गुरुवार, 4 अप्रैल 2024

जानकारीकाल हिन्दी मासिक अप्रैल - 2024

 जानकारी काल 



   वर्ष-24   अंक-11   अप्रैल - 2024,  

पृष्ठ 45   मूल्य 2-50   

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ॐ जयन्ती मङ्गला काली भद्रकाली कपालिनी। दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तु ते।

  माँ काली के इस मंत्र को बेहद ही प्रभावशाली माना जाता है अगर हमे श्रद्धा और विश्वास  के साथ माँ काली के इस मंत्र का पाठ करना चाहिए  है | इस मंत्र का जाप प्रतिदिन 108 बार पूरी श्रद्धा  के साथ करना  चाहिए, खासकर नवरात्र के दिनों में यह मंत्र का जाप बड़ा कल्याणकारी माना जाता है।


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 सतीश शर्मा 


 

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प्रकाशक व मुद्रक 

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सभी लेखों पर संपादक की सहमति आवश्यक नहीं है पत्रिका में किसी भी लेख में आपत्ति होने पर उसके विरुद्ध कार्रवाई केवल दिल्ली कोर्ट में ही होगी 

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      अनुक्रमणिका


अपनी बात - 3  

एक महान नदी और नारी का मिलन स्थल महेश्वर - 4 लेख

गुमराह - 11 कहानी

हमारा पुरातन इतिहास - 14 लेख 

मांगलिक दोष विचार परिहार- 17 लेख

पितृदोष क्यो एवं उपाय - 18 ज्योतिष लेख 

इच्छाशक्ति की शक्ति- 20 लेख

सर्वार्थ सिद्धि योग अप्रैल - 2024

इन्सानियत - 22 कहानी

भद्रा विचार अप्रैल - 2024

ठाकुर सुजान सिंह - 26 कविता 

एक औरत ऐसी भी - 28 कहानी

दवाई की शीशी - 30 कहानी

आफिस की टेंशन - 32 कहानी

पंचक विचार अप्रैल - 2024

गरीब की लोकी - 34 कहानी

अप्रैल 2024 के महत्वपूर्ण दिवस- 36 जानकारी

पापमोचनी एकादशी - 42 कथा

कामदा एकादशी - 43 कथा

भारतीय व्रतोत्सव अप्रैल - 2024



अपनी बात 

जंगल के रक्षक बनो ,करके ये संकल्प। हरी भरी अपनी धरा ,पर्यावरण प्रकल्प।

प्राणवायु देकर हमें ,वृक्ष बचाएं जान।पर्यावरण सुधारते ,जैवविविधता मान।

कीट पतंगों का हमारे पर्यावरण और यहां तक कि इंसानों के अस्तित्व तक से गहरा नाता है. इनकी जनसंख्या और विविधता में बदलाव पूरी दुनिया के पर्यावरण को प्रभावित करता है । जर्मनी के एक शोध में पाया है कि यूरोप और दुनिया के कई अन्य इलाकों में कीट-पतंगों की संख्या में तेजी से गिरावट देखने को मिली है और इसमें अधिकांश के लिए सीधे तौर पर इंसानी गतिविधियां जिम्मेदार हैं जिनसे कीटों के आवास प्रभावित होते हैं. हाल के सालो में  कीट-पतंगों की प्रचुरता और विविधता में कमी चिंताजनक हो गई है |

वनों में जलवायु परिवर्तन को कम करने की महत्त्वपूर्ण क्षमता होती है। वनीकरण द्वारा जलवायु परिवर्तन को कम किया जा सकता है। पौधे एवं वनस्पतियाँ प्रकाश संश्लेषण के माध्यम से कार्बन डाई ऑक्साइड में कमी लाते हैं, साथ ही मृदा भी पौधों और जीवों से निकलने वाले जैविक कार्बन को रोके रखती है।वन का पर्यावरण पर बहुत  प्रभाव पड़ता है  वन कई प्रकार से पर्यावरण को बेहतर बनाते हैं जैसे: हवा की सापेक्ष आर्द्रता बढ़ जाती है। सतही मिट्टी की उर्वरता बढ़ाएँ । ये मिट्टी में बड़ी मात्रा में कार्बनिक पदार्थ जोड़ते हैं जिससे मिट्टी की पानी और पोषक तत्व धारण क्षमता बढ़ जाती है।इस लिय वनों का होना पर्यावरण व हमारे जीवन की लिए उपयोगी है |

इनवायरमेंटल क्राइम ये एक लंबी-चौड़ी कैटेगरी है, जिसमें सबसे पहला है वाइल्डलाइफ क्राइम। इसके तहत पेड़ों, जंगल में रहने वाले जीवों दोनों का नुकसान शामिल है. अवैध खनन भी इस क्राइम में आता है। अवैध रूप से मछली पकड़ना और पॉल्यूशन फैलाना पर्यावरण के खिलाफ हो रहे कामों की श्रेणी में आते हैं. इन सबको मिलाकर इकोसाइड कहा जा रहा है।कचरे की हो रही तस्करी कचरे का अवैध निपटारा पर्यावरण से जुड़ा वो अपराध है, जिसके जरिए अपराधी खूब पैसे बना रहे हैं। इसमें सामान्य बायोडिग्रेडेबल कचरे से लेकर खतरनाक किस्म का कचरा भी शामिल है, जैसे सीरिंज, खराब इलेक्ट्रॉनिक सामान और खराब दवाएं। इनका सही निपटारा जरूरी है ताकि वे धरती या जीव-जंतुओं को नुकसान न पहुंचाएं। इसके लिए हर देश की बाकायदा गाइडलाइन तक है, लेकिन पैसे बचाने के लिए अपराधी संगठन इस कचरे को अवैध तरीके से दूसरे देशों में ले जाकर छोड़ आते हैं। भारत में इकोसाइड पर अलग से कानून नहीं यहां जीवन का अधिकार के तहत ये माना जाता है कि हरेक नागरिक को साफ हवा और पानी मिलना चाहिए. इसके अलावा, भारतीय संविधान की धारा 48-ए में कहा गया कि यह सरकार की जिम्मेदारी है कि वो पर्यावरण, यानी जंगल, वाइल्ड एनिमल्स और पानी में रहने वाले जीवों की सुरक्षा पक्की करे। ऐसे में अगर किसी की वजह से इसमें कोई रुकावट आए तो दोषी को सजा मिल सकती है, लेकिन ऐसे मामले कम ही आते हैं. जंगल को नुकसान पहुंचाने पर भी सख्त सजा और जुर्माना नहीं है।




एक महान नदी और नारी का मिलन स्थल महेश्वर

  – गोपाल महेश्वरी

परम पुरातन दिव्य सनातन देवभूमि भारत के मनोहर मध्य क्षेत्र को ही वर्तमान युगीन मध्य प्रदेश कहते हैं। मालवा और नीमाड़ इसी प्रदेश के दो महत्त्वपूर्ण उपखंड हैं। इतिहास और संस्कृति के अनेक अमर पत्र यहाँ रचे गए। मालवा की सर्वोच्च महिमा ज्योर्तिलिंग महाकालेश्वर और शक्तिपीठ हरसिद्धि के कारण विश्वश्रुत है तो प्रसिद्ध चार कुम्भस्थलों में से एक कुंभस्थल भी मालवा की सृष्टि में मोक्षदा सप्तपुरियों में से एक अवंतिकापुरी के पावन शिप्रातट पर ही स्थित है। भगवान श्रीकृष्ण और महाबलधाम श्री बलराम जी की पवित्र शिक्षास्थली और सम्राट विक्रमादित्य की राजधानी भी यहीं विशाला अर्थात् वर्तमान उज्जैन में थी। उज्जयिनी या उज्जैन ने मालवा के जो गौरव दिया उनके कारणों, उपदानों की सूची बड़ी लम्बी है। लेकिन अर्वाचीन इतिहास में यही मालवा एक और प्रातःस्मरणीय महीयसीनारी के कारण गौरवान्वित है, वे हैं पुण्यश्लोका, लोकमाता अहिल्याबाई होल्कर। वे मालवा के ही एक नगर इन्दूर की महारानी थीं। यह इन्दूर ही वर्तमान में मध्यप्रदेश का विशाल और प्रख्यात नगर इन्दौर है।

अब थोड़ी चर्चा निमाड़ की करते चलें। किंवदन्ती है, किसी समय सघन नीम के पेड़ों की बहुलतायुक्त भूमि के कारण इसका नाम नीमाड़ पड़ गया। यद्यपि वर्तमान में इसकी शीतल सघन हरीतिमा सीमित होती जा रही है। बारह ज्योतिर्लिंगों में एक सुप्रसिद्ध ओंकारेश्वर (अमरेश्वर) इसी पुण्यक्षेत्र में स्थित है। भारतीय सांस्कृतिक वांग्मय में गंगा, यमुना, सरस्वती, गोदावरी 


आदि सप्त सरिताएँ अत्यन्त पुण्या एवं मोक्षदायिनी मानी गई हैं। इन्हीं में एक है नर्मदा। मध्यप्रदेश के ही अनूपपुर जिले के पवित्र स्थल अमरकंटक से निकलकर अपने सुदीर्घ धारापथ के उभयतटों पर असंख्य तीर्थस्थली, अनेक नगरों को तृप्त करती नर्मदा का भरपूर आश्रय इस नीमाड़ को मिला है। ओंकारेश्वर तीर्थ इसी शिवतनया के सुन्दर तट पर स्थित है। यहीं है जगद्गुरु आदि शंकराचार्य के गुरु आचार्य गोविन्द भगवद् पाद की तपस्थली भी। इसी ओंकार क्षेत्र के समीपस्थ है ऐतिहासिक एवं पौराणिक महत्त्व का धनी महेश्वर। पुराण कथाओं में महाबली सहस्रार्जुन की राजधानी महिष्मती ही वर्तमान महेश्वर है ऐसी मान्यता है और देवी अहिल्याबाई होल्कर की भी यह राजधानी बनकर आधुनिक स्थान में सुचर्चित नगर है।

माँ अहिल्या के बारे में चर्चा आगे बढ़ाने से पहले उनसे विशेष रूप से जु़ड़े इन दो मालव व नीमाड़ क्षेत्रों की वार्ता के बाद थोड़ी बातें पुण्यतोया नर्मदा की भी आवश्यक है। भारत के सप्त पर्वतों में प्रतिष्ठित विन्ध्य और उसके सहोदर तुल्य सतपुड़ा के मध्य जो पर्वत क्षेत्र मैकल कहलाता है उसी के अंक में नर्मदा का प्रथम दर्शन होता है। गंगा की भाँति नर्मदा को भी स्वर्ग सरिता माना गया है। स्कन्दपुराण के अनुसार चन्द्रवंशीय चक्रवर्ती सम्राट् पुरुरवा के राज्य में एक बार भयंकर अकाल पड़ा। अन्न जल के बिना प्रजा तड़प-तड़पकर मरने लगी। तृण पल्लव नीर के अभाव में पशु पक्षी कालकवलित हो गए। त्राहि-त्राहि का आर्तस्वर सुन तपस्वी ऋषिगणों ने सम्राट् को उपाय सुझाया कि स्वर्ग में नर्मदा नामक कन्या निर्मल पावन जल प्रवाह बन कर प्रवहमान है। वह अत्यंत तेजस्वी है, यह तेज उसने घोर तपस्या करके अर्जित किया है। वह त्रिभुवन पावनी शक्ति से युक्त है। उसका भूतल पर आगमन ही उपस्थित भीषण अकाल के गाल से छूटने का एक मात्र उपाय है। ऋषियों ने बताया कि नर्मदा दृढ़निश्चयी है, हठीली है अतः उसे मनाना बड़ा कठिन होगा।

पुरुरवा यह जानकर व्याकुल हो रहे थे। अपनी प्रजा का त्रास देखना उनकी सहनशीलता की सारी सीमाएँ तोड़ चुका था। कैसे भी हो पर वे समाधान चाहते थे। तभी लोकानुग्रह के लिए ही सदैव पर्यटन करने वाले महामुनि नारद का संतहृदय द्रवित हुआ और वे पुरुरवा से कह उठे, “महाराज! नर्मदा एक तपस्विनी है, उसे तप करके ही अनुकूल करना संभव है। तप से सबसे शीघ्र प्रसन्न होने वाले तो आशुतोष शिवशंकर ही है। राजा ने नौ वर्ष निराहार तप कर औढरदानी शिव को प्रसन्न किया और वरदान में नर्मदा को भूलोक पर अवतरण की आकांक्षा प्रकट की। आगे की कथा गंगावतरण की कथा से मिलती जुलती है। शिव जी ने स्वयं कहा कि तप एवं तेज के प्रभाव से नर्मदा इतनी वेगवती है कि यह वह पृथ्वी पर आयी तो उसे फोड़कर त्राहि-त्राहि मचा देगी। उसके वेग को कौन संभाल सकेगा। गंगा को तो स्वयं शिव ने सम्हाला था पर नर्मदा के लिए पृथ्वी के प्रधान-प्रधान आठ पर्वतों से पूछा गया लेकिन अपरिमित वेगवती नर्मदा के वेग को कौन सहे। अचलों का मानस भय से विचलित हो उठा। अन्ततः शिवकृपा और पिता विन्ध्याचल की प्रेरणा से पुरुरवा की प्रजा का मंगल करने पर्यंक पर्वत ने यह दायित्व स्वीकारा। शिवाज्ञा से ही अपना हठ छोड़ नर्मदा विकट वेग व प्रचंड प्रवाह से धराधाम पर कूद पड़ी। उसके प्रलय तुल्य प्रवाह से भूमंडल भयभीत हो उठा। प्रजा भय से काँप उठी। पहले जल के बिना प्राण जा रहे थे अब जल ही प्राणांतक स्थिति उत्पन्न कर रहा था। तब करुणाकर भोलेनाथ ने ही 



नर्मदा को सौम्य शान्त प्रवाहमान बनने की आज्ञा दी।

इस पौराणिक आख्यान से तो नर्मदा का लोकोपकार हेतु धरती पर आना सिद्ध होता है। प्रत्यक्ष दर्शन में भी यह अमरकंटक 

से लेकर भृगुकृच्छ (भडूच, गुजरात) में सागर मिलन करने तक 1312 कि.मी. लम्बे यात्रापथ में असंख्य प्राणियों का जीवनोद्धार है। दोनों तटों पर सैकड़ों तीर्थ एवं विशाल वनवैभव से भूषित लोक में गंगा, यमुना, सरस्वती तुल्य पूज्यता प्राप्त यह नदी सुन्दरता के कारण सौन्दर्य की नदी, पावनता के कारण दूसरी गंगा, लोकोपकारिता के कारण मध्यप्रदेश की जीवनरेखा और सांस्कृतिक महत्ता के कारण संस्कृति धारा कहलाती है। युगों युगों से यह जनश्रद्धा का आगाध स्रोत है। लोग इसे नदी नहीं माँ मानते हैं। स्वयं जगद्गुरु आदि शंकर ने ‘त्वदीय पादपंकजम् नमामि देवि नर्मदे।’ कहते हुए माँ नर्मदा की वंदना की है।

नर्मदा अन्तःसलिला कही जाती है। ऊपर से शांत लेकिन अंदर ही अन्दर अत्यंत प्रवाहमयी। इसका एक नाम रेवा है, जिसका अर्थ है छलांग लगाना। नर्मदा का प्रवाहपथ देखें तो इस नाम की सार्थकता स्वयंसिद्ध हो जाती है। अल्हड़ आल्हाद से भरी यह शिव कन्या अनेक ऊँचे-नीचे पर्वतपथ से निकलती है तो फिसलती नहीं, उछलती हुई, कूदती हुई अनेक प्रपात निर्मित करती, कहीं अत्यन्त चौड़े और कहीं नितांत संकुचित स्वरूप में लगभग 400 गाँवों से गुजरती है। वस्तुतः ये गाँव नहीं तीर्थ हैं। इतने पावन कि प्रतिवर्ष असंख्य श्रद्धालु इनसे गुजरते हैं, माँ नर्मदा की परिक्रमा करते हैं। धराधाम पर मात्र एक ही नदी है, जिसकी परिक्रमा की जाती है। 2576 किलोमीटर कोई पैदल तो कोई वाहनों पर लेकिन सदियों से यह यात्रा अनवरत अखंड परम्परा के रूप में चल रही है।

नर्मदा शब्द का अर्थ है खेलने वाली, एक और अर्थ है आनन्द देने वाली। मनमाना पथ, मनमानी गति, स्वाधीन सरिता नर्मदा। देश की प्रायः सभी सरिताएँ पश्चिम से पूर्व दिशा में प्रवाहित होती हैं लेकिन नर्मदा पूर्व से चलती है, पश्चिम की ओर बहती जाती है। वैदिक काल से आजतक अक्षुण्ण महिमावाली, पावन इतनी की इसके प्रवाह का कंकर -कंकर शंकर कहलाता है। नर्मदा के शिवलिंग की प्राणप्रतिष्ठा नहीं करनी पड़ती। वह स्वयं शिवचैतन्यमय होता है। कहा जाता है कि ‘ग्रामे वा यदि वाऽरण्ये पुण्या सर्वत्र नर्मदा।’ गाँव हो या जंगल हो नर्मदा जहाँ भी हो, पुण्यप्रदा है। और तो और इसका दर्शनमात्र भी मुक्ति देता है। नर्मदा गाथा जितनी कही जाए, कम ही है। लेकिन अब बात नर्मदा सुता-देवी अहिल्या की। अपने कालजयी काव्य कामायनी में श्री जयशंकर प्रसाद से लिखा है-

नारी तुम केवल श्रद्धा हो, विश्वास रजत नग पग तल में,

पीयूष स्रोत सी बहा करो, जीवन के सुन्दर समतल में।

प्रसाद जी ने नारी को श्रद्धा-सरिता के रूप में विश्वास नग से अमृत प्रवाहिनी बन जीवन के सुन्दर समतल में बहने की भावना व्यक्त की है। श्रद्धा की साकार प्रतिमा बनकर लोकोपकार करती रही, ऐसी ही नदी है नर्मदा और नारी अहिल्या। लोक विश्वास नग से प्रवाहित लोकजीवन में वितरित लोक श्रद्धा की सरिता। हाँ, इनका जीवन पथ समतल नहीं, अत्यन्त उथल-पुथल भरा, उतार चढ़ाव वाला रहा पर लोकोपकार कर्तव्य से वे रंचमात्र भी विचलित नहीं हुई। 


आरम्भ में ही नर्मदा-कथा इसलिए कही कि माँ नर्मदा और पुत्री अहिल्या में अनेक गुणों की समता है, जैसी माँ बेटी में होती है। निर्मलता, 

निश्छलता, स्वाभिमान, संघर्षशीलता, निरंतरता, गतिमयता, अपना सर्वस्व निस्वार्थ भाव से लोक में वितरित करते रहने की तीव्रभावना, लोक से जुड़े रहकर भी एक अलग सा निजी एकांत, वैराग्य। कितना साम्य है इनकी अन्तर्बाह्य प्रवृत्तियों में और हो भी क्यों न, दोनों परम शिवभक्तिनी जो हैं। होलकर राजवंश के संस्थापक श्रीमन्त मल्हारराव होलकर पूना के निकट लगभग बीस कोस पर बसे होल गाँव के निवासी होने से होलकर कहलाए। मल्हारराव एक पशुपालक कृषक परिवार के कुलदीपक थे। परम्परागत पारिवारिक आजीविका यही थी पर वे अदम्य साहसी और पराक्रमप्रिय पुणे के पेशवा, छत्रपति शाहूजी महाराज के प्रधान सहायक थे। उनकी दृष्टि ने मल्हारराव की छुपी प्रतिभा पहचान ली और अवसर मिलते ही मल्हारराव ने अपनी प्रतिभा का प्रकट परिचय करा दिया। पेशवा ने उन्हें मालवा व खानदेश का सूबेदार बना दिया। उस समय इस क्षेत्र पर निजाम का अधिकार था पर मराठों का शौर्य उत्कर्ष पर था। अतः निजाम से छीन कर मल्हारराव ने इस क्षेत्र को मुक्त कराया तथा 20 जनवरी 1728 इन्दौर में होलकर राजवंश की स्थापना का मंगलदिन बना। होलकर परम शिवभक्त थे।

महाराष्ट्र के जामखेड़ अहमदनगर के निकट चौढ़ी नामक ग्राम में नदीतट पर बालुका से एक शिवलिंग बना कर उसकी पूजा में तल्लीन एक अत्यंत तेजस्विनी लेकिन सामान्य रूप, रंग, कदकाठी की बालिका को अपनी सहेलियों के आचरण के विरुद्ध सैनिक घुड़सवारों को देख भागते न देख शिवलिंग रक्षा में तत्पर देखा तो मल्हारराव उस बारह वर्षीय बच्ची पर मुग्ध हो उठे। परिचय प्राप्त किया तो ज्ञात हुआ कि पास ही गाँव में साधारण ग्रामीण कृषक श्री मनकोजी शिंदे की बेटी है यह, नाम है अहिल्या।

मानकोजी ने यह निर्भीक निश्छल और सतर्क आस्तिक बुद्धिमती कन्यारत्न स्वयं जगदम्बा की आराधना कर उनके आशीर्वाद से पाया था। कहते हैं जौहरी ही पाषाण रूप में मिट्टी में दबे हीरे की परख कर सकता है। मल्हारराव को यह कन्या अपने पुत्र खाण्डेराव के लिए सुयोग्य वधु जान पड़ी और वे उसे ब्याह करवा कर इन्दौर के राजवाड़े में ले आए।

बालिका रूप में आई इस अनगढ़ प्रतिमा को मल्हारराव ने ऐसा निखारा कि वह इस राजवंश की बहू ही नहीं बल्कि राजसभा की अभिन्न और महत्त्वपूर्ण सदस्य भी बन गई। वे बचपन से ही अत्यंत उदारमन की दयालु व सहयोगी वृत्ति की थीं। वे धार्मिक स्वभाव की थीं। आस्तिक थीं प्रतिदिन शिव-पूजा करतीं, दान धर्म करतीं लेकिन उनके विचारों में रूढ़िवादिता किंचित् भी न थी। वे प्रत्येक समस्या पर बहुजनहिताय एवं सर्वसुखाय चिंतन की पक्षधर थीं। सामाजिक सुधारों के लेकर उनका चिंतन बहुत क्रान्तिकारी था। इसका उन्हें बहुत विरोध भी सहना पड़ा पर उनके तर्कपूर्ण न्याय व नीतिसंगत दृढ़ निर्णयों की ही विजय हुई। उनके पति श्री खाण्डेराव कला संगीत एवं आमोद-प्रमोदप्रिय पर एक वीर योद्धा थे। वर्ष 1754 में अजमेर में जाटों के चौथ न देने कारण छिड़े युद्ध में खाण्डेराव वीरगति पा गए। वे मल्हारराव के एकमेव उत्तराधिकारी थे। उनका असामयिक निधन होलकर राजवंश पर वज्राघात था। युवावस्था में ही अहिल्या 



वैधव्यग्रसित हो गई। पति की चिता के साथ तब की रीति के अनुसार वे सती होना चाहती थीं। सामाजिक कुरीतियों की पक्षधर न होते हुए भी अहिल्या ने यह निर्णय अपने पति के प्रति दृढ़ प्रेम के कारण ही लिया था। लेकिन मल्हारराव राव भी अहिल्या के समान ही स्वतंत्रचेता विवेकी पुरुष थे। उन्होंने अहिल्या को उसका कर्तव्यबोध करा कर सती होने से रोक लिया।

खाण्डेराव और अहिल्या की दो संतानें थीं। पुत्र मालेराव व पुत्री मुक्ताबाई। अहिल्या उनका संगोपन राजोचित रीति से करने लगीं। वृद्ध होते श्वसुर मल्हारराव को राज्य संचालन में उनका अनन्य सहयोग प्राप्त होता था। यहाँ तक कि न केवल शास्त्रों अपितु शस्त्रों के संचालन में भी अहिल्या ने सिद्धता प्राप्त कर ली थी।

दुर्दैव से 1767 में मल्हारराव जब उत्तरी भारत के सैन्य अभियान पर थे, ग्वालियर के निकट आलमपुर में उनका स्वास्थ्य अचानक ऐसा बिगड़ा कि वे फिर रुग्ण शैया से उठ न सके और कुछ ही दिनों में वही उनकी मृत्यु शैया सिद्ध हुई। पहले पति फिर पितातुल्य श्वसुर के निधन से अहिल्या पर विपत्तियों का ही नहीं तो उत्तरादायित्वों का भी पर्वत आ गिरा। होने को पुत्र मालेराव ही स्वाभाविक उत्तराधिकारी था होलकर राज्य का, वह गद्दी पर बैठा भी पर वह विवेकहीन, दुराचारी व दुष्ट था। अहिल्याबाई के आदर्शों और मल्हारराव की क्षमता, योग्यता के विपरीत। ईश्वर इच्छा से वह मात्र नौ माह शासन कर सका और अकाल मृत्यु को प्राप्त हुआ। अब राजसिंहासन सर्वथा सूना हो चुका था। अहिल्या बाई सर्वथायोग्य थी, पर एक महिला राज्याधिकारिणी बने, यह राज्यसभा के अन्दर व बाहर अनेक लोगों को स्वीकार्य न था। मल्हारराव के समय से ही राज्य के प्रभावी परामर्शदाता पुरोहित गंगाधर पंत अहिल्या पर दबाब बना रहे थे कि वे दत्तकपुत्र ले लें लेकिन इस परामर्श के पीछे उनके मन में एक कुटिलता थी। वे जानते थे कि दत्तक उत्तराधिकारी उनकी अंगुलियों पर नाचने वाली कठपुतली भर होगा लेकिन अहिल्याबाई की प्रतिभा व बुद्धि के आगे उनकी कुछ भी नहीं चलेगी। कुटिल गंगाधर अपने अस्वीकृत परामर्श से तिलमिला उठा और उसने पेशवा के चाचा राघोबा को इन्दौर की गद्दी पर अधिकार हेतु उकसाया। वे लोभ में आ गए और इन्दौर की ओर बढ़ चले।

यह अहिल्या की विकट परीक्षा का अवसर था। कर्तव्यनिष्ठा और उद्यमशीलता की प्रतिमूर्ति अहिल्या ने सिंधिया, गायकवाड़ और भौंसले राजाओं को सहायता के लिए पत्र भेजा, अपनी सेना को भी तैयार होने की आज्ञा दे दी। अपने विश्वासपात्र वीर और रणकुशल सहयोगी तुकोजीराव को सेना का प्रमुख बनाया। विपक्षी सेना शिप्रा के तट पर  आ पहुँची। तुकोजी भी इस किनारे सेनासहित आ डटे थे। महारानी अहिल्याबाई ने तुकोजी को आगे भेजा पर स्वयं वह बैठी न रहीं। उन्होंने स्वयं भी रणवेश धारण कर स्त्रियों की सेना तैयार कर ली। उधर से पेशवा और भौंसलों की सेना भी रानी की सहायता को चल पड़ी। राघोबा के उत्साह पर पानी फिर गया। बिना लड़े ही वह शोक प्रकट करने के बहाने कुछ दिन इन्दौर के राजबाड़े में रहकर लौट गया। नियति अहिल्या सुरक्षित करने को नर्मदा की गोद में धकेल रही थी। इन्दौर के आसपास ठगां, डाकुओं, पिण्डारियों के उत्पात बढ़ चले थे। पड़ोसी राज्यों में पारस्परिक संघर्ष हो रहे थे। रानी ने दृढ़ता से उपद्रवों को शांत किया। राज्य की सीमा कतिपय वनवासिनी जातियों के आतंक से ग्रस्त थी। अहिल्या ने पहले तो उन्हें समझाया, न समझने पर उनपर बल प्रयोग कर कठोर अनुशासन किया। लेकिन वह यहीं न 


रुकी, समस्या का सर्वथा निर्मूलन करने के लिए उनके प्रति सुधारात्मक नियत से उनके उजड़े घर गाँव निर्माण किए और रोजगार उपलब्ध करवाया कि जिससे वे लूटपाट के लिए कभी भी विवश न हों। इतना ही नहीं उन जातियों को ही राज्य के आसपास के पथों की सुरक्षा का काम सौंप दिया, बदले में उन्हें वहाँ से गुजरने वाले व्यापारियों से थोड़ा कर मिलने की व्यवस्था बनाई, जो भीलकोड़ी के नाम से प्रसिद्ध हुई।

असाधारण बुद्धिमत्ता, अनुपम औदार्य व अतुल्य प्रजावत्सलता ने उन्हें लोकमाता के रूप में जन-जन का श्रद्धाभाजन बना दिया।

होलकर राजवंश में उस समय सोलह करोड़ रुपये राजकोष में थे। लेकिन श्वेत वस्त्रधारिणी, नैष्ठिक, शिवभक्तिनी अहिल्या एक साध्वी राज्ञी थी। माँस,मदिरा, भोग, विलास से सर्वथा दूर एक संयमी, सादा जीवन और प्रतिपल प्रजाहित का चिंतन। यहाँ तक कि सारा राजकोष शिवार्पण कर उससे एक कोड़ी भी स्वयं के लिए खर्च न करने का व्रत लिया था उन्होंने। संकल्प था यह सारा धन धर्म, परोपकार एवं प्रजा कल्याण के कार्यों में व्यय करूँगी।

सूचना पेशवा तक पहुँची तो लोभवश वे इसमें से कुछ धन की अपेक्षा प्रकट कर बैठे। रानी ने निर्भीक उत्तर भेजा, यह धन तो मैं शिवार्पण कर चुकी हूँ। उसमें से एक मुद्रा भी निकालने का मेरा क्या अधिकार है? हाँ आप ब्राह्मण हैं दान चाहते हों तो आपको कुछ देने का संकल्प करूँ। पेशवा क्रोध से सुलग उठे। “मैं दान लेने वाला नहीं, तलवार चलाने वाला ब्राह्मण हूँ;” कहलाकर तलवार के बल पर यह धन लेने का संदेश भेज दिया। अहिल्या का प्रत्युत्तर था, “मेरे जीते जी तो इसे छू नहीं सकते हैं”।

पेशवा ने इन्दौर पर चढ़ाई कर दी। विराट् सेना के सम्मुख अहिल्या की सेना अत्यल्प थी। अहिल्या ने पाँच सौ स्त्रियों की एक छोटी सी टुकड़ी तैयार की और रणांगण में जा पहुँचीं। जानती थी यह असमान युद्ध होगा, पर रानी ने धैर्य न छोड़ा। पेशवा को संदेश भेजा- “शास्त्रों में स्त्रियों पर शस्त्रप्रयोग निषिद्ध है। अधर्म है यह आप जानते हैं। प्रहार होने पर प्राण रहते हमारा लौटना असंभव है”। स्त्रियों को सामने देख पेशवा बिना लड़े लौट गए।

व्यापारिक एवं सामरिक कारणों से अहिल्याबाई ने मल्हारराव के निधनोपरांत राजधानी महेश्वर को बनाया था। नर्मदा के पुराण प्रसिद्ध तट पर उनका खुला दरबार सजता था। जिसमें कोई राजसी रास-विलास नहीं था, होती थी प्रजा समस्या के समाधान की बातें या धर्मचर्चा।

महेश्वर हैहयवंश के प्रतापी राजा सहस्रार्जुन की राजधानी महिष्मती का ही आधुनिक नाम है, ऐसी मान्यता है। एक रोचक पुराण कथा के अनुसार एक बार सहस्रार्जुन अपनी 500 रानियों सहित अपने हजार हाथों से नर्मदा की धारा को रोककर जल विहार कर रहा था कि वहाँ से गुजरते हुए रावण ने इसे अपनी शिव पूजा में बाधा मानकर ललकारा तो महाबली सहस्रार्जुन ने उसे बंदी बना लिया। महेश्वर तब से राजराजेश्वर तीर्थ बन गया। सहस्रार्जुन की पत्नियाँ रावण के दस मस्तकों पर रख कर दीप जलाती थीं तभी से यहाँ आज भी दीप जलाने की परम्परा चली आ रही हैं। यहीं भगवान परशुराम ने सहस्रार्जुन का युद्ध हुआ था। युद्ध समाप्त न होते देख कर भगवान दत्तात्रेय ने सहस्रार्जुन को समझाया और 



वे राजराजेश्वर के रूप में मंदिर के शिवलिंग में समा गए। पुराण गाथाओं में प्रायः विविधताएँ मिलती हैं। प्रसिद्धि तो यह भी है कि विश्वविजय करने निकले आदि शंकराचार्य का मण्डन मिश्र से शास्त्रार्थ भी इसी महेश्वर में हुआ था।

महेश्वर का यह पौराणिक इतिहास इतना महिमामंडित रहा है कि यह मध्यप्रदेश की काशी कहा जाने लगा। नर्मदा का विस्तीर्ण पाट सुंदरघाट, अप्रतिम प्राकृतिक दिव्य सौन्दर्य संभवतः ये प्रमुख कारण रहे कि माता अहिल्या ने यहीं एक दुर्ग का निर्माण करवाकर शिवसाक्षी व नर्मदा की सन्निधि में 29 वर्षतक राज्य चलाया। उनके लोकोपकारी व धार्मिक काम केवल मालवा-नीमाड़ या मध्यप्रदेश तक नहीं तो सारे भारतवर्ष, उत्तर से दक्षिण तक देवालयों का जीर्णोद्धार, धर्मशालाओें, कुएँ, बावड़ियां और उनमें संचालित धर्माचरणों व सदावर्तां के रूप में आज भी यह प्रमाणित करते हैं कि लोकमाता अहिल्या का राज्य मात्र होलकर राज्य की सीमा से विस्तृत, बहुत विस्तृत था, कालातीत था कि वह आज भी सुस्थापित है।

महेश्वर साक्षी है कि केवल रण या धर्माचरण ही नहीं तो न्यायप्रियता, सदाचार और साथ ही साथ व्यापार और व्यवसाय-कृषि, जल-प्रबंधन आदि पर भी कितनी कार्यकुशल व व्यापक तथा दूरदर्शिता से अहिल्या नीति क्रियान्वित होती थी। महेश्वर से कपास व रेशम के धागों से बुनी साड़ियाँ आज माहेश्वरी साड़ियों के रूप में सर्वत्र प्रसिद्ध हैं। स्थानीय कामगारों के कला-कौशल का विकास, यह श्रेष्ठ उदाहरण है।

महेश्वर के तीर्थ बनने के कारणों में उसके पौराणिक प्रसंगों के साथ-साथ एक महत्त्वपूर्ण कारण नवीन युग में जुड़ा तो वह है देवी अहिल्या की राजधानी रहना। होलकरों की राजधानी तो इन्दौर भी रहा पर तीर्थ बना महेश्वर क्योंकि यह अहिल्या माँ साहेब का स्वनिर्मित स्वपोषित राज्य था जिसे उन्होंने औपनिषदिक सूक्ति – ‘तेन त्यक्तेन भुंजीथा’ के आधार पर चलाया। नर्मदा साक्षी है तबसे अबतक के हर युग में इन तथ्यों की।

महेश्वर के घाट, नर्मदा की चंचल तरंगों पर तैरती नौकाएँ, अहिल्या माता का किला, उनकी राजगद्दी, राजराजेश्वर का मंदिर, शंकर-मंडन मिश्र के शास्त्रार्थ का स्मृति स्थल, कितना कुछ है यहाँ, पग-पग पर जो आपको आमंत्रित करे, माँ अहिल्या के ममतामयी आँचल की शीतल छाँव का अनुभव करने। इन्दौर महानगर से 100 कि.मी. पर अहिल्यातीर्थ महेश्वर आपको बुला रहा है, बुला रहा है…।

(लेखक इंदौर से प्रकाशित ‘देवपुत्र’ बाल मासिक पत्रिका के संपादक है।)


गुमराह 

सलोनी ने आज कई दिनों के बाद फेसबुक खोला था, एग्जाम के कारण उसने अपने स्मार्ट फोन से दूरी बना ली थी, फेसबुक ओपन हुआ तो उसने देखा की 35-40 फ्रेंड रिक्वेस्ट पेंडिंग पड़ी थीं, उसने एक सरसरी निगाह से सबको देखना शुरू कर दिया, तभी उसकी नज़र एक लड़के की रिक्वेस्ट पर ठहर गई, उसका नाम राजशर्मा था, बला का स्मार्ट और हैंडसम दिख रहा था अपनी डी पी में, सलोनी ने जिज्ञासावश उसके बारे मे पता करने के लिये उसकी प्रोफाइल खोल कर देखी तो वहाँ पर उसने एक बढ़कर एक रोमान्टिक शेरो शायरी और कवितायें पोस्ट की हुई थीं, उन्हें पढ़कर वो इम्प्रेस हुए बिना नहीं रह पाई, और फिर उसने राज की रिक्वेस्ट एक्सेप्टकर ली, अभी उसे राज की रिक्वेस्ट एक्सेप्ट किये हुए कुछ ही देर हुई होगी की उसके मैसेंजर का नोटिफिकेशनटिंग के साथ बज उठा, उसने चेक करा तो वो राज का मैसेज था, उसने उसे खोल कर देखा तो उसमें राज ने लिखा था " थैंक यू वैरी मच ", वो समझ तो 




गई थी की वो क्यों थैंक्स कह रहा है फिर भी उससे मज़े लेने के लिये उसने रिप्लाई करा " थैंक्स किसलिये ?" उधर से तुरंत जवाब आया " मेरी रिक्वेस्ट एक्सेप्ट करने के लिये सलोनी ने कोई जवाब नहीं दिया बस एक स्माइली वाला स्टीकर पोस्ट कर दिया और फिर मैसेंजर बंद कर दिया, वो नहीं चाहती थी की एक ही दिन में किसी अनजान से ज्यादा खुल जाये और फिर वो घर के कामों में व्यस्त हो गई, अगले दिन उसने अपना फेसबुक खोला तो उसे राज के मैसेज नज़र आये, राज ने उसे कई रोमान्टिक कवितायें भेज रखीं थीं, उन्हें पढ़ कर उसे बड़ा अच्छा लगा, उसने जवाब में फिर से स्माइली वाला स्टीकर सेंड कर दिया,थोड़ी देर मे ही राज का रिप्लाई आ गया, वो उससे उसके उसकी होबिज़ के बारे मे पूँछ रहा था,उसने राज को अपना संछिप्त परिचय दे दिया, उसका परिचय जानने के बाद राज ने भी उसे अपने बारे मे बताया कि वो एम बीए कर रहा है और जल्दी ही उसकी जॉब लग जायेगी, और फिर इस तरह से दोनों के बीच चैटिंग का सिलसिला चल निकला,सलोनी को अब उसके मेसेज का इंतज़ार रहने लगा था, जिस दिन उसकी राज से बात नहीं हो पाती थी तो उसे लगता जैसे कुछ अधूरापन सा है, राज उसकी ज़िन्दगी की आदत बनता जा रहा था, आज रात फिर सलोनी राज से चैटिंग कर रही थी, इधर-उधर की बात होने के बाद राज ने सलोनी से कहा..

" यार हम कब तक यूंहीं सिर्फ फेसबुक पर बाते करते रहेंगे, यार मै तुमसे मिलना चाहता हूँ, प्लीज कल मिलने का प्रोग्राम बनाओ ना ",

सलोनी खुद भी उससे मिलना चाहती थी और एक तरह से उसने उसके दिल की ही बात कह दी थी लेकिन पता नहीं क्यों वो उससे मिलने से डर रही थी,

शायद अंजान होने का डर था वो, सलोनी ने यही बात राज से कह दी," अरे यार इसीलिये तो कह रहा हूँ की हमें मिलना चाहिये, जब हम मिलेंगे तभी तो एक दूसरे को जानेंगे "

राज ने उसे समझाते हुए मिलने की जिद्द की," अच्छा ठीक है बोलो कहाँ मिलना है, लेकिन मैं ज्यादा देर नहीं रुकुंगी वहाँ " सलोनी ने बड़ी मुश्किल से उसे हाँ की, "

ठीक है तुम जितनी देर रुकना चाहो रुक जाना " राज ने अपनी खुशी छिपाते हुए उसे कहा,

और फिर वो सलोनी को उस जगह के बारे मे बताने लगा जहाँ उसे आना था,

अगले दिन शाम को 6 बजे, शहर के कोने मे एक सुनसान जगह पर एक पार्क, जहाँ पर सिर्फ प्रेमी जोड़े ही जाना पसंद करते थे, शायद एकांत के कारण, राज ने सलोनी को वहीँ पर बुलाया था,

थोड़ी देर बाद ही सलोनी वहाँ पहुँच गई, राज उसे पार्क के बाहर गेट के पास अपनी कार से पीठ लगा के खड़ा हुआ नज़र आ गया, पहली बार उसे सामने देख कर वो उसे बस देखती ही रह गई, वो अपनी फोटोज़ से ज्यादा स्मार्ट और हैंडसम था,सलोनी को अपनी तरफ देखता हुआ देखकर उसने उसे अपने पास आने का इशारा करा, उसके इशारे को समझकर वो उसके पास आ गई और मुस्कुरा कर बोली " हाँ अब बोलो मुझे यहाँ किसलिये बुलाया है "

'अरे यार क्या सारी बात यहीं सड़क पर खड़ी-2 करोगी,आओ कार मे बैठ कर बात करते हैं "

और फिर राज ने उसे कार मे बैठने का इशारा करके कार का पिछला गेट खोल दिया, उसकी बात सुनकर सलोनी 



मुस्कुराते हुए कार मे बैठने के लिये बढ़ी,

जैसे ही उसने कार मे बैठने के लिये अपना पैर अंदर रखा तो उसे वहाँ पर पहले से ही एक आदमी बैठा हुआ नज़र आया, शक्ल से वो आदमी कहीं से भी शरीफ नज़र नहीं आ रहा था, सलोनी के बढ़ते कदम ठिठक गये, वो पलट कर राज से पूँछने ही जा रही थी की ये कौन है कि तभी उस आदमी ने उसका हाँथ पकड़ कर अंदर खींच लिया और बाहर से राज ने उसे अंदर धक्का दे दिया, ये सब कुछ इतनी तेजी से हुआ की वो संभल भी नहीं पाई, और फिर अंदर बैठे आदमी ने उसका मुँह कसकर दबा लिया ताकि वो चीख ना पाये और उसकेहाँथों को राज ने पकड़ लिया,

अब वो ना तो हिल सकती थी और ना ही चिल्ला सकती थी, और तभी कार से दूर खडा एक आदमी कार मे आ के ड्राइविंग सीट पर बैठ गया और कार स्टार्ट करके तेज़ी से आगे बढ़ा दी, और पीछे बैठा आदमी जिसने सलोनी का मुँह दबा रखा था वो हँसते हुए राज से बोला " वाह भाई

वाह....... मज़ा आ गया....... आज तो तुमने तगड़े माल पर हाँथ साफ़ करा है....

शबनम बानो इसकी मोटी कीमत देगी "

उसकी बात सुनकर उर्फ़ राज मुँह ऊपर उठा कर ठहाके लगा के हँसा, उसे देख कर ऐसा लग रहा था जैसे कोई भेड़िया अपने पँजे मे शिकार को दबोच के हँस रहा हो, और वो कार तेज़ी से शहर के बदनाम इलाके जिस्म की मंडी की तरफ दौड़ी जा रही थी......

ये कोई कहानी नहीं बल्कि सच्चाई है छत्तीसगढ़ की सलोनी । जो मुम्बई से छुड़ाई गई है । ये सलोनी की कहानी उन लड़कियो को सबक देती है जो सोशल मीडिया से अनजान लोगो से दोस्ती कर लेतीहै और अपनी जिंदगी गवां लेती है ।

राहू काल 

राहुकाल दक्षिण भारत की देन है,दक्षिण भारत में राहु काल में कृत्य करना अच्छा नहीं माना जाता, राहु काल में शुभ कृतियों में वर्जित करने की परंपरा अब हमारे उत्तरी भारत में भी अपनाने लगे हैं राहुकाल प्रतिदिन सूर्यादि वारों में भिन्न-भिन्न समय पर केवल डेढ़ डेढ़ घंटे के लिए घटित होता है |


मूल विचार अप्रैल -2024

दि. 1 को 23/11 तक, दि. 8 को 10/12 से दि. 10 को 5/06 तक, दि. 17 को 5/15 से दि. 19 को 10/56 तक, दि. 27 को 3/39 से दि. 29 को 4/48 बजे तक गण्ड मूल नक्षत्र हैं।

ग्रह स्थिति अप्रैल -2024

दि. 2 बुध वक्री,दि. 5 बुध पश्चिमास्त,दि. 9 बुध मीन में, दि. 13 सूर्य मेष में,दि. 20 बुध पूर्वोदय ,दि. 23 मंगल मीन में,दि. 24 शुक्र मेष में,दि. 25 बुध मार्गी ,दि. 30 शुक्र पूर्वास्त



हमारा पुरातन इतिहास 

क्या आप जानते हैं कि  हमारे प्राचीन महादेश का नाम “भारतवर्ष” कैसे पड़ा....?????

साथ ही क्या आप जानते हैं कि हमारे प्राचीन हमारे महादेश का नाम "जम्बूदीप" था परन्तु क्या आप सच में जानते हैं जानते हैं कि  हमारे  महादेश को ""जम्बूदीप"" क्यों कहा जाता है और, इसका मतलब क्या होता है दरअसल  हमारे लिए यह जानना बहुत ही आवश्यक है कि भारतवर्ष का नाम भारतवर्ष कैसे पड़ा

क्योंकि एक सामान्य जनधारणा है कि महाभारत एक कुरूवंश में राजा दुष्यंत और उनकी पत्नी शकुंतला के प्रतापी पुत्र भरत के नाम पर इस देश का नाम "भारतवर्ष" पड़ा  परन्तु इसका साक्ष्य उपलब्ध नहीं है.!

लेकिन वहीँ हमारे पुराण इससे अलग कुछ अलग बात पूरे साक्ष्य के साथ प्रस्तुत करता है ।

आश्चर्यजनक रूप से इस ओर कभी हमारा ध्यान नही गया जबकि पुराणों में इतिहास ढूंढ़कर अपने इतिहास के साथ और अपने आगत के साथ न्याय करना हमारे लिए बहुत ही आवश्यक था।

परन्तु , क्या आपने कभी इस बात को सोचा है कि जब आज के वैज्ञानिक भी इस बात को मानते हैं कि प्राचीन काल में 




साथ भूभागों में अर्थात महाद्वीपों में भूमण्डल को बांटा गया था।

लेकिन ये सात महाद्वीप किसने और क्यों तथा कब बनाए गये इस पर कभी, किसी ने कुछ भी नहीं कहा ।

अथवा दूसरे शब्दों में कह सकता हूँ कि जान बूझकर  इस से सम्बंधित अनुसंधान की दिशा मोड़ दी गयी ।

परन्तु हमारा ""जम्बूदीप नाम "" खुद में ही सारी कहानी कह जाता है  जिसका अर्थ होता है  समग्र द्वीप .

इसीलिए. हमारे प्राचीनतम धर्म ग्रंथों तथा विभिन्न अवतारों में सिर्फ "जम्बूद्वीप" का ही उल्लेख है  क्योंकि  उस समय सिर्फ एक ही द्वीप था साथ ही हमारा वायु पुराण इस से सम्बंधित पूरी बात एवं उसका साक्ष्य हमारे सामने पेश करता है । वायु पुराण के अनुसार त्रेता युग के प्रारंभ में स्वयम्भुव मनु के पौत्र और प्रियव्रत के पुत्र ने इस भरत खंड को बसाया था। चूँकि महाराज प्रियव्रत को अपना कोई पुत्र नही था इसलिए , उन्होंने अपनी पुत्री के पुत्र अग्नीन्ध्र को गोद ले लिया था जिसका लड़का नाभि था !

नाभि की एक पत्नी मेरू देवी से जो पुत्र पैदा हुआ उसका नाम ऋषभ था और, इसी ऋषभ के पुत्र भरत थे तथा  इन्ही भरत के नाम पर इस देश का नाम "भारतवर्ष" पड़ा ।

उस समय के राजा प्रियव्रत ने अपनी कन्या के दस पुत्रों में से सात पुत्रों को संपूर्ण पृथ्वी के सातों महाद्वीपों के अलग-अलग राजा नियुक्त किया था । राजा का अर्थ उस समय  धर्म, और न्यायशील राज्य के संस्थापक से लिया जाता था । इस तरह राजा प्रियव्रत ने जम्बू द्वीप का शासक अग्नीन्ध्र को बनाया था। इसके बाद राजा भरत ने जो अपना राज्य अपने पुत्र को दिया और, वही " भारतवर्ष" कहलाया ।

ध्यान रखें कि भारतवर्ष का अर्थ है राजा भरत का क्षेत्र और इन्ही राजा भरत के पुत्र का नाम सुमति था ।

इस विषय में हमारा वायु पुराण कहता है —

सप्तद्वीपपरिक्रान्तं जम्बूदीपं निबोधत।

अग्नीध्रं ज्येष्ठदायादं कन्यापुत्रं महाबलम।।

प्रियव्रतोअभ्यषिञ्चतं जम्बूद्वीपेश्वरं नृपम्।।

तस्य पुत्रा बभूवुर्हि प्रजापतिसमौजस:।

ज्येष्ठो नाभिरिति ख्यातस्तस्य किम्पुरूषोअनुज:।।

नाभेर्हि सर्गं वक्ष्यामि हिमाह्व तन्निबोधत। (वायु 31-37, 38)

मैं अपनी बात को प्रमाणित करने के लिए रोजमर्रा के कामों की ओर आपका ध्यान दिलाना चाहूँगा कि हम अपने घरों में अब भी कोई याज्ञिक कार्य कराते हैं तो, उसमें सबसे पहले पंडित जी संकल्प करवाते हैं । हालाँकि हम सभी उस संकल्प मंत्र को बहुत हल्के में लेते हैं और, उसे पंडित जी की एक धार्मिक अनुष्ठान की एक क्रिया मात्र मानकर छोड़ देते हैं ।

परन्तु यदि आप संकल्प के उस मंत्र को ध्यान से सुनेंगे तो उस संकल्प मंत्र में हमें वायु पुराण की इस साक्षी के समर्थन 




में बहुत कुछ मिल जाता है ।

संकल्प मंत्र में यह स्पष्ट उल्लेख आता है कि -जम्बू द्वीपे भारतखंडे आर्याव्रत देशांतर्गते….।

संकल्प के ये शब्द ध्यान देने योग्य हैं क्योंकि, इनमें जम्बूद्वीप आज के यूरेशिया के लिए प्रयुक्त किया गया है ।

इस जम्बू द्वीप में भारत खण्ड अर्थात भरत का क्षेत्र अर्थात ‘भारतवर्ष’ स्थित है जो कि आर्याव्रत कहलाता है ।

इस संकल्प के छोटे से मंत्र के द्वारा  हम अपने गौरवमयी अतीत के गौरवमयी इतिहास का व्याख्यान कर डालते हैं ।

परन्तु अब एक बड़ा प्रश्न आता है कि जब सच्चाई ऐसी है तो फिर शकुंतला और दुष्यंत के पुत्र भरत से इस देश का नाम क्यों जोड़ा जाता है ?

इस सम्बन्ध में ज्यादा कुछ कहने के स्थान पर सिर्फ इतना ही कहना उचित होगा कि शकुंतला, दुष्यंत के पुत्र भरत से इस देश के नाम की उत्पत्ति का प्रकरण जोडऩा शायद नामों के समानता का परिणाम हो सकता है अथवा , हम हिन्दुओं में अपने धार्मिक ग्रंथों के प्रति उदासीनता के कारण ऐसा हो गया होगा ।

परन्तु जब हमारे पास  वायु पुराण और मन्त्रों के रूप में लाखों साल पुराने साक्ष्य मौजूद है और, आज का आधुनिक विज्ञान भी यह मान रहा है कि धरती पर मनुष्य का आगमन करोड़ों साल पूर्व हो चुका था, तो हम पांच हजार साल पुरानी किसी कहानी पर क्यों विश्वास करें ?

सिर्फ इतना ही नहीं  हमारे संकल्प मंत्र में.... पंडित जी हमें सृष्टि सम्वत के विषय में भी बताते हैं कि अभी एक अरब 96 करोड़ आठ लाख तिरेपन हजार एक सौ तेरहवां वर्ष चल रहा है ।

फिर यह बात तो खुद में ही हास्यास्पद है कि  एक तरफ तो हम बात एक अरब 96 करोड़ आठ लाख तिरेपन हजार एक सौ तेरह पुरानी करते हैं परन्तु, अपना इतिहास पश्चिम के लेखकों की कलम से केवल पांच हजार साल पुराना पढ़ते और मानते हैं....!

आप खुद ही सोचें कि यह आत्मप्रवंचना के अतिरिक्त और क्या है ?

इसीलिए जब इतिहास के लिए हमारे पास एक से एक बढ़कर साक्षी हो और प्रमाण  पूर्ण तर्क के साथ उपलब्ध हों तो फिर , उन साक्षियों, प्रमाणों और तर्कों केआधार पर अपना अतीत अपने आप खंगालना हमारी जिम्मेदारी बनती है ।

हमारे देश के बारे में वायु पुराण का ये श्लोक उल्लेखित है—-

हिमालयं दक्षिणं वर्षं भरताय न्यवेदयत्।तस्मात्तद्भारतं वर्ष तस्य नाम्ना बिदुर्बुधा:.....।।

यहाँ हमारा वायु पुराण साफ साफ कह रहा है कि  हिमालय पर्वत से दक्षिण का वर्ष अर्थात क्षेत्र भारतवर्ष है ।

इसीलिए हमें यह कहने में कोई हिचक नहीं होनी चाहिए कि हमने शकुंतला और दुष्यंत पुत्र भरत के साथ अपने देश के नाम की उत्पत्ति को जोड़कर अपने इतिहास को पश्चिमी इतिहासकारों की दृष्टि से पांच हजार साल के अंतराल में समेटने का प्रयास किया है ।

ऐसा इसीलिए होता है कि आज भी हम गुलामी भरी मानसिकता से आजादी नहीं पा सके हैं और, यदि किसी पश्चिमी 


इतिहास कार को हम अपने बोलने में या लिखने में उद्घ्रत कर दें तो यह हमारे लिये शान की बात समझी जाती है परन्तु, यदि हम अपने विषय में अपने ही किसी लेखक कवि या प्राचीन ग्रंथ का संदर्भ दें तो, रूढि़वादिता का प्रमाण माना जाता है ।

और यह सोच सिरे से ही गलत है ।

इसे आप ठीक से ऐसे समझें कि राजस्थान के इतिहास के लिए सबसे प्रमाणित ग्रंथ कर्नल टाड का इतिहास माना जाता है ।

परन्तु आश्चर्य जनक रूप से हमने यह नही सोचा कि एक विदेशी व्यक्ति इतने पुराने समय में भारत में आकर साल, डेढ़ साल रहे और यहां का इतिहास तैयार कर दे, यह कैसे संभव है ?

विशेषत: तब जबकि उसके आने के समय यहां यातायात के अधिक साधन नही थे और , वह राजस्थानी भाषा से भी परिचित नही था ।

फिर उसने ऐसी परिस्थिति में सिर्फ इतना काम किया कि जो विभिन्न रजवाड़ों के संबंध में इतिहास संबंधी पुस्तकें उपलब्ध थीं उन सबको संहिताबद्घ कर दिया ।

इसके बाद राजकीय संरक्षण में करनल टाड की पुस्तक को प्रमाणिक माना जाने लगा और, यह धारणा बलवती हो गयीं कि राजस्थान के इतिहास पर कर्नल टाड का एकाधिकार है । और ऐसी ही धारणाएं हमें अन्य क्षेत्रों में भी परेशान करती हैं इसीलिए अपने देश के इतिहास के बारे में व्याप्त भ्रांतियों का निवारण करना हमारा ध्येय होना चाहिए ।

क्योंकि इतिहास मरे गिरे लोगों का लेखाजोखा नही है जैसा कि इसके विषय में माना जाता है  बल्कि, इतिहास अतीत के गौरवमयी पृष्ठों और हमारे न्यायशील और धर्मशील राजाओं के कृत्यों का वर्णन करता है ।

हम गौरवशाली हिन्दू सनातन धर्म का हिस्सा हैं और, हमें गर्व होना चाहिए कि  हम हिन्दू हैं !

मांगलिक दोष विचार परिहार  

वर अथवा कन्या दोनों में से किसी की भी कुंडली में 1,4,7,8 व 12 भाव में मंगल होने से ये मांगलिक माने जाते हैं,मंगली से मंगली के विवाह में दोष न होते हुए भी जन्म पत्रिका के अनुसार गुणों को मिलाना ही चाहिए यदि मंगल के साथ शनि अथवा राहु केतु भी हो तो प्रबल मंगली डबल मंगली योग होता है | इसी प्रकार गुरु अथवा चंद्रमा केंद्र हो तो दोष का परिहार भी हो जाता है |इसके अतिरिक्त मेष वृश्चिक मकर का मंगल होने से भी दोष नष्ट हो जाता है | इसी प्रकार यदि वर या कन्या किसी भी कुंडली में 1,4,7,9,12 स्थानों में शनि हो केंद्र त्रिकोण भावो में शुभ ग्रह, 3,6,11 भावो में पाप ग्रह हों तो भी मंगलीक दोष का आंशिक परिहार होता है, सप्तम ग्रह में यदि सप्तमेश हो तो भी दोष निवृत्त होता है |


 पितृ-दोष क्यों एवं उपाय

                 (ज्योतिष शास्त्र एवं ज्ञान)


सूर्य आत्मा का कारक है वही वैदिक ज्योतिष में इसे पिता का कारक कहा गया है तो राहु और शनि जब सूर्य को प्रभावित करते है तो ‘पितृ दोष’ का निर्माण होता है। इस दोष में यह है कि सूर्य राहु से युति होना चाहिए और उस पर शनि की दृष्टि होनी चाहिए। दूसरी ओर अगर शनि सूर्य के साथ हो या राहु उसे देख रहा हो तो भी पितृ दोष’ प्रमाण होता  है।

अगर पंचम और नवम में ऐसी ग्रह स्थिति हो तो निश्चित ही जातक को ‘पितृ दोष’ से पीड़ित होते हैं। दरअसल पंचम भाव पिछले जन्म का भाव है। वही नवम भाव उससे पंचम यानी धर्म का भाव होने के कारण ऐसा होता है। दरअसल दक्षिण भारत में कुछ विद्वान नवम भाव से पिता का विचार करते है वही इस भाव से पुत्र के पुत्र का भी विचार होता है इसलिए नवम भाव में यह दोष बने तो ज्यादा परेशानी वाला होगा।

ज्योतिष मतानुसार अगर चन्द्रमा भी शनि राहु से युक्त पीड़ित हो तो जातक को मातामही का दोष लगता है। इसके अलावा अगर सूर्य चंद्र दोनों पीड़ित हो तो बेहद नकारात्मक प्रभाव जातक के ऊपर पड़ता है। हालांकि विज्ञान के अनुसार सूर्य चंद्र सिर्फ अमावस्या को ही एक दूसरे से बेहद करीब होंगे और ऐसे में पंचम नवम में शनि राहु से युति या 




दृष्टि की शर्त कई सालों में एक बार आएगी। 

दरअसल राहु चंद्र को कमजोर करता है वही वायु तत्व शनि उस युति को और खराब कर देता है। जिससे जातक जीवन भर मान- सम्मान- सुख- शांति को तरस जाता है और उसे कहीं भी शांति नहीं मिलती है। 

हमारी संस्कृति में पितरों को महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है और जीवित ही नहीं बल्कि मरने के बाद भी हम उनके निमित्त श्राद्ध कर्म करते है।

            अगर किसी जातक की कुंडली में ऊपर दी गई ग्रह स्थिति बन रही है तो उसे अमावस्या के दिन व पितृ पक्ष के दौरान दोष निवारण के उपाय करने चाहिए।

अगर किसी की कुंडली नहीं है तो भी विद्वानों ने पितृ दोष के कुछ लक्षण कहे है जो इस प्रकार है-:

इस दोष से पीड़ित जातक हर जगह असफलता हासिल करता है भले ही वो अपना स्थान ही क्यों न बदल ले। 

ऐसे जातक के घर में कभी शांति नहीं होगी। विवाह के कई वर्षों के बाद भी संतान नहीं होती है। ऐसे जातक को कोई ना कोई बीमारी घेरे रहती है। उसे शरीर में हमेशा भारीपन लगता है। ऐसा जातक घर में कोई मांगलिक काम भी करवाना चाहे तो उसके काम में बाधा आती है। ऐसे जातक के घर में अच्छी खासी कमाई के बाद भी पुत्रों में झगड़ा लगा रहता है। शादी विवाह योग्य बच्चों के बनते रिश्ते में बात बिगड़ने लगती है। अर्थात विवाह में देरी पैदा होती है। कुंडली के जिस भाव में पितृ दोष बनता है अक्सर वह भाव कुंडली का ज्यादा पीड़ित होता है।

जैसे-: यदि पितृ दोष कुंडली के 12वें भाव में बन गया तो फालतू का कर्ज, बीमारियों पर पैसा खर्च- घर में संतानों में व्यसन पैदा होना इत्यादि समस्या उत्पन्न होने लग जाती है।

इस दोष से बचने के कुछ उपाय 

वैसे तो शास्त्रों में पितृ दोष के काफी उपाय बताए गए हैं कुछ उपाय ऐसे होते हैं जो कुंडली जांचने के बाद ही करने चाहिए, लेकिन कुछ सामान्य उपाय होते हैं जो कोई भी व्यक्ति कर सकता है वह इस प्रकार है-:

                  हर अमावस्या को देवताओं को भोग लगाकर अपने पितरों के निमित्त अन्न और वस्त्र भेंट करना चाहिए।सूर्य देव की रोजाना विधिवत पूजा करे और अर्घ्य दें और सूर्य देव के सामने अपने पितरों की शांति की प्रार्थना करें। साल में एक बार किसी पवित्र नदी के किनारे पितरों के निमित्त गरीबों को भोजन दे। अमावस्या के दिन व पहली रात्रि अर्थात चतुर्दशी के रात्रि में कुछ विशेष नियमों का पालन करें। अमावस्या के दिन भगवत गीता के पाठ करें या सुने। भगवत गीता का सातवां अध्याय करना भी श्रेयस्कर  होता है। अमावस्या के दिन विधिपूर्वक पितरों के नियमित गाय को रोटी- गुड़ इत्यादि खिलाएं। उसके बाद ही परिवार के सदस्य भोजन ग्रहण करें। अमावस्या के दिन विधिवत रूप से मंदिर- देवालय- देव वृक्ष आदि की सेवा करें।




इच्छाशक्ति की शक्ति


इच्छाशक्ति हमारे स्व और मन की संयुक्त शक्ति है, जो निर्धारित कार्य को निष्कर्ष तक पहुंचाने में सहायक बनती है। जो सही है यह हमें उस पर चलने तथा जो गलत है, उससे बचने की शक्ति देती है। समस्या यह है कि हम अपनी इच्छाशक्ति को बढ़ाने का प्रयास नहीं करते। भाव एवं बुद्धि के बीच विभेद के कारण हम लक्ष्य की प्राप्ति को बौद्धिक रूप से तो समझते हैं, लेकिन उसे हृदय से अनुभव नहीं करते। ऐसे में बाधाएं हमारे मनोबल को तोड़ देती हैं। जबकि हृदय से लक्ष्य को प्राप्त करने की चाहत हमें वह आवश्यक शक्ति प्रदान करती है, जो तमाम विघ्न-बाधाओं के बीच हमें लक्ष्यसिद्धि तक पहुंचाकर रहती है। *बौद्धिक समझ के साथ अपने आदर्श, लक्ष्य या इष्ट के प्रति अनुराग का होना वह महत्वपूर्ण तत्व है, जो इच्छाशक्ति को बलवान बनाता है।* 

     अपने किए पर पश्चाताप और भविष्य के प्रति चिंताएं - इच्छाशक्ति को कमजोर करने वाले दो बड़े तत्व हैं। भूतकाल में हुई गलतियों को लेकर कुढ़ते रहने से ऊर्जा कुंठित होती है तथा भविष्य के प्रति चिंता व्यक्ति को अकर्मण्य बना देती है। इसके बजाय वर्तमान में जीना जीवन को एक नया अर्थ देता है। इसके लिए जीवन के मूल्यों की स्पष्ट समझ महत्वपूर्ण होती है। इसके अभाव में लोग हर पल बदलती इच्छाओं के हाथों का खिलौना बन जाते हैं। लोग कब सांसारिक कामनाओं और वासनाओं का दास बन जाते हैं- इसका पता ही नहीं चलता। यह मार्ग अंततः उनको दुख की ओर ही ले जाता है। *जबकि मन की शांति और जीवन का आनंद तो सद्गुणों के विकास पर निर्भर करता है न कि धन या सांसारिक सुख-भोग के अंबार पर।*

      *इच्छाशक्ति को बढ़ाने के लिए स्वयं को जितना अधिक हो सके सकारात्मक कामों में व्यस्त रखें।* खाली मन शैतान का घर होता है। स्वस्थ आदतों को अपनाएं। मन को रचनात्मक दिशा में लगाए रखें। इससे कुछ नए सृजन का संतोष मिलेगा और साथ ही इच्छाशक्ति भी बढ़ेगी।

-भगीरथ कुमार


सर्वार्थ सिद्धि योग अप्रैल -2024 

दैनिक जीवन में आने वाले महत्वपूर्ण कार्यों के लिए शीघ्र ही किसी  शुभ मुहूर्त का अभाव हो,किंतु शुभ मुहर्त के लिए अधिक दिनों तक रुका ना जा सकता हो तो इन सुयोग्य वाले मुहर्तु  को सफलता से ग्रहण किया जा सकता है | इन से प्राप्त होने वाले अभीष्ट फल के विषय में संशय नहीं करना चाहिए यह योग हैं सर्वार्थ सिद्धि,अमृत सिद्धि योग एवं रवियोग | योग्यता नाम तथा गुण अनुसार सर्वांगीण सिद्ध कारक  है| 

अधिक जानकारी के लिए संपर्क करे शर्मा जी - 9312002527,9560518227

दिनांक

प्रारंभ

दिनांक

समाप्त

07

12-58

08

06-07

09

07-31

10

05-06

11

03-05

11

06-03

16

03-05

16

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कथा कहानी पढ़ने के लिय किलक्क करे -

www.sumansangam.com

 इंसानियत 


दफ़्तर से अपना काम ख़तम करने के बाद जब अपने घर के लिए गुप्ता जी निकलने लगे तो उस समय उनकी घड़ी में तक़रीबन रात के 9 बज रहे थे । हालांकि रोज़ गुप्ता जी शाम 7 बजे के लगभग अपने ऑफिस से निकल जाया करते थे लेकिन आज काम के दवाब के कारण कुछ देर हो गई थी ।

घर जल्दी पहुँचने की हड़बड़ाहट में गुप्ता जी ने आज बस की जगह टैक्सी पकड़ने का निर्णय लिया औऱ फ़िर ऐप के माध्यम से तुरंत ही एक टैक्सी बुक कर डाली ।

ठीक पाँच मिनट के बाद दनदनाती हुई एक सफ़ेद रंग की चमचमाती मारुती डिजायर गाड़ी आकर उनके पास खङी हो गई। ड्राइवर तुरन्त नीचे उतरकर पिछली सीट साफ करने लगा।

"साॅरी सर जी , एक बुजुर्ग महिला के साथ कुछ छोटे बच्चे बैठे थे, कुछ खा रहे थे" इसलिए सीट थोड़ी गंदी हो गई है 




औऱ मैं उनको मना भी नहीं कर पाया.. बच्चों को भला कैसे मना करता...ड्राइवर ने गुप्ता जी से कहा ।

" ठीक है , ठीक है ,कोई बात नहीं, जल्दी चलो"...गुप्ता जी ने अपनी जुबान चलाई ।

गाड़ी का गेट खोलकर जब गुप्ता जी उसके अंदर बैठे तो देखा कि अभी कार की सीट का प्लास्टिक कवर भी नहीं हटा था औऱ भीतर से नयी कार की खुशबू भी आ रही थी। 

अब ड्राइवर ने अपनी रफ़्तार पकड़ ली ।

" बहुत बधाई हो तुम्हें नयी कार की, बहुत अच्छी कार है... नाम क्या है तुम्हारा?" गुप्ता जी ने जानना चाहा ।

" शुक्रिया सर जी , अभी तीन दिन पहले ही ली है।  मेरे पुराने साहब ने ही दिला दी है। बोले ,चलाओ अभी तुम्हें जरुरत है। मैने कहा कि पैसे कैसे दे पाउंगा , तो बोले ,चलाओ अभी पैसे की मत सोचो, मैं देख लूंगा... सर रमेश यादव नाम है मेरा ".. ..ड्राइवर ने बहुत खुश होकर कहा ।

"अच्छा ठीक है , तो फ़िर ये नई गाड़ी तुम्हारे पुराने साहब ने तुम्हें क्यों दिलायी ?" गुप्ता जी ने जानना चाहा ।

" सर मैं उनकी कार चलाता था तक़रीबन बीस साल से...रोज़ सुबह उनको दफ़्तर ले जाता औऱ फ़िर शाम को वापस घर । उसके बाद जब जहां जरूरत होती वहाँ जाता उनके साथ या फ़िर उनकी पत्नी के साथ ".....ड्राइवर बोला ।

ड्राइवर ने फ़िर अपनी बात आगे बढ़ाई...." सर जी ,कोविड में वर्क फ्राॅम होम होने के कारण काम बहुत कम हो गया, फिर वहाँ मेरी जरुरत ही नहीं रही क्योंकि साहब नौकरी से रिटायर हो गए । उसके बाद मैने फ़ूड कंपनी का काम पकङ लिया... सर बहुत प्रेशर था उसमें "........ ड्राइवर बोला ।

"क्यों?" गुप्ता जी ने कौतूहलवश पूछा।

" सर, पचासों फोन एक साथ आ जाते थे। लोग देर से अपना आर्डर देकर फिर 15 मिनट में डिलीवरी के लिए दवाब बनाते थे। कुछ भी गङबङ हुआ तो बहुत डांट सुननी पङती थी । किसी को धीरज नहीं है सर। दो बच्चे हैं मेरे , काम के जबरदस्त दबाव के कारण 6 महीने कर के वहाँ से छोङ दिया"....ड्राइवर ने कहा ।

"फिर ?" गुप्ता जी ने आगे पूछा ।

" फिर सर , साहब ने ड्राइवर की एक वेबसाइट पर मेरा रजिस्ट्रेशन करा दिया। जब जिसको जरूरत पङती बुला लेता। अपनी सोसाइटी में भी उन्होंने सबको बता दिया था। 10-12 हजार महीन का कमा लेता था ,पेट भर जाता था ....मेरा  औऱ मेरे परिवार का ।"

" फ़िलहाल मेरे दोनों बच्चे पढ़ रहे हैं सर , एक अगले साल दसवीं की परीक्षा देगा औऱ दूसरा बी ए में है ,आगे बोल रहा है कहीं से मैनेजमेंट की पढ़ाई करेगा। अब पढ़ाई में तो पैसा लगता है ना सर। मैं बहुत चिंता में था "...इतना  कहकर ड्राइवर ख़ामोश हो गया औऱ उसकी आंखें भींग गई ।

" फिर ?" गुप्ता जी ने ड्राइवर को कुरेदा ।

" फिर, सर मैने अपने साहब को पूरी बात बताई , तो वे बोले चिंता मत करो, चलो तुमको एक गाङी निकलवा देता हूँ, अब तुम ख़ुद की गाड़ी चलाओ "। 


मैं बोला "साहब ,पैसे कहाँ हैं मेरे पास, तो वे बोले, मैं निकलवा देता हूँ। उन्होंने ही सारी बात की कंपनी से औऱ अपने रिटायरमेंट के मिले पैसों से ये गाड़ी मेरे लिए ख़रीदी ।"

" तो कार साहब के नाम है ?",  गुप्ता जी ने पूछा।

" नहीं सर, मेरे नाम से " ड्राइवर बोला 

" फिर पैसे तो चुकाने पङेंगे, कैसे करोगे इतना सब कुछ ?"

"सर, साहब ने कहा है कि तुम सिर्फ़ मेहनत और ईमानदारी से गाङी चलाओ ,अपनी सारी  जरूरतें ,जिम्मेदारियाँ पूरी करो। पैसे अभी नहीं देने हैं, जब ये गाङी बेचोगे तब बताना....फ़िलहाल मैं सब देख लूंगा ।"

अब तक उस साहब के बारे में गुप्ता जी की उत्सुकता चरम पर पहुँच चुकी थी। ऐसे भले लोग कहाँ आसानी से मिलते हैं इस दौर में भला ।

" क्या करते हैं तुम्हारे साहब ?"

" सर , वो एक बड़े दूरसंचार कंपनी में कार्यरत थे , बड़े ही भले लोग हैं वे, उनकी पत्नी भी ग़रीब बस्ती के बच्चों को खाली समय में अपने घर पर बिलकुल मुफ़्त पढ़ाती हैं । "

"क्या नाम है उनका ?" गुप्ता जी ने पूछा।

"जी , साहब का नाम है प्रफ्फुल शर्मा " ड्राइवर ने कहा ।

" मोबाइल नंम्बर याद है उनका तुम्हें ?" गुप्ता जी की उत्सुकता के बाँध पहले ही ध्वस्त हो चुके थे।

ड्राइवर ने अपने साहब प्रफ्फुल शर्मा का नम्बर गुप्ता जी को बताया।

फिर गुप्ता जी ने उन्हें एक भावनात्मक संदेश व्हाट्सऐप पर भेजा। साथ ही उन्हें बताया कि आपके पुराने ड्राइवर रमेश यादव की नयी गाङी में बैठा हूँ। आपने जो उसके लिए किया है उससे मैं बहुत प्रभावित हुआ हूँ.....।"

दूसरी तरफ प्रफ्फुल शर्मा जी को अनजान नंबर से संदेश पाकर बड़ा आश्चर्य हुआ..." क्या, यह मैसेज मेरे लिए है?" उन्होंने वापस प्रतिक्रिया जाननी चाही ।

फ़िर गुप्ता जी ने विस्तार से प्रफ्फुल जी को पूरी कहानी बताई ।

पूरा संदेश आदान प्रदान के बाद गुप्ता जी ने ये महसूस किया कि प्रफ्फुल साहब ने *अपने ड्राइवर के लिए जो कुछ भी किया है,  उसका रति भर भी श्रेय वे ख़ुद नहीं लेना चाहते* । 

अंत में प्रफ्फुल बाबू ने गुप्ता जी को बस एक ही संदेश भेजा...." ज़नाब , रमेश मेरा ड्राइवर नहीं बल्कि *मेरे लिए मेरे परिवार का एक अहम सदस्य है* "।

गुप्ता जी की आँखे डबडबा गई औऱ वे मन ही मन सोंचने लगे....." साला , कौन कहता है बे कि इंसानियत मर चुकी है इस दौर में.........." !!

अपने घर के मुख्य गेट पर पहुँचकर गुप्ता जी टैक्सी से उतर गए औऱ ड्राइवर रमेश को उसके किराए के अतिरिक्त 



पाँच सौ रुपये का एक नोट थमाया औऱ उससे कहा कि " वापस अपने घर जाते समय बच्चों के लिए मिठाई ख़रीद लेना औऱ उनसे बोलना कि एक अंकल ने भेजा है ".......!!

ड्राइवर रमेश ने आँखों आंखों में ही गुप्ता जी को शुक्रिया कहा औऱ फ़िर कुछ चिंतन करते हुए FM रेडियो का वॉल्यूम बढ़ाकर वहाँ से आगे बढ़ चला.......!!

उस वक़्त रेडियो पर गाना चल रहा था........

 किसी की मुस्कुराहटों पे हो निसार...

 किसी का दर्द मिल सके तो ले उधार...

 किसी के वास्ते हो तेरे दिल में प्यार... 

 जीना इसी का नाम है...!!

भद्रा विचार अप्रैल -2024

भद्रा काल का शुभ अशुभ विचार - भद्रा काल में विवाह मुंडन, गृह प्रवेश, रक्षाबंधन आदि मांगलिक कृत्य का निषेध माना जाता है परंतु भद्रा काल में शत्रु का उच्चाटन करना,स्त्री प्रसंग में,यज्ञ करना,स्नान करना,अस्त्र शस्त्र का प्रयोग,ऑपरेशन कराना, मुकदमा करना,अग्नि लगाना,किसी वस्तु को काटना,भैस,घोड़ा व ऊंट संबंधी कार्य प्रशस्त माने जाते हैं सामान्य परिस्थिति में विवाह आदि शुभ मुहूर्त में भद्रा का त्याग करना चाहिए परंतु आवश्यक परिस्थितिवश अति आवश्यक कार्य भूलोक की भद्रा ,भद्रा मुख छोड़कर कर भद्रा पुच्छ में शुभ कार्य कर सकते है |

अधिक जानकारी के लिए संपर्क करे शर्मा जी - 9312002527,9560518227

दिनांक 

शुरू 

दिनांक 

समाप्त 

31

21-31

01 

09-26

04

05-21

04

16-14

07

06-54

07

17-07

12

02-07

12

13-12

15

12-11

16

00-47

19

06-47

19

20-05

23

03-25

23

16-25

26

20-08

27

08-18

30

07-05

30

18-25



ठाकुर सुजान सिंह

 

                  रोंगटे खड़े कर देने वाली घटना. 7 मार्च 1679 ई0 की बात है, ठाकुर सुजान सिंह अपने विवाह की बारात लेकर जा रहे थे, 22 वर्ष के सुजान सिंह किसी देवता की तरह लग रहे थे, ऐसा लग रहा था मानो देवता अपनी बारात लेकर जा रहे हों.

                 उन्होंने अपने दुल्हन का मुख भी नहीं देखा था, शाम हो चुकी थी इसलिए रात्रि विश्राम के लिए "छापोली" में पड़ाव डाल दिये. कुछ ही क्षणों में उन्हें गायों में लगे घुंघरुओं की आवाजें सुनाई देने लगी, आवाजें स्पष्ट नहीं थीं, फिर भी वे सुनने का प्रयास कर रहे थे, मानो वो आवाजें उनसे कुछ कह रही थी.*

                 सुजान सिंह ने अपने लोगों से कहा, शायद ये चरवाहों की आवाज है जरा सुनो वे क्या कहना चाहते हैं. गुप्तचरों ने सूचना दी कि युवराज ये लोग कह रहे है कि कोई फौज "देवड़े" पर आई है. वे चौंक पड़े. कैसी फौज, किसकी फौज, किस मंदिर पे आयी है ? जवाब आया "युवराज ये औरंगजेब की बहुत ही विशाल सेना है, जिसका सेनापति दराबखान है, जो खंडेला के बाहर पड़ाव डाल रखी है. कल खंडेला स्थित श्रीकृष्ण मंदिर को तोड़ दिया जाएगा. निर्णय हो चुका था. एक ही पल में सब कुछ बदल गया. विवाह के खुशनुमा चेहरे अचानक सख्त हो चुके थे, कोमल शरीर वज्र के समान कठोर हो चुका था. जो बाराती थे, वे सेना में तब्दील हो चुके थे, वे अपने सेना के लोगों से विचार विमर्श करने लगे. तब उनको पता चला कि उन के साथ केवल 70 सेना थी. तब वे रात्रि के समय में बिना एक पल गंवाए उन्होंने पास के गांव से कुछ आदमी इकठ्ठे कर लिए. लगभग 500 घुड़सवार अब उनके पास हो चुके थे. अचानक उन्हें अपनी पत्नी की याद आयी, जिसका मुख भी वे नहीं देख पाए थे, जो डोली में बैठी हुई थी. क्या बीतेगी उसपे, जिसने अपनी लाल जोड़े भी ठीक से नहीं देखी हो. वे तरह तरह के विचारों में खोए हुए थे, तभी उनके कानों में अपनी माँ को दिए वचन याद आये, जिसमें उन्होंने राजपूती धर्म को ना छोड़ने का वचन दिया था, उनकी पत्नी भी सारी बातों को समझ चुकी थी, डोली की ओर उनकी दृष्टि गयी, उनकी पत्नी मेहँदी वाली हाथों को निकालकर इशारा कर रही थी. मुख पे प्रसन्नता के भाव थे, वो एक सच्ची क्षत्राणी के कर्तव्य निभा रही थी, मानो वो स्वयं तलवार लेकर दुश्मन पे टूट पड़ना चाहती थी, परन्तु ऐसा नहीं हो सकता था. सुजान सिंह ने डोली के पास जाकर डोली को और अपनी पत्नी को प्रणाम किये और कहारों और नाई को डोली सुरक्षित अपने राज्य भेज देने का आदेश दे दिया और स्वयं खंडेला को घेरकर उसकी चौकसी करने लगे.

                 लोग कहते हैं कि मानो स्वयं कृष्ण उस मंदिर की चौकसी कर रहे थे, उनका मुखड़ा भी श्री कृष्ण की ही तरह चमक रहा था. 8 मार्च 1679 को दराबखान की सेना आमने सामने आ चुकी थी, महाकाल भक्त सुजान सिंह ने अपने इष्टदेव को याद किये और हर हर महादेव के जयघोष के साथ 10 हजार की मुगल सेना के साथ सुजान सिंह के 500 लोगो के बीच घनघोर युद्ध आरम्भ हो गया. सुजान सिंह ने दराबखान को मारने के लिए उसकी ओर लपके और 40 मुगल सेना को मौत के घाट उतार दिए. ऐसे पराक्रम को देखकर दराबखान पीछे हटने में ही भलाई समझी, लेकिन ठाकुर सुजान सिंह रुकने वाले नहीं थे. जो भी उनके सामने आ रहा था वो मारा जा रहा था. सुजान सिंह साक्षात मृत्यु का रूप धारण कर के युद्ध कर रहे थे. ऐसा लग रहा था मानो स्वयं महाकाल ही युद्ध कर रहे हों. इस बीच कुछ लोगों की दृष्टि सुजान सिंह पे पड़ी, लेकिन ये क्या सुजान सिंह के शरीर में सिर तो है ही नहीं. लोगों को घोर आश्चर्य हुआ, लेकिन उनके अपने लोगों को ये समझते देर नहीं लगी कि सुजान सिंह तो कब के मोक्ष को प्राप्त कर चुके हैं. ये जो युद्ध कर रहे हैं, वे सुजान सिंह के इष्टदेव हैं. सबों ने मन ही मन अपना शीश झुकाकर इष्टदेव को प्रणाम किये.

                  अब दराबखान मारा जा चुका था, मुगल सेना भाग रही थी, लेकिन ये क्या, सुजान सिंह घोड़े पे सवार बिना सिर के ही मुगलों का संहार कर रहे थे. उस युद्धभूमि में मृत्यु का ऐसा तांडव हुआ, जिसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि मुगलों की 7 हजार सेना अकेले सुजान सिंह के हाथों मारी जा चुकी थी. जब मुगल की बची खुची सेना पूर्ण रूप से भाग गई, तब सुजान सिंह जो केवल शरीर मात्र थे, मंदिर का रुख किये.

                 इतिहासकार कहते हैं कि देखने वालों को सुजान के शरीर से दिव्य प्रकाश का तेज निकलता दिखाई दे रहा था. एक अजीब विश्मित करने वाला प्रकाश निकल रहा था, जिसमें सूर्य की रोशनी भी मन्द पड़ रही थी.ये देखकर उनके अपने लोग भी घबरा गए थे और सबों ने एक साथ श्रीकृष्ण की स्तुति करने लगे, घोड़े से नीचे उतरने के बाद सुजान सिंह का शरीर मंदिर के प्रतिमा के सामने जाकर लुढ़क गया और एक शूरवीर योद्धा का अंत हो गया.




 एक औरत ऐसी भी। 

प्रेम नारायन तिवारी, रुद्रपुर, देवरिया।    

  कम्मो के घर के सामने मेला सा लगा हुआ है। गाँव के लोगों का क्या अगर किसी घर में सास-बहू में कहासुनी हो तब भी चले आयेंगे तमाशा देखने, यहाँ तो बात ही तमाशा देखने की हो गयी है। 

      कम्मो को इस घर में ब्याह कर आये अभी एक साल भी नहीं हुआ है। इस घर में कम्मो के अलावा दो सदस्य और रहते हैं। कम्मो का पति शंकर और कम्मो की सास जगरानी। कम्मो का पति शंकर ट्रक ड्राईवर है। महीने महीने पर घर आता है। जबसे वह यहाँ आई है तबसे कुल छ: बार घर आया है। घर पर मुश्किल से एक सप्ताह टिकता है। वह भी कभी यहाँ तो कभी वहाँ मीट मुर्गा की दावत के साथ। 

       उसके आने के साथ घर की रौनक और आने जाने वालों की संख्या बढ जाती है। सबसे ज्यादा आना जाना तो राधिका का बढ जाता था। जब देखो तब अपने गोद के बच्चे को लिए चली आती थी। गाँव के रिस्ते में ननद लगती थी, इसलिए उसका आना कम्मो को भी भला लगता था। 

     आज दरवाजे पर जो मेला लगा है उसी कलमुँही राधिका के कारण लगा है। वह कम्मो के पति शंकर के साथ मुंह काला कर घर से भाग गयी है। कम्मो को याद आ रहा है वह दिन, शंकर इस बार सातवें दिन ही आ गया था। उसके 


आने के  पहले से ही  राधिका आकर उसके पास बैठी हुई थी। उस दिन उसका गोदी का बच्चा उसके साथ नहीं था। कम्मो के पूछने पर बतलायी कि उसे अपने ससुराल सास ससुर के पास छोड़ आई है। 

      "इस बार बहुत जल्दी मेरी याद आ गयी? " कम्मो ने गुण और पानी का गिलास शंकर को पकड़ा हंसते हुए बोली थी। 

    "तुम्हारी नहीं मेरी याद खींच लायी है। यह मेरे लिए आया है।" शंकर की जगह जबाब राधिका ने दिया था।" कितना कड़वा सत्य किस आसानी से बोल गयी थी वह। मगर मैं निर्बुद्धि ऐसे सत्य को मजाक समझ बैठी थी। कैसे समझ पाती भला, कहाँ वह तीस साल की परिपक्व खेली खाई औरत कहाँ वह अठारह उन्नीस साल की अल्हड़।"

      राधिका का विवाह हुए दस साल हो गया है। उसका पति विदेश रहता है। दो साल पर घर आता है एक महीने रहकर चला जाता है। आठ साल तक कोई बाल बच्चा नहीं हुआ। दो साल पहले भोलेनाथ की कृपा हुई। आज एक बेटा गोदी में है। संसार में बहुत से देवता हैं, मगर मेरा देवता तो भोले शंकर हैं। कैसी बेबाकी से वह अपनी और शंकर के सम्बन्धों को कम्मो से ही बता गयी थी। 

   आज कम्मो के दरवाजे पर राधिका के सास-ससुर  और कम्मो के मां बाप आये हुए हैं। राधिका के सास-ससुर उसके बच्चे को अपने पास नहीं रखना चाहते। वह  राधिका के पाप को अपने घर का चिराग नहीं बनाना चाहते। राधिका के मां-बाप भी उसे अपने पास नहीं रखना चाहते। इसी बात की कहासुनी हो रही है। लोग कम्मो की सास और पति शंकर को भला बुरा कह रहे हैं। 

     "हे भगवान् मुझे उठा ले चल, अब मैं किसके सहारे जीवन काटूं? "सहसा कम्मो की सास जोर जोर से रोते हुए बोली। उसी समय न जाने क्यों राधिका का बच्चा भी जोर जोर से रोने लगा।घर में बैठ सबकुछ सुन रही कम्मो को सास और उस बच्चे का रोना बरदास्त नहीं हुआ। उसने घर से निकल कर बच्चे को अपनी गोद में उठा लिया। 

   " आप मेरे सहारे रहेंगी, इस बच्चे के सहारे रहेंगी। यह बच्चा मेरे पति का है तो, पति के न रहने पर उसकी सारी सम्पत्ति उसके पति की होती है। इसलिए यह मेरा है, मेरा बेटा है। हम तीनों एक साथ रहेंगे, एक दूसरे का कष्ट हरेंगें। " कम्मो बच्चे को गोद में उठाये सास की आंखों का आंसू पोछते हुए बोली। 

   " मगर बेटी तूं अपनी पहाड़ सी जिंदगी कैसे काटेगी। हम तुम्हें अपने साथ ले जाने के लिए आये हैं। तूं हमारे साथ चल, हम तुम्हारा दूसरा विवाह कर देंगे। " यह सुनकर कम्मो के मां बाप रोते हुए  एक साथ बोल पड़े। 

   " नहीं मां इस घर को छोड़ कर कहीं नहीं जाऊंगी। दूसरा विवाह करने से मुझे क्या मिलेगा? एक पति, पति अपनी पत्नी को क्या देता है? धोखा या सन्तान, मेरा शंकर तो मुझे दोनों देकर गया है धोखा और संतान भी, फिर दूसरा विवाह किस लालच में करूँ?। अब इसी धोखे और इसी संतान का सहारा लेकर अपनी सास का सहारा बनूंगी। "

    यह देख सुनकर सारी भीड़ सन्न रह गयी। राधिका का बेटा भी कम्मो की गोद में आकर ऐसे चुप हो गया जैसे सचमुच अपनी माँ की गोद में आ गया हो। कम्मो ने बच्चे को गोद में लिए अपनी सास का हाथ पकड़ कर घर के भीतर जा दरवाजा बंद कर लिया। पूरे गाँव ने देखा "एक औरत ऐसी भी"। 

दवाई की शीशी


राजस्थान के जैसलमेर में भगवान श्री कृष्ण के एक दयालु भक्त थे, नाम था रमेश चंद्र। उनकी दवाइयों की दुकान थी। उन्होंने दुकान में भगवान श्री कृष्ण की एक छोटी सी तस्वीर एक कोने में लगी थी। वे जब दुकान खोलते, साफ सफाई के उपरांत हाथ धोकर नित्य भगवान की तस्वीर को साफ करते और बड़ी श्रद्धा से धूप इत्यादि दिखाते। उनका एक पुत्र भी था राकेश, जो अपनी पढ़ाई पूरी करके उनके ही साथ दुकान पर बैठा करता था। वह भी अपने पिता को ये सब करते हुए देखा करता और चूँकि वह नए ज़माने का पढ़ा लिखा नव युवक था लिहाजा अपने पिता को समझाता कि भगवान वगैरह कुछ नहीं होते, सब मन का वहम है। 

शास्त्र कहते हैं कि सूर्य अपने रथ पर ब्रह्मांड का चक्कर लगाता है जबकि विज्ञान ने सिद्ध कर दिया कि पृथ्वी सूर्य का चक्कर लगाती है, इस तरह से रोज विज्ञान के नए नए उदाहरण देता यह बताने के लिए कि ईश्वर नहीं हैं!!

पिता उस को स्नेह भरी दृष्टि से देखते और मुस्कुरा कर रह जाते। वे इस विषय पर तर्क वितर्क नही करना चाहते थे।

समय बीतता गया पिता बूढ़े हो गए थे। शायद वे जान गए थे कि अब उनका अंत समय निकट ही आ गया है...

अतः एक दिन अपने बेटे से कहा, "बेटा तुम ईश्वर को मानो या मत मानो, मेरे लिए ये ही बहुत है कि तुम एक मेहनती, दयालु और सच्चे इंसान हो। परंतु क्या तुम मेरा एक कहना मानोगे?"  




बेटे ने कहा, "कहिये ना पिताजी, जरुर मानूँगा।"

पिता ने कहा, "बेटा मेरे जाने के बाद एक तो तुम दुकान में रोज भगवान की इस तस्वीर को साफ करना और दूसरा यदि कभी किसी परेशानी में फँस जाओ तो हाथ जोड़कर श्रीकृष्ण से अपनी समस्या कह देना। बस मेरा इतना कहना मान लेना।" पुत्र ने स्वीकृति भर दी।

कुछ ही दिनों के बाद पिता का देहांत हो गया, समय गुजरता रहा...

एक दिन बहुत तेज बारिश पड़ रही थी। राकेश दुकान में दिनभर बैठा रहा और ग्राहकी भी कम हुई। ऊपर से बिजली भी बहुत परेशान कर रही थी।जाती तो घंटों अन्धेरा पसर जाता।तभी अचानक तेज़ी से एक लड़का भीगता हुआ दुकान में आया और बोला, "भईया ये दवाई चाहिए। मेरी माँ बहुत बीमार है। डॉक्टर ने कहा ये दवा तुरंत ही चार चम्मच यदि पिला दी जाये तो ही माँ बच पायेगी, क्या ये दवाई आपके पास है?"

राकेश ने पर्चा देखकर तुरंत कहा, "हाँ ये है।" लड़का बहुत खुश हुआ...और कुछ ही सेकेण्ड में पैसे के कर दवा लेकर चला गया।

परन्तु ये क्या! लड़के के जाने के थोड़ी ही देर बाद राकेश ने जैसे ही काउंटर पर निगाह मारी तो...पसीने के मारे बुरा हाल था क्योंकि अभी थोड़ी देर पहले ही एक ग्राहक चूहे मारने की दवाई की शीशी वापस करके गया था। लाईट न होने की वजह से राकेश ने शीशी काउंटर पर ही रखी रहने दी कि लाईट आने पर वापस सही जगह पर रख देगा। पर जो लड़का दवाई लेने आया था, वह अपनी शीशी की जगह चूहे मारने की दवाई ले गया और लड़का पढ़ा लिखा भी नहीं लग रहा था ।

"हे भगवान!" अनायास ही राकेश के मुँह से निकला, "ये तो अनर्थ हो गया!!" 

तभी उसे अपने पिता की बात याद आई और वह तुरंत हाथ जोड़कर भगवान कृष्ण की तस्वीर के आगे दुःखी मन से प्रार्थना करने लगा कि, "हे प्रभु! पिताजी हमेशा कहते थे कि आप है। यदि आप सचमुच हैं तो आज ये अनहोनी होने से बचा लो। एक माँ को उसके बेटे द्वारा जहर मत पीने दो, प्रभु मत पीने दो!

"भईया!" तभी पीछे से आवाज आई... " भैया कीचड़ की वजह से मैं फिसल गया, दवा की शीशी भी फूट गई! कृपया आप एक दूसरी शीशी दे दीजिये...।" भगवान की मनमोहक मुस्कान से भरी तस्वीर को देखकर राकेश की आँखों से झर झर आँसू बह निकले ! आज उसके भीतर एक विश्वास जाग गया था कि कोई तो है जो यह पूरी सृष्टि चला रहा है….             

प्रेम और भक्ति से भरे हृदय से की गई प्रार्थना कभी अनसुनी नहीं जाती..!!

चौघड़िया मुहूर्त 

चौघड़िया मुहूर्त देखकर कार्य या यात्रा करना उत्तम होता है। एक तिथि के लिये दिवस और रात्रि के आठ-आठ भाग का एक चौघड़िया निश्चित है। इस प्रकार से 12 घंटे का दिन और 12 घंटे की रात मानें तो प्रत्येक में 90 मिनट यानि 1.30 घण्टे का एक चौघड़िया होता है जो सूर्योदय से प्रारंभ होता है|



ऑफिस की टेंशन

अजय राजस्थान के एक शहर में रहता था.अजय ग्रेजुएट था और एक प्राइवेट कंपनी में जॉब करता था.

पर अजय अपनी ज़िन्दगी से खुश नहीं था..अजय की एक साधू बाबा से मुलाकात हुई..अजय ने बाबा से बोला, ”बाबा, मैं अपने जीवन से बहुत दुखी हूँ, हर समय समस्याएं मुझे घेरी रहती हैं..कभी ऑफिस की टेंशन रहती है, तो कभी घर पर अनबन हो जाती है..और कभी अपनी सेहत को लेकर परेशान रहता हूँ …. बाबा कोई ऐसा उपाय बताइये कि मेरे जीवन से सभी समस्याएं ख़त्म हो जाएं और मैं चैन से जी सकूँ ? बाबा मुस्कुराये और बोले.. पुत्र, आज बहुत देर हो गयी है मैं तुम्हारे प्रश्न का उत्तर कल सुबह दूंगा लेकिन क्या तुम मेरा एक छोटा सा काम करोगे? हा बाबा ज़रूर करूँगा मैंने उत्साह के साथ बोला.देखो बेटा, हमारे काफिले में सौ ऊंट हैं, और इनकी देखभाल करने वाला आज बीमार पड़ गया है मैं चाहता हूँ कि आज रात तुम इनका खयाल रखो और जब सौ के सौ ऊंट बैठ जाएं तो तुम भी सो जाना ऐसा कहते हुए बाबा अपने तम्बू में चले गए अगली सुबह बाबा अजय से मिले और पुछा कहो बेटा, नींद अच्छी आई कहाँ बाबा, मैं तो एक पल भी नहीं सो पाया. मैंने बहुत कोशिश की पर मैं सभी ऊंटों को नहीं बैठा पाया.कोई न कोई ऊंट खड़ा हो ही जाता..!!! अजय दुखी होते हुए बोला. मैं जानता था यही होगा आज तक कभी ऐसा नहीं हुआ है कि ये सारे ऊंट एक साथ बैठ जाएं बाबा बोले.अजय नाराज़गी के स्वर में बोला, तो फिर आपने मुझे ऐसा करने को क्यों कहा |

 बेटा, कल रात तुमने क्या अनुभव किया..? यही ना कि चाहे कितनी भी कोशिश कर लो सारे ऊंट एक साथ नहीं बैठ सकते..तुम एक को बैठाओगे तो कहीं और कोई दूसरा खड़ा हो जाएगा.. इसी तरह तुम एक समस्या का समाधान करोगे तो किसी कारणवश दूसरी खड़ी हो जाएगी तो हमें क्या करना चाहिए ? अजय ने जिज्ञासावश पुछा..पुत्र जब तक जीवन है ये समस्याएं तो बनी ही रहती हैं कभी कम तो कभी ज्यादा इन समस्याओं के बावजूद जीवन का आनंद लेना सीखो..कल रात क्या हुआ,कई ऊंट रात होते -होते खुद ही बैठ गए, कई तुमने अपने प्रयास से बैठा दिए,पर बहुत से ऊंट तुम्हारे प्रयास के बाद भी नहीं बैठे और जब बाद में तुमने देखा तो पाया कि तुम्हारे जाने के बाद उनमे से कुछ खुद ही बैठ गए..कुछ समझे समस्याएं भी ऐसी ही होती हैं, कुछ तो अपने आप ही ख़त्म हो जाती हैं,कुछ को तुम अपने प्रयास से हल कर लेते हो और कुछ तुम्हारे बहुत कोशिश करने पर भी हल नहीं होतीं ऐसी समस्याओं को समय पर छोड़ दो उचित समय पर वे खुद ही ख़त्म हो जाती हैं..और जैसा कि मैंने पहले कहा जीवन है तो कुछ समस्याएं रहेंगी ही रहेंगी पर इसका ये मतलब नहीं की तुम दिन रात उन्ही के बारे में सोचते रहो ऐसा होता तो ऊंटों की देखभाल करने वाला कभी सो नहीं पाता.समस्याओं को एक तरफ रखो और जीवन का आनंद लो चैन की नींद सो जाओ जब उनका समय आएगा वो खुद ही हल हो जाएँगी पुत्र ईश्वर के दिए हुए आशीर्वाद के लिए उसे धन्यवाद करना सीखो, पीड़ाएं खुद ही कम हो जाएंगी|

पंचक विचार अप्रैल-2024  

पंचक विचार -(धनिष्ठा नक्षत्र के तृतीय चरण से रेवती नक्षत्र तक) पंचको में दक्षिण दिशा की ओर यात्रा करना मकान दुकान आदि की छत डालना चारपाई पलंग आदि बुनना,दाह संस्कार,बांस की चटाई दीवार प्रारंभ करना आदि स्तंभ रोपण तांबा पीतल तृण काष्ट आदि का संचय करना आदि कार्यों का निषेध माना जाता है समुचित उपाय एवं पंचक शांति करवा कर ही उक्त कार्यों का संपादन करना कल्याणकारी होगा ध्यान रहेगा  पंचर नक्षत्रों का विचार मात्र उपरोक्त विशेष कृतियों के लिए ही किया जाता है विवाह मंडल आरंभ गृह प्रवेश प्रवेश उपनयन आदि मुद्दों से तो पंचक नक्षत्रका प्रयोग शुभ माना जाता है पंचक विचार- दिनांक 05 को 07-12 से दिनांक 09 को 07-31 बजे तक पंचक है |

स्वयं सिद्ध मुहूर्त 

स्वयं सिद्ध मुहूर्त चैत्र शुक्ल प्रतिपदा वैशाख शुक्ल तृतीया अक्षय तृतीया आश्विन शुक्ल दशमी विजयदशमी दीपावली के प्रदोष काल का आधा भाग भारत में से इसके अतिरिक्त लोकाचार और देश आचार्य के अनुसार निम्नलिखित कृतियों को भी स्वयं सिद्ध मुहूर्त माना जाता है बडावली नामी देव प्रबोधिनी एकादशी बसंत पंचमी फुलेरा दूज इन में से किसी भी कार्य को करने के लिए पंचांग शुद्धि देखने की आवश्यकता नहीं है परंतु विवाह आदि में तो पंचांग में दिए गए मुहूर्त व कार्य करना श्रेष्ठ रहता है।

अधिक जानकारी के लिए संपर्क करे शर्मा जी - 9312002527,9560518227


गरीब की लोकी 

गरीब किसान के खेत में बिना बोये लौकी की बैल उग गई। बड़ा हुआ तो उसमे तीन लौकियाँ लगीं। उसने सोचा, उन्हें बाजार में बेचकर घर के लिए कुछ सामान ले आएगा. अतः वो तीन लौकियाँ लेकर गाँव के बाजार में गया और बेचने के यत्न से एक किनारे बैठ गया।

गांव के प्रधान आये, पूछा , " लौकी कितने की है?"

" मालिक, दस रुपये की। " उसने दीनता से कहा। लौकी बड़ी थी। प्रधान ने एक लौकी उठायी और ये कहकर चलता बना," बाद में ले लेना। "

इसी प्रकार थाने का मुंशी आया और दूसरी लौकी लेकर चलता बना। किसान बेचारा पछता कर रह गया। अब एक लौकी बची थी। भगवन से प्रार्थना कर रहा था कि ये तो बिक जाये, ताकि कुछ और नहीं तो बच्चों के लिए पतासे और लइया ही लेता जायेगा।

तभी उधर से दरोगा साहब गुज़रे। नज़र इकलौती लौकी पर पड़ी देखकर कडककर पूछा , " कितने की दी ?"

किसान डर गया। अब यह लौकी भी गई। सहमकर बोला ," मालिक, दो तो चली गयीं , इसको आप ले जाओ। "

" क्या मतलब ?" दरोगा ने पूछा, " साफ़ - साफ़ बताओ ?"

किसान पहले घबराया, फिर डरते - डरते सारा वाक़्या बयान कर दिया। दरोगा जी हँसे। वो किसान को लेकर प्रधान के घर पहुंचे। प्रधान जी मूछों पर ताव देते हुए बैठे थे और पास में उनकी पत्नी बैठी लौकी छील रही थी। दरोगा ने पूछा,' लौकी कहाँ से लाये ?"

प्रधान जी चारपाई से उठकर खड़े हो गए , " बाजार से खरीदकर लाया हूँ। "

"कितने की ?"

प्रधान चुप। नज़र किसान की तरफ उठ गयी। दरोगा जी समझ गए। आदेश दिया," चुपचाप किसान को एक हज़ार रुपये दो , वार्ना चोरी के इलज़ाम में बंद कर दूंगा। " काफी हील-हुज्जत हुई पर दरोगा जी अपनी बात पर अड़े रहे और किसान को एक हज़ार रुपये दिलाकर ही माने।

फिर किसान को लेकर थाने पहुंचे। सभी सिपाहियों और हवलदारों को किसान के सामने खड़ा कर दिया। पूछा," इनमे से कौन है ?" किसान ने एक हवलदार की तरफ डरते-डरते ऊँगली उठा दी। दरोगा गरजा ," शर्म नहीं आती ? वर्दी की इज़्ज़त नीलाम करते हो। सरकार तुम्हे तनख्वाह देती है , बेचारा किसान कहाँ से लेकर आएगा। चलो, चुपचाप किसान को एक हज़ार रुपये निकलकर दो। " हवलदार को जेब ढीली करनी पड़ी।

अब तक किसान बहुत डर गया था। सोच रहा था, दरोगा जी अब ये सारा रुपया उससे छीन लेंगे। वह जाने के लिए खड़ा हुआ। तभी दरोगा ने हुड़का," जाता कहाँ है ? अभी तीसरी लौकी की कीमत कहाँ मिली ? " उन्होंने जेब से पर्स निकाला और एक हज़ार रुपये उसमे से पकड़ते हुए बोले,"अब जा,और आईन्दा से तेरे साथ कोई नाइंसाफी करे तो मेरे पास चले आना।किसान दरोगा को दुआएं देता हुआ घर लौटआया,लेकिन सोचता रहा,ये किस ज़माने का दरोगा है। 

सुर्य उदय- सुर्य अस्त मार्च -2024 


दिनांक

उदय 

दिनांक

अस्त 

06-12

1

18-38

5

06-08

5

18-40

10

06-02

10

18-43

15

05-57

15

18-46

20

05-52

20

18-49

25

05-47

25

18-52

30 

05-42

30 

18-54


अप्रैल 2024 के महत्वपूर्ण दिवस 


1 अप्रैल - डा° केशव राव बलीराम हेडगेवार 

डा° केशव राव बलीराम हेडगेवार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक थे। इनका जन्म नागपुर के एक गरीब ब्राह्मण परिवार में हिन्दू वर्ष प्रतिपदा के दिन हुआ था। वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक थे |
1 अप्रैल - अंधत्व निवारण सप्ताह

यह अंधेपन के कारणों और उन्हें रोकने के तरीकों के खिलाफ जागरूकता फैलाने के लिए 1 से 7 अप्रैल तक मनाया जाता है। 

1 अप्रैल - ओडिशा स्थापना दिवस

1 अप्रैल, 1936 को एक अलग प्रांत बनने की याद में हर साल 1 अप्रैल को ओडिशा स्थापना दिवस मनाया जाता है। 

2 अप्रैल - विश्व ऑटिज़्म जागरूकता दिवस

ऑटिज्म के बारे में जागरूकता बढ़ाने और लोगों को इसके बारे में शिक्षित करने के लिए 2 अप्रैल को विश्व ऑटिज्म जागरूकता दिवस मनाया जाता है। 

2 अप्रैल- अंतर्राष्ट्रीय तथ्य-जाँच दिवस

2 अप्रैल को, दुनिया अंतर्राष्ट्रीय तथ्य-जांच दिवस मनाती है, जो रिकॉर्ड को सही करने और जनता को झूठी जानकारी या "फर्जी समाचार" से बचाने पर केंद्रित है। इंटरनेशनल फैक्ट-चेकिंग नेटवर्क (आईएफसीएन), जो दुनिया भर में कई मीडिया आउटलेट्स के साथ सहयोग करता है, इसके आधिकारिक प्रचार के लिए जिम्मेदार है। तथ्य यह है कि 2 

अप्रैल अप्रैल फूल्स डे के अगले दिन होता है, जो "मूर्ख बनाम तथ्य" के बीच के द्वंद्व को सूक्ष्मता से उजागर करके तारीख के महत्व को बढ़ाता है।

3 अप्रैल - शिवाजी राजे भोंसले पुण्य तिथि 

 पश्चिमी भारत के मराठा साम्राज्य के संस्थापक थे। शिवाजी के पिता का नाम शाहजी भोंसले और माता का नाम जीजाबाई था। सेनानायक के रूप में शिवाजी की महानता निर्विवाद रही है। शिवाजी ने अनेक क़िलों का निर्माण और पुनरुद्धार करवाया। उनके निर्देशानुसार सन 1679 ई. में अन्नाजी दत्तों ने एक विस्तृत भू-सर्वेक्षण करवाया, जिसके परिणामस्वरूप एक नया राजस्व निर्धारण हुआ।




4 अप्रैल - अंतर्राष्ट्रीय खनन जागरूकता दिवस

नागरिक आबादी की सुरक्षा, स्वास्थ्य और जीवन के लिए बारूदी सुरंगों के कारण होने वाले खतरे के बारे में जागरूकता फैलाने और राज्य सरकारों को खदान-समाशोधन कार्यक्रम विकसित करने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए हर साल 4 अप्रैल को अंतर्राष्ट्रीय खदान जागरूकता और खदान कार्रवाई में सहायता दिवस मनाया जाता है।

4 अप्रैल- अंतर्राष्ट्रीय गाजर दिवस

2003 में, लिवली रूट का पहला वार्षिक उत्सव आवश्यक सलाद सामग्री का सम्मान करने के एकमात्र उद्देश्य से आयोजित किया गया था। वर्तमान में, यह कार्यक्रम फ्रांस, इटली, स्वीडन, रूस, ऑस्ट्रेलिया, जापान और यूनाइटेड किंगडम में बहुत खुशी और रुचि के साथ मनाया जाता है।

5 अप्रैल- राष्ट्रीय समुद्री दिवस

भारत में हर साल 5 अप्रैल को राष्ट्रीय समुद्री दिवस मनाया जाता है क्योंकि इसी दिन 1919 में नेविगेशन इतिहास रचा गया था, द सिंधिया स्टीम नेविगेशन कंपनी लिमिटेड के पहले जहाज एसएस लॉयल्टी ने यूनाइटेड किंगडम की यात्रा की थी। भारतीय नौवहन के खाते में यह एक महत्वपूर्ण दिन था।

5 अप्रैल - अंतर्राष्ट्रीय अंतरात्मा दिवस

संयुक्त राष्ट्र महासभा हर 5 अप्रैल को मानव विवेक के महत्व को पहचानने के लिए अंतर्राष्ट्रीय विवेक दिवस मनाती है। एक आवश्यक बौद्धिक विशेषता जो मनुष्य को बाकी पशु साम्राज्य से अलग करती है वह विवेक है। 

6 अप्रैल - विकास और शांति के लिए अंतर्राष्ट्रीय खेल दिवस

सामाजिक परिवर्तन, सामुदायिक विकास और शांति और समझ को बढ़ावा देने के लिए खेल की क्षमता का वार्षिक उत्सव विकास और शांति के लिए अंतर्राष्ट्रीय खेल दिवस के रूप में मनाया जाता है।

7 अप्रैल- विश्व स्वास्थ्य दिवस

जैसा कि हम जानते हैं कि "स्वास्थ्य ही धन है"।
इसलिए हर साल 7 अप्रैल को दुनिया भर में विश्व स्वास्थ्य दिवस मनाया जाता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा विभिन्न कार्यक्रमों एवं व्यवस्थाओं का प्रबंधन किया जाता है। यह पहली बार 1950 में मनाया गया था।

8 अप्रैल - बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय पुण्य तिथि 

8 अप्रैल - मंगल पांडेय बलिदान दिवस 

9 अप्रैल - दुर्गाबाई देशमुख पुण्य तिथि  

10 अप्रैल - विश्व होम्योपैथी दिवस (WHD)

होम्योपैथी चिकित्सा प्रणाली के संस्थापक और जनक डॉ. क्रिश्चियन फ्रेडरिक सैमुअल हैनीमैन को श्रद्धांजलि देने के लिए हर साल 10 अप्रैल को WHD मनाया जाता है। इस दिन का मुख्य उद्देश्य सार्वजनिक स्वास्थ्य में होम्योपैथिक 


चिकित्सा के बारे में ज्ञान फैलाना है। दरअसल 10 अप्रैल से 16 अप्रैल तक विश्व होम्योपैथी सप्ताह प्रतिवर्ष मनाया जाता है और इसका आयोजन विश्व होम्योपैथी जागरूकता संगठन द्वारा किया जाता है। मूल रूप से, यह दिन होम्योपैथ और उन लोगों दोनों के लिए मनाया जाता है जो होम्योपैथी से ठीक हो गए हैं।

10 अप्रैल - भाई-बहन दिवस

भाई-बहन हमारे जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। कोई भी व्यक्ति भाई-बहनों के बिना अपने जीवन की कल्पना नहीं कर सकता। अपने भाई-बहनों का सम्मान करना, स्नेह दिखाना, एक-दूसरे की सराहना करना। राष्ट्रीय भाई-बहन दिवस हर साल 10 अप्रैल को मनाया जाता है। भारत में, रक्षा बंधन का अवसर भाई-बहनों के बीच विशेष बंधन का जश्न मनाता है। भाई-बहन दिवस दुनिया के कई हिस्सों जैसे यूनाइटेड किंगडम, ऑस्ट्रेलिया, भारत आदि में मनाया जाता है, लेकिन इसे संघ द्वारा मान्यता प्राप्त नहीं है। 

11 अप्रैल - राष्ट्रीय सुरक्षित मातृत्व दिवस (एनएसएमडी)

प्रसूति सुविधाओं, स्तनपान कराने वाली महिलाओं और महिलाओं को दी जाने वाली उचित स्वास्थ्य देखभाल के बारे में जागरूकता पैदा करने के लिए एनएसएमडी हर साल 11 अप्रैल को मनाया जाता है।

11 अप्रैल- विश्व पार्किंसंस दिवस

तंत्रिका तंत्र की इस अपक्षयी स्थिति की ओर ध्यान दिलाने के लिए प्रतिवर्ष 11 अप्रैल को विश्व पार्किंसंस दिवस मनाया जाता है। पार्किंसंस फाउंडेशन के नवीनतम आंकड़ों के अनुसार, दुनिया भर में 10 मिलियन से अधिक लोग पार्किंसंस रोग से पीड़ित हैं।

13 अप्रैल - जलियांवाला बाग नरसंहार

यह 13 अप्रैल 1919 को अमृतसर में हुआ था और इसे अमृतसर नरसंहार के रूप में भी जाना जाता है। इस दिन, जनरल डायर की कमान के तहत ब्रिटिश सैनिकों ने भारत के पंजाब के अमृतसर में निहत्थे भारतीयों की एक बड़ी भीड़ पर गोलीबारी की थी। कई सौ लोग मारे गये और सैकड़ों घायल हो गये।

14 अप्रैल- बीआर अंबेडकर स्मृति दिवस

बीआर अंबेडकर स्मरण दिवस को अंबेडकर जयंती या भीम जयंती के रूप में भी जाना जाता है जो बीआर अंबेडकर की स्मृति में 14 अप्रैल को मनाया जाता है। यह दिन भारतीय राजनीतिज्ञ और सामाजिक अधिकार कार्यकर्ता बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर का जन्मदिन मनाता है।

14 अप्रैल: बैसाखी का दिन

यह एक वसंत फसल उत्सव है जो हर साल 13 या 14 अप्रैल को पंजाबी समुदाय के सदस्यों द्वारा मनाया जाता है। इस वर्ष यह 14 अप्रैल को मनाया जाता है। यह सिखों के महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है, जो भारत और दुनिया भर में मनाया जाता है।

17 अप्रैल - विश्व हीमोफीलिया दिवस

हीमोफीलिया रोग और अन्य वंशानुगत रक्तस्राव विकारों के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए हर साल 17 अप्रैल को विश्व हीमोफीलिया दिवस मनाया जाता है। 1989 में, वर्ल्ड फेडरेशन ऑफ हीमोफिलिया (डब्ल्यूएफएच) द्वारा डब्ल्यूएफएच के संस्थापक फ्रैंक श्नाबेल के जन्मदिन के सम्मान में विश्व हीमोफिलिया दिवस की शुरुआत की गई थी।

18 अप्रैल- विश्व विरासत दिवस

मानव विरासत को संरक्षित करने और इस क्षेत्र में सभी संबंधित संगठनों के प्रयासों को मान्यता देने के लिए हर साल 18 अप्रैल को यह दिन मनाया जाता है। इस दिन की घोषणा 1982 में अंतर्राष्ट्रीय स्मारक और स्थल परिषद (ICOMOS) द्वारा की गई थी और 1983 में यूनेस्को की महासभा द्वारा इसे मंजूरी दी गई थी।

19 अप्रैल - विश्व लीवर दिवस

यह लीवर से संबंधित बीमारियों के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए 19 अप्रैल को मनाया जाता है। लीवर शरीर का दूसरा सबसे बड़ा अंग है । मस्तिष्क के बाद यह शरीर का दूसरा सबसे जटिल अंग भी है। यह पाचन, प्रतिरक्षा, चयापचय और शरीर के भीतर पोषक तत्वों के भंडारण से जुड़े विभिन्न महत्वपूर्ण कार्य करता है। 

विश्व लीवर दिवस के बारे में 12 महत्वपूर्ण और अज्ञात तथ्य

21 अप्रैल - राष्ट्रीय सिविल सेवा दिवस

हर साल 21 अप्रैल को लोगों के हितों के लिए खुद को फिर से समर्पित करने और फिर से प्रतिबद्ध होने के लिए सिविल सेवा दिवस मनाया जाता है। इस दिन देश के विभिन्न हिस्सों से सिविल सेवक एक साथ आते हैं, अपने अनुभव साझा करते हैं और सार्वजनिक क्षेत्र में काम करने के दूसरों के अनुभवों के बारे में भी सीखते हैं।

22 अप्रैल- विश्व पृथ्वी दिवस

यह दिन 1970 में आधुनिक पर्यावरण आंदोलन के जन्म की सालगिरह को चिह्नित करने के लिए हर साल 22 अप्रैल को मनाया जाता है। ब्रह्मांड में पृथ्वी एकमात्र ग्रह है जहां जीवन संभव है और इसलिए इस प्राकृतिक संपत्ति को बनाए 

रखना आवश्यक है। विश्व पृथ्वी दिवस ग्रह के महत्व के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए मनाया जाता है।

23 अप्रैल - विश्व पुस्तक एवं कॉपीराइट दिवस

हर साल 23 अप्रैल को किताबों और पढ़ने के आनंद को बढ़ावा देने के लिए यह दिन मनाया जाता है। पुस्तकों की जादुई शक्तियों को पहचानना आवश्यक है क्योंकि वे अतीत और भविष्य के बीच एक कड़ी, पीढ़ियों और संस्कृतियों के बीच एक पुल का निर्माण करती हैं।

23 अप्रैल - अंग्रेजी भाषा दिवस

अंग्रेजी भाषा दिवस प्रतिवर्ष 23 अप्रैल को मनाया जाता है और यह संयुक्त राष्ट्र (यूएन) का पालन दिवस है। यह दिन विलियम शेक्सपियर के जन्मदिन और मृत्यु दिवस और विश्व पुस्तक दिवस दोनों के साथ मेल खाता है

24 अप्रैल - राष्ट्रीय पंचायती राज दिवस



भारत में हर साल 24 अप्रैल को राष्ट्रीय पंचायती राज दिवस मनाया जाता है। इस दिन 24 अप्रैल 1993 को संविधान लागू हुआ था। 2010 में पहला राष्ट्रीय पंचायती राज दिवस मनाया गया था। संविधान के भाग IX में अनुच्छेद 243 से 243 (O) तक 73वें संशोधन अधिनियम को दरकिनार करते हुए "पंचायतें" शीर्षक से एक नया भाग जोड़ा गया और पंचायतों के कार्यों के भीतर 29 विषयों से युक्त एक नई ग्यारहवीं अनुसूची भी जोड़ी गई।

24 अप्रैल: सचिन तेंदुलकर का जन्मदिन

क्रिकेट के भगवान ने सर्वश्रेष्ठ क्रिकेटर के रूप में एक मिसाल कायम की है जिसे दुनिया के सभी लोग प्यार करते थे। वह लाखों लोगों के लिए प्रेरणा हैं और उन्हें मास्टर ब्लास्टर, लिटिल मास्टर आदि नामों से भी जाना जाता है।

24 अप्रैल: प्रयोगशालाओं में जानवरों के लिए विश्व दिवस

विश्व लैब पशु दिवस प्रयोगशालाओं में जानवरों के लिए विश्व दिवस का दूसरा नाम है, जो हर साल 24 अप्रैल को विश्व स्तर पर मनाया जाता है। इस दिन का उद्देश्य दुनिया भर की प्रयोगशालाओं में होने वाली जानवरों की पीड़ा और हत्या की ओर ध्यान आकर्षित करना है। 

25 अप्रैल - विश्व मलेरिया दिवस

मलेरिया रोग के बारे में जागरूकता बढ़ाने, इसे कैसे नियंत्रित किया जाए और इसे पूरी तरह से कैसे खत्म किया जाए, इसके लिए हर साल 25 अप्रैल को विश्व मलेरिया दिवस मनाया जाता है। 2008 में, पहला मलेरिया दिवस मनाया गया था, जिसे अफ़्रीका मलेरिया दिवस से विकसित किया गया था, जो 2001 से अफ़्रीकी सरकारों द्वारा मनाया जाने वाला एक कार्यक्रम था। 2007 में विश्व स्वास्थ्य सभा के 60वें सत्र में यह प्रस्ताव रखा गया कि अफ़्रीका मलेरिया दिवस को बदलकर विश्व मलेरिया दिवस कर दिया जाए।

26 अप्रैल - विश्व बौद्धिक संपदा दिवस

यह दिन हर साल 26 अप्रैल को मनाया जाता है और पेटेंट, कॉपीराइट, ट्रेडमार्क और डिज़ाइन दैनिक जीवन को कैसे 

प्रभावित करते हैं, इसके बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए विश्व बौद्धिक संपदा संगठन (डब्ल्यूआईपीओ) द्वारा 2000 में इसकी स्थापना की गई थी। और यह भी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है कि बौद्धिक संपदा अधिकार नवाचार और रचनात्मकता को प्रोत्साहित करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

26 अप्रैल - पंडित गुरुदत्त विद्यार्थी जयंती 

27 अप्रैल- विश्व टैपिर दिवस

तापिर की इन गंभीर रूप से लुप्तप्राय प्रजातियों की ओर ध्यान आकर्षित करने और वर्तमान और भविष्य की पीढ़ियों के लिए संरक्षण को बढ़ावा देने के प्रयास में हर साल 27 अप्रैल को विश्व तापिर दिवस मनाया जाता है। इस दिन का उद्देश्य इस अलोकप्रिय जानवर के बारे में ज्ञान फैलाना और इस लुप्तप्राय प्रजाति के विलुप्त होने को रोकना है।

27 अप्रैल- विश्व डिज़ाइन दिवस

यह दिन रूप, सौंदर्यशास्त्र और कार्यक्षमता सहित डिजाइन के सभी पहलुओं का सम्मान करता है। इसके अतिरिक्त, 


यह वैश्विक स्तर पर दृश्य संचार, ग्राफिक डिजाइन, जागरूकता, प्रचार, प्रबंधन और प्रशिक्षण को आगे बढ़ाता है। विश्व डिज़ाइन दिवस का उद्देश्य डिज़ाइन के महत्व के बारे में लोगों को प्रेरित करना और जागरूकता बढ़ाना है।

28 अप्रैल - कार्यस्थल पर सुरक्षा और स्वास्थ्य के लिए विश्व दिवस - यह दिन 2003 से हर साल 28 अप्रैल को अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) द्वारा मनाया जाता है। यह दिन व्यावसायिक 

सुरक्षा और स्वास्थ्य में सुधार करने का प्रतीक है और प्रौद्योगिकी, जनसांख्यिकी, जलवायु परिवर्तन आदि जैसे कई परिवर्तनों के माध्यम से इन प्रयासों को जारी रखने का प्रयास करता है।

29 अप्रैल - अंतर्राष्ट्रीय नृत्य दिवस यह प्रतिवर्ष 29 अप्रैल को मनाया जाता है और इसे विश्व नृत्य दिवस के रूप में भी जाना जाता है। यह उन सरकारों, राजनेताओं और संस्थानों के लिए एक चेतावनी है जिन्होंने अभी तक नृत्य के महत्व को नहीं पहचाना है।

29 अप्रैल- अंतर्राष्ट्रीय खगोल विज्ञान दिवस अंतर्राष्ट्रीय खगोल विज्ञान दिवस वर्ष में दो बार, क्रमशः 15 मई और 9 अक्टूबर को, वसंत और पतझड़ की पहली तिमाही के चंद्रमा से ठीक पहले मनाया जाता है। डौग बर्जर, जो उस समय उत्तरी कैलिफोर्निया के खगोलीय संघ के अध्यक्ष के रूप में कार्यरत थे, ने विश्व खगोल विज्ञान दिवस की स्थापना की। वह शहरी निवासियों की खगोल विज्ञान में रुचि बढ़ाना चाहते थे।

29 अप्रैल- अंतर्राष्ट्रीय मूर्तिकला दिवस हर साल, अप्रैल के आखिरी शनिवार को, जो इस साल 29 अप्रैल को होता है, हम अंतर्राष्ट्रीय मूर्तिकला दिवस मनाते हैं। यह एक ऐसा उत्सव है जो मूर्तिकला और गढ़े गए कार्यों का सम्मान करता है।

29 अप्रैल - दानवीर भामाशाह जयंती 

30 अप्रैल - हरी सिंह नलवा पुण्य तिथि 

30 अप्रैल - विश्व पशु चिकित्सा दिवस हर साल अप्रैल के आखिरी शनिवार को, दुनिया भर के लोग पशु चिकित्सकों द्वारा निभाई जाने वाली महत्वपूर्ण 

भूमिकाओं के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए एक साथ आते हैं। विश्व संगठन और विश्व पशु चिकित्सा संघ पशु स्वास्थ्य के लिए इस दिन का निर्माण करता है।

30 अप्रैल- अंतर्राष्ट्रीय जैज़ दिवस जैज़ की उत्पत्ति और इसके वैश्विक प्रभाव का सम्मान करने के लिए हर साल 30 अप्रैल को विश्व जैज़ दिवस मनाया जाता है। जैज़, जिसे "अमेरिका का शास्त्रीय संगीत" कहा जाता है, की उत्पत्ति एक सदी से भी पहले न्यू ऑरलियन्स में हुई थी। 2011 में, संयुक्त राष्ट्र और प्रसिद्ध जैज़ संगीतकार हर्बी हैनकॉक ने अंतर्राष्ट्रीय जैज़ दिवस की स्थापना के लिए सहयोग किया।

30 अप्रैल- आयुष्मान भारत दिवस आयुष्मान भारत दिवस का उद्देश्य आयुष्मान भारत योजना के लक्ष्यों को बढ़ावा देना है। यह कार्यक्रम भारत सरकार के उन लक्ष्यों की उपलब्धि को दर्शाता है जो संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) के अनुरूप हैं।

पाप मोचनी एकादशी

यह व्रत चैत्र मास की कृष्ण पक्ष पापमोचनी एकादशी को किया जाता है इस दिन भगवान विष्णु को अर्ध दान आदि देकर षोडशोपचार पूजा करनी चाहिए ।

पापमोचनी एकादशी व्रत की कथा - प्राचीन समय में चैत्र मास नामक अति रमणीक उपवन था, इसी वन में देवराज इंद्र गंधर्व कन्याओं तथा देवताओं सहित स्वच्छंद विहार किया करते थे। मेधावी नमक ऋषि भी वही तपस्या करते थे। ऋषि शैवोपासक तथा अप्सरायं शिव द्रोहिणी अनंग दासी अनुचरी। एक समय का प्रसंग है कि रतिनाथ कामदेव ने मेधावी मुनि की तपस्या भंग करने के लिए मंजू पोषा नामक अप्सरा को नृत्य गान करने के लिए उनके सम्मुख भेजा। युवावस्था वाले ऋषि अप्सरा के हाव-भाव नृत्य गीत तथा कटाक्षों पर काम से मोहित हो गए। रति कीड़ा करते हुए 57 वर्ष बीत गए मंजू पोषा ने एक दिन अपने स्थान पर जाने की आज्ञा मांगी आज्ञा मांगने पर ऋषि के कानों पर चींटी दौड़ी तथा उन्होंने आत्मज्ञान हुआ।अपने को रसातल में पहुंचने का एकमात्र कारण अप्सरा मंजू पोषा को समझकर मुनि ने उसे पिशाचिनी होने का श्राप दे दिया श्राप  सुनकर मंजू पोषा ने वायु द्वारा प्रताड़ित कदली वृक्ष की भांति कांपते हुए मुक्ति का उपाय पूछा तब मुनि ने पापमोचनी एकादशी का व्रत करने को कहा वह विधि विधान बतलाकर मेघा ऋषि अपने पिता च्यवन के आश्रम में गए श्राप की बात सुनकर स्वयं ऋषि ने पुत्र की घोर निंदा की तथा उन्हें चैत्र मास की पाप मोचनी एकादशी का व्रत करने की आज्ञा दी व्रत करने के प्रभाव से मंजू पोषा अप्सरा पिशाचिनी देश से मुक्त हो सुंदर भी धारण कर स्वर्ग लोक को चली गई।

कामदा एकादशी 

चैत्र महीने के शुक्ल पक्ष की एकादशी को कामदा एकादशी कहा जाता है। साल में कुल 24 एकादशी पड़ती है। एकादशी तिथि भगवान विष्णु को समर्पित है। इस दिन पूरे विधि विधान से भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। इस दिन भक्त पूरे दिन फलाहार करते हुए व्रत करता है।

साथ ही भगवान विष्णु की पूजा तथा आरती की जाती है। ऐसी मान्यता है कि व्रत वाले दिन व्रत की कथा का श्रवण जरूर करना चाहिए। इसके प्रभाव से व्रत का फल प्राप्त होता है और मनोकामनाएं भी पूरी होती हैं। कामदा एकादशी के दिन इससे जुड़ी पौराणिक व्रत कथा का पाठ जरूर करें।

कामदा एकादशी व्रत कथा

प्राचीनकाल में भोगीपुर नामक एक नगर था। वहां पर अनेक ऐश्वर्यों से युक्त पुण्डरीक नामक एक राजा राज्य करता था। भोगीपुर नगर में अनेक अप्सरा, किन्नर तथा गन्धर्व रहते थे। उनमें से एक जगह ललिता और ललित नाम के दो स्त्री-पुरुष अत्यंत वैभवशाली घर में निवास करते थे। उन दोनों में अत्यंत स्नेह था, यहां तक कि अलग-अलग हो जाने पर दोनों व्याकुल हो उठते थे।

एक समय पुण्डरीक की सभा में अन्य गंधर्वों सहित ललित भी गान कर रहा था। गाते-गाते उसको अपनी प्रिय ललिता का ध्यान आ गया और उसका स्वर भंग होने के कारण गाने का स्वरूप बिगड़ गया। ललित के मन के भाव जानकर कार्कोट नामक नाग ने पद भंग होने का कारण राजा से कह दिया। तब पुण्डरीक ने क्रोधपूर्वक कहा कि तू मेरे सामने गाता हुआ अपनी स्त्री का स्मरण कर रहा है। अत: तू कच्चा मांस और मनुष्यों को खाने वाला राक्षस बनकर अपने किए कर्म का फल भोग पुण्डरीक के श्राप से ललित उसी क्षण महाकाय विशाल राक्षस बन गया। उसका मुख अत्यंत 


भयंकर, नेत्र सूर्य-चंद्रमा की तरह प्रदीप्त तथा मुख से अग्नि निकलने लगी। उसकी नाक पर्वत की कंदरा के समान विशाल हो गई और गर्दन पर्वत के समान लगने लगी। सिर के बाल पर्वतों पर खड़े वृक्षों के समान लगने लगे तथा भुजाएं अत्यंत लंबी हो गईं। इस प्रकार राक्षस बनकर वह अनेक प्रकार के दुःख भोगने लगा।

जब उसकी प्रियतमा ललिता को इस घटना की जानकारी मिली तो वह बहुत दुखी हुई और वह अपने पति के उद्धार का उपाय सोचने लगी। वह राक्षस अनेक प्रकार के घोर दुःख सहता हुआ घने वनों में रहने लगा। उसकी स्त्री उसके पीछे-पीछे जाती और विलाप करती रहती। एक बार ललिता अपने पति के पीछे घूमती-घूमती विन्ध्याचल पर्वत पर पहुंच गई, जहां पर श्रृंगी ऋषि का आश्रम था। ललिता शीघ्र ही श्रृंगी ऋषि के आश्रम में गई और वहां जाकर विनीत भाव से प्रार्थना करने लगी।उसे देखकर श्रृंगी ऋषि बोले कि हे सुभगे! तुम कौन हो और यहां किस लिए आई हो? ‍ललिता बोली कि हे मुने! मेरा नाम ललिता है। मेरा पति राजा पुण्डरीक के श्राप से विशालकाय राक्षस हो गया है। इसका मुझको महान दुःख है। उसके उद्धार का कोई उपाय बतलाइए। श्रृंगी ऋषि बोले हे गंधर्व कन्या! अब चैत्र शुक्ल एकादशी आने वाली है, जिसका नाम कामदा एकादशी है। इसका व्रत करने से मनुष्य के सब कार्य सिद्ध होते हैं। यदि तू कामदा एकादशी का व्रत कर उसके पुण्य का फल अपने पति को दे तो वह शीघ्र ही राक्षस योनि से मुक्त हो जाएगा और राजा का श्राप भी अवश्यमेव शांत हो जाएगा।मुनि के ऐसे वचन सुनकर ललिता ने चैत्र शुक्ल एकादशी आने पर उसका व्रत किया और द्वादशी को ब्राह्मणों के सामने अपने व्रत का फल अपने पति को देती हुई भगवान से इस प्रकार प्रार्थना करने लगी - हे प्रभो! मैंने जो यह व्रत किया है इसका फल मेरे पतिदेव को प्राप्त हो जाए जिससे वह राक्षस योनि से मुक्त हो जाए। एकादशी का फल देते ही उसका पति राक्षस योनि से मुक्त होकर अपने पुराने स्वरूप को प्राप्त हुआ। फिर अनेक सुंदर वस्त्राभूषणों से युक्त होकर ललिता के साथ विहार करने लगा। उसके पश्चात वे दोनों विमान में बैठकर स्वर्गलोक को चले गए।इस व्रत को विधिपूर्वक करने से समस्त पापों का नाश हो जाता है। संसार में इसके बराबर कोई और दूसरा व्रत नहीं है। इसकी कथा पढ़ने या सुनने से वाजपेय यज्ञ का फल प्राप्त होता है।

भारतीय व्रतोत्सव अप्रैल -2024

दि. 1- शीतला सप्तमी,दि. 2- शीतलाष्टमी (बसौड़ा), कालाष्टमी, मेला केसरिया मेवाड़, कैलादेवी (करौली),दि. 5- पापमोचिनी एकादशी व्रत,दि. 6- शनि प्रदोष व्रत, महावारुणी पर्व,दि. 7- मासशिवरात्रि,दि. 8- मेला प्रथूदक पिहोवा (हरि.), सोमवती अमावस्या,दि. 9- चैत्र नवरात्र प्रारम्भ, संवत् 2081 प्रारम्भ,दि. 10- सिंधारा,दि. 11- मत्स्य जयंती, गणगौरी तीज,दि. 12- विनायक चतुर्थी व्रत,दि. 13- संक्रांति पुण्य, वैशाखी, श्री (लक्ष्मी) पंचमी,दि. 14- यमुना षष्ठी, स्कन्द षष्ठी,दि.16- श्री दुर्गाष्टमी, अशोकाष्टमी, मेला श्री मनसा देवी (हरि.),दि. 17- श्री राम नवमी, चैत्र नवरात्र पूर्ण,दि. 19- कामदा एकादशी व्रत,दि. 21- प्रदोष व्रत,दि. 23- सत्य इत, वैशाख स्नान प्रा., हनुमान जयंती (इ. भा),दि. 27- श्री गणेश चतुर्थी व्रत दि. 29- गुरुतेग बहादुर जयंती दि. 30- गुरु अर्जुनदेव जयंती,अधिक जानकारी के लिए संपर्क करे शर्मा जी - 9312002527,9560518227


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