शुक्रवार, 8 मार्च 2024

जानकारी काल मार्च - 2024

 


जानकारी काल 



   वर्ष-24   अंक-10   मार्च - 2024,  

पृष्ठ 48   मूल्य 2-50    www.sumansangam.com    




ॐ हौं जूं सः ॐ भूर्भुवः स्वः 

ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् 

ॐ स्वः भुवः भूः ॐ सः जूं हौं ॐ।

  हम भगवान शिव की पूजा करते हैं, जिनके तीन नेत्र हैं, जो सुगंधित हैं और हमारा पोषण करते हैं। जैसे फल शाखा के बंधन से मुक्त हो जाता है वैसे ही हम भी मृत्यु और नश्वरता से मुक्त हो जाएं।


 प्रधान संपादक व  प्रकाशक

 सतीश शर्मा 


 

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 मोबाइल

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 संपादक मंडल

 सौरभ  शर्मा,

कपिल शर्मा,

गौरव शर्मा,

डॉ अजय प्रताप सिंह,

 करुणा ऋषि, 

डॉ मधु वैध,

राजेश शुक्ल  


प्रकाशक व मुद्रक 

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कृणा नगर नई दिल्ली 110029, A- 214 बुध नगर इन्दर पूरी नई दिल्ली  110012 से प्रकाशित |


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      अनुक्रमणिका


अपनी बात - 3  

परिवार मे व समाज मे समरसता लाना - 4 लेख

डाकोर जी का शंकर - 9 लेख

सच्चा ज्ञान- 11 कहानी 

जीवन का वास्तविक उद्देश्य - 13 कहानी

सतर्कता जरूरी है - 15 लेख

2047 मे भारत के लिए मेरा दृष्टिकोण - 16 लेख 

नारी - 18 कविता 

झोले वाले मास्टर जी - 19 कहानी

माँ की वाणी का मोल - 21 कहानी

सात चिरंजीवी - 22 लेख

भगवान शिवकी अर्ध परिक्रमा का रहस्य - 24 धर्म 

गुलामी की आदत - 25 कहानी

पति पत्नी संबंध- 26 लेख 

मंगलीक दोष विचार- 27 ज्योतिष 

रिश्ते - 28 कविता 

पेट की आग - 29 गजल 

स्वस्थ आलोचना - 30 लेख 

विजया एकादशी - 32 कथा

आमलाकी एकादशी - 33 कथा

पूजा - 34 - कहानी

कद लम्बा करने के उपाय - 36 स्वास्थ्य

मार्च मास के महत्वपूर्ण दिवस-37 जानकारी 

पंचांग - 43 ज्योतिष 

ओट्स के चमत्कारिक गुण- 47 स्वास्थ्य 








अपनी बात 

अद्भिः सर्वाणि भूतानि जीवन्ति प्रभवन्ति च । तस्मात् सर्वेषु दानेषु तयोदानं विशिष्यते ।।

 संसार में जल से ही समस्त प्राणियों को जीवन मिलता है। जल का दान करने से प्राणियों की तृप्ति होती है। जल में अनेक दिव्य गुण हैं। ये गुण परलोक में भी लाभ प्रदान करते हैं

पानी नहीं 'जहर' पी रहे हैं हम! देशभर से आए ये आंकड़े चौंकाते ही नहीं, डराते भी हैं प्रदूषित पानी पीने से कैंसर और नर्वस सिस्टम से जुड़ी बीमारियां होने का खतरा बढ़ जाता है.आज के समय में हम पानी तो पी रहे हैं, लेकिन वो 'जहर' बन चुका है. ये बात सरकार ने संसद में मानी है. सरकार ने राज्यसभा में जो आंकड़े दिए हैं, वो सिर्फ चौंकाते ही नहीं है, बल्कि डराते भी हैं. ये आंकड़े डराते हैं कि हम अब तक जो पानी पीते आ रहे हैं, वो 'जहरीला' है. क्योंकि, देश के लगभग सभी राज्यों के ज्यादातर जिले ऐसे हैं, जहां ग्राउंड वाटर में जहरीली धातुओं की मात्रा तय मानक से ज्यादा पाई गई है.25 राज्यों के 209 जिलों के कुछ हिस्सों में ग्राउंड वाटर में आर्सेनिक की मात्रा 0.01 मिलिग्राम प्रति लीटर से ज्यादा है.29 राज्यों के 491 जिलों के कुछ हिस्सों में ग्राउंड वाटर में आयरन की मात्रा 1 मिलिग्राम प्रति लीटर से ज्यादा है. 21 राज्यों के 176 जिले ऐसे हैं, जहां के कुछ हिस्सों में ग्राउंड वाटर में सीसा तय मानक 0.01 मिलिग्राम प्रति लीटर से ज्यादा है. 11 राज्यों के 29 जिलों के कुछ हिस्सों में ग्राउंड वाटर में कैडमियम की मात्रा 0.003 मिलिग्राम प्रति लीटर से ज्यादा पाई गई है. 16 राज्यों के 62 जिलों के कुछ हिस्सों में ग्राउंड वाटर में क्रोमियम की मात्रा 0.05 मिलिग्राम प्रति लीटर से ज्यादा मिली है. वहीं, 18 राज्यों के 152 जिले ऐसे हैं जहां के कुछ हिस्सों में ग्राउंट वाटर में यूरेनियम 0.03 मिलिग्राम प्रति लीटर से ज्यादा पाया गया है. 80% आबादी को जहरीला पानी! जल शक्ति मंत्रालय के एक दस्तावेज के मुताबिक, देश की 80 फीसदी से ज्यादा आबादी को पानी ग्राउंड वाटर से ही मिलता है. लिहाजा, ग्राउंड वाटर में खतरनाक धातुओं की मात्रा तय मानक से ज्यादा होने का मतलब है कि पानी 'जहर' बन रहा है.यहां जीवन का अधिकार के तहत ये माना जाता है कि हरेक नागरिक को साफ हवा और पानी मिलना चाहिए. इसके अलावा, भारतीय संविधान की धारा 48-ए में कहा गया कि यह सरकार की जिम्मेदारी है कि वो पर्यावरण, यानी जंगल, वाइल्ड एनिमल्स और पानी में रहने वाले जीवों की सुरक्षा पक्की करे. ऐसे में अगर किसी की वजह से इसमें कोई रुकावट आए तो दोषी को सजा मिल सकती है, लेकिन ऐसे मामले कम ही आते हैं. जंगल को नुकसान पहुंचाने पर भी सख्त सजा और जुर्माना नहीं है.विश्व में बढ़ रही जनसंख्या, वायरस संकट, और आर्थिक संघर्षों ने समृद्धि की दिशा में चुनौतियों को बढ़ा दिया है। साथ ही, प्राकृतिक आपदाएं और जलवायु परिवर्तन के परिणामस्वरूप आपदा क्षेत्रों में भी बदलाव आया है।इसके बावजूद, लोग आपसी सहयोग और आपसी समझ के माध्यम से समस्याओं का सामना कर रहे हैं और नए समाधानों की खोज में जुट रहे हैं। इस युग में आपसी समरसता और विकास के लिए सामूहिक प्रयास हमारी जीवनशैली को सुनिश्चित रूप से परिभाषित कर रहे हैं।





परिवार व समाज में समरसता लाना

 वासुदेव प्रजापति

पूर्व अध्याय में हमने हीनताबोध और उसका स्वरूप क्या है? यह समझा और उससे मुक्त होने के लिए मनोवैज्ञानिक उपाय करने की आवश्यकता भी अनुभव की। कुछ पाठकों को लगा होगा कि ये मनोवैज्ञानिक उपाय तो सामान्य रूप से निकृष्ट माने जाते हैं, फिर ऐसे निकृष्ट उपाय क्यों करना चाहिए? जब सीधी उंगली से घी नहीं निकलता तब उंगली टेड़ी करनी पड़ती है। जब बौद्धिक उपाय निष्फल होते हैं तो मनोवैज्ञानिक उपाय करने ही पड़ते हैं। ऐसे उपाय शीघ्र परिणामकारी भी होते हैं।

ये उपाय तो पाश्चात्यीकरण के प्रभाव से उत्पन्न हुए हीनताबोध के लिए हैं। किन्तु अंग्रेजों ने हमारे परिवार व समाज में जो फूट डाली है, उसके लिए ये उपाय नहीं हो सकते। उस फूट को मिटाकर परिवार और समाज में समरसता निर्माण करने हेतु हमें भिन्न स्वरूप के उपाय करने होंगे। क्योंकि यह तो हमारी अपनी ही नासमझी का विषय है, अपने ही अवगुणों को दूर करने का विषय है। इसलिए हमें अपने ही उपाय करने होंगे।

स्त्री-पुरुष समानता का विषय

सबसे पहला विषय स्त्री व पुरुष की समानता का है। इस विषय ने हमारे परिवारों में दरार पैदा कर दी है। परिवार विघटित हो गए हैं, इस विघटन से एक बड़ी हानि यह हुई है कि हमारी संस्कृति का एक प्रभावी आलम्बन ही समाप्त हो गया। अंग्रेजों ने हमारे देश के स्त्री-पुरुषों को शिक्षा के माध्यम से स्त्री-पुरुष समानता की पाश्चात्य भ्रान्त संकल्पना समान रूप से दी जो परिवारों के विघटन का प्रमुख कारण बनी है। दासता के कालखण्ड में स्त्रियों पर अत्याचार भी हुए, उन्हें आश्रित रहने के कारण 





हीनता का दंश भी झेलना पड़ा, यह सत्य है। परन्तु समानता लाने के जो उपाय किए गए और आज भी किए जा रहे हैं, वे पारिवारिक सन्तुलन बनाने वाले नहीं अपितु बिगाड़ने वाले ही सिद्ध हुए हैं।

स्त्रियों का पुरुष जैसा बनने की होड़

समानता लाने के उपायों में आज स्त्रियों को पुरुष जैसा बनना अच्छा लगता है। पुरुष जो काम करते हैं, वे सभी काम करने में और उनसे भी आगे निकलने में गर्व का अनुभव होता है। स्त्रियाँ ये सब करें, इसमें पुरुषों को कोई आपत्ति नहीं हैं। परन्तु भारत की करोड़ों स्त्रियों को ऐसी शिक्षा और ऐसे अवसर नहीं दिये जा सकते। ऐसा करना कितना ही आवश्यक लगता हो तब भी व्यावहारिक स्तर पर यह सम्भव नहीं है। इसके साथ यह भी विचार करना चाहिए कि ऐसा मानने से और करने से स्त्री-पुरुष समानता सिद्ध नहीं होती अपितु पुरुष का श्रेष्ठत्व ही सिद्ध होता है। स्त्री को पुरुष जैसा बनने की, करके दिखाने की चुनौती स्वीकारनी पड़ती है। वह स्वीकार कर भी लेती है परन्तु उससे सिद्ध तो यही होता है कि पुरुष श्रेष्ठ है।

यदि पुरुष श्रेष्ठ नहीं होता तो स्त्री पुरुष जैसा क्यों बनना चाहती है? स्त्री का पुरुष जैसा बनने का परिणाम यह होगा कि समाज स्त्री विहीन हो जायेगा, सम्पूर्ण समाज में अकेले पुरुष ही होंगे। स्त्री देह में भी पुरुष ही बैठा मिलेगा, शारीरिक और जैविक स्तर भी एक स्त्री वृत्ति में, कार्य में तथा व्यवहार में पुरुष ही होगी। इस प्रकार समाज में स्त्री देहधारी पुरुष ऐसी एक नई प्रजाति का उदय होगा, जो स्वस्थ समाज के लिए किसी भी दृष्टि से उचित नहीं होगा। एक सभ्य व संस्कारित समाज में स्त्री व पुरुष दोनों का समान संख्या में होना नितान्त आवश्यक है। स्त्रियों को स्त्रियों के रूप में समान मानना, स्त्रियों के गुणों का आदर करना तथा स्त्रीत्व एक अमूल्य सम्पत्ति है यह मानकर उसकी रक्षा करना ही सही उपाय है।

परिवारों को सुदृढ़ करना

परिवार समाज की प्रथम ईकाई है। यह प्रथम ईकाई जितनी सुदृढ़ होगी उतना ही समाज सुदृढ़ होगा। इसलिए हमें इन परिवारों को स्त्री कन्द्री बनाना होगा। हमें इन परिवारों को कार्यालयों, कारखानों और मंत्रालयों से अधिक महत्वपूर्ण मानकर शेष बातों की रचना करनी होगी। जैसे परिवार शिक्षा के विविध आयामों को विधिवत पाठ्यक्रम व पठन-पाठन सामग्री की सहायता से मुख्य प्रवाह की शिक्षा के साथ में अथवा उसके समानान्तर चलाना होगा। युवक व युवतियों के मानस परिवार बनाने के अनुकूल गढ़ने होंगे। फलतः विवाह की आयु कम होगी, जन्म लेने वाले बच्चे भी स्वस्थ होंगे। युवक-युवतियों में गृहस्थ व गृहिणी बनने की चाह जगानी होगी। विवाह को अर्थार्जन से अधिक वरीयता देनी होगी।

व्यावहारिक दृष्टि से विचार करके लड़के व लड़कियों को अर्थार्जन की पात्रता निर्माण करने का कार्य पहले करना चाहिए। यह पात्रता दोनों में समान रूप से निर्माण करनी चाहिए, परन्तु अर्थार्जन शुरु करने से पहले विवाह कर लेना चाहिए। बाद में पति-पत्नी दोनों को मिलकर एक साथ अर्थार्जन करना चाहिए। इतना अवश्य ध्यान रखना चाहिए कि अर्थार्जन एक दूसरे से स्वतन्त्र रहकर अलग-अलग नहीं 






करना चाहिए। किसी भी परिस्थिति में जब तक कोई घोर विपत्ति न आ जाये, तब तक पति-पत्नी को एक दूसरे के साथ ही रहना चाहिए, अलग-अलग रहना अच्छा नहीं मानना चाहिए। दोनों का साथ मिलकर घर चलाने से कुछ समय उपरान्त अपने आप ध्यान में आने लगता है कि दोनों को समान रूप से अर्थार्जन करने में कोई सुविधा नहीं है और बहुत अधिक आवश्यकता भी नहीं है। उधर परिवार दुर्लक्षित होता है, वह अलग। इसलिए समझदारी इसी में है कि एक अर्थार्जन करे और दूसरा घर चलाए, यह मानकर कि घर चलाना अर्थार्जन से अधिक महत्वपूर्ण कार्य है।

स्त्री-पुरुष समानता या समरसता

स्त्री-पुरुष के समान हों और उसे सम्मान मिले, इससे भी बढ़कर स्त्री व पुरुष में समरसता हो यह अधिक महत्वपूर्ण विषय है। दोनों में समरसता स्थापित होने पर अधिकार, समानता व श्रेष्ठता जैसी बातें ही खड़ी नहीं होती। समरसता प्रेम के आधार पर बनती है, इसके संस्कार घर में ही होते हैं। विद्यालयों में यह शिक्षा नहीं दी जा सकती। सन्तानों को इसके संस्कार देने हेतु माता के सम्बन्ध की प्रेरणा महत्वपूर्ण कारक है। माता से समरसता के अनेक प्रश्नों के उत्तर सरलता से मिल जाते हैं।

स्त्री-पुरुष समरसता के बाद बेटे-बेटी का सही लालन-पालन भावी पीढ़ी के सर्व प्रकार के स्वास्थ्य की दृष्टि से महत्वपूर्ण विषय है। पति-पत्नी की समरसता से  संतानों के लालन-पालन की सही दृष्टि प्राप्त होती है। इसके साथ-साथ दो पीढ़ियों की समरसता भी महत्वपूर्ण मुद्दा है। जन्म लेने वाली सन्तान को पिता की चौदह पीढ़ियों और माता की पाँच पीढ़ियों को साथ जोड़कर हमारे शास्त्रों ने समरसता स्थापित करने का महती कार्य किया है। हमारे संस्कार सिद्धान्त में भी समरसता को ही प्रस्थापित किया गया है। ये सारे प्रयास कृति के नहीं है, जैविक और मानसिक स्तर के जो तथ्य हैं उन्हें निरूपित किया है। आज हमने इनकी उपेक्षा की है इसलिए अनेक संकट निर्माण हुए हैं।






सामाजिक समरसता का विषय

पारिवारिक समरसता के समान ही सामाजिक समरसता का विषय भी महत्वपूर्ण है। आज वर्णद्वेष के रूप में बहुत बड़ा संकट हमारे सामने है। एक समय वह भी था जब वर्णव्यवस्था भारतीय समाज का आधार स्तम्भ थी। परन्तु आज वह पूर्णरूपेण विकृत हो गई है। वर्ण के साथ जाति संस्था भी उलझ गई है, जबकि ये दोनों परस्पर जुड़ी हुई हैं। वर्ण और जाति का आपसी सम्बन्ध, दोनों की व्यवस्था, दोनों का प्रयोजन अत्यन्त अस्पष्ट हो गया है। ये दोनों संस्थाएँ इतनी पुरानी और समाज के मानस में इतनी गहरी पैठ बनाये हुए है कि वे जाती ही नहीं है, लोग इन्हें भूलते भी नहीं हैं। अंग्रेजों ने विभिन्न वर्णों के मध्य द्वेष पैदा करने का सफल प्रयत्न किया है, जो उस समय से लेकर आज तक समस्या बनी हुई है। आज वर्णद्वेष एक भीषण रोग बन गया है। राजनीतिक दलों ने अपने स्वार्थों की पूर्ति हेतु इसे बनाए रखने और बढ़ाने हेतु आग में घी डालने का कार्य किया है। क्योंकि राजनीतिक दलों के लोग भले ही भारतीय हों परन्तु वे उसी व्यवस्था में पले-बढ़े हैं जिसे अंग्रेजों ने स्थापित किया था। इसलिए इनकी सोच भी वही है जो अंग्रेजों की थी।

आज वर्ण और जाति व्यवस्था इतनी अधिक विकृत हो गई है कि उसको कैसे सुधारा जाये, कुछ भी समझ में नहीं आ रहा है। अनेक अविवेकी लोग विकृति को दूर करने के स्थान पर वर्ण एवं जाति व्यवस्था को ही नष्ट करने की बात करते हैं। दूसरी और उतने ही अविवेकी लोग वर्ण और जाति की उसी प्राचीन व्यवस्था को पुनर्जीवित करने की बात करते हैं। परन्तु ऐसा करने से न व्यवस्था समाप्त होती है, न विकृति सुधरती है और न वह पुनर्जीवित ही होती है। आवश्यकता है समरसता स्थापित करने की। केवल मनोरथ करने से समरसता स्थापित नहीं होती, उसके लिए कोई व्यावहारिक चरणबद्घ योजना होनी चाहिए। वैसे सरकार ने आरक्षण की व्यवस्था की है, परन्तु जब तक सामाजिक स्तर पर उसके अनुकूल मनोवैज्ञानिक उपाय नहीं किए जायेंगे तब तक आरक्षण जैसी अन्य व्यवस्थाएँ कर लेने के बाद भी समस्या ज्यों की त्यों बनी रहेंगी।

समरसता निर्माण हेतु पहल करना

समरसता निर्माण करने की पहल ब्राह्मणों को करनी होगी। इसके लिए पहले ब्राह्मणों का मानस बनाना होगा। आज ब्राह्मणों का ब्राह्मणत्व उपनयन व पौरोहित्य में ही सिमटकर रह गया है। अनेक ब्राह्मण इन दोनों कार्यों को छोड़ भी चुके हैं तथापि जन्म से जो वर्ण प्राप्त हुआ है उसका गर्व छोड़ नहीं पाए हैं। वह गर्व उनके अंग विन्यास, भाषा और व्यवहार में प्रकट होता है, उसका उपाय करना होगा। यह उपाय ब्राह्मणों को ही करना होगा क्योंकि और कोई कर नहीं सकता।

समाज को ब्राह्मण तो चाहिए परन्तु अध्ययन करने वाला, ज्ञान को न बेचने वाला अर्थात् निशुल्क पढ़ाने वाला, समाज हित के लिए यज्ञ करने तथा करवाने वाला, तप करने वाला, शुद्ध व पवित्र आचार-विचार वाला ब्राह्मण चाहिए। परन्तु आज के ब्राह्मण ने अपने आचार और जीवनकार्य (मिशन) दोनों का त्याग कर दिया है, फिर भी ब्राह्मण होने का गर्व करते हैं जो क्षमा के योग्य भी नहीं हैं।






एक नई व्यवस्था देनी होगी

एक नए सूत्र पर विचार करना चाहिए। जो जिस वर्ण के आचार और व्यवसाय अपनाता है, वह उस वर्ण का माना जायेगा। वर्ण व्यवसाय के आधार पर बनाए जाएँ और उसके अनुरूप आचार भी वह अपनाएँ। जिसे जो वर्ण अपनाना है, वह उसके व्यवसाय को अपना सकता है। परन्तु व्यवसाय अपनाने के साथ आचार नहीं अपनाया तो नहीं चलेगा। इस नई व्यवस्था में वर्णों के पुराने नामों के स्थान पर नए नाम देने चाहिए। उदाहरण के लिए वर्णों के नाम – डॉक्टर, इंजीनियर, शिक्षक, व्यापारी व कारीगर हो सकते हैं। ऐसी व्यवस्था देने वाले किसी भी तरह सत्ता, पद, मान व पुरस्कार आदि से जुड़े हूए न हों, वे पूर्ण रूप से निष्पक्ष हों, ऐसा आवश्यक रूप से होना ही चाहिए। यह नई व्यवस्था व्यावहारिक व अनुसरणीय भी होनी चाहिए।

अस्पृश्यता भारतीय समाज का कलंक है, वह समरसता का बड़ा अवरोधक है। आज सार्वजनिक स्थान व समारोह में अस्पृश्यता दिखाई नहीं देती परन्तु वह परिस्थितिजन्य विवशता है, मन से अस्पृश्यता अभी तक नहीं गई है। इसका उपाय भी बड़ों के पास ही है। जिन्हें समाज को समरस बनाना है वे ही भेदभाव करते हैं। इसलिए समरसता की समस्या आज तक बनी हुई है। अस्पृश्यता निवारण के लिए हमारे देश के अनेक महापुरुषों ने प्रयास किये हैं। ऐसा ही एक संस्मरण हम अपनी कृति में लायें, इसी दृष्टि से यहाँ दिया जा रहा है।

समरसता का एक ठोस उदाहरण

बात सन् 1950 ई. की है। महाराष्ट्र के पुणे में संघ का ग्रीष्मकालीन प्रशिक्षण शिविर लगा हुआ था। एक दिन की बात है, भोजन के लिए सभी स्वयंसेवक पंक्तिबद्ध बैठे हुए थे। एक पंक्ति में परम पूजनीय श्रीगुरुजी, अतिथि एवं वरिष्ठ कार्यकर्ता बैठे हुए थे। गुरुजी ने देखा भोजन वितरण करने वाले स्वयंसेवकों मे से एक स्वयंसेवक वितरण नहीं कर रहा है। श्रीगुरुजी तुरन्त उसके पास गए और उससे वितरण न करने का कारण पूछा। उस स्वयंसेवक ने बड़े संकोच के साथ उत्तर दिया कि वह जाति से मोची है, इसलिए …..। श्रीगुरुजी को यह सुनकर बड़ा दुख हुआ। उन्होंने उस दिन बनी मिठाई जलेबी का पात्र लिया और उस तथाकथित अस्पृश्य स्वयंसेवक के हाथ में थमाया। वे उस स्वयंसेवक को लेकर अपनी थाली के पास आए और बोले, “सबसे पहले मेरी थाली में जलेबी परोसो फिर पंक्ति में बैठे सभी स्वयंसेवकों को परोसते चलो।” उस मोची जाति के स्वयंसेवक ने ऐसा ही किया। श्रीगुरुजी का ऐसा वास्तविक और व्यावहारिक मार्गदर्शन मिलने से इस समस्या का तत्काल समाधान हो गया। जब बड़े लोग अपने जीवन में सामाजिक समरसता के वास्तविक उदाहरण रखते हैं तब समरसता विवशता नहीं होती अपितु मन में बसती है।

(लेखक शिक्षाविद् है, भारतीय शिक्षा ग्रन्थमाला के सह संपादक है और विद्या भारती संस्कृति शिक्षा संस्थान के सचिव है।)






डाकोर जी का शंकर

गोपाल माहेश्वरी

वीरों की गाथाएँ सुनकर वीरोचित मानस बनता है।

मातृभूमि पर बलि होने का बच्चों में साहस ठनता है।।

कहानियाँ तो प्रायः सभी बच्चे सुनते हैं लेकिन सारे बच्चे यह नहीं जानते कि कहानियाँ केवल मनोरंजन नहीं होती हैं बल्कि कहानियाँ हमारे कोमल मन को भविष्य के लिए पक्का बना रही होती हैं। हम जैसी कहानी सुनेंगे, उसकी घटनाएँ आगे चल कर हमारा संस्कार बन जाएँगी। कहानियों का बाल मन पर कैसा प्रभाव रहता है, यह जानना हो तो एक सच्ची घटना बताता हूँ।

एक था शंकर। गुजरात के डाकोर गाँव में रहने वाला। उसके पिता नदी पर जाकर लोगों के कपड़े धोया करते थे। नाम था डाह्या भाई। नन्हा शंकर पिता के पास जब भी होता, कहानी सुनाने का आग्रह करता और वे उसे मना भी नहीं करते। पर वे कहानियाँ परियों की, जादूगर की या मनोरंजन भरी कहानियाँ न होकर देश के लिए बलिदान होने वाले स्वतंत्रता सेनानियों की सच्ची कहानियाँ होती थीं। उस समय सारे देश का वातावरण ही कुछ ऐसा था कि हर भारतीय स्वतंत्रता पाने के लिए मचल उठा था। बलिदान देने की होड़ लगी हुई थी।

उस रात डाह्या भाई धोबी घाट से खूब थके हुए लौटे थे, पर शंकर ने आग्रह किया तो वे कहानी सुनाने लगे अमर शहीद भगत सिंह की। कहानी सुनकर शंकर पूछ बैठा, “शाला में गुरुजी कहते हैं कि जिसने भी जन्म लिया है वह मरता ही है। फिर फाँसी पर चढ़ कर भी भगत सिंह अमर कैसे हुए?”

“बेटा! जो महान उद्देश्य के लिए, अपने देश-धर्म के लिए मरते हैं, वे मर जाने पर भी कई पीढ़ियों तक 





याद रखे जाते हैं इसीलिये अमर कहलाते हैं” और पिता ने ऐसे अनेक महापुरुषों के नाम गिनाए जो अमर कहलाते हैं।

रात को कहानी सुनते समय प्रायः नींद आने लगती है पर शंकर के मन में तो जैसे चैतन्य का विस्फोट हुआ हो, वह एकदम अत्यन्त उत्साह से उठकर खड़ा हुआ और पिता से बोला “बापू! अगर मैं अंग्रेजों को मार भगाऊँ तो मैं भी अमर हो जाऊँगा?”

आजादी के आन्दोलन से डाकोर गाँव अछूता न था। वहाँ भी समय-समय पर जनता को जगाने और फिरंगियों को भगाने की बातों और योजनाओं वाली सभाएं होती रहती थीं और डाह्या भाई उनमें जाते भी थे। वे देश की वर्तमान परिस्थिति में अपने बच्चे के विचार सुनकर गर्व से भर उठे। बोले, “अवश्य, डीकरा! तू अंग्रेजों को भगाएगा तो लोग तुझे हमेशा याद रखेंगे। तू जरूर अमर बनेगा।” बाप ने बेटे को बाहों में समेट कर खूब लाड़ किया। धन्य हैं ऐसे पिता, जो अपनी संतानों को मातृभूमि की रक्षा की दीक्षा देते हैं।

नन्हा शंकर अब चौदहवें वर्ष में प्रवेश कर चुका था। उधर 9 अगस्त को महात्मा गाँधी ने ‘अंग्रेजों भारत छोड़ो’ का नारा बुलंद कर देशभर को ‘करो या मरो’ का मंत्र दे दिया था। आन्दोलन तो एक प्रत्यक्ष माध्यम था, स्वतंत्रता पाने की छटपटाहट तो भारतवासियों में 1857 से ही तेज हो उठी थी।

डाकोर ग्राम में भी जुलूस निकला। हाथों में तिरंगा थामे शंकर भी पिता के साथ देशभक्ति के नारे लगाता जुलूस में सम्मिलित हुआ। पुलिस बल थोड़ा था और जनता का उत्साह अपार। भीड़ को रोकने आयी पुलिस भीड़ के हाथों अपनी बन्दूकें भी गँवा चुकी थी। सदैव पीटने वाले आज पिट रहे थे। शंकर के हाथों के झण्डे का डण्डा भी जमकर चला। अहिंसक नीति के पक्षधर एक स्वयंसेवक छोटा भाई ने लोगों को रोककर पुलिस वालों की बन्दूकें वापस दिलवाईं और उन्हें सुरक्षित भगाने में सहायता की। दुष्टों पर दया दिखाने का दुष्परिणाम भी तुरंत मिला। कुछ ही समय में भारी पुलिस दल निहत्थे ग्रामवासियों को गोलियों से भून रहा था। छोटा भाई भी उन गोलियों से बच न सके।

इस हत्याकाण्ड का विरोध करने पर भारी प्रदर्शन हुआ कैरा (जिला स्थान) में। शंकर तो अति उत्साहित था ही। माँ ने रोका “बेटा! वहाँ बहुत पुलिस होगी। तुम छोटे हो।”

“छोटा हूँ तो क्या, उस दिन पुलिस वालों की पिटाई नहीं कर सका था?” वह पिता के साथ जाने की ठान चुका था।

कैरा के उस प्रदर्शन में सैकड़ों पुलिस वाले बन्दूकें ताने सामने खड़े थे और हजारों देशभक्त ‘भारत माता की जय’, ‘अंग्रेजों भारत छोड़ो’, ‘महात्मा गाँधी की जय’ के नारे लगाते समुद्र की तूफानी लहरों की तरह आगे बढ़ रहे थे। हाथों में तिरंगा लिये शंकर भी पहली पंक्ति में आगे बढ़ रहा था। गोलियाँ चलती गईं, लाशें बिछती गईं। शंकर को आज छोटी सी आयु में ही ‘अमर’ होने का अवसर मिल गया था। वह चल पड़ा था शहीद शिरोमणि भगत सिंह से मिलने स्वर्ग की ओर।

(लेखक इंदौर से प्रकाशित ‘देवपुत्र’ बाल मासिक पत्रिका के कार्यकारी संपादक है।)


 सच्चा ज्ञान

एक संन्यासी ईश्वर की खोज में निकला और एक आश्रम में जाकर ठहरा।पंद्रह दिन तक उस आश्रम में रहा, फिर ऊब गया। उस आश्रम के जो बुढे गुरु थे वह कुछ थोड़ी सी बातें जानते थे,रोज उन्हीं को दोहरा देते थे।फिर उस युवा संन्यासी ने सोचा,'यह गुरु मेरे योग्य नहीं, मैं कहीं और जाऊं। यहां तो थोड़ी सी बातें हैं, उन्हीं का दोहराना है।कल सुबह छोड़ दूंगा इस आश्रम को, यह जगह मेरे लायक नहीं।'लेकिन उसी रात एक ऐसी घटना घट गई कि फिर उस युवा संन्यासी ने जीवन भर वह आश्रम नहीं छोड़ा। क्या हो गया?दरअसल रात एक और संन्यासी मेहमान हुआ।रात आश्रम के सारे मित्र इकट्ठे हुए, सारे संन्यासी इकट्ठे हुए, उस नये संन्यासी से बातचीत करने और उसकी बातें सुनने।उस नये संन्यासी ने बड़ी ज्ञान की बातें कहीं, उपनिषद की बातें कहीं, वेदों की बातें कहीं।वह इतना जानता था, इतना सूक्ष्म उसका विश्लेषण था, ऐसा गहरा उसका ज्ञान था कि दो घंटे तक वह बोलता रहा। सबने मंत्रमुग्ध होकर सुना।उस युवा संन्यासी के मन में हुआ,'गुरु हो तो ऐसा हो। इससे कुछ सीखने को मिल सकता है। एक वह गुरु है, वह चुपचाप बैठे हैं, उन्हे कुछ भी पता नहीं।अभी सुन कर उस बूढ़े के मन में बड़ा दुख होता होगा, पश्चात्ताप होता होगा, ग्लानि होती होगी—कि मैंने कुछ न जाना और यह अजनबी संन्यासी बहुत कुछ जानता है।'युवा संन्यासी ने यह सोचा कि'आज वह बूढ़ा गुरु अपने दिल में बहुत—बहुत दुखी, हीन अनुभव करता होगा।'तभी उस आए हुए संन्यासी ने बात बंद की और बूढ़े गुरु से पूछा कि- "आपको मेरी बातें कैसी लगीं?"बूढे गुरु खिलखिला कर हंसने लगे और बोले-"तुम्हारी बातें? मैं दो घंटे से सुनने की कोशिश कर रहा हूँ तुम तो कुछ बोलते ही नहीं हो। तुम तो बिलकुल भी बोलते ही नहीं हो।"वह संन्यासी बोला-"मै दो घंटे से मैं बोल रहा हूं आप पागल तो नहीं हैं! और मुझसे कहते हैं कि मैं बोलता नहीं हूँ।"वृद्ध ने कहा- "हां, तुम्हारे भीतर से गीता बोलती है, उपनिषद बोलता है, 





वेद बोलता है, लेकिन तुम तो जरा भी नहीं बोलते हो। तुमने इतनी देर में एक शब्द भी नहीं बोला!एक शब्द तुम नहीं बोले, सब सीखा हुआ बोले, सब याद किया हुआ बोले, जाना हुआ एक शब्द तुमने नहीं बोला।इसलिए मैं कहता हूं कि तुम कुछ भी नहीं बोलते हो, तुम्हारे भीतर से किताबें बोलती हैं।'वास्तव में एक ज्ञान वह है जो उधार है, जो हम सीख लेते हैं। ऐसे ज्ञान से जीवन के सत्य को कभी नहीं जाना जा सकता।जीवन के सत्य को केवल वे जानते हैं जो उधार ज्ञान से मुक्त होते हैं।हम सब उधार ज्ञान से भरे हुए हैं।हमें लगता है कि हमें ईश्वर के संबंध में पता है। पर भला ईश्वर के संबंध में हमें क्या पता होगा जब अपने संबंध में ही पता नहीं है? हमें मोक्ष के संबंध में पता है। हमें जीवन के सभी सत्यों के संबंध में पता है। और इस छोटे से सत्य के संबंध में पता नहीं है जो हम हैं!अपने ही संबंध में जिन्हें पता नहीं है, उनके ज्ञान का क्या मूल्य हो सकता है?लेकिन हम ऐसा ही ज्ञान इकट्ठा किए हुए हैं। और इसी ज्ञान को ज्ञान समझ कर जी लेते हैं और नष्ट हो जाते हैं।आदमी अज्ञान में पैदा होता है और मिथ्या ज्ञान में मर जाता है, ज्ञान उपलब्ध ही नहीं हो पाता।दुनिया में दो तरह के लोग हैं,एक अज्ञानी और एक ऐसे अज्ञानी जिन्हें ज्ञानी होने का भ्रम है। तीसरी तरह का आदमी मुश्किल से कभी-कभी जन्मता है। लेकिन जब तक कोई तीसरी तरह का आदमी न बन जाए, तब तक उसकी जिंदगी में न सुख हो सकता है, न शांति हो सकती है।अतः अपनें भीतर की आभा से अवगत होनें हेतु एक मात्र आवलम्बन है, सद्गुरु की शरण में विह्वल प्रार्थना...!!

भगवान शिव के अचूक मंत्र 

ॐ अघोराय नम:, ॐ शर्वाय नम:, 

ॐ विरूपाक्षाय नम:, ॐ विश्वरूपिणे नम:, 

ॐ त्र्यम्बकाय नम:, ॐ कपर्दिने नम:, 

ॐ भैरवाय नम:, ॐ शूलपाणये नम:, 

ॐ ईशानाय नम:, ॐ महेश्वराय नम:

भगवान शिव को प्रसन्न करने के अत्यंत सरल और अचूक मंत्र है ये यदि  इन मंत्रों का प्रतिदिन रुद्राक्ष की माला से जप करे तो जीवन की सभी समस्याओ का निवारण हो जाता है।

मंत्र का जप पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके करना चाहिए तभी इसका पूरा लाभ होगा । जप के पूर्व शिवजी को बिल्व पत्र अर्पित करना या उनके ऊपर जलधारा चढानी  चाहिए। भगवान शंकर का पंचाक्षर मंत्र ॐ नमः शिवाय ही अमोघ एवं मोक्षदायी है, किंतु विषम काल में यदि भक्त पर कोई कठिन व्याधि या समस्या आन पड़े तब श्रद्धापूर्वक ‘ॐ नमः शिवाय शुभं शुभं कुरू कुरू शिवाय नमः ॐ’ के मंत्र का एक लाख जप करना चाहिए।

 यह बड़ी से बड़ी समस्या और विघ्न को टाल देता है।


जीवन का वास्तविक उद्देश्य

कुलदीप कुमार  

राजा परीक्षित को श्रीमद्भागवत पुराण सुनातें हुए जब शुकदेव जी महाराज को छह दिन बीत गए और तक्षक ( सर्प ) के काटने से मृत्यु होने का एक दिन शेष रह गया, तब भी राजा परीक्षित का शोक और मृत्यु का भय दूर नहीं हुआ।अपने मरने की घड़ी निकट आती देखकर राजा का मन क्षुब्ध हो रहा था।तब शुकदेव जी महाराज ने परीक्षित को एक कथा सुनानी आरंभ की।राजन ! 

बहुत समय पहले की बात है, एक राजा किसी जंगल में शिकार खेलने गया। संयोगवश वह रास्ता भूलकर बड़े घने जंगल में जा पहुँचा। उसे रास्ता ढूंढते-ढूंढते रात्रि पड़ गई और भारी वर्षा पड़ने लगी। जंगल में सिंह व्याघ्र आदि बोलने लगे। वह राजा बहुत डर गया और किसी प्रकार उस भयानक जंगल में रात्रि बिताने के लिए विश्राम का स्थान ढूंढने लगा।रात के समय में अंधेरा होने की वजह से उसे एक दीपक दिखाई दिया।वहाँ पहुँचकर उसने एक गंदे बहेलिये की झोंपड़ी देखी । वह बहेलिया ज्यादा चल-फिर नहीं सकता था, इसलिए झोंपड़ी में ही एक ओर उसने मल-मूत्र त्यागने का स्थान बना रखा था।अपने खाने के लिए जानवरों का मांस उसने झोंपड़ी की छत पर लटका रखा था।बड़ी गंदी, छोटी, 

अंधेरी और दुर्गंधयुक्त वह झोंपड़ी थी।उस झोंपड़ी को देखकर पहले तो राजा ठिठका, लेकिन पीछे उसने सिर छिपाने का कोई और आश्रय न देखकर उस बहेलिये से अपनी झोंपड़ी में रात भर ठहर जाने देने के लिए प्रार्थना की।





बहेलिये ने कहा कि आश्रय के लोभी राहगीर कभी-कभी यहाँ आ भटकते हैं। मैं उन्हें ठहरा तो लेता हूँ, लेकिन दूसरे दिन जाते समय वे बहुत झंझट करते हैं।इस झोंपड़ी की गंध उन्हें ऐसी भा जाती है कि फिर वे उसे छोड़ना ही नहीं चाहते और इसी में ही रहने की कोशिश करते हैं एवं अपना कब्जा जमाते हैं।ऐसे झंझट में मैं कई बार पड़ चुका हूँ। इसलिए मैं अब किसी को भी यहां नहीं ठहरने देता। मैं आपको भी इसमें नहीं ठहरने दूंगा।राजा ने प्रतिज्ञा की कि वह सुबह होते ही इस झोंपड़ी को अवश्य खाली कर देगा। उसका काम तो बहुत बड़ा है, यहाँ तो वह संयोगवश भटकते हुए आया है, सिर्फ एक रात्रि ही काटनी है। बहेलिये ने राजा को ठहरने की अनुमति दे दी l बहेलिये ने सुबह होते ही बिना कोई झंझट किए झोंपड़ी खाली कर देने की शर्त को फिर दोहरा दिया । राजा रात भर एक कोने में पड़ा सोता रहा। सोने पर झोंपड़ी की दुर्गंध उसके मस्तिष्क में ऐसी बस गई कि सुबह उठा तो वही सब परमप्रिय लगने लगा।अपने जीवन के वास्तविक उद्देश्य को भूलकर वह वहीं निवास करने की बात सोचने लगा।वह बहेलिये से अपने और ठहरने की प्रार्थना करने लगा। इस पर बहेलिया भड़क गया और राजा को भला-बुरा कहने लगा।राजा को अब वह जगह छोड़ना झंझट लगने लगा और दोनों के बीच उस स्थान को लेकर विवाद खड़ा हो गया । कथा सुनाकर शुकदेव जी महाराज ने परीक्षित से पूछा,"परीक्षित ! बताओ, उस राजा का उस स्थान पर सदा रहने के लिए झंझट करना उचित था ?"

परीक्षित ने उत्तर दिया," भगवन् ! वह कौन राजा था, उसका नाम तो बताइये ?

वह तो बड़ा भारी मूर्ख जान पड़ता है, जो ऐसी गंदी झोंपड़ी में, अपनी प्रतिज्ञा तोड़कर एवं अपना वास्तविक उद्देश्य भूलकर, नियत अवधि से भी अधिक रहना चाहता है। उसकी मूर्खता पर तो मुझे आश्चर्य होता है।

श्री शुकदेव जी महाराज ने कहा," हे राजा परीक्षित ! 

वह बड़े भारी मूर्ख तो स्वयं आप ही हैं। इस मल-मूल की गठरी देह (शरीर) में जितने समय आपकी आत्मा को रहना आवश्यक था, वह अवधि तो कल समाप्त हो रही है। अब आपको उस लोक जाना है, जहाँ से आप आएं हैं। फिर भी आप झंझट फैला रहे हैं और मरना नहीं चाहते। क्या यह आपकी मूर्खता 

नहीं है ?राजा परीक्षित का ज्ञान जाग पड़ा और वे बंधन मुक्ति के लिए सहर्ष तैयार हो गए।

वास्तव में यही सत्य है। जब एक जीव अपनी माँ की कोख से जन्म लेता है तो अपनी माँ की कोख के अन्दर भगवान से प्रार्थना करता है कि हे भगवन् ! मुझे यहाँ ( इस कोख ) से मुक्त कीजिए, मैं आपका भजन-सुमिरन करूँगा और जब वह जन्म लेकर इस संसार में आता है पैदा होते ही रोने लगता है।फिर उस गंध से भरी झोंपड़ी की तरह उसे यहाँ की खुशबू ऐसी भा जाती है कि वह अपना वास्तविक उद्देश्य भूलकर यहाँ से जाना ही नहीं चाहता।अतः संसार में आने के अपने वास्तविक उद्देश्य को पहचाने और उसको प्राप्त करें ऐसा कर लेने पर आपको मृत्यु का भय नहीं सताएगा..!!






सतर्कता जरूरी है 

अगर आपका मोबाइल चोरी हो गया हो और पुलिस एफआईआर दर्ज नहीं कर रही है तो घबराएं नहीं। आईपीसी की धारा 379 के तहत चोरी दंडनीय अपराध है। मोबाइल चोरी होने पर पुलिस एफआईआर दर्ज करने से इनकार नहीं कर सकती। सीआरपीसी की धारा 154 के तहत पुलिस की ये ड्यूटी है कि गंभीर अपराधों के मामले में एफआईआर दर्ज करे। सुप्रीम कोर्ट ने 2014 में ललिता कुमारी बनाम यूपी सरकार के मामले में गाइडलाइंस तय किया था कि किसी भी गंभीर अपराध के बारे में शिकायत मिलने पर पुलिस को एफआईआर दर्ज करनी ही होगी। अगर पुलिस अफसर ऐसा नहीं करता है तो उसके खिलाफ कार्रवाई की जाए। 

अगर पुलिस मोबाइल चोरी की एफआईआर नहीं दर्ज करती है तो आप अपनी शिकायत को डाक के जरिए सीधे पुलिस अधीक्षक (SP) को भेज सकते हैं। अगर एसपी भी कोई कार्रवाई नहीं करते तब आप सीआरपीसी की धारा 156 (3) के तहत ज्यूडिशियल मैजिस्ट्रेट का दरवाजा खटखटा सकते हैं। कई राज्यों में ऐसे मामलों में ऑनलाइन एफआईआर दर्ज कराने की भी सुविधा है।

मोबाइल चोरी या गुम हो जाने पर आपको बिना देरी किए केंद्र सरकार की हेल्पलाइन पर शिकायत दर्ज करानी चाहिए। आप हाल में लॉन्च किए गए 'संचार साथी पोर्टल' पर इसकी शिकायत दर्ज करा अपने मोबाइल फोन को ट्रैक भी कर सकते हैं और ब्लॉक भी करा सकते हैं। इससे आपके मोबाइल में स्टोर डेटा सेफ रहेगा। दरअसल दूरसंचार विभाग ने गुम या चोरी हुए मोबाइलों को ट्रैक और ब्लॉक करने के लिए संचार साथी पोर्टल बनाया है। सेन्ट्रल इक्विपमेंट आइडेंटिटी रजिस्टर (CEIR) के डेटा का इस्तेमाल कर ये पोर्टल मोबाइल को ट्रैक या ब्लॉक करता है। CEIR एक डेटा बैंक है जिसमें लोगों के मोबाइल मॉडल, सिम नंबर और IEMEI नंबर जैसे डीटेल रहते हैं।

इसके लिए आपको सबसे पहले संचार साथी पोर्टल ceir.sancharsaathi.gov.in पर जाना होगा। वहां आपको रजिस्ट्रेशन करना होगा। रजिस्टर करने के बाद आपको ब्लॉक स्टोलेन/लॉस्ट मोबाइल, अन-ब्लॉक फाउंड मोबाइल और चेक रिक्वेस्ट के ऑप्शन दिखेंगे। अगर आपका मोबाइल चोरी या गुम हुआ है तो उसका मिसयूज रोकने के लिए उसे ब्लॉक कराना जरूरी है। इसलिए आप ब्लॉक मोबाइल का ऑप्शन चुनिए। अपना नाम, मोबाइल नंबर, IMEI डीटेल, किसी ब्रैंड का मोबाइल है, मॉडल और इनवॉइस जैसे डीटेल भरें और उसे जुड़े डॉक्युमेंट अपलोड करें। उसके बाद आपको मोबाइल चोरी होने या खोने से जुड़ी सूचनाएं देनी होंगी मसलन कहां और कब मोबाइल खोया। इसके बाद आपको अपनी पहचान स्थापित करने के लिए आईकार्ड का डीटेल देना होगा। फिर आपको मोबाइल नंबर पर ओटीपी आएगा जिसे वेरीफाई करने के बाद एक नया पेज खुलेगा जहां आपको अपना अकाउंट बनाना होगा। अकाउंट बनाने के बाद आप अपने मोबाइल को ट्रैक या ब्लॉक कर सकते हैं।







2047 में भारत के लिए मेरा दृष्टिकोण

रुचिका अग्रवाल 


अंतरिक्ष हो धरती हो या हो कोई भी तकनीक

भारत देता आया है और देगा 2047 तक नई सीख


भारत की आजादी के सौ वर्ष, एक एहसास, एक उमंग और भारतीय होने पर गर्व।1947 आजादी का वर्ष, अंग्रेजों की सदियों से चली आ रही गुलामी की श्रृंखलाओं को तोड़कर भारतीयों ने आजादी की खुली हवा में साँस ली। डर और भय की बर्फ पिघलने लगी और अपना संविधान , अपने लोग, एक नए युग का सूत्रपात प्रारंभ हो गया।अनेक उतार चढ़ावों से जूझकर , समय समय पर अनेक युद्धों की विभिषिकाओं को झेलते हुए भारतीय गंगा अनवरत रूप से बढ़ती रही और आज अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपना परचम फहरा रही है।इतनी अधिक जनसंख्या, इतने जाति, धर्म और संप्रदायों के लोग लेकिन वसुधैव कुटुम्बकम् की भावना से ओतप्रोत आज भारत देश अपनी अमिट छाप छोड़ने में

कामयाब है। किसी ने ठीक कहा है -

कुछ बात है कि हस्ती, मिटती नहीं हमारी।

सदियों रहा है दुश्मन, दौर-ए-ज़माँ हमारा।






अब प्रश्न उठता है कि जब भारत की आजादी को सौ वर्ष हो जाएँगे अर्थात दो हजार सैतालिस (2047) के भारत के लिए मेरा क्या दृष्टिकोण है

विषय पढ़ते ही मन मयूर नृत्य करने लगा और अनेक रंगीन सपने आँखों में तैरने लगे।

मेरा मन चाहता है कि 2047 तक जो कुछ भी हो वह कागजों में ना होकर वास्तविक जीवन के धरातल 

पर हो। हम सब उन क्षणों को जी  सकें जो कहीं हमारे सपनों में बसते हैं।

जातिगत भेदभाव, अस्पृश्यता, छुआछूत, वैमनस्य की काली रेखा भारत माँ के आँचल को कलुषित न कर सके। भारत शब्द का अर्थ है भा + रत । भा एक संस्कृत भाषा की धातु है जिसका अर्थ है चमकने की दिशा में और रत शब्द का अर्थ है  लगा हुआ अर्थात एक ऐसा देश जो निरंतर प्रगति की ओर अग्रसर है लेकिन इस शब्द के दूसरे अर्थ को जाने बिना भारत की परिकल्पना असंभव है। हमारे ऋषि-मुनियों का कथन है कि हम इस संसार में किस उद्देश्य से आए हैं। जब हम अपने अंदर उस प्रकाश के दर्शन कर सके तब मानव जीवन सफल होगा तो मैं यही चाहती हूँ कि 2047 का भारत दोनों दृष्टियों पर सफल हो।

मनुष्य के दो आयाम है एक भौतिक और एक आध्यात्मिक भौतिक अर्थात इस शरीर को चलाने के लिए बाहरी जीवन में भी उन्नति आवश्यक है और उसके लिए मनुष्य की तीन आवश्यकताएँ है जो सबसे बड़ी हैं- रोटी कपड़ा और मकान। हम अन्न के क्षेत्र में निर्भर हो, अर्थात कृषि को हम इतना संपन्न बनाए कि एक भी भारतीय भूखा न सोए और हम अन्न के लिए आयात पर भी निर्भर न हो। प्रत्येक व्यक्ति को तन ढकने के लिए कपड़ा मिल सके। जिसके लिए हम  औद्योगिक दृष्टि से पूरी तरह से सक्षम हो और साथ ही हर भारतीय अपने घर में रह सके जिसके लिए हम सभी प्राकृतिक संसाधनों का इस प्रकार प्रयोग कर पाएँ कि प्रत्येक व्यक्ति का घर का सपना साकार हो सके। इस प्रकार बुनियादी आवश्यकताओं को पूरा करने के बाद हम तकनीकी दृष्टि से सबल होना चाहेंगे जिससे भारत अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी अपनी छाप छोड़ सके। आज 2024 का भारत भी बहुत सुदृढ़ता से हर क्षेत्र में अपनी पहचान छोड़ रहा है जहाँ आत्मनिर्भर भारत एक ऐसी योजना है जो 2047 तक  पल्लवित होकर भारती वल्लरी को और अधिक सजा संँवार देगी ऊर्जा के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता के लिए मैं भारत के वरदान स्वरूप सौर ऊर्जा का 100% प्रयोग करना चाहूंँगी। जिसे हमारे यशस्वी प्रधानमंत्री जी ने सूर्योदय योजना के रूप में प्रारंभ कर दिया है। देश की जनसंख्या अधिक होने के कारण 2047 तक हमें इस क्षेत्र में और दृढ़ता से कदम बढ़ाने होंगे जिससे भारत अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपने हस्ताक्षर कर सके। आज धरती, पाताल और आसमान के सीने पर हमने अपनी विजय पताका फहराना शुरू कर दिया है आगे भी इसी ज़ज़्बे के साथ हमें आगे बढ़ना होगा।

2024 में दिखा है,  2047 में भी दिखेगा,आज के बचपन ‌के युवाओं का दम दिखेगा,जो बोए जा रहे हैं,योजनाओं के बीज,उनके फलों का असर दिखेगा|








नारी 

नरेन्द्र सोलंकी

एक स्त्री अपने जीवन में 

दो पुरूषों को सबसे ज्यादा समझ सकती है 

उनसे प्रेम करते हुए 

एक अपने बेटे को और दूसरा उसे 

जिससे उसने बिना किसी शर्त बिना किसी चाह के

सिर्फ और सिर्फ प्रेम किया हो

ये वो दो पुरूष होते हैं जिसमें 

एक का जन्म उसकी कोख से होता है

और दूसरे का जन्म

उसके मन की कोख से होता है

प्रेमी और पुत्र प्रेम के प्रेम में स्त्री 

सदा हारकर ही खुद की जीत स्थापित करती है

परन्तु ये दोनों ही पुरूष सबसे ज्यादा 

इस बात से अनभिज्ञ होते हैं

या उनमें इस प्रेम को समझने का बोध नहीं होता ।

यह एक रिश्ता ऐसा होता है 

जिसकी हर बात को हम मन से ही नहीं

शरीर से शिराओं से,

अपनी त्वचा तक में 

महसूस कर पाते हैं 

इसके लिए स्पर्श ही, भाषा का नहीं

भाषा भी स्पर्श का कार्य करती है

मन से मस्तिष्क तक की सभी इन्द्रियां

प्रेम की अनुभूतियों में संचित होती है

प्रेमी और पुत्र मोह के इस प्रेम में 

स्त्री सदा हारकर ही 

खुद की जीत स्थापित करती है

स्वयं को स्वयं के अनुबंध से मुक्त करती है |







झोले वाले मास्टर जी

                 बालेश्वर गुप्ता,नोयडा

         देखो सचिन नौकरी नही मिल रही हो तो चिन्ता करने की कोई जरूरत नही,अपना अच्छा कारोबार चल रहा है,उसे संभालो।इधर उधर कंधे पर झोला लटकाये मत घूमा करो।

        नही बाबूजी ऐसा कुछ नही,मैंने तो नौकरी ढूढ़ने का प्रयत्न भी नही किया।असल मे मैंने निश्चय किया है,दलित वंचितो की बस्तियो में बच्चो को पढ़ाना।

       क्या मतलब है तुम्हारा,क्या वहां स्कूल खोलना चाहते हो ?

       बाबूजी स्कूल जा पाते तो कहीं ना कही चले जाते,ना बच्चे जाते है और न ही उनके माता पिता उन्हें भेजते हैं।मैं उन्हें वही जाकर शिक्षा देना चाहता हूं,जितना मुझसे बन पड़ेगा।

       अच्छा सचिन, समाज सेवा का भूत चढ़ा है।यह सब, कुछ भी न करने का बहाना है,मैं सहमत नही हूँ।

        लाला मनोहर लाल जी का इकलौता पुत्र था सचिन।अपने कारोबार में मनोहर लाल जी पूर्ण सफल थे,उन्हें किसी चीज की कमी नही थी।उनकी हार्दिक अभिलाषा थी कि उनका व्यापारिक साम्राज्य को उनका बेटा संभाले।ग्रेजुएट हो जाने पर मनोहर लाल जी ने सचिन को कई बार कहा कि अब वह उनका हाथ बटाये।पर सचिन को कोई रुचि इस ओर थी ही नही।उस दिन की वार्ता से स्पष्ट हो गया कि सचिन की दिशा किस ओर है।बचपन से ही वैराग्य जैसा भाव सचिन का रहता।किसी भी गरीब गुरबा को देखता तो भावुक हो जाता।बड़ा हुआ तो उसने अपना मिशन बना लिया कि वह वंचित समाज के बच्चों को अपनी सामर्थ्यनुसार अशिक्षित नही रहने देगा।यह सोच सामान्य नही थी।

     सचिन प्रातः ही पास की वंचित बस्ती में चला जाता और वहां बच्चो को पढ़ने को प्रेरित करता।बच्ची 





के अभिभावकों को सचिन का उनके बच्चों से संपर्क अच्छा नही लगता,उन्हें लगता बच्चे पढ़ेंगे तो बेकार हो जायेंगे,फिर वे मजदूरी तक भी नही करेंगे।लाला जी के बेटे होने के कारण वे सचिन का पुरजोर विरोध नही कर पाते।सचिन अपनी कठिन डगर को समझ रहा था,पर सचिन ने अपने प्रयास जारी रखे।उसी बस्ती से उसे साथ मिला दीनू काका के बेटे सरयू का।सरयू उस बस्ती में सबसे अधिक पढ़ालिखा होने जा रहा था,उसने इंटर पास कर लिया था।आगे की राह उसे पता नही थी,तब सहयोग किया सचिन ने।उसने उसे आई टी में दाखले के लिये कंपीटिशन की सलाह दी,और खुद उसे पढ़ाने लगा।

सरयू की लगन और सचिन की मेहनत रंग लायी,सरयू का दाखिला आईटी में हो गया,उसकी व्यवस्था भी सचिन ने कुछ बैंक से तो कुछ अपने परिचित से करा दी।

        यह उस वंचित बस्ती के लिये अविश्वसनीय था।इस घटना के बाद सचिन का बस्ती में सम्मान भी बढ़ गया था और स्वीकारिता भी।अब बस्ती के बच्चे उसके पास पढ़ने को आने लगे थे।बस्ती के मंदिर में ही वह बच्चो को पढ़ाने लगा।अधिकतर समय उसका वही गुजरता।बस्ती में ही खाना पीना हो जाता और कभी कभी मंदिर में ही सोना।मनोहर लाल जी को अपने पुत्र का यह रवैया बिल्कुल भी नही भा रहा था,पर सचिन के न मानने के कारण वे बेबस हो गये थे,उन्होंने सचिन से बातचीत भी लगभग बंद कर दी थी।

       उधर सचिन ने बचे समय को दूसरी वंचित बस्ती को देना प्रारम्भ कर दिया।एक बार एक एनजीओ के देशी और विदेशी सदस्यों ने संयोगवश उस वंचित बस्ती का दौरा किया।वहां जब उन्होंने सचिन का समर्पण भाव के साथ वंचित समाज मे शिक्षा का प्रसार अकेले ही बिना साधन के करते पाया तो वे बहुत ही प्रभावित हुए।उस एनजीओ ने सचिन को वहां अपना प्रतिनिधि नियुक्त कर दिया।अब सचिन के पास अपने सपने पूरे करने के लिए साधन की भी कमी नही रह गयी थी।उस वंचित बस्ती से कई प्रतिभायें विकसित हुई।सचिन का मॉडल आसपास ही नही दूर दूर तक प्रसिद्ध हो रहा था। सचिन को अब जगह जगह बुलाया जाने लगा,उसकी अब अपनी पहचान बन गयी थी।सचिन ने अपनी सादगी को तब भी नही छोड़ा था।दो जोड़ी कपड़े तथा कुछ किताबें उसके कंधे पर लटके झोले में होती।सब उसे झोले वाले मास्टर जी पुकारने लगे थे।उसे यह नाम ही अच्छा लगने लगा था।

        सचिन ने अपना आदर्श सामने रख असंख्य बच्चो के जीवन को संवारा और बहुत सो को अपने जैसा सचिन भी बना दिया।झोले वाले मास्टर जी एक ब्रांड बन गये थे।

      आज मनोहर लाल जी उस वंचित बस्ती के मंदिर में स्वयं चलकर आये,सचिन ने बाबूजी को देखा तो लपककर उनके चरण स्पर्श किये।काफी दिन बाद बाबूजी को देखा था,बूढ़े हो गये थे।सचिन को लगा कि वंचित सेवा में वह शायद बाबूजी के साथ अन्याय कर गया।उसकी आँखों से आँसू की बूंद टपक पड़ी।मनोहर लाल जी ने सचिन को अपने कलेजे से लगा कर कहा अरे झोले वाले मास्टर सब 






जगह सफल रहा पर मुझ अनपढ़ को न पढ़ा सका रे,देख यहां फेल हो गया ना।बाबूजी कहते कहते सचिन की हिचकी बंध गयी।मनोहर लाल जी बोले अरे जो कमाया तेरे लिये ही तो था,तो अब भी तेरे ही काम आयेगा।ले सब धन संपत्ति के कागजात,बनवा यहां एक ऐसा विद्यालय जिसमे कोई फीस नही हो,शिक्षा हो,पढ़ाई वाली भी तो इंसानियत वाली भी।

     सचिन को आज अपने पिता पर गर्व था।

माँ की वाणी का मोल 


डॉ. रेखा रानी


एक नन्हे बच्चे ने स्कूल से आ कर अपनी माँ को एक कागज दिया। उसने कहा - “माँ, मेरे शिक्षक ने

यह लेटर तुम्हें देने के लिए दिया है। शिक्षक ने कहा है यह पत्र मैं तुम्हें दे दं।ू जिसे सिर्फ तुम पढ़ो।

माँ, इसमें क्या लिखा है?” माँ ने ऊँची आवाज़ में पढ़ा- “आपका बेटा एक जीनियस है। यह स्कूल

उसके लिए बहुत छोटा है और उसके लायक़ प्रशिक्षित शिक्षक हमारे पास नहीं हैं। कृपया आप उसे

स्वयं पढ़ाएं ।” बच्चे की माँ ने पत्र पढ़ कर बच्चों को सुनाया। इस घटना के बाद उस बच्चे की मां

उसकी शिक्षिका बन गई। वह घर में ही उसे पढ़ने लगी। आगे चल कर वह सदी का सबसे महान

वैज्ञानिक बना। जिसने अनेक महत्वपूर्ण खोज किये।

मां की मृत्यु के कई सालों बाद, उस महान वैज्ञानिक को अपनी माँ के काग़ज़ों में अपने शिक्षक का

लिखा वही पुराना पत्र मिला। जिसे उसके शिक्षक ने सिर्फ़ उसकी माँ को देने कहा था। उस

वैज्ञानिक ने उसे खोला और पढ़ने लगा। पत्र में लिखा था – “आपका बेटा मानसिक रूप से कमजोर

है। हम उसे अब अपने स्कूल में नहीं आने दे सकते। उसे स्कूल से निकाला जा रहा है।” यह थॉमस

एडिसन के बचपन की सच्ची कहानी है। शिक्षक के नोट को पढ़ने के बाद एडिसन ने अपनी

डायरी में लिखा: “थॉमस एडिसन एक मानसिक रूप से कमजोर बच्चा था जिसकी माँ ने उसे

सदी के जीनियस में बदल दिया।” वाणी वह हथियार है और जो नष्ट या निर्माण, उत्थान या

पतन कर सकती है |


सात चिरंजीवी

विज्ञान नहीं मानेगा, पर यह हैं आठ चिरंजीवी हैं…

हिंदू इतिहास और पुराण अनुसार ऐसे सात व्यक्ति हैं, जो चिरंजीवी हैं। यह सब किसी न किसी वचन, नियम या शाप से बंधे हुए हैं और यह सभी दिव्य शक्तियों से संपन्न है। योग में जिन अष्ट सिद्धियों की बात कही गई है वे सारी शक्तियाँ इनमें विद्यमान है। यह परामनोविज्ञान जैसा है, जो परामनोविज्ञान और टेलीपैथी विद्या जैसी आज के आधुनिक साइंस की विद्या को जानते हैं वही इस पर विश्वास कर सकते हैं। आओ जानते हैं कि हिंदू धर्म अनुसार कौन से हैं यह सात जीवित महामानव।

अश्वत्थामा बलिव्र्यासो हनूमांश्च विभीषण:। कृप: परशुरामश्च सप्तएतै चिरजीविन:॥

सप्तैतान् संस्मरेन्नित्यं मार्कण्डेयमथाष्टमम्। जीवेद्वर्षशतं सोपि सर्वव्याधिविवर्जित।।

अर्थात इन आठ लोगों (अश्वथामा, दैत्यराज बलि, वेद व्यास, हनुमान, विभीषण, कृपाचार्य, परशुराम और मार्कण्डेय ऋषि) का स्मरण सुबह-सुबह करने से सारी बीमारियां समाप्त होती हैं और मनुष्य 100 वर्ष की आयु को प्राप्त करता है।

प्राचीन मान्यताओं के आधार पर यदि कोई व्यक्ति हर रोज इन आठ अमर लोगों (अष्ट चिरंजीवी) के नाम भी लेता है तो उसकी उम्र लंबी होती है।

1. हनुमान -  कलियुग में हनुमानजी सबसे जल्दी प्रसन्न होने वाले देवता माने गए हैं और हनुमानजी भी 

इन अष्ट चिरंजीवियों में से एक हैं। सीता ने हनुमान को लंका की अशोक वाटिका में राम का संदेश सुनने के बाद आशीर्वाद दिया था कि वे अजर-अमर रहेंगे। अजर-अमर का अर्थ है कि जिसे ना कभी 





मौत आएगी और ना ही कभी बुढ़ापा। इस कारण भगवान हनुमान को हमेशा शक्ति का स्रोत माना गया है क्योंकि वे चीरयुवा हैं।

2. कृपाचार्य- महाभारत के अनुसार कृपाचार्य कौरवों और पांडवों के कुलगुरु थे। कृपाचार्य गौतम ऋषि पुत्र हैं और इनकी बहन का नाम है कृपी। कृपी का विवाह द्रोणाचार्य से हुआ था। कृपाचार्य, अश्वथामा के मामा हैं। महाभारत युद्ध में कृपाचार्य ने भी पांडवों के विरुद्ध कौरवों का साथ दिया था।

3.  अश्वथामा- ग्रंथों में भगवान शंकर के अनेक अवतारों का वर्णन भी मिलता है। उनमें से एक अवतार ऐसा भी है, जो आज भी पृथ्वी पर अपनी मुक्ति के लिए भटक रहा है। ये अवतार हैं गुरु द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वत्थामा का। द्वापरयुग में जब कौरव व पांडवों में युद्ध हुआ था, तब अश्वत्थामा ने कौरवों का साथ दिया था। महाभारत के अनुसार अश्वत्थामा काल, क्रोध, यम व भगवान शंकर के सम्मिलित अंशावतार थे। अश्वत्थामा अत्यंत शूरवीर, प्रचंड क्रोधी स्वभाव के योद्धा थे। धर्म ग्रंथों के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण ने ही अश्वत्थामा को चिरकाल तक पृथ्वी पर भटकते रहने का श्राप दिया था।

अश्वथाम के संबंध में प्रचलित मान्यता... मध्य प्रदेश के बुरहानपुर शहर से 20 किलोमीटर दूर एक किला है। इसे असीरगढ़ का किला कहते हैं। इस किले में भगवान शिव का एक प्राचीन मंदिर है। यहां के स्थानीय निवासियों का कहना है कि अश्वत्थामा प्रतिदिन इस मंदिर में भगवान शिव की पूजा करने आते हैं।

4. ऋषि मार्कण्डेय- भगवान शिव के परम भक्त हैं ऋषि मार्कण्डेय। इन्होंने शिवजी को तप कर प्रसन्न किया और महामृत्युंजय मंत्र सिद्धि के कारण चिरंजीवी बन गए।

5. विभीषण- राक्षस राज रावण के छोटे भाई हैं विभीषण। विभीषण श्रीराम के अनन्य भक्त हैं। जब रावण ने माता सीता हरण किया था, तब विभीषण ने रावण को श्रीराम से शत्रुता न करने के लिए बहुत समझाया था। इस बात पर रावण ने विभीषण को लंका से निकाल दिया था। विभीषण श्रीराम की सेवा में चले गए और रावण के अधर्म को मिटाने में धर्म का साथ दिया।

6. राजा बलि- शास्त्रों के अनुसार राजा बलि भक्त प्रहलाद के वंशज हैं। बलि ने भगवान विष्णु के वामन अवतार को अपना सब कुछ दान कर दिया था। इसी कारण इन्हें महादानी के रूप में जाना जाता है। राजा बलि से श्रीहरि अतिप्रसन्न थे। इसी वजह से श्री विष्णु राजा बलि के द्वारपाल भी बन गए थे।

7. ऋषि व्यास- ऋषि भी अष्ट चिरंजीवी हैँ और इन्होंने चारों वेद (ऋग्वेद, अथर्ववेद, सामवेद और यजुर्वेद) का सम्पादन किया था। साथ ही, इन्होंने ही सभी 18 पुराणों की रचना भी की थी। महाभारत और श्रीमद्भागवत् गीता की रचना भी वेद व्यास द्वारा ही की गई है। इन्हें वेद व्यास के नाम से भी जाना जाता है। वेद व्यास, ऋषि पाराशर और सत्यवती के पुत्र थे। इनका जन्म यमुना नदी के एक द्वीप पर हुआ था और इनका रंग सांवला था। इसी कारण ये कृष्ण द्वैपायन कहलाए।

8. परशुराम- भगवान विष्णु के छठें अवतार हैं परशुराम। परशुराम के पिता ऋषि जमदग्नि और माता रेणुका थीं। इनका जन्म हिन्दी पंचांग के अनुसार वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को हुआ था। इसलिए वैशाख मास के शुक्ल पक्ष में आने वाली तृतीया को अक्षय तृतीया कहा जाता है।


भगवान शिव की अर्ध परिक्रमा का रहस्य...


शिवजी की आधी परिक्रमा करने का विधान है। वह इसलिए की शिव के सोमसूत्र को लांघा नहीं जाता है। जब व्यक्ति आधी परिक्रमा करता है तो उसे चंद्राकार परिक्रमा कहते हैं। शिवलिंग को ज्योति माना गया है और उसके आसपास के क्षेत्र को चंद्र। आपने आसमान में अर्ध चंद्र के ऊपर एक शुक्र तारा देखा होगा। यह शिवलिंग उसका ही प्रतीक नहीं है बल्कि संपूर्ण ब्रह्मांड ज्योतिर्लिंग के ही समान है।

अर्द्ध सोमसूत्रांतमित्यर्थ: शिव प्रदक्षिणीकुर्वन सोमसूत्र न लंघयेत, इति वाचनान्तरात।सोमसूत्र : शिवलिंग की निर्मली को सोमसूत्र की कहा जाता है। शास्त्र का आदेश है कि शंकर भगवान की प्रदक्षिणा में सोमसूत्र का उल्लंघन नहीं करना चाहिए, अन्यथा दोष लगता है। सोमसूत्र की व्याख्या करते हुए बताया गया है कि भगवान को चढ़ाया गया जल जिस ओर से गिरता है, वहीं सोमसूत्र का स्थान होता है।क्यों नहीं लांघते सोमसूत्र :-  सोमसूत्र में शक्ति-स्रोत होता है अत: उसे लांघते समय पैर फैलाते हैं और वीर्य ‍निर्मित और 5 अन्तस्थ वायु के प्रवाह पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। इससे देवदत्त और धनंजय वायु के प्रवाह में रुकावट पैदा हो जाती है। जिससे शरीर और मन पर बुरा असर पड़ता है। अत: शिव की अर्ध चंद्राकार प्रदशिक्षा ही करने का शास्त्र का आदेश है।तब लांघ सकते हैं :- शास्त्रों में अन्य स्थानों पर मिलता है कि तृण, काष्ठ, पत्ता, पत्थर, ईंट आदि से ढके हुए सोम सूत्र का उल्लंघन करने से दोष नहीं लगता है,लेकिन शिवस्यार्ध प्रदक्षिणा का मतलब शिव की आधी ही प्रदक्षिणा करनी चाहिए।किस ओर से करनी चाहिये परिक्रमा :- भगवान शिवलिंग की परिक्रमा हमेशा बांई ओर से शुरू कर जलाधारी के आगे निकले हुए भाग यानी जल स्रोत तक जाकर फिर विपरीत दिशा में लौटकर दूसरे सिरे तक आकर परिक्रमा पूरी करें…





गुलामी की आदत 

एक अंधेरी रात में एक काफिला एक रेगिस्तानी सराय में जाकर ठहरा। उस काफिले में सौ ऊंट थे। उन्होंने खूंटियां गाड़कर ऊंट बांधे, किंतु अंत में पाया कि एक ऊंट अनबंधा रह गया है। उनकी एक खूंटी और रस्सी कहीं खो गई थी। अब आधी रात वे कहां खूंटी-रस्सी लेने जाएं?

काफिले के सरदार ने सराय मालिक को उठाया - "बड़ी कृपा होगी यदि एक खूंटी और रस्सी हमें मिल जाती। 99 ऊंट बंध गए, एक रह गया - अंधेरी रात है, वह कहीं भटक सकता है।"

वृद्ध बोले - मेरे पास न तो रस्सी है, और न खूंटी, किंतु एक युक्ति है। जाओ, और खूंटी गाड़ने का नाटक करो, और ऊंट से कह दो–सो जाए।"

 सरदार बोला - अरे, कैसा पागलपन है?

वृद्ध बोले - बड़े नासमझ हो, ऐसी खूंटियां भी गाड़ी जा सकती हैं जो न हों, और ऐसी रस्सियां भी बांधी जा सकती हैं जिनका कोई अस्तित्व न हो? अंधेरी रात है, आदमी धोखा खा जाता है, ये तो एक ऊंट है! 

विश्वास तो नहीं था किंतु विवशता थी! उन्होंने गड्ढा खोदा, खूंटी ठोकी–जो नहीं थी। केवल आवाज हुई ठोकने की, ऊंट बैठ गया। खूंटी ठोकी जा रही थी। रोज-रोज रात उसकी खूंटी ठुकती थी, वह बैठ गया। उसके गले में उन्होंने हाथ डाला, रस्सी बांधी। रस्सी खूंटी से बांध दी गई–रस्सी, जो नहीं थी। ऊंट सो गया!वे बड़े हैरान हुए! एक बड़ी अदभुत बात उनके हाथ लग गई! सो गए! सुबह उठकर उन्होंने 99 ऊंटों की रस्सियां निकालीं, खूंटियां निकालीं–वे ऊंट खड़े हो गए! किंतु सौवां ऊंट बैठा रहा। उसको धक्के दिए, पर वह नहीं उठा! फिर वृद्ध से पूछा गया. वृद्ध बोले, " ये ऊंट भर्म मे है  जाओ, पहले खूंटी निकालो! रस्सी खोलो!" सरदार बोला, "बाबाजी!लेकिन रस्सी हो तब ना खोलूँ! वृद्ध बोले - "जैसा बांधने का नाटक किया था, वैसे ही खोलने का करो!" ऐसा ही किया गया, और ऊंट खड़ा हो गया! 







पति पत्नी संबंध  

पुष्पा गुप्ता 

शादीशुदा जिंदगी कोई फिल्म नहीं है़ कि आपकी पत्नी आपके साथ बाग में साड़ी पहन कर पेड़ों के आगे पीछे गाना गाती हुई नाचेगी ऐसा भी नहीं है़ कि आप सुबह सोते रहो और वो रोज नहा धो के आपके लिए  बिस्तर पर चाय लेके आएगी और गीले बाल झटक कर जगायेगी।

ऐसा भी नहीं है़ जो आप कुछ विशेष प्रकार के वीडिओ में देख कर उम्मीदें करते हो।

ऐसी भी उम्मीद गलत है़ कि वो रोज आपके आने से पहले घर का सारा काम खत्म करके आपके लिए संजीव कपूर और निशा मधुलिका से प्रतिस्पर्धा करती हुई छप्पन व्यंजन बनाएगी और आपके आने से पहले साज धज कर तैयार मिलेगी .ये जिंदगी है़ कोई फिल्म नहीं ,उसे भी देर तक सोकर खुद को आराम देना होता है़।वो भी चाहती है़ कि घर अगर दोनों का है़ तो घर के कामों की जिम्मेदारी दोनों की हो । वो भी कमाने बाहर जाती है़ तो उसे भी बना बनाया खाना खाने की इच्छा होती है़ । उसका भी मन होता है़ कि वो कभी यूं ही अलसाई सी बिखरे से बालों में घर में रहे.वो भी इंसान है़ वो भी थकती है़ वो भी आराम चाहती है़ उसकी कुछ तकलीफें तुम कभी कम नहीं कर सकते चाह कर भी कुछ नहीं 




कर सकते ।हर महीने शरीर को तोड़ कर रख देने वाला वो पेट पीठ पैर का दर्द उस दर्द और बेबसी से उपजा वो मानसिक तनाव जिसे तुम मूड स्विंग कर कर पल्ला झाड़ लेते हो ..उस दशा में भी सबसे अपना दर्द छुपाने का सोशल प्रेशर . खून की कमी से होने वाली कमजोरी ..इसमें क्या कर लोगे तुम ?

वो कुंवारी होने पर समाज के सवाल ..वो शादीशुदा होने पर अपने ही माँ बाप भाई बहन के पराए हो जाने का मानसिक कष्ट ..वो बच्चे न होने का दर्द ...बच्चे हों तो उन्हें पैदा करने से लेकर पालने का कष्ट ...क्या कर लोगे इसमें तुम ??तुम्हारे वक्त बेवक्त बहक जाने का डर ..अपने भविष्य का डर और भी इसके अलावा अनगिनत शारीरिक  मानसिक सामाजिक समस्याएं ...डीयर जेन्ट्स तुम कुछ नहीं कर सकते ..चाह कर भी तुम औरत का दर्द कम नहीं कर सकते ..लेकिन तुम बस ये कर सकते हो ..

औरत के साथ खड़े रह सकते हो.उसका हाथ मजबूती से थाम कर हिम्मत दे सकते हो उसको भरोसा दे सकते हों कि तुम बहकोगे नहीं .उसके मुश्किल वक्त में तुम घर के काम कर सकते हो .अपनी जिम्मेदारियां समझ सकते हो यकीन मानो इतने से औरत जी लेगी और तुम्हें मिलेगा एक अपना सच्चा दोस्त ..प्यार ..भरोसा ..अपनापन ..मोहब्बत ..स्वादिष्ट व्यंजन और वो भी जो तुम सोच रहे हो,सब कुछ 

 

 मांगलिक दोष विचार परिहार

वर अथवा कन्या दोनों में से किसी की भी कुंडली में 1,4,7,8 व 12 भाव में मंगल होने से ये मांगलिक माने जाते हैं,मंगली से मंगली के विवाह में दोष न होते हुए भी जन्म पत्रिका के अनुसार गुणों को मिलाना ही चाहिए यदि मंगल के साथ शनि अथवा राहु केतु भी हो तो प्रबल मंगली डबल मंगली योग होता है | इसी प्रकार गुरु अथवा चंद्रमा केंद्र हो तो दोष का परिहार भी हो जाता है |इसके अतिरिक्त मेष वृश्चिक मकर का मंगल होने से भी दोष नष्ट हो जाता है | इसी प्रकार यदि वर या कन्या किसी भी कुंडली में 1,4,7,9,12 स्थानों में शनि हो केंद्र त्रिकोण भावो में शुभ ग्रह, 3,6,11 भावो में पाप ग्रह हों तो भी मंगलीक दोष का आंशिक परिहार होता है, सप्तम ग्रह में यदि सप्तमेश हो तो भी दोष निवृत्त होता है |





 रिश्ते

बड़ी विचित्र है रिश्तों की चादर

कई बार पवित्र रिश्ते भी लपेटने

पड़ते हैं इसकी तहों में

चाहे पड़ जाएँ सिलवटें घुटन की

कई बार सजाने पड़ते हैं

वे रिश्ते भी इसमें सलीके से

जो तड़प रहे होते हैं मौत पाने को

उनकी रुकती साँसें चीत्कारती हैं

हम आजाद नहीं कर पाते उन्हें

झूठे समाज के लिए

मनोभाव

रिँकू शर्मा






गजल 

 अर्चना त्यागी

पेट की आग तो बुझाती है रोटियां,

आदमी को खूब नचाती हैं रोटियां!


कुछ भी खाओ मगर भाती है रोटियां,

सादे भोजन में अरु आती है रोटियां !


चूल्हे पर मां जब पकाती है रोटियां,

फूली सी बदन में समाती है रोटियां!


क़ीमत रोटी की मजदूर से पूछना,

सभी से मेहनत कराती है रोटियां!


मान सम्मान से खिलाएं कोई अगर,

रुतबा इंसान का बढ़ाती है रोटियां!


भूख से मर गए कितने ही आदमी,

ख़बरें गरीब की सुनाती है रोटियां!


अपने पेट की भूख मिटाने की लिए,

भिखारिन हर रोज चुराती है रोटियां !


अर्ची की भूख तब मिटाती है रोटियां,

बना के गरम मां खिलाती है रोटियां!








"स्वस्थ आलोचना" 

डॉ ममता

"स्वस्थ आलोचना" क्या होती होगी?   इसी पर आज अपने विचार लिख रही हूं ।

मेरा मानना है कि यदि हम कोई संदेशात्मक लेख लिखते है, जिसके द्वारा हम कोई सकारात्मक संदेश समाज को देना चाहते है...तो यह जरूरी तो नही कि हम जिस तरह से सोच रहे है ,पढ़ने वाले सब पाठक भी ऐसा ही सोचेंगे। ऐसा भी हो सकता है कि हमें उस विषय पर जितना ज्ञान होगा , हर कोई उस स्तर तक नही समझ पायेंगा।  या यह भी तो हो सकता है कि हम अपना सन्देश सही से समाज तक नही पहुंचा पा रहे है।कुछ भी हो सकता है।

अब आते है आलोचक पर...

यह लोग ऐसे लेख पर ही प्रतिक्रिया ज्यादा देते है। बाकि तो स्क्रॉल करके आगे बढ़ जाते है।

मुझे दो तरह के आलोचक समझ आए है।...

एक आलोचक तो वो है जो.. लेख की आलोचना करेंगे तो उनकी कुंठित मानसिकता का प्रदर्शन आलोचना के साथ ही झलक जाएंगा । यह आलोचक अपनी बिना सर पैर की बात पर ही टिके रहेंगे और दूसरे की बात को न तो सुनना चाहेंगे और ना ही समझना ।बस हिटलर की तरह अपनी बात को सिद्ध करने में लगे रहेंगे। अपशब्दों को उपयोग करना इन्हें अपनी शान लगती है, इसी से इनका स्तर 




साफ झलक जाता है। यह कोई भी ठोस तर्क नही दे पाते और गाली गलोच पर आ जाते है,लेखक के पर्सनल जीवन और परिवार तक को आलोचना में खींच लेते है। ऐसे लोगों से बहस करने का कोई फायदा नही। मेरा मानना है इन्हें रिपोर्ट तो एडमिन करना उचित है, या रिपोर्ट टू फेसबुक। 

दूसरा आलोचक.. स्वस्थ आलोचना करने वाला होगा.., क्योंकि वो भी समाज में सुधार चाहता है,बस उसका तरीका हमसे अलग है। यह आलोचक हमारी बात भी सुनेगा और खुद के तर्क भी देगा।इनकी भाषा शैली हमेशा मर्यादा में हो होगी। हम जिस तरह से नही सोच पाए, इनसे तर्क करते करते हमें वह पहलू भी समझ आयेगा। सच में इनकी बात में भी दम जरूर होगा। ऐसी स्वस्थ आलोचना से लेखक और आलोचक दोनों को ही सीखने को मिलता है। कभी दोनों में से कोई गलत सिद्ध होता है तो यह सामने वाले की प्रशंसा भी करते है। मुझे ऐसे आलोचक बहुत पसंद है।

अगर ऐसे आलोचक मेरे लेख पर प्रतिक्रिया देते है तो मैं इनसे तर्क जरूर करती हूं।सच में बहुत कुछ सीखने को मिलता भी है।

मैंने जब लिखना शुरू किया था,तो अग्रेंजी के शब्दों का उपयोग बहुत ज्यादा करती थी, मेरी एक रचना बहुत वायरल हुई थी, उस समय एक इंसान ने प्रतिक्रिया दी थी."तुम्हें लिखना नही आता क्या... हिंदी में अग्रेंजी की स्पेलिंग क्यों लिखी है,लेख समझ ही नही आ रहा।" 

मुझे पहले तो बहुत ही बुरा लगा, क्योंकि नया नया लिखना शुरू किया था, ऊपर से थोड़ी ego भी 

थी,पर मैं ऐसी बात पर जरूर विचार करती हूं।

मुझे दो बातें समझ आई...एक तो कि यह बंदा मेरे लेख को सुधारना चाहता है।दूसरा कि शायद इसे अंग्रेजी ही नही आती हो।दोनो ही बातों में यह साफ था कि मुझे सुधार करना चाहिए।

सच बताऊं तो वो बात मेरे दिल पर ऐसा असर की कि तब से मैं कोशिश करती हूं कि मै हिंदी देवनागरी में ही लिखूं।

मुझे लगता है,लेख लिखना फिर भी आसान होता है, पर एक स्वस्थ आलोचना करना कठिन काम है। क्योंकि उसके लिए आपको बहुत ज्ञान होना चाहिए। आप लिखने वाले के लेख में गलतियां निकालने वाले है तो उसे सही बताना आपका ही धर्म होना चाहिए, अन्यथा आप स्वस्थ आलोचना नही कर पाएंगे।

आशा है,मेरे विचारों से आप सहमत होंगे, अगर नही भी हो तो कोई बात नही, आप स्वस्थ आलोचना कर सकते है।

ॐ ऊर्ध्व भू फट् । ॐ नमः शिवाय । ॐ ह्रीं ह्रौं नमः शिवाय । ॐ नमो भगवते दक्षिणामूर्त्तये मह्यं मेधा प्रयच्छ स्वाहा । ॐ इं क्षं मं औं अं । ॐ प्रौं ह्रीं ठः । ॐ नमो नीलकण्ठाय । ॐ पार्वतीपतये नमः । ॐ पशुपतये नम:









विजया एकादशी

विजया एकादशी व्रत फाल्गुन मास कृष्ण पक्ष एकादशी को किया जाता है | इस दिन भगवान विष्णु की पूजा करने से मन प्रसन्न होता है व सभी मनोकामना पूर्ण होती है | पूजन में धूप दीप नैवेद्य नारियल आदि चढ़ाया जाता है | सप्त अन्न युक्त घट स्थापित किया जाता है जिसके ऊपर विष्णु की मूर्ति रखी जाती है | विजया एकादशी को 24 घंटे कीर्तन करके दिन रात बिताना चाहिए | द्वादशी के दिन अन्न से भरा घड़ा ब्राह्मण को दान दिया जाता है | इस व्रत के प्रभाव से दुख दरिद्रता दूर हो जाती है | समस्त कार्य में विजय प्राप्त होती है | इसकी कथा भगवान राम की लंका विजय से संबंधित है | विजया एकादशी व्रत के बारे में कहा जाता है कि विजया एकादशी व्रत करने मात्र से स्वर्णणदान,भूमि दान,अन्न दान और गौ दान से भी अधिक पुण्य फलों की प्राप्ति होती है और अंततः विजया एकादशी व्रत करके मोक्ष की प्राप्ति होती है। यदि कोई आपसे शत्रुता रखता है तो आपको विजया एकादशी का व्रत अवश्य करना चाहिए।

विजया एकादशी की कथा - जब भगवान राम माता सीता की मुक्ति के लिए वानर दल के साथ सिंधु तट पर पहुंचे तो रास्ता रुक गया | पास में ही दाल्भ्य मुनि का आश्रम था जिसने अनेक ब्रह्मा अपनी आंखों से देखे थे ऐसे चिरंजीव मुनि के दर्शनार्थ राम लक्ष्मण अपनी सेना सहित मुनि की शरण में जाकर मुनि को दंडवत प्रणाम करके समुंद्र से पार होने का उपाय पूछा तो मुनि ने कहा की कल विजया एकादशी है उसका व्रत आप सेना सहित करें | समुंद्र से पार उतरने का तथा लंका को विजय करने का सुगम उपाय यही है। मुनि की आज्ञा से राम लक्ष्मण ने सेना सहित विजया एकादशी का व्रत किया | समुन्द्र किनारे भगवान रामेश्वरम का पूजन किया। विजया एकादशी के महत्तम को सुनने से हमेशा विजय होती है। आज के समय में मुक़दमे आदि से निकलने हेतु विजया एकादशी का व्रत सबसे सरल उपाय है |



आमलकी एकादशी व्रत कथा

पौराणिक कथा के अनुसार वैदिश नाम का एक नगर था, उस नगर में ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र रहते थे। वहां रहने वाले सभी नगरवासी विष्णु भक्त थे और वहां कोई भी नास्तिक नहीं था। उसके राजा का नाम था चैतरथ। राजा चैतरथ विद्वान थे और वह बहुत धार्मिक थे। उनके नगर में कोई भी व्यक्ति दरिद्र नहीं था। नगर में रहने वाला हर शख्स एकादशी का व्रत करता था। एक बार फाल्गुन महीने में आमलकी एकादशी आई। सभी नगरवासी और राजा ने यह व्रत किया और मंदिर जाकर आंवले की पूजा की और वहीं पर रात्रि जागरण किया। तभी रात के समय वहां एक बहेलिया आया जो कि घोर पापी था, लेकिन उसे भूख और प्यास लगी थी। इसलिए मंदिर के कोने में बैठकर जागरण को देखने लगा और विष्णु भगवान व एकादशी महात्म्य की कथा सुनने लगा। इस तरह पूरी रात बीत गई। नगर वासियों के साथ बहेलिया भी पूरी रात जागा रहा। सुबह होने पर सभी नगरवासी अपने घर चले गए। बहेलिया भी घर जाकर भोजन किया। लेकिन कुछ समय के बाद बहेलिया की मौत हो गई।

हालांकि उसने आमलकी एकादशी व्रत कथा सुनी थी और जागरण भी किया था, इसलिए वह राजा विदूरथ के घर जन्म लिया। राजा ने उसका नाम वसुरथ रखा। बड़ा होकर वह नगर का राजा बना। एक दिन वह शिकार पर निकला, लेकिन बीच में ही मार्ग भूल गया। रास्ता भूल जाने के कारण वह एक पेड़ के नीचे सो गया। थोड़ी देर बाद वहीं म्लेच्छ आ गए और राजा को अकेला देखकर उसे मारने की योजना बनाने लगे। उन्होंने कहा कि इसी राजा के कारण उन्हें देश निकाला दिया गया। इसलिए इसे हमें मार देना चाहिए। इस बात से अनजान राजा सोता रहा। म्लेच्छों ने राजा पर हथियार फेंकना शुरू कर दिया। लेकिन उनके शस्त्र राजा पर फूल बनकर गिरने लगे।कुछ देर के बाद सभी म्लेच्छ जमीन पर मृत पड़े थे। वही जब राजा की नींद खुली तो उन्होंने देखा कि कुछ लोग जमीन पर मृत पड़े हैं। राजा समझ गया कि वह सभी उसे मारने के लिए आए थे, लेकिन किसी ने उन्हें ही मौत की नींद सुला दी। यह देखकर राजा ने कहा कि जंगल में ऐसा कौन है, जिसने उसकी जान बचाई है। तभी आकाशवाणी हुई कि हे राजन भगवान विष्णु ने तुम्हारी जान बचाई है। तुमने पिछले जन्म में आमलकी एकादशी व्रत कथा सुना था और उसी का फल है कि आज तुम शत्रुओं से घिरे होने के बावजूद जीवित हो। राजा अपने नगर लौटा और सुखीपूर्वक राज करने लगा और धर्म के कार्य करने लगा




पूजा 

डॉ ममता 

मेरी एक जूनियर (नेहा,नाम बदला है) , बहुत ही व्यस्त ब्रांच में है। पति भी डॉक्टर है और नेहा के कंपेयर में थोड़ा कम व्यस्त रहता है। दोनों ससुराल से अलग रहते है क्योंकि ससुराल किसी छोटी जगह पर है, यह दोनों नए नए कमाने के लिए फील्ड में आए है,तो अभी कैरियर पर ध्यान देना भी जरूरी है। इनका एक छोटा सा बेबी है, शायद ५_६ महीने का नेहा बहुत ही मेहनती है, मैं अच्छे से उसे जानती हूं। उसके जीवन के हर संघर्ष से अच्छे से वाकिब हूं। कामचोर बिल्कुल भी नही है। घर और काम अच्छे से हैंडल करती होगी। पति भी अच्छे विचारों वाला इंसान है।

अब हुआ यह है कि शादी के बाद से जब भी कोई पूजा आती है तो सासू मां बहू को फोन करके पूजा करने को बोल देती है। कोई भी पूजा हो...जो उनके कुल के अनुरूप होती होगी। (इसमें मुझे तो कुछ गलत नही लगा,उनका कर्तव्य है यह) जैसे नवरात्रि की पूजा ही ले लेते है।

तो उस दिन नेहा का एक्स्ट्रा काम बढ़ जाता है, तो वो पूजा  बहुत हड़बड़ी में करती है। कई बार मना भी कर देती है कि मुझसे पूजा नही होगी....तो पति समझाता है कि हम नही करेंगे तो बच्चे को कैसे सिखाएंगे। बात भी सही है...मुझे भी पति की बात में दम लगा।

एक दिन नेहा को बहुत गुस्सा आया,उसने कह दिया कि पूजा तक तो ठीक है,पर कन्या को खाना खिलाने और हवन करने का समय मेरे पास नही है।

क्योंकि उसे मरीज देखने जाना होता था,देरी से पहुंचते ही कोई न कोई मरीज लड़ाई करना शुरू कर 

देता था और मैनेजमेंट का उस पर , समय पर आने का प्रेशर आ जाता था।..






पति के समझाने पर उसने गुस्से में बोल दिया... "यार तुम्हें तो जाने की जल्दी नही है, आज तुम ही पूजा कर लो ...मैं देख रही हूं।"

पति झुंझलाने लगा तो नेहा ने पूछा ..."अच्छा पहले तो यह बताओ कि पूजा किसकी करनी है...और कैसे?"

पति को नवरात्रि में यह भी पता नही था कि किसकी पूजा करनी होती है। तो आरती कौनसी गानी है ...यह तो अब गूगल पर भी नही ढूंढ पाया। पत्नी तो सामने ही खड़ी थी।

तिलक कौनसी अंगुली से लगाना है यह भी पता नहीं था। बस हो गया बॉम्ब ब्लास्ट 

नेहा ने भी सुनाना शुरू कर दिया..."तुम्हारी मम्मी और तुम इतने पूजा पाठ वाले बनते हो। और तुन्हें तो पूजा की abcd तक पता नही। कम से कम एक दो बार ही घर की पूजा में खड़े हो जाते, मुझे संस्कार सिखाने में लगे हो.. दोनों मां बेटे… मां ने बेटे को कभी कुछ सिखाया ही नही..हमारे यहां आरती में सबको कंपलसरी खड़ा होना था। पूरा परिवार मिलकर आरती करता था।

मुझे सब आता है ,बस मेरे पास समय नहीं है।...मन ही मन मैं भगवान से सही से पूजा न करने पर  बहुत माफ़ी भी मांग लेती हूं। डॉक्टर का कर्म हमेशा सबसे पहले होता है।समय पर ड्यूटी पहुंचना मेरे लिए ज्यादा जरूरी है।

अगर तुम मेरी थोड़ी भी हेल्प कर दे तो वो मैं आज भी सब काम अच्छे से कर सकती हूं।"

बात सही भी है, पूजा की सारी जिम्मेदारी बहू पर ही क्यों आती है, दोनों को मिलकर करने को क्यों नही कहा जाता। 

यहां मैं इस नई पीढ़ी की बहू से एकदम सहमत हूं। मेरी सासू मां भी मुझे ही कहती थी। और मेरी मम्मी जी मेरी भाभी को। सच है ...क्यों हम घर के बेटों को बचपन से ही रीति रिवाज नही सिखाते। बहू के साथ साथ घर के बेटे को भी कुल के रीति रिवाज पता होना चाहिए।

नई पीढ़ी की कुछ बातें.. मुझे बहुत सही लगती है,जिन पर मैंने पहले कभी विचार ही नही किया।

यह किस्सा हमारे साथ भी आगे हो सकता है, तो मेरी उन सभी माताओं से विनती है जिनके बेटे अभी छोटे है । अपने बेटे और बेटियों दोनों को बराबर तरीके से घर के हर रीति रिवाज में हिस्सेदार बनाए, उन्हें घर की हर पूजा के बारे में विस्तार से समझाए।

यह लेख मेरे लिए बहुत महत्वपूर्ण है,क्योंकि कई महिलाएं त्योहार आते ही पीरियड पोस्ट पौंड करने की दवाई पूछती है,क्योंकि पूजा कौन करेंगा ? पति को कुछ आता ही नही। ज्यादा मेडिसिन खाना नुकसान ही देता है। यह बात भी सही है कि कर्म ही पूजा है,सबसे पहले एक अच्छा इंसान बनना चाहिए, बड़ो का सम्मान करना चाहिए।  बहू बेटे दोनों को मिलकर परिवार की रीति रिवाज़ को आगे बड़ाना चाहिए। अकेली बहू को सारी जिमेदारी उठाने पर मजबूर नही करना चाहिए। किसी भी काम को जबरदस्ती नहीं कराना चाहिए। पूरी श्रद्धा से किया गया काम ही फल देता है। धीरे धीरे उम्र के साथ समझ आती है और हम आध्यात्मिक भी होते जाते है। 





कद लम्बा करने के उपाय 

आज कल के खान-पान में इतना बदलाव आ चुका है कि इसका असर सबसे ज्यादा हमारे शरीर पर देखने को मिलता है। हमारे शरीर की लम्बाई हमारे व्यक्तित्व का अहम हिस्सा है जिनका कद लंबा होता है वो दिखने में भी आकर्षक लगते है, लेकिन बहुत से लोग ऐसे है जो  कम हाइट को लेकर सबसे ज्यादा परेशान रहते है। जिसके लिए न जाने वह तरह तरह के हानिकारक पदार्थों का भी इस्तेमाल करते है। जानिए कौन से घरेलू नुस्खों को अपनाकर, आप अपना कद लंबा कर सकते है।

पालक में केल्शियम , फाइबर, विटामिन्स और आयरन भरपूर होता है जिससे हमारे शरीर की मांसपेशियों को ताकत मिलती है। और हमारे शरीर को बढ़ने में भी मदद मिलती है। ब्रोकोली एक ऐसी सब्जी है जो की फूलगोभी की तरह दिखती है जिसका रंग हरा होता है। इस सब्जी को खाने से विटामिन सी मिलता है जो शरीर में खून की मात्रा को बढ़ाता हैं और जिससे लंबाई बढ़ने में मदद मिलती है। शलगम हाइट बढ़ाने में काफी असरदार होता है। इसे कच्चा भी खाया जा सकता है। बीन्स में कई प्रकार के पोषक तत्व होते है जैसे फाइबर, विटामिन होता है। आप इसकी सब्जी बना कर भी खा सकते है। गाजर के फायदे सबसे  ज्यादा फायदे होते है। इसके सेवन से लंबाई में भी मदद होती है। बंदगोभी में  प्रोटीन, विटामिन्स और आयरन होता है जोकि हाइट हारमोन बढ़ने में मदद करता है। शरीर के सही विकास के लिए संतुलित आहर खाना जरूरी होता है जो आपको विटामिन ए, बी, सी, डी तथा अन्य विटामिन प्रदान करता है। इसके लिए दूध, दही, अंकुरित अनाज, फल, सब्जियाँ आदि का नियमित सेवन करें।  लंबी हाइट पाने के लिए रोजाना व्यायाम जरूर करें क्योंकि ऐसा करने से आपका शरीर में जल्दी से विकास होता है। पश्चिमोत्तानासन और ताड़ आसन विशेष लाभकारी हैं। बांस का मुरब्बा या बांस का आचार रोजाना प्रयोग करना चाहिए।





मार्च मास  2024 के महत्वपूर्ण दिवस 


1 मार्च - शून्य भेदभाव दिवस
हर साल 1 मार्च को विश्व स्तर पर शून्य भेदभाव दिवस मनाया जाता है ताकि हर कोई उम्र, लिंग, जातीयता, त्वचा का रंग, ऊंचाई, वजन आदि की परवाह किए बिना सम्मान के साथ जीवन जी सके। शून्य भेदभाव दिवस का प्रतीक तितली है . सबसे पहले 1 मार्च 2014 को संयुक्त राष्ट्र ने यह दिवस मनाया था.

1 मार्च- विश्व नागरिक सुरक्षा दिवस
विश्व नागरिक सुरक्षा दिवस विश्व जनता का ध्यान नागरिक सुरक्षा के महत्व की ओर आकर्षित करने और इसके लिए जिम्मेदार सभी सेवाओं के प्रयासों, बलिदानों और उपलब्धियों को श्रद्धांजलि देने के लिए हर साल 1 मार्च को मनाया जाता है। आपदाओं से लड़ना. अंतर्राष्ट्रीय नागरिक सुरक्षा संगठन (ICDO) ने 1990 में इस दिन को मनाने का निर्णय लिया। 

1 मार्च- विश्व प्रशंसा दिवस

विश्व प्रशंसा दिवस प्रतिवर्ष 1 मार्च को मनाया जाता है। यह एक वैश्विक उत्सव है जो वास्तविक प्रशंसाओं के माध्यम से दयालुता को बढ़ावा देने और आत्माओं को ऊपर उठाने के लिए समर्पित है।

1 मार्च: स्व-चोट जागरूकता दिवस

यह 1 मार्च को विश्व स्तर पर मनाया जाता है। इस दिन को मनाने का उद्देश्य आत्म-चोट से जुड़े कलंक को दूर करना और माता-पिता, परिवार के सदस्यों, शिक्षकों और स्वास्थ्य देखभाल पेशेवरों को आत्म-नुकसान के संकेतों को पहचानने के लिए प्रोत्साहित करना है।

3 मार्च - विश्व वन्यजीव दिवस
यह दिन विश्व स्तर पर 3 मार्च को मनाया जाता है और यह सतत विकास लक्ष्य 12 यानी पानी के बिना जीवन के साथ निकटता से जुड़ा हुआ है, जो समुद्री प्रजातियों पर ध्यान केंद्रित करता है और हमारे रोजमर्रा के जीवन में समुद्री वन्यजीवों की समस्याओं, महत्वपूर्ण मुद्दों पर प्रकाश डालता है। विश्व वन्यजीव दिवस 2023 का विषय "पारिस्थितिकी तंत्र बहाली के लिए प्रमुख प्रजातियों को पुनर्प्राप्त करना" है।

3 मार्च - विश्व श्रवण दिवस
दुनिया भर में बहरेपन को रोकने और सुनने की क्षमता को बढ़ावा देने के बारे में जागरूकता बढ़ाने के 






लिए हर साल 3 मार्च को विश्व श्रवण दिवस मनाया जाता है।

4 मार्च - राष्ट्रीय सुरक्षा दिवस
भारत में राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद द्वारा 4 मार्च को राष्ट्रीय सुरक्षा दिवस मनाया जाता है। यह दिन लोगों को वित्तीय हानि, स्वास्थ्य समस्याओं और उनके जीवन में आने वाली अन्य समस्याओं से सुरक्षित करने के लिए मनाया जाता है।

4 मार्च - कर्मचारी प्रशंसा दिवस

कर्मचारी प्रशंसा दिवस 4 मार्च को मनाया जाता है। यह दिन हमें याद दिलाता है कि किसी भी सफल व्यवसाय के लिए नियोक्ता-कर्मचारी का मजबूत रिश्ता होना जरूरी है।

8 मार्च - अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस
यह दिन महिलाओं की सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक उपलब्धियों का जश्न मनाने के लिए हर साल 8 मार्च को विश्व स्तर पर मनाया जाता है। साथ ही, यह लैंगिक समानता में तेजी लाने के लिए एक कार्रवाई है। बैंगनी वह रंग है जो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर महिलाओं का प्रतीक है। बैंगनी, हरा और सफेद रंग का संयोजन महिलाओं की समानता का प्रतीक है जिसकी उत्पत्ति 1908 में यूके में महिला सामाजिक और राजनीतिक संघ से हुई थी। क्या आप जानते हैं कि बैंगनी रंग न्याय और गरिमा का प्रतीक है, हरा रंग आशा और सफेद शुद्धता का प्रतीक है?

8 मार्च- महाशिवरात्रि

महा शिवरात्रि हिंदुओं के सबसे महत्वपूर्ण और शुभ त्योहारों में से एक है। वार्षिक उत्सव भगवान शिव और देवी पार्वती के साथ उनके पवित्र मिलन का सम्मान करता है। शिव और शक्ति मिलकर प्रेम, शक्ति और एकता का प्रतिनिधित्व करते हैं, यह संलयन रात में होता है।  

10 मार्च - सीआईएसएफ स्थापना दिवस
केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (सीआईएसएफ) स्थापना दिवस हर साल 10 मार्च को मनाया जाता है। CISF की स्थापना 1969 में भारत की संसद के अधिनियम के तहत की गई थी। यह केंद्रीय गृह मंत्रालय के अधीन कार्य करता है और इसका मुख्यालय नई दिल्ली में है। यह संगठन समुद्री मार्ग, वायुमार्ग और भारत में कुछ प्रमुख प्रतिष्ठानों के लिए काम करता है। सीआईएसएफ में कुछ आरक्षित बटालियनें हैं जो कानून और व्यवस्था की रक्षा के लिए राज्य पुलिस के साथ काम करती हैं।

12 मार्च - रामकृष्ण जयंती

हिंदू चंद्र कैलेंडर के अनुसार, रामकृष्ण का जन्म फाल्गुन महीने में शुक्ल पक्ष की द्वितीया को हुआ था। हर साल उनकी जयंती सभी रामकृष्ण मठों में मनाई जाती है। इस वर्ष, यह 4 मार्च को मनाया जाएगा। उनके अनुसार, "मानव जन्म का एकमात्र उद्देश्य ईश्वर को स्वीकार करना है"।

12 मार्च - मॉरीशस दिवस
देश के इतिहास में हुई दो प्रमुख घटनाओं को चिह्नित करने के लिए हर साल 12 मार्च को मॉरीशस दिवस मनाया जाता है, यानी 1968 में ब्रिटेन से आजादी और 1992 में यह एक गणतंत्र बन गया।




13 मार्च - धूम्रपान निषेध दिवस (मार्च का दूसरा बुधवार)
धूम्रपान के माध्यम से तंबाकू के हानिकारक स्वास्थ्य प्रभावों के बारे में जागरूकता बढ़ाने और दुनिया भर में लोगों को धूम्रपान छोड़ने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए हर साल मार्च के दूसरे बुधवार को धूम्रपान निषेध दिवस मनाया जाता है।

14 मार्च – पाई दिवस
14 मार्च को दुनिया भर में पाई दिवस मनाया जाता है। पाई एक प्रतीक है जिसका उपयोग गणित में स्थिरांक को दर्शाने के लिए किया जाता है। यह एक वृत्त की परिधि और उसके व्यास का अनुपात है जो लगभग है। 3.14.

14 मार्च - नदियों के लिए अंतर्राष्ट्रीय कार्रवाई दिवस
हर साल 14 मार्च को नदियों की रक्षा के लिए आवाज उठाने और नदियों के लिए नीतियों में सुधार की मांग करने के लिए नदियों के लिए अंतर्राष्ट्रीय कार्रवाई दिवस मनाया जाता है। यह हमारी नदियों के सामने मौजूद खतरों के बारे में एक-दूसरे को शिक्षित करने और समाधान खोजने का दिन है।

15 मार्च - विश्व उपभोक्ता अधिकार दिवस
यह उपभोक्ता अधिकारों और जरूरतों के बारे में वैश्विक जागरूकता बढ़ाने के लिए हर साल 15 मार्च को मनाया जाता है। यह दिन यह मांग करने का मौका है कि सभी उपभोक्ताओं के अधिकारों का सम्मान और संरक्षण किया जाए और सामाजिक अन्याय के खिलाफ विरोध किया जाए।

16 मार्च - राष्ट्रीय टीकाकरण दिवस
हर साल 16 मार्च को भारत में राष्ट्रीय टीकाकरण दिवस मनाया जाता है जिसे राष्ट्रीय टीकाकरण दिवस (IMD) के रूप में भी जाना जाता है। यह पहली बार 16 मार्च 1995 को देखा गया था जब ओरल पोलियो वैक्सीन की पहली खुराक दी गई थी। यह पृथ्वी ग्रह से पोलियो उन्मूलन के लिए जागरूकता बढ़ाने का एक प्रयास है।

17 मार्च - विश्व नींद दिवस

विश्व नींद दिवस प्रत्येक वर्ष के स्प्रिंग वर्नल इक्विनॉक्स से पहले शुक्रवार को आयोजित किया जाता है। इस वर्ष, यह 17 मार्च को मनाया जाएगा। यह चिकित्सा, शिक्षा, सामाजिक पहलुओं और ड्राइविंग सहित नींद से संबंधित महत्वपूर्ण मुद्दों पर कार्रवाई का आह्वान है। 'नींद स्वास्थ्य के लिए जरूरी है' का नारा. 

18 मार्च - आयुध कारखाना दिवस (भारत)
18 मार्च को पूरे भारत में हर साल आयुध कारखाना दिवस मनाया जाता है। इस अवसर पर, ऑर्डनेंस फैक्ट्री, फील्ड गन फैक्ट्री, स्मॉल आर्म्स फैक्ट्री, ऑर्डनेंस पैराशूट फैक्ट्री और ऑर्डनेंस इक्विपमेंट फैक्ट्री इस दिन को स्वीकार करते हैं।






20 मार्च - अंतर्राष्ट्रीय प्रसन्नता दिवस
अंतर्राष्ट्रीय प्रसन्नता दिवस हर वर्ष 20 मार्च को मनाया जाता है। 2013 से, संयुक्त राष्ट्र दुनिया भर के लोगों के जीवन में खुशी के महत्व को पहचानने के लिए इस दिन को मनाता है। संयुक्त राष्ट्र ने गरीबी को खत्म करने, असमानता को कम करने और हमारे ग्रह की रक्षा के लिए 2015 में 17 सतत विकास लक्ष्य लॉन्च किए, जो तीन प्रमुख पहलू हैं जो कल्याण और खुशी की ओर ले जाते हैं।

20 मार्च - विश्व गौरैया दिवस गौरैया के संरक्षण के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए 20 मार्च को दुनिया भर में
विश्व गौरैया दिवस मनाया जाता है। यह दिन लोगों और गौरैया के बीच संबंधों का भी जश्न मनाता है; गौरैया के प्रति प्रेम, हमारे जीवन में उनके महत्व के बारे में जागरूकता आदि फैलाता है।

20 मार्च: विश्व मौखिक स्वास्थ्य दिवस

मौखिक स्वास्थ्य के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए 20 मार्च को विश्व मौखिक स्वास्थ्य दिवस मनाया जाता है। विश्व मौखिक स्वास्थ्य दिवस 2023 का विषय "अपने मुँह पर गर्व करें" है। दूसरे शब्दों में, इसकी कद्र करें और इसकी देखभाल करें। 

21 मार्च - विश्व वानिकी दिवस
21 मार्च को, पृथ्वी पर जीवन चक्र को संतुलित करने के लिए वनों के मूल्यों, महत्व और योगदान के बारे में सार्वजनिक जागरूकता बढ़ाने के लिए हर साल विश्व वानिकी दिवस या अंतर्राष्ट्रीय वन दिवस मनाया जाता है। 1971 में, यूरोपीय कृषि परिसंघ की 23वीं महासभा में विश्व वानिकी दिवस की स्थापना की गई थी।

21 मार्च - विश्व डाउन सिंड्रोम दिवस

विश्व डाउन सिंड्रोम दिवस हर साल 21 मार्च को मनाया जाता है। डाउन सिंड्रोम मानव में स्वाभाविक रूप से होने वाली एक गुणसूत्र व्यवस्था है जिसके परिणामस्वरूप सीखने की शैली, शारीरिक विशेषताओं या स्वास्थ्य पर परिवर्तनशील प्रभाव पड़ता है। महासभा ने दिसंबर 2011 में 21 मार्च को विश्व डाउन सिंड्रोम दिवस के रूप में घोषित किया है।

21 मार्च - विश्व कविता दिवस

मानव मन की रचनात्मक भावना को पकड़ने की कविता की अद्वितीय क्षमता को पहचानने के लिए हर साल 21 मार्च को विश्व कविता दिवस मनाया जाता है। इस दिन को मनाने के लिए 21 मार्च को 1999 में पेरिस में यूनेस्को के 30वें सत्र के दौरान अपनाया गया था।

22 मार्च- उगादि

उगादि, हिंदू त्योहार इस साल 22 मार्च को मनाया जाएगा। इसे युगादी के नाम से भी जाना जाता है, यह दिन आंध्र प्रदेश के नए साल का प्रतीक है जो हिंदू चंद्र कैलेंडर माह चैत्र के पहले दिन शुरू होता है।






22 मार्च- गुड़ी पड़वा

गुड़ी पड़वा त्योहार 22 मार्च को महाराष्ट्र और गोवा में बड़े उत्साह के साथ मनाया जाएगा। गुड़ी पड़वा वसंत ऋतु की शुरुआत और महाराष्ट्र और गोवा के मूल निवासियों के लिए नए साल की शुरुआत का प्रतीक है। 

22 मार्च- बिहार दिवस

बिहार दिवस, या बिहार दिवस, बिहार राज्य के गठन को चिह्नित करने के लिए 22 मार्च को मनाया जाता है। यह राज्य में सार्वजनिक अवकाश है। इस दिन, अंग्रेजों ने 1912 में बंगाल से बिहार राज्य बनाया था। इस वर्ष 110वां बिहार दिवस मनाया जाएगा। 22 मार्च से 24 मार्च तक गांधी मैदान और श्रीकृष्ण मेमोरियल में हर्षोल्लास के साथ मनाया जाएगा. 

22 मार्च - विश्व जल दिवस
22 मार्च को मीठे पानी के महत्व के बारे में जागरूकता बढ़ाने और मीठे पानी के संसाधनों के स्थायी प्रबंधन की वकालत करने के लिए प्रतिवर्ष विश्व जल दिवस मनाया जाता है। इसे 1992 में रियो डी जेनेरियो में पर्यावरण और विकास पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (यूएनसीईडी) में मनाने की सिफारिश की गई थी। और फिर, 1993 में पहला विश्व जल दिवस मनाया गया।

23 मार्च - विश्व मौसम विज्ञान दिवस
समाज की सुरक्षा और भलाई के लिए मौसम और जलवायु की ओर ध्यान आकर्षित करने के लिए हर साल 23 मार्च को विश्व मौसम विज्ञान दिवस मनाया जाता है। 23 मार्च 1950 को विश्व मौसम विज्ञान संगठन अस्तित्व में आया। विश्व मौसम विज्ञान दिवस 2023 का विषय है "प्रारंभिक चेतावनी और प्रारंभिक कार्रवाई। आपदा जोखिम न्यूनीकरण के लिए जल-मौसम विज्ञान और जलवायु सूचना।"

23 मार्च - शहीद दिवस

शहीद दिवस या शहीद दिवस भारत में कई तिथियों पर मनाया जाता है। 23 मार्च को उस दिन के रूप में याद किया जाता है जब तीन बहादुर स्वतंत्रता सेनानियों, भगत सिंह, शिवराम राजगुरु और सुखदेव थापर को अंग्रेजों ने फांसी दे दी थी। इसके अलावा, 30 जनवरी को महात्मा गांधी की याद में शहीद दिवस या शहीद दिवस के रूप में मनाया जाता है।

24 मार्च - विश्व क्षय रोग (टीबी) दिवस
विश्व टीबी दिवस हर साल 24 मार्च को उस तारीख को मनाने के लिए मनाया जाता है जब डॉ. रॉबर्ट कोच ने 1882 में माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरकुलोसिस, बैसिलस जो टीबी का कारण बनता है, की खोज की घोषणा की थी। यह दिन शिक्षित करने के लिए मनाया जाता है। टीबी के बारे में लोग, दुनिया भर में इसका प्रभाव।

25 मार्च - अजन्मे बच्चे का अंतर्राष्ट्रीय दिवस

यह 25 मार्च को मनाया जाता है। यह अजन्मे भ्रूणों का वार्षिक स्मरणोत्सव है और गर्भपात के विरोध 






के दिन के रूप में मनाया जाता है। 

25 मार्च - हिरासत में लिए गए और लापता स्टाफ सदस्यों के साथ एकजुटता का अंतर्राष्ट्रीय दिवस

यह हर साल 25 मार्च को संयुक्त राष्ट्र द्वारा एलेक कोललेट के अपहरण की सालगिरह मनाने के लिए मनाया जाता है, जो एक पत्रकार थे और संयुक्त राष्ट्र के लिए काम करते समय उनकी मृत्यु हो गई थी।

25 मार्च- होली

यह राधा कृष्ण के स्थायी और स्वर्गीय प्रेम का सम्मान करता है। चूँकि यह हिरण्यकशिपु पर हिंदू विष्णु, जिन्हें नरसिम्हा नारायण के नाम से भी जाना जाता है, की विजय का सम्मान करता है, यह दिन बुराई पर अच्छाई की जीत का भी प्रतिनिधित्व करता है।

26 मार्च - मिर्गी का बैंगनी दिन

यह मिर्गी और लोगों के जीवन पर इसके प्रभाव के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए 26 मार्च को मनाया जाता है। यह दिन मिर्गी से पीड़ित लोगों को यह भी याद दिलाता है कि वे अकेले नहीं हैं।

27 मार्च - विश्व रंगमंच दिवस
कला के रूप "थिएटर" के महत्व को बढ़ाने और सरकारों, राजनेताओं और संस्थानों के लिए एक चेतावनी के रूप में कार्य करने के लिए 1962 से दुनिया भर में हर साल 27 मार्च को विश्व रंगमंच दिवस मनाया जाता है, जिन्होंने अभी तक इसे मान्यता नहीं दी है। लोगों के लिए इसका मूल्य और आर्थिक विकास के लिए इसकी क्षमता का भी एहसास नहीं हुआ है।

29 मार्च- विश्व पियानो दिवस

विश्व पियानो दिवस पूरी दुनिया में बड़े हर्ष और धूमधाम से मनाया जा रहा है। कार्यक्रम का उद्देश्य पियानो से संबंधित पहल के लिए एक मंच प्रदान करना है जो संगीत नवाचार को आगे बढ़ाएगा और पियानो बजाने की खुशी फैलाएगा।

30 मार्च- रामनवमी - राम नवमी एक लोकप्रिय हिंदू त्योहार है जो भगवान राम के जन्म का जश्न मनाता है। वह भगवान विष्णु के सातवें अवतार हैं। यह दिन हर साल चैत्र नवरात्रि के नौवें दिन मनाया जाता है।30 मार्च- राजस्थान दिवस - राजस्थान राज्य के गठन के उपलक्ष्य में 30 मार्च को पूरे राज्य में मनाया जाता है। इस दिन 1949 में, चार राज्य, अर्थात् जोधपुर, जयपुर, बीकानेर और जैसलमेर, संयुक्त राजस्थान राज्य में शामिल हो गए और इस क्षेत्र को वृहद राजस्थान के रूप में जाना जाने लगा।

31 मार्च- एफिल टावर दिवस

टावर के उद्घाटन के सम्मान में हर साल 31 मार्च को एफिल टावर दिवस मनाया जाता है। 1889 में आज ही के दिन इस गगनचुंबी इमारत को जनता के सामने लाया गया था। और 134 साल बाद भी यह स्मारक हर दिन हजारों पर्यटकों को आकर्षित करता रहता है


मार्च मास 2024 का पंचांग 

भारतीय व्रतोत्सव मार्च -2024

दि. 3- कालाष्टमी, श्री नाथजी पाटोत्सव (नाथद्वारा),दि. 4- सीताष्टमी, हलाष्टमी,दि. 5- गुरु रामदास नवमी, स्वामी दयानन्द सरस्वती जयंती,दि. 6- विजया एकादशी व्रत (स्मा.),दि. 7- विजया एकादशी व्रत (वै.),दि. 8- प्रदोष व्रत, श्री महाशिवरात्रि,दि. 10- अमावस्या पुण्य,दि. 12 - श्री रामकृष्ण परमहंस जयंती, फुलैरा दूज,दि. 13- विनायक चतुर्थी व्रत,दि. 14- संक्रांति पुण्य,दि. 17- होलाष्टक प्रारम्भ, दुर्गाष्टमी,दि.20- आमला एकादशी व्रत, मेला खाटूश्यामजी 2 दिन का, रामस्नेही सम्प्रदाय शाहपुर का फूलडोल महोत्सव,दि.21- गोविन्द द्वादशी,दि.22- प्रदोष व्रत,दि. 24- सत्य व्रत, होलिका दहन,दि.25- श्री चैतन्य महाप्रभु जयंती, होलाष्टक समाप्त, धुलेंडी,दि. 26- बसंतोत्सव, होला मेला आनंदपुर साहिब दि.28- श्री गणेश चतुर्थी व्रत, चंद्रोदय 21/28,2ि30- रंग पंचमी, नवचण्डी मेला प्रा. (मेरठ),दि.31- एकनाथ षष्ठी

पंचक विचार मार्च -2024  

पंचक विचार -(धनिष्ठा नक्षत्र के तृतीय चरण से रेवती नक्षत्र तक) पंचको में दक्षिण दिशा की ओर यात्रा करना मकान दुकान आदि की छत डालना चारपाई पलंग आदि बुनना,दाह संस्कार,बांस की चटाई दीवार प्रारंभ करना आदि स्तंभ रोपण तांबा पीतल तृण काष्ट आदि का संचय करना आदि कार्यों का निषेध माना जाता है समुचित उपाय एवं पंचक शांति करवा कर ही उक्त कार्यों का संपादन करना कल्याणकारी होगा ध्यान रहेगा  पंचर नक्षत्रों का विचार मात्र उपरोक्त विशेष कृतियों के लिए ही किया जाता है विवाह मंडल आरंभ गृह प्रवेश प्रवेश उपनयन आदि मुद्दों से तो पंचक नक्षत्रका प्रयोग शुभ माना जाता है पंचक विचार- दिनांक 08 को 21-20 से दिनांक 12 को 20-29 बजे तक पंचक है | 

अधिक जानकारी के लिए संपर्क करे शर्मा जी - 9312002527,9560518227






भद्रा विचार मार्च -2024

भद्रा काल का शुभ अशुभ विचार - भद्रा काल में विवाह मुंडन, गृह प्रवेश, रक्षाबंधन आदि मांगलिक कृत्य का निषेध माना जाता है परंतु भद्रा काल में शत्रु का उच्चाटन करना,स्त्री प्रसंग में,यज्ञ करना,स्नान करना,अस्त्र शस्त्र का प्रयोग,ऑपरेशन कराना, मुकदमा करना,अग्नि लगाना,किसी वस्तु को काटना,भैस,घोड़ा व ऊंट संबंधी कार्य प्रशस्त माने जाते हैं सामान्य परिस्थिति में विवाह आदि शुभ मुहूर्त में भद्रा का त्याग करना चाहिए परंतु आवश्यक परिस्थितिवश अति आवश्यक कार्य भूलोक की भद्रा ,भद्रा मुख छोड़कर कर भद्रा पुच्छ में शुभ कार्य कर सकते है |

अधिक जानकारी के लिए संपर्क करे शर्मा जी - 9312002527,9560518227

दिनांक 

शुरू 

दिनांक 

समाप्त 

02

07-54

02

19-20

05

19-17

06

06-31

08

21-58

09

08-09

13

14-41

14

01-26

16

21-38

17

09-40

20

13-19

21

02-23

24

09-55

24

23-12

28

06-01

28

18-57

31

21-31

01

09-26


अधिक जानकारी के लिए संपर्क करे शर्मा जी - 9312002527,9560518227

मूल विचार मार्च -2024

दि. 3 को 15/54 से दि. 5 को 15/59 तक, दि. 11 को 23/02 से दि. 13 को 18/24 तक, दि. 20 को 22/38 से दि. 23 को 4/27 तक, दि. 30 को 22/03 से दि. 1 अप्रैल को 23/11 बजे तक गण्ड मूल नक्षत्र हैं।

ग्रह स्थिति मार्च -2024

दि. 7 बुध मीन में दि. 7 शुक्र कुम्भ में दि. 10 बुध पश्चिमोदय दि. 14 सूर्य मीन में दि. 15 मंगल कुम्भ में दि. 21 शनि पूर्वोदय दि. 26 बुध मेष में दि. 31 शुक्र मीन में




सर्वार्थ सिद्धि योग मार्च -2024 

दैनिक जीवन में आने वाले महत्वपूर्ण कार्यों के लिए शीघ्र ही किसी  शुभ मुहूर्त का अभाव हो,किंतु शुभ मुहर्त के लिए अधिक दिनों तक रुका ना जा सकता हो तो इन सुयोग्य वाले मुहर्तु  को सफलता से ग्रहण किया जा सकता है | इन से प्राप्त होने वाले अभीष्ट फल के विषय में संशय नहीं करना चाहिए यह योग हैं सर्वार्थ सिद्धि,अमृत सिद्धि योग एवं रवियोग | योग्यता नाम तथा गुण अनुसार सर्वांगीण सिद्ध कारक  है| 

अधिक जानकारी के लिए संपर्क करे शर्मा जी - 9312002527,9560518227

दिनांक

प्रारंभ

दिनांक

समाप्त

08

06-43

08

10-40

11

01-54

11

06-39

12

20-29

13

06-37

16

06-34

16

16-05

24

07-33

25

06-23

29

20-35

30

06-18

31

22-56

01

06-15


सुर्य उदय- सुर्य अस्त मार्च -2024 


दिनांक

उदय 

दिनांक

अस्त 

06-50 

1

18-17 

5

06-46 

5

18-20 

10

06-40 

10

18-23 

15

06-35 

15

18-26 

20

06-29 

20

18-29 

25

06-23 

25

18-31 

30 

06-17 

30 

18-35 

 





चौघड़िया मुहूर्त 

चौघड़िया मुहूर्त देखकर कार्य या यात्रा करना उत्तम होता है। एक तिथि के लिये दिवस और रात्रि के आठ-आठ भाग का एक चौघड़िया निश्चित है। इस प्रकार से 12 घंटे का दिन और 12 घंटे की रात मानें तो प्रत्येक में 90 मिनट यानि 1.30 घण्टे का एक चौघड़िया होता है जो सूर्योदय से प्रारंभ होता है|

 राहू काल 

 राहुकाल -राहुकाल दक्षिण भारत की देन है,दक्षिण भारत में राहु काल में कृत्य करना अच्छा नहीं माना जाता, राहु काल में शुभ कृतियों में वर्जित करने की परंपरा अब हमारे उत्तरी भारत में भी अपनाने लगे हैं राहुकाल प्रतिदिन सूर्यादि वारों में भिन्न-भिन्न समय पर केवल डेढ़ डेढ़ घंटे के लिए घटित होता है |

अधिक जानकारी के लिए संपर्क करे शर्मा जी - 9312002527,9560518227

स्वयं सिद्ध मुहूर्त

 स्वयं सिद्ध मुहूर्त चैत्र शुक्ल प्रतिपदा वैशाख शुक्ल तृतीया अक्षय तृतीया आश्विन शुक्ल दशमी विजयदशमी दीपावली के प्रदोष काल का आधा भाग भारत में से इसके अतिरिक्त लोकाचार और देश आचार्य के अनुसार निम्नलिखित कृतियों को भी स्वयं सिद्ध मुहूर्त माना जाता है बडावली नामी देव प्रबोधिनी एकादशी बसंत पंचमी फुलेरा दूज इन में से किसी भी कार्य को करने के लिए पंचांग शुद्धि देखने की आवश्यकता नहीं है परंतु विवाह आदि में तो पंचांग में दिए गए मुहूर्त व कार्य करना श्रेष्ठ रहता है।


संबंध तो ईश्वर की देन है

सिर्फ रीति-रिवाज में थोड़ा-बहुत फर्क है...

कोई प्रेम से निभाता है तो कोई स्वार्थ से।

आपका पहला कर्तव्य है स्वयं को प्रसन्न रखना, यदि आप प्रसन्न हैं तो आप दूसरों को भी प्रसन्न रख पाएंगे







  


ओट्स के चमत्कारिक औषध गुण


रात में भिगाए हुए ओट्स हैं ज्यादा सेहतमंद, तेजी से घटेगा वजन और मिलेंगे न्यूट्रिएंट्स पकाकर नहीं, बल्कि रात में भिगाकर ओट्स खाना आपके लिए बहुत फायदेमंद होता है। भीगे हुए ओट्स खाने से वजन तेजी से कम होता है और कोलेस्ट्रॉल घटता है। नाश्ते में ओट्स खाना सेहतमंद होता है। नाश्ते में ओट्स खाना आपको भी पसंद होगा। ओट्स हेल्दी होते हैं और वजन घटाने में मदद करते हैं। मगर क्या आप जानते हैं कि इन्हें आंच पर पकाने के बजाय रातभर भिगोने के बाद खाना ज्यादा सेहतमंद होता है। अगर आप रात में भिगाकर ओट्स खाएं, तो ये आपके लिए ज्यादा फायदेमंद होंगे, क्योंकि इसमें न्यूट्रिएंट्स (पोषक तत्व) पकाए हुए ओट्स के मुकाबले बहुत ज्यादा होते हैं आइए आपको बताते हैं कैसे बनाएं ये ओट्स और कितना फायदेमंद है ये ओट्स कैसे बनाएं ये ओट्स भिगोकर ओट्स बनाना बहुत आसान है। इसके लिए आप ओट्स को रात में अपने मनपसंद लिक्विड जैसे- दूध, पानी, अलमंड मिल्क, कोकोनट मिल्क, दही आदि किसी एक में भिगा कर रख दें। सुबह ये फूल जाएंगे। इसके बाद इसमें अपने मनपसंद फल (केला, अंगूर, अनार, पाइन एप्पल, कीवी, संतरा, बेरीज, स्ट्रॉबेरी) और नट्स (काजू, बादाम, पिस्ता, किशमिश, गरी, मखाना, अखरोट आदि) काटकर डालें और खाएं। क्यों ज्यादा सेहतमंद हैं  भीगे हुए ओट्स - दूध, पानी या दही में भीगे हुए ओट्स, आंच में पकाए गए ओट्स से ज्यादा सेहतमंद होते हैं। रात में भिगाकर रखे गए ओट्स सुबह इतने मुलायम हो जाते हैं कि इन्हें खाया जा सके। इसके अलावा आंच में कोई भी खाद्य पदार्थ पकाने से उसके कई पोषक तत्व खत्म हो जाते हैं। रात में भिगाकर रखने से ओट्स बहुत धीरे-धीरे लिक्विड को सोखते हैं, जिससे ओट्स और लिक्विड दोनों के पोषक तत्व सुरक्षित रहते हैं।लंबे समय तक भीगने के कारण ओट्स में मौजूद सटार्च टूट जाते हैं, जिससे ओट्स में साइटिक एसिड कम हो जाता है। इससे ये आसानी से पच जाता है। तेजी से वजन घटाते हैं भीगे हुए ओट्स - रात में भिगाकर ओट्स खाने से आपका वजन तेजी से कम होता है। इसका कारण यह है कि ये ओट्स आंच में पकाए गए ओट्स के मुकाबले ज्यादा सुपाच्य और फाइबरयुक्त होता है। फाइबर ज्यादा होने के कारण आपका पेट देर तक भरा रहता है, आंतों की गंदगी साफ हो जाती है और आप ज्यादा चर्बी घटा सकते हैं। चूंकि इस ओट्स में स्टार्च की मात्रा कम हो जाती है, इसलिए ये शरीर में इंसुलिन की मात्रा भी बढ़ाता है।

कोलेस्ट्रॉल घटाए और दिल की बीमारियों से बचाए - सुबह के नाश्ते में ओट्स खाना आपके लिए बहुत फायदेमंद होता है। ओट्स खाने से बैड कोलेस्ट्रॉल कम होता है और गुड कोलेस्ट्रॉल की मात्रा बढ़ती है। इसके अलावा ये हाई ब्लड प्रेशर और टाइप-2 डायबिटीज में भी फायदेमंद होता है। इसलिए दिल की बीमारियां ओट्स खाने से दूर रहती हैं।


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