समान नागरिक संहिता
समान नागरिक संहिता पूरे देश के लिये एक समान कानून के साथ ही सभी सांप्रदायिक समुदायों के लिये विवाह, तलाक, विरासत, गोद लेने आदि कानूनों में भी एकरूपता प्रदान करने का प्रावधान करती है। संविधान के अनुच्छेद 44 में वर्णित है कि राज्य भारत के पूरे क्षेत्र में नागरिकों के लिये एक समान नागरिक संहिता सुनिश्चित करने का प्रयास करेगा।
विश्व के अधिकतर आधुनिक देशों में ऐसे कानून लागू हैं। जैसे कि अमेरिका, आयरलैंड, पाकिस्तान, बांग्लादेश, मलेशिया, तुर्की , इंडोनेशिया, सूडान, इजिप्ट, जैसे कई देश हैं जिन्होंने समान नागरिक संहिता लागू किया है। भारत में समान नागरिक संहिता लागू नहीं है, बल्कि भारत में अधिकतर निजी कानून धर्म के आधार पर तय किए गए हैं।
लैंगिक समानता की ओर कदम: भारत में व्यक्तिगत कानून प्रायः महिलाओं के साथ भेदभाव करते हैं, विशेष रूप से विवाह, तलाक, उत्तराधिकार और संरक्षण से संबंधित मामलों में। समान नागरिक संहिता इस तरह के भेदभाव को समाप्त करने और लैंगिक समानता को बढ़ावा देने में मदद करेगी।
कानूनों की सरलता और स्पष्टता: समान नागरिक संहिता व्यक्तिगत कानूनों के मौजूदा ढुलमुल तंत्र को नियमों के एक समूह से प्रतिस्थापित कर विधिक प्रणाली को सरल बनाएगी जो सभी व्यक्तियों पर समान रूप से लागू होगी। इससे सभी नागरिकों के लिये कानून अधिक सुलभ हो जाएँगे और वे इसे आसानी से समझ पाएँगे।
एकरूपता और निरंतरता: समान नागरिक संहिता कानून के अनुप्रयोग में निरंतरता सुनिश्चित करेगी, क्योंकि यह सभी के लिये समान रूप से लागू होगी। यह कानून के अनुप्रयोग में भेदभाव या असंगति के जोखिम को कम करेगी।
यह सांप्रदयिक या व्यक्तिगत कानूनों के आधार पर भेदभाव को समाप्त करेगी तथा यह सुनिश्चित करेगी कि कानून के तहत सभी को समान अधिकार एवं सुरक्षा प्राप्त हो।
आधुनिकीकरण और सुधार: समान नागरिक संहिता भारतीय विधि प्रणाली के आधुनिकीकरण और इसमें सुधार की अनुमति देगी, क्योंकि यह समकालीन मूल्यों एवं सिद्धांतों के साथ कानूनों को अद्यतन करने और सामंजस्य बनाने का अवसर प्रदान करेगी।
युवाओं की आकांक्षाओं की पूर्ति: जबकि विश्व डिजिटल युग में आगे बढ़ रहा है, युवाओं की सामाजिक प्रवृत्ति एवं आकांक्षाएँ समानता, मानवता और आधुनिकता के सार्वभौमिक एवं वैश्विक सिद्धांतों से प्रभावित हो रही हैं।
समान नागरिक संहिता के अधिनियमन से राष्ट्र निर्माण में उनकी क्षमता को अधिकतम कर सकने में मदद मिलेगी।
सामाजिक समरसता: समान नागरिक संहिता सभी व्यक्तियों द्वारा अनुपालन किये जाने हेतु नियमों का एक सामान्य समूह प्रदान कर विभिन्न धार्मिक या सामुदायिक समूहों के बीच तनाव एवं संघर्ष को कम करने में मदद कर सकती है।
विशेष विवाह अधिनियम, 1954: विशेष विवाह अधिनियम, 1954 के तहत किसी भी नागरिक को, चाहे वह किसी भी धर्म का हो, नागरिक विवाह की अनुमति है। यह किसी भी भारतीय व्यक्ति को धार्मिक रीति-रिवाजों से बाहर विवाह करने की अनुमति देता है।
शाह बानो केस (1985): इस मामले में शाह बानो द्वारा भरण-पोषण के दावे को व्यक्तिगत कानून के तहत ख़ारिज कर दिया गया था। सर्वोच्च न्यायालय ने आपराधिक प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 125—जो पत्नियों, बच्चों और माता-पिता के भरण-पोषण के संबंध में सभी व्यक्तियों पर लागू होता है, के तहत शाह बानो के पक्ष में निर्णय दिया था।
सर्वोच्च न्यायालय ने आगे यह अनुशंसा भी की थी कि लंबे समय से लंबित समान नागरिक संहिता को अंततः अधिनियमित किया जाना चाहिये।
सर्वोच्च न्यायालय ने सरला मुद्गल निर्णय (वर्ष 1995) और पाउलो कॉटिन्हो बनाम मारिया लुइज़ा वेलेंटीना परेरा केस (वर्ष 2019) में भी सरकार से समान नागरिक कानून लागू करने का आह्वान किया।
‘ब्रिक बाय ब्रिक एप्रोच’: भारत में समान नागरिक कानून लागू करने के लिये चरणबद्ध प्रक्रिया या ‘ब्रिक बाय ब्रिक एप्रोच’ अपनाई जानी चाहिये, न कि सर्वव्यापी या बहुप्रयोजी दृष्टिकोण। महज समान संहिता लागू किये जाने से अधिक महत्त्वपूर्ण है एक उपयुक्त एवं न्यायपूर्ण संहिता लागू करना। सामाजिक अनुकूलनशीलता पर विचार: समान नागरिक संहिता का खाका तैयार करते समय समान नागरिक कानून की सामाजिक अनुकूलनशीलता पर विचार करने की आवश्यकता है। व्यक्तिगत कानून के उन क्षेत्रों से आरंभ करना उपयुक्त होगा जो सबसे व्यापक रूप से स्वीकृत और निर्विवाद हैं, जैसे कि विवाह एवं तलाक संबंधी कानून। यह समान नागरिक कानून के लिये सर्वसम्मति और समर्थन के निर्माण में मदद कर सकता है, साथ ही नागरिकों के समक्ष विद्यमान कुछ सर्वाधिक दबावकारी मुद्दों को भी संबोधित कर सकता है। हितधारकों के साथ चर्चा एवं विचार-विमर्श: इसके साथ ही, समान नागरिक कानून को विकसित करने और लागू करने की प्रक्रिया में सांप्रदयिक नेताओं, कानूनी विशेषज्ञों एवं समुदाय के प्रतिनिधियों सहित हितधारकों की एक विस्तृत शृंखला को संलग्न किया जाना उपयुक्त होगा। इससे यह सुनिश्चित करने में मदद मिल सकती है कि समान नागरिक संहिता विभिन्न समूहों के विविध दृष्टिकोणों और आवश्यकताओं को ध्यान में रखेगी तथा इसे सभी नागरिकों द्वारा उचित एवं वैध रूप में देखा जाएगा।
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