासी - 18 कहानी 

भारतीय वर्षोत्सव, चौघड़िया मुहूर्त - 20 ज्योतिष 

घर बैठे मसाले और खाद्य पदार्थो कि जांच करें- 21 लेख

भद्रा विचार - 22 ज्योतिष 

फिर से चुके हुई विदुरों से - 23 कविता 

दुलारा - 24 कहानी  

सर्वार्थ सिद्धि योग व पंचक विचार - 26 ज्योतिष

एक कर्ज ऐसा भी - 27

सितम्बर माह के महत्व पूर्ण दिवस - 29 सामान्य ज्ञान 

आक्रोश की परिणति - 34 कहानी 

मैं भीतर की सौ चुकी बच्ची,,,35 कविता 

असाधारण व्यक्तित्व राजकुमारी देवी सिंह - 36 कहानी 

परिवर्तनी एकादशी व्रत कथा - 37 कथा 

इन्दिरा एकादशी व्रत कथा - 38 कथा 

भारत को जाने - 32 जानकारी 




अपनों से अपनी बात 

यूक्रेन दौरे के कारण विश्व मे मोदी जी का दोरा बहुत चर्चा में है | अमेरिका रूस चीन व यू एन ओ | यू एन ओ ने  कहा है कि मोदी जी इस समस्या का समाधान निकाल सकते हैं दोनों देशों में युद्ध को  बंद करने के लिए मोदी जी सहयोग कर सकते हैं | अमेरिका ने तो मोदी जी के दोरे के दूरगामी परिणाम देख कर दूसरे ही दिन 150 करोड डॉलर की मदद यूक्रेन को दोबारा से भेज दी | यूक्रेन को देखना है कि वह इस मदद का कैसे इस्तेमाल करता है | मोदी जी ने कहा है भारत बुद्ध का देश है हम शांति दूत है और शांति की कल्पना करते हैं व शांति की स्थपना हेतु प्रयास करते है | मोदी जी जानते हैं शक्ति के बिना शांति की कल्पना बेकार है इसीलिए आज अगर मोदी जी की बात को सब गोर से सुन रहे हैं उसके पीछे  हिंदुस्तान के पास सैन्य शक्ति का बढ़ना व देश मे मजबूत सरकार का होना है | अपने एक बयान मे यूक्रेन के राष्ट्रपति  वलोदिमीर जेलेंस्की ने कहा है की वार्ता के लिए भारत भी एक केंद्र हो सकता है | धीरे धीरे विश्व का भारत पर विश्वास बढ़ रहा है | शक्ति के बिना शांति की कल्पना बेकार है। शक्ति विहीन व्यक्ति है तो वह शांति की बात कर ही नहीं सकता। इतिहास में  देखे तो भगवान राम जब समुद्र पार करने के लिए चर्चा कर रहे थे तब विभीषण जी ने कहा कि समुद्र आपका कुलगुरु हैं और आप इसकी आराधना करेंगे तो यह आपको यह पार करने का रास्ता बता देंगे।  प्रभु राम ने समुद्र के सामने पूजा और आराधना करने लगे तो लक्ष्मण जी ने कहा था की आराधना करने से कोई लाभ नहीं होने वाला है,रामचंद्र जी ने कहा का चिंता मत करो जैसा तुम चाहते हो वैसा ही कुछ होगा । कुछ दिन आराधना करने के बाद अंत में राम जी को शस्त्र उठाना पड़ा । इसी संदर्भ में तुलसी दास जी लिखते है -

 बिनय न मानत जलधि जड़ गए तीनि दिन बीति। बोले राम सकोप तब भय बिनु होइ न प्रीति | 

अगर आप शक्तिशाली नहीं है तो आपकी बात को कोई नहीं मानेगा, क्योंकि एक परंपरा है कि सब कमजोर पर शासन करना चाहते है। तो अगर आपको विश्व में अपनी उपस्थिति दर्ज करनी है तो उसकी सबसे पहली शर्त यही होगी कि आप शक्तिशाली बने संगठित रहें अपनी सैन्य शक्ति को मजबूत करना होगा व देश मे एक शक्तिशाली सरकार हो ओर कठोर निर्णय लेने वाला राष्ट्रवादी नेता हो । 4 जून से पहले ऐसा लग रहा था की हम अपनी लोकसभा का संकल्प ( P O K का भारत मे विलय ) पूरा कर लेंगे पर बहुमत से पीछे रहने के कारण शायद सरकार के कदम कमजोर हो गए है | विश्व संसद मे होने वाली चर्चा पर भी नजर रखता है | स्वस्थ लोकतंत्र की धुरी है आलोचना,असहमति और दूसरे पक्ष का सम्मान,वे खुद के प्रचार के लिए कुछ भी बोलते हैं। हमारे सांसदों को ध्यान में रखना होगा कि लोकतंत्र की सार्थकता लोकमत को आहत करने में नहीं, बल्कि उसका सम्मान करने में है। तभी हम अन्तराष्ट्रिय मंच पर सम्मान प्राप्त करेंगे |






21वीं सदी के अभिभावक

 – रवि कुमार

‘अभिभावक’ शब्द पर विचार करते हैं तो ध्यान में आता है माता-पिता। एक शब्द और चलता है – ‘पाल्य या पालक’ अर्थात् पालन करने वाले। तीनों शब्दों में संकेत माता-पिता की ओर जाता है। 21वीं सदी के अभिभावक जब कहते हैं तो ध्यान में क्या आएगा? वर्ष 2021 चल रहा है। इस समय विद्यालय में जो बालक शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं वे सब 21वीं सदी के विद्यार्थी हैं और उनके अभिभावक 21वीं सदी के अभिभावक।

अभिभावक शिक्षा

बालकों की शिक्षा की चर्चा तो आवश्यक है और वह चर्चा सूक्ष्म रूप में होती है। परन्तु ये अभिभावक शिक्षा क्या है? यह एक अलग प्रकार का प्रश्न अवश्य है। आज अभिभावकों से सब बालकों के सम्बन्ध में चर्चा करते हैं तो वे बालकों सम्बन्धी अनेक विषयों को लेकर दिग्भ्रमित दिखाई देते हैं। अभिभावकों के मन में अनेक प्रकार के प्रश्न रहते है जिनका उन्हें उत्तर चाहिए। बालकों के विषय में कुछ विषयों को लेकर ये सोचते हैं कि क्या करें? इस प्रकार की चर्चा से ध्यान आता है कि उनके प्रश्नों का उत्तर यदि उन्हें मिल जाए एवं बालकों के सम्बन्ध में वे जो दिग्भ्रमित है उन्हें दिशा मिल जाए तो बालकों के विकास की गति अच्छी हो सकती है। बालकों के सम्बन्ध में अभिभावकों का दिशा-दर्शन ही अभिभावक शिक्षा है।

21वीं सदीं के अभिभावकों की शिक्षा क्यों

20वीं सदीं गए 20 वर्ष ही हुए हैं। परन्तु 20वीं सदीं व 21वीं सदीं में अन्तर एक शताब्दी यानि 100 वर्षों 


का है। इन 20 वर्षों में बहुत अंतर आया है। परिवारों की स्थिति का ध्यान करेंगे तो संयुक्त परिवार एकल परिवारों में बदले हैं। एकल यानि माता-पिता व बालक। संयुक्त परिवार कहीं-कहीं देखने को मिलता है। आजकल एक और शब्द चल पड़ा है – न्यूक्लीयर फैमिली, ये न्यूक्लीयर फैमिली क्या हैं? एक न्यूक्लीयर में एक न्यूटॉन, एक प्रोटॉन व एक इलेक्ट्रान होता है। आजकल एकल परिवार का रूप भी बदला है। न्यूक्लीयर फैमिली अर्थात माता-पिता और एक बालक। संयुक्त परिवार में बालक की चिन्ता करने वालों में माता-पिता, दादा-दादी, चाचा-चाची, ताऊ-ताई रहते हैं। सामाजिक ताना-बाना बदला है। पूर्व में पड़ोसी व मोहल्ले वाले भी चिन्ता करते थे। आज केवल माता-पिता और उनमें से भी केवल माता चिंता करती है, अनुभव के आधार पर ऐसा कह सकते हैं। संयुक्त परिवार रहने से अभिभावक की भूमिका की जानकारी और प्रशिक्षण पीढ़ी दर पीढ़ी चलता रहता है। आज इस विषय में कठिनाई है। सामाजिक ताना-बाना बदलने से अगली पीढ़ी को जो मिलना चाहिए वह नहीं मिल रहा।

21 वीं सदी के अभिभावकों के सामने चुनौतियाँ

21वीं सदी की चुनौतियाँ भी अलग हैं। मोबाइल, टी.वी., इंटरनेट यह 20वीं सदीं में नहीं था। आज इसका प्रभाव अधिक दिखाई देता है। करियर व प्रतियोगिता की अधिक चर्चा व इन विषयों का बालक पर दबाव अधिक है। न्यूक्लीयर फैमिली में अधिक संभाल भी समस्या उत्पन्न करती है।

आज नई पीढ़ी के अभिभावक से जब चर्चा करते हैं तो वह कहता है – आज पहले जैसा नहीं है, युग बदला है। पहले बड़े परिवार होते थे। आज एकल परिवार हैं। पहले माता-पिता पढ़े-लिखे कम होते थे, आज सभी शिक्षित हैं। पहले शिक्षा की जागरूकता नहीं थी,  आज परिवार एवं समाज में शिक्षा की जागरूकता बढ़ी है। पहले शिक्षा के अवसर कम थे या ना के बराबर थे, शिक्षा केन्द्रों की उपलब्धता कम थी, आज शिक्षा के अवसर एवं शिक्षा केन्द्रों की उपलब्धता बढ़ी है। इन सब बातों से तो स्पष्ट हो ही जाता है कि आज पहले जैसा नहीं है, युग बदला है। फिर युग बदला है तो चुनौतियाँ बढ़ी हैं। हर काल में अलग-अलग चुनौतियाँ होती हैं। चुनौतियाँ बढ़ती नहीं बल्कि बदलती है। हाँ, चुनौतियाँ का बढ़ना या न बढ़ना इस बात पर निर्भर करता है कि चुनौतियों का सामना करना व मार्ग निकालना इसकी सिद्धता है या नहीं और है तो सिद्धता कैसी है?

एक व्यक्ति मिलने के लिए आए। वे एक विद्यालय का संचालन करते हैं। उनसे चर्चा हुई कि आजकल शिक्षा का रुझान कैसा है? उनका तुरंत उत्तर था कि आजकल शिक्षा का विषय मोबाइल ने गड़बड़ कर दिया है। बालक घर जाकर मोबाइल में लगा रहता है। पढ़ाई में उसकी एकाग्रता ही नहीं बनती। बालकों में चर्चा का विषय ही मोबाइल रहता है। घर में वह इस ताक में रहता है कि कब मुझे मोबाइल मिले और आज के समय में बालक को मोबाइल से दूर भी नहीं कर सकते। नई टेक्नोलॉजी है, उसे सीखना व उपयोग करना भी आवश्यक है। क्या करें समझ ही नहीं आता? अभिभावकों से पूछते है कि घर में टी0 वी0 देखते हैं? उत्तर है कि देखते हैं। कितना समय और क्या देखते हैं? उत्तर में- “कितना समय तो जब चाहे तब देखते हैं, और कार्टून ज्यादा देखते हैं, उन्हें यह पंसद हैं”। कुछ समय पश्चात् 


अभिभावक को ध्यान में आता है कि बालक के स्वभाव में परिवर्तन आ रहा है, वह जल्दी उत्तेजित हो जाता है। बालक पलट कर उल्टा-सीधा जवाब देता है। ऐसा क्यों हो रहा है और इसे कैसे ठीक करें, समझ में नहीं आता।

बालक घर में नित नई माँग करता है। अपने लिए व घर के लिए ये चाहिए, वो चाहिए, उस ब्रांड की चाहिए, इस ब्रांड की नहीं चाहिए। अभिभावक सोचते है इतनी छोटी अवस्था में बालक को इतनी सारी बातें कैसे पता होती हैं?और इतनी सारी माँग और महंगे ब्रांड परिवार के बजट से बाहर हैं यह बालक को कैसे समझाएँ? एक घर में पिताजी ने बड़े पुत्र से कहा, “बेटा एक गिलास पानी लाना”। पुत्र की ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं। तीन-चार बार कहने पर भी कोई प्रतिक्रिया नहीं आई और ना ही एक गिलास पानी आया। अब छोटे पुत्र ने कहा, “पिताजी, आपको तो पता है बड़ा भाई कुछ काम नहीं करता। आप ऐसा करिए, स्वयं जाकर पानी पीजिए और एक गिलास पानी मेरे लिए भी लेते आइए।’

अभिभावक सोचते हैं कि बालक छोटे-छोटे काम क्यों नहीं करते, बड़ों का कहना क्यों नहीं मानते? कभी-कभी अभिभावकों के मन में प्रश्न आता है, “बालक बड़ा हो रहा है, विशेषकर जब वह कक्षा 9 से 12 में होता है, उस अवस्था में हमारी बात क्यों नहीं मानता? कुछ भी कार्य करना है, कहीं भी आना-जाना है, हमसे न पूछता है न बताता है। हमारे नियंत्रण से बाहर होता जा रहा है। ऐसा क्यों हो रहा है? जबकि हमने बचपन से अब तक उसकी सब बातों का ध्यान रखा है। उसकी हर माँग को पूरा किया है। उसने मुँह से निकाला नहीं और हमने पूरा किया। फिर भी ऐसा क्यों हो रहा है, समझ में नही आता।कभी-कभी बालक के सम्बन्ध में ध्यान आता है कि वह जल्दी-जल्दी अस्वस्थ हो रहा है। इस कारण से विद्यालय से बार-बार अवकाश लेना पड़ता है। बालक के अध्ययन पर भी इसका प्रभाव पड़ रहा है। डॉक्टर से चर्चा करते हैं कि ऐसा बार-बार क्यों होता है, तो ठीक उत्तर नहीं मिलता। फिर बालक के प्रति धारणा बन जाती है कि ये जल्दी अस्वस्थ होता ही है। जब ऋतु बदलती है तो अस्वस्थ होना ही है। अस्वस्थ जल्दी क्यों हो रहा है अथवा जल्दी अस्वस्थ न हो इसके बारे में समझ में नहीं आता। एक स्थाई विषय ‘जल्दी अस्वस्थ होना’ जीवनकाल में जुड़ जाता है।

उपरोक्त सब बातें हमारे सामने 21वीं सदी की चुनौतियां के रूप में खड़ी हुई हैं। ऐसे में अभिभावकों का प्रबोधन अति आवश्यक हो जाता है। पूर्व में प्रबोधन परिवार व समाज करता था, आज नहीं करता। अतः यह दायित्व विद्यालय पर आ गया है। आज अभिभावकों की शिक्षा 21वीं सदीं की चुनौतियों को ध्यान में रखकर करना समाज व युग की आवश्यकता हो गई है।

(लेखक, विद्या भारती प्रचार विभाग की केन्द्रीय टोली के सदस्य है।)







हमारे जीवन में यंत्रों का महत्व


यंत्र का तात्पर्य चेतना अथवा सजगता को धारण करने का माध्यम या उपादान है। ये ज्यामितीय आकृतियों के होते हैं, जो त्रिभुज, अधोमुखी त्रिभुज, वृत्त, वर्ग, पंचकोण, षटकोणीय आदि आकृतियों के होते हैं। मंडल का अर्थ वर्तुलाकर आकृति होता है. जो ब्रह्मडीय शक्तियों से आवेशित होती है। यंत्र की नित्य पूजा उपासना और दर्शन से व्यक्ति को अभीष्ट की पूर्ति तथा इष्ट की कृपा होती है। इन्हीं अनुभवों को ध्यान में रखते हुए हमारे पूर्वज मनीषियों ने यंत्रों का निर्माण सर्वसाधारण के लाभ हेतु किया। ध्यान रखें कि यंत्रों को प्राणप्रतिष्ठित कराकर ही पूजास्थल में रखना चाहिए, तभी वे फलदायी होंगे। भुवनेश्वरी कर्म चंडिका में लिखा है कि भगवान शिव ने देवी पार्वती से कहा-'हे प्रिये पार्वती! जैसे प्राणी के लिए शरीर आवश्यक है और दीपक के लिए तेल आवश्यक है, ठीक उसी प्रकार देवताओं के लिए यंत्र आवश्यक हैं।' यही बात कुलार्णावतन्त्र नामक ग्रंथ में भी वर्णित है-

यन्त्रमित्याहुरेतस्मिन् देवः प्रीणतिः। शरीरमिव जीवस्य दीपस्य स्नेहवत् प्रिये ।।

 कुछ प्रसिद्ध प्रमुख यंत्रों का संक्षिप्त परिचय इस प्रकार है-

श्रीयंत्र - इस यंत्र से श्रीवृद्धि अर्थात् लक्ष्मीजी की अपार कृपा होती है और धन की कमी नहीं रहती। इसके दर्शनमात्र से अनेक यज्ञों का फल प्राप्त होता है। इसकी पूजा अर्चना करने से अल्पसमय में ही मनचाही कामना पूरी होती है। घर में धन-धान्य भरपूर रहता है।

श्रीमहामृत्युंजय - मारक दशाओं के लगने के पूर्व इसकी आराधना से प्राणघातक दुर्घटना, संकट, बीमारी, नजदीक नहीं आती। यंत्र-महामारी, मारकेश, अकाल मौत, अनिष्टग्रहों का दोष, शत्रुभय, मुकदमेबाजी आदि का निवारण होता है।

बगलामुखी यंत्र - शत्रुओं के विनाश या दमन के लिए, वाद-विवाद या मुकदमे में विजय पाने हेतु व बाधाओं को दूर करने के लिए यह यंत्र महान् सहायक सिद्ध होता है। मान सम्मान के साथ सुख समृद्धि प्राप्त होती है।

बीसायंत्र - जिसके पास बीसायंत्र होता है. भगवान् उसकी हर प्रकार से सहायता करते हैं। साधकों की हर मुश्किल आसान हो जाती है। प्रातः उठते ही इसके दर्शन करने से बाधाएं दूर होकर कार्यों में सफलता मिलती है और मान सम्मान की प्राप्ति होती है।

श्रीकनकधारायंत्र - लक्ष्मीप्राप्ति के लिए और दरिद्रता दूर करने के लिए यह रामबाण यंत्र है। यह यंत्र अष्टसिद्धि व नवनिधियों को देने वाला है।

कुबेर यंत्र-धन के देवता कुबेर की कृपा से धन की प्राप्ति होती है। दरिद्रता के अभिशाप से मुक्ति मिलती है।

श्री महालक्ष्मी - इसकी अधिष्ठात्री देवी कमल हैं, जिनके दर्शन व पूजन से घर में लक्ष्मी का स्थायी वास होता है।

सूर्ययंत्र - सदैव स्वस्थ रहने की आकांक्षा हो, तो भगवान् सूर्य की प्रार्थना करनी चाहिए। इससे तमाम रोगों का शमन होता है और व्यक्तित्व में तेजस्विता आती है।

श्रीगणेशयंत्र - इससे विभिन्न प्रकार की उपलब्धियां और सिद्धियां मिलती हैं। धन की प्राप्ति, अष्ट सिद्धि एवं नवनिधि की प्राप्ति हेतु भी इसका प्रयोग होता है।

श्रीमंगलयंत्र - इसकी उपासना से उच्च रक्तचाप एवं मंगलग्रह जनित रोगों का निवारण होता है। इसमें ऋणमुक्ति की अद्वितीय क्षमता होती है।

 श्रवण कुमार

नोरिन शर्मा

" श्रीमती चंदना , आपका बेटा आया है!""देखा,मैं कहती थी कि श्रवण मुझे लेने ज़रूर आएगा..! कुछ दिन के लिए विदेश गया है, मेरी देखभाल अच्छे से हो जाए इसलिए वृद्धाश्रम छोड़ गया था..!" बोलते बोलते चंदना जी हाँफने लगीं ; जल्दी से शॉल लपेटा और कमरे से बाहर मिलने वाले हॉल में पहुँचीं। श्रवण ने देखते ही, माँ के पाँव छुए। दोनों लॉन में बैंच पर बैठ गए। माँ ने पूछा, तू मुझे लेने आया है न...बहू कैसी है? मेरा शानू कैसा है ? इस साल तो स्कूल जाना शुरू करेगा , है न बेटा..!" श्रवण ने अपनी माँ को अपनी बाहों में भर लिया। थोड़ा सरककर माँ की गोद में सिर रख लिया। मुस्कुराता हुआ माँ की आँखों में देखने लगा; जहाँ ढेर सारा प्यार लबालब बहने को आतुर था। फिर उसने माँ के पैरों के पास नीचे बैठकर उनके घुटनों पर सर रख लिया। माँ अपने बेटे पर निहाल हुई जा रही थी और वृद्धाश्रम की संचालिका ,बेटे द्वारा बनाए गए भिन्न भिन्न पोज़ देखकर आहत ..! बेटा खड़ा हुआ, माँ के पैर छुए और बोला ,"जल्दी मिलने आऊंगा..!" इससे पहले माँ कुछ कहती, समझती, बेटा अपने फोटोग्राफर के साथ बाहर जा चुका था। 


अर्चना बहु 

शादी के लिए देखने गई मां ने समधन से कहा, "अंकुर मेरा एकलौता बेटा है, जैसा नाम वैसा गुण। जब-जब मैं दूसरा बच्चा न होने के लिए उदास होती, तो अजय कहते, 'ईश्वर ने दस बेटों के गुण दिए हैं हमारे अंकुर में।'

लेकिन मेरा मन एक बेटी की चाहत में हमेशा कलपता रहा। सोचती थी बहू को ही बेटी का प्यार दूंगी। अपनी बहू की जो छवि मैंने सोची थी, अर्चना उसकी बिल्कुल विपरीत थी। उसकी मां ने ही हंसते हुए कहा, 'अपने नाम के विपरीत है अर्चना! लड़कों की तरह वेशभूषा, हंसना, बोलना, अक्खड़पन भरा हुआ है उसमें। जाने अंकुर को क्या दिखा इसमें।'

जीन्स और टी-शर्ट में आकर उसने 'हैलो आंटी' कहा। मैंने भी प्रत्युत्तर में 'हैलो' ही कहा। तभी उसकी मां बोली, 'आंटी के पैर छुओ बेटा।' उसको असहज देखकर मैंने कह दिया, 'रहने दो बेटा, इसकी कोई जरूरत नहीं है।' बातों से एकदम बिंदास, खिलखिलाकर हंसने वाली, अपनी मां से हर बात पर तर्क-वितर्क करती 'अर्चना' मेरे बेटे 'अंकुर' की पसंद ही नहीं, प्यार भी थी।

शादी की रस्मों के बाद अर्चना हमारे घर आ गई, और अंकुर-अर्चना अपना हनीमून मना कर वापस भी आ गए।

अगले दिन से दोनों को ऑफिस जाना था। सुबह की नींद मुझे बहुत प्यारी थी, सोचती थी बहू आ जाएगी तो उसके हाथों की चाय पीकर अपनी सुबह की शुरुआत करूंगी। लेकिन अर्चना को देखकर मैंने अपना ये सपना भुला दिया और सुबह 6 बजे का अलार्म लगा कर सो गई।

पूजा की घंटियां सुन मेरी नींद खुली, अभी छह भी नहीं बजे थे। बाहर निकल कर देखा, अर्चना आरती की थाल लिए, पूरे घर में घूम रही थी। मुझे लगा मैं सपना देख रही हूं, तब तक वह पास आकर बोली, 'मम्मा, प्रसाद लीजिए।'

फ्रेश होकर बाथरूम से निकली तो मैडम चाय के दो कप लिए हाजिर थीं। चाय पीने के बाद बोली, 'मम्मा, मुझे नाश्ते में बस सैंडविच और चीला बनाना ही आता है। आप लोग नाश्ते में क्या खाते हैं?' पीछे से अंकुर आकर बोला, 'जो भी तुम बनाओगी, हम वही खाएंगे।'

अंकुर ने मेरा हैरान चेहरा देखकर पूछा, "क्या हुआ मां, चाय पसंद नहीं आई?"

"नहीं रे, इतनी अच्छी चाय तो खुद मैंने ही नहीं बनाई कभी!"

फिर मैंने अर्चना से कहा, "तुम्हें ऑफिस जाना है बेटा, तैयार हो जाओ। अभी मेड आ रही होगी, मैं उसके साथ मिलकर नाश्ता बना लूंगी।"

"अरे नहीं मम्मा, नाश्ता तो मैं ही बनाऊंगी। फिर तो मैं पूरा दिन ऑफिस में रहूंगी, तो घर पर सब आपको ही देखना पड़ेगा।"

अर्चना कभी कोई मौका नहीं देती थी कमी निकालने का। साड़ी बहुत कम पहनती है, वह हर रोज 

हमारे पैर भी नहीं छूती, उसकी आवाज भी धीमी नहीं है, उसे घर के काम भी नहीं आते, रोटी तो भारत के नक्शे जैसी बनाती है, और जब गुस्साती है तो... उफ्फ पूछिए ही मत! वह एक आदर्श बहू की छवि से बिल्कुल जुदा है, लेकिन ये कमी दूर हो सकती है।

खुशियों को भी कभी-कभी नजर लग जाती है! सब कुछ बहुत अच्छा चल रहा था कि अजय को हार्ट अटैक आ गया। मैं उन्हें आईसीयू के बाहर से देख घंटों रोती रहती। उस समय मेरी अर्चना ने मुझे सास से बेटी बना दिया।

मुझे अपनी बाहों में भरकर चुप कराती, जबरदस्ती अपने हाथों से खाना खिलाती। हर वक्त यही कहती पापा बिल्कुल ठीक हो जाएंगे। हॉस्पिटल के बिल, दवाइयों का खर्चा इस तरह से देती जैसे उसके अपने पापा का इलाज हो रहा हो।

अंकुर और मेरे सामने मजबूत चट्टान बनी मेरी अर्चना वास्तव में बहुत कोमल थी। घर आने के बाद भी अजय का ख्याल हम दोनों से ज्यादा रखती। अपनी नई नवेली शादी के बावजूद देर रात तक हमारे साथ बैठी रहती। मासूम गुड़िया सी बहू का सपना देखने वाली सास को एक मजबूत बेटी मिल गई थी, जिसका चोला पाश्चात्य था पर दिल एकदम देशी था।

आज मेरे जन्मदिन पर अंकुर ने कहा, "मां, तैयार हो जाइए, आपकी पसंद की साड़ी खरीदने चलते हैं।"

"मुझे कुछ नहीं चाहिए अंकुर! तूने अर्चना के रूप में मेरी जिंदगी का सबसे बड़ा तोहफा दे दिया!" मेरी भीगी आंखें पोछ कर अंकुर ने पूछा, "वैसे है कहां आपकी दबंग बहू? जिसने अपनी दबंगई से आपका भी दिल जीत लिया!"

तब तक अर्चना ने मेरे गले में अपनी बाहें डालकर कहा, "हैप्पी बर्थडे मम्मा," और एक पैकेट पकड़ाते 


हुए कहा, "ये दुनिया की बेस्ट मम्मा के लिए।" पैकेट खोल कर देखा, तो उसमें कांजीवरम साड़ी थी, बिल्कुल वैसी ही जैसी मैं हमेशा से लेना चाहती थी!

मेरे आश्चर्यचकित चेहरे को देखकर बोली, "वो जब आप रेखा की तस्वीर गूगल पर सर्च करके घंटों देखती थीं, तभी मुझे समझ आ गया कि आप उनकी तस्वीरों में क्या देखती हैं!" अपनी जोरदार हंसी के साथ उसने फिर से मुझे गले लगा लिया। खुशी में बहते आंसुओं को पोछकर उसने कहा, “एक मां के दिल की बात एक बेटी तो समझ ही जाती है ना मम्मा!" हां, मेरी अर्चना बेटी,,,,,,,,


 

मेष राशि

आकाश में स्थित भचक्र के 360 अंश या 108 भाग होते हैं। संपूर्ण भचक्र 12 राशियों में विभक्त है। अतः 30 अंश या एक भाग को एक राशि कहा जाता है।

यहाँ पर हम आपको मेष राशि के विषय में जानकारी देंगे,मेष का चिह्न मेढ़ा स्वयं बलिदान का प्रतीक है,नेतृत्व का प्रतीक है मेष राशि । पृथ्वी पर क्रांति के अंशों के अनुसार विषुवत रेखा से 12° उत्तर तक स्थिर । इसे अज-विश्व, क्रिय, तंबुर व आद्य भी कहते हैं।पुरुष राशि, धातु संज्ञक, निवास स्थान पूर्व दिशा में। यह क्रूर एवं चंचल स्वभाव और चर लक्ष्मीवाली, युवावस्था की रक्तवर्णी, अग्नि तत्त्व, रात्रि वाली, कद लम्बा, जाति क्षत्रिय, पृष्ठोदय विषम राशि है। इस चतुष्पद पर्वतचारी, रजोगुणी, पित्त-प्रकृति, प्रधान राशि का वास पाटल देश, स्वामी - मंगल एवं अंक एक  है। मेष का कोलांगवास सिर है, इसका संबंध मुख, मस्तिष्क व स्नायुओं से है। मेष राशि के द्रव्य वस्त्र एवं धान हैं। इस राशि को वन एवं प्रवृत्त भूमि तथा बांध आदि से संबंधित नवीन योजनाओं का आधिपत्य प्राप्त है। यह राशि लौकिक ज्योतिष में इंगलैण्ड, डेनमार्क, जर्मनी, सीरिया, फ्रांस, पीरू आदि देशों का प्रतिनिधित्व करती है।




ईमानदार कर्म ओर बेईमान सोच 


ट्रेन अभी स्टेशन पर रुकी ही थी कि चार-पांच सामान विक्रेता डिब्बे में आये और आवाज देने लगे। मोहिनी को प्यास लग रही थी। तभी एक आठ-दस साल का लड़का पानी की बोतल बेचता हुआ दिखाई दिया।  मोहिनी ने उसे बुलाया - "कितने की बोतले हैं?"

 उसने कहा, ''बीस रुपये की एक दम ठंडी।

 मोहिनी ने बोतल हाथ में लेकर देखा तो बोतल बहुत ठंडी थी।  लेकिन तभी उसकी नजर बोतल पर लगे लेबल पर पड़ी।  उसने उसे देखकर कहा, “यह नकली बिसलरी बना रहा है और बेच रहा है।”  अभी तेरी शिकायत करती हूं'' लड़का हँसा और बोला, “यहाँ तो यही चलता रहता है।  यदि आप असली बिसलारी चाहते हैं, तो आप इसे सामने वाले स्टॉल पर जा सकती हैं, ”उसने  कहा।

 मोहिनी ने बोतल वापस कर दी और लड़का आगे बढ़ने लगा। उसे बहुत प्यास लग रही थी। उसने लड़के से कहा, “सुनो, मैं तुम्हें दस रुपये दूँगी, मेरे लिए उस दुकान से एक बोतल पानी ले आना।”

 लड़के ने कहा, “हाँ, ठीक है, लेकिन जल्दी करो, गाड़ी चलने वाली है।”

मोहिनी अपने हैंड बैग से पैसे निकालने लगी।  फिर उसे ध्यान आया कि कार जल्दी पकड़ने के लिए उन्होंने सारे पैसे कूरियर वाले को दे दिए।

मोहिनी ने कहा, "चलो तीस रुपये काट कर पैसे वापस दे।

 यह सुनकर लड़का हँसा और बोला, “खुले कहां से आयेंगे सुबह से पहली ट्रेन आई है। अभी तो सौ के भी छुटटे नहीं हैं। आप जल्दी दीजिये मैं अभी दुकान वाले से लेकर आया।’’ अब मोहिनी समझ गई कि वह पांच सौ का नोट लेकर भाग जाएगा।  लेकिन मुझे इतनी प्यास लगी थी कि मुझे कुछ समझ नहीं 


आ रहा था।

उन्होंने उस लड़के को पांच सौ रुपये पकड़ा दिये। आस पास बैठी सारी सवारी उन्हें इस तरह देख रहीं थी। जैसे उन्हें दुनियादारी के बारे में कुछ नहीं पता। खिड़की के शीशे से वो उसे भाग कर जाता हुआ देख रहीं थी। कुछ ही देर में गाड़ी सीटी देने लगी अब मोहिनी की चिंता बढ़ने लगी।

तभी पास बैठे एक सज्जन बोल पड़े – ‘‘अरे मेडम आपको क्या लगता है वो आपके पांच रुपये लेकर वापस आयेगा। उसका तो खर्चा पानी निकल गया आज का।’’अब किया भी जा सकता था। तभी गाड़ी चल दी मोहिनी जी ने इधर उधर से शीशी से झांक कर  देखा। एसी कोच से आवाज भी बाहर नहीं जा सकती थी। कुछ ही देर में गाड़ी अपनी पूरी स्पीड पकड़ चुकी थी।

 पाँच सौ रुपये खोने का दुःख ऊपर से प्यास भी लग रही थी।  फिर उसे अपनी मूर्खता पर गुस्सा आता और वही बोतल उठा लेती।  लेकिन अभी भी पांच सौ नहीं खुले हैं।

क्या पता बहाना बना रहा हो?  आज के बाद मैं घर से पानी लेकर आऊंगी। मोहिनी मन ही मन बड़बड़ा रही थी। इसी बीच मुझे बहुत प्यास लग रही थी। आधे घंटे बाद लड़का हाँफता हुआ उनकी 

बर्थ पर आया।  उसके एक हाथ में बाल्टी में बोतलें थीं और दूसरे हाथ में चार सौ अस्सी रुपए। मोहिनी ने उसे डाँटा, “कहाँ रह गया था?”  मैं काफी समय से बोतल की प्यासी हूं।''

 लड़के ने चुपचाप मुझे बोतल दे दी।  दो घूंट पानी के बाद उसने उस लड़के को देखा जिसके हाथ में पैसे थे।  मोहिनी ने पैसे गिने तो चार सौ अस्सी थे।

उसने कहा, ''ये दस रुपये लीजिए।''

 लड़के ने कहा, रहने दो, मैं उस स्टॉल वाले से कमीशन लूंगा।”मोहिनी को अपनी गलती का एहसास हुआ, वह उसे अपनी प्यास के लिए डांट रही थी और वह पूरे पैसे वापस करने आया था। तभी उसका ध्यान उसके घुटने पर गया, वहां से खून बह रहा था और पेंट भी फट चुकी थी।

 मोहिनी ने पूछा, “यह खून कैसे निकल रहा है?”  क्या तुम कहीं गिर गये?'' लड़के ने कहा, “हां, गाड़ी चल रही थी, उसे पकड़ने के लिए मैं फिसल गया।”  मैं काफी देर से आपकी सीट ढूंढ रहा हूं, मैंने आपका कोच और बर्थ नंबर भी नहीं देखा।”

 मोहिनी अपनी गलती पर बहुत शर्मिंदा हुई। सच ही तो कह रहा है कि उसे कैसे पता कि मेरा कोच और बर्थ कौन सा है। उन्होंने कहा, "अगर उसे चोट लग जाती या गाड़ी के नीचे आ गया तो क्या होगा?"

लड़का बोला– “कुछ नहीं होता, ये तो हमारा रोज का काम है।” फिर उसने पानी की बाल्टी ली जिसमें बोतलें ठंडे पानी में आधी डूबी हुई थीं और इसे घाव पर लगाया। मोहिनी ने कहा, “अरे, यह क्या कर रहा है? गंदा पानी डाल रहा है।”  रुको मैं तुम्हें एक बैंडएड दूँगी।''

 उन्होंने अपना सामान खंगाला, एक बैंडएड निकाली और उसके घुटने पर रख दि। तभी उन्हें ध्यान आया कि अगला स्टेशन सौ किलोमीटर दूर है।  फिर उसने लड़के से पूछा, “अब तुम कैसे उतरोगे?”

 लड़के ने कहा, “मैं अगले स्टेशन पर उतरूंगा और सामने वाली दूसरी ट्रेन पकड़ूंगा। मोहिनी ने पूछा, 



“वैसे वह घर कितने बजे पहुँचता है?”

लड़के ने कहा, “मैं सात बजे तक वहाँ पहुँच जाऊँगा।  आज मुझे अपनी माँ से बहुत डांट पड़ेगी।”

 मोहिनी ने कहा, ‘‘तुम चाहते तो यह पैसे ले कर भाग सकते थे‌। अलग क्यों नहीं हो गए। लड़के ने कहा, “मेरी माँ ने कहा है कि ग्राहक भगवान होते हैं।  उनके साथ कभी भी गलत व्यवहार नहीं किया जाना चाहिए,'' उसने कहा। मोहिनी ने उसे पैसे देने की कोशिश की लेकिन उसने एक भी रुपया नहीं लिया और चिल्लाता रहा।

 मोहिनी सोच रही थी, “मैं अपनी प्यास नहीं रोक पा रही हूँ और यह लड़का बारह बजे मेरे पास आकर मुझे केवल एक बोतल पानी देगा।  ये छोटे बच्चे अपनी जान पर खेलकर इतनी मेहनत करते हैं और हम उन्हें हमेशा चोर की नज़र से देखते हैं।''

 यह सब सोचते-सोचते उसकी आँखों में आँसू आ गये।  आज एक छोटे बच्चे ने जीवन का कितना बड़ा सबक सीखा।  हम अपने छोटे से स्वार्थ में हर दिन दूसरों को धोखा देते हैं।

 मांगलिक दोष विचार परिहार

वर अथवा कन्या दोनों में से किसी की भी कुंडली में 1,4,7,8 व 12 भाव में मंगल होने से ये मांगलिक माने जाते हैं,मंगली से मंगली के विवाह में दोष न होते हुए भी जन्म पत्रिका के अनुसार गुणों को मिलाना ही चाहिए यदि मंगल के साथ शनि अथवा राहु केतु भी हो तो प्रबल मंगली डबल मंगली योग होता है | इसी प्रकार गुरु अथवा चंद्रमा केंद्र हो तो दोष का परिहार भी हो जाता है |इसके अतिरिक्त मेष वृश्चिक मकर का मंगल होने से भी दोष नष्ट हो जाता है | इसी प्रकार यदि वर या कन्या किसी भी कुंडली में 1,4,7,9,12 स्थानों में शनि हो केंद्र त्रिकोण भावो में शुभ ग्रह, 3,6,11 भावो में पाप ग्रह हों तो भी मंगलीक दोष का आंशिक परिहार होता है, सप्तम ग्रह में यदि सप्तमेश हो तो भी दोष निवृत्त होता है |

 स्वयं सिद्ध मुहूर्त

 स्वयं सिद्ध मुहूर्त चैत्र शुक्ल प्रतिपदा वैशाख शुक्ल तृतीया अक्षय तृतीया आश्विन शुक्ल दशमी विजयदशमी दीपावली के प्रदोष काल का आधा भाग भारत में से इसके अतिरिक्त लोकाचार और देश आचार्य के अनुसार निम्नलिखित कृतियों को भी स्वयं सिद्ध मुहूर्त माना जाता है बडावली नामी देव प्रबोधिनी एकादशी बसंत पंचमी फुलेरा दूज इन में से किसी भी कार्य को करने के लिए पंचांग शुद्धि देखने की आवश्यकता नहीं है परंतु विवाह आदि में तो पंचांग में दिए गए मुहूर्त व कार्य करना श्रेष्ठ रहता है।

अधिक जानकारी के लिए संपर्क करे शर्मा जी - 9312002527,9560518227

आठ आने में  रामचरितमानस 


श्री हनुमान प्रसाद जी पोद्दार जिन्हें प्रायः गीता प्रेस गोरखपुर से प्रकाशित मासिक पत्र कल्याण के आदि संपादक के रूप में जाना जाता है, वे वस्तुतः एक दिव्य विभूति थे। अपनी जन्मभूमि रतनगढ, राजस्थान से निकलकर उन्होंने व्यापार किया। अपार हानि सही। सट्टा  भी खेला। किंतु साधक भी उच्च कोटि के थे। 

पोद्दार जी को स्नेहवश सभी "भाईजी" कहकर प्रायः संबोधित करते थे 

एक दिन पूजन के समय समाधिस्थ अवस्था मैं उन्हें लगा कि जैसे स्वयं श्री किशोरी जी (श्रीराधारानी) उन्हें संदेश दे रही हों कि– 

"मुगलकाल के भीषण अत्याचारों–हाहाकारों के  मध्य कांपती हुई आस्था को अचलाश्रय प्रदान करने वाले गोस्वामी तुलसीदास जी का श्रीरामचरितमानस केवल आठ आने (पचास पैसे) में जन–जन को प्रदान करो" उन्होंने उसी अवस्था में उत्तर दिया कि "जब आप करा रही हैं तो क्यों नहीं होगा।"

पूजन के पश्चात भोजन करके वे वामकुक्षी (बाईं करवट लेटना) किया करते थे। वो लेटे ही थे कि ध्यानावस्था में फिर एक ध्वनि सुनी कि "अरे, तुम लेट गए। कार्य कैसे संपन्न होगा?" तुरंत उठकर बैठ गए। कागज–पेंसिल लेते ही मन में विचार आया कि मानस के इस प्रथम संस्करण की पचास हजार प्रतिएं प्रकाशित होनी चाहिए। कागज–कंपोजिंग (जो उन दिनों टाइप सेटिंग से हुआ करती थी) छपाई आदि का व्यय लगाने पर यह भी विचार किया की यह घर में छ: आने (37 पैसे) की पड़नी चाहिए। एक आना (6 पैसे) तो विक्रेता भी चाहेगा। और एक आना व्यय के लिए, सब जोड़ घटाकर देखा कि, एक लाख पैंतीस हजार ₹ (उस जमाने के जब सोने का भाव बीस–बाइस ₹ तोला हुआ करता था) का घाटा आता है।

वे हिसाब लगाकर अपनी पत्नी से बोले, "हमारा झोला लगा दो। हमें कलकत्ते जाना है।" झोला क्या धोती–कुर्ता, लंगर–बंडी, संध्या पात्र, और माला, लग गया झोला। गोरखपुर स्टेशन जाकर, टिकिट लेकर रेल में जा बैठे। कलकत्ता जाकर एक पैड़ी पर उतर गए। मारवाड़ी संस्कृति में पेड़ी सेठ–साहूकारों की गद्दी को कहते हैं।

उनके पहुंचते ही चारों ओर "भाईजी आओ–पधारो" की ध्वनि ऐसे गूंजने लगी मानो किसी देवपुरुष का ही अवतरण हो गया हो। पेड़ी के स्वामी ने प्रश्न किया, "भाईजी! थे (आप) कदसी पधारे?"

भाईजी ने उत्तर दिया– "गोरखपुर से सीधे चले आ रहे हैं।"

"तो आप स्नान–पूजनादि कर निवास पर भोजन करने पधारिए।"

"ठीक है, भोजन तो करेंगे! किंतु दक्षिणा लेकर करेंगे।"

"तो अब बाणियों ने भी भोजन दक्षिणा लेकर करने की परंपरा आरंभ कर दी क्या?"

"हां, ब्राह्मण भोजन करके दक्षिणा ले, और वैश्य दक्षिणा लेकर भोजन करे।"  कहते हुए हिसाब का पर्चा 

जो गोरखपुर में तैयार किया था,वह उनके सामने रख दिया।

पर्चा देखकर सेठ बोले "जब रामजी ने कहा है तो वे सब करेंगे। आप उठकर स्नानादि करें।"

भाईजी कुछ ही समय में स्नान–पूजन से निवृत होकर आ गए। सेठ बोले, "चलिए, बग्घी तैयार है।"

" ठीक है हम चलते हैं किंतु हम दक्षिणा लेकर ही भोजन करेंगे। थाली लाकर अन्न भगवान का अपमान न करा देना, यही कहना है।"

"ठीक है आप उठिए तो सही"

भाईजी सेठ के निवास पर आ पहुंचे। देखा कि वहां दो भद्र–पुरुष पहले से बैठे थे। थाली खाली रखी हुई थी।

भाईजी के बैठते ही दोनों सज्जनों ने अपनी–अपनी ओर से मोड़कर दो चैक थाली के पास रख दिए। इतने में ही नीचे से आवाज आई " ब्याईजी सा (समधीजी)" और उत्तर में  "आओ–आओ, पधारो–पधारो," कहते ही दो सज्जनों ने प्रवेश किया, थाली के पास अपने अपने चैक रखकर बैठ गए। तभी अंदर से सेठ जी की वृद्धा माता नाभिस्पर्शी घुंघट काढ़े (निकाले) हुए, धीरे धीरे सरकती हुई आईं और उन्होंने पैंतीस हजार रूपये नगद रख दिए।

चारों चैक पच्चीस–पच्चीस हज़ार अर्थात् एक लाख के थे। एक लाख पैंतीस हजार कि पूर्ति पर्चे के अनुसार देखकर, भाईजी हंसते हुए बोले, "शीघ्रता से भोजन लाओ, भूख भयंकर लग रही है।"

तभी हंसते हुए सेठ बोले,"भाईजी! थे कच्चे बाणिए हो! अरे, इतना पांच–छ: सौ पृष्ठों का मोटा ग्रंथ बिना जिल्द के दोगे क्या? दो दिन में हाथ में आ जाएगा।"

भाईजी को सोच में पड़ा देखकर सेठ जी बोले, "जिस समय आप निवृत होने चले गए थे, उसी समय हमने एक जिल्दसाज को बुलाकर, ब्यौरा ले लिया था। दस–बारह हजार का उसने खर्चा बताया। यह पन्द्रह हज़ार मानकर, एक सेवक को भेजकर डेढ़ लाख का ड्राफ्ट तैयार करा लिया। यह दक्षिणा लीजिए और बाणियाश्रेष्ठ कांसा आरोगिए (भोजन कीजिए)। भोजन करते ही भाईजी बोले, " अब गोरखपुर जाने वाली गाड़ी का क्या समय है?"

"अभी तीन–चार घंटे हैं। आप पैड़ी पर पहुंचकर अपने वामकुक्षी धर्म का निर्वाह कीजिए। आपको गाड़ी पर पहुंचा दिया जाएगा।"

श्रीभाईजी अगले दिन गोरखपुर पहुंच गए। श्रीरामचरितमानस की कंपोजिंग युद्धस्तर पर होने लगी। डेढ़ मास के अंदर–अंदर मानस की प्रतियां बाजार में आकर, घर–घर पहुंचने लगी। मानस के सुंदरकांड और अखंड पाठों की बाढ़ आ गई। प्रवचनकर्ताओं की पौध देश के धार्मिक क्षेत्र में हरितिमा का संचार करने लगी। मानस के पश्चात समग्र तुलसी–सूर के साथ अनेकानेक संतो का साहित्य मुद्रित होने लगा।

आठ आने के चमत्कार से देश का वातावरण चमत्कृत हो उठा। अपने कार्य की पूर्ति के लिए श्रीसीताराम जी ने जिन्हें निमित्त के रूप में निर्वाचित कि मनोनित किया वे श्रीभाईजी हनुमान प्रसाद जी पोद्दार विश्वभर के श्रीराम–भक्तों के लिए स्मरणीय बन गए। 

 श्राद्ध दिवस आश्विन मास, कृष्ण पक्ष 2081, सितंबर-अक्टूबर 2024 

दि. 17- पूर्णिमा का श्राद्ध,दि. 18- एकम का श्राद्ध,दि. 19- द्वितीया का श्राद्ध,

दि. 20- तृतीया का श्राद्ध,दि. 21- चतुर्थी का श्राद्ध, भरणी का श्राद्ध,दि. 

22- पंचमी का श्राद्ध,दि. 23- षष्ठी का श्राद्ध,दि. 24- सप्तमी का श्राद्ध,दि.

 25- अष्टमी का श्राद्ध,दि. 26- नवमी का श्राद्ध, सौभाग्यवती श्राद्ध,दि. 

27- दशमी का श्राद्ध नंदि.,28- एकादशी का श्राद्ध,दि. 

29- द्वादशी का श्राद्ध, संन्यासियों का श्राद्ध,दि. 30- त्रयोदशी का श्राद्ध,

दि. 1 चतुर्दशी श्राद्ध, अपमृत्यु वालों का श्राद्ध, जल-शस्त्र-अग्नि विषादि से श्राद्ध,

दि. 2 - सर्वपित्र श्राद्ध, अज्ञात मृत्यु वालों का श्राद्ध,दि. 3 - मातामाह श्राद्ध

मूल विचार सितंबर -2024

मासारंभ से दि. 3 को 00/20 तक, दि. 10 को 20/03 से दि. 12 को 21/52 तक, दि. 19 को 8/03 से दि. 21 को 02/52 तक, दि. 28 को 01/20 से दि. 30 को 06/18 बजे तक गण्ड मूल नक्षत्र हैं।

ग्रह स्थिति सितंबर -2024

दि. 4 बुध सिंह में दि. 16 सूर्य कन्या में दि. 18 तुला में शुक्र दि. 19 बुध पूर्वास्त दि. 23 कन्या में बुध

अधिक जानकारी के लिए संपर्क करे शर्मा जी - 9312002527,9560518227



घर से निकासी 

राधिका वर्मा

आज पूनम अपने पिता के पास आई और कहा, "पापा, मैंने अपनी पसंद के लड़के से शादी कर ली है।" उसके पिता बहुत गुस्से में थे, लेकिन उन्होंने अपनी बेटी से बस इतना कहा, "मेरे घर से निकल जाओ।" पूनम ने कहा, "अभी इनके पास कोई काम नहीं है, हमें रहने दीजिए, हम बाद में चले जाएंगे।" परंतु उनके पिता ने एक न सुनी और उसे घर से बाहर कर दिया।

कुछ साल बीत गए, और पूनम के पिता का निधन हो गया। दुर्भाग्यवश, जिस लड़के से पूनम ने शादी की थी, वह भी उसे धोखा देकर भाग गया। पूनम के दो बच्चे थे, एक लड़की और एक लड़का। पूनम ने खुद का एक रेस्टोरेंट चलाना शुरू किया, जिससे उसका जीवन यापन हो रहा था।

जब पूनम को अपने पिता के निधन की खबर मिली, तो उसने सोचा, "अच्छा हुआ, उन्होंने मुझे घर से निकाल दिया था और दर-दर की ठोकरें खाने छोड़ दिया।" पूनम ने तय किया कि वह उनकी अंतिम यात्रा में नहीं जाएगी, लेकिन उसके ताऊजी ने उसे समझाया, "पूनम, हो आओ, जाने वाला शख्स तो चला गया, अब उनसे दुश्मनी कैसी?" 

पूनम ने ताऊजी की बात मान ली और अपने पिता की अंतिम यात्रा में शामिल होने का फैसला किया। जब वह अपने पापा के घर पहुंची, तो सभी उनकी अंतिम यात्रा की तैयारी कर रहे थे। पूनम को उनके मरने का कोई दुख नहीं था, वह बस ताऊजी के कहने पर वहां आई थी। पूनम के पिता की तेरहवीं पर उसके ताऊजी ने उसे एक खत दिया, जिसे उसके पिता ने लिखा था।

रात को पूनम ने वह खत खोला और पढ़ना शुरू किया। खत में लिखा था:

"मेरी प्यारी गुड़िया, मुझे मालूम है कि तुम मुझसे नाराज हो, पर अपने पापा को माफ कर देना। मैं 


जानता हूं, तुम्हें मैंने घर से निकाला था, और तुम्हें दर-दर की ठोकरें खानी पड़ीं। पर मैं भी उदास था, तुम्हें कैसे बताऊं...

याद है, जब तुम पांच साल की थी, तब तुम्हारी माँ हमें छोड़ कर चली गई थी। तुम कितना रोती थी, डरती थी, मेरे बिना सोती नहीं थी। रातों को उठकर रोती थी, तब मैं भी सारी रात तुम्हारे साथ जागता था। तुम जब स्कूल जाने से डरती थी, तब मैं सारा वक्त तुम्हारे स्कूल की खिड़की पर खड़ा रहता था, और जैसे ही तुम स्कूल से बाहर आती थी, तुम्हें सीने से लगा लेता था। 

वह कच्चा-पक्का खाना याद है, जो तुम्हें पसंद नहीं आता था, मैं उसे फेंक कर फिर से तुम्हारे लिए नया बनाता था, ताकि तुम भूखी न रहो। याद है, जब तुम्हें बुखार आया था, तो मैं सारा दिन तुम्हारे पास बैठा रहता था, अंदर ही अंदर रोता था, पर तुम्हें हंसाता था, ताकि तुम न रोओ।

याद है, जब तुम हाईस्कूल की परीक्षा के लिए रात भर पढ़ती थी, तो मैं सारी रात तुम्हें चाय बनाकर देता था। जब तुम पहली बार कॉलेज गई थी और तुम्हें लड़कों ने छेड़ा था, तो मैं तुम्हारे साथ कॉलेज 

गया और उन बदमाश लड़कों से भिड़ गया। उम्र हो गई थी और मैं कमजोर भी, लेकिन हर लड़की की 

नजर में पापा हीरो होते हैं, इसलिए अपना दर्द सह गया।

याद है, तुम्हारी पहली जीन्स, वह छोटे कपड़े, वह गाड़ी। पूरी कॉलोनी तुम्हारे खिलाफ थी, लेकिन मैं तुम्हारे साथ खड़ा था। किसी को तुम्हारी खुशी में बाधा बनने नहीं दिया। तुम्हारा देर रात आना, कभी-कभी शराब पीना, डिस्को जाना, लड़कों के साथ घूमना। इन सब बातों पर मैंने कभी गौर नहीं किया, क्योंकि उस उम्र में यह सब थोड़ा-बहुत होता है।

लेकिन एक दिन तुम एक लड़के से शादी कर आई, वह भी उस लड़के से, जिसके बारे में तुम्हें कुछ भी पता नहीं था। मैंने उस लड़के के बारे में सब पता किया, उसने न जाने कितनी लड़कियों को धोखा दिया था। पर तुम प्रेम में अंधी थी, तुमने मुझसे एक बार भी नहीं पूछा और सीधे शादी कर आई। मेरे कितने अरमान थे, तुम्हें डोली में बिठाऊं, चांद-तारों की तरह सजाऊं, ऐसी धूमधाम से शादी करूं कि लोग बोलें, 'देखो शर्माजी ने अपनी बच्ची को कितने नाजों से पाला है।' पर तुमने मेरे सारे ख्वाब तोड़ दिए। मैंने तुम्हारे लिए यह खत इसलिए छोड़ा है, ताकि कुछ बात कर सकूं। मेरी गुड़िया, आलमारी में तुम्हारी माँ के गहने और तुम्हारी शादी के लिए खरीदे गहने रखे हैं। तीन-चार घर और कुछ जमीनें हैं, जिन्हें मैंने तुम्हारे और तुम्हारे बच्चों के नाम कर दिया है। कुछ पैसे बैंक में हैं, उन्हें निकाल लेना।

अंत में बस इतना ही कहूंगा, गुड़िया, काश तुमने मुझे समझा होता। मैं तुम्हारा दुश्मन नहीं था, तुम्हारा पापा था। वह पापा जिसने तुम्हारी माँ के मरने के बाद दूसरी शादी नहीं की, लोगों के ताने सुने, गालियां सुनीं, न जाने कितने रिश्ते ठुकराए, लेकिन तुम्हें दूसरी माँ से कष्ट न हो, इसलिए अपनी ख्वाहिशें मार दीं। मेरी गुड़िया, जिस दिन तुम शादी के जोड़े में घर आई थी, तुम्हारा बाप पहली बार टूटा था। तुम्हारी माँ के मरने पर भी इतना नहीं रोया था, जितना उस दिन। उस दिन से हर दिन रोया, इसलिए नहीं कि समाज-जात-परिवार-रिश्तेदार क्या कहेंगे, बल्कि इसलिए कि मेरी नन्ही सी गुड़िया, जिसने शादी का इतना बड़ा फैसला लिया, मुझे एक बार भी बताना सही नहीं समझा। अब तो तुम भी माँ हो, औलाद का दर्द और खुशी सब क्या होता है, वह जब दिल तोड़ते हैं, तो कैसा लगता है। ईश्वर तुम्हें कभी यह दर्द न दिखाए। एक खराब पिता ही समझ कर मुझे माफ कर देना, मेरी गुड़िया। तुम्हारा पापा अच्छा नहीं था, जो तुमने उसे इतना बड़ा दर्द दिया। अब खत यही समाप्त कर रहा हूं। हो सके तो माफ कर देना।"

पूनम ने खत के साथ लगी ड्राइंग देखी, जो उसने बचपन में बनाई थी और उसमें लिखा था, "आई लव यू मेरे पापा, मेरे हीरो, मैं आपकी हर बात मानूंगी।"पूनम रो रही थी, तभी उसके ताऊजी आए और उन्होंने कहा, "पूनम, वो जो तुम्हें रेस्टोरेंट खोलने और घर खरीदने के पैसे मैंने नहीं दिए थे, वह तुम्हारे पिताजी ने मुझसे दिलवाए थे। औलाद चाहे कितनी भी बुरी हो, माँ-बाप कभी बुरे नहीं होते। औलाद चाहे माँ-बाप को छोड़ दे, माँ-बाप मरने के बाद भी अपने बच्चों को दुआ देते हैं।"पूनम के पापा को सुकून मिलेगा या नहीं, मुझे नहीं पता, पर उस खत को पढ़ने के बाद, शायद सारी जिंदगी, पूनम को सुकून नहीं मिलेगा। 

भारतीय व्रतोत्सव सितंबर - 2024

1- मास शिवरात्रि,दि. 2- कुशोत्पाटिनी-पिठौरी-सोमवती अमावस्या दि. 6- वाराह जयंती, हरितालिका तीज,दि. 7-श्री गणेश जन्मोत्सव, कलंक चतुर्थी, चंद्रदर्शन निषेध, सिद्धि विनायक व्रत,दि. 9 - सूर्य षष्ठी, बलदेव षष्ठी, मेला बृज मण्डल,दि. 10-मुक्ताभरण सप्तमी, ज्येष्ठा गौरी आवाहन,दि. 11-दुर्गाष्टमी, भागवत सप्ताह प्रा., राधाष्टमी, महालक्ष्मी व्रत प्रा.,दि. 13- रामदेव जी का मेला (नवलदुर्ग),दि. 14- प‌द्मा एकादशी व्रत, जलझूलनी मेला, श्री चारभुजानाथ, गणगौर (मेवाड़),दि. 15- वामन जयंती, प्रदोष व्रत,दि. 16-संक्राति पुण्य,दि. 17 अनन्त चतुर्दशी, विश्वकर्मा पूजन, सत्य प्रत, भागवत सप्ताह समाप्त, श्राद्ध प्रारम्भ, प्रौष्तपदी पूर्णिमा श्राद्ध,दि. 20-गणेश चतुर्थी व्रत,दि. 24-कालाष्टमी,श्री महालक्ष्मी व्रत समाप्त,,दि. 25 जीवितपुत्रिका व्रत,दि. 28- इंद्रा एकादशी व्रत,दि.30 - सोम प्रदोष व्रत,मास शिवरात्रि

चौघड़िया मुहूर्त 

चौघड़िया मुहूर्त देखकर कार्य या यात्रा करना उत्तम होता है। एक तिथि के लिये दिवस और रात्रि के आठ-आठ भाग का एक चौघड़िया निश्चित है। इस प्रकार से 12 घंटे का दिन और 12 घंटे की रात मानें तो प्रत्येक में 90 मिनट यानि 1.30 घण्टे का एक चौघड़िया होता है जो सूर्योदय से प्रारंभ होता है|

अधिक जानकारी के लिए संपर्क करे शर्मा जी - 9312002527,9560518227







घर बैठे मसाले और खाद्य पदार्थों की जांच करें   


 आपके किचन में मौजूद मसाले और खाद्य पदार्थ असली हैं या नकली ? मसाले और खाद्य पदार्थों की शुद्धता की जांच आप घर बैठे ही कर सकते हैं जानें कुछ आसान तरीके ज‍िनसे आप मसाले और खाद्य पदार्थों की गुणवत्‍ता जांच सकते हैं। वैसे तो चीजों की जांच स‍िर्फ लैब में ही की जाती है पर आप इन आसान तरीकों से शुद्ध और अशुद्ध में अंतर तो समझ ही सकते हैं। 

जीरा - जीरे की परख करने के ल‍िए थोड़ा सा जीरा हाथ में लीजि‍ए और दोनों हथेल‍ियों के बीच रगड़‍िए। अगर हथेली में रंग छूटे तो समझ जाइए क‍ि जीरा म‍िलावटी है क्‍योंक‍ि जीरा रंग नही छोड़ता। 

हींग - हींग की गुणवत्‍ता जांचने के ल‍िए उसे पानी में घोल‍िए। अगर घोल दूध‍िया रंग का हो जाए तो समझ‍िए क‍ि हींग असली है। दूसरा तरीका है हींग का एक टुकड़ा जीभ पर रखें अगर हींग असली होगी तो कड़वापन या चरपराहट का अहसास होगा।

लाल मि‍र्च पाउडर - लाल म‍िर्च पाउडर में सबसे ज्‍यादा म‍िलावट की जाती है। इसकी जांच करने के ल‍िए पाउडर को पानी में डालिए, अगर रंग पानी में घुले और बुरादा जैसा तैरने लगे तो मान ल‍ीज‍िए की म‍िर्च पाउडर नकली है।

सौंफ और धन‍िया - इन द‍िनों मार्केट में ऐसी सौंफ और धन‍िया म‍िलता है जिस पर हरे रंग की पॉल‍िश होती है ये नकली पदार्थ होते हैं, इसकी जांच करने के ल‍िए धन‍िए में आयोडीन म‍िलाएं, अगर रंग काला हो जाए तो समझ जाइए क‍ि धन‍िया नकली है। 

काली म‍िर्च - काली म‍िर्च पपीते के बीज जैसी ही द‍िखती है इसल‍िए कई बार म‍िलावटी काली म‍िर्च में पपीते के बीज भी होते हैं। इसको परखने के ल‍िए एक ग‍िलास पानी में काली म‍िर्च के दानें डालें। अगर 



दानें तैरते हैं तो मतलब वो दानें पपीते के हैं और काली म‍िर्च असली नहीं है। 

शहद - शहद में भी खूब म‍िलावट होती है। शहद में चीनी म‍िला दी जाती है, इसकी गुणवत्‍ता जांचने के ल‍िए शहद की बूंदों को ग‍िलास में डालें, अगर शहद तली पर बैठ रहा है तो इसका मतलब वो असली है नहीं तो नकली है। 

देसी घी - घी में म‍िलावट की जांच करने के लिए दो चम्‍मच हाइट्रोक्‍लोर‍िक एस‍िड और दो चम्‍मच चीनी लें और उसमें एक चम्‍मच घी म‍िलाएं। अगर म‍िश्रण लाल रंग का हो जाता है तो समझ जाइए क‍ि घी में म‍िलावट है। 

 दूध - दूध में पानी, म‍िल्‍क पाउडर, कैम‍िकल की म‍िलावट की जाती है। जांच करने के ल‍िए दूध में उंगली डालकर बाहर न‍िकाल‍ लीज‍िए। अगर उंगली में दूध च‍िपकता है तो समझ जाइए दूध शुद्ध है। अगर दूध न च‍िपके तो मतलब दूध में म‍िलावट है। 

चाय की पत्‍ती - चाय की जांच करने के ल‍िए सफेद कागज को हल्‍का भ‍िगोकर उस पर चाय के दाने ब‍िखेर दीज‍िए। अगर कागज में रंग लग जाए तो समझ जाइए चाय नकली है क्‍योंक‍ि असली चाय की 

पत्‍ती ब‍िना गरम पानी के रंग नहीं छोड़ती। 

कॉफी - कॉफी की शुद्धता जांचने के ल‍िए उसे पानी में घोल‍िए। शुद्ध कॉफी पानी में घुल जाती है, लेक‍िन अगर घुलने के बाद कॉफी तली में च‍िपक जाए तो वो नकली है। 

तो देखा आपने क‍ितने आसान तरीके से आप अपने खाने में हो रही म‍िलावट या शुद्धता की जांच कर सकते हैं। हमेशा इंग्रीड‍िएंट्स और एक्‍सपाइरी डेट देखकर ही खाने का सामान खरीदें।

भद्रा विचार सितंबर  -2024

भद्रा काल का शुभ अशुभ विचार - भद्रा काल में विवाह मुंडन, गृह प्रवेश, रक्षाबंधन आदि मांगलिक कृत्य का निषेध माना जाता है परंतु भद्रा काल में शत्रु का उच्चाटन करना,स्त्री प्रसंग में,यज्ञ करना,स्नान करना,अस्त्र शस्त्र का प्रयोग,ऑपरेशन कराना, मुकदमा करना,अग्नि लगाना,किसी वस्तु को काटना,भैस,घोड़ा व ऊंट संबंधी कार्य प्रशस्त माने जाते हैं सामान्य परिस्थिति में विवाह आदि शुभ मुहूर्त में भद्रा का त्याग करना चाहिए परंतु आवश्यक परिस्थितिवश अतिआवश्यक कार्य भूलोक की भद्रा ,भद्रा मुख छोड़कर कर भद्रा पुच्छ में शुभ कार्य कर सकते है |

दि. 1 को 3/41 से 16/28 तक, दि. 7 को 4/19 से 17/37 तक, दि. 10 को 23/12 से दि. 11 को 11/35 तक, दि. 14 को 9/35 से 20/41 तक, दि. 17 को 11/44 से 21/54 तक, दि. 20 को 10/55 से 21/15 तक, दि. 23 को 13/50 से दि. 24 को 1/14 तक, दि. 27 को 0/52 से 13/20 तक, दि. 30 को 19/06 से दि. 1 अक्टूबर को 8/21 बजे तक भद्रा है।




फिर से चूक हुई विदुरों से

चिराग़ जैन

फिर से द्यूत सजा बैठा है,फिर बदले शकुनि ने पासे

फिर से चूक हुई विदुरों से,फिर हैं पाण्डव मौन-रुआंसे

मानवता की मर्यादा का फिर से आज क्षरण जारी है

मूकदर्शकों के प्रांगण में फिर से चीरहरण जारी है

प्रलय-समर फिर द्वार खड़ा है, पूरी है तैयारी रण की

फिर पांचाली चीख रही है, भीष्म निभाते निष्ठा प्रण की

गुरुओं की गर्दन नीची है, कुल की लज्जा अर्द्धनग्न है

दुर्योधन की जय सुन-सुनकर इक अंधा आनंदमग्न हैं

नीति-नियम की हर परिपाटी का अनवरत मरण जारी है

मूकदर्शकों के प्रांगण में फिर से चीरहरण जारी है

पौरुष दास हुआ बैठा है, अवसरवादी ढीठ रहा है

अपमानित कुण्ठित हठधर्मी अपनी जंघा पीट रहा है

हर पापी ने इस घटना को क्रीड़ा की मदहोशी समझा

जिसने प्रश्न उठाया उसको राष्ट्रद्रोह का दोषी समझा

मातम के बादल घिर आए, यम का आमंत्रण जारी है

मूकदर्शकों के प्रांगण में फिर से चीरहरण जारी है

यह इक पल ही समरांगण में प्रलयंकर भूचाल बनेगा

यह अपमानित भीम अधम का ध्वंस करेगा काल बनेगा

अब नीचे झुक जाने वाली हर गर्दन कटनी है रण में

केश पकड़ने वाले हाथों की छाती फटनी है रण में

ज्वार रुधिर का आज धमनियों के भीतर हर क्षण जारी है

मूकदर्शकों के प्रांगण में फिर से चीरहरण जारी है

दुर्योधन की शठता की अनदेखी के परिणाम मिलेंगे

सौ पुत्रों के शव पर रोना, आँसू आठों याम मिलेंगे

आँखों पर पट्टी बांधी है, मधुसूदन को दोष न देना

ममता के आँचल में युग के अभिशापों को पोस न देना

अनुचित हठ के इस पोषण में अपनों का तर्पण जारी है

मूकदर्शकों के प्रांगण में फिर से चीरहरण जारी है


दुलारा 

दुर्गेश कुमार 

मित्रो एक बहुत ही दिल को छू लेने वाला कहानी साझा कर रहा हूं आपके साथ ,

एक दिन अचानक मेरी पत्नी मुझसे बोली, "सुनो, अगर मैं तुम्हें किसी और के साथ डिनर और फिल्म के लिए बाहर जाने को कहूं तो तुम क्या कहोगे?" मैं बोला, "मैं कहूंगा कि अब तुम मुझसे प्यार नहीं करती।" उसने कहा, "मैं तुमसे बहुत प्यार करती हूं, लेकिन मुझे पता है कि यह औरत भी आपसे बहुत प्यार करती है और आपके साथ कुछ समय बिताना उसके लिए सपने जैसा होगा।" वह अन्य औरत कोई और नहीं, मेरी मां थी जो मुझसे अलग रहती थी। मेरा ऑफिस मेरे घर से दूर था, इसलिए मैं अपने ऑफिस के करीब रहता था, जबकि मेरी पत्नी और बेटा वहां नहीं आना चाहते थे।

मैं अपने माता-पिता से दूर रहकर भी उनके सुख-सुविधा का पूरा इंतजाम कर चुका था, लेकिन व्यस्तता के कारण उनसे मिलने कभी-कभी ही जा पाता था। उन दिनों मेरे पिताजी अपनी बहन से मिलने गए थे। मैंने मां को फोन कर उन्हें अपने साथ रखकर खाने और एक फिल्म के लिए बाहर चलने के लिए कहा।

"तुम ठीक तो हो ना? तुम दोनों के बीच कोई परेशानी तो नहीं?" मां ने पूछा। उनके लिए मेरा इस किस्म का फोन मेरी किसी परेशानी का संकेत था। "नहीं, कोई परेशानी नहीं है। बस मैंने सोचा कि आपके साथ बाहर जाना एक सुखद एहसास होगा," मैंने जवाब दिया और कहा, "बस हम दोनों ही चलेंगे।"

उन्होंने इस बारे में एक पल के लिए सोचा और फिर कहा, "ठीक है।" घर पहुंचा तो मैंने देखा कि वह दरवाजे पर मेरा इंतजार कर रही थीं। वह एक सुंदर पोशाक पहने हुए थीं और उनका चेहरा एक अलग सी खुशी में चमक रहा था।

कार में बैठते ही मां ने कहा, "मैंने अपने दोस्तों को बताया कि मैं अपने बेटे के साथ बाहर खाना खाने जा रही हूं। वे काफी प्रभावित थे। और तुम्हारे पिताजी को फोन करके बता दिया है। वह भी यह सुनकर बहुत खुश हुए।" मुझे थोड़ा दुख था कि पिताजी हमारे साथ नहीं थे, लेकिन मैंने वहीं बैठे-बैठे यह प्लान बना लिया कि अगली बार में मां और पिताजी दोनों के साथ समय बिताऊंगा।

हम लोग मां की पसंदीदा रेस्टोरेंट में गए। वहां मां के चेहरे पर एक उदासी भरी मुस्कान थी। "जब तुम छोटे थे, तो यह मेनू मैं तुम्हारे लिए पढ़ती थी," उन्होंने कहा। "मां, इस समय मैं इसे आपके लिए पढ़ना चाहता हूं," मैंने जवाब दिया। खाने के दौरान हमारी एक दूसरे के जीवन की हाल की घटनाओं पर चर्चा 

होने लगी। हमने आपस में इतनी ज्यादा बात की कि पिक्चर का समय कब निकल गया, हमें पता ही नहीं चला।

बाद में वापस घर लौटते समय मां ने कहा, "अगर अगली बार में बिल का पेमेंट करने दूं, तो मेरे साथ 

दोबारा डिनर के लिए आना चाहिए।" मैंने कहा, "मां, जब आप चाहो। और बिल पेमेंट कौन करता है, इससे क्या फर्क पड़ता है?" मां ने कहा, "फर्क पड़ता है। और अगली बार तुम पेमेंट मत करना।"

घर पहुंचा तो देखा कि तब तक पिताजी भी घर लौट आए थे। मुझे पिताजी से मिलकर बहुत अच्छा लगा। घर पहुंचने पर पत्नी ने पूछा, "कैसी रही आपकी डिनर डेट?" "बहुत बढ़िया, जैसा सोचा था, उससे कहीं ज्यादा बढ़िया," मैंने जवाब दिया।

लेकिन इस घटना के कुछ दिन बाद मेरी मां का दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया। यह इतना अचानक हुआ कि मैं उनके लिए कुछ नहीं कर पाया। फिर मेरी बहुत जिद करने के बाद पिताजी हमारे साथ ही रहने लगे।

कुछ दिनों बाद पिताजी ने मुझे एक लिफाफा दिया, जिसमें रेस्टोरेंट के एडवांस पेमेंट की रसीद के साथ मां का एक खत था। जिसमें मां ने लिखा था, "मेरे बेटे, मुझे पता नहीं कि मैं तुम्हारे साथ दोबारा डिनर पर जा पाऊंगी या नहीं, इसलिए मैंने दो लोगों के खाने के अनुमानित बिल का एडवांस पेमेंट कर दिया है। अगर मैं नहीं जा पाऊं तो तुम अपनी पत्नी के साथ भोजन करने जरूर जाना। तुम नहीं जानते, उस रात तुम्हारे साथ बिताया हर पल मेरे जीवन के सबसे बेहतरीन समय में था। ईश्वर तुम्हें सदा खुश रखे। आई लव यू बेटा, तुम्हारी मां।"

उस पल मुझे अपनों को समय देने और उनके प्यार को महसूस करने का महत्व मालूम हुआ। मैं अपनी मां को तो ज्यादा समय नहीं दे पाया, लेकिन मैं अपने पिता के साथ ज्यादा से ज्यादा समय बिताने लगा। जब मैं और मेरी पत्नी रेस्टोरेंट में खाने गए, तो मेरे पिताजी भी हमारे साथ थे। मां को याद कर उनकी आंखों में आंसू आ गए। जीवन में कुछ भी आपके अपने परिवार से ज्यादा महत्वपूर्ण नहीं 



है। ना व्हाट्सएप, ना मोबाइल, ना लैपटॉप, और ना ही टीवी। अपने परिजनों को उनके हिस्से का समय दीजिए क्योंकि आपका साथ ही उनके जीवन में खुशी का आधार है। इस वीडियो को उन सब व्यक्तियों के साथ जरूर शेयर कीजिए जिनके बूढ़े माता-पिता हैं, जिनके छोटे बच्चे हैं, और जिनको प्यार करने वाला उनका इंतजार कर रहा हो। क्योंकि धन तो आता-जाता है, मगर अपने गए तो लौटकर नहीं आते!

सर्वार्थ सिद्धि योग सितंबर -2024 

दैनिक जीवन में आने वाले महत्वपूर्ण कार्यों के लिए शीघ्र ही किसी  शुभ मुहूर्त का अभाव हो,किंतु शुभ मुहर्त के लिए अधिक दिनों तक रुका ना जा सकता हो तो इन सुयोग्य वाले मुहर्तु  को सफलता से ग्रहण किया जा सकता है | इन से प्राप्त होने वाले अभीष्ट फल के विषय में संशय नहीं करना चाहिए यह योग हैं सर्वार्थ सिद्धि,अमृत सिद्धि योग एवं रवियोग | योग्यता नाम तथा गुण अनुसार सर्वांगीण सिद्ध कारक  है| 

दिनांक

प्रारंभ

दिनांक

समाप्त

07 

12-33

08

06-06

09

18-04

10

06-07

14

20-32

15

06-10

19

08-03

21

02-42

23

06-13

24

06-14

26

06-15

27

06-16


पंचक विचार सितंबर -2024  

पंचक विचार -(धनिष्ठा नक्षत्र के तृतीय चरण से रेवती नक्षत्र तक) पंचको में दक्षिण दिशा की ओर यात्रा करना मकान दुकान आदि की छत डालना चारपाई पलंग आदि बुनना,दाह संस्कार,बांस की चटाई दीवार प्रारंभ करना आदि स्तंभ रोपण तांबा पीतल तृण काष्ट आदि का संचय करना आदि कार्यों का निषेध माना जाता है समुचित उपाय एवं पंचक शांति करवा कर ही उक्त कार्यों का संपादन करना कल्याणकारी होगा ध्यान रहेगा  पंचर नक्षत्रों का विचार मात्र उपरोक्त विशेष कृतियों के लिए ही किया जाता है विवाह मंडल आरंभ गृह प्रवेश प्रवेश उपनयन आदि मुद्दों से तो पंचक नक्षत्रका प्रयोग शुभ माना जाता है पंचक विचार- दिनांक 16 - को 05-54 से दिनांक - 20 को 05-14 बजे तक पंचक है। 

अधिक जानकारी के लिए संपर्क करे शर्मा जी - 9312002527,9560518227

एक कर्ज ऎसा भी ....

अनिल गोतम 

"डॉक्टर साहब, जब आप छुट्टी पर गये थे, तब कोई आदमी अपनी माँ को यहाँ भर्ती कराकर चला गया है। और तबसे आज तक वापस लौटकर नही ही आया। दिक्कत ये है कि वह बुढ़िया भी अपने बारे में कुछ नही बता पा रही है। हमने उसके बारे में पता लगाने की बहुत कोशिश की, लेकिन भर्ती कराने वाले ने अपना नाम और पता सब कुछ ग़लत लिखाया था। अब क्या करें हम? इतने दिन किसी को रख भी तो नही सकते और इसे ऐसे छोड़ भी नही सकते" उसके अस्पताल आते ही रिसेप्शनिस्ट ने बताया तो उसे आश्चर्य के साथ ही बहुत गुस्सा आया! 

"इतने दिन से भर्ती है और बेटे ने अब तक कोई खोज ख़बर नही ली? हद है, कैसा निर्मम,निर्दयी बेटा है जो अपनी ही माँ का साथ उस समय छोड़ गया जब इंसान को सबसे ज़्यादा ज़रूरत होती है,,,वैसे उस बूढ़ी माई ने कुछ बताया? मतलब कोई भी ऐसी बात, जिससे उनके बारे में कुछ पता लगाया जा सके?" कोट उतारते हुए उसने पूछा।

"नही डॉक्टर साहब! हम सबने बहुत कोशिश की, पर वो कुछ भी नही बोलतीं,,,हाँ, कभी-कभार किसी बबुआ का नाम लेकर ज़रूर कुछ बुदबुदाया करती हैं लेकिन क्या? कुछ समझ में नही आता।"

"बबुआ,,,?" नाम सुनकर उसके शरीर में झुरझुरी सी फैल गई। ज़ेहन में कुछ कौंध सा गया। कहीं ये वही तो नहीं? 

"कहाँ हैं वो" कहते हुए वह लगभग दौड़ते हुए बेड के पास पहुँचा तो वहाँ सिकुड़ी,गठरी सी,लेटी बुढ़िया पर नज़र पड़ते ही उसका हृदय तेज़ी से धड़कने लगा! 

"हाँ वही थीं,,लेकिन बहुत ही बीमार और जर्जर सी"



उसे अपना बचपन याद आ गया। लगभग तीन-चार साल का ही तो था तब।अम्मा अनाथालय के पास में ही बने एक कमरे के घर में अपने बेटे के साथ किराये पर रहती थीं। मजबूत कद काठी की अम्मा किसी स्कूल में आया थीं। वो उसे इतना प्यार करतीं कि अनाथालय में किसी की पहचान लगाकर,उसे रोज थोड़ी देर के लिए अपने घर ले आतीं, फिर उसकी मनपसंद चीजें बनाकर अपने हाथ से खिलातीं,पढ़ातीं और दुलराते हुए कहतीं "हमारा बबुआ बड़ा होकर डाक्टर बनेगा, फिर जब हम बीमार पड़ेंगे तो हमको दवाई देगा..है न?,,दवाई देगा ना बबुआ?"

"हाँ अम्मा डात्तल बनूंदा, औल आपतो दवाई भी दूँदा" वह भी कहता,,, "पल कैछे बनते हैं डात्तल?" तुतलाते हुए वह पूछता तो अम्मा सिर पर हाथ फेरते हुए उसे लिपटा लेतीं "खूब पढ़ने से और हमेशा अपनी कक्षा में अव्वल रहने से"

फिर वह खूब पढ़ता,,, मन में उन्हें दवाई देने की ख़्वाहिश लिये हुए! शायद उस अनाथ की पूरी दुनिया अब अपनी अम्मा पर ही सिमट गई थी।

वक्त गुज़रता गया।पढ़ाई में अव्वल होने की वजह और सहृदय शिक्षकों की मदद से वह डॉक्टरी में चयनित होकर पढ़ाई करने के लिए दूसरे शहर जाने लगा तो अम्मा से लिपटकर बहुत रोया! लेकिन 

अम्मा ने भीगी आँखों से उसे समझाया "यहाँ रहोगे तो डॉक्टर कैसे बनोगे?थोड़े समय की ही तो बात है...देखना देखते ही देखते कैसे निकल जायेगा,फिर हम सब साथ रहेंगे।" 

पर दूर होने और पढ़ाई की व्यस्तता की वजह से धीरे-धीरे उसका अम्मा से मिलना कम होता गया। ऐसे ही चार साल गुज़र गये! एक दिन उसे पता चला कि अम्मा का बेटा अपना घर खाली करके उन्हें अपने साथ लेकर गाँव चला गया तो उसे बहुत सदमा लगा। फिर दो साल बाद जब उसे डॉक्टर की डिग्री मिली तो अम्मा बहुत याद आईं। उसने उन्हें ढूंढने की बहुत कोशिश की लेकिन किसी को भी उनके गाँव,घर का पता-ठिकाना ठीक से ना मालूम होने के कारण वह फिर कभी अपनी अम्मा से नही मिल पाया।

"और आज इतने सालों बाद वो यहाँ,इस हाल में ?" वह उनके कान के पास आकर धीमे से फुसफुसाया,, "अम्मा, तुम्हारी इच्छा थी ना कि मैं डॉक्टर बनूँ?तो देखो तुम्हारा बबुआ डॉक्टर बन गया है ,अब तुम्हें दवाई देगा।" सुनते ही अचानक उनकी आँखों में एक चमक सी आई पर तुरंत ही वो चमक गायब भी हो गई,,,

 "तुम कौन हो बच्चा?" बामुश्किल उनके मुँह से अस्फुट सी आवाज़ निकली तो उसकी आँखों से आँसू बह निकले,,,यही अम्मा बचपन में कहती थीं "मेरी तो याददाश्त बहुत अच्छी है रे,लाखों की भीड़ में तुझे पहचान लूंगी" आज लाख कोशिशों के बाद भी उसे नही पहचान पाईं।"सर,आप रो रहे हैं? इन्हें आप जानते हैं क्या?" रिसेप्शनिस्ट ने जानना चाहा।"हाँ...जानता हूँ!" वह धीरे से बुदबुदाया "इनका बहुत बड़ा कर्ज़ है मुझ पर,,,,ममता का कर्ज़"  फिर संयत होते हुए उसने रिसेप्शनिस्ट को आदेश दिया "तुम इनके डिस्चार्ज पेपर्स तैयार करवाओ। अब ये मेरे साथ जायेगीं, अपने बबुआ के घर।"





सितंबर मास के महत्वपूर्ण दिवस 

1 सितम्बर - राष्ट्रीय पोषण सप्ताह - राष्ट्रीय पोषण सप्ताह 1 सितंबर से 7 सितंबर तक मनाया जाता है ताकि लोगों को बेहतर स्वास्थ्य के लिए पोषण के महत्व और मानव शरीर के लिए इसके महत्व के बारे में जानकारी प्रदान की जा सके।

2 सितंबर - विश्व नारियल दिवस - विश्व नारियल दिवस हर साल 2 सितंबर को मनाया जाता है ताकि लोगों को गरीबी कम करने में इस फसल के महत्व के बारे में जागरूक किया जा सके। यह दिन एशियाई प्रशांत नारियल समुदाय (APCC) के गठन दिवस का भी स्मरण कराता है।

2 सितंबर- आदित्य एल-1 मिशन लॉन्च - आदित्य एल1 भारत का पहला सौर मिशन है जिसका उद्देश्य सूर्य का अध्ययन करना है। यह मिशन वास्तविक समय में पृथ्वी और उसके वायुमंडल पर सूर्य के प्रभावों का पता लगाएगा। 

3 सितम्बर - गगनचुम्बी इमारत दिवस - गगनचुंबी इमारत दिवस 3 सितंबर को मनाया जाता है। गगनचुंबी इमारतें बहुत ऊंची इमारतें होती हैं जो किसी शहर की क्षितिज रेखा को परिभाषित करती हैं। यह दिन किसी व्यक्ति की औद्योगिक उत्कृष्ट कृति बनाने की क्षमता का प्रतीक है।

5 सितंबर - अंतर्राष्ट्रीय दान दिवस - सतत विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए सभी रूपों और आयामों में गरीबी को मिटाने के लिए हर साल 5 सितंबर को अंतर्राष्ट्रीय दान दिवस मनाया जाता है।

5 सितंबर - शिक्षक दिवस (भारत) - भारत में शिक्षक दिवस हर साल 5 सितंबर को भारत के दूसरे राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन की जयंती के अवसर पर मनाया जाता है। इस दिन हम जिम्मेदार व्यक्ति बनाने में शिक्षकों के प्रयासों की सराहना करते हैं और उन्हें स्वीकार करते हैं।

7 सितंबर - ब्राज़ील का स्वतंत्रता दिवस - ब्राज़ील का स्वतंत्रता दिवस हर साल 7 सितंबर को राष्ट्र के जन्म की याद में मनाया जाता है। 7 सितंबर 1822 को ब्राज़ील को पुर्तगालियों से आज़ादी मिली थी। 1889 में ब्राज़ील में राजशाही व्यवस्था समाप्त हो गई और वह गणतंत्र बन गया, लेकिन 7 सितंबर को ही अपना स्वतंत्रता दिवस मनाता रहा।

8 सितंबर - अंतर्राष्ट्रीय साक्षरता दिवस - अंतर्राष्ट्रीय साक्षरता दिवस हर साल 8 सितंबर को मनाया जाता है ताकि लोगों को साक्षरता के महत्व के बारे में जागरूक किया जा सके जो निस्संदेह सम्मान और मानवाधिकारों का विषय है। आपको बता दें कि यह संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्यों का एक प्रमुख घटक है।

8 सितंबर - विश्व फिजिकल थेरेपी दिवस - विश्व भौतिक चिकित्सा दिवस हर वर्ष 8 सितम्बर को मनाया जाता है, ताकि दुनिया भर के भौतिक चिकित्सकों को लोगों के स्वास्थ्य और तंदुरुस्ती में सुधार लाने में इस पेशे के महत्वपूर्ण योगदान के बारे में जागरूकता बढ़ाने का अवसर मिल सके।



10 सितंबर - विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस (WSPD) - आत्महत्या के मामलों को रोकने के लिए जागरूकता बढ़ाने के लिए हर साल 10 सितंबर को विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस (WSPD) मनाया जाता है। इस दिन का आयोजन इंटरनेशनल एसोसिएशन फॉर सुसाइड प्रिवेंशन (IASP) द्वारा किया जाता है। और यह दिन WHO द्वारा सह-प्रायोजित है।

10 सितंबर - दादा-दादी दिवस - इस साल यह 10 सितंबर को मनाया जा रहा है। यह कई अन्य देशों में भी अलग-अलग तिथियों पर मनाया जाता है। जैसा कि नाम से ही पता चलता है, यह दिन दादा-दादी और नाती-नातिन के बीच के खूबसूरत रिश्ते का जश्न मनाता है।

11 सितंबर - 9/11 स्मरण दिवस - इस वर्ष राष्ट्रीय सेवा एवं स्मरण दिवस या 9/11 दिवस की 20वीं वर्षगांठ मनाई जा रही है। यह दिन 11 सितंबर, 2001 को मारे गए और घायल हुए लोगों को श्रद्धांजलि देने के लिए दूसरों की मदद करने का अवसर प्रदान करता है।

11 सितंबर - राष्ट्रीय वन शहीद दिवस - 11 सितंबर की तारीख का ऐतिहासिक महत्व है और इसी वजह से इस तारीख को राष्ट्रीय वन शहीद दिवस के तौर पर चुना गया। 1730 में इसी दिन अमृता देवी के नेतृत्व में बिश्नोई जनजाति के 360 से ज़्यादा लोगों ने पेड़ों की कटाई का विरोध किया था। पेड़ों को बचाने के उनके विरोध के कारण, राजा के आदेश पर राजस्थान के खेजरली में उनकी हत्या कर दी गई थी। 

11 सितंबर - विश्व प्राथमिक चिकित्सा दिवस - यह दिवस सितंबर के दूसरे शनिवार को मनाया जाता है और इस साल यह 11 सितंबर को है। यह दिन लोगों में इस बारे में जागरूकता बढ़ाता है कि संकट की स्थिति में प्राथमिक चिकित्सा किस तरह से लोगों की जान बचा सकती है। अंतर्राष्ट्रीय महासंघ के अनुसार, प्राथमिक चिकित्सा सभी लोगों के लिए सुलभ होनी चाहिए और विकासशील समाजों का एक महत्वपूर्ण हिस्सा होनी चाहिए।

11 सितंबर- दिग्विजय दिवस - दिग्विजय दिवस हर साल 11 सितंबर को शिकागो में स्वामी विवेकानंद के ऐतिहासिक भाषण के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। 1893 में, उन्होंने भारत और हिंदू धर्म के प्रतिनिधि के रूप में विश्व धर्म संसद में भाग लिया था। विश्व धर्म संसद का पहला आयोजन 11 सितंबर से 27 सितंबर 1893 तक चला था।  

12 सितंबर- परशुयान पर्व - पर्युषण या (पज्जूसन) जैनियों के लिए एक महत्वपूर्ण त्योहार है। यह जैनियों के लिए अपने जीवन पर चिंतन करने और उन लोगों से क्षमा मांगने का समय है जिनके साथ उन्होंने गलत किया है। यह त्योहार जैन धर्म के दिगंबर और श्वेतांबर दोनों संप्रदायों द्वारा मनाया जाता है।

13 सितंबर- अंतर्राष्ट्रीय चॉकलेट दिवस - अंतर्राष्ट्रीय चॉकलेट दिवस हर साल 13 सितंबर को मनाया जाता है। इस दिन की स्थापना यू.एस. नेशनल कन्फेक्शनर्स एसोसिएशन द्वारा की गई थी। यह मिल्टन एस. हर्षे के जन्म की याद में मनाया जाता है। वे एक अमेरिकी चॉकलेटियर, व्यवसायी और परोपकारी व्यक्ति थे।



14 सितंबर - हिंदी दिवस - हिंदी दिवस 14 सितंबर को मनाया जाता है क्योंकि इसी दिन भारत की संविधान सभा ने 1949 में देवनागरी लिपि में लिखी गई हिंदी को भारत गणराज्य की आधिकारिक भाषा के रूप में अपनाया था। भारतीय संविधान में आधिकारिक भाषाएँ

15 सितंबर - इंजीनियर दिवस (भारत) - भारतीय इंजीनियर भारत रत्न मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया को श्रद्धांजलि देने के लिए हर साल 15 सितंबर को भारत में इंजीनियर दिवस मनाया जाता है।

15 सितंबर - अंतर्राष्ट्रीय लोकतंत्र दिवस - 15 सितंबर को अंतर्राष्ट्रीय लोकतंत्र दिवस मनाया जाता है ताकि लोगों को याद दिलाया जा सके कि लोकतंत्र लोगों के लिए है। यह दिन लोगों को लोकतंत्र के महत्व और मानवाधिकारों के प्रभावी कार्यान्वयन को समझाने का अवसर प्रदान करता है।

16 सितंबर - मलेशिया दिवस - मलेशिया दिवस 16 सितंबर को मनाया जाता है और इसे 'हरि मलेशिया' के नाम से भी जाना जाता है। 16 सितंबर 1963 को सिंगापुर की पूर्व ब्रिटिश कॉलोनी और सबा और सरवाक के पूर्वी मलेशियाई राज्यों ने मलाया संघ में शामिल होकर मलेशियाई संघ का गठन किया।

16 सितंबर - विश्व ओजोन दिवस - विश्व ओजोन दिवस हर साल 16 सितंबर को मनाया जाता है। इस दिन 1987 में मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल पर हस्ताक्षर किए गए थे। 1994 से विश्व ओजोन दिवस मनाया जाता है, जिसकी स्थापना संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा की गई थी। यह दिन लोगों को ओजोन परत के क्षरण के बारे में याद दिलाता है और इसे संरक्षित करने के उपाय खोजने के लिए प्रेरित करता है।

17 सितंबर - विश्व रोगी सुरक्षा दिवस - यह दिवस 17 सितंबर को मनाया जाता है। इसकी स्थापना मई 2019 में 72वीं विश्व स्वास्थ्य सभा द्वारा 'रोगी सुरक्षा पर वैश्विक कार्रवाई' पर संकल्प WHA72.6 को अपनाने के बाद की गई थी। 

17 सितंबर- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का जन्मदिन - प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 17 सितंबर 2023 को अपना 73वां जन्मदिन मना रहे हैं। वे भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेता और भारत के 15वें प्रधानमंत्री हैं। उनका जन्म 17 सितंबर 1950 को गुजरात के वडनगर में हुआ था।

17 सितंबर-विश्वकर्मा पूजा - विश्वकर्मा जयंती हिंदू देवता और दिव्य वास्तुकार विश्वकर्मा के लिए उत्सव का दिन है। 

18 सितंबर - विश्व बांस दिवस - यह दिवस विश्व स्तर पर बांस के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए 18 सितंबर को मनाया जाता है। 

19 सितंबर - अंतर्राष्ट्रीय समुद्री डाकू की तरह बात करें दिवस - अंतर्राष्ट्रीय समुद्री डाकू की तरह बात करने का दिन हर साल 19 सितंबर को मनाया जाता है। यह दिन लोगों को पुराने ज़माने के समुद्री लुटेरों की तरह बात करने और कपड़े पहनने के लिए प्रोत्साहित करता है।

21 सितंबर - अंतर्राष्ट्रीय शांति दिवस (यूएन) - अंतर्राष्ट्रीय शांति दिवस (यू.एन.) 21 सितंबर को दुनिया भर में मनाया जाता है। पहली बार इसे सितंबर 1982 में मनाया गया था और 2001 में, महासभा ने 



एक प्रस्ताव 55/282 को अपनाया, जिसने 21 सितंबर को अहिंसा और युद्ध विराम के अंतर्राष्ट्रीय शांति दिवस के रूप में स्थापित किया।

21 सितंबर - विश्व अल्ज़ाइमर दिवस - विश्व अल्जाइमर दिवस 21 सितंबर को मनाया जाता है ताकि लोगों में मनोभ्रंश के कारण रोगियों के 

सामने आने वाली चुनौतियों के बारे में जागरूकता बढ़ाई जा सके। 2012 में, विश्व अल्जाइमर माह की शुरुआत की गई थी।

22 सितंबर - रोज़ डे (कैंसर रोगियों का कल्याण) - रोज़ डे 22 सितंबर को कैंसर रोगियों के कल्याण के लिए मनाया जाता है या हम कह सकते हैं कि यह दिन कैंसर रोगियों के लिए आशा का प्रतीक है कि कैंसर का इलाज संभव है। यह दिन कनाडा की 12 वर्षीय मेलिंडा रोज़ की याद में मनाया जाता है, जिसे जब दुर्लभ प्रकार के रक्त कैंसर का पता चला तो उसने उम्मीद नहीं छोड़ी।

22 सितंबर - विश्व गैंडा दिवस - यह दिवस हर साल 22 सितंबर को मनाया जाता है। यह दिन जागरूकता बढ़ाता है और इस अविश्वसनीय प्रजाति के लिए एक सुरक्षित प्राकृतिक आवास बनाता है।

23 सितंबर - अंतर्राष्ट्रीय सांकेतिक भाषा दिवस - 23 सितंबर को संयुक्त राष्ट्र महासभा ने इस दिन को अंतर्राष्ट्रीय सांकेतिक भाषा दिवस के रूप में घोषित किया। यह दिन सभी बधिर लोगों और अन्य सांकेतिक भाषा उपयोगकर्ताओं की भाषाई पहचान और सांस्कृतिक विविधता का समर्थन और संरक्षण करने का एक अनूठा अवसर प्रदान करता है।

 24 सितंबर (चौथा रविवार) - विश्व नदी दिवस - विश्व नदी दिवस सितंबर के आखिरी रविवार को मनाया जाता है। 2022 में यह 26 सितंबर को मनाया जाएगा। यह दिन नदियों के महत्व पर प्रकाश डालता है और लोगों को दुनिया भर की नदियों में पानी को बेहतर बनाने और बचाने के लिए जागरूकता पैदा करता है और प्रोत्साहित करता है। हमारे जल संसाधनों की देखभाल करना आवश्यक है।

25 सितंबर - विश्व फार्मासिस्ट दिवस - यह दिवस प्रतिवर्ष 25 सितंबर को मनाया जाता है। वर्ष 2009 में, इस्तांबुल, तुर्की में अंतर्राष्ट्रीय फार्मास्युटिकल फेडरेशन (FIP) कांग्रेस ने 25 सितंबर को वार्षिक विश्व फार्मासिस्ट दिवस (WPD) के रूप में मनाने का निर्णय लिया।

25 सितम्बर - अंत्योदय दिवस - 2014 में, 25 सितंबर को पंडित दीन दयाल उपाध्याय की 98वीं जयंती के सम्मान में 'अंत्योदय दिवस' घोषित किया गया था।

26 सितंबर - यूरोपीय भाषा दिवस - भाषा सीखने के महत्व और भाषा की विरासत की सुरक्षा के बारे में जनता में जागरूकता बढ़ाने के लिए प्रतिवर्ष 26 सितंबर को यूरोपीय भाषा दिवस मनाया जाता है।

सितंबर के अंतिम सप्ताह से शुरू होकर सितंबर के अंतिम रविवार को समाप्त होता है - बधिरों का दिन बधिरों का दिन या अंतर्राष्ट्रीय बधिरों का सप्ताह सितंबर के आखिरी सप्ताह से शुरू होता है और महीने के आखिरी रविवार को समाप्त होता है। इसे विश्व बधिर दिवस के रूप में भी जाना जाता है। यह 



दिन न केवल प्रभावित व्यक्ति बल्कि आम लोगों, राजनेताओं और विकास प्राधिकरणों का ध्यान बधिर लोगों के समुदाय की उपलब्धियों और चुनौतियों की ओर आकर्षित करता है।

26 सितंबर - विश्व गर्भनिरोधक दिवस - विश्व गर्भनिरोधक दिवस हर साल 26 सितंबर को मनाया जाता है। यह उपलब्ध गर्भनिरोधक विधियों के बारे में जागरूकता बढ़ाने और युवाओं को उनके यौन और प्रजनन स्वास्थ्य के बारे में सूचित निर्णय लेने में सक्षम बनाने के लिए एक वैश्विक अभियान है।

26 सितंबर - विश्व पर्यावरण स्वास्थ्य दिवस - इस दिवस की घोषणा अंतर्राष्ट्रीय पर्यावरण स्वास्थ्य महासंघ द्वारा की गई है। 

27 सितंबर - विश्व पर्यटन दिवस - विश्व पर्यटन दिवस प्रतिवर्ष 27 सितंबर को पर्यटन के महत्व को उजागर करने के लिए मनाया जाता है, जो रोजगार सृजन और दुनिया भर में लाखों लोगों के भविष्य निर्माण में मदद करता है। 

27 सितंबर- गूगल जन्म वर्षगांठ - गूगल अपनी 25वीं वर्षगांठ डूडल के साथ मना रहा है। खोज क्षेत्र की इस दिग्गज कंपनी की शुरुआत स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी के शोध प्रोजेक्ट के रूप में हुई थी, जिसे 1998 में लैरी पेज और सर्गेई ब्रिन ने स्थापित किया था। गूगल को ऑनलाइन सूचनाओं की विशाल मात्रा को प्रबंधित करने के लिए डिज़ाइन किया गया था।

28 सितंबर - विश्व रेबीज दिवस - विश्व रेबीज दिवस हर साल 28 सितंबर को मनाया जाता है ताकि लोगों को रेबीज की रोकथाम के बारे में जागरूक किया जा सके और इस भयावह बीमारी को हराने में हुई प्रगति पर प्रकाश डाला जा सके।

28 सितंबर - सूचना तक सार्वभौमिक पहुंच के लिए अंतर्राष्ट्रीय दिवस (आईडीयूएआई)

सूचना तक सार्वभौमिक पहुँच के लिए अंतर्राष्ट्रीय दिवस (IDUAI) 2022 हर साल 28 सितंबर को मनाया जाता है। यह दिन सूचना मांगने, प्राप्त करने और प्रदान करने के अधिकार पर केंद्रित है।

29 सितंबर - विश्व हृदय दिवस - विश्व हृदय दिवस हर साल 29 सितंबर को मनाया जाता है। इस दिन लोगों को हृदय रोग और स्ट्रोक के बारे में जानकारी दी जाती है जो दुनिया में मौत का सबसे बड़ा कारण है।

30 सितंबर - अंतर्राष्ट्रीय अनुवाद दिवस - अंतर्राष्ट्रीय अनुवाद दिवस हर साल 30 सितंबर को मनाया जाता है। यह दिन भाषा विशेषज्ञों के काम को श्रद्धांजलि देने का अवसर प्रदान करता है। यह राष्ट्रों को एक साथ लाने और विश्व शांति और सुरक्षा को मजबूत करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

30 सितंबर (तीसरा शनिवार) - अंतर्राष्ट्रीय लाल पांडा दिवस - यह दिवस सितंबर महीने के तीसरे शनिवार को मनाया जाता है। इस साल यह 18 सितंबर को मनाया जा रहा है। यह दिन संरक्षण की तत्काल आवश्यकता के बारे में जागरूकता बढ़ाता है।





आक्रोश की परिणीति

  बालेश्वर गुप्ता, नोयडा


      भन्ते, वैशाली में गणतंत्र है,फिरभी मुझे यहां की नगरवधू बनने को विवश किया गया है।यह आक्रोश क्या मेरे मन मष्तिष्क से हट सकता है?

      पर देवी,आपने फिर भी यह कृत्य अपनाया तो है और इस कृत्य से सुख वैभव भोग रही हो,फिर दोष व्यवस्था को क्यों?

      सुख वैभव?? भन्ते विवशता को भोग कहते हो।क्या इस व्यवस्था में मैं बच सकती थी?

     क्यों नही देवी,अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति से क्यों नही बच सकती थी।क्षमा करना देवी, जान तो दे सकती थी।

         सर्पिणी की तरह फुफकारते बोली आम्रपाली, भन्ते मैं तुम्हे चुनौती देती हूं,मेरे साथ इसी मेरे महल में चार माह तक निवास करके अपने को बचा कर दिखाओ,तो जानू?मैं तुम्हे आश्वस्त करती हूं कि मेरी ओर से कोई पहल नही होगी।

      बौद्ध भिक्षुक और वैशाली की नगरवधू आम्रपाली की वार्ता चुनौती की सीमा तक पहुँच गयी थी।आम्रपाली के प्रस्ताव से आश्चर्यचकित भिक्षुक हिचकिचाकर बोला देवी मैं सन्यासी हूँ, ये कैसा प्रस्ताव?

    बस धरी रह गयी दृढ़ इच्छा शक्ति,छूट गया तुम्हारा आत्म विश्वास।हैं, पर उपदेश कुशल बहुतेरे।

       ऐसा नही देवी,मुझे आपके प्रस्ताव के क्रियान्वयन हेतु परम पूज्य तथागत से अनुमति लेनी होगी।

      और भन्ते अनुमति आपके गुरु देंगे नही।बच रहे हो ना भन्ते,आज शाम तक मेरे दरवाजे आपके लिये खुले है,उसके बाद मुझे दिखाई भी मत देना। ध्यान रखना आगे से इस प्रकार का उपहास किसी के भी साथ ना हो।

     अपना सिर झुकाए युवा भिक्षुक वहाँ से चला आया।पूज्य तथागत ने अपने शिष्य को चुनौती स्वीकार करने की सहर्ष अनुमति भी दी और विजित होने का आशीर्वाद भी।

       इतिहास साक्षी है,चार माह बाद वह भिक्षुक फिर पूज्य तथागत के चरणस्पर्श करने मठ पहुँचा तो वह अकेला नही था,उसके साथ थी भिक्षुणी के रूप में आम्रपाली। 

 ऐतिहासिक घटना अपने शब्दों में (2600 वर्ष पूर्व भी वैशाली में गणतंत्र था जबकि मगध में राजतंत्र)








मैं भीतर के सो चुकी बच्ची,,,,



तुम नींद के बाद का आगमन हो 

जिसे झटकर! 

मैं भीतर के सो चुकी बच्ची को 

जगाना नहीं चाहती 

और न ही अचानक

तुम्हारा नाम लेना चाहती हूँ 

तुम अपनी कविताओं में 

मेरे भी मन को उगाते रहो 

फूल खिलखिलाते रहें 

मैं हवाओं में मिल उड़ती रहूँ 

क्योंकि देखती हूँ 

कोई दूसरी ही परछाई 

अपनी नज़र से 

तुम्हारी नज़र में, मैं 

जहाँ रुठना वर्जित है 

और स्वीकारना भय से भरा गुब्बारा 

जिसके फूटते ही उतरती है 

तुम्हारी देह में कविता 

मुझे निहारते हो सबसे पहले, 

फिर क्यों समेट लेते हो 

अपनी आँखों में समुचा प्रेम 

तुमने जब छुआ 

और कुछ रह गया था मेरे पास 

अनूठा! 

तब वह प्रेम था।‌

और अभी

वसंत की एक सुंदर याद

अभी तुम्हारे स्पर्श को सोचती हूँ 

और कुछ , बहुत हल्का 

उतर आता है मेरे अंतस के भीतर 

जो रात को कर देता है भारी 

अगर प्रेम‌ फिर से लौटे

कहना चाहती हूँ – 

मेरी चिट्ठीयों के उत्तर 

और स्याही में घुल चुके आँसूओं को 

साथ लाना

तुम्हें दिखाना चाहती हूँ 

सूखते हुये देह से झड़ चुका प्रेम 

कैसे कुल जमा हो जाता है आँखों के नीचे 

जिसका वसंत खिलने को 

कोई याद काफी नहीं

प्रिय! 

अब बिखरे हुए मन को समेटना है 

ताकि बची रहूँ मैं 

बचा रहा प्रेम 

और लिखा जाता रहे प्रेम पत्र। 

रचियता -

मनीष यादव




असाधरण व्यक्तित्व राजकुमारी देवी 

66 साल की कक्षा 10 पास ये काकी जब साइकिल से चला कर आती हैं तो लोगो को देख के हंसी आती है पर आप को ये बता दूं ये कोई साधारण महिला नहीं है बल्कि इस वर्ष पद्मश्री जैसे बड़े सम्मान से सम्मानित बिहार की श्रीमती राजकुमारी देवी हैं।

आइये संक्षेप में इनके विषय में जानने की कोशिश करते हैं। इस महान महिला का जीवन बहुत ही प्रेरणादायी है।

बिहार के मुजफ्फरपुर जिले के सरैया ब्लॉक के ग्राम आनंदपुर की निवासी हैं राजकुमारी देवी,मात्र 15 साल की उम्र में उनका विवाह इस ग्राम में एक किसान के साथ हुआ था जिसको खेती के नाम पर सिर्फ तम्बाकू उगाना आता था।घर का खर्च ठीक से न चलने के कारण परिवार खिन्न रहने लगा,शादी के नौ साल बाद भी राजकुमारी की गोद सूनी थी इस कारण उनको बहुत अत्याचार झेलने पड़े इनको घर से तक निकाल दिया गया। किसी प्रकार दुख झेलते हुए इन्होंने खुद खेती शुरू की और जो भी उपज हुई उससे अचार और मुरब्बे बनाये,मगर कोई इन उत्पाद को बेचने के लिए तैयार नहीं हुआ , तो खुद साइकिल चलानी सीखी और इनको बेचने लगीं।

राजकुमारी को लगा कि और अच्छे ढंग से यदि ये काम किया जाय तो बेहतर मूल्य मिल सकता है। इसके लिए वे पूसा कृषि विश्वविद्यालय पहुंची और खेती तथा फूड प्रोसेसिंग का वाकायदा प्रशिक्षण लिया, फिर खेती में जल्दी फसल देने वाली चीजें उगाईं खासकर पपीता आदि। उनको अचार मुरब्बे आदि से अच्छी इनकम हुई और काम बढा तो उन्होंने अनेक महिलाओं को प्रशिक्षण देकर अपने साथ मिला लिया। फिर उनको सफलता मिलती गयी,सबसे पहले लालू यादव जी ने सरैया मेले में उनको वर्ष 2003 में सम्मानित किया फिर नीतीश जी खुद उनके घर गए और उनके कार्यो का जायजा लेकर वर्ष 2007 में 'किसानश्री' से सम्मानित किया ।ये पुरस्कार पहली बार किसी महिला को मिला था।लोग उनको 'किसान चाची' कहने लगे।

अमिताभ बच्चन के एक शो में भी राजकुमारी आमंत्रित हुईं । शो के बाद उनको एक आटा चक्की 5 लाख रुपये और साड़ियां उपहार स्वरूप मिलीं।

राजकुमारी देवी जी आज स्वयं सहायता समूह के माध्यम से महिलाओं को आत्मनिर्भर बना रही हैं कभी अकेली खेतों में काम करने वाली महिला आज हज़ारों को उनके पैरों पर खड़ा कर रही है,सरकार ऐसे लोगों को ऋण अनुदान देने के लिए पूरी तरह तत्पर है ।बस ईमानदारी और इच्छाशक्ति की जरूरत है।


परिवर्तनी ( प‌द्मा )  एकादशी

परिवर्तनी एकादशी को प‌द्मा एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। यह श्रीलक्ष्मी जी का परम आह्लादकारी व्रत है। यह भाद्रपद की शुक्ल पक्ष की एकादशी को किया जाता है। इस दिन भगवान विष्णु क्षीरसागर में शेषशैय्या पर शयन करे हुए करवट बदलते हैं। इसीलिये इसे करवटनी एकादशी भी कहा जाता है। इस दिन लक्ष्मी जी की पूजा करना उत्तम माना जाता है, क्योंकि देवताओं ने अपने राज्य को फिर से पाने के लिये महालक्ष्मी का ही पूजन किया अर्चना की थी।

परिवर्तनी (प‌द्मा) एकादशी की कथा - त्रेता युग में प्रहलाद का पौत्र राजा राज्य करता था। वह ब्राह्मणों का सेवक तथा भगवान विष्णु का उपासक था और इन्द्र आदि सभी देवताओं का शत्रु था। अपने बल के कारण उसने देवताओं पर विजय प्राप्त कर ली और इन्द्र से इन्द्रासन छीन कर देवताओं को स्वर्ग से निकाल दिया। देवताओं को दुखी देखकर भगवान ने बामन का वेष धारण करके बलि के द्वार पर आकर भिक्षा मांगते हुए कहा- "हे राजन मुझे केवल तीन पग भूमि का दान चाहिए।" राजा बलि ने उत्तर दिया- "मैं आपको तीन लोक दे सकता हूँ, विराट रूप धारण करके नाप लो।" बामन (भगवान) ने विराट रूप धारण किया और दो पग में पूरी पृथ्वी को नाप लिया। जब उन्होंने तीसरा पग उठाया तो बलि ने सिर नीचे धर दिया। प्रभु ने चरण धरकर दबाया तो बलि पाताल लोक में जा पहुंचा। जब भगवान चरण उठाने लगे तो बलि ने हाथ पकड़कर कहा-"मैं इन्हें मन्दिर में रखूंगा।" भगवन बोले- "यदि तुम बामन एकादशी का पूर्ण विधि पूर्वक व्रत करो तो मैं तुम्हारी इच्छा पूर्ण करूँगा और मैं तुम्हारे द्वार पर कुटिया बनाकर रहूँगा।" आज्ञानुसार राजा बलि ने बामन एकादशी का व्रत विधि पूर्वक किया। और तभीसे भगवानकी एक प्रतिमा द्वारपाल बनकर पातालमें औरएक क्षीरसागर मेंनिवास करने लगी।


इन्दिरा एकादशी


इस एकादशी का व्रत करने से  पितृगण शुभ गति को प्राप्त करते हैं, यानी पितरों का उद्वार होता है। इन्दिरा एकादशी आश्विन मास में कृष्ण पक्ष की एकादशी को मनायी जाती है। इस दिन शालिग्राम की पूजा करके व्रत रखा जाता है। पवित्र होकर शालिग्राम को पंचामृत से स्नान कराकर वस्त्र पहनाये जाते हैं तथा भोग लगाकर आरती उतारी जाती है। पंचामृत वितरण करके शालिग्राम पर तुलसी अवश्य चढ़ानी चाहिए। इस व्रत की कथा को सुनने से सब पापों से छुटकारा मिल जाता है।

इन्दिरा एकादशी की कथा

सत्युग में महिष्मतीपुरी में इंद्रसेन नामक एक प्रबल प्रतापी राजा राज करता था। वह पुत्र, पौत्र, धन्य-धान्य से संपन्न था और भगवान विष्णु का परम भक्त था। उसके माता पिता स्वर्गवासी हो चुके थे। अचानक एक दिन उन्हें स्वप्न आया कि तुम्हारे माता-पिता यमलोक में कष्ट भोग रहे हैं। नींद टूटने पर वे बहुत ही चिन्तित हुए कि किस प्रकार इस यातना से पितरों को मुक्त किया जाये। इस विषय पर मंत्री से परामर्श किया।

मन्त्री ने राजा को परामर्श दिया कि वे विद्वानों को बुलाकर इस विषय पर वार्तालाप करें। राजा ने ऐसा ही किया। सभी ब्राह्मणों के उपस्थित होने पर स्वप्न की बात पेश की गई। ब्राह्मणों ने कहा- "राजन्! यदि आप सकुटुम्ब इन्दिरा एकादशी व्रत करें तो आपके पितरों की मुक्ति हो जायेगी। उस दिन आप शालिग्राम की पूजा, तुलसी आदि चढ़ाकर 11 ब्राह्मणों को भोजन कराकर दक्षिणा देकर आर्शीवाद प्राप्त करें। इससे आपके माता-पिता स्वयं ही स्वर्ग में चले जायेंगे। आप रात्रि को मूर्ति के पास ही शयन करना।" राजा ने ऐसा ही किया। जब राजा मन्दिर में सो रहा था तभी भगवान के दर्शन हुए और उन्होंने कहा कि हे राजन् ! व्रत के प्रभाव से तेरे माता-पिता स्वर्ग को पहुंच गये। राजा इंद्रसेन भी इस व्रत के प्रभाव से इस लोक में सुख भोगकर अंत में स्वर्ग को गया।

सुर्य उदय- सुर्य अस्त सितंबर -2024 


दिनांक 

01 

05 

10 

15

20 

25 

30

उदय 

06-01

06-05

06-07

06-11

06-12

06-14

06-17

अस्त 

18-40

18-36

18-30

18-24

18-18

18-12

18-06

 





सामान्य ज्ञान 

भारत का वर्तमान क्षेत्रफल -  32.8 लाख वर्ग किलोमीटर

भारत का मानक देशान्तर -  820.30' पूर्वी देशान्तर

भारत का केन्द्र बिन्दु -  मध्य प्रदेश के कटनी जिला का करौंदी गाँव

भारत की पूर्व से पश्चिम की दूरी (चौड़ाई) -  2,933 किलोमीटर

भारत की उत्तर से दक्षिण की दूरी (लम्बाई) - 3,214 किलोमीटर

भारत का दक्षिणतम बिन्दु -  इन्दिरा पॉइण्ट

भारत का सर्वोच्च पर्वत शिखर -  गॉडविन आस्टिन (के-2)

भारत की शासन व्यवस्था -  संसदीय लोकतंत्र

भारत का राष्ट्र प्रमुख -  राष्ट्रपति

भारत का शासन प्रमुख -  प्रधानमंत्री

भारत में कुल राज्यों की संख्या -  28

भारत में कुल केन्द्र शासित प्रदेश -  08

भारत की कुल जनसंख्या -  1.21 अरब (2011 की जनगणना) 

भारत में वन क्षेत्र का प्रतिशत -  कुल क्षेत्रफल का 21.54%

क्षेत्रफल की दृष्टि से भारत का सबसे छोटा राज्य -  गोवा

क्षेत्रफल की दृष्टि से भारत का सबसे बड़ा राज्य -  राजस्थान

जनसंख्या की दृष्टि से भारत का सबसे छोटा राज्य -  सिक्किम

जनसंख्या की दृष्टि से भारत का सबसे बड़ा राज्य -  उत्तर प्रदेश

भारत का सर्वाधिक साक्षरता वाला राज्य -  केरल

भारत का सबसे कम साक्षरता वाला राज्य  - बिहार

भारत का सबसे बड़ा जिला (क्षेत्रफल के आधार पर) - कच्छ, गुजारात

भारत का सबसे छोटा जिला (क्षेत्रफल के आधार पर) - माहे, पुदुच्चेरी

भारत का सर्वाधिक जनसंख्या वाला शहर - मुम्बई, महाराष्ट्र

भारत में सर्वाधिक समुद्र तट सीमा वाला राज्य - गुजरात

भारत का सबसे लम्बा समुद्र तट (बीच) - मरीना बीच, चेन्नई

भारत का सबसे ऊँचा जल प्रपात - कुचिकल 455 मीटर, कर्नाटक में

भारत का सर्वाधिक ऊँचाई पर स्थित युद्ध स्थल - सियाचिन क्षेत्र (जम्मू कश्मीर)







     


अभिनंदन  हिन्दी भाषा का 

डॉ वनिता शर्मा



अभिनंदन है  हिन्दी भाषा का ,

प्रमुदित   सकल दिशाएं है 

 मुदित हृदय  है जन मानस का ,

प्रफुल्लित आज फिजाएं है। 

अंग्रेज़ी  की अब  धुंध छँट रही ,

गर्वित साहित्य विधाएं है

जागृत धर्म,संस्कृति, साहित्य, 

सभ्यता , मुखरित वेद ऋचाएं है । 

सुखद भविष्य हो संवृद्धि इस की, 

जन मानसअभिलाषा है

मृदु सम्प्रेषण आधार इसका  ,  

साहित्य सृजन प्रत्याशा है

है  सरस्वती का अपूर्व कोष,     

पूजा वंदन मर्यादा  है

आदर्श  स्नेह  सी   पगी हुई,      

 स्वाभिमान की भाषा है। 

मन - भावों का सागर उमड़े , 

भाषा के एहसासों में

अंतर्मन द्वंद  भी सृजित हमारे , 

शब्द-अर्थ  के प्रयासों से

सहज सुगम है संस्कृति हमारी ,

मिश्रण लोकभाषाओं का

गरिमामयी साहित्य हमारा, 

आदि पुरातन भाषा है। 

सुस्पष्ट लिपि व्याकरण से  जिसने ,

निज   आधार बनाया है

 स्वर-व्यंजनों व्यापक  विधान से  ,

जिसको पूर्ण बनाया है

अभिधा- लक्षणा -व्यंजना अप्रतिम ,

प्राप्त सभी शब्द-शक्तियां है 

ध्वनि-लिपि वर्ण  के ताल-मेल की ,

यह वैज्ञानिक भाषा  है। 

विश्व फलक पर हिंदी भाषा का ,

उन्नत  गौरवमय स्थान है 

अखिल जगत सरताज  सुशोभित, 

आदर्श -संस्कारी  खान है

प्रगति और उत्थान को बढ़ती ,

साहित्य जगत  गुणगान है 

 माँ के माथे की बिंदी हिन्दी  , 

हर मन  की अभिलाषा है।   

मातृ भूमि की प्राण वायु यह , 

आर्यावर्त हिंदूस्तान  है

भावी पीढ़ी का  कर्तव्य यही ,

वर्तमान की प्रत्याशा है 

हिंदी भाषा के संस्कार मिलें है  ,

बन सूर्य  पुत्र तुम चमक रहे

दे रहे  विरासत में तुमको ,

तुमसे राष्ट्र  की आशा है।

अभिनन्दन है हिन्दी भाषा का, 

प्रमुदित सकल दिशाएं है

मुदित हृदय है जनमानस का ,

प्रफुल्लित आज फिजाएं है ।  



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