गुरुवार, 27 जनवरी 2022

महंगी पडी आपसी फूट


*दो चोंच का एक पक्षी था भरूड उसकी दोनों चोंच में मन मुटाव हो गया दोनों अलग अलग स्वादानुसार खाना चहाते थे एक ने,,,पूरा पढे*

 महंगी पड़ी आपसी फूट


प्राचीन समय में एक विचित्र पक्षी रहता था। उसका धड़ एक ही था, परंतु सिर दो थे। नाम था उसका भारुंड। एक शरीर होने के बावजूद उसके सिरों में एकता नहीं थी और न ही था तालमेल।

वे एक-दूसरे से बैर रखते थे। हर जीव सोचने-समझने का काम दिमाग से करता है और दिमाग होता है सिर में। दो सिर होने के कारण भारुंड के दिमाग भी दो थे, जिनमें से एक पूरब जाने की सोचता, तो दूसरा पश्चिम। फल यह होता था कि टांगें एक कदम पूरब की ओर चलतीं, तो अगला कदम पश्चिम की ओर। और भारुंड स्वयं को वहीं खड़ा पाता था। भारुंड का जीवन बस दो सिरों के बीच रस्साकसी बनकर रह गया था। एक दिन भारुंड भोजन की तलाश में नदी तट पर घूम रहा था कि एक सिर को नीचे गिरा एक फल नजर आया। उसने चोंच मारकर उसे चखकर देखा तो जीभ चटकाने लगा- 'वाह! ऐसा स्वादिष्ट फल तो मैंने आज तक कभी नहीं खाया। भगवान ने दुनिया में क्या-क्या चीजें बनाई हैं।'अच्छा! जरा मैं भी चखकर देखूं।' कहकर दूसरे ने अपनी चोंच उस फल की ओर बढ़ाई ही थी कि पहले सिर ने झटककर दूसरे सिर को दूर फेंका और बोला, 'अपनी गंदी चोंच इस फल से दूर ही रख। यह फल मैंने पाया है और इसे मैं ही खाऊंगा।' अरे! हम दोनों एक ही शरीर के भाग हैं। खाने-पीने की चीजें तो हमें बांटकर ही खानी चाहिए।' दूसरे सिर ने दलील दी।पहला सिर कहने लगा, 'ठीक! हम एक शरीर के भाग हैं। पेट हमारे एक ही हैं। मैं इस फल को खाऊंगा तो वह पेट में ही तो जाएगा और पेट तेरा भी है। दूसरा सिर बोला, 'खाने का मतलब केवल पेट भरना ही नहीं होता भाई। जीभ का स्वाद भी तो कोई चीज है। तबीयत को संतुष्टि तो जीभ से ही मिलती है। खाने का असली मजा तो मुंह में ही है।'पहला सिर तुनककर चिढ़ाने वाले स्वर में बोला, 'मैंने तेरी जीभ और खाने के मजे का ठेका थोड़े ही ले रखा है। फल खाने के बाद पेट से डकार आएगी। वह डकार तेरे मुंह से भी निकलेगी। उसी से गुजारा चला लेना। अब ज्यादा बकवास न कर और मुझे शांति से फल खाने दे।' ऐसा कहकर पहला सिर चटकारे ले-लेकर फल खाने लगा। इस घटना के बाद दूसरे सिर ने बदला लेने की ठान ली और मौके की तलाश में रहने लगा। कुछ दिन बाद फिर भारुंड भोजन की तलाश में घूम रहा था कि दूसरे सिर की नजर एक फल पर पड़ी। उसे जिस चीज की तलाश थी, उसे वह मिल गई थी। दूसरा सिर उस फल पर चोंच मारने ही जा रहा था कि पहले सिर ने चीखकर चेतावनी दी, 'अरे, अरे! इस फल को मत खाना। क्या तुझे पता नहीं कि यह विषैला फल है? इसे खाने पर मॄत्यु भी हो सकती है। दूसरा सिर हंसा, 'हे हे हे! तू चुपचाप अपना काम देख। तुझे क्या लेना-देना है कि मैं क्या खा रहा हूं? भूल गया उस दिन की बात? पहले सिर ने समझाने की कोशिश की, 'तूने यह फल खा लिया तो हम दोनों मर जाएंगे। दूसरा सिर तो बदला लेने पर उतारू था। बोला, 'मैंने तेरे मरने-जीने का ठेका थोड़े ही ले रखा है? मैं जो खाना चाहता हूं, वह खाऊंगा चाहे उसका नतीजा कुछ भी हो। अब मुझे शांति से विषैला फल खाने दे।'दूसरे सिर ने सारा विषैला फल खा लिया और भारुंड तड़प-तड़पकर मर गया।

आपस की फूट सदा ले डूबती हैं। 

रविवार, 23 जनवरी 2022

आयुर्वेद में इलायची



इलायची

इलायची औषधीय रूप से अति महत्त्वपूर्ण है | यह दो प्रकार की होती है – छोटी व बड़ी |
छोटी इलायची : यह सुंगधित, जठराग्निवर्धक, शीतल, मूत्रल, वातहर, उत्तेजक व पाचक होती है | इसका प्रयोग खाँसी, अजीर्ण, अतिसार, बवासीर, पेटदर्द, श्वास ( दमा ) तथा दाहयुक्त तकलीफों में किया जाता है |
औषधीय प्रयोग
अधिक केले खाने से हुई बदहजमी एक इलायची खाने से दूर हो जाती है |
धूप में जाते समय तथा यात्रा में जी मचलाने पर एक इलायची मुँह में डाल दें |
1 कप पानी में 1 ग्राम इलायची चूर्ण डालके 5 मिनट तक उबालें | इसे छानकर एक चम्मच शक्कर मिलायें | 2 – 2 चम्मच यह पानी 2 – 2 घंटे के अंतर लेने से जी – मचलाना, उबकाई आना, उल्टी आदि में लाभ होता है |
छिलके सहित छोटी इलायची तथा मिश्री समान मात्रा में मिलाकर चूर्ण बनालें | चुटकीभर चूर्ण को 1 -1 घंटे के अंतर से चूसने से सूखी खाँसी में लाभ होता है | कफ पिघलकर निकल जाता है |
रात को भिगोये 2 बादाम सुबह छिलके उतारकर घिसलें | इसमें 1 ग्राम इलायची चूर्ण, आधा ग्राम जावित्री चूर्ण, 1 चम्मच मक्खन तथा आधा चम्मच मिश्री मिलाकर खाली पेट खाने से वीर्य पुष्ट व गाढ़ा होता है |
आधा से 1 ग्राम इलायची चूर्ण का आँवले के रस या चूर्ण के साथ सेवन करने से पेशाब और हाथ-पैरों की जलन दूर होती है |
आधा ग्राम इलायची दाने का चूर्ण और 1-2 ग्राम पीपरामूल चूर्ण को घी के साथ रोज सुबह चाटने से ह्रदयरोग में लाभ होता है |
छिलके सहित 1 इलायची को आग में जलाकर राख कर लें | इस राख को शहद मिलाकर चाटने से उलटी में लाभ होता है |
1 ग्राम इलायची दाने का चूर्ण दूध के साथ लेने से पेशाब खुलकर आती है एवं मूत्रमार्ग की जलन शांत होती है |
सावधानी : रात को इलायची न खायें, इससे खट्टी डकारें आती है | इसके अधिक सेवन से गर्भपात होने की भी सम्भावना रहती है |

बुधवार, 19 जनवरी 2022

उपहार

 

उपहार

      

मैं सुचित्रा, आज मेरा जन्मदिन है।सचिन ने सुबह ही कहा :- "आज कुछ बनाना नहीं। दोपहर के खाने के लिए हम बाहर चलेंगे। तुम्हारे जन्मदिन पर आज तुम्हें एक अनोखी दावत मिलेगी।"

15 साल हो गए हमारी शादी को। मैं सचिन को बहुत अच्छे से जानती हूँ। दोनों बच्चे शाम 4 बजे स्कूल से लौटेंगे यानी लंच पर मैं और सचिन ही जाएँगे और बच्चों के आने से पहले लौट भी आएँगे। एक नए बने मॉल की पार्किंग में हमारी गाड़ी पहुँची। 5 वीं मंजिल पर खाने पीने के ढेरों स्टॉल्स थे अतः एक बंद द्वार पर हम पहुँचे। द्वार पर एक बोर्ड लगा था, जिसपर लिखा था : “Dialogue in the dark”

मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ। "अंधेरे में संवाद" ? ये कैसा नाम है, रेस्टॉरेंट का ? बड़ा विचित्र लग रहा था सब कुछ। अगले मोड़ के बाद इतना अंधेरा हो गया कि, मैंने सचिन का हाथ पकड़ लिया और फिर शायद हम एक हॉल में पहुँचे। एक सूटबूट धारी आदमी ने किसी को आवाज लगाई :- "संपत।"

“ये आज के हमारे विशेष अतिथि हैं। आज दीदी का जन्मदिन है। ऑर्डर मैंने ले लिया है, तुम इन्हें इनकी टेबल पर लेकर जाओ। अब उस दूसरे आदमी संपत ने हमारे हाथ थामे और हमें टेबल पर पहुँचाया। हम बैठ गए। मैंने सामने टेबल पर हाथ फिराया। जब टेबल ही नहीं दिख रहा तो खाना कैसे दिखेगा ? हम खाना कैसे खाएँगे ?  ये कैसा जन्मदिन का उपहार है ? ऐसे न जाने कितने प्रश्न मेरे दिमाग में घुमड़ रहे थे। लेकिन मुझे सचिन पर भरोसा था फिर टेबल पर प्लेट्स आदि सजाए जाने की आवाजें आने लगीं। वेटर्स का आना जाना समझ में आ रहा था। फिर वो प्लेट्स में खाना सर्व करने लगा। "मैंने परोस दिया है। अब आप लोग शुरू कीजिए। आपको कुछ दिखेगा नहीं लेकिन मुझे विश्वास है कि, स्पर्श और खुशबू से आपको खाने में एक अलग ही आनंद प्राप्त होगा।" उस घनघोर अंधेरे में मैंने रोटी तोड़ी, प्लेट में रखी सब्जी को लपेटा और पहला निवाला लिया। उल्टे हाथ से मैंने प्लेट पकड़ी हुई थी अतः प्रत्येक पदार्थ की जगह सीधे हाथ के स्पर्श से मुझे ज्ञात हो रही थी।

और फिर, आहा... अंधेरे में भी  खाने के पदार्थ तो अपने स्वाद का मजा दे ही रहे थे लेकिन साथ ही  मैं पूछ रही थी और ऐसे ही सचिन मुझसे पूछता जा रहा, खुशबू, स्पर्श और आवाज बस यही काम कर रहे थे। बीच बीच में संपत, सब्जियाँ या अन्य कुछ और परोस देता

मेरा जन्मदिन, अंधेरे में लंच, एक अनोखा आनंद दे गया कैंडल लाइट डिनर से भी अधिक आनंददायक रहा। "आप जब, बाहर जाना चाहें तो बताइएगा। मैं आपको बाहर छोड़ आऊँगा।" ---संपत ने कहा। तो सचिन बोल पड़ा : "हाँ.... हाँ.... अब चलो। बिल भी तो बाहर ही देना है। चलो संपत, ले चलो हमें।"

फिर संपत ने हम दोनों के हाथ थामे और हमें बाहर को ले चला। अंधेरे हॉल से बाहर निकल हम दो मोड़ों के बाद प्रकाश दिखने लगा और हम संपत का हाथ छोड़ उसके पीछे चलते रहे। उसका आभार मानने के लिए मैंने उसे आवाज लगाई तो संपत पलटा और मेरी ओर देखने लगा। तब कमरे के प्रकाश में मैंने संपत का चेहरा देखा और *मेरे मुँह से हल्की चीख निकल गई क्योंकि, संपत की आँखों की जगह दो अंधेरे गढ्ढे नजर आ रहे थे। वो पूर्ण रूप से अँधा था।* संपत बोला :- "जी दीदी ?" मैं समझ नहीं पा रही थी कि, क्या कहूँ ? फिर मैंने कहा :- "संपत, अपनी ऐसी हालत में भी तुमने, हमारी खूब सेवा, इतनी बढ़िया खातिरदारी की। मैं ये बात सारी जिंदगी नहीं भूलूँगी।"संपत :- "मैडम, आपने जिस अंधेरे को आज अनुभव किया है वो तो हमारा रोज का ही है। लेकिन हमने उसपर विजय पा ली है। We are not disabled, we are differently able people. We can lead our life without any problem with all joy and happiness as you enjoy.”*

 बिना किसी की सहानुभूति के मोहताज एक सशक्त व्यक्ति से आज सचिन ने मुझे मिलवाया। ऐसा जन्मदिन मुझे कभी नहीं भूलेगा। सचिन बिल देकर मेरे पास आया हमेशा सचिन को उसकी फिजूलखर्ची के चिल्लाने वाली मैंने, बिल को देखा तो मेरी नजर बिल पर सबसे नीचे लिखे प्रिंटेड शब्दों पर ठहर गई |

लिखा था : We do not accept tips, Please think of donating your eyes, which will bring light to somebody’s life.*

(हम टिप्स स्वीकार नहीं करते। कृपया अपने नेत्रदान के बारे में सोचें, जो किसी के जीवन में रोशनी ले आएगा।)


 नेत्रदान महादान

मंगलवार, 18 जनवरी 2022

रिश्तों की स्टेपनी

 


रिश्तों की स्टेपनी 

कुछ साल पहले जब मैंने पहली बार बीएमडब्लू कार खरीदी थी, तब मुझे पता चला था कि इसमें स्टेपनी नहीं होती।

स्टेपनी नहीं होती? मतलब?

मतलब इसकी डिक्की में वो अतिरिक्त पहिया नहीं होता, जो आम तौर पर सभी गाड़ियों में होता है। और इसके पीछे तर्क ये था कि इस गाड़ी में रन फ्लैट टायर लगे होते हैं।

रन फ्लैट टायर का मतलब ऐसे टायर, जो पंचर हो जाने के बाद भी कुछ दूर चल सकते हैं। 

भारत में जब बीएमडब्लू गाड़ियां लांच हुई थीं, तब कंपनी के लोगों ने यहां की सड़कों का ठीक से अध्ययन नहीं किया था। यूरोप और अमेरिका में ये गाड़ियां सफलता पूर्वक चल रही थीं, तो उसकी वज़ह ये थी कि वहां सड़कें काफी अच्छी होती हैं, और दूसरी बात ये कि जगह-जगह कंपनी के सर्विस सेंटर भी होते हैं।

मैंने जब बीएमडब्लू कार खरीदी, तो मुझे बताया गया कि इसमें एक्स्ट्रा टायर की न ज़रूरत है, न जगह। 

अब स्टेपनी नहीं होने का अर्थ ये तो नहीं था कि गाड़ी पंचर ही नहीं होगी। एक दिन गाड़ी पंचर हो गई। मैं गाड़ी चलाता रहा। कायदे से ये टायर पंचर होने के बाद पचास किलोमीटर तक चल सकते हैं, पर पचास किलोमीटर की दूरी पर बीएमडब्लू का सर्विस स्टेशन होना चाहिए। मेरी गाड़ी पंचर हुई, दिल्ली-जयपुर के रास्ते पर। मैं गाड़ी घसीटता रहा, आख़िर में टायर पूरी तरह फट गया। रास्ते मे किसी टायर वाले के पास मेरी गाड़ी का इलाज़ तब नहीं था। मैं उस समस्या से कैसे निकला, ये कभी बताऊंगा, पर आज तो यही कि मैंने कंपनी में शिकायत की, तो कंपनी ने कहा कि मुझे एक ‘डोनट’ टायर गाड़ी में रखना चाहिए।

अब डोनट टायर क्या होते हैं?

अमेरिका में खाई जाने वाली एक मिठाई को डोनट कहते हैं। आटे और चीनी की यह गोल सी मिठाई होती है। अगर जलेबी उलझी हुई न हो, सिर्फ गोल हो, तो वो भी डोनट की तरह दिखेगी। 

भारत में कारोबार कर रही बीएमडब्लू कंपनी यह समझ चुकी थी कि यहां की सड़कों पर बिना एक्स्ट्रा टायर के गाड़ी नहीं चल सकती, तो उन्होंने एक पतले से टायर को डोनट टायर के नाम पर बेचना शुरू कर दिया था। 

यह एक तरह से मोटर साइकिल के टायर जैसा एक टायर होता है, जिसे इमरजंसी में आप पंचर पहिए की जगह लगा कर कुछ किलोमीटर की दूरी धीरे-धीरे तय कर सकते हैं। कुछ किलोमीटर यानी कुछ ही किलोमीटर। इसे लगा कर आप न गाड़ी फर्राटे से चला सकते हैं, न बहुत दूर जा सकते हैं। 

मैंने डोनट टायर भी खरीद लिया। गाड़ी में उसे रखने की जगह नहीं थी, पर मैंने किसी तरह पीछे रख लिया।

हाय रे मेरी किस्मत!! 

एक बार मथुरा जाते हुए मेरी गाड़ी फिर पंचर हो गई। मैंने बहुत मशक्कत से पंचर पहिया की जगह डोनट टायर लगा दिया। डोनट टायर की मदद से मैं मथुरा तो पहुंच गया, पर वहां कहीं बीएमडब्लू का सर्विस सेंटर नहीं मिला। अब रन फ्लैट टायर का क्या करूं? डोनट टायर से वहां पहुंच तो गया, पर वापसी कैसे हो?

उस दिन भी मैं भारी मुश्किल में पड़ा। रन फ्लैट टायर हर जगह मिलते नहीं थे, उनकी मरम्मत भी हर जगह तब नहीं हुआ करती थी। ऐसे में गाड़ी तो थी, पर चल नहीं सकती थी। 

टायर और गाड़ी की पूरी कहानी फिर कभी सुनाऊंगा। आज तो इतना ही कि मैं उस गाड़ी से इतना परेशान हो गया था कि मैंने गाड़ी ही बदल दी। 

खैर, आज मुझे उस बारे में बात नहीं करनी। 

आज तो मैं आपसे रिश्तों की स्टेपनी की बात करने जा रहा हूं।

कल ही मुझे पता चला कि मेरी एक परिचित, जो दिल्ली में अकेली रहती हैं, उनकी तबियत ख़राब है। मैं उनसे मिलने उनके घर गया। 

वो कमरे में अकेली बिस्तर पर पड़ी थीं। घर में एक नौकरानी थी, जो आराम से ड्राइंग रूम में टीवी देख रही थी। मैंने दरवाजे की घंटी बजाई, तो नौकरानी ने दरवाज़ा खोला और बड़े अनमने ढंग से उसने मेरा स्वागत किया। ऐसा लगा जैसे मैंने नौकरानी के आराम में खलल डाल दी हो। 

मैं परिचित के कमरे में गया, तो वो लेटी थीं, काफी कमज़ोर और टूटी हुई सी नज़र आ रही थीं। 

मुझे देख कर उन्होंने उठ कर बैठने की कोशिश कीं। मैंने सहारा देकर उन्हें बिस्तर पर बिठाया। 

मेरी परिचित चुपचाप मेरी ओर देखती रहीं, फिर मैंने पूछा कि क्या हुआ? 

परिचित मेरे इतना पूछने पर बिलख पड़ीं। कहने लगीं, “बेटा अब ज़िंदगी में अकेलापन बहुत सताता है। कोई मुझसे मिलने भी नहीं आता।” इतना कह कर वो रोने लगीं। कहने लगीं, “ बेटा, मौत भी नहीं आती। अकेले पड़े-पड़े थक गई हूं। पूरी ज़िंदगी व्यर्थ लगने लगी है।”

मुझे याद आ रहा था कि इनके पति एक ऊंचे सरकारी अधिकारी थे। जब तक वो रहे, इनकी ज़िंदगी की गाड़ी बीएमडब्लू के रन फ्लैट टायर पर पूरे रफ्तार से दौड़ती रही। इन्होंने कई मकानों, दुकानों, शेयरों में निवेश किया, लेकिन रिश्तों में नहीं किया। तब इन्हें लगता था कि ज़िंदगी मकान, दुकान और शेयर से चल जाएगी। इन्होंने घर आने वाले रिश्तेदारों को बड़ी हिकारत भरी निगाहों से देखा। इन्हें यकीन था कि ज़िंदगी की डिक्की में रिश्तों की स्टेपनी की ज़रूरत नहीं। एक बेटा था और तमाम बड़े लोगों के बेटों की तरह वो भी अंग्रेजी स्कूलों में पढ़ता हुआ अमेरिका चला गया। एक दिन पति संसार से चले गए, मेरी परिचित अकेली रह गईं। 

ज्यादा विस्तार में क्या जाऊं, इतना ही बता दूं कि ये यहां पिछले कई वर्षों से अकेली रहती हैं। 

क्योंकि इन्होंने अपने घर में रिश्तों की स्टेपनी की जगह ही नहीं रखी थी, तो इनसे मिलने भी कोई नहीं आता। अब गाड़ी है, तो पंचर तो हो ही सकती है। तो एक दिन इन्होंने नौकरानी रूपी डोनट स्टेपनी देखभाल के लिए रख ली। 

कल जब मैं अपनी परिचित के घर गया, तो रिश्तों की वो डोनट स्टेपनी ड्राइंग रूम में टीवी देख रही थी। मेरी परिचित अपने कमरे में बिस्तर पर कुछ ऐसे लेटी पड़ी थीं जैसे मथुरा में अपनी गाड़ी के पंचर हो जाने के बाद जब तक कंपनी से कोई गाड़ी उठाने नहीं आया, मैं पड़ा था।

*** 

गाड़ी सस्ती हो या महंगी उसमें अतिरिक्त टायर का होना ज़रुरी है। स्टेपनी के बिना कितनी भी बड़ी और महंगी गाड़ी हो, पंचर हो गई, तो किसी काम की नहीं रहती। 

ज़िंदगी में चाहे सब कुछ हो, अगर आपके पास सुख-दुख के लिए रिश्ते नहीं, तो आपने जितनी भी हसीन ज़िंदगी गुजारी हो, एक दिन वो व्यर्थ नज़र आने लगेगी। 

उठिए, आज ही अपनी गाड़ी की डिक्की में झांकिए कि वहां स्टेपनी है या नहीं। है तो उसमें हवा ठीक है या कम हो गई है। 

उठिए और आज ही अपनी ज़िंदगी की डिक्की में भी झांकिए कि उसमें रिश्तों की स्टेपनी है या नहीं। है तो उसमें मुहब्बत बची है या कम हो गई है। 

ध्यान रहे, डोनट टायर के भरोसे कार कुछ किलोमीटर की ही दूरी कर पाती है, पूरा सफर तय करने के लिए तो पूरे पहिए की ही ज़रूरत होती है। पुन:-

अमेरिका और यूरोप में सड़कें अच्छी हैं, तो वहां शायद रन फ्लैट टायर वाली गाड़ियां साथ निभा भी जाती हैं। 

वहां सरकार आम आदमी को सामाजिक सुरक्षा देती है, तो आदमी तन्हा भी किसी तरह जी लेता है। 

लेकिन हमारे यहां न सड़कें अच्छी हैं, न कोई सामाजिक सुरक्षा है। ऐसे में हमें गाड़ी के पीछे पूरा टायर भी चाहिए और ज़िंदगी के पीछे पूरे रिश्ते भी। जो चूका, समझिए वो चूक ही गया।

सतीश शर्मा जी द्वारा संकलित। 

पोपट का टाईम पास

 पोपट का टाईम पास  



पोपट काका सरकारी ऑफिस से रिटायर हो चुके थे। रिटायर हो कर भी अच्छे खासे दो साल हो गए थे, पोपटकाका को न फ़िल्म-टीवी देखने में रुचि न अखबार-किताबे पढ़ने में रुचि, इसलिए रिटायरमेंट के बाद पोपटलाल टाइम पास कैसे करता है, ये एक बड़ा पेचीदा सवाल उनके दोस्त के सामने खडा हुआ पड़ा था।

अबे पोपट, तुझे न कोई शौक, न पढ़ने की आदत न फ़िल्म टीवी में रुचि, ना ही ध्यान अध्यात्म में लगाव, रिटायरमेंट के बाद आखिर टाइम पास करता कैसे है रे तू?"

पोपटलाल को अपने दोस्त के चीठेपन और खोदखोद कर गहराई में जाकर बेमतलब पूछताछ करने की आदत अच्छे से पता थी। इसके दिमाग का कीड़ा, शंका का समाधान होने तक शांत नही होगा और तब तक ये अपने को चैन से जीने नहीं देगा, यह भी उनको पता था।

बताता हूँ... कल की ही बात है, पोपटलाल ने शंका निवारण करना आरंभ किया, "मैं और श्रीमतीजी गए थे बाजार में, अशरफीलाल ज्वेलर्स के शोरूम पर। अंदर जा कर केवल पांच ही मिनट में बाहर आ गए। बाहर आकर देखते हैं तो क्या? दुकान के सामने पार्क की हुई कार के पास ट्रैफिक पुलिस का सिपाही खड़ा हुआ था, हाथ में चालान बनाने के लिए रसीद बुक लिए।

हम दोनों थोड़ा घबरा गए, उसके पास जाकर विनती करने लगे-"भैया, मुश्किल से पांच मिनट के लिए ही शोरूम में गए थे, छोड़ दो ना भाई इस बार!"

तो वह कहने लगा, "सभी लोग हर बार ऐसा ही बोलते हैं। खुद की गलती मानता ही नहीं कोई। एक बार हजार रुपये की रसीद कटेगी, तब ही अगली बार गलती नहीं होगी।"

"ऐसा नहीं है, हम मानते हैं हमसे गलती हुई है। आगे से ऐसा नहीं होगा, और हजार रुपये भी बहुत ज्यादा होते हैं। हम तो रिटायर्ड कर्मचारी हैं, हमारे सफेद बालों की ओर तो देख लो।"

"लाखों की गाड़ी चला रहे हो, बड़े-बड़े शोरूम पर खरीददारी कर रहे हो, कानून तोड़ते हो, फिर भी हजार रुपये आपको ज्यादा लग रहे हैं? चलिए, बुजुर्ग होने के नाते इस बार सिर्फ दो सौ रुपये लेकर छोड़ देता हूँ !"

" 'उन दो सौ रुपयों की रसीद मिलेगी?' मैंने मासूमियत से पूछ लिया!" -पोपटकाका बता रहे थे। तभी हवलदार मेरे ऊपर भिनक गया।

"ओ काका जी, रसीद चाहिए तो हजार की ही बनेगी, दो सौ की कोई रसीद-वसीद नहीं मिलेगी।"

"ऐसे कैसे? पैसे देने पर रसीद नहीं दोगे क्या? नियम कायदे से होना चाहिए के नहीं सब कुछ? सीधे-सीधे बोलो ना कि तुमको रिश्वत चाहिए।"

मेरे यह बोलते ही वो और भड़क गया और मेरी बात पकड़ कर ही बैठ गया।

"अच्छा? ये बात है? नियम-कायदे से चाहते हो सब कुछ? फिर तो हो जाये। मैं सोच रहा था, बुजुर्ग लोग हैं, थोड़ा सबूरी से काम लेते हैं, तो आप उल्टे मुझे ही कायदे और अकल सिखाने चल पड़े हो। चलिए, अब तो सारे नियम कायदे बताता हूँ।" हवलदार ने अब रौद्ररूप धारण कर लिया।अब वह हाथ धोकर गाड़ी के पीछे पड़ गया। एक मिरर टूटा हुआ है, पीछे वाली नम्बर प्लेट सही नहीं है, puc अपडेट नहीं है... करते-करते मामला तीन चार हजार तक पहुंच गया।ये तो काफी बढ़ता ही जा रहा था, यह देख कर मैंने पत्नी से कहा- "जरा तुम बोल कर देखो, शायद तुम्हारी बात मान जाए।वह हवलदार से कहने लगी, "बेटा, ऐसे गुस्सा मत हो। इनकी बात का बुरा मत मानो। छोड़ भी दो। इनकी ओर तुम ध्यान मत दो, ये लो दो सौ रुपये पकड़ो।"

लेकिन वह हवलदार कुछ भी सुनने को राजी नहीं था।

"मुझे नहीं चाहिए आपके दो सौ रुपये। अब तो रसीद ही कटेगी।"

अगले आठ-दस मिनट यही सब चलता रहा। वह उसे समझाने की कोशिश करती रही और वो दिलजला सिपाही रसीद फाड़े बिना मानने को तैयार नहीं था।" पोपट काका बताते जा रहे थे।

"अरे बाप रे! दो सौ रुपये बचाने के चक्कर में इतनी बात बढ़ गई? फिर क्या किया आप लोगो ने?- दोस्त ने सवाल किया।

"कुछ नहीं! तभी हमारी बस आ गई, उसमें सवार हो कर घर लौट आए।"

"ऐं? फिर गाड़ी? वो चालान और रसीद का क्या हुआ? और वो हवलदार?" दोस्त को कुछ समझ नहीं आ रहा था।

"वो गाड़ी वाला जाने और हवलदार जाने, हमें क्या? गाड़ी हमारी थी ही नहीं, हम तो बस से गए थे।तुम अभी पूछ रहे थे ना ? टाइमपास कैसे करते हो, वही बता रहा था।हम बस में चढ़े तब उस हवलदार का चेहरा देखने लायक था, जैसे इस समय तुम्हारा चेहरा देखने लायक हो गया है, बिल्कुल वैसा ही।"

पोपट काका निर्विकार रूप से बोले और टाइमपास के लिए नया कस्टमर खोजने निकल पड़े।

कभी दूसरे की ज़िन्दगी में झांककर समय बर्बाद मत कीजिए अपना समय खुद की तरक़्क़ी के लिए इस्तेमाल कीजिए आप की तरक़्क़ी होगी दूसरे आप की बदनामी नहीं कर पाएँगे ।


              

जानकी मा का भोजन

 


भगवान् राम जब रावण को मारकर अयोध्या आयें और रामजी का राजतिलक हो गया, माता जानकीजी की ब्राह्मणों में बड़ी श्रद्धा है, अपने हाथ से ब्राह्मणों के लिये भोजन बनाती है, माता सिताजी से एक दिन रामजी से उदास होकर बोले- प्रभु क्या बताऊँ? बड़े प्रेम से भोजन प्रसादी बनाती हूँ लेकिन जो भी ब्राह्मण देवता आते हैं वे थोड़ा सा पाकर ही उठ जाते हैं, कोई ढंग से भोजन पाता ही नहीं, कभी कोई ऐसा ब्राह्मण तो बुलाओ न प्रभु, जिन्हें मैं जिम्हाकर सन्तुष्ट हो सकू।


रामजी बोले- ऐसा मत कहो देवी, कभी कोई ऐसा ब्राह्मण आ गया तो आप भोजन बनाते-बनाते थक जाओगी, अभी आपने असली ब्राह्मण देखे कहां है? ठीक है किसी दिव्य ब्राह्मण को बुलाता हूंँ, मेरे प्रभु रघुवर आज समाधि लगाकर अगस्त्य मुनि के ध्यान में पहुंच गये, अगस्त्य मुनि वहीं है जो तीन अंजली में पूरे समुद्र को पी गये, अगस्त्य मुनि ने कहा- क्या आज्ञा है प्रभु? 


रामजी ने कहा- सिताजी बड़ी तंग करती है बाबा, आज अपना असली रूप बता देना, अगस्त्य मुनि आ गयें, सिताजी ने स्वागत किया, चरणों में प्रणाम किया, चरण धोये, रामजी बोले- महाराज आप भोजन आज यहीं पर करें, अगस्त्यजी बोले- इच्छा तो नहीं है फिर भी आप कहते हैं तो थोड़ा बालभोग ले लेंगे, बाल भोग नास्ते को कहते हैं, माता जानकीजी बोली- मेरी इच्छा है कि अपने हाथ से भोजन बनाकर आपको परोसूं, बोले- हाँ, हाँ क्यों नहीं देवी।


माता जानकीजी ने देखा, दुबला-पतला सा संत है कितना खायेगा? रसोई घर के द्वार पर ही महाराज का आसन लगा दिया, सोने की थाली सजायी, उसमें पच्चास कटोरियां रखीं है, कई प्रकार के व्यंजन उनमें सज्जे है, थाली के बीच में पूड़ियां रख दी, अगस्त्य मुनि बैठे, अगस्त्य मुनि ने टेढ़ी नजर से रामजी की ओर देखा, रामजी ने इशारा किया हाँ हो जाओ शुरू, अगस्त्यजी ने कहा- जो आज्ञा।


जानकीजी ने कहा- महाराज भोजन करना शुरू कीजिये, अगस्त्यजी थाली की ओर देख रहे हैं और हंस रहे हैं, जानकीजी बोलीं, आप शुरू करिये न महात्मन्, अगस्त्य मुनि बोले- हंसी तो मुझे इसलिये आ रही है देवी कि कटोरी को आंख में डालूं कि नाक में डालूं या कान में डालूं, जानकीजी बोली क्यों महाराज? बोले, भोजन कराना है तो देवी ढंग से कराओ, नहीं तो रहने दो, जानकीजी तो बड़ी प्रसन्न हुई, कोई भोजन करने वाला तो आया, महाराज! आप पाइयें, मैं बनाती हूं।


सज्जनों! ग्यारह बजे भोजन शुरू किया गया और सायं का छ: बज गया, उनको तो डकार भी नहीं आयी, जानकीजी ने पच्चीस बार तो आटा गूंथ लिया, जब सायंकाल हो गयी तो अगस्त्यजी से बोलीं और चाहिये? अगस्त्यजी बोले- अभी तो ठीक ढंग से शुरुआत ही नहीं हुई है, अभी से पूछने लगीं आप? जानकीजी ने कहा- नहीं बाबा ऐसी बात नहीं है आप प्रेम से भोजन पाइयें मैं अभी आती हूं।


जानकीजी ने गणेशजी की दोनों पत्नियों ऋद्धि-सिद्धि का आव्हान किया, दोनों देवी हाजिर हो गयीं और बोले आज्ञा माता, जानकीजी बोली- देखौ, महाराज अगस्त्य मुनि भोजन कर रहे हैं, कुछ भी हो जाय, भूखे नहीं उठने चाहिये, सारे भंडार खोल दो, लेकिन महात्मा भूखा नहीं उठे, ऋद्धि-सिद्धि जहां बैठ जाये वहां क्या कमी है? ऋद्धि-सिद्धियाँ पूरीयां बनाकर महाराज को परोसती जा रही है, महाराज बड़े प्रेम से भोजन कर रहे हैं।


तीन दिन और तीन रात्रि हो गये, महात्माजी का अखंड भोजन चल रहा है, ऋद्धि-सिद्धि भी परेशान हो गई तो माता जानकीजी ने गणपतिजी का आव्हान किया, गणेशजी हलवाई बनकर आ गये, बोले मैं देखता हूंँ ऋषि का पेट कैसे नहीं भरता है, मेरे से तो बड़ा पेटू नहीं होगा, पर वहां कहां पार पडने वाली तो फिर नव निधियों को बुलाया गया, ऋद्धि-सिद्धि और नवनिधि सब मिलकर पूड़ी बेल रही है और गणपति महाराज झरिया में पूड़ियां निकालकर अगस्त्यजी को परोसते जा रहे हैं, महाराजजी मुंह में उड़ेलते जा रहे हैं।


पन्द्रह दिन और पन्द्रह रात्रि पूरे हुए, बिना रुके भोजन चल रहा है, सिताजी अगस्त मुनि के पास आई और सोने की थाली हटा कर बड़ी सी परात रख दी, सिताजी सोचीयों मारे घरे आज कोई डाकी आन बेठगो, उठन रो तो नाम ही नहीं लेवे, जब सोलहवां दिन भी पूरा हो गया, अगस्त्य मुनि के चेहरे पर कोई शिकुड़न नहीं है, वो तो अविश्राम गति से भोजन करने में व्यस्त है, सत्रहवां दिन जब भोजन का चल रहा था तो जानकीजी आयीं और महाराज को प्रणाम किया।


अगस्त महाराज ने कहा, सौभाग्यवती रहो देवी, लेकिन बेटी में अभी कोई बात नहीं कर सकता, क्योंकि मैं भोजन में व्यस्त हूं, वार्ता बाद में करूंगा, जानकीजी बोली, मैं कोई बात करने नहीं आयी, महाराज! मैं तो इतना कहने आयी हूं कि आधा भोजन हो जाये तो पानी पीना चाहियें, अगस्त्य मुनि बोले, चिन्ता मत करो देवी, जब आधा भोजन हो जायेगा तो पानी भी पी लेंगे, जानकीजी बोली- हे भगवान्! ये कैसा महात्मा है? अभी आधा भोजन भी नहीं हुआ है।


महाराज का भोग चल रहा है, सत्रहवें दिन सायंकाल के भगवान् राघवेंद्र आये, रामजी ने आकर देखा कि जानकीजी चिन्तित है, गणपति महाराज भी चिंता में है, ऋद्धि-सिद्धि और नवनिधि सब हार चुकीं, रामजी ने जानकीजी से कहा- क्यों देवी? महाराज का भोजन अभी चल रहा है ना, जानकीजी बोली- सुनिये, ऐसा ब्राह्मण मेरे घर पर फिर कभी मत बुलाना, क्यों? ये भी कोई बात है? श्रद्धा की टांग तोड़कर रख दी, अट्ठारह दिन पूरे हो गये, बोलते है अभी आधा भी नहीं हुआ।


रामजी माता सीताजी से कहते हैं- आप रोज बोलतीं थीं न, तो अब कराओ ब्राह्मण देवता को भोजन, सीताजी ने कहा अब आगे तो भूल कर भी नहीं कहुंगी पर ऐसी कृपा करो कि यह ब्राह्मण मेरे द्वार से भूखा न जाये, भगवान् राम रसोईघर के द्वार पर गये, महाराज भोजन कर रहे हैं, अगस्त्यजी ने भोजन करते-करते तिरछी नजर से राम को देखा और इशारे से पूछा- बस, रहने दें कि और चले? 


भगवान् ने कहा- बस रहने दो, रामजी के इशारे पर ही तो हो रहा था सारा काम, अट्ठारह दिन शाम को महाराज को डकार आयी, लाओ तो देवी आधा भोजन हो गया, जल पिलावो, रामजी ने कहा- देवी महाराज के लिये जल लाइयें, जानकीजी बोली, हमारे पास इतने जल की कोई व्यवस्था नहीं है, इतना पानी कहां से लायेंगे? दो-पांच घड़े से तो काम चलेगा नहीं।


अगस्त्यजी बोले- पानी भी पीते है तो फिर ढंग से ही पीते है, ऐसे रोज-रोज तो पीते नहीं, दो-चार युग में एक बार पीते है, रामजी ने कहा- तो महाराज पानी की व्यवस्था नहीं हो पा रही, एक काम करिये, आप तो योगी हो कई युगों तक भूख व प्यास को रोक सकते हो, एक युग में भोजन करें दूसरे युग में पानी पीयें, आगे जो द्वापर युग आ रहा है, द्वापर युग में मैं जो गिरिराज को उठाऊँगा, क्रोध में आकर इन्द्र जितनी जल की वृष्टि करें आप सारा जल पी जाना, भाई-बहनों! अध्यात्म चिंतन के साथ आज मंगलवार की मंगल सुप्रभात आप सभी को मंगलमय् हो।


जय सिया रामजी

जय जय हनुमानजी

कर्म का फल

 



कर्म का फल 


अस्पताल में एक एक्सीडेंट का केस आया। अस्पताल के मालिक डॉक्टर ने तत्काल खुद जाकर आईसीयू में केस की जांच की। दो-तीन घंटे के ओपरेशन के बाद डॉक्टर बाहर आया और अपने स्टाफ को कहा कि इस व्यक्ति को किसी प्रकार की कमी या तकलीफ ना हो...और उससे इलाज व दवा के पैसे न लेने के लिए भी कहा ।तकरीबन 15 दिन तक मरीज अस्पताल में रहा।जब बिल्कुल ठीक हो गया और उसको डिस्चार्ज करने का दिन आया तो उस मरीज का तकरीबन ढाई लाख रुपये का बिल अस्पताल के मालिक और डॉक्टर की टेबल पर आया। डॉक्टर ने अपने अकाउंट मैनेजर को बुला करके कहा ... इस व्यक्ति से एक पैसा भी नहीं लेना है। ऐसा करो तुम उस मरीज को लेकर मेरे चेंबर में आओ।मरीज व्हीलचेयर पर चेंबर में लाया गया।डॉक्टर ने मरीज से पूछा... प्रवीण भाई ! मुझे पहचानते हो!मरीज ने कहा लगता तो है कि मैंने आपको कहीं देखा है।डॉक्टर ने कहा ... याद करो, अंदाजन दो साल पहले सूर्यास्त के समय शहर से दूर उस जंगल में तुमने एक गाड़ी ठीक की थी। उस रोज मैं परिवार सहित पिकनिक मनाकर लौट रहा था कि अचानक कार में से धुआं निकलने लगा और गाड़ी बंद हो गई। कार एक तरफ खड़ी कर हम लोगों ने चालू करने की कोशिश की, परंतु कार चालू नहीं हुई।अंधेरा थोड़ा-थोड़ा घिरने लगा था। चारों और जंगल और सुनसान था।परिवार के हर सदस्य के चेहरे पर चिंता और भय की लकीरें दिखने लगी थी और सब भगवान से प्रार्थना कर रहे थे कि कोई मदद मिल जाए। थोड़ी ही देर में चमत्कार हुआ। बाइक के ऊपर तुम आते दिखाई पड़े । हम सब ने दया की नजर से हाथ ऊंचा करके तुमको रुकने का इशारा किया। तुमने बाईक खड़ी कर के हमारी परेशानी का कारण पूछा था।

तुमने कार का बोनट खोलकर चेक किया और कुछ ही क्षणों में कार चालू कर दी।हम सबके चेहरे पर खुशी की लहर दौड़ गई। हमको ऐसा लगा कि जैसे भगवान ने ही तुमको हमारे पास भेजा है..क्योंकि उस सुनसान जंगल में रात गुजारने के ख्याल मात्र से ही हमारे रोगंटे खड़े हो रहे थे। तुमने मुझे बताया था कि तुम एक गैराज चलाते हो । मैंने तुम्हारा आभार जताते हुए कहा था कि रुपए पास होते हुए भी ऐसी मुश्किल समय में मदद नहीं मिलती। तुमने ऐसे कठिन समय में हमारी मदद की, इस मदद की कोई कीमत नहीं है, यह अमूल्य है।परंतु फिर भी मैं पूछना चाहता हूँ कि आपको कितने पैसे दूं ?

उस समय तुमने मेरे आगे हाथ जोड़कर जो शब्द कहे थे, वह शब्द मेरे जीवन की प्रेरणा बन गये हैं।तुमने कहा था कि... "मेरा नियम और सिद्धांत है कि मैं मुश्किल में पड़े व्यक्ति की मदद के बदले कभी कुछ नहीं लेता। मेरी इस मजदूरी का हिसाब भगवान् रखते हैं।"

उसी दिन मैंने सोचा कि जब एक सामान्य आय का व्यक्ति इस प्रकार के उच्च विचार रख सकता है, और उनका संकल्प पूर्वक पालन कर सकता है, तो मैं क्यों नहीं कर सकता। और मैंने भी अपने जीवन में यही संकल्प ले लिया है। दो साल हो गए है, मुझे कभी कोई कमी नहीं पड़ी, अपेक्षा पहले से भी अधिक मिल रहा है।यह अस्पताल मेरा है।तुम यहां मेरे मेहमान हो और तुम्हारे ही बताए हुए नियम के अनुसार 

मैं तुमसे कुछ भी नहीं ले सकता। ये तो भगवान् की कृपा है कि उसने मुझे ऐसी प्रेरणा देने वाले व्यक्ति की सेवा करने का मौका मुझे दिया।ऊपर वाले ने तुम्हारी मजदूरी का हिसाब रखा और वो हिसाब आज उसने चुका दिया। मेरी मजदूरी का हिसाब भी ऊपर वाला रखेगा और कभी जब मुझे जरूरत होगी, वो जरूर चुका देगा।डॉक्टर ने प्रवीण से कहा.. तुम आराम से घर जाओ, और कभी भी कोई तकलीफ हो तो बिना संकोच के मेरे पास आ सकते हो।प्रवीण ने जाते हुए चेंबर में रखी भगवान् कृष्ण की तस्वीर के सामने हाथ जोड़कर कहा ....

हे प्रभु आपने आज मेरे कर्म का पूरा हिसाब ब्याज समेत चुका दिया...

"याद रखें कि एक बार भगवान् चाहे माफ कर दे, परंतु कर्मों का हिसाब चुकाना ही पड़ता है..!!


सुधार


  गुरु संदेश -मन का दर्पण

एक गुरुकुल के आचार्य अपने शिष्य की सेवा से बहुत प्रभावित हुए । विद्या पूरी होने के बाद जब शिष्य विदा होने लगा तो गुरू ने उसे आशीर्वाद के रूप में एक दर्पण दिया ।वह साधारण दर्पण नहीं था । उस दिव्य दर्पण में किसी भी व्यक्ति के मन के भाव को दर्शाने की क्षमता थी ।शिष्य, गुरू के इस आशीर्वाद से बड़ा प्रसन्न था । उसने सोचा कि चलने से पहले क्यों न दर्पण की क्षमता की जांच कर ली जाए ।परीक्षा लेने की जल्दबाजी में उसने दर्पण का मुंह सबसे पहले गुरुजी के सामने कर दिया ।शिष्य को तो सदमा लग गया । दर्पण यह दर्शा रहा था कि गुरुजी के हृदय में मोह, अहंकार, क्रोध आदि दुर्गुण स्पष्ट नजर आ रहे है | मेरे आदर्श, मेरे गुरूजी इतने अवगुणों से भरे है ! यह सोचकर वह बहुत दुखी हुआ. दुखी मन से वह दर्पण लेकर गुरुकुल से रवाना हो गया तो हो गया लेकिन रास्ते भर मन में एक ही बात चलती रही. जिन गुरुजी को समस्त दुर्गुणों से रहित एक आदर्श पुरूष समझता था लेकिन दर्पण ने तो कुछ और ही बता दिया ।उसके हाथ में दूसरों को परखने का यंत्र आ गया था । इसलिए उसे जो मिलता उसकी परीक्षा ले लेता ।उसने अपने कई इष्ट मित्रों तथा अन्य परिचितों के सामने दर्पण रखकर उनकी परीक्षा ली । सब के हृदय में कोई न कोई दुर्गुण अवश्य दिखाई दिया ।जो भी अनुभव रहा सब दुखी करने वाला वह सोचता जा रहा था कि संसार में सब इतने बुरे क्यों हो गए है । सब दोहरी मानसिकता वाले लोग है ।जो दिखते हैं दरअसल वे हैं नहीं । इन्हीं निराशा से भरे विचारों में डूबा दुखी मन से वह किसी तरह घर तक पहुंच गया ।उसे अपने माता-पिता का ध्यान आया । उसके पिता की तो समाज में बड़ी प्रतिष्ठा है । उसकी माता को तो लोग साक्षात देवतुल्य ही कहते है । इनकी परीक्षा की जाए ।उसने उस दर्पण से माता-पिता की भी परीक्षा कर ली । उनके हृदय में भी कोई न कोई दुर्गुण देखा । ये भी दुर्गुणों से पूरी तरह मुक्त नहीं है । संसार सारा मिथ्या पर चल रहा है ।

अब उस बालक के मन की बेचैनी सहन के बाहर हो चुकी थी ।उसने दर्पण उठाया और चल दिया गुरुकुल की ओर । शीघ्रता से पहुंचा और सीधा जाकर अपने गुरूजी के सामने खड़ा हो गया ।गुरुजी उसके मन की बेचैनी देखकर सारी बात का अंदाजा लगा चुके थे ।चेले ने गुरुजी से विनम्रतापूर्वक कहा- गुरुदेव, मैंने आपके दिए दर्पण की मदद से देखा कि सबके दिलों में तरह-तरह के दोष है । कोई भी दोषरहित सज्जन मुझे अभी तक क्यों नहीं दिखा ?क्षमा के साथ कहता हूं कि स्वयं आपमें और अपने माता-पिता में मैंने दोषों का भंडार देखा । इससे मेरा मन बड़ा व्याकुल है ।तब गुरुजी हंसे और उन्होंने दर्पण का रुख शिष्य की ओर कर दिया । शिष्य दंग रह गया । उसके मन के प्रत्येक कोने में राग-द्वेष, अहंकार, क्रोध जैसे दुर्गुण भरे पड़े थे । ऐसा कोई कोना ही न था जो निर्मल हो ।गुरुजी बोले- बेटा यह दर्पण मैंने तुम्हें अपने दुर्गुण देखकर जीवन में सुधार लाने के लिए दिया था न कि दूसरों के दुर्गुण खोजने के लिए ।जितना समय तुमने दूसरों के दुर्गुण देखने में लगाया उतना समय यदि तुमने स्वयं को सुधारने में लगाया होता तो अब तक तुम्हारा व्यक्तित्व बदल चुका होता।मनुष्य की सबसे बड़ी कमजोरी यही है कि वह दूसरों के दुर्गुण जानने में ज्यादा रुचि रखता है । स्वयं को सुधारने के बारे में नहीं सोचता । इस दर्पण की यही सीख है जो तुम नहीं समझ सके ।कितनी बड़ी बात कही उन्होंने । बेशक संसार में दुर्गुणों की भरमार है परंतु हममें भी कम अवगुण तो नहीं है । किसी और में दोष खोजने से बड़ा अवगुण क्या है ।यदि हम स्वयं में थोड़ा-थोड़ा करके सुधार करने लगें तो हमारा व्यक्तित्व परिवर्तित हो जाएगा |


संबंध#, एक भावनात्मक कहानी



डॉक्टर साहब ने स्पष्ट कह दिया,"जल्दी से जल्दी प्लाज्मा डोनर का इंतजाम कर लो नही तो कुछ भी हो सकता हैं।" रोहन को अब तो कुछ भी नही सूझ रहा था, मां फफक फफक कर रो रही थी और सामने बेड पर थे बाबूजी जो बेहद ही सीरियस थे सब जगह तो देख लिया था, सबसे गुहार कर ली थी लेकिन बी पॉजिटिव प्लाज्मा का कोई इंतजाम ही नही हो रहा था।

वैसे तो बी पॉजिटिव प्लाज्मा  उनके घर में ही था; रोहन के चाचा जो अभी 2 महीने पहले ही कॉविड को हराकर लौटे थे। लेकिन वो चाचा जी से कहे तो कैसे?  अभी 15 दिन पहले ही तो बगल वाले प्लॉट में काम शुरू करवाया था तो बाबूजी ने मात्र 6 इंच जमीन के विवाद में भाई को ही जेल भिजवा दिया था ऐसे में चाचा जी शायद ही प्लाज्मा डोनेट करें!

    खैर एक बार फिर माता जी को बाबूजी के पास छोड़कर शहर मे चला प्लाज्मा तलाशने,

दोपहर बीत गई, रात होने को आई कोई डोनर नही मिला थक हार कर लौट आया और माता जी से चिपक कर फूट फूट कर रोने लगा, माताजी कोई डोनर नही मिल रहा है।

तब तक देखा कि चाचा जी बाबूजी के बेड के पास बैठे हैं। कुछ बोल नहीं पाया, चाचा जी खुद ही रोहन के पास आए सिर पर हाथ फेर कर बोले तू क्या समझता था कि नही बताएगा तो मुझे पता ही नही चलेगा, जो तेरा बाप है वो मेरा भी भाई है। प्लाज्मा दे दिया है, पैसों की या फिर किसी मदद की जरूरत हो तो बेहिचक बताना। भाई रहा तो लड़ झगड़ तो फिर भी लेंगें। 

चाचा जी आंसू पोछते जा रहे थे और सैलाब रोहन की आंखों में था कुछ बोल नहीं पाया सिर्फ चाचा जी के पैरो से लिपट गया

साथियों, संकट का समय है,  घर, परिवार, मोहल्ले में थोड़ा बहुत मन मुटाव तो चलता हैं लेकिन इस आपदा के समय सारे गिले शिकवे भूल कर मदद के लिए तत्पर रहें जिससे जो बन सके, सो करके मानवता का परिचय दें जिसे देखकर भगवान को भी लगे कि उसने तुम्हे इंसान बनाकर कोई ग़लती नहीं की।



बेटी

 


बेटी 

एक गर्भवती स्त्री ने अपने पति से कहा, "आप क्या आशा करते हैं  लडका होगा या लडकी"पति-"अगर हमारा लड़का होता है, तो मैं उसे गणित पढाऊगा, हम खेलने जाएंगे, मैं उसे मछली पकडना सिखाऊगा।" पत्नी - "अगर लड़की हुई तो...?" पति- "अगर हमारी लड़की होगी तो, मुझे उसे कुछ सिखाने की जरूरत ही नही होगी" "क्योंकि, उन सभी में से एक होगी जो सब कुछ मुझे दोबारा सिखाएगी, कैसे पहनना, कैसे खाना, क्या कहना या नही कहना।"

"एक तरह से वो, मेरी दूसरी मां होगी। वो मुझे अपना हीरो समझेगी, चाहे मैं उसके लिए कुछ खास करू या ना करू।"जब भी मै उसे किसी चीज़ के लिए मना करूंगा तो मुझे समझेगी। वो हमेशा अपने पति की मुझ से तुलना करेगी।"

"यह मायने नही रखता कि वह कितने भी साल की हो पर वो हमेशा चाहेगी की मै उसे अपनी baby doll की तरह प्यार करूं।"वो मेरे लिए संसार से लडेगी, जब कोई मुझे दुःख देगा वो उसे कभी माफ नहीं करेगी। पत्नी - "कहने का मतलब है कि, आपकी बेटी जो सब करेगी वो आपका बेटा नहीं कर पाएगा। पति- "नहीं, नहीं क्या पता मेरा बेटा भी ऐसा ही करेगा, पर वो सिखेगा।"परंतु बेटी, इन गुणों के साथ पैदा होगी। किसी बेटी का पिता होना हर व्यक्ति के लिए गर्व की बात है। पत्नी -  "पर वो हमेशा हमारे साथ नही रहेगी...? पति- "हां, पर हम हमेशा उसके दिल में रहेंगे। इससे कोई फर्क नही पडेगा चाहे वो कही भी जाए, बेटियाँ परी होती हैं"जो सदा बिना शर्त के प्यार और देखभाल के लिए जन्म लेती है।" "बेटीयां सब के मुकद्दर में, कहाँ होती हैं जो घर भगवान को हो पसंद वहां पैदा होती हैं बेटियाँ ।

संस्कार - पिता पुत्र

 संस्कार 



पापा, ये क्या है दादाजी ने सारे आँफिस के सामने आपको डांटा और आप चुपचाप सुनते रहे मुझे बिल्कुल अच्छा नही लगा आप भी कम्पनी में सारे कामकाज देखते है क्या  हुआ जो गलती से आर्डर इधर उधर हो गया आँफिस में सभी आपका सम्मान करते है ऐसे सबके सामने वो आपको डांटकर बेइज्जत कैसे कर सकते हैं सुमित ने अपने पिता मोहनबाबू से अपना गुस्सा जाहिर करते हुए कहा ।सुमित! देखो बेटा यहां आओ बैठो आराम से सबसे पहले तो ये गुस्सा त्याग दो क्योंकि ये गुस्सा हमें केवल नकारात्मकता की ओर ही बढाता है सही और गलत की दिशा से भटकाता है अब ध्यान से सुनो सारी दुनिया के भले ही मैं बडा आदमी हो सकता हूँ पर अपने मम्मी पापा के लिये मैं सिर्फ उनका बेटा हूं और उन्हे सारी उम्र मुझे कुछ भी कहने का हक है तुम अभी छोटे हो तुम्हें अभी समझ नहीं आयेगा परिपक्व होने पर खुद समझ जाओगे ।माता पिता की ये डांट ये समझाने का तरीका बेटा ये उनका एक मार्गदर्शन करने का वो तरीका है जो हमें सही और गलत का अंतर बताता है उन्होंने सबके सामने मुझे डांटा कयोंकि गलती मेरी थी मुझे ध्यान देना चाहिए था एक जिम्मेदार व्यक्ति एक जिम्मेदार कर्मचारी होने के नाते ये मेरा कम्पनी के प्रति कर्तव्य बनता है बात कम्पनी की है तो कम्पनी में ही समझाकर खत्म कर देते है पिताजी |

बेटा बडे जब समझाते हैं ना या डांटते है ना वो उनकी चिंताओं का एक रुप होता है जो अनुभवों से जुडा होता है वो अपने बच्चों को वो गलती नहीं करने देना चाहते जिसके चलते बाद मे उन्हें कोई दुष्परिणाम भुगतना पडे और मैं उनकी डांट से खुश हो कर कुछ ना कुछ नया सीखता हूं जानते हो जब वह मुझे डांटते है ना तब मेरी मेरे बचपन से मुलाकात हो जाती है, मोहनबाबू ने बेटे के कंधे पर हाथ रख कर समझाते हुए कहा सुमित पापा की बातों को सुनकर सबकुछ सुनकर थोडा शर्मिंदा सा बैठा था, मोहनबाबू मुस्कुरा कर बाहर की ओर चलने को हुए ही थे कि वापस सुमित के पास लौटकर बोले हाँ एक बात और बेटा।

कोई तुम्हारे पिता को कुछ कहे तुम्हें अच्छा नही लगता है ना ?  जी पापा,



तो बेटा जी कोई मेरे पिताजी को कुछ कहे मुझे भी अच्छा नहीं लगता कहकर सुमित के सिर के बालों में अंगुलियों को फिराते उन्हें सहलाते हुए प्यार भरी मुस्कुराहट देकर एक उचित मार्गदर्शन करते हुए कमरे से बाहर निकल गये।

वहीं दूसरी ओर दूसरे कमरे में बैठे बुजुर्ग मोहनबाबू के पिताजी की आँखें भी खुशी से नम थी उन्हें भी अपनी परवरिश और अपने बेटे को दिए संस्कारों भरे मार्गदर्शन पर गर्व महसूस हो रहा था ।

माता पिता की डॉट ज़िन्दगी की सफलता के लिए एक सही खुराक होती है, इसलिए इस से कभी परेशान न हों हमेशा इस डॉट का हमेशा सम्मान करें।

भंडारा एक कहानी, सूने होते मोहल्ले




भंडारा
 
 तीन दोस्त भंडारे मे भोजन कर रहे थे कि- उनमें से पहला बोला काश हम भी ऐसे भंडारा कर पाते दूसरा बोला हां यार सैलरी आने से पहले जाने के रास्ते बनाकर आती हैं  तीसरा बोला खर्चे इतने सारे होते है तो कहा से करें भंडारा पास बैठे एक महात्मा भी भंडारे का आनंद ले रहे थे वो उन दोस्तों की बाते सुन रहे थे; महात्मा उन तीनों से बोले बेटा भंडारा करने के लिए धन नहीं केवल अच्छे मन की जरूरत होती है वह तीनो आश्चर्यचकित होकर महात्मा की ओर देखने लगे महात्मा ने सभी की उत्सुकता को देखकर हंसते हुए कहा बच्चों बिस्कुट का पैकेट लो और उन्हें चीटियों के स्थान पर बारीक चूर्ण बनाकर उनके खाने के लिए रख दो देखना अनेकों चीटियां उन्हें खुश होकर खाएगी हो गया भंडारा चावल-दाल के दाने लाओ उसे छतपर बिखेर दो चिडिया कबूतर आकर खाऐंगे हो गया भंडारा बच्चों ईश्वर ने सभी के लिए अन्न का प्रबंध किया है ये जो तुम और मैं यहां बैठकर पूड़ी सब्जी का आनंद ले रहे है ना इस अन्न पर ईश्वर ने हमारा नाम लिखा हुआ है बच्चों तुम भी जीव जन्तुओं के लिए उनके नाम के भोजन का प्रबंध करने के लिए जो भी करोगे वो भी उस ऊपरवाले की इच्छाओं से होगा यही तो है भंडारा जाने कौन कहा से आ रहा है या कोई कही जा रहा है किसी को पता भी नहीं होता कि किसको कहाँ से क्या मिलेगा  सब उसी की माया है तीनों युवकों के चेहरे पर एक अच्छी सुकून देने वाली खुशी थी ऐसे अच्छे दान पुण्य के काम करते रहिए, अपार प्रसन्नता आपको मिलती रहेगी।

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सूने होते मकान और मोहल्ले !! 

शायद आपने कभी ध्यान से देखा नहीं या फिर आपका गली मुहल्ले से इतना वास्ता नहीं पड़ता। आप बस तेजी से अपनी बाइक या कार से सीधे अपने काम पर निकल जाते हैं और वापस अपने घर आ जाते हैं । इसलिए शायद आपकी सूने होते मकानों और मोहल्लों पर नज़र जा नहीं पाती होगी  या फिर आप खुद अपना जन्म स्थान छोड़कर किसी बड़े शहर में आकर बस गये हैं, तो आपको आभास ही नहीं कि कब आपके मोहल्ले के मकान सूने हो गये । उनमें सिर्फ बूढ़े माँ बाप पड़े हैं और फिर कब धीरे धीरे ऐसे मकानों से मोहल्ले सूने होते चले गये। 

खैर कल सुबह उठकर एक बार इसका जायज़ा लीजियेगा कि कितने घरों में अगली पीढ़ी के बच्चे रह रहे हैं और कितने बाहर निकलकर नोएडा, गुड़गांव, पूना, पटना या जयपुर जैसे बड़े शहरों में जाकर बस गये हैं। कल आप एक बार उन गली मोहल्लों से पैदल निकलिएगा जहां से आप बचपन में स्कूल जाते समय या दोस्तों के संग मस्ती करते हुए निकलते थे। तिरछी नज़रों से झांकिए.. हर घर की ओर आपको एक चुपचाप सी सुनसानियत मिलेगी, न कोई आवाज़, न बच्चों का शोर, बस किसी किसी घर के बाहर या खिड़की में आते जाते लोगों को ताकते बूढ़े जरूर मिल जायेंगे।

आखिर इन सूने होते घरों और खाली होते मुहल्लों के कारण क्या  हैं ? 
भौतिकवादी युग में हर व्यक्ति चाहता है कि उसके बच्चे बेहतर से बेहतर पढ़ें। उनको लगता है या फिर दूसरे लोग उसको ऐसा महसूस कराने लगते हैं कि छोटे शहर या कस्बे में पढ़ने से उनके बच्चे का कैरियर खराब हो जायेगा या फिर बच्चा बिगड़ जायेगा। बस यहीं से बच्चे निकल जाते हैं बड़े शहरों के होस्टलों में। अब भले ही दिल्ली और उस छोटे शहर में उसी क्लास का सिलेबस और किताबें वही हों मगर मानसिक दबाव सा आ जाता है बड़े शहर में पढ़ने भेजने का। हालांकि इतना बाहर भेजने पर भी मुश्किल से 1%बच्चे IIT, PMT या CLAT वगैरह में निकाल पाते हैं... और फिर वही मां बाप बाकी बच्चों का पेमेंट सीट पर इंजीनियरिंग, मेडिकल या फिर बिज़नेस मैनेजमेंट में दाखिला कराते हैं। 4 साल बाहर पढ़ते पढ़ते बच्चे बड़े शहरों के माहौल में रच बस जाते हैं और फिर वहीं नौकरी ढूंढ लेते हैं। अब त्योहारों पर घर आते हैं माँ बाप के पास। 

माँ बाप भी सभी को अपने बच्चों के बारे में गर्व से बताते हैं । उनके पैकेज के बारे में बताते हैं। एक साल, दो साल, कुछ साल बीत गये । मां बाप बूढ़े हो रहे हैं और बच्चों ने लोन लेकर बड़े शहरों में फ्लैट ले लिये हैं। 

अब अपना फ्लैट है तो त्योहारों पर भी जाना बंद। सिर्फ कोई जरूरी शादी ब्याह में आते जाते हैं। अब शादी ब्याह तो बेंकुट हाल में होते हैं तो मुहल्ले में और घर जाने की भी ज्यादा जरूरत नहीं पड़ती है। हाँ शादी ब्याह में कोई मुहल्ले वाला पूछ भी ले कि भाई अब कम आते जाते हो तो छोटे शहर,  छोटे माहौल और बच्चों की पढ़ाई का उलाहना देकर बोल देते हैं कि अब यहां रखा ही क्या है?

 खैर, बेटे बहुओं के साथ फ्लैट में शहर में रहने लगे हैं । अब फ्लैट में तो इतनी जगह होती नहीं कि बूढ़े खांसते बीमार माँ बाप को साथ में रखा जाये। बेचारे पड़े रहते हैं अपने बनाये या पैतृक मकानों में। कोई बच्चा बागवान पिक्चर की तरह मां बाप को आधा - आधा रखने को भी तैयार नहीं।

अब साहब, घर खाली खाली, मकान खाली खाली और धीरे धीरे मुहल्ला खाली हो रहा है। अब ऐसे में छोटे शहरों में कुकुरमुत्तों की तरह उग आये "प्रॉपर्टी डीलरों" की गिद्ध जैसी निगाह इन खाली होते मकानों पर पड़ती है और वो इन बच्चों को घुमा फिरा कर उनके मकान के रेट समझाने शुरू करते हैं । उनको गणित समझाते हैं कि कैसे घर बेचकर फ्लैट का लोन खत्म किया जा सकता है और एक प्लाट भी लिया जा सकता है। ये प्रॉपर्टी डीलर सबसे ज्यादा ज्ञान बांटते हैं कि छोटे शहर में रखा ही क्या है। साथ ही ये किसी बड़े लाला को इन खाली होते मकानों में मार्केट और गोदामों का सुनहरा भविष्य दिखाने लगते हैं। 

बाबू जी और अम्मा जी को भी बेटे बहू के साथ बड़े शहर में रहकर आराम से मज़ा लेने के सपने दिखाकर मकान बेचने को तैयार कर लेते हैं। आप खुद अपने ऐसे पड़ोसी के मकान पर नज़र रखते हैं और खरीद कर डाल देते हैं कि कब मार्केट बनाएंगे या गोदाम, जबकि आपका खुद का बेटा छोड़कर पूना की IT कंपनी में काम कर रहा है इसलिए आप खुद भी इसमें नहीं बस पायेंगे।

हर दूसरा घर, हर तीसरा परिवार सभी के बच्चे बाहर निकल गये हैं। वही बड़े शहर में मकान ले लिया है, बच्चे पढ़ रहे हैं,अब वो वापस नहीं आयेंगे। छोटे शहर में रखा ही क्या है । इंग्लिश मीडियम स्कूल नहीं है, हॉबी क्लासेज नहीं है, IIT/PMT की कोचिंग नहीं है, मॉल नहीं है, माहौल नहीं है, कुछ नहीं है साहब, आखिर इनके बिना जीवन कैसे चलेगा। 

पर कभी UPSC CIVIL SERVICES का रिजल्ट उठा कर देखियेगा, सबसे ज्यादा लोग ऐसे छोटे शहरों से ही मिलेंगे। बस मन का वहम है।

मेरे जैसे लोगों के मन के किसी कोने में होता है कि भले ही कहीं फ्लैट खरीद लो, मगर रहो अपने उसी छोटे शहर में अपने लोगों के बीच में । पर जैसे ही मन की बात रखते हैं, बुद्धिजीवी अभिजात्य पड़ोसी समझाने आ जाते है कि "अरे बावले हो गये हो, यहाँ बसोगे, यहां क्या रखा है?” वो भी गिद्ध की तरह मकान बिकने का इंतज़ार करते हैं, बस सीधे कह नहीं सकते।

अब ये मॉल, ये बड़े स्कूल, ये बड़े टॉवर वाले मकान सिर्फ इनसे तो ज़िन्दगी नहीं चलती। एक वक्त, यानी बुढ़ापा ऐसा आता है जब आपको अपनों की ज़रूरत होती है। ये अपने आपको छोटे शहरों या गांवों में मिल सकते हैं, फ्लैटों की रेजीडेंट वेलफेयर एसोसिएशन में नहीं। मैंने कोलकाता, दिल्ली, मुंबई में देखा कि वहां शव यात्रा चार कंधों पर नहीं बल्कि एक खुली गाड़ी में पीछे शीशे की केबिन में जाती है, सीधे शमशान, एक दो रिश्तेदार बस और सब खत्म।

भाईसाब ये खाली होते मकान, ये सूने होते मुहल्ले, इन्हें सिर्फ प्रोपेर्टी की नज़र से मत देखिए, बल्कि जीवन की खोती जीवंतता की नज़र से देखिए। आप पड़ोसी विहीन हो रहे हैं। आप वीरान हो रहे हैं।

आज गांव सूने हो चुके हैं 
शहर कराह रहे हैं |
सूने घर आज भी राह देखते हैं.. बंद दरवाजे बुलाते हैं पर कोई नहीं आता |
भूपेन हजारिका का यह गीत याद आता है--

गली के मोड़ पे.. सूना सा कोई दरवाजा
तरसती आंखों से रस्ता किसी का देखेगा
निगाह दूर तलक..  जा के लौट आयेगी
करोगे याद तो हर बात याद आयेगी ||

समझाइए, बसाइए लोगों को छोटे शहरों और जन्मस्थानों के प्रति मोह जगाइए, प्रेम जगाइए। पढ़ने वाले तो सब जगह पढ़ लेते हैं।

सतीश शर्मा जी द्वारा संकलित 
जन्म कुंडली विशेषज्ञ व सलाहकार शर्मा जी 9312002527

सोमवार, 17 जनवरी 2022

भगवान का घर



भगवान का घर

कल दोपहर में मैं बैंक में गया था। वहाँ एक बुजुर्ग भी उनके काम से आये थे। वहाँ वह कुछ काम की बात ढूंढ रहे थे। मुझे लगा शायद उन्हें पेन चाहिये। इसलिये उनसे पुछा तो, वह बोले "बिमारी के कारण मेरे हाथ कांप रहे हैं और मुझे पैसे निकालने की स्लीप भरनी हैं। उसके लिये मैं देख रहा हूँ कि किसी की मदद मिल जाये तो अच्छा रहता।" मैं बोला "आपको कोई हर्ज न हो तो मैं आपकी स्लीप भर दूँ क्या?"उनकी परेशानी दूर होती देखकर उन्होंने मुझे स्लीप भरने की अनुमति दे दी। मैंने उनसे पुछकर स्लीप भर दी। रकम निकाल कर उन्होंने मुझसे पैसे गिनने को कहा। मैंने पैसे गिनकर उन्हें वापस कर दिये। मेरा और उनका काम लगभग साथ ही समाप्त हुआ तो, हम दोनों एक साथ ही बैंक से बाहर आ गये तो, वह बोले साॅरी तुम्हें थोडा कष्ट तो होगा। परन्तु मुझे रिक्षा करवा दोगे क्या? भरी दोपहरिया में रिक्षा मिलना कष्टकारी होता हैं। 
मैं बोला "मुझे भी उसी तरफ जाना हैं। मैं तुम्हें कार से घर छोड दूँ तो चलेगा क्या? वह तैयार हो गये। हम उनके घर पहूँचे। घर क्या बंगला कह सकते हो। 60' × 100' के प्लाट पर बना हुआ। घर में उनकी वृद्ध पत्नी थी। वह थोडी डर गई कि इनको कुछ हो तो नहीं गया जिससे उन्हें छोडने एक अपरिचित व्यक्ति घर तक आया हैं। फिर उन्होंने पत्नी के चेहरे पर आये भावों को पढकर कहा कि" चिंता की कोई बात नहीं। यह मुझे छोडने आये हैं। फिर हमारी थोडी बातचीत हुई। उनसे बातचीत में वह बोले "इस भगवान के घर में हम दोनों पति-पत्नी ही रहते हैं। हमारे बच्चे विदेश में रहते हैं। मैंने जब उन्हें भगवान के घर के बारे में पुछा तो कहने लगे,हमारे घर में भगवान का घर कहने की पुरानी परंपरा हैं। इसके पीछे की भावना हैं कि यह घर भगवान का हैं और हम उस घर में रहते हैं। लोग कहते हैं कि घर हमारा और भगवान हमारे घर में रहते हैं। मैंने विचार किया कि, दोनों कथनों में कितना अंतर हैं। तदुपरांत वह बोले भगवान का घर बोला तो अपने से कोई नकारात्मक कार्य नहीं होते हमेशा सदविचारों से ओत प्रेत रहते हैं। बाद में मजाकिया लहजे में बोले लोग मृत्यु उपरान्त भगवान के घर जाते हैं परन्तु हम तो जीते जी ही भगवान के घर का आनंद ले रहे हैं। यह वाक्य अर्थात ही जैसे भगवान ने दिया कोई प्रसाद ही हैं। उन बुजुर्ग को घर छोडने की बुद्धि शायद भगवान ने ही मुझे दी होगी। 
 घर भगवान का और हम उनके घर में रहते हैं 
यह वाक्य बहुत देर तक मेरे दिमाग में घुमता रहा। सही में कितने अलग विचार थे यह। जैसे विचार वैसा आचार। इसलिये वह उत्तम होगा ही इसमें कोई शंका नहीं,।

अभ्यास , एक कहानी

पीतल का लोटा स्वामी विवेकानंद रोज की तरह अपने पीतल के लोटे को मांज रहे थे। काफी देर तक लोटा मांजने के बाद जब वह उठे तो उनके एक शिष्य ने सवाल किया कि रोज-रोज इतनी देर तक इस लोटे को मांजने की क्या जरूरत है? सप्ताह में एक बार मांज लें या ज्यादा से ज्यादा तीन बार। बाकी दिनों में तो इसे पानी से सिर्फ खंगाल कर काम चलाया जा सकता है। इससे इसकी चमक बहुत फीकी तो नहीं होगी। विवेकानंद ने कहा - बात तो सही ही कहते हो। रोज-रोज पांच-दस मिनट इसमें बर्बाद ही होते हैं। उसके बाद उन्होंने उसे नही मांजा। कुछ ही दिनों में उस लोटे की चमक फीकी पड़ने लगी। सप्ताह भर बाद विवेकानंद ने उस शिष्य को बुलाया और कहा कि मैंने इसे रोज मांजना छोड़ दिया, अब आज फुरसत में हो तो इस लोटे को साफ कर दो। शिष्य ने हामी भरी और कुएं पर ले जाकर मूंज से लोटे को मांजना शुरू कर दिया। बहुत देर मांजने के बाद भी वह पहले वाली चमक नहीं ला सका। फिर और मांजा, तब जाकर लोटा कुछ चमका। विवेकानंद मुस्कुराए और बोले - इस लोटे से सीखो। जब तक इसे रोज मांजा जाता रहा, यह रोज चमकता रहा। तुमको इसकी रोज की चमक एक सी लगती होगी, लेकिन मुझे यह रोज थोड़ा सा और ज्यादा चमकदार दिखता था। मैं इसे जितना मांजता, यह उतना ज्यादा चमकता। रोज ना मांजने के कारण इसकी चमक जाती रही। ठीक ऐसे ही साधक होता है। अगर वह रोज मन को साफ न करे तो मन संसारी विचारो से अपनी चमक खो देता है, इसको रोज ज्ञान, ध्यान एवं सफाई से चमकाना चाहिए। यदि एक दिन भी अभ्यास छोड़ा तो चमक फीकी पड़ जाएगी। इसलिए अगर स्वयं को मजबूत स्तम्भ देना चाहते हो तो अभ्यास करो, तभी इस लोटे की तरह चमक कर समाज में ज्ञान की, परमात्मा की रोशनी बिखेरोगे। सदा स्मृति रहे कि आप एक शांत स्वरूप और वरदानी आत्मा है!!

शनिवार, 8 जनवरी 2022

जानकारी काल पत्रिका जनवरी - 2022

 हिंदी मासिक 

जानकारी काल 

वर्ष-22,             अंक-09,             जनवरी - 2022,          पृष्ठ 42,        मूल्य-2-50




12 जनवरी 1863 - स्वामी विवेकानंद - विख्यात और प्रभावशाली आध्यात्मिक गुरु


संरक्षक

 श्रीमान कुलवीर शर्मा

महामंत्री समर्थ शिक्षा समिति

डॉ वी  एस नेगी

प्रोफेसर भगत सिंह कॉलेज सांध्य


 प्रधान संपादक व्  प्रकाशक

 सतीश शर्मा 


 

 कार्यालय

 ए 214 बुध नगर इंद्रपुरी

 नई दिल्ली 110012


 मोबाइल

  9312002527


 संपादक मंडल

 सौरभ  शर्मा,कपिल शर्मा,

गौरव शर्मा,डॉ अजय प्रताप सिंह, करुणा ऋषि, डॉ मधु वैध, 

भूप  सिंह यादव, ऋतु सिंह,

राजेश शुक्ल  


प्रकाशक व मुद्रक सतीश शर्मा के लिय ग्लैक्सी प्रिंटर-106 F,कृणा नगर नई दिल्ली 110029, A- 214 बुध नगर इं पूरी नई दिल्ली  110012 से प्रकाशित |


सभी लेखों पर संपादक की सहमति आवश्यक नहीं है पत्रिका में किसी भी लेख में आपत्ति होने पर उसके विरुद्ध कार्रवाई केवल दिल्ली कोर्ट में ही होगी

 

R N I N0-68540/98

तेरा वैभव अमर रहे माँ हम दिन चार रहे ना रहे  


सम्पादकीय


अगर हमें जीवन में आगे जाना है तो सही सोचना , बोलना ,लिखना,आना चाहिए | बोलने की कला होती है जो सीखने से ही आती है, बिना सीखे यह भी नहीं आती। ये अलग बात है की कुछ में ये गुण जन्मजात होता है |कुछ तो किसी का अनुशरण कर सीख लेते है | "सही बोलने की कला या विद्या, न्याय शास्त्र/ न्याय दर्शन में लिखी है। उसमें बताया है कि व्यक्ति बोलने में कहां-कहां कैसी-कैसी गलतियां करता है। कुछ गलतियां वह जानबूझकर कर जाता है, और कुछ गलतियां अनजाने में हो जाती हैं। न्याय विद्या में अथवा न्याय दर्शन में कुल मिलाकर 54 प्रकार की ग़लतियां बताई गई हैं। जो व्यक्ति उन गलतियों को नहीं जानता, वह व्यक्ति बोलने में गलतियां करता रहता है। और क्योंकि लोग जीवन भर इस न्याय विद्या को नहीं पढ़ते सीखते, इसलिए वे जीवन भर गलतियां करते ही रहते हैं। ये सब गलतियां, "गलत सोचने" से आरंभ होती हैं। अर्थात यदि किसी का सोचना गलत है, तो वह बोलने में भी गलतियां करेगा और आचरण में भी गलतियां करेगा।यदि आप बोलने तथा आचरण की गलतियों को दूर करना चाहते हों, तो आपको सबसे पहले "सही सोचना" सीखना पड़ेगा। तभी आप सही बोल पाएंगे तथा सही आचरण कर पाएंगे। अतः सही सोचने बोलने की विद्या अथवा कला वाले शास्त्र  न्याय दर्शन को बार बार पढ़ें। इसमें बताई गई  गलतियों को जानें, उन से बचकर बोलें।तभी यह माना जाएगा कि आपने ठीक प्रकार से बोलना सीखा है। अभ्यास  के लिय तो आप आपना भाषण रेकोर्ड कर सुन सकते है व गलती सुधार सकते है |किसी सामाजिक  संगठन के साथ जुड़े वहा पर किसी विषय को चुन कर बोले व सुने,और तभी आप ठीक ठीक बोल भी पाएंगे। कहते है अच्छा  सुनने बाला ओजश्वी  वक्ता होता है वही व्यक्ति प्रभावी  लेख  लिख सकता है |    



 

 

गीता में धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष 

 

गीता ग्रन्थ वाग्यज्ञ का प्रसाद है। भगवान कृष्ण इसके प्रस्तोता हैं, ये ही इस यज्ञ के ब्रह्मा हैं,म ये ही अध्वर्यु हैं, ये ही उद्गाता हैं। यही भगवान का चतुर्भुज रूप है। गीता में धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष चारों का प्रतिपादन है। ये भगवान के चार शस्त्र- शंख, चक्र, गदा और पद्म हैं।

अर्जुन ने कृष्ण से कहा- वचनं करिष्ये तव।

भगवान का वचन वैसे ही है, जैसा कि भगवान स्वयं हैं अर्थात् सनातन, अद्वितीय, चैतन्यस्वरूप एवं ज्योतिर्मय। चैतन्य की अभिव्यक्ति आनन्द है। इस आनन्द का प्रथम विकार अभिमान है। अभिमान से रति की उत्पत्ति हुई। रति से भाव की उत्पत्ति होती है। भाव से रस बनते हैं। अनुराग भाव से श्रृंगार रस, तीक्ष्णता के भाव से रौद्ररस, उत्साह से वीररस, संकोच के भाव से बीभत्स रस का उदय होता है। ये चार मुख्य रस हैं। इन चारों से पुनः चार रस सृष्ट होते हैं। श्रृंगार रस से हास्य, रौद्र रस से करूण, वीररस से अद्भुत रस तथा बीभत्स से भयानक रस की निष्पत्ति होती है। बीभत्स एवं तीक्ष्णता के भाव के योग से शान्त रस की सृष्टि है। उत्साह एवं अनुराग के संयोग से वात्सल्य का प्रादुर्भाव है। इस प्रकार कुल दस रस की निष्पत्ति हुई। ये सभी रस भगवद्वाणी में उसी तरह लसित होते हैं, जैसे भूमि में षडरस।

नाना भावों में भगवान की सत्ता झलकती हैं। हमारा हृदय इस सत्ता से ओत-प्रोत है। आनन्द की मनोरम अनुभूति अथवा सुखों के मनोनुकूल अनुभव को रति कहते हैं। हर्ष आदि के द्वारा चित्त के विकास को हास कहते हैं। अभीष्ट वस्तु के नाश आदि से उत्पन्न मन की विफलता को शोक कहते हैं। अपने प्रतिकूल आचरण करने पर कठोरता के उदय का नाम क्रोध है। पुरूषार्थ के अनुकूल भाव का नाम उत्साह है। चित्र दृश्यादि के दर्शन से जनित मानसिक विकलता का नाम भय है। दुर्भाग्यवाही पदार्थों की निन्दा को जुगुप्सा कहते हैं। किसी वस्तु के दर्शन से चित्त का अतिशय आश्चर्य से पूरित होना विस्मय कहलाता है।

भय या रागादि उपाधियों से चेष्टा का अवरोध हो जाना स्तम्भ है। श्रम एवं राग आदि से युक्त अन्तःकरण के क्षोभ से शरीर से उत्पन्न जल को स्वेद कहते हैं। हर्षादि से शरीर का उच्छ्वसित होना और उसमें रोंगटे खड़े हो जाना रोमांच कहा गया है। हर्ष आदि तथा भय आदि के द्वारा वाणी का स्पष्ट उच्चारण न होना (गद्गद हो जाना ) स्वरभेद कहा गया है। विषाद आदि से शरीर की कान्ति का परिवर्तन वैवर्ण्य कहा गया है। दुःख अथवा आनन्द से उद्भूत नेत्रजल को अश्रु कहते हैं। उपवास आदि से इन्द्रियों की संज्ञाहीनता को प्रलय कहा जाता है। चित्त के क्षोभ से उत्पन्न कम्पन को वेपथु कहा गया है। अर्जुन को ये सब भाव हुए। वह कहता है-

सीदन्ति मम गात्राणि,मुखं च परिशुष्यति। वेपथुश्च शरीरे मे रोमहर्षश्च जायते।।

गाण्डीवं स्त्रंसते हस्तात् त्वक्चैव परिदह्यते। न च शक्नोम्यवस्थातुं भ्रमतीव च मे मनः।। गीता 1/29,30

सीदन्ति मम गात्राणि – मेरे अंग शिथिल हुए जा रहे हैं। यह स्तम्भ भाव है।

मुखं च परिशुष्यति – और मुख सूखा जा रहा है। यह स्वरभेद भाव है।

वेपथुः च शरीरे मे – मेरे शरीर में कम्पन है। यह वेपुथ चित्तक्षोभ जन्य भाव है।

रोमहर्षश्च जायते – तथा मुझे रोमांच हो रहा है। यह रोमांच भाव है।

गाण्डीवं स्त्रंसते हस्तात् – हाथ से गाण्डीव धनुष गिर रहा है। यह प्रलय भाव है।

त्वक् चैव परिदह्यते – और मेरी त्वचा जल रही है। यह स्वेद भाव है।

न च शक्नोमि अवस्थातुम् – मैं खड़ा रहने में असमर्थ हूँ। यह भी स्तम्भ भाव है।

भ्रमति इव च मे मनः – मेरा मन चलायमान है।

यहाँ शोक भाव है। क्योंकि शोक में मन अशान्त रहता है। आँसू को छोड़कर अर्जुन में सभी सात्विक भाव आ गये थे। युद्ध के अवसर पर सात्विक (सत्व) का उदय एक असाधारण घटना है। उत्साह के स्थान पर शोक का भाव आना बतलाता है कि कुछ असाधारण होने जा रहा था। यह असाधारण घटना क्या होगी? कृष्ण का प्रवचन/गीता का प्रणयन।

वैराग्य आदि से उत्पन्न मानसिक खेद को निर्वेद कहा गया है। मानसिक पीड़ा आदि से जनित शैथिल्य को ग्लानि कहते हैं। अनिष्ट प्राप्ति की सम्भावना को शंका कहते हैं। दूसरे का उत्कर्ष सहन न करने को असूया कहते हैं। इसी को मत्सर भी कहा जाता है। मदिरा आदि के उपयोग से उत्पन्न मानसिक मोह को मद कहते हैं। अधिक कार्य करने से शरीर के भीतर उत्पन्न क्लान्ति या थकावट को श्रम कहते हैं। श्रृंगार आदि धारण करने में चित्त की उदासीनता का नाम आलस्य है। धैर्य से भ्रष्ट हो जाना दैन्य है। अभीष्ट वस्तु की प्राप्ति न होने से जो बार-बार उसकी ओर ध्यान जाता है, उसे चिन्ता कहते हैं। किसी कार्य के लिए उपाय न सूझना मोह है। अनुभूत वस्तु का चित्त में प्रतिबिम्बित होना स्मृति कहलाता है। तत्व ज्ञान के द्वारा अर्थों के निश्चय को मति कहते हैं।

अनुराग आदि से होने वाला जो अकथनीय मानसिक संकोच है, उसका नाम व्रीडा है। इसे लज्जा भी कहते हैं। चित्त की अस्थिरता को चपलता तथा प्रसन्नता को हर्ष कहते हैं। प्रतिकार की आशा से उद्भूत अन्तःकरण की विफलता को आवेश कहा जाता है। कर्त्तव्य के विषय में कुछ प्रतिभान न होना जड़ता है। अभीष्ट वस्तु की प्राप्ति से बढ़े हुए आनन्द या सन्तोष के अभ्युदय का नाम धृति है। दूसरों में निकृष्टता एवं अपने में उत्कृष्टता की भावना को गर्व कहा जाता है। इच्छित वस्तु के लाभ में दैव आदि से जनित विघ्न के कारण जो दुःख होता है,उसे विषाद कहते हैं। अभीष्ट पदार्थ की इच्छा से जो मन की चंचल स्थित होती है,उसका नाम उत्कण्ठा या उत्सुकता है। स्मरण शक्ति के अभाव का नाम अपस्मार है। बाधाओं के उपस्थित होने से चित्त का स्थिर न रह पाना त्रास है। चित्त के चमत्कृत होने के कारण द्विरूक्ति को वीत्सा कहते हैं। परिव्याप्ति या नैरन्तर्य प्रकट करने के लिए शब्द को दो बार कहना वीप्सा है। वि+आप्+सन्+टाप्, ईश्वम् = वीप्सा।

क्रोध के शमन न होने को अमर्ष कहते हैं। चेतना के उदय को प्रबोध या जागरण कहते हैं। चेष्टा और आकार से प्रकट होने वाले भावों का गोपन अवहित्थ कहलाता है। क्रोध से गुरूजनों पर कठोर वाग्दण्ड का प्रयोग उग्रता है। चित्त के ऊहापोह को वितर्क कहते हैं। मन एवं शरीर की प्रतिकूल परिस्थिति का नाम व्याधि है। काम आदि के कारण असम्बद्ध प्रलाप को उन्माद कहते हैं। तत्व ज्ञान होने पर चित्तगत वासना की शान्ति को शम कहते हैं।

ये सभी भाव समय-समय पर अर्जुन में आते रहे हैं। इन भावों से प्रवचन का विस्तार हुआ। भावों में रस की भावना (अभिव्यक्ति) होती है। भाव भगवान के आहार होते हैं। भावों से मन पर प्रहार किया जाता हैं।  भाव हृदय के उपहार हैं। भावों से संहार होता है। भावों में विहार होता है। भावों से भावों का परिहार होता है। भाव जगत् के प्रतिहार हैं। अबुध मन के भाव निहार हैं। भावों से भक्तों का उद्धार है। भाव बन्धन के तार हैं।

कृष्ण इस जगत् के नायक हैं। धीरोदात्त, धीरोद्धत, धीरललित एवं धीर प्रशान्त ये चार प्रकार के नायक माने गये हैं। धीरोदत्ताद्नियक अनुकूल, दक्षिण, शठ एवं धृष्ट के भेद से सोलह प्रकार के कहे गये हैं। सभी नायकों का समावेश कृष्ण में है। अतः कृष्णाय नमः।

कृष्णोद्भूत गीत कर्मशास्त्र है। भाव कर्म के प्रेरक हैं तथा क्रिया के कारक हैं। क्रिया का फल कर्म है। स्त्रैण और पौरूष दो प्रकार के कर्म हैं। कृष्ण इन दोनों प्रकार के कर्मों के अधिष्ठापक हैं। कृष्ण के वाक्कर्म का प्रमाण गीता ग्रन्थ है। दूसरों को अभीष्ट अर्थ का ज्ञान कराने के लिए उत्तम बुद्धि का आश्रय लेकर, वागारम्भ व्यापार होता है। सामान्य भाषण को आलाप, अधिक भाषण को प्रलाप, दुःखपूर्ण वचन को विलाप, बारम्बार कथन को अनुलाप, कथोपकथन को संलाप, निरर्थक भाषण को अपलाप, वार्ता के परिवहन को संदेश, विषय के प्रतिपादन को निर्देश, तत्वकथन को अतिदेश, निस्सार वस्तु के वर्णन को अपदेश, शिक्षापूर्ण वचन को उपदेश तथा व्याजोक्ति को व्यपदेश कहते हैं। ये 12 प्रकार के वचन द्वादशात्मा कृष्ण से हैं। गीता में अर्जुन को कृष्ण ने उपदेश दिया है। इसमें संदेश, निर्देश, अतिदेश तथा व्यपदेश का सौन्दर्य द्रष्टव्य है तथा आलाप, प्रलाय, विलाप ,अनुलाप, संलाप का संयोजन सुष्ठु है। इसमें यथा स्थान उपदेश एवं अपलाप की झलक मात्र मिलती है। अतएव यह पूर्ण वाक्शास्त्र है।

अर्जुन का किस कर्म से कल्याण होना है,उसे अब यह पूरी तरह ज्ञात हो गया है। जब पशु अपने हित-अहित को पहचानता है तो अर्जुन तो मनुष्य है। वह क्यों नहीं जानेगा।

निज हित अनहित पसु पहिचाना ।। – अयोध्याकाण्ड

राम ने पिता की आज्ञा को माना तथा वन गये। पिता गुरु होता है। गुरु का भलीभाँति आदर करने वाला सम्पूर्ण विभव को पाता है। राम गुरु वशिष्ठ को कितना सम्मान देते हैं, यह सर्वविदित है।

जे गुरु चरन रेनु सिर धरहीं। तें जनुसकल विभव बस करहीं ।। अयोध्याकाण्ड

अर्जुन को अपने गुरुकृष्ण का सम्मान करना है, उनके आदेश के अनुसार युद्ध करना है। कृष्ण तो जगत के पिता हैं। उनका आदेश सर्वोपरि है।

पितु आयसु सब धरम क टीका ।।  – अयोध्याकाण्ड

माता-पिता, गुरु एवं स्वामी का आदेश मानना, समस्त धर्मरूपी पृथ्वी को धारण करने में समर्थ शेष जी के समान है। गुरु का प्रसाद (अनुग्रह) सर्वत्र रक्षक होता है।

“मातु पिता गुरु स्वामि निदेसू। सकल धरम धरनीधर सेसू।।” गुरुकृष्ण की प्रसन्नता ही अर्जुन का रक्षाकवच है तथा गुरुकृष्ण की आज्ञा का पालन करना धर्म है। अब, इसके लिए अर्जुन तत्पर है।

(लेखक माधव ज्ञान केन्द्र इण्टरमीडिएट कालेज, खरकौनी, नैनी-प्रयागराज में प्रधानाचार्य है।)

 

आस्ते भग आसीनस्य ऊध्र्वम् तिष्ठति तिष्ठत:। 

शेते निषद्यमानस्य चरति चरतो भग:।।

जो मनुष्य कर्तव्य मार्ग में बैठा रहता है, उसका भाग्य भी बैठ जाता है। जो खड़ा रहता है, उसका भाग्य भी खड़ा रहता है। जो सोता है, उसका भाग्य भी सो जाता है। और जो चलने लगता है, उसका भाग्य भी चलने लगता है। अर्थात कर्म से ही भाग्य बदलता है।

   

कामवाली बाई

 

यह बात उन दिनों की है, जब स्कूल बस की हड़ताल चल रही थी ।मेरे पति अपने व्यवसाय की एक आवश्यक मीटिंग में बिजी थे, इसलिए मेरे 5 साल के बेटे को स्कूल से लाने के लिए मुझे अपने टू-व्हीलर (स्कूटी) पर जाना पड़ा ।जब मैं टू व्हीलर से घर की ओर वापस आ रही थी, तब अचानक रास्ते में मेरा बैलेंस बिगड़ा और मैं एवं मेरा बेटा हम दोनों गाड़ी सहित नीचे गिर गए ।मेरे शरीर पर कई खरोंच आए, लेकिन  प्रभु की कृपा से मेरे बेटे को कहीं खरोंच तक नहीं आई ।हमें नीचे गिरा देखकर आसपास के कुछ लोग इकट्ठे हो गए और उन्होंने हमारी मदद करनी चाही ।

तभी मेरी कामवाली बाई राधा ने मुझे दूर से ही देख लिया और वह दौड़ी चली आई । उसने मुझे सहारा देकर  खड़ा किया, और अपने एक परिचित की सहायता से मेरी गाड़ी एक दुकान पर खड़ी करवा दी ।वह मुझे कंधे का सहारा देकर अपने घर ले गई जो पास में ही था ।जैसे ही हम घर पहुँचे, वैसे ही राधा के दोनों बच्चे हमारे पास आ गए ।राधा ने अपने पल्लू से  बंधा हुआ 50 का नोट निकाला और अपने बेटे राजू को दूध, बैंडेज एवं एंटीसेप्टिक क्रीम लेने के लिए भेजा तथा अपनी बेटी रानी को पानी गर्म करने का बोला । उसने मुझे कुर्सी पर बिठाया तथा मटके का ठंडा जल पिलाया । इतने में पानी गर्म हो गया था ।वह मुझे लेकर बाथरूम में गई और वहाँ पर उसने मेरे सारे जख्मों को गर्म पानी से अच्छी तरह से धोकर साफ किया और बाद में वह उठकर बाहर गई ।वहाँ से वह एक नया टावेल और एक नया गाउन मेरे लिए लेकर आई ।

उसने टावेल से मेरा पूरा बदन पोंछा तथा जहाँ आवश्यक था, वहाँ बैंडेज लगाई । साथ ही जहाँ मामूली चोट थी, वहाँ पर एंटीसेप्टिक क्रीम लगाया ।

अब मुझे कुछ राहत महसूस हो रही थी । उसने मुझे पहनने के लिए नया गाउन दिया वह बोली "यह गाउन मैंने कुछ दिन पहले ही खरीदा था, लेकिन आज तक नहीं पहना मैडम आप यही पहन लीजिए तथा थोड़ी देर आप रेस्ट कर लीजिए" ।आपके कपड़े बहुत गंदे हो गये हैं, हम इन्हें धो कर सुखा देंगे, फिर आप अपने कपड़े बदल लेना ।मेरे पास कोई चॉइस नहीं थी । मैं गाउन पहनकर बाथरुम से बाहर आई । उसने झटपट अलमारी में से एक नया चद्दर निकाला और पलंग पर बिछाकर बोली आप थोड़ी देर यहीं आराम कर लीजिए ।

इतने में बिटिया ने दूध भी गर्म कर दिया था । राधा ने दूध में एक चम्मच हल्दी मिलाई और मुझे पीने को दिया और बड़े विश्वास से कहा– "मैडम! आप यह दूध पी लीजिए,  आपके सारे जख्म भर जाएंगे* ।

लेकिन अब मेरा ध्यान तन पर था ही नहीं, बल्कि मेरे अपने मन पर था ।मेरे मन के सारे जख्म एक एक कर के हरे हो रहे थे । मैं सोच रही थी "कहाँ मैं और कहाँ यह राधा ?"जिस राधा को मैं  फटे–पुराने कपड़े देती थी, उसने आज मुझे नया टावेल दिया, नया गाउन दिया और मेरे लिए नई बेडशीट लगाई । धन्य है यह राधा ।

एक तरफ मेरे दिमाग में यह सब चल रहा था, तब दूसरी तरफ  राधा गरम–गरम चपाती और आलू की सब्जी बना रही थी । थोड़ी देर में वह थाली लगाकर ले आई । वह बोली "आप और बेटा दोनों खाना खा लीजिए" ।*

राधा को मालूम था कि मेरा बेटा आलू की सब्जी ही पसंद करता है और उसे गरम गरम रोटी चाहिए । इसलिए उसने रानी से तैयार करवा दी थी ।रानी बड़े प्यार से मेरे बेटे को आलू की सब्जी और रोटी खिला रही थी और मैं इधर प्रायश्चित की आग में जल रही थी ।

 सोच रही थी कि जब भी इसका बेटा राजू मेरे घर आता था, मैं उसे एक तरफ बिठा देती थी और इन लोगों के मन में हमारे प्रति कितना प्रेम है  ?

यह सब सोच–सोच कर मैं आत्मग्लानि से भरी जा रही थी । मेरा मन दुख और पश्चाताप से भर गया था ।

तभी मेरी नज़र राजू के पैरों पर गई जो लंगड़ा कर चल रहा था ।मैंने राधा से पूछा– "राधा इसके पैर को क्या हो गया तुमने इलाज नहीं करवाया ?" राधा ने बड़े दुख भरे शब्दों में कहा– "मैडम! इसके पैर का ऑपरेशन करवाना है, जिसका खर्च करीबन ₹10000  है"* ।मैंने और राजू के पापा ने रात दिन मेहनत कर के ₹5000 तो जोड़ लिए हैं, ₹5000 की और आवश्यकता है । हमने बहुत कोशिश की लेकिन कहीं से मिल नहीं सके ।"

"ठीक है, भगवान पर भरोसा है, जब आएंगे तब इलाज हो जाएगा । फिर हम लोग कर ही क्या सकते हैं ?"तभी मुझे ख्याल आया कि राधा ने एक बार मुझसे ₹5000 एडवांस मांगे थे और मैंने बहाना बनाकर मना कर दिया था ।आज वही राधा अपने पल्लू में बंधे सारे रुपए हम पर खर्च कर के खुश थी और हम उसको, पैसे होते हुए भी मुकर गए थे और सोच रहे थे कि बला टली ।आज मुझे पता चला कि उस वक्त इन लोगों को पैसों की कितनी सख्त आवश्यकता थी ।मैं अपनी ही नजरों में गिरती ही चली जा रही थी ।अब मुझे अपने शारीरिक जख्मों की चिंता बिल्कुल नहीं थी, बल्कि उन जख्मों की चिंता थी जो मेरी आत्मा को मैंने ही लगाए थे । मैंने दृढ़ निश्चय किया कि जो हुआ सो हुआ, लेकिन आगे जो होगा वह सर्वश्रेष्ठ ही होगा ।मैंने उसी वक्त राधा के घर में जिन–जिन चीजों का अभाव था, उसकी एक लिस्ट अपने दिमाग में तैयार कर ली । थोड़ी देर में मैं लगभग ठीक हो गई ।*

मैंने अपने कपड़े चेंज किए,  लेकिन वह गाउन मैंने अपने पास ही रखा और राधा को बोला– "यह गाऊन अब तुम्हें कभी भी नहीं दूंगी, यह गाऊन मेरी जिंदगी का सबसे अमूल्य तोहफा है" ।राधा बोली मैडम यह तो बहुत हल्की रेंज का है । राधा की बात का मेरे पास कोई जवाब नहीं था । मैं घर आ गई लेकिन रात भर सो नहीं पाई ।

मैंने अपनी सहेली के मिस्टर, जो की हड्डी रोग विशेषज्ञ थे, उनसे राजू के लिए अगले दिन का अपॉइंटमेंट लिया । दूसरे दिन मेरी किटी पार्टी भी थी । लेकिन मैंने वह पार्टी कैंसिल कर दी और राधा की जरूरत का सारा सामान खरीदा  और वह सामान लेकर मैं राधा के घर पहुँच गई ।राधा  समझ ही नहीं पा रही थी कि इतना सारा सामान एक साथ मैं उसके घर में क्यों लेकर गई ?मैंने धीरे से उसको पास में बिठाया और बोला," यह सारा सामान मैं तुम्हारे लिए नहीं लाई हूँ, मेरे इन दोनों प्यारे बच्चों के लिए लाई हूँ और हाँ! मैंने राजू के लिए एक अच्छे डॉक्टर से अपॉइंटमेंट ले लिया है, हम को शाम 7:00 बजे उसको दिखाने चलना है, उसका ऑपरेशन जल्द से जल्द करवा लेंगे और तब राजू भी अच्छी तरह से दौड़ने लग जाएगा ।"

राधा यह बात सुनकर खुशी के मारे रो पड़ी लेकिन यह भी कहती रही कि मैडम यह सब आप क्यों कर रही हैं ? हम बहुत छोटे लोग हैं, हमारे यहाँ तो यह सब चलता ही रहता है । वह मेरे पैरों में गिरने लगी । यह सब सुनकर और देखकर मेरा मन भी द्रवित हो उठा और मेरी आँखों से भी आँसू के झरने फूट पड़े । मैंने उसको दोनों हाथों से ऊपर उठाया और गले लगा लिया, मैंने बोला बहन रोने की जरूरत नहीं है, अब इस घर की सारी जवाबदारी मेरी है ।मैंने मन ही मन कहा राधा तुम क्या जानती हो कि मैं कितनी छोटी हूँ और तुम कितनी बड़ी हो ?आज तुम लोगों के कारण ही मेरी आँखें खुल सकी है । मेरे पास इतना सब कुछ होते हुए भी मैं भगवान से और अधिक की भीख मांगती रही, मैंने कभी संतोष का अनुभव ही नहीं किया ।लेकिन आज मैंने जाना कि असली खुशी, पाने में नहीं बल्कि देने में है ।मैं परमपिता परमेश्वर को बार-बार धन्यवाद दे रही थी, कि आज उन्होंने मेरी आँखें खोल दी । मेरे पास जो कुछ था, वह बहुत अधिक था, उसके लिए मैंने परमात्मा को बार-बार अपने ऊपर उपकार माना तथा उस धन को जरूरतमंद लोगों के बीच खर्च करने का पक्का निर्णय किया ।

 

 

कुछ ऐसी लीला रचो प्रभु ! 

 

कुछ ऐसी लीला रचो प्रभु ! 

मन शांत रहे, मन शांत रहे | 

दुनिया के भोग विलासों से , 

आक्रान्त रहे , आक्रान्त रहे || 

             अपने हित का न लोभ रहे  , 

             सबकी सोचे , सबकी सोचे |  

            लोभ काम अब  जनमानस को , 

             नहीं दबोचे , नहीं सताए  ||  

जियें खुशी से जीव जगत में , 

कोई परेशानी ना हो जग में | 

कलिमल हरो बिषयरस सोखो , 

नहीं रहें हैवानी इस जग में  ||

              दीनदयाल दया करिये , 

              भवताप भयाकुल को हरिये | 

              जन जन में बहे स्नेह -गंगा , 

              मानवता को जिन्दा करिये || 

 

 

 

जनवरी में पड़ने वाले महापुरुषों के जन्मदिन

01 जनवरी 1894 - सत्येंद्र नाथ बोस - प्रसिद्ध गणितज्ञ और भौतिक शास्त्री


04 जनवरी 1809 - लुई ब्रेल - नेत्रहीनों के लिये ब्रेल लिपि का निर्माण करने वाले प्रसिद्ध व्यक्ति


04 जनवरी 1892 - जे.सी. कुमारप्पा - भारत के एक अर्थशास्त्री



13 जनवरी 1949 - राकेश शर्मा -  भारत के पहले और विश्व के 138 वें अंतरिक्ष यात्री


20 जनवरी 1900 - जनरल के एम करिअप्पा -  भारत के पहले सेनाध्यक्ष, फील्ड मार्शल


23 जनवरी 1897 - सुभाषचंद्र बोस - भारत के स्वतन्त्रता संग्राम के अग्रणी नेता



28 जनवरी 1865 - लाला लाजपत राय - प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी, पंजाब केसरी के नाम से जाने जाते है 



दिनांक 30 महात्मा गांधी पुण्यतिथि

जनवरी मास के महत्व पूर्ण दिवस 

दिनांक 1 आर्मी मेडिकल कोर स्थापना दिवस 

कोर की शुरुआत 1 जनवरी 1764 में बंगाल मेडिकल सर्विस के रूप में हुई थी। कोर का निर्माण इसलिए किया गया था ताकि सैनिकों, पूर्व सैनिकाें एवं उनके आश्रितों को स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान की जा सकें।कोर द्वारा दूरदराज इलाकों में तैनात सैनिकों एवं युद्ध के दौरान सैनिकों को सेवा प्रदान की जाती है। एएमसी का युद्ध और शांति के साथ ही विदेशों में मिशन के दौरान भारतीय सशस्त्र बलों की सेवा का एक गौरवशाली इतिहास रहा है। सेना चिकित्सा कोर अपने समर्पण के लिए जाना जाता है।

दिनांक 1  ग्लोबल फैमिली डे

 इस दिवस का उद्देश्य विश्व शांति है. इस दिन परिवार को लोग साथ आयें और एकजुट समाज की रचना करें, यही इस दिवस का उद्देश्य है.परिवार हमारे जीवन में एक वरदान है इससे इनकार नहीं किया जा सकता, इसलिए आज के दिन को उनकी खुशी के लिए देना ही ग्लोबल फैमिली डे का उद्देश्य है |

दिनांक  9  प्रवासी भारतीय दिवस 

प्रवासी भारतीय दिवस 09 जनवरी को मनाया जाता है क्योंकि महात्मा गांधी 09 जनवरी 1915 को दक्षिण अफ्रीका से भारत लौटे थे. महात्मा गांधी को सबसे महान प्रवासी माना जाता है जिन्होंने न केवल भारत के स्वतंत्रता संग्राम का नेतृत्व किया बल्कि भारतीयों के जीवन को हमेशा के लिए बदल दिया |

दिनांक 10  विश्व हिंदी दिवस 

विश्व हिंदी दिवस या वर्ल्ड हिंदी डे हर साल 10 जनवरी को मनाया जाता है, 1975 में आयोजित पहले विश्व हिंदी सम्मेलन की वर्षगांठ को चिह्नित करने के लिए. पहले विश्व हिंदी सम्मेलन का उद्घाटन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने किया था.14 सित॰ 2021

दिनांक 12  राष्ट्रीय युवा दिवस 

12 जनवरी यानी स्वामी विवेकानंद की जयंती के दिन राष्ट्रीय युवा दिवस मनाया जाता है. युवा किसी भी देश का भविष्य हैं. देश की युवा पीढ़ी को सही मार्गदर्शन मिल सके, इसलिए हर साल 12 जनवरी को राष्ट्रीय युवा दिवस मनाया जाता है. स्वामी विवेकानंद के आदर्शों और विचारों से देशभर के युवाओं को प्रोत्साहन मिलता है.

दिनांक 15 थल सेना दिवस

भारत में 'थल सेना दिवस' देश के जांबाज रणबांकुरों की शहादत पर गर्व करने का एक विशेष मौका है  

दिनांक 24 राष्ट्रीय बालिका दिवस

 24 जनवरी के दिन इंदिरा गांधी को नारी शक्ति के रूप में याद किया जाता है। इस दिन इंदिरा गांधी पहली बार प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठी थी इसलिए इस दिन को राष्ट्रीय बालिका दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया गया है। यह निर्णय राष्ट्रीय स्तर पर लिया गया है।

दिनांक 25 भारतीय पर्यटन दिवस

 देश में पर्यटन को बढ़ावा देने व देश की जनता को पर्यटन का महत्व समझाने के उद्देश्य से हर वर्ष 25 जनवरी को राष्ट्रीय पर्यटन दिवस के रूप में मनाया जाता है जबकि विश्व पर्यटन दिवस 27 सितम्बर को मनाया जाता है.

दिनांक 26 भारतीय गणतंत्र दिवस

 भारत को पूर्ण गणराज्य का दर्जा दिलाने की मुहीम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू की अध्यक्षता में हुई थी. लाहौर में अधिवेशन के दौरान भारत को पूर्ण गणराज्य बनाने का प्रस्ताव पेश हुआ था. ... इसके लिए ही 26 जनवरी के दिन भारतीय सविंधान को लागू किया गया और तब से इस दिन को गणतंत्र दिवस के रूप में मनाया जाता है|

दिनांक 26  अंतर्राष्ट्रीय सीमा शुल्क दिवस 

26 जनवरी को प्रति वर्ष दुनिया भर के 179 सदस्य देशों के सीमा शुल्क प्रशासन द्वारा विश्व सीमा शुल्क संगठन के सीमा शुल्क सहयोग परिषद द्वारा पहले सत्र का जश्न मनाने के लिए के विभिन्न राष्ट्रीय कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। डबल्युसीओ सचिवालय अंतर्राष्ट्रीय सीमा शुल्क दिवस के लिए एक विषय चुनता है।

विश्व सीमा शुल्क संगठन (डबल्युसीओ) डिजिटल सीमा शुल्क के तहत  सीमा शुल्क प्रक्रिया के डिजिटलीकरण को बढ़ावा देने के लिए समर्पित है।


पौष मास

पौष विक्रमी सम्वत  में एक मास का नाम होता है | विक्रम सवंत् के अनुसार 10 महीना होता है। ग्रेगोरियन कैलेंडर में दिसम्बर व जनवरी का महीना होता है।पंचाग के अनुसार प्रत्येक मास का अपना महत्व होता है | इस प्रकार पौष मास का भी महत्व है। पौष मास में सूर्य की उपासना का महत्व दिया जाता है। इस प्रकार प्रत्येक मास किसी न किसी देवता के लिए विशेष माना जाता है।महीनों के नाम नक्षत्रों पर आधारित होते है। महीने का बदलना चन्द्र चक्र पर निर्भर करता है, चन्द्रमा जिस नक्षत्र पर होता है उस महीने का नाम उसी नक्षत्र के आधार पर रखा जाता है। पौष मास की पूर्णिमा को चंद्रमा पुष्य नक्षत्र में रहता है इसलिए इस मास को पौष का मास कहा जाता है।

पौष मास में सूर्य देव की उपासना उनके भग नाम से करनी चाहिए। पौष मास के भग नाम सूर्य को ईश्वर का ही स्वरूप माना गया है। पौष मास में सूर्य को अर्ध्य देने व इनका उपवास रखने का विशेष महत्व माना गया है। मान्यता है कि इस मास प्रत्येक रविवार व्रत व उपवास रखने और तिल चावल की खिचड़ी का भोग लगाने से मनुष्य तेजस्वी बनता है।तांबे के पात्र से जल अर्घ्य करना चाहिए।जल में रोली, लाल पुष्प और अक्षत डालना शुभ होता है।अर्घ्य देते समय "ॐ आदित्याय नमः" का जाप करें। पंचांग के अनुसार पौष माह को  खरमास या मल कहते है | पौष मास का सनातन धर्म में खास महत्व होता है | कहा जाता है कि खरमास में शादी-विवाह, सगाई, मुंडन और भवन निर्माण जैसे मंगल कार्य पूरी तरह से वर्जित माने जाते हैं | मान्यता है कि इस माह में नमक का सेवन कम से कम करना चाहिए। पौष माह में चीनी की बजाए गुड का सेवन करना उत्तम होता है। इसके साथ ही अजवाइन, लौंग और अदरक का सेवन करना लाभकारी होता है। इसके अलावा पौष माह में तेल और घी का ज्यादा प्रयोग करना उत्तम नहीं होता है।इस महीने में की गई साधना लाभकारी मानी जाती है। इसके अलावा इस महीने में गर्म वस्त्रों का दान करना उत्तम माना गया है। इसके अलावा लाल और पीले रंग के वस्त्र पहनना शुभ माना जाता है।




भारतीय व्रत और उत्सव जनवरी - 2022 

दिनांक- 1 मास शिवरात्रि,दिनांक -2 अमावस्या,दिनांक- 6 विनायक चतुर्थी व्रत,दिनांक - 9 श्री गुरु गोविन्द सिंह जयंती,दिनांक- 10 श्री दुर्गा अष्टमी, दिनांक 12 स्वामी विवेकानंद जयंती,दिनांक-13 पुत्रदा एकादशी व्रत, लोहरी, दिनांक-14 मकर संक्रांति पुन्य,दिनांक -15 शनि प्रदोष व्रत,दिनांक-17 सत्य व्रत,पौष पूर्णिमा ,,दिनांक 21 श्री गणेश चतुर्थी व्रत,संकटचौथ,चन्द्र उदय 21 -01,दिनांक- 25 काला अष्टमी,रामान्दचार्य जयंती,दिनांक- 28 षट्तिला एकादशी व्रत,दिनांक 30 मास शिवरात्रि,प्रदोष व्रत | 


पंचक विचार जनवरी - 2022  


पंचक विचार -(धनिष्ठा नक्षत्र के तृतीय चरण से रेवती नक्षत्र तक) पंचको में दक्षिण दिशा की ओर यात्रा करना मकान दुकान आदि की छत डालना चारपाई पलंग आदि बुनना,दाह संस्कार,बांस की चटाई दीवार प्रारंभ करना आदि स्तंभ रोपण तांबा पीतल तृण काष्ट आदि का संचय करना आदि कार्यों का निषेध माना जाता है समुचित उपाय एवं पंचक शांति करवा कर ही उक्त कार्यों का संपादन करना कल्याणकारी होगा ध्यान रहेगा  पंचर नक्षत्रों का विचार मात्र उपरोक्त विशेष कृतियों के लिए ही किया जाता है विवाह मंडल आरंभ गृह प्रवेश प्रवेश उपनयन आदि मुद्दों से तो पंचक नक्षत्रका प्रयोग शुभ माना जाता है पंचक विचार-दिनांक 05 को 19-53 से दिनांक 10 को 08-49 बजे तक पंचक हैं |

मानसिक-प्रसन्नता



एक व्यक्ति ने व्यापार में उन्नति की और लंदन में  ज़मीन ख़रीद उस पर  आलीशान घर बनाया.भूमि पर पहले से ही एक खूबसूरत स्विमिंग पूल और पीछे  की और एक 100 साल पुराना लीची का पेड़ था.उन्होंने वो भूमि उस लीची के पेड़ के कारण ही ख़रीदी थी, क्यूँकि उनकी पत्नी को लीचियाँ बहुत पसंद थी | कुछ अरसे बाद Renovation के समय उनके कुछ मित्रों ने सलाह दी,उन्हें किसी वास्तु शास्त्र विशेषज्ञ की सलाह लेनी चाहिए | यद्यपि उसे ऐसी बातों पर विश्वास नहीं था, फिर भी मित्रों का मन रखने के लिए उन्होंने बात मान ली और Hongkong से 30 साल से वास्तु शास्त्र के बेहद प्रसिद्ध Master Cao  को बुलवा लिया | उन्हें Airport से लिया, दोनों ने शहर में खाना खाया और उसके बाद वो उन्हें अपनी कार में ले कर अपने घर की ओर चल दिए | रास्ते में जब भी कोई कार उन्हें Overtake करने की कोशिश करती, वो उसे रास्ता दे देते | Master Cao ने हंसते हुए कहा  आप बहुत Safe driving करते हैं. उसने भी हंसते हुए प्रत्युत्तर में कहा लोग अक्सर Overtake तभी करते हैं जब उन्हें कुछ आवश्यक कार्य हो, इसलिए हमें उन्हें रास्ता देना चाहिए | घर के पास पहुँचते-पहुँचते सड़क थोड़ी संकरी हो गयी और उसने कार थोड़ी और धीरे कर ली. तभी अचानक एक हंसता हुआ बच्चा गली से निकला और तेज़ी से भागते हुए उनकी कार के आगे से सड़क पार कर गया, वो उसी गति से चलते हुए उस गली की ओर देखते रहे, जैसे किसी का इंतज़ार कर रहे हों, तभी अचानक उसी गली से एक और बच्चा भागते हुए उनकी कार के आगे से निकल गया, शायद पहले बच्चे का पीछा करते हुए. Master Cao ने हैरान होते हुए पूछा - आपको कैसे पता कि कोई दूसरा बच्चा भी भागते हुए निकलेगा ? उसने बड़े सहज भाव से कहा, बच्चे अक्सर एक-दूसरे के पीछे भाग रहे होते हैं और इस बात पर विश्वास करना संभव ही नहीं कि कोई बच्चा बिना किसी साथी के ऐसी चुहल और भाग दौड़ कर रहा हो,Master Cao इस बात पर बहुत ज़ोर से हंसे और बोले की आप निस्संदेह बहुत सुलझे हुए व्यक्ति हैं | घर के बाहर पहुँच कर दोनों कार से उतरे. तभी अचानक घर के पीछे की ओर से 7-8 पक्षी बहुत तेज़ी से उड़ते नज़र आए. यह देख कर उसने Master Cao से कहा कि यदि उन्हें बुरा न लगे तो क्या हम कुछ देर यहाँ रुक सकते हैं ? Master Cao ने कारण जानना चाहा उसने कहा कि शायद कुछ बच्चे पेड़ से लीचियाँ चुरा रहे होंगे और हमारे अचानक पहुँचने से डर के मारे बच्चों में भगदड़ न मच जाए, इससे पेड़ से गिर कर किसी बच्चे को चोट भी लग सकती है | Master Cao कुछ देर चुप रहे, फिर संयत आवाज़ में बोले मित्र, इस घर को किसी वास्तु शास्त्र जाँच और उपायों की आवश्यकता नहीं है | उसने बड़ी हैरानी से पूछा ऐसा क्यूँ ? Master Cao - जहां आप जैसे विवेकपूर्ण व आसपास के लोगों की भलाई सोचने वाले व्यक्ति उपस्थित/विद्यमान होंगे - वो स्थान/संपत्ति वास्तु शास्त्र नियमों के अनुसार बहुत पवित्र-सुखदायी-फलदायी होगी।गजब हमारा मन व मस्तिष्क दूसरों की ख़ुशी व शांति को प्राथमिकता देने लगे, तो इससे दूसरों को ही नहीं, स्वयं हमें भी मानसिक लाभ-शांति-प्रसन्नता मिलती है।जब कोई व्यक्ति सदा स्वयं से पहले दूसरों का भला सोचने लगे तो अनजाने में ही उसे संतत्व प्राप्त हो जाता है जिसके कारण दूसरों का भला हो रहा होता है व उसे ज्ञानबोध मिल जाता है।भले ही हम प्रण न करें परंतु क़ोशिश अवश्य करें कि हममें भी ऐसे कुछ गुण विकसित हो जाएं कि हमारे घर को Feng Shui अथवा वास्तु जैसे किसी जंत्र-मंत्र की आवश्यकता ही न रहे.




 

आंसुओ की दास्तान भी अजीब है,दुख में छलकते हैं और खुशी में भी,अहमियत तो वक्त की ही है, वो ही फैसला करता है कि मुस्कराना है या आँसू बहाने है

    वक्त हमेशा जिंदगी के साथ रहता है,पल पल और हर घड़ी, जिंदगी को शायद पता नहीं कि वक्त तो थोड़ी बेवफाई करता है, जिन्दगी के बाद भी चलता रहता है ये कहकर कि मुसाफिरों की इतनी लंबी कतार है कि वो रूक नहीं सकता है और हर शक्स को वक्त का कुछ हिस्सा तो चाहिए अपनी जिन्दगी जीने के लिए। 

      वक्त जिन्दगी को "उपहार " की तरह मिला है।अलका नरुला 



EVOLUTION In PEDAGOGIES 



It is said if you want to see the change around you,Be the change ….

This 21st century pandemic acted as a jumping pad to leap us into an era of technomart ,so to say has taught us indirectly that you need to be a change yourself, to bring change around.


School buildings are closed but not the teaching .

How the evolution came in pedagogies(the method and practice of teaching ,especially as an academic subject).?

There are several teachers who didn't understand computers and technology that well but with this crucial time it all started by taking help from their husbands ,children and neighbours.

Many felt playing the role of  a teacher while simultaneously managing the domestic chores has its share of big challenges.

In Fact the sudden pandemic spread in 2020 evolved everything overnight.Everybody had to instantly shift to new pedagogies and started getting equipped with technology that keeps on changing even after every six months.

Getting acquainted with new technology is definitely a big challenge.

Conventional ways of teaching were stopped with the closure of schools .

Rome is not built in a day ,we know well.

Learning specific online tools ,looking for a silent corner in a home ,cooking ,taking care of cleanliness and noise ,is really a big challenge but I am proud to share that the whole globe shifted to online teaching learning.

Computer based education programmes are updated ,technology became an integral part of their daily lives.

However we needed to strike a balance between the physical and virtual world to get the maximum benefits.

I think it is not debatable ,the need of the hour is online learning.

Undoubtedly computers ,smart phones ,tablets,laptops are powerful tools .Presently they are used for almost every single task we accomplish daily.

We can live without food for one hour but not without the internet because we use tools for communication ,to organise our lives ,to work from home ,and to educate ourselves.

Gone are the days when schools didn’t allow students to carry mobiles ,on the contrary in every home everybody needs a smartphone /laptop/tablet/ computer nowadays.

New pedagogies

New time

And the new normal we all are.

One of the most pertinent questions nowadays is ..how much technology should be allowed at different levels of age/class?

No satisfactory answer for that till now…

Studies online ,exams offline

What a paradox ??????

No doubt our educators adopted new techniques to teach students at home only but they faced many many challenges…

How much did they grasp?

What about learning gaps?

Also students took liberty to switch off videos and also the health issue ,in particular the eye sight and backache ..

Also the mental health of parents and the whole lot of stakeholders …

Whatever it is ….

Teaching /learning can’t be stopped altogether.

The future of education is going to be a mixture of virtual and physical classes,and that in a real sense is the transformation of us and evolution in technology.

With drastic changes in learning strategies that relies basically on technology ,how are our educators managing it ?

In our country as per my knowledge maximum teachers are females.Also social bias is that in most households working women are expected to manage and excel in all daily chores even in this unprecedented time ,so tough it may be … 

Undoubtedly mental pressure will take the front seat .

And the result is nobody is going to value the efforts of teachers,not the school and not family.

Whatever the consequences may be,it is better we all need to evolve our pedagogies as it is the need of the hour .

What I feel is online tools provide additional information to learners.

Also they are good at assessing assignments .

Educators can easily review them .

Students improve upon their computer skills.

Online teaching as per survey is more joyful..

The biggest advantage is that there is no paper wastage and flexibility in structure.

Students and staff save their  time commuting and they can work globally sitting anywhere with any tool in hand .

A plethora of activities exist outside a classroom.

In recent times education has completely transformed from its traditional set up ,and reskilling ,upskilling ,relearning ,unlearning have become a necessity in a post pandemic scenario .

Digitalisation plays a vital role in every field of our present life so evolution of pedagogies must get a green signal from us as educationists.

Educationist

Madhu ved

mdh.ved@gmail.com

9899211336




भद्रा विचार जनवरी- 2022 

भद्रा काल का शुभ अशुभ विचार - भद्रा काल में विवाह मुंडन, गृह प्रवेश, रक्षाबंधन आदि मांगलिक कृत्य का निषेध माना जाता है परंतु भद्रा काल में शत्रु का उच्चाटन करना,स्त्री प्रसंग में,यज्ञ करना, स्नान करना, अस्त्र शस्त्र का प्रयोग, ऑपरेशन कराना, मुकदमा करना, अग्नि लगाना, किसी वस्तु को काटना,घोड़ा ऊंट संबंधी कार्य, प्रशस्त माने जाते हैं सामान्य परिस्थिति में विवाह आदि  शुभ मुहूर्त में भद्रा का त्याग करना चाहिए परंतु आवश्यक परिस्थितिवश अति आवश्यक कार्य  में पंडित जी से विचार कर लेना चाहिए 9312002527 

दिनांक 

शुरू 

दिनांक 

समाप्त 

01

07-18

01

17-29

06

01-32

06

12-29

09

11-09

09

23-46

13

06-11

13

19-33

17

03-18

17

16-18

20

20-28

21

08-52

24

08-44

24

20-16

27

15-25

28

02-17

30

17-29

31

03-53


रत्न विज्ञान - माणिक्य रत्न 

 

रत्नों की अपनी एक अलग ही रंग बिरंगी दुनिया है | अपना एक विशिष्ट विज्ञान भी | रत्न विज्ञान में  अनेकों खोज हुई है | पश्चिम जगत में जहां रत्नों के केवल भौतिक गुण  पर ही ध्यान दिया जाता है | वहीं भारत में इन गुणों के अतिरिक्त भी इनकी  ओषध विधि,धारणा,ज्योतिष में रत्नों का संबंध और विचार भी दृष्टिगत रखे जाते हैं | धारण और सेवन दोनों ही प्रकार के रत्न उपयोग भारत में प्राचीन काल से प्रचलित हैं | रत्नों के साथ-साथ भारत में उप रत्नों के विषय में भी बताया जाता है | चिकित्सा में भी रत्न कारगर हुए हैं वही ज्योतिष विज्ञान में मनुष्य की मानसिक स्थिति व नित्य होने  वाली समस्याओं का निदान भी रत्न धारण करने के द्वारा बताया जाता है |

यहां हम सूर्य ग्रह से संबंधित माणिक्य रत्न के बारे में आज बात करेंगे 

संस्कृत में इसे  माणिक्य, पदमराग,कुरुविन्द,  लोहित और रविरत्न आदि कहा जाता है | हिंदी में इसे माणक,चुन्नी रुगल,अंग्रेजी में रूबी तथा फारसी में यकृत कहा जाता है | लाल रंग का माणिक्य रंग का रत्न सूर्य रत्न है | जिस तरह सूर्य नवग्रहों और तारामंडल में प्रधान है उसी तरह माणिक्य सब रत्नों में प्रधान है | यह अन्य रत्नों की अपेक्षा मूल्यवान है खनिज शास्त्र की दृष्टि से माणिक्य कुरुबिंद जाति का रत्न है अच्छा माणिक्य का रंग लाल कमल के समान होता है | लेकिन सर्वोत्तम माणिक्य वही कहा जाता है जो  कबूतर के रंग की आगाज लिय हो | माणिक्य की कठोरता 9 तथा विशिष्ट ग्रुप 4 होता है | उत्तम श्रेणी का माणिक्य  के एकदम चिकना,साफ व वजन में भारी,कठोर  पर स्पर्श  करने में कोमल   गुण वाला होता है | उदय सूर्य की किरणों के समान प्रकाश वाला लालिमा युक्त या जपाकुसुम के लाल फूलों के रंग वाला रक्त कमल सुंदरता लिए होता है | श्रेष्ठ जाति का पारदर्शी माणिक्य काफी दुर्लभ है |

माणिक्य धारण करने की विधि 

 माणिक्य के संबंध में एक बात ध्यान रखनी चाहिए इसे तभी धारण करना चाहिए जब सूर्य जन्म कुंडली में अशुभ,नीच राशि या चतुर्थ अष्टम या द्वादश स्थान में हो | माणिक्य लो  सोने में पहना जाता है | माणिक्य  को शुद्ध करके और शुभ मुहूर्त में पहनना चाहिए | इसके लिए किसी अनुभवी ज्योतिषाचार्य से बात करके रत्न धारण करना चाहिए | अधिक जानकारी के लिय संपर्क करे शर्मा जी - 931200252




मूल नक्षत्र विचार  जनवरी - 2022


दिनांक

शुरू 

दिनांक

समाप्त 

31

22-04

02

16-23

09

07-10

11

11-09

19

06-42

21

09-42

28

07-09

30

02-48


ग्रह स्थिति जनवरी - 2022


ग्रह स्थिति - दिनांक- 05  मंगल वृश्चिक में,दिनांक- 8 शुक्र मकर में,दिनांक 10 बुध धनु में,दिनांक-16 सूर्य धनु में,दिनांक-19 शुक्र वक्री,दिनांक- 24 बुध पशिचिम उदय, दिनांक-29 बुध मकर में  दिनांक-30 शक्र धनु में | दिनांक 06 शुक्र पश्चिमास्त ,दिनांक 13 शुक्र उदय दिनांक 14 सूर्य मकर में ,बुध वक्री ,दिनांक 16  मंगल धनु में ,दिनांक 18 बुध पश्चिमास्त ,दिनांक 20 शनि पश्चिमास्त ,दिनांक 29 बुध उदय पूर्व में,शुक्र मार्गी |

सूर्य ग्रह



सूर्य ग्रह ग्रहों का राजा होता है सूर्य  शहद के समान पीले नेत्रों वाला, चोकोर देह वाला, स्वच्छ कांति और पित्त प्रकृति वाला, थोड़े बालों से युक्त दर्शनीय पुरुष ग्रह है | पूरे सौरमंडल का सर्वाधिक बली ग्रह है | रवि रेली भास्कर आदि अनेकों नाम है | यह काल पुरुष की आत्मा, पुरुष ग्रह, ग्रीष्म ऋतु का स्वामी, उत्तरायण में बलवान, पूर्व दिशा का स्वामी, ताबे के समान कालिमा दिए हुए रक्त श्याम वर्ण  वाला, सत्व गुण, क्षत्रिय वर्ण, तेजस्त्वी , पित्तप्रधान प्राकृतिक वाला क्रूर ग्रह है | इसका स्थान देव ग्रह और देवता अग्नि है | पिता, पिता का पराक्रम, रोगों के प्रतिकार की शक्ति, मन की पवित्रता, रुचि, ज्ञान का उद्गम, क्षत्रियों के कर्म, माणिक्य, पर्वत, जंगल, लाल वस्त्र, हड्डी, युद्ध कला आदि का कारक सूर्य है | चंद्र मंगल बृहस्पति इनके मित्र ग्रह है | बुध सम और शुक्र शनि शत्रु ग्रह है | अशुभ सूर्य के कारण नेत्र रोग, अस्थि रोग, ज्वर, छय,  अतिसार, कुष्ठ, शरीर में दाह व पित्त जन्य रोग होते हैं | अगर सूर्य कमजोर हो तो राजा, देव,ब्राह्मण नौकरों से भय रहता है | सूर्य  की धातु सोना, उपधातु तांबा, रत्न माणिक्य, उपरत्न लालड़ी, सूर्यमणि, धान में गेहूं, रस गुड, वस्त्र लाल,पुष्प रक्तकमल,कृतिका उत्तराफाल्गुनी, उत्तराषाढ़ा सूर्य के नक्षत्र हैं |जन्म इन  नक्षत्र में हो तो सूर्य की महादशा होती है | अंक विद्या के अनुसार सूर्य का एक अंक है | सूर्य  अंक वाले व्यक्ति किसी से दबकर नहीं रहते | यह स्वाभिमानी,स्वावलंबी, ईमानदार होते हैं | स्वयं किसी के अनुशासन में नहीं रहते वरन दूसरों पर शासन करने की कला में दक्ष होते हैं | चूँकि सूर्य  सिंह राशि का स्वामी है, अतः सूर्य के प्रभाव बस ऐसे व्यक्ति तेजस्वी,उदार स्वभाव के, चरित्रवान,समाजसेवी,राजनीतिज्ञ होते हैं | नौकरी करते हैं तो कुशल उच्च अधिकारी होते हैं |

अधिक जानकारी हेतु संम्पर्क करे शर्मा जी 9312002527

सर्वार्थ सिद्धि योग जनवरी-2022


दैनिक जीवन में आने वाले महत्वपूर्ण कार्यों के लिए शीघ्र ही किसी  शुभ मुहूर्त का अभाव हो,किंतु शुभ मुहर्त के लिए अधिक दिनों तक रुका ना जा सकता हो तो इन सुयोग्य वाले मुहर्तु  को सफलता से ग्रहण किया जा सकता है | इन से प्राप्त होने वाले अभीष्ट फल के विषय में संशय नहीं करना चाहिए यह योग हैं सर्वार्थ सिद्धि,अमृत सिद्धि योग एवं रवियोग | योग्यता नाम तथा गुण अनुसार सर्वांगीण सिद्ध कारक  है|

दिनांक

प्रारंभ

दिनांक

समाप्त

02

07-19

02

16-23

11

07-18

11

11-09

12

13-59

13

17-18

18

04-36

18

07-18

19

06-42

19

07-18

21

06-42

22

07-18

23

07-17

24

07-17

27

08-50

28

07-09

31

00-22

31

07-14

31

21-57

01-02

07-13


गाजर का हलवा

सर्दियों के मौसम में अक्सर हम सब लोग खुशी से गाजर का हलवा खाते हैं 

गाजर का हलवा बनाने की विधि

सामग्री 

 1 किलो गाजर, 200 ग्राम चीनी,1/2 किलो दूध ,100 ग्राम खोया,बादाम, काजू ,किसमिस,छोटी इलायची |

गाजर का हलवा बनाने की विधि 

गाजर को अच्छी तरह धोकर,छिल कर कद्दूकस करलें | कड़ाई में एक चम्मच देसी घी डाले व कद्दूकस की गई गाजर को डाल कर हल्के हाथ से चलाये पांच मिनट बाद उबला हुआ दूध डालें | दूध और गाजर को पकाएं बीच-बीच में हिलाते रहे | जब दूध गाजर में मिक्स हो जाए और गाजर दूध सोख ले तब मेवे के  छोटे-छोटे टुकड़े कर डाले | चीनी डाले व चलाते रहे | अंत में घी डाल कर भुने ,सजाने के लिए खोया व मेवे उपर डाले | तैयार है आपका लाजबाब,स्वादिष्ट,पौष्टिक गाजर का हलवा | परिवार के साथ हलवा के आनन्द ले | - मिथलेश शर्मा 


बंदउँ नाम राम रघुबर को। हेतु कृसानु भानु हिमकर को॥

बिधि हरि हरमय बेद प्रान सो। अगुन अनूपम गुन निधान सो॥


चौघड़िया मुहूर्त 

 

चौघड़िया मुहूर्त देखकर कार्य या यात्रा करना उत्तम होता है। एक तिथि के लिये दिवस और रात्रि के आठ-आठ भाग का एक चौघड़िया निश्चित है। इस प्रकार से 12 घंटे का दिन और 12 घंटे की रात मानें तो प्रत्येक में 90 मिनट यानि 1.30 घण्टे का एक चौघड़िया होता है जो सूर्योदय से प्रारंभ होता है,अगर सूर्य उदय का समय प्रातः है 6:00 बजे माने तो चौघड़िया निम्नलिखित है 

 

समय 

क्रम

रवि 

सोम 

मंगल 

बुध 

गुरु 

शुक्र 

शनि 

06-00,07-30

1

उद्वेग 

अमृत 

रोग 

लाभ 

शुभ 

चर 

काल 

07-30,09-00

2

चर 

काल

उद्वेग 

अमृत 

रोग 

लाभ 

शुभ 

09-00,10-30

3

लाभ

शुभ 

चर 

काल 

उद्वेग 

अमृत 

रोग 

10-30,12-00

4

अमृत 

रोग 

लाभ 

शुभ 

चर 

काल 

उद्वेग

12-00,13-30

5

काल 

उद्वेग

अमृत 

रोग 

लाभ 

शुभ 

चर 

13-30,15-00

6

शुभ 

चर 

काल 

उद्वेग

अमृत 

रोग 

लाभ

15-00,16-30

7

रोग 

लाभ 

शुभ

चर 

काल 

उद्वेग

अमृत 

16-30,18-00

8

उद्वेग

अमृत 

रोग

लाभ

शुभ 

चर

काल 

18-00,19-30

1

शुभ 

चर 

काल 

उद्वेग

अमृत 

रोग 

लाभ 

19-30,21-00

2

अमृत 

रोग 

लाभ 

शुभ

चर 

काल 

उद्वेग

21-00,22-30

3

चर 

काल 

उद्वेग

अमृत 

रोग 

लाभ 

शुभ 

22-30,24-00

4

रोग 

लाभ 

शुभ 

चर 

काल 

उद्वेग

अमृत 

24-00,01-30

5

काल 

उद्वेग

अमृत 

रोग 

लाभ 

शुभ 

चर 

01-30,03-00

6

लाभ 

शुभ 

चर 

काल 

उद्वेग

अमृत 

रोग 

03-00,04-30

7

उद्वेग

अमृत 

रोग 

लाभ 

शुभ 

चर 

काल 

04-30,06-00

8

शुभ 

चर 

काल 

उद्वेग

अमृत 

रोग 

लाभ 


राहू काल 

 राहुकाल -राहुकाल दक्षिण भारत की देन है,दक्षिण भारत में राहु काल में कृत्य करना अच्छा नहीं माना जाता, राहु काल में शुभ कृतियों में वर्जित करने की परंपरा अब हमारे उत्तरी भारत में भी अपनाने लगे हैं राहुकाल प्रतिदिन सूर्यादि वारों में भिन्न-भिन्न समय पर केवल डेढ़ डेढ़ घंटे के लिए घटित होता है |

 

वार 

शुरू 

समाप्त 

रवि

16-30

18-00

सोम

07-30

09-00 

मंगल

15-00

16-30

बुध

12-00

13-30

गुरु

13-30

15-00

शुक्र

10-30

12-00

शनि

09-00

10-30


सुर्य उदय- सुर्य अस्त जनवरी-2022


दिनांक

उदय 

दिनांक

अस्त 

07-18

1

17-31

5

07-19

5

17-34

10

07-19

10

17-38

15

07-19

15

17-42

20

07-18

20

17-46

25

07-17

25

17-50

30

07-14

30

17-55


जन्म कुंडली व हस्त रेखा विशेषज्ञ


 

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शर्मा जी - 9560518227,9312002527

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भारतीय जीवन पद्धति

हमारा सहस्रों वर्षों का इतिहास है, हमारी स्वयं की एक जीवन पद्धति है. जो आज भी हमारा मार्गदर्शन कर सकती

है| यह बात अवश्य है कि हज़ारों वर्षों के इतिहास में हमारे यहां जो जीवन पद्धति चली है उसको हम आज वैसा का

वैसा लेकर नहीं चल सकते। क्योंकि कुछ-न-कुछ युग का भी विचार करना पड़ेगा। यदि हम आज अपनी प्राचीन

जीवन पद्धति को उसके असली रूप में अपनाना चाहें तो हम नहीं कर सकते। हमारे सामने अनेक कठिनाइयां आ

जाएंगी | हमारी जीवन पद्धति के पीछे जो तत्त्व हैं, हम उनको भुलाकर काम नहीं चला सकते। हमें उनके मूल रूप

पर विचार कर उन्हें युगानुकूल बनाकर ग्रहण करना होगा।

सन्तुलित जीवन शैली, अनुशासन, योग-सहयोग, समर्पण और शान्ति की प्रतिबद्धता से भरी-पूरी भारतीय

जीवन पद्धति सदियों से विश्व के लिए प्रेरणा का स्रोत रही है। आधुनिक जीवन शैली जिसमें हर किसी में आगेआने

की होड़ है। मानव को मशीन समझने की भूल ने अनावश्यक रूप से दबाव व तनाव, अनिद्रा, ईर्ष्या से लेकर

रोगग्रस्त जीवन जीने के लिए बाध्य कर दिया है। आधुनिक शोधों से यह सिद्ध हो रहा है कि भारतीय जीवन पद्धति

मन, शरीर, आत्मा से सामाजिकता तक स्वास्थ्य का संतुलन स्थापित करने में सहायता करती है। भारतीय जीवन

शैली भौतिक, आध्यात्मिक, मानसिक विकास एवं उन्नति का प्रेरणा स्रोत रही है। भारतीय योग प्राचीन एवं

मध्यकाल की जीवन शैली में भक्ति और शक्ति की यौगिक क्रियाओं का मेल रहा है। योग एक प्राचीन भारतीय

जीवन-पद्धति है। जिसमें शरीर, मन और आत्मा को एक साथ लाने (योग) का काम होता है। योग के माध्यम से

शरीर, मन और मस्तिष्क को पूर्ण रूप से स्वस्थ किया जा सकता है। तीनों के स्वस्थ रहने से आप स्वयं को स्वस्थ

महसूस करते हैं। योग के जरिए न सिर्फ बीमारियों का निदान किया जाता है, बल्कि इसे अपनाकर कई शारीरिक

और मानसिक तकलीफों को भी दूर किया जा सकता है।

माना जाता है कि स्वस्थ्य शरीर में स्वस्थ्य मस्तिष्क का निर्माण होता है। भारतीय संतुलित जीवन पद्धति

के साधन, पूजा-पद्धति, तीज-त्योहार, रीति-रिवाज आदि व्यक्ति को मानसिक एवं शारीरिक शक्ति के साथ तरो

ताजा रखने में मदद करते हैं। शारीरिक असंतुलन स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव छोड़ते हैं, जिसका प्रभाव व्यक्ति

की मनोदशा पर पड़ता है और उसका स्वास्थ्य प्रभावित होता है। व्यक्ति का शरीर कई मापदण्डों पर आंका जा

सकता है, जैसे सुन्दर बाल, चमकती आंखें, अच्छी नींद, अच्छी भूख, स्वस्थ पाचन तंत्र आदि शारीरिक गतिविधियां

व्यक्ति के शारीरिक स्वास्थ्य को प्रमाणित करती है। व्यक्ति का मानसिक स्वास्थ्य शारीरिक स्वास्थ्य को बहुत

प्रभावित करता है। व्यक्ति का रहन-सहन का तरीका, सामाजिक मूल्यों और गतिविधियों का प्रतिबिम्ब होता है।

स्वस्थ जीवन पद्धति स्वास्थ्य की प्राथमिकता प्रकट करती है। अच्छे स्वास्थ्य के लिए स्वस्थ जीवन पद्धति को

अपनाना अनिवार्य है। प्राचीन भारतीय चिकित्सा पद्धति में योग से होने वाले लाभ का अनुमान लगाना असंभव

है। आज के आधुनिक युग में योग दुनिया भर के लिए किसी चमत्कार से कम नहीं है, जिसे सदियों से प्राचीन

भारतीय चिकित्सा का अहम हिस्सा माना जाता है, जो न केवल शारीरिक तंदरुस्ती बनाये रखने में कारगर है,

अपितु तनाव को कम करने में भी सहायक है।

भारतीय संस्कृति पहला सुख निरोगी काया पर विशेष जोर देने वाली, सुख, समृद्धि, शान्ति और

सकारात्मकता की पहल पर आधारित है। अपने से पहले दूसरों की चिन्ता हमारे आचार-व्यवहार और संस्कार की

विशेषता में शामिल है, जो वासुदैवकुटुम्बकम् की भावना को और प्रबल बनाती है। व्यक्ति के स्वस्थ्य तन के लिए

स्वस्थ्य मन का होना बहुत आवश्यक है। प्रसन्नचित मन व्यक्ति के भावनात्मक पक्ष को मजबूत कर, समाज-


मनोवैज्ञानिक आवश्यकताओं को पूरा करता है। सुखहाल जीवन, सकारात्मकता, सहयोग और शान्ति की ओर

आकर्षित करता है, जिससे स्वस्थ्य जीवन की नींव रखी जाती है।

शिखा सक्सेना

एहल्कॉन इंटरनेशनल स्कूल

मयूर विहार फेस -1

दिल्ली- 110091


 माँ 

जब डोली से उतरी थी माँ ,नीली साड़ी में लिपटी थी माँ ।

मानो नीलमणि पर चांदनी पड़ी,मेरी माँ पलकें झुकाए खड़ी।

घर को संभाला रक्षक बन,परिवार को पाला अन्नपूर्णा बन।

सब रिश्ते निभाए सच्चाई से,कुछ मिल न सका भलाई से ।

अपने बच्चों का पोषण किया ,संबंधियों का भी शोषण सहा।

तिल भर भी हिम्मत न हारी,वह सचमुच थी सबला नारी।

अभावों में ही जीवन बिताया ,धुंधली नज़रें शिथिल काया।

जी तोड़ मेहनत करती रही,भाग्य में शायद लिखा था यही।

जब जीवन में सुख था आया,तब रोगी हो गई थी काया।

माँ के बच्चों में प्राण थे, बच्चे भी माँ की जान थे।

माँ ने आँचल फैला लिया,बच्चों को उसमें समा लिया।

बच्चों की आँखों में नीर भरा,माँ के हृदय में अधीर भरा।

हाय ! विधाता यह कैसी घड़ी ,परिवार की शक्ति लाचार पड़ी ।

काश कुछ ऐसा हो जाए,ममता की मूर्ति उठ जाए।

वह मृत्यु शैय्या पर पड़ी थी,बड़ी दर्द विदारक घड़ी थी।

माँ चिरनिद्रा में सो गई,बच्चों की छिया खो गई ।

हे प्रभु ! मैं जब-जब भी जन्मूं,सदा इसी देवी की बेटी बनूं।

माँ मेरे मन में विराजित है,मेरे रोम-रोम में जागृत है।

माँ का कोई विकल्प नहीं ,माँ बिना कोई संकल्प नहीं ।

माँ ही प्रेम है माँ ही ममता,माँ ही खुशियां माँ ही समता।

माँ बिन दिन भी काली रात,कोई न पकड़े आकर हाथ।

कृपा करो हे जग के विधाता ,बच्चों से बिछुड़े न कोई माता

श्री मती रिंकू बाला शर्मा ।



1857 की क्रांति के प्रतिसाद


 – रवि कुमार



10 मई 1857 को प्रारंभ हुआ स्वतंत्रता समर 1859 आते-आते समाप्त हो गया। क्या देशभक्ति का ज्वार मात्र दो वर्ष में ही भाटे में बदल गया? 1857 की क्रांति के बारे यह कहा जाता है कि यह क्रांति विफल हुई। क्या यह मानना उचित होगा कि क्रांति विफल रही? क्रांति के परिणामों के विषय में कहा जाता हैं कि ब्रिटिश राज की नीतियों में बदल हुआ और राष्ट्रीय आन्दोलन को नई दिशा मिली। क्या देशव्यापी क्रांति का परिणाम मात्र इतना ही हुआ? 1857 की क्रांति को, सैनिक विद्रोह जो बाद में जन विद्रोह में बदल गया, कहा जाता है। क्या भारतीय इतिहास के पन्नों में इस प्रथम स्वातंत्र्य समर को केवल इतना स्थान मिलना न्यायोचित होगा?

1857 के स्वतंत्रता संग्राम का मूल्यांकन करते समय यह विचार करना आवश्यक है कि इस संग्राम में हमने क्या खोया और क्या पाया? इस महासंग्राम का प्रतिसाद क्या-क्या रहा? केवल खोया ही है ऐसा कहना ठीक नहीं होगा। क्या-क्या पाया इसे जानना एवं नवीन पीढ़ी को बताना भी आवश्यक है। डॉ० वेदप्रताप वैदिक ने उचित ही कहा है – “यह संग्राम अंग्रेजों का तख्ता नहीं पलट पाया, यह ठीक है, लेकिन इसने ही उनके तख्ता पलट की मजबूत नींव रख दी थी”।

अंग्रेज भारत में व्यापार करने आए थे। व्यापार के साथ-साथ सत्ता की अनुकूलता मिलने पर उन्होंने यहाँ की सत्ता हाथ में ले ली। व्यापार और सत्ता के साथ-साथ उनका एक बड़ा उद्देश्य और भी था, और वह था भारत का ईसाईकरण करना। इंग्लैण्ड की ब्रिटिश सरकार, ईस्ट इंडिया कंपनी के फौजी अफसर, भारत में कार्यरत ईसाई पादरी और मिशनरीज इस कार्य में निरंतर लगे हुए थे। भारत में अंग्रेजी शिक्षा प्रचलित करने के पीछे भी उनकी यही मंशा थी। ऐसा करके अंग्रेज भारत में अपनी सत्ता को स्थाई करना चाहते थे। मिशनरियों के बारे में कहा गया है कि “इनके काम का उद्देश्य हिन्दू धर्म का विनाश और पूर्वी व उत्तरी भारत के 13 करोड़ लोगों को ईसाई बनाना था”। फौजी अफसर लेफ्टिनेंट कर्नल व्हीलर ने बैरकपुर के ब्रिगेडियर को एक पत्र 4 अप्रैल 1857 को लिखा था कि “हिन्दुस्थान के सब लोग ईसाई हो जाएं तो इससे उसे बड़ी प्रसन्नता होगी, क्योंकि तब सरकार का वह विरोध न दिखाई देगा जो हाल में दिखाई देता है”।


भारतीय सैनिकों और समाज में ईसाई मिशनरीज के इस कार्य के प्रति तीखी प्रतिक्रिया हुई। इस कारण अंग्रेजों के इस कार्य की गति मंद पड़ गई थी या यूँ कहें कि कुछ समय के लिए धर्मांतरण के इस कार्य में अवरोध उत्पन्न हो गया था। इसे महासंग्राम की विशेष उपलब्धि माना जा सकता है। धर्मांतरण के इन प्रयासों के विरुद्ध इस तीखी प्रतिक्रिया को ब्रिटिश सरकार ने गंभीरता में लिया था। महारानी विक्टोरिया ने नवम्बर 1858 में अपनी घोषणा में कहा – “किसी के धार्मिक विश्वासों या धार्मिक रीति रिवाजों में किसी तरह का हस्तक्षेप नहीं किया जाएगा”।


1857 के महासंग्राम की उपलब्धि के रूप में यह भी माना जा सकता है कि अंग्रेज इस संग्राम से इतने भयभीत हो गए थे कि वे चाहकर भी यहाँ स्थाई रूप से अपनी बस्तियां नहीं बना सके। अंग्रेज चाहते थे कि दक्षिण अफ्रीका आदि देशों की तरह हिन्दुस्थान में भी वे अपनी पृथक बस्तियां बनाकर रहें और धीरे-धीरे स्थानीय लोगों को अंग्रेजियत की ओर लुभाते रहें। ‘1833 के चार्टर एक्ट’ में उन अंग्रेजों को विशेष सुविधाएँ देने का प्रावधान भी किया था जो यहाँ आकर बसना चाहते थे।


1857 के महासंग्राम में भारत की जनता ने बिना किसी भेदभाव के, एकता के साथ भाग लिया था। बिना राष्ट्रीय एकता के क्रांति का विचार कर पाना संभव नहीं हो सकता। डॉ० रामविलास शर्मा ने अपनी पुस्तक ‘सन् सत्तावन की राज्यक्रांति’ में उद्धृत किया है कि देश की जनता 57 के संग्राम के दौरान ठेर-ठेर ‘अंग्रेज राज ख़त्म हो गया, अंग्रेजों का नाश हो’ का नारा लगती थी। इसका अर्थ स्पष्ट है कि जनता अपने देश को अंग्रेजों द्वारा और अधिक पद दलित किया जाना देखने को तैयार नहीं थी। सर जॉन शोर का कथन है कि “मैंने कई देशी राज्यों की यात्रा की। मैं पूरे विश्वास के साथ यह दावा करता हूँ कि लोगों को जो चीज सबसे ज्यादा नापसंद है वह अंग्रेजों राज की अधीनता में आना है”।

यह महासंग्राम अपनी खोई हुई स्वाधीनता की पुनः प्राप्ति के लिए देश के सभी जाति-पंथों द्वारा अंग्रेजों के विरुद्ध एक सामूहिक संघर्ष था। इस दृष्टि से यह संघर्ष हमें राष्ट्रीय एकता का पहला पाठ पढ़ाने वाला सिद्ध होता है। फारेस्ट अपने ग्रन्थ की भूमिका में लिखता है – “भारतीय क्रांति से इतिहासकारों को अनेक शिक्षाएं मिल सकती हैं; किन्तु उसमें इससे बढकर कोई अन्य महत्त्वपूर्ण शिक्षा नहीं हैं कि भारत में ब्राह्मण और

शुद्र, हिन्दू और मुसलमान हमारे (अंग्रेजों के) विरुद्ध संगठित होकर क्रांति कर सकते हैं”।

शहीद भगत सिंह के अनन्य सहयोगी एवं प्रसिद्ध समाजवादी नेता राजाराम शास्त्री ने ‘अमर शहीदों के संस्मरण’ नमक अपनी रचना में लिखा है – “वीर सावरकर द्वारा लिखित ‘1857 का स्वातन्त्र्य समर’ पुस्तक ने भगत सिंह को बहुत अधिक प्रभावित किया था”। 1929-30 में भगत सिंह और उनके क्रांतिकारी साथियों की गिरफ़्तारी के समय उनमें से अधिकांश के पास इस पुस्तक की प्रतियाँ पुलिस को प्राप्त हुईं। आजाद हिन्द फ़ौज के निर्माण में ‘1857 का स्वातंत्र्य समर’ पुस्तक की भारी भूमिका रही। आजाद हिन्द फ़ौज के मूल संस्थापक रास बिहारी बोस क्रांति पथ पर सावरकर को अपना गुरु मानते थे। इन उद्धरणों से अनुमान लगा सकते हैं कि 1857 के प्रथम स्वातन्त्र्य समय का राष्ट्रीय स्वतंत्रता आन्दोलन पर क्या प्रभाव रहा होगा।


1857 के इस महासमर में जिन हुतात्माओं ने अपने प्राण न्योछावर किए, उससे प्रेरणा प्राप्त कर आगामी 90 वर्षों में भारतीय समाज स्वतंत्रता की उत्कट इच्छा के साथ सेनानी की तरह खड़ा रहा। जो स्वप्न 1857 के महासमर के योजनाकारों ने देखा होगा, उसे पूर्ण करने का कार्य अगली पीढ़ियों ने राष्ट्रभक्ति और राष्ट्रीय एकता के साथ पूर्ण किया। 10 मई 1857 को प्रारंभ इस स्वातंत्र्य समर का प्रतिसाद 1947 में भारत की स्वतंत्रता के रूप में देखने को मिला।

(लेखक विद्या भारती हरियाणा प्रान्त के संगठन मंत्री है और विद्या भारती प्रचार विभाग की केन्द्रीय टोली के सदस्य है।)





समझदारो की नासमझी !!

"बेटा!.गाड़ी साफ कर दूं?"

रंजीत ने जैसे ही फ्यूल भरवाने के लिए अपनी कार पेट्रोल पंप पर रोका एक बुजुर्ग भागकर उसकी गाड़ी के करीब आया।

"नहीं अंकल !! अभी थोड़ी जल्दी में हूँ।"

यह कहते हुए रंजीत ने उस बुजुर्ग को टालना चाहा लेकिन वह बुजुर्ग उससे विनती करने लगा - 

"बेटा दस मिनट भी नहीं लगेंगे !थोड़ा ठहर जाओ मैंने आज सुबह से अभी तक कुछ नहीं खाया है। दस-बीस रुपए दे देना बस!"

बुजुर्ग की हालत देख रंजीत को उस पर दया आ गई।अंकल!! मैं आपको रुपए दे देता हूंँ आप कुछ खा लीजिएगा!यह कहते हुए रंजीत ने अपनी जेब से बटुआ निकाल लिया लेकिन बुजुर्ग ने यह कहते हुए रुपए लेने से इंकार कर दिया कि -

बेटा!.मैं भीख नहीं ले सकता।

"अंकल!. यह भीख नहीं है। मैं आपकी इज्जत करता हूंँ!आप मेरे पिता समान है। लेकिन आपने सुबह से कुछ नहीं खाया है इसलिए मैं आपको यह कुछ रुपए देना चाहता हूंँ।"

नहीं बेटा ! आप जाइए !! मैं इंतजार करूंगा!आप नहीं तो कोई और सही! किसी ना किसी को तो मेरी मेहनत की जरूरत होगी।

यह कहते हुए वह बुजुर्ग वापस मुड़ गया।उस बुजुर्ग का आत्मसम्मान और स्वाभिमान देख रंजीत हैरान हुआ। वह बुजुर्ग उसे कोई आम इंसान नहीं लगा इसलिए रंजीत अपनी कार छोड़ उस बुजुर्ग के पीछे आया।

"अंकल!.क्या मैं आपसे दो मिनट बात कर सकता हूंँ?""बोलो बेटा!""आप कहां रहते हो?"

"यहीं!""यहां कहां?" "यह पेट्रोल पंप ही मेरा ठिकाना है!मैं यही रहता हूंँ।"

"आपका कोई घर-द्वार भी तो होगा ना?"

घर था ! लेकिन अब नहीं रहा।

मैं कुछ समझा नहीं अंकल?

बच्चों को पढ़ाने और लायक बनाने के चक्कर में मैं अपना घर बेचकर एक किराए के मकान में रहने लगा था।*

"अंकल!.अब आपके बच्चे कहां रहते हैं?" रंजीत को जिज्ञासा हुई।

"एक विदेश में है और दूसरा यहीं इसी शहर में!"

"अंकल!.आप उनके साथ क्यों नहीं रहते?"

बेटा !! उनके घर में मेरे रहने लायक कोई जगह नहीं है!*"क्यों अंकल?""मेरा एक बेटा इंजीनियर है और एक डॉक्टर!""मुझे लगता है उन दोनों की कमाई अच्छी खासी होगी!. है ना अंकल?"

*हांँ बेटा!! मेरा एक बेटा इसी शहर में डॉक्टर है! साठ हजार रुपए किराया देकर एक बंगाले में रहता है! पच्चीस-पैतीस लाख की गाड़ी से चलता है,लेकिन मेरे लिए उसके पास कुछ नहीं है।यह कहते-कहते उस बुजुर्ग की आंखों में आंसू छलक आए।*"अंकल!.आप अपने बच्चों पर आपको गुजारा भत्ता देने के लिए कोर्ट में मुकदमा दायर क्यों नहीं करते?. आख़िर आपने अपना सब कुछ दे कर उन्हें कमाने लायक बनाया है।"रंजीत ने उस बुजुर्ग को सलाह दी और उसकी बात सुनकर वह बुजुर्ग मुस्कुराया..

बेटा !! मैंने उनकी परवरिश पर जो कुछ भी खर्च किया वह सब कुछ अपनी मर्जी से किया था!. अगर मैं वह सब कुछ उन पर मुकदमा करके मांग भी लूं तो उन सब चीजों का अब मैं करूंगा क्या?""फिर भी अंकल!.आपको उनसे कुछ ना कुछ तो मिलना ही चाहिए।""बेटा!.दो रोटी तो मैं अपनी मेहनत से आज भी कमा लेता हूंँ !! *रही मुकदमा दायर करने की बात तो अदालत में मुकदमा दायर कर बच्चों के प्रति स्नेह और माता-पिता के प्रति सम्मान नहीं मांगा जा सकता इस बात का अंदाजा मुझे भी है।उस बुजुर्ग की बात सुनकर रंजीत नतमस्तक हो गया उसे अब कुछ कहते नहीं बन रहा था लेकिन फिर भी उसने अपनी बात को दूसरी ओर मोड़ दिया..

"अंकल!.अब मैं इतनी देर ठहर ही गया हूंँ तो आप मेरी कार पर जमी धूल साफ कर दीजिए।"

वह बुजुर्ग अपने हाथ में थामे साफे से झटपट उसकी कार पर जमीन गर्द को साफ करने लगा लेकिन उस बुजुर्ग की जिंदगी पर जमीन गर्द को साफ करने में असमर्थ रंजीत मन ही मन सोच रहा था कि,..

एक अकेला गरीब पिता अपने बच्चों को लायक बनाने की हिम्मत रखता है लेकिन जवान होने पर वही बच्चे सक्षम होने के बावजूद अपने बुजुर्ग हो चुके माता-पिता को संभालने की हिम्मत क्यों नहीं दिखाते!*

इसी उधेड़बुन में खड़े रंजीत ने उस बुजुर्ग के सामने एक ऑफर रखा।अंकल !! मेरे पास गाड़ियों का एक शोरूम है!अगर आप चाहे तो वहां गाड़ियों की देखभाल का काम कर सकते हैं।"रंजीत की बात सुनकर उस बुजुर्ग के हाथ रुक गए वह मुस्कुराया..

बेटा!.आप बहुत दयालु हो लेकिन मुझे किसी की दया की जरूरत नहीं है।

रंजीत ने आगे बढ़कर उस बुजुर्ग का हाथ अपने हाथों में लेकर उसे आश्वस्त किया - नहीं अंकल!.वहां भी आपको आपकी मेहनत के बदले ही रुपए मिलेंगे।" एक अजनबी से इतनी आत्मीयता पाकर उस बुजुर्ग के चेहरे पर गजब का स्वाभिमान था।आजकी पीढ़ी भौतिकता के चकाचौंध में अपने दायित्वों का निर्वहन नहीं कर रही है। क्योकि मैकाले की शिक्षा पद्धति भाव-संवेदना शून्य भोगवादी फसल तैयार करती है। क्या  उस बुजुर्ग ने बच्चे को  अच्छी शिक्षा  देकर उसकी खुशहाली के लिए अपने दायित्वों की पूर्ति कर गलती की ?यह आज के माहौल में बच्चो के लिये विचारणीय है ?।शायद बुजुर्ग ने अपने बेटे को शिक्षा के साथ अच्छे संस्कार देने में ध्यान नही दिया ।

अच्छे संस्कार न सिर्फ बेटे को बल्कि अपनी पुत्री को भी दे  शायद आपकी बेटी जिस घर मे जाए उस घर मे ऐसी स्थिति न आने दे

मकर संकांति 

धर्म शास्त्र के अनुसार सूर्य की मकर संक्रान्ति बारह माह में विशेष फल प्रदान करती है। सम्पूर्ण वर्ष सूर्य के मकर राशि में ये तीस दिन चारों पुरुषार्थों (धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष) के लिए सिद्ध अनुगमन है। इसी दौरान इष्ट साधना की भी सिद्धि प्राप्त करने का यह संकल्पित समय है।मकर संक्रान्ति (मकर संक्रांति) भारत का प्रमुख पर्व है। मकर संक्रांति (संक्रान्ति) पूरे भारत और नेपाल में किसी न किसी रूप में मनाया जाता है। पौष मास में जब सूर्य मकर राशि पर आता है तभी इस पर्व को मनाया जाता है।मकर संक्रान्ति पर्व को कहीं-कहीं उत्तरायण भी कहते हैं, यह भ्रान्ति है कि उत्तरायण भी इसी दिन होता है।ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक जब सूर्य धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करते हैं, तब मकर संक्रांति मनाई जाती है. खगोलशास्त्र के मुताबिक देखें तो सूर्य जब दक्षिणायन से उत्तरायण होते हैं, या पृथ्वी का उत्तरी गोलार्ध सूर्य की ओर मुड़ जाता है उस दिन मकर संक्रांति का पर्व मनाया जाता है.आइए, जानते हैं मकर संक्रांति पर देशभर के अलग-अलग हिस्सों में बनने वाले व्यंजनों के बारे में.तिल के लड्डू या तिलवा बिहार और झारखंड समेत कुछ राज्यों में मकर संक्रांति पर तिल के लड्डू या तिलवा बनाया जाता है,इस दिन यदि आपके घर पर कोई भिखारी या गरीब आता है | तो उसे घर से खाली हाथ न जाने दें. आपसे जो कुछ हो सके उसके अनुसार ही उसे कुछ न कुछ दान देकर विदा करें. – इस दिन स्नान दान करने के बाद ही किसी चीज का सेवन करना चाहिए. अगर आपके आस-पास नदी नहीं है तो आप घर पर ही नहा कर दान करें.कर सक्रांति के दिन स्नान, दान के साथ भगवान सूर्य की पूजा का विशेष महत्व है। पदम पुराण के अनुसार, मकर संक्रांति में दान करने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है। इस दिन भगवान सूर्य को लाल वस्त्र, गेहूं, गुड़, मसूर दाल, तांबा, स्वर्ण, सुपारी, लाल फूल, नारियल, दक्षिणा आदि देने का शास्त्रों में विधान है।इस द‍िन गंगाजल और तिल पानी में मिलाकार स्नान करना चाहिए. ऐसे तो पवित्र नदियों में स्नान करने की मान्यता है. स्नान करने के बाद सूर्यदेव की पूजा-अर्चना की जाती है. इस दिन स्नान सूर्य निकलने से पहले ही कर लेनी चाहिए.


शलभासन 

 शलभासन  इस आसन में व्यक्ति के शरीर की स्थिति शलभ अथार्थ  तिअती  के समान हो जाती है | अतः इस आसन को शलभासन  कहते हैं | 

रोग निदान और लाभ  - इस आसन के निरंतर अभ्यास से हर्निया, मधुमेह, पेट के रोग, फेफड़ों की निर्बलता दूर हो जाती है | इस आसन के अभ्यास से कमर एवं पैर सुढोल होते हैं | इस आसन को करने से मस्तिष्क को शक्ति प्राप्त होती है | यह आसन यक्र्ट, गुर्दा एवं आंख के रोग में लाभप्रद है | 

शलभासन  करने का तरीका - जमीन पर पेट के बल लेट जाएं चेहरे को जमीन की ओर रखें दोनों हाथों की हथेलियों को जागो से दबाते हुए बांहों को तान दीजिए | थोड़ी रहनी चाहिए, दोनों एत्रिया  एक दूसरे से सटी हुई हो,अब पूरक सांस लीजिए और बाहों हाथों एवं छाती पर दबाव डालते हुए टांगों को ऊपर उठाएं ध्यान रहे एक दूसरे से टांगे सटी हुई और सीधी हो | पेट की नाभि तक का भाग जमीन से अलग हो जाए | कुम्भक लगाकर इस आसन में तब तक रहे जब तक सरलता से रह सकते हैं | फिर सांस को धीरे-धीरे निकालते हुए पैरों को भूमि से लगाकर आसन समाप्त करें | इस आसन में पेट के बल लेट कर पैरों को ऊपर उठाया जाता है | इस आसन को धीरे धीरे धीरे  करना ही लाभप्रद होता है | इस आसन को करते समय सिर को पूरब दिशा की ओर करना चाहिए | यह एक कठिन आसन है इससे व्यक्ति को निरंतर अभ्यास की आवश्यकता होती है,यहा थकावट हो वही रुक जाए जबरदस्ती ना करे  | इस आसन को करते समय शरीर को थोड़ा ध्यान देना चाहिए प्रारंभिक इस आसन को एक बार और बाद में 10 तक कर सकते हैं |

बीटिंग द रिट्रीट

भारत में गणतंत्र दिवस की समाप्ति का सूचक

              

         

भारत में गणतंत्र दिवस की समाप्ति का सूचक "बीटिंग द रिट्रीट" का कार्यक्रम थल सेना, वायु सेना और नौसेना के बैंड की पारंपरिक धुन के साथ मार्च करते हुए हर वर्ष की 29 जनवरी की शाम को आयोजित किया जाता है ।

 विजय चौक पर इस कार्यक्रम का आयोजन होता है । रायसीना रोड पर राष्ट्रपति भवन के सामने इसका प्रदर्शन किया जाता है । 4 दिन तक चलने वाला गणतंत्र दिवस का समापन बीटिंग द रिट्रीट के साथ ही होता है । 26 जनवरी के गणतंत्र दिवस समारोह की तरह यह कार्यक्रम भी देखने लायक है । इसके लिए राष्ट्रपति भवन , विजय चौक ,नॉर्थ ब्लॉक ,साउथ ब्लॉक, बेहद खूबसूरत फूल मालाओं व रोशनी के साथ सजाया जाता है ।

 यह सेना की बैरक में वापसी का प्रतीक है । दुनिया भर में बीटिंग रिट्रीट की परंपरा रही है। लड़ाई के दौरान सेनाएं सूर्यास्त होने पर हथियार रख कर अपने कैंप में जाती थी। तब तक संगीतमय समारोह होता था ।इसे ही "बीटिंग रिट्रीट "कहा जाता है । भारत में इसकी शुरुआत 1950 के दशक में हुई थी । 1950 से लेकर आज तक के इस आयोजन को सिर्फ दो बार नहीं मनाया जा सका इसका कारण 26 जनवरी 2001 गुजरात में आये भूकंप के कारण और दूसरा 27 जनवरी 2009 को आठवें राष्ट्रपति वेंकटरमन के निधन के कारण । हमने महाभारत व रामायण धारावाहिक में भी देखा कि सूर्यास्त के बाद शंख बजाया जाता है  और युद्ध को उस दिन के लिए रोक दिया जाता था । अगले दिन सूर्योदय पर फिर से शंखनाद होने के बाद युद्ध किया जाता था। उसी की तर्ज पर शाम 5:00 बजे यह उत्सव होता है तथा इसके बाद राष्ट्रपति या कोई भी आला अधिकारी की अनुमति लेकर इस का समापन( 3 दिन के उत्सव का) किया जाता है । बैंड मार्च वापस जाते समय "सारे जहां से अच्छा " की धुन बजाता है और राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे को उतार लिया जाता है ।

          सन् 1971 के भारत पाकिस्तान के युद्ध को इस वर्ष 50 वर्ष हो गए थे तो उत्सव कुछ खास रहा । सन् 1971 के युद्ध में रहे जनरल ए. के. द्विवेदी व आर .के. भार्गव रिटायर्ड सी.आर .पी. एफ. भी अपना वक्तव्य बीच- बीच में बोल रहे थे। तीनों सेनाएं अपने बैंड व रंग बिरंगी पोशाक से सुसज्जित अपना-अपना वादन कर रहे थे ।यह सभी विजय चौक पर राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री तथा रक्षा मंत्री आदि की उपस्थिति में हो रहा था। यह अन्य 4 देशों में भी मनाया जाता है । सर्वप्रथम यह 17 वीं सदी में ब्रिटेन में मनाया गया था ।

           भारत में इसकी शुरुआत सन् 1950 में हुई थी । तब भारतीय सेना के मेजर रॉबर्ट ने इस सेरेमनी को सेनाओं के बैंड्स से डिसप्ले के साथ पूरा किया था समारोह में राष्ट्रपति बतौर चीफगेस्ट शामिल होते हैं । इस वर्ष 26 परफॉर्मेंस पेश की गई, इन 26 में से 25 ट्यून के कंपोजर भारतीय संगीतकार रहे हैं । एकमात्र धुन विदेशी होती है "अवॉइडिड विद मी " जो कि महात्मा गांधी जी की  पसंदीदा धुन है । दो नई धुनों को भी शामिल किया गया है जिसमें "पावर ऑफ साउंड "और "किंग्डम ऑफ हेवन "शामिल है।

शुभदा भार्गव,भार्गव प्रिंटिंग प्रेस,प्रभु भवन,हाथी भाटा,अजमेर ।राजस्थान।।


जून माह का पंचांग

कथा कहानी सुनने के लिए के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें - https://youtube.com/@satishsharma7164?si=VL7m3oHo7Z6pwozC  श्रीं श्याम देवाय नमः...