वर्ष-24 अंक-04 अगस्त -2023, पृष्ठ 56 मूल्य 2-50

राष्ट्रभक्ति ले हृदय में, है खड़ा अब देश सारा ।
संकटो पर मात कर यह, राष्ट्र विजयी हो हमारा ॥
प्रत्येक व्यक्ति जहां रहता है वहां की संस्कृति, परंपराओं, आदर्शों और विचारों से प्रभावित होता है। देश के प्रति उसका यही सम्मान उसके अंदर राष्ट्रवाद को उजागर करता है। राष्ट्रवाद की भावना धर्म, जाति और समाज से ऊपर होती है तथा सबको एक सूत्र में बांधती है |
संरक्षक श्रीमान कुलवीर शर्मा कमहामंत्री समर्थ शिक्षा समिति डॉ वी एस नेगी प्रोफेसर भगत सिंह कॉलेज सांध्य
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सम्पादकीय - 3 गुरू आश्रम की ओर 4 - लेखकोचिंग का जाल व कमजोर पैदावार - 9 लेखगीताप्रेस एक आन्दोलन- 12 लेख ऐसी होती है बेटीयां - 14 कहानी माँ का आँचल - 16 कहानी सास का बन्धन या आजादी - 18 कहानी खामोशी- 20 कविता मेरे घर का पेड़ - 21 लेख मेरी कहानी मेरी जुबानी - 23 कविता भगवान की गुलक - 25 कहानी हाऊस वाईफ चौबीस घंटे की नौकरी - 28 कहानी एक प्रेरक प्रसंग- 30 प्रसंग मानसिक श्रम शारीरिक श्रम - 32 लेख कंगन - 34 कहानी देवाधिदेव शंकरा- 36 कविता अगस्त मास के महत्वपूर्ण दिवस - 40 जानकारी क्या पाया - 45 कविता परमा एकादशी - 46 व्रत कथा पुत्रदा एकादशी - 47 व्रत कथा सप्त चक्रों का हमारे जीवन पर प्रभाव- 48 स्वास्थ्य आजादी किससे - 52 लेख ब्राह्मण का ज्ञान - 54 अनुभव
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सम्पादकीय
प्रवृत्तवाक् विचित्रकथ ऊहवान् प्रतिभानवान्।
आशु ग्रन्थस्य वक्ता च यः स पण्डित उच्यते ॥
भावार्थ : जो व्यक्ति बोलने की कला में निपुण हो, जिसकी वाणी लोगों को आकर्षित करे, जो किसी भी ग्रंथ की मूल बातों को शीघ्र ग्रहण करके बता सकता हो, जो तर्क-वितर्क में निपुण हो, वही ज्ञानी है ।
संसार मे विदेश नीति का उपयोग अन्य देशों पर आपनी धाक जमाने के लिए किया जा रहा है जबकि किसी देश की विदेश नीति, जिसे विदेशी सम्बन्धों की नीति भी कहा जाता है, अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा करने के लिए और अन्तरराष्ट्रीय सम्बन्धों के वातावरण में अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए राज्य द्वारा चुनी गई स्वहितकारी रणनीतियों का समूह होती है।विदेश नीति उन निर्णयों और कार्यों का समूह है जो अपने नागरिकों की भलाई की रक्षा करने और अन्य देशों और अंतरराष्ट्रीय कानून के विषयों के समक्ष उनके राष्ट्रीय हितों का प्रतिनिधित्व करने के लिए सरकार की सार्वजनिक नीति बनाते हैं। मूलतः इस वक्त व्यपार,आपने नागरिकों की रकच जो अन्य देशों मे रहते है | हथियार खरीदना ओर बेचना मे विदेश विभाग का उपयोग होता है | विदेश नीति के सिद्धांत है दूसरे की क्षेत्रीय अखंडता और संप्रभुता के लिए पारस्परिक सम्मान,परस्पर गैर आक्रामकता,परस्पर गैर हस्तक्षेप,समानता और पारस्परिक लाभ,और शांतिपूर्ण सह अस्तित्व संबंध । भारत की विदेश नीति शुरू मे हम कह सकते है की 1947 से प्रारंभ होकर 1962 तक आशापूर्ण गुटनिरपेक्षता का दौर रहा। लेकिन वर्ष 1962 के भारत चीन युद्ध के साथ ही गुटनिरपेक्षता के इस आशावादी सिद्धांत का एक निराशाजनक अंत हुआ। वर्ष 1962 से 1971 तक भारत की विदेश नीति मे हम यथार्थवाद एवं सुधारों को साथ लेकर चले | आज भी गुटनिरपेक्षता की नीति भारत की विदेश नीति का सबसे महत्वपूर्ण पहलू एवं केंद्र बिंदु है।विदेश नीति अक्सर राष्ट्रीय सुरक्षा सुनिश्चित करने के उद्देश्य से निर्देशित होती है। हमले को रोकने और मजबूत प्रतिरोध दिखाने के लिए सरकारें विदेशी राज्यों के साथ सैन्य गठबंधन बनाती हैं। विदेश नीति नरम शक्ति, अंतर्राष्ट्रीय अलगाव या युद्ध के माध्यम से प्रतिकूल राज्यों का मुकाबला करने पर भी केंद्रित है। मोदी सरकार के अभिनव विचारों में से एक भारत की विदेश नीति में गैर-केंद्रीय सरकारों के तत्वों की शुरूआत है,जहां प्रत्येक राज्य और शहरों को किसी अन्य देश के देशों या संघीय राज्यों या यहां तक कि उनके हित के शहरों के साथ विशेष संबंध बनाने के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा। इस प्रकार विदेश नीति के सकारात्मक एवं नकारात्मक दोनों पहलू होते है। यह सकारात्मक रूप में जब होती है जब वह दूसरे देशों के व्यवहार का प्रयास करती है ओर सहयोग की भावना के साथ मिल कर चलते है | नकारात्मक रूप में तब होती है जब वह दूसरे देशों के व्यवहार को परिवार्तित या अपने अधीन करने का प्रयास करती है।

गुरु आश्रम की ओर
गोपाल माहेश्वरी
प्रातःकाल पाँच बजने को थे कि घर में खटर-पटर की आवाजों से गौरव की नींद टूट गई। उसे पता था दादा जी- दादी जी जल्दी जागते हैं लेकिन आज तो सारा घर ही उनके साथ जागा-सा लग रहा था। उसने चादर से मुँह निकाला तो देखा न दादी बिस्तर पर थी न दादाजी, फिर भी उसका मन उठने का न हुआ। “गंगे च यमुने चैव गोदावरी सरस्वती ….” श्लोक की ध्वनि स्नानघर से आ रही थी, मतलब दादाजी नहा रहे हैं। और “जाग जाग जमुना महारानी दुनिया दर्शन आई जी, जाग जाग हरि की पटरानी दुनिया दर्शन आई जी।।” मधुर प्रभाती के स्वर दादी के कंठ से फूटकर पूजा घर से आ रहे थे।
“दादी जी! देखो पिता जी बगीचे से कितने सारे फूल लाए हैं, मैं नहा ली हूँ इनकी माला बना दूँ?” गरिमा का स्वर सुनकर गौरव सोचने लगा “अरे चिड़िया से पहले ये मुनिया जाग गई और नहा भी ली!!” फिर जैसे अपने आप को टोका “अरे! जाग जा गौरव! आज अवश्य कोई विशेष बात है जो सारा घर अभी से तैयार हो गया है। उठ नहीं तो तू ही रह जाएगा फसड्डी।” तभी माँ उधर आई और उसे चादर ओढ़े पर हाथ पैर हिलाते देख बोली “जागो मोहन प्यारे!” गौरव को माँ लाड़ से मोहन प्यारे कह कर ही उठाती थी। वह चटपट उठ बैठा। पहले धरती माता को फिर सामने लगे गोवर्द्धनधारी श्रीकृष्ण जी के चित्र को प्रणाम किया। दादा जी नहा कर आ गए थे, धोती बाँध रहे थे, उन्हें, फिर दादी जी और माता पिता को प्रणाम किया। छोटी बहिन गरिमा ने उसे हाथ जोड़कर “जय श्रीकृष्ण” कहा, उसे जय श्रीकृष्ण कह कर उत्तर दिया और फटाफट नहा-धोकर तैयार होने निकल पड़ा।
थोड़ी देर बाद घर के सामने एक ताँगा रुका। शहर में अब ताँगे नाममात्र को ही बचे थे पर घर में कार होने पर भी इस परिवार के लोग कभी कभी ताँगे की सवारी ही मँगवा लेते थे। द्वार पर ताँगा तो विशेष हर्षमय आश्चर्य का कारण बन गया था गौरव के लिए। माँ ने फल-फूल मिठाई से भरी डलियाएँ रखीं। गौरव ताँगेवाले के पास आगे बैठा शेष परिवार पीछे।
‘सद्गुरुदेव भगवान की जय’ के घोष के साथ ताँगा चल पड़ा। घोड़े की लयबद्ध टापों और घुँघरुओं की आवाज से सूर्योदय के कुछ पूर्व का वातावरण अद्भुत अनुभव करा रहा था। शीतल पवन, फूलों की सुगंध चिड़ियों की चहचहाहट और पूरब में देखते ही देखते गहराता केसरिया प्रकाश। कुछ ही देर में वे नगर के बाहर आ पहुँचे थे।
अब उचित समय था कि गौरव अपना आज के आयोजन प्रयोजन संबंधित अज्ञान दूर करे। हमारे देश में उपनिषदों की परंपरा ऐसे ही बनी होगी। किसी ने जिज्ञासावश किसी योग्य व्यक्ति से कुछ पूछा और उस व्यक्ति ने उसका वास्तविक समाधान किया तो किसी उपनिषद् का जन्म हुआ। मुझे लगता है जिज्ञासाभरे बचपन और समाधानकर्ता दादा-दादी का संवाद भी एक अलिखित अनाम उपनिषद् ही है जो सदियों से रचा जा रहा है निरंतर आज भी। क्या नाम दें इसे? बालोपनिषद्?
आज भी एक ऐसा ही संवाद होने वाला था।
“दादा जी! आज कहाँ जा रहे हैं हम सब?” पीछे मुँह घुमाकर प्रथम प्रश्न पूछा गया।
“गुरु आश्रम।” उत्तर संक्षिप्त पर पूरा था।
“क्यों? आज क्या है?”
“आज है गुरुपूर्णिमा। हम गुरुदेव के दर्शन करने जा रहे हैं।”
“गुरुपूर्णिमा यानि?”
“भगवान वेदव्यास की जयंती। आषाढ़ी पूर्णिमा।”
“भैया! आप पीछे आ जाओ न? आपकी और दादा जी की गर्दन दुखने लगेगी ऐसे बातें करोगे तो।” गरिमा के स्वर में भोले-सा अपनापन सुझाव बन फूट पड़ा था।
“हाँ, दोनों भाई-बहन यहाँ बैठो मैं आगे बैठ जाता हूँ।” पिता जी ने कहा तो जैसे घोडा़ भी समझ गया हो, वह रुका, बच्चों को ऐसा ही लगा जबकि कमाल ताँगे वाले के हाथों की लगाम का था। गौरव पीछे आ गया।
“गुरु यानि क्या?” प्रश्नोत्तरी आगे बढ़ी।
“गुरु यानि मार्गदर्शक।”
“ …” गौरव मौन होकर सोचने लगा। दादा जी जान गए कि उसे ठीक से समझ में नहीं आया है।
“क्या करना क्या नहीं, कोई काम करने की सही विधि क्या है? उसके परिणाम अपने लिए और दूसरों के लिए कैसे हैं? यह सब कई बार हमें नहीं मालूम होता। हमारा स्वार्थ, मोह, घमंड कई बातें हैं जो हमें सच्चाई से भटका देती है तब जो हमें सच बताए, समझाए और कोई गलती हो रही हो तो सुधारे वह गुरु कहलाता है।”
“हमें सड़क पर संकेतक लगे दिखते हैं कौनसा रास्ता कहाँ जाता है बताते हैं, तो वे गुरु हैं क्या?” गौरव की तर्कग्रंथि जाग्रत हो रही थी।
“क्या वे हमें यह बता सकते हैं कि हमारा उस रास्ते पर जाना ठीक है या नहीं?”
“कभी कभी यह संकेत भी मिल जाते हैं। आगे खतरनाक मोड़ है, रास्ता बंद है, परिवर्तित मार्ग आदि।”
“और फिर भी कोई उन्हें देखकर अनदेखा कर जाए तो?”
“तब गलती ऐसा करने वाले की होगी।”
“ये संकेतक सूचनाएँ है। शास्त्रों में भी ऐसी कई अच्छाई बुराई संबंधित बातें लिखी हैं, पर कोई जाने, न जाने, जानकर भी माने, न माने, यहीं गुरु की भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है बेटे! “दादा जी समझा रहे थे। सामने कोई सूचनापट लिखा दिखा पर उसे किसी ने नहीं पढा। तभी सुनसान रास्ते पर बढ़ते ताँगे वाले को एक गाँव वाले ने टोका।” इधर नहीं आगे बड़ा गड्ढा है उधर से निकल जाओ।”
ताँगे वाला हँसा “अरे! रहने दे भाई! नया ज्ञान। बहुत बार गया हूँ इधर से।”
“जमीन घँस गई है सड़क की। नहीं जाने दूँगा देखते नहीं घर-गृहस्थी के लोग बैठे हैं ताँगे में।” वह दोनों हाथ फैलाए ताँगे के आगे ही खड़ा हो गया। ताँगे का रास्ता बदलना ही पड़ा।
“इस समय यह गाँव वाला गुरु की भूमिका में है ऐसा ही जीवन में भी होता रहता है।”
“इस गाँव वाले का काम तो मेरा गूगल-गुरु भी कर सकता है।” गौरव ने मोबाइल पर गूगल मेप खोला। सचमुच पहले वाला रास्ता बंद था।”
“गूगल दिखा रहा है पर रोक सकता है क्या? गाँव वाले ने रोक दिया। देखो बेटे! गूगल, गुरु नहीं हो सकता।”
“ज्ञान का भंडार है यह दादाजी! इतना ज्ञान किसी भी मनुष्य के पास नहीं हो सकता।” गौरव ने समझा यह तर्क दादा जी को निरुत्तर कर देगा, पर यह भ्रम भी टूट गया जब वे बोले “ज्ञान और सूचना में अंतर है। सूचना सचेत कर सकती है पर ज्ञान बोध कराता है। गूगल सबको समान रूप से अच्छी-बुरी, उपयोगी-अनुपयोगी जानकारियाँ बता देता है लेकिन उन जानकारियों, सूचनाओं को हितकारी अहितकारी, अभली बुरी इस, उपयोगकर्ता को क्या बताना, कितनी बताना, कैसे बताना या उसे छुपा लेना, बताने न बताने का जानने वाले पर प्रभाव-दुष्प्रभाव यह सब विवेक, उस यंत्र के पास नहीं है इससे हमारा मस्तिष्क अनावश्यक जानकारियों से भी भरा रहता है। गुरु यह सब विचार करता है। ज्ञान देने के पहले पात्रता निर्माण करता है बढ़ाता है। इसलिए गूगल को गुरु मानने की भूल मत करना।”
“इसलिए जीवन में गुरु बनाना बहुत जरूरी है नहीं तो मुक्ति नहीं होती, समझा कुछ? “अब दादी का मौन टूटा था वह पोते के सिर पर हाथ घुमाते हुए स्नेह से बोलीं।
“मुक्ति क्या दादी?” गरिमा ने पूछ लिया जानना तो गौरव को भी था।
अब बच्चों को क्या उत्तर देना इस प्रश्न का यह दादा जी जानते थे इसलिए दादी की ओर से वे बोल पड़े “मुक्ति यानि हम किसी बात को न जाने की उलझन से छूट जाएँ और उसे जान लें यही समझ लो तुम अभी। “दादी-दादा जी की ओर कृतज्ञता से देख रही थी।

“तो गौरव! गुरु बनाओगे या गूगल से ही काम चलाओगे?” पिता जी ने पूछा।
“मुझे गुरु बनाने की क्या आवश्यकता? मैं नहीं बनाऊँगा।” गौरव ने गंभीर मुद्रा बनाकर कहा तो सब अवाक् रह गए। माँ का मुख क्रोध से तमतमा उठा “क्या उद्दंडता है यह गौरव! थप्पड़ खाओगे?”
गौरव मुस्कुरा उठा “मैं गुरु नहीं बनाऊँगा क्योंकि मेरे गुरुदेव तो मेरे सामने बैठे हैं, मेरे दादा जी।”
सब लोग खिलखिला उठे। ताँगा रुक गया। सामने गुरु आश्रम सामने था।
“आप मेरे गुरु हैं ही पर आपको भी किसी गुरु की आवश्यकता है दादा जी?” गौरव ने उतरते उतरते पूछ लिया।
“यह सच है बेटा कि बचपन में हमारे माता-पिता, घर-परिवार के बड़े, अनुभवी लोग भी गुरु की भूमिका में होते हैं। माँ तो जीवन की प्रथम गुरु होती ही है फिर बड़े होने के साथ साथ विद्यालय के शिक्षक भी यह भूमिका निर्वाह करने लगते हैं। और बड़े होने पर हमारे कामकाज के क्षेत्र में कई लोग कुछ न कुछ सिखाते हैं और कामकाज के क्षेत्र के बाहर भी कई लोग मार्गदर्शक सिद्ध होते हैं। एक प्रकार से इन सबमें गुरुतत्व है। जिससे भी जीवन में कुछ भी आगे बढ़ने की दृष्टि मिले वे सब गुरुरूप हैं भगवान दत्तात्रेय ने ऐसे ही चौबीस गुरु बनाए थे उनमें तो कीट पतंगे पशु-पक्षी तक भी हैं फिर मनुष्यों की तो बात ही क्या? “दादा जी ने समझाया।
“पर आपके गुरु के बारे में नहीं बताया आपने।” गौरव ने जिज्ञासा की।
“अभी मैंने जो बताए वे संसार का ज्ञान देने वाले लोग हैं। अभिभावक, शिक्षक, मार्गदर्शक, आचार्य आदि नामों से पुकारकर हम इनसे श्रद्धापूर्वक बहुत कुछ जानते समझते सीखते है लेकिन जिसे सही अर्थों में गुरु
कहते हैं वह इन सबसे श्रेष्ठ होता है वह हमें अध्यात्म का ज्ञान कराता है। हमारे और सारे संसार में एक ही परमात्मा है इसलिए सब हमारे जैसे ही हैं कोई दूसरा नहीं ऐसा अनुभव करवाने वाला ही गुरु है। हम आश्रम में ऐसे ही महात्मा के दर्शन सत्संग को आए हैं। जलता हुआ दीपक ही दूसरे दीपक को जला सकता है ऐसे ही वही सच्चा गुरु हो सकता है जो स्वयं अध्यात्म ज्ञान से पूर्ण हो। बड़े भाग्य से ही ऐसे पहुँचे हुए महापुरुष मिल पाते हैं। ऐसे गुरु भगवान से भी बड़े होते हैं क्योंकि वे ही हमें भगवान का दर्शन भी करा सकते हैं।”
आश्रम में एक आम के वृक्ष के नीचे भगवा लंगोटी लगाए अत्यंत तेजस्वी महात्मा बैठे थे। दादा जी ने सपरिवार साष्टांग दण्डवत प्रणाम किया। गौरव का मन उठने का हो ही नहीं रहा था। महात्मा जी ने उसके मस्तक पर हाथ स्पर्श कर उसे उठा लिया।
आश्रम में बने पंडाल में कोई प्रवचनकर्ता कह रहे थे –
तीन लोक नौ खंड में गुरुसे बड़ा न कोय। कर्ता करे न करि सकै, गुरू करे सो होय।।
(लेखक इंदौर से प्रकाशित ‘देवपुत्र’ बाल मासिक पत्रिका के कार्यकारी संपादक है।)
महर्षि अरविंद
15 अगस्त, 1947 को आकाशवाणी से राष्ट्र के नाम संदेश में उन्होंने अपने पांच स्वप्नों का उल्लेख किया, जिन्हें आज के संदर्भ में भी गंभीरता से देखा जाना चाहिए. श्री अरविंद ने 'भारतीय संस्कृति के आधार' में लिखा- 'भारतीय आदर्श सनातन हैं. भारतीय संस्कृति की संचालिका आध्यात्मिक अभीप्सा है | अरविंद का विश्वास था कि मानव दैवी शक्ति से समन्वित है और शिक्षा का लक्ष्य इस चेतना शक्ति का विकास करना है। इसीलिए वे मस्तिष्क को 'छठी ज्ञानेन्द्रिय' मानते थे। शिक्षा का प्रयोजन इन छ: ज्ञानेन्द्रियों का सदुपयोग करना सिखाना होना चाहिए |


कोचिंग का जाल व कमजोर पैदावार
शिक्षा का व्यवसायिक करण
अमित अग्रवाल
कोचिंग का इंजेक्शन लगा कर लौकी की तरह भावी इंजीनियर और डॉक्टर की पैदावार की जाती है। अब नेचुरल देसी नस्ल छोटी रह जाती है जो तनाव में आकर या तो मुरझा जाती है या बाजार में बिकने लायक ही नही रहती।
अब मैं आपको बीस साल पहले ले जाता हूँ जब सरकारी स्कूलों का दौर था। जब एक औसत लड़के को साइंस ना देकर स्कूल वाले खुद ही लड़के को भट्टी में झोकने से रोक देते थे । आर्ट्स और कामर्स देकर लड़कों को शिक्षक बाबू,पटवारी,नेता और व्यापारी बनाने की तरफ मोड़ देते थे मतलब साफ है कि *पानी को छोटी-छोटी नहरो में छोड़ कर योग्यता के हिसाब से अलग अलग दिशाओ में मोड़ दो ताकि बाढ़ का खतरा ही पैदा ना हो ।
शिक्षक लड़के के गलती करने पर उसको डंडे से पीट-पीटकर साक्षर बनाने पर अड़े रहते और तनाव झेलने के लिये मजबूत कर देते थे ।पापा-मम्मी से शिकायत करो तो *दो झापड़ पापा-मम्मी भी जड़ देते थे और गुरुजी से सुबह स्कूल आकर ये और कह जाते थे कि अगर नहीं पढ़े तो दो डंडे हमारी तरफ से भी लगाना आप । अब पक्ष और विपक्ष एक होता देख लड़का पिटने के बाद सीधा फील्ड में जाकर खेलकूद करके अपना तनाव कम कर लेता* था।खेलते समय गिरता पड़ता और कभी-कभी
छोटी-मोटी चोट भी लग जाती तो मिट्टी डाल कर चोट को सुखा देता,पर कभी तनाव में नहीं आता । दसवीं आते-आते लड़का लोहा बन जाता था। तनावमुक्त होकर मैदान में तैयार खड़ा हो जाता था ।हर तरह के तनाव को झेलने के लिए.........
फिर आया कोचिंग और प्राईवेट स्कूलों का दौर यानी की शिक्षा स्कूल से निकल कर ब्रांडेड शोरुम में आ गई । शिक्षा सोफेस्टीकेटेड हो गई। बच्चे को गुलाब के फूल की तरह ट्रीट किया जाने लगा। मतलब बच्चा 50% लाएगा तो भी साइंस में ही पढ़ेगा । हमारा मुन्ना तो डॉक्टर ही बनेगा। हमारा बच्चा IIT से B.tech करेगा । शिक्षक अगर हल्के से भी मार दे तो पापा-मम्मी मानवाधिकार की किताब लेकर मीडिया वालों के साथ स्कूल पर चढ़ाई कर देते हैं कि हमारे मुन्ना को हाथ भी कैसे लगा दिया?मीडिया वाले शिक्षक के गले में माइक घुुसेड़ कर पूछने लग जाते हैं कि आप ऐसा कैसे कर सकते हैं ?यहाँ से आपका बच्चा सॉफ्ट टॉय बन गया बिलकुल टेडी बियर की तरह । अब बच्चा स्कूल के बाद तीन-चार कोचिंग सेंटर में भी जाने लग गया। खेलकूद तो भूल ही गया । फलाने सर से छूटा तो ढिमाके सर की क्लास में पहुंच गया। बचपन किताबों में उलझ गया और बच्चा कॉम्पटीशन के चक्रव्युह में ही उलझ गया बेचारा।क्यों भाई आपका मुन्ना केवल डॉक्टर और इंजीनियर ही क्यों बनेगा वो आर्टिस्ट,सिंगर,खिलाड़ी,किसान और दुकानदार से लेकर नेता और कारखाने का मालिक क्यों नहीं बनेगा। हजारों फील्ड हैं अपनी योग्यता के अनुसार कार्य करने के वो क्यों ना चुनो*। अभी कुछ दिनों पहले मेरे महंगे जूते थोड़े से फट गऐ पता किया एक लड़का अच्छी तरह से रिपेयर करता है कि ये पता ही नहीं चलता कि जूते रिपेयर भी हुए हैं । उसके पास गया तो उसने 200 रुपये मांगे रिपेयर करने के और कहा एक हफ्ते बाद मिलेगें जी। उस लड़के की आमदनी का हिसाब लगाया तो पता चला की लगभग एक लाख रुपये महीने कमाता है। यानी की पूरा बारह लाख पैकेज । वो तो कोटा नहीं गया । उसने अपनी योग्यता को हुनर में बदल दिया और अपने काम में मास्टर पीस बन गया। कोई शेफ़ बन कर लाखों के पैकेज़ में फाइव स्टार होटल में नौकरी कर रहा है तो कोई हलवाई बन कर बड़े-बड़े इवेंट में खाना बना कर लाखों रुपये ले रहा है कोई डेयरी फार्म खोल कर लाखों कमा रहा है। कोई दुकान लगा कर लाखों कमा रहा है तो कोई कंस्ट्रक्शन के बड़े-बड़े ठेके ले रहा है। तो कोई फर्नीचर बनाने के ठेके ले रहा है। कोई रेस्टोरेंट खोल कर कमा रहा है तो कोई कबाड़े का माल खरीद कर ही अलीगढ़ जैसे शहर में ही लाखों कमा रहा है तो कोई सब्जी बेच कर भी 20-25 हजार महीने का कमा रहा है तो कोई चाय की रेहड़ी लगा कर ही 40-50 हजार महीने के कमा रहा है तो कोई हमारे यहाँ कचोरी-समोसे और पकोड़े-जलेबी बेच कर ही लाखों रुपये महीने के कमा रहा है। मतलब साफ है भैया कमा वो ही रहा है जिसने अपनी योग्यता और उस कार्य के प्रति अपनी रोचकता को हुनर में बदला और उस हुनर में मास्टर पीस बना । जरुरी नहीं है कि आप डॉक्टर और इंजीनियर ही बनें आप कुछ भी बन सकते हैं आपमें उस कार्य को करने का जुनून हो बस। हाँ तो अभिभावको/प्रियजनों अपने बच्चों को टैडीबीयर
नहीं बल्कि लोहा बनाओ लोहा । अपनी मर्जी की भट्टी में मत झोको उसको। उसे *पानी की तरह नियंत्रित करके छोड़ो वो अपना रास्ता खुद बनाने लग जाएगा । पर बच्चों पर नियंत्रण जरुर रखो । अगर वो अनियंत्रित हुआ तो पानी की तरह आपके जीवन में बाढ़ ला देगा ।
कहने का मतलब ये है की शिक्षा को नेचुरल ही रहने दो,क्यों सिंथेटिक बना कर बच्चे का जीवन और अपनी खुशियों को बरबाद कर रहे हो।बच्चों को उनकी रूचि के अनुसार,आगे बढ़ने में सहयोग दे |

भारतीय क्रिकेट में "दादागिरी" का आगाज
आशीष देशपांडे
1996 में लॉर्ड्स पर अपने डेब्यू पर 131 की पारी खेलकर सौरभ गांगुली ने वह सब शुरू किया जिसका भारतीय क्रिकेट आदि नही था। हरभजन और जहिर जैसे युवाओ पर भरोसा हो, द्रविड़ से कीपिंग कराना हो,धोनी के पहले वन डे में शून्य पर आउट होने के बाद भी उन्हें बेटिंग ऑर्डर में प्रमोट करना या स्टीव वॉ को टॉस का इंतजार कराना हो। उन्होंने पहले सचिन के साथ वन डे में ओपनिंग करते कीर्तिमान छुए, टेस्ट में द्रविड़ के साथ यह तिकड़ी किसी पौराणिक आख्यान में वर्णित ट्रिनिटी प्रतीत होती थी।वी वी लक्ष्मण के जुड़ने के बाद यही त्रयी बेस्ट फोर में तब्दील हुई। मेरी नजर में सचिन, गांगुली , द्रविड़, लक्ष्मण और वीरू से अच्छा टॉप ऑर्डर भारतीय क्रिकेट ने नही देखा। वास्तव मे सहवाग के स्ट्रोक प्ले से सभी वाकिफ थे मगर बेस्ट फोर से मिडिल ऑर्डर पैक था, तो सहवाग जैसे मिडिल ऑर्डर बल्लेबाज को ओपन कराना और दिल खोल कर खेलने देना उनका साहसिक फैसला था। उन्हे पता था वीरू फेल भी होते है तो उसके बाद वेस्ट फोर हैं। विरोधियों की स्लेजिंग का जवाब देना हो या कोलकाता में वापसी की रणनीति और फ्लिंटॉफ को उनके अंदाज में भारतीय परंपरा से हटकर टी शर्ट उतारकर सेलिब्रेट करना उन्ही के बस का था। भले उनके नाम आईसीसी ट्रॉफी नही मगर एक लीडर के तौर पर धोनी कोहली आदि के भी वे प्रेरणा स्त्रोत रहे

गीताप्रेस एक आंदोलन
भारत का इतिहास स्वर्णिम ही नहीं है। अत्याचारों, दुखों से भरा है।
1947 में भारतमें औसत आयु मात्र 34 वर्ष थी। आज कोई भी इस पर विश्वास नही कर सकता है।
लेकिन इन सभी दर्दनाक घटनाओं सबसे बड़ी घटना चुननी हो तो क्या होगी?
वह है नालंदा विश्वविद्यालय का बख्तियार खिलजी द्वारा जलाया जाना। यह विश्वविद्यालय था जिससे व्हेनसांग 10 हजार प्रतिलिपि बनाकर लेकर गया था। इसी के साथ विक्रमशिला जला दी गई।
भारत का सारा ज्ञान, विज्ञान, धर्म, चिकित्सा, ज्योतिष नष्ट हो गई। कुछ शास्त्र छिपाकर नेपाल ले गये। दक्षिण में बचे रहे।
इस तरह अपने धर्म को बचाने के लिये भारतीय पीढ़ी दर पीढ़ी कथानक को ले जाते। रामायण, महाभारत ऐसे ही आगे बढ़ाया गया। कुछ समय पूर्व तक बच्चे अपने माता पिता से ही रामायण, महाभारत सुनते थे।
भक्तिकाल में कवियों ने लोकस्रुतियो, अपने भक्ति, तप से नये ग्रन्थ रचे। जो समाज के लिये बड़े उपयोगी रहे।
1923 में गीताप्रेस कि स्थापना हुई थी। मैं उसके इतिहास पर नहीं जाता, वह कही भी मिल जायेगा।
गीताप्रेस ने पुस्तकों को ही प्रकाशित किया ऐसा नहीं है। नेपाल, दक्षिण भारत से पांडुलिपियो का खोजा। महाभारत कि मूलप्रतिया चार पाँच स्थानों पर मिली। उनको क्रम से जोड़ना, फिर इसी तरह उपनिषद को पूरे देश में खोजकर क्रमबद्ध किया।
इन सभी गर्न्थो को प्रकाशित करके, जनमानस तक पहुँचाया।
गीताप्रेस न होता तो संभव था कि हम जानते ही नहीं कि हमारे पूर्वजों ने इतना महान ग्रँथ रचे थे।
गीता प्रेस कि विश्वसनीयता इतनी अधिक है कि प्रकांड विद्वान भी कोड करता है कि यह गीताप्रेस से प्रकाशित पुस्तक है।
प्रथम राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद ने हनुमान प्रसाद पोद्दार को भारत रत्न देने का प्रस्ताव गोविंदबलभ पंत से भेजा। लेकिन उन्होंने लेने से मना कर दिया।
2014 में गीताप्रेस ने जो आंकड़े जारी किये थे।
54 करोड़ पुस्तकें प्रकाशित किया था। 12 करोड़ गीता,11 करोड़ रामचरित मानस,9 करोड़ रामायण, महाभारत,2.5 करोड़ पुराण, उपनिषद पत्रिका, चालीसा, कथानक आदि। 2.5 लाख प्रति प्रतिदिन प्रकाशित होती है। ऐसा अप्रतिम उदाहरण मनुष्य के इतिहास में नहीं है।
गीताप्रेस हमारे लिये 'गीता' कि भांति ही आस्था है। तक्षशिला, नालंदा कि भांति आदरणीय है।
उसके सामने कोई भी पुरस्कार महत्वहीन है
भद्रा विचार अगस्त - 2023
भद्रा काल का शुभ अशुभ विचार - भद्रा काल में विवाह मुंडन, गृह प्रवेश, रक्षाबंधन आदि मांगलिक कृत्य का निषेध माना जाता है परंतु भद्रा काल में शत्रु का उच्चाटन करना,स्त्री प्रसंग में,यज्ञ करना,स्नान करना,अस्त्र शस्त्र का प्रयोग,ऑपरेशन कराना, मुकदमा करना,अग्नि लगाना,किसी वस्तु को काटना,भैस,घोड़ा व ऊंट संबंधी कार्य प्रशस्त माने जाते हैं सामान्य परिस्थिति में विवाह आदि शुभ मुहूर्त में भद्रा का त्याग करना चाहिए परंतु आवश्यक परिस्थितिवश अति आवश्यक कार्य भूलोक की भद्रा ,भद्रा मुख छोड़कर कर भद्रा पुच्छ में शुभ कार्य कर सकते है |
दिनांक | शुरू | दिनांक | समाप्त |
01 | 03-52 | 01 | 13-58 |
04 | 02-31 | 04 | 12-45 |
07 | 05-20 | 07 | 16-47 |
10 | 16-34 | 11 | 05-06 |
14 | 10-25 | 14 | 23-34 |
20 | 11-24 | 21 | 00-22 |
24 | 03-31 | 24 | 14-51 |
27 | 10-55 | 27 | 21-35 |
30 | 10-58 | 30 | 21-01 |

ऐसी होती हैं बेटियां!!
पूनम जरका
लड़कियों के एक विद्यालय में आई नई अध्यापिका बहुत खूबसूरत थी, बस उम्र थोड़ी अधिक हो रही थी लेकिन उसने अभी तक शादी नहीं की थी...
सभी छात्राएं उसे देखकर तरह तरह के अनुमान लगाया करती थीं। एक दिन किसी कार्यक्रम के दौरान जब छात्राएं उसके इर्द-गिर्द खड़ी थीं तो एक छात्रा ने बातों बातों में ही उससे पूछ लिया कि मैडम आपने अभी तक शादी क्यों नहीं की...?
अध्यापिका ने कहा- "पहले एक कहानी सुनाती हूं। एक महिला को बेटे होने की लालच में लगातार पांच बेटियां ही पैदा होती रहीं। जब छठवीं बार वह गर्भवती हुई तो पति ने उसको धमकी दी कि अगर इस बार भी बेटी हुई तो उस बेटी को बाहर किसी सड़क या चौक पर फेंक आऊंगा। महिला अकेले में रोती हुई भगवान से प्रार्थना करने लगी, क्योंकि यह उसके वश की बात नहीं थी कि अपनी इच्छानुसार बेटा पैदा कर देती। इस बार भी बेटी ही पैदा हुई। पति ने नवजात बेटी को उठाया और रात के अंधेरे में शहर के बीचों-बीच चौक पर रख आया। मां पूरी रात उस नन्हीं सी जान के लिए रो रोकर दुआ करती रही। दूसरे दिन सुबह पिता जब चौक पर बेटी को देखने पहुंचा तो देखा कि बच्ची वहीं पड़ी है। उसे जीवित रखने के लिए बाप बेटी को वापस घर लाया लेकिन दूसरी रात फिर बेटी को उसी चौक पर रख आया। रोज़ यही होता रहा। हर बार पिता उस नवजात बेटी को बाहर रख आता और जब कोई उसे लेकर नहीं जाता तो मजबूरन वापस उठा लाता। यहां तक कि उसका पिता एक दिन थक गया और
भगवान की इच्छा समझकर शांत हो गया। फिर एक वर्ष बाद मां जब फिर से गर्भवती हुई तो इस बार
उनको बेटा हुआ। लेकिन कुछ ही दिन बाद ही छह बेटियों में से एक बेटी की मौत हो गई, यहां तक कि माँ पांच बार गर्भवती हुई और हर बार बेटे ही हुए। लेकिन हर बार उसकी बेटियों में से एक बेटी इस दुनियां से चली जाती।"
अध्यापिका की आंखों से आंसू गिरने लगे थे। उसने आंसू पोंछकर आगे कहना शुरु किया।
"अब सिर्फ एक ही बेटी ज़िंदा बची थी और वह वही बेटी थी, जिससे बाप जान छुड़ाना चाह रहा था। एक दिन अचानक मां भी इस दुनियां से चली गई। इधर पांच बेटे और एक बेटी सब धीरे धीरे बड़े हो गए।"
अध्यापक ने फिर कहा- "पता है वह बेटी जो ज़िंदा बची रही, मैं ही हूं। मैंने अभी तक शादी इसलिए नहीं की, कि मेरे पिता अब इतने बूढ़े हो गए हैं कि अपने हाथ से खाना भी नहीं खा सकते और अब घर में और कोई नहीं है जो उनकी सेवा कर सकें। बस मैं ही उनकी सेवा और देखभाल किया करती हूं। जिन बेटों के लिए पिताजी परेशान थे, वो पांच बेटे अपनी अपनी पत्नियों और बच्चों के साथ अलग रहते हैं। बस कभी-कभी आकर पिता का हालचाल पूछ जाते हैं।"
वह थोड़ा मुस्कराई। फिर बोली -
"मेरे पिताजी अब हर दिन शर्मिंदगी के साथ रो-रो कर मुझ से कहा करते हैं, मेरी प्यारी बेटी जो कुछ मैंने बचपन में तेरे साथ किया उसके लिए मुझे माफ कर देना।"
दोस्तों, बेटी की बाप से मुहब्बत के बारे में एक प्यारा सा किस्सा यह भी है कि एक पिता बेटे के साथ खेल रहा था। बेटे का हौंसला बढ़ाने के लिए वह जान बूझ कर हार जा रहा था। दूर बैठी बेटी बाप की हार बर्दाश्त ना कर सकी और बाप के साथ लिपटकर रोते हुए बोली- "पापा ! आप मेरे साथ खेलिए, ताकि मैं आपकी जीत के लिए हार सकूँ।" ऐसी होती हैं बेटियां!!
पंचक विचार अगस्त - 2023
पंचक विचार -(धनिष्ठा नक्षत्र के तृतीय चरण से रेवती नक्षत्र तक) पंचको में दक्षिण दिशा की ओर यात्रा करना मकान दुकान आदि की छत डालना चारपाई पलंग आदि बुनना,दाह संस्कार,बांस की चटाई दीवार प्रारंभ करना आदि स्तंभ रोपण तांबा पीतल तृण काष्ट आदि का संचय करना आदि कार्यों का निषेध माना जाता है समुचित उपाय एवं पंचक शांति करवा कर ही उक्त कार्यों का संपादन करना कल्याणकारी होगा ध्यान रहेगा पंचर नक्षत्रों का विचार मात्र उपरोक्त विशेष कृतियों के लिए ही किया जाता है विवाह मंडल आरंभ गृह प्रवेश प्रवेश उपनयन आदि मुद्दों से तो पंचक नक्षत्रका प्रयोग शुभ माना जाता है पंचक विचार- दिनांक 02 को 23-25 से 07 को 01-43 बजे तक, 30 को 10-18 से 03 को 10-38 बजे तक पंचक है |
अधिक जानकारी के लिए संपर्क करे शर्मा जी - 9312002527,9560518227

"मां का आँचल"
कविता भड़ाना
"हे भगवान! दो महीने के लिए मुझे सहनशक्ति देना,
रात - दिन की रोका टोकी और जली कटी सुनने की हिम्मत देना"... पति हिमांशु के साथ गांव से आई अपनी रौबीली सास और ससुर को देखकर निशा ने ईश्वर से प्रार्थना की और चेहरे पर जूठी मुस्कान के साथ आवभगत करने लगी.... सरला जी यूपी के एक गांव की सरपंच है और बहुत ही दबंग प्रवृति की महिला भी, इकलौते बेटे को पढ़ाई के लिए दिल्ली शहर में भेजा और उसकी ही पसंद की लड़की से शादी भी करा दी...
सरला जी अपने पति शंकर जी के साथ अपनी दुनिया में व्यस्त रहती और साल में एक बार ही दोनों पति पत्नी,
दो महीने के लिए अपने बेटे के साथ रहने आते, वैसे हिमांशु भी गांव जाता रहता था, लेकिन दो साल से शादी के बाद कम ही जा पा रहा था, पर सरला जी को कोई शिकायत नहीं थी, वो अपने पति के साथ बेटे के यहां रहने आ जाती...
लेकिन उनकी रोक टोक और बिन मांगे दी गई सलाहों से शहर के परिवेश में पली बढ़ी बहू निशा को बहुत कौफ्त होती खैर बेचारी "कुछ दिनों की ही तो बात है" सोचकर झेल लेती.... आज हिमांशु के कुछ दोस्त खाने पर आने वाले है तो निशा शाम से ही अपनी कामवाली की सहायता से खाना बनाने में
लगी हुई है और इधर आदत से मजबूर सरला जी शुरू हो गई..."हम तो आज भी अकेले दस लोगों का खाना बना ले और ये आजकल की बहुएं चार लोगों का भी ना बना पा रही".... निशा को गुस्सा तो बहुत आया पर सास को देखकर हिम्मत पस्त हो गई.... घर में मां पिताजी की मौजूदगी की वजह से हिमांशु अपने दोस्तों के साथ बाहर से ही मदिरापान करके आया था और आते ही निशा को खाना लगाने के लिए कहा... सरला जी अपने पति के साथ पहले ही खा पीकर कमरे में आराम कर रही थी और हिमांशु भी अपने दोस्तों के साथ ड्राइंग रूम में गप्पे मारने लगा...
निशा खाना गर्म कर रही थी की तभी हिमांशु का एक दोस्त रसोई में पानी लेने आया और अपनी नशीली और गंदी निगाहों से निशा को घूरते हुए बोला, कहो तो हम कुछ मदद कर दे आपकी भाभी जान, इन नाजुक हाथों को भी कुछ आराम मिल जायेगा और कहकर निशा का हाथ सहलाने लगा... निशा ने विरोध के लिए मुंह खोला ही था की "तड़ाक" की आवाज आई, देखा सरला जी उस आशिक का भूत उतारने में लगी हुई है साथ ही उसे पकड़कर घसीटते हुए हिमांशु और उसके अन्य दोस्तों के पास ला पटका और गुस्से से दहाड़ती हुई बोली...
मेरी बहू के साथ बदतमीजी करने की तेरी हिम्मत कैसे हुई वो भी मेरे ही घर में, और तू बेशर्म, तूने पीना भी शुरू कर दिया और पीकर ऐसे दोस्तों को घर कैसे लेकर आया जिन्हे
किसी महिला से कैसे पेश आना चाहिए इतना भी नही पता, सरला जी का रौद्र रूप देखकर सारे दोस्त चुपचाप खिसक लिए...हिमांशु को तो जैसे सांप ही सूंघ गया, कुछ दिनों की दोस्ती पर भरोसा करके इस तरह के लोगों को घर में लाना कितना घातक हो सकता है, ये तो सोचा ही ना था...
अपनी मां से माफी मांगते हुए हिमांशु ने फिर कभी शराब नहीं पीने का वादा किया और निशा को भी सॉरी बोला...
निशा भी दौड़कर अपनी सास के गले लग गई और आज उसे उनमें जली कटी सुनाने वाली महिला की नहीं बल्कि फिक्र करने वाली मां की मूरत नजर आ रही है, जिसके आंचल में वो सुरक्षित है |
मूल नक्षत्र विचार-अगस्त 2023
दिनांक | शुरू | दिनांक | समाप्त |
06 | 02-54 | 08 | 01-16 |
15 | 13-38 | 17 | 19-58 |
25 | 09-14 | 27 | 07-15 |
अधिक जानकारी के लिए संपर्क करे शर्मा जी - 9312002527,9560518227

सास का बन्धन या आजादी
मैं तुम्हारी माँ के बंधन मे और नहीं रह सकती, मुझे अलग घर चाहिए जहाँ मैं खुल के साँस ले सकूँ।
पलक रवि को देखते ही ज़ोर से चिल्ला उठी।
बात बस इतनी थी कि सुलभा जी ने रवि और पलक को पार्टी मे जाता देख कर इतना भर कहा था कि वो रात दस बजे तक घर वापस आ जाए। बस पलक ने इसी बात को तूल दे दिया और दो दिन बाद ही उसने किरण के घर किटी मे उसे मकान ढूंढने की बात भी कह दी।
मुझे मम्मी जी की गुलामी मे रहना पसंद नहीं है ।
पलक, तुम्हारी तरह एक दिन मैं भी यही सोच कर अपनी सास से अलग हो गई थी। किटी ख़तम होते ही किरण पलक से मुख़ातिब थी।
तभी तो आप आज़ाद हो। पलक ने चहक कर कहा तो किरण का स्वर उदासी से भर गया, किरण पलक से दस वर्ष बड़ी थी।
नहीं,बल्कि तभी से मैं गुलाम हो गई, जिसको मैं गुलामी समझ रही थी वास्तव मे आज़ादी तो वही थी।
वो कैसे,
पलक.. जब मैं ससुराल मे थी दरवाज़े पर कौन आया, मुझे मतलब नहीं था क्योंकि मैं वहाँ की बहू थी। घर मे क्या चीज़ है क्या नहीं इससे भी मैं आज़ाद थी, दोनों बच्चे दादा-दादी से हिले थे। मुझे कहीं आने-जाने पर पाबंदी नहीं थी, पर कुछ नियमों के साथ, जो सही भी थे, पर जवानी के जोश मे मैं अपने आगे कोई सीमा रेखा नहीं चाहती थी। मुझे ये भी नहीं पसंद था कि मेरा पति आफिस से आकर सीधा पहले माँ के पास जाए।
तो!! फिर पलक की उत्सुकता बढ़ गई।
मैंने दिनेश को हर तरह से मना कर अलग घर ले लिया और फिर मैं दरवाज़े की घंटीं, महरी, बच्चों, धोबी, दिनेश सबके वक्त की गुलाम हो गई।
अपनी मरज़ी से मेरे आने-जाने पर भी रोक लग गई क्योंकि कभी बच्चों का होमवर्क कराना है, तो कभी उनकी तबीयत खराब है। हर जगह बच्चों को ले नहीं जा सकते। अकेले भी नहीं छोड़ सकते। तो मजबूरन पार्टियां भी छोड़नी पड़ती जबकि ससुराल मे रहने पर ये सब बंदिश नहीं थीं।
ऊपर से मकान का किराया और फालतू के खर्चे अलग, फिर दिनेश भी अब उतने खुश नहीं रहते।किरण की आँखें नम हो उठीं।
फिर आप वापस क्यों नहीं चली गयीं,
किस मुँह से वापस लौटती,
इन्होंने एक बार मम्मी से कहा भी था, पर पापा ने ये कह कर साफ़ मना कर दिया कि, एक बार हम लोगों ने बड़ी मुश्किल से अपने आप को संभाला है अब दूसरा झटका खाने की हिम्मत नहीं है, बेहतर है अब तुम वहीं रहो।
ओह!
पलक घर से बाहर क़दम रखना बहुत आसान है पर जब तक आप माँ-बाप के आश्रय मे रहते हैं आपको बाहर के थपेड़ों का तनिक भी अहसास नहीं होता, माँ-बाप के साथ बंदिश से ज़्यादा आज़ादी होती है पर हमें वो पसंद नहीं होती। एक बार बाहर निकलने के बाद आपको पता चलता है कि आज़ादी के नाम पर ख़ुद अपने पाँव मे जंज़ीरें डाल लीं। बड़ी होने के नाते तुमसे यही कहूंगी सोच-समझ कर ही ये क़दम उठाना।
मन ही मन ये गणित दोहराते हुए पलक एक क्षण मे निर्णय ले चुकी थी-उसे किरण जैसी गुलामी नहीं चाहिए। घर की ओर चलते बढ़ते कदमों के साथ साथ ही वो मन ही मन बुदबुदा रही थी, की घर पहुंचते ही सासू मां के पैर छूकर क्षमा मांग लूंगी और सदा उनके साथ ही रहूँगी।
मां बाप को साथ नही रखा जाता, मां बाप के साथ रहना होता है |
मांगलिक दोष विचार परिहार
वर अथवा कन्या दोनों में से किसी की भी कुंडली में 1,4,7,8 व 12 भाव में मंगल होने से ये मांगलिक माने जाते हैं,मंगली से मंगली के विवाह में दोष न होते हुए भी जन्म पत्रिका के अनुसार गुणों को मिलाना ही चाहिए यदि मंगल के साथ शनि अथवा राहु केतु भी हो तो प्रबल मंगली डबल मंगली योग होता है | इसी प्रकार गुरु अथवा चंद्रमा केंद्र हो तो दोष का परिहार भी हो जाता है |इसके अतिरिक्त मेष वृश्चिक मकर का मंगल होने से भी दोष नष्ट हो जाता है | इसी प्रकार यदि वर या कन्या किसी भी कुंडली में 1,4,7,9,12 स्थानों में शनि हो केंद्र त्रिकोण भावो में शुभ ग्रह, 3,6,11 भावो में पाप ग्रह हों तो भी मंगलीक दोष का आंशिक परिहार होता है, सप्तम ग्रह में यदि सप्तमेश हो तो भी दोष निवृत्त होता है |

खामोशी
अंजलि सिसोदिया
जो लोग मेरे बोलने से बहुत परेशान थे
मैने उनको तोहफ़े में ख़ामोशी दे दी
किसी बात पर अपनी राय नहीं देती
मैने चुप्पी अब अधरों पे धर ली
हां ,बहुत टोकते थे
कहते थे तुम कितना बोलती हूं
हर जगह ही अपना मुंह खोलती हो
हर बात पे खिखिलाती रहती हो
कभी चुप क्यों नहीं रह पाती हो
मैने भी ख़ामोशी से दोस्ती कर ली
हर बात को मानने की हामी भर ली
किसी बात पर विरोध जताती नहीं
अपनी राय किसी को बताती नहीं
उनको अब नई शिकायत हो गई
घर में इतनी उदासी क्यों है जी
क्या किसी की मौत हो गई
मैने भी ख़ामोशी से कह दिया
हां, मौत ही तो हो गई
मुस्कुराहट की खिलखिलाहट की
बेरोक,टोक बोलने की....
अपनी तरह कहने, सुनने की
एक इंसान से उसके तरह होने की
ये मौत नहीं तो फ़िर और क्या है…

मेरे घर का पेड़
प्रदीप कुमार शर्मा,जमशेदपुर
मैने अपना घर जमीन के आधे हिस्से में ही बनाया है। आधे को खाली ही रख छोड़ था। उसमें मौसमी फल जैसे आम, अमरूद, कटहल और बेल इत्यादि के पेड़ लगा रखा है। बचपन से ही मौसमी फल खाने का मैं शौकिन रहा हूं।
जब मैं नया नया यहां आया था। गर्मी का मौसम आ गया था। इस समय आम कटहल बेल खुब बाजार में मिल रहे थे। मैं रोज एक दिन छोड़कर लाता। खाता और उनके बीजों को खाली जमीन पर फेक देता।
कुछ समय बाद उस स्थान पर पौधे निकल आए जो देखने में नवजात बच्चे की तरह बहुत ही खुबसूरत लग रहे थे। मैने उन्हें ऐसे ही छोड़ दिया। वे बढ़ने लगे। बढ़ते बढ़ते आज इतने बड़े हो गये कि उसकी छांव में हम सब बैठकर गर्मी का खुब आनंद लेते।
मेरे दोस्त मित्र रिश्तेदार जो भी आते। उन्हीं की छांव में बैठने का आग्रह करते। वैसे भी मेरा दो कमरों का छोटा सा खपरैल मकान था। पेड़ों ने मकान के छत पर अपना छतरी फैला रखा था इस कारण अंदर का कमरा भी ठंडा रहता था पर जो भी आगंतुक आता घर में न बैठकर उनके छांव में ही बैठने की कोशिश करता।
मुझे भी उन पेड़ों से लगाव था। जब वे छोटे थे। मैंने उनकी खुब सेवा की थी। मैं उन्हें अपने घर के सदस्य के समान समझता था। इन पेड़ों के कारण ही मेरा घर स्वर्ग सा सुंदर दिखता था। किसी को पूजा के लिए आम का पत्ता चाहिए तो किसी को सावन की पहली सोमवारी को बेलपत्र। कोई अपनी नई ब्यायी बकरी को खिलाने के लिए कटहल का पत्ता मांगने चला आता।
हर महीना हर मौसम में पेड़ के पत्तों के लिए जरूरतमंदों का तांता लगा रहता। पेड़ों के कारण आसपास में हमारी अच्छी पहचान बन गयी थी। इस इलाके में दूर दूर तक कोई पेड़ पौधा नहीं था। जिसके पास जगह जमीन था उन्होंने एक इंच जगह नहीं छोड़ा था। चारों तरफ कंक्रीट के मकान ही दिखते थे।
कोई पथिक चलते हुए थक जाता तो अगल बगल कोई ठांव न मिलता सुरज की तेज रोशनी से बचने के लिए। उनके आश्रय में सुकुन पाने के लिए दौड़े चले आते। मैं ही एक गरीब था जिसके आंगन में ये तीनों विशालकाय पेड़ मेरे अभिभावक के रूप में खड़े थे। मुझे अपने अभिभावकों पर नाज था।
उनमें फल लगने लगे थे। सबसे पहले बेल जब फुलाता है। उसके फूलों की खुशबु आसपास के वातावरण को, मन को मोहित कर देता है। मधुमक्खियां रसास्वादन के लिए उसके आसपास मंडराने लगती हैं। बेल सेहत के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण फल है। हमने खुब बेल खाया। शर्बत बनाकर भी पिया। बेल खत्म होते होते आम में मंजर आ गए। साथ ही कटहल भी फुलाने लगा। मार्च में कटहल कुछ बड़े हुए तो हमलोगों ने सब्जियां बनाकर खाई और कुछ छोड़ दिया पकने के लिए।
आम पेड़ पर आ गए थे। गर्मी के बाद पहली बारिश होते ही आम पकने लगे। रोज पांच दस पके गीरते। आम खत्म होते होते कटहल जो छोड़ा था। वे पकने लगे। कटहल जब पकता है वह भीनी-भीनी खुशबु छोड़ता है। आज हमलोगों ने एक पका हुआ कटहल तोड़ा। ओह कितना मिठा है। मुंह में जाते ही संदेश मिठाई तरह मन को तृप्त कर देता है।
बाजार में भी आम कटहल बेल का फल बीक रहा था पर बहुत महंगा था। एक आध किलो से मन तो भरता नहीं। एक्स्ट्रा पैसे भी पाकेट में नहीं थे जो रोज रोज खरीदकर खाता। आज ये पेड़ नहीं होते तो हम भी विवश होकर दूसरों की तरह खरीदकर खाने को मजबूर होते।
मेरी पत्नी ने कितनी बार इन पेड़ों को काटकर हटा देने कै लिये कहा। पर मैं उनकी बातों को नजर अंदाज कर दिया करता। आज जब वो चटकारे लेकर उनके फलों को खाती है। मैं उसकी कही हुई बात याद दिला देता। वो बगले झांकने लगती है।

मेरी कहानी मेरी जुबानी
बिजेन्द्र यादव (69 Bn ssb )
ना देखा कोई दंगल ,ना गया कभी अखाडो मे
इस बार मेरी posting हुई थी सिक्किम के पहाडो मे
आज ना लिख रहा हूँ ,हीर ना राँझा
बस अपनी duty के अनुभव कर रहा हूँ साँझा
बल मुख्यालय से मिले order पर
साये की तरह रहना पड़ता है ,
हमे नेपाल , भूटान के border पर
आवागमन की स्थिती बहुत ही विकट थी
B.O.P हमारी ड़ोकलाम के निकट थी
कोई कल्पना नही एक एक शब्द लिखा है सच्चाई पर
यहा हमारी post थी तकरीबन 13 हजार फीट की ऊचाई पर
अंजान था किन्न किन्न हालातो से पड़ेगा वास्ता
अक्सर 3 से 4 दिन का होता है हमारा रास्ता
ना के बराबर होती है यहा oxygen की मात्रा
यही से प्रारम्भ होती है हमारी L.R.P. की य़ात्रा
मई ,जुन मे भी ये पर्वत रहते है ब्रफीले
मार्ग थे यहा के संकीरण, दूर्गमं और पथरीले
टेडी - मेडी थी ड़गर ,पर चलते रहना था मगर
ठंड के मारे हम सब ठिठुरने लगे
बार बार बर्फ पर फिसल कर गिरने लगे
भौगोलिक प्रस्थिती और वातावरण से थी लडाई
कभी हजारो मीटर खाई तो कभी घंटो की चडाई
सांस की वजह से हम हाफने लगे
ब्रफीली हवायो से हम कांपने लगे
बडी अनोखी थी ये तीन दिवसिय Walk
थोडी ख़ुशी हुई जब विचरण करते दिखे Yalk
फूँक फूँक कर रख रहे थे हम कदम
पर थम नही रहे थे कुदरत के सितंम
कायल थे हम भगवान तेरे इस रूप के
दुसरे दिन राहत मिली ,जब दर्शन हुये धूप के
तभी बादलो के दरमिया साजिश हुई
करवट बदली मौसम ने और घनघोर बारिश हुई
अवगत कराता हू आपको आने वाली रोको से
क्यी बार रूबरू होना पडा हमे यहा की जोंको से
जोंको ने भी अपना कर्तव्य निभाया सुकुन से
वो रक्त पीती रही जब तक जूते ना भर गये खून से
एक तो जटील मार्ग उपर से मौसम की मार
पर निश्चय अटल था नही मानी हमने हार
मंजिल करीब आते ही भूल गये
क्या थी परेशानी कितने हुये तंग
कैंप पहूचकर आयी ऐसी फीलिंग
जैसे जीत कर आये हो कोई जंग
भगवान की गुलक
उषा भारद्वाज
सब्जी वाले की आवाज सुनकर गीता बाहर निकली और उसको देखते ही ऐसे बोली, मानो बहुत दिनों से उसका इंतजार था। और यह सच भी था ये सब्जी वाला रोज गीता की कॉलोनी में आता था और सभी उससे सब्जी खरीदते थे। गीता ही नहीं बल्कि अधिकांश घरों को इसका इंतजार था।
गीता बहुत नम्र और भावुक ह्रदय की स्वामिनी है। उसके पास पहुंच कर पूछने लगी- "क्या हुआ था भैया ? 1 हफ्ते से क्यों नहीं आ रहे थे? बड़ी दिक्कत हो रही थी , ऐसे तो रोज ताजी सब्जी आपसे मिल जाती है।"- गीता ने मानो अपना पूरा दुखड़ा उससे रो दिया।
वह कराहती आवाज में बोला- मेरी तबीयत ठीक नहीं
थी । बहुत बुखार आ रहा है अभी भी ठीक नहीं है। लेकिन घर में अब खाने को कुछ भी नहीं बचा था। तो निकलना पड़ा। उसकी यह बात सुनकर गीता को बहुत दुख हुआ।
सब्जी वाले को गीता के इसतरह हाल पूंछने से अपनेपन का अह्सास हुआ । वो वहीं सर पर हाथ
रखकर बैठ गया। फिर बोला मैं बहुत दुखी हूं , मेरी बिटिया की शादी तय हो गई थी लेकिन पैसों की
कमी के कारण रुक गई। "
यह बात सुनकर गीता को उसकी बीमारी का राज पता चल गया । क्योंकि वह बहुत हंसमुख था उम्र तो तकरीबन 55-60 के करीब होगी लेकिन जिस तरह वह गा -गाकर सब्जी की विशेषता बताता उससे सब्जी लेने वाले भी उसकी तरफ आकर्षित हो जाते । सबको उसका इंतजार रहता था ।
गीता को उससे सहानुभूति हुई, इसलिए वह थोड़ी देर वहां रुक गई और पूछा-" कितने पैसे कम पड़ रहे हैं ?" सब्जी वाले ने एक गहरी सांस लेते हुए कहा जरूरी बर्तन और कपड़े देने के लिए पैसे नहीं है।"
गीता ने फिर पूछा - अंदाजा कितने रुपए की जरूरत है?
सब्जी वाला गीता की तरफ दयनीय दृष्टि से देखते हुए बोला -" मेम साहब इतनी महंगाई है कि छोटा सा बर्तन भी बहुत महंगा आ रहा है हमारी छोटी लड़की ने जोड़ा था करीबन आठ- दस हजार रुपए हो तो हमारी बिटिया ब्याह जाएगी । मगर इतने रुपए तो हम कभी इकट्ठा नहीं कर पाएंगे । मेरी पत्नी कई साल पहले गुजर गई मेरी मां बूढ़ी है जो बीमार रहती हैं। दो बेटियां एक बेटा है वो अभी छोटा है। इन सब का खर्च उठाने वाला अकेला मैं हूं। क्या क्या करूं कैसे इंतजाम होगा ? यही चिंता खाए जा रही है।"
इतना कहते-कहते सब्जी वाले का गला रुंध गया।
गीता उसकी बात सुनकर चुप रही। फिर बोली -"भगवान सबकी मदद करता है आपकी भी करेगा ।"
थोड़ी देर बाद वह चला गया।
गीता के मन में सब्जी वाले की बात चलती रही। उसने अपने पति गौरव से पूरी बात बताई और अपनी इच्छा भी व्यक्त की, कि वह सब्जी वाले की कुछ मदद करना चाहती हैं। गौरव गीता की बात सुनते ही समझ गया था कि गीता उसकी मदद जरूर करेगी । गीता दूसरों की मदद करने के लिए हमेशा तैयार रहती है वह चाहे कोई अपना जानने वाला हो या अपरिचित। इसलिए गौरव हमेशा उसका साथ देता है। आज भी उसने गीता से पूछा - तुम कितना देना चाहती हो गीता ने कहा - देखती हूँ।"
गौरव ने आश्चर्य से गीता की तरफ देखा - इतने रुपए ?
गीता समझ गई कि इतने रुपए अचानक बजट से निकालना मुश्किल है। फिर भी वह मुस्कुराते हुए गौरव से बोली - आप बस मुझे मदद की इजाजत दे दो। बाकी इंतजाम मैं कर लूंगी।"
गौरव ने उसकी तरफ आश्चर्य से देखते हुए कहा- इसमें इजाजत की क्या बात है , हमेशा तुम्हारे साथ हूं । लेकिन फिर भी सोचना तो है।"
तभी गीता अंदर वाले कमरे में गई और कुछ ही पलों में वहां से आई तो उसके हाथ में एक गुल्लक थी।
गौरव ने पूछा-"यह क्या है ?"
गीता ने कहा -"यही तो है मेरा इंतजाम।"
गौरव ने कहा- मतलब......।"
गीता ने कहा- मतलब , यह मेरी भगवान की गुल्लक है। और मैं इसमें अपनी बचत से कुछ रुपए हर महीने
डालती रहती हूं। मुझे पक्का यकीन है कि इसमें आठ- दस हजार तो हो ही गए होंगे ।
गौरव को बहुत आश्चर्य हुआ। उसने आश्चर्य मिश्रित शब्दों में पूछा- " यह भगवान की गुल्लक का ख्याल तुमको कैसे आया ?
गीता बड़े रहस्यमयी अंदाज में बोली- दो साल पहले की बात है। बगल वाली आंटी हैं ना, वह बता रही थीं कि भगवान हमको बहुत कुछ देता है, बहुत कुछ दिया है । तो हमें भी, बहुत नहीं तो, कुछ तो करना चाहिए । इसलिए हर महीने अपनी सैलरी से कुछ पैसे भगवान के लिए निकालने चाहिए । फिर भगवान के कार्यों में लगा देना चाहिए। इससे पुण्य मिलता है । उनकी यह बात मुझे समझ में आ गई । तब से हर महीने इस बॉक्स में चार- पांच सौ रुपए जमा कर देती हूं । अब भगवान खुद चलकर तो लेने आएंगे नहीं , शायद इसी रूप में लेना चाह रहे होंगे। तो फिर इसमें हम पीछे क्यों हटें।"
इतना कहकर गीता गुल्लक में रखे रुपए गिनने लगी।
गीता की यह बात सुनकर गौरव को बहुत अच्छा लगा वह बड़े स्नेहिल अंदाज में गीता को देखने लगा । उसके पास शब्द नहीं थे कि गीता से कुछ तर्क कर सके ।
सुर्य उदय- सुर्य अस्त अगस्त-2023
दिनांक | उदय | दिनांक | अस्त |
1 | 05-43 | 1 | 19-09 |
5 | 05-46 | 5 | 19-06 |
10 | 05-48 | 10 | 19-02 |
15 | 05-51 | 15 | 18-57 |
20 | 05-54 | 20 | 18-52 |
25 | 05-56 | 25 | 18-47 |
30 | 05-59 | 30 | 18-42 |
सुभाष चंद्र बोस एक भारतीय स्वतंत्रता सेनानी रहे हैं, जो अपनी वकालत और समाजवादी नीतियों के लिए जाने जाते थे | उन्होंने 'तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा' और 'जय हिंद' जैसे नारे दिए |

हाऊस वाईफ चौबीस घंटे की नौकरी
नरेंद्र जोशी
आज लक्ष्मी के घर में उसकी ननद रोमी की शादी है। लक्ष्मी की एक जेठानी और एक देवरानी है दोनों ही बडी कंपनी में नौकरी करती हैं, तनख्वाह भी अच्छी मिलती है। लक्ष्मी एक हाऊस वाईफ है वह भी चौबीस घंटे बिना तन्ख्वाह की नौकरी करती है। उसके बिना किसी को एक कप चाय भी नसीब नहीं होती, सुबह पांच बजे उठने से लेकर रात के दस बजे सोने तक, पूरे घर के छोटे बडे काम वही करती है। किसी को कुछ भी चाहिए, "भाभी मेरा लंच पैक कर दो, कोई लक्ष्मी मेरी चाय बना दो," ये सिलसिला पूरे चौबीस घंटे चलता रहता है, और कोई उसको कभी नहीं पूछता कि, उसे क्या चाहिए? फिर भी बिना शिकायत के, वह अपना सारा काम बहुत ही ईमानदारी के साथ करती रहती है। आज घर में मेंहदी का फंक्शन है सब सजने संवरने में लगे हुए हैं, लक्ष्मी ही सारे आने जाने वाले मेहमानों को चाय नाश्ता पानी पूछ रही है, वह बहुत ही समझदार सुलझी हुई और होशियार महिला है।
उसने एक साधारण सी साडी पहनी, और उसी में वह बला की खूबसूरत लग रही है। सारी रात तो नाचने-गाने में निकल गयी, दूसरे दिन का सारा फंक्शन लाॅज में है। वहां पर उसको थोड़ा आराम मिल गया जब बारात आई तो, सासू मां ने अपने घर वालों को रिश्तेदारों से मिलवाना शुरू किया "ये मेरी बडी बहू, ये छोटी बहू, दोनों ही बडी कंपनी में नौकरी करती हैं, मेरी बेटी ने भी अभी पढाई पूरी की है, उसकी भी बहुत जल्दी नौकरी लग जायेगी, और ये मेरे तीनों बेटे भी बडी कंपनी में नौकरी करते हैं, ऐ मेरी बीच वाली बहु है अधिक पढी लिखी नहीं है, तो इसलिए नौकरी नहीं करती है, बस थोड़ा बहुत
घर का काम कर लेती है, हाऊस वाईफ है न, चलो मुलाकात तो हो गई, अब शादी की रश्मों रिवाज
पूरे करते हैं।" सब अपने अपने कामों में लग गये, जयमाला के बाद जब दोनों परिवार के लोग खाने के लिए एक साथ बैठे हुए थे, तो लक्ष्मी के देवर राहुल ने देखा सब लोग हैं, केवल छोटी भाभी वहां पर नहीं है, वह अपनी भाभी की बहुत इज्जत करता है, वह जल्दी से उठा और भाभी को लेकर आया, उसने वहां पर रखे माइक को उठाया और एनाउंसमेंट करते हुए बोला "कॄपया सब ध्यान दें, आज मैं आप सब लोगों को अपने घर के किसी खास सदस्य से मिलवाना चाहता हूँ, प्लीज जोरदार तालियों से उनका स्वागत कीजिये, मेरी छोटी भाभी हमारे घर की शान हमारी घर की गृहमंत्री, जिसके बिना हमारे घर का एक पत्ता भी नहीं हिलता, जो सुबह के पांच बजे से लेकर रात के दस बजे तक, सबकी पंसद नापसंद का ध्यान रखती है, और उफ तक नही करती, हम सब तो अपनी मर्जी के मालिक हैं, क्योंकि हम नौकरी जो करते हैं, लेकिन मेरी भाभी चौबीस घंटे बिना तन्ख्वाह के, सबसे बडी कंपनी में नौकरी करती हैं, मेरी मम्मी ने उनकी मुलाकात आप लोगों से ठीक से नहीं करवाई, शायद उनको जरूरी न लगा हो, मेरे लिए तो वह सबसे खास हैं और हमेशा खाश ही रहेगीं, मेरी लक्ष्मी भाभी"
सब लोग जोर जोर से ताली बजाने लगे लक्ष्मी चुपचाप एक जगह खडी थी उसे मन ही मन अपने लिए ये सम्मान के शब्द सुनकर बहुत ही अच्छा लग रहा था सब आदमी लोग खडे हुए और लक्ष्मी के पास जाकर बोले बेटी बाहर नौकरी करके या पैसे कमाने से कोई भी बडा नहीं बनता सबसे कठिन नौकरी तो घर संभाल कर रखने की होती है जिसे हर कोई तुम्हारी तरह नहीं संभाल सकता क्योंकि यहाँ पर एम डी , मैनेजर, एमपलाय सब हम खुद ही होते हैं बाहर कंपनी में तो सब सैटिंग होती है अपने काम की जानकारी होनी चाहिए बस काम ही तो करना है हम लोग ही हाऊस वाईफ की परिभाषा को गलत ढंग से परिभाषित करते हैं ये तो सबसे बडी और जिम्मेदारी वाली नौकरी होती है एक छोटी सी गलती से सारा परिवार बरबाद हो जाता है आज लक्ष्मी को अपने आप पर गर्व महसूस हो रहा था उसने अपने से बडों के पैर छूकर सबसे आशीर्वाद लिया और फिर से चुपचाप अपने काम में लग गई सारी घर की औरतें नाक भौंयें सिकोड़ती रह गई किसी ने इतनी हिम्मत नहीं दिखाई कि लक्ष्मी की तारीफ में दो शब्द बोल सके ।
मैं अपनी कहानी में हर बार यही सुझाव देता हूँ, जिस दिन औरत औरत की इज्जत करने लग जायेगी उस दिन किसी में हिम्मत नहीं होगी किसी औरत की बेइज्जती करने की
"किसी महान व्यक्ति ने ठीक ही कहा अगर बडा बनना है तो इतने बडे बनो कि जब तुम खडे हों तो कोई भी बैठा न रहे "
कुछ प्रमुख आंदोलन - चम्पारण सत्याग्रह – 1917,
खेड़ा सत्याग्रह – 1918,अहमदाबाद मिल मजदूर आंदोलन – 1918,
खिलाफत आन्दोलन – 1920,असहयोग आंदोलन – 1920.
नमक आंदोलन (सविनय अवज्ञा आंदोलन) – 1930,
भारत छोड़ो आंदोलन – 1942.

एक प्रेरक प्रसंग
एक पिता पुत्र साथ-साथ टहलने निकले, वे दूर खेतों की तरफ निकल आये, तभी पुत्र ने देखा कि रास्ते में, पुराने हो चुके एक जोड़ी जूते उतरे पड़े हैं, जो संभवतः पास के खेत में काम कर रहे गरीब मजदूर के थे। पुत्र लक्ष्मी कांत को मजाक सूझा उसने पिता से कहा - क्यों न आज की शाम को थोड़ी शरारत से यादगार बनायें, आखिर मस्ती ही तो आनन्द का सही स्रोत है। पिता ने असमंजस से बेटे की ओर देखा । पुत्र बोला - हम ये जूते कहीं छुपा कर झाड़ियों के पीछे छुप जाएं। जब वो मजदूर इन्हें यहाँ न पाकर घबराएगा तो बड़ा मजा आएगा। उसकी तलब देखने लायक होगी, और इसका आनन्द मैं जीवन भर याद रखूंगा।
पिता, पुत्र की बात को सुनकर गम्भीर हुये और बोले - बेटा ! किसी गरीब और कमजोर के साथ उसकी जरूरत की वस्तु के साथ इस तरह का भद्दा मजाक कभी न करना। जिन चीजों की तुम्हारी नजरों में कोई कीमत नहीं, वो उस गरीब के लिये बेशकीमती हैं। तुम्हें ये शाम यादगार ही बनानी है, तो आओ आज हम इन जूतों में कुछ सिक्के डाल दें और छुप कर देखें कि इसका मजदूर पर क्या प्रभाव पड़ता है। पिता ने ऐसा ही किया और दोनों पास की ऊँची झाड़ियों में जाकर में छुप गए। मजदूर जल्द ही अपना काम पूरा कर जूतों की जगह पर आ गया। उसने जैसे ही एक पैर जूते में डाला उसे किसी कठोर चीज का आभास हुआ, उसने जल्दी से जूता हाथ में लिया और देखा कि अन्दर कुछ सिक्के पड़े थे। उसे बड़ा आश्चर्य हुआ और वो सिक्के हाथ में लेकर बड़े गौर से उन्हें देखने लगा। फिर वह
इधर-उधर देखने लगा कि उसका मददगार शख्स कौन है ? दूर-दूर तक कोई नज़र नहीं आया, तो
उसने सिक्के अपनीं जेब में डाल लिए। अब उसने दूसरा जूता उठाया, उसमें भी सिक्के पड़े थे। मजदूर
भाव विभोर हो गया। वो घुटनो के बल जमीन पर बैठकर आसमान की तरफ देख फूट-फूट कर रोने लगा। वह हाथ जोड़कर बोला - हे भगवान् ! आज आप ही किसी रूप में यहाँ आये थे, समय पर प्राप्त इस सहायता के लिए आपका और आपके माध्यम से जिसने भी ये सहायता दी, उसका लाख- लाख धन्यवाद। आपकी सहायता और दयालुता के कारण आज मेरी बीमार पत्नी को दवा और भूखे बच्चों को रोटी मिल सकेगी। तुम बहुत दयालु हो प्रभु ! आपका कोटि-कोटि धन्यवाद।
मजदूर की इन बातों को सुन, बेटे की आँखें भर आयीं। पिता ने पुत्र को सीने से लगाते हुयेे कहा - क्या तुम्हारी मजाक मजे वाली बात से जो आनन्द तुम्हें जीवन भर याद रहता उसकी तुलना में इस गरीब के आँसू और दिए हुये आशीर्वाद तुम्हें जीवन पर्यंत जो आनन्द देंगे वो उससे कम है, क्या ? पिताजी.. आज आपसे मुझे जो सीखने को मिला है, उसके आनंद को मैं अपने अंदर तक अनुभव कर रहा हूँ। अंदर में एक अजीब सा सुकून है। आज के प्राप्त सुख और आनन्द को मैं जीवन भर नहीं भूलूँगा। आज मैं उन शब्दों का मतलब समझ गया, जिन्हें मैं पहले कभी नहीं समझ पाया था। आज तक मैं मजा और मस्ती-मजाक को ही वास्तविक आनन्द समझता था, पर आज मैं समझ गया हूँ कि, लेने की अपेक्षा देना कहीं अधिक आनंददायी है।
चौघड़िया मुहूर्त
चौघड़िया मुहूर्त देखकर कार्य या यात्रा करना उत्तम होता है। एक तिथि के लिये दिवस और रात्रि के आठ-आठ भाग का एक चौघड़िया निश्चित है। इस प्रकार से 12 घंटे का दिन और 12 घंटे की रात मानें तो प्रत्येक में 90 मिनट यानि 1.30 घण्टे का एक चौघड़िया होता है जो सूर्योदय से प्रारंभ होता है|
ग्रह स्थिति अगस्त-2023
ग्रह स्थिति - दिनांक 03 को शुक्र पश्चिम अस्त,दिनाक 07 को शुक्र कर्क में,दिनांक 17 को सूर्य सिंह मे, शुक्र पूर्व उदय,दिनांक 18 को मंगल कन्या मे,दिनांक 23 को बुध वक्री,दिनांक 24 को बुध पश्चिम अस्त |
वास्तविक उन्नति भगवान (कृष्ण) को जानना है
ईश्वर अनंत है,अतः उनके नाम भी अनंत होने चाहिए| उदाहरणार्थ श्री कृष्ण को कभी-कभी यशोदा नंदन, देवकीनंदन, वसुदेवनंदन या नंदनंदन, गोविंद, गोपाल, पार्थसारथी, नटवरनागर, गोविंदवल्लभ,राधेश्याम,राधे रसिकबिहारी,बांकेबिहारी आदि आदि कहा जाता है|पूरा पढ़ने के लिए क्लिक करे -
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मानसिक श्रम शारीरिक श्रम
मुकेश वर्मा
भारत में जब कोई युवा किसी प्रतियोगी परीक्षा को पास करता है तब उसकी सफलता की कहानी बताते समय यह बताया जाता है कि, इसके पिताजी रिक्शा चलाते थे या होटल में प्लेट साफ करते थे,और देखिए आज उनका बेटा आईएएस/डॉक्टर/CA बन गया है ।
पहली चीज, IAS PCS भी एक वही पद है, गुलामी का नेताओ की, और CA मतलब संसार का सबसे ब्रीलयन्ट दिमाग, काले पैसे को कैसे सफेद किया जाए इसी में लगा रहता है इस पूरे विवरण में जो विचार है वह यह है की रिक्शा चलाना या होटल में प्लेट साफ करना नीचा और छोटा काम है, और आईएएस ऊंचा होता है।
असल में भारत में कामों को लेकर व्यक्ति की इज्जत और बेइज्जती निर्धारित होती है, और इसके पीछे है अंग्रेजी मानसिकता !!!
प्लेट धोने वाले और रिक्शा चलाने वाले की इज्जत नहीं होगी,आईएएस की इज्जत होगी !!!
इसलिए भारत में शरीर से काम श्रम करना हमेशा नीच कर्म और प्रशासन शासन धनवान बनना उच्च कार्य माना गया है। भारत के छात्र जो विदेशों में रहकर पढ़ते हैं, वह वहां होटल में पार्ट टाइम वेटर का काम करते हैं अपनी पढ़ाई का खर्चा निकालते हैं । अमेरिका में रहने वाले एक सदस्य ने मुझे बताया कि अमेरिका में हमारे रेस्टोरेंट में जब कोई अमेरिकी आता था और हम उनसे पूछते थे आज आप कैसे हैं तो वह बहुत शालीनता से जवाब देता था हाथ मिलाता था । लेकिन जब अमेरिका में रहने वाला कोई
भारतीय आता था तो वह हमारे सवाल का जवाब देने की बजाय सीधा मेन्यू पढ़ने लगता था। और
ऑर्डर देने लगता था उसे हमसे बात करने में अपनी तौहीन लगती थी । भारत में बहुत सारे बच्चे इसलिए भी आत्महत्या करते हैं, क्योंकि हमने उन्हें सिखाया है कि यदि तुम डॉक्टर इंजीनियर आईएएस आईपीएस नहीं बने तो तुम्हारी जिंदगी बेकार है। अब समाज में ना तुम्हारी इज्जत होगी ना तुम्हें पैसा मिलेगा !!!
व्यक्ति की इज्जत उसके इंसान होने के कारण करने की बजाए, हम इज्जत उसके पद या उसके पैसे की करते हैं। समाज में हर काम जरूरी है, यदि कचड़ा उठाने वाला कचड़ा न उठाएं तो और 1 साल न उठाएं तो ?? यदि खेती करने वाला खेती न करे तो ?????
जितनी जरूरत आपको आईएएस आईपीएस डॉक्टर इंजीनियर या कारपोरेट में काम करने वाले या बैंकर अथवा फिनेंशियल एक्सपर्ट की है । उतनी ही जरूरत कार मैकेनिक प्लंबर स्वीपर कॉबलर टैक्सी ड्राइवर किसान और मजदूर की भी है। लेकिन आपके दिमाग में श्रमण विरोधी संस्कार भर दिया गया है । जिसके मुताबिक मानसिक श्रम श्रेष्ठ है और शारीरिक श्रम करने वाले नीच जात के होते हैं !!!
हम मेहनतकश को जीवन भर अपमानित करते हैं और उसकी जिंदगी को सजा बना देते हैं ।
इसलिए हमें कभी इस बात को बताते समय कि इस आईएएस के पिता रिक्शा चलाते हैं यह नहीं जताना चाहिए कि देखो पिताजी कितने छोटे हैं और बेटा कितना बड़ा हो गया।
क्योंकि किसी भी लिहाज से रिक्शा चलाना छोटा काम और कुर्सी पर बैठकर काम करना ऊँचा काम नहीं हो सकता !!! ईस्वर ने सभी के लिए कोई न कोई, कार्य चुना है,ईमानदारी, मेहनत और लगन से कीजिये, जब तक ईस्वर ने वह काम आपको सौंपा है,जिसदिन आप उस काबिल नहीं हो गए, वही काम कोई और करेगा, किन्तु करेगा अवश्य । इंसान के चेहरे बदलते रहते हैं, कर्म तो करना ही होगा सोचना पड़ेगा।।
स्वयं सिद्ध मुहूर्त
स्वयं सिद्ध मुहूर्त चैत्र शुक्ल प्रतिपदा वैशाख शुक्ल तृतीया अक्षय तृतीया आश्विन शुक्ल दशमी विजयदशमी दीपावली के प्रदोष काल का आधा भाग भारत में से इसके अतिरिक्त लोकाचार और देश आचार्य के अनुसार निम्नलिखित कृतियों को भी स्वयं सिद्ध मुहूर्त माना जाता है बडावली नामी देव प्रबोधिनी एकादशी बसंत पंचमी फुलेरा दूज इन में से किसी भी कार्य को करने के लिए पंचांग शुद्धि देखने की आवश्यकता नहीं है परंतु विवाह आदि में तो पंचांग में दिए गए मुहूर्त व कार्य करना श्रेष्ठ रहता है।
ध्येय वाक्य
भारत सरकार- सत्यमेव जयते,
लोक सभा-धर्मचक्र प्रवर्तनाय,
उच्चतम न्यायालय-यतो धर्मस्ततो जयः

कंगन
देवस्मिता दास
आज सुजाता सुबह जल्दी ही उठ गई, आज घर में बहुत बड़ा दिन था । विनोद की बहन नीलू की शादी थी ।विनोद नाश्ता करके शादी वाले हाल की तरफ़ निकल गया । नीलू भी ब्यूटी पार्लर की तरफ़ निकल गई । दस बजे तक सबने पहुँचना था तो सुजाता जल्दी जल्दी हाथ चलाने लगी। दो साल की उसकी बिटिया तनु जब बार बार माँ को तैयार होने में देर कराने लगी तो सुजाता ने उसके हाथ में खिलौनों की टोकरी पकड़ा कर उसे बिस्तर पर बिठा दिया और स्वयं इत्मीनान से तैयार होने लगी । आख़िर बहू है इस घर की सबकी नज़र उस पर भी तो होगी । निर्मला उसकी सासु माँ ने आकर बताया कि नीचे गाड़ी आ गई है । जल्दी से तनु को तैयार कर दो , मैं तुम्हारा कमरा ठीक कर देतीं हूँ ।
सुजाता तनु को तैयार करने में व्यस्त हो गई और निर्मला जल्दी जल्दी बिखरा कमरा समेटने लगी ।उठाकर तनु के खिलौनों की टोकरी अलमारी के उपर रखी । सुजाता ने तनु को सुन्दर सी घाघरा चोली पहनाई और झटपट दोनों गाड़ी में बैठ गई । गाड़ी हाल की तरफ़ चल पड़ी ।
तभी सुजाता का ध्यान अपनी सुनी कलाई पर गया और उसके मुँह से हाय राम !!जल्दी जल्दी में कंगन पहनना तो भूल गई ।झट से उसने अपनी बाज़ू साड़ी में छुपा ली । सुजाता कंगन पहनना नहीं बल्कि वो कंगन पहनना भूल गई थी जो सब गहनों में सबसे ज़रूरी थे । जो इस घर की किसी परम्परा को सँभाले हुए थे । एक धरोहर की भाँति एक बहू से दूसरी बहू के हाथ में थमाये जा रहें थे । यह कब से चला आ रहा था यह तो उसकी सास को भी नहीं पता था ।जब वो चार साल पहले इस घर की बहू बनकर आई
तो उसके हाथ में कंगन देते हुए निर्मला ने कहा था…सुजाता इसे सम्भाल कर रखना और हर तीज त्योहार शादी ब्याह में पहनना ।तब विनोद के पापाजी भी साथ खड़े मुसकराते हुए बोले थे, हाँ बहू सास की बात को पल्लू की गाँठ में बाँध लेना । बहुत ही खुश प्रकृति के व्यक्ति थे । अभी दो साल पहले एक दुर्घटना में अचानक से परिवार को अकेला छोड़ गये।
माँ जी तो बिलकुल टूट गई थी । सुजाता ही थी जिसने सास को ही नहीं बल्कि सारा घर बड़े अच्छे से सम्भाल लिया था । जायदाद के नाम पर बस यही एक घर और नीलू की शादी के नाम का एक प्लाट ख़रीदा था बस उससे ज़्यादा कुछ नहीं छोड़ कर गये थे ।
विनोद जो कि अस्पताल में बतौर एक नर्स की नौकरी पर कार्यरत था । पापा के जाने के बाद विनोद के कंधों पर परिवार के अलावा बहन और माँ के खर्चो की भी ज़िम्मेदारी आ गई थी ।
मन से शायद इस ज़िम्मेदारी के लिए तैयार नहीं था तो ग़ुस्सैल और चिड़चिड़ा सा हो गया था । सुजाता विनोद के ग़ुस्से से बहुत डरती थी ।इसलिए पुरी कोशिश करती थी कि विनोद तक कोई तनाव वाली बात ना ही जाये । एक सुघड़ और समझदार बहू के सभी फ़र्ज़ बड़े अच्छे से निभा रही थी । निर्मला भी सुजाता को बहुत प्यार सम्मान देती थी ।शादी में पुरा समय सुजाता विनोद और निर्मला से अपनी कलाई छुपाती रही । शाम को शादी से निपट कर घर आकर जब वो अपने गहने डिब्बे में रखने लगी तो उसकी चीख निकल गई । कंगन डिब्बे में नही थे । दो मिनट सुजाता जैसे पत्थर सी हो गई ।फिर जल्दी से ख़ुद को सम्भाल पागलों की तरह कंगन ढूँढने लगी ।कंगन तो कहीं भी नहीं थे । अलमारी बिस्तर पलंग के नीचे तनु की खिलौने की टोकरी हर जगह निराशा ही हाथ लग रही थी । सुजाता ने झट से कमरे का दरवाज़ा बन्द किया और फूट फूट कर रोने लगी । कंगन अच्छे ख़ासे भारी थे । एक मध्य वर्गीय परिवार के लिए एक बहुत बड़ा आधार मुश्किल वक़्त के सहारे जैसे थे । सुजाता ने अपनी प्यारी सहेली कोमल को फ़ोन कर सारी बात बताई । उसने एक समझदार सहेली की तरह सलाह दी कि जाकर अपने पति और सास को सारी बात बता दो । वो सब मिलकर इस समस्या का हल निकाल सकते हैं ।
सुजाता विनोद को कैसे बताये वो तो अपने होंठों पर उसका ज़िक्र लाने से भी डर रही थी ।मायके जाकर माँ से भी बात की तो माँ ने भी यही सलाह दी परिवार की धरोहर खोईं है तुमने, भले ही इसमें तुम्हारी गलती है या नहीं लेकिन बताना तुम्हारा फ़र्ज़ है ।दिन बीतते गये राज यह सीने में दफ़्न उसे हर वक़्त सालता रहा ।
शादी ब्याह त्योहारों पर कंगन भारी है पहनने का मन नहीं कहकर सासु माँ को टालती रही । पति को बताने का कई बार मन भी किया, लेकिन उसके ग़ुस्सा चीखना चिल्लाना घर में क्लेश ऐसा ख़याल आते ही उसने ख़ुद को रोक लिया । इसी बीच सुजाता घर खर्च से बचने वाले पैसों को जोड़ने लगी । अपनी छोटी छोटी ज़रूरतों को मारने लगी , इच्छाओं को दबाने लगी , यह जानते हुए भी कंगन ख़रीदने भर की राशि वो कभी जुटा नहीं पाएगी । फिर भी एक आशा से ख़ुद को बांधे वो सालो आगे निकल आई ।
बिटिया तनु इक्कीस बरस की हुई तो अपने लिए इंजीनियर लड़का ढूँढ लाई । लड़का आस्ट्रेलिया जा रहा था और तनु शादी के बाद उसके साथ जाना चाहती थी ।
विनोद और सुजाता को घर बार सब अच्छा लगा तो महीने भर में तनु की विदाई की तैयारी शुरू कर दी । शादी के ख़र्चों के साथ साथ गहनों का भी इन्तज़ाम करना था । विनोद इस बड़े खर्चे के लिए अभी तैयार नहीं था । बिटिया ने शादी का फ़ैसला उसकी योजना से कुछ पहले ले लिया था । माँ ने सलाह दी बेटा तू चिंता मत कर हम वो ख़ानदानी कंगन बेच देंगे । तुम्हारा तो कोई बेटा है नहीं जो आगे बहू आयेगी । सुजाता ने जब यह सुना तो उसका शरीर काँपने लगा । बरसो से दबे राज का पर्दाफ़ाश होने जा रहा था । गुनाह के कटघरे में सवालों की बौछार में ख़ुद को देखने लगी । जल्दी कोमल को फ़ोन किया कि घर आजा आज मुझे तेरी ज़रूरत है । जल्दी से जाकर जमा किये पैसे भी गिनने लगी । चालीस हज़ार ही जोड़ पाई थी, पाई पाई बचाकर इतने बरसों में… पैसे हाथ में लेकर खड़ी थी कि तभी जगदीश जो कि घर की सफ़ेदी पेंट कर रहा था आकर बोला… दीदी जी आपके कमरे की अलमारी बहुत भारी है । थोड़ा खींचने में मदद करवा दो । सुजाता ने कहा ठीक है मैं आती हूँ । रूपये हाथ में दबाये सुजाता जगदीश की मदद करने आ गई । दोनों ने मिलकर जैसे ही अलमारी खिसकाई तो सुजाता के चेहरे पर हल्की सी मुस्कान आई । धूल और जाले से भरे नन्ही तनु के कुछ खिलौने अलमारी के पीछे बीच राह में अटके पड़े थे ।
शायद वो उस टोकरी से गिरे थे जो अक्सर वो उपर रखकर हाथ से धक्का देकर पीछे करते थे । जगदीश ने कहा दीदी जी आप अपना काम कर लीजिए यह सब मैं साफ़ कर लूँगा । सुजाता रूपये उठा कर चलने लगी जगदीश उठा उठा कर चीजें एक तरफ़ फेंकने लगा । एक ठक कीं आवाज़ ने सुजाता के पैरों को रोक लिया… यह आवाज़ कहाँ से आई जगदीश ?? सुजाता ने चौकन्ना होकर पूछा । दीदी जी यह कोई गहनों वाला पाउच है यहाँ से आई । सुजाता को याद आया इस पाउच के साथ अक्सर तनु खेलती रहती थी । माँ की तरह कुछ ना कुछ उसमें डालती रहती थी । सुजाता ने जैसे ही उस धूल से भरे पाउच को खोला तो आँखें उसकी फटी की फटी रह गईं । दोनों कंगन में आज भी वैसी ही चमक थी जो उसने पच्चीस साल पहले देखी थी । कंगन हाथ में थे सुजाता के विश्वास को यक़ीन नहीं आ रहा था ।
दो साल की तनु जो उसके साथ बैठी खेल रही थी उसने कब माँ के कंगनो को उठाकर पाउच में डाल दिया और पाउच अलमारी के पीछे कहीं अटका रहा कभी पीछे ध्यान ही नहीं गया ।वो फूट फूट कर रोने लगी । उसका रोना सुनकर सभी भाग कर आ गये । विनोद ने जगदीश की तरफ़ देखा वो भी निरूतर सा देख रहा था । तभी कोमल आ गई और आकर सुजाता के पास बैठ कर बोली क्या हुआ ?? सुजाता ने उसके हाथ में वो पाउच पकड़ा दिया । कोमल ने जब सारी बात बतानी शुरू की तो विनोद और निर्मला के चेहरे हैरान से सुजाता को देख रहे थे ।
निर्मला ने सुजाता को गले लगा लिया और प्यार करते हुए बोली पति को ना सही मुझे तो बता सकती
थी । कब मैंने तुझमें और नीलू में फ़र्क़ किया । विनोद भी अपने ग़ुस्से की वजह से थोड़ा शर्मिंदा दिख रहा था और सोच रहा था……काश उसने ग़ुस्से के साथ साथ पत्नी को विश्वास भी दिया होता । माँ ने कहा देख लिया अपने ग़ुस्से का परिणाम सालो तक बहू भीतर ही भीतर घुटती रहीं । विनोद ने सुजाता को हाथों से उठाकर खड़ा किया और बोला चलो अभी बाज़ार चलते है और आज तुम्हारे इन जमा किये पैसों से तुम्हारी दबीं सभी इच्छाओं को पुरा करते हैं ।
सास ने बडे प्यार से सुजाता के हाथ में वो कंगन पहनाकर उसका माथा चूम लिया..।।
सर्वार्थ सिद्धि योग अगस्त-2023
दैनिक जीवन में आने वाले महत्वपूर्ण कार्यों के लिए शीघ्र ही किसी शुभ मुहूर्त का अभाव हो,किंतु शुभ मुहर्त के लिए अधिक दिनों तक रुका ना जा सकता हो तो इन सुयोग्य वाले मुहर्तु को सफलता से ग्रहण किया जा सकता है | इन से प्राप्त होने वाले अभीष्ट फल के विषय में संशय नहीं करना चाहिए यह योग हैं सर्वार्थ सिद्धि,अमृत सिद्धि योग एवं रवियोग | योग्यता नाम तथा गुण अनुसार सर्वांगीण सिद्ध कारक है|
अधिक जानकारी के लिए संपर्क करे शर्मा जी - 9312002527,9560518227
दिनांक | प्रारंभ | दिनांक | समाप्त |
07 | 01-43 | 07 | 05-50 |
09 | 01-32 | 10 | 05-51 |
14 | 11-06 | 15 | 05-54 |
15 | 13-58 | 16 | 05-54 |
20 | 05-56 | 21 | 04-21 |
24 | 09-03 | 26 | 09-14 |
27 | 06-00 | 27 | 07-15 |
राहू काल
राहुकाल -राहुकाल दक्षिण भारत की देन है,दक्षिण भारत में राहु काल में कृत्य करना अच्छा नहीं माना जाता, राहु काल में शुभ कृतियों में वर्जित करने की परंपरा अब हमारे उत्तरी भारत में भी अपनाने लगे हैं राहुकाल प्रतिदिन सूर्यादि वारों में भिन्न-भिन्न समय पर केवल डेढ़ डेढ़ घंटे के लिए घटित होता है |
अगस्त मास 2023 का पंचांग
दिनांक | भारतीय व्रत उत्सव अगस्त - 2023 |
1 | सत्य व्रत |
4 | श्री गणेश चतुर्थी व्रत |
8 | कालाष्टमी |
11 | कमला एकादशी व्रत |
12 | कमला एकादशी व्रत |
13 | शनि प्रदोष व्रत |
14 | मास शिव रात्री |
15 | स्वतंत्रता दिवस |
16 | हरियाली अमावस्या,अधिक मास समाप्त |
17 | संक्रांति पुन्य |
18 | सिधारा |
19 | मंगला गौरी पूजन |
20 | विनायक चतुर्थी व्रत, वरद चतुर्थी |
21 | नाग पंचमी |
22 | कलिक जयंती वरुण छठ |
23 | गोस्वामी तुलसीदास जयंती ,सीतला सप्तमी |
24 | श्री दुर्गा अष्टमी |
27 | पवित्रा एकादशी व्रत |
28 | सोम प्रदोष व्रत 1 |
30 | सत्य व्रत , रक्षा बंधन हयग्रीव जयंती |
31 | अमरनाथ यात्रा , रशशी तर्पण गायत्री जयंती |

देवाधिदेव शंकरा
डॉ वनिता शर्मा
देवाधि-देव शंकरा रुद्रदेव महेश्वरा
नमस्तुभ्यम, नमस्तुभ्यम नमस्तुभ्यं
आदि हो अनादि हो ओंकार मंत्र हो
देवों के भी महादेव अविकारी अनंत हो
सत्यं शिवं सुंदरं भोलेनाथ शंकरा
नमस्तुभ्यम नमस्तुभ्यम नमस्तुभ्यं
सृजक हो संहारक हो प्रलय के कारक हो
भक्ति हो शक्ति हो आस्था उपासना हो
शिवतत्त्व आराधना आदिदेव परमेश्वरा
नमस्तुभ्यम नमस्तुभ्यम नमस्तुभ्यम
अर्थ में निरर्थ में भूत और भविष्य में
वर्तमान सृष्टि में सत चितानंद स्वरूप
ब्रम्हा विष्णु महेश्वरा हर हर महादेव शंकरा
नमस्तुभ्यम नमस्तुभ्यम नमस्तुभ्यम
महाकाल नीलकंठ तेरी ही महानता है
त्रिकाल त्रिलोक में त्रिदेव त्रिरूप में
त्रिभुवन के कण कण मेंॐकार समागम है
ब्रह्मा विष्णु महेश त्रिगुनरूप महेश्वरा
शिवास्वरूप शंकरा पार्वती परमेश्वरा
नमस्तुभ्यम नमस्तुभ्यम नमस्तुभ्यम
नमः शिवाय नमः शिवाय नम:शिवाय !

अगस्त मास 2023 के महत्वपूर्ण दिवस
1 अगस्त - राष्ट्रीय पर्वतारोहण दिवस
हर साल 1 अगस्त को राष्ट्रीय पर्वतारोहण दिवस मनाया जाता है। ऐसा कहा जाता है कि इस दिन की स्थापना लेखक के बेटे बॉबी मैथ्यूज और उनके दोस्त जोश मैडिगन के न्यूयॉर्क राज्य के एडिरोंडैक पर्वत की 46 ऊंची चोटियों पर सफलतापूर्वक चढ़ाई करने के लिए की गई थी।
1 अगस्त - यॉर्कशायर दिवस
यॉर्कशायर दिवस हर साल 1 अगस्त को मनाया जाता है। यह ब्रिटेन का सबसे बड़ा देश है। यह दिन देश के सबसे यादगार निवासियों को उसके इतिहास से जुड़ी हर बात का सम्मान देने के लिए मनाया जाता है।
1-7 अगस्त - विश्व स्तनपान सप्ताह
यह एक वैश्विक अभियान है जो हर साल अगस्त के पहले सप्ताह के दौरान दुनिया भर के कई देशों में मनाया जाता है। विश्व स्तनपान सप्ताह पहली बार 1992 में मनाया गया था।
1 अगस्त (अगस्त का पहला रविवार) - फ्रेंडशिप डे
फ्रेंडशिप डे अगस्त के पहले रविवार को मनाया जाता है और 2021 में यह 1 अगस्त को पड़ता है। 1935 में अमेरिका में दोस्तों के सम्मान में एक दिन समर्पित करने की परंपरा शुरू हुई। धीरे-धीरे फ्रेंडशिप डे ने लोकप्रियता हासिल की और भारत सहित विभिन्न देश भी इस दिन को मनाते हैं।
4 अगस्त - अमेरिकी तटरक्षक दिवस
हर साल 4 अगस्त को ट्रेजरी सचिव अलेक्जेंडर हैमिल्टन द्वारा 4 अगस्त 1790 को रेवेन्यू मरीन की स्थापना का सम्मान करने के लिए अमेरिकी तटरक्षक दिवस मनाया जाता है।
6 अगस्त - हिरोशिमा दिवस
हिरोशिमा दिवस हर साल 6 अगस्त को मनाया जाता है। यही वह दिन है जब जापानी शहर हिरोशिमा
पर परमाणु बम गिराया गया था।
6 अगस्त (अगस्त का पहला शुक्रवार) - अंतर्राष्ट्रीय बीयर दिवस
अंतर्राष्ट्रीय बीयर दिवस अगस्त के पहले शुक्रवार को मनाया जाता है। मूल रूप से इसकी शुरुआत 2007 में सांता क्रूज़, कैलिफ़ोर्निया में हुई थी।
7 अगस्त - राष्ट्रीय हथकरघा दिवस
यह देश में हथकरघा बुनकरों को सम्मानित करने के लिए हर साल 7 अगस्त को मनाया जाता है। इस वर्ष छठा राष्ट्रीय हथकरघा दिवस मनाया जा रहा है।
8 अगस्त - भारत छोड़ो आंदोलन दिवस
8 अगस्त, 1942 को बंबई में अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के अधिवेशन में मोहनदास करमचंद गांधी ने 'भारत छोड़ो आंदोलन' शुरू किया। इसे अगस्त आंदोलन या अगस्त क्रांति के नाम से भी जाना जाता है।
9 अगस्त - नागासाकी दिवस
9 अगस्त, 1945 को संयुक्त राज्य अमेरिका ने नागासाकी में जापान पर दूसरा बम गिराया और इस बम को 'फैट मैन' के नाम से भी जाना जाता है। इसे हिरोशिमा पर परमाणु बमबारी के तीन दिन बाद गिराया गया था।
9 अगस्त - विश्व के स्वदेशी लोगों का अंतर्राष्ट्रीय दिवस
दुनिया भर के लोगों को स्वदेशी लोगों के अधिकारों की सुरक्षा और संवर्धन पर संयुक्त राष्ट्र के संदेश को फैलाने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए हर साल 9 अगस्त को विश्व के स्वदेशी लोगों का अंतर्राष्ट्रीय दिवस मनाया जाता है।
10 अगस्त - विश्व शेर दिवस
यह प्रतिवर्ष 10 अगस्त को मनाया जाता है। इसका उद्देश्य शेरों और उनके संरक्षण के बारे में जागरूकता फैलाना और लोगों को शिक्षित करना है।
10 अगस्त - विश्व जैव ईंधन दिवस
यह ईंधन के अपरंपरागत स्रोतों के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए 10 अगस्त को मनाया जाता है जो जीवाश्म ईंधन के विकल्प के रूप में काम कर सकते हैं।
12 अगस्त - अंतर्राष्ट्रीय युवा दिवस
समाज में युवाओं के विकास और सुरक्षा पर ध्यान केंद्रित करने के लिए दुनिया भर में 12 अगस्त को अंतर्राष्ट्रीय युवा दिवस मनाया जाता है।
12 अगस्त: विश्व हाथी दिवस
लोगों को विशाल जानवर हाथी के संरक्षण और सुरक्षा के बारे में समझाने के लिए यह प्रतिवर्ष 12 अगस्त को मनाया जाता है। यह हाथियों की मदद के लिए दुनिया को एक साथ लाने का तरीका है।
13 अगस्त - अंतर्राष्ट्रीय वामपंथी दिवस
हर साल 13 अगस्त को लेफ्टहैंडर्स डे मनाया जाता है। यह उन समस्याओं और कठिनाइयों के बारे में जागरूकता बढ़ाता है जिनका सामना बाएं हाथ से काम करने वाले व्यक्तियों को करना पड़ता है।
13 अगस्त - विश्व अंगदान दिवस
अंग दान के महत्व के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए 13 अगस्त को विश्व अंग दान दिवस मनाया जाता है।
14 अगस्त - यौम-ए-आज़ादी (पाकिस्तान स्वतंत्रता दिवस)
यौम-ए-आजादी या पाकिस्तान स्वतंत्रता दिवस प्रतिवर्ष 14 अगस्त को मनाया जाता है। इस दिन पाकिस्तान को आजादी मिली थी और 1947 में ब्रिटिश शासन के अंत के बाद उसे एक संप्रभु राष्ट्र घोषित किया गया था।
15 अगस्त - राष्ट्रीय शोक दिवस (बांग्लादेश)
15 अगस्त को बांग्लादेश में राष्ट्रीय शोक दिवस मनाया जाता है। इस दिन बांग्लादेश के पहले राष्ट्रपति शेख मुजीबुर रहमान की उनके परिवार के अधिकांश सदस्यों के साथ हत्या कर दी गई थी।
15 अगस्त - भारत में स्वतंत्रता दिवस
हर साल 15 अगस्त को भारत स्वतंत्रता दिवस मनाता है। इसी दिन भारत को ब्रिटिश शासन से आजादी मिली थी। यह हमें एक नई शुरुआत की याद दिलाता है, 200 से अधिक वर्षों के ब्रिटिश उपनिवेशवाद से मुक्त एक नए युग की शुरुआत।
15 अगस्त - वर्जिन मैरी की मान्यता का दिन
15 अगस्त को, मैरी की मान्यता का ईसाई पर्व इस विश्वास के साथ मनाया जाता है कि भगवान ने वर्जिन मैरी को उनकी मृत्यु के बाद स्वर्ग में ग्रहण किया था। मुख्य रूप से यह यूरोप और दक्षिण अमेरिका के कुछ हिस्सों में मनाया जाता है। इसे धन्य वर्जिन मैरी की मान्यता भी कहा जाता है।
16 अगस्त - बेनिंगटन बैटल डे
16 अगस्त, 1777 को हुई बेनिंगटन की लड़ाई का सम्मान करने के लिए बेनिंगटन युद्ध दिवस प्रतिवर्ष 16 अगस्त को मनाया जाता है।
17 अगस्त - इंडोनेशियाई स्वतंत्रता दिवस
इंडोनेशियाई स्वतंत्रता दिवस हर साल 17 अगस्त को मनाया जाता है। इस दिन को 1945 में डच
उपनिवेश से स्वतंत्रता की घोषणा के रूप में मनाया जाता है।
19 अगस्त - विश्व फोटोग्राफी दिवस
फोटोग्राफी के महत्व के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए प्रतिवर्ष 19 अगस्त को विश्व फोटोग्राफी दिवस मनाया जाता है।
19 अगस्त - विश्व मानवतावादी दिवस
मानवीय सेवा में अपनी जान जोखिम में डालने वाले सहायता कर्मियों को श्रद्धांजलि देने के लिए दुनिया भर में हर साल 19 अगस्त को विश्व मानवतावादी दिवस मनाया जाता है। यह दिन दुनिया भर में संकट में महिलाओं के काम का सम्मान भी करता है।
20 अगस्त - विश्व मच्छर दिवस
1897 में ब्रिटिश डॉक्टर सर रोनाल्ड रॉस की खोज कि 'मादा मच्छर मनुष्यों के बीच मलेरिया फैलाती है'
की याद में हर साल 20 अगस्त को विश्व मच्छर दिवस मनाया जाता है।
20 अगस्त - सद्भावना दिवस
हमारे दिवंगत प्रधान मंत्री राजीव गांधी की स्मृति में हर साल 20 अगस्त को सद्भावना दिवस मनाया जाता है। अंग्रेजी में सद्भावना का अर्थ सद्भावना और सद्भावना है।
20 अगस्त - भारतीय अक्षय ऊर्जा दिवस
भारत में नवीकरणीय ऊर्जा के विकास के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए प्रतिवर्ष 20 अगस्त को भारतीय अक्षय ऊर्जा दिवस मनाया जाता है। यह एक अभियान है जो 2004 से मनाया जाता है। यह दिन पूर्व प्रधान मंत्री राजीव गांधी के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है।
22 अगस्त - नारली पूर्णिमा
इसे नारियाल पूर्णिमा या नारियल दिवस के रूप में भी जाना जाता है जो महाराष्ट्र और कोंकण क्षेत्र से सटे विभिन्न हिस्सों में पूरे उत्साह के साथ मनाया जाता है। इस वर्ष यह 22 अगस्त, 2021 को मनाया जाएगा।
23 अगस्त - दास व्यापार की स्मृति और उसके उन्मूलन के लिए अंतर्राष्ट्रीय दिवस
यह दिन हर साल 23 अगस्त को सभी लोगों की याद में दास व्यापार की त्रासदी के बारे में याद दिलाने के लिए मनाया जाता है, जो कि ट्रान्साटलांटिक दास व्यापार की त्रासदी के बारे में है। यह दास व्यापार के ऐतिहासिक कारणों और परिणामों के बारे में सोचने का मौका प्रदान करता है।
23 अगस्त - स्टालिनवाद और नाज़ीवाद के पीड़ितों के लिए यूरोपीय स्मरण दिवस
यह दिन हर साल 23 अगस्त को मुख्य रूप से साम्यवाद, फासीवाद, नाज़ीवाद आदि अधिनायकवादी शासन के पीड़ितों के स्मरण दिवस के रूप में मनाया जाता है। इसे कुछ देशों में ब्लैक रिबन दिवस के रूप में भी जाना जाता है। यह दिन "अतिवाद, असहिष्णुता और उत्पीड़न" की अस्वीकृति का भी प्रतीक है।
26 अगस्त - महिला समानता दिवस
यह दिन अमेरिकी संविधान में 19वें संशोधन के पारित होने की याद दिलाता है जिसने महिलाओं को
वोट देने का अधिकार दिया। 1971 में, अमेरिकी कांग्रेस ने आधिकारिक तौर पर 26 अगस्त को महिला
समानता दिवस के रूप में मान्यता दी।
26 अगस्त: अंतर्राष्ट्रीय कुत्ता दिवस
यह हर साल बचाए जाने वाले कुत्तों की संख्या को पहचानने के लिए 26 अगस्त को मनाया जाता है।
29 अगस्त - राष्ट्रीय खेल दिवस
फील्ड हॉकी खिलाड़ी ध्यानचंद के जन्मदिन का सम्मान करने के लिए हर साल 29 अगस्त को राष्ट्रीय खेल दिवस मनाया जाता है। राष्ट्रीय खेल दिवस को राष्ट्रीय खेल दिवस के नाम से भी जाना जाता है।
30 अगस्त - लघु उद्योग दिवस
लघु उद्योगों को समर्थन और बढ़ावा देने के लिए हर साल 30 अगस्त को लघु उद्योग दिवस मनाया जाता है। क्या आप जानते हैं कि लघु उद्योग निजी स्वामित्व वाले छोटे निगम या निर्माता होते हैं जिनके पास सीमित संसाधन और जनशक्ति होती है?
31 अगस्त - हरि मर्डेका (मलेशिया राष्ट्रीय दिवस)
हर साल 31 अगस्त को हरि मर्डेका (मलेशिया राष्ट्रीय दिवस) मनाया जाता है।
खुदीराम बोस
30 अप्रैल, 1908 में मुजफ्फरपुर बम कांड हुआ था। इसे 1857 क्रांति के अगले चरण के इतिहास में श्रीगणेश के तौर पर याद किया जाता है। इस दिन खुदीराम बोस और प्रफुल्ल चाकी ने मुजफ्फरपुर के जिला एवं सत्र न्यायाधीश किंग्सफोर्ड को बम से उड़ाने की असफल कोशिश की थी।खुदीराम बोस- 03 दिसम्बर 1889 से 11 अगस्त 1908 भारतीय स्वाधीनता के लिये मात्र 18 साल की उम्र में देश को स्वतन्त्र कराने के लिए फाँसी पर चढ़ गये थे।


क्या पाया
सुनील अग्रहरि
शहरों की गलियों में ,ढूंढा अपने आप को ,
अँधेरो में पाया ,मैंने अपने आप को ,
कर के वफ़ा मैंने ,दिखाया अपने यार को ,
बदले में पाया ,खतरे में अपनी जान को ,
शोरगुल में चाहा ,पाना सुनसान को ,
आदमी के भेष में पाया शैतान को ,
मतलब परस्त दुनियां में ,देखा इन्सान को,
कचरे के ढेर में पाया ईमान को |
श्रेष्ठ व्यक्ति वही है जो स्वयं को जानता है,अपनी शक्तियों,प्रतिभाओं और व्यक्तिगत चुनौतियों को,जो व्यक्तिगत क्षमता तक जीता है और जो दुनिया के भीतर सकारात्मक रूप से जुड़ता है और रहता है।

परमा एकादशी
काम्पिल्य नगर मे सुमेधा नाम का एक ब्राह्मण रहता था इसके स्त्री पवित्रा अत्यंत पवित्र तथा पतिव्रता थी वह किसी पूर्व जन्म के कारण अत्यंत दरिद्र थी। उसे भिक्षा मांगने पर भी भिक्षा नहीं मिलती थी वह सदैव वस्त्रों से रहित होते हुए भी अपने पति की सेवा करती रहती वह अतिथि को अन्न देकर स्वयं भूखी रहती थी और पति से कभी किसी वस्तु की नहीं कहती थी। सुमेधा ने अपनी स्त्री को अत्यंत दुर्बल देखा तो बोला कि हे प्रिय आज मैं धनवानो से धन मांगता हूं तो वह कुछ मुझे नहीं देते गृहस्ती केवल धन से चलती है। अब मैं क्या करूं इसलिए यदि तुम्हारी राय हो तो मैं परदेस में जाकर उद्यम करूं, इस पर उसकी स्त्री विनीत भाव से बोली कि पतिदेव पति अच्छा या बुरा हो कुछ भी कहे पत्नी को वही करना चाहिए। पूर्व जन्म में जो मनुष्य विद्या और भूमि दान करते हैं उन्हें इस जन्म में विद्या और भूमि मिलती है। यदि कोई मनुष्य दान नहीं करता तो भगवान उसे केवल अन्न हीं देते हैं मैं आपका वियोग नहीं सह सकती पति रहित स्त्री की संसार में माता-पिता भ्राता ससुर और संबंधी आदि निंदा करते हैं। इसलिए आपको इसी स्थान पर रहना चाहिए एक समय कौटिल्य मुनि उस जगह आए उनको आते देखकर सुमेधा ने अपनी स्त्री सहित परिणाम किया और बोला हम आज धन्य हैं आज हमारा जीवन आप के दर्शन से सफल हुआ। उन्होंने उनको आसान और भोजन दिया भोजन देने के पश्चात पवित्रा बोली की है उन्हें आप मुझे दरिद्रता का नाश करने का उपाय बताइए मैंने अपने पति को अन्य प्रदेश में धन कमाने से जाने से रोका है। मेरे भाग्य से आप आ गए हैं मुझे पूर्ण निश्चय है कि अब मेरी दरिद्रता शीघ्र ही नष्ट हो जाएगी अतः आप हमारे दरिद्रता नष्ट करने के लिए किसी व्रत को बताइए । इस पर कौटिल्य मुनि बोले कि मल मास की कृष्ण पक्ष की परमा एकादशी के व्रत से समस्त पाप दुख और दरिद्रता आदि नष्ट हो जाते हैं। जो मनुष्य इस का व्रत करता है वह धनवान हो जाता है कुबेर को महादेव जी ने इसी व्रत के प्रभाव से धनपति बना दिया सत्यदेव हरिश्चंद्र को पुत्र स्त्री और राज्य प्राप्त हुआ । मुनि ने उनको एकादशी व्रत के समस्त विधि का सुनाएं फिर ब्राह्मण में मुनि के बताए अनुसार परमा एकादशी का व्रत किया इसके प्रभाव से उनकि दरिद्रता दूर हो गई। इस प्रकार मल मास के कृष्ण पक्ष की परमा एकादशी का व्रत जो करेगा उसके सभी कष्ट दूर हो जाएंगे

पुत्रदा एकादशी
पुत्रदा एकादशी सावन मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाई जाती है इस दिन भगवान विष्णु के नाम पर व्रत रखकर पूजा की जाती है इसके बाद ब्राह्मण को भोजन करके दान देकर आशीर्वाद लेना चाहिए |
पुत्रदा एकादशी की कथा - एक समय की बात है महिष्मति नगर में महिजीत नाम का राजा राज करता था | वह बड़ा ही धर्मात्मा शांतिप्रिय और दानी था परंतु उसके कोई संतान नहीं थी यही सोच सोच कर राजा बहुत ही दुखी रहता था | एक बार राजा ने अपने राज्य के समस्त ऋषिओ और महात्माओं को बुलाया और संतान प्राप्त करने के उपाय पूछे इस पर परम ज्ञानी लोमस ऋषि ने बताया कि आपने पिछले जन्म में स्वर्ण मास की एकादशी को अपने तालाब से प्यासी गाय को पानी नहीं पीने दिया था और उसे हटा दिया था | इसी श्राप के कारण आपके कोई संतान उत्पन्न नहीं हुई है इसलिए आप सावन मास की पुत्रदा एकादशी का नियम पूर्वक व्रत रखकर रात्रि जागरण करिए | आपको पुत्र अवश्य प्राप्त होगा ऋषि की आज्ञा अनुसार राजा ने एकादशी का व्रत किया और इसके प्रभाव से उसे पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई तथा इस लोक मे सुख भोग कर अंत मे वैकुंठ मे गया |
गंगा से कहो, वह किसी का तिरस्कार नहीं करती। गंगा ने स्वीकार किया तो समझो शिव ने स्वीकार किया। पण्डितराज की आँखे चमक उठीं। उन्होंने एकबार पुनः झाँका लवंगी की आँखों में, उसमें अब भी वही बीस वर्ष पुराना उत्तर था-प्रेम किया है पण्डित संग कैसे छोड़ दूंगी?-एतिहासिक प्रेम कहानी पढ़ने के लिए क्लिक करें-
https://www.sumansangam.com/index.php/2022/06/30/story/

सप्तचक्रों का हमारे जीवन पर प्रभाव
मूलाधार, स्वाधिष्ठान, मणिपुर, अनाहत, विशुद्ध, आज्ञा और सहस्त्रार ये सात चक्र हमारे शरीर में होते हैं । जिससे हमारे को ऊर्जा मिलती है। हम अगर इस ऊर्जा के स्त्रोत्र का ठीक प्रबंधन कर लें तो असाधारण शक्ति मिलती है उषसे हम सभी प्रकार की सफलता आसानी से प्राप्त कर सकते हैं। नवरात्रि में हर दिन एक विशेष चक्र को जाग्रत किया जाए तो सहजता से जाग्रत हो जाते है |
मूलाधारचक्र - यह शरीर का पहला चक्र है। गुदा और लिंग के बीच 4 पंखुरियों वाला यह 'आधार चक्र' है। 99.9% लोगों की चेतना इसी चक्र पर अटकी रहती है और वे इसी चक्र में रहकर मर जाते हैं। जिनके जीवन में भोग, संभोग और निद्रा की प्रधानता है उनकी ऊर्जा इसी चक्र के आसपास एकत्रित रहती है।
मंत्र : लं
चक्र जगाने की विधि : मनुष्य तब तक पशुवत है, जब तक कि वह इस चक्र में जी रहा है इसीलिए भोग, निद्रा और संभोग पर संयम रखते हुए इस चक्र पर लगातार ध्यान लगाने से यह चक्र जाग्रत होने लगता है। इसको जाग्रत करने का दूसरा नियम है- यम और नियम का पालन करते हुए साक्षी भाव में रहना।
प्रभाव : इस चक्र के जाग्रत होने पर व्यक्ति के भीतर वीरता, निर्भीकता और आनंद का भाव जाग्रत हो जाता है। सिद्धियां प्राप्त करने के लिए वीरता, निर्भीकता और जागरूकता का होना जरूरी है।
स्वाधिष्ठानचक्र - यह वह चक्र है, जो लिंग मूल से 4 अंगुल ऊपर स्थित है जिसकी 6 पंखुरियां हैं। अगर आपकी ऊर्जा इस चक्र पर ही एकत्रित है तो आपके जीवन में आमोद-प्रमोद, मनोरंजन,
घूमना-फिरना और मौज-मस्ती करने की प्रधानता रहेगी। यह सब करते हुए ही आपका जीवन कब व्यतीत हो जाएगा आपको पता भी नहीं चलेगा और हाथ फिर भी खाली रह जाएंगे।
मंत्र : वं
कैसे जाग्रत करें : जीवन में मनोरंजन जरूरी है, लेकिन मनोरंजन की आदत नहीं। मनोरंजन भी व्यक्ति की चेतना को बेहोशी में धकेलता है। फिल्म सच्ची नहीं होती लेकिन उससे जुड़कर आप जो अनुभव करते हैं वह आपके बेहोश जीवन जीने का प्रमाण है। नाटक और मनोरंजन सच नहीं होते।
प्रभाव : इसके जाग्रत होने पर क्रूरता, गर्व, आलस्य, प्रमाद, अवज्ञा, अविश्वास आदि दुर्गणों का नाश
होता है। सिद्धियां प्राप्त करने के लिए जरूरी है कि उक्त सारे दुर्गुण समाप्त हों तभी सिद्धियां आपका द्वार खटखटाएंगी।
मणिपुरचक्र - नाभि के मूल में स्थित यह शरीर के अंतर्गत मणिपुर नामक तीसरा चक्र है, जो 10 कमल पंखुरियों से युक्त है। जिस व्यक्ति की चेतना या ऊर्जा यहां एकत्रित है उसे काम करने की धुन-सी रहती है। ऐसे लोगों को कर्मयोगी कहते हैं। ये लोग दुनिया का हर कार्य करने के लिए तैयार रहते हैं।
मंत्र : रं
कैसे जाग्रत करें : आपके कार्य को सकारात्मक आयाम देने के लिए इस चक्र पर ध्यान लगाएंगे। पेट से श्वास लें।
प्रभाव : इसके सक्रिय होने से तृष्णा, ईर्ष्या, चुगली, लज्जा, भय, घृणा, मोह आदि कषाय-कल्मष दूर हो जाते हैं। यह चक्र मूल रूप से आत्मशक्ति प्रदान करता है। सिद्धियां प्राप्त करने के लिए आत्मवान होना जरूरी है। आत्मवान होने के लिए यह अनुभव करना जरूरी है कि आप शरीर नहीं, आत्मा हैं। आत्मशक्ति, आत्मबल और आत्मसम्मान के साथ जीवन का कोई भी लक्ष्य दुर्लभ नहीं।
अनाहतचक्र - हृदयस्थल में स्थित द्वादश दल कमल की पंखुड़ियों से युक्त द्वादश स्वर्णाक्षरों से सुशोभित चक्र ही अनाहत चक्र है। अगर आपकी ऊर्जा अनाहत में सक्रिय है तो आप एक सृजनशील व्यक्ति होंगे। हर क्षण आप कुछ न कुछ नया रचने की सोचते हैं। आप चित्रकार, कवि, कहानीकार, इंजीनियर आदि हो सकते हैं।
मंत्र : यं
कैसे जाग्रत करें : हृदय पर संयम करने और ध्यान लगाने से यह चक्र जाग्रत होने लगता है। खासकर रात्रि को सोने से पूर्व इस चक्र पर ध्यान लगाने से यह अभ्यास से जाग्रत होने लगता है और सुषुम्ना इस चक्र को भेदकर ऊपर गमन करने लगती है।
प्रभाव : इसके सक्रिय होने पर लिप्सा, कपट, हिंसा, कुतर्क, चिंता, मोह, दंभ, अविवेक और अहंकार समाप्त हो जाते हैं। इस चक्र के जाग्रत होने से व्यक्ति के भीतर प्रेम और संवेदना का जागरण होता है।
इसके जाग्रत होने पर व्यक्ति के समय ज्ञान स्वत: ही प्रकट होने लगता है। व्यक्ति अत्यंत आत्मविश्वस्त, सुरक्षित, चारित्रिक रूप से जिम्मेदार एवं भावनात्मक रूप से संतुलित व्यक्तित्व बन जाता है। ऐसा व्यक्ति अत्यंत हितैषी एवं बिना किसी स्वार्थ के मानवता प्रेमी एवं सर्वप्रिय बन जाता है।
विशुद्धचक्र - कंठ में सरस्वती का स्थान है, जहां विशुद्ध चक्र है और जो 16 पंखुरियों वाला है। सामान्य तौर पर यदि आपकी ऊर्जा इस चक्र के आसपास एकत्रित है तो आप अति शक्तिशाली होंगे।
मंत्र : हं
कैसे जाग्रत करें : कंठ में संयम करने और ध्यान लगाने से यह चक्र जाग्रत होने लगता है।
प्रभाव : इसके जाग्रत होने कर 16 कलाओं और 16 विभूतियों का ज्ञान हो जाता है। इसके जाग्रत होने से जहां भूख और प्यास को रोका जा सकता है वहीं मौसम के प्रभाव को भी रोका जा सकता है।
आज्ञाचक्र - भ्रूमध्य (दोनों आंखों के बीच भृकुटी में) में आज्ञा चक्र है। सामान्यतौर पर जिस व्यक्ति की ऊर्जा यहां ज्यादा सक्रिय है तो ऐसा व्यक्ति बौद्धिक रूप से संपन्न, संवेदनशील और तेज दिमाग का बन जाता है लेकिन वह सब कुछ जानने के बावजूद मौन रहता है। इसे बौद्धिक सिद्धि कहते हैं।
मंत्र : उ
कैसे जाग्रत करें : भृकुटी के मध्य ध्यान लगाते हुए साक्षी भाव में रहने से यह चक्र जाग्रत होने लगता है।
प्रभाव : यहां अपार शक्तियां और सिद्धियां निवास करती हैं। इस आज्ञा चक्र का जागरण होने से ये सभी शक्तियां जाग पड़ती हैं और व्यक्ति सिद्धपुरुष बन जाता है।
सहस्रारचक्र - सहस्रार की स्थिति मस्तिष्क के मध्य भाग में है अर्थात जहां चोटी रखते हैं। यदि व्यक्ति यम, नियम का पालन करते हुए यहां तक पहुंच गया है तो वह आनंदमय शरीर में स्थित हो गया है। ऐसे व्यक्ति को संसार, संन्यास और सिद्धियों से कोई मतलब नहीं रहता है।
मंत्र : ॐ
कैसे जाग्रत करें : मूलाधार से होते हुए ही सहस्रार तक पहुंचा जा सकता है। लगातार ध्यान करते रहने से यह चक्र जाग्रत हो जाता है और व्यक्ति परमहंस के पद को प्राप्त कर लेता है।
प्रभाव : शरीर संरचना में इस स्थान पर अनेक महत्वपूर्ण विद्युतीय और जैवीय विद्युत का संग्रह है। यही मोक्ष का द्वार है।

आज़ादी किससे...
नोरिन शर्मा
आज हम किसी देश ,महादेश की आज़ादी की चर्चा नहीं कर रहे हैं। आज़ाद भारतवासियों या किसी भी मुल्क के आज़ाद नागरिकों के अधिकारों या कर्त्तव्यों की चर्चा भी नहीं है।
जब हम स्वतंत्रता की बात करते हैं तो हमारे ज़हन में ' स्व ' या अपनी आज़ादी भी कौंध जाती है। किस गुलामी में बंधे हैं हम...? आज़ादी किससे..?
वास्तव में देखा जाए तो विश्व की दूसरी सबसे छोटी इकाई परिवार है।धीरे धीरे ही सही पिछली दो तीन पीढ़ियों ने संयुक्त परिवार परंपरा से आज़ादी पा ही ली।कारण कोई भी हों,शहरीकरण,आवासीय तंगी या देश विदेश पलायन..!
फिर भी हमारी यह पीढ़ी और उनके समकालीन ऊपर की दो पीढ़ियां अपनी अपनी आज़ादी हेतु संघर्षरत हैं।मानसिक रूप से हम जितने मज़बूत और आज़ाद होंगे ,जीवन का भरपूर आनंद उठा पाएंगे।
परिवार में स्त्री एक ऐसी धुरी है,जिसके इर्द गिर्द संपूर्ण परिवार का जीवन समरूप गति से चलता रहता है।हममें से सभी ने कभी न कभी इस समरूपता में उथल पुथल को अवश्य ही महसूसा होगा। माँ की बीमारी से पूरे घर की हलचल को जाना,समझा होगा।कुछ अवर मध्यमवर्गीय परिवारों में, जहाँ खाना बनाने से लेकर बच्चों के गृहकार्य तक की ज़िम्मेदारी वो घर की धुरी ने समेटी होती है;एकबारगी चरमराने लगती है।
जहां समस्या है ,वहीं हल भी है।क्यों न इसका अभ्यास दिन प्रतिदिन किया जाए।इस मानसिक
गुलामी से स्त्री को साँस लेने की भी फुरसत मिलेगी और परिवार का प्रत्येक सदस्य अपने अपने कर्तव्यों का निर्वहन भी कर सकेगा।घर की स्त्री ही सब घरेलू कार्यों के लिए ज़िम्मेदार है,इस गुलामी से आज़ादी मिलते ही घर का वातावरण खुशनुमा हो जाएगा।"तुम सारा दिन घर में क्या करती हो..?" इसका उत्तर भी मिल जाएगा।
छोटे से लेकर बड़े बूढ़े तक मोबाइल के भीतर अपनी अपनी एक दुनिया बसा चुके हैं।कई बार रात के तीन चार बजने का एहसास भी उन्हें नहीं होता।इस तकनीकि गुलामी से आज़ादी भी बेहद ज़रूरी है।वयस्क अक्सर यही मंथन करते हैं,हमारा पढ़ने लिखने का समय नहीं है ,अपना करियर बन चुका है...बच्चों को मोबाइल पर इतना समय नहीं गंवाना चाहिए।क्या आपकी भी यही सोच है?सच यहीं कहीं छिपा है।एक यूरोपीय देश में बच्चों ने हाल ही में एक रैली निकाली।सबके हाथ में बड़े बड़े बोर्ड और बैनर थे..."मम्मी,पापा हमसे बात करो"
"मम्मी हमें समय पर खाना दो"
"पापा अब फ़ोन छोड़ भी दो"
"प्लीज़,हमें भी आपके साथ और प्यार की ज़रूरत है"
वो दिन दूर नहीं जब भारत में भी ऐसी रैलियां निकलेंगीं..!
समय रहते चेतना बहुत आवश्यक है।तकनीकि गुलामी से आज़ादी हमारे परिवार बचा सकती है।
वो दिन दूर नहीं जब पुरुष या स्त्रियां तलाक़ के लिए इस वजह को सबसे पहले रखेंगे!
आइए मानसिक गुलामी से आज़ादी की ओर एक क़दम हम मिलकर बढ़ाएं और परिवारों को महकती बगिया बनाएं।
राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त

राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त का जन्म झांसी जिले के चिरगांव नामक स्थान पर 1886 ई. में हुआ था। इनके पिता जी का नाम सेठ रामचरण गुप्त और माता का नाम काशीबाई था। आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी जी के संपर्क में आने पर उनके आदेश, उपदेश एवं स्नेहमय परामर्श से इनके काम में पर्याप्त निखार आया। भारत सरकार ने इन्हें पदमभूषण से सम्मानित किया। 12 दिसंबर 1964 को मां भारती का सच्चा सपूत सदा के लिए पंचतत्व में विलीन हो गया।

ब्राह्मण का ज्ञान
किशन लाल शर्मा
हमारे समाज में पंडित जी का एक विशेष स्थान है। कोई भी नया काम शुरू करना हो,यात्रा पर जाना हो, कार या स्कूटी खरीदनी हो , घर खरीदना हो ,फैक्ट्री की नींव डालनी हो , बच्चा पैदा हुआ हो या कोई शादी - विवाह का मुहूर्त निकलवाना हो , व्रत - त्योहार कब और कौन से दिन हैं , इन सब की जानकारी पंडित जी - ब्राह्मण देवता से ही ली जाती है।पंचांग देख कर तथा याचक का नाम राशि के नुसार गणना कर के पंडित जी सब कुछ बताते हैं। यदि काम पूर्ण होने में कोई अड़चन हो तो उसका उपाय भी बताते हैं। इस कार्य को करने की विशेष शिक्षा प्राप्त की जाती है। यह एक विशेष टेक्निकल ज्ञान है जो बिना गुरु के नहीं सीखा जा सकता । प्रारम्भिक शिक्षा आमतौर पर वाराणसी , उत्तर
प्रदेश में ली जाती है। उसके पश्च्यात अपना स्वयं से ही अध्ययन , मनन और इस विषय के अन्य विद्वान पंडितों से परामर्श , विचार - विमर्श या कभी -कभी शास्त्रार्थ करके भी इस ज्ञान को उपार्जित किया जाता है। वर्षों की कड़ी मेहनत के पश्च्यात ज्योतिष शास्त्र का तथा अन्य कर्म काण्ड की विधि - विधान का ज्ञान प्राप्त किया जाता है। इसकी ट्रेनिंग है।परिवार में बच्चा पैदा होते ही घर के बुजुर्ग पंडित जी के पास पहुंच जाते हैं और बच्चे के जन्म का समय बताकर बच्चे का भविष्य जानना चाहते हैं। पंडितजी जन्म नामाक्षर, लग्न , राशि , नक्षत्र ,योग , गण , नाड़ी ,पाया , सूर्य -राशि आदि अनेक
आवश्यक सूचना निकालते हैं और नवजात शिशु के विषय में सीमित आवश्यक बातें बता कर कुछ
दिन पश्यात आने को कहते हैं। जन्म -कुंडली बनाना कोई साधारण काम नहीं है। इसमें गणित और गणना , ग्रहों की स्थिति , उनकी चाल , उनकी दृष्टि और एक दूसरे गृह का प्रभाव और ना जाने क्या - क्या। आजकल तो कंप्यूटर - बाबा की सरल शरण भी ली जाती है।विज्ञान विषय को पढ़नेवाले और उसके जानकार ज्योतिष व हमारे सनातनी रीती - रिवाजों और परम्पराओं को ढकोसला, रूढ़िवादिता बता कर उनपर कम विश्वास रखते हैं। ज्योतिष एक गूढ़ - विज्ञान है और इसका जो सही ज्ञानी है , जिसने उसकी सही गुरु से प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त की है और स्वयं पूरी लगन से अध्ययन ,मनन और नए अनुसन्धान की इच्छा से इस विषय को पढ़ा है, इस विषय को जान सकता है। वही इस विषय का प्रकांड पंडित बन सकता है। आम लोगों का आजकल पंडितों पर विश्वास कम होता जा रहा है। पंडित जी द्वारा बताई भविष्य वाणियां क्या वाकई में सत्य होंगी ? उनके बताए पूजा - पाठ , अनुष्ठानों से विपत्तियां कम हो जाएँगी ? क्रूर ग्रहों की दशाओं के प्रभावों को क्या पूजा - पाठ से , दान - पुण्य करने ,ब्राह्मण भोज, गायों को चारा या चील कौवों को शनिवार को गुलगुले - पकोड़ी को खिलाने से या नदी - तालाब में मछलियों को आटे की गोलियां डालने से और चींटियों को सूजी - शक्कर का मिश्रण खिलाने से आप पर आने वाली आपदाएं नहीं आएँगी या उनका आप पर असर कम हो जायेगा। यह सब होगा या नहीं यह सब तो प्रयोग करने से ही पता चलेगा। अपने प्रयोग के परिणाम यदि सकारात्मक निकले तो आपको पंडित जी की बातों में विश्वास होने लगेगा। आपकी उनमें श्रद्धा बढ़ेगी। अब आप प्रत्येक छोटी बड़ी बात पूछने के लिए पंडित जी केपास पहुँच जायेंगे। बात बहुत पुरानी है। मैं कॉलेज में पढ़ रहा था। स्कूल से ही एन० सी० सी० का कैडेट था और कॉलेज में आने तक मैंने एन० सी० सी० के सभी सी० सर्टिफिकेट तक पास कर चुका था। एन० सी० सी० का सीनियर अंडर ऑफिसर था। 15 अगस्त और 26 जनवरी की हमारे सभी विद्यालयों के छात्र - छात्राओं की सेंट्रल परेड को कमांड करता था। सन 1962 में अचानक चीन ने भारत पर आक्रमण कर दिया। देश की मांग थी ; युवा - वर्ग जो सक्षम हैं , सेना में सेवा के लिए आगे आएं। चूंकि हम एन० सी० सी० की वर्षों तक ट्रेनिंग प्राप्त कैडेट थे , तो ये हमारा कर्तव्य था की हम सेना में भर्ती हों। हम इंटरव्यू में सेलेक्ट हो गए और हमें मिलिट्री अकादमी ,देहरादून ट्रेनिंग के लिए जॉइनिंग लेटर आ गया। माताजी रोने लगी और जाने के लिए मना करने लगीं। पिताजी ज्योतिर्विद पं० वेणी प्रसाद जी जोशी अनुष्ठान आचार्य, के पास चुपचाप गए हमारी जन्म - कुंडली ले कर गए और हमारे बारे में पूछा पंडित जी ने कुंडली देखी और बताया , बच्चे के भाग्य में राजयोग है। ये राजा का सेनापति बनेगा। इसकी कुंडली में लिखा है , सरकार के खजाने से पैसा आता रहेगा। आप इसे रोक नहीं सकते। इसे ख़ुशी - खुशी सेना में जाने दो। देश का 1965 का भारत - पाकिस्तान युद्ध और 1971 की बांग्ला देश की लड़ाई में मुझे हिस्सा लेने का मौका मिला। पंडित जी की भविष्यवाणियों में विश्वास होने लगा। बात उन दिनों की है जब मैं सागर , मध्य प्रदेश में पोस्टेड था। पुलिस ट्रेनिंग कॉलेज के प्रिंसिपल मेरे मित्र थे। उनके साथ
कोई सज्जन जो वेशभूषा से विद्वान पंडित नजर आ रहे थे , आए थे। डी० आई० जी० साहब ने अपनी
सर्विस के दौरान के चर्चे सुनाये तो उन पंडित जी ने भी जाते-जाते अपना चमत्कार दिखाना चाहा। उन्होंने मुझसे कहा , कर्नल साहब , आप अपनी हाथों की हथेलियों को रगड़ो और किसी फूल के बारे में मन में सोचो। सोच लिया ? अब आप उस सोचे हुए फूल की सुगंध अपनी हथेलियों में सूंघो। मैंने गुलाब के बारे में सोचा था। मेरे हाथों की हथेलियों में गुलाब के फूल की सुगंध आ रही थी। मैं आश्चर्यचकित रह गया। मैंने पंडित जी से पूछा , यह गुलाब की सुगंध मेरी हथेलियों में कब तक रहेगी तो उन्होंने बताया , जब तक आप हाथ नहीं धोएंगे।
सर्विस में आप विभिन्न स्थानों पर जाते हैं। बबीना छावनी ; झांसी के पास की बात है। एक पंडित जी मेरे एक हवलदार के गुरु थे और वह साधना के लिए दतिया जा रहे थे। हमारे हवलदार साहब ने गुरु जी को यूनिट के परिसर में एक- दो दिन विश्राम करने की परमिशन मांगी ; हमने देदी। मेरे लिए हवलदार जी के आग्रह पर रविवार शाम पांच बजे का मेरा पंडित जी के साथ अपॉइंटमेंट फिक्स हुआ। चलते समय कोई फोन आगया तो हम उनके पास कुछ देर से पहुंचे। प्रारम्भिक कुछ वार्तालाप के बाद पंडित जी ने मुझे एक कागज़ पेंसिल दिया और कहा , इस कागज़ पर आप किसी एक फूल का नाम , किसी धातु का नाम , किसी भी एक शहर का नाम और आपने जो कोई प्रश्न पूछना हो इस पर लिखलें . मैं कमरे से बाहर जाता हूँ। दरवाजा ढाल दूंगा। जब आप लिख लें तो कागज को मोड़ कर अपनी जेब रख दें। आप एक ताली बजाना मैं दरवाजा खोल कर अंदर आ जाऊंगा। हमने ऐसा ही किया। हमारी ताली के सिगनल पर पंडित जी कमरे आये और उन्होंने मुस्कुराते हुए बोलना शुरू किया। आपने फूल का नाम ,फूलों के राजा गुलाब लिखा है। धातु , सफ़ेद चमकदार चांदी लिखा है। स्थान भी उत्तर प्रदेश में नहीं , दिल्ली में नहीं , हरियाणा में नहीं , राजस्थान में पिलानी है। और आपका यह प्रश्न है। मैं हैरान हो गया। यह सब बिलकुल सही था। मेरा तो पंडित जी में पूरा - पूरा विश्वास जम गया। मैं तो उनका भक्त हो गया।
खैर मैंने अपने पं० वेणी प्रसाद जी को सागर और बबीना .के पंडितों के विषय में बताया की कैसे मेरे हाथ की हथेलियों में गुलाब के फूल की सुगंध उन्होंने पैदा कर दी और बबीना वाले पंडित जी ने मेरे कागज पर लिखे पुष्प ,धातु , स्थान के नाम और मेरा प्रश्न क्या है बिना देखे बता दिया। कितने अच्छे पंडित थे। मेरी पूरी बात सुन कर पंडित जी ने मुझे बड़ी गंभीरता से समझाया कि मैं ऐसे पंडितों के चक्करों में ना फंस जॉँऊ। उन्होंने समझाया कि ये लोग तांत्रिक होते हैं। शमशान भूमि में प्रेत आत्माओं को वश में करके गत की बातें बता सकते हैं , भविष्य की नहीं। आपकी लिखी बातें कर्ण पिशाचिनी ने पढ़ी और उनके कान में बता दिया कि क्या लिखा गया है। ये लोग अंत में बहुत बुरी मौत मरते हैं। ये शेवड़े हैं , पंडित नहीं। इनसे दूर ही रहना चाहिए। मैं पं० वेणी प्रसाद जी से अपना वर्ष फल मंगवाता रहता था। उनके अनुसार उस वर्ष मुझे पेट में पीड़ा होगी।ऑपरेशन करवाने की नौबत तक भी आ सकती है। करवा लेना। जान को कोई खतरा नहीं है। ऑपरेशन टल भी सकता है। जम्मू -कश्मीर में राजौरी – पुंछ सेक्टर में एक बार ऊंची पहाड़ी चढ़ते हुए मुझे पेट में
असहनीय पीड़ा शुरू हुई। मुझे बड़े अस्पताल में भेजा गया। पेट के 20 - 22 एक्सरे लिए गए। पेट का ऑपरेशन होगा यह तय हुआ । ऑपरेशन - थिएटर की मरम्मत होनी थी। अतः मेरा ऑपरेशन टाल दिया गया। मेरे ऑपरेशन की कोई इमरजेंसी नहीं थी।शाम को गोल मार्केट में घूमते हुए एक
वैद्य की वैद्यशाला का बोर्ड दिखाई दिया। उनसे परामर्श किया। उनकी आयुर्वेदिक दवाइयाँ लेनी शुरू की और मैं पूर्ण रूप से स्वस्थ हो गया। पंडित जी की भविष्यवाणी अक्षरशः सत्य निकली। पेट में दर्द -पीड़ा होगी। ऑपरेशन तक की नौबत आ सकती है। ऑपरेशन टल सकता है। इस वर्ष की सालाना छुट्टियों में जब मैं घर गया तो पंडित जी से मिलने गया और उनको धन्यवाद भी दिया कि उनकी मेरे स्वास्थ्य के विषय में की गई भविष्यवाणी सही निकली। मेरा ऑपरेशन नहीं हुआ और मैं अब स्वस्थ हूँ।
गुड़ मीठा लगता है उसके गुण मिठास के कारण। ब्राह्मण की पूजा है उसके ज्ञान के कारण। ब्राह्मण पंडित तभी बनता है जब उसे ज्ञान हो। ब्राह्मण का ज्ञान या उसके ज्योतिष के ज्ञान का स्तर इतना नीचा नहीं है,जिसकी कोई प्रदर्शनी हो। यह कोई बस स्टैंड पर डमरू बजाते हुए मदारी की भांति कोई चमत्कार दिखाने की कला की भांति नहीं है। ब्राह्मण का ज्ञान अपने आप लोगों को अपनी ओर आकर्षित करता है। मधुमक्खी स्वयं रसीले पुष्प के पास जाती है, उसका मीठा रस ग्रहण करती है और उसे संजो के रखती है। ब्राह्मण पूजा करता है और पूजा जाता है।
चाणक्य कहते हैं कि अच्छे व सच्चे व्यक्ति में त्याग की भावना होती है। चाणक्य कहते हैं कि जो व्यक्ति दूसरों के सुख के लिए कुछ नहीं कर सकता, वह भला इंसान नहीं हो सकता है। दूसरों की खुशियों के लिए अपनी खुशियों का त्याग करने वाला व्यक्ति ही अच्छा इंसान माना जाता है।