मंगलवार, 2 जनवरी 2024

जानकारी काल जनवरी - 2024

 

जानकारी काल 



   वर्ष-24   अंक-09   जनवरी  - 2024,

  पृष्ठ 48   मूल्य 2-50    www.sumansangam.com    




 

  श्री राम का जन्म अयोध्या में हुआ था और उनके जन्मस्थान पर एक भव्य मन्दिर विराजमान था जिसे मुगल आक्रमणकारी बाबर ने तोड़कर वहाँ एक मस्जिद बना दी। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भारतीय जनता पार्टी की अगुवाई में इस स्थान को मुक्त करने एवं वहाँ एक नया मन्दिर बनाने के लिये एक लम्बा आन्दोलन चला।



 प्रधान संपादक व  प्रकाशक

 सतीश शर्मा 


 

 कार्यालय

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 संपादक मंडल

 सौरभ  शर्मा,

कपिल शर्मा,

गौरव शर्मा,

डॉ अजय प्रताप सिंह,

 करुणा ऋषि, 

डॉ मधु वैध,

राजेश शुक्ल  


प्रकाशक व मुद्रक सतीश शर्मा के लिय ग्लैक्सी प्रिंटर-106 F,

कृणा नगर नई दिल्ली 110029, A- 214 बुध नगर इन्दर पूरी नई दिल्ली  110012 से प्रकाशित |


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      अनुक्रमणिका


सम्पादकीय - 3  

तुलना, स्पर्धा स्वयं से 4 लेख

योगी कौन - 7 लेख

हरकचंद्र सांवला 9 व्यक्तित्व परिचय 

सही समय पर सही समझ- 11 कहानी

भाषा की दरिद्रता - 13 लेख

भारत का बढता आत्मविश्वास - 16 लेख

मृगतृष्णा - 18 कहानी

Oh Nation- 21 Poem

शरीर की नसों को खोलने का आयुर्वेदिक समाधान- 22

एक गोत्र मे विवाह ना करने का कारण-24

छप्पन भोग क्यो लगाते है - 26 लेख

ऐसे है हमारे ठाकुर जी - 27 लेख

अस्मिता की रक्षा- 29 कहानी

परवरिश - 31 कहानी

सफला एकादशी - 32 कथा

पुत्रदा एकादशी - 33 कथा

जनवरी माह के महत्वपूर्ण दिवस- 33 जानकारी

किसके साथ क्या खाएं - 40 आहार विचार 

समय चक्र- 42 कविता

सुनता गुरू ज्ञानी - 43 कविता

मुझको सब अपने लगते है 44 कविता

पंचांग - 45 ज्योतिष 





अपनी बात 

कार्पण्यदोषोपहतस्वभाव: पृच्छामि त्वां धर्मसम्मूढचेता: |
यच्छ्रेय: स्यान्निश्चितं ब्रूहि तन्मे शिष्यस्तेऽहं शाधि मां त्वां प्रपन्नम् ||

मैं अपने कर्तव्य के बारे में उलझन में हूँ, और चिंता और बेहोशी से घिरा हुआ हूँ। मैं आपका शिष्य हूँ, और आपके सामने आत्मसमर्पण कर रहा हूँ। कृपया मुझे कुछ के लिए निर्देश दें जो मेरे लिए सबसे अच्छा है।

साधक कौन है अगर इस सवाल का जवाब हम ढूंढेंगे तो पाएंगे कि प्रत्येक मनुष्य वास्तव में साधक है । हर व्यक्ति जो कोई भी किसी भी प्रकार का काम करने का अभ्यास कर रहा है वह साधना कर रहा है। साधना करते-करते उसे कार्य का जब वह अभ्यास करता है तो वह साधक है|अनेकों योनियों में भटकते हुए जीव को भगवान यह मनुष्य शरीर केवल अपना कल्याण करने के लिए प्रदान करते हैं।  लेकिन मनुष्य आमोद प्रमोद में फंस जाता है। लेकिन किसी भी मनुष्य को अपने कल्याण के लिए निराश नहीं होना चाहिए मनुष्य को परमात्मा प्राप्ति का जन्म सिद्ध अधिकार है।साधक होने के नाते मनुष्य मात्र अपने साध्य को प्राप्त करने में स्वतंत्र है समर्थ योग्य अधिकारी है। सबसे पहले इस बात की आवश्यकता है कि मनुष्य अपने उद्देश्य को पहचान कर दृढ़ता पूर्वक यह स्वीकार कर ले कि मैं संसारी नहीं हूं प्रत्युत साधक हूं मैं स्त्री हूं,मैं पुरुष हूं, मैं ब्राह्मण हूं, मैं छत्री हूं, मैं वैश्य हूं, मैं शुद्ध हूं,मैं ब्रह्मचारी हूं,  मैं ग्रहस्थ हूं, मैं वानप्रस्थ, हूं, मैं संन्यास हूं, आदि मान्यताएँ हैं केवल सांसारिक व्यवहार मर्यादा के लिए तो ठीक होती है, पर परमात्मा प्राप्ति में बाधक है।ये मान्यताएं शरीर को लेकर हैं। परमात्मा प्राप्ति शरीर को नहीं होती प्रयुक्त स्वयं साधक होती है, साधक स्वय॔ में अशरीरि ही होता है । जब हम अपने वास्तविक उद्देश्य को पहचान लेते हैं तो कि हमने अपना कल्याण करना है तो फिर वह कल्याण के लिए ही कार्य करना चाहिए अन्य किसी कार्य में नहीं भट्टकना चाहिए। जबकि शरीर सदा मृत्यु में रहता है और शरीर सदा अमरता में रहता है इसलिए दोनों के लिए ही शोक करने का कोई औचित्य नहीं है । मनुष्य मात्र को मैं हूं इस रूप में अपनी एक सत्ता का अनुभव होता है इस सत्ता में अहम (मैं) मिला हुआ होने से ही “हूं” के रूप में अपनी अलग एकदेशीय सत्ता अनुभव में आती रहती है।  यदि अहम ना रहे तो “है” के रूप में एक सर्वदेशीय सत्ता ही अनुभव में आएगी। यह सर्वदेशीय सत्ता ही प्राणी मात्र का वास्तविक स्वरूप है । उस सत्ता में जड़ता का मिश्रण नहीं है। अर्थात उसमें मैं तू यह और वह चारों ही नहीं है। सार बात यह है कि एक चिन्मय सत्ता मात्र के सिवा कुछ नहीं है । जीव स्वयं तो निरंतर अमर तत्व में ही रहता है ।शरीर निरंतर मृत्यु में जा रहा है जीव के गर्भ में आते ही मृत्यु का यह क्रम आरंभ हो जाता है गर्भावस्था मरती है और बाल अवस्था आती है बाल अवस्था मरती है तो युवा अवस्था आती है युवावस्था मरती है तो वृद्धावस्था आती है वृद्धावस्था मरती है तो देहान्तर अवस्था आती है।अर्थात दूसरे जन्म की प्राप्ति होती है इस प्रकार शरीर की अवस्थाएं बदलती हैं पर उसमें रहने वाला शरीरी ज्यों का त्यों रहता है। कारण यह है कि शरीर और शरीरी दोनों के विभाग ही अलग-अलग है। अतः साधक को अपने को कभी शरीर ना माने । बंधन-मुक्ती स्वयं की होती है शरीर की नहीं।




तुलना, स्पर्धा स्वयं से!!

 दिलीप वसंत बेतकेकर

एक अत्यंत गरीब आदमी, भरी दोपहरी में, तपती धूप में, बगैर चप्पल पहने, रास्ते से जा रहा था। धूप से पैर जल रहे थे। पग-पग चलते वह ईश्वर को और अपने भाग्य को कोस रहा था। उसी रास्ते पर और लोग आलीशान, वातानुकूलित गाड़ियों से जा रहे थे, और उस गरीब आदमी को चप्पल तक नसीब नहीं थी। वह अपने शरीर और मन में भी अत्यधिक थकान, कष्ट अनुभव कर रहा था!

अचानक उसने सामने से एक आदमी आता हुआ दिखा, उसका एक ही पैर था। बगल में बैसाखी लिए अत्यंत कष्ट से वह एक एक पग चल रहा था। उसे देखते ही उस गरीब आदमी के मन में एक विचार बिजली सा कौंध गया। गाड़ियों से जाने वाले व्यक्तियों से जब वह अपनी तुलना कर रहा था तब वह स्वयं को बदनसीब मान रहा था, किन्तु उस एक पैर वाले पीड़ित को देखने पर उससे तो हम अधिक भाग्यवान है सोचकर वह सुख अनुभव करने लगा।

I had the blues, because I had shoes until upon the street I met a man who had no feet.

स्वयं की तुलना दूसरों से करना, स्पर्धा करना ये मानव की गलत आदत है। परीक्षा उपरान्त उत्तर पुस्तिका के मूल्यांकन पश्चात विद्यार्थी को उत्तर पुस्तिका परखने के लिए दी जाती है, परन्तु जिस उद्देश्य से ये उत्तर पुस्तिका दी जाती है वह एक तरफा हो जाता है, और बच्चे अपनी उत्तर पुस्तिका का मिलान दूसरों की उत्तर पुस्तिका से करने लगते हैं, तुलना करने लगते हैं, किसको कितने अंक मिले हैं? मेरे अंक क्यों काटे गए, फलां के क्यों नहीं? यही हिसाब होता रहता है अधिकतर!

इस तुलना का, स्पर्धा का परिणाम क्या यह कहने की आवश्यकता नहीं है। हताशा, निराशा! कभी कभी जलन, द्वेष और कभी तो आत्महत्या का विचार! अतः यह स्पर्धा जीवन समाप्ति तक हो जाती है। क्या तुलना, स्पर्धा नहीं होनी चाहिए क्या? दूसरों से तुलना, स्पर्धा निश्चित ही मारक; गंभीर परिणाम देने वाली! परन्तु स्वयं की तुलना स्वयं से करें तो, परिणाम अच्छे होते हैं। अर्थात तुलना, स्पर्धा निरोगी कह सकते हैं। पालक और शिक्षकों ने भी एक दूसरे विद्यार्थी की आपस में तुलना नहीं करनी चाहिए। यदि बच्चे पालक, शिक्षक की तुलना करने लगे, तो कैसा लगेगा?

पिछली परीक्षा की तुलना में इस बार मुझे कम अथवा अधिक अंक मिले हैं, और अधिक कैसे मिलेंगे ऐसा विचार, तुलना करें तो, निराशा प्राप्त नहीं होगी। मेरी स्पर्धा, अन्य किसी के साथ न होकर मेरे स्वयं से है, ऐसी दृष्टि रखें तो उत्साह बढ़ेगा। पूर्व के यश की अपेक्षा आने वाली परीक्षा में, थोड़ा सा क्यों न हो, पर, अधिक यश मिले यह संकल्प करें और यह संकल्प पूरा करने हेतु परिश्रम करें तो प्रसन्नता और संतोष प्राप्त होगा। मानो छ: माही परीक्षा में सत्तर अंक प्राप्त हुए इसका अर्थ क्या? यहां तक तो पहुंच ही गए हैं। अर्थात इससे कम अंक तो नहीं होंगे- सत्तर तक तो पहुंच ही गए हैं। सत्तर तो प्रश्न ही नहीं उठता। अतः अब अगला लक्ष्य बहत्तर पछत्तर का! एक दम नब्बे के लिए जल्दबाजी न करें। अन्य लोगों को कितने अंक मिले इससे हमें कोई मतलब नहीं, उन्हें कितने भी क्यों न मिले हो। मुझे पिछले समय से अधिक अंक मिलने चाहिए। यही, अभी, मेरा उद्धिष्ट है। तुलना, स्पर्धा दूसरों से करना अत्यंत घातक रहती है। मछली और बंदर की पेड़ पर चढ़ने की आपस में स्पर्धा नहीं हो सकती। तैरना यह मछली का बल स्थान है तो पेड़ पर चढ़ना मृत्यु स्थान है। तुलना और स्पर्धा में सदैव दूसरों की ओर देखना होता है, परन्तु स्वयं की स्पर्धा स्वयं से होने के कारण हम अपने आप में ही देखते हैं। अंतर्मुख होकर आत्म परीक्षण करना होता है। निरंतर आत्म परीक्षण करना पड़ता है।

The fastest way to kill something special is to compare it to something else.

कितना सुन्दर विचार है यह! तुलना अर्थात ‘आनंद’ को चुराने वाला चोर है, ऐसा कहते थे थिओडोर रूजवेल्ट्। दूसरों से तुलना और स्पर्धा करना शुरू हुआ तो उसका अंत नहीं है। उससे प्रसन्नता और संतोष तो मिलता ही नहीं, अपितु हवश, अशांति, चिकचिक, असंतोष ही प्राप्त होता है। इसीलिए मोह होने पर भी स्पर्धा, तुलना को टालना ही बेहतर रहेगा।

अनेक बार हम तुलना कैसे करते हैं? कोई अत्यंत कम समय में उच्च स्थान प्राप्त करता है, किन्तु हमने तो अभी शुरुआत की है, तो उससे तुलना करना अनुचित है। इसीलिए जान एकफ सावधानी का इशारा करते हुए कहते हैं – Don’t compare your – beginning to someone else middle.

प्रत्येक के अपने बल स्थान (strength) और कमजोर स्थान (weakness) होते हैं। इस बात को मानना ही पड़ेगा। स्वीकारना पड़ेगा। हम तभी यशस्वी हो सकेंगे। किसी अन्य का मार्ग, यात्रा और उद्दिष्ट भिन्न हो सकता है। उसी के अनुसार वह चलता है। हमें अपने उद्दिष्ट को दृष्टिगत रखते हुए अपनी दिशा, गति तय करनी होगी। जहां हमें बाधा का अनुभव हो, आत्मविश्वास की कमी हो, तब अवश्य हमें दूसरों से सहायता लेने में हिचकिचाना नहीं चाहिए।



स्पर्धा और तुलना में पराज्य अथवा पीछे रह जाने का भय सदैव रहता ही है। अतः स्वाभाविकतः कार्यक्षमता पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। स्वयं की स्वयं से तुलना, स्पर्धा करने से आत्मविश्वास में वृद्धि होगी, अधिक अध्ययन, अभ्यास करने की प्रेरणा अंदर से जागृत होगी।

ना ही तुलना, ना ही स्पर्धा, होगा जिनसे प्राण आधा। स्वयं से स्पर्धा, तुलना स्वयं से ना रखेगा तुमको प्यासा। (लेखक शिक्षाविद, स्वतंत्र लेखक, चिन्तक व विचारक है।) 

अमृत वचन 

क्षीयन्ते सर्वदानानि यज्ञहोमबलिक्रियाः ।

न क्षीयते पात्रदानमभयं सर्वदेहिनाम् ।।

                (आचार्य चाणक्य )

 चाणक्य कहते हैं कि सभी प्रकार के अन्न, जल, वस्त्र, भूमिदान आदि, सभी प्रकार के ब्रह्म यज्ञ, देव यज्ञ, और बलि यज्ञ आदि सभी कर्म नष्ट हो जाते हैं अर्थात यह सभी वस्तुएं नष्ट होने वाली हैं, परन्तु सुपात्र को दिया गया दान और प्राणिमात्र को दिया गया अभयदान कभी भी नष्ट नहीं होता।

योगी कौन है...?

 सुमित कुमार, नोएडा

योग के अनेकानेक अर्थ बाजार में प्रचलित हैं और उन्हें बड़ी चतुरता से प्रस्तुत किया जाता है, योग का खजाना किसी के हाथ लग गया है ऐसी बात-किवदंतियां भी हमें सुनने को मिलती हैं पर वस्तुत: योग क्या है। किसी प्रक्रिया-विशेष से योग को प्राप्त किया जाता है यह हम जानते हैं पर किसकी योग में किस प्रकार की सिद्धि प्राप्त हुई यह तो हमारा अंतरंग का अनुभव ही हमें बता सकता है। बात साफ है योग एक वैज्ञानिक प्रक्रिया है जिसके द्वारा मानव रूप में अवस्थित प्राण-चेतना को अपने विस्तार का, अपने उज्ज्वल प्रगति-क्रम का पथ दिखाई पड़ता है। योग है अपनी मूर्छनाओं का परिचय और अपने द्वारा होने वाले कार्यों का निर्णयन। योग है एक अनूठी प्रतिभा जिसका विस्तार होता है समूचे समाज-परिकर में, प्राणी जगत की प्रत्येक गतिविधि में एवं एक आदर्श विश्व के नव-गठन में। योग है पात्रता का विकास, अपनी समूची शक्ति एवं प्रतिभा का उत्सर्जन। योग है माया के अंधकार से परे, परम तेजस्वी आत्मा के अलंकरण में जीना, अपनी क्षुधा को आत्मा के सामीप्य में पूरा करना एवं अपने गुण-कर्म-स्वभाव को पूर्ण परिष्कृत कर एक आदर्श मानव बनना। योग है चरित्र का गठन और उसके परिणाम स्वरूप आत्मा में एक उज्ज्वल संभावना का विकास। योगी व्यक्ति कभी अपने बाह्य वातावरण से अत्यधिक प्रभावित हो अपने को सीमाबद्ध या कहें दुराग्रहों से चालित होने नहीं देता। उसकी आत्मा का स्वाभिमान कहता है कि व्यक्ति को ऊंचे उठने के लिए एक ही चीज चाहिए, वह है पात्रता। पात्रता भगवान के प्रति, समूची सृष्टि में समाई उसकी अनेकानेक कलाकृतियों के मध्य अपने आत्मविकास को ध्यान में रख प्रयत्न-पुरुषार्थ करने की, पात्रता जो कुछ भी घटित हो रहा है उसमें अबाधित, अशोकपूर्ण एवं अनुद्वेलित रहने की। योगी का वस्त्र है आत्म-अलंकरण और उसकी सेवाओं का दायरा है समूचा विश्व-परिकर। अपने को साधना और विश्व-मंगल की योजनाएं बनाना उसके दो सिद्धांत, या कहें व्यक्तित्व के गुण होते हैं। यदि कभी व्यक्तिगत साधना में अड़चन पड़ जाए तो उसका एक ही उत्तर होता है, आत्म-समर्पण।

अब बाजार में जो योग का सिद्धांत प्रचलित है उसे रहने दिया जाए, पर संस्कारों की खेती जिस योग का आदर्श परिणाम है उससे हम क्यों वंचित हो पड़े। योग है मानवीयता की उपासना, तटस्थ दृष्टिकोण, श्रेष्ठ दिशानुशीलन। अब इस योग को भले ही आज प्राचीन आचार्य समझाने हेतु आपके समक्ष उपस्थित न हों पर योग है सभी का, जन-जन का, समूची मानवता का। योग ही एक ऐसा सिद्धांत है जिसके बलबूते वास्तव में मनुष्य अपने कल्याण-पथ पर बढ़ सकता है, योग की विधा को जिसने अपना लिया वह स्वर्ण कलश के समान आंतरिक एवं बाह्य जीवन में सद्गुणों से संपन्न एवं देव शक्तियों की प्रकट उपस्थिति भर बन जाता है। योग है आत्मा का संस्करण, उसके गुण-कर्म-स्वभाव की परिष्कृति। जब यह योग घटित हो जाता है तो एक बहुत ही अनूठी व्यवस्था दृष्टिगोचर होती है। वह है चेतना का अपने स्वभाव अनुकूल क्रिया-प्रदर्शन में संलग्न होना, मानव का अपनी अंतरात्मा से प्रेरित होना एवं उसे ही अपना सर्वस्व या कहें पारदर्शी दृष्टिकोण का पर्याय मानना। योग है समूचे काय-कलेवर का दूषित विडंबनाओं से निर्मुक्त होना एवं अपने में सर्व-समर्थ बन, चेतना के गुणोत्थान की दिशा में बढ़ चलना है। योग का व्यवहारिक पक्ष अधिकांश लोगों के समझ में नहीं आएगा क्योंकि उनकी धारणा ऐसी हो गई है कि वह योगी का एक विस्तृत चित्र एवं उसकी क्रिया पद्धति को एक विशेष रूप में देखते हैं। जबकि वास्तविक योग-विद्या तो उसे अपने आचरण में ढ़ाल ही समझ आती है। जिसके शोक-विकार सच -मुच आत्मप्रेरणा के समक्ष धुल गए हों एवं जो निस्वार्थ, बेफिक्र एवं समायोजित जीवन जीता हो, जिसकी आसक्तियां संसार की तमाम बातों से हट कर अपने आत्म-कल्याण की दिशानुवर्ती हों एवं जो चिर-विचित्र अनुभवों में अपनी आत्म-चेतना की शुद्ध अनुभूति पाता हो, वही व्यक्ति योगी कहलाने योग्य है तथा उसका जीवन कहने मात्र का नहीं, वास्तव में अंतरात्मा की मूर्त आवाज का पर्याय होता है। 

नवग्रह मंत्र 

ब्रह्मा मुरारी त्रिपुरांतकारी भानु: शशि भूमि सुतो बुधश्च।

 गुरुश्च शुक्र शनि राहु केतव सर्वे ग्रहा शांति करा भवंतु

            



हरकचंद सावला

करीब तीस साल का एक युवक मुंबई के प्रसिद्ध टाटा कैंसर अस्पताल के सामने फुटपाथ पर खड़ा था।

युवक वहां अस्पताल की सीढिय़ों पर मौत के द्वार पर खड़े मरीजों को बड़े ध्यान दे देख रहा था,

जिनके चेहरों पर दर्द और विवषता का भाव स्पष्ट नजर आ रहा था। इन रोगियों के साथ उनके रिश्तेदार भी परेशान थे।थोड़ी देर में ही यह दृष्य युवक को परेशान करने लगा।

वहां मौजूद रोगियों में से अधिकांश दूर दराज के गांवों के थे, जिन्हे यह भी नहीं पता था कि क्या करें, किससे मिले? इन लोगों के पास दवा और भोजन के भी पैसे नहीं थे। टाटा कैंसर अस्पताल के सामने का यह दृश्य देख कर वह तीस साल का युवक भारी मन से घर लौट आया। उसने यह ठान लिया कि इनके लिए कुछ करूंगा। कुछ करने की चाह ने उसे रात-दिन सोने नहीं दिया। अंतत: उसे एक रास्ता सूझा..उस युवक ने अपने होटल को किराये पर देक्रर कुछ पैसा उठाया। उसने इन पैसों से ठीक टाटा कैंसर अस्पताल के सामने एक भवन लेकर धर्मार्थ कार्य (चेरिटी वर्क) शुरू कर दिया।उसकी यह गतिविधि अब 27 साल पूरे कर चुकी है और नित रोज प्रगति कर रही है। उक्त चेरिटेबिल संस्था कैंसर रोगियों और उनके रिश्तेदारों को निशुल्क भोजन उपलब्ध कराती है। करीब पचास लोगों से शुरू किए गए इस कार्य में संख्या लगातार बढ़ती गई। मरीजों की संख्या बढऩे पर मदद के लिए हाथ भी बढऩे लगे। सर्दी, गर्मी, बरसात हर मौसम को झेलने के बावजूद यह काम नहीं रूका।

यह पुनीत काम करने वाले युवक का नाम था हरकचंद सावला। 

एक काम में सफलता मिलने के बाद हरकचंद सावला जरूरतमंदों को निशुल्क दवा की आपूर्ति शुरू कर दिए। इसके लिए उन्होंने मैडीसिन बैंक बनाया है, जिसमें तीन डॉक्टर और तीन फार्मासिस्ट 

स्वैच्छिक सेवा देते हैं। इतना ही नहीं कैंसर पीडि़त बच्चों के लिए खिलौनों का एक बैंक भी खोल दिया गया है। आपको जान कर आश्चर्य होगा कि सावला द्वारा कैंसर पीडि़तों के लिए स्थापित 'जीवन ज्योत' ट्रस्ट आज 60 से अधिक प्रोजेक्ट पर काम कर रहा है। 57 साल की उम्र में भी सावला के उत्साह और ऊर्जा 27 साल पहले जैसी ही है। मानवता के लिए उनके योगदान को नमन करने की जरूरत है। यह विडंबना ही है कि आज लोग 20 साल में 200 टेस्ट मैच खेलने वाले सचिन को कुछ शतक और तीस हजार रन बनाने के लिए भगवान के रूप में देखते हैं। जबकि 10 से 12 लाख कैंसर रोगियों को मुफ्त भोजन कराने वाले को कोई जानता तक नहीं। यहां मीडिया की भी भूमिका पर सवाल है, जो सावला जैसे लोगों को नजर अंदाज करती है।यह हमे समझना होगा कि पंढरपुर, शिरडी में साई मंदिर, तिरुपति बाला जी आदि स्थानों पर लाखों रुपये दान करने से भगवान नहीं मिलेगा। परतुं बीते 27 साल से कैंसर रोगियों और उनके रिश्तेदारों को हरकचंद सावला के रूप में भगवान ही मिल गया है। इस संदेश को अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचाएं ताकि हरकचंद्र सावला को उनके हिस्से की प्रसिद्धि मिल सके और ऐसे कार्य करने वालो को बढावा मिले!!

साभार 

सम्पूर्ण विश्व में भारत वर्ष अपनी संस्कृति सभ्यता, धार्मिक पर्व (त्यौहार) के मामले में अलग पहचान रखता है। भारतीय दैनिक पंचांग के अनुसार प्रत्येक माह में कोइ ना कोइ त्योहार अवश्य पड़ता है इन सभी त्योहारों में  मकर संक्रांति का पर्व हिन्दू  धर्म के लोगों का एक मुख्य पर्व कहा जाता है। आज के दिन सूर्य धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करता है। ग्रेगोरियन कैलेण्डर के अनुसार मकर संक्रांति जनवरी माह के 14-15 तारीख को पड़ता है





 सही समय पर सही समझ

श्री टी.एन.  शेषन मुख्य चुनाव आयुक्त थे। अपनी पत्नी के साथ यूपी की यात्रा पर जाते समय उनकी पत्नी ने सड़क किनारे एक पेड़ पर बया (एक प्रकार की चिड़िया)का घोंसला देखा और कहा,

  ”यह घोंसला मुझे ला दो;  मैं घर को सजाकर रखना चाहतीं हूँ।”

 श्री शेषन साहब ने साथ चल रहे सुरक्षा गार्ड से इस घोंसले को नीचे उतारने को कहा। सुरक्षा गार्ड ने चढ़ने की कोशिश की लेकिन असफल रहे, फिर पास ही भेड़-बकरियां चरा रहे एक अनपढ़ लड़के से कहा कि अगर तुम यह घोंसला निकालकर ला दोगे तो मैं तुम्हें बदले में दस रुपये दूंगा।  लेकिन लड़के ने मना कर दिया।  श्री शेषनसाहब स्वयं गये और लड़के को पचास रुपये देने की पेशकश की, लेकिन लड़के ने घोंसला लाने से इनकार कर दिया और कहा कि "साहब, इस घोंसले  में चिड़ीया के बच्चे हैं। शाम को जब उसकी "माँ" खाना लेकर आएगी और यहां बच्चे नहीं मिलेंगे तो वह बहुत उदास होगी, इसलिए तुम कितना भी पैसा दे दो, मैं घोंसला नहीं उतारूंगा"

इस घटना के बारे में श्री टी.एन.  शेषनसाहब लिखते हैं कि....

मुझे जीवन भर इस बात का अफ़सोस रहा कि एक पढ़े-लिखे आईएएस में वो विचार और भावनाएँ क्यों नहीं आईं जो एक अनपढ़ लड़का सोचता था?

 उन्होंने आगे लिखा कि - मेरी आईएएस की डिग्री, पद, प्रतिष्ठा, पैसा सब उस अनपढ़ बच्चे के सामने मिट्टी में मिल गया।और यह समझ मे आ गया की "सही समय पर सही समझ" चरितार्थ होना सबसे अहम है। दोस्तों जीवन तभी आनंददायक बनता है जब बुद्धि और धन के साथ संवेदनशीलता भी हो।

 दोस्तों, उस अनपढ़ बच्चे ने पैसे की जगह चिड़िया के बच्चे की परवाह विवेक, धर्म या ज्ञानी वाली फीलिंग से नहीं की, उसने तो भाव वश सोचा की जब चिड़िया की मां आएगी तो कितनी दुखी होएंगी।*

दोस्तो धर्म भी बस "भाव प्रधान" है। इस दुनिया में सब खेल "भाव" का ही है। समभाव और नेकी, हमारे दिलों में हमेशा बनी रहेगी, तभी सुकून मिलेगा।

लोहड़ी

लोहड़ी का त्योहार पूरा देश जोरो शोरो से मनाता है. हर साल ही तरह इस साल भी लोहड़ी का त्योहार 13 जनवरी को मनाया जाएगा. पहले इस त्योहार को केवल कुछ ही राज्यों जैसे की हरियाणा, पंजाब, हिमाचल प्रदेश, दिल्ली आदि में मनाया जाता था, लेकिन बढ़ते साथनों व इन निवासीयो का अन्य जगह बसने के कारण और खुशी को बाटने के लिए देश के अन्य हिस्सों में भी लोग इस त्योहार को मनाने लगे. इस दिन नई फसलों की पूजा होती है, अग्नि जलाकर उसमें गुड़, मूंगफली, रेवड़ी, गजक, पॉपकॉर्न आदि को अर्पित किया जाता है. इसके बाद परिवार के साथ-साथ आस पास के लोग उस अग्नि की परिक्रमा करते हैं, गिद्दा करते हैं और गीत गाकर इस दिन जश्न मनाते हैं. लेकिन क्या आपको पता है लोहड़ी पर अग्नि क्यो जलाई जाती है. आइए जानते हैं इसका धार्मिक और सामाजिक महत्व लोहड़ी का त्योहार सूर्यदेव और अग्नि को समर्पित है. इस त्योहार में लोग नई फसलो को लोग अग्निदेव को समर्पित करते हैं. पौराणिक शास्त्रों के अनुसार, अग्नि की देवी-देवताओं का भोग होता है. ऐसी मान्यता है कि लोहड़ी के पर्व के माध्यम से नई फसल का भोग सभी देवताओं तक पहुंच जाता है. कहा जाता है कि अग्निदेव और सूर्य को फसल समर्पित करके उनके प्रति आभार व्यक्त किया जाता है. 



भाषा की दरिद्रता

नाम

समाज के एक बहुत बड़े वर्ग को न जाने हो क्या गया है? समाज पथभ्रष्ट एवं दिग्भ्रमित हो गया है. 

एक सज्जन ने अपने बच्चों से परिचय कराया, बताया पोती का नाम अवीरा है, बड़ा ही यूनिक_नाम रखा है। 

पूछने पर कि इसका अर्थ क्या है, बोले कि बहादुर, ब्रेव कॉन्फिडेंशियल।सुनते ही दिमाग चकरा गया। फिर बोले कृपा करके बताएं आपको कैसा लगा?  

मैंने कहा बन्धु अवीरा तो बहुत ही अशोभनीय नाम है नहीं रखना चाहिए.उनको बताया कि 1. जिस स्त्री के पुत्र और पति न हों. पुत्र और पतिरहित (स्त्री) 2. स्वतंत्र (स्त्री) उसका नाम होता है अवीरा.

नास्ति वीरः पुत्त्रादिर्यस्याः  सा अवीरा 

उन्होंने बच्ची के नाम का अर्थ सुना तो बेचारे मायूस हो गए,  बोले महोदय क्या करें अब तो स्कूल में भी यही नाम हैं बर्थ सर्टिफिकेट में भी यही नाम है। क्या करें?

आजकल लोग नया करने की ट्रेंड में कुछ भी अनर्गल करने लग गए हैं जैसे कि लड़की हो तो मियारा, शियारा, कियारा, नयारा, मायरा तो अल्मायरा ... लड़का हो तो वियान, कियान, गियान, केयांश ...और तो और इन शब्दों के अर्थ पूछो तो  दे गूगल ...  दे याहू ...और उत्तर आएगा "इट मीन्स रे ऑफ लाइट" "इट मीन्स गॉड्स फेवरेट" "इट मीन्स ब्ला ब्ला" नाम को यूनीक रखने के फैशन के दौर में एक सज्जन  ने अपनी गुड़िया का नाम रखा "श्लेष्मा".

स्वभाविक था कि नाम सुनकर मैं सदमें जैसी अवस्था में था.सदमे से बाहर आने के लिए मन में विचार किया कि हो सकता है इन्होंने कुछ और बोला हो या इनको इस शब्द का अर्थ पता नहीं होगा तो मैं पूछ बैठा "अच्छा? श्लेष्मा! इसका *अर्थ क्या होता है? तो महानुभाव नें बड़े ही कॉन्फिडेंस के साथ 





उत्तर दिया "श्लेष्मा" का अर्थ होता है "जिस पर मां की कृपा हो" मैं सर पकड़ कर 10 मिनट मौन बैठा रहा !मेरे भाव देख कर उनको यह लग चुका था कि कुछ तो गड़बड़ कह दिया है तो पूछ बैठे.क्या हुआ मैंने कुछ ग़लत तो नहीं कह दिया? मैंने कहा बन्धु तुंरत प्रभाव से बच्ची का नाम बदलो क्योंकि  श्लेष्मा का अर्थ होता है "नाक का कचरा" उसके बाद जो होना था सो हुआ.यही हालात है समाज के एक बहुत बड़े वर्ग का।फैशन के दौर में फैंसी कपड़े पहनते पहनते अर्थहीन, अनर्थकारी, बेढंगे शब्द समुच्चयों का प्रयोग समाज अपने कुलदीपकों के नामकरण हेतु करने लगा है अशास्त्रीय नाम न केवल सुनने में विचित्र लगता है, बालकों के व्यक्तित्व पर भी अपना विचित्र प्रभाव डालकर व्यक्तित्व को लुंज पुंज करता है - जो इसके तात्कालिक कुप्रभाव हैं.

भाषा की संकरता 

इसका दूरस्थ कुप्रभाव है.नाम रखने का अधिकार दादा-दादी, भुआ, तथा गुरुओं का होता है. यह कर्म उनके लिए ही छोड़ देना हितकर है. आप जब दादा दादी बनेंगे तब यह कर्तव्य ठीक प्रकार से निभा पाएँ उसके लिए आप अपनी मातृभाषा पर कितनी पकड़ रखते हैं अथवा उसपर पकड़ बनाने के लिए क्या कर रहे हैं, विचार करें. अन्यथा आने वाली पीढ़ियों में आपके परिवार में भी कोई "श्लेष्मा" हो सकती है, कोई भी अवीरा हो सकती है।

शास्त्रों में लिखा है व्यक्ति का जैसा नाम है समाज में उसी प्रकार उसका सम्मान और उसका यश कीर्ति बढ़ती है.

नामाखिलस्य व्यवहारहेतु: शुभावहं कर्मसु भाग्यहेतु:।

नाम्नैव कीर्तिं लभते मनुष्य-स्तत:  प्रशस्तं खलु नामकर्म।

{वीरमित्रोदय-संस्कार प्रकाश}

स्मृति संग्रह में बताया गया है कि व्यवहार की सिद्धि आयु एवं ओज की वृद्धि के लिए श्रेष्ठ नाम होना चाहिए.

आयुर्वर्चो sभिवृद्धिश्च सिद्धिर्व्यवहृतेस्तथा ।

नामकर्मफलं त्वेतत्  समुद्दिष्टं मनीषिभि:।।

नाम कैसा हो

नाम की संरचना कैसी हो इस विषय में ग्रह्यसूत्रों एवं स्मृतियों में विस्तार से प्रकाश डाला गया है पारस्करगृह्यसूत्र  1/7/23 में बताया गया है-

द्व्यक्षरं चतुरक्षरं वा घोषवदाद्यंतरस्थं। 

दीर्घाभिनिष्ठानं कृतं कुर्यान्न तद्धितम्।। 

अयुजाक्षरमाकारान्तम् स्त्रियै तद्धितम् ।।

इसका तात्पर्य यह है कि बालक का नाम दो या चारअक्षरयुक्त, पहला अक्षर घोष वर्ण युक्त,वर्ग का 

तीसरा चौथा पांचवा वर्ण,मध्य में अंतस्थ वर्ण, य र ल व आदिऔर नाम का अंतिम वर्ण दीर्घ एवं कृदन्त 






हो तद्धितान्त न हो।कन्या का नाम विषमवर्णी तीन या पांच अक्षर युक्त, दीर्घ आकारांत एवं तद्धितान्त होना चाहिए

धर्मसिंधु में चार प्रकार के नाम बताए गए हैं

१ देवनाम २ मासनाम ३ नक्षत्रनाम ४ व्यावहारिक नाम 

नोट -   कुंडली के नाम को व्यवहार में नहीं रखना चाहिए क्योंकि जो नक्षत्र नाम होता है उसको गुप्त रखना चाहिए.यदि कोई हमारे ऊपर अभिचार कर्म मारण, मोहन, वशीकरण इत्यादि कार्य करना चाहता है तो उसके लिए नक्षत्र नाम की आवश्यकता होती है,व्यवहार नाम पर तंत्र का असर नहीं होता इसीलिए कुंडली का नाम गुप्त होना चाहिए।

स्वामी विवेकानन्द

स्वामी विवेकानन्द वेदान्त के विख्यात और प्रभावशाली आध्यात्मिक गुरु थे। उनका वास्तविक नाम नरेन्द्र नाथ दत्त था। उन्होंने अमेरिका स्थित शिकागो में सन् 1893 में आयोजित विश्व धर्म महासभा में भारत की ओर से सनातन धर्म का प्रतिनिधित्व किया था। स्वामी विवेकानंद के मूल मंत्र, जो युवाओं के लिए हैं प्रेरणा - उठो जागो और तब तक मत रुको जब तक तुम्हें तुम्हारे लक्ष्य की प्राप्ति न हो जाए.स्वामी विवेकानंद जी के तेज दिमाग का रहस्य था? -  ध्यान और ब्रह्मचर्य वह कहते थे की जो थ्यान ओ रब्रह्मचर्य का जो भी पालन करेगा उसका मस्तिष्क इतना तेज हो जाएगा कि वह सोच भी नहीं सकता। वह अपनी सीखने की क्षमता को बढ़ा सकता है। ध्यान करने से हमारी एकाग्रता बढ़ती है।

हालांकि विवेकानंद ने अपनी मृत्यु के बारे में पहले की भविष्यवाणी कर रखी थी कि वे 40 वर्षों तक जीवित नहीं रहेंगे। इस प्रकार उन्होंने महासमाधि लेकर अपनी भविष्यवाणी को पूरा किया। स्वामी विवेकानंद की मृत्यु मात्र 39 वर्ष की उम्र में हुई थी |




भारत का बढ़ता आत्म विश्वास 

2001 की बात है... जॉर्ज बुश एक स्कूल में सम्बोधित कर रहे थे। अचानक उसके कान में उनका गार्ड आकर कुछ बताता है। वो सुनते हैं और वापिस अपनी स्पीच देने लगते हैं। बाद में पता चलता है कि गार्ड ने उन्हें बताया था कि अमेरिका पर 9/11 हमला हो गया है।

बाद में जब उनसे पूछा गया कि उन्होंने ऐसा क्यों किया तो उसने बताया कि मैंने अपनी स्पीच इसलिए जारी रखी क्योंकि जिन्होंने ये हमला किया वो यही तो चाहते थे कि वो दिखा सकें कि कैसे अमेरिका को घुटनों पर ला दिया और उसका राष्ट्रपति एक दम अवाक रहकर मारा मारा... भाग खड़ा हुआ।

ये आतंकवाद को ट्रीट करने का अमेरिकी तरीका है कि तुमने जो करना था कर दिया लेकिन इससे हम अपना काम धाम रोककर घुटनों पर नहीं आते। हम इसका बदला तो जरूर लेंगे जो तुम्हारी सात पुश्तें याद रखेंगी, पर अमेरिका अपने पैरों पर भी खड़ा रहेगा और जैसा चल रहा था वैसे ही चलता रहेगा।

ये कहानी इसलिए बता रहा हूँ कि मोदी पिछले दिनों बंगलोर में थे हमारे तेजस की वैश्विक मार्केटिंग करने...। उसी समय वहां टँकी हमले में वीरगति को प्राप्त हुए जवान का भी अंतिम संस्कार था। विरोधियों को जब हवा में हाथ हिलाने वाले अपने प्रोपेगेंडा से कुछ हासिल नहीं हुआ तो उन्होंने दूसरा ड्रामा किया कि बगल में जवान की अंत्येष्टि हो रही थी और मोदी प्लेन उड़ा रहा था।

ऐसा नहीं है कि ये समझते नहीं बल्कि ये ऐसा इसलिए करते हैं कि पुलवामा हो या हाल का हमला, ये पाकिस्तान इनके लिए ही तो करता है ताकि ये उसका लाभ ले सकें... पिछले साल सर्वे में आया था कि देश मे जनता की नजर में सबसे विश्वसनीय तीन चीजों में पहले नम्बर पर आर्मी, दूसरे पर आरबीआई 







और तीसरे पर PMO है। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट और फिर CBI का नम्बर आता है।

अब ऐसे में यदि पहले नम्बर की आर्मी और तीसरे नम्बर पर प्रधानमंत्री के बीच ही झगड़ा करवा दिया जाए तो कितना बढ़िया है कि इससे इनके सत्ता का रास्ता खुल जायेगा कि ये मोदी कैसा मतलबी है जो आर्मी के बलिदान के समय भी अपने में मस्त है। ये वही लोग कहते हैं जिन्होंने 26/11 का बदला मजहबियों को खुश करने को नहीं लिया और आर्मी/एयरफोर्स बेचारी खड़ी की खड़ी रह गयी।

साथ ही ये चाहते हैं कि ऐसे हमले में सरकार घुटनो पर आ जाये और मातम में चली जाए। वो अपना सब काम बंद कर दे जिससे टँकीयों के हौसले और मजबूत हों कि एक हमला करेंगे और भारत में मातम पसर जाएगा। 

लेकिन मोदी इसे समझते हैं। और न सिर्फ समझते हैं बल्कि पुलवामा के हमले का बदला फिर बालाकोट से लेते हैं, लेकिन इनके आगे सरेंडर नहीं होते। आज खबर आ रही है कि तालिबान ने 11 पाकिस्तानी वर्दी वाले हादी ठोक दिए। जाहिर है कि अब भारत की नीति बदल गयी है कि न सिर्फ हम घुसकर मारेंगें बल्कि जैसे तुम कथित नॉन स्टेट एक्टर्स से हमला करोगे हम भी फैंटम (अज्ञात) लोगों से लेकर तालिबान, बलूच हर तरह से तुमको वही स्वाद चखाएंगे।

आज मेजर आर्य अपने वीडियो में यही कह रहे थे कि रावण की नाभि में वार करो नाकि सर काटते रहो क्योंकि जैसे ही उसपर पैसे आएंगे वो फिर 26/11 करेगा। लेकिन मेजर ये मिस कर जाते हैं कि वो पैसे आने भी मोदी ने ही रोक रखे हैं। दो तरीके हैं पाकिस्तान से निपटने के, या तो उसपर चढ़ाई कर दो जिसमें हमारा भी बराबर नहीं तो 30% नुकसान जान माल का होगा... या फिर पाकिस्तान को आटे चावल के लिए इतना मोहताज कर दो जैसे अमेरिका ने रूस की इकोनॉमी तोड़ दी थी और अंततः रूस टूट गया। मोदी की पॉलिसी दूसरे तरीके की है, जैसा पाकिस्तान का डॉक्ट्रिन बना था 1971 के बंगलादेश टूटने पर कि भारत को 1000 जख्म देकर भारत में गृहयुद्ध करवाना है फिर वो खाली स्थान से कराओ, लिट्टे से कराओ, नार्थईस्ट से कराओ, हिन्दू-मजहबी से कराओ या जाति भाषा के नाम पर कराओ। हम भी उसी तरह बलोचिस्तान बनाम पंजाब (पाकिस्तान वाला), तालिबान बनाम पाकिस्तान, सिंध बनाम पाकिस्तान, अहमदिया बनाम सुन्नी, शिया बनाम सुन्नी, TTP बनाम पाकिस्तान आर्मी, TLP बनाम आर्मी हर तरह से उसके अंदर वो माहौल बनवा रहे हैं कि पाकिस्तान गृहयुद्ध में चला जाये। 

और जबसे ऐसा शुरू किया है तो पाकिस्तान के पास ले देकर दो ही लोग बचे हैं। एक चीन और दूसरा खान ग्रेस जिनसे उसे उम्मीद है कि उसके "अच्छे दिन" फिर वापिस आएंगे। उसकी यही छटपटाहट फिर हमपर हमला करती है और हमारा छुटपुट नुकसान करती है लेकिन अब भारत की ये डाक्ट्रिन तब तक नहीं रुकेगी जब तक या तो ये सरकार जिंदा है या फिर पाकिस्तान जिंदा है।इसलिए आपकी भावनाओ से खान ग्रेस खेलती है क्योंकि पाकिस्तान के साथ 26/11 ही नहीं किया है इन्होंने बल्कि उनके साथ कितने ही अन्य राज भी इन के छुपे हैं, फिर वो हवाला रैकेट हो, दावूद जैसे हों या फिर जो आप दिल दिल पाकिस्तान सुनते हैं भारत मे, उनकी चाबी उसके पास हो।इसलिए जब भी ये लोग आपको भड़काएं ये याद रखिये कि वो भड़का क्यों रहे हैं।




मृगतृष्णा

                बालेश्वर गुप्ता,नोयडा

अरे मंजू तुम, इतने दिन बाद  दिखाई दी, कहाँ खो गयी थी? सरोज तुम, इस क्रूज पर, लगता है छुट्टियों का मजे लूटने  आयी हो. हाँ तुम सही कह रही हो. बहुत दिन से घर से निकलना ही नहीं हो पा रहा था. आओ  तुम्हारा परिचय कराऊँ ये मेरे पति देव अवनीश मेरा बेटा विक्की  और ये पोता सनी और पोती आरुषि, बहू लीना. सब पूरे चार दिन को आये हैं, जीवन मे पहले किसी क्रूज़ पर जाना भी नहीं हुआ था, हमारे ज़माने में  कहाँ क्रूज वुज हुआ करते थे,अब भी बेटे ने जिद की तो हमे आना ही पड़ा. अरे तुम भी तो अपने पति से परिचय कराओ ना. मैं अकेली ही आयी हूँ, अपनी बात तुमसे बाद मे शेयर करुँगी.

      मंजू और सरोज एक साथ ही बचपन से सहपाठी रहे,स्कूल में भी तो कॉलेज में भी।दोनो की खूब पटती भी थी,एक दूसरे से कोई बात कभी छिपाते भी नही थे।पहले मंजू की शादी एक अच्छे पद पर तैनात गौत्तम से हो गयी,तो कुछ ही दिनों बाद सरोज की शादी व्यापारी अवनीश से हो गयी।उस समय मोबाइल तो दूर टेलीफोन की सुविधा भी कम थी,टेलीफोन एक्सचेंज पर कॉल बुक करानी पड़ती थी,तब भी घंटो में कॉल मिल पाती थी।शादी के बाद कुछ दिन तो मंजू और सरोज में पत्र व्यवहार चला फिर गृहस्थी चल जाने पर सम्पर्क समाप्त सा हो गया।सरोज को पुत्र प्राप्ति हुई,सास ससुर साथ रहते ही थे,सो बेटे के नवजात होने के कारण उसका करना साथ ही सास ससुर की सेवा करना,पति का समस्त कार्य करना ,एक फिरकी की तरह सरोज 24 घंटे लगी रहती।

     उधर मंजू के साथ भी उसके सास ससुर रहते थे, उसके एक बेटी का जन्म हुआ था। मंजू को घर का कोई भी काम करने की आदत थी ही नही और न ही अधिकतर कार्य उससे आता था। सो उसने स्पष्ट कर दिया था सब अपना काम स्वयं करेंगे।बहू की चेतावनी पर बूढ़े सास ससुर तो सहम कर 





अपना काम जितना और जैसा हो पाता करना प्रारंभ कर दिया,उन्होंने हल्के स्वर में कहा भी बेटा इस उम्र में कभी कभी उठने को मन भी नही करता और कुछ कार्य तो जैसे दूध लेकर आना,सब्जी लाना तो हमे दुष्कर लगता है,पर मंजू ने साफ कह दिया कि चलने फिरने से तो तन में स्फूर्ति बनी रहती है।इससे आगे  वो क्या बोलते।एक दो बार गौत्तम ने कहा भी कि उसके माँ बाप बूढ़े हो गये हैं, यदि घर मे मंजू काम अधिक लगे तो एक मैड बढ़ा लेना,हम एफोर्ड कर सकते हैं, लेकिन मंजू टाल जाती,उसे लगता कि ये सास ससुर बहाना बनाते हैं।गौत्तम को वस्तुस्थिती का पता भी नही चल पाता। फिरभी उसे बेटी का और पति का तो करना ही पड़ता,इससे उसकी खीझ बढ़ती जा रही थी।उसे लगता अभी से यह बेटी का बंधन आ गया ये ही तो दिन एन्जॉय करने के थे और मैं फंस गई इस गृहस्थी के चक्कर में।अब उसका फ्रस्ट्रेशन गौत्तम पर निकलने लगा।उसे लगता बस यही जिम्मेदार है उसका जीवन नीरस करने में।

      मुम्बई गोआ के बीच चलने वाले कॉर्डेलिया क्रूज में तीन रात रहने और एन्जॉय करने का मजा ही 

कुछ और है, सेवन स्टार की सुविधाएं तथा एक्टिविटीज हर किसी का मन मोह लेती है।विककी ने कहा था कि अबकी बार इस क्रूज पर मम्मी पापा के साथ चार दिन की छुट्टियां बिताने चलेंगे। सरोज ने तो मना भी किया पर विककी माना ही नही।शाम को डेक 10 पर जैसे ही सरोज आयी तो उसे दूर अकेली बैठी मंजू दिखायी दे गयी।वह अकेली ही उसकी ओर चली गयी।असल मे उसे उत्सुकता भी थी कि मंजू अपने पति के साथ क्यों नही आयी, न उसकी बेटी साथ है, जरूर कोई बड़ी बात है।पास पहुचने पर सरोज और मंजू एक दूसरे के गले मिले।दोनो ने वही मॉकटेल का आर्डर दे दिया।सरोज ने ही बात आगे बढ़ाई।मंजू  क्या बात है गौतम साथ नही आये?असल मे सरोज बरसो पहले ही मैंने गौत्तम को छोड़ दिया था।मैं घुटन भरी जिंदगी नही जी सकती थी।उसके मां बाप का भी करो,फिर एक बच्ची पैदा हो गयी उसका करो यानि बच्चे परिवार में मुझे लग रहा था जैसे मैं अपने को भूलती जा रही हूं। गौत्तम भी मेरी मनस्थिति को समझ ही नही पा रहा था।आखिर मैंने निर्णय लिया और गौत्तम से  तलाक ले लिया बेटी वो चाहता था सो मैंने 50 लाख रुपये लेकर बेटी भी उसे सौप दी।बस सब झंझट एक झटके में खत्म।अब मैं आजाद हूँ।मस्त रहती हूं।देखो यहां भी इस क्रूज पर मस्ती के लिये ही आयी हूँ।

        सरोज उसे एकटक देखती रह गयी।फिर बोली मंजू एक बात सच बताना कि क्या बिल्कुल अकेले रह कर तुम मस्त रह लेती हो?क्या गौत्तम की,अपनी बेटी की बिल्कुल याद नही आती?इन सवालों से मुँह चुराती मंजू बोली छोड़ो सरोज तुम बताओ तुम्हारी कैसे कट रही है?सरोज ने फिर कहा मंजू बताओ ना रात को अकेले जब अपने कमरे में सोने जाती हो तो क्या वास्तव में सो पाती हो?क्या नही लगता कुछ छोड़ आयी हो?क्या एक बार भी बेटी की किलकारी सुनाई नही दी तुम्हे गौतम तुम्हे फिर कभी याद नही आये?क्या वे सब इतने बुरे निकले जिन्हें तुमने अपनी आजादी के लिये कुर्बान करना ही बेहतर समझा?

  इतने प्रश्न मंजू को अंदर तक झंझोड़ गये वो सरोज का हाथ पकड़ कर फफक फफक कर रो 





पड़ी।सरोज ने उसे रोने दिया वो उसके सिर पर हाथ फिराती रही,जब मंजू शांत हुई तो आंसू पोछते बोली छोड़ो सरोज अब क्या हो सकता है?

      अच्छा मंजू एक बात और बता दो जब बरसो पहले तुमने गौत्तम से तलाक ले ही लिया था तो फिर तुमने और गौत्तम ने क्या दूसरी शादी की?मंजू बोली मैं तो दूसरी शादी की सोच ही नही सकती थी,दूसरी शादी का मतलब तो फिर उसी झंझट में पड़ना था जिसकी वजह से गौत्तम से दूर हो गयी।हाँ गौत्तम ने भी दूसरी शादी क्यो नही की मुझे नही पता,चाहता तो कर सकता था।

       ओह, मंजू तुम समझ ही नही पायी कि गौतम ने शादी क्यों नही की क्यों कि उसे तुमसे और अपनी बेटी से बेइंतिहा प्यार था,तभी तो जिन कर्तव्यों को बेड़ी समझ तुम उसे छोड़ आयी थी,उसने उन बेड़ियों को खुद पहन लिया।मंजू तुम इतना भी समझ ना पायी हम महिलाओं के जीवन की पूर्णता ही परिवार को संभालने में है,पगली ये झंझट नही प्यार के शूल हैं जो कोमल होते हैं।अपनी इस मृगतृष्णा से तुझे क्या मिला भला?बंधन की पीड़ा तो जानी तूने पर बंधन के सुख को तू समझ ना सकी मंजू,जा अब भी लौट जा अपने गौत्तम के पास, वह निश्चित ही तेरी इंतजार में होगा।अगले दिन सब क्रूज से अपना अपना सामान लेकर उतर

 रहे थे,तभी मंजू भागती सी आयी बोली जानती हो सरोज मैं कहाँ जा रही हूं?अपने गौत्तम के पास----!

गुरु गोविंद सिंह

गुरु गोबिन्द सिंह सिखों के दसवें और अंतिम गुरु थे। श्री गुरू तेग बहादुर जी के बलिदान के उपरान्त 11 नवम्बर सन् 1675 को 10 वें गुरू बने। गुरु  एक महान योद्धा, चिन्तक, कवि, भक्त एवं आध्यात्मिक नेता थे। सन् 1699 में बैसाखी के दिन उन्होंने खालसा पंथ की स्थापना की जो सिखों के इतिहास का सबसे महत्वपूर्ण दिन माना जाता है। 


Oh Nation ...                                                                      

 Neera Misra

Oh Nation, thou art my

My Mother, My Father, my roots

Thou art the cultural mirror of Bharat

Where is your Draupadi today?

Oh Nation you have revered me as the pure Panch-kanya

For centuries worshiping the ‘shakti’ intrinsic to me 

So, Oh dear Bharata, why is Draupadi lost in the wilderness in her own land?

Where is my due space in my own land!

The sands of time the storms of History

The lust of men, the jealousy of many,

The challenges of life uncertain

I have borne it all!

In the palaces of kings, in the thickness of forests,

In times of war, in times of death,

In times of anguish

I have defied injustice!

Not for the Queen I was, not for the daughter I was

Neither for the wife in me, nor for the mother in me 

But for the women of the nation, 

I stood up for their dignity!

I am not just Panchali, I am not just Draupadi,

Nor just Krishna, nor either only Kampilvasini,

I am you, dear sisters, mothers, daughters of Bharata!

Why are you not with me?

Not just Drupada’s daughter, nor only Krishna’s friend,

Neither only Abhimanyu’s mother or ‘sahrandari’

Know you Oh men, I am your reflection in all times and all ages

The Shakti to defeat Adharma!

 Oh the Men and Women of Aryavarta, 

Oh dear ones of the civilized ancient Bharata

Respect my struggle for individuality,

Recognize my right to exist as an equal!

Oh the powerful beings, 

Let me not be lost in my own land

Restore my place of birth Kampilya,

My beautiful abode of Indraprastha,

Give me my Space Oh Nation!

Give me my due place in Her-story and History

For I am the inspiration of Krishna’s Gita, your culture, your society

The woman who stood above all adversity

To maintain Dharma, her honor, your honor!

Oh Nation, give me my due space!

 



 शरीर की सभी नसों को खोलने का आयुर्वेदिक समाधान


कपूर और नींबु कितने उपयोगी है...दिन में सिर्फ़ एक बार यह साधारण सा उपाय करके देखिए, सिर के बाल से पैर की उंगली तक सारी नसें मुक्त होने का आपको स्पष्ट अनुभव होगा कि सिर से पैर तक एक तरह से करंट का अनुभव होगा, आपके शरीर की नसें मुक्त होने का स्पष्ट अनुभव होगा। हाथ–पैर में होने वाली झंझनाहट (खाली चढ़ना) तुरंत बंद हो जाती हैं,

पुराना घुटनों का दर्द और कमर, गर्दन या रीड की हड्डी (मणके) में कोई नस दबी या अकड़ गई है तो वह पूरी तरह से ठीक हो जाएगी, पुराना एड़ी का दर्द भी ठीक हो जाएगा। इस उपाये से बहुत से लोगों के लाखों रुपए बच सकते हैं। पैर में फटी एड़ियां और डैड स्किन रिमूव हो जाती है और पैर कोमल हो जाते हैं और इसके पीछे जो विज्ञान और आयुर्वेद है.यह उपाय करने के लिए हमें घर में ही उपलब्ध कपूर और नींबू, ये दो चीजें चाहियें। इस उपाय को करने के लिए डेढ़ से दो लीटर गुनगुना पानी लें, जिसका तापमान पैर को सहन होने जितना गरम हो, उसमे आधे नींबू का रस निचोड़े और फिर नींबू को भी उस पानी में डाल दें फिर दूसरी चीज कपूर है–कोई भी कपूर हो। कपूर की तीन गोलिय् बारीक पीस कर उसका पाउडर बना लें, यह भी उस पानी में मिला लें, फिर पांच से दस मिनट तक पैरों को इस पानी में डाल कर रखें। जैसे ही आप पैरों को पानी में डालेंगे, तो आपको इससे सिर से पैर तक 





एक तरह से करंट का अनुभव होगा। आपके सिर के बालों से पैर तक की सारी नसें मुक्त होने का स्पष्ट रूप से अनुभव होगा। इसका कारण यह है कि हमारे पैरों में 172 प्रकार के प्रेशर पॉइंट होते हैं, जो हमारे शरीर की सभी नसों के साथ जुडे होते हैं। यह नींबू और कपूर वाला गुनगुना पानी इन 172 प्रकार के प्रेशर पॉइंट्स को मुक्त कर देता है और इससे शरीर की सारी नसें एकदम से रीएक्टिवेट हो जाती हैं और पूरी तरह से मुक्त हो जाती हैं, ऐसा अनुभव होता है। इस उपाय में सिर्फ पांच से दस मिनट तक इस पानी में पैर डाल कर रखने है और यह दिन में कभी भी सुबह या शाम को कर सकते हैं। इससे हाथ, पैर में होने वाली झनझनाहट (खाली चढ़ना) बंद हो जाती हैं और कोई नस दबी या अकड़ गई हो, तो वह खुल जाएगी और सिरदर्द भी इस उपाय से बंद हो जाता है। जिन लोगों को माइग्रेन की तकलीफ हो वह भी, पानी में पैर रखने के साथ ही बन्द हो जायेगी। अगर स्नायु अकड़ गये हों या शरीर दर्द कर रहा हो तो यह उपाय करके देखिए। इसका कोई साइड इफैक्ट नहीं है और यह उपाय सरल रूप से किया जा सकता है। यह उपाय पांच दिन करना है। यह उपाय दिखने में तो सरल लगता है मगर इस का रिज़ल्ट बहुत ही अच्छा और असरदार होता है....आपको इससे नुकसान कुछ नहीं होगा फायदा ही होगा…

26 जनवरी 1950 को देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद ने 21 तोपों की सलामी के साथ ध्वजारोहण कर भारत को पूर्ण गणतंत्र घोषित किया। यह ऐतिहासिक क्षणों में गिना जाने वाला समय था। इसके बाद से हर वर्ष इस दिन को गणतंत्र दिवस के रूप में मनाया जाता है ।हमारा संविधान देश के नागरिकों को लोकतांत्रिक तरीके से अपनी सरकार चुनने का अधिकार देता है।  


एक गोत्र में विवाह न करने का कारण..??

पुत्री को अपने पिता का गोत्र क्यों नही प्राप्त होता आइये वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखें..??हम आप सब जानते हैं कि स्त्री में गुणसूत्र xx और पुरुष में xy गुणसूत्र होते हैं।इनकी सन्तति में माना कि पुत्र हुआ (xy गुणसूत्र) अर्थात इस पुत्र में y गुणसूत्र पिता से ही आया यह तो निश्चित ही है क्योंकि माता में तो y गुणसूत्र होता ही नही है और यदि पुत्री हुई तो (xx गुणसूत्र) यानी यह गुणसूत्र पुत्री में माता व पिता दोनों से आते हैं ।

1. xx गुणसूत्र :-

xx गुणसूत्र अर्थात पुत्री  , अस्तु xx गुणसूत्र के जोड़े में एक x गुणसूत्र पिता से तथा दूसरा x  गुणसूत्र माता से आता है । तथा इन दोनों गुणसूत्रों का संयोग एक गांठ सी रचना बना लेता है जिसे Crossover कहा जाता है ।

2. xy गुणसूत्र :-

xy गुणसूत्र अर्थात पुत्र , यानी पुत्र में y गुणसूत्र केवल पिता से ही आना संभव है क्योंकि माता में y गुणसूत्र है ही नही । और दोनों गुणसूत्र असमान होने के कारन पूर्ण Crossover नही होता केवल ५ % तक ही होता है । और ९५ %  y गुणसूत्र ज्यों का त्यों  (intact)  ही  रहता है, तो महत्त्वपूर्ण  y  गुणसूत्र हुआ । क्योंकि  y  गुणसूत्र के विषय में हमें निश्चित है कि यह पुत्र में केवल पिता से ही आया है।बस इसी  y  गुणसूत्र का पता लगाना ही गोत्र प्रणाली का एकमात्र उदेश्य है जो हजारों / लाखों वर्ष पूर्व हमारे ऋषियों ने जान लिया था वैदिक गोत्र प्रणाली और  y  गुणसूत्र  अब तक हम यह समझ चुके है कि वैदिक गोत्र प्रणाली y गुणसूत्र पर आधारित है अथवा y गुणसूत्र को ट्रेस करने का एक माध्यम है ।उदहारण के लिए यदि किसी व्यक्ति का गोत्र कश्यप है तो उस व्यक्ति में विद्यमान  y  गुणसूत्र कश्यप ऋषि से आया है या कश्यप ऋषि उस  y  गुणसूत्र के मूल हैं।चूँकि  y  गुणसूत्र स्त्रियों में नही होता यही कारण है कि विवाह के पश्चात स्त्रियों को उसके पति के गोत्र से जोड़ दिया जाता है।वैदिक  /  हिन्दू संस्कृति में एक ही गोत्र में विवाह वर्जित होने का मुख्य कारण यह है कि एक ही गोत्र से होने के कारण वह पुरुष व स्त्री भाई बहन कहलाएंगे क्योंकि उनका प्रथम पूर्वज एक ही है ।परन्तु ये थोड़ी अजीब बात नही कि जिन स्त्री व पुरुष ने एक दुसरे को कभी देखा तक नही और दोनों अलग अलग देशों में परन्तु एक ही गोत्र में जन्मे , तो  वे  भाई बहन हो गये ? इसका मुख्य कारण एक ही गोत्र होने के कारण गुणसूत्रों में समानता का भी है । आज के आनुवंशिक विज्ञान के अनुसार यदि सामान गुणसूत्रों 






वाले दो व्यक्तियों में विवाह हो तो उनकी सन्तति आनुवंशिक विकारों के साथ उत्पन्न होगी ।ऐसे दंपत्तियों की संतान में एक सी विचारधारा , पसंद , व्यवहार आदि में कोई नयापन नहीं होता । ऐसे बच्चों में रचनात्मकता का अभाव होता है। विज्ञान द्वारा भी इस संबंध में यही बात कही गई है कि सगोत्र शादी करने पर अधिकांश ऐसे दंपत्ति की संतानों में अनुवांशिक दोष अर्थात मानसिक विकलांगता , अपंगता , गंभीर रोग आदि जन्मजात ही पाए जाते हैं ।  शास्त्रों के अनुसार इन्हीं कारणों से सगोत्र विवाह पर प्रतिबंध लगाया था। इस गोत्र का संवहन यानी उत्तराधिकार पुत्री को एक पिता प्रेषित न कर सके , इसलिये विवाह से पहले कन्यादान कराया जाता है और गोत्र मुक्त कन्या का पाणिग्रहण कर भावी वर अपने कुल गोत्र में उस कन्या को स्थान देता है , यही कारण था कि उस समय विधवा विवाह भी स्वीकार्य नहीं था , क्योंकि , कुल गोत्र प्रदान करने वाला पति तो मृत्यु को प्राप्त कर चुका है।इसीलिये , कुंडली मिलान के समय वैधव्य पर खास ध्यान दिया जाता और मांगलिक कन्या होने पर ज्यादा सावधानी बरती जाती है ।आत्मज या आत्मजा का सन्धिविच्छेद तो कीजिये आत्म + ज  अथवा  आत्म + जा 

आत्म = मैं , ज  या  जा  = जन्मा या जन्मी , यानी मैं ही जन्मा या जन्मी हूँ। यदि पुत्र है तो 95% पिता और 5% माता का सम्मिलन है । यदि पुत्री है तो 50% पिता और 50% माता का सम्मिलन है । फिर यदि पुत्री की पुत्री हुई तो वह डीएनए 50% का 50% रह जायेगा , फिर यदि उसके भी पुत्री हुई तो उस 25% का 50% डीएनए रह जायेगा , इस तरह से सातवीं पीढ़ी में पुत्री जन्म में यह प्रतिशत घटकर 1% रह जायेगा ।अर्थात , एक पति-पत्नी का ही डीएनए सातवीं पीढ़ी तक पुनः पुनः जन्म लेता रहता है , और यही है सात जन्मों का साथ। लेकिन , जब पुत्र होता है तो पुत्र का गुणसूत्र पिता के गुणसूत्रों का 95% गुणों को अनुवांशिकी में ग्रहण करता है और माता का 5% ( जो कि किन्हीं परिस्थितियों में एक % से कम भी हो सकता है ) डीएनए ग्रहण करता है , और यही क्रम अनवरत चलता रहता है, जिस कारण पति और पत्नी के गुणों युक्त डीएनए बारम्बार जन्म लेते रहते हैं, अर्थात यह जन्म जन्मांतर का साथ हो जाता है..

भारतीय स्वतंत्रता में सुभाष चंद्र बोस का योगदान

सुभाष चंद्र बोस की भागीदारी सविनय अवज्ञा आंदोलन में हुई। इस तरह सुभाष चंद्र बोस भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन का हिस्सा बन गये। वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सदस्य बने | 1939 में वे पार्टी अध्यक्ष भी बने। अंग्रेजों ने सुभाष चंद्र बोस को नजरबंद कर दिया। इसका कारण ब्रिटिश शासन के प्रति उनका विरोध था। हालाँकि, अपनी चतुराई के कारण, उन्होंने 1941 में गुप्त रूप से देश छोड़ दिया। फिर वे अंग्रेजों के खिलाफ मदद मांगने के लिए यूरोप चले गए। सबसे उल्लेखनीय बात यह है कि उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ रूसियों और जर्मनों से मदद मांगी। 1943 में सुभाष चंद्र बोस जापान गए। जापान में सुभाष चंद्र बोस ने भारतीय राष्ट्रीय सेना का गठन शुरू किया । सबसे उल्लेखनीय बात यह है कि उन्होंने एक अस्थायी सरकार का गठन किया। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान धुरी शक्तियों ने निश्चित रूप से इस अनंतिम सरकार को मान्यता दी।आज़ाद हिन्द फ़ौज ने भारत के उत्तर-पूर्वी भागों पर आक्रमण किया। आईएनए कुछ हिस्सों पर कब्ज़ा करने में भी सफल रही। दुर्भाग्यवश, मौसम और जापानी नीतियों के कारण आईएनए को आत्मसमर्पण करना पड़ा। हालाँकि, बोस ने आत्मसमर्पण करने से इनकार कर दिया। वह एक विमान से भाग निकले लेकिन संभवतः यह विमान दुर्घटनाग्रस्त हो गया। इसके चलते 18 अगस्त 1945 को सुभाष चंद्र बोस की मृत्यु हो गई।








56 (छप्पन) भोग क्यों लगाते है...?


भगवान को लगाए जाने वाले भोग की बड़ी महिमा है। इनके लिए 56 प्रकार के व्यंजन परोसे जाते हैं, जिसे छप्पन भोग कहा जाता है। यह भोग रसगुल्ले से शुरू होकर दही, चावल, पूरी, पापड़ आदि से होते हुए इलायची पर जाकर खत्म होता है।

अष्ट पहर भोजन करने वाले बालकृष्ण भगवान को अर्पित किए जाने वाले छप्पन भोग के पीछे कई रोचक कथाएं है । ऐसा भी कहा जाता है कि यशोदाजी बालकृष्ण को एक दिन में अष्ट पहर भोजन कराती थी। अर्थात्... बालकृष्ण आठ बार भोजन करते थे । जब इंद्र के प्रकोप से सारे व्रज को बचाने के लिए भगवान श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को उठाया था, तब लगातार सात दिन तक भगवान ने अन्न जल ग्रहण नहीं किया । आठवे दिन जब भगवान ने देखा कि अब इंद्र की वर्षा बंद हो गई है, सभी व्रजवासियो को गोवर्धन पर्वत से बाहर निकल जाने को कहा, तब दिन में आठ प्रहर भोजन करने वाले व्रज के नंदलाल कन्हैया का लगातार सात दिन तक भूखा रहना उनके व्रज वासियों और मया यशोदा के लिए बड़ा कष्टप्रद हुआ. भगवान के प्रति अपनी अन्न्य श्रद्धा भक्ति दिखाते हुए सभी व्रजवासियो सहित यशोदा जी ने 7 दिन और अष्ट पहर के हिसाब से 7X8= 56 व्यंजनो का भोग बाल कृष्ण को लगाया । गोपिकाओं ने भेंट किए छप्पन भोग.. श्रीमद्भागवत के अनुसार, गोपिकाओं ने एक माह तक यमुना में भोर में ही न केवल स्नान किया, अपितु कात्यायनी मां की अर्चना भी इस मनोकामना से की, कि उन्हें नंदकुमार ही पति रूप में प्राप्त हों ।

श्रीकृष्ण ने उनकी मनोकामना पूर्ति की सहमति दे दी । व्रत समाप्ति और मनोकामना पूर्ण होने के उपलक्ष्य में ही उदयापन स्वरूप गोपिकाओं ने छप्पन भोग का आयोजन किया । छप्पन भोग हैं छप्पन सखियां... ऐसा भी कहा जाता है कि गौलोक में भगवान श्रीकृष्ण राधिका जी के साथ एक दिव्य कमल पर विराजते हैं।

उस कमल की तीन परतें होती हैं... प्रथम परत में आठ, दूसरी में सोलह और तीसरी में बत्तीस पंखुड़िया होती हैं । प्रत्येक पंखुड़ी पर एक प्रमुख सखी और मध्य में भगवान विराजते हैं । इस तरह कुल पंखुड़ियों संख्या छप्पन होती है । 56 संख्या का यही अर्थ है ।





ऐसे है हमारे ठाकुर जी 

विश्व में केवल बाँके बिहारी जी का एक ऐसा मंदिर है जहां घंटी_नहीं है, ना ही बजाई जाती है। श्री बिहारी जी छोटे से बालक के रूप में दर्शन दे रहे हैं।

मंदिर में ठाकुर जी किस रूप में विराजमान है?

वैसे तो हमारे ठाकुर जी ब्रज के महाराजा है पर 7 साल के बालक के रूप में स्वामी श्री हरिदास जी लाड लड़ाया करते थे। श्री बाँके बिहारी जी के सामने ताली नहीं बजाई जाती क्यूंकि श्री बांके बिहारी जी की बांके बिहारी लाल स्वरुप में सेवा की जाती है। ताली एवं घण्टी से ठाकुर कई बार चौंक जाते थे इसलिए यह परंपरा बंद कर दी गई।

एक कारण और है ताली बजने का अर्थ है भोग पूरा लग गया है, अब आचमन कर लो पर भक्त बिहारी जी को पेड़े का भोग हर समय लगाते मिलेंगे मंदिर में तो हमारे ठाकुर बिहारी जी खूब खाते हैं।

बिहारी जी नटखट हैं और छोटे से बालक भी हैं इसलिए भक्त के जीवन में बिहारी जी चमत्कार करते रहते हैं। बिहारी जी अपने भक्त को ऐसे देखते हैं जैसे घर पर कोई मेहमान आये तो बच्चा टकटकी लगा कर देखता है, अचानक से नज़र हटाकर दूसरी ओर देखने लगते हैं। ऐसा अनुभव प्रत्येक उस 





भक्त का होगा जो मंदिर में कहीं भी खड़ा हो ठाकुर उस पर नज़रे लगाये मिलेंगे लेकिन भक्त देखेगा लाड लड़ायेगा तो तुरंत दूसरी ओर देखने लगेंगे।

बड़ा अटपटा ठाकुर है हमारा बांके बिहारी लाल पर प्राणों से प्यारा है लाड़लो 

*हमारे ठाकुर जी*

*आज की यह कथा विशेष हैं,बड़ा आनंद आएगा कथा को पढ़कर*

एक बार एक बहुत बड़े संत अपने एक शिष्य के साथ दिल्ली से वृंदावन को वापिस जा रहे थे, रास्ते में उनकी कार ख़राब हो गई। वही पास में एक ढाबा था , शिष्य ने संत को वहाँ चल कर थोड़ा आराम करने का आग्रह किया, जबतक कार ठीक न हो जाए या कोई दूसरा इंतज़ाम न हो जाए। ढाबे के  मालिक ने जब देखा की इतने बड़े संत उसके ढाबे पर आए हैं, उसने जल्दी- जल्दी शुद्ध सात्विक भोजन तैयार करवाया और संत से आग्रह किया की कृपा कर आप भोजन ग्रहण करे। संत ने बड़े ही विनम्र भाव से कहा कि वो सिर्फ़ भोग लगा हुआ प्रसाद ही पाते हैं। ढाबे का मालिक बहुत निराश हुआ और शिष्य भी दुःखी था की संत ने सुबह से कुछ खाया नहीं है। 

ठीक उसी समय एक और कार आ कर वहाँ रुकी जिसमें से एक दम्पति गोपाल जी को ले कर बाहर निकले और ढाबे के मालिक से कहा कि कुछ सात्विक भोजन तैयार करवा दीजिए मेरे गोपाल जी के भोग का समय हो गया है। उन्होंने बताया कि वो लोग वृंदावन से दिल्ली अपने घर वापिस जा रहे थे, रास्ते में एक दुर्घटना की वजह से वे समय से घर नहीं पहुँच सके हैं और अब उनके गोपाल जी के भोग का समय हो गया है। प्रभु की इस लीला को देख कर ढाबे के मालिक और शिष्य दोनो की आँखे भर आई। संत के लिए बनाया हुआ भोजन गोपाल जी को भोग लगाया फिर वो प्रसाद संत के पास ले कर गए, संत ने जब सारी बात सुनी तो वो दौड़ कर गोपाल जी के पास आए और दण्डवती करी , संत के आँसू रुकने का नाम ही नहीं ले रहे थे। संत ने कहा - कन्हैया, आज तूने मेरे लिए इस ढाबे पर जहाँ प्याज़- लहसुन की गंध से मेरे लिए ही बैठना कठिन हो रहा था, वहाँ तूने मेरे लिए आकार भोग लगाया कि मैं भूखा न रह जाऊ, धन्य है तू जो अपने तुच्छ से तुच्छ भक्त के लिए भी कुछ भी करने को तैयार है। उस संत ने प्रसाद को माथे से लगाया।उसे आज वो प्रसाद अमृत से भी ज़्यादा मीठा लग रहा था। 

दूसरी तरफ़ ढाबे वाला सोच रहा था- धन्य है तू साँवरे, मैं तो घर पर तुझे सिर्फ़ कभी -कभी कुछ मीठा ले जा कर  लगा देता हूँ वो भी बीबी के कहने से और तू मेरी (संत की प्रसाद पवाने की )इच्छा पूरी करने खुद ही चल कर आ गया, तेरी कृपा और करुणा का कोई पार नहीं है कान्हा।  उसी ढाबे पर धर्म के कुछ ज्ञानी लोग भी बैठे थे जो गोपाल जी की कृपा उनके सुंदर रूप और उन दम्पति के गोपाल जी के प्रति प्रेम को तो नहीं देख पा रहे थे  बल्कि उस दम्पति के गोपाल जी को साथ ले कर धूमने की और ऐसी जगह बैठ कर भोग लगाने की निंदा कर रहे थे जहाँ बग़ल में सलाद की प्लेट में प्याज़ भी रखा हुआ था। 






अस्मिता की रक्षा

 अपने अस्तित्व, अपनी अस्मिता की रक्षा के लिए संघर्ष करना पड़े तो पीछे नहीं हटना चाहिए...!!*

एक आदमी एक मुर्गा खरीद कर लाया। एक दिन वह मुर्गे को मारना चाहता था, इसलिए उस ने मुर्गे को मारने का *बहाना सोचा*और मुर्गे से कहा, "तुम कल से बाँग नहीं दोगे, नहीं तो मै तुम्हें मार डालूँगा।" 

मुर्गे ने कहा, "ठीक है, सर, जो भी आप चाहते हैं, वैसा ही होगा !"

सुबह , जैसे ही मुर्गे के बाँग का समय हुआ, मालिक ने देखा कि मुर्गा बाँग नहीं दे रहा है, लेकिन हमेशा की तरह, अपने पंख फड़फड़ा रहा है। 

मालिक ने अगला आदेश जारी किया कि कल से *तुम अपने पंख भी नहीं फड़फड़ाओगे* , नहीं तो मैं वध कर दूँगा।

 अगली सुबह, बाँग के समय, मुर्गे ने आज्ञा का पालन करते हुए अपने पंख नहीं फड़फड़ाए, लेकिन 






आदत से, मजबूर था, अपनी गर्दन को लंबा किया और उसे उठाया। 

मालिक ने परेशान होकर अगला आदेश जारी कर दिया कि *कल से गर्दन भी नहीं हिलनी चाहिए* । अगले दिन मुर्गा चुपचाप मुर्गी बनकर सहमा रहा और कुछ नहीं किया। 

मालिक ने सोचा ये तो बात नहीं बनी, इस बार मालिक ने भी कुछ ऐसा सोचा जो वास्तव में मुर्गे के लिए नामुमकिन था।

मालिक ने कहा कि कल से *तुम्हें अंडे देने होंगे* नहीं तो मै तेरा वध कर दूँगा।

 *अब मुर्गे को अपनी मौत साफ दिखाई देने लगी और वह बहुत रोया।* 

मालिक ने पूछा, "क्या बात है?"

 *मौत के डर से* रो रहे हो?

 *मुर्गे का जवाब बहुत सुंदर और सार्थक था।* 

 मुर्गा कहने लगा:

"नहीं, मै इसलिए रो रहा हूँ कि, अंडे न देने पर मरने से *बेहतर है बाँग देकर मरता...* 

 *बाँग मेरी पहचान और अस्मिता थी ,* 

मैंने *सब कुछ त्याग दिया* और तुम्हारी हर बात मानी ,

 लेकिन *जिसका इरादा ही मारने का हो तो उसके आगे समर्पण नहीं संघर्ष करने से ही जान बचाई जा सकती है*, *   ........       ..... *.जो मैं नहीं कर सका..."* 

 अपने अस्तित्व, अपनी अस्मिता की रक्षा के लिए संघर्ष करना पड़े तो पीछे नहीं हटना चाहिए...!!

पंचक विचार  जनवरी -2024  

पंचक विचार -(धनिष्ठा नक्षत्र के तृतीय चरण से रेवती नक्षत्र तक) पंचको में दक्षिण दिशा की ओर यात्रा करना मकान दुकान आदि की छत डालना चारपाई पलंग आदि बुनना,दाह संस्कार,बांस की चटाई दीवार प्रारंभ करना आदि स्तंभ रोपण तांबा पीतल तृण काष्ट आदि का संचय करना आदि कार्यों का निषेध माना जाता है समुचित उपाय एवं पंचक शांति करवा कर ही उक्त कार्यों का संपादन करना कल्याणकारी होगा ध्यान रहेगा  पंचर नक्षत्रों का विचार मात्र उपरोक्त विशेष कृतियों के लिए ही किया जाता है विवाह मंडल आरंभ गृह प्रवेश प्रवेश उपनयन आदि मुद्दों से तो पंचक नक्षत्रका प्रयोग शुभ माना जाता है पंचक विचार- दिनांक 13 को 23 - 34 से दिनांक 18 को 03- 33 तक पंचक है | 

अधिक जानकारी के लिए संपर्क करे शर्मा जी - 9312002527,9560518227

मूल विचार जनवरी -2024

दि. 30 दिस. 2023 ई. को 3/09 से दि. 1 जन. 8/36 तक, दि. 8 को 22/02 से दि. 10 को 19/39 तक, दि. 17 को 4/37 से दि. 19 को 2/57 तक, दि. 26 को 10/28 से दि. 28 को 15/52 बजे तक गण्डमूल नक्षत्र हैं।





परवरिश 

रुचिका अग्रवाल,दिल्ली 

 मनुष्य इस सृष्टि की सर्वश्रेष्ठ कृति है क्योंकि उसको ईश्वर ने बुद्धि दी है जिसका प्रयोग करके वह संसार में अपनी श्रेष्ठता सिद्ध कर सकता है। इस सर्वश्रेष्ठ कृति को सही दिशा देने के लिए परवरिश अत्यंत आवश्यक है। एक बालक उस कच्ची मिट्टी के समान है जिसे सही परवरिश के द्वारा  देवता भी बनाया जा सकता है लेकिन इसके विपरीत राक्षस भी बनाया जा सकता है।

आज के समय जहाँ संयुक्त परिवार खत्म हो रहे हैं, एकाकी परिवारों का चलन बढ़ रहा है वहाँ माता-पिता की जिम्मेदारी अपने बच्चों की परवरिश में और महत्वपूर्ण हो जाती है।

यद्यपि परवरिश की कोई मान्य परिभाषा तो नहीं है लेकिन माता-पिता अपने बच्चों को समय के महत्व को अवश्य सिखाएँ। जिनके लिए उन्हें स्वयं भी समय का महत्व करना होगा क्योंकि बच्चे हमारी बातों से ज्यादा हमें देखकर सीखते हैं। अपनी उम्मीदों को उन पर ना थोपे, उन्हें इस प्रकार से बड़ा करें जिससे वह अपने निर्णय स्वयं ले सके। उनके निर्णय में उनके सहयोगी बने और इस प्रकार अपने बच्चों की सही परवरिश परिवार, समाज और देश को सुखद और सफल बना सकता है।

चौघड़िया मुहूर्त 

चौघड़िया मुहूर्त देखकर कार्य या यात्रा करना उत्तम होता है। एक तिथि के लिये दिवस और रात्रि के आठ-आठ भाग का एक चौघड़िया निश्चित है। इस प्रकार से 12 घंटे का दिन और 12 घंटे की रात मानें तो प्रत्येक में 90 मिनट यानि 1.30 घण्टे का एक चौघड़िया होता है जो सूर्योदय से प्रारंभ होता है|





सफला एकादशी व्रत

सफला एकादशी का व्रत पौष कृष्ण पक्ष एकादशी को किया जाता है इस दिन भगवान अच्यतु की

पूजा  का विशषे विधान है | इस व्रत को धारण करने वाले को चाहिए कि प्रातः स्नान करके भगवान की

आरती करें तथा भोग लगाए ब्राह्मणों तथा गरीबों को भोजन अथवा दान देना चाहिए | रात्रि में

जागरण करते हुए कीर्तन व पाठ करना अत्यंत फलदाई होता है |व्रत को करनेसेसमस्त कार्यों में

सफलता मिलती है | इसलिए इसका नाम सफला एकादशी है |

सफला एकादशी व्रत कथा - पद्मपुराण की कथा अनुसार चंपावती नगर में राजा महिष्मान राज करते थे, उनका बड़ा बेटा लूंभक बुरे मार्ग पर चलता था, उसे बुरे काम और पाप करना अच्छा लगता था।उससे राजा और पूरी प्रजा बड़ी ही परेशान थी. एक दिन उसके बुरे कामों से परेशान होकर राजा ने लूंभक को नगर से निकाल दिया । जंगल में रहने के अलावा उसके पास कोई रास्ता नहीं बचा था. उसके बुरे आचरण की वजह से कोई भी उसकी मदद करने के लिए तैयार नहीं था । लूंभक पेड़ से फल खाकर अपना जीवन व्यतीत करने लगा. वो एक पेड़ के नीचे ही रहता था।पौष मास की कृष्णपक्ष एकादशी की रात ठंड की वजह से लूंभक सो नहीं पाया और रातभर जागकर भगवान से अपने पापों का प्रायश्चित किया. इस तरह अनजाने में ही उसने सफला एकादशी का व्रत रख लिया. सच्चे मन से प्रायश्चित करने की वजह से भगवान विष्णु की कृपा से लूंभक के पिता राजा महिष्मान ने उसे वापस बुला लिया।अपने बेटे के व्यवहार में परिवर्तन देखकर राजा ने सारा राजपाठ लूंभक को सौंप दिया और और खुद तपस्या करने जंगल चले गए। लूंभक ने अपने पिता के जाने के बाद अपनी प्रजा का बहुत ही अच्छी तरह से ख्याल रखा. मृत्यु के बाद लूंभक को वैकुण्ठ धाम की प्राप्ति हुई।

पुत्रदा  एकादशी

पुत्रदा एकादशी सावन मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाई जाती है इस दिन भगवान विष्णु के नाम पर व्रत रखकर पूजा की जाती है इसके बाद  ब्राह्मण को भोजन करके दान देकर आशीर्वाद लेना  चाहिए |

पुत्रदा एकादशी की कथा - एक समय की बात है महिष्मति नगर में  महिजीत नाम का राजा राज करता था | वह बड़ा ही धर्मात्मा शांतिप्रिय और दानी था परंतु उसके कोई संतान नहीं थी यही सोच सोच कर राजा बहुत ही दुखी रहता था | एक बार राजा ने अपने राज्य के समस्त ऋषिओ  और महात्माओं को बुलाया और संतान प्राप्त करने के उपाय पूछे इस पर परम ज्ञानी लोमस ऋषि ने बताया कि आपने पिछले जन्म में स्वर्ण मास की एकादशी को अपने तालाब से प्यासी गाय को पानी नहीं पीने दिया था और उसे हटा दिया था | इसी श्राप के कारण आपके कोई संतान उत्पन्न नहीं हुई है इसलिए आप सावन मास की पुत्रदा एकादशी का नियम पूर्वक व्रत रखकर रात्रि जागरण करिए | आपको पुत्र अवश्य प्राप्त होगा ऋषि की आज्ञा अनुसार राजा ने एकादशी का व्रत किया और इसके प्रभाव से उसे पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई तथा इस लोक मे सुख भोग कर अंत मे वैकुंठ   मे गया |

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जनवरी के महत्वपूर्ण दिवस 

1 जनवरी - वैश्विक परिवार दिवस

इसे शांति और साझाकरण के दिन के रूप में मनाया जाता है। इसका उद्देश्य एकजुट होना और इस विचार को बढ़ावा देकर शांति का संदेश फैलाना है कि पृथ्वी एक वैश्विक परिवार है ताकि दुनिया को सभी के लिए रहने के लिए एक बेहतर जगह बनाया जा सके।

नववर्ष की शुभकामनाएँ 2023: उद्धरण, संदेश, शुभकामनाएँ, व्हाट्सएप और फेसबुक स्टेटस, कविताएँ, और बहुत कुछ

01 जनवरी 1894 – सत्येंद्र नाथ बोस – प्रसिद्ध गणितज्ञ और भौतिक शास्त्री

2 जनवरी- विश्व अंतर्मुखी दिवस

दुनिया भर में असंख्य अंतर्मुखी लोगों को बेहतर ढंग से समझने के लिए पिछले वर्ष के भयानक समारोहों के अगले दिन 2 जनवरी को विश्व अंतर्मुखी दिवस के रूप में मनाया जाता है। अंतर्मुखी लोगों को आवश्यक समय और स्थान देकर उनका सम्मान करने का यह आदर्श दिन है।

3 जनवरी- अंतर्राष्ट्रीय माइंड बॉडी वेलनेस दिवस

3 जनवरी को, यह अंतर्राष्ट्रीय माइंड-बॉडी वेलनेस दिवस है, जो विकास और कल्याण के लिए नई रणनीतियों को क्रियान्वित करके हमारे शरीर और दिमाग दोनों से प्यार करने के लिए प्रतिबद्ध होने का समय है।

04 जनवरी 1892 – जे.सी. कुमारप्पा – भारत के एक अर्थशास्त्री  

4 जनवरी - विश्व ब्रेल दिवस

ब्रेल लिपि के आविष्कारक लुई ब्रेल के जन्म की याद में 4 जनवरी को विश्व ब्रेल दिवस के रूप में मनाया जाता है। यह दिन इस बात को भी मान्यता देता है कि दृष्टिबाधित लोगों को मानवाधिकारों तक अन्य सभी लोगों की तरह ही पहुंच मिलनी चाहिए। 

5 जनवरी- राष्ट्रीय पक्षी दिवस

पारिस्थितिकी तंत्र में छोटे ट्वीट्स के महत्व के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए 5 जनवरी को राष्ट्रीय पक्षी दिवस मनाया जाता है। एवियन कल्याण गठबंधन, जो  वित्तीय लाभ या मानव मनोरंजन के लिए पकड़े गए या कैद में पैदा किए गए पक्षियों के लिए जागरूकता को बढ़ावा देने के लिए कड़ी मेहनत करता है  , इस पहल के पीछे है।

6 जनवरी - विश्व युद्ध अनाथ दिवस

युद्ध अनाथों की दुर्दशा के बारे में जागरूकता पैदा करने और उनके सामने आने वाली दर्दनाक स्थितियों को संबोधित करने के लिए हर साल 6 जनवरी को विश्व युद्ध अनाथ दिवस मनाया जाता है।






7 जनवरी- महायान नव वर्ष

दुनिया भर के बौद्ध इस साल 7 जनवरी को महायान नव वर्ष मनाएंगे। विभिन्न बौद्ध दर्शन और विचारधाराओं को महायान कहा जाता है। बौद्ध धर्म की दो मुख्य शाखाओं में से एक, महायान मुख्य रूप से पूर्वोत्तर एशिया में प्रचलित है। तिब्बत, ताइवान, मंगोलिया, चीन, जापान, कोरिया और ताइवान। महायान बौद्ध धर्म प्रत्येक क्षेत्र के विशिष्ट रीति-रिवाजों और परंपराओं के अनुसार प्रचलित है।

8 जनवरी - अफ़्रीकी राष्ट्रीय कांग्रेस स्थापना दिवस

साउथ अफ्रीकन नेटिव नेशनल कांग्रेस (SANNC) की स्थापना 8 जनवरी 1912 को जॉन लैंगलीबेल दुबे द्वारा ब्लोमफ़ोन्टेन में की गई थी। इसके पीछे प्राथमिक उद्देश्य काले और मिश्रित नस्ल के अफ्रीकियों को मतदान का अधिकार देना या अफ्रीकी लोगों को एकजुट करना और मौलिक राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक परिवर्तन के लिए संघर्ष का नेतृत्व करना था।

8 जनवरी- पृथ्वी का घूर्णन दिवस

हर साल 8 जनवरी को पृथ्वी घूर्णन दिवस के रूप में मान्यता दी जाती है। आज फ्रांसीसी भौतिक विज्ञानी लियोन फौकॉल्ट के 1851 के उस प्रमाण की वर्षगांठ है कि पृथ्वी अपनी धुरी पर घूमती है।

9 जनवरी - एनआरआई (अनिवासी भारतीय) दिवस या प्रवासी भारतीय दिवस

भारत के विकास में प्रवासी भारतीय समुदाय के योगदान को चिह्नित करने के लिए हर साल 9 जनवरी को एनआरआई या प्रवासी भारतीय दिवस मनाया जाता है। यह दिन 9 जनवरी 1915 को महात्मा गांधी की दक्षिण अफ्रीका से मुंबई वापसी की भी याद दिलाता है।

10 जनवरी -  विश्व हिन्दी दिवस

विश्व हिंदी दिवस 10 जनवरी को मनाया जाने वाला एक वार्षिक कार्यक्रम है। विश्व हिंदी दिवस उस अवसर को चिह्नित करने के लिए बनाया गया था जब हिंदी पहली बार 1949 में UNGA में बोली गई थी। दुनिया भर में लगभग 600 मिलियन वक्ताओं के साथ, हिंदी दुनिया में तीसरी सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है। मंदारिन चीनी और अंग्रेजी के बाद।

इन रोजमर्रा के अंग्रेजी शब्दों के लिए अपनी हिंदी शब्दावली का परीक्षण करें।

11 जनवरी - लाल बहादुर शास्त्री की पुण्य तिथि

वह स्वतंत्र भारत के दूसरे प्रधान मंत्री थे। उन्होंने 'जय जवान जय किसान' के नारे को लोकप्रिय बनाया। उन्होंने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय रूप से भाग लिया। 11 जनवरी 1966 को कार्डियक अरेस्ट के कारण उनकी मृत्यु हो गई। और उन्हें विश्व स्तर पर 'शांति पुरुष' के रूप में भी जाना जाता था।

11 जनवरी - राष्ट्रीय मानव तस्करी जागरूकता दिवस

यह मानव तस्करी की निरंतर समस्या के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए 11 जनवरी को मनाया जाता है। इस दिन का उद्देश्य मानव तस्करी पीड़ितों की दुर्दशा के बारे में जागरूकता बढ़ाना, साथ ही उनके अधिकारों को बढ़ावा देना और उनकी रक्षा करना है।

12 जनवरी - राष्ट्रीय युवा दिवस

स्वामी विवेकानन्द की जयंती जिसे स्वामी विवेकानन्द जयन्ती भी कहा जाता है, हर वर्ष 12 जनवरी को मनाई जाती है। उनका जन्म 12 जनवरी 1863 को हुआ था। सरकार ने इसे राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया था क्योंकि स्वामीजी का दर्शन और जिन आदर्शों के लिए वे जीते और काम करते थे वे भारतीय युवाओं के लिए प्रेरणा का एक बड़ा स्रोत हो सकते हैं। उन्होंने शिकागो में विश्व धर्म संसद में भाषण दिया था और भारत का नाम रोशन किया था।

स्वामी विवेकानन्द: इतिहास, शिक्षाएँ, दर्शन और जीवनी

13 जनवरी 1949 – राकेश शर्मा –  भारत के पहले और विश्व के 138 वें अंतरिक्ष यात्री

14 जनवरी - लोहड़ी पर्व

लोहड़ी साल 2023 का पहला त्योहार है और फसल के मौसम की शुरुआत का प्रतीक है। यह उत्तरी भारत, मुख्यतः पंजाब और हरियाणा में पूरे उत्साह के साथ मनाया जाता है। लोहड़ी का त्योहार 13 या 14 जनवरी 2023 को अलाव जलाकर और उसके चारों ओर दोस्तों और रिश्तेदारों के साथ नृत्य करके मनाया जाता है। लोग अलाव में गेहूं के डंठल, चावल, रेवड़ी, गुड़ और पॉपकॉर्न चढ़ाते हैं। 

हैप्पी लोहड़ी: तारीख, शुभकामनाएं, संदेश, शुभकामनाएं, उद्धरण, व्हाट्सएप और फेसबुक स्टेटस, कविताएं, महत्व और बहुत कुछ

15 जनवरी -  मकर संक्रांति

इस वर्ष यह 14 जनवरी को मनाया जाएगा और यह सर्दियों के मौसम की समाप्ति और नई फसल के मौसम की शुरुआत का प्रतीक है।

15 जनवरी - पोंगल

भारत में सबसे लोकप्रिय त्योहारों में से एक पोंगल है और यह दुनिया भर में तमिल समुदाय द्वारा व्यापक रूप से मनाया जाता है। तमिल सौर कैलेंडर के अनुसार, पोंगल ताई महीने में मनाया जाता है। यह चार दिवसीय आयोजन है जो सूर्य देव को समर्पित है। ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार, पोंगल त्योहार 14 जनवरी 2023 को मनाया जाएगा। यह चार दिवसीय त्योहार है। इसलिए यह 14 जनवरी से 17 जनवरी 2023 तक मनाया जाएगा.

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15 जनवरी - भारतीय सेना दिवस

हर साल 15 जनवरी को भारतीय सेना दिवस के रूप में मनाया जाता है क्योंकि इसी दिन 1949 में फील्ड मार्शल कोडंडेरा एम करियप्पा ने अंतिम ब्रिटिश कमांडर-इन-चीफ जनरल सर फ्रांसिस बुचर से भारतीय सेना के पहले कमांडर-इन-चीफ के रूप में पदभार संभाला था।

16 जनवरी- राष्ट्रीय स्टार्टअप दिवस

प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने वर्ष 2021 में 16 जनवरी को राष्ट्रीय स्टार्टअप दिवस के रूप में घोषित किया। तब से भारतीय स्टार्टअप पारिस्थितिकी तंत्र की सराहना और प्रचार करने के लिए सरकारी और 





गैर-सरकारी संगठनों द्वारा विभिन्न कार्यक्रम और कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं।

16 जनवरी- मार्टिन लूथर किंग जूनियर दिवस

मार्टिन लूथर किंग जूनियर दिवस संयुक्त राज्य अमेरिका में एक संघीय अवकाश है जो जनवरी के तीसरे सोमवार को होता है। यह नागरिक अधिकार नेता मार्टिन लूथर किंग जूनियर के जीवन और विरासत का सम्मान करता है।

17 जनवरी- बेंजामिन फ्रैंकलिन दिवस

हर साल 17 जनवरी को, उनके जन्म की सालगिरह पर, संयुक्त राज्य अमेरिका के सबसे महत्वपूर्ण संस्थापक पिताओं में से एक को सम्मानित करने के लिए बेंजामिन फ्रैंकलिन दिवस मनाया जाता है। यह अमेरिका के सबसे प्रतिष्ठित और महत्वपूर्ण व्यक्तियों में से एक को पहचानने और उनकी कई उपलब्धियों और दुनिया पर उनके प्रभाव के बारे में सोचने का समय है।

18 जनवरी- खरपतवार रहित बुधवार

जनवरी का तीसरा पूरा सप्ताह, कनाडा के वार्षिक राष्ट्रीय धूम्रपान निषेध सप्ताह के बीच रविवार से शुरू होता है, जब खरपतवार रहित बुधवार मनाया जाता है। यह इस वर्ष 18 जनवरी को पड़ता है। इस दिन, तंबाकू और मनोरंजक भांग का धूम्रपान करने वालों से पूरे दिन के लिए अपनी आदत से दूर रहने का आग्रह किया जाता है।

19 जनवरी- कोकबोरोक दिवस

19 जनवरी को, भारतीय राज्य त्रिपुरा कोकबोरोक भाषा को बढ़ावा देने के लक्ष्य के साथ कोकबोरोक दिवस मनाता है, जिसे त्रिपुरी भाषा दिवस भी कहा जाता है। यह दिन वर्ष 1979 का सम्मान करता है जब कोकबोरोक को पहली बार आधिकारिक तौर पर मान्यता दी गई थी।

20 जनवरी 1900 – जनरल के एम करिअप्पा –  भारत के पहले सेनाध्यक्ष, फील्ड मार्शल

20 जनवरी- पेंगुइन जागरूकता दिवस

हर साल 20 जनवरी को पेंगुइन जागरूकता दिवस मनाया जाता है। चूँकि मनुष्य आमतौर पर पेंगुइन के प्राकृतिक आवासों में नहीं रहते हैं, इसलिए प्रजातियों की वार्षिक जनसंख्या में गिरावट पर किसी का ध्यान नहीं जाता है। यह दिन इस महत्वपूर्ण मुद्दे के बारे में जागरूकता बढ़ाने का एक शानदार प्रयास है।

21 जनवरी - त्रिपुरा, मणिपुर और मेघालय स्थापना दिवस

21 जनवरी 1972 को, त्रिपुरा, मणिपुर और मेघालय राज्य उत्तर पूर्वी क्षेत्र (पुनर्गठन) अधिनियम, 1971 के तहत पूर्ण राज्य बन गए। इसलिए, त्रिपुरा, मणिपुर और मेघालय 21 जनवरी को अपना राज्य दिवस मनाते हैं। 

23 जनवरी - नेताजी सुभाष चंद्र बोस जयंती

नेताजी सुभाष चंद्र बोस का जन्म 23 जनवरी 1897 को कटक, उड़ीसा में हुआ था। वह सबसे प्रमुख 




भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों में से एक थे। उनकी सेना को इंडियन नेशनल आर्मी (INA) या आज़ाद हिंद फ़ौज के नाम से जाना जाता था। उन्होंने द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान पश्चिमी शक्तियों के खिलाफ विदेश से एक भारतीय राष्ट्रीय सेना का नेतृत्व भी किया।

24 जनवरी- राष्ट्रीय बालिका दिवस

हर साल 24 जनवरी को, भारत में अधिकांश लड़कियों द्वारा सामना की जाने वाली असमानताओं, शिक्षा के महत्व, पोषण, कानूनी अधिकारों, चिकित्सा देखभाल और बालिकाओं की सुरक्षा आदि को उजागर करने के लिए राष्ट्रीय बालिका दिवस मनाया जाता है।

आतंकवाद विरोधी दिवस

24 जनवरी - अंतर्राष्ट्रीय शिक्षा दिवस

 सभी के लिए समावेशी, न्यायसंगत और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के लिए परिवर्तनकारी कार्यों का समर्थन करने के लिए हर साल 24 जनवरी को अंतर्राष्ट्रीय शिक्षा दिवस मनाया जाता है।

25 जनवरी- राष्ट्रीय मतदाता दिवस

युवा मतदाताओं को राजनीतिक प्रक्रिया में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए हर साल 25 जनवरी को राष्ट्रीय मतदाता दिवस या राष्ट्रीय मतदाता दिवस मनाया जाता है। 2011 में पहली बार यह दिन चुनाव आयोग के स्थापना दिवस के उपलक्ष्य में मनाया गया था।

25 जनवरी- राष्ट्रीय पर्यटन दिवस

पर्यटन के महत्व और भारतीय अर्थव्यवस्था में इसकी भूमिका के बारे में जागरूकता बढ़ाने और लोगों को शिक्षित करने के लिए हर साल 25 जनवरी को भारत में राष्ट्रीय पर्यटन दिवस मनाया जाता है।

26 जनवरी- गणतंत्र दिवस

26 नवंबर, 1949 को भारतीय संविधान सभा ने देश के सर्वोच्च कानून संविधान को अपनाया और भारत सरकार अधिनियम 1935 को प्रतिस्थापित किया। यह 26 जनवरी 1950 को एक लोकतांत्रिक सरकार प्रणाली के साथ लागू हुआ। यह दिन हर साल दिल्ली के राजपथ पर होने वाली सबसे बड़ी परेड का प्रतीक है।

26 जनवरी - अंतर्राष्ट्रीय सीमा शुल्क दिवस

सीमा सुरक्षा बनाए रखने में सीमा शुल्क अधिकारियों और एजेंसियों की भूमिका को पहचानने के लिए सीमा शुल्क संगठन द्वारा हर साल 26 जनवरी को अंतर्राष्ट्रीय सीमा शुल्क दिवस (ICD) मनाया जाता है। यह उन कामकाजी परिस्थितियों और चुनौतियों पर भी ध्यान केंद्रित करता है जिनका सीमा शुल्क अधिकारी अपनी नौकरी में सामना करते हैं।

26 जनवरी- बसंत पंचमी

बसंत पंचमी का भारतीय त्योहार, जिसे सरस्वती पूजा के रूप में भी जाना जाता है, वसंत उत्सव की शुरुआत का प्रतीक है। यह त्योहार आम तौर पर जनवरी के अंत और फरवरी की शुरुआत के बीच 

होता है।





27 जनवरी- राष्ट्रीय भौगोलिक दिवस

हर साल 27 जनवरी को पूरे देश में नेशनल ज्योग्राफिक दिवस मनाया जाता है। यह "नेशनल जियोग्राफ़िक मैगज़ीन" को सम्मानित करने का दिन है, जो एक सदी से भी अधिक समय से लगातार प्रकाशित हो रही है।

28 जनवरी - लाला लाजपत राय की जयंती

लाला लाजपत राय का जन्म 28 जनवरी, 1865 को पंजाब में हुआ था। वह एक प्रमुख राष्ट्रवादी नेता थे जिन्होंने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्हें 'पंजाब केसरी' या 'पंजाब का शेर' की उपाधि भी मिली। उन्होंने पंजाब नेशनल बैंक की स्थापना की शुरुआत की। गंभीर चोटों के कारण 17 नवंबर 1928 को उनकी मृत्यु हो गई। हरियाणा के हिसार में पशु चिकित्सा और पशु विज्ञान विश्वविद्यालय का नाम लाला लाजपत राय के नाम पर रखा गया है।

28 जनवरी- केएम करिअप्पा जयंती 

भारतीय और विश्व इतिहास में 28 जनवरी को विभिन्न कारणों से मनाया, मनाया और याद किया जाता है और उनमें से एक है कोडंडेरा मडप्पा करियप्पा की जयंती। वह भारतीय सेना के पहले कमांडर-इन-चीफ थे। और आज हम उनकी 124वीं जयंती मना रहे हैं।

29 जनवरी- भारतीय समाचार पत्र दिवस

भारत में समाचार पत्रों की शुरुआत का सम्मान करने के लिए निर्धारित एक दिन को भारतीय समाचार पत्र दिवस के रूप में जाना जाता है। इस दिन का उद्देश्य भारतीय समाचार पत्रों के बारे में जागरूकता बढ़ाना है। प्रत्येक वर्ष 29 जनवरी को मनाया जाने वाला भारतीय समाचार पत्र दिवस आज है। हालाँकि, इस महत्वपूर्ण अवसर को मनाने के लिए कोई थीम नहीं है।

30 जनवरी - शहीद दिवस या शहीद दिवस

महात्मा गांधी और भारत के तीन क्रांतिकारियों के बलिदान की याद में हर साल 30 जनवरी को शहीद दिवस या शहीद दिवस के रूप में मनाया जाता है। जैसे, 30 जनवरी 1948 को 'राष्ट्रपिता' की हत्या कर दी गई। और 23 मार्च को देश के 3 नायकों भगत सिंह, शिवराम राजगुरु और सुखदेव थापर को अंग्रेजों ने फांसी पर लटका दिया था।

30 जनवरी - विश्व कुष्ठ रोग दिवस

बच्चों में कुष्ठ रोग से संबंधित विकलांगता के शून्य मामलों के लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित करने के लिए जनवरी के आखिरी रविवार को विश्व कुष्ठ दिवस मनाया जाता है। जैसा कि हम जानते हैं कि विकलांगता रातोंरात नहीं होती बल्कि लंबे समय तक अज्ञात बीमारी के बाद होती है।

31 जनवरी- अंतर्राष्ट्रीय ज़ेबरा दिवस

हर 31 जनवरी को दुनिया भर के लोग अंतर्राष्ट्रीय ज़ेबरा दिवस मनाते हैं। इस दिन का उद्देश्य इस बारे में ज्ञान फैलाना है कि आप इस जानवर के संरक्षण में कैसे सहयोग कर सकते हैं।

तो, ये जनवरी 2023 के राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय महत्वपूर्ण दिन हैं जो कई परीक्षाओं की तैयारी में मदद कर सकते हैं और आपके ज्ञान को भी बढ़ा सकते हैं।





किसके साथ क्या खाया जाता जाने 

दूध और नमक का संयोग किसी भी स्किन डीजीज को जन्म दे सकता है, बाल असमय सफ़ेद... होना या बाल झड़ना भी स्किन डीजीज ही है ! दही के साथ खरबूजा, पनीर, दूध और खीर नहीं खानी चाहिए ठंडे जल के साथ घी, तेल, खरबूज, अमरूद, ककड़ी, खीरा, जामुन ,मूंगफली कभी नहीं | शहद के 

साथ मूली , अंगूर, गरम खाद्य कभी नहीं खीर के साथ सत्तू, शराब, खटाई, खिचड़ी ,कटहल कभी नहीं घी के साथ बराबर मात्र में शहद और चीनी भूल कर भी नहीं खाना चाहिए ये तुरंत जहर का काम करेगा ! तरबूज के साथ पुदीना या ठंडा पानी कभी नहीं,चावल के साथ सिरका कभी नहीं !,चाय के साथ ककड़ी खीरा भी कभी मत खाएं ! खरबूज के साथ दूध, दही, लहसून और मूली कभी नहीं ।

कुछ चीजों को एक साथ खाना अमृत का काम करता है जैसे -:

 खरबूजे के साथ चीनी,इमली के साथ गुड,गाजर और मेथी का साग !,बथुआ और दही का रायता !,मकई के साथ मट्ठा ! अमरुद के साथ सौंफ ! तरबूज के साथ गुड ! मूली और मूली के पत्ते !अनाज या दाल के साथ दूध या दही !आम के साथ गाय का दूध ! चावल के साथ दही ! खजूर के साथ दूध ! चावल के साथ नारियल की गिरी ! केले के साथ इलायची !

 कभी कभी कुछ चीजें बहुत पसंद होने के कारण , हम उसे बहुत ज्यादा खा लेते हैं..जानिये अगर ज्यादा खा ली हैं तो , उसे कैसे पचाया जाएँ :-

 केले की अधिकता में दो छोटी इलायची ! आम पचाने के लिए आधा चम्म्च सोंठ का चूर्ण और गुड !,जामुन ज्यादा खा लिया तो 3-4 चुटकी नमक !,सेब ज्यादा हो जाए तो दालचीनी का चूर्ण एक ग्राम !

खरबूज के लिए आधा कप चीनी का शरबत ! .तरबूज के लिए सिर्फ एक लौंग ! अमरूद के लिए सौंफ 





!,नींबू के लिए नमक !,बेर के लिए सिरका ! गन्ना ज्यादा चूस लिया हो तो 3-4 बेर खा लीजिये ! चावल ज्यादा खा लिया है तो आधाचम्म्च अजवाइन पानी से निगल लीजिये !,बैगन के लिए सरसो का तेल एक चम्म्च !,मूली ज्यादा खा ली हो तो एक चम्म्च काला तिल चबा लीजिये !,बेसन ज्यादा खाया हो तो मूली के पत्ते चबाएं !,खाना ज्यादा खा लिया है तो थोड़ी दही खाइये !,मटर ज्यादा खाई हो तो अदरक चबाएं !,इमली - उड़द की दाल - मूंगफली - शकरकंद या जिमीकंद ज्यादा खा लीजिये तो फिर गुड खाइये !

मुंग या चने की दाल ज्यादा खालिये हों तो एक चम्म्च सिरका पी लीजिये !,मकई ज्यादा खा गये हो तो मट्ठा पीजिये !,घी या खीर ज्यादा खा गये हों तो काली मिर्च चबाएं !,पूरी कचौड़ी ज्यादा हो जाए तो गर्म पानी पीजिये ! अगर सम्भव हो तो भोजन के साथ ,दो नींबू का रस आपको जरूर ले लेना चाहिए या पानी में मिला कर पीजिये या भोजन में निचोड़ लीजिये ,80% बीमारियों से बचे रहेंगे ! अब ये जानिये कि किस महीने में क्या नही खाना चाहिए और क्या जरूर खाना चाहिए - चैत में गुड बिलकुल नहीं खाना ,नीम की पत्ती /फल, फूल खूब चबाना।बैसाख में नया तेल नहीं खाना ,चावल खूब खाएं ! जेठ में दोपहर में चलना मना है, दोपहर में सोना जरुरी है ! आषाढ़ में पका बेल खाना मना है, घर की मरम्मत जरूरी है ! सावन में साग खाना मना है, हर्रे खाना जरूरी है ! भादो मे दही मत खाना, चना खाना जरुरी है ! कुवार में करेला मना है, गुड खाना जरुरी है ! कार्तिक में जमीन पर सोना मना है, मूली खाना जरूरी है ! अगहन में जीरा नहीं खाना , तेल खाना जरुरी है ! पूस में धनिया नहीं खाना, दूध पीना जरूरी है ! माघ में मिश्री मत खाना ,खिचड़ी खाना जरुरी है ! फागुन में चना मत खाना, प्रातः स्नान और नाश्ता जरुरी है। खाद्य कभी नहीं खीर के साथ सत्तू, शराब, खटाई,खिचड़ी ,कटहल कभी नहीं,घी के साथ बराबर मात्र में शहद और चीनी भूल कर भी नहीं खाना चाहिए ये तुरंत जहर का काम करेगा ! .तरबूज के साथ पुदीना या ठंडा पानी कभी नहीं,चावल के साथ सिरका कभी नहीं ! चाय के साथ ककड़ी खीरा भी कभी मत खाएं ! खरबूज के साथ दूध, दही, लहसून और मूली कभी नहीं । कुछ चीजों को एक साथ खाना अमृत का काम करता है जैसे -: खरबूजे के साथ चीनी,.इमली के साथ गुड,गाजर और मेथी का साग ! बथुआ और दही का रायता ! मकई के साथ मट्ठा ! अमरुद के साथ सौंफ ! तरबूज के साथ गुड ! मूली और मूली के पत्ते ! अनाज या दाल के साथ दूध या दही ! आम के साथ गाय का दूध !चावल के साथ दही ! खजूर के साथ दूध ! चावल के साथ नारियल की गिरी ! केले के साथ इलायची !

भारतीय व्रतोत्सव जनवरी -2024

दि. 4-कालाष्टमी,दि.7- सफला एकादशी व्रत,दि. १- प्रदोषव्रत,मासशिवरात्रि,दि.11-अमावस्या पुण्य,दि. 12-स्वामी विवेकानन्द जयंती,दि. 13-लोहिड़ी (पंजाब),दि. 14- मकर संक्रांति, पुण्य काल अगले दिन, गंगा सागर यात्रा, विनायक चतुर्थी,दि. 17-गुरु गोविन्द सिंह जयंती,दि. 18-श्री दुर्गाष्टमी, शाकम्भरी पूजा प्रारम्भ,दि.21-पुत्रदा एकादशी व्रत,दि.23-भौम प्रदोष व्रत,दि.25-सत्य व्रत,पौषी पूर्णिमा, शाकम्भरी जयंती, माघ स्नान प्रारम्भ,दि. 29-श्री गणेश चतुर्थी व्रत,संकटहारिणी चतुर्थी,चंद्रोदय 21/11 बजे


समय चक्र

अर्पित मिश्र,नोएडा

सूर्य को राहु ने क्या डसा, तारे भी टिमटिमाने लगे

जो रोशन होते थे चांद से कभी, सूरज को आंखें दिखाने लगे

समय चक्र का था ये खेल, पुरुषार्थ कह इतराने लगे

सूर्य को राहु ने क्या डसा, तारे भी टिमटिमाने लगे।। 

हवाओं के जोर से उड़ती पतंगे, बाज से टकराने लगीं

बहाव में बहने वाली नावें, जहाजों को पाठ पढ़ाने लगीं

रात कुछ दूर जो ठहरी, ज्योति भी आँख दिखाने लगी

सूर्य को राहु ने क्या डसा, तरइया भी टिमटिमाने लगी।। 

मेघ कड़क कर क्या बरसे, नदियाँ समुद्र को समझाने लगीं

सत्य कुछ देर जो ठहरा, झूठ अट्टाहस् करने लगा

हवाएं कुछ तेज क्या बह चलीं, तिनके गरुङ बन लहराने लगे

सूर्य को राहु ने क्या डसा, तारे भी टिमटिमाने लगे।। 







सुनता है गुरु ज्ञानी ।

गगन में आवाज हो रही, झीनी झीनी झीनी ।। टेक।।

पहिले आये नादबिंदु से, पीछे जमाया पानी ।

सब घट पूरन पूर रह्या है, अलख पुरुष निर्वाणी, हो जी ।। १ ।।

वहां से आया, पटा लिखाया, तृष्णा तोउ ने बुझाई ।

अमृत छोड़ छोड़ विषय को धावै, उलटी फास फ़सानी, हो जी ।। २ ।।

गगन मण्डल में गौ बियानी, भी पै दई जमाया ।

माखण माखण संतों ने खाया, छाछ जगत बपरानी, हो जी ।। ३ ।।

बिन धरती एक मण्डल दीसे, बिन सरोवर ज्यूँ पानी रे ।

गगन मण्डल बीच होय उजियारा, बोले गुरु मुखबानी, हो जी ।। ४ ।।

ओहम् सोहम् बाजा बाजे, त्रिकुटी धाम सुहानी रे ।

इड़ा पिंगला सुखमन नाड़ी, सुन धजा फहरानी, हो जी ।। ५ ।।

कहे कबीरा सुनो भाई साधो, जाई अगम की बानी रे ।

दिन भर रे जो नजर भर देखे, अजर अमर वो निशानी, हो जी ।। ६ ।।






 मुझको सब लगते अपने।

अरविंद तिवारी   

        तन तो पहले ही चंदन था

        मन कस्तूरी हो गया!

        अब तो प्रियतम प्यार निभाना

         बहुत ज़रूरी हो गया!

         अंगिया आंच लगाए मेरी

          चुनरी चैन चुराए।

           यौवन भार दबी मैं जाऊं

            कैसे ये उठ पाए।

            कविता कितने जयदेवों की

             मुझ से हार गई।

             लेकिन हाय निगोड़ी पुरवा

              मुझको मार गई।

           मन का भाव अधर तक आया

           बात अधूरी हो गया!

 तन तो रहे सहमता डरता मनवा भरे कुलांचें।

             कैसे शांत रहे तन जब मन

              प्यार की चिठिया बांचे।

              पढ़कर आखर आखर पाती

              तन मन दोऊ रीझे।

          जैसे सावन मेहा बरसे  गोरी कोई भीजे।

             तन तो पहले ही शराब था

              मन अंगूरी हो गया

   मैं अनजान रही ना जाने कैसे कब हुआ।

              मन मेरा हो गया कि जैसे

              पका हुआ महुआ।

              चांद चांदनी मोर पपीहे

               मुझको सब लगते अपने।

               रात कलमुंही मुझसे पूछे

               कितने लोगी तुम सपने।

               तन तो पहले ही मंडप था

               मन सिंदूरी हो गया!

               अब तो फागुन के आते ही

               बगिया जब बौराए।

               मन में तन घुल जाए जैसे

               शरबत कोई बनाए।

          पहले तेरी हां थी लेकिन मेरी ना रही।

               अब तो पायल बिंदिया झुमका

                सबने हां कही।

               आश्वासन भी अर्थ बदलकर

                 अब मंजूरी हो गया!

                 अब तो प्रियतम प्यार निभाना 

                  बहुत ज़रूरी हो गया!

                          


               



भद्रा विचार  जनवरी -2024

भद्रा काल का शुभ अशुभ विचार - भद्रा काल में विवाह मुंडन, गृह प्रवेश, रक्षाबंधन आदि मांगलिक कृत्य का निषेध माना जाता है परंतु भद्रा काल में शत्रु का उच्चाटन करना,स्त्री प्रसंग में,यज्ञ करना,स्नान करना,अस्त्र शस्त्र का प्रयोग,ऑपरेशन कराना, मुकदमा करना,अग्नि लगाना,किसी वस्तु को काटना,भैस,घोड़ा व ऊंट संबंधी कार्य प्रशस्त माने जाते हैं सामान्य परिस्थिति में विवाह आदि शुभ मुहूर्त में भद्रा का त्याग करना चाहिए परंतु आवश्यक परिस्थितिवश अति आवश्यक कार्य भूलोक की भद्रा ,भद्रा मुख छोड़कर कर भद्रा पुच्छ में शुभ कार्य कर सकते है |

अधिक जानकारी के लिए संपर्क करे शर्मा जी - 9312002527,9560518227

दिनांक 

शुरू 

दिनांक 

समाप्त 

02   

17-10 

03 

06-29 

06 

12-20 

07 

00-42 

09 

22-25 

10 

09-22 

14 

28-29 

15 

04-59 

17 

22-06 

18 

09-22 

21 

07-24 

21 

19-27 

24 

21-50 

25 

10-34 

28 

16-52 

29 

06-11 


अधिक जानकारी के लिए संपर्क करे शर्मा जी - 9312002527,9560518227

  मांगलिक दोष विचार परिहार

वर अथवा कन्या दोनों में से किसी की भी कुंडली में 1,4,7,8 व 12 भाव में मंगल होने से ये मांगलिक माने जाते हैं,मंगली से मंगली के विवाह में दोष न होते हुए भी जन्म पत्रिका के अनुसार गुणों को मिलाना ही चाहिए यदि मंगल के साथ शनि अथवा राहु केतु भी हो तो प्रबल मंगली डबल मंगली योग होता है | इसी प्रकार गुरु अथवा चंद्रमा केंद्र हो तो दोष का परिहार भी हो जाता है |इसके अतिरिक्त मेष वृश्चिक मकर का मंगल होने से भी दोष नष्ट हो जाता है | इसी प्रकार यदि वर या कन्या किसी भी कुंडली में 1,4,7,9,12 स्थानों में शनि हो केंद्र त्रिकोण भावो में शुभ ग्रह, 3,6,11 भावो में पाप ग्रह हों तो भी मंगलीक दोष का आंशिक परिहार होता है, सप्तम ग्रह में यदि सप्तमेश हो तो भी दोष निवृत्त होता है |




सर्वार्थ सिद्धि योग जनवरी -2024 

दैनिक जीवन में आने वाले महत्वपूर्ण कार्यों के लिए शीघ्र ही किसी  शुभ मुहूर्त का अभाव हो,किंतु शुभ मुहर्त के लिए अधिक दिनों तक रुका ना जा सकता हो तो इन सुयोग्य वाले मुहर्तु  को सफलता से ग्रहण किया जा सकता है | इन से प्राप्त होने वाले अभीष्ट फल के विषय में संशय नहीं करना चाहिए यह योग हैं सर्वार्थ सिद्धि,अमृत सिद्धि योग एवं रवियोग | योग्यता नाम तथा गुण अनुसार सर्वांगीण सिद्ध कारक  है| 

अधिक जानकारी के लिए संपर्क करे शर्मा जी - 9312002527,9560518227

दिनांक

प्रारंभ

दिनांक

समाप्त

03   

14-45 

04 

07-19 

06 

07-19 

06 

21-23 

08 

07-19 

08 

22-02 

12 

15-18 

13 

12-49 

16 

07-18 

17 

04-37 

18 

07-18 

19 

02-57 

21 

03-09 

21 

07-18 

22 

07-18 

23 

04-58 

25 

07-17 

26 

07-16 

31 

07-14 

01 

01-07


स्वयं सिद्ध मुहूर्त

 स्वयं सिद्ध मुहूर्त चैत्र शुक्ल प्रतिपदा वैशाख शुक्ल तृतीया अक्षय तृतीया आश्विन शुक्ल दशमी विजयदशमी दीपावली के प्रदोष काल का आधा भाग भारत में से इसके अतिरिक्त लोकाचार और देश आचार्य के अनुसार निम्नलिखित कृतियों को भी स्वयं सिद्ध मुहूर्त माना जाता है बडावली नामी देव प्रबोधिनी एकादशी बसंत पंचमी फुलेरा दूज इन में से किसी भी कार्य को करने के लिए पंचांग शुद्धि देखने की आवश्यकता नहीं है परंतु विवाह आदि में तो पंचांग में दिए गए मुहूर्त व कार्य करना श्रेष्ठ रहता है।

ग्रह स्थिति जनवरी -2024

दि. 2 बुध मार्गी दि. 7 बुध धनु में दि. 14 मंगल पूर्वोदय,दि. 14 सूर्य मकर में,दि. 18 शुक्र धनु में





सुर्य उदय- सुर्य अस्त जनवरी -2024 


दिनांक

उदय 

दिनांक

अस्त 

07 -1 8 

1

17-31 

5

07-19 

5

17-34 

10

07-19 

10

17-38 

15

07-19 

15

17-42 

20

07-18 

20

17-46 

25

07-17 

25

17-50 

30

07-14 

30

17-55

 

 राहू काल 

 राहुकाल -राहुकाल दक्षिण भारत की देन है,दक्षिण भारत में राहु काल में कृत्य करना अच्छा नहीं माना जाता, राहु काल में शुभ कृतियों में वर्जित करने की परंपरा अब हमारे उत्तरी भारत में भी अपनाने लगे हैं राहुकाल प्रतिदिन सूर्यादि वारों में भिन्न-भिन्न समय पर केवल डेढ़ डेढ़ घंटे के लिए घटित होता है |

अधिक जानकारी के लिए संपर्क करे शर्मा जी - 9312002527,9560518227






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9560518227


गुरु, ज्ञान और आध्यात्मिक विकास का स्रोत

  गुरु, ज्ञान और आध्यात्मिक विकास का स्रोत सतीश शर्मा  गुरु पूर्णिमा, आषाढ़ मास की पूर्णिमा को मनाई जाती है, और यह दिन गुरुओं के प्रति सम्मा...