बहूनां जन्मनामन्ते ज्ञानवान्मां प्रपद्यते।
वासुदेवः सर्वमिति स महात्मा सुदुर्लभः
अनेक जन्मों की आध्यात्मिक साधना के पश्चात जिसे ज्ञान प्राप्त हो जाता है, वह मुझे सबका उद्गम जानकर मेरी शरण ग्रहण करता है। ऐसी महान आत्मा वास्तव में अत्यन्त दुर्लभ होती है।
हम पहले परमात्मा को दूर देखते हैं फिर समीप देखते हैं फिर अपने में देखते हैं और फिर केवल परमात्मा को ही देखते हैं कर्म योगी परमात्मा को समीप देखता है ज्ञान योगी परमात्मा को अपने में देखता है और भक्त योगी सब जगह परमात्मा को ही देखता है | सब कुछ परमात्मा ही है ऐसा अनुभव करना ही असली शरणागति है अर्थात् केवल शरणय ही रह जाएं शरणागत कोई रहे ही नहीं ! हमारी दृष्टि में संसार की सत्ता है। जैसे खेत में पहले भी गेहूं बोया गया था और अंत में ही गेहूं निकलेगा पर बीच में हरी हरी घास दिखने पर भी वह गेहूं की खेती कहलाती है उसे गाय खा जाए तो किसान कहता है गाय हमारा गेहूं खा गई जबकि गाय ने गेहूं का एक दाना भी नहीं खाया होता। इसी प्रकार सृष्टि के पहले भी परमात्मा थे और अंत में भी परमात्मा ही रहेंगे पर बीच में परमात्मा ने दीखने पर भी सब कुछ परमात्मा ही है जैसे गांव में उत्पन्न खेती भी गेहूं की है ऐसे में परमात्मा से उत्पन्न सृष्टि भी परमात्मा ही है । परमात्मा ने कहीं से मंगा कर सृष्टि नहीं बनायी। परमात्मा खुद ही सृष्टि रूप बन गए सृष्टि भगवान का प्रथम अवतार है। जैसा जिसके भीतर प्यास होती है उसे ही जल दिखता है। प्यास ना हो तो जल सामने रहते हुए दीखता नहीं ऐसे ही अगर आपको परमात्मा को पाने की ललक होती है तभी आपको परमात्मा दिखते हैं। आपके अंदर संसार की प्यास होती है उसे संसार दिखता है। परमात्मा की प्यास हो तो संसार लुप्त हो जाता है और संसार की प्यास हो तो परमात्मा लुप्त हो जाते हैं। तात्पर्य है कि संसार की प्यास होने से संसार ना होते हुए भी मृगमरीचिका की तरह दिखने लग जाता है और परमात्मा की प्यास होने से परमात्मा ना दीखने पर भी दीखने लग जाते हैं परमात्मा की प्यास जागृत करने के लिए हमें भूतकाल का चिन्तन नहीं होता, भविष्य की आशा नहीं रहती और वर्तमान मे उसे प्राप्त किए बिना चैन नहीं पड़ता । इसलिए सब कुछ एक भगवान का ही है। एक भगवान का होने से भगवान अकेले है उनके पास कुछ भी नही है, भगवान का अंश होने के कारण हमारा भी कुछ नही है।इसलिए हम जो भी कर्म करें, जो भी सोचे वह सब भगवान के लिए कर्म करे, भगवान के बारे में सोचें और और फल को भी भगवान के ऊपर समर्पित कर दें फिर हम पाएंगे कि जो कुछ हो रहा है भगवान ही कर रहा है और हम तनावमुक्त होकर कर अपना जीवन जी सकेंगे और हम अकिंचन होकर भगवान के प्रेमी हो जाते है।