बुधवार, 30 अक्टूबर 2024

लक्ष्मी पूजन मुहर्त व विधि

 


लक्ष्मी पूजन मुहर्त व विधि

आप सबको दिवाली की मंगल शुभकामना एंव हार्दिक बधाई | 

मां लक्ष्मी आपकी सभी मनोकामनाएं पूरी करें |

लक्ष्मी पूजन मुहर्त

दिनांक 31-10-2024 

स्थिर लग्न - वृषभ - 6-25 से 8-20 तक,सिंह लग्न - 00-56 से 3-14 तक

राहू काल 13-27 से 14-50

चौघड़िया मुहूर्त

शुभ - 16-13 से 17-36,तक,अमृत - 17-36 से 19-13 तक,चल - 19-13 से 20-50 तक

लाभ - 00-04 से 01-41 तक,शुभ - 03-18 से 04-55 तक,अमृत - 04-55 से 06-32 तक 

दिनांक - 01-11-2024 

स्थिर लग्न - वृश्चिक - 07-40 से 10-05 तक, कुंभ - 13-52 से 15-30 तक,वृषभ - 18-21 से 20-16 तक,सिंह - 00-52 से 03-10 तक

राहूकाल 10-41 से 12-04

लाभ 07-55 से 09-18 तक अमृत - 09-18 से 10-41 तक,शुभ 12-04 से 13-26 तक लाभ 20-49 से 22-27 तक 

लक्ष्मी पूजन विधि

दीपावली पर अपने घर में भगवान गणपति, माँ लक्ष्मी, माँ सरस्वती एवं कुबेर इनका पूजन का करते  है । दीपावली पर पंच देवों के स्मरण पूजन से अंतर एवं बाह्य महालक्ष्मी की अभिवृद्धि तथा जीवन में सुख-शांति का संचार होता है । सब श्रद्धालु भावपूर्वक वैदिक विधि-विधान का लाभ ले सकें, इस हेतु लक्ष्मी पूजन की संक्षिप्त विधि दी जा रही है ।

स्वयं स्वच्छ व पवित्र पूजा गृह में ईशान कोण अथवा पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठ जायें | घी का दीपक जलाकर अपने सम्मुख दायीं ओर रख दें । ॐ दीपस्थ देवताय नमः – इस मंत्र से दीपक को पुष्प एवं चावल चढ़ायें ।

अब स्वयं को व अन्य परिवारजनों को “ॐ गं गणपतये नमः” मंत्र से तिलक लगायें व ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’ मंत्र से सभी को मौली बाँध दें ।

‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय‘ मंत्र को उच्चारित कर अपनी शिखा को गाँठ लगायें….फिर

ॐ केशवाय नमः स्वाहा, ॐ माधवाय नमः स्वाहा, ॐ नारायणाय नमः स्वाहा, तीन मंत्रों से तीन आचमनी जल हाथ पर लेकर पीयें व ‘ॐ गोविन्दाय नमः’ इस मंत्र से हाथ धो लें । अब अपने बायें हाथ में जल लेकर दायें हाथ से अपने शरीर व पूजन-सामग्री पर निम्न मंत्र से छींटें.. ~

ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपि वा । यः स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तरः शुचिः ॥

फिर अपने आसन के नीचे एक पुष्प रखकर ‘ॐ हाँ पृथिव्यै नमः’ इस मंत्र से भूमि एवं अपने आसन को मानसिक प्रणाम कर लें ।

इसके बाद मलिन वृत्तियों, विघ्नों आदि से रक्षा के निमित्त निम्न मंत्र से अपने चारों ओर चावल या सरसों के कुछ दाने डालें ।

ॐ अपसर्पन्तु ते भूता ये भूता भूमिसंस्थिताः । ये भूता विघ्नकर्तारस्ते नश्यन्तु शिवाज्ञया ॥

भूमि पर स्थित जो विघ्न डालने वाली मलिन वृत्तियाँ हैं, वे सब कल्याणकारी देव की कृपा से दूर हो, नष्ट हो । अब हाथ में कुछ पुष्प लेकर निम्न मंत्र से अपने श्री सद्गुरुदेव का स्मरण करें~

ॐ आनन्दमानन्दकरं प्रसन्नं स्वरूपं निजभाव युक्तं । योगीन्द्र मीड्यं भवरोग वैद्यं श्री सद्गुरु नित्यं नमामि ॥

आनंद स्वरूप, आनंद दाता, सदैव प्रसन्न रहने वाले, ज्ञान स्वरूप, निजस्वभाव में स्थित, योगियों, इन्द्रादि के द्वारा स्तुति के योग्य एवं भवरोग के वैद्य जन-विधि श्री सद्गुरुदेव को मैं नित्य नमस्कार करता हूँ । फिर गुरुदेव को मानसिक प्रणाम करके पुष्प अपने आगे थाली में रख दें । लाल व सफेद आसन के बीच पुष्पासन पर सदगुरुदेव का श्रीचित्र स्थापित करें ।

तत्पश्चात् भगवान गणपति का मानसिक ध्यान इस प्रकार करें :-

ॐ वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटिसमप्रभ: । निर्विघ्नं कुरु में देव सर्वकार्येषु सर्वदा ॥

कोटि सूर्यों के समान महा तेजस्वी, विशालकाय और टेढ़ी सूंड वाले गणपति देव ! आप सदा मेरे सब कार्यों में विघ्नों का निवारण करें ।

भगवान गणपति की मूर्ति को थाली में रखकर ‘ॐ गं गणपतये नमः’ मंत्र से स्नान करायें । फिर शुद्ध कपड़े से पोछकर गेहूँ के स्वास्तिक पर दूर्वा का आसन रखकर उस पर बैठा दें । फिर ‘ॐ गं गणपतये नमः’ इसी मंत्र से उनको तिलक करें, पुष्प-दूर्वा चढ़ायें, धूप करें, गुड़ का नैवेद्य दें, दीपक से आरती करें । इसके बाद ‘ॐ भूर्भुवः स्वः ऋद्धि सिद्धि सहित श्रीमन्महागणाधिपतये नमः’ इस मंत्र से मानसिक प्रणाम करें । अब माँ लक्ष्मी के पूजन हेतु भगवान नारायण सहित उनका इस प्रकार ध्यान करें :-

सिद्धिबुद्धिप्रदे देवि भुक्तिमुक्तिप्रदायिनी । हरिप्रिये महादेवि महालक्ष्मी नमोऽस्तु ते ॥
नमस्तेऽस्तु महामाये सर्वस्यातिहरे देवि l शंखचक्रगदाहस्ते महालक्ष्मी नमोऽस्तु ते ॥

यस्यस्मरणमात्रेण जन्मसंसारबन्धनात् । विमुच्यते नमस्तस्मै विष्णवे प्रभ विष्णवे ॥

‘सिद्धि-बुद्धि प्रदात्री, भुक्ति-मुक्ति दात्री, विष्णुप्रिया महादेवी महालक्ष्मी ! तुझे नमस्कार है । सबके दुःखों का हरण करने वाली महादेवी, हे महामाया ! तुझे नमस्कार है । शंख-चक्र-गदा हाथ में धारण करने वाली हे महालक्ष्मी ! तुझे नमस्कार है । जिनके स्मरणमात्र से (प्राणी) जन्मरूप संसार के बंधन से मुक्त हो जाता है, उन समर्थ भगवान विष्णु को नमस्कार है ।

थाली में लक्ष्मी जी की मूर्ति या चाँदी के श्रीयंत्र अथवा चांदी के सिक्के को नारायण सहित ध्यान करते हुए से स्नान करायें मंत्र बोले  :-

गंगा सरस्वती रेवा पयोष्णी नर्मदा जलैः । स्नापितोऽसि महादेवी ह्यतः शांतिं प्रयच्छमे ॥

फिर लक्ष्मी जी की मूर्ति या श्रीयंत्र को चावल के अष्टदल कमल पर स्थापित करें ।
फिर निम्न मंत्र :-

‘श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं कमलवासिन्यै स्वाहा ।’

यह मंत्र को पढ़ते हुए कुमकुम का तिलक करें, मौली चढ़ायें, पुष्प माला पहनायें, धूप करें, दीपक कपूर की आरती दें तथा नैवेद्य चढ़ायें । फिर पान के पत्ते पर सुपारी, इलायची, लौंग आदि रखकर चढ़ायें । फल, दक्षिणा आदि सब इसी मंत्र से चढ़ायें । तत्पश्चात् निम्न मंत्र से क्षमा-प्रार्थना करें :  ‘आवाहनं न जानामि न जानामि विसर्जनम् । पूजां चैव न जानामि क्षमस्व परमेश्वरि ।।’

इसके बाद निम्न मंत्र की एक माला करें :

ॐ नमो भाग्यलक्ष्म्यै च विद्महे । अष्टलक्ष्म्यै च धीमहि । तन्नो लक्ष्मीः प्रचोदयात् ।।

फिर हाथ में जल लेकर संकल्प करें कि भगवान व गुरु की भक्ति प्राप्ति के निमित्त सत्कर्म की सिद्धि हेतु हमने जो भगवान लक्ष्मी-नारायण का पूजन जप किया है, वह परब्रह्म परमात्मा को अर्पण है ।
फिर आरती करके ‘ॐ तं नमामि हरिं परम्’ इसका तीन बार उच्चारण करें ।

जहाँ लक्ष्मी-पूजन किया है उन्हीं दोनों स्थापनों के सामने ही कलश-पूजन करें ।

कलश-पूजन :

जल से भरे हुए तांबे के कलश को मौली बाँधकर उस पर पीपल के पांच पत्ते रखें, उस पर एक नारियल रखें व सभी तीर्थ-नदियों का निम्न मंत्र से आवाहन करें :-

गंगे च यमुने चैव गोदावरि सरस्वति । नर्मदे सिंधु कावेरि जलेऽस्मिन् संनिधिं कुरु ॥

फिर भगवान सूर्य को प्रार्थना करें कि वे इस कलश को तीर्थत्व प्रदान करें :-

ब्रह्माण्ड कर तीर्थानि करे स्पृष्टानि ते रवै । तेन सत्येन मे देव तीर्थ देहि दिवाकर ।।

इसके बाद उस कलश को पूर्व आदि चारों दिशाओं में तिलक करेंगे । नारियल पर भी तिलक कर व चावल चढ़ाकर अपने आगे भूमि पर कुमकुम से एक स्वास्तिक बनाकर उस पर स्थापित करें ।

अब भगवान वासुदेव को प्रार्थना करें कि वरुण कलश के रूप में स्थित आप हमारे परिवार में शांति व सात्विक लक्ष्मी की वृद्धि करें । अब हाथ में पुष्प लेकर निम्न मंत्र से माँ सरस्वती का मानसिक ध्यान कर पुष्प श्वेत आसन पर चढ़ा दें :-

शुक्लां ब्रह्मविचारसारपरमामाद्यां जगद्व्यापिनीं वीणापुस्तकधारिणीमभयदां जाड्यान्धकारापहाम् ।

हस्ते स्फाटिकमालिकां विदधतीं पद्मासने संस्थिताम् वन्दे तां परमेश्वरीं भगवतीं बुद्धिप्रदां शारदाम् ॥

जिनका रूप श्वेत है, जो ब्रह्म विचार परम तत्व हैं, जो सब संसार में व्याप रही हैं, जो हाथों में वीणा और पुस्तक धारण किये रहती हैं, अभय देती हैं, मूर्खता रूपी अंधकार को दूर करती हैं, हाथ में स्फटिक मणि की माला लिये रहती हैं, कमल के आसन पर विराजमान हैं और बुद्धि देने वाली हैं, उन आद्या परमेश्वरी भगवती सरस्वती की मैं वंदना करता हूँ ।  फिर ‘ॐ कुबेराय नमः’ इस मंत्र से कुबेर का ध्यान करते हुए अपनी तिजोरी आदि में हल्दी, दक्षिणा, दूर्वा आदि रखें ||

अधिक जानकारी के लिए संपर्क करें शर्मा जी 9312002527,9560518227

उपरोक्त सभी मुहूर्त स्थानीय समय नोएडा के अनुसार है |

अधिक जानकारी के लिए संपर्क करें शर्मा जी 9312002527,9560518227

आप सबको दिवाली की मंगल शुभकामनाएंव हार्दिक बधाई | 

मां लक्ष्मी आपकी सभी मनोकामनाएं पूरी करें |


गुरुवार, 17 अक्टूबर 2024

देव प्रबोधिनी एकादशी कथा

 






देव प्रबोधिनी एकादशी कथा

एक राजा के राज्य में सभी लोग एकादशी का व्रत रखते थे। वहां की प्रजा नौकर-चाकरों से लेकर पशुओं तक को एकादशी के दिन अन्न नहीं दिया जाता था। एक दिन किसी दूसरे राज्य का एक व्यक्ति राजा के पास आकर बोला- महाराज! कृपा करके मुझे नौकरी पर रख लें। तब राजा ने उसके सामने एक शर्त रखी कि ठीक है, रख लेते हैं। लेकिन रोज तो तुम्हें खाने को सब कुछ मिलेगा, पर एकादशी को अन्न नहीं मिलेगा। उस व्यक्ति ने उस समय 'हां' कर ली, पर एकादशी के दिन जब उसे फलाहार का सामान दिया गया तो वह राजा के सामने जाकर गिड़गिड़ाने लगा- महाराज! इससे मेरा पेट नहीं भरेगा। मैं भूखा ही मर जाऊंगा। मुझे खाने के लिए अन्न दे दो।

राजा ने उसे शर्त की बात याद दिलाई, फिर भी वह अपनी बात पर अड़ा रहा और अन्न छोड़ने को राजी नहीं हुआ, तब राजा ने उसे आटा-दाल-चावल आदि दिए। वह नित्य की तरह नदी पर पहुंचा और स्नान कर भोजन पकाने लगा। जब भोजन बन गया तो वह भगवान को बुलाने लगा- आओ भगवान! भोजन तैयार है। उसके बुलाने पर पीताम्बर धारण किए भगवान चतुर्भुज रूप में आ पहुंचे और प्रेम से उसके साथ भोजन करने लगे। भोजनादि करके भगवान अंतर्धान हो गए तथा वह अपने काम पर चला गया। पंद्रह दिन बाद अगली एकादशी को वह राजा से कहने लगा कि महाराज, मुझे दुगुना सामान दीजिए। उस दिन तो मैं भूखा ही रह गया। राजा ने कारण पूछा तो उसने बताया कि हमारे साथ भगवान भी खाते हैं। इसीलिए हम दोनों के लिए ये सामान पूरा नहीं होता। यह सुनकर राजा को बड़ा आश्चर्य हुआ। वह बोला- मैं नहीं मान सकता कि भगवान तुम्हारे साथ खाते हैं। मैं तो इतना व्रत रखता हूं, पूजा करता हूं, पर भगवान ने मुझे कभी दर्शन नहीं दिए।

राजा की बात सुनकर वह बोला- महाराज! यदि विश्वास न हो तो साथ चलकर देख लें। राजा एक पेड़ के पीछे छिपकर बैठ गया। उस व्यक्ति ने हर रोज की तरह भोजन बनाया और भगवान को शाम तक पुकारता रहा, फिर भी भगवान न आए। अंत में उसने कहा- हे भगवान! यदि आप नहीं आए तो मैं नदी में कूदकर प्राण त्याग दूंगा। फिर भी भगवान नहीं आए, तब वह प्राण त्यागने के उद्देश्य से नदी की तरफ बढ़ा। प्राण त्याग ने का उसका दृढ़ इरादा जान शीघ्र ही भगवान ने प्रकट होकर उसे रोक लिया और साथ बैठकर भोजन करने लगे। खा-पीकर वे उसे अपने विमान में बिठाकर अपने धाम ले गए। यह देख राजा ने सोचा कि व्रत-उपवास से तब तक कोई फायदा नहीं होता, जब तक मन शुद्ध न हो। इससे राजा को ज्ञान मिला। वह भी मन से व्रत-उपवास करने लगा और अंत में स्वर्ग को प्राप्त हुआ।

देव प्रबोधिनी एकदशी की कथा

एक नगर में एक राजा था। उसके राज्य में सभी लोग बहुत सुखी थे। उस नगर में एकादशी को कोई भी अन्न नहीं बेचता और न ही कोई अन्न पकाता था। सभी फलाहार करते थे। एक बार भगवान ने राजा की परीक्षा लेनी चाही। भगवान ने एक सुंदरी का रूप धारण किया तथा सड़क पर बैठ गए। तभी राजा उधर से निकला और सुंदरी को देख चकित रह गया। उसने पूछा- हे सुंदरी! तुम कौन हो और इस तरह यहां क्यों बैठी हो? तब सुंदर स्त्री बने भगवान बोले- मैं निराश्रिता हूं। नगर में मेरा कोई जाना-पहचाना नहीं है, किससे सहायता मांगी? राजा उसके रूप पर मोहित हो गया था। वह बोला- तुम मेरे महल में चलकर मेरी रानी बनकर रहो। सुंदरी बोली- मैं तुम्हारी बात मानूंगी, पर तुम्हें राज्य का अधिकार मुझे सौंपना होगा। राज्य पर मेरा पूर्ण अधिकार होगा। मैं जो भी बनाऊंगी, तुम्हें खाना होगा। राजा उसके रूप पर मोहित था, अतः उसकी सभी शर्तें स्वीकार कर लीं। अगले दिन एकादशी थी। रानी ने हुक्म दिया कि बाजारों में अन्य दिनों की तरह अन्न बेचा जाए। उसने घर में मांस-मछली आदि पकवाए और परोस कर राजा से खाने के लिए कहा। यह देखकर राजा बोला- रानी! आज एकादशी है। मैं तो केवल फलाहार ही करूंगा। तब रानी ने शर्त की याद दिलाई और बोली- या तो खाना खाओ, नहीं तो मैं बड़े राजकुमार का सिर काट दूंगी। राजा ने अपनी स्थिति बड़ी रानी से कही तो बड़ी रानी बोली- महाराज! धर्म न छोड़ें, बड़े राजकुमार का सिर दे दें। पुत्र तो फिर मिल जाएगा, पर धर्म नहीं मिलेगा।

इसी दौरान बड़ा राजकुमार खेलकर आ गया। मां की आंखों में आंसू देखकर वह रोने का कारण पूछने लगा तो मां ने उसे सारी बात बता दी। तब वह बोला- मैं अपना सिर देने के लिए तैयार हूं। पिताजी के धर्म की रक्षा होगी, जरूर होगी। राजा दुःखी मन से राजकुमार का सिर देने को तैयार हुआ तो रानी के रूप से भगवान विष्णु ने प्रकट होकर असली बात बताई- राजन! तुम इस कठिन परीक्षा में पास हुए। भगवान ने प्रसन्न मन से राजा से वर मांगने को कहा तो राजा बोला- आपका दिया सब कुछ है। हमारा उद्धार करें। उसी समय वहां एक विमान उतरा। राजा ने अपना राज्य पुत्र को सौंप दिया और विमान में बैठकर परम धाम को चला गया।


बुधवार, 16 अक्टूबर 2024

शरद पूर्णिमा

 


शरद पूर्णिमा...


https://youtu.be/JlsGWN4zTjY

वर्ष के बारह महीनों में ये पूर्णिमा ऐसी है, जो तन, मन और धन तीनों के लिए सर्वश्रेष्ठ होती है। इस पूर्णिमा को चंद्रमा की किरणों से अमृत की वर्षा होती है, तो धन की देवी महालक्ष्मी रात को ये देखने के लिए निकलती हैं कि कौन जाग रहा है और वह अपने कर्मनिष्ठ भक्तों को धन-धान्य से भरपूर करती हैं।

शरद पूर्णिमा का एक नाम 'कोजागरी पूर्णिमा' भी है यानी लक्ष्मी जी पूछती हैं, कौन जाग रहा है? अश्विनी महीने की पूर्णिमा को चंद्रमा अश्विनी नक्षत्र में होता है इसलिए इस महीने का नाम अश्विनी पड़ा है।एक महीने में चंद्रमा जिन 27 नक्षत्रों में भ्रमण करता है, उनमें ये सबसे पहला है और आश्विन नक्षत्र की पूर्णिमा आरोग्य देती है। केवल शरद पूर्णिमा को ही चंद्रमा अपनी सोलह कलाओं से संपूर्ण होता है और पृथ्वी के सबसे ज्यादा निकट भी। चंद्रमा की किरणों से इस पूर्णिमा को अमृत बरसता है आयुर्वेदाचार्य वर्ष भर इस पूर्णिमा की प्रतीक्षा करते हैं। जीवनदायिनी रोगनाशक जड़ी-बूटियों को वह शरद पूर्णिमा की चांदनी में रखते हैं। अमृत से नहाई इन जड़ी-बूटियों से जब दवा बनायी जाती है तो वह रोगी के ऊपर तुंरत असर करती है। चंद्रमा को वेदं-पुराणों में मन के समान माना गया है, 'चंद्रमा मनसो जात:।' वायु पुराण में चंद्रमा को जल का कारक बताया गया है। प्राचीन ग्रंथों में चंद्रमा को औषधीश यानी औषधियों का स्वामी कहा गया है। ब्रह्मपुराण के अनुसार, सोम या चंद्रमा से जो सुधामय तेज पृथ्वी पर गिरता है उसी से औषधियों की उत्पत्ति हुई और जब औषधी 16 कला संपूर्ण हो तो अनुमान लगाइए उस दिन औषधियों को कितना बल मिलेगा। शरद पूर्णिमा की शीतल चांदनी में रखी खीर खाने से शरीर के सभी रोग दूर होते हैं। ज्येष्ठ, आषाढ़, सावन और भाद्रपद मास में शरीर में पित्त का जो संचय हो जाता है, शरद पूर्णिमा की शीतल धवल चांदनी में रखी खीर खाने से पित्त बाहर निकलता है। लेकिन इस खीर को एक विशेष विधि से बनाया जाता है। पूरी रात चांद की चांदनी में रखने के बाद सुबह खाली पेट यह खीर खाने से सभी रोग दूर होते हैं, शरीर निरोगी होता है। शरद पूर्णिमा को रास पूर्णिमा भी कहते हैं। स्वयं सोलह कला संपूर्ण भगवान श्रीकृष्ण से भी जुड़ी है यह पूर्णिमा। इस रात को अपनी राधा रानी और अन्य सखियों के साथ श्रीकृष्ण महारास रचाते हैं। कहते हैं जब वृन्दावन में भगवान कृष्ण महारास रचा रहे थे तो चंद्रमा आसमान से सब देख रहा था और वह इतना भाव-विभोर हुआ कि उसने अपनी शीतलता के साथ पृथ्वी पर अमृत की वर्षा आरंभ कर दी। गुजरात में शरद पूर्णिमा को लोग रास रचाते हैं और गरबा खेलते हैं। मणिपुर में भी श्रीकृष्ण भक्त रास रचाते हैं। पश्चिम बंगाल और ओडिशा में शरद पूर्णिमा की रात को महालक्ष्मी की विधि-विधान के साथ पूजा की जाती है। मान्यता है कि इस पूर्णिमा को जो महालक्ष्मी का पूजन करते हैं और रात भर जागते हैं, उनकी सभी कामनाओं की पूर्ति होती है।ओडिशा में शरद पूर्णिमा को कुमार पूर्णिमा के नाम से मनाया जाता है। आदिदेव महादेव और देवी पार्वती के पुत्र कार्तिकेय का जन्म इसी पूर्णिमा को हुआ था। गौर वर्ण, आकर्षक, सुंदर कार्तिकेय की पूजा कुंवारी लड़कियां उनके जैसा पति पाने के लिए करती हैं।शरद पूर्णिमा ऐसे महीने में आती है, जब वर्षा ऋतु अंतिम समय पर होती है। शरद ऋतु अपने बाल्यकाल में होती है और हेमंत ऋतु आरंभ हो चुकी होती है और इसी पूर्णिमा से कार्तिक स्नान प्रारंभ हो जाता है।

जन्म कुण्डली बनवाने व दिखाने के लिए संपर्क करे- शर्मा जी-  9312002527    

विडिओ देखने के लिए क्लिक करे -

https://youtu.be/mlbXMeQGctI

गुरु, ज्ञान और आध्यात्मिक विकास का स्रोत

  गुरु, ज्ञान और आध्यात्मिक विकास का स्रोत सतीश शर्मा  गुरु पूर्णिमा, आषाढ़ मास की पूर्णिमा को मनाई जाती है, और यह दिन गुरुओं के प्रति सम्मा...