गुरुवार, 20 जुलाई 2023

आस्था,चमत्कार या अन्धविश्वास

  



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आस्था या अंधविश्वास 

आस्था का संबंध केवल आत्मा-परमात्मा से नहीं, संपूर्ण अस्तित्व से है। आस्था जीवन की संचालन शक्ति है। संशय उत्पन्न होते ही वह शक्ति गड़बड़ा जाती है। अगर जीवन-व्यवस्था को ढंग से चलाना है तो हमें विश्वास और आस्था का सहारा लेना ही है--"आस्था किसी विचार, मूल्य, व्यक्ति अथवा कथन में वह दृढ़ विश्वास है जिसे वह पर्याप्त एवं विश्वसनीय प्रमाणों के न होते हुए भी पूर्णतः स्वीकार करता है जिसमें कुछ अनिश्चयात्मकता अनिवार्यतः विद्यमान रहती है।"श्रद्धा पवित्र आचरण से निर्माण होती है यदि किसी व्यक्ति में सत्य निष्ठा पवित्रता एवं निस्वार्थ बुद्धि हो तो अनेक लोग उसके निकट आते हैं उसके शब्दों का मान होता है वह हृदय हृदय का स्वामी बनता है श्रद्धा की एक लहर निर्माण होती है और यही आस्था में बदल जाती है | आस्था और बुद्धि परस्पर विरोधी है इनका आपस में कोई संबंध नहीं है ऐसा सोचना गलत है अगर ऐसा होता तो भगवान वेदव्यास जगतगुरु शंकराचार्य संत ज्ञानेश्वर स्वामी विवेकानंद जैसे बुद्धिमान लोग आस्थावान नहीं कहलाते | लोग कहते हैं तर्क से आस्था कमजोर होती है मैं कहता हूं तर्क से आस्था बढ़ती है और धीरे-धीरे जीवन में ज्ञान की लहर उत्पन्न होने लगती है और अगर एक बार आस्था बढ़ने लगी तो सम्पूर्ण समाज में फैलती है | समान आस्था युक्त व्यक्ति समूह को ही समाज अथवा राष्ट्र का अभिधान प्राप्त होता है | राष्ट्र के अंग अंग में समान आस्था प्रस्थापित होने से अनुशासनपूर्ण विराट शक्ति का आभिभार्व होकर राष्ट्र को सुख समृद्धि और ऐश्वर्य प्राप्त होता है | गीता में भगवान कृष्ण अनेकों बार कहा है तुम अज्ञानी हो या ज्ञानी हो इससे कोई फर्क नहीं पड़ता अगर तुम आस्थावान हो तो तुम मेरे पास जल्दी आ जाओगे आस्था से विश्वास उत्पन्न होता है और विश्वास से समाज का निर्माण होता है | समाज में आस्था का बीजारोपण करना पडता है और श्रद्धा और विश्वास की जड़े जमानी पड़ेगी साथ ही शुद्ध आस्था चाहिए, ईश्वर पर आस्था चाहिए, संपूर्ण जगत का निर्माण ईश्वर ने किया है यह सब मानव उसी के द्वारा निर्मित हैं ऐसी आस्था चाहिए, मैं ईश्वर का पुत्र हूं और प्राणी मात्र मेरे बांधव है सबके जीवन का कोई ना कोई हेतु है ऐसा मेरा विश्वास है |

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आस्था से आत्मविश्वास बनता है | जिनमे आत्मविश्वास की मात्रा अधिक होती है वही कुछ बड़ा काम कर सकते हैं या अपने उद्देश्य में अपने लक्ष्य में सफलता प्राप्त कर सकते हैं | ऐसा व्यक्ति सन्यासी होकर जब दूसरे व्यक्तियों के संपर्क में आता है तो उन लोगों के अंदर भी दृढ़ निश्चय भाव पैदा करता है और उस दृढ़ निश्चय से उस व्यक्ति के जो काम है पूरे होते हैं रोग दूर होते है उसका निश्चय मजबूत होता है उसका मन मजबूत होता है उसका आत्मविश्वास बढ़ता है और उस पर विश्वास करने से वह व्यक्ति समझता है कि सामने वाले व्यक्ति ने मेरे साथ चमत्कार कर दिया है |

यह बात उस समय की है जब मै बहुत छोटी थी।हमारे यहाँ ट्रको से सामान को एक जगह से दूसरी जगह भेजने का काम होता था इसलिए पिता जी जब भी कोई नई गाड़ी (ट्रक) खरीदते थे तब हम उसी गाड़ी से पूणागिरि मंदिर टनकपुर (उत्तराखंड) जाते थे।हमारा पूरा परिवार दर्शन के लिए जाता था, ट्रक में पीछे बैठने के लिए पर्याप्त जगह होती है इसलिए बैठने उठने की कोई दिक्कत नहीं होती थी। यात्रा के दौरान खान पान से जुड़ी सभी सामग्री हम गाड़ी में ही रखते थे और और मुझे याद है कि ट्रक को रास्ते में ही रोककर मेरे पिता जी और चाचा जी हम सभी के लिए खाना बनाते थे।मेरी माता जी और घर की सभी महिलाएं मिलकर कुछ पुराने मीठे गीत गाया करती थी। पूणागिरि मंदिर पहाड़ो पर स्थित है।आखिर हम मंदिर के स्थान तक पहुंच गए लेकिन न तो यात्रा अभी पूरी हुई और न ही हमें देवी माँ के दर्शन हुए। देवी माँ के दर्शन के लिए अभी हमें 7-8 किलोमीटर की चढाई करनी थी। एक -एक करके सभी आस्था और विश्वास के साथ चढाई करने लगे और आखिर हम माँ के दरबार पहुंच गए। दर्शन के बाद हम सभी चढाई उतरने लगे।अब कोई आगे कोई पीछे चलते चले जाते, रात के करीब 1 बजे मैं, मेरी बुआ और मेरे दो छोटे भाई बहन हम सब साथ में थे, काफी अंधेरा होने की वजह से हमें कोई और दिख नहीं रहा था और यह भी नहीं पता चल रहा था कि हम आगे है या फिर पीछे। लेकिन चढाई से उतरने का रास्ता एक ही था तो हम चलते रहे। मुश्किल तब आई जब दोराहे आए, किसी ने कहा दाएं तो किसी ने कहा बाएं जाना सही रहेगा । हमने एक रास्ता चुना और चलने लगे। रास्ते में दूर दूर तक कोई नहीं दिख रहा था, मन ही मन हम डर रहे थे कि न जाने इस पहाड़ी पर रास्ता कैसा हो, आगे रास्ता है भी या नहीं। जब भी कोई कंकड़ या पत्थर हमारे पैरों से टकराता तो पास की गहरी खाई में गिर जाता। यह तो और भी भयावह था।अभी हम थोड़ा ही आगे निकले थे कि किसी ने हमें पीछे से आवाज दी।हमने पीछे मुड़कर देखा, वह एक बूढा व्यक्ति था। उसने कम्बल से अपने शरीर को ढक रखा था जिसकी वजह से हम उसे ठीक से नहीं देख पा रहे थे। उसने कहा - "अरे तुम लोग कहां जा रहे हो, यह रास्ता ठीक नहीं है।तुम्हारी गाड़ी तो दूसरे रास्ते पर खड़ी है जाओ और इस रास्ते पर वापस मत आना "।"जाओ, वो रास्ता - उसने अपने हाथ से इशारा किया"। हम उस व्यक्ति की बात सुनकर डर गए और तुरंत उस रास्ते से वापस लौटने के लिए चले । मेरी बुआ उन्हें धन्यवाद करने के लिए पीछे मुड़ी, लेकिन यह क्या वह व्यक्ति तो वहां से जैसे गायब हो गया। हमें देवी माँ पर विश्वास था, हम उनका नाम लेकर चल दिए कि अब जो होगा उनकी इच्छा से होगा। यह रास्ता ठीक था। चलते-चलते सुबह के चार बजे गए, अब मैंने रास्ते में अपने मामा को देखा वह भी हमारे साथ गए थे। हम उन्हें देखकर खुश हो गए। उस बूढ़े व्यक्ति द्वारा बताया गया रास्ता बिल्कुल ठीक था। .सबसे मिलने के बाद हमने उन्हें यह बताया कि कैसे एक अनजान व्यक्ति ने हमारी मदद की वरना हम गलत रास्ते पर चल दिए थे। मेरे पिता जी ने बताया कि जिस रास्ते की बात कर रहे हैं वह रास्ता दो सालो से बंद है और उस रास्ते पर कोई नहीं जाता है, वहां कई लोगों की खाई में गिर कर मौत हो चुकी है। इसके अलावा उस रास्ते पर कोई काम भी नहीं हो रहा है। हम समझ गए कि वह स्वयं भैरव जी थे जो हमें सही रास्ता दिखाने आए थे। वे स्वयं हमारी मदद के लिए आए थे या फिर देवी माँ ने उन्हें भेजा था क्योंकि उस रास्ते पर पिछले दो सालों से किसी के भी जाने या किसी व्यक्ति के देखे जाने की कोई घटना नहीं हुई थी। और तो और उस व्यक्ति को कैसे पता चल कि हमारी गाड़ी कहां रुकीं हुई है?

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 दिसंबर 2008 ब्राजील में मार्सिलियो नाम का एक शख्स वायरल ब्रेन इंफेक्शन की वजह से कोमा में चला गया। जब उम्मीदें खत्म हो गईं तब उनकी पत्नी कैथोलिक पादरी की शरण में गई। पादरी ने उन्हें मदर टेरेसा से प्रार्थना करने को कहा। मार्सिलियो की पत्नी फर्नान्डा के मुताबिक मदर टेरेसा की प्रार्थना की वजह से ही बीमारी ठीक हुई।

एक बार दीपावली के दिन दुकानदार ने साईं बाबा को दीपक जलाने के तेल नही दिए। साईं बाबा मुस्कराकर वहां से चल दिए और वापस द्वारका माईं में आ गए। साईं बाबा ने पानी से उन दीपकों को जलाया, वो दीपक ऐसे जल रहे थे मानों घी से जल रहे हों। यह चमत्कार पूरी शिरडी ने देखा और देखकर हर कोई जय-जयकार करने लगा।

बाबा हरभजन सिंह को शहीद हुए 50 वर्ष से अधिक हो चुके हैं। लेकिन स्थानीय लोग मानते हैं कि हरभजन सिंह आज भी मरणोपरांत भारतीय चीन की सीमा पर तैनात हैं। उन्हे आज भी छुट्टी से लेकर सैलरी तक दी जाती है। यह मंदिर सिक्किम की राजधानी गंगटोक से तकरीबन 50 किमी दूर नाथुला पास से 9 किमी नीचे की तरफ स्थित है।बाबा चीन की हर गतिविधि पर नजर रखते हैं-सैनिकों का मानना है कि बाबा हरभजन सिंह आज भी मां भारती के वीर सपूत होने के कर्त्तव्यों का निर्वहन करते हुए देश की रक्षा कर रहे हैं। सिक्किम के लोग मानते हैं कि बाबा हरभजन चीन की गतिविधियों पर आज भी नजर रखते हैं और जब भी चीन घुसपैठ करने की कोशिश करता है, वो किसी भारतीय जवान साथी के सपनें में आकर इस बात की जानकारी दे जाते हैं।-चीनी सैनिक भी उनकी कहानी बताते हैं-बाबा की वीरता की कहानी न केवल भारतीय जवानों के ज़ुबान पर है बल्कि चीनी सैनिक भी उनसे जुड़ी कहानी बताते हैं। बाबा हरभजन सिंह का जन्म 30 अगस्त, 1946 को पंजाब के सरदाना गांव में सिख परिवार में हुआ। विभाजन के बाद यह गांव पाकिस्तान में शामिल हो गया। बाबा हरभजन सिंह 9 फरवरी, 1966 को भारतीय सेना के पंजाब रेजिमेंट के 24वें बटालियन में नियुक्त हुए। अब बाबा हरभजन को भारतीय ‘नाथुला के नायक’ के रूप में जानते हैं।

आजकल बागेश्वर धाम के पंडित धीरेंद्र गर्ग बहुत चर्चा में है। कहते हैं कि वह लोगों के मन की बात जानकर उनकी समस्या का समाधान कर देते हैं। ऐसा दावा है कि रामकथा के साथ ही वे दिव्य दरबार लगाते हैं, जिसमें वे चमत्कारिक रूप से लोगों के दु:ख दूर करते हैं।

मध्‍यप्रदेश के मंदसौर जिले के रहने वाले दिनेशचंद्र पारिख 70 वर्ष के हैं। पारिख का कहना है कि हम योग के चमत्कारों को शब्‍दों में बयां नहीं कर सकते । वो बताते हैं कि नौ साल पहले हम योग से जुड़े। इसके बाद योग साधना से कुछ लाभ दिखा और मेरी दिलचस्‍पी इसमें गहरी होती गई। धीरे-धीरे योग से शारीरिक और मानसिक लाभ मिला और आस्‍था पैदा होने लगी। उन्‍होंने कहा कि 2008 से मैं नियमित योग कर रहा हूं।

जब भी कोई ऐसा काम जो हम नही कर सकते या सोच भी नही सकते वो हो जाये तो कहते है चमत्कार हो गया | मैने कुछ उदाहरण लिखे है कुछ अंधविश्वास भी है जैसे 13 का अंक कुछ लोग अशुभ मानते है । इंग्लॅण्ड का संविधान परम्पराओ पर आधारित है | विश्वास एक ऐसी भावना है जो किसी वस्तु के लिए उत्पन्न हो जाए, तो जल्दी टूटती नहीं है। और यही अगर एक व्यक्ति के बजाय आम जनता तक फैल जाए, तो इसे कट्टर विश्वास बनने से कोई नहीं रोक सकता। लेकिन अंधविश्वास जिस भी बात या वस्तु पर हो, फिर चाहे वह सही हो या गलत, लोग इसे पूरी ईमानदारी से मानते हैं। एक छोटा बच्चा अपने घर, परिवार एवं समाज में जिन परंपराओं, मान्यताओं को बचपन से देखता एवं सुनता आ रहा होता है, वह भी उन्हीं का अक्षरशः पालन करने लगता है।

भाव से भावना बनती है भावना से मन बनता है मन से विश्वास बनता है विश्वास से आस्था और सात्विक आस्था से शक्ति और शक्ति से चमत्कार होते है | 



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