गुरुवार, 19 जून 2025

गुरु, ज्ञान और आध्यात्मिक विकास का स्रोत

 

गुरु, ज्ञान और आध्यात्मिक विकास का स्रोत

सतीश शर्मा 

गुरु पूर्णिमा, आषाढ़ मास की पूर्णिमा को मनाई जाती है, और यह दिन गुरुओं के प्रति सम्मान और श्रद्धा व्यक्त करने के लिए समर्पित है। इस दिन, शिष्य अपने गुरुओं का पूजन करते हैं, उनसे आशीर्वाद प्राप्त करते हैं, और उनके प्रति अपनी कृतज्ञता व्यक्त करते हैं। गुरु पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है, क्योंकि इस दिन वेदों के रचयिता महर्षि वेद व्यास का जन्म हुआ था। गुरु बिना ज्ञान नहीं मिलता ओर ज्ञान नहीं तो जीवन में सम्मान भी नहीं मिलेगा। 

हिन्दू-जीवन में गुरू का महत्व बहुत अधिक है। हम अपनी माँ और पिताजी को देव-समान मानते हैं। उसके बाद हमें समाज में जो स्थान देते हैं, वह अपना गुरू है। इसलिए प्राथमिक प्रकाश जब माता-पिता देते हैं उसके बाद ज्ञान का प्रकाश दुनिया की जानकारी देने वाले व्यक्ति को हम गुरू कहते हैं। इसलिए माता भी देव-समान हैं। गुरू भी देव समान है। इसलिए अपने उपनिषदों में सर्वप्रथम कहा- मातृ देवो भव, माता देव के समान हो, इसके बाद पितृ-देवो भव पिता भी ईश्वर के समान उसके बाद तीसरा शब्द है आचार्यः देवो भव गुरू भी देव के समान हैं। इसलिए जो हमें पाशविक जीवन से मानवीय जीवन की ओर ले जाते हैं सभी हमारे देव हैं। इसलिए माता-पिता गुरू तीनों देव समान हैं।

जब गुरू का महत्व देव समान है तो अपनी संस्कृति ने दूसरा भी एक पाठ सिखाया। आदमी कितना भी बड़ा हो गुरू के बिना उसकी शिक्षा सम्पूर्ण नहीं हो पाती। इसलिए हम देखते हैं, साक्षात् श्रीकृष्ण परमात्मा, वे ज्ञान का अधिष्ठाता थे तो भी उनको एक गुरू के यहां जाकर गुरू के चरणों में बैठकर अपनी शिक्षा प्रारम्भ करनी पड़ी और पूर्ण करनी पड़ी। वे स्वयं ज्ञानी थे तो भी संदीपनी महर्षि के आश्रम में जाकर उनको अपना गुरू के नाते उन्होंने स्वीकारा। प्रभु रामचन्द्र जी वह भी त्रिकाल ज्ञानी थे तो भी वशिष्ठ को गुरू के नाते उन्होंने अपनाया। आदमी अत्यन्त महान हो, तो भी गुरू के नाते और एक व्यक्ति के चरणों के पास जाकर विनम्रता से बैठकर शिक्षा ग्रहण करनी चाहिये। गुरू के बिना ज्ञान सम्पूर्ण नहीं हो जाता यह अपनी संस्कृति की शिक्षा है।

 “गुरुर्ब्रह्मा, गुरुर्विष्णु, गुरुर्देवो महेश्वरः। गुरुः साक्षात् परब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः।”

गुरु को ज्ञान, मार्गदर्शन और आध्यात्मिक विकास का स्रोत माना जाता है। गुरु पूर्णिमा, गुरु के महत्व को स्वीकार करने और उनके प्रति सम्मान व्यक्त करने का दिन है। 

गुरु बिन भव निधि तरइ न कोई , जौ बिरंचि संकर सम होई।।

अर्थात गुरु के बिना कोई भवसागर नहीं तर सकता, चाहे वह ब्रह्मा जी और शंकर जी के समान ही क्यों न हो। जिस ज्ञान की प्राप्ति के बाद मोह उत्पन्न न हो, दुखों का शमन हो जाए तथा परब्रह्म अर्थात स्वयं के स्वरूप की अनुभूति हो जाए, ऐसा ज्ञान गुरु कृपा से ही प्राप्त हो सकता है।

गुरु का स्थान भगवान से भी ऊंचा है इसी लिए कबीर जी ने कहा है –

गुरु गोबिंद दोऊ खड़े, का के लागौं पांय। बलिहारी गुरु आपने, जिन गोबिंद दियो बताय॥

यदि गुरु और भगवान दोनों एक साथ खड़े हों तो पहले गुरु के चरणों में प्रणाम करना चाहिए, क्योंकि गुरु ने ही हमें भगवान तक पहुंचने का रास्ता दिखाया है।

बौद्ध धर्म में, गुरु पूर्णिमा को भगवान बुद्ध के पहले उपदेश की वर्षगांठ के रूप में मनाया जाता है। 

गुरु पूर्णिमा, ज्ञान और शिक्षा के महत्व को दर्शाती है। यह दिन छात्रों और शिक्षकों के बीच एक मजबूत बंधन बनाने और ज्ञान के प्रसार को बढ़ावा देने का भी अवसर है। गुरु पूर्णिमा, शिष्यों के लिए अपने गुरुओं के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का एक विशेष अवसर है, जिन्होंने उन्हें ज्ञान, मार्गदर्शन और आध्यात्मिक विकास प्रदान किया। गुरु पूर्णिमा एक ऐसा त्योहार है जो गुरु के महत्व, ज्ञान की शक्ति, और शिष्य और गुरु के बीच के पवित्र बंधन को दर्शाता है। 

गुरु मंत्र आमतौर पर आपके गुरु या आध्यात्मिक शिक्षक द्वारा दिया जाता है। जब आप किसी आध्यात्मिक मार्गदर्शक को गुरु के रूप में स्वीकार करते हैं, तो वे आपको गुरु मंत्र प्रदान करते हैं। गुरु मंत्र के साथ दीक्षा (दीक्षा) तभी दी जाती है जब गुरु ऐसा करने के लिए अनुमति देते हैं। 

गुरु मंत्र कौन दे सकता है? आध्यात्मिक गुरु –  गुरु मंत्र आमतौर पर आपके आध्यात्मिक गुरु द्वारा दिया जाता है। गुरु की अनुमति –  दीक्षा के लिए, गुरु को स्वयं को अनुमति देनी होती है, और वे किसी को भी दीक्षा देने के लिए नहीं कह सकते। 

परंपरागत गुरु –  परंपरा के अनुसार, गुरु मंत्र का हस्तांतरण गुरु से शिष्य तक किया जाता है। 

गुरु मंत्र गुरु और शिष्य के बीच एक महत्वपूर्ण आध्यात्मिक संबंध स्थापित करता है। गुरु मंत्र आध्यात्मिक प्रगति में सहायता करता है और इसे आगे बढ़ाता है। गुरु मंत्र ज्ञान और बुद्धि प्रदान करने में मदद करता है। आध्यात्मिक यात्रा पर, गुरु मंत्र एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है और आध्यात्मिक मार्गदर्शन और ज्ञान प्रदान करता है। 

गुरु द्वारा किये गये अमूल्य उपकार की अनुभूति व्यक्ति को कृतज्ञता ज्ञापन एवं समर्पण की स्वाभाविक प्रेरणा देती है। भारतीय संस्कारों में कृतज्ञता ज्ञापन स्वाभाविक है। गुरु के प्रति इसी कृतज्ञता ज्ञापन एवं समर्पण का प्रतीक हैं गुरु को दक्षिणा । गुरुकुलों में शिष्य शिक्षा समाप्ति के बाद अपने गुरु को दक्षिणा देकर यह कृतज्ञता प्रकट करते रहे हैं। शिष्य अपनी क्षमता अथवा अपने गुरुजी की इच्छानुसार यह दक्षिणा देते थे। देश, काल, परिस्थिति के अनुसार दक्षिणा की प्रक्रिया और स्वरूप भिन्न रहे होंगे। परन्तु दक्षिणा का विधान भारतीय समाज में अविरल दीर्घकाल से मान्य रहा है। गुरु दक्षिणा कोई दान नहीं है गुरु के प्रति किया गया सम्मान समर्पण भाव है । भारतीय समाज में व्यास पूर्णिमा  वाले दिन लोग अपने गुरु के पास जाते हैं और उनको वस्त्र और वर्ष भर में जमा की हुई समर्पण राशि भेंट करके आते हैं । 

रविवार, 15 जून 2025

जून माह का पंचांग


कथा कहानी सुनने के लिए के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें -

 श्रीं श्याम देवाय नमः।। ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ।।

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वर्षफल व जन्मपत्री बनवाने व दिखाने के लिए संपर्क करें शर्मा जी - 9312002527,9560518227 व निम्नलिखित फॉर्म भरे

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भारतीय व्रतोत्सव जून - 2025

. 1- स्कन्द षष्ठी, विन्ध्यवासिनी पूजा,दि. 3- दुर्गाष्टमी, धूमावती जयंती, मेला क्षीरभवानी (काश्मीर),

दि. 5- गंगा दशहरा, श्री बटुक भैरव जयंती,दि.6-निर्जला एकादशी व्रत,दि.8 - प्रदोष व्रत,दि. 10-सत्य व्रत,

दि. 11-कबीर जयंती, वट् सावित्री व्रत (द. भा.),दि. 11-गुरु हरगोविन्द सिंह जयंती,

दि. 14-श्री गणेश चतुर्थी व्रत,दि.15-संक्रांति पुण्य,दि.18-कालाष्टमी,दि.21-योगिनी एकादशी व्रत (स्मा.),

दि. 22-योगिनी एकादशी व्रत (वै.),दि.23-सोम प्रदोष, मास शिवरात्रि,दि.25-अमावस्या पुण्य,

दि.26-गुप्त नवरात्र प्रारम्भदि .27 श्री जगदीश रथ यात्रा पूरी दि . 28  विनायक चतुर्थी 

 मूल विचार जून -2025 

मूल विचार-मासारंभ से दि. 2 को 22/55 तक, दि. 10 को 18/01 से दि. 12 को 21/56 तक, दि. 19 को 23/16 से

दि. 21 को 19/50 तक, दि. 28 को 6/35 से दि. 30 को 7/20 बजे तक गण्ड मूल नक्षत्र हैं।

ग्रह स्थिति जून -2025

दि. 6 सिंह में मंगल,दि. 6 मिथुन में बुध,दि. 7 बुध पश्चिमोदय,दि. 11 गुरु पश्चिमास्त,दि. 15 मिथुन में सूर्य,

दि. 22 कर्क में बुध,दि. 29 वृष में शुक्र

पंचक विचार जून  -2025  

पंचक विचार -(धनिष्ठा नक्षत्र के तृतीय चरण से रेवती नक्षत्र तक) पंचको में दक्षिण दिशा की ओर यात्रा करना

मकान दुकान आदि की छत डालना चारपाई पलंग आदि बुनना,दाह संस्कार,बांस की चटाई दीवार प्रारंभ

करना आदि स्तंभ रोपण तांबा पीतल तृण काष्ट आदि का संचय करना आदि कार्यों का निषेध माना जाता है

समुचित उपाय एवं पंचक शांति करवा कर ही उक्त कार्यों का संपादन करना कल्याणकारी होगा ध्यान रहेगा 

पंचर नक्षत्रों का विचार मात्र उपरोक्त विशेष कृतियों के लिए ही किया जाता है विवाह मंडल आरंभ गृह प्रवेश

प्रवेश उपनयन आदि मुद्दों से तो पंचक नक्षत्र का प्रयोग शुभ माना जाता है

पंचक विचार-  दि. 16 को 13/09 से दि. 20 को 21/44 बजे तक पंचक हैं।

अधिक जानकारी के लिए संपर्क करे शर्मा जी - 9312002527,9560518227

भद्रा विचार जून -2025

भद्रा काल का शुभ अशुभ विचार - भद्रा काल में विवाह मुंडन, गृह प्रवेश, रक्षाबंधन आदि मांगलिक कृत्य

का निषेध माना जाता है परंतु भद्रा काल में शत्रु का उच्चाटन करना,स्त्री प्रसंग में,यज्ञ करना,स्नान करना,

अस्त्र शस्त्र का प्रयोग,ऑपरेशन कराना, मुकदमा करना,अग्नि लगाना,किसी वस्तु को काटना,भैस,घोड़ा व

ऊंट संबंधी कार्य प्रशस्त माने जाते हैं सामान्य परिस्थिति में विवाह आदि शुभ मुहूर्त में भद्रा का त्याग करना

चाहिए परंतु आवश्यक परिस्थितिवश अतिआवश्यक कार्य भूलोक की भद्रा ,भद्रा मुख छोड़कर कर

भद्रा पुच्छ में शुभ कार्य कर सकते है |

दि. 2 को 20/35 से दि. 3 को 9/10 तक, दि. 6 को 15/31 से दि. 7 को 4/48 तक, दि. 10 को 11/35 से

दि. 11 को 0/24 तक, दि. 14 को 3/32 से 15/46 तक, दि. 17 को 14/46 से दि. 18 को 2/10 तक,

दि. 20 को 20/34 से दि. 21 को 7/19 तक, दि. 23 को 22/09 से दि. 24 को 8/33 तक, दि. 28 को 21/34 से

दि. 29 को 9/14 बजे तक भद्रा है।

संक्रांति विचार जून - 2025

इस मास की संक्रान्ति मिथुन आषाढ़ कृष्ण चतुर्थी रविवार दि. 15 जून को प्रात: 6/43 पर दिन के

प्रथम पहर में 30 मु. बैठी भूखी, दक्षिण गमन, नैऋत्य दृष्टि किये माहेन्द्र मण्डल में प्रवेश करगी।

गतवार 5, गत नक्षत्र 4 रविवारी संक्रान्ति होने से सभी प्रकार के धान्य व रस पदार्थ, कन्दमूल,

कपास, तिलहन पदायों में तेजी चलेगी।

आकाश लक्षण जून - 2025

मास में ग्रहचाल व नाड़ी परिवर्तन और क्रूर ग्रहों का समसप्तम योग होने से भूकम्प, अनावृष्टि से प्रजा को

भारी कष्ट का सामना करना होगा। गुरु के अस्त होने से कहीं वर्षा भी होगी। सूर्य, चन्द्रमा और

बृहस्पति की युति से कहीं उतर दिशा में प्राकृतिक उपद्रवों से धन-जन हानि होगी।

चंद्र राशि प्रवेश  जून - 2025  

दि. 1 सिंह 21/36, दि. 4 कन्या 7/35, दि. 6 तुला 20/06, दि. 9 वृश्चिक 8/50, दि. 11 धनु 20/10, दि. 14

मकर 5/38. दि. 16 कुम्भ13/09, दि. 18 मौन 18/35, दि. 20 मेष 21/44, दि. 22 वृष 23/03,

दि. 24 मिथुन 23/45, दि. 27 कर्क 1/39, दि. 29 सिंह 6/34

अधिक जानकारी के लिए संपर्क करे शर्मा जी - 9312002527,9560518227

सर्वार्थ सिद्धि योग जून -2025  

दैनिक जीवन में आने वाले महत्वपूर्ण कार्यों के लिए शीघ्र ही किसी  शुभ मुहूर्त का अभाव हो,किंतु शुभ मुहर्त

के लिए अधिक दिनों तक रुका ना जा सकता हो तो इन सुयोग्य वाले मुहर्तु  को

सफलता से ग्रहण किया जा सकता है | इन से प्राप्त होने वाले अभीष्ट फल के विषय में संशय नहीं करना

चाहिए यह योग हैं सर्वार्थ सिद्धि,अमृत सिद्धि योग एवं रवियोग | योग्यता नाम तथा गुण अनुसार सर्वांगीण

सिद्ध कारक  है| 

अधिक जानकारी के लिए संपर्क करे शर्मा जी - 9312002527,9560518227

दिनांक

प्रारंभ

दिनांक

समाप्त

07

09-39

08

05-28

09

15-31

10

05-27

15

00-21

15

05-27

19

23-16

21

05-27

23

15-16

24

05-28

25

05-29

25

10-40

26

08-46

27

07-21


चौघड़िया मुहूर्त 

चौघड़िया मुहूर्त देखकर कार्य या यात्रा करना उत्तम होता है। एक तिथि के लिये दिवस और रात्रि के आठ-आठ

भाग का एक चौघड़िया निश्चित है। इस प्रकार से 12 घंटे का दिन और 12 घंटे की रात मानें तो

प्रत्येक में 90 मिनट यानि 1.30 घण्टे का एक चौघड़िया होता है जो सूर्योदय से प्रारंभ होता है|

सुर्य उदय- सुर्य अस्त जून - 2025 


दिनांक 

01 

05 

10 

15

20 

25 

28

उदय 

05-25

05-24

05-24

05-24

05-25

05-26

05-27

अस्त 

19-13

19-15

19-17

19-19

19-20

19-21

19-23


 राहू काल 

 राहुकाल -राहुकाल दक्षिण भारत की देन है,दक्षिण भारत में राहु काल में कृत्य करना अच्छा नहीं माना जाता,

राहु काल में शुभ कृतियों में वर्जित करने की परंपरा अब हमारे उत्तरी भारत में भी अपनाने लगे हैं

राहुकाल प्रतिदिन सूर्यादि वारों में भिन्न-भिन्न समय पर केवल डेढ़ डेढ़ घंटे के लिए घटित होता है |

अधिक जानकारी के लिए संपर्क करे शर्मा जी - 9312002527,9560518227

  मांगलिक दोष विचार परिहार

वर अथवा कन्या दोनों में से किसी की भी कुंडली में 1,4,7,8 व 12 भाव में मंगल होने से ये मांगलिक माने जाते हैं,

मंगली से मंगली के विवाह में दोष न होते हुए भी जन्म पत्रिका के अनुसार गुणों को मिलाना ही चाहिए

यदि मंगल के साथ शनि अथवा राहु केतु भी हो तो प्रबल मंगली डबल मंगली योग होता है |

इसी प्रकार गुरु अथवा चंद्रमा केंद्र हो तो दोष का परिहार भी हो जाता है |इसके अतिरिक्त मेष वृश्चिक

मकर का मंगल होने से भी दोष नष्ट हो जाता है | इसी प्रकार यदि वर या कन्या किसी भी

कुंडली में 1,4,7,9,12 स्थानों में शनि हो केंद्र त्रिकोण भावो में शुभ ग्रह, 3,6,11 भावो में पाप ग्रह हों तो भी

मंगलीक दोष का आंशिक परिहार होता है, सप्तम ग्रह में यदि सप्तमेश हो तो भी दोष निवृत्त होता है |

स्वयं सिद्ध मुहूर्त

 स्वयं सिद्ध मुहूर्त चैत्र शुक्ल प्रतिपदा वैशाख शुक्ल तृतीया अक्षय तृतीया आश्विन शुक्ल दशमी विजयदशमी

दीपावली के प्रदोष काल का आधा भाग भारत में से इसके अतिरिक्त लोकाचार और देश

आचार्य के अनुसार निम्नलिखित कृतियों को भी स्वयं सिद्ध मुहूर्त माना जाता है बडावली नामी

देव प्रबोधिनी एकादशी बसंत पंचमी फुलेरा दूज इन में से किसी भी कार्य को करने के लिए

पंचांग शुद्धि देखने की आवश्यकता नहीं है परंतु विवाह आदि में तो पंचांग में दिए गए मुहूर्त व

कार्य करना श्रेष्ठ रहता है।


शनिवार, 14 जून 2025

ताड़ासन

ताड़ासन

सतीश शर्मा           

ताड़ासन, योग की एक विथ आसन का एक भाग  है ।  जिसमें सीधे खड़े होकर शरीर को ऊपर की ओर खींचना होता  है। यह आसन शरीर को सीधा रखने, संतुलन बनाने और एकाग्रता में सुधार करने में मदद करता है। 

ताड़ासन करने का तरीका – सीधे खड़े हो जाएं, पैर साथ में और हाथ शरीर के बगल में लगें हो ।  शरीर को सीधा रखें और पैरों पर समान रूप से वजन डाल कर खड़े हो । सांस भरते हुए हाथों को ऊपर उठाएं और उंगलियों को आपस में फंसा लें। हाथों को सिर के ऊपर ले जाएं और एड़ी को भी ऊपर उठाएं। कुछ देर इसी स्थिति में रहें, सांस लेते और छोड़ते रहें। सांस छोड़ते हुए हाथों को नीचे लाएं और सामान्य स्थिति में आ जाएं। 

ताड़ासन के लाभ – शरीर को सीधा रखने में मदद करता है, जिससे मुद्रा में सुधार होता है। संतुलन और एकाग्रता में सुधार करता है व बढ़ाता हैं । पाचन क्रिया को बेहतर बनाता है। शरीर में रक्त संचार को बढ़ाता है । तनाव और थकान को कम करने में मदद मिलती है। बच्चों की लंबाई बढ़ाने में मदद करता है। इस आसन के अभ्यास से शारीरिक और मानसिक संतुलन बनता है। शरीर की बनावट में सुधार होता है। जांघों, घुटनों और टखनों को मजबूत करता है। ताड़ासन के अभ्यास से पेट मे लोच आती ओर धीरे-धीरे अपनी सही स्थिति में आने लगता है। रीढ़ की हड्डी में खिंचाव लाकर उसके विकारों को दूर करता है। फ्लैट पैर की परेशानी को दूर करने में ताड़ासन का अभ्यास कर सकते हैं।

सावधानियां – यदि आपको कोई शारीरिक समस्या है, तो डॉक्टर या योग प्रशिक्षक से सलाह लें। गर्भवती महिलाओं को यह आसन सावधानी से करना चाहिए । यदि आपको चक्कर आते हैं, तो यह आसन न करें।





   


शुक्रवार, 13 जून 2025

गौमुखासन

 


गोमुखासन

सतीश शर्मा 

गोमुखासन, जिसे गाय के चेहरे की मुद्रा भी कहा जाता है, गौमुख आसन है जो शारीरिक और मानसिक दोनों तरह से लाभ प्रदान करता है। यह आसन पैरों और हाथों को एक विशिष्ट स्थिति में रखकर किया जाता है, जिससे मांसपेशियों में खिंचाव और लचीलापन आता है। 

गोमुखासन करने का तरीका -

योग मैट पर सुखासन (सुखद आसन) मुद्रा में बैठ जाएं। बाएं पैर को घुटने से मोड़कर दाएं पैर के नीचे से बाहर निकालें। बाएं घुटने को दाएं नितंब के नीचे रखें। दाएं पैर को बाएं पैर के ऊपर रखें, घुटने एक-दूसरे से मिलें। दाएं हाथ को ऊपर उठाएं और कोहनी को मोड़कर पीठ के पीछे ले जाएं। बाएं हाथ को भी कोहनी से मोड़कर पीठ के पीछे ले जाएं और दोनों हाथों को आपस में बांध लें।हाथों को बांधने के बाद, दोनों हाथों की उंगलियों को आपस में मिला लें।इस मुद्रा में कुछ देर तक रहें, गहरी सांस लें और छोड़ें।इस आसन को बाएं व दाएं दोनों तरफ से करें । 

गोमुखासन के लाभ - यह आसन शरीर के विभिन्न हिस्सों को लचीला बनाने में मदद करता है, खासकर कंधों, जांघों, और रीढ़ की हड्डी को। यह आसन कमर दर्द को कम करने में मदद कर सकता है। यह आसन पाचन तंत्र को उत्तेजित करता है और कब्ज जैसी समस्याओं से राहत दिला सकता है।यह आसन गुर्दों को मजबूत करने में मदद करता है।यह आसन मन को शांत करने और तनाव को कम करने में मदद करता है।यह आसन सांस लेने की प्रक्रिया को बेहतर बनाने में मदद करता है। 

कंधे, घुटने या पीठ में चोट लगी है, ऐसे व्यक्तियों को यह आसन नहीं करना चाहिए।

गर्भवती महिलाओं को यह आसन करने से पहले अपने डॉक्टर से सलाह लेनी

 चाहिए। 

मंगलवार, 10 जून 2025

जानकारीकाल हिन्दी मासिक जून -2025

 जानकारी काल 



   वर्ष-26   अंक - 01        जून - 2025 ,  पृष्ठ 40                   www.sumansangam.com    



योग को जीवन का अभिन्न अंग बनाए 


 प्रधान संपादक व  प्रकाशक

 सतीश शर्मा 



 कार्यालय

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 नई दिल्ली 110012


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 संपादक मंडल

 सौरभ  शर्मा,

कपिल शर्मा,

गौरव शर्मा,

डॉ अजय प्रताप सिंह,

 करुणा ऋषि, 

डॉ मधु वैध,

राजेश शुक्ल  


प्रकाशक व मुद्रक 

सतीश शर्मा के लिय ग्लैक्सी प्रिंटर-106 F,

कृणा नगर नई दिल्ली 110029, A- 214 बुध नगर इन्दर पूरी नई दिल्ली  110012 से प्रकाशित |


सभी लेखों पर संपादक की सहमति आवश्यक नहीं है पत्रिका में किसी भी लेख में आपत्ति होने पर उसके विरुद्ध कार्रवाई केवल दिल्ली कोर्ट में ही होगी 

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मूल्य 02-50 


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अनुक्रमणिका



अपनों से अपनी बात - 3 

हिंदू साम्राज्य के योद्धा छत्रपति शिवाजी महाराज - 4 लेख

रोग से दूर रखने की साधना है योग - 11 लेख

 भारतीय शिक्षा पद्धति - 14 लेख

 समस्या है तो समाधान भी है - 17 व्यक्तित्व

 देश प्रेम - 18 कविता

माधवराव सदाशिव राव गोलवलकर - 19 कहानी

मनोहरी सौंदर्य - 21 लेख

गंगा दशहरा - 22 लेख

निर्जला एकादशी - 23 एकादशी कथा 

योगिनी एकादशी - 24 एकादशी कथा 

ज्येष्ठा नक्षत्र - 26 ज्योतिष 

जून माह 2025 का पंचांग - 27 पंचांग 

 जून 2025 के महत्वपूर्ण दिवस - 31

क्रांतिकारी वार्तालाप - 39 लेख 





अपनों से अपनी बात 

आत्म रक्षा सदा कार्यं, सदा हितं सदा प्रियं।आत्मरक्षा विहीनस्य, न सिद्धिः न च सुखं। 

आत्म रक्षा का हमेशा कार्य करना चाहिए, यह हमेशा हितकारी और प्रिय होता है। आत्म रक्षा के बिना, न सिद्धि है और न सुख। 

सोचए भारत रक्षा सामग्री बनाने में पूर्ण रूप से आत्मनिर्भर हो जाता है तो उसे रक्षा उपकरणों की के लिए दूसरे देशों के भरोसे नहीं रहना पड़ेगा। भारत कि को एक महाशक्ति के रूप में उभरने में सैन्य क्षेत्रों में को आत्मनिर्भर होना जरूरी है। भारत द्वारा अमेरिका से पांचवीं पीढ़ी के एफ-35 लड़ाकू विमानों का सौदा नहीं होने से अमेरिका इतना बौखलाया क्यों है? भारत हमेशा से कम कीमत पर अत्याधुनिक हथियारों की खरीद, भारत में निर्माण और तकनीक हस्तांतरण का पक्षघर रहा है। लेकिन अमेरिका और भारत पर आपसी सहमति न' बनने पर भारत का रूख रूस के अत्याधुनिक पांचवीं पीढ़ी के लड़ाकू विमान एसयू-57 की तरफ हो जाने पर अमेरिकी नाराजगी जायज नहीं लगती। निस्संदेह अब अमेरिका न ही भारत पर दबाव की राजनीति नहीं कर सकता। इसी लिए अमेरिका के राष्ट्रपति कभी एप्पल के सीईओ को भारत में आइफोन के निर्माण को बंद कर अमेरिका में स्थांतरित करने का दबाव बना रहे हैं ओर कभी भारत-पाक के बीच सीजफायर का श्रेय अपने आपको देने में लगते हैं, जबकि सच्चाई यह है कि पाक डीजीएमओ ने भारत के डीजीएमओ के समक्ष जल्द सीजफायर का प्रस्ताव रखा था। निश्चित ही भविष्य में इस प्रकार की नकारात्मक राजनीति विश्व को आंतकवाद के रूप में ही भारी पड़ेगी। भारत द्वारा अमेरिका के 28 उत्पाद पर टेरिफ बढ़ाने पर आज अमेरीका विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) की चौखट पर भारत की शिकायत करने पर आमादा है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की प्रथम राष्ट्र की नीति देश को जहां सम्मान दिलाती है वहीं अंतरराष्ट्रीय राजनीति, रणनीति और विदेश नीति को चार चांद लगाती भी नजर आती है।

इसी को ध्यान में रखते हुए सरकार ने विश्व के बदलते सामरिक परिदृश्य के में भारतीय वायुसेना के लिए पांचवीं पीढ़ी के अति आधुनिक डीप पेनिट्रेशन एडवांस मीडियम काम्बैट एयरक्राफ्ट को देश में ही विकसित करने की मेगा के परियोजना की मंजूरी दे दी। पांचवीं पीढ़ी के फाइटर सी जेट्स सबसे उन्नत लड़ाकू विमान हैं, जो स्टील्थ, सुपरक्रूज और डिजिटल तकनीकों से लैस होते हैं। इनकी प्रमुख विशेषताएं हैं, उन्नत स्टील्थ रडार से - बचने की क्षमता, जिससे दुश्मन इन्हें आसानी से नहीं देख सकता। सुपरक्रूज आफ्टरबर्नर के बिना सुपरसोनिक गति पर उड़ान भर सकता है। भारत सरकार के इस निर्णय से चीन की नींद उड़ गई है। चीन पाकिस्तानी सेना को मजबूत करने में जुट गया है। भारत द्वारा चलाए गए आपरेशन सिंदूर के दौरान पाकिस्तान के नौ एयरबेसों को तबाह कर दिया गया। इन एयरबेसों पर चीन निर्मित रडार थे, जो भारत की मिसाइलों के आगे नाकाम साबित हुए । 



हिन्दू साम्राज्य के योद्धा छत्रपति शिवाजी महाराज

सतीश शर्मा 

 हिंदू साम्राज्य दिवस ज्येष्ठ शुक्ल त्रयोदशी यह छत्रपति शिवाजी महाराज के राज्याभिषेक का दिवस है। संघ ने इस उत्सव को अपना उत्सव क्यों बनाया इसका आज के वातावरण में जिन्हें ज्ञान नहीं है, जानकारी नहीं है, उन के मन में कई प्रश्न आ सकते हैं। हमारे देश में राजाओं की कमी नहीं है, देश के लिये जिन्होंने लडकर विजय प्राप्त की, ऐसे राजाओं की भी कमी नहीं है। फिर भी, क्यों कि संघ नागपुर में स्थापन हुआ और संघ के प्रारंभ के सब कार्यकर्ता महाराष्ट्र के थे, इसी लिये संघ ने छत्रपति शिवाजी महाराज के राज्याभिषेक का दिन हिंदू साम्राज्य दिनोत्सव बनाया ऐसा नहीं है। छत्रपति शिवाजी महाराज के समय की परिस्थिति अगर हम देखेंगे तो ध्यान में ये बात आती है कि अपनी आज की परिस्थिति और उस समय की परिस्थिति इसमें बहुत अंशों में समानता है। उस समय जैसे चारों ओर से संकट थे, समाज अत्याचारों से ग्रस्त था, पीड़ित था, वैसे ही आज भी तरह तरह के संकट हैं, और केवल विदेश के और उनकी सामरिक शक्तियों के संकट नहीं है, सब प्रकार के संकट है। उस समय भी ये संकट तो थे ही लेकिन उन संकटों के आगे समाज अपना आत्मविश्वास खो बैठा था। यह सब से बडा संकट था। मोहम्मद बिन कासिम के आक्रमण से इन संकटों का सूत्रपात हुआ। हम लड़ते रहे, लेकिन 



लडाई में बार बार मार खाते, कटते, पिटते भी रहे। विजय नगर के साम्राज्य का जब लोप हो गया तो समाज में एक निराशा सी व्याप्त हो गई। जैसी आज देखने को मिलती है। समाज के बारे में सोचने वाले प्रामाणिक व्यक्तियों के पास हम जायेंगे, उनके साथ बैठेंगे, सुनेंगे तो वे सब लोग लगभग निराश है। कोई आशा की किरण दिखाई नहीं देती और निराशा का पहिला परिणाम होता है आत्मविश्वास गवाँ बैठना। वह आत्मविश्वास चला गया। अभी अभी कोलकाता की एक संपूर्ण हिंदू धनी बस्ती में विनाकारण एक मस्जिद बनाने का काम कट्टरपंथी उपद्रवियों ने शुरू किया, शुरू ही किया था तो पहली प्रतिक्रिया हिंदू समाज की क्या हुई? ‘अरे राम, यहाँ पर मस्जिद आ गई! चलो, इस बस्ती को अब छोड़ो!’ वहाँ संघ के स्वयंसेवक है, उन्होंने सब को समझाया, फिर वहाँ प्रतिकार खडा हुआ, यह बात अलग है। लेकिन हिंदुसमाज पहला विचार यह करता है कि आ गये! भागो! शिवाजी के पूर्व के समय में भी ऐसी ही परिस्थिति थी। अपनी सारी विजिगीषा छोड कर हिंदू समाज हताश हो कर बैठा था। अब हमको विदेशियोंकी चाकरीही करनी है यह मान कर चला था। इस मानसिकता का उत्तम दिग्दर्शन शायद राम गणेश गडकरी जी के ‘शिवसंभव’ नाटक में है। शिवाजी महाराज के जन्म की कहानी है। जिजामाता गर्भवती है, और गर्भवती स्त्री को विशिष्ट इच्छाएँ होती है खाने, पीने की। कहते है कि आनेवाला बालक जिस स्वभाव का होगा उस प्रकार की इच्छा होती है। मराठी में ‘डोहाळे’ कहते है। हर गर्भवती स्त्री को ऐसी इच्छा होती है। फिर उस की सखी सहेलियाँ उस की इच्छाएँ पूछ कर उसको तृप्त करने का प्रयास करती है। नाटक में प्रसंग है जिजामाता के सहेलियों नें पूछा, ‘क्या इच्छा है?’ तो जिजामाता बताती है कि, ‘मुझे ऐसा लगता है की शेर की सवारी करूँ, और मेरे दो ही हाथ न हों, अठारह हाथ हों और एकेक हाथ में एकेक शस्त्र लेकर पृथ्वीतल पर जहाँ जहाँ राक्षस हैं वहाँ जाकर उन का निःपात करूँ, या सिंहासन पर बैठकर और छत्र चामरादि धारण कर अपने नाम का जयघोष सारी दुनिया में करावाऊँ, इस प्रकार की इच्छाएँ मुझे हो रही है। सामान्य स्थिति में यह सुनते है तो कितना आनंद होगा कि आनेवाला बालक इस प्रकार का विजिगीषु वृत्ति का है। लेकिन जिजामाता की सहेलियाँ कहती है कि, ‘ये क्या है? ये क्या सोच रही हो तुम? अरे जानती नहीं एक राजा ने ऐसा किया था, उस का क्या हाल हो गया? हम हिंदू है, सिंहासन पर बैठेंगे?” ‘भिकेचे डोहोळे’ ऐसा शब्द मराठी में हैं। भीख माँगने के लक्षण! याने हिंदू ने हाथ में शस्त्र लेकर पराक्रम करने की इच्छा करना या सिंहासन पर बैठने की इच्छा करना यह बरबादी का लक्षण है। इस प्रकार की मानसिकता हिंदुसमाज की बनी थी। आत्मविश्वासशून्य हो जाते है तो फिर सब प्रकार के दोष आ जाते है। स्वार्थ आ जाता है। आपस में कलह आ जाता है। और इस का लाभ लेकर विदेशी ताकते बढती चली जाती है। बढती चली जाती है और फिर सामान्य लोगों का जीवन दुर्भर हो जाता है। इस प्रकार की विजिगीषाशून्य, दैन्य युक्त समाज की स्थिति थी। उस समय शिवाजी महाराज के उद्यम से विदेशी आक्रमण के साथ लंबे संघर्ष के बाद भारतीय इतिहास में 




पहली बार हिंदुओं का अधिकृत विधिसंमत, स्वतंत्र सिंहासन स्थापित हुआ।

शिवाजी महाराज जानते थे की एक नेता, एक सत्ता ये समाज के भाग्य को सदा के लिये नहीं बदल सकते। तात्कालिक विजय संपादन कर फिर इतिहास की पुनरावृत्ति होगी। इस लिये पहले समाज में विजिगीषा जगानी है। समाज में आत्मविश्वास जगाना है, समाज का संगठन करना है। सब प्रकार के लोगों को उन्होंने जोडा। उनके अनुयायियों में कितने प्रकार के लोग थे। मराठी में जिसको कहते है ‘अठरा पगड जाति’! अठारह प्रकार की पगडी बांधने वाले, समाज के अठारह वर्गों के लोग बडे बडे सरदार, पुरोहितों से लेकर तो बिल्कुल छोटा, उस समय जिनको हलका, हीन माना जाता था ऐसे जाति के लोग भी शिवाजी महाराज के ‘जीवश्च कंठश्च’ मित्र थे। उन के लिये प्राण देने के लिये तत्पर, और केवल उनके लिये नहीं, स्वराज्य और स्वधर्म के लिये जीने मरने के लिये तत्पर। शिवाजी महाराज के पास उस समय शस्त्र नहीं थे। बहुत ज्यादा साधन नहीं थे। हाथी घोडे नहीं थे। जब उन्होंने एक एक वीर को खडा किया उनकी आगे चलकर स्वतंत्र कहानियाँ बनी। समाज में एक लोककथा चलती है कि कुतुबशाह को मिलने के लिये शिवाजी महाराज स्वयं गये। उसने व्यंग्य से पूछा ‘आपके पास हाथी कितने है?’ उसको मालूम था, शिवाजी महाराज के पास हाथी नहीं है। शिवाजी महाराज ने कहा- ‘हाथी बहुत है हमारे पास’, ‘साथ में नहीं लाये?’ ‘लाये है!’ ‘कहाँ है?’‘पीछे खडे है,’पीछे उनके मावले सैनिक खडे थे। तो व्यंग्य से कुतुबशहा पूछता है,‘ये हमारे हाथीयों से लडेंगे क्या?’तो बोले, ‘उतारिये मैदान में कल।’

दूसरे दिन कुतुबशाह का सबसे खूँखार हाथी लाया गया। सुलतान ने गोलकुंडा में मैदान में उसे उतारा और शिवाजी महाराज ने अपने एक साथी येसाजी कंक से कहा हाथी से लडो। अपना कंबल जमीन पर पटक कर नंगी तलवार हाथ में लेकर वह मैदान में कूद पडा। हाथी की सूंड काटकर उस को मार दिया। हृदय में निर्भयता लेकर देश-धर्म की इज्जत के लिये मदमस्त हाथीयों से लड़नेवाले वीरों की फौज महाराज ने खड़ी की और समूचे समाज में जोश की भावना उत्पन्न की। इसी लिये तो शिवाजी महाराज के जाने के पश्चात जब राजाराम महाराज को दक्षिण में जाकर रहना पडा, एक तरह से बंद से हो गये वे एक किले में, उस समय भी न राजा है, न खजाना है, न सेना है, न सेनापति है, ऐसी अवस्था में भी हाथ में कुदाल, फावडा और हँसिया लेकर महाराष्ट्र की प्रजा बीस साल तक लडी और स्वराज्य को मिटाने के लिये आनेवाले औरंगजेव को दल बल के साथ यहीं पर अपने आप को दफन करा लेना पडा। समाज की इस ताकत को शिवाजी महाराज ने उभार तथा कार्यप्रणित किया। स्वयं के जीवन तक की परवाह नहीं की। पचास साल की उनकी आयु, अखंड परिश्रम की आयु रही है। आप लढो और मैं केवल आदेश दूँगा यह उनका स्वभाव नहीं था, वे स्वयं कूद पडते, कर दिखाते और बाद में कुछ कहते थे। शाहिस्त खाँ को शास्ति (दंड, सजा) सिखाने के लिये स्वयं सामना किया। कारतलबखाँ को शरण लाने 



के समय वहाँ शिवाजी महाराज अपने सारे शस्त्र धारण कर वीरोचित गणवेष में मौजूद थे। स्वयं आगे होकर अपने साहस का परिचय देते थे। अनुयायियों में कितनी हिंमत जगती थी। विवेक भी रखते थे। ‘धृती उत्साह सम्न्वितः’ ऐसी उनकी रणनीति थी। इस धृति, उत्साह व साहस के बलपर ही वे अफजलखाँ से लडकर सफल हुए।

अफजलखान आया तो बदनामी स्वीकार कर भी प्रतापगढ पर चुपचाप बैठे रहे। मिलने के लिये गये। धैर्य से सहन किया सबकुछ उचित प्रसंग आते ही अफजलखान को समूल नष्ट किया। और उसके बाद जो रणोद्यम किया उससे चार महिने के अंदर बीजापुर के बाहर तक स्वराज्य की सीमा जा पहुँची। कब साहस करना? कब धैर्य दिखाना? कब आक्रामक होना? कब चुप रहना? यह विवेक था उनके पास।

हमारी तब तक की युद्धनीति जो सर्वत्र भारत में चल रही थी वह सीधी थी, धार्मिक थी। धर्मयुद्ध करते थे हम। शिवाजी महाराज ने इस नीति की परिभाषा बदल दी। उन्होंने कहा सामनेवाला शत्रु छल कपट करता है तो जैसे को तैसा करना पडेगा। धर्म के विजय के लिये हम वह करेंगे जो कृष्ण ने महाराभाारत में किया। और इस लिये बीजापुर के दरबार में शहाजी राजा को पकडा तो इन्होंने औरंगजेब को पत्र लिखा कि हम आपके ईमानदार चाकर है और आपकी सरहदोंकी रखवाली कर रहे है। हम को आदिलशाह तंग कर रहा है। इस को कुछ समझाओ। यह पत्र लिखने के बाद वहाँ से पत्र गया। शहाजी महाराज छूट गये लेकिन इस दरम्यान शिवाजी महाराज ने मुगल सल्तनत के भी दो गावों को लूटा क अपने सारे शत्रुओं को, कभी इसी को दोस्ती का हाथ दिखाकर, कभी उसको शस्त्र दिखाकर। ये इमानदारी नहीं है लेकिन बेईमान शत्रूओं के सामने ईमानदारी का उपयोग नहीं करना था। अफजलखान वध के पश्चात चर्चा चली होगी। शिवाजी महाराज से पूछा गया यह प्रश्न कि आप दगाबाज है, आपने तो कसम खायी थी, आपने हाथों में तुलसी पत्र, बिल्व पत्र लेकर शब्द दिया था। और दगा कर अफजलखान को मारा। धोखा किया आपने अफजलखान के साथ। तो शिवाजी महाराज का उत्तर है हां मैने धोखा किया, वो मुझे जिंदा या मुर्दा पकड कर ले जाने की प्रतिज्ञा के साथ आया था, तो क्या में मरूँ? मैं अपने लिये जीना नहीं चाहता। यह नवनिर्मित स्वराज्य है, यह बढेगा, इसका वटवृक्ष होगा उस के पहले ही उसे काटने वाले को मैं उसे काटने दूँ? मैने उस के साथ धोखा किया क्यों कि वो धोखा मन में लेकर आया था। वह कपट कर रहा था। मैने उस का जवाब दिया। एक उदाहरण बता दो यदि मैने कभी दोस्त के साथ धोखा किया हो। हिंदुस्तान के इस आक्रमण का उत्तर देने की नीति का पूर्ण परिष्कार शिवाजी महाराज ने किया। स्वयं की अचूक योजना कुशलता के बल पर एक के बाद एक विजय पर विजय प्राप्त करते चले गऐ। और तात्कालिक पराजय को भी विजय में बदल दिया। वे जब औरंगजेब से मिलने गये तथा राजस्थान के राजपूतों में बुझती हुई स्वतंत्रता की आकांक्षा को उन्होंने फिर से जगाया। उन के आत्मविश्वास को संबल प्रदान किया। वे केवल वहाँ से सफलतापूर्वक भाग कर आये ऐसा नहीं है। वहाँ पर उन्होंने जगह जगह लोगों को अपना बना लिया, औरंगजेब के दरबार से लौटने के 


पश्चात अपना लूटा गया धन पुनः प्राप्त कर राज्य का विस्तार किया। नौदल, अश्वदल व पदातिसेना को एकसाथ उपयोग करनेवाली व्यूहरचना का प्रयोग करनेवाले वे तत्कालीन भारतवर्ष के वे पहले राजा थे। ऐसा नीतिकार, ऐसे साहस और दूर दृष्टिवाले शिवाजी महाराज केवल सत्ता संपादन के लिये राजा नहीं बने थे। क्योंकि उन के सामने सुरक्षित हिंदू धर्म, हिंदू संस्कृति, हिंदू समाज और विजिगीषु परम वैभव-संपन्न हिंदु राष्ट्र का दृश्य था।

बहुत सी बाते उन्होंने ऐसी की जो यदि आज की जाती है तो लोग कहेंगे कि ये पुरोगामी कदम है। उस जमाने में जब समाजवाद, साम्यवाद का दूर दूर तक नाम नहीं था शिवाजी महाराज ने जमींदारो को, वतनदारी को रद्द कर दिया। समाज के संपत्ति पर हम लोग ट्रस्टी रह सकते है। हम लोग अधिकारी नहीं बन सकते। यह समाज की संपत्ति है, समाज की व्यवस्था देखनेवाले राज्य के अधीन रहे किसी व्यक्ति को यह नहीं दी जायेगी। संभालने के लिये दी जायेगी। ओहदा रहेगा, सत्ता नहीं रहेगी। वतनदारी को रद्द कर दिया। उस समय के सरदार जागीरदारोंकी निजी सेनाएँ होती थी। शिवाजी महाराज ने यह पद्धति बदल दी व सेना को स्वराज्य के केन्द्रीय प्रशासन से वेतन देना प्रारम्भ कर सैनिको की व्यक्तिपर निष्ठाओंको राष्ट्रपर बनाया। उनके राज्य में सभी सैनिकों के अश्वों का स्वामित्व स्वराज्य के केन्द्रीय प्रशासन के पास था। गरीब किसानों को उनके जमीन का स्तर व फसल के उत्पादन के आधारपर राहत देनेवाली द्विस्तरीय वित्तीय करप्रणाली उन्होंने लागू की। तालाब, जलकूप खुदवाये, जंगल लगवाये, धर्मशालाएँ, मंदिर व रास्तोंका निर्माण करवाया।

शिवाजी महाराज ने समयानुसार समाज में जो जो परिवर्तन होना चाहिये वह सोचकर परिवर्तन किया। बेधडक किया। नेताजी पालकर को वापस हिंदू बना लिया, बजाजी निंबालकर को फिर से हिंदू बना लिया। केवल बना ही नहीं लिया उन को समाज में स्थापित करने के लिये उन से अपना रिश्ता जोड दिया। विवेक था। दृष्टि थी। तलवार के बल पर इस्लामीकरण हो रहा था। शिवाजी महाराज की दृष्टि क्या थी? विदेशी मुसलमानों को चुन चुन कर उन्होंने बाहर कर दिया। अपने ही समाज से मुस्लिम बने समाज के वर्ग को आत्मसात करने हेतु अपनाने की प्रक्रिया उन्होंने चलायी। कुतुबशाहा को अभय दिया। लेकिन अभय देते समय यह बताया की तुम्हारे दरबार में जो तुम्हारे पहले दो वजीर होंगे वे हिंदू होंगे। उसके अनुसार व्यंकण्णा और मादण्णा नाम के दो वजीर नियुक्त हुए और दूसरी शर्त ये थी की हिंदू प्रजा पर कोई अत्याचार नहीं होगा। पोर्तुगीज गव्हर्नर और पोर्तुगीज सेना की शह पर मतांतरण करने मिशनरी आये है ये समझते ही गोवा पर चढ गये। इन को हजम करना है इस का मतलब अपने धर्म के बारे में ढुल मुल नीति नहीं। सीधा आक्रमण किया। चिपळूण के पास गये। परशुराम मंदिर को फिर से खडा किया। औरंगजेब के आदेश से, तब काशी विश्वेश्वर का मंदिर टूटा था। औरंजेब को पत्र लिखा कि तुम राजा बने हो, दैवयोग से और ईश्वर की कृपा से। और ईश्वर की आँखों में सारी प्रजा समान 


है। ईश्वर हिंदु मुसलमान ऐसा भेद नहीं करता। तुम न्याय से उसका प्रतिपालन करो, तुम अगर हिंदूंओं के मंदिर तोडने जैसे कारनामे करोगे तो मेरी तलवार लेकर मुझे उत्तर में आना पडेगा। शिवाजी महाराज का राज्य वहाँ नहीं था। शिवाजी महाराज का राज्य बहुत छोटा था। दक्षिण में था। शिवाजी महाराज के जीवन काल में वह राज्य काशी तक जायेगा ऐसी भविष्यवाणी कोई कर नहीं सकता था। फिर भी शिवाजी महाराज ने यह पत्र लिखा क्यों कि काशी विश्वेश्वर हमारे राष्ट्र का श्रद्धास्थान है। यह मेरा राष्ट्र कार्य है। लेकिन ऐसा करते समय जो मुसलमान बन गये है उनका क्या करना? प्रेम से जोडो। बने तक वापस लाओ। ये सारी दृष्टि उन की करनी में थी। समय कहाँ जा रहा है और क्या करना चाहिये इसकी अद्भुत दृष्टि उनके पास थी और इसलिये युरोप से मुद्रण करनेवाला, एक यंत्र,  पुराना कीले लगाकर छाप करने वाला, उस को मंगवाकर, उसका अध्ययन करते हुए वैसा यंत्र बनाने का प्रयास, मुद्रण कला शुरू करने का प्रयास उन्होंने करवाया। विदेशियों से अच्छी तोपे, अच्छी तलवारे ली और वैसी तोपे, वैसी तलवार अपने यहां बने इस की चिंता की। उन्होंने स्वराज्य की सुरक्षा के लिये एक बहुत पक्का सूचना तंत्र गुप्तचरों के सुगठित व्यापाक जाल के माध्यम से खडा किया था। सागरी सीमा अपने देश की सुरक्षा है, वहाँ से ही आक्रमण के लिये सीधा रास्ता हो सकता है, क्योंकि अब पानी के जहाज बन गये है तो अपना भी नौदल चाहिये। उन्होने अपने नौदल का गठन किया। विदेशियों की नौ निर्माण कला और अपने ग्रंथों की नौ निर्माण कला की तुलना करते हुए अपने देश के अनुकूल नई नौ निर्माण कला का विद्वानों से सृजन कराया, और वैसे जहाज बनवाये। सिन्धुदुर्ग, सुवर्णदुर्ग, पद्मदुर्ग, विजयदुर्ग ऐसे जलदुर्ग बनवाये। कितनी व्यापक दृष्टि होगी और कहाँ तक देखते होंगे। वे केवल उस समय का विचार नहीं करते थे। मात्र एक सुलतान को पराजित कर अपना स्वराज्य बनाना केवल इतना नहीं। इस स्वराज्य को सुरक्षित करना है। इस समाज को समयानुकूल बना कर विश्व का सिरमोर समाज इस नाते खडा करना है।

अत्यंत लोकप्रिय सर्वसत्तासंपन्न राजा बनने के बाद भी सज्जनों के सामने विनम्र होते थे। कला गुणों की कदर करते थे। रसिया थे, स्वयं करते थे और फिर लोगों से कहते थे। साहस था, विजय का विश्वास था, नीतिनिपुण थे। काम करने की कुशलता थी, हर बात को उत्तम कैसे करना इसका गुरू मंत्र उनके पास रहता था। समर्थ रामदास स्वामी जैसे अत्यंत विलक्षण व्यक्ति के द्वारा ऐसी प्रशंसा जिनको मिली है वे शिवाजी महाराज थे। ऐसे छत्रपति शिवाजी महाराज जो स्वयं व्यक्तिगत दृष्टिसे राजा कैसा हो, हिंदुसमाज का व्यक्ति कैसा हो, हिंदुसमाज का नेतृत्व करनेवाला नेता कैसा हो इसका मूर्तिमंत आदर्श आज भी है, जिनके हृदय के आत्मविश्वास और बिजिगीषा ने संपूर्ण समाज के आत्मविश्वास को जागृत किया, संपूर्ण समाज में अपना स्वराज्य स्थापन हो इस आकांक्षा का संकल्प जगाया और उद्यम के साथ समाज को साथ लेकर जिनके नेतृत्व के कारण यह हिंदवी स्वराज्य का सिंहासन निर्मित हुआ उन शिवाजी महाराज की विजय वास्तव में हिंदुराष्ट्र की इस लम्बी लडाई की पहली अवस्था में राष्ट्र कि 

निर्णायक विजय थी। अगर संघर्ष की दूसरी अवस्था में भी शिवाजी महाराज की नीतिपर चलते तो हम उसी प्रकार की निर्णायक विजय पाते। 

आज की परिस्थिति भी वही है। आज की आवश्यकता भी वही है। आज भी समाज के मन में उसी विजिगीषा को, आत्मविश्वास को उद्यम को जागृत करना चाहिये। आज भी प्रत्येक व्यक्ति को शिवाजी महाराज के चरित्र का, गुणों का अनुकरण कर हिंदुसमाज का, हिंदुसमाज के साथ रहकर, अपने लिये नहीं, अपने हिंदूराष्ट्र की सर्वांगणि उन्नति के लिये समाज का सक्षम नेतृत्व करनेवाला व्यक्ति बनना है, और सारे समाज के आत्मविश्वास को एक नई ऊँचाई देनेवाला ऐसा एक हिंदू याने प्रजाहितदक्ष, सहृदयी, सर्वत्र समभावी, नीतिकठोर ऐसा शासन समाज के द्वारा ही स्थापित करवाना है।

आज की परिस्थिति में यह जो उपाय है, वह समाज के संगठन से होनेवाला है। समाज की गुणवत्ता, उद्यम और आत्मविश्वास के आधारपर होने वाला है। इसी प्रकार की भूतपूर्व परिस्थिति में इसका एक जिवंत उदाहरण शिवाजी महाराज के उद्यम में से हमको मिलता है। उस समय के सब लोगों के लिये वह उदाहरण स्वरूप हो गया। सब लोगोंने मिलकर जो प्रयोग किये थे उनकी गलतियाँ सुधारते सुधारते ये अंतिम सफल प्रयोग शिवाजी महाराज का रहा, इस लिये उनके राज्यभिषेक का दिन महत्व का है। हम उनकी जन्मजयंति या पुण्यतिथि को उत्सव के रूप में संघ में नहीं लेते। क्यों कि जन्मते बहुत लोग है, मरते बहुत लोग है, दुनिया में कर क्या गये यह महत्व की बात है।

सतीश शर्मा  संयोजक ( भारतीय भाषा व इतिहास अनुसंधान संस्थान ) द्वारा संकलित 

गीता  से 

प्रजहाति यदा कामान्सर्वान्पार्थ मनोगतान्।आत्मन्येवात्मना तुष्टः स्थितप्रज्ञस्तदोच्यते।।

 हे अर्जुन ! जिस काल में यह पुरुष मन में स्थित सम्पूर्ण कामनाओं को भली भाँति त्याग देता है और आत्मा से आत्मा में ही संतुष्ट रहता है, उस काल में वह स्थितप्रज्ञ कहा जाता है।

दुःखेष्वनुद्विग्नमनाः सुखेषु विगतस्पृहः। वीतरागभयक्रोधः स्थितधीर्मुनिरुच्यते।। 

दुःखों की प्राप्ति होने पर जिसके मन पर उद्वेग नहीं होता, सुखों की प्राप्ति में जो सर्वथा निःस्पृह है तथा जिसके राग, भय और क्रोध नष्ट हो गये हैं, ऐसा मुनि स्थिरबुद्धि कहा जाता है।




रोग से दूर रखने की साधना  है योग  

सतीश शर्मा 

योग का अर्थ एकता या बांधना है। इस शब्द की जड़ है संस्कृत शब्द युज, जिसका मतलब है जुड़ना। आध्यात्मिक स्तर पर इस जुड़ने का अर्थ है सार्वभौमिक चेतना के साथ व्यक्तिगत चेतना का एक होना। व्यावहारिक स्तर पर, योग शरीर, मन और भावनाओं को संतुलित करने और तालमेल बनाने का एक साधन है। यह योग या एकता आसन, प्राणायाम, मुद्रा, बँध, षट्कर्म और ध्यान के अभ्यास के माध्यम से प्राप्त होती है। तो योग जीने का एक तरीका भी है और अपने आप में परम उद्देश्य भी।

योग सबसे पहले लाभ पहुँचाता है बाहरी शरीर को, जो ज्यादातर लोगों के लिए एक व्यावहारिक और परिचित शुरुआती जगह है। जब इस स्तर पर असंतुलन का अनुभव होता है, तो अंग, मांसपेशियां और नसें सद्भाव में काम नहीं करते हैं, बल्कि वे एक-दूसरे के विरोध में कार्य करते हैं। बाहरी शरीर के बाद योग मानसिक और भावनात्मक स्तरों पर काम करता है। रोज़मर्रा की जिंदगी के तनाव के कारण लोग अनेक मानसिक परेशानियों से पीड़ित रहते हैं। योग इनसे मुकाबला करने के लिए  सिद्ध विधि है। योग के सही मतलब और संपूर्ण ज्ञान के बारे में जागरूकता अब लगातार बढ़ रही है।

 योग अस्थमा, मधुमेह, रक्तचाप, गठिया, पाचन विकार और अन्य बीमारियों में चिकित्सा के एक सफल विकल्प है, ख़ास तौर से वहाँ जहाँ आधुनिक विज्ञान आजतक उपचार देने में सफल नहीं हुआ है। एचआईवी (HIV) पर योग के प्रभावों पर अनुसंधान वर्तमान में आशाजनक परिणामों के साथ चल रहा है। चिकित्सा वैज्ञानिकों के अनुसार, योग चिकित्सा तंत्रिका और अंतःस्रावी तंत्र में बनाए गए संतुलन के कारण सफल होती है जो शरीर के अन्य सभी प्रणालियों और अंगों को सीधे प्रभावित करती 



है। इनके अलावा योग के कई आध्यात्मिक लाभ भी हैं। इनका विवरण करना आसान नहीं है, क्योंकि यह आपको स्वयं योग अभ्यास करके हासिल और फिर महसूस करने पड़ेंगे। हर व्यक्ति को योग अलग रूप से लाभ पहुँचाता है। योग को अवश्य अपनायें और अपनी मानसिक, भौतिक, आत्मिक और अध्यात्मिक सेहत में सुधार लायें।

किसी गुरु के निर्देशन में योग अभ्यास शुरू करें। सूर्योदय या सूर्यास्त के वक़्त योग का सही समय है।

आरामदायक सूती कपड़े पहनें। किसी शांत वातावरण और सॉफ जगह में योग अभ्यास करें। अपना पूरा ध्यान अपने योग अभ्यास पर ही केंद्रित रखें।योग अभ्यास धैर्य और दृढ़ता से करें।अपने शरीर के साथ ज़बरदस्ती बिल्कुल ना करें।धीरज रखें। योग के लाभ महसूस होने मे वक़्त लगता है।निरंतर योग अभ्यास जारी रखें।योग करने के 30 मिनिट बाद तक कुछ ना खायें। 1 घंटे तक न नहायें । प्राणायाम हमेशा आसन अभ्यास करने के बाद करें। अगर कोई मेडिकल तकलीफ़ हो तो पहले डॉक्टर से ज़रूर सलाह करें। अगर तकलीफ़ बढ़ने लगे या कोई नई तकलीफ़ हो जाए तो तुरंत योग अभ्यास रोक दें।

योगाभ्यास के अंत में हमेशा शवासन करें।

सुनिश्चित कर लें कि आप इतने थके ना हों कि आसन पर ध्यान केंद्रित करने में असमर्थ हों अगर थकान ज़्यादा हो तो केवल रिलैक्स करने वाले आसन ही करें।आप जो आसन कर रहे हैं, उस पर गहरा ध्यान लगायें। शरीर के जिस अंग पर उस आसन का सबसे ज़्यादा प्रभाव पड़ता है, उस पर अपनी एकाग्रता केंद्रित करें। ऐसा करने से आपको आसान का आशिकतम लाभ मिलेगा। आसन करते समय, श्वास बहुत महत्वपूर्ण होता है। आसन के लिए जो सही श्वास करने का तरीका है वैसा ही करें । अगर आपके शरीर में लचीलापन कम है तो आपको शुरुआत में अधिकतर आसन करने में कठिनाई हो सकती है। अगर आप पहले-पहले आसन ठीक से नहीं कर पा रहे हों तो चिंता ना करें। सभी आसान अभ्यास  के साथ आसान हो जाएँगे। जिन मांसपेशियों और जोड़ों में खिंचाव कम है, वह सब धीरे-धीरे लचीले हो जाएँगे। शरीर के साथ जल्दबाज़ी या ज़बरदस्ती बिल्कुल ना करें। हमेशा दो आसन के बीच कुछ सेकंड के लिए आराम करें। दो आसन के बीच में विश्राम की अवधि अपनी शारीरिक ज़रूरत के हिसाब से तय कर लें। समय के साथ यह अवधि कम कर लें। ऐसा कहा जाता है कि महिलाओं को मासिक धर्म के दौरान योग का अभ्यास नहीं करना चाहिए। किंतु आप अपनी शारीरिक क्षमता के अनुसार यह अनुमान लगा सकती हैं कि आपको मासिक धर्म के दौरान योगाभ्यास सूट करता है कि नहीं। गर्भावस्था के दौरान योग किसी गुरु की देखरेख में करें तो बेहतर होगा। 10 वर्ष की आयू से कम के बच्चों को ज़्यादा मुश्किल आसन ना करायें। ख़ान-पान में संयम बरते। समय से खाएं-पीए। आपको तंबाकू या धूम्रपान की आदत है, तो योग अपनायें और यह बुरी आदत छोड़ने की कोशिश करें।शरीर को व्यायाम और पौष्टिक आहार के साथ विश्राम की भी जरूरत होती है। नींद पूरी लें, समय से सोए। सकारात्मक सोच एक आदर्श योगाभ्यास की सच्ची साथी है। आपकी मानसिक दशा ओर दृष्टिकोण ही अंत में आपको योग से मिलने वाले तमाम फायदे दिलाती है


योग के 4 प्रमुख प्रकार या योग के चार रास्ते हैं - राज योग - राज का अर्थ शाही है और योग की इस शाखा का सबसे अधिक महत्वपूर्ण अंग है ध्यान। इस योग के आठ अंग है, जिस कारण से पतंजलि ने इसका नाम रखा था अष्टांग योग। इसे योग सूत्र में पतंजलि ने उल्लिखित किया है। यह 8 अंग इस प्रकार है: यम,नियम,आसन, प्राणायाम,प्रत्याहार,धारण,ध्यान,और समाधि । राज योग आत्मविवेक और ध्यान करने के लिए आकर्षित करता है। आसन राज योग का सबसे प्रसिद्ध अंग है, यहाँ तक कि अधिकतर लोगों के लिए योग का अर्थ ही है आसन। किंतु आसन एक प्रकार के योग का सिर्फ़ एक हिस्सा है। कर्म योग - अगली शाखा कर्म योग या सेवा का मार्ग है और हम में से कोई भी इस मार्ग से नहीं बच सकता है। कर्म योग का सिद्धांत यह है कि जो आज हम अनुभव करते हैं वह हमारे कार्यों द्वारा अतीत में बनाया गया है। इस बारे में जागरूक होने से हम वर्तमान को अच्छा भविष्य बनाने का एक रास्ता बना सकते हैं, जो हमें नकारात्मकता और स्वार्थ से बाध्य होने से मुक्त करता है। कर्म आत्म-आरोही कार्रवाई का मार्ग है। जब भी हम अपना काम करते हैं और अपना जीवन निस्वार्थ रूप में जीते हैं और दूसरों की सेवा करते हैं, हम कर्म योग करते हैं।  भक्ति योग - भक्ति योग भक्ति के मार्ग का वर्णन करता है। सभी के लिए सृष्टि में परमात्मा को देखकर, भक्ति योग भावनाओं को नियंत्रित करने का एक सकारात्मक तरीका है। भक्ति का मार्ग हमें सभी के लिए स्वीकार्यता और सहिष्णुता पैदा करने का अवसर प्रदान करता है।  ज्ञान योग - अगर हम भक्ति को मन का योग मानते हैं, तो ज्ञान योग बुद्धि का योग है, ऋषि या विद्वान का मार्ग है। इस पथ पर चलने के लिए योग के ग्रंथों और ग्रंथों के अध्ययन के माध्यम से बुद्धि के विकास की आवश्यकता होती है। ज्ञान योग को सबसे कठिन माना जाता है और साथ ही साथ सबसे प्रत्यक्ष। इसमें गंभीर अध्ययन करना होता है और उन लोगों को आकर्षित करता है जो बौद्धिक रूप से इच्छुक हैं।




भारतीय शिक्षा पद्धति 

सतीश शर्मा 

 शिक्षा हमारे जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है और यह हमें एक बेहतर इंसान बनने में मदद करती है।भारत में शिक्षा की शुरुआत प्राचीन काल से ही हुई थी, और इसके शुरुआती रूप को विभिन्न धार्मिक और सांस्कृतिक प्रथाओं से जोड़ा जा सकता है। सबसे शुरुआती शिक्षा प्रणाली गुरुकुल पद्धति थी, जिसमें गुरुओं के मार्गदर्शन में छात्र वेद, व्याकरण, ज्योतिष, और अन्य पारंपरिक ज्ञान का अध्ययन करते थे। शिक्षा का अर्थ है ज्ञान, कौशल, दृष्टिकोण और समझ को प्राप्त करने की प्रक्रिया। यह एक व्यवस्थित और उद्देश्यपूर्ण प्रक्रिया है जिसके माध्यम से व्यक्ति अपने जीवन को बेहतर बनाने के लिए आवश्यक चीजें सीखता है। शिक्षा से व्यक्ति को अपने व्यक्तिगत और सामाजिक विकास में मदद मिलती है।

शिक्षा के विभिन्न अर्थ हो सकते हैं, जैसे- औपचारिक शिक्षा - यह स्कूल, कॉलेज और विश्वविद्यालयों जैसी औपचारिक शिक्षा संस्थाओं में दी जाती है। इसमें पाठ्यक्रम, शिक्षक और परीक्षा शामिल होते हैं।

अनौपचारिक शिक्षा - यह जीवन के अनुभवों, परिवार और दोस्तों से प्राप्त होती है। इसमें कोई निश्चित पाठ्यक्रम या शिक्षक नहीं होता है। गैर-औपचारिक शिक्षा - यह औपचारिक और अनौपचारिक शिक्षा के बीच की शिक्षा है। इसमें ऑनलाइन पाठ्यक्रम, कार्यशालाएं और प्रशिक्षण कार्यक्रम शामिल हैं।

शिक्षा के कई उद्देश्य हैं, जैसे - शिक्षा से व्यक्ति को विभिन्न विषयों और विषयों के बारे में ज्ञान प्राप्त होता है। शिक्षा से व्यक्ति को विभिन्न कौशल विकसित करने में मदद मिलती है, जैसे कि समस्या 

समाधान, आलोचनात्मक सोच, रचनात्मकता और संचार। शिक्षा से व्यक्ति को विभिन्न दृष्टिकोण विकसित करने में मदद मिलती है, जैसे कि नैतिक, सामाजिक और राजनीतिक। शिक्षा से व्यक्ति को विभिन्न चीजों और घटनाओं को समझने में मदद मिलती है।

 गुरुकुल  शिक्षा का सबसे प्राचीन रूप था, जिसमें छात्र गुरु के घर पर रहकर उनसे ज्ञान प्राप्त करते थे। शिक्षा का मुख्य फोकस वेदों, उपनिषदों, और अन्य धार्मिक शास्त्रों का अध्ययन था व शिक्षा में व्याकरण, ज्योतिष, आयुर्वेद, और अन्य विषयों को भी शामिल किया गया था।

अंग्रेजों ने भारत में पश्चिमी शिक्षा की शुरुआत की, जिसमें अंग्रेजी भाषा को शिक्षा का माध्यम बनाया गया। 

अंग्रेजी शिक्षा अधिनियम - 1835 में लॉर्ड मैकाले ने अंग्रेजी शिक्षा अधिनियम लागू किया, जिसके अनुसार अंग्रेजी को शिक्षा का माध्यम बनाया गया और अंग्रेजी भाषा को बढ़ावा दिया गया। अंग्रेजों की शिक्षा नीति, जिसे लॉर्ड मैकाले की शिक्षा नीति के नाम से भी जाना जाता है, 1835 में भारत में लागू की गई थी । इसका मुख्य उद्देश्य भारत में अंग्रेजी शिक्षा को बढ़ावा देना था ताकि भारतीयों का एक ऐसा वर्ग तैयार किया जा सके जो ब्रिटिश प्रशासन की सहायता कर सके. इस नीति के कुछ सकारात्मक और नकारात्मक पहलू थे, जिनका भारतीय समाज पर गहरा प्रभाव पड़ा । इस का मुख्य उद्देश्य अंग्रेजी को शिक्षा का माध्यम बनाना था | लॉर्ड मैकाले ने अपनी मिनट ऑन एजुकेशन में अंग्रेजी को शिक्षा और प्रशासन का माध्यम बनाने की सिफारिश की थी । इस नीति का उद्देश्य भारतीयों को पश्चिमी विज्ञान, साहित्य और दर्शन से परिचित कराना था । अंग्रेजों ने ऐसी शिक्षा प्रणाली विकसित की जो प्रशासनिक पदों के लिए योग्य भारतीयों का एक वर्ग तैयार कर सके । इस नीति ने भारतीय भाषाओं और संस्कृति को नजरअंदाज कर दिया और पश्चिमी संस्कृति को श्रेष्ठ बताया | यह नीति केवल कुछ ही वर्गों तक सीमित थी, जिससे सामाजिक असमानता बढ़ी। 

मैकाले की शिक्षा नीति का भारतीय विद्वानों ने विरोध किया, भारतीय संस्कृति के लिए खतरा माना। 

देश आजाद होने के बाद एक राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 1968 - 14 वर्ष की आयु तक के सभी बच्चों के लिये अनिवार्य शिक्षा का लक्ष्य और शिक्षकों का बेहतर प्रशिक्षण और योग्यता पर फोकस। नीति ने प्राचीन संस्कृत भाषा के शिक्षण को भी प्रोत्साहित किया, जिसे भारत की संस्कृति और विरासत का एक अनिवार्य हिस्सा माना जाता था।

राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1968 की महत्वाकांक्षी दृष्टि से, जिसका उद्देश्य भारत को उन्नत राष्ट्रों की श्रेणी में लाना था, से लेकर राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 द्वारा लाए गए प्रतिमान बदलाव तक, जिसमें पहुँच, समानता और गुणवत्ता पर जोर दिया गया, हम इन नीतियों द्वारा उत्पन्न इरादों, परिणामों और चुनौतियों का गहराई से अध्ययन करते हैं। 1986 की राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP 1986) ने भारत में शिक्षा प्रणाली में व्यापक सुधारों को लागू किया। इस नीति का मुख्य उद्देश्य शिक्षा में असमानताओं को दूर करना, विशेषकर लड़कियों, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति समुदायों के लिए, और सभी के लिए शैक्षिक अवसरों की समानता सुनिश्चित करना था पर उसमे ज्यादा सफलता नहीं मिली ।


शिक्षा नीति 2024 राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 का ही एक हिस्सा है, जो शिक्षा प्रणाली में सुधार और प्रगतिशील बदलाव लाने के लिए बनाई गई है। यह नीति आधुनिक युग की आवश्यकताओं और सीखने की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए, शिक्षा को अधिक समावेशी और प्रभावी बनाने का प्रयास करती है।

राष्ट्रीय शिक्षा नीति - 2024 मे डिजिटल शिक्षा पर जोर दिया गया ओर नीति डिजिटल प्लेटफार्मों को शिक्षा का अभिन्न हिस्सा बनाने पर जोर देती है, जिससे ऑनलाइन शिक्षा को बढ़ावा मिलेगा | नीति कौशल विकास पर भी ध्यान केंद्रित करती है, जिससे छात्रों को रोजगार के लिए तैयार किया जा सके।

राष्ट्रीय शिक्षा नीति मे तीन भाषा बनी यह नीति छात्रों को तीन भाषाओं का ज्ञान देने पर जोर दिया गया है, जिससे स्थानीय भाषाओं का महत्व बढ़ेगा और छात्रों को वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी बनाया जा सके. यह नीति कला, विज्ञान और वाणिज्य जैसी पारंपरिक धाराओं के बीच विभाजन को समाप्त करने का प्रयास करती है. राष्ट्रीय शिक्षा नीति  कम उम्र से ही व्यावसायिक प्रशिक्षण और इंटर्नशिप को एकीकृत करने पर जोर देती है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति शिक्षकों और छात्रों के बीच बेहतर जुड़ाव को बढ़ावा देने का प्रयास करती है, जिससे सीखने के परिणामों में सुधार होगा। 

नेशनल कैरिकुलम फ्रेमवर्क - केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय ने अप्रैल 2023 में NCF का ड्राफ्ट जारी किया था, जिसमें 12वीं की बोर्ड परीक्षा को दो टर्म में लेने का प्रस्ताव रखा गया था। नई नीति के तहत बोर्ड परीक्षाओं में नए नियम लागू होंगे, जैसे कि छात्रों को दो बार बोर्ड परीक्षा देने का मौका मिलेगा. 12वीं के छात्रों के लिए सेमेस्टर प्रणाली लागू की जाएगी। छात्रों को विभिन्न विषयों को मिलाकर पढ़ने का मौका मिलेगा। विश्वविद्यालयों और महाविद्यालयों में कौशल केंद्र स्थापित किए जाएंगे । विभिन्न विषयों की ऑनलाइन कक्षाओं का राज्य स्तर पर संचालन होगा। एकल संकाय महाविद्यालयों का बहु-संकाय महाविद्यालयों में परिवर्तन, एकल संकाय महाविद्यालयों को बहु-संकाय महाविद्यालयों में परिवर्तित किया जाएगा। राष्ट्रीय शिक्षा नीति लागू होने के कारण, स्वाध्यायी विद्यार्थियों के लिए भी नीति लागू की जाएगी।

एन सी ई आर टी द्वारा तैयार pre-school शिक्षा दिशा निर्देशों को प्रारंभिक बचपन की शिक्षा प्रथाओं के प्रभावी कार्यान्वयन के लिए अनुशंसित किया गया है। नई शिक्षा नीति (एनईपी) में 5+3+3+4 को लागू किया गया है इसका मतलब है कि स्कूली शिक्षा को चार चरणों में विभाजित किया गया है 5 साल का फाउंडेशन चरण, 3 साल का प्रारंभिक चरण, 3 साल का मध्य चरण, और 4 साल का माध्यमिक चरण। यह पारंपरिक 10+2 प्रणाली की जगह लेता है ।

( लेखक विद्या भारती प्रचार विभाग मेरठ प्रांत  टोली के सदस्य है )





समस्या है तो समाधान भी है 

कोलंबिया विश्वविद्यालय में गणित के एक कोर्स के दौरान एक छात्र कक्षा में सो गया। जब उसकी नींद खुली, तो उसने देखा कि प्रोफेसर ने व्हाइटबोर्ड पर दो समस्याएँ लिखी थीं। उसने सोचा कि ये होमवर्क हैं, इसलिए वह उन्हें अपनी नोटबुक में नोट कर के घर ले गया।

जब उसने उन समस्याओं को हल करने की कोशिश की, तो वे उसे बेहद कठिन लगीं। लेकिन उसने हार नहीं मानी। घंटों लाइब्रेरी में बैठकर उसने संदर्भ पुस्तकों की मदद से अध्ययन किया और अंततः वह एक समस्या को हल करने में सफल हो गया, भले ही यह काफी चुनौतीपूर्ण था।

अगली कक्षा में प्रोफेसर ने जब होमवर्क के बारे में कुछ नहीं पूछा, तो वह चकित हुआ और खड़ा होकर पूछा, "सर, आपने पिछले लेक्चर में दिए गए असाइनमेंट के बारे में कुछ क्यों नहीं पूछा?"

प्रोफेसर ने उत्तर दिया, "असाइनमेंट? वो तो मैंने केवल ऐसे उदाहरण के तौर पर लिखी थीं जिन्हें अभी तक वैज्ञानिक हल नहीं कर पाए हैं।"

छात्र चौंक गया और बोला, "लेकिन मैंने उनमें से एक को हल कर लिया है! मैंने इस पर चार पेपर भी लिखे हैं।" उसकी इस उपलब्धि को बाद में मान्यता मिली और कोलंबिया विश्वविद्यालय में उसके लिखे चारों पेपर आज भी प्रदर्शित हैं।

इस कहानी की सबसे महत्वपूर्ण बात यह थी कि छात्र ने यह नहीं सुना था कि "इन समस्याओं का कोई हल नहीं है।" उसने सिर्फ यही माना कि ये कठिन प्रश्न हैं, जिन्हें हल करना ज़रूरी है, और उसने पूरे मन से उन्हें हल करने की कोशिश की – और सफल हुआ।

यह कहानी हमें याद दिलाती है – उन लोगों की बात मत सुनो जो कहते हैं कि तुम कुछ नहीं कर 


सकते। आज की पीढ़ी अक्सर निराशा और नकारात्मकता से घिरी होती है। कुछ लोग जानबूझकर दूसरों के भीतर असफलता और हार का बीज बोते हैं।

लेकिन तुम्हारे पास अपनी मंज़िल पाने की ताकत है, बाधाओं को पार करने की शक्ति है, और अपने सपनों को साकार करने का साहस है। बस खुद पर और ईश्वर पर विश्वास रखो – और लगातार प्रयास करते रहो।

इस छात्र का नाम था जॉर्ज डैंटज़िग, और यह समस्या Math Stack Exchange से ली गई थी।

"डैंटज़िग ने यह सिद्ध किया कि Student’s t-test के संदर्भ में, एकमात्र तरीका जिससे हम ऐसी hypothesis testing बना सकते हैं जो standard deviation से स्वतंत्र हो, वह है एक निरर्थक परीक्षण, जो हमेशा समान संभावना से रिजेक्ट या एक्सेप्ट करता है – जो व्यावहारिक नहीं है।"


देश प्रेम

रुपा शर्मा,नौएडा

देश प्रेम के लिए निछावर प्राणों को करने वाला

बच्चा बच्चा हिंद का अपने भारत पर मरने वाला


ना पाक इरादे दुश्मन के हम पूरे नहीं होने देंगे

अपनी आजादी को हम फिर से नहीं खोने देंगे 

कान खोल कर सुन ले रिपु अब काल तेरा आनेवाला

बच्चा बच्चा हिंद का अपने भारत पर मरने वाला


देशभक्ति से बढ़कर कोई कर्म नहीं अब अपना है 

अमन चैन हो विश्व में अपने एक यही बस सपना है 

गीदड़ भभकी से अब तेरी कदम नहीं हटने वाला 

बच्चा बच्चा हिंद का अपने भारत पर मरने वाला


छीनेगा कोई चैन बतन का चुप होकर नहीं बैठेंगे 

ललकारेगा दुश्मन तो हम घर में घुस कर देखेंगे

तेरे एटम बम ही तेरे ऊपर अब गिरने वाला

बच्चा बच्चा हिंद का अपने भारत पर मरने वाला





माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर

माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर जन्म: १९ फ़रवरी १९०६ - मृत्यु: ५ जून १९७३ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के द्वितीय सरसंघचालक तथा विचारक थे। इनके अनुयायी इन्हें प्रायः 'गुरूजी' के ही नाम से अधिक जानते हैं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के द्वितीय सरसंघचालक पूज्य श्री गुरूजी का जीवन राष्ट्रोत्थान के प्रति समर्पित रहा। वह अपने असीम ज्ञान, अध्ययन व अविचल कार्य-निष्ठा से युवाओं के प्रेरक पुंज बने। देश की एकता और अखंडता के विचार के सच्चे उपासक गुरु जी के व्यक्तित्व और कृतित्व से राष्ट्रीय चरित्र झलकता था।‬

‪पूज्य श्री गुरु जी ने अपने सतत परिश्रम से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को अखिल भारतीय स्वरूप प्रदान किया। अखंड राष्ट्रसाधना व तपस्वी जीवन के पर्याय गुरु जी के विचार सदैव हमारा मार्गदर्शन करते रहेंगे।‬

ताई, मैं जाऊं? - एक कठिन  प्रसंग, किन्तु बाद में आया । उसी दिन श्री गुरुजी को कार्यार्थ प्रवास के  लिये जाना था । डॉ. पांडे जी से पूछने पर उन्होंने कहा, “वैसे कहा जाय तो  इस समय का संपूर्ण प्रवास क्रम ही स्थगित करना चाहिये । कम से कम आज तो आप  मत जाईये । स्वास्थ्य इतना बिगड़ा हुआ है कि आगे क्या होगा इसका अंदाजा आज  नहीं आ सकता। चाहे तो आप कल प्रस्थान करें, तब तक अंदाजा आ सकेगा ।” श्री  गुरुजी ने कहा कि जो पूर्व नियोजित प्रवासक्रम है उसको स्थगित करना (Postpone) तो  संभव नहीं है। ताईजी की उस अवस्था में श्री गुरुजी उनसे पूछने के लिये गये  । पूछा, “ताई, मैं जाऊं?”। ताईजी ने कहा, “जा बेटा” । घर में जो अन्य लोग  थे, आपस में बात करने लगे कि? “ताई मैं जाऊं?”  यह लगातार पूछते रहने के  लिये ही इस महापुरूष ने ताईजी के पेट में नौ मास तक वास किया होगा । और जा  बेटा ऐसा हमेशा कहने के लिये ही क्या ताईजी ने इनको नौ मास अपने पेट 



में  रखा था! श्री गुरूजी ने प्रवास के लिये प्रस्थान किया । ताईजी के स्वास्थ्य  की जिम्मेदारी डॉ. पांडे और अन्य डॉक्टरों ने सम्हाल ली ।

कठोर  कर्मठता ताईजी की एक विशेषता थी और श्री भाऊजी की भी वही विशेषता थी। अपना  कर्तव्य करते हुए कठोर कर्मठता और जो समय बचता था, सारा व्रत वैकल्य,  पुरश्चरण, अनुष्ठान, आदि में व्यतीत होता था । श्री गुरूजी का ग्रहयोग ही  मानो ऐसा दिखता है कि प्रारंभिक जीवन में कठोर कर्मठता रखने वालों के साथ  ही उनका पाला पड़ा था ।

जब द्रौपदी के पांचों लड़के महाभारत के युद्ध में मारे दिए गए, तब उनको समझ में आया कि युद्ध क्या होता है। उसके पहले वह युद्ध के लिए सबसे अधिक लालायती थीं, सबसे अधिक युद्ध के लिए पांडवों को ललकारती थीं- कृष्ण के युद्ध रोकने के हर प्रयास का सबसे अधिक विरोध द्रौपदी करती थीं।महाभारत युद्ध को हर कीमत पर रोकने के लिए कृष्ण सभी तरह का प्रयास कर रहे थे, जो लोग कृष्ण के युद्ध रोकने के प्रयासों का सबसे अधिक विरोध कर रहे थे, उसमें द्रौपदी पहले नंबर थीं। जब युद्ध रोकने या समझौते की कोई बात शुरू होती, वह कहती कि मेरे इन खुले बालों का क्या होगा? जो दुशासन के रक्त के प्यासे हैं, वह कहती भीम की उस प्रतिज्ञा का क्या होगा, जो उन्होंने दुर्योधन की जंघा तोड़ने के लिए लिया है। उस कर्ण को मैं जीवित कैसे देख सकती हूं, जिसने मुझे वेश्या कहा।कृष्ण हर बार उन्हें डांटते हुए कहते कि तुम्हारे खुले बालों , तुम्हारे बदले की भावना , दुशासन के रक्त, तुम्हारे मन की शांति के लिए दुर्योधन के टूटी जंघा और कर्ण की हत्या तक युद्ध सीमित नहीं है। अगर यह युद्ध हुआ, तो लाखों लोग मारे जाएंगे, युद्ध में मारे जाने वाले और अपने को खोने वाले वे लोग होंगे, जिनका कुछ भी इस युद्ध में दांव नहीं लगा है। मुझे तुम्हारे निजी बदले की भावना की नहीं, उन लोगों की चिंता है, बिना किसी वजह के इसमें मारे जाएंगे।युद्ध के अंतिम दौर में द्रौपदी के पांचों लड़के एक साथ मारे गए। सुभद्रा का लड़का अभिमन्यु पहले ही मारा जा चुका था। बच्चों के मारे जाने पर द्रौपदी विलखने लगीं, कृष्ण ने दो टूक कहा, तुम तो हर हालात में युद्ध चाहती थी, अब क्यों विलख रही हो, क्यों हाय तौबा मचा रही हो, तुम क्या सोचती थी कि युद्ध में दूसरों के बेटे मारे जाएंगे और तुम युद्ध का तमाशा देखोगी, तुम्हें नहीं कुछ खोना पड़ेगा।उनके  के बारे में भी तनिक विचार करो, जिन्होंने अपने बेटों, पतियों, भाईयों और पिता को अकारण खो दिया, जिन्हें इस युद्ध से कुछ नहीं मिला। जिनका इस युद्ध से कोई लेना-देना नहीं था । युद्ध के लिए ललकारने वालों को तब तक युद्ध की कीमत नहीं पता चलती, जबतक कि इस युद्ध की बलिवेदी पर उनके अपने नहीं चढ़ते हैं, द्रौपदी की तरह। राष्ट्रवादी युद्ध अंतिम विकल्प होना चाहिए और एक सीमित उद्देश्य के लिए होना चाहिए और जब उद्देश्य की प्राप्ति हो जाये तो सम्मानजनक समझौता करके युद्ध से बाहर निकल आना चाहिए। इसलिए सीज फायर एक सुलझा हुआ निर्णय था।


मनोहारी सौंदर्य

नोरिन शर्मा

आज मोबाइल खोलते ही मोटापा दूर करने, वज़न कम करने,शरीर को आकर्षक बनाने की रील हर जगह नज़र आती है। यूट्यूब तो पूरी तरह से चेहरे और देह को खूबसूरत बनाने के नुस्खों से अटा पड़ा है।बाह्य सौंदर्य को इतनी तरजीह कभी नहीं दी गई,जितनी आज !अपना मेकअप कैसे करें कि भीड़ में भी आप अलग नज़र आएं? बेशक सोलह सिंगार स्त्रियोचित माना गया है किंतु ईश्वर ने आपको जो चेहरा दिया है; उसमें वंशानुगत सौंदर्य भी समाहित है। इस दौड़ में आज का पुरुष भी कंधे से कंधा मिलाकर दौड़ रहा है...कहीं पीछे न छूट जाए। संपूर्ण देह और नख शिख सौंदर्य अब ईश्वरीय देन कम,प्लास्टिक सर्जन की देन अधिक है। सौंदर्य की परिभाषा प्रत्येक मानव की भिन्न ही होगी किंतु कुछ पैमाने हमारे "सौंदर्य जगत " ने तय कर ही दिए।आम भाषा में कहें तो हर मनुष्य आज उन मापदंडों पर खरा उतरने की चाहत लिए अपने शरीर और विशेषकर चेहरे पर चाकू चलाने से ज़रा नहीं हिचकता..!

"सौंदर्य देखने वाले की आँखों में है।" सर्वप्रसिद्ध उक्ति ने अब एक नया चोला पहन लिया है; "सौंदर्य खरीदने और स्वयं को परोसने का एक ऐसा पैमाना है कि आप जगत में छा जाएं!" आज हर मानव ऐसा पारखी है जो खूबसूरत प्लास्टिक देह एवम चेहरे खरीदने की चाहत लिए है। सच तो यह है कि मानव ईश्वर की अद्भुत कृति है। हर स्त्री बेहद खूबसूरत है।दर्पण में अपने को निहारती स्त्री को अपने भीतर के सौंदर्य को भी जानने की आवश्यकता है।एक उच्च नैतिक चरित्र का पैरहन,कृपालुता के कंगन,उदारता की मेंहदी,भलाई और परोपकार की जूतियां ,प्रेम की असीम मुस्कान,शांति के झुमके, सब्र की अंगूठियां,संयम का नौलखा हार पहने हर स्त्री सुंदरता की बेमिसाल मूरत है।वंदनीय और सराहनीय है।कृत्रिम सौंदर्य एक न एक दिन ढल जाएगा परंतु ये सौंदर्य न कभी घटते हैं और न ही इनकी चमक कभी फीकी पड़ती है।  हर स्त्री ,हर पुरुष को भगवान ने किसी न किसी विशेषता के साथ बनाया है।अपने भीतर उन विशेषताओं से जिस दिन महिलाएं और पुरुष भी परिचित हो जाएंगे ;वह दिन उनके घर परिवार को सुख एवम खुशियों के सावन से हरा भरा कर देगा। प्रेम के झूले पर उल्लास की पींगेँ ,आँगन को महका देंगीं । परमेश्वर का निस दिन धन्यवाद हमें संतुष्टि प्रदान करेगा।




गंगा दशहरा

जेठ सुदी दशमी को जेठ का दशहरा आता है। उस दिन सुबह गंगा जी में स्नान करते हैं। गंगाजी की पूजा करते हैं और गंगाजी में दूध और बताशे चढ़ाते हैं। जल, रोली, चावल, मौली, नारियल, दक्षिणा चढ़ाकर, धूप और दीया जलाते हैं। इस दिन शिवलिंग के पूजन कार्य का भी विधान है।

गंगा दशहरे के दिन आपके घर में जितने मर्द, बेटे हों उतने जनों का सवा सेर आटे का चूरमा और पूड़ी बनाकर हनुमानजी की पूजा कर सारा चूरमा पूड़ी अपने नौकरों और ब्राह्मणों में बाँट दें और इसमें से रात को बासी न रखें और घर का कोई भी आदमी उसमें से चूरमा पूरी न खाये। सवा सेर आटे का चूरमां अलग से खाने के लिये बना लें। हनुमान जी का भोग लगाकर उसमें से सब कोई खा लें। उसमें से चूरमा बासी रख सकते हैं।

गंगावतरण की कथा - प्राचीन काल में अयोध्या में सगर नाम के राजा राज करते थे। उनकी दो रानियां थी केशिनी और सुमति। केशिनी से अंशुमान नामक पुत्र हुआ तथा सुमति के साठ हजार पुत्र थे। एक बार राजा सगर ने अश्वमेघ यज्ञ किया। यज्ञ की पूर्ति के लिये एक घोड़ा छोड़ा। इन्द्र यज्ञ को भंग करने हेतु घोड़े को चुराकर कपिल मुनि के आश्रम में बांध आये। राजा ने यज्ञ के घोडे को खोजने के लिये अपने साठ हजार पुत्रों को भेजा। घोड़े को खोजते खोजते वे कपिल मुनि के आश्रम में पहुंचे तो उन्होंने यज्ञ के घोड़े को आश्रम में बंधा पाया। उस समय कपिल मुनि तपस्या कर रहे थे। राजा के पुत्रों ने कपिल मुनि को चोर-चोर कहकर पुकारना शुरू कर दिया। कपिल मुनि की समाधि टूट गई और राजा के सारे पुत्र कपिल मुनि की क्रोधाग्नि में जलकर भस्म हो गये।

अंशुमान पिता की आज्ञा पाकर अपने भाईयों को ढूंढता हुआ जब मुनि के आश्रम पहुंचा तो महात्मा 


गरुड़ ने उसके भाईयों के भस्म होने का सारा किस्सा कह डाला। गरुड़जी ने अंशुमान को यह भी बताया कि यदि तुम इनकी मुक्ति चाहते हो तो गंगाजी को स्वर्ग से धरती पर लाना होगा। इस समय अश्व को ले जाकर अपने पिता के यज्ञ को पूर्ण कराओ। इसके बाद गंगा को पृथ्वी पर लाने का कार्य करना। अंशुमान ने घोड़े सहित यज्ञमंडप में पहुंचकर राजा सगर से सब वृत्तांत कह सुनाया। महाराज सगर की मृत्यु के पश्चात् अंशुमान ने गंगाजी को पृथ्वी पर लाने के लिये तप किया परन्तु वह असफल रहे। इसके बाद उनके पुत्र दिलीप ने भी तपस्या की परन्तु उन्हें भी सफलता नहीं मिली।

अन्त में दिलीप के पुत्र भागीरथ ने गंगाजी को पृथ्वी पर लाने के लिये गोकर्ण तीर्थ में जाकर ब्रह्माजी को प्रसन्न करने के लिये कठोर तपस्या की। तपस्या करते-करते कई वर्ष बीत गये तब ब्रह्माजी प्रसन्न हुए तथा गंगाजी को पृथ्वी लोक पर ले जाने का वरदान दिया। अब समस्या यह थी कि ब्रह्माजी के कमण्डल से छूटने के बाद गंगा के वेग को पृथ्वी पर कौन संभालेगा। ब्रह्माजी ने बताया कि भूलोक में भगवान शंकर के अतिरिक्त किसी में यह शक्ति नहीं है जो गंगा के वेग को संभाल सके। इसलिये उचित यह है कि गंगा का वेग संभालने के लिये भगवान शिव से प्रार्थना की जाये। महाराज भगीरथ ने एक अँगूठे पर खड़े होकर भगवान शंकर की अराधना की। उनकी कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर शिवजी गंगा को अपनी जटाओं में संभालने के लिये तैयार हो गये। गंगाजी जब देवलोक से पृथ्वी की ओर बढ़ीं तो शिवजी ने गंगा जी की धारा को अपनी जटाओं में समेट लिया। कई वर्षों तक गंगाजी को जटाओं से बाहर निकलने का मार्ग नहीं मिला। भगीरथ के दोबारा आग्रह और विनती करने पर शिवजी गंगा को अपनी 'जटाओं से मुक्त करने के लिये तैयार हुए। इस प्रकार शिव की जटाओं से छूटकर गंगाजी हिमालय की घाटियों में कल-कल निनाद करके मैदान की ओर बढ़ीं। जिस रास्ते में गंगाजी जा रही थीं उसी मार्ग में ऋषि जहनु का आश्रम था। तपस्या में विघ्न समझकर वे गंगाजी को पी गये। भगीरथ के प्रार्थना करने पर उन्हें पुनः जाँघ से निकाल दिया। तभी से गंगा को जहनपुत्री या जाह्नवी नदी कहा जाता है। इस प्रकार अनेक स्थलों को पार करती हुई जाह्नवी ने कपिल मुनि के आश्रम में पहुंचकर सागर के साठ हजार पुत्रों के भस्म अवशेषों को तारकर मुक्त किया। उसी समय ब्रह्माजी ने प्रकट होकर भगीरथ के कठिन तप तथा सगर के साठ हजार पुत्रों के अमर होने का वर दिया तथा घोषित किया कि तुम्हारे नाम पर गंगाजी का नाम भागीरथी होगा। अब तुम जाकर अयोध्या का राज संभालो। ऐसा कहकर ब्रह्माजी अन्तर्धान हो गये।



निर्जला एकादशी

निर्जला एकादशी जेष्ठ  शुक्ल  एकादशी को मनाई जाती है। इस दिन सबको निर्जला एकादशी का व्रत करना चाहिए। जल भी ग्रहण नहीं करना चाहिए। यदि बिना खाये नहीं रहा जाये तो फलाहार लेकर व्रत करें। एकादशी के दिन सब मटके में जल भरकर उसे ढक्कन से ढक दें और ढक्कन में चीनी व दक्षिणा, फल इत्यादि रख दें। जिस ब्राह्मण को मटका दें उसी ब्राह्मण को एकादशी के दिन एक-एक सीधा और शरबत दें। एक मिट्टी के मटके में जल भरकर ढक्कन में चीनी रुपया रखो। सीदे के साथ आम रखकर ढक्कन से ढक दो फिर हाथ फेरकर सासूजी के पैर छूकर दे दो।

निर्जला एकादशी व्रत की कथा - प्राचीन काल में एक बार भीमसेन ने व्यासजी से कहा- "भगवन्! युधिष्ठिर, अर्जुन, नकुल, सहदेव, कुन्ती तथा द्रौपदी सभी एकादशी के दिन उपवास करते हैं तथा मुझसे भी यह कार्य करने को कहते हैं। मैं कहता हूं कि मैं भूख बर्दाश्त नहीं कर सकता। मैं दान देकर तथा वसुदेव भगवान की अर्चना करके उन्हें प्रसन्न कर लूंगा। बिना व्रत किये जिस तरह से हो सके, मुझे आप एकादशी का व्रत करने का फल बताइये, मैं बिना काया-क्लेश के ही फल चाहता हूं।" इस पर वेदव्यास बोले- "भीमसेन ! यदि तुम्हें स्वर्गलोक प्रिय है तथा नरक से सुरक्षित रहना चाहते हो तो दोनों एकादशियों का व्रत रखना होगा। भीमसेन बोले- "हे देव! एक समय के भोजन करने से तो मेरा काम न चल सकेगा। मेरे उदर में वृक नामक अग्नि निरन्तर प्रज्ज्वलित रहती है। पर्याप्त भोजन करने पर भी मेरी क्षुधा शांत नहीं होती है' हे ऋषिवर आप कृपा करके मुझे ऐसा व्रत बतलाइये कि जिसके करने मात्र से मेरा कल्याण हो सके।"

इस पर व्यास जी बोले- "हे भद्र ! ज्येष्ठ की एकादशी को निर्जल व्रत कीजिये। स्नान, आचमन में जल ग्रहण कर सकते हैं, अन्न बिल्कुल न ग्रहण कीजिये। अन्नाहार लेने से व्रत खंडित हो जाता है। तुम भी 


जीवनपर्यन्त इस व्रत का पालन करो। इससे तुम्हारे पूर्वकृत एकादशियों के अन्न खाने का पाप समूल विनष्ट हो जायेगा। इस दिन 'ॐ नमो भगवते वासेवाय' मंत्र का उच्चारण करना चाहिए एवं गौ दान करनी चाहिए।" व्यासाज्ञानुसार भीमसेन ने बड़े साहस के साथ निर्जला का यह व्रत किया, जिसके परिणामस्वरूप प्रातः होते-होते संज्ञाहीन हो गये। तब पांडवों ने गंगाजल, तुलसी, चरणामृत, प्रसाद देकर उनकी मूर्च्छा दूर की। तभी से भीमसेन पापमुक्त हो गये।

योगिनी एकादशी

योगिनी एकादशी का व्रत आषार मास में कृष्ण पक्ष की एकादशी को किया जाता है। इस व्रत को रखकर भगवान नारायण की मूर्ति को स्नान कराके भोग लगाते हुए पुष्प, धूप, दीप से आरती करनी चाहिए। गरीब ब्राह्मणों को दान देना परम श्रेयस्कर है। इस एकादशी के प्रभाव से पीपल का वृक्ष काटने से उत्पन्न पाप नष्ट हो जाते हैं और अन्त में स्वर्गलोक की प्राप्ति होती है।

योगिनी एकादशी व्रत की कथा - एक समय की बात है जब अल्कापुरी में कुबेर के यहाँ एक हेम नाम का माली निवास करता था। वह भगवान शंकर की पूजा के लिये नित्य प्रति मानसरोवर से फूल लाया करता था। एक दिन वह कामोन्मत्त होकर अपनी स्त्री के साथ स्वच्छन्द विहार करने के कारण फूल लाने में देरी कर बैठा तथा कुबेर के दरबार में कुछ देरी से पहुंचा। कुबेर ने क्रोध में आकर उसे श्राप देकर कोढ़ी बना दिया। कोढ़ी के रूप में जब वह मार्कण्डेय ऋषि के पास पहुंचा तब उन्होंने योगिनी एकादशी व्रत रखने का नियम बताया। व्रत के प्रभाव से उसका कोड समाप्त हो गया तथा दिव्या शरीर प्राप्त करके अंत में उसने स्वर्ग को पाया।

पर्यावरण 

भले ही हम अपनी सभी खिड़कियाँ, दरवाज़े और वेंटिलेटर बंद कर दें, धूल अंदर आ ही जाती है। हम अपने कपड़े बाहर नहीं सुखा सकते, बच्चे बाहर नहीं खेल सकते, हम अपने घर को कितना भी साफ़ कर लें, धूल से कोई राहत नहीं मिलती।असम और मेघालय की सीमा पर बसा एक छोटा सा औद्योगिक शहर बर्नीहाट, 2024 IQAir विश्व वायु गुणवत्ता रिपोर्ट द्वारा 'दुनिया का सबसे प्रदूषित महानगरीय क्षेत्र' घोषित किए जाने के बाद इस वर्ष ध्यान आकर्षित कर रहा है। इस साल मार्च के शुरू में, स्विट्जरलैंड के स्टाइनैच से स्विस फर्म IQAir द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट में कहा गया था कि बर्नीहाट में वार्षिक औसत पीएम 2.5 सांद्रता 128.2 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर दर्ज की गई, जो विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के 5 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर के दिशानिर्देश से कहीं अधिक है। पीएम 2.5 और पीएम 10 महीन कणिका तत्व हैं, पीएम 2.5  माइक्रोमीटर या उससे कम व्यास वाले कण होते हैं, जो इतने महीन होते हैं कि वे फेफड़ों और रक्तप्रवाह में गहराई तक प्रवेश कर सकते हैं, जिससे स्वास्थ्य को गंभीर खतरा हो सकता है।


ज्येष्ठा नक्षत्र 

ज्येष्ठा नक्षत्र 27 नक्षत्रों में से 18 वां नक्षत्र है। ज्येष्ठा नक्षत्र को गंड मूल नक्षत्र भी कहा जाता है। यह नक्षत्र वृश्चिक राशि में आता है। बुध नक्षत्र का स्वामी होने के कारण, इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले लोगों पर बुध का प्रभाव अधिक होता है। इंद्र इस नक्षत्र के देवता हैं, जो शक्ति और साहस का प्रतीक है। इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्ति स्वभाव से साहसी, आत्मविश्वासी और निर्णायक होते हैं। ये लोग आकर्षक व्यक्तित्व वाले होते हैं और वाणी में चतुराई रखते हैं। केतु और शुक्र का शुभ होना इन जातकों के जीवन को उन्नत करता है। कुछ लोगों का मानना है कि इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्ति आवेगी, चिड़चिड़े और आक्रामक हो सकते हैं । नक्षत्र में जन्म लेने वाले लोग वकील, नेता और उद्यमी बन सकते हैं । इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले लोगों में इच्छा शक्ति बहुत प्रबल होती है। ज्येष्ठा नक्षत्र के दोषों को दूर करने के लिए विशेष पूजा, हवन, रुद्राभिषेक, और दान करना चाहिए। इसके अलावा, गणपति की पूजा, चंद्रमा की पूजा, और ज्येष्ठा नक्षत्र के मंत्र का जाप भी लाभप्रद होता है।ज्येष्ठा नक्षत्र के उपाय - ज्येष्ठा नक्षत्र दोष शांति के लिए विशेष पूजा और हवन करना चाहिए । गणपति की विधिवत पूजा करें और "ओम गण गणपतये नमः" मंत्र का जाप करें। शिवलिंग पर विभिन्न पवित्र वस्तुओं का अभिषेक करना चाहिए,जरूरतमंद लोगों को चावल, गेहूं, वस्त्र, और तांबा दान करना चाहिए। ज्येष्ठा नक्षत्र के देवता चंद्रमा हैं, इसलिए चंद्रमा की पूजा और अर्चना से नकारात्मक प्रभावों को कम किया जा सकता है,ज्येष्ठा नक्षत्र के मंत्र "ॐ ज्येष्ठाय नमः" का 108 बार जाप करें। ज्येष्ठा नक्षत्र के स्वामी बुध ग्रह का व्रत 17 बुधवारों तक करें, नीला, काला, सफेद, और हरा रंग पहनने की सलाह दी जाती है। ज्येष्ठा नक्षत्र के दौरान या सोमवार के दिन गाय और बकरी का दान करना चाहिए। माता लक्ष्मी की पूजा करने से धन और ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है। 

 जून मास 2025 का पंचांग 

भारतीय व्रतोत्सव जून - 2025

. 1- स्कन्द षष्ठी, विन्ध्यवासिनी पूजा,दि. 3- दुर्गाष्टमी, धूमावती जयंती, मेला क्षीरभवानी (काश्मीर),दि. 5- गंगा दशहरा, श्री बटुक भैरव जयंती,दि.6-निर्जला एकादशी व्रत,दि.8 - प्रदोष व्रत,दि. 10-सत्य व्रत,दि. 11-कबीर जयंती, वट् सावित्री व्रत (द. भा.),दि. 11-गुरु हरगोविन्द सिंह जयंती,दि. 14-श्री गणेश चतुर्थी व्रत,दि.15-संक्रांति पुण्य,दि.18-कालाष्टमी,दि.21-योगिनी एकादशी व्रत (स्मा.),दि. 22-योगिनी एकादशी व्रत (वै.),दि.23-सोम प्रदोष, मास शिवरात्रि,दि.25-अमावस्या पुण्य,दि.26-गुप्त नवरात्र प्रारम्भदि .27 श्री जगदीश रथ यात्रा पूरी दि . 28  विनायक चतुर्थी 

 मूल विचार जून -2025 

मूल विचार-मासारंभ से दि. 2 को 22/55 तक, दि. 10 को 18/01 से दि. 12 को 21/56 तक, दि. 19 को 23/16 से दि. 21 को 19/50 तक, दि. 28 को 6/35 से दि. 30 को 7/20 बजे तक गण्ड मूल नक्षत्र हैं।

ग्रह स्थिति जून -2025

दि. 6 सिंह में मंगल,दि. 6 मिथुन में बुध,दि. 7 बुध पश्चिमोदय,दि. 11 गुरु पश्चिमास्त,दि. 15 मिथुन में सूर्य,दि. 22 कर्क में बुध,दि. 29 वृष में शुक्र

पंचक विचार जून  -2025  

पंचक विचार -(धनिष्ठा नक्षत्र के तृतीय चरण से रेवती नक्षत्र तक) पंचको में दक्षिण दिशा की ओर यात्रा करना मकान दुकान आदि की छत डालना चारपाई पलंग आदि बुनना,दाह संस्कार,बांस की चटाई दीवार प्रारंभ करना आदि स्तंभ रोपण तांबा पीतल तृण काष्ट आदि का संचय करना आदि कार्यों का निषेध माना जाता है समुचित उपाय एवं पंचक शांति करवा कर ही उक्त कार्यों का संपादन करना कल्याणकारी होगा ध्यान रहेगा  पंचर नक्षत्रों का विचार मात्र उपरोक्त विशेष कृतियों के लिए ही किया जाता है विवाह मंडल आरंभ गृह प्रवेश प्रवेश उपनयन आदि मुद्दों से तो पंचक नक्षत्र का प्रयोग शुभ माना जाता है पंचक विचार-  दि. 16 को 13/09 से दि. 20 को 21/44 बजे तक पंचक हैं।

अधिक जानकारी के लिए संपर्क करे शर्मा जी - 9312002527,9560518227

भद्रा विचार जून -2025

भद्रा काल का शुभ अशुभ विचार - भद्रा काल में विवाह मुंडन, गृह प्रवेश, रक्षाबंधन आदि मांगलिक कृत्य का निषेध माना जाता है परंतु भद्रा काल में शत्रु का उच्चाटन करना,स्त्री प्रसंग में,यज्ञ करना,स्नान करना,अस्त्र शस्त्र का प्रयोग,ऑपरेशन कराना, मुकदमा करना,अग्नि लगाना,किसी वस्तु को काटना,भैस,घोड़ा व ऊंट संबंधी कार्य प्रशस्त माने जाते हैं सामान्य परिस्थिति में विवाह आदि शुभ मुहूर्त में भद्रा का त्याग करना चाहिए परंतु आवश्यक परिस्थितिवश अतिआवश्यक कार्य भूलोक की भद्रा ,भद्रा मुख छोड़कर कर भद्रा पुच्छ में शुभ कार्य कर सकते है |

दि. 2 को 20/35 से दि. 3 को 9/10 तक, दि. 6 को 15/31 से दि. 7 को 4/48 तक, दि. 10 को 11/35 से दि. 11 को 0/24 तक, दि. 14 को 3/32 से 15/46 तक, दि. 17 को 14/46 से दि. 18 को 2/10 तक, दि. 20 को 20/34 से दि. 21 को 7/19 तक, दि. 23 को 22/09 से दि. 24 को 8/33 तक, दि. 28 को 21/34 सेदि. 29 को 9/14 बजे तक भद्रा है।


संक्रांति विचार जून - 2025

इस मास की संक्रान्ति मिथुन आषाढ़ कृष्ण चतुर्थी रविवार दि. 15 जून को प्रात: 6/43 पर दिन के प्रथम पहर में 30 मु. बैठी भूखी, दक्षिण गमन, नैऋत्य दृष्टि किये माहेन्द्र मण्डल में प्रवेश करगी। गतवार 5, गत नक्षत्र 4 रविवारी संक्रान्ति होने से सभी प्रकार के धान्य व रस पदार्थ, कन्दमूल, कपास, तिलहन पदायों में तेजी चलेगी।

आकाश लक्षण जून - 2025

मास में ग्रहचाल व नाड़ी परिवर्तन और क्रूर ग्रहों का समसप्तम योग होने से भूकम्प, अनावृष्टि से प्रजा को भारी कष्ट का सामना करना होगा। गुरु के अस्त होने से कहीं वर्षा भी होगी। सूर्य, चन्द्रमा और बृहस्पति की युति से कहीं उतर दिशा में प्राकृतिक उपद्रवों से धन-जन हानि होगी।

चंद्र राशि प्रवेश  जून - 2025  

दि. 1 सिंह 21/36, दि. 4 कन्या 7/35, दि. 6 तुला 20/06, दि. 9 वृश्चिक 8/50, दि. 11 धनु 20/10, दि. 14 मकर 5/38. दि. 16 कुम्भ13/09, दि. 18 मौन 18/35, दि. 20 मेष 21/44, दि. 22 वृष 23/03, दि. 24 मिथुन 23/45, दि. 27 कर्क 1/39, दि. 29 सिंह 6/34

अधिक जानकारी के लिए संपर्क करे शर्मा जी - 9312002527,9560518227

सर्वार्थ सिद्धि योग जून -2025  

दैनिक जीवन में आने वाले महत्वपूर्ण कार्यों के लिए शीघ्र ही किसी  शुभ मुहूर्त का अभाव हो,किंतु शुभ मुहर्त के लिए अधिक दिनों तक रुका ना जा सकता हो तो इन सुयोग्य वाले मुहर्तु  को सफलता से ग्रहण किया जा सकता है | इन से प्राप्त होने वाले अभीष्ट फल के विषय में संशय नहीं करना चाहिए यह योग हैं सर्वार्थ सिद्धि,अमृत सिद्धि योग एवं रवियोग | योग्यता नाम तथा गुण अनुसार सर्वांगीण सिद्ध कारक  है| 

अधिक जानकारी के लिए संपर्क करे शर्मा जी - 9312002527,9560518227

दिनांक

प्रारंभ

दिनांक

समाप्त

07

09-39

08

05-28

09

15-31

10

05-27

15

00-21

15

05-27

19

23-16

21

05-27

23

15-16

24

05-28

25

05-29

25

10-40

26

08-46

27

07-21


चौघड़िया मुहूर्त 

चौघड़िया मुहूर्त देखकर कार्य या यात्रा करना उत्तम होता है। एक तिथि के लिये दिवस और रात्रि के आठ-आठ भाग का एक चौघड़िया निश्चित है। इस प्रकार से 12 घंटे का दिन और 12 घंटे की रात मानें तो प्रत्येक में 90 मिनट यानि 1.30 घण्टे का एक चौघड़िया होता है जो सूर्योदय से प्रारंभ होता है|

सुर्य उदय- सुर्य अस्त जून - 2025 


दिनांक 

01 

05 

10 

15

20 

25 

28

उदय 

05-25

05-24

05-24

05-24

05-25

05-26

05-27

अस्त 

19-13

19-15

19-17

19-19

19-20

19-21

19-23


 राहू काल 

 राहुकाल -राहुकाल दक्षिण भारत की देन है,दक्षिण भारत में राहु काल में कृत्य करना अच्छा नहीं माना जाता, राहु काल में शुभ कृतियों में वर्जित करने की परंपरा अब हमारे उत्तरी भारत में भी अपनाने लगे हैं राहुकाल प्रतिदिन सूर्यादि वारों में भिन्न-भिन्न समय पर केवल डेढ़ डेढ़ घंटे के लिए घटित होता है |

अधिक जानकारी के लिए संपर्क करे शर्मा जी - 9312002527,9560518227

  मांगलिक दोष विचार परिहार

वर अथवा कन्या दोनों में से किसी की भी कुंडली में 1,4,7,8 व 12 भाव में मंगल होने से ये मांगलिक माने जाते हैं,मंगली से मंगली के विवाह में दोष न होते हुए भी जन्म पत्रिका के अनुसार गुणों को मिलाना ही चाहिए यदि मंगल के साथ शनि अथवा राहु केतु भी हो तो प्रबल मंगली डबल मंगली योग होता है | इसी प्रकार गुरु अथवा चंद्रमा केंद्र हो तो दोष का परिहार भी हो जाता है |इसके अतिरिक्त मेष वृश्चिक मकर का मंगल होने से भी दोष नष्ट हो जाता है | इसी प्रकार यदि वर या कन्या किसी भी कुंडली में 1,4,7,9,12 स्थानों में शनि हो केंद्र त्रिकोण भावो में शुभ ग्रह, 3,6,11 भावो में पाप ग्रह हों तो भी मंगलीक दोष का आंशिक परिहार होता है, सप्तम ग्रह में यदि सप्तमेश हो तो भी दोष निवृत्त होता है |

स्वयं सिद्ध मुहूर्त

 स्वयं सिद्ध मुहूर्त चैत्र शुक्ल प्रतिपदा वैशाख शुक्ल तृतीया अक्षय तृतीया आश्विन शुक्ल दशमी विजयदशमी दीपावली के प्रदोष काल का आधा भाग भारत में से इसके अतिरिक्त लोकाचार और देश आचार्य के अनुसार निम्नलिखित कृतियों को भी स्वयं सिद्ध मुहूर्त माना जाता है बडावली नामी देव प्रबोधिनी एकादशी बसंत पंचमी फुलेरा दूज इन में से किसी भी कार्य को करने के लिए पंचांग शुद्धि देखने की आवश्यकता नहीं है परंतु विवाह आदि में तो पंचांग में दिए गए मुहूर्त व कार्य करना श्रेष्ठ रहता है।









जून 2025  के  महत्वपूर्ण दिवस

1 जून – विश्व दुग्ध दिवसविश्व दुग्ध दिवस हर वर्ष 1 जून को विश्व स्तर पर मनाया जाता है ताकि स्थिरता, आर्थिक विकास, आजीविका और पोषण में डेयरी क्षेत्र के महत्वपूर्ण योगदान का जश्न मनाया जा सके।  

1 जून- वैश्विक अभिभावक दिवस

हर साल 1 जून को वैश्विक अभिभावक दिवस मनाया जाता है। संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 2012 में एक प्रस्ताव पारित करके इस दिन की घोषणा की थी, जो माता-पिता को उनके बच्चों के प्रति उनके निरंतर समर्थन, त्याग और प्रतिबद्धता के लिए सम्मानित करता है।

१ जून बुन्देलखंड के शिवा वीर छत्रसाल का जन्म (ज्येष्ठ शुक्ल 3, वि.सं. 1706)। 18 वर्षीय छत्रसाल की भेंट शिवाजी से प्रेरणा प्राप्त कर मुगलों का साथ छोड़ स्वतंत्रता युद्ध में कूदे। बुन्देलखंड मुक्त कराया। स्वामी प्राणनाथ प्रभु का आध्यात्मिक मार्गदर्शन मिला।

2 जून - इटली गणतंत्र दिवस

इसे फेस्टा डेला रिपब्लिका के नाम से भी जाना जाता है, यह इटली में एक राष्ट्रीय अवकाश है जो हर साल 2 जून को मनाया जाता है। यह 1946 के उस दिन का सम्मान करता है जब इटलीवासियों ने राजशाही प्रणाली को समाप्त करने और गणतंत्र की स्थापना के लिए मतदान किया था।

2 जून - अंतर्राष्ट्रीय सेक्स वर्कर्स दिवस

यह दिवस 2 जून को यूरोप में ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में मनाया जाता है। अंतर्राष्ट्रीय सेक्स वर्कर्स दिवस 2 जून को मनाया जाता है क्योंकि 2 जून 1975 को फ्रांस के लियोन में सेंट-निज़ियर चर्च में लगभग 100 सेक्स वर्कर्स ने अपने शोषणकारी जीवन स्थितियों और कार्य संस्कृति के प्रति अपना गुस्सा जाहिर किया था। 10 जून को पुलिस बलों ने चर्च पर क्रूरतापूर्वक छापा मारा था। यह कार्रवाई एक राष्ट्रीय आंदोलन बन गई और इसलिए अब इसे यूरोप और दुनिया भर में मनाया जाता है।

2 जून – तेलंगाना स्थापना दिवस

तेलंगाना का इतिहास कम से कम दो हज़ार पाँच सौ साल या उससे भी ज़्यादा पुराना है। हर साल तेलंगाना राज्य 2 जून को अपना स्थापना दिवस धूमधाम से मनाता है और विभिन्न कार्यक्रम, सांस्कृतिक गतिविधियाँ आदि आयोजित करता है। तेलंगाना को एक नया राज्य बनाने के लिए संघर्ष 1950 के दशक की शुरुआत में शुरू हुआ था।

3 जून - विश्व साइकिल दिवस

संयुक्त राष्ट्र महासभा ने साइकिल की विशिष्टता, दीर्घायु और बहुमुखी प्रतिभा को मान्यता देने के लिए 3 जून को अंतर्राष्ट्रीय विश्व साइकिल दिवस के रूप में घोषित किया, जो परिवहन के लिए किफायती, पर्यावरण के अनुकूल और टिकाऊ साधन हैं।

4 जून - आक्रामकता के शिकार मासूम बच्चों का अंतर्राष्ट्रीय दिवस

हर साल 4 जून को, संयुक्त राष्ट्र (यूएन) द्वारा मासूम बच्चों के उत्पीड़न के शिकार होने का अंतर्राष्ट्रीय दिवस मनाया जाता है, ताकि दुनिया भर में बहुत कुछ झेलने वाले और शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक शोषण के शिकार बच्चों के बारे में जागरूकता बढ़ाई जा सके। इस दिन संयुक्त राष्ट्र बच्चों के अधिकारों की रक्षा के लिए अपनी प्रतिबद्धता की पुष्टि करता है।

5 जून- विश्व पर्यावरण दिवस

विश्व पर्यावरण दिवस हर साल 5 जून को मनाया जाता है और इसे 100 से ज़्यादा देश मनाते हैं। पर्यावरण एक बड़ा मुद्दा है, जो न सिर्फ़ लोगों की सेहत को प्रभावित करता है, बल्कि पूरी दुनिया में आर्थिक विकास को भी बाधित करता है। विश्व पर्यावरण दिवस 2021 की थीम "पारिस्थितिकी तंत्र की बहाली" है।

5 जून श्रीगुरूजी (माधवसदाशिव गोलवलकर) का देहत्याग (1973 ई.)। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के द्वितीय सरसंघचालक (1940-73)। अखंड प्रवास, अहर्निश संघ-साधना। संघ कार्य का बहुआयामी विस्तार किया। कैंसरग्रस्त होने के बावजूद विश्राम नहीं। 'चिता पर ही विश्राम करेंगे का भाव।

7 जून – विश्व खाद्य सुरक्षा दिवस

विश्व खाद्य सुरक्षा दिवस 7 जून को मनाया जाता है ताकि दूषित भोजन और पानी के स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभावों की ओर वैश्विक ध्यान आकर्षित किया जा सके। साथ ही, यह दिन खाद्य विषाक्तता के जोखिम को कम करने के तरीकों पर ध्यान केंद्रित करता है। खाद्य सुरक्षा सतत विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने की कुंजी है।

7 जून- राष्ट्रीय डोनट दिवस (जून का पहला शुक्रवार)

राष्ट्रीय डोनट (या डोनट्स) दिवस हर साल जून के पहले शुक्रवार को मनाया जाता है। यह दिन प्रथम विश्व युद्ध के दौरान हैप्पी मील के महत्व को दर्शाता है। और इस साल यह 7 जून को पड़ रहा है।

8 जून- विश्व ब्रेन ट्यूमर दिवस

यह दिवस हर साल 8 जून को मनाया जाता है ताकि गंभीर बीमारियों से पीड़ित लोगों की ओर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर लोगों का ध्यान आकर्षित किया जा सके और इस पर और अधिक शोध की आवश्यकता पर ज़ोर दिया जा सके। ब्रेन ट्यूमर के बारे में लोगों को जागरूक करने के लिए दुनिया भर में कई कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं।

8 जून – विश्व महासागर दिवस

विश्व महासागर दिवस हर साल 8 जून को मनाया जाता है ताकि सभी उम्र के लोगों को खुद के नेता बनने और महासागरों और जल निकायों को प्रदूषित करने से रोकने के लिए सशक्त बनाया जा सके। इस दिन एकल-उपयोग वाले प्लास्टिक को कम करने और वास्तविक परिवर्तन लाने के लिए आवश्यक कार्रवाई करने के बारे में जागरूकता फैलाई जाती है।

8 जून - राष्ट्रीय सर्वश्रेष्ठ मित्र दिवस

नेशनल बेस्ट फ्रेंड डे 8 जून को मनाया जाता है ताकि हम अपने सबसे अच्छे दोस्तों को याद दिला सकें और उन्हें संजो सकें। साथ ही, उन्हें यह जताने के लिए भी कि आप उन्हें और उनके साथ को कितना महत्व देते हैं। 

8 जून- गुड़िया दिवस (जून का दूसरा शनिवार)

यह दिन अपने गुड़िया प्रेमियों के साथ अपने गुड़िया के जुनून को साझा करने का एक विशेष दिन है। यह दिन शांति और खुशी का एक सार्वभौमिक संदेश देता है। यह आमतौर पर हर साल जून के दूसरे शनिवार को मनाया जाता है।

9 जून बिरसा मुंडा का निधन (1900 ई०) झारखंड में वनवासी क्षेत्र के सर्वाधिक जनप्रिय महापुरुष। 'बिरसा भगवान' करके आराधना की जाती है। सामाजिक कुरीतियों, ईसाई मिशनरियों तथा ब्रिटिश शासन के खिलाफ जीवन भर संघर्ष किया। पंजाब के गुरू रामसिंह कूका जैसा अवज्ञा व बहिष्कार आंदोजन बिहार में चलाया। अंग्रेजों ने जेल में डाला।, वहीं मात्र 25 वर्ष की आयु में अस्वस्थ होकर इहलीला समाप्त की।

12 जून - बाल श्रम विरोधी विश्व दिवस

यह दिवस अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) द्वारा बाल श्रम के विश्वव्यापी उन्मूलन, प्रयासों और इसे समाप्त करने के लिए आवश्यक कार्रवाई पर ध्यान केंद्रित करने के लिए शुरू किया गया है। 2015 में, विश्व नेताओं ने सतत विकास लक्ष्यों (SDG) को अपनाया जिसमें उन्होंने बाल श्रम को समाप्त करने के लिए एक खंड शामिल किया। 

12 जून- राष्ट्रीय लाल गुलाब दिवस

हर साल 12 जून को राष्ट्रीय लाल गुलाब दिवस के रूप में मनाया जाता है। जून के जन्म के फूल को प्यार और रोमांस के सबसे प्रतिष्ठित प्रतीक के रूप में मनाया जाता है। अमेरिका में व्यापक रूप से मनाया जाने वाला यह कार्यक्रम एक ऐसा समय है जब हर कोई इस पारंपरिक फूल का सम्मान करने के लिए इकट्ठा होता है, जिसमें प्रेमी, वनस्पतिशास्त्री, फूलवाले और लगभग हर कोई शामिल होता है।

14 जून - विश्व रक्तदाता दिवस

विश्व रक्तदाता दिवस हर साल 14 जून को मनाया जाता है ताकि दुनिया भर में रक्तदान की अनिवार्यता के बारे में जागरूकता बढ़ाई जा सके और रक्तदाताओं के सहयोग के लिए उनका आभार व्यक्त किया जा सके। इस साल का नारा है "रक्तदान करना एकजुटता का कार्य है। प्रयास में शामिल हों और जीवन बचाएँ"।

14 जून- मिथुन संक्रांति

राजा पर्व, मिथुन संक्रांति का दूसरा नाम, भारत के ओडिशा राज्य में मनाया जाने वाला एक पारंपरिक त्यौहार है। यह मुख्य रूप से नारीत्व, प्रजनन क्षमता और मानसून के मौसम की शुरुआत का उत्सव है। यह त्यौहार ओडिया संस्कृति में ऐतिहासिक और पौराणिक महत्व रखता है।

14 जून- झंडा दिवस

झंडा दिवस पूरे अमेरिका में देशभक्तिपूर्ण प्रदर्शनों, परेडों, समारोहों और शैक्षिक गतिविधियों के साथ मनाया जाता है। यह अमेरिकी ध्वज का सम्मान करने, उसके प्रतीकवाद पर विचार करने और राष्ट्रीय गौरव और एकता को व्यक्त करने का समय है।

14 जून (ज्येष्ठ शुक्ल अष्टमी) माँ धूमावती जयंती।

15 जून - विश्व पवन दिवस

स्वच्छ ऊर्जा को बढ़ावा देने के लिए हर साल 15 जून को विश्व पवन दिवस मनाया जाता है। यह पवन ऊर्जा, इसकी शक्ति और हमारी ऊर्जा प्रणालियों को नया आकार देने, हमारी अर्थव्यवस्थाओं को कार्बन मुक्त करने और नौकरियों और विकास को बढ़ाने में इसकी संभावनाओं को जानने का दिन है।

15 जून - विश्व बुजुर्ग दुर्व्यवहार जागरूकता दिवस

यह दिवस हर साल 15 जून को बुजुर्गों की देखभाल के लिए आवाज़ उठाने के लिए मनाया जाता है। बुजुर्गों के साथ दुर्व्यवहार एक वैश्विक सामाजिक मुद्दा है जो दुनिया भर के लाखों बुजुर्गों के स्वास्थ्य और मानवाधिकारों को प्रभावित करता है। इस दिन को आधिकारिक तौर पर संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा मान्यता दी गई थी।

15 जून - विश्व पितृ दिवस (जून का तीसरा रविवार)

यह हर साल जून के तीसरे रविवार को पितृत्व के उपलक्ष्य में और समाज में उनके सहयोग और योगदान के लिए सभी पिताओं की सराहना करने के लिए मनाया जाता है। 2024 में, विश्व पितृ दिवस 15 जून को मनाया जाएगा।

16 जून (ज्येष्ठ शुक्ल दशमी) गंगा दशहारा। 

16 जून राजा दाहिर का बलिदान (712 ई0)

17 जून - विश्व मरुस्थलीकरण एवं सूखा रोकथाम दिवस (अंतर्राष्ट्रीय)

1995 से, यह दिन मरुस्थलीकरण और सूखे के प्रभावों से निपटने के लिए अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए मनाया जाता है। 1994 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 17 जून को "विश्व मरुस्थलीकरण और सूखे से निपटने का दिवस" ​​घोषित किया। यह लोगों को यह याद दिलाने का एक अनूठा अवसर है कि मरुस्थलीकरण से प्रभावी ढंग से निपटा जा सकता है, समाधान संभव है और सभी स्तरों पर भागीदारी और सहयोग महत्वपूर्ण है। मरुस्थलीकरण और सूखे से निपटने के लिए विश्व दिवस 2021 का विषय है "पुनर्स्थापना। भूमि। पुनर्प्राप्ति। हम स्वस्थ भूमि के साथ बेहतर निर्माण करते हैं"।

17 जून गोप बन्धुदास का निधन (1928 ई0)

18 जून - ऑटिस्टिक प्राइड डे

हर साल 18 जून को विविधता और अनंत संभावनाओं का प्रतिनिधित्व करने के लिए इसे मनाया जाता है। यह ऑटिज्म से पीड़ित रोगियों के लिए अपने परिवार या देखभाल करने वालों के साथ एक साथ आने का दिन है। जागरूकता, स्वीकृति और स्वायत्तता को बढ़ावा देने का दिन।

18 जून - अंतर्राष्ट्रीय पिकनिक दिवस

अंतर्राष्ट्रीय पिकनिक दिवस हर साल 18 जून को मनाया जाता है। यह दिन अपने प्रियजनों के साथ प्रकृति का आनंद लेने का दिन है।

19 जून - विश्व सिकल सेल जागरूकता दिवस

सिकल सेल रोग (SCD) और इससे पीड़ित या रोगी के परिवार द्वारा सामना किए जाने वाले संघर्ष के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए 2008 से हर साल विश्व सिकल सेल जागरूकता दिवस मनाया जाता है। SCD को सार्वजनिक स्वास्थ्य चिंता के रूप में मान्यता देने के लिए संयुक्त राष्ट्र की महासभा द्वारा इस दिन को आधिकारिक रूप से अपनाया गया था।

19 जून- जूनटीन्थ

जूनटीनथ संयुक्त राज्य अमेरिका में एक संघीय अवकाश है जो हर साल 19 जून को अफ्रीकी अमेरिकी गुलामों की स्वतंत्रता का सम्मान करता है। इस अवकाश को मुक्ति दिवस, स्वतंत्रता दिवस, जयंती दिवस, अश्वेत स्वतंत्रता दिवस और जूनटीनथ स्वतंत्रता दिवस के रूप में भी जाना जाता है। 

19 जून - विश्व सैर-सपाटा दिवस

यह दिन हर साल लोगों को यह याद दिलाने के लिए मनाया जाता है कि वे हमेशा भागदौड़ करने के बजाय धीरे-धीरे आगे बढ़ें और जितना संभव हो सके जीवन का आनंद लें। यह दिन हमें यह भी याद दिलाता है कि हम आराम से रहें, गुलाबों की खुशबू लेने के लिए समय निकालें, प्रकृति को देखने के लिए समय निकालें जो इतनी खूबसूरत है, आसमान को देखें और जीवन का आनंद लें।

20 जून - विश्व शरणार्थी दिवस (अंतर्राष्ट्रीय)

यह दिवस हर साल 20 जून को मनाया जाता है ताकि दुनिया भर में शरणार्थियों के सामने आने वाले संघर्षों के बारे में जागरूकता फैलाई जा सके। विश्व शरणार्थी दिवस लोगों के लिए पलायन करने को मजबूर परिवारों के प्रति समर्थन दिखाने का भी एक महत्वपूर्ण अवसर है।

20 जून (ज्येष्ठ शुक्ल त्रयोदशी) हिन्दू साम्राज्य दिवस (उत्सव)। छत्रपति शिवाजी ने इस दिन 1674 ई० में राज्याभिषेक द्वारा हिन्दवी स्वराज्य के स्वप्न की पूर्ति की। आगरा का मुगल बादशाह तथा बीजापर, अहमदनगर, गोलकुंडा, बीदरपुर आदि की बहमनी सत्ताओं एवं अंग्रेजी फ्रेंच, डच पुर्तगालियों आदि हमलावरों का सफतलतापूर्वक मुकाबला कर हिन्दू सत्ता केन्द्र को उन्होंने जन्म दिया। भारत के इतिहास में यह युगान्तरकारी घटना है। संघ के छः प्रमुख उत्सवों में से यह एक है।

21 जून - विश्व संगीत दिवस

अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर संगीत को बढ़ावा देने और संगीत के माध्यम से वैश्विक सद्भाव स्थापित करने के लिए हर साल 21 जून को विश्व संगीत दिवस मनाया जाता है।

21 जून - विश्व हाइड्रोग्राफी दिवस

हाइड्रोग्राफी विज्ञान के बारे में लोगों में जागरूकता बढ़ाने के लिए हर साल 21 जून को विश्व हाइड्रोग्राफी दिवस मनाया जाता है। हर साल अंतर्राष्ट्रीय हाइड्रोग्राफ़िक संगठन (IHO) और उसके अंतरराष्ट्रीय सदस्य इस दिन को मनाते हैं। 

21 जून – अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस 

जीवन में योग के प्रति जागरूकता बढ़ाने और लोगों को योग के लाभों से अवगत कराने के लिए 21 जून को दुनिया भर में अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस मनाया जाता है। भारत में अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस आयुष मंत्रालय द्वारा मनाया जाता है।

21 जून राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के जन्मदाता डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार का निधन (1940 ई०)। अत्यत गरीब परिवार में जन्म लेकर हिन्दू समाज को संगठित संस्कारित बनाने का संकल्प पूरा करने के लिए अपना जीवन लगाया। व्यक्ति-निर्माण का तंत्र शाखारूप संघ खड़ा किया। निधन से पूर्व भारत में 600 स्थानों पर शाखायें फैला दीं।

21 जून - ग्रीष्म संक्रांति

ग्रीष्म संक्रांति 21 जून को मनाई जाती है। यह भारत का सबसे लंबा दिन होता है और दिन की रोशनी की अवधि भी सबसे लंबी होती है।

22 जून (ज्येष्ठ पूर्णिमा): संत कबीर का जन्म (सम्वत् 1455) स्वामी रामानंद के शिष्य। संत रविदास के गुरुभाई। सिकंदर लोदी ने जंजीरों में बंधवा कर गंगा में फिंकवाया फिर पागल हाथी के सामने डाला, पर कुछ बिगाड़ न सका। अन्याय, असत्य, अस्पृश्यता, पाखण्ड के विरोधी हिन्दुत्व के पक्षधर। श्री गुरू ग्रंथ साहब में उनके 224 पद ध्यान देने योग्य है।सुन्नति कीए तुरक जे होइगा, अउरत का किआ करिये। अर्ध सरीरी नारी न छोड़े, ता ते हिन्दू ही रहीये ।।(सुनन्त करने से यदि तुर्क मुसलमान बनते हो तो औरत को आप कैसे मुसलमान बनायेंगे? वह मर्द का अर्धांग है, उसे छोड़ा नहीं जा सकता, अतः बेहतर है कि हिन्दू ही रहें।)

22 जून- विश्व वर्षावन दिवस

विश्व वर्षावन दिवस 22 जून को प्रतिवर्ष मनाया जाने वाला एक वैश्विक उत्सव है। यह वर्षावनों के महत्व के बारे में जागरूकता बढ़ाने और उन्हें बचाने और संरक्षित करने के प्रयासों को बढ़ावा देने के लिए समर्पित एक दिन है। वर्षावन अविश्वसनीय रूप से जैव विविधता वाले पारिस्थितिकी तंत्र हैं जो जलवायु को विनियमित करने, पौधों और जानवरों की कई प्रजातियों का समर्थन करने और आवश्यक संसाधनों की आपूर्ति सहित कई पारिस्थितिक लाभ प्रदान करते हैं।

23 जून - अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक दिवस

जीवन में खेलों के महत्व के बारे में लोगों को जागरूक करने के लिए हर साल 23 जून को अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक दिवस मनाया जाता है। ओलंपिक दिवस सिर्फ़ एक खेल आयोजन से कहीं बढ़कर है। यह दुनिया के लिए सक्रिय होने का दिन है।

23 जून - संयुक्त राष्ट्र लोक सेवा दिवस

संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा 23 जून को लोक सेवा दिवस के रूप में मनाने के लिए इस दिन को नामित किया गया है। यह विकास प्रक्रिया में लोक सेवा के योगदान पर प्रकाश डालता है, लोक सेवकों के काम को मान्यता देता है और युवाओं को सार्वजनिक क्षेत्रों में करियर बनाने के लिए प्रोत्साहित करता है।

23 जून - अंतर्राष्ट्रीय विधवा दिवस

अंतर्राष्ट्रीय विधवा दिवस (अंतरराष्ट्रीय) प्रतिवर्ष 23 जून को मनाया जाता है, ताकि विश्व स्तर पर विधवाओं के मानवाधिकारों के उल्लंघन के बारे में जागरूकता बढ़ाई जा सके, जिसका सामना वे अपने पति की मृत्यु के बाद कई देशों में करती हैं।

23 जून जम्मू-काश्मीर की वेदी पर डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी का बलिदान (1953 ई०)

24 जून रानी दुर्गावती का रणक्षेत्र में प्राणोत्सर्ग (1564 ई०)। अकबर की सेना से लड़ते हुए गोंडवाने की राजमाता वीरांगना दुर्गावती ने आत्माहुति दी। जबलपुर में समाधि बनी हुई है।

26 जून - नशीली दवाओं के दुरुपयोग और अवैध तस्करी के खिलाफ अंतर्राष्ट्रीय दिवस

यह दिवस हर साल 26 जून को लोगों को नशीली दवाओं के हानिकारक प्रभावों के बारे में जागरूक करने और नशीली दवाओं के दुरुपयोग से मुक्त समाज का निर्माण करने के लिए मनाया जाता है। वैश्विक कार्रवाई और सहयोग को मजबूत करने के लिए संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा इसकी स्थापना की गई थी।

26 जून - यातना के पीड़ितों के समर्थन में अंतर्राष्ट्रीय दिवस

संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 12 दिसंबर 1997 को यातना के पीड़ितों के समर्थन में 26 जून को अंतर्राष्ट्रीय दिवस के रूप में घोषित किया था, ताकि यातना को समाप्त किया जा सके तथा यातना और अन्य क्रूर, अमानवीय या अपमानजनक उपचार या दंड के विरुद्ध कन्वेंशन को प्रभावी ढंग से क्रियान्वित किया जा सके।

26 जून राष्ट्रीय गीत वंदे मातरम् के अमर रचनाकार बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय का जन्म (1838 ई०)।

27 जून महाराजा रणजीत सिंह का निधन (1839 ई०)। महाराजा रणजीत सिंह का खालसा राज्य ही अंतिम हिन्दू राज्य था, जो उनके निधन के बाद अंग्रेजों के चंगुल में गया। उनकी राजधानी लाहौर थी। पंजाब ही नहीं, कश्मीर व अफगानिस्तान भी रणजीत सिंह ने मुक्त कराया था। उनके राज्य में गौवध की सजा मृत्यूदंड थी। मस्जिदों में अजान देने पर प्रतिबंध था। सोमनाथ देवालय के स्वर्णद्वारों को गजनी से लाकर हरि मंदिर अमृतसर तथा काशी विश्वनाथ मन्दिर को उन्होंने स्वर्णजड़ित कराया था।

27 जून- हेलेन केलर दिवस

हेलेन केलर दिवस महत्वपूर्ण है क्योंकि यह लचीलेपन का जश्न मनाता है, विकलांगता के बारे में जागरूकता बढ़ाता है, दूसरों को प्रेरित करता है, शिक्षा की वकालत करता है, तथा मानव अधिकारों और सामाजिक न्याय को बढ़ावा देता है, हेलेन केलर की उल्लेखनीय उपलब्धियों का सम्मान करता है और अधिक समावेशी समाज को प्रोत्साहित करता है।

29 जून: राष्ट्रीय सांख्यिकी दिवस 

यह दिवस 29 जून को रोज़मर्रा की ज़िंदगी में सांख्यिकी के इस्तेमाल को लोकप्रिय बनाने के लिए मनाया जाता है। यह दिन प्रो. पीसी महालनोबिस की जयंती के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। राष्ट्रीय सांख्यिकी दिवस 2021 का विषय सतत विकास लक्ष्य (एसडीजी)-2 है: भूख को समाप्त करना, खाद्य सुरक्षा और बेहतर पोषण प्राप्त करना और सतत कृषि को बढ़ावा देना।

29 जून: अंतर्राष्ट्रीय उष्णकटिबंधीय दिवस

संरक्षण रणनीतियों के बारे में जागरूकता फैलाने और पृथ्वी पर उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों को बढ़ावा देने के लिए यह दिवस प्रतिवर्ष 29 जून को मनाया जाता है। 

30 जून - विश्व क्षुद्रग्रह दिवस

क्षुद्रग्रह दिवस क्षुद्रग्रह के बारे में ऑनलाइन शिक्षा प्रदान करने के लिए 30 जून को मनाया जाने वाला एक कार्यक्रम है। यह कार्यक्रम 30 जून 1908 को हुई साइबेरियाई तुंगुस्का घटना की वर्षगांठ पर आयोजित किया जाता है। यह हाल के इतिहास में पृथ्वी पर सबसे हानिकारक ज्ञात क्षुद्रग्रह-संबंधी घटना है। संयुक्त राष्ट्र ने 30 जून को क्षुद्रग्रह दिवस के रूप में मनाने के लिए एक प्रस्ताव पारित किया।



माइक्रोप्लास्टिक - हमारे शरीर में अवांछित यात्री


कोई भी व्यक्ति जानबूझकर अपने भोजन में प्लास्टिक का इस्तेमाल नहीं करता, लेकिन वास्तविकता यह है: हम हर दिन इसका सेवन कर रहे हैं। ऐसा इसलिए नहीं कि हम लापरवाह हैं, बल्कि इसलिए कि आधुनिक जीवन प्लास्टिक से भरा पड़ा है - हमारे खाने की पैकेजिंग से लेकर हमारे द्वारा पहने जाने वाले कपड़ों तक, बोतलबंद पानी से लेकर हमारे घरों में हवा तक। कुछ अनुमानों के अनुसार,  औसत व्यक्ति सालाना 39,000 से 52,000 प्लास्टिक कण निगलता है ।  यह वास्तविक भोजन और पानी के नमूनों के व्यवस्थित विश्लेषण से है: समुद्री भोजन, सब्जियां, प्रोटीन पाउडर, यहां तक कि नमक भी। प्लास्टिक मानव फेफड़ों, रक्त, स्तन के दूध, प्लेसेंटा और मस्तिष्क के ऊतकों में पाया गया है। लेकिन असली सवाल यह है: हमारे दीर्घकालिक स्वास्थ्य के लिए इसका क्या मतलब है?











क्रांतिकारी वार्तालाप 

एक कल्पना कीजिए... तीस वर्ष का पति जेल की सलाखों के भीतर खड़ा है और बाहर उसकी वह युवा पत्नी खड़ी है, जिसका बच्चा हाल ही में मृत हुआ है...

इस बात की पूरी संभावना है कि अब शायद इस जन्म में इन पति-पत्नी की भेंट न हो. ऐसे कठिन समय पर इन दोनों ने क्या बातचीत की होगी. कल्पना मात्र से आप सिहर उठे ना?? जी हाँ!!! मैं बात कर रहा हूँ भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के सबसे चमकते सितारे विनायक दामोदर सावरकर की. यह परिस्थिति उनके जीवन में आई थी, जब अंग्रेजों ने उन्हें कालापानी  (Andaman Cellular Jail) की कठोरतम सजा के लिए अंडमान जेल भेजने का निर्णय लिया और उनकी पत्नी उनसे मिलने जेल में आईं. 

मजबूत ह्रदय वाले वीर सावरकर (Vinayak Damodar Savarkar) ने अपनी पत्नी से एक ही बात कही... – “तिनके-तीलियाँ बीनना और बटोरना तथा उससे एक घर बनाकर उसमें बाल-बच्चों का पालन-पोषण करना... यदि इसी को परिवार और कर्तव्य कहते हैं तो ऐसा संसार तो कौए और चिड़िया भी बसाते हैं. अपने घर-परिवार-बच्चों के लिए तो सभी काम करते हैं. मैंने अपने देश को अपना परिवार माना है, इसका गर्व कीजिए. इस दुनिया में कुछ भी बोए बिना कुछ उगता नहीं है. धरती से ज्वार की फसल उगानी हो तो उसके कुछ दानों को जमीन में गड़ना ही होता है. वह बीच जमीन में, खेत में जाकर मिलते हैं तभी अगली ज्वार की फसल आती है. यदि हिन्दुस्तान में अच्छे घर निर्माण करना है तो हमें अपना घर कुर्बान करना चाहिए. कोई न कोई मकान ध्वस्त होकर मिट्टी में न मिलेगा, तब तक नए मकान का नवनिर्माण कैसे होगा...”. कल्पना करो कि हमने अपने ही हाथों अपने घर के चूल्हे फोड़ दिए हैं, अपने घर में आग लगा दी है. परन्तु आज का यही धुआँ कल भारत के प्रत्येक घर से स्वर्ण का धुआँ बनकर निकलेगा. यमुनाबाई, बुरा न मानें, मैंने तुम्हें एक ही जन्म में इतना कष्ट दिया है कि “यही पति मुझे जन्म-जन्मांतर तक मिले” ऐसा कैसे कह सकती हो...” यदि अगला जन्म मिला, तो हमारी भेंट होगी... अन्यथा यहीं से विदा लेता हूँ.... (उन दिनों यही माना जाता था, कि जिसे कालापानी की भयंकर सजा मिली वह वहाँ से जीवित वापस नहीं आएगा).

अब सोचिये, इस भीषण परिस्थिति में मात्र 25-26 वर्ष की उस युवा स्त्री ने अपने पति यानी वीर सावरकर से क्या कहा होगा?? यमुनाबाई (अर्थात भाऊराव चिपलूनकर की पुत्री) धीरे से नीचे बैठीं, और जाली में से अपने हाथ अंदर करके उन्होंने सावरकर के पैरों को स्पर्श किया. उन चरणों की धूल अपने मस्तक पर लगाई. सावरकर भी चौंक गए, अंदर से हिल गए... उन्होंने पूछा.... ये क्या करती हो?? अमर क्रांतिकारी की पत्नी ने कहा... “मैं यह चरण अपनी आँखों में बसा लेना चाहती हूँ, ताकि अगले जन्म में कहीं मुझसे चूक न हो जाए. अपने परिवार का पोषण और चिंता करने वाले मैंने बहुत देखे हैं, लेकिन समूचे भारतवर्ष को अपना परिवार मानने वाला व्यक्ति मेरा पति है... इसमें बुरा मानने वाली बात ही क्या है. यदि आप सत्यवान हैं, तो मैं सावित्री हूँ. मेरी तपस्या में इतना बल है, कि मैं यमराज से आपको वापस छीन लाऊँगी. आप चिंता न करें... अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखें... हम इसी स्थान पर आपकी प्रतीक्षा कर रहे हैं...”.


क्या जबरदस्त ताकत है... उस युवावस्था में पति को कालापानी की सजा पर ले जाते समय, कितना हिम्मत भरा वार्तालाप है... सचमुच, क्रान्ति की भावना कुछ स्वर्ग से तय होती है, कुछ संस्कारों से. यह हर किसी को नहीं मिलती.



                                 


गुरु, ज्ञान और आध्यात्मिक विकास का स्रोत

  गुरु, ज्ञान और आध्यात्मिक विकास का स्रोत सतीश शर्मा  गुरु पूर्णिमा, आषाढ़ मास की पूर्णिमा को मनाई जाती है, और यह दिन गुरुओं के प्रति सम्मा...