जानकारी काल
वर्ष-24 अंक-03 जुलाई -2023, पृष्ठ 52 मूल्य 2-50
ॐ हौं जूं सः ॐ भूर्भुवः स्वः ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ॐ स्वः भुवः भूः ॐ सः जूं हौं ॐ।
हम भगवान शिव की पूजा करते हैं, जिनके तीन नेत्र हैं, जो सुगंधित हैं और हमारा पोषण करते हैं। जैसे फल शाखा के बंधन से मुक्त हो जाता है वैसे ही हम भी मृत्यु और नश्वरता से मुक्त हो जाएं।
महामृत्युंजय मन्त्र जिसे त्रयम्बकम मन्त्र भी कहा जाता है, यजुर्वेद के रूद्र अध्याय में, भगवान शिव की स्तुति हेतु की गयी एक वन्दना है। इस मन्त्र में शिव को 'मृत्यु को जीतने वाला' बताया गया है। यह गायत्री मन्त्र के समकक्ष मन्त्र है।
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अनुक्रमणिका
सम्पादकीय - 2
संस्कार एवं चरित्र निर्माण 3 - लेख
G 20 शिखर सम्मेलन- परिचय एवं विशेषताएं-6 लेख
तराजू - 9 लेख
मैन आफ दा मैच - 11 कविता
धैर्य - 15 कहानी
पन्ना धाय - 14 कहानी
नाकारा मनुज और यह व्यथित मन - 16 कविता
उपभोगतावाद - 17 लेख
मुफ्त बसें लेकिन - 18 लेख
लो 21 वीं सदी आ गई - 20 कविता
क्या आपने मक्खन का पेड़ देखा है - 21 लेख
जिन्दगी रही तो - 23 कहानी
युद्ध के बाद - 24 कविता
आम - आदमी - 25 कविता
रेलवे-स्टेशन पर बचपन - 27 कहानी
मासिक पंचांग,पंचक विचार,भद्रा विचार,जुलाई मास के व्रत,
सर्वार्थ सिद्ध योग,मूल विचार - 29 ज्योतिष
मांगलिक दोष विचार परिहार - 32 ज्योतिष
जुलाई मास के महत्वपूर्ण दिवस - 33 जानकारी
कामिका एकादशी - 35 व्रत कथा
पद्मिनी एकादशी - 36 व्रत कथा
पडोसी धर्म - 38 कहानी
संस्कार और माँ - 41
भुजंगासन - 43 स्वास्थ्य
बुद्धि विभ्रम के कारण व परिणाम- 45 लेख
वर वधू के लिए फार्म- 49 सहायतार्थ
गुड़ की खरीद - 50
सम्पादकीय
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतु र्भूर्मा ते संगोस्त्वकर्मणि ।।
भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि हे अर्जुन। कर्म करने में ही तेरा अधिकार है। कर्म के फल का अधिकार तुम्हारे पास नहीं है। इसलिए तू केवल केवल कर्म पर ध्यान दे उसके फल की चिंता न कर।
ज्ञान योगी तो संसार के साथ है माने हुए संबंध का त्याग करता है पर भगत एक भगवान के सिवा दूसरी सत्ता मानता ही नहीं इसलिए ज्ञान योगी पदार्थ और क्रिया का त्याग करता है,और भक्त पदार्थ ओर क्रिया को भगवान को अर्पण करता है, अर्थार्त उनको अपना ना मानकर भगवान का और भागवत स्वरूप मानता है वास्तव में भक्त अपने आप को ही भगवान के समर्पित कर देता है स्वयं समर्पित होने से उसके द्वारा होने वाली संपूर्ण अलौकिक पारमार्थिक क्रियाएं भी स्वभाविक ही भगवान को समर्पित हो जाती हैं | वही वस्तु या क्रिया भगवान को अर्पित की जाती है जो भगवान के अनुकूल हो उसके आज्ञा अनुसार होती है जिस भक्त का भगवान के प्रति अर्पण करने का भाग है उसके द्वारा न तो गलत क्रिया होगी और ना ही निषिद्ध क्रिया अर्पित हो हो सकेगी भगवान का दिया हुआ अनंत गुना होकर मिलता है यदि कोई अशुभ क्रिया भगवान के अर्पित करेगा तो उसका फल भी दंड स्वरूप उसको अनंत गुना मिलेगा कर्म भी शुभ अशुभ होते हैं और फल भी। दूसरों के हित के लिए कर्म करना शुभ है और अपने लिए करना अशुभ कर्म है । अनुकूल परिस्थिति शुभ फल और प्रतिकूल परिस्थितियां अशुभ फल है। भगवान का भक्त शुभ कर्मों को भगवान के अर्पण करता है अशुभ कर्म करता ही नहीं और फल से अनुकूल प्रतिकूल परिस्थिति से सुखी दुखी नहीं होता उसके अनंत जन्मों के संचित शुभाशुभ कर्म भस्म हो जाते हैं जैसे घास के ढेर में जलता घास का टुकड़ा फेंक देने से जल जाती है भगवान पर अर्पण करने से संसार का संबंध नहीं रहता प्रयुक्त केवल भगवान का संबंध रहता है जो कि वह पहले से ही है मनुष्य भगवान को अपनी वस्तु एक क्रिया अर्पण करें अथवा न करें भगवान को कुछ फर्क नहीं पड़ता वह तो सदा समान ही रहते हैं किसी वर्ग विशेष आश्रम विशेष जाति विशेष संप्रदाय विशेष योग्यता विशेषाधिकार से भगवान पर कोई असर नहीं पड़ता अतः प्रत्येक वर्णाश्रम जाति संप्रदाय आदि का मनुष्य उन्हें प्राप्त कर सकता है। भगवान केवल आन्तरिक भाव को ग्रहण करते हैं।
अचोद्यमानानि यथा, पुष्पाणि फलानि च।
स्वं कालं नातिवर्तन्ते, तथा कर्म पुरा कृतम्।
जिस तरह फल, फुल बिना किसी प्रेरणा के समय पर उग जाते हैं, उसी प्रकार पहले किये हुए कर्म भी यथासमय ही अपने फल देते हैं। यानिकी कर्मों का फल अनिवार्य रूप से मिलता ही है।
संस्कार एवं चरित्र निर्माण
नम्रता दत्त
बाल मनोविज्ञान के अनुसार बालक का 85 प्रतिशत विकास छः वर्ष की अवस्था से भी पूर्व हो जाता है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के दस्तावेज में भी इसका उल्लेख किया गया है और बाल्यावस्था में इस विकास का माध्यम अनुभव आधारित, क्रिया आधारित, खोज आधारित अथवा खेल खेल में बताया है। यही अनौपचारिक शिक्षा है।
वास्तव में तो सामान्यतः शिक्षा का अर्थ संस्कार के रूप में ही लिया जाता है। वे संस्कार जो सर्वे भवन्तुः सुखिनः और वसुधैव कुटुम्बकम् के भाव को जागृत करें। इतने भारी भरकम शब्दों का भाव क्या बालक 6 वर्ष की अवस्था में समझ पाता है यदि नहीं तो मनोवैज्ञानिक ऐसा क्यों कहते हैं और यदि हां तो यह कैसे सम्भव है?
संस्कार कोई टॉफी नहीं, जो बालक को खिला दी जाए, वह कोई एनर्जी बुस्टर भी नहीं जो दूध में घोल कर पिला दिया जाए। फिर यह संस्कार 85 प्रतिशत तक बालक में कैसे विकसित होंगे। किन किन क्षेत्रों में उसे संस्कारित करें कि उसका व्यक्तित्व प्रतिभाशाली बने और वह सर्वे भवन्तुः सुखिनः की उक्ति को पूर्ण कर सके। आइए संक्षेप में विचार करते है।
संस्कार एवं चरित्र निर्माण के लिए चार पक्षों पर विचार करना होगा –
पूर्वजों का परिचय एवं उनसे प्रेरणा लेना – पूर्वज का अर्थ है जो हमसे पूर्व में रहे हैं, जिन्होंने राष्ट्र, समाज अथवा परिवार के लिए कुछ साकारात्मक परिवर्तन का कार्य किया है एवं अपनी परम्पराओं के संरक्षण के लिए त्याग, समर्पण तथा बलिदान किया है जैसे- भक्त प्रहलाद, लव-कुश, फतेह सिंह, जोरावर सिंह, महात्मा बुद्ध, महावीर स्वामी, गुरु नानक देव, राजा राम मोहन राय, रानी लक्ष्मीबाई, सावित्रीबाई फुले आदि आदि …….। ऐसे महापुरुषों (पूर्वजों) के चित्र दिखाकर, इनके नाम बताकर, इनकी कहानियां एवं गीत सुनाकर खेल-खेल में उनके जीवन की घटनायें बताना ही अनौपचारिक रूप से संस्कार एवं चरित्र निर्माण की शिक्षा देना है। ज्ञानेन्द्रियों (आंख और कान) से लिया गया यह अनुभव बालकों के भावी जीवन को साहस, बुद्धिमता, त्याग, समर्पण एवं गौरवमयी जीवन जीने के संस्कार देता है।
मैं अपनी एक परिचिता से मिलने गई, परिवार उस समय घरेलू सामान (राशन) खरीद कर लाया था और उसको यथा स्थान रखने की व्यवस्था कर रहा था। राशन का कुछ सामान (आटा और दालें आदि) अलग से निकाल कर उन्होंने एक बैग में भर दिया। मित्र बोली कि कल जब मैं मन्दिर जाऊंगी तो ले जाऊंगी। उसने कहा कि हर छह मास में वह ऐसा करती हैं। पहले गांव में रहते थे खेती का अनाज आता था तो सबसे पहले मन्दिर में भेजते थे। अब खेत तो बंटाई पर दे रखे हैं वहां से फसल लाने में खर्च अधिक लगता है, इसलिए हर छह मास में हम यहीं से अनाज खरीद कर मन्दिर में दे देते हैं। कुल की परम्परा तो बनी रहती है। मेरी सास करती थी तो मैं करती हूँ, मुझे देखकर ये बच्चे भी सीख जायेंगे, उम्मीद है कि आगे यह भी ऐसा ही करेंगे।
संस्कृति परिचय – प्रत्येक देश का अपना जीवन दर्शन (जीवन जीने के नीति नियम) होता है और इसी जीवन दर्शन को शिक्षा/संस्कारों से जीवित रखा जाता है। इन सतत् चलने वाले संस्कारों से ही संस्कृति बनती है। भारतीय संस्कृति सर्वश्रेष्ठ एवं प्राचीन है। भारत विश्व गुरु रहा है। छोटे बालक को यह सब संस्कार सीखाने के लिए वातावरण देना पङता है। वातावरण के वायुमंडल का प्रभाव उसको प्रभावित करता है। छोटी छोटी बातें बङा प्रभाव डालती हैं। छोटे छोटे श्लोक, सूत्रों और मंत्रों का उच्चारण उसे संस्कारित करता है। अतः ऐसे श्लोक, सूत्रों और मंत्रों का उच्चारण कराना चाहिए जैसे-
भारत मेरा देश है।
मेरा जीवन मेरे प्राण, भारत माता पर बलिदान।
भारत माता की जय।
धरती हमारी माता है, गाय हमारी माता है, गंगा हमारी माता है।
मातृ देवो भव्, पितृ देवो भव्, आचार्य देवो भव्।
वसुधैव कुटुम्कम्।
सर्वे भवन्तु सुखिनः।
अन्न ब्रह्म है। ईश्वर को भोग लगाकर ही भोजन खाएं, जितना खायें, उतना ही लें, झूठा न छोङे।
हम सबको ईश्वर ने बनाया है।
जल ही जीवन है, इसे बेकार न करें।
‘पुस्तक’ मां सरस्वती का स्वरूप है, उसे पैर न लगाएं।
ईश वन्दना, शांति पाठ, गायत्री मंत्र, भोजन मंत्र आदि।
भारतीय जीवन दर्शन से जुङे ऐसे अनेक बिंदु हो सकते हैं। घर एवं विद्यालय में इनका वातावरण बनाना चाहिए। इन बिन्दुओं से जुङे गीत, कहानी, नाटक, कला, पपेट्स शो आदि भी किए जा सकते हैं। दीवारों की साज सज्जा भी इनके अनुरूप कर सकते हैं।
सद्गुण एवं सदाचार – दूसरों के प्रति मन में अच्छे भावों को रखना सद्गुण तथा व्यवहार से दूसरों के प्रति अच्छे आचरण को सदाचार कहते हैं। यह सदगुण और सदाचार बालकों को उपदेश से सिखाना असम्भव है। ये केवल स्वयं के आचरण से ही प्रेम और आनन्द के वातावरण में ही सिखाए जा सकते हैं। ये सदगुण और सदाचार हैं जैसे-
अपनी एवं अपने आसपास की सफाई रखना। कूङा कूङेदान में फेंकना।
खाने की वस्तु को बांटकर खाना। खिलौने बांटकर खेलना।
अपनी बारी की इंतजार करना।
किसी दूसरे की वस्तु को न लेना। आवश्यकता पङने पर पूछ कर लेना, काम हो जाने पर धन्यवाद के साथ वापिस देना।
सामान को व्यवस्थित रखना।
दूसरों की सहायता करना।
प्रेम, दया, करुणा, परोपकार, स्नेह, सम्मान आदि गुणों की लम्बी सूची बन सकती है। बालक अनुकरण करके ही सीखता है, अतः उसे प्रेम और सौहार्द से सिखाएं।
देशभक्ति – वैसे तो उपरोक्त संस्कार भी देश भक्ति ही सिखाते हैं बशर्ते कि यह कृतिशील/व्यवहार में हो। फिर भी स्वदेशी वस्तुओं से प्रेम, प्रकृति/पर्यावरण का संरक्षण, राष्ट्रीय त्यौहारों एवं महापुरुषों की जयन्तियों पर देश की गौरवमयी बातों को गीत, कहानी, वार्तालाप, नाटक और वेश-भूषा (फैंसी शो) तथा महापुरुषों के छोटे छोटे नारे बोलकर देशभक्ति के भाव का जागरण करना चाहिए। देखकर, सुनकर, बोलकर बालक के चित्त पर चित्र बनता है और इसी चित्र से उसका चरित्र बनता है।
इस श्रृंखला के अगले सोपान में बालक की क्षमताओं के विकास के संदर्भ में चर्चा करेंगे।
(लेखिका शिशु शिक्षा विशेषज्ञ है और विद्या भारती शिशुवाटिका विभाग की अखिल भारतीय सह-संयोजिका है।)
भाषा, भोजन, भजन, भ्रमण, भूषा और भवन के जरिये अपनी जड़ों से जुड़े रहना ही सार्थक जीवन है। सप्ताह में एक दिन परिवार के सभी लोग एक साथ भोजन ग्रहण करें, इसमें अपनी परंपराओं, रीति रिवाजों की जानकारी दें। फिर आपस में चर्चा करें और एक मत बनाएं और उस पर कार्य करें। -सरसंघचालक मोहन भागवत जी
G20 शिखर सम्मेलन- परिचय एवं विशेषताएं
शिखा सक्सेना
G20 शिखर सम्मेलन 20 प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं की सरकारों और केंद्रीय बैंक के गवर्नरों के लिए एक अंतर्राष्ट्रीय मंच है। जी20 की स्थापना साल 1999 में अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक सहयोग और विकास से संबंधित नीतिगत मुद्दों पर चर्चा और उनका समाधान करने के लिए की गई थी। जी20 में प्रतिनिधित्व करने वाले 20 देशों का विश्व के सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 85% और इसकी जनसंख्या का दो-तिहाई हिस्सा है। जी20 के सदस्य देश हैं - अर्जेंटीना, ऑस्ट्रेलिया, ब्राजील, कनाडा, चीन, यूरोपीय संघ, फ्रांस, जर्मनी, भारत, इंडोनेशिया, इटली, जापान, रूस, मैक्सिको, सऊदी अरब, दक्षिण अफ्रीका, तुर्की, यूके और यूएसए। जी20 भारत के लिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यह देश को दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के साथ जुड़ने, अपने आर्थिक हितों को बढ़ावा देने तथा महत्वपूर्ण वैश्विक मुद्दों को संबोधित करने के लिए एक मंच प्रदान करता है।जी20 शिखर सम्मेलन का आयोजन प्रतिवर्ष किया जाता है। जी20 ने शुरुआत में बड़े पैमाने पर व्यापक आर्थिक मुद्दों पर ध्यान केंद्रित किया, लेकिन बाद में इसके एजेंडे का विस्तार किया गया और अब व्यापार, जलवायु परिवर्तन, सतत विकास, स्वास्थ्य, कृषि, ऊर्जा, पर्यावरण और भ्रष्टाचार जैसी समस्याओं को भी इसमें जगह दी जा चुकी है। जी20 समिट की शुरुआत 22-25 फरवरी को बेंगलुरू में आयोजित होने वाली वित्त मंत्रियों और सेंट्रल बैंक गवर्नरों की बैठक से हुई। जी20 समिट इंडिया का समापन वर्चुअल मोड में 20 मार्च को आयोजित की जाने वाली वित्त-स्वास्थ्य कार्यबल की संयुक्त बैठक से हुआ।
जी20 भारत को अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक नीतियों को आकार देने और अपनी वित्तीय स्थिरता को बढ़ाने में
भाग लेने का अवसर भी प्रदान करता है। 2023 G20 शिखर सम्मेलन में कई प्रमुख मुद्दों पर ध्यान केंद्रित किए जाने की उम्मीद है, जिसमें COVID-19 महामारी के बाद बनी वैश्विक आर्थिक संकट वाली स्थित से बाहर आने, स्थाई और समावेशी आर्थिक विकास को बढ़ावा देने तथा असमानता और गरीबी को दूर करने जैसे मुद्दे शामिल हो सकते हैं। नेता जलवायु संकट से निपटने, अंतर्राष्ट्रीय व्यापार प्रणाली को मजबूत करने और अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय स्थिरता को बढ़ाने के तरीकों पर भी चर्चा करेंगे।
2023 G20 शिखर सम्मेलन में चर्चा के प्रमुख विषयों में से एक कोविड 19 टीकों का रोलआउट और महामारी से निपटने के लिए चल रहे प्रयास होने की उम्मीद है। नेता महामारी को दूर करने की दिशा में किए गए प्रयासों और मध्यम आय वाले देशों के लिए टीके की खुराक के प्रावधान सहित कई बिंदुओं पर विचारों का आदान-प्रदान करेंगे।
चर्चा का एक अन्य महत्वपूर्ण मुद्दा वैश्विक अर्थव्यवस्था को महामारी से उबारने और विकास को बहाल करने और रोजगार सृजित करने के लिए आवश्यक प्रयास होंगे। उन नीतियों को लागू करने पर ध्यान केंद्रित करेंगे जो निवेश और व्यापार का समर्थन करती हों, डिजिटल परिवर्तन को बढ़ावा देती हों और छोटे और मध्यम आकार के उद्यमों के सामने आने वाली चुनौतियों का हल करती हों।
2023 जी20 शिखर सम्मेलन नेताओं को जलवायु संकट को संबोधित करने और अधिक टिकाऊ और समावेशी भविष्य की दिशा में काम करने का अवसर भी प्रदान करेगा। शिखर सम्मेलन में आर्थिक विकास और रोजगार सृजन को बढ़ावा देते हुए हरित अर्थव्यवस्था की ओर बढ़ने और ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने के संभावित तरीकों पर चर्चा किए जाने की उम्मीद है
जी20 भारत के लिए कई कारणों से महत्वपूर्ण है:
प्रतिनिधित्व: भारत G20 में शामिल 20 देशों में से एक है, जो इसे वैश्विक अर्थव्यवस्था से संबंधित नीतिगत मुद्दों पर चर्चा के लिए अंतर्राष्ट्रीय मंच में अपना पक्ष रखने का मौका देता है। जी20 सम्मेलन भारत को प्रमुख आर्थिक मुद्दों पर अपने दृष्टिकोण और राय साझा करने के साथ ही वैश्विक आर्थिक नीतियों की दिशा तय करने वाले मुद्दों पर राय देने का अवसर प्रदान करता है।
आर्थिक विकास: G20 भारत को दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के साथ जुड़ने और अपने आर्थिक हितों को बढ़ावा देने के लिए एक मंच प्रदान करता है। भारत निवेश और व्यापार को आकर्षित करने के लिए जी20 मंच का भरपूर लाभ उठा सकता है, जो इसके आर्थिक विकास और विकास को गति दे सकता है।
वैश्विक मुद्दे: भारत के लिए G20 जलवायु परिवर्तन, गरीबी और असमानता जैसे वैश्विक मुद्दों को संबोधित करने का एक महत्वपूर्ण मंच है। भारत इन मुद्दों का समाधान खोजने और सतत व समावेशी आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के लिए अन्य जी20 देशों के साथ सहयोग कर सकता है।
वित्तीय स्थिरता: G20 समूह भारत के लिए भी प्रासंगिक है क्योंकि यह अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय स्थिरता को बढ़ाने में अहम भूमिका निभाता है। भारत वित्तीय विनियमन और स्थिरता से जुड़े विषयों पर चर्चा में
भाग ले सकता है, जो यह सुनिश्चित करने में मदद कर सकता है कि वैश्विक वित्तीय प्रणाली स्थिर और लचीली बनी रहे और इसके हितों की अनदेखी न होने पाए।
निष्कर्ष
G20 शिखर सम्मेलन वैश्विक समुदाय के सामने आने वाली चुनौतियों का समाधान करने के लिए एक महत्वपूर्ण कार्यक्रम है। नेता दुनिया की अर्थव्यवस्था को प्रभावित करने वाले मुद्दों पर चर्चा करने के लिए एक साथ आएंगे, जिसमें चल रही COVID-19 महामारी और एक स्थायी और समावेशी आर्थिक सुधार की आवश्यकता शामिल है। शिखर सम्मेलन नेताओं को विचारों का आदान-प्रदान करने और सभी के लिए बेहतर भविष्य की दिशा में मिलकर काम करने का अवसर प्रदान करेगा। अंत में, जी20 शिखर सम्मेलन बेहद प्रासंगिक है क्योंकि यह दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के नेताओं को महत्वपूर्ण वैश्विक मुद्दों को संबोधित करने और उनका समाधान खोजने की दिशा में काम करने के लिए उन्हें एक साथ एक मंच पर लेकर आता है। इसका महत्व अंतरराष्ट्रीय सहयोग और निर्णय लेने की सुविधा और सामूहिक कार्रवाई को चलाने और सभी के लिए बेहतर भविष्य बनाने की क्षमता में निहित है।
गुरू गोविन्द दोऊ खड़े, काके लागूं पांय
बलिहारी गुरू अपने गोविन्द दियो बताय
गुरू और गोविंद (भगवान) एक साथ खड़े हों तो किसे प्रणाम करना चाहिए – गुरू को अथवा गोविन्द को? ऐसी स्थिति में गुरू के श्रीचरणों में शीश झुकाना चाहिए क्योंकि उनके कृपा रूपी प्रसाद से गोविन्द का दर्शन करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।
तराजू
"कभी मेरी भावनाओं का ध्यान नहीं रखते। जब देखो तब बस उन्हें माँ जी की ही चिंता रहती है। मैं भी अब वापस नहीं जाना चाहती वहाँ। रहे अपनी माँ के साथ और खूब सेवा करें।"
ससुराल से लड़-झगड़कर मायके आयी बेटी की भुनभुनाहट विभा जी बड़ी देर से सुन रही थी। बात कुछ खास नहीं थी। वही घर-गृहस्थी के छोटे-मोटे मनमुटाव और खींचतान।
जब बेटी अपनी भड़ास निकालकर चुप हुई तब विभा जी ने बोलना शुरू किया।
"हम जब सब्जी लेने जाते हैं तो जितनी सब्जी चाहिए उसके लिए क्या करते हैं?"
उनके इस अजीबो गरीब सवाल पर बेटी अचकचा गयी-
"तराजू में तुलवाते हैं, और क्या।"
"और सही तोल के लिए क्या करते हैं?" विभा जी ने फिर एक अटपटा प्रश्न किया।
"एक पलड़े में सब्जी तो दूसरे पलड़े में जितनी चाहिए उतने का बाट या वजन रखते हैं।" बेटी झुंझलाकर बोली।
"अगर हमें एक किलो सब्जी चाहिए तो क्या दो सौ ग्राम का बाट रखने से मिल जाएगी?" विभा जी ने एक और प्रश्न किया बेटी से।
"कैसी बचकानी बात कर रही हो माँ, दो सौ ग्राम के बाट रखने से भला एक किलो सब्जी कैसे तुलेगी?" बेटी अब सचमुच झुंझला गयी थी।
"तो फिर बेटी सम्मान और प्यार के सौ ग्राम बाट रखकर तुम किलो भर की आशा कैसे कर सकती हो?" विभा जी गम्भीर स्वर में बोली।
"क्या मतलब...." बेटी हकबका गयी।
"मतलब ये की रिश्ते भी तराजू की तरह होते हैं। दोनो पलड़े संतुलित तभी होंगे जब वजन बराबर होगा" विभा जी बोली।
बेटी उनका मुँह देखने लगी चुप होकर।
"तुम सास को सम्मान और माँ समान प्रेम नहीं देती, पति को सहयोग नहीं करती और चाहती हो तो घर में सब तुम्हे पलकों पर बिठायें, खूब सम्मान दें, तो ऐसा नहीं होता।"
विभा जी ने समझाया तो बेटी का चेहरा उतर गया।
"जितना प्रेम, सम्मान ससुराल वालों से चाहती हो पहले अपने पलड़े में उनके लिए उतना रखो। तभी रिश्तों का तराजू संतुलित रहेगा।"
बेटी की आँखे भर आयी। अपनी गलती वो समझ चुकी थी।
डॉ॰ श्यामाप्रसाद मुखर्जी
डॉ॰ श्यामाप्रसाद मुखर्जी शिक्षाविद्, चिन्तक और भारतीय जनसंघ के संस्थापक थे। आपका जन्म 6 जुलाई 1901, कोलकाता व मृत्यु 23 जून 1953, श्रीनगर,हुई | आपकी शिक्षा प्रेसीडेंसी युनिवर्सिटी (1921), कोलकाता विद्यापीठ | आपकी पत्नी: सुधा देवी व माता जी जोगामाया देवी मुखर्जी ओर पिता आशुतोष मुखर्जी थे |
मेन ऑफ द मैच
श्वेता रसवंत
जीत भी होती है,हार भी होती है।
जब मैच कोई भो होता है,
तो मैच टाई भी होता है।
कोई अच्छा प्रदर्शन करता है।
कोई बुरा प्रदर्शन करता है।
कोई बेटिंग नही पा पाता है।
जब मैच कहि भी होता है।
जब टीम जीत है जाती है।
खुशियां बहुत मनाती है।
हिप हिप हुर्रे होता है।
मन चहक ही उठता है।
जो सर्वोपरी प्रदर्शन करता है।
सम्मानित वह बहुत ही होता है।
मेन ऑफ द मैच वह बनता है।
गौरवान्वित भी वह होता है।
कैप्टन प्रफुल्लित होता है।
पूरी टीम लाभान्वित होती है।
लेकिन कुछ टीम सदस्यों को,
वह बिल्कुल नही सुहाता है।
टीम में सिर्फ उसको ही,
क्यो मेन ऑफ थे मैच बनाया है।
कई निरंतर मैचों में वह
अपना प्रदर्शन दोहराता है।
निरंतर कई मैचों में
मेन ऑफ द मैच का सम्मान पाता है।
लेकिन कुछ टीम सदस्यों को
वह बिल्कुल नही सुहाता है।
आखिर क्यों वो ही बार बार
मेन ऑफ द मैच बन जाता है।
उसका प्रदर्शन छिपा न था,
परिणाम सामने दिखता था।
लेकिन फिर भी कुछ लोगो को
वो बहुत खटकने लगता था।
कैप्टन ज्यो ही बदल गया,
उसका मनोबल भी डोल गया।
नही बनना मुझको मेंन ऑफ द मैच,
यह उसने दिल में सोच लिया।
सब जीते तो है जीत मेरी,
सब की हार में ही है हार मेरी।
एक सदस्य टीम का बना रहूं,
मेन ऑफ द मैच की जिद छोड़ी।
यही दशा है , जो हमको,
कर्तव्य पथ से दूर लेजाती है।
मेहनत करने वालो को
उसके दुष्परिणाम दिखाती है।
कर्तव्यनिष्ठ होने पर गर
मेन ऑफ द मैच बन जाते हो।
तो तुम कुछ कथाकथित
अपनो की आँखो में कांटा बन जाते हो।
और फिर कुछ सहकर्मियों को
तुम बिल्कुल नही सुहाते हो।
बिल्कुल नही सुहाते हो,
बिल्कुल नही सुहाते हो।
बटुकेश्वर दत्त
बटुकेश्वर दत्त भारत के स्वतंत्रता संग्राम के महान क्रान्तिकारी थे। बटुकेश्वर दत्त को देश ने सबसे पहले ८ अप्रैल १९२९ को जाना, जब वे भगत सिंह के साथ केन्द्रीय विधान सभा में बम विस्फोट के बाद गिरफ्तार किए गए। उन्होनें आगरा में स्वतंत्रता आन्दोलन को संगठित करने में उल्लेखनीय कार्य किया था
धैर्य
रविन्द्र कौर
एक चाय की दुकान पर दो सज्जन एक दूसरे को गालियां देते हुए आपस में लड़ रहे थे !शर्मा जी भी वहीं पर लड़ाई देखने का लुत्फ़ उठा रहे थे,तभी उनमें से एक पूर्ण आवेश में आकर उनसे बोला - "भाईसाहब , देखो ना .... ये आदमी आधे घंटे से मेरी बाइक पर अपनी तशरीफ टिकाए खड़ा था ! मैंने इसको कुछ नहीं बोला , अब घर जाने का समय हो गया तो मैंने इसको अपनी बाइक से हटने को बोला , ये हटने के बजाय मुझ पर चढ़ रहा है.." क्यों भाई... ऐसा क्यों किया..? शर्मा जी ने दूसरे व्यक्ति से पूछा ! "भाई साहब , इसने विनम्रता से बोला होता तो मैं यूँ ना उलझता .. पर इसने आते ही गाली दी मुझे,अब गालियों का जवाब तो दूंगा ही ना." शर्मा जी ने पहले व्यक्ति से कहा - गलती सौ प्रतिशत तुम्हारी ही है भाई"ऐसे कैसे , अगर आपकी बाइक पर भी कोई यूँ पसरे तो क्या आपको गुस्सा नहीं आएगा आएगा भाई,जरूर आएगा पर मेरी बाइक पर कोई अपनी तशरीफ़ टिकाकर खड़ा हो , ऐसा मेरे साथ कभी नहीं हुआ आज तक शर्मा जी ने कहा । ऐसा कैसे हो सकता है,क्या आपकी गाड़ी में करंट लगा है या सीट पर कोई कांटे लगे है आदमी ने जानना चाहा ? अरे बेवकूफ ! मैं कभी भी अपनी बाइक को साइड स्टैंड पर खड़ी नहीं करता ! इतिहास गवाह है , मेन स्टैंड पर खड़ी गाड़ी पर किसी भी शख्स ने आज तक अपनी तशरीफ़ टिकाने की हिम्मत नहीं की ! दरअसल जो पहले से झुका होता है,लोग उसी का मुफ्त में मजा ले जाते है बेवजह की नम्रता दिखाने वाले हमेशा दुख ही पाते है ! पल्ले पड़ी क्या कुछ बात शर्मा जी ने कहा । अरे वाह भईया क्या पते की बात बताई है आपने,आगे से मैं भी अपनी बाइक को मेन स्टेंड पर ही खड़ी करूँगा आदमी ने जबाब दिया । याद रखें दोस्तों क़भी क़भी ज़्यादा झुकना हमारी विनम्रता व सज्जनता नहीं बल्कि कमज़ोरी को प्रदर्शित करता है | जिसकी दुनिया नाजायज़ फ़ायदा उठाने लगती है !अपना हक़ हासिल करने के लिए अगर जंग लाज़िम हो तो लश्कर नहीं देखे जाते |
पन्ना धाय
चित्तौड़ के महाराणा संग्रामसिंह की वीरता प्रसिद्ध है। उनके स्वर्गवासी होने पर चित्तौड़ की गद्दी पर राणा विक्रमादित्य बैठे; किन्तु वे शासन करने की योग्यता नहीं थे। उनमें न बुद्धि थी और न वीरता। इसलिये चित्तौड़ के सामन्तों और मन्त्रियों ने सलाह करके उनको गद्दी से उतार दिया तथा महाराणा संग्रामसिंह के छोटे कुमार उदयसिंह को गद्दी पर बैठाया। उदयसिंह की अवस्था उस समय केवल छ : वर्ष की थी। उनकी माता रानी करुणावती का स्वर्गवास हो चुका था। पन्ना नाम की एक धाय उनका पालन- पोषण करती थी। राज्य का संचालन दासी– पुत्र बनवीर करता था। वह उदयसिंह का संरक्षक बनाया गया था। बनवीर के मन में राज्य का लोभ आया। उसने सोचा कि यदि विक्रमादित्य और उदयसिंह को मार दिया जाय तो सदा के लिये वह राजा बन सकेगा। सेना और राज्य का संचालन उसके हाथ में था ही। एक दिन रात में बनवीर नंगी तलवार लेकर राजभवन में गया और उसने सोते हुए राजकुमार विक्रमादित्य का सिर काट लिया। जूठी पत्तल उठाने वाले एक बारी ने बनवीर को विक्रमादित्य की हत्या करते देख लिया। वह ईमानदार और स्वामिभक्त बारी बड़ी शीघ्रता से पन्ना के पास आया और उसने कहा– ‘ बनवीर राणा उदयसिंह की हत्या करने शीघ्र ही यहाँ आयेगा। कोई उपाय करके बालक राणा के प्राण बचाओ। ‘पन्ना धाय अकेली बनवीर को कैसे रोक सकती थी। उसके पास कोई उपाय सोचने का समय भी नहीं था। लेकिन उसने एक उपाय सोच लिया। उदयसिंह उस समय सो रहे थे। उनको उठाकर पन्ना ने एक टोकरी में रख दिया और टोकरी पत्तल से ढककर उस बारीको देकर कहा– ‘इसे लेकर तुम यहाँ से चले जाओ। वीरा नदी के किनारे मेरा रास्ता देखना। ‘उदयसिंह को छिपाकर हटा देने से भी काम चलता नहीं था। बनवीर को पता लग जाय कि उदयसिंह को छिपाकर भेजा गया है तो वह घुड़सवार भेजकर उन्हें अवश्य पकड़ लेगा। पन्ना ने एक दूसरा ही उपाय सोचा उसके भी एक पुत्र था उसके पुत्र चंदन की अवस्था भी छह वर्ष की थी। उसने अपने पुत्र
को उदयसिंह के पलंग पर सुलाकर रेशमी चद्दर उढ़ा दी और स्वयं एक ओर बैठ गयी। जब बनवीर रक्त में सनी तलवार लिये वहाँ आया और पूछने लगा– ‘उदयसिंह कहाँ है? ‘तब पन्नाने बिना एक शब्द बोले अंगुली से अपने सोते लड़के की ओर संकेत कर दिया। हत्यारे बनवीर ने उसके निरपराध बालक के तलवार द्वारा दो टुकड़े कर दिये और वहाँ से चला गया। अपने स्वामी की रक्षा के लिये अपने पुत्र का बलिदान करके बेचारी पन्ना रो भी नहीं सकती थी। उसे झटपट वहाँ से नदी किनारे जाना था, जहाँ बारी उदयसिंह को लिये उसका रास्ता देखता था। पन्ना ने अपने पुत्र की लाश ले जाकर नदी में डाल दी और उदयसिंह को लेकर मेवाड़ से चली गयी। उसे अनेक स्थानों पर भटकना पड़ा। अन्त में देवरा के सामन्त आकाशाह ने उसे अपने यहाँ आश्रय दिया। बनवीर को अपने पापका दण्ड मिला। बड़े होने पर राणा उदयसिंह चित्तौड़ की गद्दी पर बैठे। पन्ना धाय उस समय जीवित थी। राणा उदयसिंह माता के समान उसका सम्मान करते थे। पन्ना माई धन्य है। स्वामी के लिये अपने पुत्र तक का बलिदान करने वाली पन्ना माई धन्य है।
27 फरवरी 1931 में इलाहबाद (अब प्रयागराज) के अल्फ्रेड पार्क में मुठभेड़ के दौरान आजाद ने अंग्रेजों के हाथों पड़ने देने के बजाय खुद को गोली मारने का विकल्प चुना |
नाकारा मनुज और ये व्यथित मन
अलंकार शर्मा
समाचारों में है यह -
एक बाला को दनुज ने
मार डाला और
मनुज देखा किये
पूर्ण समत्व प्राप्त मनुजों ने
नहीं किया प्रतिकार
समाचारों में है ये !
निज अंश को रोती
बिलखती मातृमूर्ति
कह रही है -
न्याय तब तक शेष
जब तक उस दनुज को
मृत्यु का आदेश
जब तक ना मिलेगा द्वादश दिनों से
निजगृह में थी न कन्या
पूर्व में भी तथावत
आचरण रहा हो
मातृ-पितृ का है
यही कर्त्तव्य क्या मन मान
जो भी आचरण पशुवत करे
फिर भी न मातापितृ
समझाइश करे दनुज क्यों ना हाय
देखे सुअवसर पथभ्रष्ट कर
कन्या को कुचल दे
समाचारों में है ये !
राज्य लोलुप दूषकों का
कथन हाय
हम को क्या ?
दायित्व है यह
अमुक अपर का
समाचारों में है ये !
उस वसति के जनों का
दोष क्या ?
दिनानुदिन अपराध
दृष्टिगोचर जहाँ है
और सुनता कौन किसकी है यहाँ पर ?
स्वारथ को परमारथ
से ऊपर ही रखा है
समाज क्या ? समुदाय क्या
और भावना क्या ?
निर्माण ऐसे झुण्ड का
हमने ही किया है शृगाल, श्वान, खर
कपि, वृक भ्रमणरत
नागर अधुन के समाचारों में है ये
उपभोगतावाद
टॉयलेट धोने का हार्पिक अलग, बाथरूम धोने का अलग, टॉयलेट की बदबू दूर करने के लिए खुशबू छोड़ने वाली टिकिया भी जरुरी है। कपड़े हाथ से धो रहे हो तो अलग वाशिंग पाउडर और मशीन से धो रहे हो तो खास तरह का पाउडर, नहीं तो तुम्हारी 20,000 की मशीन एक बाल्टी से ज्यादा कुछ नहीं। और हाँ! कॉलर का मैल हटाने का वेनिश तो घर में होगा ही। हाथ धोने के लिए नहाने वाला साबुन तो दूर की बात, एंटीसेप्टिक सोप भी काम में नहीं ले सकते। लिक्विड ही यूज करो, साबुन से कीटाणु ट्रांसफर होते हैं। ये तो वही बात हो गई कि कीड़े मारने वाली दवा में कीड़े पड़ गए !!
बाल धोने के लिए शैम्पू ही पर्याप्त नहीं, कंडीशनर भी जरुरी है। फिर बॉडी लोशन, फेस वाश, डियोड्रेंट, हेयर जेल, सनस्क्रीन क्रीम, स्क्रब, गोरा बनाने वाली क्रीम काम में लेना अनिवार्य है ही। और हाँ! दूध (जो खुद शक्तिवर्धक है) की शक्ति बढाने के लिए हॉर्लिक्स मिलाना तो भूले नहीं न आप, मुन्ने का हॉर्लिक्स अलग, मुन्ने की मम्मी का जुदा और मुन्ने के पापा का डिफरेंट। साँस की बदबू दूर करने के लिये ब्रश करना ही पर्याप्त नहीं, माउथ वाॅश से कुल्ले करना भी जरुरी है।
तो श्रीमान मुस्सदीलाल जी! 10-15 साल पहले जिस घर का खर्च 15 हजार में आसानी से चल जाता था, आज उसी का बजट 40 हजार को पार कर गया है। इसमें सारा दोष महंगाई का ही नहीं है, मोदी को गाली देने से पहले थोडा इधर भी सोचो! सोचो! सोचो!
असल में हम लोग इन कंपनियों के लिए एक पैसा बनाने की मशीन बन गए हैं। इन चीजों की हमे कोई जरूरत नहीं होती है। केवल इन कंपनियों की बेचने की चालों के चलते हम पागलों की तरह खर्चे बढ़ा रहे हैं और फिर गधे की तरह कमाने में लग रहे हैं। घर मे एक आदमी की कमाई से अब काम नहीं चलता, इस लिए बीवी भी काम करेगी और बच्चे आया पालेगी या बतनजबीम में पलेंगे।
क्या यह पागलपन नहीं है? क्यों जी रहे हैं आप और हम? क्या इसीलिए? सोचिए और फिर अपनी इन बेफजूल की खरीदारी को बंद कीजिए।
मुफ्त बसें लेकिन
नरेश तोमर
दिल्ली की सड़कों पर एक के बाद एक वातानुकूलित लाल, नीली तथा इलेक्ट्रॉनिक बसें, वे भी महिलाओं के लिए मुफ्त,दौड़ती देखकर मैंने इन्हें कहा , "देखो ना जी ,दिल्ली सरकार ने महिलाओं के लिए मुफ्त बस सेवा कर दी है लेकिन हम भी कितने मूर्ख हैं कि ₹300 में कैब से स्कूल आ जा रहें हैं । आज तो मैं भी बस से ही आकर देखती हूँ।
" सुंदर बसें हैं : मुफ्त भी हैं लेकिन तुम नहीं आ -जा सकती।" ये बोले।
" मैं कैसे नहीं: आज तो —--।"
निर्णयानुसार मैं दो बजे बस स्टाॅप पर पहुँची। करीब ढाई बजे बस आई वह भी हरी वाली , भीड़ भरी। इसमें चढना तो मुश्किल होगा, छोड़ दी। फिर पंद्रह मिनट बेसब्री से इंतज़ार के बाद दूसरी नारंगी वाली,वह उससे भी भरी हुई। अब तो मुझे चढना ही था। मुझसे पहले एक युवती एक हाथ में बच्चा कंधे पर पर्श, नजरें दूसरे बच्चे पर बस में चढ़ने लगी। तभी मैले से कपड़े अनपढ़ सी औरत करीब सात साल के बच्चे का हाथ पकड़े मुझे धक्का मारती हुई उसके पीछे चली।
"छोड़ मेरा हाथ, शर्म नहीं आती औरत को छेड़ते हुए।" महिला स्वर।
सबकी निगाहें वहीं पर गई । दो तीन लडकें और महिला भी बुजुर्ग पर चिल्लाई।
"एक तो उसके पर्श से बटुआ निकाल रही हो,हाथ पकड़ लिया तो चिल्ला रही हो,चोरी और सीनाजोरी?" बुजुर्ग ने कहा
"मैं कुछ भी करुँ।" तुम किसी औरत का हाथ नहीं पकड़ सकतें। फिर क्या लगती है वह तेरी?
" बेटी है मेरी, मेरे रहते हुए तुम उसके पर्श में हाथ डालोगी तो मैं ऐसे ही हाथ पकडुँगा।" बुजुर्ग बोले।
"बुड्ढे! औरत को छेड़ने के जुर्म में अंदर जाकर ही मानोगे।" एक लड़का चिल्लाया।
मैंने मुस्तैद भैया को कहा, " भैया इस औरत के साथ जो बच्चा है उसकी तलाशी लो ,इसे पुलिस के हवाले करो। यह एक फ़ोन निकालकर बच्चे के बैग में डाल चुकी है। मैंने अपनी आँखों से देखा है।"
युवती ने पर्श देखा, सचमुच फ़ोन ग़ायब ।
उसके रोने -चिल्लाने से पहले ड्राइवर ने बस रोकी और चार पाँच सवारी को उतार दिया।
मैंने कहा- मुस्तैद भैया! यह क्या किया ?
मैम! मुझे सब पता है , लेकिन इतने बड़े गैंग के सामने मुझे भी तो अपनी जान प्यारी है। कुछ कमाने के लिए आया हूँ मरने के लिए नहीं।
लक्ष्मीबाई केलकर
लक्ष्मीबाई केलकर राष्ट्र सेविका समिति की संस्थापिका थीं। उन्हें सम्मान से 'मौसी जी' कहते हैं। उनका मूल नाम कमल था।
लो 21वीं सदी भी आ गई है!
इंदिरा वैद
शोर है कि बदल गया है ज़माना
बुलंदियों को छूने का है पैमाना
पुरज़ोर चर्चा है बदलती मान्यताओं की
स्त्री और पुरूषों की समानता की।
अंतरिक्ष को छू लेने के जश्न की है तैयारी
महिलाएँ भी घर से बाहर निकल रही हैं
मिला रही है पुरुषों के कंधे के साथ कंधा
अपनी पीठ पर उठाए हुए दोहरा बोझा-
अब वे पहले से अधिक फुर्तीली हो गई हैं।
इन कठपुतलियों का दायरा बढ़ चुका है
थोड़ी ढील मिली है नियंत्रण के शिकंजे से।
ये पढ़ लिखकर कमा रहीं हैं।
घर में बच्चे भी लिखा-पढ़ा रही हैं।
सुघड़ गृहिणी बन रसोई भी सजा रही हैं।
तरह -तरह के करतब दिखा रहीं हैं।
बेबसी मेकअप की परतों में छिपा रहीं हैं!
क्या इनके हाथों में है इनकी लगाम?
क्या खिल -खिल उठा हैं नारी-मन?
क्या पहचान गढ़ ली अपनी अपनी सभी ने? घर की चश्मदीद गवाह चारदीवारी से
यह प्रश्न पूछा जाना चाहिए। क्योंकि दीवारें सब सुनती हैं, झूठ नहीं बोलतीं!
क्या आपने मक्खन का पेड़ देखा है?
चौंकिए मत! इस तरह के पेड़ उत्तराखंड में अक्सर दिखाई पड़ते है। च्यूर नाम का यह पेड़ देवभूमि वासियों को वर्षों से घी उपलब्ध करा रहा है। इसी खासियत के कारण इसे 'इंडियन बटर ट्री' कहा जाता है। जीबी पंत कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्व विद्यालय के डॉ. वीपी डिमरी बताते हैं कि दूध की तरह मीठा और स्वादिष्ट होने के कारण च्यूर के फलों को चाव से खाया जाता है। दुनिया में तेल वाले पेड़ों की सैकड़ों प्रजातियां हैं, लेकिन कुछ ही ऐसी हैं, जिनसे खाद्य तेल प्राप्त किया जा सकता है।
डॉ. डिमरी कहते हैं कि यदि च्यूर के व्यावसायिक उत्पादन को बढ़ावा दिया जाए, तो यह राज्य की आर्थिक स्थिति को बदल सकता है।
च्यूर संरक्षित प्रजाति का पेड़ है और इसे काटने की अनुमति नहीं है। इसके बावजूद च्यूरा के पेड़ों की संख्या लगातार घट रही है। यह पेड़ तीन से पांच हजार फीट की ऊंचाई में होता है। च्यूरा के वृक्ष नेपाल के वनों में बहुतायत से पाए जाते हैं। सिक्किम और भूटान में भी च्यूरा के पेड़ काफी मिलते हैं।
उत्तराखंड में अल्मोड़ा, पिथौरागढ़ और चंपावत जिलों के घाटी वाले क्षेत्रों में भी च्यूरा के पेड़ काफी हैं। नैनीताल जिले के कुछ इलाकों में भी इसके इक्का-दुक्का पेड़ हैं।
च्यूरा को घी वृक्ष के रूप में जाना जाता है। च्यूरा के बीजों से वनस्पति घी निकाला जाता है, जो काफी पौष्टिक होता है। यह दूध से बने घी की तरह ही दिखाई देता है और स्वाद में भी लगभग इसी तरह होता है। इसका फल भी काफी जायकेदार होता है। घी निकालने के बाद बीज का प्रयोग खाद की तरह भी किया जा सकता है।
इसकी लकड़ी मजबूत और हल्की होने के कारण फर्नीचर और खासकर नाव आदि बनाने में भी प्रयोग में लाई जाती है।
च्यूरा का घी औषधि के काम भी आता है।
च्यूरा के फूलों व बीजों से शहद, घी, तेल, साबुन, धूप, अगरबत्ती, कीटनाशक दवाआदि बनाये जाते हैं। च्यूरा के फूलों से शहद बनता है। इसके फूलों में दोनों तरफ पराग होता है, जिस कारण इससे बनने वाले शहद की मात्रा काफी अधिक रहती है। च्यूरा के फल बेहद मीठे और रसीले होते हैं, जिन्हें पराठों आदि में प्रयोग किया जाता है।
इसकी खली जानवरों के लिए सबसे अधिक पौष्टिक मानी जाती है।
मंगल पाण्डेय
मंगल पाण्डेय एक भारतीय स्वतंत्रता सेनानी थे जिन्होंने 1857 में भारत के प्रथम स्वाधीनता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वो ईस्ट इंडिया कंपनी की 34वीं बंगाल इंफेन्ट्री के सिपाही थे। तत्कालीन अंग्रेजी शासन ने उन्हें बागी करार दिया जबकि आम हिंदुस्तानी उन्हें आजादी की लड़ाई के नायक के रूप में सम्मान देता है।
जिंदगी रही तो…..
एक लकड़हारा दिन भर लकड़ियां काटता और उन्हें बाज़ार में बेच कर अपना और अपने परिवार का पालन पोषण करता था ! इस प्रकार बहुत समय बीत गया ! एक दिन लकड़हारे सोचा, मेरी जिंदगी भी क्या जिंदगी है, रोजाना लकड़ियां काटना, उन्हें बाज़ार में बेचना,और अपना एवं अपने परिवार का पालन करना, बस ये ही मेरी जिंदगी बन कर रह गई है ! मेरे जीवन में आराम और आनंद मनाने का कोई अवसर ही नहीं आया! क्या मेरा जीवन इसी प्रकार बीत जायेगा? ये सोच कर उसने अपने मन में निश्चय किया कि में आज तिगुना काम कर के तिगुनी लकड़ियां काटूंगा और उन्हें बाज़ार में बेच कर तीन रोज आराम करूंगा! ये सोच कर उसने मेहनत करने के लिए कमर कास ली! उसने लगातार मेहनत के साथ काम कर के तीन दिनों कि लकड़ियां काट ली! अधिक मेहनत करने के कारण वह बहुत थक गया और एक पेड़ के नीचे बैठ कर सुस्ताने लगा! उधर से एक साधू महात्मा गुजरे! उन्होंने लकड़हारे को पेड़ के नीचे हांपते और सुस्ताते देख कर पुछा'' क्या बात है इतने थके 2 से क्यों लग रहे हो?"लकड़हारे ने महात्मा को अपने मन कि सारी बात बताई कि किस प्रकार तिगुनी मेहनत कर तीन दिनों कि लकड़ियां काटी और उन्हें उन्हें बेच कर अब तीन दिनों तक आराम करूंगा और चक छान कर सोऊंगा! महात्मा ठहरे महात्मा बोले "तू कितना पागल है, अरे पल का पता नहीं कब मौत आ जाये और तू तीन दिनों कि सोच रहा है! और हँसने लगे! लकड़हारा एक तो थका हुआ था,और ऊपर से महात्माजी का पर्वचन सुन कर ताव में आगया, उसने कहा "पागल में नहीं आप है. अरे अगर मौत आ गई तो मेहनत करी या ना करी सब बेकार है पर अगर में ज़िंदा रहा तो तीन दिनों तक आराम करने का अवसर तो मिलेगा ! ये कह कर उसने करवट बदल कर आँखें बंद कर ली और आराम करने लगा महात्माजी मन ही मन सोचने लगे कि इतनी बुद्धि तो मेरे में भी नहीं है !और वहाँ से चले गये! कहने का अर्थ यह है कि प्रत्येक कार्य जिन्दा रहने के लिये किया जाता है !मरने पर तो सब कुछ बेकार! अतः ये सोच कर ही कार्य करे कि जिंदगी रही तो इस कार्य का आनंद मनाएंगे !-श्यामसुंदर सामरिया
युद्ध के बाद - 2
नोरिन शर्मा
आधी रात को
साहित्य रचा जा रहा है
सचित्र लेख छपने और छापने की
मुहिम जारी है
दूर तक फैले रेतीले मलबे को
जिसे सपाट किया गया है
बार बार टूटते सपनों की
किरचें जहां तहां दीख रही हैं
दो वृद्धा ढूंढ रहीं हैं
इसी मैदान में
मृत रिश्तों को..!
उभरी हुई नसों वाले
बूढ़े थके हाथ
टटोल रहे हैं
बिखरी मिट्टी कंकड़ों के बीच
बेटे पोते नातियों की देह
अनजाने ही सहलाने लगती हैं
उंगलियां रेत और माटी को
यहीं तो था घर
यहीं कहीं झूला आँगन में
कुछ फूल क्यारियों में
इन सूखे खाली सपाट हाथों ने भी उगाए थे..!
वृद्धाश्रम की वैन का हॉर्न
उन्हें बुलाता है
डगमगाते क़दम
थाम लेते हैं
एक दूजे को...
धुंधली आँखों का
खारापन
कुछ बूंदों के रूप में
अर्पण कर
एक बार फिर आकाश की ओर
ताकती हैं
न्याय तो वहीं से होगा
न्याय तो वहीं से होगा।
आम - आदमी
*आम - आदमी*
आम आदमी है ,या आदमी है आम,
ये कैसे पहचान हो की ,एक आदमी है आम,
जैसे 'आम ' की जातियां होती है भिन्न भिन्न ,
वैसे ही 'आम आदमी ' होता है छिन्न भिन्न ,
पका आम ऊपर से होता है एक दम पीला ,
आती है मस्त खुशबू ,अन्दर से गीला ,
आम आदमी भी दिखाता है
अजब गजब लीला,
ऊपर से वो सख्त ,लेकिन अन्दर से ढीला ,
मीठा आम होता है कई बार हरा ,
गुठली छिलका पूरा रेशों से भरा ,
वैसे ही स्वस्थ आम आदमी दीखता है छरहरा ,
लेकिन अंदर से होता है वो एकदम डरा ,
मुसीबतों के रेशो से होता है पूरा भरा ,
सिकुड़े आम जैसे होता है अधमरा ,
आम आदमी को दुनियां चूसती है
आम की तरह ,
आम आदमी को निचोड़ कर
फेंकती है गुठली की तरह ,
वोटर भी आम आदमी है
कच्चे आम की तरह ,
नेता अपने वादे से पकाता है
कार्बाइड की तरह ,
नेताओं की भूख मिटती नहीं है
आम आदमी को खा कर ,
तभी तो आम आदमी को रखता है
पोस्टरों में सजा कर ,
नेता सोचता है .....
बनाऊं इसका अचार या खा जाऊं पका कर,
या बनाऊं इसकी चटनी
पी जाऊं आम पाना बना कर ,
थोडा वक्त मिल जाये तो
काट छील कर खाता है ,
और समय कम होतो
चलते चलते चूस जाता है ,
और चूसता भी है कितने
एंगल बदल बदल कर ,
ऊपर से ,नीचे से, दाए बांये से खींच कर ,
जब तक की गुठली, आम आदमी की खोपड़ी सी गंजी न हो जाये ,
और ये विभत्स रूप देख कर
छिलका भी सिहर जाये ,
ये हालत होती है आम आदमी की
जब वो हफ्ते भर में खत्म होता है
इन्तहां तब हो जाती है ,जब आम आदमी
आम के आचार की तरह डिब्बे में
सालों साल बंद होता है ,
जब बॉस चाहे तो वो प्लेट में पड़ा होता है ,
कई बार तो वो "नाचीज़ चमचे" जैसे
चावल औए पापड़ के नीचे दबा होता है ,
चटोरों की तरह बॉस खाने के बीच में
चटकारे मार कर चाट चाट खाता है ,
चाटते हुवे फोन पे बीवी से बाते करता है ,
मसरूफ हो जाता है इतना ..
की पहले तो रेशा नोच कहता है ,
फिर गुस्सा आ जाये किसी पर तो
गुठली कूच कूच कर चबा जाता है ,
आम जैसे आदमी का तो
वजूद ही ख़त्म हो जाता है,
कई बार तो आम आदमी बन जाता है खटाई,
नौकरशाही में फसा रहता है जैसे स्टैंड बाई ,
नौकरी पाने से रीटाएरमेंट तक जूते घिसता है,
पेंशन पाने के लिए वो अमचुर सा पिसता है,
मर मर के गर्मी में लगाता है कूलर या ए.सी.,
मैंगो जूस बन जाता है
बिल भर के ऐसी तैसी,
पट्रोल की प्राइस से घिस कट छिल के
बन जाता है मुरब्बा ,
इसको मैनेज करने में याद आते हैं
उसको अब्बा ,
बचते बचाते सब से
जब सामने आती है पत्नी,
वो भी आम आदमी की
बनती है तबियत से चटनी ,
टाइम कम हो तो चटनी
मिक्सी में पीसी जाती है ,
गर मन हो चटपटा तो
सिलबट्टे पे कुटी जाती है ,
हांय रे आम आदमी , आम की तरह ,
न राजा होगा आम आदमी ,
कभी आम की तरह ,
जो गलती से बैठा आम आदमी,
ताज़े तख़्त पर ,
कत्ले आम होगा आम आदमी मालिक की प्लेट पर ,
तभी तो सरकारे करती है ऐलान .........l
आम आदमी, का सब पे अधिकार है
जब की सारे अधिकार बिलकुल निराधार है ,
वो सारे अधिकार सूख कर
बन गए है आम पापड़ ,
कोशिश करो अधिकार लेने की
तो मिलता है झापड़ ,
बाते तो बहोत साऱी है बस कहता हूँ इतना ,
आम आदमी का अधिकार है
देखे कोरा सपना,
बस आम को खाने लिए देना पड़ता दाम है
और आम आदमी तो पूरी तरह बेदाम है ...
ज्यादा कुछ करे तो सड़े आम सा,
हो जाता बदनाम है ....
हाय राम, है विडंम्बना , है राम में भी आम
यही आम आदमी राम को, चढ़ाता है आम
यही वक्त होता है , जब ख़ास होता है आम
आम तो आम है ,
थोडा उसमे खटास और मिठास है ,
आम आदमी के पास तो
सिर्फ खट्टी मीठी आस है ,
हाथो में प्रसाद लेकर करता है दुआये
अगले जनम में मुझको,
न आम आदमी बनाये ....३
रेलवे-स्टेशन पर बचपन का रोमांच
अलोक शर्मा
ये उस दौर की बात है जब चवन्नियाँ बँद नहीं हुई थीं और दो चवन्नियों के मेल से बनी अठन्नी में दिन भर के लिये एक अदद कॉमिक किराये पर ली जा सकती थी। अस्सी का दशक था जब धूप में खेलने के लिये माँ बाप सनस्क्रीन लोशन नहीं दिया करते थे। गरमी की दोपहरों में किसी भी दोस्त के घर की छत का छाँव वाला कोना पकड़ा जाता था और अठन्नियों के किराये पर लाई कॉमिक्स पढ़ कर दोपहर गुज़ारी जाती थी।
कम्प्यूटर आज जितने आम न थे तब, सो समय बिताने के लिये कम्प्यूटर पर किट पिट करने की बजाये उससे तेज़ दिमागवाले चाचा चौधरी की संगत की जाती थी, झपट जी - पिंकी और बजरंगी पहलवान को चकमा देते आँखों को ढँके बिल्लू के साथ गरमी की छुट्टियाँ बिताई जाती थी। निक्कर पहनने की उम्र थी सो नागराज - ध्रुव से तब जान पहचान नहीं हुई थी।
मुहल्ले के सयाने लड़के सुतली में कॉमिक्स लटका के किराये पर कॉमिक्स का साम्यवाद चलाया करते थे, जिसमें कभी किसी कॉमिक के पेज पर सूखी हुई दाल के चपके निकलना या आलू के शोरबे से चिपके पन्ने निकलना आम बात थी, कॉमिक्स पढ़ कर हाथ धोने पड़ते थे। या फिर अगर किसी रिश्तेदार ने जाते जाते कुछ रुपये टिका दिये तो पूँजीवादी बन कर एक आध कॉमिक खरीदने की औकात लिये हम रेलवे के ए.एच.व्हीलर के स्टॉलों के चक्कर लगाते थे।
कॉमिक्स खरीदने के पहले हर चीज़ पर ध्यान दिया जाता था - कॉमिक कितने पेज की है, कितनी देर
चलेगी (कितनी देर तक पढ़ी जा सकती है), साथ में स्टीकर है या नहीं, इसकी एक्सचेंज वैल्यू और
रिसेल वैल्यू क्या होगी। गरमी की छुट्टियों में एक बार ट्रेन लेट होने की वजह से हमें उड़िसा के झारसुगुड़ा स्टेशन पर रात में कुछ घण्टे बिताने पड़ गये। रेलवे स्टेशनों का अपना अलग चार्म होता है, और उसपे सोने पे सुहागा होते हैं ए.एच.व्हीलर के स्टॉल्स। जब बीस मिनट में उस स्टॉलरूपी तीर्थ की बारम्बार प्रदिक्षणा और गरीब दयनीय मुखमुद्रा बनाने के कठोर तप से मैं कुछ पचासवीं बार गुज़र के, छः वर्षीय अक्ल में आने वाले हरसंभव पैंतरे को आज़मा चुका तो मेरे माता-पिता को मुझ पर दया आ ही गई, उन्होंने कॉमिक्स के लिये तथास्तु कहा या मुझसे पीछा छुड़ाने के लिये, हम उसकी गहराई में नहीं जायेंगे। जितनी देर में मम्मी मेरे साथ स्टॉल तक चल कर पहुँचीं उतनी देर में मैंने अपनी सोच की औकात से दस बारह पँच वर्षीय योजनायें बना बिगाड़ कर खारिज भी कर दी थी। बच्चा था मगर रियलिस्टिक मैं तब भी था, जानता था पूरी दुकान नहीं मिलेगी। रियलिस्टिक था मगर बच्चा मैं तब भी था, क्योंकि सोच रहा था दस बारह कॉमिक्स तो मिल ही जायेंगी - लक पुश किया तो एक आध पराग या चंपक पर भी हाथ साफ किया जा सकता है। मगर माँ तो माँ होती है, मातृत्त्व का बादल चाहे जितना उमड़ घुमड़ जाये, बरसात उसमें से पाँच रुपयों की ही होनी थी और वही हुआ। पहली बार महँगाई की मार झेल कर मेरा मन पान मसाले की खाली पुड़िया जैसा यूज़लैस फील कर रहा था। मेरे बालमन के पीछे छिपा दँगाई अपनी माँगे मनवाने के लिये हड़ताल करने और हँगामा खड़ा करने जैसे कई ऑप्शन्स के मल्टिपल चॉईस क्वेश्चन्स में उलझा हुआ था। मेरी मनोदशा देख कर ए.एच.व्हीलर वाले भैया पसीज गये उन्होंने मम्मी से कहा कोई बात नहीं जब तक ट्रेन नहीं आती इसे यहीं स्टॉल में बैठने दीजिये एक-दो कॉमिक्स पढ़ लेगा, फिर जो पसंद आये खरीद लेगा। अचानक सबकुछ शाँत हो गया - हवाओं में संगीत तैरने लगा - मुझे मेरी मनमाँगी मुराद मिल गई थी। मम्मी समझ चुकीं थीं कि ए.एच.व्हीलर वाले भैया खुद फैसला लिख कर अपनी निब तोड़ने में लगे हैं, इसलिये उन्होंने ए.एच.व्हीलर वाले भैया को समझाने और लिहाज की गरज से आर यू श्योर टाईप कुछ पूछा था ऐसा याद है मुझे, क्या पूछा था मुझे ठीक से याद नहीं। एक ही बात याद है कि मैं चाहता ही नहीं था कि इस मामले में कोई सेकण्ड ओपिनियन बने, सो सेकण्ड के सौंवे हिस्से में मैं जम्प मार के स्टॉल के भीतर था औेर कॉमिक्स के गठ्ठर के पास एक लकड़ी के बक्से पर विराजमान हो चुका था। उसके बाद अगले दो घण्टों में कॉमिक्स पढ़ने की मेरी वहशी स्पीड देख कर बेचारे ए.एच.व्हीलर वाले भैया की दहशत का जो आलम हुआ उसका ज़िक्र न ही किया जाये तो बेहतर है। उन दो घण्टों में मैंने वहाँ रखी सारी नई पुरानी कॉमिक्स चाट डाली। मम्मी जब मुझे वो पाँच रुपये की कॉमिक दिलाने वापस स्टॉल पर आईं तब तक मैंने कैलकुलेट कर लिया था कि अगर ये पाँच रुपये मैं बचा लूँ तो किराये पर दस कॉमिक्स और पढ़ सकता हूँ। मैंने मम्मी को समझाने की कोशिश की कि अब इन पैसों से कॉमिक्स खरीदने की ज़रूरत नहीं, मगर माँ तो माँ होती हैं, उन्होंने मेरी बेशर्मी को कवर अप करते हुये मेरे लिये एक नंदन और अपने लिये एक मनोरमा ली और हम अपने प्लेटफॉर्म की ओर बढ़ गये। हमारी गाड़ी के आने का अनाऊन्समेण्ट हो चुका था। -अलोक शर्मा
जुलाई मास 2023 का पंचांग
दिनांक
भारतीय व्रत उत्सव जुलाई - 2023
1
शनि प्रदोष व्रत
2
सत्य व्रत
3
गुरु पूर्णिमा
6
श्री गणेश चतुर्थी व्रत
7
नाग पंचमी
9
कालाष्टमी
13
कामिका एकादशी व्रत
15
शनि प्रदोष व्रत,मास शिव रात्री
17
हरियाली अमावस्या, संक्रांति पुन्य
18
अधिक मास प्रारंभ श्रावण मास
21
विनायक चतुर्थी व्रत
26
श्री दुर्गा अष्टमी
29
कमला एकादशी व्रत
30
प्रदोष व्रत
चौघड़िया मुहूर्त
चौघड़िया मुहूर्त देखकर कार्य या यात्रा करना उत्तम होता है। एक तिथि के लिये दिवस और रात्रि के आठ-आठ भाग का एक चौघड़िया निश्चित है। इस प्रकार से 12 घंटे का दिन और 12 घंटे की रात मानें तो प्रत्येक में 90 मिनट यानि 1.30 घण्टे का एक चौघड़िया होता है जो सूर्योदय से प्रारंभ होता है|
पंचक विचार जुलाई - 2023
पंचक विचार -(धनिष्ठा नक्षत्र के तृतीय चरण से रेवती नक्षत्र तक) पंचको में दक्षिण दिशा की ओर यात्रा करना मकान दुकान आदि की छत डालना चारपाई पलंग आदि बुनना,दाह संस्कार,बांस की चटाई दीवार प्रारंभ करना आदि स्तंभ रोपण तांबा पीतल तृण काष्ट आदि का संचय करना आदि कार्यों का निषेध माना जाता है समुचित उपाय एवं पंचक शांति करवा कर ही उक्त कार्यों का संपादन करना कल्याणकारी होगा ध्यान रहेगा पंचर नक्षत्रों का विचार मात्र उपरोक्त विशेष कृतियों के लिए ही किया जाता है विवाह मंडल आरंभ गृह प्रवेश प्रवेश उपनयन आदि मुद्दों से तो पंचक नक्षत्रका प्रयोग शुभ माना जाता है पंचक विचार- दिनांक 06 को 13 - 38 से 10 को 18 - 58 बजे तक पंचक है |
अधिक जानकारी के लिए संपर्क करे शर्मा जी - 9312002527,9560518227
भद्रा विचार जुलाई - 2023
भद्रा काल का शुभ अशुभ विचार - भद्रा काल में विवाह मुंडन, गृह प्रवेश, रक्षाबंधन आदि मांगलिक कृत्य का निषेध माना जाता है परंतु भद्रा काल में शत्रु का उच्चाटन करना,स्त्री प्रसंग में,यज्ञ करना,स्नान करना,अस्त्र शस्त्र का प्रयोग,ऑपरेशन कराना, मुकदमा करना,अग्नि लगाना,किसी वस्तु को काटना,भैस,घोड़ा व ऊंट संबंधी कार्य प्रशस्त माने जाते हैं सामान्य परिस्थिति में विवाह आदि शुभ मुहूर्त में भद्रा का त्याग करना चाहिए परंतु आवश्यक परिस्थितिवश अति आवश्यक कार्य भूलोक की भद्रा ,भद्रा मुख छोड़कर कर भद्रा पुच्छ में शुभ कार्य कर सकते है |
अधिक जानकारी के लिए संपर्क करे शर्मा जी - 9312002527,9560518227
दिनांक
शुरू
दिनांक
समाप्त
02
20-21
03
06-47
05
20-16
06
06-30
08
21-51
09
08-55
12
05-58
12
17-59
15
20-32
16
09-18
21
20-12
22
09-26
25
15-08
26
03-30
29
01-58
29
13-05
मूल नक्षत्र विचार जुलाई -2023
दिनांक
शुरू
दिनांक
समाप्त
01
15-03
03
11-01
09
19-29
11
19-04
19
07-57
21
13-57
29
00-55
30
21-32
अधिक जानकारी के लिए संपर्क करे शर्मा जी - 9312002527,9560518227
सर्वार्थ सिद्धि योग जुलाई -2023
दैनिक जीवन में आने वाले महत्वपूर्ण कार्यों के लिए शीघ्र ही किसी शुभ मुहूर्त का अभाव हो,किंतु शुभ मुहर्त के लिए अधिक दिनों तक रुका ना जा सकता हो तो इन सुयोग्य वाले मुहर्तु को सफलता से ग्रहण किया जा सकता है | इन से प्राप्त होने वाले अभीष्ट फल के विषय में संशय नहीं करना चाहिए यह योग हैं सर्वार्थ सिद्धि,अमृत सिद्धि योग एवं रवियोग | योग्यता नाम तथा गुण अनुसार सर्वांगीण सिद्ध कारक है|
अधिक जानकारी के लिए संपर्क करे शर्मा जी - 9312002527,9560518227
दिनांक
प्रारंभ
दिनांक
समाप्त
02
13-18
03
05-32
09
05-35
09
19-29
11
05-36
11
19-04
12
19-43
13
05-37
17
05-11
18
05-39
23
05-41
24
05-42
28
01-27
29
00-55
30
05-46
30
21-32
ग्रह स्थिति जुलाई - 2023
ग्रह स्थिति - दिनांक 06 को शुक्र सिंह में,दिनाक 08 को बुध कर्क में,दिनांक 11 को बुध पश्चिम उदय ,दिनांक 16 को सूर्य कर्क मे ,दिनांक 23 को शुक्र वक्री,दिनांक 24 को बुध सिंह में |
सुर्य उदय- सुर्य अस्त जुलाई - 2023
दिनांक
उदय
दिनांक
अस्त
1
05-28
1
19-21
5
05-29
5
19-21
10
05-32
10
19-20
15
05-34
15
19-18
20
05-37
20
19-16
25
05-40
25
19-14
30
05-42
30
19-11
राहू काल
राहुकाल -राहुकाल दक्षिण भारत की देन है,दक्षिण भारत में राहु काल में कृत्य करना अच्छा नहीं माना जाता, राहु काल में शुभ कृतियों में वर्जित करने की परंपरा अब हमारे उत्तरी भारत में भी अपनाने लगे हैं राहुकाल प्रतिदिन सूर्यादि वारों में भिन्न-भिन्न समय पर केवल डेढ़ डेढ़ घंटे के लिए घटित होता है |
अधिक जानकारी के लिए संपर्क करे शर्मा जी - 9312002527,9560518227
विवाह कार्य मे मांगलिक दोष विचार परिहार
वर अथवा कन्या दोनों में से किसी की भी कुंडली में 1,4,7,8 व 12 भाव में मंगल होने से ये मांगलिक माने जाते हैं,मंगली से मंगली के विवाह में दोष न होते हुए भी जन्म पत्रिका के अनुसार गुणों को मिलाना ही चाहिए यदि मंगल के साथ शनि अथवा राहु केतु भी हो तो प्रबल मंगली डबल मंगली योग होता है | इसी प्रकार गुरु अथवा चंद्रमा केंद्र हो तो दोष का परिहार भी हो जाता है |इसके अतिरिक्त मेष वृश्चिक मकर का मंगल होने से भी दोष नष्ट हो जाता है | इसी प्रकार यदि वर या कन्या किसी भी कुंडली में 1,4,7,9,12 स्थानों में शनि हो केंद्र त्रिकोण भावो में शुभ ग्रह, 3,6,11 भावो में पाप ग्रह हों तो भी मंगलीक दोष का आंशिक परिहार होता है, सप्तम ग्रह में यदि सप्तमेश हो तो भी दोष निवृत्त होता है |
स्वयं सिद्ध मुहूर्त
स्वयं सिद्ध मुहूर्त चैत्र शुक्ल प्रतिपदा वैशाख शुक्ल तृतीया अक्षय तृतीया आश्विन शुक्ल दशमी विजयदशमी दीपावली के प्रदोष काल का आधा भाग भारत में से इसके अतिरिक्त लोकाचार और देश आचार्य के अनुसार निम्नलिखित कृतियों को भी स्वयं सिद्ध मुहूर्त माना जाता है बडावली नामी देव प्रबोधिनी एकादशी बसंत पंचमी फुलेरा दूज इन में से किसी भी कार्य को करने के लिए पंचांग शुद्धि देखने की आवश्यकता नहीं है परंतु विवाह आदि में तो पंचांग में दिए गए मुहूर्त व कार्य करना श्रेष्ठ रहता है।
जुलाई के महत्वपूर्ण दिवस
1 जुलाई: राष्ट्रीय चिकित्सक दिवस - प्रत्येक वर्ष 1 जुलाई को देश भर में ‘राष्ट्रीय चिकित्सक दिवस’ के रूप में मनाया जता है।
यह दिन प्रसिद्ध चिकित्सक और पश्चिम बंगाल के दूसरे मुख्यमंत्री डॉ. बिधान चंद्र रॉय की याद में मनाया जाता है।
उनका जन्म 1 जुलाई 1882 को हुआ था और उनकी मृत्यु भी इसी तारीख को हुई थी।
1 जुलाई: राष्ट्रीय डाक कर्मचारी दिवस - प्रत्येक वर्ष 1 जुलाई को ‘राष्ट्रीय डाक कर्मचारी दिवस’ मनाया जाता है।
आज के दिन डाक कर्मचारियों की कड़ी मेहनत जश्न मनाया जाता है और उनके द्वारा किये गये कार्यों को महत्त्व दिया जाता है, जिसमें यह सुनिश्चित करना कि आपका मेल और डिलीवरी आपको सुचारू रूप से और समय पर मिले, शामिल है।
2 जुलाई- विश्व खेल पत्रकार दिवस - खेल मानव जीवन का एक अभिन्न अंग है, यह व्यक्ति के चरित्र और व्यक्तित्व का निर्माण करता है। हम सभी को बचपन में कुछ न कुछ खेल खेलने में बहुत मज़ा आता था।
इसलिए, हर साल 2 जुलाई को दुनिया भर के सभी ‘खेल पत्रकारों ’ को समर्पित किया गया है।
खेल पत्रकार वे होते हैं जो खेल और आयोजनों से संबंधित समाचारों को कवर करने और लिखते हैं।
6 जुलाई- विश्व जूनोज दिवस - एवियन इन्फ्लूएंजा, इबोला और वेस्ट नाइल वायरस जैसी जूनोटिक बीमारी के ख़िलाफ़ पहले टीकाकरण के उपलक्ष्य में प्रत्येक वर्ष 6 जुलाई को ‘विश्व ज़ूनोज़ दिवस’ मनाया जाता है।
ज़ूनोसिस एक संक्रामक रोग है जो ग़ैर-मानव जानवरों से मनुष्यों में फैलता है।
11 जुलाई- विश्व जनसंख्या दिवस - प्रत्येक वर्ष 11 जुलाई को ‘विश्व जनसंख्या दिवस’ मनाया जाता है।
इस दिन का मुख्य उद्देश्य दुनिया भर में बढ़ती जनसंख्या से उत्पन्न होने वाले मुद्दों की ओर ध्यान आकर्षित करना है।
12 जुलाई- विश्व मलाला दिवस - संयुक्त राष्ट्र ने युवा शिक्षा कार्यकर्ता मलाला युसुफ़ज़ई के सम्मान में 12 जुलाई को विश्व मलाला दिवस के रूप में घोषित किया।
यह दिन वैश्विक नेताओं से अपील करने के लिए मनाया जाता है कि वे अपने देश में हर बच्चे के लिए अनिवार्य और मुफ़्त शिक्षा मुहैया कराएं।
17 जुलाई- विश्व अंतरराष्ट्रीय न्याय दिवस - हर साल 17 जुलाई को दुनिया भर में विश्व अंतरराष्ट्रीय न्याय दिवस मनाया जाता है क्योंकि यह दिन सन् 1998 में रोम संविधि को अपनाने की वर्षगांठ है।
18 जुलाई- नेल्सन मंडेला अंतर्राष्ट्रीय दिवस - प्रत्येक वर्ष 18 जुलाई को हम ‘नेल्सन मंडेला अंतर्राष्ट्रीय दिवस’ मनाते हैं ताकि एक ऐसे व्यक्ति की विरासत पर प्रकाश डाला जा सके जिसने 20वीं सदी को बदल दिया और 21वीं सदी को आकार देने में मदद की।
यह सभी के लिए नेल्सन मंडेला को प्रेरित करने वाले मूल्यों को अपने जीवन में उतारने का क्षण है।
28 जुलाई- विश्व हेपेटाइटिस दिवस - प्रत्येक वर्ष 28 जुलाई को दुनिया भर में ‘विश्व हेपेटाइटिस दिवस’ मनाया जाता है।
यह नोबेल पुरस्कार विजेता वैज्ञानिक डॉ. बारूक ब्लमबर्ग का जन्मदिन के उपलक्ष्य में मनाया जाता है, क्योंकि इन्होंने हेपेटाइटिस बी वायरस की खोज़ की और वायरस के लिए एक नैदानिक परीक्षण और टीका विकसित किया।
29 जुलाई- अंतर्राष्ट्रीय बाघ दिवस - हर साल 29 जुलाई को ‘अंतर्राष्ट्रीय बाघ दिवस’ मनाया जाता है।
इस दिन को मनाने का मुख्य उद्देश्य यह है कि इससे दुनिया भर के लोग बाघ संरक्षण के लिए जागरूकता बढ़ा सकते हैं और एक विश्वव्यापी व्यवस्था को बढ़ावा देने में मदद कर सकते हैं जिससे हम बाघों और उनके प्राकृतिक आवासों की रक्षा के लिए समर्पित हैं।
30 जुलाई- अंतर्राष्ट्रीय मित्रता दिवस - हर साल 30 जुलाई को ‘अंतरराष्ट्रीय मित्रता दिवस’ मनाया जाता है। संयुक्त राष्ट्र ने आधिकारिक तौर पर आज के दिन को साल 2011 में घोषित किया था।
इस दिन को मनाने का उद्देश्य शांति प्रयासों को प्रेरित करने और समुदायों के बीच पुल बनाने के लिए देशों, लोगों और व्यक्तियों के बीच दोस्ती को बढ़ावा देना है।
कामिका एकादशी
कामिका एकादशी श्रावण मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को बनाई जाती है इसे पवित्रता के नाम से भी जाना जाता है | प्रातः स्नानादि करके भगवान विष्णु की प्रतिमा को पंचामृत से स्नान कराकर भोग लगाया जाता है | आचमन के पश्चात धूप दीप चंदन आदि सुगंधित पदार्थों से आरती उतारनी चाहिए | कामिका एकादशी व्रत की कथा - एक समय की बात है कि किसी गांव में एक ठाकुर रहा करते थे | वह बहुत ही क्रोधी स्वभाव के थे क्रोधवश उनकी एक ब्राह्मण से भिड़ंत हो गई जिसका परिणाम यह हुआ कि वह ब्राह्मण मारा गया | उस ब्राह्मण के मरणोपरांत उन्होंने उसकी तेहरवीं करनी चाही लेकिन सब ब्राह्मणों ने भोजन करने से इंकार कर दिया तब उन्होंने सभी ब्राह्मणों से निवेदन किया कि हे भगवान मेरा पाप कैसे दूर हो सकता है कृपया कोई उपाय बताए | भगवान से की इस प्रार्थना पर उन सब ने उसे एकादशी व्रत करने की सलाह दी ठाकुर ने वैसे ही किया | रात में भगवान की मूर्ति के पास जब वह शयन कर रहा था तभी उसने एक सपना देखा सपने में भगवान ने उसे दर्शन देकर कहा कि ठाकुर तेरा सारा पाप दूर हो गया अब तो तू ब्राह्मण की तेहरवीं भी कर सकता है तेरे घर सूतक नष्ट हो गया है | ठाकुर पूरे विधि विधान से तेहरवीं करके ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्त हो गया और अंत में कामिका एकादशी व्रत के प्रभाव से मोक्ष प्राप्त करके विष्णुलोक को चला गया |
पद्मिनी एकादशी
अधिक मास/लोध मास/मलमास की शुक्लपक्ष की एकादशी को पद्मिनी एकादशी कहते है | एकादशी के दिन प्रात उठकर नित्य क्रिया से निवृत्त होकर भगवान की पूजा करनी चाहिए |
पद्मिनी एकादशी व्रत कथा - एक समय कार्तवीर्य ने रावण को कारागार में बंद कर रखा था उसको पुलस्त्य जी ने कार्तवीर्य से विनय करके मुक्त कराया | इस घटना को सुनकर नारदजी ने पुलस्त्य जी से पूछा हे महाराज उस महावीर रावण ने समस्त देवताओं सहित देवराज इंद्र को जीत लिया तथा उसको कार्तवीर्य ने किस प्रकार जीता था आप मुझे बताइए इस पर पुलस्त्य जी बोले हैं नारद आप पहले कार्तवीर्य की उत्पत्ति सुनो त्रेता युग में महिष्मति नाम की नगरी में उपकीर्तवीर्य् राजा राज करता था उस राजा के सौ स्त्रीयाँ थी उनमें से किसी के भी राज्य भार लेने वाला योग्य पुत्र नहीं था उस राजा ने पुत्र की प्राप्ति के लिए यज्ञ किए परंतु सब असफल रहे। अंत में वह तप के द्वारा ही सिद्धियों को प्राप्त जानकर तप करने के लिए वन को चला गया। उसकी स्त्री हरीशचंद की पुत्री प्रमादा वस्त्र आभूषण को त्याग कर अपने पति के साथ गंधमादन पर्वत पर चली गई। उस स्थान पर उन लोगों ने दस सहस्र वर्ष तक तपस्या की परंतु सिद्धि प्राप्त ना हो सकी। राजा के शरीर में केवल हड्डियां रह गई यह देखकर प्रमादा ने विनय सहित महामति अनसूया से पूछा मेरे पतिदेव को तपस्या करते हुए दस सहस्त्र वर्ष बीत गए परंतु अभी तक भगवान प्रसन्न नहीं हुए हैं। मुझे पुत्र प्राप्त हो सके अब आप मुझे ऐसा कोई व्रत
बतलाइए जिससे मुझे पुत्र की प्राप्ति हो। इस पर अनसूया जी बोली कि अधिक मास जो कि बत्तीस महीने बाद आता है। उसमें दो एकादशी होती हैं जिसमें कृष्ण शुक्ल पक्ष एकादशी पद्मिनी और शुक्ल पक्ष की एकादशी का नाम परमा है। उसका व्रत व जागरण करने से भगवान तुम्हें अवश्य ही पुत्र देंगे। इसके पश्चात अनसूया जी ने व्रत की विधि बतलाई रानी ने अनसूया जी की विधि के अनुसार एकादशी का व्रत और रात्रि में जागरण किया इससे भगवान विष्णु उस पर अत्यंत प्रसन्न हुए और वरदान मांगने के लिए कहा। रानी भगवान की स्तुति करने लगी और रानी ने कहा भगवान आप वरदान मेरे पति को दीजिए प्रमादा का वचन सुनकर भगवान विष्णु बोले कि प्रमादे मलमास मुझे बहुत प्रिय जिसमें एकादशी का व्रत तथा रात्रि जागरण तुमने विधि पूर्वक किया इसलिए मैं तुम पर बहुत प्रसन्न हो इतना क्या कर भगवान विष्णु राजा से बोले राजेंद्र तुम अपनी इच्छा के अनुसार मांग लो क्योंकि तुम्हारी स्त्री ने मेरी भक्ति कि है भगवान की सुंदर वाणी को सुनकर राजा बोला हे भगवान आप मुझे सबसे श्रेष्ठ सब के द्वारा पूजित तथा आपके अतिरिक्त देव दानव मनुष्य आदि से अजय उत्तम पुत्र दीजिए । भगवान उसे तथास्तु कहकर अंतर्ध्यान हो गए। दोनों अपने राज्य को वापस आए उन्हीं के यह कार्तवीर्य उत्पन्न हुए थे यह भगवान के अतिरिक्त सबसे अजेय थे। इसी से उन्होंने रावण को जीत लिया था। यह सब पद्मनी एकादशी के व्रत का प्रभाव था नारदजी से इतना कहकर पुलस्त्य मुनि तेजी से वहां से चले गए। अधिक मास शुक्ल पक्ष की एकादशी का व्रत जो करते है उनकी सभी मनोकामनाए पूरी होती है व अंत मे विष्णु लोक को जाते है।
पड़ोसी धर्म
दीपक गर्ग
नमस्ते राजूभाई....सुबह की सैर करने के बाद घर लौट रहे अपनी गली के एक रहनेवाले राजूभाई को झाड़ू लगाती हुई सुधा ने कहा ...
नमस्ते भाभीजी ....
वो मुझे आपसे ..... सुधा के बाकी शब्द अभी मुंह में ही रह गए थे कि राजूभाई तेजी से आगे बढ़ गये
सुधा मुंह बनाकर मनमोसकर रह गई क्योंकि जो वो पूछना चाह रही थी वो नहीं पूछ पाई थी
काफी देर तक वो बहाने से बाहर निकलकर यहां वहां गली के लोगों को देख रही थी ताकि कोई दूध लाता या सैर करने के बाद लौटते हुए उससे मिल जाएं और वो गली में बीते दो तीन दिन पहले रहने आए युवा किराएदारों के बारे में जानकारी ले सके ...कल सुबह भी तो कल शाम को भी उसने एक मोटरसाइकिल पर युवा लड़के लड़की को बैठे हुए देखा था आखिर कौन है ये ... प्रेमी प्रेमिका....या घर से भागकर आएं हुए
मां कहीं लिव इन रिलेशनशिप में .... पता नहीं गली का माहौल कैसा बन जाएगा लोग सोचते भी नहीं ऐसे लोगों को मकान किराए पर देने से पहले अरे दूसरे घरों की बड़ी होती बेटियों पर इसका क्या असर पड़ेगा तभी तेजी से एक मोटर साइकिल निकली जिस पर वे दोनों युवा लड़का लड़की ही बैठे थे उनका यूं पास-पास बैठना सुधा को खटक रहा था ...कहीं ये दोस्त ... नहीं दोस्त तो नहीं लगते ...तो फिर .. सुधा को उनके प्रति जानने की बहुत उत्सुकता थी इससे पहले भी वो ऐसे ही दूसरों की बातें जानने के लिए उत्सुक रहती थी जिसके चलते उसके पति मोहन ने और बेटी आराध्या ने उसे कयीबार समझाते हुए कहा है कि वह दूसरे पर ध्यान ना देकर अपने घर की और देखा करें अरे टीवी सीरियल
है फिल्में हैं उन्हें देखकर टाइम पास किया करो मगर सुधा को हमेशा आसपास की चटपटी खबरें जानने की लालसा रहती थी सुबह से अपनी मां की बैचेनी को देखकर आराध्या हंसते हुए अपने पापा से बोली ...पापा... लगता है मम्मी को कुछ पेट से रिलेटेड प्रोब्लम फिर हो गई है
रसोईघर में सब्जी काट रही अपनी मां को सब्जी काटने से ज्यादा बाहर नजरें टिकाए देखकर आराध्या ने जैसे ही ये कहा तो सुधा ने भी ये सुनते ही चिढ़ते हुए जबाव दिया....क्यों क्या हुआ मेरे पेट को...
कयुं मम्मी आपको राजू मामाजी के साथ वाले घर में आएं नये किराएदार की रिपोर्ट जो चाहिए पेट में गुड़गुड़ाहट सी हो रही है की कौन है ये ...कयुं सच कहा ना कहते हुए आराध्या हंसने लगी अपनी चोरी पकड़ी हुई देखकर सुधा थोड़ा हड़बड़ा सी गई
अच्छा ....तू बड़ा नजर रखती है अपनी मां पर .... कहते हुए सुधा ने मुंह बनाया
अरे मेरी अच्छी और बोली मम्मी बैठो यहां... कहते हुए आराध्या ने सुधा का हाथ पकड़ कर अपने पास बैठाने की कोशिश की तो सुधा हाथ छिटकते हुए बोली ... रहने दें सब्जी काटनी है तुम दोनों बाप बेटी के लिए नाश्ते के साथ लंच भी बनाना है वरना फिर से मुझे ही दोष दोगे
मम्मी दो मिनट बैठो तो .... मुझे आपसे कुछ बताना है दरअसल वो दोनों मेरे ही कालेज में ही पढ़ने आए है यूपी के रहनेवाले हैं बीते साल आई महामारी में दोनों अपने मम्मी पापा को खो चुके हैं और हादसे से अब तक उबरे नहीं हैं वो जो लड़की है ना बडी बहन है और उसके साथ उसका छोटा भाई ... दोनों एक दूसरे का सहारा है वो लड़का उसे अपनी मां की तरह प्यार करता है तो वहीं उसकी बहन अपने छोटे भाई को बेटे की तरह स्नेह और लाड़ ... कालेज में भी दोनों की ही बातें होती हैं मुझे भी क्लास में प्रोफेसर सर की बातों से पता चला .... कहते हुए आराध्या भी थोड़ा सा भावुक हो गई सुधा खड़ी हुई और वापस से सब्जी काटने लगी तो सब्जी काटते हुए उसकी आंखों से आँसुओं की जलधार बहने लगी
ये देखकर उसके पति मोहन ने पूछा... क्या हुआ सुधा
कुछ नहीं जी वो प्याज काटने से ...
प्याज काटने से या उन दोनों बहन भाई की कहानी सुनकर मोहन ने सुधा की और देखकर पूछा ...
सच ... बहुत बुरा लग रहा है जी मगर में क्या कर सकती हूं इस महामारी ने जाने कितने बच्चों से उनके मां बाप छीन लिए ... सुधा अभी भी सुबक रही थी
सुधा .... जानती हो तुम बहुत कुछ कर सकती हो बल्कि हम सब कर सकते हैं और निभा सकते हैं
क्या... सुधा और आराध्या ने हैरानी से मोहन की और देखते हुए पूछा
पड़ोसी धर्म .... सुधा और आराध्या बेटा जानती हो पड़ोसी उस समय आपके काम आते हैं जब आपके अपने भी आपके पास नहीं होते ... बेटा रिश्तेदार जान पहचान वाले जबतक आपके पास पहुंचते हैं ना तबतक तो अपने होने का असली फर्ज पडोसी निभा भी चुके होते हैं मसलन आप अचानक से बीमार हुए आपको तुरंत अस्पताल लेकर जाना है तब आपके काम आपके पड़ोसी पहले आते हैं आपके कंधे
से कंधा मिलाकर चलने वाले
बेटा ये रिश्तेदार तो बहुत बाद में पहुंच पाते हैं
तो ... हमें क्या करना चाहिए पापा ...
बेटा शाम को हम उनके यहां उनके घर चलेंगे जैसा कि तुमने बताया ...हम उनके सगे मां बाप तो नहीं मगर उनके सिर पर स्नेहिल ममतामयी आंचल तो दे सकते हैं ना बच्चों के लिए उनके पीछे कोई उनका अपना है ये एहसास बहुत कुछ हिम्मत देने वाली शक्ति का काम करता है तुम भी उन्हें भाई बहनों जैसे सम्मान देना और हम दोनों माता पिता का साया ...ये उनके जीवन में बहुत कुछ आगे बढ़ने की प्ररेणा स्रोत शक्ति का काम करेगी और यही होता है अपने आसपास रहने वाले पड़ोसियों का पड़ोसी धर्म कहते हुए मोहन ने भी अपनी पलकें साफ की तो मुस्कुराते हुए आराध्या और सुधा दोनों उससे आकर लिपट गई |
संस्कार और माँ
सामरिया श्याम सुंदर
अचानक USA मे रहने वाले भारतीयों का भारत भ्रमण कुछ ज्यादा ही होने लगा !
पहले ये समझा गया कि विदेश मे रहने वाले भारतीयों के मन मे भारत के प्रति अचानक प्रेम बढ़ गया है ? लेकिन मिसेज गोस्वामी के कन्सलटेंसी सेंटर पर जाने पर कुछ और ही माजरा समझ में आया !
मिस्टर और मिसेज गोस्वामी USA मे सेटल हो जरूर हो गये परंतु अपना भारतीय कल्चर नहीं छोड़ा था !
गोस्वामी दम्पत्ति के एक बेटा 16 वर्ष का व एक 13 वर्षीय बेटी थी ! बेटे-बेटी को भी भारतीय संस्कारों मे ढालना चाहतीं थीं मिसेज गोस्वामी ! मिसेज गोस्वामी अपने बेटे को कुछ अमेरिकी दोस्तों के साथ सिगरेट फूँकते हुए देख लिया ! फिर क्या शाम को बेटे के घर वापस आने पर मिसेज गोस्वामी भारतीय परम्परा के अनुसार झाड़ू उठा कर बेटे को सुधारने की ठान लिया था ! अभी मिसेज गोस्वामी ने दो चार झाढू ही बेटे की पीठ पर चिपका पायीं थी कि बेटे ने फोन से 911 डायल कर दिया ! आनन फानन मे लाँस ऐंजल्स पुलिस आयी और मिसेज गोस्वामी को बेटे को मारने के जुर्म में गिरफ्तार कर एक हफ्ते जेल मे ऱखा ! फिलहाल मिसेज गोस्वामी जमानत पर थीं,लेकिन बेटे को सुधारने की जिद न छोड़ी !
जेल से छूटने के बाद मिसेज गोस्वामी ने बेटे को प्यार से समझाया कि चलो तुम्हें इंडिया घुमा लायें .गुरूग्राम नानी के घर जाना है .! बेटा तैयार हो गया !
दिल्ली के अन्तर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे से जैसे मिसेज गोस्वामी बाहर निकलीं ..अपनी चप्पल उतार कर बेटे
को पीटना शुरू कर दिया ..चटाचट चटाचट...... ..और सिगरेट पिएगा ..फटाक फटाक ..बुला अब पुलिस को बुला ...फटाक !
बेटा एयरपोर्ट के पास ड्युटी पर तैनात पुलिस वाले को देख मदद के लिए चिल्लाया ..!
क्या हुआ बहन जी ..!
अरे ये नालायक ..16 साल की उमर में ही सिगरेट पीता है ..दोस्तों के साथ दिन भर मटरगस्ती करता है ..!
" अच्छे से धुलाई करिये बहन जी " ये सलाह दे कर पुलिस वाला चला गया ..!
अब तक बेटे को पता चल चुका था कि माँ-बाप के हाथों बेटे का पिटना पुनीत भारतीय संस्कार है ..सो माफी माँगते हुए ये प्रॉमिस करना उचित समझा कि भविष्य में वो सिगरेट नहीं पिएगा !
मिसेज गोस्वामी भी दस पंद्रह चप्पल ..और इतनी ही संख्या मैं थप्पड़ मारने के बाद .बेटे को कड़क आवाज मे बोलीं जा अब वाशरूम से मुँह धोकर जल्दी आ USA वापस जाने वाली फ्लाईट का समय हो गया है ..गुरूग्राम नानी के घर अगली बार आयेंगे !
यूएसए लौटने के बाद मिसेज गोस्वामी ने एक कंसल्टेंसी सेंटर खोल लिया ..अब वो सलाह देतीं हैं कि " अपने बेटे बेटी को कैसे भारतीय परम्परा के अनुसार , बिना जेल जाने का खतरा मोल लिये सुधारें .."
जरूरी नहीं है ..भारत भ्रमण पर आने वाले अमरीकी-भारतीय भारत प्रेम के कारण ही भारत आया हो ? मिसेज गोस्वामी की सलाह के अनुसार भी आ सकता है ..! आखिर भारत, बेटे-बेटी की पिटाई और भारतीय संस्कार के लिये सर्वथा अनुकूल वातावरण वाला प्लेस जो है ..?
भुजंगासन
भुजंगासन का नियमित रूप से अभ्यास करना सेहत के लिए काफी लाभदायक होता है।
भुजंगासन या कोबरा पोज को नियमित करने से निम्नलिखित लाभ होते है |
रीढ़ की हड्डी मजबूत होती है। छाती और फेफड़ों, कंधों और पेट की मांसपेशियों को आराम मिलता है। तनाव और थकान को दूर करने में मदद करता है व साइटिका की समस्या को कम करने में लाभदायक होने के साथ अस्थमा को भी कम करता है। प्रजनन प्रणाली में सुधार करने के लिए इस अभ्यास को फायदेमंद माना जाता है। अनियमित मासिक धर्म की समस्या भी दूर होती है।
ब्लड सर्कुलेशन बढ़ने से आपके चेहरे पर निखार आता है।महिलाओ के लिए काफी लाभ दायक आसन है |
भुजंगासन करने की विधि
समतल जमीन पर उलटे ( पेट के बल ) लेट जाए , दोनों हथेली को सीने के पास लाकर हथेली जमीन से सटा दे अब कमर से ऊपर के भाग को साँस भरकर उठाए दोनों पैर आपस मे मिले रहे | अपनी झमता अनुसार करे |
बुद्धि विभ्रम के कारण व परिणाम
वासुदेव प्रजापति
अब तक हमने अंग्रेजी शिक्षा का हमारे मन और बुद्धि पर क्या परिणाम हुआ उसे जाना, अब हम ये जानेंगे कि उन्होंने हमारी बुद्धि को भ्रमित कैसे किया? आखिर वे कौन से कारण थे, जिनसे हमारी बुद्धि भ्रमित हो गई। आओ! उन कारणों को समझने का प्रयत्न करें। रोग के कारणों को पहचान लिया तो रोग भगाना हमारे लिए सरल हो जायेगा।
विजातीय जीवन दृष्टि का आरोपण
बुद्धि अपने विवेक से कार्य करती है। किसी भी घटना, स्थिति या पदार्थ को उसके यथार्थ रूप में जानना ही विवेक है। परन्तु बुद्धि का अधिष्ठान चिति है और आलम्बन जीवन दृष्टि है। चिति देश का मूल स्वभाव है और जीवन दृष्टि उसका बौद्धिक रूप है। देश के स्वभाव और जीवन दृष्टि में एकरूपता होने पर ही यथार्थ बोध होता है। परन्तु हमारे देश की चिति और जीवन दृष्टि में विच्छेद हो गया है, इसलिए हमारी बुद्धि यथार्थ बोध नहीं कर पा रही है।
भारत की जीवन दृष्टि और पश्चिम की जीवन दृष्टि में मूलभूत अन्तर है। भारत आत्मवादी है जबकि पश्चिम देहवादी है। पश्चिम देह को आधार बनाकर सारी बातें देखता है, समझता है और उसके अनुसार व्यवहार करता है। देह पंचभूतात्मक है, पंचमहाभूत जड़ है अर्थात् भौतिक है। इसलिए पश्चिम भौतिकवादी कहलाता है। वह भौतिक दृष्टि से देह के प्रकाश में जीव, जगत व जगदीश को देखता है और वैसा ही व्यवहार करता है। भारत आत्मतत्त्व के प्रकाश में जीव, जगत और जगदीश को देखता है,
उसे समझता है, ग्रहण करता है और तदनुसार व्यवहार करता है। इसलिए भारत आत्मवादी है। समस्या यह है कि अंग्रेजी शिक्षा के परिणाम स्वरूप भारत के बौद्धिक क्षेत्र में पश्चिम की भौतिक दृष्टि का साम्राज्य हो गया है। हमने अपनी जीवन दृष्टि को भूलाकर विजातीय जीवन दृष्टि को ओढ़ लिया है। यही बुद्धि विभ्रम का प्रथम मूलभूत कारण है।
दृष्टि बदलने से सारी बातें बदल जाती है। हम सही को गलत और गलत को सही, उचित को अनुचित और अनुचित को उचित मानने लगते हैं। तथा अच्छे को बुरा और बुरे को अच्छा कहने लगते हैं। केवल हमारी दृष्टि बदलती है, स्थिति तो वही की वही बनी रहती है। इसलिए सभी बातों में ऐसी घालमेल हो जाती है कि हमें कुछ सूझता ही नहीं और हम राह भटके हुए राही की भाँति व्यवहार करते हैं।
परार्थी विचार को स्वार्थी बनाया
जीवन दृष्टि बदल जाने से हम स्वार्थी बन गए हैं। अन्यथा भारतीय दृष्टि तो सम्पूर्ण सृष्टि को एकात्म मानने वाली है। व्यक्ति को आत्मरूप मानकर हम सम्पूर्ण सृष्टि के परिप्रेक्ष्य में विचार करते हैं। परन्तु जीवन दृष्टि बदल जाने से अब व्यक्ति को प्रमुख मानकर सृष्टि का विचार करने लगे हैं। सृष्टि व्यक्ति के लिये है, व्यक्ति सृष्टि के लिए नहीं है, यह हमारे व्यवहार का सिद्धान्त बन गया है। भारतीय दृष्टि हमें सिखाती है कि मैं सृष्टि के लिए किस प्रकार उपयोगी बन सकता हूँ। इसके विपरीत पश्चिमी दृष्टि से हमने सीखा है कि मैं मेरे सुख के लिए इस सृष्टि का कैसे व कितना उपयोग कर सकता हूँ। अपनी जीवन दृष्टि बदलने के कारण हमारे विचार और व्यवहार में यह विपरीत परिवर्तन हुआ है।
इस “मैं और मेरे” विचार के परिणामस्वरूप ही शोषण, प्रदूषण जैसे संकटों की परम्परा निर्माण हुई है। पंचमहाभूत हमारे उपभोग के लिए बने हैं, ऐसी समझ हो जाने के कारण भूमि, जल, वायु आदि का हम शोषण करने लगे हैं, फलतः प्रदूषण का संकट खड़ा हुआ है। स्वास्थ्य से सम्बन्धित समस्याएँ पैदा हुई हैं। प्रकृति का संतुलन बिगड़ने के कारण प्राकृतिक आपदाएँ आती हैं। ऋतुचक्र प्रभावित होता है, तापमान अप्राकृतिक पद्धति से घटता-बढ़ता है, जिससे प्राणियों का नाश होता है। समृद्धि का क्षरण होने लगता है। हमारी मूल धारणा इसके लिए कारणभूत होती है, परन्तु यह बात हमारी समझ में बैठती नहीं है। हमें केवल संकट ही दिखाई देते हैं, कारण नहीं दिखाई देते।
विपरीत जीवन दृष्टि ओढ़ लेने के कारण हमारी बुद्धि संकट निवारण के मूल तक न पहूँचकर उन समस्याओं को अधिक विकट बनाने वाले उपाय ही करती है, क्योंकि बुद्धिभ्रमित है। उदाहरण के लिए एक व्यक्ति स्वास्थ्य का विचार न करके विदेशी शीतल पेय कोका कोला पीता है। इसके पीने से एसीडिटी होती है, एसीडिटी दूर करने के लिए दवाई खाता है। उस दवाई को खाने से चक्कर आते हैं और सिरदर्द होने लगता है। अब सिरदर्द भगाने के लिए दूसरी दवाई खाता है, उससे सिरदर्द तो भाग जाता है, परन्तु रक्तचाप बढ़ जाता है। इस प्रकार वह एक के बाद दूसरी, तीसरी दवाइयाँ लेता रहता है, परेशान होता है, सबसे शिकायत करता है, परन्तु कोका कोला पीना नहीं छोड़ता। यदि वह केवल एक बात कर ले तो शेष सभी बातें स्वतः निर्मूल हो जायेगी, यह उसकी बुद्धि में नहीं आता। उसी प्रकार हम अपनी दृष्टि ठीक कर लें तो सभी समस्याएँ ठीक हो जायेंगी। परन्तु हमें तो विजातीय दृष्टि ही सही लगती है।
केवल अपने सुख को चाहना
हमने व्यक्तिवादी विचार को अच्छे-अच्छे शब्दों से निरूपित कर अपने संकट बढ़ा लिए हैं। हम व्यक्ति स्वातंत्र्य की बात करते हैं, व्यक्ति के अधिकार की बात करते हैं, व्यक्ति के विकास की बात करते हैं और व्यक्ति अपने सुख की बात करे इसे स्वाभाविक मानते हैं। व्यक्ति अपने सुख के लिए दूसरे व्यक्ति का उपयोग करे, इसे उचित ठहराते हैं। ये सभी बातें पाश्चात्य जीवन दृष्टि से प्रेरित हैं। भारतीय जीवन दृष्टि में अपना विचार बाद में, पहले दूसरों का विचार करना, यही मान्यता है। किन्तु हम उसे नहीं मानते। मानना तो दूर की बात है, हम अपने ही विचार को अस्वाभाविक और अव्यावहारिक बतलाते हैं।
तर्क आधारित बात करें तो व्यक्ति का सुख, व्यक्ति का विकास, व्यक्ति की स्वतंत्रता आदि सबका सुख, सबका विकास और सबकी स्वतंत्रता के बिना सम्भव ही नहीं है। यह तर्कपूर्ण बात भी हमारी बुद्धि में नहीं बैठती। केवल तर्क ही नहीं, युगों का अनुभव भी इसी बात को सिद्ध करता है। किन्तु हम उस अनुभव को भी नकारते हैं। तर्क और अनुभव की बात को न मानने का कारण यह है कि व्यक्ति स्वार्थी हो गया है और स्वार्थ के वशीभूत होकर वह ‘स्व’ के परे जाकर विचार करने को तैयार ही नहीं होता। वह न इतिहास में देखना चाहता है और न जगत के विस्तार में देखना चाहता है।
अपने अतीत से दूर करना
तार्किक बातें बुद्धि में स्थापित नहीं होने का कारण हमारे प्राचीन देश के अतीत का ज्ञान नहीं होना है। आज के व्यक्ति को न तत्त्वज्ञान की जानकारी है, न शास्त्रों की, न व्यवस्थाओं की और न व्यवहारों की समझ है। मानसिक स्तर पर हीनता बोध से ग्रस्त होने के कारण पश्चिम जो कहता है, वही सही है, ऐसा मानस बन गया है। इसलिए किसी भी विषय का विश्लेषण करने की, परीक्षण करने की तथा बुद्धि से
परखने की आवश्यकता ही प्रतीत नहीं होती। पश्चिम कहता है हमारे शास्त्र कनिष्ठ है और प्राचीन होने के कारण त्याज्य है, ऐसा अतार्किक व अशास्त्रीय तर्क प्रतिष्ठित हो गया है। यही तो हमारा बुद्धि विभ्रम है।
मात्र व्यक्ति के सुख का विचार करने से परिवार का महत्त्व कम हुआ है। परिवार में परस्पर सहयोग की भावना का स्थान दूसरों पर आश्रित होना माना जा रहा है। आश्रित न होना पड़े इसलिए स्वतंत्रता की
बात होने लगी है। स्वतंत्रता मन के अनुसार चलकर स्वच्छंदता में बदल गई है। इस प्रकार हमारी दिशा गलत हो जाने से हम भटक गए हैं। भटकते-भटकते हम कहाँ तक जायेंगे, कल्पना करना भी कठिन है। परिवार का विघटन बढ़ते-बढ़ते समाज के विघटन तक पहुँच गया है। इस प्रकार हम सामाजिक दुर्दशा की अनवस्था में जी रहे हैं।
विकास का आधार बदलना
हमने विकास का आधार ही गलत ले लिया है। भौतिकवादी होने के कारण हम देहवादी बन गए हैं। हमारी समृद्धि की कल्पना भी भौतिक है। समृद्धि का प्रेरक तत्त्व काम है, इसलिए कामनापूर्ति को ही हम मुख्य और केन्द्रवर्ती पुरुषार्थ मानने लगे हैं। फलतः हमारी जीवनशैली स्वाभाविक रूप से भोग प्रधान बन गई है। अधिक भोग में अधिक सुख मानने लगे हैं, भले ही प्रत्यक्ष में कष्टों का अनुभव कर रहे हों। कामनापूर्ति हेतु सामग्री जुटाना, अर्थ पुरुषार्थ का पर्याय बन गया है। अधिकतम सामग्री जुटाने को अपनी सफलता मानने लगे हैं। इस प्रकार यह सफलता विकास का पर्याय बन गई है। और इसे ही विकास का आधुनिक सिद्धांत मान लिया गया हैं। बुद्धि विभ्रम का यह भी एक प्रमुख कारण है।
भौतिकता का आधार मानने से हमारी दिशा ही बदल गई है। हमें यह समझ में नहीं आता कि आत्मतत्त्व ने सृष्टि बनकर जब अपना विस्तार प्रारम्भ किया तो उसका अन्तिम छोर पंचमहाभूतात्मक स्थूल शरीर बना। इस सृष्टि का आधार आत्मतत्त्व है, पंचमहाभूत नहीं। हम केवल बुद्धि से ही समझें तब भी आत्मतत्त्व को अधिष्ठान मानने से जीव व जगत के सभी व्यवहारों की स्पष्टता हो जाती है जबकि भौतिकता को अधिष्ठान मानने से अनेक व्यवहारों का औचित्य अनसुलझा ही रहता हैं। आज समस्या यह है कि हमारी बुद्धि आत्मतत्त्व तक पहुँचती ही नहीं। आत्मतत्त्व के प्रकाश में सब कुछ देखने से सब बातें सरल हों जाती हैं, इसे ही हम स्वीकार नहीं करते। आत्मतत्त्व या आत्मा को स्वीकार कर भी लिया तो उसे बुद्धि से नहीं जाना जा सकता, इसलिए अव्यावहारिक मान लेते हैं।
भारतीय शब्दों के अभारतीय अर्थ करना
हमने भारतीय जीवन व्यवहार से सम्बन्धित अत्यन्त मूल्यवान और गूढ़ संकल्पनात्मक शब्दों को विपरीत अर्थ के साथ जोड़कर उन्हें उलझा दिया हैं। उदाहरण के लिए धर्म, संस्कृति, आत्मा, राष्ट्र, श्रद्धा, प्रेम, विज्ञान, वैज्ञानिकता आदि अनेक संकल्पनाएँ आज उलझ गईं हैं। लोकतंत्र, समाज, वर्ण, जाति, आश्रम, परिवार और शिक्षा आदि शब्दों को भी विपरीत अर्थ प्रदान कर दिये हैं। आज जो अर्थ दिये गए हैं, वे भारतीय सन्दर्भ में उनके सही अर्थ नहीं हैं।
स्वतंत्रता और स्वायत्तता ऐसी ही भारतीय संकल्पनाएँ हैं जिन्हें अभारतीय अर्थ दे रखा है। भारतीय जीवन दृष्टि में प्रत्येक पदार्थ का स्वतंत्र अस्तित्त्व है, जिसका एक प्रयोजन है। हम भारतीय पदार्थों, प्राणियों, वनस्पतियों और मनुष्यों के स्वतंत्र अस्तित्त्व को स्वीकारते हैं और उनका सम्मान व रक्षण भी करते हैं। परन्तु आज हमने इसका भारतीय अर्थ नकारते हुए स्वतंत्रता की पश्चिमी संकल्पना को स्वीकार कर लिया है। पश्चिम प्रत्येक व्यक्ति की स्वतंत्रता को एक-दूसरे का विरोधी मानता है। वह मनुष्य के अतिरिक्त पदार्थ, प्राणी और वनस्पति आदि की स्वतंत्रता को मान्यता ही नहीं देता। फलतः श्रेष्ठता कनिष्ठ बनकर गर्व का अनुभव करती है, जो कितनी विचित्र बात है।
ऐसी ही दूसरी संकल्पना विकास की है। जब व्यक्ति को केन्द्र में रखकर विकास की बात होती है तो उसमें स्पर्धा का निर्माण होता है। और स्पर्धा को विकास का कारक तत्त्व माना जाता है, जो विपरीत बुद्धि का परिचायक है। इस स्पर्धा को सही ठहराने के लिए ‘स्वस्थ स्पर्धा’ शब्द का प्रयोग किया जाता है, जो ‘आकाश कुसुम’ जैसा असम्भव प्रयोग है। जिस प्रकार आकाश में फूल नहीं उगा करता, उसी प्रकार स्पर्धा कभी स्वस्थ नहीं हो सकती। स्पर्धा में संघर्ष होता है, संघर्ष से हिंसा जन्म लेती है और हिंसा से विनाश होता है। परन्तु हमने स्पर्धा को व्यवहार का केन्द्रवर्ती तत्त्व बना दिया है। और स्पर्धा के साथ पुरस्कार को जोड़कर, उसे श्रेष्ठता का बाना पहना दिया है। परस्पर विरोधी बातें एक-साथ करना मूढ़मति का लक्षण है। वातानुकूलित कक्ष में बैठकर पर्यावरण की चिन्ता करना, फास्टफूड जैसे तामसी आहार का सेवन करते हुए सात्त्विकता एवं संस्कार की बात करना, रासायनिक खाद से उत्पन्न अनाज खाकर उत्तम स्वास्थ्य की कामना करना, निरन्तर मोबाइल व इंटरनेट का प्रयोग करते हुए बुद्धि की तेजस्विता बढ़ने की आशा रखना नितान्त असम्भव है। यह अति सामान्य बात भी हमारी समझ में नहीं आती।
तीसरी महत्त्वपूर्ण संकल्पना भारतीय शिक्षा की है। पश्चिमी शिक्षा से छिन्नभिन्न हुई बुद्धि ने हमारे सभी सामाजिक व सांस्कृतिक शास्त्रों के अर्थ को अनर्थ में और सिद्धांतों को विध्वसंकों में बदल दिया है। हमारा अर्थशास्त्र जो धर्म का अविरोधी था, उसे आज कामानुसारी बना दिया गया है। ऐसा कामानुसारी अर्थ, धर्म, शिक्षा व राज्य आदि व्यवस्थाओं का नियंत्रक बन बैठा है। हमारा मनोविज्ञान जो आत्मानुगामी होता था, वह आज देहानुगामी बन गया है। हमारा समाजशास्त्र संस्कार सिद्धांत को छोड़कर केवल करार के सिद्धांत पर चलने लगा है। भारतीय शिक्षा धर्म सिखाने वाली होने के स्थान पर बाजार में ज्ञान बेचने वाली व्यवस्था बन गई है। जिस प्रकार किसी अनिष्ट पदार्थ का स्पर्श होते ही समूचा शरीर तंत्र अस्तव्यस्त हो जाता है, उसी प्रकार पश्चिमी बुद्धि के प्रभाव में भारतीय बुद्धि क्षत-विक्षत होकर हमारी सभी व्यवस्थाओं को बदलकर अनवस्था निर्माण कर रही है। ये ही भारतीय ‘बुद्धि विभ्रम’ के प्रमुख कारण हैं।
(लेखक शिक्षाविद् है, भारतीय शिक्षा ग्रन्थमाला के सह संपादक है और विद्या भारती संस्कृति शिक्षा संस्थान के सचिव है।)
वर वधू
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वर वधू के लिए निम्नलिखित फार्म भरे ।
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गुड़ की खरीद
घर के पास के मार्केट में किराना की दुकान से घर में रोज़ मर्रा के इस्तेमाल के लिए गुड़
खरीदने गया। बुजुर्ग होने के नाते दुकानदार ने मुझे पाँव घोक बोला और पूछा , अंकल क्या
देदूं ? मैंने कहा कोई ज्यादा कुछ नहीं , बस थोड़ा गुड़ चाहिए। दुकानदार थोड़ा सोच ने लगा
और मुझसे पूछा , अंकल आप कितना गुड़ लेंगे ? मैंने कहा एक किलो चाहिए। दुकानदार
पूछने लगा गुड़ का क्या कीजियेगा ?
मैं थोड़ा सकपकाया। मुझे आश्चर्य हुआ मुझसे ये सवाल क्यों पूछा जा रहा है। मैं दुकानदार
की आँखों में अचम्भे से उसे देखने लगा। थोड़ा रुक कर मैंने अटकते हुए उत्तर दिया। घर में
गुड़ तो आओ जानते हैं बहुत कामों में आता है। मैं अक्सर खाना खाने के बाद गुड़ की छोटी
सी डली मुंह में रख लेता हूँ। खाना पच जाता है। सुबह - सुबह हलके गुनगुने पानी के साथ
थोड़ा गुड़ लेने से खून पतला रहता है और हार्ट के लिए अच्छा रहता है। और शरीर को सुबह
ग्लूकोज मिल जाता है। शरीर को दिनभर काम करने की शक्ति मिलती है।
मैं अपने आपको गौरवान्वित समझ रहा था। मैंने दुकानदार को गुड़ के प्रयोग के अनेक
कारण बताये और उसको गुड़ ज्ञान दिया। दुकानदार अन्य ग्राहकों अटेंड ना करते हुए मुझे सब्र
से सुनता रहा तो मैंने उसे कुछ और बताना भी उचित समझा। और हाँ हनुमान जी को गुड़
- चने का प्रसाद बहुत प्रिय है। जब हम बच्चे थे और परीक्षाओं के दिनों में पेपर देने जाते
थे तो हमारी अम्माँ कटोरी में थोड़ा गुड़ डाल कर दही देतीं और आशीर्वाद देतीं कि हमारा
पेपर अच्छा हो। हमें सब याद है। हम बहुत प्रफुल्लित थे।
दुकानदार ने धीरे से हमसे पूछा , सर ! चेक - बुक लाए हैं ? मैंने आश्चर्य से पूछा , चेक -
बुक क्यों ? उन्होंने कहा , सर क्षमा करना हम गुड़ कैश में नहीं बेच सकते। गुड़ अब सिर्फ
चेक पेमेंट पर ही दे सकते हैं। हमें इसका पूरा रिकॉर्ड रखना पड़ता है। किसने कितना गुड़
ख़रीदा और किस काम के लिए। खरीददार के पैन कार्ड और आधार कार्ड की कॉपी भी चाहिए।
मैं झल्ला उठा और दुकानदार से गुस्से में पूछा आप गुड़ बेच रहे हो या सोना ? मैं ऊल -
जलूल बात करने लगा और अपने आपे से बाहर हो गया। दुकानदार पर जोर - जोर से
चिल्लाने लगा।
पत्नी ने मुझे हिलाया . बार - बार हिलाया। क्या बात है ? जाग - जाओ कोई बुरा सपना आया
क्या ? मैं थोड़ा होश में आया। नींद खुली। समझ में आया कि मैं सो रहा था। यह नींद में
सपना देख रहा था। मैं दिन भर इस सपने के बारे में सोचता रहा। स्वप्न और गृत अवस्था
में आजकल कोई अंतर नहीं हैं। सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश आजकल नर और नारी की
परिभाषा परिभाषित करने में लगे हैं.. देश की बढ़ती जन संख्या का समाधान
लिव - इन - रिलेशनशिप और समलैंगिक - विवाह के नए - नए आधुनिक विधानों के
अनुसंधानों में लगे हैं। न्यायालयों में न्याय की तराजू में जंग खा गया है
राजा विक्रमादित्य के देश में आज ये कैसे कानून बनाने जा रहे हैं ? दिन - रात व्हाट्सएप
पर ,टी वी चैनलों पर और अखबारों में सुन और पढ़कर आज आदमी सुख के सपने भी नहीं देख सकता। -- किशन लाल शर्मा
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