गुरुवार, 10 मार्च 2022

अनमोल विचार

 विचार सागर 


विचार सागर 

 पिता को बुढ़ापा इतना कमजोर नही करता जितना औलाद का रवैया कमजोर कर देता है ।

 अकड़ और अभियान एक मानसिक बीमारी है जिसका इलाज कुदरत और समय जरूर करता है ।

 ज्यादातर चिंतायें वास्तव में आधारहीन और मन की उपज होती है जो कभी जन्म ही नहीं लेती ।

 इंसानियत एक बहुत बडा खजाना है, उसे लिबास में नहीं इंसान में तलाश करो ।

 किसी भी इंसान के सामने जितनी बडी समस्या होगी, उसकी उतनी बडी सफलता होगी।

प्रभात-पुष्पम् 


_भिन्नभाण्डं च खट्वां च कुक्कुटं शुनकं तथा।_

_अप्रशस्तानि सर्वाणि यश्च वृक्षो गृहेरुह:॥_

_भिन्नभाण्डे कलिं प्राहु: खट्वायां च धनक्षय:।_

_कुक्कुटे शुनके चैव हवि: नाश्नन्ति देवताः॥_

_वृक्षमूले ध्रुवं सत्यं तस्माद् वृक्षं न रोपयेत्॥_

(महाभारत)


भावार्थ: घर में टूटे-फूटे बर्तन, टूटी हुई खाट, मुर्गा, कुत्ता और पीपल आदि वृक्ष का होना अच्छा नहीं माना जाता है। टूटे-फूटे बर्तन में कलियुग का वास माना जाता है और टूटी हुई खाट से धनहानि कही जाती है। मुर्गा और कुत्ता घर में रहने पर देवता उस घर में हविष्य ग्रहण नहीं करते तथा मकान के अन्दर कोई बड़ा वृक्ष (पीपल आदि) होने पर उसकी जड़ के भीतर सर्प आदि जंतुओं के रहने का स्थान बन जाता है। अतः घर के अन्दर उपरोक्त स्थिति उत्पन्न नहीं होने देनी चाहिए।


एक बार एक गुरुजी ने अपने सभी शिष्यों से अनुरोध किया कि कल की कथा-प्रवचन में आते समय अपने साथ एक थैली में बड़े-बड़े आलू लेकर आएं। उन आलुओं पर उस व्यक्ति का नाम लिखा होना चाहिए, जिनसे वे ईर्ष्या करते हैं। जो शिष्य जितने व्यक्तियों से ईर्ष्या करता है, वह उतने आलू लेकर आयेगा।


अगले दिन सभी शिष्य आलू लेकर आए। किसी के पास चार आलू थे तो किसी के पास छह। गुरु ने कहा कि अगले सात दिनों तक ये आलू वे अपने साथ रखें। जहां भी जाएं, खाते-पीते, सोते-जागते, ये आलू सदैव साथ रहने चाहिए। 


शिष्यों को कुछ समझ में नहीं आया, लेकिन वे क्या करते। गुरुजी का आदेश था। दो-चार दिनों के बाद ही शिष्य आलुओं की बदबू से परेशान हो गए। जैसे-तैसे उन्होंने सात दिन बिताए और गुरु के पास पहुंचे।


गुरु ने कहा, "यह सब मैंने आपको शिक्षा देने के लिए किया था। जब मात्र सात दिनों में आपको ये आलू बोझ लगने लगे, तब सोचिए कि आप जिन व्यक्तियों से ईर्ष्या करते हैं, उनका कितना बोझ आपके मन पर रहता होगा। यह ईर्ष्या आपके मन पर अनावश्यक बोझ डालती है, जिसके कारण आपके मन में भी बदबू भर जाती है, ठीक इन आलूओं की तरह। इसलिए अपने मन से गलत भावनाओं को निकाल दें। यदि आप किसी से प्यार नहीं कर सकते तो कम से कम नफरत तो ना करें। इससे आपका मन स्वच्छ और हल्का रहेगा।"


यह सुनकर सभी शिष्यों ने आलुओं के साथ-साथ अपने मन से ईर्ष्या को भी निकाल फेंका।

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