शनिवार, 2 दिसंबर 2023

जानकारी काल दिसंबर - 2023

 

जानकारी काल 



   वर्ष-24    अंक-08    दिसंबर  - 2023,   पृष्ठ 44    मूल्य 2-50    




 

 26 दिसंबर को श्री गुरु गोबिंद सिंह के उन दोनों साहबजादों- साहिबजादा जोरावर सिंह (9) और साहिबजादा फतेह सिंह (7) और माता गुजरी की शहादत का इतिहास, उनके बलिदान को याद करने के लिए वीर बाल दिवस मनाया जाता है । 

संरक्षक

 श्रीमान कुलवीर शर्मा

महामंत्री समर्थ शिक्षा समिति

डॉ वी  एस नेगी

प्रोफेसर भगत सिंह कॉलेज सांध्य


 प्रधान संपादक व  प्रकाशक

 सतीश शर्मा 


 

 कार्यालय

 ए 214 बुध नगर इंद्रपुरी

 नई दिल्ली 110012


 मोबाइल

  9312002527


 संपादक मंडल

 सौरभ  शर्मा,कपिल शर्मा,

गौरव शर्मा,डॉ अजय प्रताप सिंह, करुणा ऋषि, डॉ मधु वैध,राजेश शुक्ल  


प्रकाशक व मुद्रक सतीश शर्मा के लिय ग्लैक्सी प्रिंटर-106 F,

कृणा नगर नई दिल्ली 110029, A- 214 बुध नगर इन्दर पूरी नई दिल्ली  110012 से प्रकाशित |


सभी लेखों पर संपादक की सहमति आवश्यक नहीं है पत्रिका में किसी भी लेख में आपत्ति होने पर उसके विरुद्ध कार्रवाई केवल दिल्ली कोर्ट में ही होगी 

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      अनुक्रमणिका


सम्पादकीय - 3  

भारत में प्रथम परमाणु विज्ञानी महर्षि कणाद 4 लेख

बस यही तो जिन्दगी है।- 8 कविता

बचपन की यादें - 9 लेख

घर - 11 कहानी

घर की रोशनी - 13 कहानी

वर्ण व्यवस्था का वैज्ञानिक आधार - 16 लेख

आत्म- अनभिज्ञता महापाप - 19 लेख

उत्पन्ना एकादशी - 21 कथा

मोक्षदा एकादशी - 22 कथा

इस बार मेले से,,- 27 कविता

स्वतंत्र वीर सावरकर - 26 कविता

जरूरत - 28 कहानी 

लघु कथा - 29 कहानी 

स्वस्थ पर वस्त्रों का प्रभाव - 30 लेख

ऐतिहासिक पीपल का पेड़ - 33 लेख

नारियल पानी - 35 स्वास्थ्य 

हंस ओर काग - 37 कहानी

दिसंबर माह के महत्वपूर्ण दिवस- 36 जानकारी

सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज।

 अहं त्वां सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुच:॥

 अर्थ: (हे अर्जुन) सभी धर्मों को त्याग कर अर्थात हर आश्रय को त्याग कर केवल मेरी शरण में आओ, मैं (श्रीकृष्ण) तुम्हें सभी पापों से मुक्ति दिला दूंगा, इसलिए शोक मत करो










सम्पादकीय 

सर्वतीर्थमयी माता सर्वदेवमय: पिता। मातरं पितरं तस्मात् सर्वयत्नेन पूजयेत्।।

 अर्थात: माता सर्वतीर्थ मयी और पिता सम्पूर्ण देवताओं का स्वरूप हैं इसलिए सभी प्रकार से यत्नपूर्वक माता-पिता का पूजन करना चाहिए। जो माता-पिता की प्रदक्षिणा करता है, उसके द्वारा सातों द्वीपों से युक्त पृथ्वी की परिक्रमा हो जाती है।

माता-पिता अपने बच्चों  के लालन पालन के लिए सब कुछ करते है हर प्रकार के समझौते करने को तैयार रहते हैं फिर उनके बुढ़ापे में बच्चे क्यों नहीं कोई समझौता करने का प्रयास करते ? कुछ लोग अपने बूढ़े माता-पिता की सेवा तो नहीं करती लेकिन उन्हें किसी प्रकार की आर्थिक तंगी नहीं होने देते ऐसे लोग उन लोगों से बेहतर है जिनके माता-पिता दाने-दाने को मोहताज हो जाते हैं | माता-पिता की सेवा करना भी तो बच्चों का ही फर्ज है इस सब से हम सब अपने फर्ज से कैसे मुंह मोड़ सकते हैं | आज के आधुनिक शिक्षा प्राप्त तथा पश्चात संस्कृति के पुजारी वैसे तो अपने बूढ़े माता-पिता को कभी पूछते नहीं लेकिन मदर डे और फादर डे पर उपहार भिजवाना नहीं भूलते ओर उनके पैर के पास बैठ कर फ़ोटो लेकर सोशल मीडिया पर डालते है |  माता-पिता को महंगे उपहार नहीं देख भाल की ज्यादा जरूरत है | सबसे बड़ी बात तो ये है की उन्हे देख भाल की भी कोई खास जरूरत नहीं है | वस्ताव मे उन्हे जरूरत है अपने बच्चों के साध की,बहु ओर पोते पोतियों के साध की |यदि उनकी बहु ओर पोते पोतियाँ साध होंगे तो उन्हे देख भाल की भी कोई जरूरत नहीं होगी,अपितु वे ही उनके कामों मे हाथ बाद देंगे | परिवार का अभाव ही तो उनके दुख ओर बीमारी का कारण है | एकल परिवार की अपेक्षा संयुक्त परिवार में रहने वाले माता-पिता और बच्चे सभी  अधिक स्वस्थ रहते हैं | साथ रहना सुरक्षा ही नहीं अच्छे स्वास्थ्य का भी मूल  है | कुछ लोग ऐसे भी हैं जो माता-पिता के साथ तो रहते हैं उनके पैर भी छूते हैं लेकिन अपने  बच्चों को अपने उनके पास तक भटकने नहीं देते | मात्र दिखावे के लिए आदर सम्मान भी पर्याप्त,नहीं परंतु पूर्ण रूप से अपनेपन की जरूरत है | दादा दादी अपने पोते पोतियो के साथ घुल  मिलकर रहे तभी उन्हें अच्छा लगेगा दोनों एक दूसरे के सहचर्या  से परस्पर लाभान्वित भी हों सकेंगे | यदि सचमुच अपने बूढ़े माता-पिता को स्वस्थ रखना है तो उनकी सेवा करनी है तो उनके पोते पोतियो का संसार मत छीनीय | आप परिवार में उनको अपने साथ रखिए आप मानिए कि परिवार में उनके रहने से आपको सुरक्षा मिलेगी सहयोग मिलेगा और आप अपनी उनकी सेवा कर सकेंगे और पितृ दोष से भी आप मुक्त रहेंगे | जो अपने माता-पिता को वृद्ध आश्रम में छोड़कर चले आते हैं उनका तो कहना ही क्या है | देखने में यह भी आ रहा है की माता-पिता को बस अड्डे के बाहर एयरपोर्ट के बाहर किसी सब्जी मंडी में कहीं भी छोड़ कर आ जाते हैं और खुद उनका सारा पैसा और सारी जायज़त लेकर रफू चक्कर हो जाते हैं अब ऐसे पुत्रों के लिए क्या कहा जा सकता है | बस मेरा तो यही है समाज के अंदर इस प्रकार का परिवार का निर्माण हो सके कि हम सब अपने-अपने बुजुर्गों का देखभाल कर सके अगर हम सब अपने माता-पिता के जो उन्होंने हमारे लिए कर है उसे रन को भी चुका देंगे तो हमारे लिए एक अच्छी बात होगी |





 भारत में प्रथम परमाणु विज्ञानी महर्षि कणाद

प्रदीप आचार्य

हजारों वर्ष पूर्व महर्षि कणाद ने सर्वांगीण उन्नति की व्याख्या करते हुए कहा था "यतो भ्युदयनि:श्रेय स सिद्धि:स धर्म:" जिस माध्यम से अभ्युदय अर्थात्‌ भौतिक दृष्टि से तथा नि:श्रेयस याने आध्यात्मिक दृष्टि से सभी प्रकार की उन्नति प्राप्त होती है, उसे धर्म कहते हैं।महर्षि कणाद को परमाणु सिद्धांत का जनक माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि आज से वे 2600 वर्ष पहले हुए थे। वे एक महान ऋषि भी थे और उन्होंने भगवान शिव की घोर तपस्या करने आध्यात्मिक ऊर्जा और शक्ति प्राप्त की थी। उनका जन्म नाम कश्यप था | भारत में प्रथम परमाणु विज्ञानी महर्षि कणाद अपने वैशेषिक दर्शन के १०वें अध्याय में कहते हैं "दृष्टानां दृष्ट प्रयोजनानां दृष्टाभावे प्रयोगोऽभ्युदयाय" अर्थात्‌ प्रत्यक्ष देखे हुए और अन्यों को दिखाने के उद्देश्य से अथवा स्वयं और अधिक गहराई से ज्ञान प्राप्त करने हेतु रखकर किए गए प्रयोगों से अभ्युदय का मार्ग प्रशस्त होता है। इसी प्रकार महर्षि कणाद कहते हैं पृथ्वी, जल, तेज, वायु, आकाश, दिक्‌, काल, मन और आत्मा इन्हें जानना चाहिए। इस परिधि में जड़-चेतन सारी प्रकृति व जीव आ जाते हैं। ईसा से ६०० वर्ष पूर्व ही कणाद मुनि ने परमाणुओं के संबंध में जिन धारणाओं का प्रतिपादन किया, उनसे आश्चर्यजनक रूप से डाल्टन की संकल्पना मेल खाती है। कणाद ने न केवल परमाणुओं को तत्वों की ऐसी लघुतम अविभाज्य इकाई माना जिनमें इस तत्व के समस्त गुण उपस्थित 

होते हैं बल्कि ऐसी इकाई को ‘परमाणु‘ नाम भी उन्होंने ही दिया तथा यह भी कहा कि परमाणु स्वतंत्र 






नहीं रह सकते।

कणाद की परमाणु संबंधी यह धारणा उनके वैशेषिक सूत्र में निहित है। कणाद आगे यह भी कहते हैं कि एक प्रकार के दो परमाणु संयुक्त होकर ‘द्विणुक‘ का निर्माण कर सकते हैं। यह द्विणुक ही आज के रसायनज्ञों का ‘वायनरी मालिक्यूल‘ लगता है। उन्होंने यह भी कहा कि भिन्न भिन्न पदार्थों के परमाणु भी आपस में संयुक्त हो सकते हैं। यहां निश्चित रूप से कणाद रासायनिक बंधता की ओर इंगित कर रहे हैं। वैशेषिक सूत्र में परमाणुओं को सतत गतिशील भी माना गया है तथा द्रव्य के संरक्षण (कन्सर्वेशन आफ मैटर) की भी बात कही गई है। ये बातें भी आधुनिक मान्यताओं के संगत हैं। हमारे यहां प्राचीन काल से व्रह्मांड क्या है और कैसे उत्पन्न हुआ, क्यों उत्पन्न हुआ इत्यादि प्रश्नों का विचार हुआ। पर जितना इनका विचार हुआ उससे अधिक ये प्रश्न जिसमें उठते हैं, उस मनुष्य का भी विचार हुआ। ज्ञान प्राप्ति का प्रथम माध्यम इन्द्रियां हैं। इनके द्वारा मनुष्य देखकर, चखकर, सूंघकर, स्पर्श कर तथा सुनकर ज्ञान प्राप्त करता है। बाह्य जगत के ये माध्यम हैं। विभिन्न उपकरण इन इंद्रियों को जानने की शक्ति बढ़ाते हैं। दूसरा और अधिक महत्वपूर्ण माध्यम अन्तर्ज्ञान माना गया, जिसमें शरीर को प्रयोगशाला बना समस्त विचार, भावना, इच्छा इनमें स्पन्दन शांत होने पर सत्य अपने को उद्घाटित करता है। अत: ज्ञान प्राप्ति के ये दोनों माध्यम रहे तथा मूल सत्य के निकट अन्तर्ज्ञान की अनुभूति से उपर्युक्त प्रश्नों का उत्तर खोजने का प्रयत्न हुआ। यद्यपि वेदों, व्राह्मणों, उपनिषदों, महाभारत, भागवत आदि में ऊपर उठाए प्रश्नों का विवेचन मिलता है, परन्तु व्रह्माण्ड का विश्लेषण परमाणु विज्ञान की दृष्टि से सर्वप्रथम एक शास्त्र के रूप में सूत्रबद्ध ढंग से महर्षि कणाद ने आज से हजारों वर्ष पूर्व अपने वैशेषिक दर्शन में प्रतिपादित किया था।

                  कुछ मामलों में महर्षि कणाद का प्रतिपादन आज के विज्ञान से भी आगे जाता है। महर्षि कणाद कहते हैं, द्रव्य को छोटा करते जाएंगे तो एक स्थिति ऐसी आएगी जहां से उसे और छोटा नहीं किया जा सकता, क्योंकि यदि उससे अधिक छोटा करने का प्रत्यन किया तो उसके पुराने गुणों का लोप हो जाएगा। दूसरी बात वे कहते हैं कि द्रव्य की दो स्थितियां हैं- एक आणविक और दूसरी महत्‌। आणविक स्थिति सूक्ष्मतम है तथा महत्‌ यानी विशाल व्रह्माण्ड। दूसरे, द्रव्य की स्थिति एक समान नहीं रहती है। अत: कणाद कहते हैं-

"धर्म विशेष प्रसुदात द्रव्य गुण कर्म सामान्य विशेष समवायनां पदार्थानां साधर्य वैधर्यभ्यां।"

 (तत्वज्ञाना नि:श्रेयसम वै.द.-४)

अर्थात्‌ धर्म विशेष में द्रव्य, गुण, कर्म, सामान्य, विशेष तथा समवाय के साधर्य और वैधर्म्य के ज्ञान द्वारा उत्पन्न ज्ञान से नि:श्रेयस की प्राप्ति होती है।

द्रव्य क्या है? इसकी महर्षि कणाद की व्याख्या बहुत व्यापक एवं आश्चर्यजनक है। वे कहते हैं-

"पृथिव्यापस्तेजोवायुराकाशं कालोदिगात्मा मन इति द्रव्याणि।"

         (वै.द. १/५)




अर्थात्‌ पृथ्वी, जल, तेज, वायु, आकाश, काल, दिशा जीवात्मा तथा मन- ये द्रव्य हैं। यहां पृथ्वी, जल आदि से कोई हमारी पृथ्वी, जल आदि का अर्थ लेते हैं। पर ध्यान रखें इस सम्पूर्ण व्रह्माण्ड में ये नौ द्रव्य कहे गए, अत: स्थूल पृथ्वी से यहां अर्थ नहीं है।

वे कहते हैं, पृथ्वी यानी द्रव्य का ठोस  रूप, जल यानी द्रव्य  रूप तथा वायु (क्रठ्ठद्म) रूप, यह तो सामान्यत: दुनिया में पहले से ज्ञात था, पर महर्षि कणाद कहते हैं कि तेज भी द्रव्य है। जबकि पदार्थ व ऊर्जा एक है यह ज्ञान २०वीं सदी में आया है। इसके अतिरिक्त वे कहते हैं- आकाश भी द्रव्य है तथा आकाश परमाणु रहित है और सारी गति आकाश के सहारे ही होती है, क्योंकि परमाणु के भ्रमण में हरेक के बीच अवकाश या प्रभाव क्षेत्र रहता है। अत: हमारे यहां घटाकाश, महाकाश, हृदयाकाश आदि शब्दों का प्रयोग होता है। महर्षि कणाद कहते हैं- दिक्‌ (च्द्रठ्ठड़ड्ढ) तथा काल (च्र्त्थ्र्ड्ढ) यह भी द्रव्य है, जबकि पश्चिम से इसकी अवधारणा आइंस्टीन के सापेक्षतावाद के प्रतिपादन के बाद आई। महर्षि कणाद के मत में मन तथा आत्मा भी द्रव्य हैं। इस अवधारणा को मानने की मानसिकता आज के विज्ञान में भी नहीं है। प्रत्येक द्रव्य की स्थित आणविक है। वे गतिशील हैं तथा परिमण्डलाकार उनकी स्थिति है। अत: उनका सूत्र है-

"नित्यं परिमण्डलम्‌।"

       ( वै.द. ७/२०)

परमाणु छोटे-बड़े रहते हैं, इस विषय में महर्षि कणाद कहते हैं-

"एतेन दीर्घत्वहृस्वत्वे व्याख्याते ।"

         (वै.द. ७-१-१७)

आकर्षण-विकर्षण से अणुओं में छोटापन और बड़ापन उत्पन्न होता है। इसी प्रकार व्रह्मसूत्र में कहा गया-

"महद्‌ दीर्घवद्वा हृस्वपरिमण्डलाभ्याम्‌।"

             (व्र.सूत्र २-२-११)

अर्थात्‌ महद्‌ से हृस्व तथा दीर्घ परिमण्डल बनते हैं।

परमाणु प्रभावित कैसे होते हैं तो महर्षि कणाद कहते हैं-

"विभवान्महानाकाशस्तथा च आत्मा।"

            (वै.द. ७-२२)

अर्थात्‌ उच्च ऊर्जा, आकाश व आत्मा के प्रभाव से।

परमाणुओं से सृष्टि की प्रक्रिया कैसे होती है, तो महर्षि कणाद कहते हैं कि पाकज क्रिया के द्वारा। इसे पीलुपाक क्रिया भी कहते हैं। अर्थात्‌ अग्नि या ताप के द्वारा परमाणुओं का संयोजन होता है। दो परमाणु 

मिलकर द्वयणुक बनते हैं। तीन द्वयणुक से एक त्रयणुक, चार त्रयणुक से एक चतुर्णुक तथा इस प्रकार स्थूल पदार्थों की निर्मित होती है। वे कुछ समय रहते हैं तथा बाद में पुन: उनका क्षरण होता है और मूल 




रूप में लौटते हैं। महर्षि कणाद ने परमाणु को ही अंतिम तत्व माना। कहते हैं कि जीवन के अंत में उनके शिष्यों ने उनकी अंतिम अवस्था में प्रार्थना की कि कम से कम इस समय तो परमात्मा का नाम लें, तो कणाद ऋषि के मुख से निकला पीलव: पीलव: पीलव: अर्थात्‌ परमाणु, परमाणु, परमाणु।

महर्षि कपिल थोड़ा और गहराई में गए तथा कपिल का सांख्य दर्शन जगत्‌ की अत्यंत वैज्ञानिक व्याख्या प्रस्तुत करता है। महर्षि कपिल ने कहा- जिसकी भी कुछ आन्तरिक रचना है उनके भिन्न-भिन्न रूप हैं। अत: निश्चयात्मक रूप से यह जगत्‌ मूल रूप से जिनसे बना है, उसके आकार के बारे में नहीं कह सकते। इतना कह सकते हैं कि वे सूक्ष्म हैं तथा उनका एक विशेष प्रकार का गुण है। अत: उन्होंने कहा- जगत्‌ त्रिगुणात्मक है और ये तीन गुण हैं सतोगुण, रजोगुण तथा तमोगुण। महर्षि कपिल की व्याख्या आश्चर्यजनक है, वे कहते हैं कि ये तीनों गुण हैं।

(1) "लध्वादिधर्म: साधर्म्यं वैधर्यं च गुणानाम्‌।"    (सांख्य दर्शन-१-१२८)

अर्थात्‌ सूक्ष्मता की दृष्टि से इनमें समानता है परन्तु विशेषता या गुण की दृष्टि से इनमें भिन्नता है। गुण क्या हैं? वे कहते हैं-

"प्रीत्यप्रीतिविषादाद्यैर्गुणानामन्योऽन्यं वैधर्म्यम्‌।"     (सां.द.१-१२७)

प्रीति (ॠद्यद्यद्धठ्ठड़द्यत्दृद), अप्रीति (ङड्ढद्रद्वथ्द्मत्दृद) तथा विषाद (ग़्ड्ढद्वद्यद्धठ्ठथ्‌)- ये भिन्न-भिन्न विशेषता इन गुणों की है।

इसमें भी जो गति होती है वह आकर्षण व विकर्षण के कारण ही होती है। अत: सांख्य दर्शन कहता है-

"रागविरागयोर्योग: सृष्टि:।"     (सां.द. २-९)

आकर्षण और विकर्षण का योग सृष्टि है। सम्पूर्ण सृष्टि आकर्षण और विकर्षण का ही खेल है और यह सब जिस शक्ति द्वारा होता है उसे क्रिया शक्ति कहा जाता है और समस्त भौतिक शक्तियों का इसमें एकीकरण है।

चौघड़िया मुहूर्त 

चौघड़िया मुहूर्त देखकर कार्य या यात्रा करना उत्तम होता है। एक तिथि के लिये दिवस और रात्रि के आठ-आठ भाग का एक चौघड़िया निश्चित है। इस प्रकार से 12 घंटे का दिन और 12 घंटे की रात मानें तो प्रत्येक में 90 मिनट यानि 1.30 घण्टे का एक चौघड़िया होता है जो सूर्योदय से प्रारंभ होता है|

ग्रह स्थिति दिसंबर - 2023 

ग्रह स्थिति - दि-11 को बुध वक्री,दि-16 को सूर्य धनु में,दि-17 को बुध पश्चिमास्त,दि-24 को शुक्र वृश्चिक में,दि-27 को बुध पूर्वोदय,दि-27 को मंगल धनु में दि-28 को बुध वृश्चिक में,दि-31 को गुरु मार्गी











बस यही तो जिन्दगी है

बस यही तो जिन्दगी है

रेत मुट्ठी में दबी है


कुछ नहीं हैं चाँद-सूरज

आँख है तो रौशनी है


क्या हुआ है इस शहर को

लूट-सी हर सू मची है


जा के कह दो याद से ये

शाम की खिड़की खुली है


आपके बिन रह भी लें पर

आपकी आदत पड़ी है


रात जाए कब न जाने

नींद कब की जा चुकी है




बचपन की यादें 

रमेश सचदेवा 


जब मैं किशोर था तब सिनेमा देखने के लिए सिनेमा हॉल जाना हमारे माता-पिता द्वारा कड़ाई से प्रतिबंधित था। बिना अनुमति के जाना लगभग अपराध था। जब मैंने  पहली बार  यह नियम तोड़ा  तो मुझे अपराध की गंभीरता के बारे में कोई पता नहीं था।

मैं शायद छठी कक्षा में था, जब मुझे पहली बार सिनेमा हॉल में जाने का अवसर मिला, मेरे चाचा, जो मुझसे लगभग दो साल सीनियर थे ,  साथ थे। 

लगभग हर शाम हम दोनों व  उसी आयु वर्ग के कुछ अन्य लड़के लुका-छिपी खेलते थे। एक शाम को लुका-छिपी खेलने के बजाय उन्होंने मूवी देखने जाने का सुझाव दिया। मुझे यह विचार पसंद आया लेकिन मैंने बताया कि मेरे पास पैसे नहीं थे। उसने मुझे बताया कि उसके पास दो टिकटों के लिए पर्याप्त पैसे थे। फिर मैंने आशंका व्यक्त की कि माता-पिता हमें रात के खाने के लिए ढूंढेगे । तब उन्होंने आश्वासन दिया कि हम उस समय तक वापस आ जाएंगे।

जाने का फैसला करने के बाद हम शोरी क्लॉथ मार्केट रोहतक से सटे प्रताप टॉकीज चले गए। टिकट खरीदने के लिए वह लंबी कतार थी । टिकट लेने के बाद  गार्ड ने हमें टार्च की रोशनी में सीटों तक पहुँचाया। फिल्म थी   " शिकारी "

नाम को छोड़कर मुझे फिल्म के बारे में ज्यादा याद नहीं है। लेकिन मुझे याद है कि इसके बाद क्या हुआ :




जाड़े के दिनों में घर के दरवाजे बंद कर दिए जाते थे (लगभग 9.30 P.M) हम लौट आए। एक या दो बार हमने धीरे से कुछ प्रतिक्रिया पाने के लिए  घर के दरवाजे पे  दस्तक देने की कोशिश की। लेकिन इसे खोला नहीं गया। तब मेरे चाचा ने दादा को जगाने की कोशिश करने का फैसला किया, जो घर के बाहर दुकान में सोते थे। हम दुकान का दरवाजा खुलवाने में सफल रहे। मेरे दादाजी ने पूछताछ की कि हम कहां गए थे। मेरे चाचा ने जवाब दिया "कहीं नहीं। हम दोस्तों के साथ खेल रहे थे" बिना किसी सवाल के मेरे दादाजी ने हमें अपनी रजाई में घुसने दिया।

हम तीनों ठीक से एक खाट पर नहीं सो सकते थे। लेकिन हम किसी तरह समायोजित  होने  की कोशिश कर रहे थे। ज्यादा समय नहीं बीता जब दुकान के दरवाजे पर दस्तक हुई। मेरे दादाजी ने दरवाजा खोला।  दरवाजे पर मेरे पिता जी  थे। उन्होंने  कोई शब्द नहीं बोला। उसने मुझे केवल उसका अनुसरण करने के लिए इशारा  किया।मैं  चुपचाप उसका पीछे चल पड़ा !

घर में हमारे कमरे में पहुँचने पर उन्होंने  दरवाजा बन्द करके  पूछा कि मैं कहाँ था? मैंने  वही दोहरा दिया जो  मेरे चाचा ने मेरे दादाजी को क्या कहा था।  मेरे पिता ने सवाल दोहराया। मैंने जवाब दोहराया।

उसने तब अपना धैर्य खो दिया और मेरे चेहरे पर थप्पड़ मार दिया। मैं भी अपराध बोध से भर गया था लेकिन होंठ सच बोलने के लिए नही खुले !  मेरे चेहरे पर दो तीन और थप्पड़ लेकिन फिर भी सच्चाई बोलने के लिये साहस न कर पाया !

फिर मेरे पिता ने अपना जूता हाथ में ले लिया और मुझे मारने से पहले मैं रोने लगा और  बोला "पिता  जी 'शिकारी" उन्होंने जूता जमीन पर फेंक दिया और मुझे गले से लगा लिया। मैं अपने गाल और गर्दन पर उसके आँसू महसूस कर सकता था।मुझे महसूस हुआ कि मैंने उसका विश्वास तोड़ा था ! बाकी के  अपने जीवन के  मैंने उनका विश्वास  तोड़ने की कोशिश नही  की। मुझे गहरा विश्वास है, स्वर्ग में भी हमारी भलाई  ही उनके लिये  प्रथम है !

पंचक विचार दिसंबर - 2023   

पंचक विचार -(धनिष्ठा नक्षत्र के तृतीय चरण से रेवती नक्षत्र तक) पंचको में दक्षिण दिशा की ओर यात्रा करना मकान दुकान आदि की छत डालना चारपाई पलंग आदि बुनना,दाह संस्कार,बांस की चटाई दीवार प्रारंभ करना आदि स्तंभ रोपण तांबा पीतल तृण काष्ट आदि का संचय करना आदि कार्यों का निषेध माना जाता है समुचित उपाय एवं पंचक शांति करवा कर ही उक्त कार्यों का संपादन करना कल्याणकारी होगा ध्यान रहेगा  पंचर नक्षत्रों का विचार मात्र उपरोक्त विशेष कृतियों के लिए ही किया जाता है विवाह मंडल आरंभ गृह प्रवेश प्रवेश उपनयन आदि मुद्दों से तो पंचक नक्षत्रका प्रयोग शुभ माना जाता है पंचक विचार- दिनांक 17 को 15-44 से दिनांक 21 को 22-08  तक पंचक है | 

अधिक जानकारी के लिए संपर्क करे शर्मा जी - 9312002527,9560518227



घर 

नोरिन शर्मा,नोएडा

"बहू हमारे घर ये सब नहीं होता..!"

"लेकिन माँ जी ,कल परी के पापा की ख़ास मीटिंग है। मुझे बोलकर गए हैं,इस शर्ट को धोकर प्रेस करके रखने को..."

"देखो बहू,तुम्हारे घर में वीरवार को कपड़े धुलते होंगे, हमारे यहां नहीं...!"

" लेकिन माँ जी ..."

श्रुति को समझ नहीं आ रहा था कि वो क्या करे...! कमरे में आकर शोभित को मैसेज करने लगी थी कि बाहर से अपनी परी की कुछ आवाज़ें सुनकर बाहर आई।

" क्या हुआ बेटा,क्या चाहिए आपको..चलो होमवर्क पूरा करो..!"

माँ जी की कड़क आवाज़ ने चौंका दिया, संभाल अपनी बेटी को; मुझसे कैसे बात कर रही है,अभी तो ज़रा सी है...! दूसरे घर जाकर हमारी नाक कटाएगी..!"

" मम्मा यह मेरा घर नहीं है?दादी किसके घर जाने को बोल रही हैं..,बोलो न मम्मा..?"

" चलो परी आपका होमवर्क बचा है; जल्दी पूरा करो..?"

तभी श्रुति ने देखा शोभित का कोई मैसेज आया है।

" दैट्स माय लकी शर्ट यार..!कैसे भी करके माँ को मनाओ!"

"सॉरी,आप मम्मी जी को कॉल कर लो..शायद मान जाएं..!"

मैसेज करके श्रुति परी का होमवर्क करवाने लगी।





रात का खाना खाते हुए शोभित का मूड बहुत खराब था..! वो अगले दिन एक बार पहनी हुई शर्ट को प्रेस करके और ढेर सारा परफ्यूम लगाकर चला गया।

सुबह सुबह श्रुति की भाग दौड़ ख़त्म हो नहीं हो रही थी कि आलू के परांठे खाते हुए शोभित ने आम का अचार माँगा।उसने बरनी का अभी ढक्कन ही खोला था कि मम्मी जी की गरजन ने पूरे घर को हिला दिया।

" बहू तुम्हारे घर में होता होगा ,यहां नहीं...!कितनी बार बोला है,इन दिनों में तुम अचार की बरनी नहीं छू सकती..! सब सत्यानाश करके रख दिया।"

   रोज़ रोज़ तुम्हारे यहां ,हमारे यहां सुन सुनकर श्रुति परेशान हो जाती,पर बात बढ़ न जाए इस वजह से चुप्पी साध लेती।

     दीपावली की सफ़ाई और तैयारियां जोरों से चल रहीं थीं। अचानक मम्मी जी के मुंह से " तुम्हारे यहां ऐसा..." सुनकर परी ने दादू और दादी से पूछा, " दादू ये घर किसका है?"

"क्या मतलब बिटिया..समझा नहीं?"

" आपका है न..! और दादी का..! और पापा का भी.!"

"हां बेटा, और आपका भी..!"

" नहीं...ये मेरा घर नहीं है,दादी बोलती है,मैं दूसरे किसी घर जाऊँगी।"

" वो तो आप बड़े होकर ,शादी करके जाओगे बेटा..!"दादू दादी मुस्कुराने लगे।

"फिर मेरी मम्मा का घर कहां है?"

पापा परी की बातें सुनकर हँसने लगे और बोले,"बेटा जी ,ये मम्मा का घर भी है!"

"नो, नो, नो..!" परी ने ऊंची आवाज़ में कहा।उसकी आवाज़ सुनकर श्रुति भी बाहर आई, "क्या हुआ बच्चा, इतना ज़ोर से नो, नो किसको बोल रहे हो?"

परी के चेहरे पर अनेक भाव आए और गए ; माँ को देखकर थोड़ा रुकी और बोली," ये घर मेरा भी नहीं है और मेरी मम्मा का भी नहीं..!"

सब हैरानी से परी को देख रहे थे।श्रुति इस बात का अर्थ समझ ज़रूर गई थी पर हमेशा की तरह चुप्पी साधे थी कि त्योहार का समय है और कोई हंगामा न हो जाए।मम्मी जी कहीं फिर ज़ोर ज़ोर से चिल्लाने न लगें। श्रुति परी का हाथ पकड़कर कमरे में ले जाने लगी,एक झटके से परी ने हाथ छुड़ा लिया और बोली," नानी मम्मा को बोलती हैं,अरे रहने दे बेटा, अपने घर जाकर करना..! यहां दादी बोलती हैं,तुम्हारे घर,हमारे घर में...ये नहीं होता,वो नहीं होता..! सोच रही हूं मम्मा का तो कोई घर ही नहीं है। फिर मेरा भी कोई घर नहीं होगा..!"

सबके चेहरों पर ग्लानि की रेखाएँ स्पष्ट दिख रहीं थीं। सब प्रश्न का उत्तर अपने अपने तरीके से ढूँढने लगे... कि नन्ही परी को क्या बताएँ...जबकि प्रश्न में ही उत्तर समाहित था, श्रुति जानकर भी अनजान बन रही थी। संतुष्ट भी थी कि चलो परी को इसका उत्तर ज़रूर मिल जाएगा।

घर की रोशनी

 बालेश्वर गुप्ता, नोयडा  

       समझ नही आता, नीलू क्या करूँ?तुम्हारे बिन अपनी कल्पना करना भी मेरे लिये सम्भव नही।

      अपने से ही बात करता अंशु बड़बड़ाता ही जा रहा था।नीलू की दोनो किडनी वास्तव में खराब हो चुकी थी।डायलिसिस पर जिंदा थी।किडनी प्रत्यारोपण ही एकमात्र मार्ग शेष रह गया था।अंशु अपने टेस्ट करा चुका था,उसकी किडनी के प्रत्यारोपण को डॉक्टर ने मना कर दिया था।किसी अन्य की किडनी प्राप्त करने के लिये समय और 15-20लाख रुपयो की आवश्यकता थी,और दोनो ही उनके पास नही थे।बेबसी में व्यक्ति करे भी तो क्या करे।

      अभी तीन वर्ष पूर्व ही अंशु और नीलू की शादी हुई थी,अंशु के पास ही माँ रहती थी,पिता थे नही।साधारण परिवेश का उनका परिवार था,ये तो अच्छा हुआ कि अंशु की जॉब लग गयी थी,अन्यथा खाने के भी लाले पड़ जाते। शादी के 1वर्ष बाद ही गुड़िया उनके जीवन मे आ गयी थी,इससे अंशु की माँ  को तो मानो जीवन रेखा ही मिल गयी थी।घर मे रौनक छा गयी थी।प्यारी सी बेटी को पा सब खुशी से फूले नही समाते।

          किशोरी लाल जी जल निगम में क्लर्क थे,सिद्धांत वादी थे,रिश्वत न लेने का प्रण था,आजीवन इस प्रण को उन्होंने निभाया भी।अपने वेतन से उनका गुजारा ठीक ठाक हो जाता था।बस अपना खुद का मकान न बना पाने का मलाल जरूर उन्हें रहा।प्राणनाथ उनके एकमात्र घनिष्ठ मित्र थे।दोनो आपस मे अपने दुख सुख की बात खुलकर कर लेते थे।प्राणनाथ जी के बिटिया थी नाम रखा था नीलू तो किशोरी लाल जी ने अपने एकलौते पुत्र का नाम रखा अंशु।अपनी हैसियत के मुताबिक दोनो ने अपने बच्चों को 





अच्छी शिक्षा दिलायी। नीलू और अंशु दोनो ने प्रारम्भ से ही एक ही विद्यालय में शिक्षा पायी।दोनो परिवारों का एक दूसरे के यहाँ आना जाना होने के कारण नीलू और अंशु बचपन से ही एक दूसरे को जानते थे,साथ ही खेले थे फिर साथ ही पढ़ने भी लगे।कब एक दूसरे के मन मे प्रेम का बीज अंकुरित हो गया पता भी नही चला।दोनो की कोशिश रहती कि अधिक से अधिक समय साथ ही रहे।

        दोनो में लगाव था,क्या यह प्रेम है यह दोनो को ज्ञात ही नही था,बस उन्हें लगता कि एक दूसरे के बिना नही रह सकते।लेकिन किशोरी लाल और प्राणनाथ ने इस निष्छल प्रेम को समझा, दोनो अंतरंग मित्र तो थे ही सो अब दोनो ने ही अपनी मित्रता को रिश्तेदारी में बदलने की योजना तैयार कर ली।

          शुभ मुहर्त में नीलू और अंशु की शादी सम्पन्न हो गयी।दोनो बेहद खुश थे,आखिर बचपन के मुसाफिरों को मंजिल मिल गयी थी।शादी को एक वर्ष ही हुआ था कि इधर गुड़िया के रूप में एक सदस्य का पदापर्ण हुआ तो कुछ ही दिनों बाद दिल के दौरे से राम किशोर जी चल बसे।

       सामान्य होने पर धीरे धीरे जीवन पटरी पर आ गया।रामकिशोर जी के निधन के कारण उनके स्थान पर अंशु को नौकरी दे दी गयी,इससे घर खर्च चलाने में कोई दिक्कत नही आयी।

      इधर नीलू बीमार रहने लगी थी।समस्त बॉडी चेक अप कराने पर डॉक्टर ने रिपोर्ट देख बता दिया कि नीलू की दोनो किडनी खराब हो गयी है।कुछ समय तक डायलिसिस पर नीलू को रखा गया।अब स्थिति ये थी कि एक किडनी मिले तो नीलू की जान बचे।अंशु की किडनी के लिये मना कर दिया गया।एक पहाड़ सी समस्या सामने थी जिसका निदान अंशु को सूझ ही नही रहा था।

         इतने में ही माँ की आवाज आयी,बेटा मैं जानती हूं तू क्या सोच रहा है,घर मे मेरी बच्ची नीलू पर इतना बड़ा संकट आ गया और तुमने बताया भी नही।बूढ़ी हूँ,पर माँ भी तो हूँ।मेरी कितनी जिंदगी बाकी है बेटा, चल रे अपनी बहू को मैं दूंगी किडनी।अवाक सा अंशु मां का मुँह ताकता रह गया।इतनी बड़ी बात मां ऐसे ही कह गयी।उन शब्दों में कितना प्यार भरा पड़ा था वो आज ही जान पड़ा।माँ की जिद और नीलू की हालत देखते हुए,माँ का प्रस्ताव मान किडनी प्रत्यारोपित कर दी गयी। नीलू के माता पिता दक्षिण भारत की यात्रा  पर गये हुए थे,इस कारण उन्हें सूचना नही दी गयी थी।जैसे ही वो आये और उन्हें नीलू के हॉस्पिटल में एडमिट होने का पता चला तो सीधे हॉस्पिटल आ गये।क्या हुआ मेरी नीलू को ,बदहवास सी नीलू की माँ रोये जा रही थी,अंशु ने जैसे ही बताना शुरू किया कि नीलू की दोनो किडनी खराब हो गयी हैं तो बीच मे ही चिल्लाकर बोली तो मैं दूंगी अपनी बच्ची को किडनी।

         उन्हें चुप करा कर बताया गया कि किडनी प्रत्यारोपित हो चुकी है नीलू बिल्कुल ठीक है, आप चिंता न करे,सब बात सुन नीलू की माँ ने दूसरे बिस्तर पर लेटी अंशु की मां के पैर पकड़ लिये।बहनजी आपने मेरी बच्ची की जान अपनी जान की बाजी लगा कर बचाई है,कितनी बड़ी है आप।

  अरे बहन नीलू तुम्हारी बेटी है तो मेरे घर की रोशनी भी तो है, बताओ कैसे अपने घर मे अंधेरा होने देती।दोनो की बाते सुन नीलू की आंखो से खुशी हर्ष और गर्व से अभिभूत हो आंसू बह रहे थे,आखिर वो अपने सामने दो दो माँ का प्यार अपने लिये देख रही थी।

दुष्ट की संगति से दुष्परिणाम..




बहुत समय पहले की बात है। एक पाकुड़ के पेड़ पर एक हंस और एक कौआ रहते थे। दोनों में गहरी मित्रता थी। कौआ जलनशील स्वभाव का था। जबकि हंस दयालु स्वभाव का था। गर्मी के मौसम में एक थका हारा यात्री वृक्ष के नीचे आकर बैठ गया। थोड़ी देर में उसे नींद आने लगी। उसने अपना धनुष बाण बगल में रख कर सो गया। वृक्ष की छाया थोड़ी देर में उसके मुख से ढल गई। सूर्य की तेज़ किरणे उसके मुख पर पड़ने लगी।

यात्री को विचलित देख कर हंस को दया आने लगी। वृक्ष पर बैठे हुए हंस ने विचार कर अपने पंखों को पसार फिर उसके मुख पर छाया कर दी। गहरी नींद के कारण उसने अपना मुख खोल दिया। कौआ को यात्री का सुख सहन नहीं हो रहा था। कौआ उसके मुँह में बीट करके उड़ गया। इससे पहले की हंस कुछ समझ पाता कौआ उड़ गया। अब पेड़ पर सिर्फ हंस बचा था। यात्री ने जैसे ही ऊपर देखा , उसे सिर्फ हंस दिखाई दिया।

हंस द्वारा किये गए उपकार से यात्री अनजान था। उसने सोचा, ‘‘जरुर ही इसी ने मेरे चेहरे को गन्दा किया है।” यात्री ने गुस्से में सोचा इस दुष्ट को दुष्टता की सजा अवश्य दूंगा। ऐसा सोच कर यात्री ने हंस पर बाण चला दिया। हंस तो जानता भी नहीं था कि बाण क्या होता है ? बाण हंस के हृदय में आकर लगा। हंस जमीन पर आकर गिरा और उसके प्राण निकल गए। दयालु और परोपकारी हंस को दूसरे के अपराध की सजा मिली। हंस के जीवन की भूल बस यही थी कौआ उसका मित्र था।

मित्रों,  दुष्ट और कुटिल से मित्रता हमेशा घातक होती है..!!


 राहू काल 

 राहुकाल -राहुकाल दक्षिण भारत की देन है,दक्षिण भारत में राहु काल में कृत्य करना अच्छा नहीं माना जाता, राहु काल में शुभ कृतियों में वर्जित करने की परंपरा अब हमारे उत्तरी भारत में भी अपनाने लगे हैं राहुकाल प्रतिदिन सूर्यादि वारों में भिन्न-भिन्न समय पर केवल डेढ़ डेढ़ घंटे के लिए घटित होता है |

अधिक जानकारी के लिए संपर्क करे शर्मा जी - 9312002527,9560518227

 “उद्यमेन हि सिध्यन्ति कार्याणि न मनोरथैः।

 न हि सुप्तस्य सिंहस्य प्रविशन्ति मुखे मृगा:।” 

अर्थ – सिर्फ इच्छा करने से उसके काम पूरे नहीं होते, बल्कि व्यक्ति के मेहनत करने से ही उसके काम पूरे होते हैं।

    

वर्ण व्यवस्था की भ्रांत धारणा – सूत्र सहित एक दृष्टिकोण

रजत बागची 

"वर्ण व्यवस्था" क्या है?

वर्ण एक संस्कृत शब्द है, जो 'वर' से बना है - ढकना, घेरना, गिनना, वर्गीकृत करना, विचार करना, वर्णन करना या चुनना। 

इस शब्द का प्रयोग मनुस्मृति जैसी पुस्तकों में वैदिक काल में किए गए सामाजिक वर्ग विभाजन का वर्णन करने के लिए किया जाता है। यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि जाति शब्द पुर्तगाली शब्द "कास्टा" से लिया गया है जिसका अर्थ नस्ल (Breed) या जाति (Race) है। यह शब्द वर्ण के स्थान पर प्रयुक्त होता है, जो प्रसंगानुसार ग़लत है।

वर्ण व्यवस्था का उद्देश्य

ब्राह्मण शिक्षक और बुद्धिमान व्यक्ति (कभी-कभी पुजारी) होते हैं, क्षत्रिय योद्धा होते हैं, वैश्य व्यापारी होते हैं और शूद्र सेवा प्रदाता होते हैं। वर्ण मूलतः प्रत्येक व्यक्ति के गुणों के आधार पर व्यावसायिक वर्गीकरण हैं। ये गुण उन्हें अपने व्यवसाय में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने की अनुमति देते हैं। अलग-अलग वर्णों के कर्तव्य अलग-अलग हैं। लेकिन, चाहे कोई किसी भी वर्ण का हो, उसके कर्तव्यों का पालन उसके स्वधर्म के अनुसार किया जाना चाहिए। इससे एक व्यवस्थित समाज का निर्माण होता है और सद्भाव स्थापित होता है।





वर्ण व्यवस्था का पहला उल्लेख प्राचीन संस्कृत ऋग्वेद के पुरुष सूक्तम छंद में पाया गया है। ऐसा माना जाता है कि पुरुष को चार वर्णों के संयोजन से गठित किया गया है।

श्लोक

ब्राह्मणोऽस्य मुखमासीद्वाहू राजन्य: कृत:।

उरू तदस्य यद्वैश्यः पद्भ्यां शूद्रो अजायत॥13॥

पुरुष सूक्तम 13 / ऋग्वेद 10.7.90.13 - ब्राह्मण (आध्यात्मिक ज्ञान और वैभव)उनके मुख से; क्षत्रिय (प्रशासनिक एवं सैन्य कौशल) उनकी  भुजाओं से, वैश्य (वाणिज्यिक और व्यावसायिक उद्यम) उनकी जांघों से, तथा उनके चरणों से शूद्र (उत्पादक और धारणीय शक्ति) का जन्म हुआ।

यह ऋग्वेद का  श्लोक है, जो दर्शाता है कि कैसे चार वर्णों को विराट पुरुष के चार महत्वपूर्ण भागों के रूप में वर्णित किया गया है। एक सामान्य मनुष्य के रूप में कार्य करने के लिए, व्यक्ति को इन सभी  भागों की आवश्यकता होती है। किसी भी भाग को कोई विशेष महत्व नहीं दिया जाता। वे सभी समान रूप से महत्वपूर्ण हैं। इसी प्रकार, चार वर्ण किसी भी समाज के संचालन का आधार हैं। इसमें कोई श्रेष्ठता या हीनता शामिल नहीं है। प्रत्येक वर्ण की अपने सदस्यों के गुणों के अनुसार समाज में अपनी भूमिका होती है।

वर्णों का वर्गीकरण

इसके वर्गीकरण के आधारों पर कई तरह की भ्रांतियाँ हैं।

जाति के आधार पर : ब्राह्मण परिवार में जन्म लेने वाले व्यक्ति को जाति ब्राह्मण (जन्म से ब्राह्मण) कहा जाता है, क्षत्रिय परिवार में पैदा हुए व्यक्ति को जाति क्षत्रिय (जन्म से क्षत्रिय) कहा जाता है, इसी तरह वैश्य और शूद्र कहा जाता है। यह वर्गीकरण वर्तमान युग की जाति व्यवस्था है, जो कि पूर्णतया भ्रांत है। 

कर्म के आधार पर : यह  वर्गीकरण व्यक्ति के पेशे पर आधारित है। यहां, एक व्यक्ति जो अपना जीवन धर्मग्रंथों के अध्ययन और प्रचार-प्रसार के लिए समर्पित करता है और समाज को धार्मिक जीवन जीने में मदद करता है, उसे कर्म ब्राह्मण (पेशे से ब्राह्मण) कहा जाता है। एक व्यक्ति जो ऐसे पेशे में है जो समाज की सहायता और सुरक्षा करता है जैसे राजनीति, सेना आदि को कर्म क्षत्रिय (पेशे से क्षत्रिय) कहा जाता है। जो व्यक्ति वाणिज्य, व्यवसाय आदि जैसे पेशे से जुड़ा होता है, उसे कर्म वैश्य (पेशे से वैश्य) कहा जाता है। चौथे प्रकार का पेशा वह है जो अन्य तीन व्यवसायों अर्थात ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य की सेवा करता है। जो व्यक्ति ऐसा पेशा अपनाता है उसे कर्म शूद्र (पेशे से शूद्र) कहा जाता है।

गुण के आधार पर : अगला वर्गीकरण व्यक्ति के चरित्र पर आधारित है। इसलिए, किसी व्यक्ति का जन्म जिस जाति में हुआ है, वह इस विशेष वर्गीकरण को प्रभावित नहीं करती है। धार्मिक और आध्यात्मिक स्वभाव वाला व्यक्ति गुण ब्राह्मण (चरित्र से ब्राह्मण) कहलाता है; जो साहसी, निस्वार्थ रूप से सक्रिय है और हर समय समाज की सेवा करता है उसे गुण क्षत्रिय (चरित्र से क्षत्रिय) कहा जाता है। एक व्यक्ति जिसके पास उत्कृष्ट व्यावसायिक समझ है और वह व्यावसायिक रूप से इच्छुक है, उसे 





गुण वैश्य (चरित्र से वैश्य) कहा जाता है। अंततः, जो व्यक्ति सेवा-उन्मुख है उसे गुण शूद्र (चरित्र से शूद्र) कहा जाता है।

यह श्रीमद्  भगवद गीता  के 4.13 श्लोक में मान्य है,

श्लोक

चातुर्वर्ण्यं मया सृष्टं गुणकर्मविभागश: |

तस्य कर्तारामपि मां विद्ध्यकर्तारामव्ययम् || 13||

 व्यवसायों की चार श्रेणियां लोगों के गुणों और गतिविधियों के अनुसार मेरे द्वारा बनाई गई थीं। यद्यपि मैं इस व्यवस्था का रचयिता हूं, फिर भी तुम मुझे अकर्ता तथा अविनाशी मानो l

निष्कर्ष 

 हम इससे क्या सीखते हैं। सदियों से हमने कई लोगों को अपने स्वार्थ के लिए वर्ण व्यवस्था का दुरुपयोग करते हुए देखा है, यहां तक ​​​​कि यह भी उद्धृत किया गया है कि शास्त्रों ने स्वयं उनकी गलत धारणाओं को मान्य किया है, आपको इंटरनेट पर ऐसे कई लेख मिल सकते हैं जिनमें कहा गया है कि जिस तरह से जाति व्यवस्था आज चलन में है, वह हिंदू धर्म है। , यह सच नहीं है . सच तो यह है कि गुण पर आधारित वर्ण व्यवस्था  आज भी प्रासंगिक है। साथ ही, हम जानते हैं कि यह जाति और कर्म पर आधारित नहीं है क्योंकि शास्त्र विभिन्न वर्णों में पैदा हुए महान ऋषियों  के बारे में बताते हैं ,जैसे व्यास देव एक मछुआरे की बेटी से और सत्यकाम जाबाला से। आप किस वर्ण के हैं, इसके आधार पर कोई भेदभाव नहीं है, क्योंकि श्रुति उन सभी को समान मानती है।

संदर्भ : 1 वर्ण व्यवस्था-अध्याय 15-धर्मविकी,2 वर्ण (हिंदू धर्म),3 वज्रसुचि उपनिषद ( हिन्दी पीडीएफ )

सुर्य उदय- सुर्य अस्त दिसंबर -2023 


दिनांक

उदय 

दिनांक

अस्त 

06-58 

1

17-22 

5

07-01 

5

17-22 

10

07-04 

10

17-23 

15

07-08 

15

17-25 

20

07-14 

20

17-27 

25

07-16 

25

17-30 

30

07-15 

30

17-33

 




आत्म-अनभिज्ञता महापाप

  सुमित कुमार,नोएडा

अंधेरा तभी तक है जब तक प्रकाश का दरवाजा हमने ठीक से खटखटाया नहीं। मन का कमजोर रहना तभी तक स्वीकारा जा सकता है जब तक प्रेरणा का स्फुरण सारे व्यक्तित्व में हुआ नहीं। एक बार यदि अपने जीव होने का भाव तिरोधान हुआ नहीं, और वास्तविक संपदा का अस्तित्व मुखरित नहीं हो गया तो व्यक्ति का जीवन कायाकल्प के अग्निपिंड में पूर्ण रूप से प्रज्वलित नहीं हो सकता है। हमें बनना क्या है? यह प्रश्न करने-कराने के प्रश्न से लाख गुना बड़ा है। बनने में शोभा है, सात्विकता है, और अपनी अनुचित कामनाओं का प्रदर्शन तो बिल्कुल भी नहीं है। एक बार मर्यादा स्थापित हो जाए कि ये हमारा व्यक्तित्व है, इससे पीछे तो हम हटेंगे नहीं, फिर चाहे लाख बाधाएं आएं। यदि मन परिस्थितियों के आतंक से भयभीत नहीं होता तो स्वयमेव उसे पथ दिख जाता है अपनी आंतरिक उत्कृष्टता के प्रदर्शन का। निराशा के बादल तभी छाते हैं जब अंधकार को प्रकाश में बदला नहीं गया। प्रेरणा सत्य की असत्य में जा मिले, चिंतन किसी प्रकार धुंधला एवं अपरिपक्व ही दिखाई पड़े, मन का सारा खेल एक आंतरिक दृष्टिकोण के अभाव में जड़ता का, एक दिशाहीनता का पर्याय दिख पड़े, तो समझना 

चाहिए कि मनुष्य ने अपने आप को बनाने में अभी पूर्ण रूप से महारथ नहीं हासिल की है। आप विराट 





हो, जिस दिन से इस बात को अपने अंतःस्थल में केंद्रित कर दोगे, उस दिन से देखोगे सारे दोष एवं सारे अहंजन्य विकार स्वत: नष्ट होते जा रहे हैं। दुख एवं परेशानी तो स्वभाव के, आदर्श अनुकूल चिंतनक्रम के पतित स्थिति में पड़े रहने में है। यदि उसे उठाया जा सके, मन का मर्दन कर सभी कुप्रभावों को मिटाया जा सके, तो स्वयमेव दिखने लगेगा कि कितना साहस एवं कितनी प्रेरणा आपके भीतर से उठती है। हमारे दुखों का कारण हम ही हैं और हम ही हैं जो उन्हें पूर्ण शांत कर, एकता का, महामनत्व का एवं समग्र विचारशीलता का पथ प्रशस्त कर सकते हैं। चेतना का यदि पूर्ण परिष्कार हो जाए तो इस मानव अस्तित्व की किसी भी परेशानी से मनुष्य का अंतःकरण कलंकित नहीं हो सकता। जिसे साधारण चर्म चक्षुओं से नहीं देखा जा सके, उसे ही सत्य की आवाज या मनुष्य के अंतःकरण की सर्वोच्च प्रेरणा कहा जा सकता है। हमें इस सत्य को प्रश्रय देना चाहिए, शेष बातों को इस संसार की धूलि या कहें आवरण प्रदत्त अवस्था स्वीकारना चाहिए। जहां सत्य और उसपे चढ़े आवरण का भली भांति पता लग जाएगा, तो स्वयमेव विशुद्धता पनपने लगेगी, अंदर का साहस उमड़ पड़ेगा, चेतना जाग 

जाएगी और वह सब कर पाएगी जिसे करने उसे भेजा गया है।

भद्रा विचार दिसंबर - 2023  

भद्रा काल का शुभ अशुभ विचार - भद्रा काल में विवाह मुंडन, गृह प्रवेश, रक्षाबंधन आदि मांगलिक कृत्य का निषेध माना जाता है परंतु भद्रा काल में शत्रु का उच्चाटन करना,स्त्री प्रसंग में,यज्ञ करना,स्नान करना,अस्त्र शस्त्र का प्रयोग,ऑपरेशन कराना, मुकदमा करना,अग्नि लगाना,किसी वस्तु को काटना,भैस,घोड़ा व ऊंट संबंधी कार्य प्रशस्त माने जाते हैं सामान्य परिस्थिति में विवाह आदि शुभ मुहूर्त में भद्रा का त्याग करना चाहिए परंतु आवश्यक परिस्थितिवश अति आवश्यक कार्य भूलोक की भद्रा ,भद्रा मुख छोड़कर कर भद्रा पुच्छ में शुभ कार्य कर सकते है |

अधिक जानकारी के लिए संपर्क करे शर्मा जी - 9312002527,9560518227

दिनांक 

शुरू 

दिनांक 

समाप्त 

03  

19-27

04

08-42

07

16-09

08

05-06

11

07-10

11

18-47

16

09-15

16

20-08

19

13-07

20

00-10

22

19-44

23

07-12

26

05-47

26

17-55

29

20-52

30

09-44 


उत्पन्ना एकादशी

 उत्पन्ना एकादशी का व्रत मार्गशीर्ष मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी को रखा जाता है इस दिन भगवान श्री कृष्ण की पूजा का विधान है | एकादशी का व्रत रखने वाले दसवीं के दिन शाम को भोजन नहीं करते | एकादशी के दिन ब्रह्म बेला में भगवान कृष्ण की पुष्प,जल,धूप, अक्षत से पूजा की जाती है | इस व्रत में केवल फलों का ही भोग लगाया जाता है | यह  ब्रह्मा विष्णु महेश तीनों का संयुक्त अंश माना जाता है |अंश दत्तात्रेय के रूप में प्रकट था |यह मोक्ष देने वाला व्रत  माना जाता है |

 उत्पन्ना एकादशी की कथा सतयुग में एक बार मुर नामक दैत्य ने देवताओं पर विजय प्राप्त कर इंद्र को अपदस्त  कर दिया | देवता भगवान शंकर की शरण में पहुंचे भगवान शंकर ने देवताओं को विष्णु जी के पास भेज दिया | विष्णु जी ने दानवो को तो परास्त कर दिया परंतु मूर भाग गया | विष्णु ने मूर  को भागता देख लड़ना छोड़ दिया और चंद्रिका आश्रम की गुफा में आराम करने लगे | मुर ने वहां पहुंचकर विष्णु जी को मारना चाहा | तत्काल विष्णु जी के शरीर से एक कन्या उत्पन्न हुई और मूर से लड़ने लगी काफी देर लगने के पश्चात कन्या ने मूर को मार दिया | तब भगवान विष्णु ने कन्या को आशीर्वाद दिया कि तुम संसार में माया  जाल में उलझे तथा मोह के कारण मुझसे विमुख हुए  प्राणियों को मुझ तक लाने में सक्षम होगी | तुम्हारी आराधना करने वाले प्राणी जीवनभर सुखी रहेंगे है |



मोक्षदा एकादशी

मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी मोक्षदा एकादशी के नाम से प्रसिद्ध है| इस दिन दामोदर भगवान की पूजा की जाती है | पूजा में दामोदर भगवान को धूप,दीप,नैवेद्य आदि पूजा पदार्थों से करनी चाहिए और भक्ति पूर्वक दामोदर भगवान की कीर्तन और जागरण आदि करना चाहिए उन से यह प्रार्थना करनी चाहिए | गोविंद मेरी यह प्रार्थना है भूलू ना, मै नाम कभी तुम्हारा, निष्काम होकर दिन रात गाओ , गोविंद दामोदर माधवेति, गोविंद दामोदर माधवेति ।

मोक्षदा एकादशी व्रत की कथा - प्राचीन गोकुल नगर में धर्मात्मा और भक्त वैखानस नाम का राजा था उसने रात्रि को सपने में अपने पूज्य पिता को नरक भोगते हुए देखा तो प्रातः काल उसने ज्योतिषी वेद पाठी ब्राह्मणों से पूछा मेरे पिता का उद्धार कैसा होगा । ब्राह्मण बोले यहा समीप ही पर्वत ऋषि का आश्रम है । उसकी शरणागति से शीध्र ही आपके पिता स्वर्ग को चले जाएंगे । राजा पर्वत ऋषि की शरण में गया और दंडवत करके कहने लगा मुझे रात्रि को सपने में पिता के दर्शन हुए हैं ।मेरे पिता जी यमदूतो से दंड पा रहे है।अतः आप अपने योगबल से बताइए कि उनकी मुक्ति किस साधन से शीघ्र होगी। मुनि ने विचार कर कहा कि धर्म-कर्म सब देरी से फल देने वाले हैं । शीघ्रता से वरदाता तो केवल शंकर जी ही प्रसिद्ध हैं । परंतु उनको प्रसन्न करना भी कोई आसान नहीं है देर अवश्य लग जाएगी और तब तक राजा तुम्हारे पिता को यमदूतो से कष्ट झेलना पड़ेगा | इसलिए सबसे सुगम और शीघ्र फल दे ने के लिए मोक्षदा एकादशी का व्रत है | उसे विधि पूर्वक परिवार सहित कर के पिता को संकल्प कर दो | उसी से उसकी मुक्ति होगी | राजा ने मोक्षदा एकादशी का व्रत करके फल पिता को अर्पण कर दिया | इसके प्रभाव से वह स्वर्ग को चले गए और जाते हुए बोले मैं परमधाम को जा रहा हूं | श्रद्धा भक्ति से जो मोक्षदा एकादशी का महात्मय सुनता है उसे दस यज्ञ का फल मिलता है




दिसंबर मास 2023 का पंचांग 

दिनांक 

भारतीय व्रत उत्सव दिसंबर - 2023 

काल भैरव अष्टमी  

उत्पन्न एकादशी व्रत   

10 

प्रदोष व्रत, संत ज्ञानेश्वर पुण्य तिथि     

11

मास शिवरात्री,श्री बाला जी जयंती    

12

अमावस्या पुण्य 

16  

विनायक चतुर्थी व्रत संक्रांति पुण्य 

17 

गुरु तेग बहादुर बलिदान दिवस , नाग पंचमी द भा

18  

स्कन्ध  छट, चम्पा छट  

20 

श्री दुर्गा अष्टमी 

22  

मोछदा   एकादशी व्रत  

23 

मोछदा एकादशी व्रत गीता जयंती 

24 

प्रदोष व्रत 

26 

सत्य व्रत,त्रिपुर भैरव जयंती ,दातातरे जयंती अन्नपूर्ण जयंती  

30 

गणेश चतुर्थी 


 स्वयं सिद्ध मुहूर्त

 स्वयं सिद्ध मुहूर्त चैत्र शुक्ल प्रतिपदा वैशाख शुक्ल तृतीया अक्षय तृतीया आश्विन शुक्ल दशमी विजयदशमी दीपावली के प्रदोष काल का आधा भाग भारत में से इसके अतिरिक्त लोकाचार और देश आचार्य के अनुसार निम्नलिखित कृतियों को भी स्वयं सिद्ध मुहूर्त माना जाता है बडावली नामी देव प्रबोधिनी एकादशी बसंत पंचमी फुलेरा दूज इन में से किसी भी कार्य को करने के लिए पंचांग शुद्धि देखने की आवश्यकता नहीं है परंतु विवाह आदि में तो पंचांग में दिए गए मुहूर्त व कार्य करना श्रेष्ठ रहता है।

येषां न विद्या न तपो न दानं, ज्ञानं न शीलं न गुणो न धर्मः । 

ते मृत्युलोके भुवि भारभूता, मनुष्यरूपेण मृगाश्चरन्ति।।

 जिसके पास विद्या,तप,ज्ञान,शील,गुण और धर्म मेंसे कुछनहीं वह मनुष्य ऐसा जीवन व्यतीत करतेहैं जैसे एक मृग






मूल नक्षत्र विचार दिसंबर - 2023  



दिनांक

शुरू 

दिनांक

समाप्त 

02

18-54

05

00-34

12

11-56

14

09-46

20

22-57

22

21-35

30

03-09

01

08-36


अधिक जानकारी के लिए संपर्क करे शर्मा जी - 9312002527,9560518227

सर्वार्थ सिद्धि योग दिसंबर -2023 

दैनिक जीवन में आने वाले महत्वपूर्ण कार्यों के लिए शीघ्र ही किसी  शुभ मुहूर्त का अभाव हो,किंतु शुभ मुहर्त के लिए अधिक दिनों तक रुका ना जा सकता हो तो इन सुयोग्य वाले मुहर्तु  को सफलता से ग्रहण किया जा सकता है | इन से प्राप्त होने वाले अभीष्ट फल के विषय में संशय नहीं करना चाहिए यह योग हैं सर्वार्थ सिद्धि,अमृत सिद्धि योग एवं रवियोग | योग्यता नाम तथा गुण अनुसार सर्वांगीण सिद्ध कारक  है| 

अधिक जानकारी के लिए संपर्क करे शर्मा जी - 9312002527,9560518227

दिनांक

प्रारंभ

दिनांक

समाप्त

07  

06-28

07

07-06

09

10-42

10

07-07

11

12-13

12

07-08

16

06-24

17

04-36

20

00-02

20

07-14

21

07-14

22

21-35

25

07-16

26

07-16

28

13-35 

29

07-17







इस बार मेले से...

  विजयलक्ष्मी पांडेय ,आजमगढ़ उत्तर प्रदेश

इस बार मेले से

खाली हाथ लौट आई थी।

क्या खरीद कर लाऊँ मैं,

कुछ निर्णय ही नहीं कर पाई थी।।

गुब्बारे वाला डंडे में बाँधकर

प्यारे प्यारे गुब्बारे बेंच रहा था।

रँग बिरंगे काले नीले पीले हरे

हाँ,मन मेरा भी ललचा रहा था।।

सूनसान मन किसी कोनें में 

घर का आँगन सूना पड़ा था।

हाथ बढाती गुब्बारे पर लेकिन

सूनापन का दर्द काट  रहा था।।

अरे हाँ, जलेबियाँ भी तो बिक रही थी

बड़ी भीड़ है जानें दो कल खरीद लूँगी।

कौन सा कोई पूछनें वाला है

केले न न, कल ही ठेले वाला दे गया था।।

चाट फुल्की ख़ूब आए हैं इस बार

पर मुझे क्या?मैं खाती नहीं बाजार का।

बच्चे बड़े हो गए मेरे लिए तो

घर की रसोईं में आलू उबला पड़ा था।।

कुछ देर झूले को निहारती हूँ

वो छुटका मेरे बाबु जैसा लगा था।

मुझे देखकर झूला वाला मुस्कुराया

क्या अम्माँ, अबकी बाबू नहीं आया।।

बोली नहीं थी मैं कुछ

मन ही मन सोचनें लगी।

अरे पगले!बाबू तो बड़ा हो गया

उसे तूने कई साल पहले झुलाया था।।

मेरी उमर हो गई पूजा पाठ की

रानीं भवानी के दर्शन करती हूँ।

और मन में भक्ति भाव लेकर

खाली हाथ घर लौट आती हूँ।।

घर की दीवारें देखकर

एक लंबी साँस लेती हूँ।

ऐसा भी होगा मेरे लिए मेला

कभी सोचा न था पर...मेरा मेला।।




स्वतंत्र वीर सावरकर

अर्पित मिश्र,जिला मीडिया प्रभारी,भाजपा युवा मोर्चा,नोएडा महानगर

सावरकर की स्व आहुति से क्रांति की ज्वाला धधक उठी, 

सावरकर के बलिदानों से काला पानी अमृत्व का वरदान बनी, 

सावरकर के आवाहन से युवा शक्ति गर्जन करके निकल पड़ी, 

सावरकर के संघर्षों से सन सत्तावन की क्रांति अमिट हुई, 

सावरकर की स्व आहुति से क्रांति की ज्वाला धधक उठी ।। 

सावरकर के तप ने क्रांतिकारियों को अपराजित शौर्य दिया, 

सावरकर के चिंतन ने राष्ट्र में स्वतंत्रता का संचार किया, 

सावरकर के अध्ययन ने गोरों के कुचक्रों का विध्वंश किया, 

सावरकर की ज्वाला ने मां भारती को पुनः प्रकाशित किया, 

सावरकर की स्व आहुति ने मां भारती को स्वतंत्र किया।। 







                 राहू काल 

 राहुकाल -राहुकाल दक्षिण भारत की देन है,दक्षिण भारत में राहु काल में कृत्य करना अच्छा नहीं माना जाता, राहु काल में शुभ कृतियों में वर्जित करने की परंपरा अब हमारे उत्तरी भारत में भी अपनाने लगे हैं राहुकाल प्रतिदिन सूर्यादि वारों में भिन्न-भिन्न समय पर केवल डेढ़ डेढ़ घंटे के लिए घटित होता है |

अधिक जानकारी के लिए संपर्क करे शर्मा जी - 9312002527,9560518227

मांगलिक दोष विचार परिहार

वर अथवा कन्या दोनों में से किसी की भी कुंडली में 1,4,7,8 व 12 भाव में मंगल होने से ये मांगलिक माने जाते हैं,मंगली से मंगली के विवाह में दोष न होते हुए भी जन्म पत्रिका के अनुसार गुणों को मिलाना ही चाहिए यदि मंगल के साथ शनि अथवा राहु केतु भी हो तो प्रबल मंगली डबल मंगली योग होता है | इसी प्रकार गुरु अथवा चंद्रमा केंद्र हो तो दोष का परिहार भी हो जाता है |इसके अतिरिक्त मेष वृश्चिक मकर का मंगल होने से भी दोष नष्ट हो जाता है | इसी प्रकार यदि वर या कन्या किसी भी कुंडली में 1,4,7,9,12 स्थानों में शनि हो केंद्र त्रिकोण भावो में शुभ ग्रह, 3,6,11 भावो में पाप ग्रह हों तो भी मंगलीक दोष का आंशिक परिहार होता है, सप्तम ग्रह में यदि सप्तमेश हो तो भी दोष निवृत्त होता है |

 

 यथा चित्तं तथा वाचो यथा वाचस्तथा क्रियाः।

 चित्ते वाचि क्रियायांच साधुनामेक्रूपता।।

भावार्थ: साधु यानी अच्छे व्यक्ति के मन में जो होता है, वो वही बात करता है। वचन में जो होता है यानी जैसा बोलता है, वैसा ही करता है। इनके मन, वचन और कर्म में हमेशा ही एकरूपता व समानता होती है। इसी को अच्छे व्यक्ति की पहचान माना जाता है।

 न चोरहार्य न राजहार्य न भ्रतृभाज्यं न च भारकारि।

व्यये कृते वर्धति एव नित्यं विद्याधनं सर्वधनप्रधानम्।।

भावार्थ:एक ऐसा धन जिसे न चोर चुराकर ले जा सकता है, न ही राजा छीन सकता है, जिसका न भाइयों में बंटवार हो सकता है, जिसे न संभालना मुश्किल व भारी होता है और जो अधिक खर्च करने पर बढ़ता है, वो विद्या है। यह सभी धनों में से सर्वश्रेष्ठ धन है।

 षड् दोषाः पुरुषेणेह हातव्या भूतिमिच्छता।

निद्रा तद्रा भयं क्रोधः आलस्यं दीर्घसूत्रता।।

 अवगुण मनुष्य के लिए पतन की वजह बनते हैं। ये अवगुण हैं, नींद, तन्द्रा (थकान), भय, गुस्सा, आलस्य और कार्य को टालने की आदत।

 काक चेष्टा, बको ध्यानं, स्वान निद्रा तथैव च।

अल्पहारी, गृहत्यागी, विद्यार्थी पंच लक्षणं।।

 एक विद्यार्थी के पांच लक्षण होते हैं। कौवे की तरह हमेशा कुछ नया जानने की प्रबल इच्छा। बगुले की तरह ध्यान व एक्राग्रता। कुत्ते की जैसी नींद, जो एक आहट में भी खुल जाए। अल्पाहारी मतलब आवश्यकतानुसार खाने वाला और गृह-त्यागी




जरूरत 

नोरिन शर्मा

शुक्ला मैमसाब इस बार दिवाली से पहले कुछ दे देतीं तो हमारी भी बढ़िया दिवाली हो जाती,सोचते सोचते धनिया चौका बर्तन के बाद बोली ," मैडम कुछ रुपया पगार से पहले मिल जाता तो, लइका वास्ते कपड़ा, लत्ता ले लेते!"

अरे, धनिया तुम्हारे पास पेटीएम नहीं है न...बहुत मुश्किल होती है। घर में मैं एक पैसा भी नहीं रखती।

धनिया चुपचाप घर चली  आई और पति से बोली तुम्हारे "कितने दीए बिके?"

" कुछ खास नहीं,लोग ऐसे दीए खरीद रहे हैं जो पानी से जलते हैं।"

"हे भगवान..! हमारी दिवाली तो बस इस बार.."

"सुन धनिया मेरे पास हज़ार रुपया तो बन गया...बस दो तीन दिन बचे हैं..!सुन कल धन तेरस पे कोई चीज़ ले आइयो।"

"क्या आएगा चार पांच सौ में..?" धनिया की निराशा बढ़ती जा रही थी।

" घर में स्टील का भगोना ले आइयो..!"

"हां,यह ठीक रहेगा..!"

सुबह मैडम शुक्ला के घर काम निबटाकर बाज़ार की ओर बढ़ी,तभी पड़ोसन नीमा अपनी बेटी के साथ जाती हुई मिल गई!एक से भले दो,सोचकर दोनों बहुत खुश हुईं।

"इतनी भीड़, हे भगवान...!"

सड़क पार करते हुए एक मोटरसाइकिल वाले ने इतनी तेज़ी दिखाई कि नीमा की बेटी गिर पड़ी,माथे से 





ख़ून बहने लगा। दोनों बच्ची को गोद में उठाए डिस्पेंसरी की तरफ़ भागीं; वहां पता चला माथे का घाव बहुत गहरा है,बड़े अस्पताल जाकर टांके लगवाने होंगे।

  जब बिल आया तो नीमा घबरा गई, उसके पास पांच सौ रुपए थे और बिल आठ सौ का, अभी तो दवाइयां भी लेनी थीं।धनिया ने नीमा के हाथ में पांच सौ का नोट रखा। नीमा की आँखें भर आईं,बोली," धनतेरस की खरीदारी कैसे करेगी,मैं इसके बाबा को बुलाती हूं,वो कुछ उधारी कर लेंगे।

" नीमा बेटियां हमारा सबसे बड़ा धन हैं, अगर कुछ न भी लिया तो कोई बात नहीं; इस धन से बड़ा कुछ नहीं।"

धनिया की आँखें आज धनतेरस पर कुछ न खरीदकर भी खुशियों से चमक रहीं थीं।संतोष और प्रेम से ऊपर कोई धन नहीं।

लघु कथा 

एक दुःखी व्यक्ति अपने हालात से दुखी होकर एक संत के पास आया और बोला की मेरी जीवन जीने की इच्छा समाप्त हो चुकी है।

मुझे बताएं की मैं क्या करूं?

संत बोले किससे दुखी हो। वह बोला, "अपने परिवार के झगड़ों से और अपने कारोबार से।

संत बोले, "तुम्हे भगवान् ने रोटी,कपडा और मकान जबसे तुम पैदा हुए तबसे तुम्हें इसका सुख दिया है।

जीवन में उतार चढ़ाव, यह तो प्रकृति का नियम है।

राम को 14 साल का वनवास ,

तारा रानी की कठिन परीक्षा,

प्रह्लाद का होलिका दहन और पिता द्वारा यातनाये।

गुरु नानक देव,साईं बाबा और भगवान् महावीर जैन, न जाने ऐसे कितने ही लोगों ने अपने जीवन में संघर्ष किया।परंतु विजय उसी की हुई जिसने वक्त को स्वीकार किया, अपने भूत से कुछ सीखा और भविष्य की चिंता न कर वर्तमान में जीना सीखा।

श्वांसो की क़ीमत तब तक कोई नहीं जानता जब तक ये रुकने न लगें हमारे अंदर जो साँस चल रही है वो ईश्वर की सबसे बड़ी कृपा है हम पर आज आपने कितनी साँसे ली कभी आपने इसे अहसास किया है आप अपनी हर बहुमूल्य वस्तु का ध्यान रखते हो मगर कभी इस बहुमूल्य वस्तु की तरफ़ सोंचकर उस परमात्मा का धन्यवाद किया है जिसकी वजह से हमारा अस्तित्व है | अच्छा, साँसों का भी एक अटल क़ानून है वैसे तो ये आती जाती रहती हैं परंतु जब ये अंतिम रूप से चली जाती है तो लौट के नहीं आती संसार की कोई ताक़त कोई सिफ़ारिश उसे वापस बुला नहीं सकती ना तो आप इसका आदान प्रदान कर सकते हो जिस दिन यह समाप्त हम आप भी समाप्त |



स्वास्थ्य पर वस्त्रों का प्रभाव

रवि कुमार

आजकल मनुष्य अपने जूतों व वस्त्रों पर सबसे अधिक खर्च करता है। अच्छा दिखना चाहिए, पर्सनेलिटी बननी चाहिए, इसलिए मनुष्य ऐसा करता है। क्या वास्तव में इनसे पर्सनेलिटी बनती है? क्या वस्त्रों का यही कार्य है? क्या स्वास्थ्य का सम्बंध वस्त्रों से जुड़ा हुआ है? क्या वस्त्रों का भी मन पर प्रभाव पड़ता है? क्या वस्त्रों का चयन मात्र अच्छा दिखने के दृष्टिकोण से करना ठीक है? आइए इन सभी प्रश्नों का उत्तर समझते हैं।

वस्त्रों का कार्य

वास्तव में वस्त्र हमारे शरीर की बाह्य वातावरण (धूप, गर्मी, सर्दी आदि) से रक्षा करने के लिए बने हैं। जैसे जैसे सभ्यताओं का विकास हुआ, वैसे ही वस्त्र मानव जीवन का महत्वपूर्ण अंग बने। सभ्यताओं में संस्कृति के आधार पर कलाओं का विकास हुआ तो विभिन्न प्रकार की परंपराओं के अनुसार वेशभूषाएँ भी मानव जीवन में जुड़ी। परंतु मूल भाव वही रहा जो प्रारम्भ में था – मानव स्वास्थ्य रक्षा का। भारतीय परंपरा में क्षेत्र अनुसार वेशभूषा का निर्माण मानव स्वास्थ्य की आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर 

किया गया। अच्छा दिखे ये भी ध्यान का विषय रहा होगा। परन्तु अच्छा दिखे और मानव स्वास्थ्य के 






प्रतिकूल हो, ऐसा भाव कभी नहीं रहा।

आधुनिक जीवन शैली का वस्त्रों पर प्रभाव

आजकल की आधुनिक जीवन शैली में वस्त्र मनुष्य के जीवन का महत्वपूर्ण भाग हो गए हैं। महंगा व ब्रांडेड वस्त्र पहनना, अच्छा दिखना और सबसे अलग दिखना ये प्राथमिकता का विषय हो गया है। मानव स्वास्थ्य दूसरे स्थान पर आ गया है। अच्छा दिखना तो ठीक है, पर स्वास्थ्य को ताक पर रखकर नहीं, ये समझने की आवश्यकता है। अच्छा पहनना परंतु घर का बजट बिगाड़कर बहुत महंगा व ब्रांडेड पहनना क्या उचित है। अथवा जैसे तैसे महंगे वस्त्रों की व्यवस्था करना स्वस्थ जीवन के लिए अच्छा नहीं है।

वस्त्र और स्वास्थ्य

वस्त्रों का स्वास्थ्य पर सही व विपरीत प्रभाव पड़ता है। यह इस बात पर निर्भर करता है कि आपका चयन कैसा है। चयन करते समय स्टफ (फैब्रिक) कैसा है, रंग कैसा है, ऋतु के अनुकूल है या नहीं, सिलाई कैसी की है, ये सब बातें स्वास्थ्य को प्रभावित करती है। उदाहरण के लिए गर्मी के मौसम में गहरे रंग के कपड़े ठंडक नहीं दे सकते। यदि कपड़े सांस नहीं लेते है तो त्वचा तक वायु नहीं पहुंचेगी तो जब तक आप ऐसे वस्त्र पहनेंगे तब तक असहजता रहेगी और बाद में भी उसका प्रभाव अनुभव होगा। शरीर के साथ सटे हुए वस्त्र भी स्वास्थ्य को हानि पहुंचाते हैं। आजकल ऐसे वस्त्रों का प्रचलन आम हो गया है। ये शरीर के तापमान को नियंत्रित नहीं होने देते, वायु को त्वचा तक पहुंचने नहीं देते और शरीर की गर्मी को बाहर नहीं आने देते। युवाओं में ऐसे वस्त्रों का अधिक उपयोग उनकी प्रजनन क्षमता को भी प्रभावित करता है।

छोटे बालक और वस्त्र

छोटी आयु के बालकों के लिए फैशन के नाम पर वस्त्र पहना दिए जाते हैं। उनके हाथ में निर्णय करना होता नहीं है और अभिभावकों की दृष्टि में तो अच्छे दिखते रहने चाहिए पर उतना समय मन से वे कष्ट में रहते हैं। एक घर में जाना हुआ। अतिथि आते हैं तो घर में सब अच्छा दिखना चाहिए, ये भाव रखकर सभी तैयारी करते हैं। घर में एक वर्ष से कम आयु का शिशु भी था। उसे भी अच्छे वस्त्र पहनाए हुए थे। वह बिस्तर पर लेटा हुआ था। शिशु अपने पैरों को हिलाने का प्रयास तो कर रहा था परंतु जो निक्कर उसे पहनाई गई थी, उसके कारण पैर हिला नहीं पा रहा था। मेरे कहने पर उसकी माँ ने निक्कर निकाल कर लंगोट बांध दिया। इस कारण हिलने-डुलने में उसे सुविधा हुई। ऐसा होने पर उसके मुख पर अलग ही प्रसन्नता दिख रही थी। विवाह कार्यक्रमों में सम्मिलित होने के लिए शिशुओं को चमकदार व सिंथेटिक फैब्रिक से बने वस्त्र पहना दिए जाते हैं। शिशु बेचारा विवाह में आनन्द की बजाय ऐसे वस्त्रों से ही परेशान रहता है।

वस्त्र और रंग

स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए उचित रंग के वस्त्रों का चयन व्यक्ति के आत्मविश्वास को बढ़ाता है। 




त्वचा का रंग कैसा है, मौसम कैसा है, कहां जाना है, उन सब बातों को ध्यान में रखते हुए कौन से रंग का वस्त्र पहनना है ये चुनाव करना आवश्यक है। अब त्वचा का रंग भी गहरा है और गहरे रंग के वस्त्र पहने हुए है तो कैसा लगेगा!

भारतीय अवधारणा

भारतीय अवधारणा में खुले-हवादार वस्त्रों का प्रचलन रहा है। विशेषकर सूती व खादी के वस्त्रों का जो पर्याप्त सांस लेते हैं। शीतकाल के लिए ऊनी वस्त्रों का उपयोग होता रहा है। सूती, खादी व ऊनी वस्त्र ये प्रकृति के अनुकूल है। शरीर से सटे हुए वस्त्रों का प्रचलन भारतीय परंपरा का भाग नहीं रहा क्योंकि भारतीय परम्परा में मानव स्वास्थ्य प्रथम स्थान पर रहा है।

भारतीय अवधारणा व आधुनिक जीवन शैली का समन्वय वस्त्रों के सम्बन्ध में भी करना आवश्यक है। वस्त्रों के विषय में प्रचलित धारणा से बाहर निकल कर स्वास्थ्य और सौन्दर्य दोनों को उचित स्थान देना हितकर है।

(लेखक विद्या भारती दिल्ली प्रान्त के संगठन मंत्री है और विद्या भारती प्रचार विभाग की केन्द्रीय टोली के सदस्य है।)

दुर्जन:स्वस्वभावेन परकार्ये विनश्यति।नोदर तृप्तिमायाती मूषक:वस्त्रभक्षक:।।

भावार्थ : दुष्ट व्यक्ति का स्वभाव ही दूसरे के कार्य बिगाड़ने का होता है। वस्त्रों को काटने वाला चूहाकभी भी पेट भरने के लिए कपड़े नहीं काटता।






ऐतिहासिक पीपल का पेड़ 

हरियाणा के हिसार ( वीर बरबरान ) मे एक पीपल का पेड़ है जिसको वीर बर्बरीक ने श्री कृष्ण भगवान के कहने पर अपने वाणों से छेदन किया था !

 आज भी इन पत्तो में छेद है ! सबसे बड़ी बात ये है की जब इस पेड़ में नए पत्ते निकलते है तो उनमे भी छेद होता है ! सिर्फ इतना ही नहीं बल्कि, इसके बीज से उत्पन्न नए पेड़ के भी पत्तों में छेद होता है ! यह पीपल का पेड़ महाभारत काल की घटना का प्रत्यक्ष प्रमाण है और जो लोग रामायण और महाभारत जैसी घटनाओं को काल्पनिक करार देते है एवं यह कहते है कि इन घटनाओं को मानने वाले लोग काल्पनिक दुनिया में जीते हैं, उन लोगों के लिए यह किसी जोरदार तमाचे से कम नहीं होगा...जिन्होंने थोड़ी भी महाभारत पढ़ी होगी उन्हें वीर बर्बरीक वाला प्रसंग जरूर याद होगा ! उस प्रसंग में हुआ कुछ यूँ था कि महाभारत का युद्ध आरंभ होने वाला था और भगवान श्री कृष्ण युद्ध में पाण्डवों के साथ थे ! जिससे यह निश्चित जान पड़ रहा था कि कौरव सेना भले ही अधिक शक्तिशाली है, लेकिन जीत पाण्डवों की ही होगी..ऐसे समय में भीम के पौत्र और घटोत्कच के पुत्र बर्बरीक ने 





अपनी माता को वचन दिया कि युद्घ में जो पक्ष कमज़ोर होगा वह उनकी ओर से लड़ेगा ! इसके लिए, बर्बरीक ने महादेव को प्रसन्न करके उनसे तीन अजेय बाण प्राप्त किये थे ! परन्तु, भगवान श्री कृष्ण को जब बर्बरीक की योजना का पता चला तब वे ब्राह्मण का वेष धारण करके बर्बरीक के मार्ग में आ गये...श्री कृष्ण ने बर्बरीक को उत्तेजित करने हेतु उसका मजाक उड़ाया कि वह तीन बाणों से भला क्या युद्घ लड़ेगा ? कृष्ण की बातों को सुनकर बर्बरीक ने कहा कि उसके पास अजेय बाण है और, वह एक बाण से ही पूरी शत्रु सेना का अंत कर सकता है तथा, सेना का अंत करने के बाद उसका बाण वापस अपने स्थान पर लौट आएगा ! इस पर श्री कृष्ण ने कहा कि हम जिस पीपल के वृक्ष के नीचे खड़े हैं अगर, अपने बाण से उसके सभी पत्तों को छेद कर दो तो मैं मान जाउंगा कि तुम एक बाण से युद्ध का परिणाम बदल सकते हो इस पर बर्बरीक ने चुनौती स्वीकार करके भगवान का स्मरण किया और बाण चला दिया ! जिससे, पेड़ पर लगे पत्तों के अलावा नीचे गिरे पत्तों में भी छेद हो गया ! इसके बाद वो दिव्य बाण भगवान श्री कृष्ण के पैरों के चारों ओर घूमने लगा क्योंकि, एक पत्ता भगवान ने अपने पैरों के नीचे दबाकर रखा था...भगवान श्री कृष्ण जानते थे कि धर्मरक्षा के लिए इस युद्ध में विजय पाण्डवों की होनी चाहिए और, माता को दिये वचन के अनुसार अगर बर्बरीक कौरवों की ओर से लड़ेगा तो अधर्म की जीत हो जाएगी ! इसलिए, इस अनिष्ट को रोकने के लिए ब्राह्मण वेषधारी श्री कृष्ण ने बर्बरीक से दान की इच्छा प्रकट की..जब बर्बरीक ने दान देने का वचन दिया ! तब श्री कृष्ण ने बर्बरीक से उसका सिर मांग लिया ! जिससे बर्बरीक समझ गया कि ऐसा दान मांगने वाला ब्राह्मण नहीं हो सकता है और, बर्बरीक ने ब्राह्मण से वास्तविक परिचय माँगा तब श्री कृष्ण ने उन्हें बताया कि वह कृष्ण हैं...सच जानने के बाद भी बर्बरीक ने सिर देना स्वीकार कर लिया लेकिन, एक शर्त रखी कि, वह उनके विराट रूप को देखना चाहता है तथा, महाभारत युद्ध को शुरू से लेकर अंत तक देखने की इच्छा रखता है ! भगवान ने बर्बरीक की इच्छा पूरी करते हुए, सुदर्शन चक्र से बर्बरीक का सिर काटकर सिर पर अमृत का छिड़काव कर दिया और एक पहाड़ी के ऊंचे टीले पर रख दिया जहाँ से बर्बरीक के सिर ने पूरा युद्घ देखा..ये सारी घटना आधुनिक वीर बरबरान नामक जगह पर हुई थी जो हरियाणा के हिसार जिले में हैं ! अब ये जाहिर सी बात है कि इस जगह का नाम वीर बरबरान वीर बर्बरीक के नाम पर ही पड़ा है... 

खाटू श्याम जी जन्मोत्सव की हार्दिक शुभकामनाएं,हारे का सहारा बाबा श्याम हमारा

समय के पास इतना समय नहीं है कि आपको फिर से समय दे सके!
इसलिए आप जो करना चाहते हैं वो आज से ही शुरू करें।

जीतूंगा मैं ही यह खुद से वादा कर
जितना सोचते हो कोशिश उससे भी ज्यादा करनी होगी।

ख्वाहिश भले ही छोटी सी हो लेकिन उसे पूरा
करने का दिल ज़िद्दी होना चाहिए।




 नारियल पानी

नारियल पानी के ऐसे फायदे जिन्हें जान कर आप हैरान रह जाएंगे,नारियल हमारी सेहत के लिए बहुत फायदेमंद हैं तो आईये जानते हैं की नारियल पानी हमारे लिए कितना जरूरी हैं। नारियल पानी पीने से भूख और तो मिटती ही हैं लेकिन नारियल पानी से वजन भी नहीं बढता मोटापा दूर करने के लिए भी उपयोगी है ।  नारियल पानी में फाइबर्स डाइजेसन बेहतर करते हैं! नारियल पानी पीने से कब्ज ऐसिडिटी जैसी बीमारियों से राहत मिलती हैं। नारियल पानी से स्कीन के सेल्स हाइङ्रेट होते हैं जिससे हमारी स्कीन ग्लो करने लगती हैं। नारियल पानी पीने से body को energy मिलती हैं और energy level भी बढ जाता हैं। नारियल पानी body के अंदर से टोक्सिन्स निकालता हैं,जिससे हम किडनी और लीवर की बीमारियों से बच सकते हैं। नारियल पानी body को हाइङ्रेट करता हैं जिससे हाइड्रेसन से होने वाला सिरदर्द दूर रहता हैं और ताजगी महसूस होती हैं। नारियल पानी पीने से blood pressure कंट्रोल में रहता हैं। नारियल पानी धूप और pollution से होने वाले प्रभाव को दूर करता हैैंं। नारियल पानी इम्यून सिस्टम को बेहतर करके बीमारियों से लडने की ताकत देता हैं। नारियल पानी पीने से चेचक और दाद जैसे वायरस शरीर के अंदर से निकल जाते हैं। नारियल पानी से दिल की बीमारियां भी बहुत कम होती हैं। झुर्रियाँ, मुंह का फूल जाना और आँखों के नीचे की सूजन गायब हो जाती है। बुखार मे नारियल पानी पीने से राहत 





मिलती हैं। बवासीर में होने वाले दर्द मे नारियल पानी पीने से राहत मिलती हैं। गर्मी मे नारियल पानी पीने से लम्बे समय तक ग्ला तर रहता हैं। नारियल पानी को मुंह पर लगाने से कील और मुहासे खत्म हो जाते हैं। नारियल पानी पीने से उल्टियां बंद हो जाती हैं। नारियल पानी का सेवन मधुमेह के रोगियों के लिये बहुत लाभदायक हैं। आपको जानकर हैरानी होगी कि नारियल पानी पीने से झुर्रियां नहीं आती। नारियल पानी पीने से मांसपेशियो की ऐठन दूर होती हैं। गर्भवती महिला को नारियल पानी जरूर पीना चाहिए,क्योंकि इससे थकान दूर होती हैं। रोजाना नारियल पानी पीने से पेशाब की जलन दूर होती हैं। डेंगू होने पर नारियल पानी पीने से फायदा मिलता है। नारियल पानी की दो-दो बूंद नाक मे डालने से नाक खुलती हैं और सांस लेने मे भी तकलीफ नहीं होती है!

प्रदूषण पर्यावरण में हानिकारक सामग्रियों का प्रवेश है। हानिकारक सामग्रियों को प्रदूषक कहा जाता है। प्रदूषक प्राकृतिक हो सकते हैं, जैसे ज्वालामुखी की राख। इनका निर्माण मानवीय गतिविधियों से भी हो सकता है, जैसे कारखानों द्वारा उत्पादित कचरा या अपवाह। प्रदूषक वायु, जल और भूमि की गुणवत्ता को नुकसान पहुंचाते हैं।प्रदूषित हवा को कम करने में ये तरीके कर सकते हैं मदद सार्वजनिक परिवहन का प्रयोग करें-पेड़ लगाएं,री-साइकल और री-यूज़,प्लास्टिक के उपयोग से बचें,सही तरीके से कूड़े का निपटान,तेल या वसा को नाली में न फेंके,इंडोर प्रदूषण को भी करें कम



हंस और काग

        पुराने जमाने में एक शहर में दो ब्राह्मण पुत्र रहते थे, एक गरीब था तो दूसरा अमीर..दोनों पड़ोसी थे..,,गरीब ब्राम्हण की पत्नी ,उसे रोज़ ताने देती , झगड़ती ..।।

एक दिन ग्यारस के दिन गरीब ब्राह्मण पुत्र झगड़ों से तंग आ जंगल की ओर चल पड़ता है , ये सोच कर , कि जंगल में शेर या कोई मांसाहारी जीव उसे मार कर खा जायेगा , उस जीव का पेट भर जायेगा और मरने से वो रोज की झिक झिक से मुक्त हो जायेगा..।

         जंगल में जाते उसे एक गुफ़ा नज़र आती है...वो गुफ़ा की तरफ़ जाता है...। गुफ़ा में एक शेर सोया होता है और शेर की नींद में ख़लल न पड़े इसके लिये हंस का पहरा होता है..

       हंस ज़ब दूर से ब्राह्मण पुत्र को आता देखता है तो चिंता में पड़ सोचता है..ये ब्राह्मण आयेगा ,शेर जगेगा और इसे मार कर खा जायेगा... ग्यारस के दिन मुझे पाप लगेगा...इसे बचायें कैसे???

        उसे उपाय सुझता  है और वो शेर के भाग्य की तारीफ़ करते कहता है..ओ जंगल के राजा... उठो, जागो..आज आपके भाग खुले हैं, ग्यारस के दिन खुद विप्रदेव आपके घर पधारे हैं, जल्दी उठें और इन्हे दक्षिणा दें रवाना करें...आपका मोक्ष हो जायेगा.. ये दिन दुबारा आपकी जिंदगी में शायद ही 






आये, आपको पशु योनी से छुटकारा मिल जायेगा...।

       शेर दहाड़ कर उठता है , हंस की बात उसे सही लगती है, और पूर्व में शिकार हुए मनुष्यों के गहने थे वे सब के सब उस ब्राह्मण के पैरों में रख , शीश नवाता है, जीभ से उनके पैर चाटता है..।

       हंस ब्राह्मण को इशारा करता है विप्रदेव ये सब गहने उठाओ और जितना जल्द हो सके वापस अपने घर जाओ...ये सिंह है.. कब मन बदल जाय..

        ब्राह्मण बात समझता है घर लौट जाता है.... पडौसी अमीर ब्राह्मण की पत्नी को जब सब पता चलता है तो वो भी अपने पति को जबरदस्ती अगली ग्यारस को जंगल में उसी शेर की गुफा की ओर भेजती है |

अब शेर का पहेरादार बदल जाता है..नया पहरेदार होता है "कौवा" जैसे कौवे की प्रवृति होती है वो सोचता है बढीया है ब्राह्मण आया शेर को जगाऊं शेर की नींद में ख़लल पड़ेगी,गुस्साएगा, ब्राह्मण को मारेगा, तो कुछ मेरे भी हाथ लगेगा, मेरा पेट भर जायेगा ये सोच वो कांव.. कांव.. कांव...चिल्लाता है..शेर गुस्सा हो जगता है..दूसरे ब्राह्मण पर उसकी नज़र पड़ती है , उसे हंस की बात याद आ जाती है.. वो समझ जाता है, कौवा क्यूं कांव..कांव कर रहा है | वो अपने,पूर्व में हंस के कहने पर किये गये धर्म को खत्म नहीं करना चाहता..पर फिर भी नहीं शेर,शेर होता है जंगल का राजा,वो दहाड़ कर ब्राह्मण को कहता है "हंस उड़ सरवर गये और अब काग भये प्रधान थे तो विप्रा थांरे घरे जाओ मैं किनाइनी जिजमान |

     अर्थात हंस जो अच्छी सोच वाले अच्छी मनोवृत्ति वाले थे उड़ के सरोवर यानि तालाब को चले गये है और अब कौवा प्रधान पहरेदार है जो मुझे तुम्हें मारने के लिये उकसा रहा है..मेरी बुध्दी घूमें उससे पहले ही..हे ब्राह्मण, यहां से चले जाओ..शेर किसी का जजमान नहीं हुआ है..वो तो हंस था जिसने मुझ शेर से भी पुण्य करवा दिया, दूसरा ब्राह्मण सारी बात समझ जाता है और डर के मारे तुरंत प्राण बचाकर अपने घर की ओर भाग जाता है |

कहने का मतलब है दोस्तों ये कहानी आज के परिपेक्ष्य में भी सटीक बैठती है ,हंस और कौवा कोई और नहीं हमारे ही चरित्र है | कोई किसी का दु:ख देख दु:खी होता है और उसका भला सोचता है,वो हंस है,और जो किसी को दु:खी देखना चाहता है किसी का सुख जिसे सहन नहीं होता वो कौवा है जो आपस में मिलजुल, भाईचारे से रहना चाहते हैं वे हंस प्रवृत्ति के हैं जो झगड़े कर एक दूजे को मारने लूटने की प्रवृत्ति रखते हैं वे कौवे की प्रवृति के है कार्यालय में,व्यवसाय में , समाज मे या किसी संगठन में हो जो किसी सहयोगी साथी की गलती या कमियों को बढ़ा चढ़ा के बताते हैं, उसको हानि पहुचाने के लिए उकसाते हैं वे कौवे जैसे है और जो किसी सहयोगी ,साथी की गलती, कमियों  पर भी विशाल ह्रदय रख कर अनदेखी करते हुए क्षमा करने को कहते हैं ,वे हंस प्रवृत्ति के है। अपने आस पास छुपे बैठे कौवौं को पहचानों, उनसे दूर रहो और जो हंस प्रवृत्ति के हैं उनका साथ करो इसी में आपका व हम सब का कल्याण छुपा है!!






दिसंबर के महत्वपूर्ण दिवस 


1 दिसंबर - विश्व एड्स दिवस - एचआईवी के बारे में जागरूकता और ज्ञान बढ़ाने और एचआईवी महामारी को समाप्त करने की दिशा में आगे बढ़ने के आह्वान के लिए हर साल 1 दिसंबर को विश्व एड्स दिवस मनाया जाता है। यह पहली बार 1988 में मनाया गया था। 2022 का विषय "रॉक द रिबन" था। 

2 दिसंबर - राष्ट्रीय प्रदूषण नियंत्रण दिवस - प्रदूषण और इसके खतरनाक प्रभावों के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए 2 दिसंबर को राष्ट्रीय प्रदूषण नियंत्रण दिवस मनाया जाता है। यह दिन भोपाल गैस आपदा में अपनी जान गंवाने वाले लोगों की याद में मनाया जाता है, जिसे सबसे बड़ी औद्योगिक आपदाओं में से एक माना जाता है।

2 दिसंबर - गुलामी उन्मूलन के लिए अंतर्राष्ट्रीय दिवस - यह 2 दिसंबर को लोगों को आधुनिक गुलामी के बारे में जागरूक करने के लिए मनाया गया जो मानव अधिकारों के खिलाफ काम करती है। क्या आप जानते हैं दुनिया में 4 करोड़ से ज्यादा लोग आधुनिक गुलामी के शिकार हैं? यह दिन शोषण की उन स्थितियों की याद दिलाता है जिन्हें कोई व्यक्ति धमकी, हिंसा, जबरदस्ती या शक्ति के दुरुपयोग के कारण मना नहीं कर सकता है।

2 दिसंबर - विश्व कंप्यूटर साक्षरता दिवस - यह 2 दिसंबर को मनाया जाता है और इसका उद्देश्य मुख्य रूप से भारत में बच्चों और महिलाओं के बीच तकनीकी कौशल के विकास को प्रोत्साहित करना है।

3 दिसंबर - विश्व विकलांग दिवस या विकलांग व्यक्तियों का अंतर्राष्ट्रीय दिवस

विश्व विकलांग दिवस को विकलांग लोगों के अंतर्राष्ट्रीय दिवस (आईडीपीडी) के रूप में भी जाना जाता है। यह विकलांग लोगों को समझने और स्वीकार करने के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए 3 दिसंबर को मनाया जाता है। 2021 की थीम थी "कोविड-19 के बाद एक समावेशी, सुलभ और टिकाऊ दुनिया के लिए विकलांग व्यक्तियों का नेतृत्व और भागीदारी।"

4 दिसंबर - भारतीय नौसेना दिवस - नौसेना के लोगों की भूमिका, उपलब्धियों और कठिनाइयों को उजागर करने के लिए हर साल 4 दिसंबर को भारतीय नौसेना दिवस मनाया जाता है।

5 दिसंबर - अंतर्राष्ट्रीय स्वयंसेवक दिवस - अंतर्राष्ट्रीय स्वयंसेवक दिवस (आईवीडी) हर साल 5 दिसंबर को मनाया जाता है। यह दिन स्वयंसेवकों और संगठनों को उनके प्रयासों, मूल्यों का जश्न मनाने और उनके समुदायों के बीच उनके काम को बढ़ावा देने आदि का अवसर प्रदान करता है। 

5 दिसंबर - विश्व मृदा दिवस - मिट्टी, स्वस्थ पारिस्थितिकी तंत्र और मानव कल्याण के महत्व के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए 5 दिसंबर को विश्व मृदा दिवस मनाया जाता है।





6 दिसंबर - बीआर अंबेडकर की पुण्य तिथि - 6 दिसंबर 1956 को उनका निधन हो गया। यह दिन समाज में उनके अविस्मरणीय योगदान और उनकी उपलब्धियों को याद करने के लिए मनाया जाता है। 

6 दिसंबर - राष्ट्रीय माइक्रोवेव ओवन दिवस - यह 6 दिसंबर को उस आविष्कार का जश्न मनाने और सम्मान करने के लिए मनाया जाता है जिसने उनके लिए भोजन पकाने और दोबारा गर्म करने को सुविधाजनक और तेज़ बनाकर उनके जीवन को आसान बना दिया है।

7 दिसंबर - सशस्त्र सेना झंडा दिवस - आम लोगों से धन इकट्ठा करने और देश के सम्मान की रक्षा के लिए सीमाओं पर बहादुरी से लड़ने वाले शहीदों और जवानों को सम्मानित करने के उद्देश्य से 7 दिसंबर को पूरे देश में सशस्त्र सेना झंडा दिवस मनाया जाता है ।

7 दिसंबर - अंतर्राष्ट्रीय नागरिक उड्डयन दिवस - राज्यों के सामाजिक और आर्थिक विकास के लिए इसके महत्व और अंतर्राष्ट्रीय हवाई परिवहन में आईसीएओ की भूमिका के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए दुनिया भर में 7 दिसंबर को अंतर्राष्ट्रीय नागरिक उड्डयन दिवस मनाया जाता है।

8 दिसंबर- बोधि दिवस - हर साल 8 दिसंबर को दुनिया भर में बोधि दिवस मनाया जाता है, आमतौर पर विभिन्न नामों से। गौतम बुद्ध और उनके उपदेशों का सम्मान करने के लिए, यह आम तौर पर चंद्र-सौर कैलेंडर के 12वें महीने के आठवें दिन होता है।

9 दिसंबर - अंतर्राष्ट्रीय भ्रष्टाचार विरोधी दिवस - भ्रष्टाचार स्वास्थ्य, शिक्षा, न्याय, लोकतंत्र, समृद्धि और विकास को कैसे प्रभावित करता है, इसे उजागर करने के लिए हर साल 9 दिसंबर को अंतर्राष्ट्रीय भ्रष्टाचार विरोधी दिवस मनाया जाता है।

10 दिसंबर - मानवाधिकार दिवस - 10 दिसंबर को मानवाधिकार दिवस मनाया जाता है। मानवाधिकारों की सार्वभौम घोषणा को 1948 में संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा अपनाया गया था। यह दिन सभी लोगों के मौलिक मानवाधिकारों और उनकी बुनियादी मानवीय स्वतंत्रता की रक्षा के लिए मनाया जाता है।

10 दिसंबर - अल्फ्रेड नोबेल की पुण्य तिथि - वह एक प्रसिद्ध वैज्ञानिक, आविष्कारक, व्यवसायी और नोबेल पुरस्कार के संस्थापक थे। उनके पिता एक इंजीनियर और आविष्कारक थे। उनका जन्म 21 अक्टूबर, 1833 को हुआ था और उनकी मृत्यु 10 दिसंबर, 1869 को हुई थी। उन्होंने डायनामाइट और अन्य अधिक शक्तिशाली विस्फोटकों का आविष्कार किया था। 

11 दिसंबर - अंतर्राष्ट्रीय पर्वतीय दिवस - बच्चों और लोगों को ताजा पानी, स्वच्छ ऊर्जा, भोजन और मनोरंजन प्रदान करने में पहाड़ों की भूमिका के बारे में शिक्षित करने के लिए हर साल 11 दिसंबर को अंतर्राष्ट्रीय पर्वतीय दिवस मनाया जाता है। 2021 की थीम "सतत पर्वतीय पर्यटन" है। 

11 दिसंबर - यूनिसेफ दिवस - यह संयुक्त राष्ट्र द्वारा 11 दिसंबर को मनाया जाता है। यूनिसेफ का मतलब संयुक्त राष्ट्र अंतर्राष्ट्रीय बाल आपातकालीन कोष है। 





12 दिसंबर - सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज दिवस - संयुक्त राष्ट्र ने 12 दिसंबर 2017 को संकल्प 72/138 द्वारा 12 दिसंबर को अंतर्राष्ट्रीय स्वास्थ्य कवरेज दिवस (यूएचसी) के रूप में घोषित किया। इस दिन को मनाने के पीछे का उद्देश्य मजबूत और लचीली स्वास्थ्य प्रणालियों और बहु-सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज की आवश्यकता के बारे में जागरूकता फैलाना है। हितधारक भागीदार.

13 दिसंबर- राष्ट्रीय अश्व दिवस - अमेरिका के कुछ हिस्सों में 13 दिसंबर को राष्ट्रीय घोड़ा दिवस के रूप में मान्यता प्राप्त है। यह दिन घोड़ों के ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और आर्थिक योगदान का सम्मान करता है। अद्वितीय अनुष्ठान की पृष्ठभूमि और महत्व को देखें।

14 दिसंबर - राष्ट्रीय ऊर्जा संरक्षण दिवस - यह दैनिक जीवन में ऊर्जा की आवश्यकता और इसके संरक्षण के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए 14 दिसंबर को मनाया जाता है । 1991 से, यह हर साल 14 दिसंबर को विद्युत मंत्रालय के तहत  ऊर्जा दक्षता ब्यूरो (बीईई) द्वारा मनाया जाता है।

16 दिसंबर- विजय दिवस - शहीदों और उनके बलिदानों को याद करने और राष्ट्र के लिए सशस्त्र बलों की भूमिका को मजबूत करने के लिए भारत में 16 दिसंबर को विजय दिवस मनाया जाता है ।

18 दिसंबर - भारत में अल्पसंख्यक अधिकार दिवस - भारत में अल्पसंख्यक समुदायों के अधिकारों को संरक्षित और बढ़ावा देने के लिए 18 दिसंबर को भारत में अल्पसंख्यक अधिकार दिवस मनाया जाता है। यह दिन राज्य में अल्पसंख्यकों की सुरक्षा जैसे मुद्दों पर केंद्रित है। इस दिन लोगों को इनके बारे में जानकारी देने और शिक्षित करने के लिए कई अभियान, सेमिनार और कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं।

18 दिसंबर - अंतर्राष्ट्रीय प्रवासी दिवस - प्रवासियों और शरणार्थियों की सुरक्षा के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए 18 दिसंबर को अंतर्राष्ट्रीय प्रवासी दिवस मनाया जाता है। इंटरनेशनल ऑर्गनाइजेशन फॉर माइग्रेशन (आईओएम) अंतरराष्ट्रीय समुदाय से एक साथ आने और उन प्रवासियों और शरणार्थियों को याद करने का आह्वान कर रहा है, जिन्होंने सुरक्षित बंदरगाह तक पहुंचने के दौरान अपनी जान गंवा दी है या गायब हो गए हैं।

19 दिसंबर - गोवा मुक्ति दिवस - गोवा का मुक्ति दिवस प्रतिवर्ष 19 दिसंबर को मनाया जाता है। 1961 में इसी तारीख को एक सैन्य अभियान और विस्तारित स्वतंत्रता आंदोलन के बाद गोवा को पुर्तगाली प्रभुत्व से मुक्त कराया गया था। यह दिन भारतीय सशस्त्र बलों की याद में मनाया जाता है जिन्होंने गोवा को पुर्तगाली शासन से आजादी दिलाने में मदद की थी।

20 दिसंबर - अंतर्राष्ट्रीय मानव एकजुटता दिवस - विविधता में एकता के महत्व को उजागर करने के लिए प्रतिवर्ष 20 दिसंबर को अंतर्राष्ट्रीय मानव एकजुटता दिवस मनाया जाता है। यह दिन लोगों को गरीबी, भुखमरी और बीमारी से लड़ने के लिए मिलकर काम करने की भी याद दिलाता है।

21 दिसंबर- ब्लू क्रिसमस - पश्चिमी ईसाई प्रथा जिसे "ब्लू क्रिसमस" के नाम से जाना जाता है, वर्ष की 





सबसे लंबी रात को या उसके आसपास होती है, जो आमतौर पर 21 दिसंबर (शीतकालीन संक्रांति) होती है। इसका उद्देश्य शोक संतप्त परिवार के सदस्यों या दोस्तों को सांत्वना देना है, जिन्हें छुट्टियों के मौसम के दौरान खुशी और आशा खोजने में कठिनाई हो रही है।

21 दिसंबर- विश्व साड़ी दिवस - विश्व साड़ी दिवस पर इस पारंपरिक परिधान की सुंदरता को पहचानने और उसका जश्न मनाने का प्रयास किया गया है। यह हर साल 21 दिसंबर को मनाया जाता है। साड़ियाँ भारतीय कारीगरों द्वारा बनाई गई और सदियों से चली आ रही सबसे उत्कृष्ट, सुंदर और सुंदर उपहारों में से एक हैं।

22 दिसंबर - राष्ट्रीय गणित दिवस - प्रसिद्ध गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन की जयंती के उपलक्ष्य में प्रतिवर्ष 22 दिसंबर को राष्ट्रीय गणित दिवस मनाया जाता है। उन्होंने गणित के विभिन्न क्षेत्रों और उसकी शाखाओं में उल्लेखनीय योगदान दिया था। उनका जन्म 22 दिसंबर 1887 को इरोड (आज के तमिलनाडु शहर में) में हुआ था।

23 दिसम्बर - किसान दिवस - भारत में किसान दिवस या किसान दिवस या राष्ट्रीय किसान दिवस पूर्व प्रधान मंत्री चौधरी चरण सिंह की जयंती के उपलक्ष्य में 23 दिसंबर को पूरे देश में मनाया जाता है। इस दिन लोगों को शिक्षित करने और ज्ञान प्रदान करने के लिए कृषि और इसके महत्व पर विभिन्न कार्यक्रम, सेमिनार, समारोह और प्रतियोगिताएं आयोजित की जाती हैं।

24 दिसंबर - राष्ट्रीय उपभोक्ता अधिकार दिवस - राष्ट्रीय उपभोक्ता अधिकार दिवस प्रतिवर्ष 24 दिसंबर को पूरे देश में एक विशेष थीम के साथ मनाया जाता है। उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 को इसी दिन राष्ट्रपति की सहमति प्राप्त हुई थी। इसमें कोई शक नहीं कि इसे देश में उपभोक्ता आंदोलन में एक ऐतिहासिक मील का पत्थर माना जाता है। यह दिन उपभोक्ता अधिकारों और जिम्मेदारियों के बारे में जागरूकता भी प्रदान करता है।

25 दिसंबर - क्रिसमस दिवस - ईश्वर के पुत्र ईसा मसीह की जयंती के उपलक्ष्य में हर साल 25 दिसंबर को दुनिया भर में क्रिसमस दिवस मनाया जाता है।

25 दिसंबर - सुशासन दिवस (भारत) -  भारत में सुशासन दिवस 25 दिसंबर को अटल बिहारी वाजपेयी की जयंती मनाने के लिए मनाया जाता है, उनकी समाधि अर्थात् 'सदियाव अटल' राष्ट्र को समर्पित थी और एक कवि, मानवतावादी, राजनेता और एक महान नेता के रूप में उनके व्यक्तित्व को दर्शाती है।

16 अगस्त 2018 को 93 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया। भारत के लोगों के बीच शासन में जवाबदेही के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए पूर्व प्रधान मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को श्रद्धांजलि देने के लिए 2014 में सुशासन दिवस की स्थापना की गई थी। संविधान दिवस: तिथि, इतिहास, महत्व, उत्सव और मुख्य तथ्य






26 दिसंबर: वीर बाल दिवस - अंतिम सिख गुरु, गुरु गोबिंद सिंह जी के चार पुत्रों के साहस और शहादत को श्रद्धांजलि देने के लिए 26 दिसंबर को वीर बाल दिवस मनाया जाता है।

26 दिसंबर: बॉक्सिंग डे - बॉक्सिंग डे, क्रिसमस के अगले दिन होता था जब छोटे उपहारों और पैसों से भरे बक्से घरेलू नौकरों और कर्मचारियों को दिए जाते थे जिन्हें 25 दिसंबर को काम करना होता था।

27 दिसंबर: अंतर्राष्ट्रीय महामारी तैयारी दिवस - महामारी की घातकता को रोकने के लिए जागरूकता बढ़ाने, सूचना के आदान-प्रदान, वैज्ञानिक ज्ञान और सर्वोत्तम प्रथाओं और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की बड़ी आवश्यकता को पूरा करने के लिए 27 दिसंबर को अंतर्राष्ट्रीय महामारी तैयारी दिवस मनाया जाता है।

28 दिसंबर : रतन टाटा का जन्मदिन - भारतीय उद्योगपति, परोपकारी, उद्यमी और टाटा संस के पूर्व अध्यक्ष रतन नवल टाटा को किसी परिचय की आवश्यकता नहीं है। हो सकता है कि आप उन्हें फोर्ब्स पर न पाएं, लेकिन निश्चित रूप से सभी उम्र, लिंग और समूहों के दिलों में उनके लिए जगह है।








अटल बिहारी वाजपेयी 


श्री वाजपेयी का जन्म 25 दिसंबर, 1924 को मध्य प्रदेश के ग्वालियर में रहने वाले एक विनम्र स्कूल शिक्षक के परिवार में हुआ। निजी जीवन में प्राप्त सफलता उनके राजनीतिक कौशल और भारतीय लोकतंत्र की देन है। पिछले कई दशकों में वह एक ऐसे नेता के रूप में उभरे जो विश्व के प्रति उदारवादी सोच और लोकतांत्रिक आदर्शों के प्रति प्रतिबद्धता को महत्व देते थे ।

महिलाओं के सशक्तिकरण और सामाजिक समानता के समर्थक श्री वाजपेयी भारत को सभी राष्ट्रों के बीच एक दूरदर्शी, विकसित, मजबूत और समृद्ध राष्ट्र के रूप में आगे बढ़ते हुए देखना चाहते हैं। वह ऐसे भारत का प्रतिनिधित्व करते हैं जिस देश की सभ्यता का इतिहास 5000 साल पुराना है और जो अगले हज़ार वर्षों में आने वाली चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार है।

उन्हें भारत के प्रति उनके निस्वार्थ समर्पण और पचास से अधिक वर्षों तक देश और समाज की सेवा करने के लिए भारत का दूसरा सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म विभूषण दिया गया। 1994 में उन्हें भारत का ‘सर्वश्रेष्ठ सांसद’ चुना गया। उद्धरणानुसार:”अपने नाम के ही समान, अटलजी एक प्रतिष्ठित राष्ट्रीय नेता, प्रखर राजनीतिज्ञ, नि:स्वार्थ सामाजिक कार्यकर्ता, सशक्त वक्ता, कवि, साहित्यकार, पत्रकार और बहुआयामी व्यक्तित्व वाले व्यक्ति हैं”। अटलजी जनता की बातों को ध्यान से सुनते हैं और उनकी आकाँक्षाओं को पूरा करने का प्रयास करते हैं। उनके कार्य राष्ट्र के प्रति उनके समर्पण को दिखाते हैं।


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