बुधवार, 19 अक्टूबर 2022

गड़बड़ कहाँ हुई

 


गड़बड़ कहाँ हुई!

एक बहुत ब्रिलिएंट लड़का था। सारा जीवन फर्स्ट आया। साइंस में हमेशा 100% स्कोर किया। अब ऐसे लड़के सामान्यतया इंजीनियर बनने चले जाते हैं, सो उसका भी सिलेक्शन IIT चेन्नई में हो गया। वहाँ से B.Tech किया और वहाँ से आगे पढ़ने अमेरिका चला गया और यूनिवर्सिटी ऑफ केलिफोर्निया से MBA किया। अब इतना पढ़ने के पश्चात् तो वहाँ अच्छी नौकरी मिल ही जाती है। उसने वहाँ भी हमेशा टॉप ही किया। वहीं नौकरी करने लगा। 5 बेडरूम का घर उसके पास। विवाह यहाँ चेन्नई की ही एक अत्यंत सुन्दर लड़की से हुआ। एक व्यक्ति और क्या मांग सकता है अपने जीवन में ? पढ़-लिख कर इंजीनियर बन गए, अमेरिका में सेटल हो गए, मोटे वेतन की नौकरी, पत्नी-बच्चे, सुख ही सुख। लेकिन दुर्भाग्यवश आज से चार वर्ष पूर्व उसने वहीं अमेरिका में, सपरिवार आत्महत्या कर ली। अपनी पत्नी और बच्चों को गोली मार कर स्वयं को भी गोली मार ली।_

What went wrong? अंततः ऐसा क्या हुआ, गड़बड़ कहाँ हुई ? यह कदम उठाने से पहले उसने अपनी Wife से भली-भाँति Discuss किया, फिर एक लम्बा Suicide Note लिखा और उसमें अपने इस कदम को अच्छी प्रकार से Justify किया और यहाँ तक लिखा कि यही सर्वश्रेष्ठ मार्ग था इन परिस्थितयों में। उनके इस केस को और उस Suicide Note को California Institute of Clinical Psychology ने *"What went wrong ?"* जानने के लिए Study किया।पहले कारण क्या था, Suicide Note से और मित्रों से पता किया। अमेरिका की आर्थिक मंदी में उसकी नौकरी चली गयी। बहुत दिन खाली बैठे रहे। नौकरियाँ ढूंढ़ते रहे। फिर अपना वेतन कम करते गए और फिर भी जब नौकरी न मिली, मकान की किश्त जब टूट गयी, तो सड़क पर आने की परिस्थिति आ गयी। कुछ दिन किसी पेट्रोल पम्प पर तेल भरा बताते हैं। वर्ष भर यह सब सहन किया और फिर पति-पत्नी ने अंत में जाकर आत्महत्या कर ली! इस Case Study को कुछ ऐसे Conclude किया है Experts ने :

This man was programmed for success but he was not trained, how to handle failure.

यह व्यक्ति सफलता के लिए तो तैयार था, पर इसे जीवन में यह नहीं सिखाया गया कि विफलता का सामना कैसे किया जाए।अब उसके जीवन पर प्रारम्भ से दृष्टिपात करते हैं। पढ़ने में प्रतिभाशाली था, हमेशा फर्स्ट ही आया। ऐसे बहुत से Parents को मैं जानता हूँ जो यही चाहते हैं कि बस उनका बच्चा हमेशा फर्स्ट ही आये, कोई गलती न हो उस से। गलती करना तो यूँ मानो कोई बहुत बड़ा पाप कर दिया और इसके लिए वे सब कुछ करते हैं, हमेशा फर्स्ट आने के लिए। फिर ऐसे बच्चे चूँकि पढ़ाकू कुछ अधिक होते हैं सो खेल-कूद, घूमना-फिरना, लड़ाई-झगड़ा, मार-पीट, ऐसे पंगों का अवसर कम मिलता है बेचारों को, 12th करके निकले तो इंजीनियरिंग कॉलेज का बोझ लद गया बेचारों पर, वहाँ से निकले तो MBA और अभी पढ़ ही रहे थे कि मोटे वेतन की नौकरी। अब मोटा वेतन तो बड़ी जिम्मेवारी, यानि बड़े-बड़े Targets।

हतभाग्य यह दुनिया, बड़ी कठोर है और यह जीवन, अलग से परीक्षा लेता है। आपकी कॉलेज की डिग्री और मार्कशीट से कोई अभिप्राय नहीं उसे। वहाँ कितने नंबर लिए कोई अंतर नहीं पड़ता। यह जीवन अपना अलग Question Paper सेट करता है और प्रश्न, सब Out of Syllabus होते हैं, टेढ़े-मेढ़े, ऊट-पटाँग और हरदिन परीक्षा लेता है, कोई Date Sheet नहीं।

एक अंग्रेजी उपन्यास में एक किस्सा पढ़ा था। एक मेमना अपनी माँ से दूर निकल गया। आगे जाकर पहले तो भैंसों के झुण्ड से घिर गया। उनके पैरों तले कुचले जाने से बचा किसी तरह। अभी थोड़ा ही आगे बढ़ा था कि एक सियार उसकी तरफ झपटा। किसी तरह झाड़ियों में घुस कर जान बचाई तो सामने से भेड़िये आते दिखे। बहुत देर वहीं झाड़ियों में दुबका रहा, किसी तरह माँ के पास वापस पहुँचा तो बोला- *"माँ, वहाँ तो बड़ा भयावह जंगल है। Mom, there is a jungle out there."

इस भयावह जंगल में जीवित बचे रहने की ट्रेनिंग बच्चों को अवश्य दीजिये। बच्चों को पढ़ाई के साथ-साथ संस्कार भी देना आवश्यक है, हर परिस्थिति को प्रसन्नता और धैर्य के साथ झेलने की क्षमता और उससे उबरने का ज्ञान और विवेक बच्चों में होना अत्यावश्यक है। बच्चे हमारे हैं, जान से प्यारे हैं।

(साभार।)

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