जानकारी काल
वर्ष-25 अंक - 01 जून - 2024,
पृष्ठ 42 मूल्य 2-50
ॐ नमो गंगायै विश्वरुपिणी नारायणी नमो नम:।।
गंगा नदी में स्नान करने से जाने -अनजाने में किए गए पापों से भी छुटकारा मिलता है।
गंगा दशहरा का बहुत अधिक महत्व है। गंगा दशहरा वाले दिन विधि- विधान से मां गंगा की पूजा- अर्चना करनी चाहिए। मां गंगा की पूजा करने से समस्त पापों से मुक्ति मिल जाती है और मृत्यु के बाद मोक्ष की प्राप्ति होती है।
अपनों से अपनी बात
महाराष्ट्र के पुणे शहर में नाबालिग कार हुए लापरवाही से दुर्घटना हुई तथा इस कारण कुछ लोगों की मृत्यु हो गई | ऐसा नहीं है कि यह कोई पहली गलती हुई है नाबालिग से ऐसे बहुत सारे अपराध होते हैं कानपुर में भी एक ऐसा हादसा हुआ था जिससे दो बच्चों की जान गई थी | इसके अलावा भी बहुत सारे दुर्घटनाएं होती हैं | जो बच्चे जिद करके या मां-बाप की लापरवाही के कारण से घर से गाड़ी को निकाल कर ले जाते हैं और दुर्घटना हो जाती है | वह किसी प्रकार का नशा करते हैं और नशे में वाहन चलाते हैं और उसे फिर जान माल का नुकसान होता है | जिसको रोकने के लिए सरकारों ने अब कुछ कदम उठाने शुरू करें हैं | नाबालिग कानून के अनुसार 18 वर्ष से कम आयु का व्यक्ति नाबालिग है, ऑटोमोबाइल के लिए ड्राइविंग लाइसेंस प्राप्त नहीं कर सकते या कानूनी दस्तावेज जारी या हस्ताक्षर नहीं कर सकते।अगर किसी नाबालिग से कोई जुर्म हो जाए, तो उसकी हिफाजत करता है जुवेनाइल जस्टिस यानी जे जे ऐक्ट। इसके तहत आरोपी बच्चे के ख़िलाफ़ ट्रायल कोर्ट में केस नहीं चलाया जाता और न ही उसे जेल की सजा दी जाती है। उसके ख़िलाफ़ मामला चलता है जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड के सामने और मुजरिम साबित होने की सूरत में उसे अधिकतम 3 साल के लिए सुधार गृह में भेजा जाता है। हालांकि, अब जेजे ऐक्ट में बदलाव की तैयारी की जा रही है। सरकार के फैसले के मुताबिक, 16 साल से उपर के किशोर अगर गंभीर अपराध में लिप्त हैं, तो उन पर कहां मुकदमा चलेगा, इसका फैसला अब जेजे बोर्ड करेगा। जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड में एक मेंबर होता है, जिसे राज्य सरकार नियुक्त करती है। ऐसे केसों के ट्रायल का जिम्मा एक स्पेशल मैजिस्ट्रेट के पास होता है। नाबालिग को अपराधिक मामले में पकते है, तो उसे पुलिस रिमांड पर लेकर पूछताछ नहीं कर सकती, पूछताछ वेलफेयर अफ़सर के सामने ही होती है,किसी भी प्रकार की सख्ती नहीं की जा सकती,उसे किसी भी तरह से रिमांड पर नहीं लिया जा सकता। जुवेनाइल जस्टिस एक्ट के तहत प्रावधान किया गया कि 16 साल या उससे अधिक उम्र के किशोर को जघन्य अपराध करने पर एक वयस्क मानकर उसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाए और उस पर मुकदमा चलाया जाए,नाबालिग के वाहन चलाने पर बड़ी कार्रवाई की जाएगी। उत्तर प्रदेश में अब 18 साल से कम उम्र के बच्चों के वाहन चलाने पर पूरी तरह से पाबंदी लग गई है। शासन ने नाबालिग किशोर या किशोरियों पर दो पहिया या फिर चार पहिया वाहन चलाने पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया है। आदेश में कहा गया है कि यदि कोई अभिभावक (वाहन मालिक) 18 साल से कम उम्र के बच्चों को वाहन चलाने के लिए देगा तो उसका जिम्मेदार वह स्वयं होगा। अगर नाबालिग वाहन चलाते हुए पकड़ा गया तो उसके अभिभावक या वाहन मालिक को 3 साल तक की सजा और 25 हजार रुपये तक के जुर्माने से दंडित किया जा सकता है साथ ही वाहन का लाइसेंस भी निरस्त कर दिया जाएगा। नाबालिग के पकड़े जाने पर ड्राइविंग लाइसेंस 25 साल की उम्र के बाद ही बनेगा। एक्सीडेंट के बढ़ते मामलों को देखते हुए यूपी परिवहन विभाग की तरफ से ये कड़े निर्देश जारी किए गए हैं।
उत्तर पूर्व को हम कितना जानते हैं, मणिपुर से बहुत अलग है मिजोरम की कहानी
तरुण विजय
हमारे पास उनके लिए समय नहीं होता। वे क्या सोचते हैं, क्या बोलते हैं, क्या तूफान उनके भीतर चल रहे हैं, इसके लिए किसके पास समय है? मिजोरम के चकमा लोगों ने भेदभाव के विरुद्ध बंदूक, राइफल नहीं उठाई, बल्कि समर्थ बनने की प्रतिबद्धता दिखाई ।
मिजोरम में एक कारखाने के उद्घाटन के बाद जब एक मंत्री मित्र मिले और प्रवास की जानकारी दी, तो मेरा अनायास ही प्रश्न था, 'क्या आप स्थानीय सामान्य नागरिकों से भी मिले?' जाहिर है कि उनको अच्छा नहीं लगा। उत्तर पूर्व की यही समस्या है। हमारे पास उनके लिए वह समय नहीं होता, जो उनका परिचय करवा सके। वे क्या सोचते हैं, क्या बोलते हैं, क्या तूफान उनके भीतर चल रहे हैं, इसके लिए किसके पास समय है? हममें से कितने लोग वहां के अत्यंत मनोरम प्राकृतिक स्थानों के बारे में जानते हैं, या उन्हें उनके
नाम याद हैं? उत्तर पूर्व के कितने महान व्यक्तित्वों या नदियों के नाम हम बता सकते हैं? क्या वहां के नामों का हम उच्चारण भी ठीक से कर सकते हैं?
मैंने मिजोरम के कुछ उन छात्रों की शिक्षा का प्रबंध किया था, जो आर्थिक दृष्टि से अति विपन्न थे। उनके गांव का हाल जानकर लगा कि वहां जाना चाहिए। दिल्ली से गुवाहाटी तक 28 घंटे की रेल यात्रा और वहां से आइजोल तक एक घंटा की उड़ान। सामान्य यात्री गुवाहाटी से आइजोल सड़क मार्ग से जाते हैं और 12 घंटे तक का समय लगता है केवल आइजोल पहुंचने में। वहां से आगे अनेक गांव ऐसे हैं, जहां तक पहुंचने में मिजोरम के ही भीतर 12 घंटे या ज्यादा भी लग सकते हैं।
मेरे छात्र मिजोरम के अंतिम गांव सिलसुरी में रहते हैं, जो आइजोल से 180 किलोमीटर होगा। लेकिन वहां तक जाने के लिए कोई कैब वाला तैयार नहीं हुआ। सड़क नहीं, उबड़-खाबड़ मार्ग, बारिश (जो वहां साल में कभी भी होती है) इन सबसे सब डर रहे थे। आखिर एक ड्राइवर रॉबर्ट सिलसुरी से 36 किलोमीटर पहले तक छोड़ने के लिए तैयार हुआ। केवल 4 x 4 महेंद्र बोलेरो यहां चल सकती है, इतना बुरा हाल है। आइजोल से 153 किलोमीटर नापने में बोलेरो जैसी गाड़ी को 13 घंटे लग गए-कमर का हाल बुरा। लेकिन मार्ग के दृश्य इतने सुंदर, इतने नयनाभिराम कि कुछ भी खराब भाव मन में आया ही नहीं। कुछ और भीतर विक्रेता रहित दुकानें मिलीं। वहां सब्जियों जैसे सामान थे। एक छोटा-सा बक्सा रखा था। लोग आएं, सामान खरीदें, पैसा बक्से में डाल दें और चले जाएं। कोई देख-रेख नहीं, कोई बेईमानी नहीं। लोगों पर इतना विश्वास! कई बार बड़ा नोट होने पर ग्राहक बक्से से बाकी रेजगारी भी ले जाते हैं और बड़ा नोट डाल देते हैं।
बीस वर्ष तक चली हिंसक विद्रोही गतिविधियों के बाद लालडेंगा के नेतृत्व में शांति समझौते पर भारत सरकार ने हस्ताक्षर किए और 20 फरवरी, 1987 के दिन पृथक मिजो प्रदेश बना, जिसे अपने धार्मिक, सामाजिक, जनजातीय कानून बनाए रखने की अनुमति है और केंद्रीय संसद की कोई भूमि व्यवस्था अथवा जनजातीय समाज को नियंत्रित करने वाला कानून उन पर तब तक लागू नहीं होगा, जब तक मिजोरम विधानसभा उसको अंगीकार न कर ले। मिजोरम की जनसंख्या में 99 प्रतिशत ईसाई मिजो हैं। शेष एक प्रतिशत जनसंख्या में 0.8 प्रतिशत बौद्ध चकमा एवं थोड़े बहुत हिंदू व गैर ईसाई मूल मिजो हैं। चकमा गांवों में प्रायः बहुत कम विकास हुआ है। उनके लिए पृथक चकमा स्वायत्तशासी परिषद् है, पर न तो पर्याप्त अनुदान मिलता है और न ही उसके नेता प्रभावी हैं। चकमा भाषा की अपनी लिपि है, वह भी नहीं पढ़ाई जाती। मिजो स्कूलों में या तो चकमा बच्चों को प्रवेश नहीं मिलता या उन पर शेष बहुसंख्यक ईसाई छात्र-अध्यापक फब्तियां कसते हैं।
सुबह मुझे सिलसुरी जाना था। मार नदी में पांच किलोमीटर यात्रा के बाद उसका साजिक नदी से संगम होता है और साजिक के साथ, उसके प्रवाह के विपरीत बांग्लादेश की ओर 20 किलोमीटर-नदी मार्ग से प्रायः ढाई घंटे की यात्रा रोमांचक थी। मेरे साथ सिलसुरी गांव के श्री त्रोनी सेन चकमा ने इशारे से बताया
कि सामने नदी के ऊपर बांग्लादेश राइफल्स की चौकियां हैं और उनका राजमार्ग नदी के ठीक ऊपर से गुजरता है, जहां से भारी वाहन दनादन निकलते हैं, तो हमारे कलेजे में चोट लगती है। भारतीय सीमा सुरक्षा बल को मीलों जंगलों में पैदल अथवा अनेक स्थानों पर जेसीबी की बकेट में जंगल पार करके मोर्चे की चौकियों तक गश्त हेतु जाना पड़ता है। मुझे याद आया, गत वर्ष ही केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने मिजोरम के सीमांत क्षेत्रों को जोड़ने के लिए 6,600 करोड़ रुपयों की योजनाओं का श्रीगणेश किया था। आखिरकार 75 वर्ष बाद, मिजोरम शांति और महामार्गों के संजाल द्वारा आर्थिक विकास के नए सोपान तय करेगा।
मैं अपने छात्र स्वागतम चकमा के घर रुका। बांस का सुंदर घर। उन्होंने मेरे लिए जंगल से बांस काटकर पृथक स्नानागार बनाया। एक अन्य छात्र मनोजीत चकमा की मां ने पंद्रह दिन अपने घर के काम-काज से समय निकाल कर मेरे लिए विशेष शाल बुना और उन्होंने मुझे भीगी आंखों से शाल दिया। यह शाल मिजोरम की एक मां द्वारा स्वयं बुना हुआ था, जो मेरे जीवन की सबसे मूल्यवान धरोहर बन गया है।
मैं वहां दो दिन रहा, गांव, नदी, पहाड़ घूमा और मिजोरम की खट्टी-मीठी सुगंध समेटे लौटा। मिजोरम का दर्द एक ठहरे हुए, सांप्रदायिक घृणा के शिकार भेदभाव से जूझते क्षेत्र और एक महत्वाकांक्षी बौद्ध समाज के सपनों को लग रहे पंखों और नवीन राजमार्गों के निर्माण का संयुक्त प्रतीक है। चकमा लोगों ने भेदभाव के विरुद्ध बंदूक, राइफल नहीं उठाई, बल्कि समर्थ बनने की प्रतिबद्धता दिखाई।
लोक नीति
जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिये ज्ञान।
मोल करो तरवार का, पड़ा रहन दो म्यान ।।
सज्जन की जाति न पूछ कर उसके ज्ञान को समझना चाहिए। तलवार का मूल्य होता है न कि उसकी म्यान का - उसे ढकने वाले खोल का।
बोली एक अमोल है, जो कोई बोलै जानै।
हिये तराजू तौलि के, तब मुख बाहर आनि ॥
यदि कोई सही तरीके से बोलना जानता है तो उसे पता है कि वाणी एक अमूल्य रत्न है। इसलिए वह हृदय के तराजू में तोलकर ही उसे मुँह से बाहर आने देता है।
बड़ा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर।
पंथी को छाया नही फल लागे अति दूर।।
खजूर का पेड़ न तो राही को छाया देता है, और न ही उसका फल आसानी से पाया जा सकता है। इसी तरह, उस शक्ति का कोई महत्व नहीं है, जो दूसरों के काम नहीं आ सकती।
महाभारत काल में भारतीयों का विदेशों से संपर्क
युद्ध तिथि: महाभारत का युद्ध और महाभारत ग्रंथ की रचना का काल अलग अलग रहा है। इससे भ्रम की स्थिति उत्पन्न होने की जरूरत नहीं। यह सभी और से स्थापित सत्य है कि भगवान श्रीकृष्ण का जन्म रोहिणी नक्षत्र तथा अष्टमी तिथि के संयोग से जयंती नामक योग में लगभग 3112 ईसा पूर्व को हुआ हुआ। भारतीय खगोल वैज्ञानिक आर्यभट्ट के अनुसार महाभारत युद्ध 3137 ईसा पूर्व में हुआ और कलियुग का आरम्भ कृष्ण के निधन के 35 वर्ष पश्चात हुआ। महाभारत काल वह काल है जब सिंधुघाटी की सभ्यता अपने चरम पर थी।
विद्वानों का मानना है कि महाभारत में वर्णित सूर्य और चंद्रग्रहण के अध्ययन से पता चलता है कि युद्ध 31वीं सदी ईसा पूर्व हुआ था लेकिन ग्रंथ का रचना काल भिन्न भिन्न काल में गढ़ा गया। प्रारंभ में इसमें 60 हजार श्लोक थे जो बाद में अन्य स्रोतों के आधार पर बढ़ गए। इतिहासकार डी.एस त्रिवेदी ने विभिन्न ऐतिहासिक एवं ज्योतिष संबंधी आधारों पर बल देते हुए युद्ध का समय 3137 ईसा पूर्व निश्चित किया है। ताजा शोधानुसार ब्रिटेन में कार्यरत न्यूक्लियर मेडिसिन के फिजिशियन डॉ. मनीष पंडित ने महाभारत में वर्णित 150 खगोलीय घटनाओं के संदर्भ में कहा कि महाभारत का युद्ध 22 नवंबर 3067 ईसा पूर्व को हुआ था। तो यह तो थी युद्ध तिथि। अब जानिए महाभारत काल में भारतीयों का विदेशियों से संपर्क।
महाभारत काल में अखंड भारत के मुख्यत: 16 महाजनपदों (कुरु, पंचाल, शूरसेन, वत्स, कोशल, मल्ल,
काशी, अंग, मगध, वृज्जि, चेदि, मत्स्य, अश्मक, अवंति, गांधार और कंबोज) के अंतर्गत 200 से अधिक जनपद थे। दार्द, हूण, हुंजा, अम्बिस्ट आम्ब, पख्तू, कैकय, वाल्हीक बलख, अभिसार (राजौरी), कश्मीर, मद्र, यदु, तृसु, खांडव, सौवीर सौराष्ट्र, शल्य, यवन, किरात, निषाद, उशीनर, धनीप, कौशाम्बी, विदेही, अंग, प्राग्ज्योतिष (असम), घंग, मालव, कलिंग, कर्णाटक, पांडय, अनूप, विन्ध्य, मलय, द्रविड़, चोल, शिवि शिवस्थान सीस्टान सारा बलूच क्षेत्र, सिंध का निचला क्षेत्र दंडक महाराष्ट्र सुरभिपट्टन मैसूर, आंध्र, सिंहल, आभीर अहीर, तंवर, शिना, काक, पणि, चुलूक चालुक्य, सरोस्ट सरोटे, कक्कड़, खोखर, चिन्धा चिन्धड़, समेरा, कोकन, जांगल, शक, पुण्ड्र, ओड्र, क्षुद्रक, योधेय जोहिया, शूर, तक्षक व लोहड़ लगभग 200 जनपद से अधिक जनपदों का महाभारत में उल्लेख मिलता है।
महाभारत काल में म्लेच्छ और यवन को विदेशी माना जाता था। भारत में भी इनके कुछ क्षेत्र हो चले थे। हालांकि इन विदेशियों में भारत से बाहर जाकर बसे लोग ही अधिक थे। देखा जाए तो भारतीयों ने ही अरब और यूरोप के अधिकतर क्षेत्रों पर शासन करके अपने कुल, संस्कृति और धर्म को बढ़ाया था। उस काल में भारत दुनिया का सबसे आधुनिक देश था और सभी लोग यहां आकर बसने और व्यापार आदि करने के प्रति उत्सुक रहते थे। भारतीय लोगों ने भी दुनिया के कई हिस्सों में पहुंचकर वहां शासन की एक नए देश को गढ़ा है, इंडोनेशिया, सिंगापुर, मलेशिया, कंबोडिया, वियतनाम, थाईलैंड इसके बचे हुए उदाहरण है। भारत के ऐसे कई उपनिवेश थे जहां पर भारतीय धर्म और संस्कृति का प्रचलन था।
ऋषि गर्ग को यवनाचार्य कहते थे। यह भी कहा जाता है कि अर्जुन की आदिवासी पत्नी उलूपी स्वयं अमेरिका की थी। धृतराष्ट्र की पत्नी गांधारी कंदहार और पांडु की पत्नी माद्री ईरान के राजा सेल्यूकस (शल्य) की बहिन थी। ऐसे उल्लेख मिलता है कि एक बार मुनि वेद व्यास और उनके पुत्र शुकदेव आदि जो अमेरिका मेँ थे। शुक ने पिता से कोई प्रश्न पूछा। व्यास जी इस बारे मेँ चूंकि पहले बता चुके थे, अत उन्होंने उत्तर न देते हुए शुक को आदेश दिया कि शुक तुम मिथिला (नेपाल) जाओ और यही प्रश्न राजा जनक से पूछना।
तब शुक अमेरिका से नेपाल जाना पड़ा था। कहते हैं कि वे उस काल के हवाई जहाज से जिस मार्ग से निकले उसका विवरण एक सुन्दर श्लोक में है:- "मेरोहर्रेश्च द्वे वर्षे हेमवँते तत:। क्रमेणेव समागम्य भारतं वर्ष मासदत्।। सदृष्टवा विविधान देशान चीन हूण निषेवितान।
अर्थात शुकदेव अमेरिका से यूरोप (हरिवर्ष) हूण होकर चीन और फिर मिथिला पहुंचे। पुराणों में हरि बंदर को कहा है। वर्ष माने देश। बंदर लाल मुंह वाले होते हैं। यूरोपवासी के मुंह लाल होते हैं। अत:हरिवर्ष को यूरोप कहा है। हूणदेश हंगरी है यह शुकदेव के हवाई जहाज का मार्ग था।... अमेरिकन महाद्वीप के बोलीविया (वर्तमान में पेरू और चिली) में हिन्दुओं ने प्राचीनकाल में अपनी बस्तियां बनाईं और कृषि का भी विकास किया। यहां के प्राचीन मंदिरों के द्वार पर विरोचन, सूर्य द्वार, चन्द्र द्वार, नाग आदि सब कुछ
हिन्दू धर्म समान हैं। जम्बू द्वीप के वर्ण में अमेरिका का उल्लेख भी मिलता है। पारसी, यजीदी, पैगन, सबाईन, मुशरिक, कुरैश आदि प्रचीन जाति को हिन्दू धर्म की प्राचीन शाखा माना जाता है।
ऋग्वेद में सात पहियों वाले हवाई जहाज का भी वर्णन है। "सोमा पूषण रजसो विमानं सप्तचक्रम् रथम् विश्वार्भन्वम्।''... इसके अलावा ऋग्वेद संहिता में पनडुब्बी का उल्लेख भी मिलता है, "यास्ते पूषन्नावो अन्त:समुद्रे हिरण्मयी रन्तिरिक्षे चरन्ति। ताभिर्यासि दूतां सूर्यस्यकामेन कृतश्रव इच्छभान:"।
श्रीकृष्ण और अर्जुन अग्नि यान (अश्वतरी) से समुद्र द्वारा उद्धालक ऋषि को आर्यावर्त लाने के लिए पाताल गए। भीम, नकुल और सहदेव भी विदेश गए थे। अवसर था युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ का। यह महान ऋषियोँ और राजाओँ को निमंत्रण देने गए। यह लोग चारों दिशाओं में गए। कृष्ण-अर्जुन का अग्नियान अति आधुनिक मोटर वोट थी। कहते हैं कि कृष्ण और बलराम एक बोट के सहारे ही नदी मार्ग से बहुत कम समय में मथुरा से द्वारिका में पहुंच जाते थे।
महाभारत में अर्जुन के उत्तर कुरु तक जाने का उल्लेख है। कुरु वंश के लोगों की एक शाखा उत्तरी ध्रुव के एक क्षेत्र में रहती थी। उन्हें उत्तर कुरु इसलिए कहते हैं, क्योंकि वे हिमालय के उत्तर में रहते थे। महाभारत में उत्तर कुरु की भौगोलिक स्थिति का जो उल्लेख मिलता है वह रूस और उत्तरी ध्रुव से मिलता जुलता है। हिमालय के उत्तर में रशिया, तिब्बत, मंगोल, चीन, किर्गिस्तान, कजाकिस्तान आदि आते हैं। अर्जुन के बाद बाद सम्राट ललितादित्य मुक्तापिद और उनके पोते जयदीप के उत्तर कुरु को जीतने का उल्लेख मिलता है।
अर्जुन के अपने उत्तर के अभियान में राजा भगदत्त से हुए युद्ध के संदर्भ में कहा गया है कि चीनियों ने राजा भगदत्त की सहायता की थी। युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ सम्पन्न के दौरान चीनी लोग भी उन्हें भेंट देने आए थे।
महाभारत में यवनों का अनेका बार उल्लेख हुआ है। संकेत मिलता है कि यवन भारत की पश्चिमी सीमा के अलाव मथुरा के आसपास रहते थे। यवनों ने पुष्यमित्र शुंग के शासन काल में भयंकर आक्रमण किया था। कौरव पांडवों के युद्ध के समय यवनों का उल्लेख कृपाचार्य के सहायकों के रूप में किया गया है। महाभारत काल में यवन, म्लेच्छ और अन्य अनेकानेक अवर वर्ण भी क्षत्रियों के समकक्ष आदर पाते थे। महाभारत काल में विदेशी भाषा के प्रयोग के संकेत भी विद्यमान हैं। कहते हैं कि विदुर लाक्षागृह में होने वाली घटना का संकेत विदेशी भाषा में देते हैं।
जरासंध का मित्र कालयवन खुद यवन देश का था। कालयवन ऋषि शेशिरायण और अप्सारा रम्भा का पुत्र था। गर्ग गोत्र के ऋषि शेशिरायण त्रिगत राज्य के कुलगुरु थे। काल जंग नामक एक क्रूर राजा मलीच देश पर राज करता था। उसे कोई संतान न थी जिसके कारण वह परेशान रहता था। उसका मंत्री उसे आनंदगिरि पर्वत के बाबा के पास ले गया। बाबा ने उसे बताया की वह ऋषि शेशिरायण से उनका पुत्र
मांग ले। ऋषि शेशिरायण ने बाबा के अनुग्रह पर पुत्र को काल जंग को दे दिया। इस प्रकार कालयवन यवन देश का राजा बना।
महाभारत में उल्लेख मिलता है कि नकुल में पश्चिम दिशा में जाकर हूणों को परास्त किया था। युद्धिष्ठिर द्वारा राजसूय यज्ञ सम्पन्न करने के बाद हूण उन्हें भेंट देने आए थे। उल्लेखनीय है कि हूणों ने सर्वप्रथम स्कन्दगुप्त के शासन काल (455 से 467 ईस्वी) में भारत के भितरी भाग पर आक्रमण करके शासन किया था। हूण भारत की पश्चिमी सीमा पर स्थित थे। इसी प्रकार महाभारत में सहदेव द्वारा दक्षिण भारत में सैन्य अभियान किए जाने के संदर्भ में उल्लेख मिलता है कि सहदेव के दूतों ने वहां स्थित यवनों के नगर को वश में कर लिया था।
प्राचीनकाल में भारत और रोम के मध्य घनिष्ठ व्यापारिक संबंध था। आरिकामेडु ने सन् 1945 में व्हीलर द्वारा कराए गए उत्खनन के फलस्वरूप रोमन बस्ती का अस्तित्व प्रकाश में आया है। महाभारत में दक्षिण भारत की यवन बस्ती से तात्पर्य आरिकामेडु से प्राप्त रोमन बस्ती ही रही होगी। हालांकि महाभारत में एक अन्य स्थान पर रोमनों का स्पष्ट उल्लेख मिलता है। इस उल्लेख के अनुसार रोमनों द्वारा युद्धिष्ठिर के राजसूय यज्ञ के समापन में दौरान भेंट देने की बात कही गई है।
महाभारत में शकों का उल्लेख भी मिलता है। शक और शाक्य में फर्क है। शाक्य जाति तो नेपाल और भारत में प्रचीनकाल से निवास करने वाली एक जाति है। नकुल में पश्चिम दिशा में जाकर शकों को पराजित किया था। शकों ने भी राजसूय यज्ञ समापन पर युधिष्ठिर को भेंट दिया था। महाभारत के शांतिपर्व में शकों का उल्लेख विदेशी जातियों के साथ किया गया है। नकुल ने ही अपने पश्चिमी अभियान में शक के अलावा पहृव को भी पराजित किया था। पहृव मूलत: पार्थिया के निवासी थे।
प्राचीन भारत में सिंधु नदी का बंदरगाह अरब और भारतीय संस्कृति का मिलन केंद्र था। यहां से जहाज द्वारा बहुत कम समय में इजिप्ट या सऊदी अरब पहुंचा जा सकता था। यदि सड़क मार्ग से जाना हो तो बलूचिस्तान से ईरान, ईरान से इराक, इराक से जॉर्डन और जॉर्डन से इसराइल होते हुई इजिप्ट पहुंचा जा सकता था। हालांकि इजिप्ट पहुंचने के लिए ईरान से सऊदी अरब और फिर इजिप्ट जाया जा सकता है, लेकिन इसमें समुद्र के दो छोटे छोटे हिस्सों को पार करना होता है।
यहां का शहर इजिप्ट प्राचीन सभ्यताओं और अफ्रीका, अरब, रोमन आदि लोगों का मिलन स्थल है। यह प्राचीन विश्व का प्रमुख व्यापारिक और धार्मिक केंद्र था। मिस्र के भारत से गहरे संबंध रहे हैं। मान्यता है कि यादवों के गजपत, भूपद, अधिपद नाम के 3 भाई मिस्र में ही रहते थे। गजपद के अपने भाइयों से झगड़े के चलते उसने मिस्र छोड़कर अफगानिस्तान के पास एक गजपद नगर बसाया था। गजपद बहुत शक्तिशाली था।
ऋग्वेद के अनुसार वरुण देव सागर के सभी मार्गों के ज्ञाता हैं। ऋग्वेद में नौका द्वारा समुद्र पार करने के
कई उल्लेख मिलते हैं। एक सौ नाविकों द्वारा बड़े जहाज को खेने का उल्लेख भी मिलता है। ऋग्वेद में सागर मार्ग से व्यापार के साथ-साथ भारत के दोनों महासागरों (पूर्वी तथा पश्चिमी) का उल्लेख है जिन्हें आज बंगाल की खाड़ी तथा अरब सागर कहा जाता है। अथर्ववेद में ऐसी नौकाओं का उल्लेख है जो सुरक्षित, विस्तारित तथा आरामदायक भी थीं।
ऋग्वेद में सरस्वती नदी को ‘हिरण्यवर्तनी’ (सु्वर्ण मार्ग) तथा सिन्धु नदी को ‘हिरण्यमयी’ (स्वर्णमयी) कहा गया है। सरस्वती क्षेत्र से सुवर्ण धातु निकाला जाता था और उस का निर्यात होता था। इसके अतिरिक्त अन्य वस्तुओं का निर्यात भी होता था। भारत के लोग समुद्र के मार्ग से मिस्र के साथ इराक के माध्यम से व्यापार करते थे। तीसरी शताब्दी में भारतीय मलय देशों (मलाया) तथा हिन्द चीनी देशों को घोड़ों का निर्यात भी समुद्री मार्ग से करते थे।
भारतवासी जहाजों पर चढ़कर जलयुद्ध करते थे, यह ज्ञात वैदिक साहित्य में तुग्र ऋषि के उपाख्यान से, रामायण में कैवर्तों की कथा से तथा लोकसाहित्य में रघु की दिग्विजय से स्पष्ट हो जाती है। भारत में सिंधु, गंगा, सरस्वती और ब्रह्मपुत्र ऐसी नदियां हैं जिस पर पौराणिक काल में नौका, जहाज आदि के चलने का उल्लेख मिलता है।
कुछ विद्वानों का मत है कि भारत और शत्तेल अरब की खाड़ी तथा फरात (Euphrates) नदी पर बसे प्राचीन खल्द (Chaldea) देश के बीच ईसा से 3,000 वर्ष पूर्व जहाजों से आवागमन होता था। भारत के प्राचीनतम ग्रंथ ऋग्वेद में जहाज और समुद्रयात्रा के अनेक उल्लेख है (ऋक् 1. 25. 7, 1. 48. 3, 1. 56. 2, 7. 88. 3-4 इत्यादि)। याज्ञवल्क्य सहिता, मार्कंडेय तथा अन्य पुराणों में भी अनेक स्थलों पर जहाजों तथा समुद्रयात्रा संबंधित कथाएं और वार्ताएं हैं। मनुसंहिता में जहाज के यात्रियों से संबंधित नियमों का वर्णन है। ईसा से 3,000 वर्ष पूर्व का समय महाभारत का काल था।
अमेरिका का उल्लेख पुराणों में पाताललोक, नागलोक आदि कहकर बताया गया है। इस अंबरिष भी कहते थे। जैसे मेक्सिको को मक्षिका कहा जाता था। कहते हैं कि मेक्सिको के लोग भारतीय वंश के हैं। वे भारतीयों जैसी रोटी थापते हैं, पान, चूना, तमाखू आदि चबाते हैं। नववधू को ससुराल भेजने समय उनकी प्रथाएं, दंतकथाएं, उपदेश आदि भारतीयों जैसे ही होते हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका के एक ओर मेक्सिको है तो दूसरी ओर कनाडा। अब इस कनाडा नाम के बारे में कहा जाता है कि यह भारतीय ऋषि कणाद के नाम पर रखा गया था। यह बात डेरोथी चपलीन नाम के एक लेखक ने अपने ग्रंथ में उद्धत की थी। कनाडा के उत्तर में अलास्का नाम का एक क्षेत्र है। पुराणों अनुसार कुबेर की नगरी अलकापुरी हिमालय के उत्तर में थी। यह अलास्का अलका से ही प्रेरित जान पड़ता है।
अमेरिका में शिव, गणेश, नरसिंह आदि देवताओं की मूर्तियां तथा शिलालेख आदि का पाया जाने इस बात का सबसे बड़ा सबूत है कि प्रचीनकाल में अमेरिका में भारतीय लोगों का निवास था। इसके बारे में
विस्तार से वर्णन आपको भिक्षु चमनलाल द्वारा लिखित पुस्तक 'हिन्दू अमेरिका' में चित्रों सहित मिलेगा। दक्षिण अमेरिका में उरुग्वे करने एक क्षेत्र विशेष है जो विष्णु के एक नाम उरुगाव से प्रेरित है और इसी तरह ग्वाटेमाल को गौतमालय का अपभ्रंष माना जाता है। ब्यूनस आयरिश वास्तव में भुवनेश्वर से प्रेरित है। अर्जेंटीना को अर्जुनस्थान का अपभ्रंष माना जाता है।
पांडवों का स्थापति मय दानव था। विश्वकर्मा के साथ मिलकर इसने द्वारिका के निर्माण में सहयोग दिया था। इसी ने इंद्रप्रस्थ का निर्माण किया था। कहते हैं कि अमेरिका के प्रचीन खंडहर उसी के द्वारा निर्मित हैं। यही माया सभ्यता का जनक माना जाता है। इस सभ्यता का प्राचीन ग्रंथ है पोपोल वूह (popol vuh)। पोपोल वूह में सृष्टि उत्पत्ति के पूर्व की जो स्थिति वर्णित है कुछ कुछ ऐसी ही वेदों भी उल्लेखित है। उसी पोपोल वूह ग्रन्थ में अरण्यवासी यानि असुरों से देवों के संघर्ष का वर्णन उसी प्रकार से मिलता है जैसे कि वेदों में मिलता है।
सत्य अभियान
केन्या के सुप्रसिद्ध धावक "अबेल मुताई" आलंपिक प्रतियोगिता के अंतिम राउंड मे दौड़ते वक्त अंतिम लाइन से एक मीटर ही दूर थे और उनके सभी प्रतिस्पर्धी पीछे थे। अबेल ने स्वर्ण पदक लगभग जीत ही लिया था, इतने में कुछ गलतफहमी के कारण वे अंतिम रेखा समझकर एक मीटर पहले ही रुक गए। उनके पीछे आने वाले स्पेन के "इव्हान फर्नांडिस" के ध्यान में आया कि अंतिम रेखा समझ नहीं आने की वजह से वह पहले ही रुक गए। उसने चिल्लाकर अबेल को आगे जाने के लिए कहा लेकिन स्पेनिश नहीं समझने की वजह से वह नहीं हिला। आखिर में इव्हान ने उसे धकेलकर अंतिम रेखा तक पहुंचा दिया।
"इस कारण अबेल का प्रथम तथा इव्हान का दूसरा स्थान आया"
पत्रकारों ने इव्हान से पूछा "तुमने ऐसा क्यों किया ? मौका मिलने के बावजूद तुमने प्रथम क्रमांक क्यों गंवाया ?" इव्हान ने कहा "मेरा सपना है कि हम एक दिन ऐसी मानवजाति बनाएंगे जो एक दूसरे को मदद करेगी ना कि उसकी कमज़ोरी या भूल से फायदा उठाएगी" और मैंने प्रथम स्थान नहीं गंवाया
पत्रकार ने फिर कहा "लेकिन तुमने केनियन प्रतिस्पर्धी को धकेलकर आगे लाया।
इस पर इव्हान ने कहा "वह प्रथम था ही। यह प्रतियोगिता उसी की थी"पत्रकार ने फिर कहा, "लेकिन तुम स्वर्ण पदक जीत सकते थे।" इव्हान ने कहा, "उस जीतने का क्या अर्थ होता", मेरे पदक को सम्मान मिलता क्या मेरी मां ने मुझे क्या कहा होता संस्कार एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक आगे जाते रहते हैं , महत्वपूर्ण यह है कि मैंने अगली पीढ़ी को क्या दिया होता "दूसरों की दुर्बलता या अज्ञान का फायदा न उठाते हुए उनको मदद करने की सीख मेरी मां ने मुझे दी है"
गुलामी की मानसिकता से मुक्ति
क्या आप Henry Francis को जानते हैं? कभी आपने क्या Abide with Me गाना सुना है? घबराइए मत, यदि नहीं सुना है तो क्यूंकि Henry Francis एक स्कॉटिश अंग्रेज पादरी था जिसकी मृत्यु तपेदिक रोग से हुई थी और जब वो अपनी मृत्यु शैय्या पर था तो उसके लिए यह प्रार्थना Abide with Me गाई गई थी| कोई भी यह अपेक्षा नहीं करता की एक सामान्य भारतीय Henry Francis अथवा उसकी इस प्रार्थना को याद रखेगा| भारतीय कभी भी उससे अथवा उसकी प्रार्थना से अपना जुडाव महसूस नहीं कर सके लेकिन उसके इस प्रार्थना की धुन हमेशा से भारत के गणतंत्र दिवस के समापन के राजकीय कार्यक्रम Beating Retreat में बजाई जाती रही| यह धुन सदैव भारतीय सेना के बैंड द्वारा स्वाधीनता के बाद से बजाई जा रही थी| पिछले ७५ वर्षों से किसी भी सरकार को इस गुलामी के प्रतिक को हटाने का विचार मन में नहीं आया जिसका कोई सम्बन्ध भारतीय मानस से नहीं था| स्वाधीन भारत को ७५ वर्ष का एक लम्बा इंतजार करना पड़ा यह जानने में की Abide with Me का कोई भी स्थान किसी भी भारतीय के ह्रदय में नहीं है| यह तो वर्तमान भारत की सरकार है जिसने इसको हटाने का निर्णय कर इसकी जगह सभी भारतियों के ह्रदय को स्पंदन करने वाले गीत ‘ए मेरे वतन के लोगों जरा आँख में भर लो पानी’ की धुन से किया जिसके गीतकार स्वर्गीय प्रदीप जी थे तथा जो गीत दशकों से भारतीय मानस पर छाया हुआ था| इस निर्णय के खिलाफ भारत के सेक्युलर दलों ने आवाज उठाई मानो देशभक्ति के प्रसिद्ध गीत की धुन बजाना गलत निर्णय था, यह उनके भारत के स्वत्व से कटे होने का ही प्रमाण था| वास्तव में १९४७ में हमने स्वाधीनता प्राप्त की
थी, स्वतंत्रता नहीं| स्वाधीनता एवं स्वतंत्रता- ये दोनों ही शब्द सामान्यतः समानार्थी मान कर हम सब प्रयोग करते हैं| परन्तु यदि थोडा गहराई से विचार करें तो ध्यान में आता है की दोनों के अर्थ में भिन्नता है| स्वाधीनता शब्द बना है ‘स्व व अधीन’ से यानि अपने लोगों के अधीन| इसी प्रकार स्वतंत्र शब्द बना है ‘स्व व तंत्र’ से यानि अपना तंत्र| इसकी और व्याख्या करी तो अपना तंत्र यानि अपने विचारों पर आधारित तंत्र|
१९४७ से पूर्व के १००० वर्षों का हमारा यानि ‘स्व’ का परकीयों से संघर्ष का कालखंड रहा है|मुस्लिम आक्रमण कालखंड में हम लगत्रार संघर्ष करते रहे, कहीं पराजित हुए तो पुनः जीतते भी रहे|इस दौरान मुस्लिम आक्रमणकारियों ने विजय प्राप्त कर कुछ स्थानों पर अपना राज्य भी स्थापित किया, पर उनसे भी लगातार संघर्ष चलता रहा|उन्होंने भारतवासियों का मतान्तरण भी किया और शासन भी, लेकिन वे हमारे सोचने के तरीकों पर कभी भी कब्ज़ा नहीं कर पाए| १८ वीं शताब्दी से यूरोपियों के सतत आक्रमण भारती पर शुरू हुए| १७५७ के प्लासी के युद्ध की विजय से अंग्रेजों का प्रभाव भारत में बढ़ता गया जो अंततः भारत के काफी बड़े भूभाग पर उनके प्रत्यक्ष शासन के रूप में परिवर्तित हुआ| अंग्रेज समझ गए थे केवल कुछ हजार सैनिकों के बल पर वे अपना स्थायी शासन नहीं स्थापित कर सकते|अतः उन्होंने भारत को जानने, समझने के प्रयास शुरू कर दिए| इसी कड़ी में सर्वप्रथम १७६७ इसवी में Survey of India की स्थापना कर उसे भारतीय सम्पदा का भिन्न भिन्न प्रकार से सर्वे करने का काम सौंपा, जैसे- Topographical, Geographical, Geological, Anthropological, Social, Religious, Education, Linguistic, Environmental, Agricultural, Social आदि| साथ ही जनवरी १७८४ में Royal Asiatic Society of India ki स्थापना William Jones के नेतृत्व में की और भारत के सभी साहित्य, ग्रंथों, परम्पराओं का भी अध्ययन शुरू कर दिया| इस संस्था में १८२८ तक किसी गैर यूरोपियों को प्रवेश नहीं दिया गया| इसके कुछ वर्षीं पश्चात १८०६ में James Mill भारत का इतिहास लिखने का काम सौंपा जो उसने बिना भारत आये ही पूरा किया| १८३५ इसवी में उन्होंने English education Act पारित किया तथा यह सुनिश्चित किया की भारत में केवल अंग्रेजी शिक्षा को ही आर्थिक सहायता एवं प्रोत्साहन दिया जायेगा- भारत की गुरुकुल शिक्षा व्यवस्था को हतोत्साहित किया जाये ताकि भारत में ऐसा एक प्रभावी वर्ग खड़ा हो सके जो शक्ल सूरत व जनम से तो भारतीय हो परन्तु व्यवहार, खान-पान शिक्षा एवं सोचने की दृष्टि से पूर्णतया अंग्रेज हो| वस्तुतः अंग्रेजों ने जो कार्यपद्धति अपनाई वह थी- सर्वप्रथम तथ्यों का अभिलेखीकरण( Documentation) तत्पश्चात उनका अध्ययन , फिर लेखन तथा निष्कर्ष व तदनुरूप कार्ययोजना बना कर क्रियान्वन|
तो १९४७ से पूर्व हम पर अंग्रेजों का शासन था जो हमारे लिए परकीय थे अर्थात हम पराधीन
थे| अंग्रजों को हटा कर उनकी जगह अपने लोगों का अस्तु भारतियों का शासन लाना यानि स्वाधीन होना था| स्वाभाविक रूप से यह मान लिया गया की जब देश स्वाधीन होगा, अपने लोगों का शासन आएगा तब सारी व्यवस्थायें व तंत्र भी ‘स्व’ के विचार पर आधारित होंगे, यानि देश स्वतंत्र हो जायेगा| परन्तु गहराई से जब विचार करते हैं तो ध्यान में आता है कि १५ अगस्त १९४७ को हम स्वाधीन तो हुए पर सही अर्थों में स्वतंत्र नहीं- हमारे ऊपर प्रभुत्व एवं शासन करने वाला वर्ग काफी बड़ी संख्या में Indian by Birth But British by Taste की मानसिकता का बन चूका था| पश्चिमी श्रेष्ठता को स्थापित करनेवाले एवं माननेवाले तंत्र ने पुरे देश को अपने मकडजाल में जकड़ा हुआ था| उस ‘पर’ आधारित तंत्र से १९४७ के बाद की हमारी यात्रा में भारत के ‘स्व’ का संघर्ष भी सतत चलता आ रहा है| भारत की स्वाधीनता के इस अमृत काल में हमारी आगे की यात्रा सही अर्थों में स्वाधीनता से स्वतंत्रता की ओर की होनी चाहिए|
किसी भी पराधीन देश के लिए स्वतंत्रता के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए स्वाधीनता एक अनिवार्य पूर्व शर्त होती है| स्वाधीनता एवं स्वतंत्रता में सामान रूप से आने वाला यह शब्द ‘स्व’, यह अत्यंत महत्वपूर्ण है| किसी भी देश के सन्दर्भ में ‘स्व’ अर्थात उस देश की पहचान है| ‘स्व’ में देश का इतिहास, महापुरुष, मान्यताएं, परम्पर्यें, आकांक्षायें- स्वप्न इत्यादि के साथ साथ उस देश का तत्व ज्ञान, विचार्प्रनाली, जीवन दृष्टि, विश्वदृष्टि, निसर्ग दृष्टि इत्यादि भी समाहित हैं| भारत की दृष्टि से इन सबका मूल आधार ‘अध्यात्म’ है| स्वामी विवेकानंद जी ने भी कहा है- “ Every Country has a destiny, a role she has to play in this world. India’s destiny in this context is Spirituality.”
जब हम स्वाधीनता से स्वतंत्रता की ओर बढ़ते हैं तो इसका प्रथम चरण तो वैचारिक, मानसिक एवं बौद्धिक गुलामी से मुक्तता ही है क्यूंकि तभी हम सही अर्थों में अपने ‘स्व’ को पहचान सकेंगे| स्वाधीनता के बाद स्वतंत्रता की यह स्वाभाविक प्रक्रिया भारत में प्रभावी रूप से हो न सकी| इसका मुख्य कारण है की हम लोग अपने ‘स्व’ को भूल गए अर्थात अपने मूल इतिहास, अपने महापुरुष- उनके जीवन व ज्ञान के प्रत्येक क्षेत्र में उनके योगदान को भूल गए और इस कारण उनके प्रति गर्व का भाव, सामान आंकाक्षा, तत्वज्ञान, विचार प्रणाली , जीवन- विश्व- निसर्ग दृष्टि, अच्छे- बुरे की व शत्रु- मित्र की समान संकल्पना इत्यादि सबका विस्मरण हमें हो गया| संक्षेप में कहें, तो हम अपनी संस्कृति भूल कर परानुकरण करने में ही श्रेष्ठता मानने लगे| यह सब कुटिल अंग्रेजों के १५०-२०० वर्षों के शासन में हो गया, जो अरब- तुर्क- मंगोल- मुग़ल आदि के ५००- ६०० वर्षों के शासन के दौरान भी न हो सका था| इसका मुख्य कारण अंग्रेजी शिक्षा पद्धति व उनके तंत्र द्वारा फैलाया गया वैचारिक संभ्रम ही है| हम वैचारिक- मानसिक- बौद्धिक गुलाम बन गए यानि हमारी बुद्धि का परतंत्रीकरण हो गया| हम Colonized Mindset वाले बन गए| अतः अब सबसे पहले हमें
इसी वैचारिक- मानसिक- बौद्धिक गुलामी को ही हटाना होगा – Decolonization of Mind, करना होगा| इसके अगले चरण में Recultarization of Mind का हमारा प्रयास होना चाहिए|
Reculturization of Mind में सर्वप्रथम हमें कुछ बातों पर ध्यान दे कर, मन में अच्छी तरह बैठा कर उसको प्रचारित करना व गर्व करना होगा, जैसे -
परकीय शासन के पूरे कालखंड में आक्रामकों का शासन भारत के समस्त भूभाग पर कभी नहीं रहा|
आक्रामकों को सारे देश में ( ग्राम, नगर, वन क्षेत्र, पहाड़ी क्षेत्र आदि सभी क्षेत्रों में) सदैव कड़े संघर्ष का सामना करना पड़ा, उनके शासन को प्रस्थापित होने के समय भी तथा शासन स्थापित होने के बाद भी अर्थात हमारा संघर्ष सतत व सर्वव्यापी रहा|
इस सतत चलने वाले देशव्यापी संघर्ष में सारे समाज की भागीदारी रही|सभी जाति, मत- पंथ, भाषा, प्रान्त, वृत्ति, व्यवसाय आदि के सभी आयु वर्गों तथा आर्थिक स्थिति वाले सभी स्त्री- पुरुषों की प्रत्यक्ष- अप्रत्यक्ष भागीदारी इन संघर्षों में रही है यानि हमारा सतत, सर्वव्यापी संघर्ष सर्वस्पर्शी भी रहा|
स्वाधीनता प्राप्ति के सब प्रकार के प्रयास देश व विदेश में किये गए ( सशस्त्र, सैन्य गठन, अहिंसक, असहयोग, बौद्धिक आदि)
आक्रामकों द्वारा बलपूर्वक मतान्तरण करते हुए हमारी सांस्कृतिक पहचान को समाप्त करने के सतत प्रयासों के बावजूद हम अपनी सांस्कृतिक पहचान को सुरक्षित रखते हुए स्वाधीन हुए, जबकि विश्व के अनेकों देश ऐसा नहीं कर सके हैं|
इस वैचारिक गुलामी के कुछ नित्य जीवन के छोटे लगने वाले उदाहरणों को भी हमें देखना पड़ेगा क्यूंकि उक्त उदाहरणों से ही मानसिकता बनती ह कहा भी गया है- छोटो छोटी बातों पर ध्यान देने से ही बड़े बड़े कार्य संपादित हो जाते हैं|
वैचारिक संभ्रम के कारण आज भी हम में से अधिकांश लोग जनजातीय समाज को आदिवासी (यानि यहाँ के मूलनिवासी) कह कर स्वयं को भारत के मूल निवासी नहीं हैं, ऐसा अपने अवचेतन मस्तिष्क में बैठा लेते हैं|
धर्म व पंथ ( Religion) को समानार्थी मानने के कारण ही हम Secular शब्द को धर्मनिरपेक्ष कहकर ‘धर्म’ की व्यापक संकल्पना को संकुचित के लेते हैं|
‘राष्ट्र’- यह भू- सांस्कृतिक संकल्पना है तथा नेशन (Nation)- यह भू- राजनितिक संकल्पना है, अतः दोनों के अर्थ भिन्न हैं, पर उन्हें समानार्थी बता कर अंग्रेज हमें यह समझाने में सफल हो गए कि भारत कभी एक राष्ट्र नहीं रहा और वे उसे एक राष्ट्र बना रहे हैं| तभी तो हमारे देश के एक प्रमुख
राजनीतिज्ञ रहे व्यक्ति ने अपनी एक पुस्तक में लिखा- We are a Nation in making- यानि कारवां आता गया, काफिला बनता गया
कोई छात्र यदि त्रिकोण बना कर उसे अंग्रेजी में ABC लिखता है तो हिंदी में अ ब स के रूप में उसका अनुवाद करता है| ABC अंग्रेजी भाषा का प्रथम तीन अक्षर है तो हिंदी में यह क ख ग होना चाहिए|
हमें उनतालीस, बैंगनी अथवा टखना समझ में नहींअ आता परन्तु Thirty Nine, Violet व Ankle तुरंत समझ जाते हैं|
ज्ञान- विज्ञान के क्षेत्र में हम भारतियों के योगदान को नहीं जानते बल्कि विज्ञान तो पश्चिम की ही देन है यह मान बैठे हैं तो इसका कारण हमारी अंग्रेजी शिक्षा पद्धिति एवं उनके द्वारा फैलाया गया वैचारिक संभ्रम ही है|
अंग्रेजों को कुछ भारतीय शब्दों का सही उच्चारण करना नहीं आता था, अतः वे गलत तरीके से उच्चारण कर उसके अनुसार उस शब्द की स्पेल्लिंग लिखते थे| हम भी उनकी नक़ल करते हुए गलत उच्चारण एवं स्पेल्लिंग लिखने लगे- उदाहरण – अशोक शब्द को अंग्रेज अशोका कहते हैं तथा उसकी स्पेलिंग Ashoka लिखते हैं और उनकी देखा देखी हम भी अशोका बोलने व लिखने लगे|
हम में से अधिकांश बंधू भगिनी अपना जन्मदिन, विवाह दिन इत्यादि को अंग्रेजी महीने व तारीख के अनुसार मानते हैं न की भारतीय मास व तिथि के अनुसार, बहुतों को तो यह भारतीय पंचांग के अनुसार याद भी नहीं होगा|भारत में अधिकांश लोग अभी भी अपना नया साल १ जनवरी को मनाते हैं न की भारतीय पंचांग के अनुसार चैत्र शुक्ल प्रतिपदा या अपनी परंपरा के अनुसार|
राम राम कह कर अभिवादन करनेवाला अनपढ़ या गंवार मन जाता है, तो हाय या हैल्लो कहने वाला पढ़ा लिखा| यही व्यवहार व मानसिकता भारतीय परिधानों को पहनने वालों के साथ भी दिखती है- धोती- कुरता या पायजामा- कुरता पहनने वाला गाँव का अनपढ़ व पैंट- शर्ट, सूट पहनाने वाला प्रगतिशील पढ़ा लिखा माना जाता है|पश्चिमीकरण ही आधुनिकीकरण है, यह मान लिया गया है|
कुछ देशों के समूह को उनकी भौगौलिक स्थिति के कारण विशिष्ट नाम से पुकारा जाता है, जैसे सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात, कुवैत, ओमान आदि खाड़ी के देशों को यूरोप वालों ने Middle East नाम दिया, क्यूंकि ये देश यूरोप के पूर्व दिशा में हैं लेकित सुदूर पूर्व में नहीं| उनकी देखा- देखी हम भी इन देशों को Middle East बोलने लिखने लगे जबकि ये देश भारत के पूर्व में नहीं पश्चिम दिशा में हैं|
किसी की मृत्यु पर शोक सन्देश लिखते, भेजते समय हमारे कई बंधू- भगिनी RIP लिखते हैं, जबकि उसका अर्थ होता है Rest In Peace | पश्चिम की मान्यता के अनुसार मृत्यु के बाद कब्र में उन्हें दफना दिया जाता है क्यूंकि वे पुनर्जनम को नहीं मानते हैं तथा Day of Judgementके दिन तक, जब तक उनके बारे में भगवान निर्णय नहीं करता है उन्हें उसी कब्र में रहना है| उस समय तक वे शांतिपूर्वक वहां रहे इसीलिए ऐसी प्रथा पश्चिम में है की वे कहते हैं RIP|हिन्दू मान्यता के अनुसार शारीर की मृत्यु होने पर उसे अग्नि में जला करपर अथवा किसी और तरीके से पंचतत्वों में विलीन करा दिया जाता है तथा पुण्यात्मा पुनर्जनम लेती है अपने कर्मों के आधार पर हालाँकि अंतिम लक्ष्य तो मोक्ष ही है| अतः हमारी परंपरा में तो कहा जाता है की परमपिता उस पुण्यात्मा को सद्गति प्रदान करे न कि RIP|
अमेरिका के चलचित्र केंद्र को Hollywood नाम से जाना जाता है| भारत में हम उनकी नक़ल करते हुए मुंबई की फिल्म इंडस्ट्री को Bollywood, पंजाब की Pollywood, आंध्र की Tollywood, केरल की Mollywood और भोजपुरी फिल्म इंडस्ट्री को Bhojiwood कहा जाने लगा है |
११ सितम्बर २००१ को अल कायदा के आतंकवादियों द्वारा Newyork शहर के Twin Tower पर हमला किया गया जिसमें सैकड़ों लोगों की जान गयी| इस घटना को वे 9/11 के नाम से भी जानते हैं क्यूंकि उनके यहाँ पहले महीना , बाद में तारीख लिखने की परंपरा है| अतः सितम्बर महीने (9वां महीना) की ११वीं तारीख को यह घटना घटी| भारत में ११ जुलाई २००६ को मुंबई के लोकल ट्रेनों में एक के बाद एक अनेक बम धमाके हुए, उसमें भी सैकड़ों की जान गयी| अमेरिका की नक़ल करते हुए हममें से अनेक इस घटना को 7/11 कहने लगे, जबकि हमारी परंपरा में पहले तारीख और बाद में महीना आता है| अतः वास्तव में इसे यदि कहना है तो 11/7 कहना उचित होगा|
इस तरह के अनेकों छोटे छोटे दिखने वाले व्यवहार के उदाहरण देखें जा सकते हैं| इनके बारे में सतत सावधानी रखी तो मन- मस्तिष्क का Decolonization होने में सहायता होती है| तत्पश्चात बड़ी बड़ी बातों के सम्बन्ध में सही प्रकार से सोचने हेतु मन- मस्तिष्क का Reculturization होना भी आवश्यक है| इस दृष्टि से अपने ‘स्व’ को भली- भांति जानना, समझना और मानना तदुनुरूप व्यवहार करना पड़ेगा, तभी हम अपनी संस्कृति से, ‘स्व’ से पुनः अच्छी तरह जुड़ पाएंगे|
भारत के पूर्व राष्ट्रपति डॉ अब्दुल कलाम जी कहते थे- “भारत को विकसित देशों की श्रेणी में लाना है, ऐसा भारत जिसकी जडें हमारी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत में होगी|” इस सबके लिए हमें मुख्यतः मानसिक व बौद्धिक धरातल पर प्रयास करने होंगे| इन प्रयासों में कई बार अपनों से, तो
कई बार स्वयं से भी लड़ना पड़ेगा| यह बात परायों से लड़ने की तुलना में अधिक कठिन होती है|
इस लड़ाई का पहला चरण है कि अपने स्वयं को मानसिक- वैचारिक-बौद्धिक गुलामी से मुक्त करना तथा अपने स्वयं के ‘स्व’ को जानना, मानना और उस पर श्रद्धा रखना| इसके बाद अपने परिवारजन और निकट के प्रभाव क्षेत्र में आने वाले लोगों को भी ऐसा बनाने के प्रयास करने होंगे|
हमारे सारे तंत्र का आधार भारत का ‘स्व’ हो, इस हेतु सम्बंधित तंत्रों के तज्ञ लोगों को उनके विषय से सम्बंधित तंत्र का भारत का चिंतन क्या है, यह बात समझने हेतु भारत के चिंतकों द्वारा लिखित साहित्य, परम्पराओं का गहराई से अध्ययनं करना होगा| साथ ही, भारत के इतिहास में उस प्रकार का तंत्र पहले कैसे, किस प्रकार से काम करता था- यह भी समझना होगा| इसके अलावा अन्यान्य देशों में आज उस तंत्र में किस प्रकार का व्यवहार हो रहा है, उसे भी समझना पड़ेगा| इस सारी जानकारी के आधार पर भारत की वर्तमान परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए भारत की बातों को कालसुसंगत और विदेश की अच्छी बातों को देशसुसंगत बनाते हुए इस बौद्धिक- मानसिक गुलामी के चक्र से हमें बहार निकलना होगा| भारत के चिंतन में सदैव विश्व कल्याण, सम्पूर्ण चर- चराचर जगत के कल्याण की बात है, अतः भारत के कल्याण में विश्व का कल्याण ही है|विश्व का इतिहास देखेंगे तो ध्यान में आएगा कि समृद्ध, शक्तिशाली, स्वाधीन व स्वतंत्र भारत सदैव विश्वगुरु रहा है और इस कारण अन्य देशों व समाज का सदैव भला ही हुआ है| जबकि अन्य देश जब भी शक्तिशाली हुए तो वे विश्वविजेता बने या बनाने के प्रयास किये औरर इसके कारणअन्य देशों को कष्ट हुए या हो रहे हैं|विश्व के अनेक बुद्धिजीवी आज भारत से अपेक्षा कर रहे हैं- प्रसिद्ध समाजशास्त्री व अमेरिकी लेखक, चिन्तक Samuel Huttington अपनी पुस्तक Clash of Civilizations में लिखते हैं-‘India should become the world super power, not for herself but for the sake of peace to prevail and mankind to survive.’अमेरिका के ही उपराष्ट्रपति रहे व प्रसिद्ध पर्यावरणविद Al Gore कहते हैं- ‘We have been on the wrong track for the last 300 years. It’s time to Rethink and turn to East( Bharat) for guidance.’ हम भारतवासी अपने इस वैश्विक लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए स्वधनिता केइस अमृत काल में सन्नद्ध होकर संकल्पित हैंही|किसी कवि ने सही ही कहा है-
शुद्ध ह्रदय की प्याली में, विश्वास दीप निष्कंप जला कर,कोटि कोटि पग बढे जा रहे, तिल तिल जीवन दीप गला कर
जब तक ध्येय न पूरा होगा, तब तक पग की गति न रुकेगी,आज कहे चाहे जो दुनिया, कल को झुके बिना न रहेगी ||
श्री तपन कुमार सह क्षेत्र प्रचार प्रमुख पश्चिम उत्तर प्रदेश क्षेत्र राष्ट्रिय स्वयंसेवक संघ
संस्कार
मोहन बेटा ! मैं तुम्हारे काका के घर जा रहा हूँ . क्यों पिताजी ? और तुम आजकल काका के घर बहुत जा रहे हो ...? तुम्हारा मन मान रहा हो तो चले जाओ ... पिताजी ! लो ये पैसे रख लो , तुम्हारे काम आ जाएंगे .
पिताजी का मन भर आया . उन्हें आज अपने बेटे को दिए गए संस्कार लौटते नजर आ रहे थे .
जब मोहन स्कूल जाता था ... वह पिताजी से जेब खर्च लेने में हमेशा हिचकता था , क्यों कि घर की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी . पिताजी मजदूरी करके बड़ी मुश्किल से घर चला पाते थे ... पर माँ फिर भी उसकी जेब में कुछ सिक्के डाल देती थी ... जबकि वह बार-बार मना करता था .
मोहन की पत्नी का स्वभाव भी उसके पिताजी की तरफ कुछ खास अच्छा नहीं था . वह रोज पिताजी की आदतों के बारे में कहासुनी करती थी ... उसे ये बडों से टोका टाकी पसन्द नही थी ... बच्चे भी दादा के कमरे में नहीं जाते , मोहन को भी देर से आने के कारण बात करने का समय नहीं मिलता .
एक दिन पिताजी का पीछा किया ... आखिर पिताजी को काका के घर जाने की इतनी जल्दी क्यों रहती है ? वह यह देख कर हैरान रह गया कि पिताजी तो काका के घर जाते ही नहीं हैं ! !!
वह तो स्टेशन पर एकान्त में शून्य मनस्क एक पेड़ के सहारे घंटों बैठे रहते थे . तभी पास खड़े एक बजुर्ग , जो यह सब देख रहे थे , उन्होंने कहा ... बेटा...! क्या देख रहे हो ?
जी....! वो .
अच्छा , तुम उस बूढ़े आदमी को देख रहे हो....? वो यहाँ अक्सर आते हैं और घंटों पेड़ तले बैठ कर सांझ ढले अपने घर लौट जाते हैं . किसी अच्छे सभ्रांत घर के लगते हैं .
बेटा ...! ऐसे एक नहीं अनेक बुजुर्ग माएँ बुजुर्ग पिता तुम्हें यहाँ आसपास मिल जाएंगे !जी , मगर क्यों ? बेटा ...! जब घर में बड़े बुजुर्गों को प्यार नहीं मिलता.... उन्हें बहुत अकेलापन महसूस होता है , तो वे यहाँ वहाँ बैठ कर अपना समय काटा करते हैं !
वैसे क्या तुम्हें पता है.... बुढ़ापे में इन्सान का मन बिल्कुल बच्चे जैसा हो जाता है . उस समय उन्हें अधिक प्यार और सम्मान की जरूरत पड़ती है , पर परिवार के सदस्य इस बात को समझ नहीं पाते .वो यही समझते हैं इन्होंने अपनी जिंदगी जी ली है फिर उन्हें अकेला छोड देते हैं . कहीं साथ ले जाने से कतराते हैं . बात करना तो दूर अक्सर उनकी राय भी उन्हें कड़वी लगती है . जब कि वही बुजुर्ग अपने बच्चों को अपने अनुभवों से आनेवाले संकटों और परेशानियों से बचाने के लिए सटीक सलाह देते है .
घर लौट कर मोहन ने किसी से कुछ नहीं कहा . जब पिताजी लौटे , मोहन घर के सभी सदस्यों को देखता रहा . किसी को भी पिताजी की चिन्ता नहीं थी . पिताजी से कोई बात नहीं करता , कोई हंसता खेलता नहीं था . जैसे पिताजी का घर में कोई अस्तित्व ही न हो ! ऐसे परिवार में पत्नी बच्चे सभी पिताजी को इग्नोर करते हुए दिखे !
सबको राह दिखाने के लिऐ आखिर मोहन ने भी अपनी पत्नी और बच्चों से बोलना बन्द कर दिया ... वो काम पर जाता और वापस आता किसी से कोई बातचीत नही ...! बच्चे पत्नी बोलने की कोशिश भी करते , तो वह भी इग्नोर कर काम मे डूबे रहने का नाटक करता ! !! तीन दिन मे सभी परेशान हो उठे... पत्नी , बच्चे इस उदासी का कारण जानना चाहते थे .
मोहन ने अपने परिवार को अपने पास बिठाया . उन्हें प्यार से समझाया कि मैंने तुम से चार दिन बात नहीं की तो तुम कितने परेशान हो गए ? अब सोचो तुम पिताजी के साथ ऐसा व्यवहार करके उन्हें कितना दुख दे रहे हो ? मेरे पिताजी मुझे जान से प्यारे हैं . जैसे तुम्हारी माँ ! और फिर पिताजी के अकेले स्टेशन जाकर घंटों बैठकर रोने की बात छुपा गया . सभी को अपने बुरे व्यवहार का खेद था .
उस दिन जैसे ही पिताजी शाम को घर लौटे , तीनों बच्चे उनसे चिपट गए ...! दादा जी ! आज हम आपके पास बैठेंगे...! कोई किस्सा कहानी सुनाओ ना .पिताजी की आँखें भीग गई . वो बच्चों को लिपटकर उन्हें प्यार करने लगे . और फिर जो किस्से कहानियों का दौर शुरू हुआ वो घंटों चला . इस बीच मोहन की पत्नी उनके लिए फल तो कभी चाय नमकीन लेकर आती . पिताजी बच्चों और मोहन के साथ स्वयं भी खाते और बच्चों को भी खिलाते . अब घर का माहौल पूरी तरह बदल गया था ! !!
एक दिन मोहन बोला , पिताजी...! क्या बात है ! आजकल काका के घर नहीं जा रहे हो ...? नहीं बेटा ! अब तो अपना घर ही स्वर्ग लगता है! !!आज सभी में तो नहीं लेकिन अधिकांश परिवारों के बुजुर्गों की यही कहानी है . बहुधा आस पास के बगीचों में , बस अड्डे पर , नजदीकी रेल्वे स्टेशन पर परिवार से तिरस्कृत भरे पूरे परिवार में एकाकी जीवन बिताते हुए ऐसे कई बुजुर्ग देखने को मिल जाएंगे .आप भी कभी न कभी अवश्य बूढ़े होंगे ही.आज नहीं तो कुछ वर्षों बाद होंगे . जीवन का सबसे बड़ा संकट है बुढ़ापा ! घर के बुजुर्ग ऐसे बूढ़े वृक्ष हैं , जो बेशक फल न देते हों पर छाँव तो देते ही हैं ! अपना बुढापा खुशहाल बनाने के लिए बुजुर्गों को अकेलापन महसूस न होने दीजिये , उनका सम्मान भले ही न कर पाएँ , पर उन्हें तिरस्कृत मत कीजिये . उनका खयाल रखिये।
खामोश दीवार
नोरेन शर्मा
"क्या? हार्ट अटैक...!क्या बोल रहे हो रवि..! तीन दिन पहले ही तो...! हे भगवान"
शुभि जल्दी जल्दी बाहर ऑटो लेने भागी।
शुभम के घर के बाहर भीड़ देख एक क्षण को रुकी; हिम्मत बटोर भीतर आई तो शुभम की पत्नी और दस वर्षीया बेटी एक दूजे को थामे सफ़ेद चादर में लिपटी शुभम की देह के पास बैठी हुई थीं।रीमा की नज़र शुभि पर पड़ी ; क्या था "कहा अनकहा" दोनों की दृष्टि में जो एक दूजे को बयां कर रहीं थीं? रीमा ने पास आकर बैठने का संकेत किया। शुभि सहमी सी रीमा के निकट बैठ गई। कितनी बार शुभि को सौतन कहकर शुभम से लड़ाई की, चीखी,चिल्लाई,हाथ जोड़े,मिन्नतें की..!दो दिन पहले ही तो बोले थे, "सारे संबंध तोड़ आया हूं,निक्की की क़सम, शुभि से कभी नहीं मिलूंगा।"
क्या जानती थी रीमा...दो दिन शुभि से मिले बगैर न रह सकोगे..!!!अपने खयालों में गुम रीमा ने देखा शुभि ने रीमा के कंधे पर सिर टिका दिया।बिना किसी आवाज़ के आंसुओं की झड़ी रीमा का कुर्ता भिगो रही थी। रीमा ने नज़र भर शुभि को देखा, कितनी प्यारी लड़की है...पर, पर है तो मेरे पति की प्रेमिका..!नहीं नहीं अब तो कुछ भी नहीं..!
"जानती हो दी..! शुभम आपको कितना चाहते थे!" पहली बार शुभि ने रीमा के सामने ज़बान खोली।
दोनों शुभम के चेहरे पर आँखें गढ़ाए अपनी चाहत की दीवार को जो अब खामोश हो चुकी थी, जीभर देखना चाहती थीं। इन पलों में न वे सौतनें थीं, न ही पत्नी और प्रेमिका..! केवल औरत थीं, जिन्हें इस खामोश दीवार ने थामा हुआ था, जिसके ढहते ही उसकी टेक से लगीं ये लताएं भी भरभरा के तहस नहस हो चुकी थीं।
विकाशशील भारत ओर समस्या
महंगाई, बेरोज़गारी और ग़रीबी - ये मुद्दे इस धरती पर कभी सॉल्व नहीं हो सकते ,क्योंकि आम लोगों के लिए इसका कोई एब्सोल्यूट पैरामीटर नहीं है। यह एक फीलिंग है। पहले जिसके पैरों में चप्पल नहीं होती थी, पहनने के लिए क़ायदे से एक जोड़ी कपड़ा भी नहीं होता था, वह गरीब होता था, जबकि आज जिसके पास केवल एक दो जोड़ी चप्पल है और महज़ दो तीन जोड़ी अच्छा कपड़ा है, वह भी गरीब है। इसी तरह पहले जिसके पास मकान नहीं था अथवा झोपड़ी में रहता था वह गरीब था, अब जिसके पास महज़ एक दो पक्के कमरे हैं, वह भी गरीब है। इसी तरह महंगाई है, समय के साथ रुपये का अवमूल्यन होना तय है। पहले दिन भर की मज़दूरी के व्यक्ति 65-100 रुपये देता था और आज उसी मज़दूरी का 500-700 देता है। उसी रेसियो में सब्ज़ियों के, फलों के, पेट्रोलियम के दाम भी बढ़ेंगे, लेकिन मनुष्य की प्रवृत्ति है कि उसके पास जो आता है, उसे वह कम लगता है, जबकि जो जाता है वह ज़्यादा लगता है। इसलिए आप कभी भी किसी से पूछेंगे तो कहेगा कि बहुत महंगाई है, क्योंकि आम आदमी के लिए महंगाई का कोई पैरामीटर नहीं है, वह एक फीलिंग है। और मनुष्य को हमेशा वह चीज ज़्यादा समझ आती है, जो उसके पास से जाती है। और आसान उदाहरण से समझें तो किसानों को लगता है कि उनको अनाज और सब्ज़ियों का सही दाम नहीं मिल रहा है, जबकि उसी समय उसको ख़रीदने वाले को लगता है कि यह बहुत महँगा है।
इसी तरह रोज़गार है। यदि कोई व्यक्ति ऑफिस में चपरासी है तो वह अपने क्लर्क को देखकर असंतुष्ट रहेगा, क्लर्क अपने ऑफिसर को देखकर, ऑफिसर अपने मालिक को देखकर। सबको लगता है कि
ऊपर बैठे व्यक्ति को उसकी योग्यता से अधिक मिल रहा है, जबकि मुझे मेरी योग्यता से कम। इसीलिए कभी भी आप किसी से उसकी नौकरी, रोज़गार के बारे में पूछेंगे तो वह सदैव असंतुष्ट रहेगा। जबकि मार्केट सबको उनकी योग्यता के अनुसार ऐडजस्ट करता है। पर अपने को कोई दूसरे से अयोग्य क्यों माने? इस दुनिया में पूरी लेफ्ट आइडियोलॉजी इसी फीलिंग पर चलती है। चूँकि आम आदमी के पास महंगाई, बेरोज़गारी और ग़रीबी को समझने के लिए कोई साधारण पैरामीटर नहीं है, इसलिए इस असुरक्षा को उभारना आसान है।
जैसे भारत में 80% ग्रेजुएट अपने विषय का 20% नालेज भी नहीं रखते, लेकिन वे चाहते हैं कि मार्केट उन्हें ग्रेजुएट के रूप में स्वीकारे। हज़ारों डिग्री कॉलेज खोलकर डिग्रियाँ बाँटी जा रही हैं, ऐसे विषयों की जिससे स्किल में कोई ग्रोथ नहीं होने वाला पर ग्रेजुएट होने का अहंकार ज़रूर उत्पन्न कर देता है। बहुत से ग्रेजुएट ऐसे हैं जिन्हें अपने विषयों के भी नाम नहीं मालूम, पर मार्केट में वैल्यू बराबरी से चाहते हैं।
फिर सरकार का महंगाई, बेरोज़गारी और नौकरी में क्या रोल है? सरकार का केवल इतना काम है कि मुद्रा के अवमूल्यन से अधिक ज़रूरी चीजों का दाम न बढ़े। यदि वस्तु का दाम दबाव बनाकर वहीं रखा गया और अवमूल्यन ज़्यादा हुआ, तो आगे चलकर उसके उत्पादक ग़ायब हो जाएँगे। इसी तरह डिग्री कॉलेजों की संख्या घटाई जाय और स्किल डेवलपमेंट के संस्थान बढ़ाये जाएँ।
सरकार का काम नौकरी देना नहीं है, सरकार का काम रोज़गार लायक़ माहौल तैयार करना भर है। जिसके अंतर्गत माफियाओं का सफ़ाया, लाइसेंस राज का अंत, रोज़गार के लिए कम ब्याज पर लोन, कोई भी व्यापार करने के लिए सिंगल विंडो सिस्टम की व्यवस्था आदि आता है। यदि कोई ये कहता है कि गुड गवर्नेंस के बिना वह नौकरी और रोज़गार के अवसर बढ़ा सकता है तो वह झूठ बोल रहा है।
इसी तरह ग़रीबी के विषय में सरकार का केवल इतना काम है कि कोई भी गरीब भूखा न मरे, किसी गरीब की स्थिति ऐसी न हो कि उसके सिर पर छत न हो, कोई गरीब चिकित्सा के अभाव में सड़क पर न मरे। इसके अतिरिक्त सरकार का कोई और काम नहीं। प्रकृति की अपनी एक व्यवस्था है, समाज में हमेशा कुछ अमीर और ढेर सारे मिडिल क्लास और गरीब रहेंगे। जैसे जैसे समाज आगे बढ़ेगा ग़रीबी की परिभाषा अमीरी की तरफ़ शिफ्ट होती रहेगी। किसी को किसी का पैसा देकर अमीर नहीं बनाया जा सकता, क्योंकि पैसे की क़ीमत उसी को मालूम होती है जिसने उसे अर्जित किया है। यदि पैसे और संसाधन बांटने से आर्थिक असमानता समाप्त होती तो एक पिता के दो संतानों में कभी भी आर्थिक असमानता नहीं होती। शासक/सरकारों को देश की इकोनॉमी को सदृढ़ करने की लिए कृषि , शिक्षा, स्वास्थ्य, उद्योग, सर्विस सेक्टर, इंफ्रास्ट्रक्चर और सुरक्षा आदि पर संसाधन जुटाने एवम लगाने का काम करना चाइए ना की फ्री फ्री , सब्सिडी और जाति रिजर्वेशन की राजनीति को बड़ावा देना चाइए
हमारा जीवन ओर रामचरितमानस
तुलसी दास जी ने जब राम चरित मानस की रचना की,तब उनसे किसी ने पूंछा कि बाबा! आप ने इसका नाम रामायण क्यों नहीं रखा? क्योंकि इसका नाम रामायण ही है.बस आगे पीछे नाम लगा देते हैं, वाल्मीकि रामायण,आध्यात्मिक रामायण.आपने राम चरित मानस ही क्यों नाम रखा?
बाबा ने कहा - क्योंकि रामायण और राम चरित मानस में एक बहुत बड़ा अंतर है.रामायण का अर्थ है राम का मंदिर, राम का घर,जब हम मंदिर जाते है तो एक समय पर जाना होता है, मंदिर जाने के लिए नहाना पडता है,जब मंदिर जाते है तो खाली हाथ नहीं जाते कुछ फूल,फल साथ लेकर जाना होता है.मंदिर जाने कि शर्त होती है,मंदिर साफ सुथरा होकर जाया जाता है और मानस अर्थात सरोवर, सरोवर में ऐसी कोई शर्त नहीं होती,समय की पाबंदी नहीं होती,जाती का भेद नहीं होता कि केवल हिंदू ही सरोवर में स्नान कर सकता है,कोई भी हो ,कैसा भी हो? और व्यक्ति जब मैला होता है, गन्दा होता है तभी सरोवर में स्नान करने जाता है.माँ की गोद में कभी भी कैसे भी बैठा जा सकता है.
रामचरितमानस की चौपाइयों में ऐसी क्षमता है कि इन चौपाइयों के जप से ही मनुष्य बड़े-से-बड़े संकट में भी मुक्त हो जाता है। इन मंत्रो का जीवन में प्रयोग अवश्य करे प्रभु श्रीराम आप के जीवन को सुखमय बना देगे।
रक्षा के लिए - मामभिरक्षक रघुकुल नायक |घृत वर चाप रुचिर कर सायक ||
विपत्ति दूर करने के लिए - राजिव नयन धरे धनु सायक |भक्त विपत्ति भंजन सुखदायक ||
सहायता के लिए - मोरे हित हरि सम नहि कोऊ |एहि अवसर सहाय सोई होऊ ||
सब काम बनाने के लिए - वंदौ बाल रुप सोई रामू |सब सिधि सुलभ जपत जोहि नामू ||
वश मे करने के लिए - सुमिर पवन सुत पावन नामू |अपने वश कर राखे राम ||
संकट से बचने के लिए - दीन दयालु विरद संभारी |हरहु नाथ मम संकट भारी ||
विघ्न विनाश के लिए - सकल विघ्न व्यापहि नहि तेही |राम सुकृपा बिलोकहि जेहि ||
रोग विनाश के लिए - राम कृपा नाशहि सव रोगा |जो यहि भाँति बनहि संयोगा ||
ज्वार ताप दूर करने के लिए - दैहिक दैविक भोतिक तापा |राम राज्य नहि काहुहि व्यापा ||
दुःख नाश के लिए - राम भक्ति मणि उस बस जाके |दुःख लवलेस न सपनेहु ताके ||
खोई चीज पाने के लिए - गई बहोरि गरीब नेवाजू |सरल सबल साहिब रघुराजू ||
अनुराग बढाने के लिए - सीता राम चरण रत मोरे |अनुदिन बढे अनुग्रह तोरे ||
घर मे सुख लाने के लिए - जै सकाम नर सुनहि जे गावहि |सुख सम्पत्ति नाना विधि पावहिं ||
सुधार करने के लिए - मोहि सुधारहि सोई सब भाँती |जासु कृपा नहि कृपा अघाती ||
विद्या पाने के लिए - गुरू गृह पढन गए रघुराई |अल्प काल विधा सब आई ||
सरस्वती निवास के लिए - जेहि पर कृपा करहि जन जानी |कवि उर अजिर नचावहि बानी ||
निर्मल बुद्धि के लिए - ताके युग पदं कमल मनाऊँ |जासु कृपा निर्मल मति पाऊँ ||
मोह नाश के लिए - होय विवेक मोह भ्रम भागा |तब रघुनाथ चरण अनुरागा ||
प्रेम बढाने के लिए - सब नर करहिं परस्पर प्रीती |चलत स्वधर्म कीरत श्रुति रीती ||
प्रीति बढाने के लिए - बैर न कर काह सन कोई |जासन बैर प्रीति कर सोई ||
सुख प्रप्ति के लिए - अनुजन संयुत भोजन करही |देखि सकल जननी सुख भरहीं ||
भाई का प्रेम पाने के लिए - सेवाहि सानुकूल सब भाई |राम चरण रति अति अधिकाई ||
बैर दूर करने के लिए - बैर न कर काहू सन कोई |राम प्रताप विषमता खोई ||
मेल कराने के लिए - गरल सुधा रिपु करही मिलाई |गोपद सिंधु अनल सितलाई ||
शत्रु नाश के लिए - जाके सुमिरन ते रिपु नासा |नाम शत्रुघ्न वेद प्रकाशा ||
रोजगार पाने के लिए - विश्व भरण पोषण करि जोई |ताकर नाम भरत अस होई ||
इच्छा पूरी करने के लिए - राम सदा सेवक रूचि राखी |वेद पुराण साधु सुर साखी ||
पाप विनाश के लिए - पापी जाकर नाम सुमिरहीं |अति अपार भव भवसागर तरहीं ||
अल्प मृत्यु न होने के लिए - अल्प मृत्यु नहि कबजिहूँ पीरा |सब सुन्दर सब निरूज शरीरा ||
दरिद्रता दूर के लिए - नहि दरिद्र कोऊ दुःखी न दीना |नहि कोऊ अबुध न लक्षण हीना ||
प्रभु दर्शन पाने के लिए - अतिशय प्रीति देख रघुवीरा |प्रकटे ह्रदय हरण भव पीरा ||
शोक दूर करने के लिए - नयन बन्त रघुपतहिं बिलोकी |आए जन्म फल होहिं विशोकी ||
क्षमा माँगने के लिए - अनुचित बहुत कहहूँ अज्ञाता |क्षमहुँ क्षमा मन्दिर दोऊ भ्राता ||
इसलिए जो शुद्ध हो चुके है वे रामायण में चले जाए और जो शुद्ध होना चाहते है वे राम चरित मानस में आ जाए.राम कथा जीवन के दोष मिटाती है
"रामचरित मानस एहिनामा, सुनत श्रवन पाइअ विश्रामा"
राम चरित मानस तुलसीदास जी ने जब किताब पर ये शब्द लिखे तो आड़े (horizontal) में रामचरितमानस ऐसा नहीं लिखा, खड़े में लिखा (vertical) रामचरित मानस। किसी ने गोस्वामी जी से पूंछा आपने खड़े में क्यों लिखा तो गोस्वामी जी कहते है रामचरित मानस राम दर्शन की ,राम मिलन की सीढ़ी है ,जिस प्रकार हम घर में कलर कराते है तो एक लकड़ी की सीढ़ी लगाते है, जिसे हमारे यहाँ नसेनी कहते है,जिसमे डंडे लगे होते है,गोस्वामी जी कहते है रामचरित मानस भी राम मिलन की सीढ़ी है जिसके प्रथम डंडे पर पैर रखते ही श्रीराम चन्द्र जी के दर्शन होने लगते है,अर्थात यदि कोई बाल काण्ड ही पढ़ ले, तो उसे राम जी का दर्शन हो जायेगा। सत्य है शिव है सुन्दर है |
मन दर्पण
अरिमर्दन
नयनो में सत्कार भरे और ह्रदय में प्यार भरे,
देखो कितने रंग तुम्हारे
देखो कितने सहज खड़े हो,
मैंने देखा हर बाधा से स्वयं लड़े हो।
और स्वयं से भाग रहे हो?
अंधेरे में जाग रहे हो।
कभी स्वयं से बातें की है?
कभी दर्द पूंछा है खुदका?
कभी जरा सा थमकर
अपने दिल की धड़कन नापीं है?
कभी स्वयं से प्रेम किया है?
जरा संभालो मन का बादल,
तुम तो खुद ही प्राणशक्ति हो।।
अचला एकादशी
अचला एकादशी जेष्ठ मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी को मानते हैं | इसे अपरा एकादशी भी कहते हैं | इस व्रत के करने से ब्रह्महत्या,परनिंदा, भूत योनि, जैसे निम्न कर्मों से छुटकारा मिल जाता है तथा कीर्ति पुणय एवं धन धन्य में अभिवृद्धि होती है |
अचला एकादशी की कथा
बहुत समय पहले की बात है एक महीध्वज नाम का राजा था वह बड़ा ही धर्मात्मा था इसके विपरीत उसी का छोटा भाई ब्रजध्वज बड़ी ही दुष्ट प्रवृत्ति का अधर्मी तथा अन्यायी था | वह अपने बड़े भाई को अपना दुश्मन समझता था | एक दिन अवसर पाकर उसने अपने बड़े भाई राजा महिध्वज की हत्या करके और उसके मृत शरीर को जंगल में पीपल के वृक्ष के नीचे गाड़ दिया |
राजा की आत्मा पीपल पर वास करने लगी और आने जाने वालों को सताने लगी | अकस्मात एक दिन धौम्य में ऋषि वहां से जा रहे थे | उन्होंने अपने तपोबल से प्रेत के उत्पाद कारण और उसके जीवन का वृतांत सुना और समझा | ऋषि महोदय ने प्रसन्न होकर प्रेत को पीपल के पेड़ से उतारकर परलोक विद्या का उपदेश दिया | अंत में ऋषि ने प्रेत योनि से मुक्ति पाने के लिए अचला एकादशी का व्रत करने को कहा अचला एकादशी का व्रत करने से राजा दिव्य शरीर पाकर स्वर्ग लोक को चला गया |
निर्जला एकादशी
व्रत कथा और पूजन - साल में होने वाली सभी एकादशियों का काफी महत्व होता है। इस दिन लोग उपवास करते हैं। निर्जला एकादशी व्रत का आपना अलग काफी महत्व है। ।उपवास से मिलती है दीर्घायु और होती है मोक्ष की प्राप्ति व सभी मनोकामनाए पूर्ण होती | निर्जला, यानी बिना पानी के उपवास रहने के कारण,निर्जला एकादशी कहा जाता है। ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की निर्जला एकादशी को भीमसेनी एकादशी कहा जाता है। इस एकादशी के दिन व्रत और उपवास करने से व्यक्ति को दीर्घायु तथा मोक्ष की प्राप्ति होती है। माना जाता है कि इस एकादशी को करने से वर्ष की सभी 24 एकादशियों के व्रत के समान फल मिलता है।
निर्जला एकादशी व्रत कथा - प्राचीन काल में एक बार महाबली भीम को व्रत करने की इच्छा हुई और उन्होंने महर्षि व्यास जी से कहा भगवन सभी व्रत करते है पर मै नहीं कर पाता क्यूंकि मुझसे भूख बर्दास्त नहीं होती मै क्या करू की मेरी भी मुक्ति हो जाये आपसे इसके बारे में जानना चहाता हूँ । उन्होंने अपनी परेशानी उन्हें बताते हुए कहा कि उनकी माता, भाई और पत्नी सभी एकादशी के दिन व्रत करते हैं | इस पर महर्षि व्यास ने भीम से ज्येष्ठ मास की निर्जला एकादशी व्रत को शुभ बताते हुए यह व्रत करने को कहा। उन्होंने कहा कि इस व्रत में आचमन में जल ग्रहण किया जा सकता है, लेकिन अन्न से परहेज किया जाता है। इसके बाद भीम ने मजबूत इच्छाशक्ति के साथ यह व्रत कर पापों से मुक्ति पायी।
निर्जला एकादशी पूजन विधि - इस दिन पंडित जी को मीठा जल,मटका,पंखा,खरबूजा व गर्मी के फल दान करने का महत्त्व है | निर्जला एकादशी का व्रत के नियमों का पालन दशमी तिथि से शुरू हो जाता है।इस दिन व्रत करने के अतिरिक्त जप,तप गंगा स्नान आदि कार्य करना शुभ रहता है।सारा दिन “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” मंत्र का उच्चारण करना चाहिए।एकादशी वाले दिन गौ दान करने का विशेष महत्व होता है। द्वादशी को स्नान,दान तथा ब्राह्माण को भोजन कराना,वस्त्र दान करना चाहिए।
अयोध्या का वैभव
पूनम त्यागी
भव्य , दिव्य , नव्य अयोध्या ,
सजी हुई है दीपों से।
हैं अद्वितीय हमारे योद्धा ,
वर्षा कर रहे पुष्पों से।।
राम पताका के हैं मर्मज्ञ,
अयोध्या में किया भव्य ब्रह्मयज्ञ ,
प्राण प्रतिष्ठा का यह पावन उत्सव ,
रामलला हैं सबके रक्षक।
अद्भुत अभिव्यक्ति, दिव्य अनुभूति,
रोमांचित है रोम रोम ।
रामलला के दर्शन पाकर ,
ब्रह्माण्ड में गूंज रहा है ओम।।
बरबस बहती अश्रुधारा ,
देख राम की अप्रतिम छाया ।
मोहक रूप निहार हुए भावुक
नि:शब्द, खड़े हैं जैसे भिक्षुक।।
कर्मठता , निष्ठा और दृढसंकल्प,
यही हैं सफलता के मूल मंत्र ।।
जीवन में इनको अपनाओ
अपना भविष्य उज्ज्वल बनाओ।।
जून मास 2024 का पंचांग
भारतीय व्रतोत्सव जून -2024
दि. 2- अपरा (भद्रकाली) 11 व्रत,दि. 4- भौम प्रदोष व्रत, मास शिवरात्रि,दि. 6- वट सावित्री व्रत, शनि जयंती, भावुका अमावस्या,दि. 7- गंगा दशाश्व मेघ स्नानारम्भ,दि. 9- महाराणा प्रताप जयंती, मेला हल्दीघाटी (मेवाड़),दि. 10-विनायक चतुर्थी व्रत,दि. 12-स्कन्द 6, विन्ध्यवासिनी पूजा,दि. 14-दुर्गाष्टमी, धूमावती जयंती, मेला क्षीरभवानी (काश्मीर),दि. 15-संक्रांति पुण्य,दि. 16-गंगा दशहरा, बटुक भैरव ज.,दि. 17-निर्जला एकादशी व्रत (स्मा.),दि. 18-निर्जला एकादशी व्रत (वै.),दि. 19-प्रदोष व्रत,दि.21-सत्य व्रत,दि.22-वद् सावित्री व्रत (द.भा.), कबीर जयंती, गुरु हरगोविन्द सिंह जयंती,दि.25-श्री गणेश चतुर्थी व्रत दि.28-कालाष्टमी
मूल विचार जून -2024
दि. 2 को 3/15 से दि. 4 को 00/04 तक, दि. 10 को 21/39 से दि. 13 को 2/11 तक, दि. 20 को 18/09 से दि. 22 को 17/54 तक, दि. 29 को 8/49 से दि. 1 जुलाई को 6/26 बजे तक गण्ड मूल नक्षत्र हैं।
ग्रह स्थिति जून -2024
दि. 1 मंगल मेष में दि. 3 गुरु पूर्वोदय दि. 3 बुध पूर्वास्त दि. 12 शुक्र मिथुन में ज्येष्ठ दि. 14 बुध मिथुन में दि. 15 सूर्य मिथुन में दि. 25 बुध पश्चिमोदय दि. 29 बुध कर्क में दि. 30 शनि वक्री
पंचक विचार जून -2024
पंचक विचार -(धनिष्ठा नक्षत्र के तृतीय चरण से रेवती नक्षत्र तक) पंचको में दक्षिण दिशा की ओर यात्रा करना मकान दुकान आदि की छत डालना चारपाई पलंग आदि बुनना,दाह संस्कार,बांस की चटाई दीवार प्रारंभ करना आदि स्तंभ रोपण तांबा पीतल तृण काष्ट आदि का संचय करना आदि कार्यों का निषेध माना जाता है समुचित उपाय एवं पंचक शांति करवा कर ही उक्त कार्यों का संपादन करना कल्याणकारी होगा ध्यान रहेगा पंचर नक्षत्रों का विचार मात्र उपरोक्त विशेष कृतियों के लिए ही किया जाता है विवाह मंडल आरंभ गृह प्रवेश प्रवेश उपनयन आदि मुद्दों से तो पंचक नक्षत्रका प्रयोग शुभ माना जाता है पंचक विचार- दिनांक 03 को 01-40 तक, दिनांक 26 को 01-49 बजे से दिनांक 30 को 07-33 तक पंचक है |
अधिक जानकारी के लिए संपर्क करे शर्मा जी - 9312002527,9560518227
भद्रा विचार जून -2024
भद्रा काल का शुभ अशुभ विचार - भद्रा काल में विवाह मुंडन, गृह प्रवेश, रक्षाबंधन आदि मांगलिक कृत्य का निषेध माना जाता है परंतु भद्रा काल में शत्रु का उच्चाटन करना,स्त्री प्रसंग में,यज्ञ करना,स्नान करना,अस्त्र शस्त्र का प्रयोग,ऑपरेशन कराना, मुकदमा करना,अग्नि लगाना,किसी वस्तु को काटना,भैस,घोड़ा व ऊंट संबंधी कार्य प्रशस्त माने जाते हैं सामान्य परिस्थिति में विवाह आदि शुभ मुहूर्त में भद्रा का त्याग करना चाहिए परंतु आवश्यक परिस्थितिवश अतिआवश्यक कार्य भूलोक की भद्रा ,भद्रा मुख छोड़कर कर भद्रा पुच्छ में शुभ कार्य कर सकते है |
दि. 1 को 18/14 से दि. 2 को 5/04 तक, दि. 4 को 22/01 से दि. 5 को 8/56 तक, दि. 10 को 3/59 से 16/15 तक, दि. 13 को 21/33 से दि. 14 को 10/48 तक, दि. 17 को 17/28 से दि. 18 को 6/25 तक, दि. 21 को 7/31 से 19/04 तक, दि. 24 को 14/26 से दि. 25 को 1/23 तक, दि. 27 को 18/39 से दि. 28 को 5/33 तक, दि. 30 को 23/22 से दि. 1 जुलाई को 10/26 बजे तक भद्रा है।
सर्वार्थ सिद्धि योग जून -2024
दैनिक जीवन में आने वाले महत्वपूर्ण कार्यों के लिए शीघ्र ही किसी शुभ मुहूर्त का अभाव हो,किंतु शुभ मुहर्त के लिए अधिक दिनों तक रुका ना जा सकता हो तो इन सुयोग्य वाले मुहर्तु को सफलता से ग्रहण किया जा सकता है | इन से प्राप्त होने वाले अभीष्ट फल के विषय में संशय नहीं करना चाहिए यह योग हैं सर्वार्थ सिद्धि,अमृत सिद्धि योग एवं रवियोग | योग्यता नाम तथा गुण अनुसार सर्वांगीण सिद्ध कारक है| अधिक जानकारी के लिए संपर्क करे शर्मा जी - 9312002527,9560518227
चौघड़िया मुहूर्त
चौघड़िया मुहूर्त देखकर कार्य या यात्रा करना उत्तम होता है। एक तिथि के लिये दिवस और रात्रि के आठ-आठ भाग का एक चौघड़िया निश्चित है। इस प्रकार से 12 घंटे का दिन और 12 घंटे की रात मानें तो प्रत्येक में 90 मिनट यानि 1.30 घण्टे का एक चौघड़िया होता है जो सूर्योदय से प्रारंभ होता है|
सुर्य उदय- सुर्य अस्त जून -2024
राहू काल
राहुकाल -राहुकाल दक्षिण भारत की देन है,दक्षिण भारत में राहु काल में कृत्य करना अच्छा नहीं माना जाता, राहु काल में शुभ कृतियों में वर्जित करने की परंपरा अब हमारे उत्तरी भारत में भी अपनाने लगे हैं राहुकाल प्रतिदिन सूर्यादि वारों में भिन्न-भिन्न समय पर केवल डेढ़ डेढ़ घंटे के लिए घटित होता है |
कुंडली मे मांगलिक दोष विचार व परिहार
वर अथवा कन्या दोनों में से किसी की भी कुंडली में 1,4,7,8 व 12 भाव में मंगल होने से ये मांगलिक माने जाते हैं,मंगली से मंगली के विवाह में दोष न होते हुए भी जन्म पत्रिका के अनुसार गुणों को मिलाना ही चाहिए यदि मंगल के साथ शनि अथवा राहु केतु भी हो तो प्रबल मंगली डबल मंगली योग होता है | इसी प्रकार गुरु अथवा चंद्रमा केंद्र हो तो दोष का परिहार भी हो जाता है |इसके अतिरिक्त मेष वृश्चिक मकर का मंगल होने से भी दोष नष्ट हो जाता है | इसी प्रकार यदि वर या कन्या किसी भी कुंडली में 1,4,7,9,12 स्थानों में शनि हो केंद्र त्रिकोण भावो में शुभ ग्रह, 3,6,11 भावो में पाप ग्रह हों तो भी मंगलीक दोष का आंशिक परिहार होता है, सप्तम ग्रह में यदि सप्तमेश हो तो भी दोष निवृत्त होता है |
स्वयं सिद्ध मुहूर्त
स्वयं सिद्ध मुहूर्त चैत्र शुक्ल प्रतिपदा वैशाख शुक्ल तृतीया अक्षय तृतीया आश्विन शुक्ल दशमी विजयदशमी दीपावली के प्रदोष काल का आधा भाग भारत में से इसके अतिरिक्त लोकाचार और देश आचार्य के अनुसार निम्नलिखित कृतियों को भी स्वयं सिद्ध मुहूर्त माना जाता है बडावली नामी देव प्रबोधिनी एकादशी बसंत पंचमी फुलेरा दूज इन में से किसी भी कार्य को करने के लिए पंचांग शुद्धि देखने की आवश्यकता नहीं है परंतु विवाह आदि में तो पंचांग में दिए गए मुहूर्त व कार्य करना श्रेष्ठ रहता है।
अधिक जानकारी के लिए संपर्क करे शर्मा जी - 9312002527,9560518227
जून मास के महत्वपूर्ण दिवस
विश्व दुग्ध दिवस (1 जून)
संयुक्त राष्ट्र के खाद्य एवं कृषि संगठन ने विश्व दुग्ध दिवस की स्थापना की। वैश्विक खाद्य पदार्थ के रूप में दूध के महत्व पर आज प्रकाश डाला गया है। यह दिन दुनिया भर के कई देशों में मनाया जाता है। इस दिन, हर घर तक दूध पहुंचाने के प्रयासों के लिए डेयरी उद्योग को भी मान्यता दी जाती है और उसकी सराहना की जाती है।
पंडित श्री राम आचार्य ,महानिर्माण दिवस (2 जून)
तेलंगाना स्थापना दिवस (2 जून)
2014 में इसी दिन तेलंगाना आंध्र प्रदेश से एक स्वतंत्र राज्य बना था। तेलंगाना स्थापना दिवस जून में तेलंगाना निवासियों के लिए एक महत्वपूर्ण दिन है। राज्य इस दिन को रैलियां आयोजित करके और सार्वजनिक अवकाश घोषित करके मनाता है।
विश्व पर्यावरण दिवस (5 जून)
विश्व पर्यावरण दिवस निस्संदेह जून 2024 में सबसे यादगार दिनों में से एक होगा। प्रदूषण और गिरावट जैसे मुद्दों को संबोधित करते हुए हमारे पर्यावरण के प्रति आभार व्यक्त करने के लिए यह दिन दुनिया भर में मनाया जाता है।
बंदा वीर बहादुर बलिदान दिवस, बिरसा मुंडा बलिदान दिवस (9 जून)
पंडित राम प्रसाद बिस्मिल जयंती (11 जून)
विश्व बाल श्रम निषेध दिवस (12 जून)
बाल श्रम समाज में एक सतत बुराई है और विश्व बाल श्रम निषेध दिवस इससे निपटने के लिए कार्रवाई करने के महत्व पर जोर देता है। यह साल के सबसे महत्वपूर्ण दिनों में से एक है और सभी को बाल श्रम को समाप्त करने का संदेश फैलाने में मदद करनी चाहिए। यह दिवस पहली बार 2002 में मनाया गया था।
गुरु अर्जन देव बलिदान दिवस (16 जून)
लक्ष्मी बाई बलिदान दिवस (18 जून)
फादर्स डे (18 जून)
फादर्स डे जून के सबसे महत्वपूर्ण दिनों में से एक है क्योंकि यह दुनिया भर के सभी पिताओं को सम्मानित करने का दिन है। हर साल जून के तीसरे रविवार को यह दिन मनाया जाता है। इस दिन, बच्चे उपहार, हस्तनिर्मित कार्ड आदि जैसे टोकन के माध्यम से अपने पिता के प्रति अपना आभार व्यक्त करते हैं।
डॉ केशव राव बलीराम हेडगेवर पुण्य तिथि (21 जून)
विश्व संगीत दिवस (21 जून)
विश्व संगीत दिवस एक खूबसूरत संगीत उत्सव है जिसमें हर किसी को संगीत वाद्ययंत्र उठाने और बजाने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। यह जून का एक और महत्वपूर्ण दिन है क्योंकि यह सभी को भाग लेने और संगीत का आनंद लेने के लिए प्रोत्साहित करता है। इस दिन को फेटे डे ला म्यूसिक भी कहा जाता है।
अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस (21 जून)
जून 2024 में सबसे दिलचस्प और विशेष दिनों में से एक, अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस में दुनिया भर के लोगों की भागीदारी देखी जाएगी। पिछले वर्ष संयुक्त राष्ट्र द्वारा इसकी आधिकारिक मान्यता के बाद, यह दिन पहली बार 2015 में मनाया गया था।
डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी पुण्य तिथि (23 जून)
रानी दुर्गा वाटी बलिदान दिवस (24 जून)
बंकिम चंद्र चटर्जी जयंती ,महाराजा रंजीत सिंह पुण्य तिथि (27 जून)
भामाशाह जयंती (28 जून)
राष्ट्रीय सांख्यिकी दिवस (29 जून)
राष्ट्रीय सांख्यिकी दिवस भारत में जून के सबसे महत्वपूर्ण दिनों में से एक है क्योंकि यह सांख्यिकीविद् प्रशांत चंद्र महालनोबिस के काम का सम्मान करता है। लोगों को सांख्यिकीय अवधारणाओं से अधिक परिचित होने और अध्ययन के क्षेत्र को अपनाने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए इस दिन कई कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं।
विश्व क्षुद्रग्रह दिवस (30 जून)
विश्व क्षुद्रग्रह दिवस का उत्सव 1908 में हुई एक घटना की याद दिलाता है। इस दिन, एक उल्कापिंड ने रूस के साइबेरिया में 2,150 किमी 2 वन भूमि को समतल कर दिया था। इस घटना को मनाने और क्षुद्रग्रहों के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए हर साल 30 जून को विश्व क्षुद्रग्रह दिवस मनाया जाता है।
अमृत वचन
दूसरों के दोष न देखें। अपना चरित्र सुधारें। अपना चरित्र पवित्र बनाएं। संसार अपने आप सुधर जाएगा। — स्वमाी विवेकानंद
मनुष्य के जीवन की सफलता इसी में है कि वह उपकार करने वाले व्यक्ति को कभी न भूले। —वेद व्यास
समर्पण ओर प्यार
अरविंद वर्मन
पति-पत्नी रोज साथ में तय समय पर एक ही ट्रेन में सफर करते थे। एक युवक और था, वो भी उसी ट्रेन से सफर करता था, वो पति-पत्नी को रोज देखता। ट्रेन में बैठकर पति-पत्नी ढेरों बातें करते। पत्नी बात करते-करते स्वेटर बुनती रहती।
उन दोनों को जोड़ी एकदम परफेक्ट थी। एक दिन जब पति-पत्नी ट्रेन में नहीं आए तो उस युवक को थोड़ा अटपटा लगा, क्योंकि उसे रोज उन्हें देखने की आदत हो चुकी थी। करीब 1 महीने तक पति-पत्नी ने उस ट्रेन में सफर नहीं किया। युवक को लगा शायद वे कहीं बाहर गए होंगे।
एक दिन युवक ने देखा कि सिर्फ पति ही ट्रेन में सफर रहा है, साथ में पत्नी नहीं है। पति का चेहरा भी उतरा हुआ था, अस्त-व्यस्त कपड़े और बड़ी हुई दाढ़ी। युवक से रहा नहीं गया और उसने जाकर पति से पूछ ही लिया- आज आपकी पत्नी साथ में नहीं है।
पति ने कोई जवाब नहीं दिया। युवक ने एक बार फिर पूछा- आप इतने दिन से कहां थे, कहीं बाहर गए थे क्या? इस बार भी पति ने कोई जवाब नहीं दिया। युवक ने एक बार फिर उनकी पत्नी के बारे में पूछा। पति ने जवाब दिया- वो अब इस दुनिया में नहीं है, उसे कैंसर था।
ये सुनकर युवक को अचानक झटका लगा। फिर उसने संभलकर और बातें जाननी चाहीं। पति ने युवक से कहा कि- पत्नी को लास्ट स्टेज का कैंसर था, डॉक्टर भी उम्मीद हार चुके थे। ये बात वो भी जानती थी, लेकिन उसकी एक जिद थी कि हम ज्यादा से ज्यादा समय साथ में बिताएं।
इसलिए रोज जब मैं ऑफिस जाता तो वो भी साथ में आ जाती। मेरे ऑफिस के नजदीक वाले स्टेशन पर हम उतर जाते, वहां से मैं अपने ऑफिस चला जाता और वो घर लौट आती थी। पिछले महीने ही उसकी डेथ हुई है। इतना कहकर पति खामोश हो गया।
तय स्टेशन पर पति ट्रेन से उतर गया। अचानक युवक का ध्यान उसके स्वेटर पर पड़ी। उसने देखा कि ये तो वही स्वेटर है जो उसकी पत्नी ट्रेन में बुना करती थी, उसकी एक बाजू अभी भी अधूरी थी, जो शायद उसकी पत्नी बुन नहीं पाई थी। पति-पत्नी का असीम प्रेम उस स्वेटर में झलक रहा था।
पति-पत्नी का रिश्ता अटूट होता है, सिर्फ मौत ही उन्हें अलग कर सकती है। पत्नी अपने पति का हर सुख-दुख में साथ देती है तो पति भी पत्नी को दुनिया की हर खुशी देना चाहता है। यही इस रिश्ते का सबसे खूबसूरत अहसास है। इसलिए साथ रहते हुए खुशी-खुशी जीवन बिताएं।
कुछ लम्हें यादों के
शिखा सक्सेना,एहल्कान इंटरनेशनल स्कूल
मयूर विहार , दिल्ली
बच्चे बडे हो गये,
घर के कोने खाली हो गये।
पहले गूँजती थी जिनकी किलकारी,
अब सन्नाटे के पहरे हो गये।
कितना अस्त व्यस्त रहता था घर
जिनकी मटरगश्ति से ,
अब उन्ही शैतानियों को
याद कर नयन सैलाब हो गये।
कैसे समय बीत गया,
कल की हीं तो बात लगती है ।
जो हमारे मार्गदर्शन से
बढ़ाते थे हर कदम,
अब स्वयंसिद्धा बनकर सबका मनमोह गये।
ये कैसा क्रूर मज़ाक है ज़िंदगी का ,
सोचते थे कब मिलेंगे अपने लिए
फुरसत के क्षण दो घड़ी ,
अपने लिए भी जी लें जीवन के कुछ पल।
अब समय है कि कटता नहीं,
अपना कोई अब अपनों से मिलता नहीं।
बेटी की बिदाई हो गई
बेटा कारोबार में व्यस्त हो गया।
चादर पर सिलवटे पड़ती नहीं अब,
बीच मे सोने की जिद मनुहार होती नहीं अब।
छोटा सा घर भी बहुत बड़ा लगता है,
हर कमरा सुथरा सा लगता है।
व्यवस्थित सी लगती है ज़िंदगी
किन्तु बेजान सी लगती है हर खुशी।
फुर्सत मिलते ही कैद कर लो बीते वक़्त की तस्वीर।
यही वो यादें हैँ जो कभी तन्हा होने नहीं देती।
प्लास्टिक सर्जरी ओर भारतीय चिकित्सा विज्ञान
प्लास्टिक सर्जरी के बारे में हमारे ऋषियों द्वारा लिखे गए हमारे शास्त्रों को पढ़ने का समय।
1794 ई. में टीपू सुल्तान और अंग्रेजों के बीच तीसरा मैसूर युद्ध हुआ। मैसूर के सैनिकों ने एक गाड़ी पर कब्जा कर लिया जो ब्रिटिश सेना के लिए भोजन ले जा रहा था। इस गाड़ी को चलाने वाला कोसाजी नाम का एक साधारण मराठी था। टीपू सुल्तान ने उसकी नाक काटने का आदेश दिया। युद्ध की समाप्ति के बाद कोसाजी की नाक काट दी गई और उन्हें रिहा कर दिया गया।
उनके इलाज के लिए एक ब्रिटिश डॉक्टर आगे आए। लेकिन कोसाजी ने उस वैद्य को अपना इलाज करने की अनुमति नहीं दी और कहा कि कुमार नामक पारंपरिक वैद्य के पास ले चलो। अंग्रेजों ने उन्हें आधुनिक चिकित्सा के बजाय स्थानीय उपचार चुनने के लिए डांटा।
उन्होंने कहा, "कुमार मेरी कटी हुई नाक फिर से ठीक कर देंगे।" सभी लोग हंसने लगे, लेकिन वे उसके अनुरोध पर सहमत हो गए और उसे कुमार के पास ले गए।
स्थानीय चिकित्सक कुमार ईंट भट्ठे का कारोबार करता था। उन्होंने कोसाजी के माथे से कुछ चमड़ी उतारी और नाक से सिल दी। नाक वापस बढ़ गई। माथे की चमड़ी भी वापस बढ़ गई।
इस "चमत्कार" को देखने वाले ब्रिटिश डॉक्टर ने इस चमत्कारी घटना का एक चित्र बनाया और उसे ब्रिटेन भेजा। संदेश को देखकर, एक अंग्रेज डॉक्टर, जोसेफ कॉन्सटेंटाइन कार्प्यू, लंदन से आए और कुमार से मिले। वह कई वर्षों तक रहे और इस शल्य चिकित्सा को सीखकर वापस लौट आए। जब वे लंदन गए, तो उन्होंने 1816 में दुनिया की पहली "प्लास्टिक सर्जरी" की। इसे तब कार्प्यू ऑपरेशन के रूप में जाना जाता था। डॉ. कुमार को प्लास्टिक सर्जरी के बारे में कैसे पता चला ?
सुश्रुत नाम के एक प्राचीन भारतीय चिकित्सक ने लगभग 2500 साल पहले प्लास्टिक सर्जरी के बारे में लिखा था। पुस्तक, सुश्रुत संहिता में अभी भी सर्जरी का विवरण है। हालांकि इसे प्लास्टिक सर्जरी कहा जाता है, लेकिन इस सर्जरी में प्लास्टिक का इस्तेमाल नहीं किया गया था।
पीढ़ियों से इस सर्जरी का अभ्यास करने वाले साधारण ईंट भट्टे का व्यवसाय कर रहे थे।
ब्रिटिश संग्रहालय से कोसाजी की तस्वीर। साभार - बृजेश सांखला
हिन्दू संस्कृति की विशेषतायें
हिमालय तथा सागर से घिरी हुई भूमि, विविधताओं से भरी हुई यहाँ की प्रकृति और एकात्मता का साक्षात्कार भारतीय संस्कृति के सशक्त आधार हैं- यज्ञमयी व त्यागमयी- "इदं न मम" अर्थात् यह मेरा नहीं, (सर्वभूतहितेरताः) (सभी प्राणियों के हित में लगे रहना) आदि। इसीलिये यहाँ त्यागी महापुरुषों के निर्माण की परम्परा स्थापित हुई। कर्तव्य निर्वहन का आग्रह- त्याग पर आधारित संस्कृति। कर्तव्य पालन अर्थात् धर्मपालन, दूसरे के लिये किया हुआ कार्य धर्म का आग्रह-पुत्रधर्म, पितृधर्म, पतिधर्म, राजधर्म, प्रजाधर्म, धर्मार्थ औषधालय, धर्मशाला आदि। सहिष्णुता - सभी मार्गों (उपासना पद्धति, विचारों) को ठीक मानना। "एकं सत् विप्राः बहुधा वदन्ति"। सर्वपन्थ समादर- "सर्व समावेषक संस्कृति" सभी पंथों का समादर, किसी पंथ या क्षेत्र विशेष के लिये नहीं अपितु मानव मात्र के लिये चिंतन ।सर्व समावेषक, आत्मसातीकरण की क्षमता- शक व हूणों आदि को आत्मसात करने के उदाहरण। नया तथा सु-विचार जहाँ से भी मिले उसे ग्रहण करने की खुली मानसिकता आ नो भद्राः क्रतवो यन्तु विश्वतः (दूसरों को भी अपने अनुकूल बनाकर आत्मसात करने का स्वभाव तथा विश्व में कहीं से भी आये अच्छे विचारों को ग्रहण करना)। पूजा भाव का विकास - मातृदेवो भव, पितृदेवो भव, अतिथिदेवो भव, आचार्यदेवो भव, राष्ट्रदेवो भव। भूमि पूजा, वास्तु पूजा, गौ पूजा, जल पूजा इत्यादि ।परिवार एवं कुटुम्ब पोषक परिवार समाज की छोटी तथा कुटुम्ब बड़ी इकाई। परिवार में संस्कारों की परम्परा, जन्म से मृत्यु तक सोलह संस्कार।
सास बहु ओर परिवार
अरे बहु बच्चे छोटे हैं पहले बच्चों को खाना दिया करो उसके बाद हमे दिया करो ,खाना बनते ही हमारे लिए ले आती हो.... मैं हमेशा ही रसोई से पहले थाली अपने सास ससुर के लिए ही निकालती थी उसके बाद अपने अन्य घरवालों को और बच्चों को देती थी, उसी के बारे में आज मेरी सास मुझे समझा रही थी
ठीक है अम्मा मैं ध्यान रखूंगी.. पर अगले दिन फिर वही मैंने जैसे ही खाना बनाया सबसे पहले खाना घर में अम्मा और बाबूजी के लिए ही निकाला...अब तो रोज-रोज सास मुझे टोंक टोक के परेशान हो गई थी और मेरी आदत सुधर नहीं रही थी इसलिए उसने मुझे टोकना ही बंद कर दिया था....
धीरे-धीरे वक्त बीतता गया और मैं मेरे पति के साथ अब मेरे अपने बच्चों के साथ रहने लगी थी...
पर मेरी वह आदत अभी भी नहीं गई थी अब चूंकि घर में सबसे बड़े पतिदेव है तो खाना निकालते समय उनकी थाली में पहले निकालती हु और उसके बाद अपने बेटे को....अब बेटा थोड़ा बड़ा हो गया है तो खाना परोसवाने में बेटे की भी मदद लेती हूं..अब वह इस रूटीन में ढल चुका है आज हम तीनो खाना यूं तो एक साथ ही खाते है पर उसको पता है सबसे पहले पापा की थाली में परोसा जाएगा और उसके बाद उसकी थाली में लेकिन एक दिन मन में उठ रहे प्रश्नों से उसने पूछ लिया मम्मी आप खाना पापा को पहले लगाती हो मुझे बाद में लगाती हो आज मुझे बताओ आप ऐसा क्यों करती हो....मैंने कहा बिल्कुल बताऊंगी मैं और यह आपको पता भी होना चाहिए कि मैं ऐसा क्यों करती हूं...जब मैं छोटी थी तो एक दिन मैंने भी अपनी मां से यही पूछा था की मां आप खाना पहले बाबा जी को और दादी जी को लगा कर देती हो मुझे बाद में देती हो... तो उस वक्त मेरी मां मुझसे कहा था जब बड़ी हो जाओगी तब बताएंगे...
रोज का वही रूटिंग होता था खाना पहले दादी बाबा को निकलता था फिर मुझे निकलता था, अब तो यह आलम हो गया था कि जब मुझे भूख लगती थी तो मैं पहले दादी और बाबा की थाली उठाकर लाती थी,, मा खाना परोस दो दादी बाबा को दे दूं जाकर घर की पहली थाली हमेशा दादी बाबा को जाती थी, अगर वह खाते थे तो ठीक अगर नहीं खाते थे तो वापस किचन में ले आते थे, और फिर थोड़ी देर बाद भिजवाई जाती थी,
घर की पहली थाली हमेशा दादी बाबा को ही परोसी जाती थी चाहे वो उस वक्त खाए या रुक कर खाए, अगर नही खाते थे तो वापस वही थाली किचन में ले आते थे दादी बाबा को खाना पूछने के बाद हम सब खाते थे, कभी कभी दादी बाबा को खाना देकर फिर अपना खाना भी उन्ही के साथ खाते थे जाकर...
अब तो मैं बड़ी भी हो गई थी रोज-रोज का वह नियम अब तो आदत में पड़ गया था, रोज पहले थाली बाबा दादी को लेकर पहुंच जाती थी किचन से ,उसके बाद ही खाती थी आदत कहो या फिर वह हम लोगों के डेली रूटीन में बस गया था
थाली हमेशा दादी बाबा को ही क्यू भिजवाती हो... मैंने फिर एक रोज पूछा...फिर फिर नानी ने आपसे क्या बोला मा आकर्ष ने मुझसे पूछा...बताती हूं ध्यान से सुनना ये बात जो आज मैं भी तुमसे बोल रही हूं... उस वक्त फिर नानी ने मुझे यह बोला कि घर में बच्चों से लगाव सबको होता है पर घर के बुजुर्ग कहीं एक कोने में सिमट जाते हैं...बच्चे भूखे होने पर तो रो लेते हैं पर बुजुर्ग भूखे होने पर कह भी नहीं पाते है....यही कारण है कि जो घर में सबसे बड़ा है खाना मैं उसको सबसे पहले देती हूं और आगे आप भी चीज का ध्यान रखना घर में जो सबसे बड़ा हो खाना पहले उसको ही देना क्योंकि बच्चे रो लेंगे बच्चे चिल्ला लेंगे बच्चों पर सबका ध्यान जाएगा पर बड़े ना रोते हैं ना चिल्लाते हैं ना किसी का ध्यान जाता है भूखे होने भी पर वह कह नहीं पाते हैं ,उनका भी मन करता है कि उनको भी घर में बनने वाली हर चीज थोड़ी-थोड़ी मिले पर वह मांग नहीं पाते हैं इसलिए बहुत अच्छे से ध्यान रखना कि घर में पहली थाली आप बुजुर्ग को ही देना...अच्छा इसीलिए आप पापा को रोज थाली देती हैं फिर से आकर्ष बोले...हां मैं इसीलिए पापा को पहले थाली देता हूं और इस बात का आप भी ध्यान रखना जब कभी मा ना हो और पापा घर में है तो आप पहले थाली पापा के लिए ही देना...जैसे मैंने अपनी मम्मी की बात मानी और मैं जब घर में जब बाबा दादी होते हैं तो पहले थाली बाबा दादी को निकाल कर खाना देती हूं... वैसे ही आप भी अपनी मम्मी की बात मानना और घर में जो आपसे सबसे बड़ा हो उसको खाना आप पहले देना आकर्ष ने कहा बिल्कुल मा मैं इस बात का बिल्कुल ध्यान रखूंगा कि घर में मैं खुद खाना खाने से पहले जो मुझसे बड़े हैं उन्हें खाना खिलाऊं....पता नहीं आगे क्या होगा, पर मैने बेटे को अपनी मां से मिली एक बेहद सुकून देने वाली सीख सीखा दी है....!!
मेरी मां
डॉ.सतीश "बब्बा"
मां चुपके से,
घी लाकर,
गरम दाल में,
डालती थी!
उसकी यह बात,
मेरी समझ में,
नहीं आती थी,
जब सब कुछ वही है,
फिर चुपके से,
क्यों घी डालती थी?
फिर मैंने समझा,
उसको डर था,
लल्ला के खाना में,
किसी की डीठ न लग जाए!
एक दिन मां,
अजीब सी,
बातें कहती,
उसकी सूखी,
उंगलियां,
मेरे सिर पर,
थी फिरतीं,
मैं सोच रहा था,
यह मंजर,
थम जाए!
फिर क्या था,
मां के हाथ,
रुक गए,
जिसने भी देखा,
यकीन नहीं हुआ,
मां को श्मशान ले गए!
मैंने अपने हाथों से,
मजबूत छाती करके,
उसकी चिता में,
आग लगाया!
उपस्थित जनसमूह,
यह फरमाया,
बेटा ने अपना,
फर्ज निभाया!
मां की बातें,
याद है आती,
मेरी मां कहती थी,
बेटा मां सभी दिन,
नहीं रहती,
तुझको लाई हूं,
यह गुड़िया,
बहू की ओर,
इशारा करती!
तेरी किस्मत की,
यह पुड़िया,
सुख - दुख में,
तेरे साथ रहेगी,
सही सलाह तुझे,
यह देगी,
मुझसे भी ज्यादा,
प्यार करेगी!
अब क्या होगा,
स्मृति शेष,
रही वह गुड़िया,
अम्मा के जादू की पुड़िया!
मैंने अपना घर फूंका है,
हुआ अकेला खाक उड़ा रहा,नहीं दिख रही,
न मां, न गुड़िया!!
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