जानकारी काल
वर्ष-23, अंक-09, फरवरी -2023, पृष्ठ 4 मूल्य 2-50
शिव और शक्ति का महामिलन महाशिवरात्रि को हुआ था | भगवान शिव और शक्ति एक दूसरे से विवाह बंधन में बंधे थे | वैरागी शिव वैराग्य छोड़कर गृहस्थ आश्रम में प्रवेश किए थे | महाशिवरात्रि के दिन ही द्वादश ज्योतिर्लिंग प्रकट हुए थे | 12 ज्योतिर्लिंग हैं - सोमनाथ ज्योतिर्लिंग, मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग, महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग, ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग, केदारनाथ ज्योतिर्लिंग, भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग, विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग, त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग, वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग, नागेश्वर ज्योतिर्लिंग, रामेश्वर ज्योतिर्लिंग और घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग हैं. इन 12 ज्योतिर्लिंगों के प्रकट होने के उत्सव के रुप में भी महाशिवरात्रि मनाई जाती है |
सम्पादकीय
बहूनां जन्मनामन्ते ज्ञानवान्मां प्रपद्यते।
वासुदेवः सर्वमिति स महात्मा सुदुर्लभः
अनेक जन्मों की आध्यात्मिक साधना के पश्चात जिसे ज्ञान प्राप्त हो जाता है, वह मुझे सबका उद्गम जानकर मेरी शरण ग्रहण करता है। ऐसी महान आत्मा वास्तव में अत्यन्त दुर्लभ होती है।
हम पहले परमात्मा को दूर देखते हैं फिर समीप देखते हैं फिर अपने में देखते हैं और फिर केवल परमात्मा को ही देखते हैं कर्म योगी परमात्मा को समीप देखता है ज्ञान योगी परमात्मा को अपने में देखता है और भक्त योगी सब जगह परमात्मा को ही देखता है | सब कुछ परमात्मा ही है ऐसा अनुभव करना ही असली शरणागति है अर्थात् केवल शरणय ही रह जाएं शरणागत कोई रहे ही नहीं ! हमारी दृष्टि में संसार की सत्ता है। जैसे खेत में पहले भी गेहूं बोया गया था और अंत में ही गेहूं निकलेगा पर बीच में हरी हरी घास दिखने पर भी वह गेहूं की खेती कहलाती है उसे गाय खा जाए तो किसान कहता है गाय हमारा गेहूं खा गई जबकि गाय ने गेहूं का एक दाना भी नहीं खाया होता। इसी प्रकार सृष्टि के पहले भी परमात्मा थे और अंत में भी परमात्मा ही रहेंगे पर बीच में परमात्मा ने दीखने पर भी सब कुछ परमात्मा ही है जैसे गांव में उत्पन्न खेती भी गेहूं की है ऐसे में परमात्मा से उत्पन्न सृष्टि भी परमात्मा ही है । परमात्मा ने कहीं से मंगा कर सृष्टि नहीं बनायी। परमात्मा खुद ही सृष्टि रूप बन गए सृष्टि भगवान का प्रथम अवतार है। जैसा जिसके भीतर प्यास होती है उसे ही जल दिखता है। प्यास ना हो तो जल सामने रहते हुए दीखता नहीं ऐसे ही अगर आपको परमात्मा को पाने की ललक होती है तभी आपको परमात्मा दिखते हैं। आपके अंदर संसार की प्यास होती है उसे संसार दिखता है। परमात्मा की प्यास हो तो संसार लुप्त हो जाता है और संसार की प्यास हो तो परमात्मा लुप्त हो जाते हैं। तात्पर्य है कि संसार की प्यास होने से संसार ना होते हुए भी मृगमरीचिका की तरह दिखने लग जाता है और परमात्मा की प्यास होने से परमात्मा ना दीखने पर भी दीखने लग जाते हैं परमात्मा की प्यास जागृत करने के लिए हमें भूतकाल का चिन्तन नहीं होता, भविष्य की आशा नहीं रहती और वर्तमान मे उसे प्राप्त किए बिना चैन नहीं पड़ता । इसलिए सब कुछ एक भगवान का ही है। एक भगवान का होने से भगवान अकेले है उनके पास कुछ भी नही है, भगवान का अंश होने के कारण हमारा भी कुछ नही है।इसलिए हम जो भी कर्म करें, जो भी सोचे वह सब भगवान के लिए कर्म करे, भगवान के बारे में सोचें और और फल को भी भगवान के ऊपर समर्पित कर दें फिर हम पाएंगे कि जो कुछ हो रहा है भगवान ही कर रहा है और हम तनावमुक्त होकर कर अपना जीवन जी सकेंगे और हम अकिंचन होकर भगवान के प्रेमी हो जाते है।
विषय कठिन, राह आसान
– दिलीप वसंत बेतकेकर
बुद्धिमत्ता के अनेक प्रकार हैं। प्रो. हावर्ड गार्डनर के मतानुसार प्रत्येक व्यक्ति में सात-आठ प्रकार की बुद्धिमत्ता विद्यमान है- भाषिक, गणितीय, सांगीतिक, व्यक्ति अन्तर्गत, आंतर-व्यक्ति, शारीरिक स्नायु विषयक, अवकाशीय!
ये सभी प्रकार की बुद्धिमत्ता सभी के पास है। मात्रा परिमाण कम अधिक होगा! किसी के पास भाषिक बुद्धिमत्ता अधिक हो तो अन्य कम हो सकती हैं। किसी अन्य के पास गणितीय बुद्धिमत्ता अधिक तो अन्य कम हो सकती है।
इसीलिए कुछ विषयों में अच्छे अंक, अच्छी प्रगति, अच्छा कार्य हो सकता है। अन्य विषय जड़ अथवा कठिन ऐसा अनुभव हो सकता है। अतः धीरे धीरे उस विषय से भय लगने लगता है। अरुचि पैदा होती है। फिर वह विषय तो अत्यंत कठिन ही है ऐसी भ्रान्ति मन में पैदा हो जाती है। अनेक लोगों को गणित, इतिहास ये विषय कठिन लगते हैं। कुछ को अंग्रेजी तो किसी को विज्ञान से घबराहट पैदा होती है। डर के कारण उस विषय का कठिन महसूस होना और अंततः उस विषय से दुराव हो जाता है। उस विषय के लिए फिर कम समय दिया जाता है।
इसमें से कौन सा सही मार्ग होगा ये प्रश्न बच्चे और पालक पूछते रहते हैं। अब हम इसी का विचार करेंगे।
सर्वप्रथम यह देखे कि कौन सा विषय कठिन लगता है? सभी विषय तो कठिन नहीं होते। उस एक विषय के लिए डर लगने के कारण वह कठिन लगता है। कठिन लगने वाले विषय के अध्ययन के लिए एक निश्चित समय तय कर लें। शेष विषय का अध्ययन तो अपनी सुविधानुसार किसी भी समय कर सकते हैं, परंतु उस कठिन विषय… उदाहरण गणित… का अभ्यास तो निश्चित किए हुए समय पर ही करें। किसी भी परिस्थिति में इस समय का निश्चित ही पालन करें। इस समयावधि में अन्य कोई विषय नहीं पढ़ें।
तीसरी बात इस कठिन विषय के अभ्यास हेतु एक निश्चित स्थान तय करें और उसी स्थान पर बैठकर उस विषय का अध्ययन करने का नियम बनाएं। यह स्थान किसी भी परिस्थिति में परिवर्तित ना करें।
एक विशेष बात यह कि उस निश्चित स्थान पर पूर्व दिशा अथवा उत्तर दिशा की ओर चेहरा रखते हुए बैठक लें। ईशान दिशा की ओर भी मान्य है। दक्षिण पश्चिम दिशा की ओर मान्य नहीं।
अब कठिन विषय निश्चित हुआ, स्थान निश्चित हुआ, समय और समयावधि (एक घंटा) निश्चित हुई, बैठक की दिशा भी निश्चित हुई। अब उस विषय का अभ्यास प्रारंभ करने से पहले दो तीन मिनट शांत मुद्रा में बैठें। सांस पर नियंत्रण करें, लक्ष्य-केंद्रित करें। पांच मिनिट प्राणायाम करने के पश्चात स्वगत बोलें अपने मन में कहें। – मैं अब मेरे पसंदीदा विषय गणित (या कोई अन्य हो) का अभ्यास करने हेतु एक घंटे के लिए एकाग्र चित्त होकर आसनस्थ हो रहा हूँ। बहुत अच्छी प्रकार से अध्ययन करूंगा ये करते हुए आंखे बंद रखें। यह स्वागत भाषण होने के पश्चात दोनों हाथों के हथेलीयों को आपस में रगड़ें जिससे हथेलीयाँ उष्ण हो जाएंगी। सम्पूर्ण हाथ सम्पूर्ण चेहरे पर फेरे आंख धीरे धीरे खोलें और प्रसन्न मन से आगे एक घंटा उस विषय का अध्ययन करें। ये प्रयोग सतत तीन महीने करें। आलस, टालमटोल ना करें वरना प्रयोग में सफलता नहीं मिलेगी।
हम अन्य धार्मिक व्रत जैसे एकाग्रता से करते हैं, वैसे ही यह व्रत तीन महीने तक करना है। तीन माह की अवधि कुछ कम नहीं होती! परन्तु निश्चित समय पर, तय स्थान पर, तय समयावधि में, निरंतर निष्ठा, एकाग्रता, श्रद्धा से, अभ्यास करने पर, बहुत ही अच्छे परिणाम सामने आएंगे। उपरोक्त वर्णित नियमों का सख्ती से पालन करना आवश्यक है। अब तीन माह पश्चात…
वह कठिन लगने वाला विषय सरल और आसान लगेगा। उस विषय के प्रति भय दूर होगा और रूचि बढेगी। उस विषय में अब अच्छे अंक भी प्राप्त होंगे। तो फिर यह तीन माह का प्रयोग करने से क्यों परहेज करना? आज ही से शुरू करें! कल कभी नहीं आता। tomorrow never comes! शुभस्य शीघ्रम !!
(लेखक शिक्षाविद, स्वतंत्र लेखक, चिन्तक व विचारक है।)
रामकृष्ण परमहंस
रामकृष्ण परमहंस का मूल नाम गदाधर था। उनके माता-पिता को एक सपना आया था कि उनके घर भगवान गदाधर जन्म लेंगे तो इस वजह से उनके माता-पिता ने रामकृष्ण का नाम गदाधर रखा था | उनका जन्म सन् 1833 में हुगली के निकट कामारपूकर नामक गाँव में हुआ था।रामकृष्ण परमहंस एक महान संत,आध्यात्मिक गुरु एवं विचारक थे। उन्हें बचपन से ही विश्वास था कि ईश्वर के दर्शन हो सकते हैं अतः ईश्वर की प्राप्ति के लिए उन्होंने कठोर साधना और भक्ति का जीवन बिताया।
ब्राह्मणत्व-मानवीय विकास का लक्ष्य
भारत में मानवीय विकास एक मूलभूत विचार है, जिसमें व्यक्ति तमस् से रजस् और रजस् से सत्व में विकसित होता है। पूर्ण सत्व में प्रतिष्ठित हो जाने पर व्यक्ति अत्यन्त विकसित और अपने भीतर दिव्यता अभिव्यक्त करता हुआ एक विशिष्ट श्रेणी का हो जाता है। भारत में यही मानवीय विकास का लक्ष्य है। भारत का विश्वास है कि जिस समाज में ऐसे सात्विक, आध्यात्मिक, विकसित तथा अपने अन्दर के देवत्व को अभिव्यक्त करने वालों की संख्या सर्वाधिक होगी, वही समाज सर्वाधिक उन्नत होगा। मूलभूत वेदान्तिक समझ के अनुसार ऐसे व्यक्ति को ही ब्राह्मण कहते हैं, न कि वर्तमान समय में दोषपूर्ण जातिप्रथा के संदर्भ में आने वाले व्यक्ति को।
‘ब्राह्ममण’ शब्द की सबसे प्राचीन परिभाषा हमें 4000 वर्ष पूर्व के बृहदारण्यक उपनिषद (3.8.10) में प्राप्त होती है- ”यो वा एतदक्षरं गार्गी अविदित्वा अस्ताम् लोकात् जैति, स कृपणो, अथ य एतदक्षरं गार्गि विदित्वा अस्ताम् लोकात् प्रैति, स ब्राह्मणः - हे गार्गी, जो व्यक्ति इस अक्षर (ब्रह्म) को जाने बिना ही इस लोक से चला जाता है वह कृपण या दीन है परन्तु जो इस अक्षर (ब्रह्म) को जानकर जाता है, वह ब्राह्मण है।“
भगवान बुद्ध ने भी ब्राह्मणत्व के आदर्श के प्रति परम सम्मान एवं प्रशंसा का भाव प्रकट किया था ‘सुत्त पिटक’ के अन्तर्गत आने वाले खुद्दक निकाय के अंश रूप महान बौद्ध ग्रन्थ ‘धम्मपद’ का ब्राह्मणवग्गो नामक अंतिम (26वां अध्याय) पूरा का पूरा ही ब्राह्मण आदर्श की प्रशंसा में है। उस अध्याय के कुछ श्लोकों का हिन्दी अनुवाद निम्न है -
श्लोक 3 - यस्य पारं अपारं व पारापारं न विद्यते।
निर्दरं च विसंयुक्तं तंअहं ब्रुमि ब्राह्मणाम्।।
मैं उसे ब्राह्मण कहता हूँ जिसके लिए न यह किनारा है न वह और न दोनों, वह जो भय तथा आसक्ति से रहित है।
श्लोक 6 - स ब्राह्मणो वाहितपापको यः समं चरेद्यः श्रमणः स उक्तः।
प्रवाजयति आत्ममलं च यस्मात् प्रवाजितोऽसावभिधयितेडतः।।
उसने बुराईयों को दूर कर दिया है, इसलिए वह ब्राह्मण कहलाता है, वह समभाव में रहता है इसलिए श्रमण कहलाता है, उसने अपनी अपवित्रताओं को दूर कर दिया है। अतः वह परिव्राजित है।
श्लोक 11 - न जटामिः न गोत्रेण न जात्या ब्राह्मणो भवेत्।
यास्मिन सत्यं च धर्मश्च स सुखी ब्राह्मणश्च सः।।
जटा, कुल या जाति से कोई ब्राह्मण नहीं होता है, जिसमें सत्य तथा धर्म हो, वही सुखी ओर ब्राह्मण है।
स्वामी विवेकानन्द ने भी मानव विकास के इस ब्राह्मणत्व के आदर्श का गुणगान किया है, साथ ही जातिवाद के दोषों पर तीव्र प्रहार व भर्त्सना भी की है।
उपनिषदों से लेकर बुद्ध तथा शंकराचार्य के दिनों तक हमें यही सिखाया गया कि वही व्यक्ति इस शब्द का द्योतक है, जिसने ब्रह्म की अनुभूति कर ली हो तथा जो प्रेम व दया से युक्त हो। अतः ब्राह्मण शब्द यह एक मानव प्रकार का परिचायक है-एक भाववाचक रूप है। भगवान श्री कृष्ण का जीवन भी इसीलिए था। शंकराचार्य जी कहते हैं- ”भौमस्य ब्राह्मणः ब्राह्मणत्वस्य रक्षणार्थ-भूमि के ब्रह्म और ब्राह्मणत्व की रक्षा के लिए।“ वास्तव में आज का भ्रम इसलिए है कि लोगों को यह ज्ञात ही नहीं है कि पौरोहित्य ब्राह्मण (यानि जाति विशेष) भारतीय प्राचीन दर्शन व ज्ञान में अल्लिखित ब्राह्मण से भिन्न हैं मानवीय उत्कृष्टता का यह ब्राह्मण आदर्शन पूरे विश्व को सर्वत्र अपनाने योग्य है- सामाजिक विकास का यही लक्ष्य है। वर्तमान समाज शास्त्र का अधिकांश भाग समाज सांख्यिकी है, पर सच्चा समाज शास्त्र वह है जो मानव के आध्यात्मिक प्रगति एवं सामाजिक विकास पर बल देता है।
विद्यालय में विशेष आयोजन कैसे करे
– रवि कुमार
विद्यार्थियों में विशेष गुणों के विकास की दृष्टि से अनेक विशेष आयोजनों की योजना होती है। कुछ आयोजन उस वर्ष में आने वाले विशेष दिवस के साथ जुड़े होते हैं। कुछ आयोजन प्रतिवर्ष होते हैं और सर्वदूर उनकी मान्यता हैं। बाल केंद्रित शिक्षा में ऐसे दो विशेष प्रकार के आयोजन विद्यालय में करना आवश्यक है – १ शैक्षिक भ्रमण २ वार्षिकोत्सव। आइए इन दोनों विशेष आयोजनों के विषय में जानते है-
शैक्षिक भ्रमण
सामान्यतः सभी विद्यालयों में शैक्षिक भ्रमण का आयोजन होता तो है। परंतु यह आयोजन होता है कुछ प्रतिशत विद्यार्थियों के लिए। विद्यालय में सूचना दी जाती है कि आमुख स्थान पर भ्रमण जाएगा, आप अपना पंजीकरण करवा सकते है। भ्रमण पर जाने की साधन व्यवस्था एक बस है जिसकी क्षमता 40/50 ही है। प्रायः बड़ी कक्षाओं के विद्यार्थियों को ही इस भ्रमण में जाने का अवसर मिलता हैं। यात्रा
व भोजन आदि का अधिक शुल्क के कारण सभी विद्यार्थियों के अभिभावक भ्रमण पर जाने की अनुमति नहीं देते। वे अन्यान्य कारण बताकर विद्यार्थी से मना करवा देते हैं। जिन विद्यार्थियों का मन भ्रमण पर जाने का है उपरोक्त दोनों कारणों से वे नहीं जा पाते। विद्यालय के 40-50 विद्यार्थी दो-तीन दिन का भ्रमण करके आते हैं और विद्यालय के गतिविधि पंचांग में जुड़ गया शैक्षिक भ्रमण!
अब ये शैक्षिक भ्रमण था या केवल भ्रमण? इस पर भी विचार करना आवश्यक है। यह भ्रमण सभी विद्यार्थियों के लिए था या कुछ % के लिए?
शैक्षिक भ्रमण की योजना कक्षा अनुसार की जाए। छोटी कक्षाओं के विद्यार्थी कम दूरी पर कम समय के लिए जा सकते है। कक्षा स्तर व आर्थिक स्थिति अनुसार दूरी व समय बढ़ा सकते है। चालू सत्र में जो पाठ्यक्रम पढ़ाया जा रहा है उसके अनुसार आसपास देखने के लिए कौन-कौन सा स्थान है जिसका ऐतिहासिक, सामाजिक व सांस्कृतिक महत्व है, यह विचार कर योजना हो। जहां जा रहे है, उस स्थान पर जाने से विद्यार्थी क्या सीखने वाले हैं, इसे योजना में सम्मिलित किया जाए। यह सब करने से तभी सही स्थान का चयन हो पाएगा।
एक विद्यालय में कक्षा 6 से 8 के विद्यार्थियों का ग्राम भ्रमण रखा। अब ग्राम भ्रमण में क्या विशेष है? यह प्रश्न हमारे मन में आना स्वाभाविक है। परन्तु इस भ्रमण में भी कुछ विशेष था। कक्षा 6 से 8 में अध्ययन करने वाले नगरीय अंचल के विद्यार्थियों का यह भ्रमण था। सामान्यतः नगरीय विद्यार्थियों को ग्राम्य जीवन का अनुभव न के बराबर होता है। ग्राम्य जीवन से जुड़ी बातें पाठ्यक्रम का भाग तो होती ही हैं। ग्रामीण विद्यार्थियों को इसका अनुभव दैनदिन होता रहता है। ऐसे में नगरीय विद्यार्थियों को ग्रामीण जीवन का अनुभव प्रत्यक्ष मिलने से अच्छा रहता है।
विद्यालय के आसपास का धार्मिक स्थल- मन्दिर, गुरुद्वारा; सब्जी मंडी, डाकघर, रेलवे स्टेशन, पुलिस स्टेशन, हस्पताल, पैथ लैब, समाचार पत्र-पत्रिका कार्यालय, रेडियो स्टेशन, टीवी चैनल, ऑटो वर्कशॉप, फ़ूड प्रोसेसिंग यूनिट, संग्रहालय, कुम्हार-लोहार-फर्नीचर कार्यस्थल आदि सभी भ्रमण के स्थान हो सजते हैं। भ्रमण विद्यार्थी के मन को आनन्दित करता है। सही स्थान का चयन व योजना इस आनन्द के साथ अधिगम को बढ़ाएगी।
वार्षिकोत्सव
वर्ष में एक बार किया जाने वाला उत्सव वार्षिकोत्सव कहलाता है। कहीं-कहीं यह विद्यालय के स्थापना दिवस पर भी होता है। वर्षभर में विद्यार्थियों को जो सिखाया जा रहा हैं उसको अभिभावकों व समाज के सामने अभिव्यक्त करने का अवसर वार्षिकोत्सव प्रदान करता है। अतः वार्षिकोत्सव की योजना भी वर्षभर करना आवश्यक है। वर्षभर में जो सीखा-सिखाया गया उसे ही वार्षिकोत्सव में शारीरिक व सांस्कृतिक कार्यक्रमों के माध्यम से प्रस्तुत किया जाना चाहिए। हाँ, प्रस्तुति अच्छी हो सके इसके लिए एक मास पूर्व उन सभी कार्यक्रमों का अधिक अभ्यास आवश्यक है।
सामान्यतः वार्षिकोत्सव के लिए ही कार्यक्रम तैयार करवाए जाते हैं। ऐसे में वो वार्षिकोत्सव है या तत्काल उत्सव? यह विचारणीय है। सांस्कृतिक (भारतीय संस्कृति से ओतप्रोत) कार्यक्रम है या फिल्मी रंगमंच? कुछ विद्यार्थियों को अवसर है या अधिकतम विद्यार्थियों को? तैयारी आचार्य करवाएंगे या बाहर से कोई प्रोफ़ेशनल? व्यवस्थाएं विद्यालय के संसाधनों से होंगी या बाहरी संसाधनों से? व्यवस्थाएं व सज्जा विद्यालय के विद्यार्थी व आचार्य करेंगे या बाहरी किराए के व्यक्ति? सहयोग अभिभावकों-पूर्व छात्रों का लेना है या किराए के व्यक्तियों का? प्रतिभा प्रदर्शन विद्यार्थियों का है या डिजिटल ऑडियो/वीडियो का? ये सब प्रश्न विचार के योग्य है। उपरोक्त में से सही चुनाव ही आपके वार्षिकोत्सव का सही प्रकटीकरण करेगा, जो अभिभावकों व समाज के लिए विद्यालय का चेहरा होगा।
एक स्थान पर एक मंचीय कार्यक्रम प्रस्तुत हुआ। कक्षा 3 व 4 के विद्यार्थियों ने एक समूह गीत प्रस्तुत किया। गीत था – “धरती की शान तु है मनु की संतान, तेरी मुट्ठियों में बंद तूफान है रे, मनुष्य तु बड़ा महान है।” लगभग 25 विद्यार्थियों ने इस गीत पर अभिनय किया, गायन बड़ी कक्षा की बालिकाओं ने और वादन का कार्य वंदना विभाग के छात्रों द्वारा किया गया। विद्यार्थियों ने विद्यालय वेश पहना हुआ था। इस कार्यक्रम की तैयारी कक्षा 3 व 4 की आचार्य दीदी द्वारा करवाई गई। गीत के बोल के साथ अभिनय करते हुए सुंदर प्रस्तुति! भारतीय संस्कृति के संस्कार व विचार के साथ विद्यार्थियों की कर्मेन्द्रियों व ज्ञानेन्द्रियों की सक्रियता। कोई बाह्य सहायता नहीं, कोई विशेष खर्च नहीं, विद्यार्थियों द्वारा दैनदिन रूप से सहज तैयारी व प्रस्तुति।
विद्यार्थी काल में सम्पन्न हुए विशेष आयोजन शैक्षिक भ्रमण व वार्षिकोत्सव का जीवनभर प्रभाव रहता है। इन दोनों कार्यक्रमों की स्मृतियाँ विद्यार्थी के मानस पटल पर सदा अंकित रहती हैं। आचार्य परिवार द्वारा चिंतन-मनन कर सकारात्मक एवं दूरगामी परिणामों को ध्यान में रखकर इसकी योजना होनी चाहिए। और विद्यालय के प्रत्येक विद्यार्थी को इन विशेष आयोजनों में भाग लेने का अवसर प्राप्त हो, इसका भी ध्यान रखा जाए।
(लेखक विद्या भारती दिल्ली प्रान्त के संगठन मंत्री है और विद्या भारती प्रचार विभाग की केन्द्रीय टोली के सदस्य है।)
महत्वपूर्ण दिवस फरवरी मास
1 फरवरी-भारतीय तटरक्षक दिवस
2 फरवरी/जन्म-दिवस हाकी को समर्पित के.डी.सिंह ‘बाबू’
2 फरवरी-विश्व आर्द्रभूमि दिवस
4 फरवरी-विश्व कैंसर दिवस
4 फरवरी/जन्म दिवस,राजपथ से रामपथ पर - आचार्य गिरिराज किशोर
4 फरवरी/जन्म-दिवस,देश राग का सर्वोत्तम स्वर पंडित भीमसेन जोशी
4 फरवरी-श्रीलंका का राष्ट्रीय दिवस
6 फरवरी/जन्म-दिवस,धर्म और देशभक्ति के गायक कवि प्रदीप
7 फरवरी-अंतर्राष्ट्रीय विकास सप्ताह
9 फरवरी- सुरक्षित इन्टरनेट दिवस
10 फरवरी- राष्ट्रीय कृमी मुक्ति दिवस
11 फरवरी- विश्व यूनानी चिकित्सा दिवस
11 फरवरी/समर्पण-दिवस,जब सेल्यूलर जेल राष्ट्र को समर्पित हुई
12 फरवरी-डार्विन डे
12 फरवरी-अब्राहम लिंकन का जन्मदिन
12 फरवरी- राष्ट्रीय उत्पादकता दिवस
13 फरवरी- विश्व रेडियो दिवस
13 फरवरी/जन्म-दिवस,महाराजा सूरजमल
13 फरवरी-सरोजिनी नायडू की जयंती
14 फरवरी-सेंट वेलेंटाइन दिवस
14 फरवरी- पंडित दीनदयाल पुण्यतिथि
15 फरवरी- एकल जागरूकता दिवस
16 फरवरी 1836 - रामकृष्ण परमहंस - एक महान संत एवं विचारक
16 फरवरी/जन्म-दिवस,महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’
19 फरवरी/जन्म-दिवस,तपस्वी जीवन श्री गुरुजी
26 फरवरी/पुण्य-तिथि हिन्दी और हिन्दुत्व प्रेमी वीर सावरकर
27 फरवरी/बलिदान-दिवस
चंद्रशेखर आजाद, जो सदा आजाद रहे
27 फरवरी/जन्म-दिवस,संकीर्तन द्वारा धर्म बचाने वाले चैतन्य महाप्रभु
18 फरवरी - ताज महोत्सव
20 फरवरी- सामाजिक न्याय दिवस
21 फरवरी- अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस
22 फरवरी- विश्व स्काउट दिवस
24 फरवरी- उत्पाद शुल्क और सेवा शुल्क
21 फरवरी-अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस
22 फरवरी-विश्व स्काउट दिवस
24 फरवरी-केंद्रीय उत्पाद शुल्क दिवस
27 फरवरी-विश्व सतत ऊर्जा दिवस
28 फरवरी-राष्ट्रीय विज्ञान दिवस
,27 फरवरी- एन.जी.ओ दिवस
28 फरवरी- राष्ट्रीय विज्ञान दिवस
29 फरवरी 1896 - मोरारजी देसाई जन्म
मकान
बीते हफ़्ते दो मित्रों ने अपना नया मकान देखने के लिए बुलाया।एक को 11साल लगे.. मकान बनवाने में दूसरे को 9 साल।इस एक दशक के समय में उन मित्रों ने बस एक ही काम किया ..वह यह कि "मकान बनवाया" औऱ उससे पहले 20 साल तक जो काम किया वो यह कि "मकान बनवाने" लायक पैसा जुटाया यानि जीवन के बेशक़ीमती 30 साल सिर्फ़ "अपना मकान बनवा लूं'' इस फितूर में निकाल दिए मेरी मकान,इंटीरियर,एलिवेशन,लक धक साजसज्जा जैसी चीज़ों में बिल्कुल भी रूचि नही है ..बल्कि साफ़ कहूं ..तॊ अरुचि ही है वे मित्र उच्चता के घमंड से विकृत हुए एक एक कमरे, गैलरी,गार्डन,आर्किटेक्ट की बारीकियां,उनके निर्माण में लगी सामग्री,ख़र्च हुआ पैसा ..आदि का विवरण दे रहे थे..... इधर मैं भी सौजन्यतावश "हूं , हां " अच्छा ", वाह , ग़ज़ब " जैसी प्रतिक्रियाएं देकर उनके अभिमान को पुष्ट किए दे रहा था !
जबकि हक़ीक़त यह थी कि मैंने शायद ही किसी चीज़ को गौर से देखा हो !! बचपन से ही मुझे मकान,
गाड़ी,कपड़े जैसी बातों में न्यूनतम रूचि रही है । उनकी रनिंग कॉमेंट्री रुकने का नाम नहीं ले रही थी - "ये देखिए,वो देखिए, गैरिज ऐसा है,गार्डन की लाइटिंग ऐसी है.... वगैरह वगैरहजबकि मेरी दृष्टि उनके नवीन लक धक मकान से अधिक उनके रूखे और नीरस चेहरे पर थी ! जिस विषय में आपकी रूचि होती है वैसा ही आपका व्यक्तित्व बन जाता है ! वस्तुओं में अधिक रूचि रखने वाला व्यक्ति भी वस्तु की तरह ही हो जाता है पार्थिव,चेतना विहीन,निष्प्राण ,ज़्यादातर वे सभी व्यक्ति जिनके "क़ीमती मकान" होते हैं, कौडियों के आदमी होते हैं उनका पूरा व्यक्तित्व लाभ हानि,गुणा भाग,जोड़ घटाना जैसे गणित के उबाऊ प्रमेय की तरह हो जाता है पीछे उनकी सजी धजी पत्नियाँ भी थीं ...
ऐसे बर्तनों की तरह जिन्हें ऊपर से चमका दिया गया हो लेकिन जिनके भीतर फफूंद लगी हो
जो सिर्फ़ एक ही बात से मदमत्त थीं कि "मैं इतने क़ीमती घर की स्वामिनी हूं"भारतवर्ष में लोगों को एक ही शौक है "अपने सपनों का मकान बनवाना" या फिर बने हुए मकान को रेनोवेट करवाना !!
वे पूरी ज़िंदगी इसी में खपाए रहते हैं ! थोड़ा मनोवैज्ञानिक शोध करने पर मैंने पाया कि यह मूलतः उनका शौक़ नहीं है,इसके पीछे गहरे में दिखावे की मनोवृत्ति काम करती हैं ! यह एक ऐसा भाव हैं जो समाज की सामूहिक दिखावा वृति से प्रसारित होता हैं और सभी अहंकारी, प्रतिस्पर्धी रडार इसे कैच करते जाते हैं !! फिर उसी सिग्नल के अनुरूप उनका जीवन परिलक्षित होता है
वह हर वक़्त अपने आस-पास के लोगों से तुलना में व्यस्त रहता है
"तेरे पास ऐसी कार हैं ..तॊ मेरे पास वैसी कार हैं" तेरे कपड़े इतने महंगे ..तॊ मेरे कपड़े उतने महंगे !
तेरा फार्म हाऊस ऐसा हैं ..तॊ मेरा फार्म हाऊस वैसा हैं तू सिंगापुर गया ..तॊ मैं स्विट्जरलैंड जाऊंगा
तेरा मकान ऐसा हैं ..तॊ मेरा मकान वैसा हैं ! ऊपर लिखे "तू" "तेरा" उसके रिश्तेदार, पड़ोसी और सर्किल के लोग होते हैंं जिनकी प्रगति और जीवन शैली से प्रतिस्पर्धा में वह पूरा जीवन गुज़ार देता है
वह सुंदर मकान तॊ बना लेता है मगर सुंदर मकान के आस्वाद लायक़ अपनी चेतना नहीं बना पाता !!
वह बाहरी मकान तॊ बना लेता हैं मगर उसकी चेतना का घर खण्डहर ही रहता है उसकी चेतना के सभी कमरे शरीर,प्राण,मन,भाव,बुद्धी, परम चैतन्य कभी खड़े ही नहीं हो पाते अगर भोक्ता उपस्थित नहीं हैं तॊ भोग व्यर्थ हैं ! वर्ना तॊ आपके साथ आपका सूटकेस भी विदेश यात्रा कर आता है मगर सूटकेस को कोई रस नहीं हैं क्योंकि वह चेतनाशून्य है |..तॊ मेरी तॊ दृष्टि इस बात पर हैं कि चैतन्य की ईमारत कितनी भव्य और विराट हो ! क्योंकि अंततः भोग तॊ चेतना से ही होना है |
ज़्यादातर भव्य घरों में अकेलेपन से जूझते बीमार, तनावग्रस्त प्रौढ़ या बूढ़े ही पाए जाते हैं क्योंकि अक्सर ..तॊ सपनों का मकान बनाते बनाते इतनी उम्र हो ही जाती हैं !! अगर आपकी संगीत में रूचि नहीं हैं तॊ महंगा म्यूज़िक सिस्टम व्यर्थ है अगर आपको फूलों में रस नहीं हैं तॊ फुलवारी व्यर्थ है
अगर आप रोमांटिक नही हैं तॊ सुंदर शयनकक्ष का क्या मज़ा अगर आप रोगी हैं तॊ लज़ीज़ पकवान किस काम के अगर आपके भीतर ही रस नहीं हैं तॊ क्या कीजिएगा इस महंगे दिखावे का अच्छा मकान अच्छी बात है मगर चेतना की ईमारत भी बनाइए जीवन बहुत छोटा और अनिश्चित है,इसे महज़ पदार्थो के संग्रहण में ही ना गुज़ार दें ! क्योंकि एक दिन तॊ यह देह भी मिट्टी में मिल जानी है और मकान भी !!
जो अजर अमर हैं उस पर भी दृष्टि रखें ! चेतना का मकान बनाएं !! समय उतना ही है अगर आप यहां लगाएंगे तॊ वहां नहीं लगा ाएंगे महज़ दिखावे के ज़रा से रस के लिए जीवन की पूरी ऊर्जा और समय का निवेश कोई फ़ायदे का सौदा नहीं है। सुंदर
रद्दी
' नीलू, यह क्या सारे अखबार गत्ते गाड़ी में लाद रही हो। अपने तो कैंपस में बहुत रद्दी वाले आते हैं। हां वह मार्केट वाला थोड़ी महंगी ले लेता है।' नीलू की पड़ोसन बेला ने नीलू को गाड़ी में सब कुछ भरते देख कर कहा।
' यह मैं बेचने नही जा रही। मैं इसे पुल के नीचे जो बहुत से गरीब लोग बैठे हैं उनको देने जा रही हूं।' नीलू ने सारा सामान ठीक करके रखते हुए कहा।
' वह क्या करेंगे। उनके सिर पर तो छत भी नहीं है।इन्हें कहा रखेंगे'। बेला ने झट से पूछा।
' तभी तो उन्हें इसकी जरूरत है'। नीलू ने कहा और साथ ही रामू से बोली,' वह पीछे जो टूटी मेज़ पड़ी है और वो टाल से जो लकड़ियां लाया था वह भी उठा ला।'
' मैं कुछ समझी नही.... बेला ने अजीब सा मुंह बनाकर पूछा, यह टाल से लाई लकड़ियां .....सब क्या है ?'
' ठंड इतनी बढ़ गई है। हम बंद कमरों में कांप रहे हैं। वह खुले आसमान के नीचे रहने को मजबूर हैं। इन्हें जलाकर वह कुछ गर्माहट ले लेते हैं।' नीलू ने आराम से समझाया।
' पर नीलू यह सब जलाने से तो प्रदूषण फैलता है।'
' हां, प्रदूषण तो फैलता ही है।' नीलू थोड़ा हंस कर बोली।
' फिर आप पढ़ी-लिखी हो कर भी –' ' आप ठीक कह रही हो। हम पढ़े-लिखे ही प्रदूषण फैलाते हैं। वह चाहे ए सी चलाकर, ढेरों कपड़े और जूते इकट्ठे करके या दस कदम भी जाना हो तो गाड़ी या स्कूटर पर जाकर।'
' यह सब चीजें तो अब लाइफ में जरूरी हो गई है। इनके बिना तो सोचा भी नहीं जा सकता।' बेला ने शब्दों में लाचारी सी भरते हुए कहा।
' बेला जी हमारे बच्चे रात को मस्ती मारने के लिए गाड़ी में शहर मे चक्कर लगाते हैं, आइसक्रीम का सर्दी में लुत्फ उठाने के लिए गाड़ी और स्कूटर उठा कर निकल पड़ते है। गाड़ी से जितना प्रदूषण फैला के आते हैं उससे कहीं बहुत कम प्रदूषण फैला कर यह गत्ते, अखबार और लकड़ियां कई लोगों को ठंड से अकड़ने से काफी हद तक सहायक होते हैं। कई बार तो उनकी जीवन रक्षक भी बन जाती हैं।' नीलू ने बड़े आराम से समझाया।
' पर आपका यह सारा सामान उनकी कितनी रातें निकलवायेगा और कितने लोगों की।' बेला ने फिर प्रश्न दागे।
' मैं तो एक शुरुआत कर रही हूं। हो सकता है यह एक मुहिम बन जाए। आजकल अखबार के साथ-साथ बहुत से घरों में कोरियर से सामान बहुत आता है जितना सामान उससे ज्यादा पैकेजिंग का मेटेरियल होता है। यह पैकेजिंग का मेटेरियल भी जब बनता है तो बहुत प्रदूषण फैलाता है। बेला जी आप कहेंगी कि कोरियर तो अब हमारे जीवन का हिस्सा हो गए है। बिल्कुल सही, पर कम से कम इस सब कचरे को हम जरूरतमंद लोगों तक पहुंचा कर कुछ तो उनकी मदद कर ही सकते हैं।' नीलू ने कहते हुए गाड़ी का दरवाजा खोला और स्टार्ट कर अपने गंतव्य की ओर बढ़ गई। पर पीछे खड़ी बेला को बहुत कुछ सोचने पर मजबूर कर गई। - प्रो अंजना गर्ग, म द वि रोहतक
चैतन्य महाप्रभु
यह भगवान श्रीकृष्ण के अनन्य भक्त थे। इन्हें लोग श्रीराधा का अवतार मानते हैं। बंगाल के वैष्णव तो इन्हें भगवान का ही अवतार मानते हैं। श्री चैतन्य महाप्रभु विलक्षण प्रतिभा के धनी थे।महाप्रभु ने गौड़ीय वैष्णववाद (उर्फ ब्रह्म-माधव-गौड़ीय संप्रदाय) की स्थापना की। उन्होंने भक्ति योग की व्याख्या की और हरे कृष्ण महा-मंत्र के जप को लोकप्रिय बनाया । उन्होंने शिक्षाष्टकम (आठ भक्ति प्रार्थना) की रचना की। चैतन्य को कभी-कभी उनके पिघले हुए सोने जैसे रंग के कारण गौरांगा या गौरा कहा जाता है।
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एक बाप और बेटे की कहानी
एक बाप अदालत में दाखिल हुआ। ताकि अपने बेटे की शिकायत कोर्ट में कर सके। जज साहब ने पूछा, आपको अपने बेटे से क्या शिकायत है। बूढ़े बाप ने कहा, की मैं अपने बेटे से उसकी हैसियत के हिसाब से हर महीने का खर्च मांगना चाहता हू।
जज साहब ने कहा, वो तो आपका हक है। इसमें सुनवाई की क्या जरूरत है। आपके बेटे को हर महीने, खर्च देना चाहिए।
बाप ने कहा की मेरे पास पैसों की कोई कमी नहीं है। लेकिन फिर भी मुझे हर महीना, अपने बेटे से खर्चा लेना चाहता हू। वो चाहे कम का ही क्यों न हो।
जज साहब आश्चर्यचकित होकर, बाप से कहने लगा, आप इतने मालदार हो, तो आपको बेटे से क्यों पैसे की क्या आवश्यकता है।
बाप ने अपने बेटे का नाम और पता देते हुए, जज साहब से कहा, की आप मेरे बेटे को अदालत में बुलाएंगे। तो आपको बहुत कुछ पता चल जाएगा। जब बेटा अदालत में आया, तो जज साहब ने बेटे से कहा, की आपके पिता जी, आपसे हर महीना खर्चा लेना चाहते हैं। चाहे वह कम क्यों न हो।
बेटा भी जज साहब की बात सुनकर ,आश्चर्यचकित हो गया कहने लगा। मेरे पिता जी बहुत अमीर हैं, उनके पास पैसे की भला क्या जरूरत है।
जज साहब ने कहा, यह आपके पिता की मांग है। और वह अपने में स्वतंत्र है। पिता ने जज साहब से कहा, की आप मेरे बेटे से कहिए। की वह मुझे हर महीना 100 रूपए देगा। और वो भी अपने हाथों से। और उस पैसे में बिल्कुल भी देरी न करेगा।
फिर जज साहब ने बूढ़े आदमी के बेटे से कहा, की तुम हर महीने 100 रूपए, बिना देरी के उनके हाथों में देंगे। ये आपको अदालत हुक्म देती है।
मुकदमा खत्म होने के बाद, जज साहब बूढ़े आदमी को अपने पास बुलाते हैं। उन्होंने बूढ़े आदमी से पूछा की, अगर आप बुरा न मानें, तो मैं आप से एक बात पूछूंगा। आपने बेटे के खिलाफ यह केस क्यों किया। आप तो बहुत अमीर आदमी हो। और ये इतनी छोटी सी कीमत।
बूढ़े आदमी ने रोते हुए कहा, जज साहब मैं अपने बेटे का चेहरा देखने के लिए तरस गया था। वह अपने कामों में इतना व्यस्त रहता है। एक जमाना गुजर गया, उससे मिला नहीं, और ना ही बात हुई, ना आमने सामने, और न फोन पर। मुझे अपने बेटे से बहुत मोहब्बत है। इसलिए मैंने उसपर ये केस किया था। ताकि हर महीने मैं उससे मिल सकूं। और मैं उसको देख कर खुश हो लिया करूंगा। ये बात सुनकर जज की भी आंखों में आंसू आ गए।
जज साहब ने बूढ़े आदमी से कहा की अगर आप पहले बताते, तो मैं उसको नजरअंदाज, और ख्याल न रखने के जुल्म में सजा करा देता।
बूढ़े बाप ने जज साहब की तरफ मुस्कराते हुए देखा, और कहा अगर आप सजा कराते, तो मेरे लिए ये दुख की बात होती। क्योंकि सच में उससे मैं बहुत मोहब्बत करता हूं। और मैं हरगिज नहीं चाऊंगा, मेरी वजह से मेरे बेटे को कोई सजा मिले। या उसे कोई तकलीफ हो।
*इस कहानी से ये प्रेरणा मिलती है, मां बाप को आपके पैसे की जरूरत नहीं है, उनको आपके समय की जरूरत है। वक्त के रहते उनसे रोज बातें कर लिया करो। आपका कुछ नहीं जाएगा, परंतु आपको अपने बाप का मां का आशीर्वाद जरूर प्राप्त होगा। वरना एक दिन याद करके पछताओगे, और उनको याद करके अपने आपको कभी माफ नहीं कर पाओगे। आज से ये प्रण लें, की आप हर रोज अपने मां बाप से बात करेंगे और उनका आशीर्वाद लेंगे। हेमन्त बंसल
पंडित दीनदयाल उपाध्याय
पंडित दीनदयाल उपाध्याय (25 सितंबर 1916 - 11 फरवरी 1968) एक भारतीय राजनेता, एकात्म मानवतावादी विचारधारा के समर्थक थे |
बंदिश
पचास , साठ या फिर उस से पार की भी औरतें
क्यों बंदिश लगा लेती हैं खुद पर
कपडे ख़रीदने जाती हैं
अब लाल गुलाबी तो अच्छा नहीं लगेगा इस उम्र में
थोड़े फीके रंग लेने होंगे
सलेटी , भूरा , क्रीम , सफ़ेद
लिपस्टिक तो लगा ही नहीं सकतीं वह भी लाल
हरगिज़ नहीं
लोग क्या कहेंगे
बूढ़ी घोड़ी लाल लगाम
किस ने बनाया होगा यह इडियम
किसी मर्द ने
ज़रूरी नहीं
औरत ने भी बनाया हो सकता है
सब से पहले तो औरत ही करती है कमेंट
अरे , यह क्या पहना है
सफ़ेद बालों का तो लिहाज़ किया होता
किसी शादी , ब्याह , पार्टी पे
बैठे बैठे पाँव थिरकने भी लग जाएंगे
पर उठ के नाच नहीं सकती
डांस फ्लोर पे तो यंगस्टर्ज़ का ही राज हो सकता है न
लोग क्या कहेंगे
इस उम्र में तो मंदिर जाना चाहिए
दान पुन्न करना चाहिए
पायल क्यों पहनी है पाँव में
बेटा पूछता है
अच्छा नहीं लगता
बहु कहती है
अब तो हमारे सजने संवरने के दिन हैं
और प्यार
प्यार तो हरगिज़ हरगिज़ नहीं हो सकता
इस उम्र में भी कोई प्यार भरी बाते करता है भला
अरे भई , कोई पूछे भला
क्यों नहीं हो सकता
प्यार करने की भी कोई उम्र होती है क्या
प्यार का तो मतलब ही समझते गुज़र जाती है तमाम उम्र
और क्यों नहीं पहन सकते लाल गुलाबी
लगा सकते लाल लिपस्टिक
क्यों नहीं लगा सकते ठुमका
चुनाव अपना होना चाहिए
दिल करे तो बादामी पहनो , दिल करे तो नारंगी
सेहत इज़ाज़त दे तो नाचो
नहीं तो थिरकने दो पैरों को कुर्सी पे बैठे हुए
यह बूढ़ी घोड़ी लाल लगाम कह कर नीचा दिखाना छोड़ो
मरने से पहले क्यों मरना
ज़िंदगी तो ज़िंदा दिलों का नाम है
मुर्दा दिल क्या ख़ाक जिया करते हैं....
पुष्पा गुप्ता
ईश्वर एक अनुभूति
एक मेजर के नेतृत्व में 15 जवानों की एक टुकड़ी हिमालय के अपने रास्ते पर थी उन्हें ऊपर कहीं अगले तीन महीने के लिए दूसरी टुकड़ी की जगह तैनात होना था दुर्गम स्थान, ठण्ड और बर्फ़बारी ने चढ़ाई की कठिनाई और बढ़ा दी थी बेतहाशा ठण्ड में मेजर ने सोचा की अगर उन्हें यहाँ एक कप चाय मिल जाती तो आगे बढ़ने की ताकत आ जाती लेकिन रात का समय था आपस कोई बस्ती भी नहीं थी लगभग एक घंटे की चढ़ाई के पश्चात् उन्हें एक जर्जर चाय की दुकान दिखाई दी लेकिन अफ़सोस उस पर ताला लगा था. भूख और थकान की तीव्रता के चलते जवानों के आग्रह पर मेजर साहब दुकान का ताला तुड़वाने को राज़ी हो गया खैर ताला तोडा गया तो अंदर उन्हें चाय बनाने का सभी सामान मिल गया जवानों ने चाय बनाई साथ वहां रखे बिस्किट आदि खाकर खुद को राहत दी थकान से उबरने के पश्चात् सभी आगे बढ़ने की तैयारी करने लगे लेकिन मेजर साहब को यूँ चोरो की तरह दुकान का ताला तोड़ने के कारण आत्मग्लानि हो रही थी उन्होंने अपने पर्स में से एक हज़ार का नोट निकाला और चीनी के डब्बे के नीचे दबाकर रख दिया तथा दुकान का शटर ठीक से बंद करवाकर आगे बढ़ गए. इससे मेजर की आत्मग्लानि कुछ हद तक कम हो गई और टुकड़ी अपने गंतव्य की और बढ़ चली वहां पहले से तैनात टुकड़ी उनका इंतज़ार कर रही थी इस टुकड़ी ने उनसे अगले तीन महीने के लिए चार्ज लिया व् अपनी ड्यूटी पर तैनात हो गए हो गए
तीन महीने की समाप्ति पर इस टुकड़ी के सभी 15 जवान सकुशल अपने मेजर के नेतृत्व में उसी रास्ते से वापिस आ रहे थे रास्ते में उसी चाय की दुकान को खुला देखकर वहां विश्राम करने के लिए रुक गए
उस दुकान का मालिक एक बूढ़ा चाय वाला था जो एक साथ इतने ग्राहक देखकर खुश हो गया और उनके लिए चाय बनाने लगा
चाय की चुस्कियों और बिस्कुटों के बीच वो बूढ़े चाय वाले से उसके जीवन के अनुभव पूछने लगे
खास्तौर पर इतने बीहड़ में दूकान चलाने के बारे में
बूढ़ा उन्हें कईं कहानियां सुनाता रहा और साथ ही भगवान का शुक्र अदा करता रहा
तभी एक जवान बोला "बाबा आप भगवान को इतना मानते हो अगर भगवान सच में होता तो फिर उसने तुम्हे इतने बुरे हाल में क्यों रखा हुआ है"
बाबा बोला *"नहीं साहब ऐसा नहीं कहते भगवान के बारे में,भगवान् तो है और सच में है मैंने देखा है |
आखरी वाक्य सुनकर सभी जवान कोतुहल से बूढ़े की ओर देखने लगे
बूढ़ा बोला "साहब मै बहुत मुसीबत में था एक दिन मेरे इकलौते बेटे को आतंकवादीयों ने पकड़ लिया उन्होंने उसे बहुत मारा पिटा लेकिन उसके पास कोई जानकारी नहीं थी इसलिए उन्होंने उसे मार पीट कर छोड़ दिया"
"मैं दुकान बंद करके उसे हॉस्पिटल ले गया मै बहुत तंगी में था साहब और आतंकवादियों के डर से किसी ने उधार भी नहीं दिया"
"मेरे पास दवाइयों के पैसे भी नहीं थे और मुझे कोई उम्मीद नज़र नहीं आती थी उस रात साहब मै बहुत रोया और मैंने भगवान से प्रार्थना की और मदद मांगी *"और साहब ... उस रात भगवान मेरी दुकान में खुद आए"
"मै सुबह अपनी दुकान पर पहुंचा ताला टूटा देखकर मुझे लगा की मेरे पास जो कुछ भी थोड़ा बहुत था वो भी सब लुट गया"
"मै दुकान में घुसा तो देखा 1000 रूपए का एक नोट, चीनी के डब्बे के नीचे भगवान ने मेरे लिए रखा हुआ है""साहब ..... उस दिन एक हज़ार के नोट की कीमत मेरे लिए क्या थी शायद मै बयान न कर पाऊं ... लेकिन भगवान् है साहब ... भगवान् तो है"* बूढ़ा फिर अपने आप में बड़बड़ाया
भगवान् के होने का आत्मविश्वास उसकी आँखों में साफ़ चमक रहा था
यह सुनकर वहां सन्नाटा छा गया पंद्रह जोड़ी आंखे मेजर की तरफ देख रही थी जिसकी आंख में उन्हें अपने लिए स्पष्ट आदेश था *"चुप रहो "मेजर साहब उठे, चाय का बिल अदा किया और बूढ़े चाय वाले को गले लगाते हुए बोले *"हाँ बाबा मै जनता हूँ भगवान् है....* और तुम्हारी चाय भी शानदार थी" और उस दिन उन पंद्रह जोड़ी आँखों ने पहली बार मेजर की आँखों में चमकते पानी के दुर्लभ दृश्य का साक्ष्य किया और सच्चाई यही है कि भगवान तुम्हे कब किसी का भगवान बनाकर कहीं भेज दे ये खुद तुम भी नहीं जानते |
रन वन वैर विपत्ती में,कबहुँ न दीजै रोय ।जो राख्यो जननी जठर,सो हरि गयो न सोय ।।
अंटी में नहीं है दमड़ी,मांगत में सकुचाय,भगत के पीछे हरि फिरे,भूखो ना सो जाए !
भारत के बौद्धिक इतिहास का एक महत्वपूर्ण भाग है आयुर्वेद।
हजारों वर्ष पहले भारत ने विश्व की स्वास्थ्य सुरक्षा और चिकित्सा का सद्कार्य किया था।
आयुर्वेद का इतिहास बतलाता है कि वाह्लीक, बलख, तुर्किस्तान, ईरान को "अर्व" प्रदेश कहा जाता था। इन क्षेत्रों में भरद्वाज के शिष्य कांकायन ने आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति प्रचलित की थी।
चरक संहिता में कांकायन को "वाह्लीक भिषक्" कहा गया है, अर्थात वाह्लीक क्षेत्र के चिकित्सक।
चीन और यूरोप में भी आयुर्वेद को प्रचलित करनेवाले ऋषियों के नाम इतिहास में दर्ज हैं। प्रमोद दुबे
1930 के आस-पास एक दिन अचानक से आयुर्वेदाचार्य ( जो की कोई व्यक्ति गुरू शिष्य परंपरा में 20-25 वर्ष की कड़ी मेहनत के बाद बनता था ) को ग़ैर क़ानूनी घोषित कर दिया गया क्योंकि उनके
पास अंग्रेजों के विश्वविद्यालय से मान्यता प्राप्त काग़ज़ी डिग्री नहीं थी ।
महामना मदन मोहन मालवीय जी ने स्वंयम अपने हाथों से लिखकर कुछ वैद्यों को प्रमाणित डिग्री दी जो उनके विशेषाधिकार में थी ।
पर आज तक इस विषय में की कैसे आयुर्वेद को भारत से तहस नहस किया गया विदेशी फॉर्मा के लाभ के लिए इसपर आज तक कोई चर्चा ही नहीं हुयी ।भारत में जनसाधारण आज भी आयुर्वेद को घास फूस का विज्ञान और बहुत धीमी गति से काम करने वाले चिकित्सा शास्त्र के रूप में जानता है।
पर क्या वास्तव में ऐसा है???
आयुर्वेद में मुख्यतः दो प्रकार की औषधि का प्रयोग किया जाता है – पहले जो पेड़ पौधों से बनाई जाती
हैं, दूसरी जो विभिन्न खनिजों के द्वारा बनाई जाती हैं। आयुर्वेदिक दवाइयों मे पारे का बहुत योगदान है।
पारे और गंधक को मिलाकर कजली बनाई जाती है जिससे आगे विभिन्न प्रक्रियाओं द्वारा बहुत ही उत्तम क्वालिटी की दवाइयों का निर्माण होता है। यह दवाइयाँ शरीर पर बहुत तेजी से प्रभाव कर डालती हैं परंतु इनमें से ज्यादातर दवाइयों को सरकार ने मैटेलिक पॉइजन मानते हुए प्रतिबंधित कर रखा है।
या इनके लिए नॉर्म्स इतने कठिन बना दिए हैं कि अधिकतर कंपनियाँ इनका निर्माण नहीं करती तो स्वभाविक सी बात है चिकित्सक इन का प्रयोग कैसे कर पाएंगे।
काफी लंबे समय से ऐसा होते रहने से अधिकतर आयुर्वेदिक चिकित्सक इनका प्रयोग करना भी नहीं जानते।
दूसरी प्रमुख समस्या सोने चाँदी हीरक जैसे महँगे पदार्थों की से बनने वाली दवाइयों की है जो बहुत कामयाब होते हुए भी जनता की पहुँच से दूर है।
बहुत सारी दवाइयाँ पशुओं से भी प्राप्त की जाती थी जैसे बारहसिंघा के सींग से श्रृंग भस्म का निर्माण होता है परंतु वन्य जीव सुरक्षा अधिनियम के तहत ऐसी दवाइयों का निर्माण भी मुश्किल हो गया है जबकि केवल मरे हुए जानवरों के सींग इकट्ठे किए जाते थे।
इसी प्रकार कई अन्य दवाइयाँ भी समाप्त हो गई हैं।
पौधों से बनने वाली दवाइयों में जो दर्द निवारक गोली की तरह या इंजेक्शन की तरह तेज गति से काम करती हैं जिसमें अफीम, भांग, धतूरा शामिल है।
अफीम से मार्फिन और कोडीन जैसे तत्व प्राप्त होते हैं जिनका एलोपैथी में भरपूर प्रयोग होता है परंतु आयुर्वेदिक दवाई बनाने के लिए लाइसेंस प्रक्रिया बहुत जटिल है जिससे अधिकतर कंपनियाँ इस प्रकार की दवाइयों का निर्माण नहीं करती हैं।
धतूरे से अट्रोपिन प्राप्त होता है जिस का भरपूर प्रयोग एलोपैथिक दवाइयों में होता है। परंतु नारकोटिक्स एक्ट के तहत इनका प्रयोग आयुर्वेदिक दवाइयों में करना बहुत मुश्किल है।
अब आप ही विचार करके बताइए कि यदि किसी धावक की एक टाँग बाँध दी जाए तो क्या वह रेस कर पाएगा?
शासन चाहे अंग्रेजो का रहा हो या काले अंग्रेजो का, आयुर्वेद के पैरों में कुल्हाड़ी मारने में कोई पीछे नहीं है। -डॉ विवेक सिंह
ज्योतिष और वाहन
वाहन रखना एक आवश्यकता है। कुछ लोग तो एक से अधिक वाहन रखते हेै । जब से बैंकों ने लोन देना शुरू किया है वाहन खरीदना बहुत हो गया है। वाहनों की संख्या के साथ साथ , दुर्घटनाएं भी बढ़ी हैं। जब भी कोई नया या पुराना वाहन खरीदता है, ज्योतिष में विश्वास हो न हो , फिर भी एक बार ज्योतिषी को पूछ अवश्य लेते है। किसी भी व्यक्ति के लिए जीवन में वाहन खरीदना एक महत्वपूर्ण निर्णय होता है। वाहन खरीदने से पहले व्यक्ति के मन में अनेक प्रकार के प्रश्न उत्पन्न होते है जैसे —
क्या वाहन खरीदना मेरे लिए शुभ होगा,वाहन खरीदने का शुभ समय है या नहीं,किस रंग का वाहन हमारे लिए शुभ होगा,वाहन का नंबर क्या होना चाहिए। इत्यादि इत्यादि |उपर्युक्त प्रश्नों का उत्तर ज्योतिष के माध्यम से दिया जा सकता है । इसके लिए जन्मकुंडली में चतुर्थ, नवम तथा एकादश भाव से विचार किया जाता है।जन्म कुंडली में चतुर्थ भाव से वाहन का विचार किया जाता है। नवम भाव भाग्य स्थान और यात्रा का है। एकादश भाव आय, लाभ तथा ईच्छापूर्ति का है यदि चौथे भाव का सम्बन्ध लाभ तथा यात्रा भाव से बनता है तो यह समझा जाता है कि व्यक्ति को वाहन से यात्रा करने पर लाभ की प्राप्ति होगी। यदि सम्बन्धित भाव और भावेश पर किसी अशुभ ग्रह की दृष्टि नहीं है तो जातक को वाहन से लाभ मिलेगा । शुक्र ग्रह भवन , वाहन, सुख ऐश्वर्य का परिचायक है और राहु, केतु, मंगल आदि दुर्घटना के ग्रह हैं। यदि चतुर्थ ीााव में शुक्र की हालत , उस पर दृष्टि, दशा आदि अनुकूल है तो उत्तम श्रेणी का वाहन या एक से अधिक गाड़ियां जीवन में आती हेैंे। वाहन किस रंग का तथा किस नम्बर का खरीदना शुभ रहेगा। वैदिक ज्योतिष के आधार पर यह निर्णय किया जा सकता है कि किस व्यक्ति को किस रंग का वाहन खरीदना चाहिए जो शुभ हो। व्यक्ति विशेष के लिए रंग शुभ या अशुभ हो सकताहै इस बात से सभी भलीभांति वाकिफ हैं। कई बार ऐसा देखने के लिए मिलता है कि व्यक्ति नई गाड़ी खरीदता है और हमेशा खराब ही रहता है।बार बार उसे ठीक करवाने तथा उसके ऊपर पैसे
खर्च करते रहने के बाद भी वाहन साथ नहीं देता। कभी एक्सीडेंट हो जाना तो बार-बार पंचर हो जाना आदि समस्या लगी ही रहती है।यदि आपको यह लगता है की यह गाडी मेरे लिए शुभ नहीं है जब से यह वाहन घर में आया है कोई न कोई परेशानी लगी ही रह रही है तो घबराने की जरूररत नहीं है किसी ज्योतिषी के परामर्श से अपनी राशि के अनुसार शुभ मुहूर्त, रंग तथा नंबर का चुनाव करके गाडी /वाहन/व्हीकल खरीद ले इसका परिणाम आपको अवश्य हीशुभ मिलेगा ।यदि आप कोई भी वाहन खरीदने का मन बना रहे हैं तो शुभ-मुहूर्त, ग्रह और नक्षत्रों की स्थिति के अलावा राशि के अनुसार भी वाहनों के रंगों का विशेष ज्योतिषीय महत्व होता है।आइए जानें अपनी राशि के अनुसार किस रंग का वाहन खरीदें :-चंद्र राशि के आधार पर वाहन के रंग का निर्धारण मेष राशि के जातकों को पीले लाल या उससे मिलते-जुलते रंग के वाहन शुभ होते हैं। वहीं काले और भूरे रंग का वाहन नहीं लेना चाहिए।वृषभ राशि के जातकों के लिए सफेद और क्रीम कलर के वाहन शुभ माने जाते हैं। वहीं पीले और गुलाबी रंग के वाहनों को खरीदने से बचना चाहिए।मिथुन राशि के जातकों के लिए हरा या क्रीम कलर का वाहन लाभदायक माना गया है। कर्क राशि के जातकों के लिए काला, पीला और लाल रंग के वाहन शुभ माने गए हैं।सिंह राशि के जातकों के लिए ग्रे और स्लेटी रंग के वाहन शुभ साबित होते हैं। कन्या राशि के जातकों के लिए सफेद और नीले रंग के वाहन शुभ माने गए हैं। परंतु लाल रंग के वाहन कन्या राशि वाले जातकों को नहीं लेना चाहिए। तुला राशि के जातकों के लिए काले अथवा भूरे रंग का वाहन शुभ माना गया है। वृश्चिक राशि के जातकों को सफेद रंग के वाहन खरीदने चाहिए। वहीं काले रंग के वाहन को खरीदने से बचें। धनु राशि के जातकों को सिल्वर और लाल रंग के वाहन विशेष फलदायी माने गए हैं। वहीं काले और नीले रंग के वाहन नहीं लेना चाहिए।मकर राशि के जातकों को सफेद, ग्रे और स्लेटी रंग के वाहन लेना चाहिए। यह रंग इन राशि वालों के लिए अच्छे माने जाते हैं। कुंभ राशि के जातकों को सफेद, ग्रे या नीले रंग के वाहन खरीदने चाहिए। मीन राशि के जातकों को पीला, नारंगी या गोल्डन रंग का वाहन लाभकारी होता है।
हर शुभ कार्य को करने से पहले ज्योतिष में शुभ मुहूर्त देखने की परंपरा होती है। शादी, गृहप्रवेश, पूजा या खास आयोजन के अलावा लोग वाहन लेते समय भी शुभ मुहुर्त का ध्यान रखा जाता है। वाहन खरीदते समय कौन सा शुभ मुहूर्त श्रेष्ठ होता है आइए जानते हैं।- कृष्ण पक्ष की पड़वा और शुक्ल पक्ष की चौथ, नवमी ,द्वादशी और चतुर्दशी की तिथि वाहन खरीदने के लिए शुभ मानी जाती है।-अश्विवनी, मृगशिरा, पुनर्वसु, पुष्य, हस्त, चित्रा, स्वाति, श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषा और रेवती नक्षत्र में वाहन खरीदना उत्तम होता है।-सोमवार, बुधवार,गुरूवार और शुक्रवार का दिन वाहन खरीदने के लिए शुभ होता है।- वृष, मिथुन, कर्क, तुला,धनु, और मीन लग्न ही प्रशस्त हैं और शुभ होरा का भी ध्यान देना चाहिए।- कई अबूझ मुहूर्त हैं जिन पर आप वाहन ले सकते हैं। अक्षय तृतीया, नव संवत, धन तेरस,
दशहरा, दीवाली,भाई दूज,नवरात्रि। कई ऐसे दिन भी हैं जिन पर वाहन नहीं लेने चाहिए जैसे श्राद्ध पक्ष, ग्रहण काल, अमावस आदि। हर दिन का राहुकाल भी देखना चाहिए। कुछ लोग मंगलवार और शनिवार लोहे की चीज खासकर वाहन घर नहीं लाते। ज्योतिष के अनुसार जिनकी कुंडली में शनि की स्थिति बढ़िया है, या लोहे का ही व्यापार करते हें , उन्हें गाड़ी शनिवार को ही लेनी चाहिए।
कई बार ऐसा होता है की गाड़ी चलाते समय नियमों का पूरी तरह पालन करने के बाद भी कोई ना कोई दुर्घटना हो जाती है। वाहन लेते समय उन अंकों का चयन करना चाहिए, जिनके मूलांक की उसके मूलांक से मित्रता हो। किस मूलांक और भाग्यांक के जातक के लिए किस मूलांक और भाग्यांक तथा किस रंग का वाहन उपयुक्त होगा, मूलांक होता है आपके जनम की तारीख, महीने और साल का
जोड़। किसी व्यक्ति का मूलांक और भाग्यांक अलग-अलग हों तो ऐसी स्थिति में जीवन की घटनाओं का विश्लेषण करते हुए यह देखना चाहिए कि कौन सा मूलांक अधिक शुभ है जिन लोगों का जन्म रात्रि में हुआ हो, उन्हें इस संबंध में दुविधा रहती है कि वे अपना मूलांक रात्रि से पूर्व वाली तारीख से मानें अथवा पश्चात् वाली तारीख को। इस संबंध में सुस्थापित मत यही है कि रात्रि 12 बजे तक जन्मे लोगों का मूलांक रात्रि से पूर्व की तारीख के अनुसार और रात्रि 12 बजे के बाद जन्मे लोगों का मूलांक रात्रि के बाद वाली तारीख के अनुसार होगा। आप और गाड़ी का नंबर यदि आपके मूलांक या भाग्यांक का तालमेल, गाड़ी के रजिस्ट्रेशन नंबर से है तो आपकी गाड़ी बढ़िया चलेगी।
महाराजा सूरजमल
महाराजा सूरजमल का जन्म औरंगजेब की मौत वाले दिन 13 फरवरी 1707 को हुआ. उनके पिता राजा बदनसिंह ने उनका पालन पोषण किया. राजा सूरजमल को ही भरतपुर रियासत की नींव रखने का श्रेय जाता है. जो आज राजस्थान के भरतपुर शहर के नाम से जाना जाता है | महाराजा सूरजमल ने अपने जीवन काल में 80 युद्ध लड़े और सभी युद्ध उन्होंने जीते थे । अपने पूरे जीवन काल में महाराजा सूरजमल एकमात्र ऐसे राजा और योद्धा रहे जो कभी भी युद्ध नहीं हारे । कहने को तो भरतपुर रियासत के ये राजा महाराजा थे, मगर किसान का जीवन व्यतीत करते थे ।
कोनोसुके मत्सुशिता
एक बार जापान के एक छोटे से गाँव में किसान के घर एक लड़के का जन्म हुआ। उनका परिवार गरीब था, वे सभी बहुत कम पैसों में एक छोटे से घर में रहते थे। जब वे केवल 9 वर्ष के थे, तब उन्होंने स्कूल छोड़ दिया और एक छोटी सी दुकान में काम करना शुरू कर दिया। अपने परिवार का भरण-पोषण करने के लिए वे प्रतिदिन सूर्योदय से पहले उठ जाते, दुकान की सफाई करते थे, काम करते, और फिर अपने मालिक के बच्चों की देखभाल करते थे।
कुछ साल बाद नियति ने उन्हें नई राह दिखाई, उन्हें एक बिजली कंपनी में नौकरी मिल गई।
वहाँ उन्हें लाइट बल्ब और सॉकेट में दिलचस्पी हो गई। हर रात, उन्होंने उनके साथ सीखना और प्रयोग करना शुरू कर दिया।
एक दिन उन्होंने लाइट सॉकेट का एक उन्नत संस्करण बनाया। वह बहुत उत्साहित हो गये और अपने मालिक को अपना संस्करण दिखाया। लेकिन उनके मालिक प्रभावित नहीं हुए और कहा कि ऐसा उत्पाद कभी काम नहीं करेगा। भले ही उन्हें खारिज कर दिया गया था, पर उन्हें अपनी सोच पर पूरा विश्वास था। वे अपने दम पर कुछ करना चाहते थे, अपनी खुद की कंपनी शुरू करना चाहते थे। उन्होंने इस बारे में अपने दोस्तों से पूछा। उनके दोस्तों ने उनसे कहा कि, "वह ऐसा नहीं कर सकते क्योंकि उसके पास कोई अनुभव नहीं है, बहुत कम पैसा है और वे बहुत कम शिक्षित हैं।" फिर भी उन्हें खुद पर विश्वास था!
22 साल की उम्र में उन्होंने एक बड़ा फैसला लिया। उन्होंने अपनी नियमित नौकरी छोड़ दी और अपनी छोटी सी निर्माण कंपनी शुरू की। उन्होंने और उनकी पत्नी ने अपने छोटे से घर में बिजली के सॉकेट बनाना शुरू कर दिया। वे दोनों घर-घर जाकर उसे बेचते थे क्योंकि किसी भी दुकानदार ने उनके उत्पाद में दिलचस्पी नहीं दिखाई।
महीनों बीत गए और फिर भी वे अपना उत्पाद नहीं बेच पाए। कई दिनों तक वे सोचते रहे कि "मैं हार मान कर अपने काम पर वापस चला जाता हूँ।" लेकिन सुबह जैसे ही सूरज निकलता वे फिर अपने उत्पाद को बेचने की तलाश में सड़कों पर निकल जाते और इस प्रकार एक-एक दिन गुजरता गया।
फिर समय पलटा। वह लगभग दिवालिया हो चुके थे और जब वह अपने सपने को छोड़ने के सबसे करीब थे, उसके जीवन में एक चमत्कार हुआ। कहीं से उन्हें 1000 सॉकेट का अपना पहला बड़ा ऑर्डर मिला।
आज 100 वर्षों के बाद, उनकी कंपनी में 250,000 से अधिक कर्मचारी हैं जिनकी वार्षिक बिक्री 65 अरब है।
यह सब एक ऐसे आदमी ने किया जिसके पास न पैसे थे और न ही कोई शिक्षा। उनके पास केवल अपने आप में एक विश्वास था।
उनका नाम "कोनोसुके मत्सुशिता" है और उनकी कंपनी का नाम है- *पैनासोनिक*।
*"जीवन में जो भी आता है हम उसका सामना करते हैं तथा आगे बढ़ते हैं, और इस प्रकार हम अपनी नियति का निर्माण करते हैं। अन्य अनेक लोगों की तरह हम जीवन से पलायन नहीं करते बल्कि साहस और विश्वास के साथ हम उसका सामना करते हैं।"*-मनीष बागरा
सरोजिनी नायडू
सरोजिनी नायडू, नी सरोजिनी चट्टोपाध्याय, (जन्म 13 फरवरी, 1879, हैदराबाद, भारत- मृत्यु 2 मार्च, 1949, लखनऊ), नारीवादी, कवि, और पहली भारतीय महिला राज्यपाल नियुक्त किया ।
चौघड़िया मुहूर्त
चौघड़िया मुहूर्त देखकर कार्य या यात्रा करना उत्तम होता है। एक तिथि के लिये दिवस और रात्रि के आठ-आठ भाग का एक चौघड़िया निश्चित है। इस प्रकार से 12 घंटे का दिन और 12 घंटे की रात मानें तो प्रत्येक में 90 मिनट यानि 1.30 घण्टे का एक चौघड़िया होता है जो सूर्योदय से प्रारंभ होता है|
राहू काल
राहुकाल -राहुकाल दक्षिण भारत की देन है,दक्षिण भारत में राहु काल में कृत्य करना अच्छा नहीं माना जाता, राहु काल में शुभ कृतियों में वर्जित करने की परंपरा अब हमारे उत्तरी भारत में भी अपनाने लगे हैं राहुकाल प्रतिदिन सूर्यादि वारों में भिन्न-भिन्न समय पर केवल डेढ़ डेढ़ घंटे के लिए घटित होता है |
दिशाशूल
पूर्व दिशा - सोमवार, शनिवार। पश्चिम दिशा - रविवार, शुक्रवार। दक्षिण दिशा - गुरुवार।
उत्तर दिशा - मंगलवार, बुधवार।
सोमवार को दर्पण देखकर और दूध पीकर यात्रा करें, मंगलवार को गुड़ खाकर यात्रा करें,बुधवार को धनिया या तिल खाकर यात्रा करें,गुरूवार को दही खाकर यात्रा करें,शुक्रवार को जौ खाकर अथवा दूध पीकर सफर पर निकलें,शनिवार को उड़द या अदरक खाकर यात्रा पर जाएं रविवार को घी अथवा दलिया खाकर यात्रा करनी चाहिए |
पंचक विचार फरवरी - 2023
पंचक विचार -(धनिष्ठा नक्षत्र के तृतीय चरण से रेवती नक्षत्र तक) पंचको में दक्षिण दिशा की ओर यात्रा करना मकान दुकान आदि की छत डालना चारपाई पलंग आदि बुनना,दाह संस्कार,बांस की चटाई दीवार प्रारंभ करना आदि स्तंभ रोपण तांबा पीतल तृण काष्ट आदि का संचय करना आदि कार्यों का निषेध माना जाता है समुचित उपाय एवं पंचक शांति करवा कर ही उक्त कार्यों का संपादन करना कल्याणकारी होगा ध्यान रहेगा पंचर नक्षत्रों का विचार मात्र उपरोक्त विशेष कृतियों के लिए ही किया जाता है विवाह मंडल आरंभ गृह प्रवेश प्रवेश उपनयन आदि मुद्दों से तो पंचक नक्षत्रका प्रयोग शुभ माना जाता है | पंचक विचार- दिनांक 20 को 01 - 14 से दिनांक 24 को 03 - 43 बजे तक पंचक हैं |
अधिक जानकारी के लिए संपर्क करे शर्मा जी - 9312002527,9560518227
ग्रह स्थिति फरवरी - 2023
ग्रह स्थिति - दिनांक 07 बुद्ध मकर में ,दिनांक 13 सूर्य कुम्भ में ,दिनांक 15 शुक्र मीन में ,दिनांक 25 बुद्ध पुर्वास्त,दिनांक - 27 बुद्ध कुम्भ में |
भद्रा विचार फरवरी - 2023
भद्रा काल का शुभ अशुभ विचार - भद्रा काल में विवाह मुंडन, गृह प्रवेश, रक्षाबंधन आदि मांगलिक कृत्य का निषेध माना जाता है परंतु भद्रा काल में शत्रु का उच्चाटन करना,स्त्री प्रसंग में,यज्ञ करना,स्नान करना,अस्त्र शस्त्र का प्रयोग,ऑपरेशन कराना, मुकदमा करना,अग्नि लगाना,किसी वस्तु को काटना,भैस,घोड़ा व ऊंट संबंधी कार्य प्रशस्त माने जाते हैं सामान्य परिस्थिति में विवाह आदि शुभ मुहूर्त में भद्रा का त्याग करना चाहिए परंतु आवश्यक परिस्थितिवश अति आवश्यक कार्य भूलोक की भद्रा ,भद्रा मुख छोड़कर कर भद्रा पुच्छ में शुभ कार्य कर सकते है |
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मूल नक्षत्र विचार फरवरी - 2023
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सर्वार्थ सिद्धि योग फरवरी -2023
दैनिक जीवन में आने वाले महत्वपूर्ण कार्यों के लिए शीघ्र ही किसी शुभ मुहूर्त का अभाव हो,किंतु शुभ मुहर्त के लिए अधिक दिनों तक रुका ना जा सकता हो तो इन सुयोग्य वाले मुहर्तु को सफलता से ग्रहण किया जा सकता है | इन से प्राप्त होने वाले अभीष्ट फल के विषय में संशय नहीं करना चाहिए यह योग हैं सर्वार्थ सिद्धि,अमृत सिद्धि योग एवं रवियोग | योग्यता नाम तथा गुण अनुसार सर्वांगीण सिद्ध कारक है| अधिक जानकारी के लिए संपर्क करे शर्मा जी - 9312002527,9560518227
सुर्य उदय- सुर्य अस्त फरवरी -2023
जया एकादशी
एकादशी व्रत भगवान श्री कृष्ण को सबसे प्रिय है | एकादशी व्रत के प्रभाव से भगवान श्री कृष्ण की अनुपम कृपा हमारे लिए सुलभ हो जाती हैं । माह में दो और वर्ष में 24 एकादशी होती है | हालांकि प्रत्येक तीसरे वर्ष अधिकमास होने से 2 एकादशियां इसमें जुड़कर ये कुल 26 होती हैं।
जया एकादशी यह व्रत माघ शुक्ल पक्ष की एकादशी को किया जाता है | जया एकादशी को भगवान केशव ( भगवान कृषण ) को पुष्प,जल,अक्षत,रोली तथा विशिष्ट सुगंधित पदार्थों से पूजन करके, आरती उतारनी चाहिए | भगवान को भोग लगाएं व प्रसाद को खुद खाएं व भक्तों को बांटे | इस व्रत के पुण्य से व्यक्ति को भूत,प्रेत या पिशाच योनि से मुक्ति मिलती है,मृत्यु के बाद मोक्ष की प्राप्ति होतीहै और श्रीहरि की कृपा से सभी पाप भी मिट जाते हैं |
जया एकादशी व्रत कथा - एक समय की बात है इंद्र की सभा में मल्लयवान नामक गंधर्व गीत गा रहा था परंतु उसका मन अपनी नवयोवना सुंदरी से आशक्त था | इस कारण बार बार उसका स्वर भंग हो रहा था | यह लीला इंद्र को बहुत बुरी तरह खटकी तब उन्होंने क्रोधित होकर कहा है दुष्ट गंधर्व तू जिसकी याद में मस्त है वह और तू पिशाच हो जाएं | इंद्र के शाप से वह हिमालय पर पिशाच बनकर दुख पूर्वक जीवन व्यतीत करने लगे | दैव योग से एक दिन जब माघ मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन उन्होंने कुछ भी नहीं खाया वह दिन फल फूल खाकर उन्होंने व्यतीत किया दूसरे दिन सुबह होते ही व्रत के प्रभाव से उन दोनों की पिशाच योनी भी छूट गई | व्रत के प्रभाव से अति सुंदर वेश धारण कर स्वर्ग लोक को चले गए |
विजया एकादशी
विजया एकादशी व्रत फाल्गुन मास कृष्ण पक्ष एकादशी को किया जाता है | इस दिन भगवान विष्णु की पूजा करने से मन प्रसन्न होता है व सभी मनोकामना पूर्ण होती है | पूजन में धूप दीप नैवेद्य नारियल आदि चढ़ाया जाता है | सप्त अन्न युक्त घट स्थापित किया जाता है जिसके ऊपर विष्णु की मूर्ति रखी जाती है | विजया एकादशी को 24 घंटे कीर्तन करके दिन रात बिताना चाहिए | द्वादशी के दिन अन्न से भरा घड़ा ब्राह्मण को दान दिया जाता है | इस व्रत के प्रभाव से दुख दरिद्रता दूर हो जाती है | समस्त कार्य में विजय प्राप्त होती है | इसकी कथा भगवान राम की लंका विजय से संबंधित है | विजया एकादशी व्रत के बारे में कहा जाता है कि विजया एकादशी व्रत करने मात्र से स्वर्णणदान,भूमि दान,अन्न दान और गौ दान से भी अधिक पुण्य फलों की प्राप्ति होती है और अंततः विजया एकादशी व्रत करके मोक्ष की प्राप्ति होती है। यदि कोई आपसे शत्रुता रखता है तो आपको विजया एकादशी का व्रत अवश्य करना चाहिए।
विजया एकादशी की कथा - जब भगवान राम माता सीता की मुक्ति के लिए वानर दल के साथ सिंधु तट पर पहुंचे तो रास्ता रुक गया | पास में ही दाल्भ्य मुनि का आश्रम था जिसने अनेक ब्रह्मा अपनी आंखों से देखे थे ऐसे चिरंजीव मुनि के दर्शनार्थ राम लक्ष्मण अपनी सेना सहित मुनि की शरण में जाकर मुनि को दंडवत प्रणाम करके समुंद्र से पार होने का उपाय पूछा तो मुनि ने कहा की कल विजया एकादशी है उसका व्रत आप सेना सहित करें | समुंद्र से पार उतरने का तथा लंका को विजय करने का सुगम उपाय यही है। मुनि की आज्ञा से राम लक्ष्मण ने सेना सहित विजया एकादशी का व्रत किया | समुन्द्र किनारे भगवान रामेश्वरम का पूजन किया। विजया एकादशी के महत्तम को सुनने से हमेशा विजय होती है। आज के समय में मुक़दमे आदि से निकलने हेतु विजया एकादशी का व्रत सबसे सरल उपाय है |
वीरभद्र आसन
सत्यप्रतिष्ठायां क्रियाफलाश्रयत्वम्॥ - सत्य में दृढ़ स्थिति हो जाने पर उस योगी की क्रिया अर्थात् कर्म फल के आश्रय का भाव आ जाता है। अस्तेयप्रतिष्ठायां सर्वरत्नोपस्थानम्॥ - अस्तेय अर्थात् चोरी के अभावमें दृढ़ स्थिति होजाने पर उस योगी के सामने सब प्रकारके रत्न प्रकट हो जाते हैं।
वीरभद्र आसन भुजाएं और जांघें मजबूत करता हैं | वीरभद्र आसन सीने के लिए भी एक उपयुक्त है । यह आसन भगवान शिव के गण वीरभद्र के नाम पर है, जिन्होंने राजा दक्ष का वध किया था। कहा जाता है कि इनकी भुजाओं और जांघों में अपार शक्ति थी। इस आसन से पेट के दोनों तरफ जमा फैट भी कम होता है।
वीरभद्र आसन - गहरी सांस लेकर कूदते हुए पैरों को सवा या डेढ़ मीटर अंतर तक फैलाएं दोनों हाथ बाजू में | दोनों हाथों को सिर के ऊपर बाजू में उठाए ऊपर की ओर ताने तथा हथेलियों को मिलाएं |
स्वास थोड़े तथा बाई और घुमे | बाएं पैर को बाई और 90 अंश और दाहिने पैर को कुछ बाई ओर घुमाएं | बाई टांग को घुटने में तब तक मोढ़े जब तक बाई जांघ जमीन के समांतर और बाई ज्न्घदिष्ठ जमीन से लंबवत ना हो जाए घुटने को टखने से आगे नहीं जाने देना चाहिए बाएं पैर की ओर से मुंह सीना और घुटना होना चाहिए | दाहिने पैर ताने और घुटने को कसे सिर ऊपर करें मेरुदंड को सबसे नीचे की तिकोनी हड्डी के ऊपर की और ताने और जुड़ी हथेलियों पर दृष्टि डालें संभावित रूप से सांस लेते हुए 20 से 30 सेकेंड तक स्थित इस स्थिति में रहे | इस आसन को अधिक देर तक नहीं करना चाहिए कमजोर दिल वाले इसे ना करें इस आसन में सीना पूरी तरह फैलता है और गहरी सांस लेने में मदद देता है यह कंधो गर्दन और पीठ की अकड़ को दूर करता है तकनो और घुटनों को निर्दोष बनाता है | नितंब के चारों ओर की मोटाई को भी कम करता है |
आयुर्वेदः – आयु का वेद – सम्पूर्ण रोगमुक्तपद्धति ।
यत्रौषधीः समम्मत राजानः समिताविव ।
विप्रः स उच्यते भिषग् रक्षोहामीवचातनः ॥ ऋग्वेदः 10-97-6 ॥
राजा जिसप्रकार सङ्ग्राममें अपने सैनिकोंके साथ विराजते हैँ, उसीप्रकार शल्यादि अष्टतन्त्रज्ञ नाडीविज्ञान विशारद जिस विद्वानपुरुष नाना प्रकारके औषधीगणेंको एकत्रकर उनके साथ प्रतिष्ठित होता है, वह भिषक् (वैद्य) कहलाता है । जैसे राजा दुष्टपुरुषोंके अत्याचारसे प्रजाका रक्षाकरता है, भिषक् रोगजनित पीडाका उपशमकर जनताका कल्याण करता है (मृत्युके उपर भिषक् का नियन्त्रण नहीँ है, जैसे जय-पराजय राजाके अधीन नहीँ है । वह केवल भगवानके हाथमें है) ।
विषयः(Subject) – धर्म-अर्थ-काम त्रि-पुरुषार्थ का साधन आयु है । परन्तु यह आयु क्या है ? सदा गतिशील जीवितव्याप्य कालको आयु कहते हैँ (इ॒ण् गतौ॑) । शरीर, इन्द्रिय, मन तथा आत्मा – इन चारोंका सहावस्थानका नाम आयु है । इन्द्रियसंयुक्त मन, आत्मा और शरीर – यह त्रिदण्डवत् (त्रिपदी – like a tripod) है । एक नहीँ रहनेसे अन्य भी नहीँ रह सकते । पञ्चभूत, आत्मा, मन, काल, दिक् – यह नौ द्रव्य है । इन्द्रियसंयुक्त द्रव्य चेतन है । निरिन्द्रिय द्रव्य अचेतन है । शब्द, स्पर्श, रूप, रस, गन्ध विषय है । गुरु, लघु, शीत, उष्म, स्निग्ध, रुक्ष, मन्द, तीक्ष्ण, स्थिर, सर, मृदु, कठिन, विशद, पिच्छिल, घन, मसृण, स्थूल, सूक्ष्म, सान्द्र, द्रव – यह विंशति गुण है । यत्नसाध्य क्रिया का नाम कर्म अथवा चेष्टित है । यह संयोग-विभाग का कारण है ।
सत्त्व-रज-तम तीन गुणों के मात्रान्तर से भूतसृष्टि होता है, यह वैज्ञानिक सिद्धान्त है (जिसे आपत्ति है,
हमसे शास्त्रार्थ कर लें) । सत्त्वबहुल आकाश है । रजोवहुल वायु है । सत्त्वरजोबहुल अग्नि है । सत्त्वतम वहुला आपः है । तमोबहुला पृथिवी है । पञ्चभूतात्मक शरीरमें तत्तत्लक्षण गन्ध, क्लेद, पाक, व्युह तथा अवकाश है । परन्तु केवलमात्र गन्ध ही समवायसम्बन्ध से शरीरका उपादानकारण है । अन्य चार भूत निमित्तकारण है । इनके भेदसे शरीरके 84 लक्ष भेद है । इनमें 9 लक्ष प्रकारके जलज हैँ, 20 लक्ष प्रकारके स्थावर हैँ । 11 लक्ष प्रकारके कृमी हैँ । 10 लक्ष प्रकारके पक्षी हैँ । 30 लक्ष प्रकारके पशु हैँ । 4 लक्ष प्रकारके मनुष्य हैँ ।
पञ्चभूतों में से भोगाधिष्ठान शरीर पाथिवभूत प्रधान है, जिसका बिष्टम्भकत्व (व्युह विरोधिता) एक लक्षण है । आकाश निष्क्रिय है । अन्य भुतों में से जल का विकार को कफ, अग्नि के विकार को पित्त तथा वायु के विकार को वात कहते हैँ । विषयों (शब्द-स्पर्श-रूप-रस-गन्ध) का तत्तत् इन्द्रियों (कर्ण-चर्म-चक्षु-रसना-नासा) के साथ अयोग, अतियोग तथा मिथ्यायोग से वह असात्म्य हो कर विकार
सृष्टि कर दोष वनते हैँ । असात्म्यइन्द्रियार्थसन्निकर्ष (excess, too little or unnatural exposure of senses to their objects). परिणाम (काल – time evolution like seasonal effects or age factor) तथा प्रज्ञापराध (doing something while knowing it is wrong) – यह तीन समस्त रोगोँ का कारण है (causes of all diseases) । शरीर एवं मन को आश्रय कर रोग एवं आरोग्य प्रवर्त्तित होते हैँ । आरोग्य सुख संज्ञक है । विकार दुःख का कारण है । शारीरिक रोग को व्याधि तथा मानसिक रोग को आधि कहते हैँ । वात-पित्त-कफ के असात्म्य से व्याधि तथा रज-तम गुण के असात्म्य से आधि सृष्टि होता है । सत्त्व के 8 (अथवा 7) भेद, रज के 7 भेद तथा तम के 3 भेद होते हैँ । राग, द्वेष, आदि का प्रभाव शरीर तथा मन पर पडता है । उससे ऒत्सुक्य, मोह तथा अरति (व्याकुलता) उत्पन्न हो कर विकार उत्पन्न करते हैँ । वात-पित्त-कफ का समयोग आरोग्यका कारण है, जिसका पद्धति विवेच्य है ।
वात-पित्त-कफ के असात्म्य से अनेकविध रोगों का उत्पत्ति होता है । उनमें वात के 80, पित्त के 40 तथा कफ के 20 रोग मूख्य है ।
प्रयोजनम् (Necessity) – जीवन (शरीरके साथ प्राणवायु का संयोग), मृत्यु (शरीरके साथ प्राणवायु का संयोगनाश), स्वप्न, जागरण, रोग, भेषजप्रयोगसे निरामय, सजातीयका अनुविधान, अनुकूलवस्तु का स्वीकरण तथा प्रतिकूलवस्तु से विरति – यह शरीरका कतिपय धर्म है । अन्य विषयों का प्राप्ति अथवा परिहार से शरीरमें सुख अथवा दुःख जात होते हैँ । सर्वदा सब अवस्थामें समुदय द्रव्य-गुण-कर्म का साम्य (साधर्म्यों का सहावस्थान) ही वृद्धि का कारण है । इनका असमान भाव (वैधर्म्यों का सहावस्थान) ही ह्रास का कारण है । शरीरके समस्त धातु समयोगवाही है । जब वह धातु वैषम्यप्राप्त होते हैँ, तब शरीर क्लेश अथवा विनाशप्राप्त होता है । उस दुःखसंयोग को व्याधि कहते हैँ । यह आगन्तु (from external sources), शारीर (genetic), मानसिक (mental) अथवा स्वाभाविक (by natural processes like aging) हो सकते हैँ । समस्त प्रकार के शरीरों में विकृत धातुओँ को साम्यावस्थामें
लाना आयुर्वेद का प्रयोजन है । वृक्षार्युवेद (दोहद), हस्त्यार्युवेद, अश्वार्युवेद, वृषार्युवेद आदि इसके अवान्तर शाखाएँ हैँ ।
सम्बन्धः (Relation) – व्याधि का चिकित्सा युक्तियुक्त मणि-मन्त्र-औषधि से किया जाता है । आधि का चिकित्सा ज्ञान, विज्ञान, धैर्य, स्मृति और समाधि द्वारा किया जाता है । रुक्ष, लघु, शीत, सूक्ष्म, चल, विशद, खर – यह वात के गुण है । इनके विपरीत गुणों के प्रयोग से वातविकार प्रशमित होता है । सस्नेह (अल्प स्नेहयुक्त), उष्म, तीक्ष्ण, द्रव, अम्ल, सर, कटु - यह पित्त के गुण है । इनके विपरीत गुणों के प्रयोग से पित्तविकार प्रशमित होता है । गुरु, शीत, मृदु, स्निग्ध, मधुर, पिच्छिल, स्थिर – यह कफ के गुण है । इनके विपरीत गुणों के प्रयोग से कफविकार प्रशमित होता है । देश, काल, मात्रा विचार कर वातादि के विपरीत गुणशाली औषध प्रयोग करनेसे वातादिजनित रोगसकल यदि साध्य हो, तो आरोग्य होता है । परन्तु रोग यदि असाध्य हो, तो आरोग्य के लिए गुण और कर्मका विशेषज्ञान – यथा निदान, पूर्वरूप, रूप, उपशय (हेतु – कारण निदान, रोग के विपरीत अर्थ – प्रयोजन को सिद्ध करनेवाले औषध, अन्न तथा विहारके सुखावह प्रयोग) तथा सम्प्राप्ति (विकृत वातादि का अन्य स्थान में उपसर्पण – lateral effects) आवश्यक है । आयुर्वेदमें उसी विशेष गुण और कर्म का वर्णन है । वातविकारोंमें मधुर, अम्ल, उष्ण, लवणरस युक्त भोजन, स्नेहन, स्वेदन, आस्थापन, अनुवासन, नस्य, अभ्यङ्ग, उत्सादन, परिषेकआदि कर्म करना चाहिए । पित्तविकारों में कषाय, तिक्त, मधुररस युक्त भोजन, स्रंसन (विरेचन), शोषण, प्रदेह, परिषेक, अभ्यङ्ग, अवगाहन आदि कर्म करना चाहिए । कफविकारों में मात्रा तथा काल का विवेचन करते हुए कषाय, कटु, तिक्तरस तथा रूक्ष तथा उष्ण भोजन, स्नेहन, स्वेदन, वमन, शिरोविरेचन, व्यायाम आदि कर्म करना चाहिए ।
मूल आयुर्वेद 1000 अध्याय का एक ही शास्त्र था, जिसे 6 स्थान तथा 8 अङ्गों मेँ विभाजित किया गया है, जो समस्त भिषक् को शिखाया जाता है । यह है –
स्थान – सूत्रस्थान, निदानस्थान, विमानस्थान, शारीरस्थान, इन्द्रियस्थान, चिकित्सास्थान (अग्निवेश) । अथवा - सूत्रस्थान, निदानस्थान, शारीरस्थान, चिकित्सास्थान, कल्पस्थान, उत्तरस्थान (धन्वन्तरी) । अथवा -सूत्रस्थान, विमानस्थान, शारीरस्थान, इन्द्रियस्थान, चिकित्सास्थान, कल्पस्थान (कश्यप) । अथवा – अन्नपानम्, अरिष्टस्थान, चिकित्सास्थान, कल्पस्थान, सूत्रस्थान, शारीरस्थान, (अत्रि) ।
अङ्ग (Branches of Ayurveda) -
१) शल्य (किसी वाह्यपदार्थ अथवा शरीरस्थ दुषित पदार्यों का निष्कासन केलिए यन्त्र, शस्त्र, क्षार, अग्नि के प्रयोग द्वारा एवं व्रण के निश्चय के लिए उपचार । शरीरस्थ 107 मर्मस्थान का चिकित्सा भी इसीमें आती है – surgery etc. as taught to Sushruta by Dhanwantari) ।
२) शालाक्य (ग्रीवामूल से उपर के रोगों यथा कान, नाक, गला, आँख, मुख आदि का उपचार – ENT, Eye and dentistry) ।
३) कायचिकित्सा – समस्त शरीरको प्रभावित करनेवाले रोग यथा ज्वर, रक्तपित्त, शोष, यक्ष्मा, उन्माद, अपस्मार, कुष्ठ, प्रमेह तथा मधुमेह, अतिसार का उपचार – General Medicine for symptoms arising out of malfunction of the body, like fever, impurities of blood, dehydration, TB, Epilepsy, Leprosy, diabetes, Diarrhea, etc, as taught to Charaka by Agnivesha) ।
४) ग्रहावेश चिकित्सा (भूतविद्या) – जो कुछ विकारों के मूल कारणों का चाक्षुष प्रत्यय नहीँ होता (लक्ष्यन्ते केवलं शास्त्रचक्षुषा - infections arising out of bacteria and virus), तथा जो रोग अमानवीय कारणों से होता है (उन्माद, अपस्मार आदि) उसे ग्रहावेश कहा जाता है । वालकों का निरन्तर क्रन्दन करना ग्रहावेश का पूर्वरूप है ।
५) कौमारभृत्य (Pediatrics as espoused elaborately by Ravana) ।
६) अगदतन्त्र – स्थावर जङ्गमादि नानाविध विषों के संयोग से उत्पन्न हुए विकारों के शान्ति के लिए कर्म (Treatment for poisons) ।
७) रसायनतन्त्र – अवस्था को स्थित रखने केलिए, आयु, मेधा तथा बल वृद्धि के लिए, तथा रोगप्रतिषेधकशक्ति वृद्धि के लिए उपचार (Rejuvenation and Immunization) ।
८) वाजीकरणतन्त्र – स्वभाव से ही अथवा विशेष कारण से अल्पवीर्य वाले पुरुषों में वीर्य बृद्धि के लिए, वात आदि के द्वारा दुषित शुक्र का शोधन के लिए, वृद्धावस्था के कारण शुष्कवीर्य पुरुषों में वीर्यबृद्धि के लिए, तथा स्त्री प्रसङ्ग में प्रहर्ष उत्पादन के लिए उपचार (Sexual arousal and stimulation) ।
अधिकारी (Eligibility/Qualities to get the knowledge) – जो व्यक्ति कुलीन, धार्मिक,
सौम्यदर्शन, उत्तमसहायकों से युक्त, शान्त, अलुब्ध, अशठ, श्रद्धालु, कृतज्ञ, क्रोध-कठोरता-मत्सरता-माया- आलस्य-रहित, जितेन्द्रिय, क्षमाशील, पवित्रस्वभाव, शीलयुक्त, मेधावी, उद्यमी, हितेच्छु, निपुण, चतुरवक्ता,व्यसनरहित, नाडीज्ञानपरायण, निदानतत्त्वज्ञ, स्थावर-जङ्गम औषध तत्त्वाधिगत, सदा अगद रखनेवाला हो, वही इस शास्त्र के योग्य अधिकारी है ।
वैद्यकी वैद्यता (Essence of a Doctor) ।
व्याधिस्तत्त्वपरिज्ञानं वेदनायाश्च निग्रहः ।
एतद्वैद्यस्य वैद्यत्त्वं न वैद्यः प्रभुरायुषः ॥
व्याधिके मूल कारण का ज्ञान तथा कष्टनिवृत्ति – यही वैद्य का वैद्यत्त्व (कार्य) है । जीवन-मरण (आयु) वैद्य के अधीन नहीँ है । रोगतत्त्व, औषधतत्त्व, तथा रोगों के साध्या साध्य लक्षण तत्त्व जो अच्छी प्रकारसे समझता है, जो वहुदर्शी तथा शास्त्रज्ञ वैद्य है, वही चिकित्सा कार्य में सफल होता है । मानव शरीर में रहने वाली धातुएँ जिन उपायों से समभाव में रह सके, ऐसा उपाय करना वैद्य का कर्तव्य है । जो नाडी, जिह्वा, नेत्र, शब्द, स्पर्श, मूत्र, मल, आकृति (चेष्टा) के परिक्षा किए विना ही चिकित्सा आरम्भ कर देता है, वह वैद्य नहीँ – चोर है (यः कर्मकुरुते वैद्यः स वैद्यऽन्ये तु तस्कराः) । -वसुदेव मिश्रा
‘नहीं भूलाएँगे वीर सुभाष की अनकही गाथा’
नहीं भूलाएँगे वीर सुभाष की अनकही गाथा |
भारत को आज़ादी का मलहम दिलाने वाली गाथा |
अंग्रेज़ों को दे खदेड़ा एड़ी चोटी का ज़ोर लगाया |
शत्रु था बलवान बहुत षड्यंत्रों का था जाल बुना |
अपना सर्वस्व लुटा नेताजी चले आज़ादी की नींव रखने |
लिया लोहा सामने से न पीठ पर वार किया |
अंग्रेज़ों के गले का काँटा बन चुके थे नेताजी |
अंग्रेज़ रहते थे ताक नेताजी को अँधेरे में धकेलने को |
पर थे वे सुबाष चंद्र जो थे चन्द्रमा के प्रकाश से |
कूट निति से काम किया नेता जी ने विदेशों में |
राष्ट्रनिर्माण में तन- मन धन न्योछावर किया |
भारतवासियों की आज़ादी का अभियान आरंभ किया |
न देखा दिन न रात, ना झाड़ा, ना तापती गर्मी, ना होश खान-पीन का |
बस मन में था एक ही लक्ष्य भारत माँ की आज़ादी का |
कई देशों से मैत्री कर लिया प्रण भारत की आज़ादी का |
कारवां चलता गया गुलामी की बेड़ियाँ खुलती गईं मिटने लगा कलंक गुलामी का |
किन्तु ये क्या आज़ादी के स्तम्भ को दिया गया देश निकाला ?
अपने ही देश में रहना पड़ा अनजानों सा अकेला |
कैसी थी ये राजनीति जिसने वीर सपूत का छीना अधिकार |
जिसने खोले मार्ग आज़ादी के किया उसी का बहिष्कार |
नहीं भूलेंगे नेता जी आपके बलिदानों को है भारत की आज़ादी का श्रेय सब आपको |
करते हैं हम शत-शत नमन नहीं भूलेंगे नेता जी आपके बलिदानों को |
कवयित्री - श्रीमती रेनू दत्ता
बदलाव कैसे लाया जाए
पढाई पढ़ाई बहुत हुई , अब नैतिकता का पाठ पढाया जाए l
बहुत हुआ अब लड़की लड़का , सबको ही ये बतलाया जाए l
ना कर पायेगा कोई गलती, ना बहकेंगी अबोध लड़की
अब आत्मतत्व जगाया जाए, उन्हे स्वाभलम्बी बनाया जाए
मर्यादा को समझाया जाए , नैतिकता का पाठ पढाया जाए l
स्वतंत्र भारत मे भी रहकर , स्व के तंत्र को क्यों ना जाना जाए
बहुत हुआ अब लड़का लड़की सबको ये बतलाया जाए l
नैतिकता का पाठ पढाया जाए l
अपने अपने धर्मो मे बटकर, कर बैठे है हम जो गलती,
धर्म परिवर्तन के चक्कर मे एक दूजे को क्यों फसाया जाए
नैतिकता का पाठ पढाया जाए l
उन्हे बताये धर्म एक है, धर्म गुरु भी सभी नेक है ,
इन गलत मोलवी पंडो के पीछे धर्मो को क्यों लड़वाया जाए,
नैतिकता का पाठ पढाया जाए l
संस्कृति से बने संस्कार , उनको क्यों ना अपनाया जाए
आओ मिलकर इस भारत को , क्यों ना स्वर्ग बनाया जाए
अपना धर्म नही है बाहर , अंदर क्यों ना इसे अपनाया जाए l
नैतिकता का पाठ पढाया जाए l
आत्म जागरुति से ही संभव , इस बात को सत्य बनाया जाए l
नही नामुमकिन अपराध रोकना , पर हर दिल मे क्यों ना दीप जलाया जाए l
नैतिकता का पाठ पढाया जाए l
मै लड़की हू वो भी है लड़का,एक दूजे को क्यों न समझाया जाए
एक जान है एक खून है ये भेद फिर क्यों ना मिटाया जाए l
लड़की को क्यों दफनाया जाए, उसे टुकड़े करके क्यों मारा जाए,
नैतिकता का पाठ पढाया जाए l
हम सबको ये समझना होगा, परिवर्तन खुद मे करना होगा
हिंदू हो या हो हम मुस्लिम, आत्मतत्व को जगाना होगा l
हर इंसा मे बसी इंसानियत का ही महत्व बताना होगा l
मानवता के इस पूर्ण धर्म को ना यू ही मर जाना है,
नैतिकता का पाठ पढाना है l
शिल्पी गुप्ता की कलम से…….
आलू की टिक्की
आलू की टिक्की के लिए सामग्री -
एक किलो आलू ,चने की दाल एक कटोरी ,अदरक ,हरीमिर्च ,हरा धनिया ,काजू किसमिस ,हरी मटर ,ब्रेड पीस चार ,नमक, लाल मिर्च,धनिया ,गरम मसाला ,आमचूर ,हींग,जीरा ,घी /तेल,दही मिट्ठी चटनी ,चाटमसाला |
आलू की टिक्की बनाने की विधि -
आलू उबाल कर कस ले भीगे आलू को ब्रेड के साथ मिला ले ,चने की दाल को दो घंटे भिगो कर रखे | चने की दाल को पानी से निकले और कध्यी में सभी मसाले व मटर डाल कर भुने | इसे मिक्सी में दरदरा पिसे काजू किसमिस डाले आलू के गोल बना कर दाल का जो मसाला बनाया है आवश्यकता अनरूप भरे इसी प्रकार सारी टिक्की बना ले | तवे पर घी डाल कर गर्म कर अब दो तीन टिक्की डाल कर तले लाल होने पर निकाले इस प्रकार सभी टिक्की तले परोशने के वक्त तवे पर टिक्की को दवाकर गर्म करे हरी,लाल चटनी व दही के साथ व ऊपर चाटमसाला बुर्क कर परोसे |
कुछ काम की बात -
स्टेनलेस स्टील सिंक को आप बेकिंग सोडा व निम्बू डालकर साफ कर सकते हैं | बेकिंग सोडा से सिंक साफ करने के लिए आप पूरे सिंक में सोडा व निम्बू का रस छिड़क दें | अब 5 मिनट बाद स्क्रबर से सिंक को रगड़कर साफ कर दें. इससे सिंक साफ हो जाएगा और बदबू भी दूर हो जाएगी | - मिथलेश शर्मा
वृश्चिक राशि
वृश्चिक लग्न में जन्म लेने वाला व्यक्ति जातक सुंदर,सतर्क,उग्र स्वभाव,परिश्रमी,उदार,साहसी,स्पष्ट वक्ता,विचारशील, शंकालु, संतती, नीतिज्ञ,रचनात्मक एवं आकमात्रात्मक,विद्वान,संतति वाला गूढ़ विद्याओं का ज्ञाता,आत्मविश्वासी, गणित,ज्योतिष,नृत्य संगीत आदि में रुचि रखने वाला, स्वेच्छाचारी आतंककारी व सेवाभावी होता है | ऐसे व्यक्ति मितव्ययी एवं संग्रह करने में चतुर होते हैं, किंतु यदि लग्न का दुष्ट हो तो जातक अत्यंत झगड़ालू असंयमी कुविचारी,निर्दयी,चतुर,अपराधी,उग्र स्वभाव तथा गुप्त रूप से दुष्कर्म अथवा दुश्चिंताये करने वाला होता है | इस लग्न का व्यक्ति स्थूल शरीर का होता है उसकी आंखें गोल तथा चौड़ी होती है दूसरों के मन की बात जान लेने में यह बड़ा निपुण होता है ऐसा व्यक्ति अपनी प्रारंभिक अवस्था में दुखी रहता है तथा मध्य अवस्था में सुख भोगता है | इसका भाग्य उदय 20 से 24 वर्ष की आयु के बीच होता है वृश्चिक राशि का स्वामी मंगल होता है सूर्य चंद्र मंगल गुरु शुभ होते हैं तथा बुध और शुक्र ऐसे व्यक्ति के लिए अशुभ रहते हैं | कट, छाती, गर्मी, वायु संबंधी एवं बवासीर आधी गुप्त रोग होने की संभावना होती है | ऐसा व्यक्ति केमिस्ट, डॉक्टर, जासूस, सर्जन डेंटिस्ट ,नर्स, सेना, पुलिस में अधिकारी ,इंजीनियर भूगोल का विशेषज्ञ, खनिज विशेषज्ञ, आलोचक, नेता, गणितज्ञ, संगीतज्ञ आदि अगर बने तो विशेष कामयाब होता है तारामंडल में वृश्चिक राशि बिच्छू के आकार के समान होती है वृश्चिक राशि में विशाखा का एक चरण अनुराधा के चार चरण और जेस्टा के चार चरण होते हैं |
मंगल ग्रह
मंगल हिंसक,शुर ,तरुण ,पित्त प्रक्रति लाल गोर वरनी अग्नि जैसा उग्र उदार तामसी स्वभाव वाला और
गर्वीला होता है | सौर परिवार में मंगल का चोथा स्थान है | मंगल ग्रह को ऊर्जा, भूमि और साहस का कारक ग्रह माना गया है। ज्योतिष शास्त्र में मंगल ग्रह को क्रूर ग्रह माना गया है। मेष और वृश्चिक राशि के स्वामी मंगल ग्रह होते हैं। मंगल मकर राशि में उच्च के जबकि कर्क राशि में नीच के माने गए हैं।
मंगल का रत्न - मूंगा, लाल रंग का धागा अभिमंत्रित कर पहन सकते है।
मंगल का वहन मेथा ,मेष व वृश्चिक राशी का स्वामी होता है | कमजोर मंगल के रोग - पित ,वायु ,कर्ण रोग,विशु चिका , खुजली | कुंडली में मंगल 4 ,8 भाव को पूर्ण दृष्टि से देखता है |मंगल की धातु - सुवर्ण ,ताम्र | मंगल का दान - मसूर ,गूढ़ ,घी ,लाल वस्त्र ,लाल कनेर ,कस्तूरी , लाल चन्दन |मंगल का बीज मंत्र- ॐ क्रां क्रीं क्रौं सः भौमाय नमः। मंगल का अंक - 9 , मंगल अशुभ हो तो कभी कभी जेल के दर्शन भी हो जाते हैं | कुंडली का मंगल जीवन के सुख, संपत्ति, विवाद और मुकदमेबाजी जैसे पहलुओं को विशेष रूप से प्रभावित करता है | यानि जीवन के हर मोड़ पर खराब या अशुभ मंगल का प्रभाव रहता है और इंसान की जिंदगी को प्रभावित भी करता है | मंगलवार के दिन किसी गरीब या जरूरतमंद को लाल रंग का कपड़ा दान करें। हनुमान जी के मंदिर जाकर संतरी रंग के सिंदूर में चमेली का तेल मिलाकर हनुमान जी को चौला चढ़ाएं। मंगल ग्रह के मंत्रों का जाप करें। ढाई किलो लाल मसूर की दाल किसी कुष्ठ रोगी को दान करें। अंधकासुर से युद्ध के समय लड़ते-लड़ते भगवान शिव के मस्तक से पसीने की एक बूंद पृथ्वी पर गिरी, उससे अंगार के समान लाल अंग वाले भूमिपुत्र मंगल का जन्म हुआ।मंगल ग्रह या मंगल दोष हेतु अक्सर हनुमानजी की पूजा बताई जाती है और हनुमानजी का दिन भी मंगलवार भी है परंतु मंगलदेव ही मंगल ग्रह के देवता है और उनका वार भी मंगलवार ही होता है। मंगल दोष की शांति हेतु उनकी भी पूजा की जाती है।
मूंगा रत्न
मुंगे को संस्क्रत में प्रवालक, प्रवाल ,भौम रत्न , कहते है | अंग्रेजी में कोरल व फारसी में मार्जन कहते है | मूंगा समुन्द्र से मिलने वाला रत्न है जसे मोती | मूंगा सफ़ेद ,लाल , काला ,गुलाबी व मटमैला होता है | मुंगे की भस्म दवा के रूप में काम आती है | ज्योतिष में मूंगा को मंगल का रत्न कहा जाता है। कुंडली में मंगल मजबूत हो तो मूंगा पहनें | मूंगे को चित्रा व मृगशिरा नक्षत्र में मंगलवार के दिन धारण कर सकते हैं। पुलिस, आर्मी, डॉक्टर, प्रॉपर्टी का काम करने वाले, हथियार निर्माण करने वाले, सर्जन,मेडिकल क्षेत्र से जुड़े, हार्डवेयर व इंजीनियर आदि लोगों को मूंगा पहनने से विशेष लाभ होता है | जिनकी राशी मेष, वृश्चिक राशि हो व लग्न हो एवं सिंह, धनु, मीन राशि हो तो मूंगा पहनना चाहिए । मूंगा रत्न पुखराज, मोती व माणिक के साथ पहन सकते हैं। मूंगा रत्न को तर्जनी और अनामिका अंगुली में ही पहनना चाहिए। मूंगा को कभी भी निम्नलिखित रत्नों के साथ नहीं पहनना चाहिए, हानिकारक साबित हो सकता है। गोमेद, लहसुनिया, हरी व नीलम | मूंगा पहनने से व्यक्ति को ऊर्जा मिलती है। इसे धारण करने से,आत्म विश्वास को बल मिलाता व अपयश, दुर्घटनाओं व मानसिक अपवाद आदि से छुटकारा मिल जाता है। मूंगा पहनने से पहले शुद्ध करे व राशी से सम्बन्धित दान करे |
*कृत्रिम दीवार*
बालेश्वर गुप्ता
ये भी अजीब है जब उम्र बढ़ने लगती है तो मन मस्तिष्क में अजीब सा परिवर्तन आने लगता है।जीवन की सांसें कम होने के अहसास मात्र से चाहते भी बढ़ जाती है।
मुन्ना अपने ऑफिस के लिये प्रातः7 बजे घर से निकल जाता है, वापसी का कोई समय नही।उसके पास शनिवार और रविवार का समय होता है।उसकी पत्नी और बच्चों को भी तो उसका समय चाहिये, सच मानिये हम तो उससे बतियाने को उसको भरपूर देखने को उसका थोड़ा सा समय चुराते हैं।
ऐसे में अपनी कोई इच्छा हो भी तो मुन्ना से कैसे कहे,उसके पास तो समय ही नही है।आज के आधुनिक युग मे पैसा तो खूब है पर समय का अभाव है।मुन्ना ने अभी कुछ दिन पहले ही एक आराम कुर्सी मेरे लिये खरीद कर बालकनी में रखवा दी है।इससे अब मैं बाल्कनी में ही अधिकतर बैठा रहता हूँ।इस कुर्सी के आने से लाभ ये हुआ है कि बाल्कनी मेरे बैठे रहने से आबाद हो गयी है।मेरे बैठे रहने के कारण अब मेरे पोता पोती भी बाल्कनी में आ कर खेलने लगे हैं, बहु भी बच्चो के कारण वहां आने लगी और अवकाश के दिन मुन्ना भी काफी समय बाल्कनी में बैठने लगा। उस कुर्सी ने अब काफी हद तक मेरा अकेलापन दूर कर दिया था।एक निर्जीव वस्तु भी एक जीवित प्राणी को कैसे प्राणवायु दे सकती है,मैं प्रत्यक्ष अनुभव कर रहा था।
इस परिवर्तन से मन मे अब उत्साह का संचार होने लगा था।काफी दिन से मन मे एक इच्छा पनप रही थी कि जीवन मे एक बार रामेश्वरम दर्शन कर आऊं।अकेला न जा सकता था और न मुन्ना अनुमति देता।ऐसे में जब मैं यह भी देखता कि मुन्ना के पास समय ही नही है तो उससे अपनी इस चाहत को
बताने का भी क्या लाभ होता,सो मन मसोसकर चुप ही रहता।वैसे भी बुढ़ापे में सुखपूर्वक रहने की कुंजी चुप रहना ही होती है।कभी मुन्ना से अपनी इस इच्छा के बारे कहा था,पर अब उसकी दिनचर्या देख मैंने दोबारा उससे इस बारे में कुछ नही कहा।
इस वर्ष ठंड कुछ अधिक ही पड़ रही है और मुझे ठंड अधिक लगती है।जनवरी माह में मकर सक्रांति बीत जाने के बाद भी सर्दी कम होने का नाम ही नही ले रही थी।सोच रहा था कि इस वर्ष की सर्दी उसकी जान लेकर ही छोड़ेगी।
आज मुन्ना अपने ऑफिस से कुछ जल्द ही आ गया था, आते ही वो सीधा बाल्कनी में मेरे पास ही आया,बोला पापा मैंने पूरे 10 दिन की छुट्टियां ले ली हैं।आप और मैं इसी शनिवार को रामेश्वरम चल रहे हैं।आपकी इच्छा थी ना वहां जाने की,क्या करता छुट्टियां ही नही मिल रही थी,अबकि बार छुट्टियां मिल गयी है,सर्दी भी अधिक है उधर ठंड नही पड़ती है सो पापा चेन्नई,त्रिपति जी,मदुरै,रामेश्वरम,कन्याकुमारी और त्रिवन्तपुरम सब जगह आपको लेकर जाऊंगा।सब जगह के लिये होटल बुक कर दिये है।चेन्नई से टैक्सी बुक कर ली है।बस पापा आप तैयारी करो,इसी शनिवार की सुबह 9 बजे की फ्लाइट है, जल्दी निकलना पड़ेगा।
मुन्ना इतना सब कुछ एक सांस में बता गया,वो खूब उत्साहित था,अपने पापा की चाहत पूरी करने को। मैं तो बस मुन्ना का मुंह ही देखता रह गया,मुझे तो विश्वास ही नही हो रहा था,कि मेरी इच्छा ऐसे पूरी हो जायेगी।आज समझ आया समय के अभाव ने कृत्रिम दीवार खड़ी कर दी है।
पता नही क्यूँ मुझे आज त्रेता युग के उस श्रवण कुमार की याद आ रही थी जो अपने अंधे माता पिता को कंधे पर पालकी बना उस पर बिठा तीर्थ यात्रा कराने निकल पड़ा था।...सच जीना नही इतना भी बुरा-----!
विशाखा नक्षत्र
विशाखा का अर्थ होता है “विभाजित शाखा”। इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्ति की यह विशेषता होती है, कि यह पढ़ने-लिखने में बहुत बुद्धिमान होते हैं तथा उच्च शिक्षा प्राप्त करते हैं। इसका कारण यह भी है कि शारीरिक परिश्रम करने में यह पीछे रह जाते हैं, इसलिए बुद्धि और ज्ञान ही इन्हें जीवन मे सफल बनाती है।विशाखा नक्षत्र में जन्मे लोग अपनी बुद्धि के बल पर सफलता हासिल करते हैं। ये लोग धन कमाने और उसकी बचत करने में निपुण होते हैं। इनके पास मुश्किल परिस्थितियों में भी धन की कमी नहीं होती है। इस नक्षत्र में जन्मे लोग बिजनेस की बजाए नौकरी करना ज्यादा पसंद करते हैं। विशाखा नक्षत्र के देवता इंद्र और अग्नि हैं।
यह तुला राशि और वृश्चिक राशि को जोड़ने वाला नक्षत्र है।
वास्तु शास्त्र और प्राचीन विचारों के अनुसार, एक पश्चिममुखी घर , भूमि या स्थान "तुला राशि" (तुला) और विशाखा नक्षत्र के लिए फायदेमंद है। यह आपको भविष्य और वर्तमान में एक सामान्य, सुखी और शांतिपूर्ण जीवन जीने में मदद करेगा। विशाखा नक्षत्र का अंतिम चरण मंगल की वृश्चिक राशि में आता है। इसे तो नाम अक्षर से पहचाना जाता है। जहाँ नक्षत्र स्वामी गुरु है तो राशि स्वामी मंगल गुरु मंगल का युतियाँ दृष्टि संबंध उस जातक के लिए उत्तम फलदायी होती हैं।
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