सोमवार, 30 जनवरी 2023

अध्यात्मिक साधना

 


बहूनां जन्मनामन्ते ज्ञानवान्मां प्रपद्यते।

वासुदेवः सर्वमिति स महात्मा सुदुर्लभः

अनेक जन्मों की आध्यात्मिक साधना के पश्चात जिसे ज्ञान प्राप्त हो जाता है, वह मुझे सबका उद्गम जानकर मेरी शरण ग्रहण करता है। ऐसी महान आत्मा वास्तव में अत्यन्त दुर्लभ होती है।

हम पहले परमात्मा को दूर देखते हैं फिर समीप देखते हैं फिर अपने में देखते हैं और फिर केवल परमात्मा को ही देखते हैं कर्म योगी परमात्मा को समीप देखता है ज्ञान योगी परमात्मा को अपने में देखता है और भक्त योगी सब जगह परमात्मा को ही देखता है | सब कुछ परमात्मा ही है ऐसा अनुभव करना ही असली शरणागति है अर्थात् केवल शरणय ही रह जाएं शरणागत कोई रहे ही नहीं ! हमारी दृष्टि में संसार की सत्ता है। जैसे खेत में पहले भी गेहूं बोया गया था और अंत में ही गेहूं निकलेगा पर बीच में हरी हरी घास दिखने पर भी वह गेहूं की खेती कहलाती है उसे गाय खा जाए तो किसान कहता है गाय हमारा गेहूं खा गई जबकि गाय ने गेहूं का एक दाना भी नहीं खाया होता। इसी प्रकार सृष्टि के पहले भी परमात्मा थे और अंत में भी परमात्मा ही रहेंगे पर बीच में परमात्मा ने दीखने पर भी सब कुछ परमात्मा ही है जैसे गांव में उत्पन्न खेती भी गेहूं की है ऐसे में परमात्मा से उत्पन्न सृष्टि भी परमात्मा ही है । परमात्मा ने कहीं से मंगा कर सृष्टि नहीं बनायी। परमात्मा खुद ही सृष्टि रूप बन गए सृष्टि भगवान का प्रथम अवतार है। जैसा जिसके भीतर प्यास होती है उसे ही जल दिखता है। प्यास ना हो तो जल सामने रहते हुए दीखता नहीं ऐसे ही अगर आपको परमात्मा को पाने की ललक होती है तभी आपको परमात्मा दिखते हैं। आपके अंदर संसार की प्यास होती है उसे संसार दिखता है। परमात्मा की प्यास हो तो संसार लुप्त हो जाता है और संसार की प्यास हो तो परमात्मा लुप्त हो जाते हैं। तात्पर्य है कि संसार की प्यास होने से संसार ना होते हुए भी मृगमरीचिका की तरह दिखने लग जाता है और परमात्मा की प्यास होने से परमात्मा ना दीखने पर भी दीखने लग जाते हैं परमात्मा की प्यास जागृत करने के लिए हमें भूतकाल का चिन्तन नहीं होता, भविष्य की आशा नहीं रहती और वर्तमान मे उसे प्राप्त किए बिना चैन नहीं पड़ता । इसलिए सब कुछ एक भगवान का ही है। एक भगवान का होने से भगवान अकेले है उनके पास कुछ भी नही है, भगवान का अंश होने के कारण हमारा भी कुछ नही है।इसलिए हम जो भी कर्म करें, जो भी सोचे वह सब भगवान के लिए कर्म करे, भगवान के बारे में सोचें और और फल को भी भगवान के ऊपर समर्पित कर दें फिर हम पाएंगे कि जो कुछ हो रहा है भगवान ही कर रहा है और हम तनावमुक्त होकर कर अपना जीवन जी सकेंगे और हम अकिंचन होकर भगवान के प्रेमी हो जाते है।


शनिवार, 28 जनवरी 2023

बुद्धियोग

 


दूरेण ह्यवरं कर्म बुधियोगाधनन्जय (2.49)


भगवान अर्जुन को कह रहे हैं - कामना के साथ किया गया कार्य निश्चित ही अत्यन्त हीन है उसकी अपेक्षा जो कार्य बुद्धि योग द्वारा मन को नियन्त्रित करके किया जाता है। भगवान सभी को कह रहे हैं बुद्धौ शरणम् अन्विच्छ - बुद्धि की शरण लो। इसी श्लोक को संयुक्त राष्ट्र संघ के एक महासचिव द्वारा सार्वजनिक भाषण में कहा गया। इसके आगे वे कहते हैं कि यदि लोगों ने इस शिक्षा को अपने जीवन व्यवहार में लाया तो यह संसार रहने के लिए एक बेहतर जगह बन जाएगा। वास्तव में बुद्धि योग यानि तर्क, निर्णय और विवेक की क्षमता का विकास है। शरीर में उपस्थित इस उच्च मस्तिष्क प्रणाली का उद्देश्य शरीर के स्वत् संचालित कार्यों को छोड़कर पूरे मानव शरीर का नियन्त्रण और संचालन करना है। हमें तो केवल इस मस्तिष्कीय ऊर्जा का शुद्धिकरण कर, इसे परिष्कृत करना है। अपरिष्कृत मस्तिष्कीय ऊर्जा हमें अशिष्ट चरित्र ही दे सकती हैं जिस प्रकार तेल शोधक कारखानों में हम अपरिष्कृत तेल का शोधन कर उसमें से पैट्रोल, डीजल आदि सुन्दर, उपयोगी वस्तुओं को प्राप्त करते हैं, उसी प्रकार प्रकृति ने एक अद्भुत शोधन कारखाना मनुष्य को अनुभव के रूप में इस मानव प्रणाली के अन्तर्गत दिया है। कच्चा अनुभव लो, उसका शोधन करो और फिर उससे चरित्र की सुन्दर वस्तुऐं जैसे-प्रेम, करूणा, समर्पण, कार्य में दक्षता, शान्ति, सहनशीलता आदि को बाहर By Product के रूप में भेजो। आज सारे संसार में शिक्षा के विचार और व्यवहार में इस अनुभव के शोधन का बहुत कम अंश है। परिणामतः हम ‘फलहेतवः’ बन जाते हैं, अर्थात् अपने लिए फल प्राप्ति की कामना द्वारा संचालित। उस समय हमारे विचारों में सामूहिकता का कोई स्थान नहीं होता है। बुद्धि योग के अभ्यास से हम अपने साथ-साथ दूसरों के कल्याण की भी ईच्छा रख सकते हैं। यह बुद्धि सबसे अधिक आत्मा या ब्रह्म के निकट है। आदि शंकराचार्य जी इसे ‘नेदिष्ठं ब्रह्म-ब्रह्म के निकटतम’ कहते हैं। कठोपनिषद में एक रथ का सुन्दर विधान मिलता है। मानव जीवन परिपूर्णता की यात्रा है। दो प्रकार की यात्राऐं - बाहरी यात्रा, जिसके लिए शरीर रथ है, इन्द्रिय घोड़े हैं, मन लगाम है, बुद्धि सारथी है और आत्मा रथी है। इसी यात्रा के संदर्भ में एक आन्तरिक यात्रा भी है - उच्च आध्यात्मिक चरित्र और उपलब्धियाँ-यह कठोपनिषद के तृतीय अध्याय में (1.3,3) है। बुद्धि पूरी यात्रा की नियंत्रक और निर्देशक है-इसी के पास दूरदृष्टि, Far sight और पूर्वदृष्टि Fore Sight की क्षमता है, इन्द्रियों के पास नहीं, मन के पास बहुत थोड़ी मात्रा में। बुद्धि की इसी क्षमता को बुद्धिमता कहा जाता है। भगवान कृष्ण की भांति भगवान बुद्ध भी कहते हैं - बुद्धं शरणम् गच्छामि - बुद्धि की शरण में जाओ। बुद्धि द्वारा नियंत्रित हो, न कि इन्द्रिय अथवा मन द्वारा। वेदान्त की इस शिक्षा का सार ‘सर जूलियन हक्सले’ के एक वाक्य में मिलता है-”आधुनिक विज्ञान को, अब वह जैसा है अर्थात् प्रकृति की सम्भावनाओं के विज्ञान में से मानवीय संभावनाओं के विज्ञान में विकसित होना चाहिए।“ एक कार्यरत व्यक्ति के रूप में, मेरे मन और हृदय के विकास के लिए और अन्तर्निहित अनन्त सम्भावनाओं को व्यक्त करने के लिए उस कार्य को कैसे उपयोग में लूँ-एक मनुष्य के लिये यही बुद्धि योग की वास्तविक शिक्षा है

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शर्मा जी 9312002527  9560518227

गुरुवार, 26 जनवरी 2023

माघ मास


माघ मास 

माघ मास में जन्मे सुंदर चेहरा ,मनोहर ,नरम  स्वभाव ,अपनी इक्छा अनुसार कार्य करने वाली /वाला दुसरो को अपनी बात पूरी तरह प्रकट ना होने दे |

पंचांग के अनुसार माघ  (चंद्रमास) वर्ष का ग्यारहवां महीना होता है। पौष के बाद माघ माह प्रारंभ होता है। इसका नाम माघ इसलिए रखा गया क्योंकि यह मघा नक्षत्र युक्त पूर्णिमा से प्रारंभ होता है। चंद्रमास के महीने के नाम नक्षत्रों पर ही आधारित है, जैसे पौष का पुष्य नक्षत्र से संबंध है। पुराणों में माघ मास के महात्म्य का वर्णन मिलता है।

पद्म पुराण में माघ मास में कल्पवास के दौरान स्नान, दान और तप के माहात्म्य के विस्तार से वर्णन मिलता है। इसके अलावा माघ में ब्रह्मवैवर्तपुराण की कथा सुनने के महत्व का वर्णन भी मिलता है।

माघ कृष्ण द्वादशी को यम ने तिलों का निर्माण किया और दशरथ ने उन्हें पृथ्वी पर लाकर खेतों में बोया था। अतएव मनुष्यों को उस दिन उपवास रखकर तिलों का दान कर तिलों को ही खाना चाहिए। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा होती है। 

माघ मास में प्रयाग संगम तट पर कल्पवास करने का विधान है। साथ ही माघ मास की अमावास्या को प्रयागराज में स्नान से अनंत पुण्य प्राप्त होते हैं। वह सब पापों से मुक्त होकर स्वर्ग में जाता है क्योंकि ब्रह्मा, विष्णु, महादेव, रुद्र, आदित्य तथा मरूद्गण माघ मास में प्रयागराज के लिए यमुना के संगम पर गमन करते हैं।माघ मास में  स्नान, दान, और जप,तप करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है | भगवान श्रीहरि को उतनी प्रसन्नता नहीं होती, जितनी कि माघ महीने में स्नान मात्र से होती है | माघ मास में पवित्र नदियों में स्नान करने से सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और इच्छाएं भी पूरी होती हैं। प्राचीन पुराणों में यहां तक कहा गया है कि भगवान नारायण को प्राप्त करने के लिए सबसे सुगम रास्ता माघ मास के पुण्य काल में पवित्र नदियों में स्नान करना है।

वैसे तो हर मास का अपना विशेष स्थान है लेकिन माघ मास विशेष पुण्यदायी माना गया है। मान्यता है कि इस महीने किए गए पुण्य कार्यों का फल हमेशा कई जन्मों तक मिलता है। माघ मास के बारे में जो भी व्यक्ति जरूरतमंद की मदद करता है और ब्रह्मावैवर्त पुराण का दान करता है, उसे ब्रह्म लोक की प्राप्ति होती है। 

माघ मास में  हर रोज गीता का पाठ करना चाहिए। ऐसा करने से मन शांत रहता है और नारायण का आशीर्वाद भी मिलता है। ऐसा करने से हमारे अंदर के सभी नकारात्मक प्रभाव दूर होते हैं और इससे भाग्य भी आपका साथ देना शुरू कर देता है। माघ मास में नियमित गीता पाठ से सोचने और समझने की शक्ति में बृद्धि होने लगती है।

विष्णु भगवान को तिल अर्पित करें, तिल से भगवान की पूजा और तिल बोलने मात्र से पाप का प्रभाव तिल-तिल कर क्षय होने लगता है। नियमित तिल खाने और जल में तिल डालकर स्नान करने से भी पुण्य की प्राप्ति होती है।

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सांख्य योग

 


योगस्थः कुरु कर्माणकर्माणि - समत्वं योग उच्यते

भगवद् गीता के दूसरे अध्याय, सांख्य योग के 48वें श्लोक में भगवान अर्जुन को कार्य करते समय मन का दृष्टिकोण कैसा हो, के बारे में बोलते हुए कहते हैं - योग में स्थित होकर अर्जुन, आसक्ति छोड़कर, सफलता व विफलता के प्रति तटस्थ होकर कर्म करो-मन की यह सम स्थिति ही योग है।

योग क्या है - समत्वं योग है - स्थिरता - मन का पूर्ण संतुलन। भगवान ने बुद्धि योग का वर्णन करते हुए कहा ही योगस्थः कुरु कर्माणि - योग में स्थित होकर कर्म करो। आसक्ति रहित, सफलता में प्रसन्नता व विफलता में उदासीनता के भाव से मुक्त रहते हुए, मन का ऐसा संतुलन रख कर कर्म करना चाहिए। महाभारत में ही संजय नामक एक युवा राजकुमार की कथा है जो युद्ध में पराजित होकर उदास व अकर्मण्य हो गया। उसकी माँ विदुला उसे समझाती है - उदास मत हो, सफलता-असफलता समुद्र की लहरों के समान आती जाती रहती हैं आगे वे कहती है - मुहूर्त ज्वलितो श्रेयो न तु धूमायितं चिरं - एक क्षण के लिए प्रज्जवलित होकर प्रकाश देना तुम्हारे लिए अच्छा है, युगों तक धुआँ देते जाओ, इसमें क्या आन्द है। अतः श्री कृष्ण कह रहे हैं - योगस्थः कुरु कर्माणि-चेतना के योग के स्तर से काम करो। हमें अपनी चेतना को योग के स्तर पर ले जाने का अभ्यास करने को कहा है। प्रत्येक कार्य चेतना के स्तर से ही आते हैं - एक अपराधी के कार्य की प्रेरणा का चेतना का स्तर बहुत निम्न होता है, उदार हृदय व्यक्ति के चेतना के स्तर से। योग की स्थिति यानि चेतना के उच्चतम स्तर पर पहुँचना जहाँ मन की स्थिति सम हो यानि संतुलित। प्रत्येक अनुभव मन को एक लहर, छोटी लहर, बड़ी लहर में फेंक देता है - हमें लहर निर्माण को नियंत्रित करने की अपनी सुप्त शक्ति के जागरण का प्रयास करना चाहिए। यदि हम ऐसा नहीं करते तो हम परिस्थितिगत प्राणी हैं - कोई कहे रोओ, तो रोने लगते हैं, कोई कहे हंसो तो हंसने लगे - मानो मेरी काई स्वतंत्रता ही नहीं है, जो मुझे जैसा निर्देशित करे, वैसा मैं करने लग जाता हूँ। मैं मुस्कुराऊँगा जब मैं चाहूँ, न कि जब कोई मुझे निर्देशित करे - यही स्वतंत्रता है। गीता की समस्त शिक्षा मानवीय स्वतंत्रता के इसी सत्य पर आधारित है। शरीर के अन्दर शीतोष्ण संतुलन, Thermostatic Equilibrium की व्यवस्था है, जब कार्य के श्रम से यह संतुलन बिगड़ता है तो यह स्वतः अपने पूर्ववत संतुलन में आ जाता है - यही Homeostatic स्थिति है। इसी शारीरिक होमियोस्टेटिक अवस्था को मानसिक स्तर पर लेकर जाने की आवश्यकता है। प्रसिद्ध फ्रांसिसी शारीरिक विज्ञानी क्लॉड बर्नार्ड ने कहा - ”एक स्थिर आन्तरिक परिवेश स्वतंत्र जीवन की शर्त है।“ कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी के शिक्षक सर जोसेफ बारक्रोफ्ट को उद्धत करते हुए ग्रे-वॉल्टर अपनी पुस्त्क The Living Brain में लिखते हैं - ”कितनी बार मैंने शांत झील में अनगिनत लहरों को देखा है जो एक चलती हुई नौका के कारण बनती हैं - लेकिन झील पूर्णतः शांत होनी चाहिए - एक अशांत परिवेश में जिसमें स्थिरता नहीं है, उसमें उच्च बौद्धिक विकास खोजना वैसे ही है जैसे तूफान ग्रस्त समुद्र की सतह पर छोटी लहरों की परस्पर टकराव से उत्पन्न आकृतियों को देखने का प्रयास करना।“ सभी प्रकार का बौद्धिक विकास, सृजनात्मक विकास और आध्यात्मिक विकास के लिए मानव मन का स्थिरीकरण आवश्यक है - मन का यह स्थिरीकरण ही योग है - जो शांतता और संतुलन पर आधारित है यानि मन के होमियोस्टेसिस का विकास अपने प्रयासों के आधार पर करना चाहिए। हमारी आध्यात्मिक परम्परा में दो शब्दों द्वारा यह आन्तरिक होम्योस्टेसिस अभिव्यक्ति होता है - ‘शम’ और ‘दम’ - शम यानि मन का अनुशासन, दम यानि इन्द्रिय विषयों का अनुशासन। इन दो सद्गुणों के निरन्तर अभ्यास से ही स्थिरता - समत्वं की स्वाभाविक स्थिति आ सकती है। यह समत्वं के योग की स्थिति कोई जादू चमत्कार नहीं है - यह व्यवहारिक है तथा कोई भी इसे शम और दम के अभ्यास से प्राप्त कर सकता है - यह कठिन अवश्य है लेकिन अव्यवहारिक नहीं। भारत में अनेकों ऐसे महान गुरू हुए जिन्होंने अत्मनिर्भरता का यह मार्ग सिखाया - वे कहते हैं-सरल जीवन की तलाश मत करो, कठोर परिश्रम करो। 4-5 वर्ष की आयु के बच्चों में भी थोड़ा-थोड़ा समत्वं का अभ्यास शुरू कराना चाहिए - शम व दम का अभ्यास। एक अमेरिकी लेखक ने कहा - ‘अपना मन किसी और की जेब में रखना सबसे दुर्भाग्यपूर्व है अतः इसे अपनी जेब में रखना सीखीये।’ अतः छोटी आयु से ही मन के इस प्रशिक्षण का अभ्यास शुरू होना चाहिए - यही अनेकों समस्याओं की रामबाण औषधि है।

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मासिक पंचांग-जनवरी -2023

      


मासिक पंचांग-जनवरी-2023 


दिनांक 

भारतीय व्रत उत्सव जनवरी - 2023 

पुत्रदा एकादशी व्रत 

प्रदोष व्रत  

सत्य व्रत,पौष पूर्णिमा,माघ स्नान प्रारम्भ,शाकम्भरी जयंती  

10 

श्री गणेश चतुर्थी व्रत,संकट हरनी चतुर्थी व्रत,चन्द्र उदय 20 - 42  

13 

लोहड़ी 

14  

मकर संक्रांति पुन्य,  

15 

कालाष्टमी 

18  

षटतिला एकादशी व्रत    

19 

सोम  प्रदोष व्रत,

20 

मास शिवरात्रि    

21 

मोनी शनिचरी अमावस्या ,

24 

गौरी तृतीय  

25   

तिल वर्द कुंद चतुर्थी  व्रत  

26 

बसंत पंचमी 

28 

अचला सप्तमी , भीमा अष्टमी  

29 

दुर्गा अष्टमी 



पंचक विचार जनवरी - 2023   

पंचक विचार -(धनिष्ठा नक्षत्र के तृतीय चरण से रेवती नक्षत्र तक) पंचको में दक्षिण दिशा की ओर यात्रा करना मकान दुकान आदि की छत डालना चारपाई पलंग आदि बुनना,दाह संस्कार,बांस की चटाई दीवार प्रारंभ करना आदि स्तंभ रोपण तांबा पीतल तृण काष्ट आदि का संचय करना आदि कार्यों का निषेध माना जाता है समुचित उपाय एवं पंचक शांति करवा कर ही उक्त कार्यों का संपादन करना कल्याणकारी होगा ध्यान रहेगा  पंचर नक्षत्रों का विचार मात्र उपरोक्त विशेष कृतियों के लिए ही किया जाता है विवाह मंडल आरंभ गृह प्रवेश प्रवेश उपनयन आदि मुद्दों से तो पंचक नक्षत्रका प्रयोग शुभ माना जाता है पंचक विचार- दिनांक 23 को 13 - 50 से 27 को 11-46 बजे तक पंचक है | 

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भद्रा विचार जनवरी- 2023  

भद्रा काल का शुभ अशुभ विचार - भद्रा काल में विवाह मुंडन, गृह प्रवेश, रक्षाबंधन आदि मांगलिक कृत्य का निषेध माना जाता है परंतु भद्रा काल में शत्रु का उच्चाटन करना,स्त्री प्रसंग में,यज्ञ करना,स्नान करना,अस्त्र शस्त्र का प्रयोग,ऑपरेशन कराना, मुकदमा करना,अग्नि लगाना,किसी वस्तु को काटना,भैस,घोड़ा व ऊंट संबंधी कार्य प्रशस्त माने जाते हैं सामान्य परिस्थिति में विवाह आदि शुभ मुहूर्त में भद्रा का त्याग करना चाहिए परंतु आवश्यक परिस्थितिवश अति आवश्यक कार्य भूलोक की भद्रा ,भद्रा मुख छोड़कर कर भद्रा पुच्छ में शुभ कार्य कर सकते है |

अधिक जानकारी के लिए संपर्क करे शर्मा जी - 9312002527,9560518227

दिनांक 

शुरू 

दिनांक 

समाप्त 

02

07-48

02

20-23

06

02-14

02

15-25

09

22-54

10

12-09

13

18-17

14

06-50

17

06-42

17

18-05

20

10-00

20

20-08

25

01-58

25

12-34

28

08-43

28

20-54



मूल नक्षत्र विचार जनवरी-2023 



दिनांक

शुरू 

दिनांक

समाप्त 

30

11-24

01

12-48

09

06-05

11

11-49

18

17-22

20

12-40

26

18-56

28

19-05


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सर्वार्थ सिद्धि योग जनवरी-2023

दैनिक जीवन में आने वाले महत्वपूर्ण कार्यों के लिए शीघ्र ही किसी  शुभ मुहूर्त का अभाव हो,किंतु शुभ मुहर्त के लिए अधिक दिनों तक रुका ना जा सकता हो तो इन सुयोग्य वाले मुहर्तु  को सफलता से ग्रहण किया जा सकता है | इन से प्राप्त होने वाले अभीष्ट फल के विषय में संशय नहीं करना चाहिए यह योग हैं सर्वार्थ सिद्धि,अमृत सिद्धि योग एवं रवियोग | योग्यता नाम तथा गुण अनुसार सर्वांगीण सिद्ध कारक  है| 

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दिनांक

प्रारंभ

दिनांक

समाप्त

01 

07-19

01

12-48

03

07-19

03

16-25

04

07-19

05

07-19

07

00-13

07

07-19

08

07-19

09

06-05

10

07-19

10

09-00

18

07-18

18

17-22

22

06-29

22

07-18

26

18-56

28

07-15

30

22-15

31

07-14


सुर्य उदय- सुर्य अस्त जनवरी -2023 


दिनांक

उदय 

दिनांक

अस्त 

07-18

1

17-31

5

07-19

5

17-34

10

07-19

10

17-42

15

07-19

15

17-42

20

07-18

20

17-46

25

07-17

25

17-50

30

07-14

30

17-55

 

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ग्रह स्थिति जनवरी-2023


ग्रह स्थिति -  दिनांक 02 बुध अस्त पश्चिम में , दिनाक 13 मंगल मार्गी , दिनांक 13  बुध उदय पूर्व ,दिनांक 14  सूर्य मकर में ,दिनांक 17 को कुम्भ मीन में , दिनांक 18 बुध मार्गी ,दिनांक 22  शुक्र कुम्भ में दिनांक 31 शनि अस्त | 

चौघड़िया मुहूर्त 

चौघड़िया मुहूर्त देखकर कार्य या यात्रा करना उत्तम होता है। एक तिथि के लिये दिवस और रात्रि के आठ-आठ भाग का एक चौघड़िया निश्चित है। इस प्रकार से 12 घंटे का दिन और 12 घंटे की रात मानें तो प्रत्येक में 90 मिनट यानि 1.30 घण्टे का एक चौघड़िया होता है जो सूर्योदय से प्रारंभ होता है|

राहू काल 

 

 राहुकाल -राहुकाल दक्षिण भारत की देन है,दक्षिण भारत में राहु काल में कृत्य करना अच्छा नहीं माना जाता, राहु काल में शुभ कृतियों में वर्जित करने की परंपरा अब हमारे उत्तरी भारत में भी अपनाने लगे हैं राहुकाल प्रतिदिन सूर्यादि वारों में भिन्न-भिन्न समय पर केवल डेढ़ डेढ़ घंटे के लिए घटित होता है |

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जन्म कुंडली व हस्त रेखा विशेषज्ञ


 

 

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गुरु, ज्ञान और आध्यात्मिक विकास का स्रोत

  गुरु, ज्ञान और आध्यात्मिक विकास का स्रोत सतीश शर्मा  गुरु पूर्णिमा, आषाढ़ मास की पूर्णिमा को मनाई जाती है, और यह दिन गुरुओं के प्रति सम्मा...