शुक्रवार, 31 जनवरी 2025

बसंत पंचमी – ज्ञान ,काम व बलिदान का संगम

 


बसंत पंचमी – ज्ञान ,काम व बलिदान का संगम 

सतीश शर्मा  

माघ महीने की शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि पर मां सरस्वती प्रकट हुई थीं इसी वजह से इस दिन बसंत पंचमी का पर्व मनाया जाता है। मां सरस्वती की प्रतिमा को विराजमान कर उपासना की जाती है। मां सरस्वती की पूजा-अर्चना करने से ज्ञान की प्राप्ति होती है।बसंत पंचमी का दूसरा नाम  श्री पंचमी भी है। इस दिन विद्या की देवी सरस्वती, कामदेव और विष्णु की पूजा की जाती है। यह पूजा विशेष रूप से भारत, बांग्लादेश, नेपाल और कई राष्ट्रों में बड़े उल्लास से होती है। इस दिन पीले वस्त्र धारण करते हैं। इस वर्ष बसंत पंचमी  2 फरवरी, 2025 को पड़ रही है। सरस्वती माता के आशीर्वाद के साथ यह सबसे शुभ दिनों में से एक अबूझ मुहूर्त यानी किसी प्रकार के तारा बाल चंद्र बल या अन्य ग्रह नक्षत्र के शुद्ध का विचार नहीं किया जाता है इस दिन विवाह आदि शुभ कार्य कर सकते है। यह दिन बसंत ऋतु के आगमन का प्रतीक है, जो नई शुरुआत और विकास का प्रतीक है। खेतों में सरसों के फूल अपनी खुशबु से वातावरण को सुगंधित बनाते हैं। माता को पीला/बसंती रंग पसंद है इसलिए बसंत पंचमी का रंग पीला होता है और जैसा कि नाम से पता चलता है ‘बसंत’ का मतलब बसंत ऋतु है। इस दिन लोग पीले कपड़े पहनते हैं, देवी को पीले फूल चढ़ाते हैं और माथे पर पीले हल्दी का तिलक लगाते हैं । इस दिन का महत्व देवी माँ सरस्वती की पूजा में निहित है, जो विज्ञान, कला और शिल्प आदि ज्ञान के के सभी विभिन्न पहलुओं का प्रतीक हैं। इस दिन मां सरस्वती के साथ-साथ माता लक्ष्मी और भगवान विष्णु की भी पूजा की जाती है । बसंत पंचमी के दिन विद्यारंभ संस्कार किया जाता है । प्राय सभी विद्यालयों में सरस्वती माता का पूजन किया जाता है।

बसंत पंचमी वाले दिन ही  मां सरस्वती का जन्म हुआ था । महाकवि सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ का जन्मदिन 28 फ़रवरी, 1899 को बसंत पंचमी  वाले दिन ही हुआ था। राजा भोज का जन्मदिन भी बसंत पंचमी को ही होता था। भोज एक दयालु राजा और कला और संस्कृति के संरक्षक के रूप में प्रसिद्ध हुए, लेकिन वे एक योद्धा के रूप में भी प्रसिद्ध थे। उन्हें मालवा क्षेत्र के आसपास केंद्रित एक राज्य विरासत में मिला था, और उन्होंने इसे अलग-अलग परिणामों के साथ विस्तारित करने के कई प्रयास किए।  सिखों के लिए बसंत पंचमी के दिन का बहुत महत्वपूर्ण है मान्यता है कि बसंत पंचमी के दिन सिखों के दसवें गुरु, गुरु गोबिन्द सिंह जी का विवाह हुआ था।

ऐसी मान्यता है कि जो कला प्रेमी लोग हैं चाहे वह संगीत क्षेत्र से हो चाहे अन्य कला के क्षेत्र से हो सभी सरस्वती माता को प्रसन्न करने के लिए साधारणता आज के दिन ही अपनी विद्या आरंभ का कार्य प्रारंभ करते हैं । संगीत या कला की शिक्षा शुरू करने से पहले मां सरस्वती की पूजा की जाती है। बसंत पंचमी के दिन शुभ मुहूर्त में अपने बच्चों से मां सरस्वती की पूजा जरूर करवानी चाहिए। पूजा के दौरान मां सरस्वती को पीले रंग के फल, फूल और मिठाई अर्पित करने चाहिए।इसके अलावा मां सरस्वती को केसर का हलवा और पीले रंग के चावलों का भोग लगाएं।ऐसा करने से मां सरस्वती प्रसन्न होकर ज्ञान और कला का आशीर्वाद देती हैं।

बसंत पंचमी पर हम सरस्वती माता के इन श्लोक और मंत्रों का जाप करे तो माता का आशीर्वाद मिल जाता है |

वसंतपञ्चमी आशास्महे नूतनहायनागमे भद्राणि पश्यन्तु जनाः सुशान्ताः

सरस्वति नमौ नित्यं भद्रकाल्यै नमो नम:

या वीणावरदण्डमण्डित करा या श्वेत पद्मासना

सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा

शारदा शारदांभौजवदना, वदनाम्बुजे

विद्या: समस्तास्तव देवि भेदा: स्त्रिय: समस्ता: सकला जगत्सु

शारदायै नमस्तुभ्यं, मम ह्रदय प्रवेशिनी, परीक्षायां समुत्तीर्णं, सर्व विषय नाम यथा

ॐ ऐं सरस्वत्यै ऐं नमः

ॐ ऐं ह्रीं क्लीं महासरस्वती देव्यै नमः

रति और कामदेव का पृथ्वी पर आगमन भी बसंत पंचमी वाले दिन ही हुआ था। बसंत ऋतु को रति और कामदेव का हथियार भी मानते हैं और अनेकों पुराणों में इसका उल्लेख है कि जब भी किसी की तपस्या भंग की है तो वहां पर वसंत ऋतु जैसा वातावरण बनाया गया है वसंत ऋतु में काम की संभावना अधिक हो जाती है। इस दिन पति-पत्नी आपस में एक दूसरे को भोजन कराए तो उनके आपसी संबंध मधुर होते हैं।

बसंत पंचमी के दिन वीर हकीकत राय ने धर्म के लिए  और पृथ्वीराज चौहान ने अपने राष्ट्र के सम्मान हेतु अपने प्राणों की आहुति दी थी। भारत मे इस दिन को बलिदान दिवस के रूप में भी मनाया जाता है ।

वीर हकीकत राय का जन्म 1719 में स्यालकोट (वर्तमान पाकिस्तान) के पास एक गांव में हुआ था उनके माता-पिता धर्मप्रेमी थे,वीर हकीकत राय पर उनका प्रभाव पढ़ा, वह बहुत ही कुशाग्र बुद्धि के मालिक थे | उन्होंने छोटी उम्र में ही संस्कृत सीख ली थी। उन्होंने धर्म परिवर्तन के ख़िलाफ़ बलिदान दिया था।

पृथ्वीराज चौहान दिल्ली के आखिरी हिन्दू सम्राट थे । उन्होंने मुगल हमलावर मोहम्मद गौरी को 16 बार हराया था 17वीं बार मोहम्मद गौरी ने पृथ्वीराज चौहान को हराया था और उनकी आंखें फोड़ दी थीं तब चंद्रवरदाई ने आकर उनको शब्द भेदी बाण चलने का आवाहन किया और मोहम्मद गौरी को मार गिराया। पृथ्वीराज चौहान और चंद्रबरदाई का बसंत पंचमी के दिन ही आत्मबलिदान हुआ।

जन्म कुंडली बनवाने व दिखाने के लिए संपर्क करें शर्मा जी -9312002527,9560518227

www.sumansangam.com

वर वधू के लिए निम्नलिखित फार्म भरे ।

Fill the following form for the bride and groom।

https://docs.google.com/forms/d/1v4vSBtlzpdB3-6idTkD1qoUZ6YkZIqEv8HAAeOJyPRI/edit




सोमवार, 20 जनवरी 2025

महाराणा प्रताप,महाराणा प्रताप न केवल एक महान योद्धा थे, बल्कि वे अपनी संस्कृति और स्वाभिमान के प्रतीक भी रहे


 

 महाराणा प्रताप

महाराणा प्रताप सिंह का जन्म 9 मई, 1540 को राजस्थान के कुंभलगढ़ में हुआ था। महाराणा उदय सिंह द्वितीय उनके पिता थे और रानी जीवन कंवर उनकी माता थीं। महाराणा उदय सिंह द्वितीय मेवाड़ के शासक थे, जिनकी राजधानी चित्तौड़ थी। महाराणा प्रताप को युवराज की उपाधि दी गई थी क्योंकि वे अपने पच्चीस पुत्रों में सबसे बड़े थे। महाराणा प्रताप भारतीय इतिहास के महानतम योद्धाओं में से एक थे. उन्होंने मुगल सम्राट अकबर के खिलाफ बहादुरी से संघर्ष किया और हमेशा अपनी मातृभूमि की रक्षा की. उनकी अदम्य साहस, शौर्य और स्वतंत्रता की भावना ने उन्हें इतिहास में अमर कर दिया. महाराणा प्रताप न केवल एक महान योद्धा थे, बल्कि वे अपनी संस्कृति और स्वाभिमान के प्रतीक भी रहे | एकलिंग जी महादेव को मेवाड़ राज्य के महाराणाओं और राजपूतों का कुल देवता बताया गया है. जब भी मेवाड़ का राजा किसी युद्ध में जाता था तो सबसे पहले एकलिंग जी की पूजा अर्चना करता था और आशीष लेता था. महाराणा प्रताप ही अपने पूर्वजों की इस परंपरा को निभाते थे और एकलिंग जी को धोक लगाकर कही युद्ध में जाते थे. महाराणा प्रताप ने 1583 में विजयादशमी पर मेवाड़ को आज़ाद कराने के लिए अभियान छेड़ा था.इस युद्ध में महाराणा प्रताप ने अपनी सेना को दो हिस्सों में बांटा था.एक हिस्से का नेतृत्व खुद महाराणा प्रताप कर रहे थे, तो दूसरी हिस्से का नेतृत्व उनके बेटे अमर सिंह कर रहे थे. बहलोल खान, मुगल बादशाह अकबर के सेनापति थे.कहा जाता था कि बहलोल खान को कभी कोई जंग में नहीं हरा सका था.अकबर बहलोल खान पर पूरी तरह से भरोसा करता था.बहलोल खान बहुत बेरहम था.बहलोल खान दुश्मनों को बहुत दर्दनाक मौत देता था महाराणा प्रताप और बहलोल खान के बीच हल्दीघाटी के युद्ध में सामना हुआ था. इस युद्ध में बहलोल खान महाराणा प्रताप के सामने टिक नहीं पाया था. महाराणा प्रताप ने बहलोल खान को एक ही वार में घोड़े समेत दो हिस्सों में काट दिया था. 

कुछ महत्वपूर्ण लड़ाई:

तराइन की पहली लड़ाई - 1191.

पानीपत की पहली लड़ाई - 1526.

खानवा का युद्ध - 1527.

चौसा का युद्ध - 1539.

कन्नौज की लड़ाई - 1540.

महाराणा प्रताप ने मुगलों के खिलाफ 225 लड़ाइयां लड़ीं, जिनमें से अधिकांश में उन्हें जीत मिली। उनके बेटे महाराणा अमर ने राजा के तौर पर 17 बड़ी लड़ाइयां लड़ीं और सभी में जीत हासिल की। मारवाड़ के राव चंद्रसेन राठौर ने अपना जीवन मुगलों से लड़ते हुए बिताया और जब तक वे जीवित रहे, अकबर मारवाड़ में पैर नहीं रख सका। भांजी सिंह जडेजा ने भी मुगलों को भारी नुकसान पहुंचाया।भामा शाह (1547-1600) महाराणा प्रताप सिंह के एक प्रसिद्ध सेनापति, मंत्री और करीबी सहयोगी थे। उनके द्वारा प्रदान की गई वित्तीय सहायता से महाराणा प्रताप को अपनी सेना को बहाल करने और अपने खोए हुए क्षेत्र का अधिकांश हिस्सा वापस पाने में मदद मिली।महाराणा प्रताप का भाला 81 किलो वजन का था और उनके छाती का कवच 72 किलो का था। उनके भाला, कवच, ढाल और साथ में दो तलवारों का वजन मिलाकर 208 किलो था। महाराणा प्रताप का वजन 110 किलो,और लम्बाई 7 फीट 5 इंच थी।कहा जाता है कि शिकार करते समय महाराणा प्रताप के धनुष की कमान उनकी आंत में लगी। इससे उनके पेट में गहरा जख्म हो गया। इसी से उनकी मौत हो गई।महाराणा प्रताप के शौर्य की बात हो और उनके प्रिय घोड़े चेतक का जिक्र न किया जाए, यह भी संभव नहीं। दरअसल महान राजपूत योद्धा महाराणा प्रताप का अश्व चेतक भी उन्हीं की भांति वीर योद्धा था, जो दुनिया के सर्वश्रेष्ठ घोड़ों में से एक था। 

जन्म कुंडली बनवाने व दिखाने के लिए संपर्क करें शर्मा जी -9312002527,9560518227

www.sumansangam.com

वर वधू के लिए निम्नलिखित फार्म भरे ।

Fill the following form for the bride and groom।

https://docs.google.com/forms/d/1v4vSBtlzpdB3-6idTkD1qoUZ6YkZIqEv8HAAeOJyPRI/edit


गुरुवार, 9 जनवरी 2025

पुत्रदा एकादशी


https://youtu.be/GVCBOXMx1eg

 पुत्रदा एकादशी

पौष मास की शुक्ल पक्ष एकादशी को पुत्रदा एकादशी कहते हैं। शास्त्रों के अनुसार पौष मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी का व्रत और अनुष्ठान करने से भद्रावती के राजा सुकेतु को पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई थी। तभी से इसका नाम पुत्रदा अर्थात पुत्र देने वाली एकादशी पड़ा। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा का विधान है। इस व्रत के करने से सन्तान की प्राप्ति होती है।

पुत्रदा एकादशी की कथा

प्राचीन काल में भद्रावती नामक नगरी में सुकेतु नाम के राजा राज्य करते थे। राजा तथा उनकी स्त्री शैव्या दानशील तथा धर्मात्मा थे। सम्पूर्ण राज्य, खजाना धन-धान्य से पूर्ण होने के बावजूद भी राजा संतानहीन होने के कारण अत्यन्त दुखी थे। एक बार वे दोनों राज्य भार मंत्रियों के ऊपर छोड़कर वनवासी हो गए तथा आत्माहत्या के समान कोई दूसरा पाप नहीं। इसी उधेड़बुन में वे दोनों वहां आये, जहां मुनियों का आश्रय व जलाशय था। राजा रानी मुनियों को प्रणाम कर बैठ गए। मुनियों ने योगबल से राजा के दुख का कारण जान लिया और राजा रानी को आशीर्वाद देते हुए 'पुत्रदा एकादशी 'व्रत रखने को कहा। राजा रानी ने पुत्रदा एकादशी व्रत रखकर विष्णु भगवान की पूजा की और पुत्र रत्न प्राप्त किया और अंत में करने पर बैकुंठ लोक को गया, इस प्रकार एकादशी की कथा जो सुनते हैं सुनते हैं पढ़ते हैं और व्रत करते हैं भगवान उनकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं, उनके मन में मानसिक शांति का संचार करते हैं। बोलो लक्ष्मी नारायण भगवान की जय, ॐ नमो भगवते वासुदेवाय।

जन्म कुंडली बनवाने व दिखाने के लिए संपर्क करें शर्मा जी -9312002527,9560518227

www.sumansangam.com

वर वधू के लिए निम्नलिखित फार्म भरे ।

Fill the following form for the bride and groom।

https://docs.google.com/forms/d/1v4vSBtlzpdB3-6idTkD1qoUZ6YkZIqEv8HAAeOJyPRI/edit



गुरु, ज्ञान और आध्यात्मिक विकास का स्रोत

  गुरु, ज्ञान और आध्यात्मिक विकास का स्रोत सतीश शर्मा  गुरु पूर्णिमा, आषाढ़ मास की पूर्णिमा को मनाई जाती है, और यह दिन गुरुओं के प्रति सम्मा...