गुरुवार, 30 मार्च 2023

बृहस्पति ग्रह कि जानकारी व उपाय, श्री श्याम चौरासी ,श्याम जी की आरती

 

बृहस्पति ग्रह


बृहस्पति ग्रह  को अंग्रेजी में ज्यूपिटर भी कहते हैं। कुंडली में देव गुरु बृहस्पति मजबूत स्थिति में हों, तो व्यक्ति की किस्मत चमक जाती है. उसकी आंखों में चमक और चेहरे पर तेज होता है. वो व्यक्ति किसी को भी अपने ज्ञान के समक्ष झुकाने की पूरी ताकत रखता है |

यदि किसी की कुंडली में गुरु कमजोर स्थि​ति में हो तो जीवन में आर्थिक समस्याओं का सामना करना पड़ता है, भाग्य साथ नहीं देता और वैवाहिक परेशानियां आती हैं | बृहस्पति ग्रह को देव गुरू कहा गया है.गुरु: इस ग्रह के प्रभाव से दंतरोग, स्मृतिहीनता, अंतड़ियों का ज्वर, कर्णपीड़ा, पीलिया, लीवर की बीमारी, सिर का चक्कर, पित्ताशय के रोग, रक्ताल्पता, नींद न आने की बीमारी, शोक आदि शारीरिक कष्ट-कठिनाइयों से गुजरना पड़ता है।

बृहस्पति ग्रह को इस तरह करें मजबूत-

प्रत्येक गुरुवार शिवजी को बेसन के लड्डू चढ़ाएं।गुरुवार को व्रत करें। मन्त्र का जाप न्यूनतम 108 बार जरूर करें। इस दिन पीली वस्तुओं का दान अपनी सार्म्थ्यनुसार करें। गुरुवार के दिन सूर्योदय से पहले उठ जाएं और फिर विष्णु के सामने घी का दीपक जलाएं।

बृहस्पति ग्रह का मन्त्र - प्रथम मंत्र को बृहस्पतिदेव का मूल मंत्र माना जाता है | ॐ बृं बृहस्पतये नम:। ॐ क्लीं बृहस्पतये नम:। ॐ ग्रां ग्रीं ग्रौं स: गुरवे नम:।

बृहस्पति ग्रह का रत्न - के लिए पुखराज , सोने की अंगूठी में तर्जनी अंगुली में गुरु-पुष्य योग में धारण करे |

बृहस्पति ग्रह का रंग - पीला 

ऊं श्रीं श्याम देवाय नमः।।ॐ नमो भगवते वासुदेवय।।


श्री श्याम चौरासी

गुरु पद पंकज ध्यान धर, सुमिर सच्चीदानंद ! 
श्याम चोरासी भजत हूँ, रच चोपाई छन्द ।। 

!! चोपाई !!  

महर करो जन के सुखरासी ! सांवलशाह खाटू के वासी !! 
प्रथम शीश चरण में नाऊं !  कृपा दृष्टि रावरी चाहूं !! 
माफ़ सभी अपराध कराऊँ ! आदि कथा सुछन्द रच गाऊं !!  
भक्त सुजन सुनकर हरसासी ! सांवलशाह खाटू के वासी !! 

कुरु पांडव में विरोध जब छाया !  समर महाभारत रचवाया !!
बली एक बर्बरीक आया ! तीन सुबाण साथ में लाया !!  
यह लखि हरि को आई हांसी ! सांवलशाह खाटू के वासी !! 

मधुर वचन तब कृष्ण सुनाए !  समर भूमि केही कारण आए !! 
तीन बाण धनु कंध सुहाए ! अजब अनोखा रूप बनाए !!  
बाण अपार वीर सब ल्यासी ! सांवलशाह खाटू के वासी !! 

बर्बरीक इतने दल माहीं ! तीन बाण की गिनती नाहीं !! 
योद्धा एक से एक निराले ! वीर बहादुर अति मतवाले !!  
समर सभी मिल कठिन मचासी !सांवलशाह खाटू के वासी !! 

बर्बरीक मम कहना मानो !समर भूमि तुम खेल न जानो !! 
भीषम द्रोण कृप आदि जुझारा !जिनसे पारथ का मन हारा !!  
तू क्या पे पेस इन्हीं से पासी !सांवलशाह खाटू के वासी !! 

बर्बरीक हरि से यों कहता ! समर देखना मैं हूँ चाहता !! 
कौन बली रणशुर निहारूँ ! वीर बहादुर कौन जुझारु !!  
तीन लोक त्रिबाण से मारूं ! हंसता रहूं कभी न हारूं ! 
सत्य कहूं हरि झूठ न जानो ! दोनों दल इक तरफ हों मानो !! 
एक बाण दल दोऊ खपासी ! सांवलशाह खाटू के वासी !!  

बर्बरीक से हरि फरमावे ! तेरी बात समझ नहीं आवे !! 
प्राण बचाओ तुम घर जाओ ! क्यों नादानपना दिखलाओ !! 
तेरी जान मुफ्त में जासी ! सांवलशाह खाटू के वासी !! 

गर विशवास न तुम्हें मुरारी ! तो कर लीजे जांच हमारी !! 
यह सुन कृष्ण बहुत हर्षाए ! बर्बरीक से वचन सुनाए !! 
मैं अब लेहूं परीछा खासी ! सांवलशाह खाटू के वासी !!  

पात विटप के सभी निहारो !बेध एक शर से डारो !! 
कह इतना एक पात मुरारी ! दबा लिया पद तले करारी !! 
अजब रची माया अविनाशी ! सांवलशाह खाटू के वासी !!  

बर्बरीक धनु-बाण चढाया ! जानी जाय न हरि की माया !! 
विटप निहार बली मुस्काया ! अजित अमर अहिलावति जाया !! 
बली सुमिर शिव बाण चालीसा ! सांवलशाह खाटू के वासी !!  

बाण बली ने अजब चलाया ! पत्ते बेध विटप के आया !! 
गिरा कृष्ण के चरणों माहीं ! बिंधा पात हरि चरण हटाहीं !! 
इससे कौन फतेह किमि पासी !सांवलशाह खाटू के वासी !!  

कृष्ण बली कहै बताओ ! किस दल की तुम जीत कराओ !! 
बली हार का दल बतलाया ! यह सुन कृष्ण सनाका खाया !! 
विजय किस विध पारथ पासी ! सांवलशाह खाटू के वासी !!  

छल करना तब कृष्ण विचारा !बली से बोले नन्द कुमारा !! 
ना जाने क्या ज्ञान तुम्हारा ! कहना मानो बली हमारा !! 
हो इक तरफ नाम पा जासी ! सांवलशाह खाटू के वासी !!   

कहै बर्बरीक कृष्ण हमारा ! टूट न सकता प्रण ये करारा !! 
मांगे दान उसे मैं देता ! हारा देख सहारा देता !! 
सत्य कहूं ना झूठ जरा सी ! सांवलशाह खाटू के वासी !!  

बेशक वीर बहादुर तुम हो !जंचते दानी हमें न तुम हो !! 
कहै बर्बरीक हरि बतलाओ ! तुमको चाहिए क्या बतलाओ ! 
जो मांगे सो हमसे पासी ! सांवलशाह खाटू के वासी !!  

बली अगर तुम सच्चे दानी ! तो मैं तुमसे कहूँ बखानी !! 
समर भूमि बली देने खातिर ! शीश चाहिए एक बहादुर !!  
शीश दान दे नाम कमासी ! सांवलशाह खाटू के वासी !!  

हम तुम अर्जुन तीनों भाई ! शीश दान दे को बलदाई !! 
जिसको आप योग्य बतलावें ! वही शीश बलिदान चढ़ावें !! 
आवागमन मिटे चोरासी ! सांवलशाह खाटू के वासी !!  

अर्जुन नाम समर में पावे ! तुम बिन सारथी कौन कहावे !! 
शीश दान दीन्हौं भगवाना ! भारत देखन मन ललचाना !! 
शीश शिखर गिरि पर धरवासी !सांवलशाह खाटू के वासी !!  

शीश दान बर्बरीक दिया है ! हरि ने गिरि पर धरा दिया है !! 
समर अठारह रोज हुआ है ! कुरु दल सारा नाश हुआ है !! 
विजय पताका पाण्डु फहरासी ! सांवलशाह खाटू के वासी !!  

भीम नकुल सहदेव और पारथ ! करते निज तारीफ अकारथ !! 
यों सोच मन में यदुराया ! इनके दिल अभिमान है छाया !! 
हरि भगतों का दुःख मिटासी ! सांवलशाह खाटू के वासी !!  

पारथ भीम आदि बलधारी !से यों बोले गिरवरधारी !! 
किसने विजय समर में पाई ! पूछो वीर बर्बरीक से भाई !! 
सत्य बात सिर सभी बतासी !सांवलशाह खाटू के वासी !!  

हरि सबको संग ले गिरवर पर ! सिर बैठा था मगन शिखर पर !! 
जा पहुँचे झटपट नन्दलाला ! पुनि पूछा सिर से सब हाला !! 
शीश दान है खुद अविनाशी !सांवलशाह खाटू के वासी !!  

हरि यों कहै सही फरमाओ !समर जीत है कौन बताओ !! 
बली कहै मैं सत्य बताऊं ! नहीं पितु चचा बलि न ताऊ !! 
भगवद ने पाई शाबाशी !सांवलशाह खाटू के वासी !!  

चक्र सुदर्शन है बलदाई ! काट रहा था दल जिमि काई !! 
रूप द्रौपदी काली का धर ! हो विकराल ले कर में खप्पर !! 
भर-भर रुधिर पिए थी प्यासी !!सांवलशाह खाटू के वासी !!  

मैंने जो कछु समर निहारा ! सत्य सुनाया हाल है सारा !! 
सत्य वचन सुनकर यदुराई ! वर दीन्हा सिर को हर्षाई !! 
श्याम रूप मम धार पुजासी ! सांवलशाह खाटू के वासी !!  

कलि में तुमको श्याम कन्हाई ! पूजेंगे सब लोग लुगाई !! 
खीर चूरमा भोग लगावे ! माखन मिश्री खूब चढ़ावे !! 
मन वच कर्म से जो कोई ध्यासी !इचिछत फल सो ही पा जासी !!  
अन्त समय सद्गगति पा जासी !सांवलशाह खाटू के वासी !! 

सागर सा धनवान बनाना !! पत्नी गोद में सुवन खिलाना !! 
सेवक आया शरण तिहारी ! श्रीपति यदुपति कुंज बिहारी !!  
सब सुख दायक आनन्द रासी ! सांवलशाह खाटू के वासी !!  !! 

चोपाई ||  

श्याम चोरासी है रची, भक्त जनन के हेतु ! सेवक निशि बासर पढ़े, सकल सुमंगल हेतु !!  
लख चोरासी छूटीए , श्याम चोरासी गाय ! अछत अपार फल पायकर , आवागमन मिटाए !!  

-----------------------------

श्याम जी की आरती 

ॐ जय श्री श्याम हरे,बाबा जय श्री श्याम हरे।
खाटू धाम विराजत,अनुपम रूप धरे॥
ॐ जय श्री श्याम हरे...॥

रतन जड़ित सिंहासन,सिर पर चंवर ढुरे ।
तन केसरिया बागो,कुण्डल श्रवण पड़े ॥
ॐ जय श्री श्याम हरे...॥

गल पुष्पों की माला,सिर पार मुकुट धरे ।
खेवत धूप अग्नि पर,दीपक ज्योति जले ॥
ॐ जय श्री श्याम हरे...॥

मोदक खीर चूरमा,सुवरण थाल भरे ।
सेवक भोग लगावत,सेवा नित्य करे ॥
ॐ जय श्री श्याम हरे...॥

झांझ कटोरा और घडियावल,शंख मृदंग घुरे ।
भक्त आरती गावे,जय-जयकार करे ॥
ॐ जय श्री श्याम हरे...॥

जो ध्यावे फल पावे,सब दुःख से उबरे ।
सेवक जन निज मुख से,श्री श्याम-श्याम उचरे ॥
ॐ जय श्री श्याम हरे...॥

श्री श्याम बिहारी जी की आरती,जो कोई नर गावे ।
कहत भक्त-जन,मनवांछित फल पावे ॥
ॐ जय श्री श्याम हरे...॥

जय श्री श्याम हरे,बाबा जी श्री श्याम हरे ।
निज भक्तों के तुमने,पूरण काज करे ॥
ॐ जय श्री श्याम हरे...

ॐ जय श्री श्याम हरे,बाबा जय श्री श्याम हरे।
खाटू धाम विराजत,अनुपम रूप धरे॥
ॐ जय श्री श्याम हरे...॥


ब्रह्मा मुरारी त्रिपुरांतकारी भानु: शशि भूमि सुतो बुधश्च। 
गुरुश्च शुक्र शनि राहु केतव सर्वे ग्रहा शांति करा भवंतु।


जन्म कुंडली दिखाने के लिए व वनबाने हेतु संपर्क करें - 

शर्मा जी, जन्म कुंडली विशेषज्ञ व सलाहकार,9312002527, 9560518227

jankarikal@gmail.com 

www.jaankaarikaal.com 


1 टिप्पणी:

गुरु, ज्ञान और आध्यात्मिक विकास का स्रोत

  गुरु, ज्ञान और आध्यात्मिक विकास का स्रोत सतीश शर्मा  गुरु पूर्णिमा, आषाढ़ मास की पूर्णिमा को मनाई जाती है, और यह दिन गुरुओं के प्रति सम्मा...