इतिहास बदला नहीं जा सकता पर बनाया जा सकता | आओ नवयुग की प्रतिमा मे करें प्रतिज्ञा प्राण की
सोमवार, 17 जनवरी 2022
अभ्यास , एक कहानी
पीतल का लोटा
स्वामी विवेकानंद रोज की तरह अपने पीतल के लोटे को मांज रहे थे। काफी देर तक लोटा मांजने के बाद जब वह उठे तो उनके एक शिष्य ने सवाल किया कि रोज-रोज इतनी देर तक इस लोटे को मांजने की क्या जरूरत है? सप्ताह में एक बार मांज लें या ज्यादा से ज्यादा तीन बार। बाकी दिनों में तो इसे पानी से सिर्फ खंगाल कर काम चलाया जा सकता है। इससे इसकी चमक बहुत फीकी तो नहीं होगी। विवेकानंद ने कहा - बात तो सही ही कहते हो। रोज-रोज पांच-दस मिनट इसमें बर्बाद ही होते हैं।
उसके बाद उन्होंने उसे नही मांजा। कुछ ही दिनों में उस लोटे की चमक फीकी पड़ने लगी। सप्ताह भर बाद विवेकानंद ने उस शिष्य को बुलाया और कहा कि मैंने इसे रोज मांजना छोड़ दिया, अब आज फुरसत में हो तो इस लोटे को साफ कर दो। शिष्य ने हामी भरी और कुएं पर ले जाकर मूंज से लोटे को मांजना शुरू कर दिया। बहुत देर मांजने के बाद भी वह पहले वाली चमक नहीं ला सका। फिर और मांजा, तब जाकर लोटा कुछ चमका।
विवेकानंद मुस्कुराए और बोले - इस लोटे से सीखो। जब तक इसे रोज मांजा जाता रहा, यह रोज चमकता रहा। तुमको इसकी रोज की चमक एक सी लगती होगी, लेकिन मुझे यह रोज थोड़ा सा और ज्यादा चमकदार दिखता था। मैं इसे जितना मांजता, यह उतना ज्यादा चमकता। रोज ना मांजने के कारण इसकी चमक जाती रही।
ठीक ऐसे ही साधक होता है। अगर वह रोज मन को साफ न करे तो मन संसारी विचारो से अपनी चमक खो देता है, इसको रोज ज्ञान, ध्यान एवं सफाई से चमकाना चाहिए। यदि एक दिन भी अभ्यास छोड़ा तो चमक फीकी पड़ जाएगी।
इसलिए अगर स्वयं को मजबूत स्तम्भ देना चाहते हो तो अभ्यास करो, तभी इस लोटे की तरह चमक कर समाज में ज्ञान की, परमात्मा की रोशनी बिखेरोगे।
सदा स्मृति रहे कि आप एक शांत स्वरूप और वरदानी आत्मा है!!
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Bilkul sahi
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