सफला एकादशी व्रत कथा
पद्मपुराण की कथा अनुसार चंपावती नगर में राजा महिष्मान राज करते थे, उनका बड़ा बेटा लूंभक बुरे मार्ग पर चलता था, उसे बुरे काम और पाप करना अच्छा लगता था।उससे राजा और पूरी प्रजा बड़ी ही परेशान थी. एक दिन उसके बुरे कामों से परेशान होकर राजा ने लूंभक को नगर से निकाल दिया । जंगल में रहने के अलावा उसके पास कोई रास्ता नहीं बचा था. उसके बुरे आचरण की वजह से कोई भी उसकी मदद करने के लिए तैयार नहीं था । लूंभक पेड़ से फल खाकर अपना जीवन व्यतीत करने लगा. वो एक पेड़ के नीचे ही रहता था।
पौष मास की कृष्णपक्ष एकादशी की रात ठंड की वजह से लूंभक सो नहीं पाया और रातभर जागकर भगवान से अपने पापों का प्रायश्चित किया. इस तरह अनजाने में ही उसने सफला एकादशी का व्रत रख लिया. सच्चे मन से प्रायश्चित करने की वजह से भगवान विष्णु की कृपा से लूंभक के पिता राजा महिष्मान ने उसे वापस बुला लिया।अपने बेटे के व्यवहार में परिवर्तन देखकर राजा ने सारा राजपाठ लूंभक को सौंप दिया और और खुद तपस्या करने जंगल चले गए। लूंभक ने अपने पिता के जाने के बाद अपनी प्रजा का बहुत ही अच्छी तरह से ख्याल रखा. मृत्यु के बाद लूंभक को वैकुण्ठ धाम की प्राप्ति हुई।
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