मंगलवार, 22 मार्च 2022

धारणा



धारणा 

हेलो भाईसाहब टिकट ले लिजिए टिकट.. बस कंडक्टर ने उस आदमी से कहा। उस आदमी ने पीछे मुड़कर देखा और रौबदार आवाज में बोला, मैं टिकट नहीं लेता दुबले-पतले कंडक्टर ने उस 6 फुट लम्बे और बाॅडी बिल्डर आदमी को देखा तो उसकी दुबारा बोलने की हिम्मत ही नहीं हुई । वह चुपचाप आगे बढ़ गया। अगले दिन वह आदमी फिर मिल गया। कंडक्टर ने फिर उससे टिकट के लिए पुछा, मैं कभी टिकट नहीं लेता। फिर वहीं उत्तर मिला । 

अगले दिन वह बस में फिर चढ़ा और फिर उसने टिकट नहीं लिया। अगले कई दिनों तक यहीं सिलसिला चलता रहा। उसके टिकट ना लेने से कंडक्टर के आत्मसम्मान को ठेस पहुंचती लेकिन उसके हट्टे कट्टे शरीर को देखकर उसका आत्मविश्वास कमजोर पड़ जाता.

एक दिन कंडक्टर के भीतर का मर्द जाग उठा, उसने सोचा कि आखिर कब तक इसके डर से नुकसान उठाते रहेंगे। अब तो इज्जत का सवाल है।आखिरकार कंडक्टर ने एक महीने की छुट्टी ले कर अखाड़े में भर्ती हो गया । अखाड़े में उसने खुब मेहनत की खुब पसीने बहाएं। एक महीने बाद फिर वह अपने काम पर वापस आया तो उसकी खुब बाॅडी बन चुकी थी और उसका आत्मविश्वास भी बढ गया था। हां भाई टिकट के पैसे निकालो, कंडक्टर ने सोच लिया था कि आज इससे टिकट ले कर रहूंगा  । मैं टिकट नहीं लेता, फिर वहीं जवाब मिला। अबे ऐसे कैसे नहीं लेगा। कंडक्टर ने रोबदार आवाज में बोला। क्योंकि मैंने एक साल के लिए पास बनवा रखा है।

यह कहते हुए उसने पास निकाल कर बढ़ा दिया। अब तो कंडक्टर की ऐसी स्थिति हो गई जैसे खोदा पहाड़ और निकली चुहिया.

सीख  ऐसा अक्सर हमारे साथ होता है कि हम बिना जाने-समझे सामने वाले के प्रति अपनी राय बना लेते हैं ये अच्छा है वो बुरा है,ये गलत है,वो सही है इस प्रकार से हम मन ही मन कल्पनाओं के पहाड़ खड़े करते रहते हैं मगर जब परिणाम सामने निकलता है तो हमें या तो शर्मिन्दा होना पड़ता है या पछताना पड़ता है इसलिए हमें ऐसी नकारात्मक विचारों दुर रहे।

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